प्रश्न
- चित्र में क्या दिखायी दे रहा है?
उत्तर – चित्र में एक व्यक्ति के दो हाथ दिखाई दे रहे हैं जो टूटे हुए धागे में गाँठ लगा रहे हैं।
- यहाँ हाथों से क्या किया जा रहा है?
उत्तर – यहाँ हाथों से धागे में गाँठ लगाया जा रहा है।
- जीवन में दोस्ती का क्या महत्त्व है?
उत्तर – जीवन में दोस्ती का बहुत महत्त्व है। यह दोस्ती का संबंध भावनाओं और वैचारिक समानता के कारण स्थापित होता है जिससे हमारे जीवन में आत्मीयजनों की संख्या बढ़ती है और हमारे अच्छे-बुरे वक्त में भी हमारे साथ लोग खड़े मिलते हैं।
उद्देश्य
नीति दोहों का संकलन व पठन कर नैतिक भावनाओं से जीवन मूल्यों का विकास करना-
कवि परिचय
कबीर दास
कबीर दास ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। माना जाता है कि इनका जन्म सन् 1398 में हुआ था। कबीर की वाणी का संग्रह बीजक है। इसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी। इनकी भाषा सधुक्कड़ी है। इनकी रचनाएँ मानवता पर बल देती हैं। इनका निधन सन् 1528 में हुआ।
कवि परिचय
कवि वृंद
कवि वृंद का पूरा नाम वृंदावन दास है। इनका जन्म सन् 1643 में हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश संधि, वचनिका, सत्य स्वरूप, यमक सतसई, हितोपदेशाष्टक, भारत कथा आदि। इनकी रचनाओं में नीति वचनों की सुगंध है। इनका निधन सन् 1723 में हुआ।
कबीर के दोहे
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय॥
साई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।
वृंद के दोहे
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि॥
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै बिरवा आक को, आम कहाँ तें होय॥
करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।
कबीर के दोहे – व्याख्या सहित
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
व्याख्या –
मनुष्य जब दुख में होता है, तब वह भगवान का स्मरण करता है, लेकिन जब वह सुखी होता है तो ईश्वर को भूल जाता है। कबीर कहते हैं कि यदि मनुष्य सुख में भी भगवान का स्मरण करे, तो उसे दुःख का सामना ही नहीं करना पड़ेगा।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय॥
व्याख्या –
इस दोहे में कबीर धैर्य और समय के महत्त्व को बताते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी कार्य को धीरे-धीरे और धैर्यपूर्वक करने से ही सफलता मिलती है। जैसे माली अगर पौधे को सौ घड़े पानी भी डाल दे, तो भी फल ऋतु आने पर ही लगते हैं। अतः धैर्य और निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
साई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।
व्याख्या –
इस दोहे में कबीर संतोष और उदारता की भावना को प्रकट करते हैं। वे ईश्वर से अधिक धन की कामना नहीं करते, बल्कि उतना ही चाहते हैं जिससे उनका परिवार और अतिथि (साधु) भूखे न रहें। यह हमें लोभ से दूर रहने और परोपकार की भावना रखने की शिक्षा देता है।
वृंद के दोहे – व्याख्या सहित
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि॥
व्याख्या –
अच्छे लोगों के साथ रहने से स्वाभाविक ही सुख मिलता है। जैसे राजा जब किसी वस्तु को अपने दरबार में ले आता है, तो सभा के लोग उसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। इसी प्रकार सज्जन व्यक्तियों की संगति से मनुष्य का जीवन सुखमय बन जाता है।
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै बिरवा आक को, आम कहाँ तें होय॥
व्याख्या –
वृंददास कहते हैं कि जो व्यक्ति बुरे कार्य करता है और सुख की कामना रखता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता। जैसे कोई व्यक्ति आक (एक कड़वा पौधा) लगाए और आम की आशा करे, तो यह असंभव है। अतः अच्छे कर्मों से ही अच्छे फल मिलते हैं।
करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।
व्याख्या –
इस दोहे में वृंद अभ्यास के महत्त्व को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है, जैसे कुएं में रस्सी के बार-बार चलने से पत्थर पर निशान पड़ जाते हैं। अतः किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है।
शब्द (हिंदी) | अर्थ (हिंदी में) | అర్థం (తెలుగులో) | Meaning (in English) |
सुमिरन | याद, ध्यान | స్మరణ, ధ్యానం | Remembrance, Meditation |
दुःख | कष्ट, पीड़ा | దుఃఖం, బాధ | Sorrow, Pain |
सुख | आनंद, प्रसन्नता | సుఖం, ఆనందం | Happiness, Joy |
माली | बाग़ का रखवाला | తోటమాలి | Gardener |
सींचे | पानी देना | నీరు పోయడం | Watering |
ऋतु | मौसम, समय | ఋతువు, కాలం | Season, Time |
फल | परिणाम, मीठा फल | ఫలం, ఫలితం | Fruit, Result |
कुटुंब | परिवार | కుటుంబం | Family |
भूखा | जिसे भोजन न मिला हो | ఆకలితో ఉన్నవాడు | Hungry |
साधु | संत, नेक व्यक्ति | సాధువు, సన్యాసి | Saint, Noble Person |
उत्तम | श्रेष्ठ, बेहतरीन | ఉత్తమం, శ్రేష్ఠం | Best, Excellent |
संग | साथ, मेलजोल | సాంగత్యం, సమాఖ్య | Company, Association |
बुराई | दोष, खराबी | చెడు, దోషం | Evil, Badness |
बिरवा | पौधा, वृक्ष | మొక్క, చెట్టు | Plant, Tree |
अभ्यास | प्रैक्टिस, अभ्यास | సాధన, అభ్యాసం | Practice, Repetition |
जड़मति | कम बुद्धि वाला | మూర్ఖుడు, అజ్ఞాని | Foolish, Ignorant |
रसरी | रस्सी | తాడు, రెబ్బు | Rope, Cord |
निसान | चिन्ह, निशान | గుర్తు, లక్షణం | Mark, Symbol |
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
(अ) इन प्रश्नों के उत्तर सोचकर दीजिए।
- कबीर के बारे में बताइए।
उत्तर – कबीर एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। उनकी रचनाएँ सरल और व्यावहारिक थीं, जो समाज को सत्य, ईमानदारी, और ईश्वर भक्ति की राह दिखाती हैं।
- अभ्यास का क्या महत्त्व है?
उत्तर – अभ्यास से कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। निरंतर अभ्यास से मनुष्य की बुद्धि विकसित होती है और वह निपुण बन जाता है। अभ्यास से ही व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
(आ) भाव से संबंधित दोहा लिखिए।
- सुख में ईश्वर का ध्यान रखनेवाले को दुख नहीं होता।
उत्तर – दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
- सज्जन के साथ रहने से सुख मिलता है।
उत्तर – उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि॥
(इ) दोहा पढ़िए। भाव अपने शब्दों में बताइए।
- धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय॥
उत्तर – इस दोहे का भाव है कि किसी भी कार्य को धैर्य और निरंतर प्रयास से करना चाहिए। सफलता एकदम से नहीं मिलती, बल्कि सफलता समय के साथ मिलती है।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
(अ) प्रश्नोत्तर
- कबीर की दृष्टि में ‘किसी काम को धीरे-धीरे करना इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर – कबीर कहते हैं कि किसी भी कार्य को धैर्य और निरंतर प्रयास से करना चाहिए। जल्दीबाजी में किए गए कार्य का परिणाम अच्छा नहीं होता। समय के साथ ही सफलता प्राप्त होती है।
- हमें किन प्रयत्नों से सफ़लता मिल सकती है?
उत्तर – हमें सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास, मेहनत, धैर्य और सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है।
- भगवान का स्मरण कब करना चाहिए? क्यों?
उत्तर – भगवान का स्मरण हर समय करना चाहिए, न कि केवल दुख के समय में। जो व्यक्ति सुख में भी भगवान को याद करता है, उसे कभी दुख नहीं भोगना पड़ता।
(आ) तुलना कीजिए।
कबीर व वृंद के दोहों में क्या अंतर स्पष्ट होता है?
उत्तर – कबीर के दोहे जीवन के आध्यात्मिक पक्ष और नैतिक मूल्यों पर केंद्रित हैं। वे ईश्वर भक्ति, धैर्य, और संतोष पर बल देते हैं।
वृंद के दोहे व्यवहारिक जीवन, सत्संग, और मेहनत के महत्त्व को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि सत्संग से सुख मिलता है और बुरी संगति से हानि होती है।
(इ) कुछ नीति संबंधी नारे लिखिए।
उत्तर – कर्म ही सच्ची पूजा है।
ईमानदारी ही सबसे बड़ी संपत्ति है।
जो मेहनत करेगा, वही सफलता पाएगा।
बुरे कर्मों का फल भी बुरा ही होता है।
सत्य की राह पर चलो, सफलता तुम्हारे साथ होगी।
(ई) कबीर और रहीम के दोहे हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? बताइए।
उत्तर – कबीर और रहीम के दोहे हमें जीवन की सच्चाइयों को समझने में मदद करते हैं। कबीर के दोहे ईश्वर भक्ति, सच्चाई, और धैर्य का पाठ पढ़ाते हैं, जबकि रहीम के दोहे विनम्रता, प्रेम, और परोपकार की शिक्षा देते हैं। इन दोहों को अपनाकर हम एक अच्छा और नैतिक जीवन जी सकते हैं।
भाषा की बात
(अ) ‘जड़मति‘ शब्द जड़ और मति शब्दों के जोड़ने पर बना है। ऐसे ही कुछ और शब्द बनाइए।
उत्तर – धनदास = धन + दास
विद्यापीठ = विद्या + पीठ
दीनदयाल = दीन + दयाल
सुखदुख = सुख + दुख
ज्ञानदीप = ज्ञान + दीप
राजपथ = राज + पथ
धैर्यशील = धैर्य + शील
कर्मयोग = कर्म + योग
सत्कर्म = सत् + कर्म
लोकहित = लोक + हित
परियोजना कार्य
कुछ दोहे संकलित कीजिए।
उत्तर – कबीर के दोहे
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
अर्थ: केवल बड़ा होने से कोई महान नहीं बनता, जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा तो होता है, लेकिन उसकी छाया किसी को नहीं मिलती और फल भी दूर रहते हैं।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
अर्थ: लोग दुख में ईश्वर को याद करते हैं, लेकिन सुख में भूल जाते हैं। यदि वे सुख में भी ईश्वर को याद करें, तो उन्हें दुख क्यों होगा?
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय॥
अर्थ: हर काम धैर्य से करने पर ही सफलता मिलती है। जैसे माली पेड़ को बहुत पानी देता है, पर फल तो मौसम आने पर ही लगते हैं।
रहीम के दोहे
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए॥
अर्थ: प्रेम एक नाजुक धागे की तरह होता है, जिसे झटके से तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि यह एक बार टूट जाए तो फिर जुड़ने पर भी उसमें गाँठ रह जाती है।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकै कुसंग।
चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
अर्थ: जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है, वह बुरी संगति से भी प्रभावित नहीं होता, जैसे चंदन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद साँप उसे जहरीला नहीं बना सकते।
बरसे जब जब प्रेम रस, दारुण विष भी पिए।
रहिमन प्रेम न सूखिए, तटिनी ठौर न दिए॥
अर्थ: प्रेम एक ऐसा अमृत है जो विष को भी पी सकता है, लेकिन प्रेम को सूखने नहीं देना चाहिए, क्योंकि प्रेमहीन जीवन बंजर भूमि के समान होता है।
वृंद के दोहे
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि॥
अर्थ: अच्छे लोगों की संगति में स्वाभाविक रूप से सुख मिलता है, जैसे राजा जब किसी चीज़ को सभा में लाता है, तो लोग उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं।
करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान॥
अर्थ: निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख भी बुद्धिमान बन जाता है, जैसे कुएँ से पानी निकालने वाली रस्सी के बार-बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं।
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै बिरवा आक को, आम कहाँ तें होय॥
अर्थ: जो बुरा करता है, वह सुख की आशा कैसे कर सकता है? जैसे यदि कोई आक (जहरीला पौधा) लगाए, तो उससे आम फलने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
सोचिए –
आप अपने सहपाठियों में क्या देखकर दोस्ती करते हैं? रंग-रूप, कपड़े, परिवार का स्तर, गुण, व्यवहार या बुद्धिमत्ता?
उत्तर – दोस्ती करने का आधार रंग-रूप, कपड़े या परिवार का स्तर नहीं होना चाहिए। सच्ची दोस्ती अच्छे गुणों, व्यवहार और समझदारी पर आधारित होती है। मैं अपने सहपाठियों में उनकी ईमानदारी, सहयोग की भावना, सकारात्मक सोच, सम्मानजनक व्यवहार और सच्चाई देखकर दोस्ती करना पसंद करूंगा/करूंगी।
जो मित्र समझदार, दयालु, और विश्वासयोग्य होते हैं, वे जीवन में सच्चे साथी साबित होते हैं। उनके साथ समय बिताने से हम अच्छे संस्कार और प्रेरणा प्राप्त करते हैं, जो हमारी सफलता और खुशी में सहायक होते हैं।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-वाक्य में दीजिए-
प्रश्न – दुख में लोग क्या करते हैं?
उत्तर – दुख में लोग भगवान को याद करते हैं।
प्रश्न – सुख में ईश्वर का स्मरण करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर – सुख में ईश्वर का सुमिरन करने से दुख नहीं आता।
प्रश्न – माली कितने घड़े पानी सींचता है?
उत्तर – माली सौ घड़ा पानी सींचता है।
प्रश्न – फल कब प्राप्त होते हैं?
उत्तर – ऋतु आने पर फल प्राप्त होते हैं।
प्रश्न – कबीर ने भगवान से क्या माँगा?
उत्तर – कबीर ने इतना माँगा कि स्वयं और साधु भूखे न रहें।
प्रश्न – बुराई करने वाले को क्या प्राप्त होता है?
उत्तर – बुराई करने वाले को सुख नहीं मिलता।
प्रश्न – अभ्यास से क्या लाभ होता है?
उत्तर – अभ्यास से मूर्ख भी बुद्धिमान बन सकता है।
प्रश्न – रस्सी के बार-बार घर्षण से पत्थर पर क्या होता है?
उत्तर – रस्सी के बार-बार घर्षण से पत्थर पर निशान पड़ जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न – सुख और दुख में स्मरण करने की तुलना कबीर ने कैसे की?
उत्तर – कबीर कहते हैं कि लोग केवल दुःख में भगवान को याद करते हैं, लेकिन यदि वे सुख में भी स्मरण करें, तो उन्हें कभी दुःख नहीं होगा।
प्रश्न – अच्छे लोगों के संगति का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर – अच्छे लोगों की संगति से स्वाभाविक रूप से सुख की प्राप्ति होती है, जैसे राजा की सभा में आने वाला व्यक्ति सम्मानित होता है।
प्रश्न – कबीर की दृष्टि में अभ्यास का क्या महत्त्व है?
उत्तर – कबीर बताते हैं कि निरंतर अभ्यास से एक जड़ बुद्धि वाला व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है, जैसे रस्सी के बार-बार घिसने से पत्थर पर निशान पड़ जाता है।
प्रश्न – कबीर के अनुसार ईश्वर से कितनी संपत्ति माँगनी चाहिए?
उत्तर – कबीर कहते हैं कि ईश्वर से उतना ही माँगना चाहिए जिससे स्वयं और अतिथि दोनों की भूख मिट सके, न अधिक, न कम।
प्रश्न – बुरे कर्मों का फल किस प्रकार मिलता है?
उत्तर – वृंद कहते हैं कि जो बुराई करता है, वह सुख की चाह तो रखता है, लेकिन बबूल का पौधा लगाकर आम की अपेक्षा करना व्यर्थ है।