सम्मक्का-सारक्का जातरा
भारतीय संस्कृति विश्व में विशेष स्थान रखती है। यहाँ सभी धर्मों, जातियों के लोग मिलजुलकर रहते हैं। इसका एक उदाहरण है- सम्मक्का-सारक्का जातरा। यह जातरा तेलंगाणा राज्य का एक प्रमुख जनजातीय मेला है। यह जयशंकर भूपालपल्ली जिले के सम्मक्का-सारक्का ताडवाई मंडल के मेडारम गाँव में धूम-धाम से मनाया जाता है।
यह वरंगल से लगभग 110 किलोमीटर दूर है। ताडवाई मंडल के घने जंगलों व पहाड़ों में स्थित मेडारम में इस ऐतिहासिक जातरा का आयोजन किया जाता है। विश्वास है कि समस्त जनजातीय लोगों की देवी सम्मक्का-सारक्का अत्यंत महिमावान हैं। विविध प्रांतों से लोग यहाँ पर आकर वन देवता के रूप में सम्मक्का-सारक्का की पूजा करते हैं। यह यहाँ की सबसे बड़ी जनजातीय जातरा है। यह जातरा पूरी तरह से जनजातीय रीति-रिवाजों के अनुसार आयोजित की जाती है। सन् 1996 में आंध्र प्रदेश (अविभक्त) राज्य सरकार ने इस जातरा को राज्य त्यौहार के रूप में गौरवान्वित किया।
12वीं शताब्दी में तत्कालीन करीमनगर जिले के जगित्याल प्रांत के पोलवासा के जनजातीय शासक मेडराजू की इकलौती पुत्री सम्मक्का का विवाह मेडारम के शासक पगिडिद्दा राजू के साथ हुआ। इस दंपति को सारलम्मा (सारक्का), नागुलम्मा और जंपन्ना नामक तीन संतान हुई। राज्य विस्तार की आकांक्षा से काकतीय नरेश प्रथम प्रतापरुद्र ने पोलवासा पर आक्रमण किया था। उनके आक्रमण के कारण मेडराजू मेडारम से भागकर अज्ञात में रहने लगे। मेडारम के शासक कोया जाति के नरेश पगिडिद्दा राजू काकतीय सामंत के रूप में रहने लगे। किंतु अकाल के कारण वे काकतीय नरेश को कर देने में विफल हुए। काकतीय नरेश इस पर नाराज़ हो गए। अतः प्रथम प्रतापरुद्र ने अपने महामंत्री युगंधर के साथ माघ पूर्णिमा के दिन मेडारम पर आक्रमण कर दिया।
सांप्रदायिक ढंग से अस्त्र-शस्त्र धारण कर पगिडिद्दा राजू सम्मक्का, सारक्का, नागुलम्मा, जंपन्ना, गोविंदराजू अलग-अलग प्रांतों से गोरिला युद्ध आरंभ कर वीरता से लड़ते हैं। किंतु प्रशिक्षित और बहुसंख्यक काकतीय सेना के आक्रमण से मेडराजू, पगिडिद्दा राजू, सारलम्मा, नागुलम्मा, गोविंदराजू युद्ध में वीरगति प्राप्त करते हैं। जंपन्ना संपेंगा नहर के जल में समाधि लेते हैं। तभी से संपेंगा वागु (छोटी नदी) जंपन्ना वागु के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इन सब घटनाओं से क्रुद्ध सम्मक्का काकतीय सेना पर रणचंडी के समान टूट पड़ती है और वीरता के साथ युद्ध करती है। जनजातीय स्त्री की युद्ध कला देखकर प्रतापरूद्र आश्चर्यचकित हो जाते हैं। कहा जाता है कि अंत में शत्रुओं के हाथों घायल सम्मक्का युद्ध भूमि से चिलुकल गुट्टा की ओर जाती हुई अदृश्य हो जाती है। उसकी खोज में गयी सेना को उस प्रांत में बांबी के पास हल्दी, कुंकुम की भरिणी मिलती है। उसी को सम्मक्का मानकर उस दिन से हर दो साल में एक बार माघ पूर्णिमा के दिन सम्मक्का-सारक्का जातरा बड़े ही वैभव के साथ आयोजित की जाती रही है।
जातरा के पहले दिन कन्नेपल्ली से सारलम्मा की सवारी लायी जाती है। दूसरे दिन चिलुकल गुट्टा में भरिणि के रूप में सम्मक्का को प्रतिष्ठापित किया जाता है। देवी की प्रतिष्ठापना के समय भक्तजनों की भीड़ उमड़ पड़ती है। यह भीड़ किसी कुंभ मेले से कम नहीं होती। इसीलिए इस जातरा को राज्य का कुंभमेला कहा जाता है। तीसरे दिन दोनों माता देवियों को आसन पर प्रतिष्ठापित करते हैं। चौथे दिन देवियों का आहवान होता है। पुनः दोनों देवियों को युद्ध स्थल की ओर ले जाया जाता है। पारंपरिक तौर से चले आ रहे जनजातीय पुरोहित ही यहाँ के पुरोहित होते हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने की कामना करते भक्तजन देवी को सोना (गुड़ को सोना कहते हैं) नैवेद्य रूप में चढ़ाते हैं। इस जातरा का इतिहास लगभग नौ सौ वर्ष पुराना है। प्रतिवर्ष भक्तों की संख्या और इसकी ख्याति बढ़ती ही जा रही है। इस जातरा से सामाजिकता और देश के प्रति अपने आपको समर्पित करने की भावना जागृत होती है। यह तेलंगाणा राज्य की जनजातीय संस्कृति का एक अनूठा उदाहरण है।
शब्द (हिंदी) | अर्थ (हिंदी में) | तेलुगु | English |
उपवाचक | वर्णन करने वाला | ఉపవాచకుడు | Narrator |
जातरा | मेला, उत्सव | జాత్రా | Fair, Festival |
संस्कृति | परंपराओं और रीति-रिवाजों का समूह | సంస్కృతి | Culture |
धर्म | आस्था, विश्वास | ధర్మం | Religion |
जनजातीय | आदिवासी समुदाय से संबंधित | గిరిజన | Tribal |
मेला | उत्सव, बड़े स्तर का आयोजन | మేళా | Fair |
देवी | ईश्वरीय शक्ति | దేవత | Goddess |
पूजा | आराधना | పూజ | Worship |
प्रतिष्ठापना | स्थापित करना | ప్రతిష్టాపన | Installation |
रीति-रिवाज | परंपरागत विधि | ఆచార వ్యవహారాలు | Customs & Traditions |
श्रद्धालु | भक्त | భక్తుడు | Devotee |
नैवेद्य | भगवान को अर्पित किया जाने वाला भोजन | నైవేద్యం | Offering (Prasad) |
युद्ध | लड़ाई | యుద్ధం | War |
वीरता | साहस | వీరత్వం | Bravery |
बलिदान | त्याग | బలిదానం | Sacrifice |
कुंभ मेला | एक बड़ा धार्मिक आयोजन | కుంభమేళా | Grand religious fair |
ऐतिहासिक | इतिहास से संबंधित | చారిత్రక | Historical |
नरेश | राजा | నరేష్ | King |
आक्रमण | हमला | దాడి | Attack |
सेना | फौज | సైన్యం | Army |
समर्पित | अर्पण करना | అంకితభావం | Dedicated |
पुरोहित | धार्मिक अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति | పురోహితుడు | Priest |
भक्त | भगवान का अनुयायी | భక్తుడు | Devotee |
वन देवता | जंगल के देवता | అరణ్య దేవత | Forest Deity |
कुंकुम | हल्दी से बना पाउडर | కుంకుమ | Vermilion |
हल्दी | पीला मसाला | పసుపు | Turmeric |
प्रताप | शौर्य, वैभव | ప్రతాప్ | Glory, Valor |
महासमर | महान युद्ध | మహాసమరం | Great War |
सम्मक्का-सारक्का जातरा का सारांश –
भारतीय संस्कृति में विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग मिलजुलकर रहते हैं, जिसका उदाहरण सम्मक्का-सारक्का जातरा है। यह तेलंगाणा राज्य का सबसे बड़ा जनजातीय मेला है, जिसे जयशंकर भूपालपल्ली जिले के मेडारम गाँव में हर दो साल में माघ पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। यह पूरी तरह जनजातीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है। इसे 1996 में राज्य सरकार ने राज्य त्यौहार का दर्जा दिया।
इस जातरा का ऐतिहासिक महत्त्व 12वीं शताब्दी से जुड़ा है। उस समय काकतीय नरेश प्रथम प्रतापरुद्र ने पोलवासा पर आक्रमण किया था। सम्मक्का, जो एक वीर जनजातीय महिला थीं, अपने परिवार और लोगों के साथ काकतीय सेना से वीरता से लड़ीं। युद्ध में उनके परिवार के अधिकांश सदस्य वीरगति को प्राप्त हुए। सम्मक्का अंततः युद्ध क्षेत्र से चिलुकल गुट्टा की ओर चली गईं और अदृश्य हो गईं। उनकी स्मृति में हर दो साल में सम्मक्का-सारक्का जातरा मनाई जाती है। जातरा के दौरान, सारलम्मा और सम्मक्का की मूर्तियों को पवित्र स्थानों से लाया जाता है और प्रतिष्ठापित किया जाता है। इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जिसे तेलंगाणा का कुंभ मेला भी कहा जाता है। भक्तजन देवी को गुड़ (सोना) अर्पित करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। यह जातरा न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करती है, बल्कि सामाजिकता, वीरता और देशभक्ति की भावना को भी प्रोत्साहित करती है।
प्रश्न
- इस जातरा को तेलंगाणा राज्य का कुंभमेला क्यों कहा जाता है?
उत्तर – सम्मक्का-सारक्का जातरा में बड़ी संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, जिससे यह एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बन जाता है। इसकी भीड़ किसी कुंभ मेले से कम नहीं होती। श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ आकर देवी सम्मक्का-सारक्का की पूजा करते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के लिए गुड़ (जिसे सोना कहा जाता है) नैवेद्य के रूप में चढ़ाते हैं। इसकी ऐतिहासिकता, भव्यता और जनसामान्य में लोकप्रियता के कारण इसे तेलंगाणा राज्य का कुंभमेला कहा जाता है।
- सम्मक्का-सारक्का के जीवन से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर – सम्मक्का-सारक्का के जीवन से साहस, वीरता, नारी शक्ति और आत्मसम्मान का संदेश मिलता है। उन्होंने अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया और अपने लोगों की रक्षा के लिए वीरतापूर्वक युद्ध किया। उनका बलिदान यह प्रेरणा देता है कि अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध हमेशा डटकर खड़ा होना चाहिए। साथ ही साथ यह जातरा सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और देशभक्ति की भावना को भी जागृत करती है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न – सम्मक्का-सारक्का जातरा किस राज्य में मनाई जाती है?
उत्तर – सम्मक्का-सारक्का जातरा तेलंगाणा राज्य में मनाई जाती है।
प्रश्न – यह जातरा कितने वर्ष पुरानी है?
उत्तर – यह जातरा लगभग 900 वर्ष पुरानी है।
प्रश्न – मेडारम गाँव कहाँ स्थित है?
उत्तर – मेडारम गाँव जयशंकर भूपालपल्ली जिले में स्थित है।
प्रश्न – सम्मक्का-सारक्का जातरा कितने वर्षों में एक बार मनाई जाती है?
उत्तर – सम्मक्का-सारक्का जातरा हर दो साल में एक बार मनाई जाती है।
प्रश्न – कौन-से देवी-देवताओं की पूजा इस जातरा में होती है?
उत्तर – इस जातरा में सम्मक्का और सारक्का देवी-देवताओं की पूजा होती है।
प्रश्न – जातरा को किस वर्ष राज्य त्योहार का दर्जा दिया गया?
उत्तर – जातरा को वर्ष 1996 में राज्य त्योहार का दर्जा दिया गया।
प्रश्न – सम्मक्का किस जनजातीय शासक की पुत्री थीं?
उत्तर – सम्मक्का मेडराजू जनजातीय शासक की पुत्री थीं।
प्रश्न – सम्मक्का का विवाह किससे हुआ था?
उत्तर – सम्मक्का का विवाह पगिडिद्दा राजू से हुआ था।
प्रश्न – जंपन्ना ने कहाँ समाधि ली थी?
उत्तर – जंपन्ना ने संपेंगा नहर में समाधि ली थी।
प्रश्न – इस जातरा को किस बड़े मेले के समान माना जाता है?
उत्तर – इस जातरा को कुंभ मेले के समान माना जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए –
प्रश्न – सम्मक्का-सारक्का जातरा का आयोजन कहाँ और क्यों किया जाता है?
उत्तर – यह जातरा तेलंगाणा के मेडारम गाँव में आयोजित की जाती है। यह वीर योद्धा सम्मक्का और उनकी बेटी सारक्का की याद में मनाई जाती है, जिन्होंने काकतीय सेना के विरुद्ध वीरतापूर्वक युद्ध किया था।
प्रश्न – इस जातरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है?
उत्तर – यह जातरा तेलंगाणा की जनजातीय संस्कृति का प्रतीक है और जनजातीय देवी सम्मक्का-सारक्का की पूजा के लिए मनाई जाती है। भक्तजन यहाँ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देवी को गुड़ (सोना) चढ़ाते हैं।
प्रश्न – जातरा के प्रमुख आयोजन कौन-कौन से हैं?
उत्तर – पहले दिन सारलम्मा की सवारी लाई जाती है, दूसरे दिन चिलुकल गुट्टा में सम्मक्का को प्रतिष्ठित किया जाता है, तीसरे दिन देवियों को आसन पर विराजित किया जाता है और चौथे दिन उनका आह्वान कर युद्ध स्थल की ओर ले जाया जाता है।
प्रश्न – काकतीय नरेश और सम्मक्का के बीच युद्ध क्यों हुआ?
उत्तर – काकतीय नरेश प्रथम प्रतापरुद्र ने पोलवासा पर आक्रमण किया और कर न चुकाने के कारण मेडारम के शासक पगिडिद्दा राजू से युद्ध छेड़ दिया, जिसमें सम्मक्का ने वीरता से युद्ध किया।
प्रश्न – जंपन्ना वागु (छोटी नदी) का नामकरण कैसे हुआ?
उत्तर – युद्ध में पराजय प्राप्त करने के बाद सम्मक्का के पुत्र जंपन्ना ने संपेंगा नहर में समाधि ली, जिसके कारण उस नदी को ‘जंपन्ना वागु’ के नाम से जाना जाने लगा।