लेखक परिचय – जयशंकर प्रसाद
(1889-1937)
बाबू जयशंकर प्रसाद का आविर्भाव आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावाद-युग (1918 ई. से 1938 ई. तक) में हुआ था। आपने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और आलोचना के क्षेत्रों में अमर लेखनी चलाकर आधुनिक कालीन हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। साहित्यकार के अलावा आप इतिहास एवं पुरातत्व के विद्वान तथा एक गंभीर चिन्तक भी थे। भारतीय सभ्यता-संस्कृति, धर्म-दर्शन, भक्ति-अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि रखने वाले प्रसाद जी ने इन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से उजागर करने का भरपूर प्रयास किया है। साथ ही आपने यांत्रिकता, बुद्धिवादिता और भौतिकता की अतिरेकता से उत्पन्न आधुनिक जीवन की विविध मूलभूत समस्याओं को चिह्नित करके अपने ढंग से उनका समाधान निकालने की भी कोशिश की है। इन महान प्रयासों के कारण आपके साहित्य की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।
प्रसाद जी का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित कान्यकुब्जीय वैश्य परिवार में 1889 ई. में हुआ था। पिता देवीप्रसाद और बड़े भाई शंभुरत्न जी के असमय निधन होने के कारण सत्रह वर्ष की अवस्था में ही पैतृक कारोबार तथा घर परिवार का सारा दायित्व प्रसाद जी को संभालना पड़ा। आपने घर पर ही संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी और हिंदी का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही वेद, पुराण, उपनिषद, बौद्ध एवं जैन ग्रंथ, भारतीय इतिहास आदि का अध्ययन भी आपने किया। ‘कलाधर’ नाम से ब्रजभाषा में कविता-लेखन के साथ प्रसाद जी का साहित्यिक जीवन आरंभ हुआ था। परंतु आपने शीघ्र ही खड़ीबोली को अपनाया और अलग-अलग विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। आपके द्वारा प्रयुक्त खड़ीबोली प्रौढ़, प्रांजल कलात्मक एवं संस्कृतनिष्ठ रही है। 1937 ई. में आपका देहावसान हुआ।
भारतीय संस्कृति के चितेरे प्रसाद जी मूलतः कवि हृदय के थे आप छायावादी काव्य-धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। आपकी काव्य-रचनाएँ हैं-
उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छ्वास, बभ्रुवाहन, काननकुसुम, प्रेमपथिक, करुणालय, महाराणा का महत्त्व, झरना, आँसू (खंडकाव्य), लहर और कामायनी (महाकाव्य) उनके द्वारा विरचित नाटक हैं- सज्जन कल्याणी-परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कंदगुप्त, एक घूँट, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी प्रसाद जी ने तीन उपन्यासों की भी रचना की है। कंकाल, तितली और इरावती उनके द्वारा विरचित निबंधों का संग्रह है-काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
प्रसाद जी ने लगभग सत्तर कहानियाँ हिंदी को भेंट की हैं। ये कहानियां छाया, प्रतिध्वनि, आकाश-दीप, आधी, इंद्रजाल आदि संग्रहों में संकलित हैं। उनकी प्रथम कहानी ‘ग्राम’ 1911 ई. में ‘इंदु’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कहानीकार के रूप में आप भाववादी धारा के प्रवर्त्तक कहलाएँ। आपकी अधिकांश कहानियों में चारित्रिक उदारता, प्रेम, करुणा, त्याग बलिदान, अतीत के प्रति मोह से युक्त भावमूलक आदर्श की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अपने समकालीन समाज की आर्थिक विपन्नता, निरीहता, अन्याय और शोषण को भी कुछेक कहानियों में चित्रित किया है। ‘सहयोग’ ‘गुदड़ी के लाल’, ‘अघोरी का मोह’, ‘विराम चिह्न’, ‘आकाश-दीप’, ‘पुरस्कार’, ‘ममता’, ‘समुद्र-संतरण’, ‘मधुआ’, ‘इंद्रजाल’, ‘छोटा जादूगर’ आदि उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।
‘छोटा जादूगर‘ का सार
‘छोटा जादूगर’ प्रसाद जी की एक ऐसी मनोरम कहानी है, जिसमें आर्थिक “विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए तेरह चौदह साल के एक लड़के के चरित्र को आदर्शात्मक रूप में उभारा गया है। परिस्थिति की माँग से एक बालक किस प्रकार अपने पाँवों पर खड़ा हो जाता है— उसका यहाँ हृदयग्राही चित्रण हुआ है। छोटे जादूगर के रूप में प्रस्तुत बालक के मधुर व्यवहार, चतुराई, क्रिया-कौशल, स्वाभिमान और मातृ-भक्ति से पाठक का मन सहज ही द्रवीभूत हो उठता है।
छोटा जादूगर
[1]कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था। मैं खड़ा था, उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गम्भीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी। मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी सम्पूर्णता थी। मैंने पूछा – “क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा?”
“मैंने सब देखा। यहाँ चूड़ी फेंकते हैं। खिलौने पर निशाना लगाते हैं। तीर से नम्बर छेदते हैं। मुझे तो खिलौने पर निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ। जादूगर तो बिल्कुल निकम्मा है। उससे अच्छा तो ताश का खेल मैं दिखा सकता हूँ।”- उसने बड़ी प्रगल्भता से कहा। उसकी वाणी में कहीं रुकावट न थी।
मैंने पूछा- “और उस परदे में क्या है? वहाँ तुम गए थे?”
“नहीं, वहाँ मैं नहीं जा सकता। टिकट लगता है।”
मैंने कहा – “तो चला मैं वहाँ पर, तुमको लिवा चलूँ।” मैंने मन ही मन कहा – “भाई ! आज के तुम्हीं मित्र रहे।”
उसने कहा—“वहाँ जाकर क्या कीजिएगा? चलिए निशाना लगाया जाए।”
मैंने उससे सहमत होकर कहा- “तो फिर चलो, पहले शरबत पी लिया जाए।” उसने स्वीकार सूचक सिर हिला दिया।
मनुष्यों की भीड़ से जाड़े की संध्या भी वहाँ गर्म हो रही थी। हम दोनों शरबत पीकर निशाना लगाने चले। राह में ही उससे पूछा – “तुम्हारे और कौन है?”
“माँ और बाबूजी।”
“उन्होंने तुमको यहाँ आने के लिए मना नहीं किया?””बाबूजी जेल में हैं।”
“क्यों?”
“देश के लिए।”- वह गर्व से बोला।
“और तुम्हारी माँ?”
“वह बीमार है।”
“और तुम तमाशा देख रहे हो?”
उसके मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी। उसने कहा- “तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हूँ। कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूँगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती।”
मैं आश्चर्य से उस तेरह चौदह वर्ष के लड़के को देखने लगा।
“हाँ, मैं सच कहता हूँ बाबूजी। माँजी बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।”
“कहाँ?”
“जेल में। जब कुछ लोग खेल-तमाशा देखते ही हैं, तो मैं क्यों न दिखाकर माँ की दवा-दारू करूँ और अपना पेट भरूँ।”
मैंने दीर्घ निःश्वास लिया। चारों ओर बिजली के लट्टू नाच रहे थे। मन व्यग्र हो उठा। मैंने उससे कहा- “अच्छा चलो, निशाना लगाया जाए।”
हम दोनों उस जगह पर पहुँचे, जहाँ खिलौने को गेंद से गिराया जाता था। मैंने बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए।
वह निकला पक्का निशानेबाज ! उसका कोई गेंद खाली नहीं गया। देखने वाले दंग रह गए। उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया, लेकिन उठाता कैसे? कुछ मेरे रूमाल में बाँधे, कुछ जेब में रख लिए।
लड़के ने कहा – “बाबूजी, आपको तमाशा दिखाऊँगा। बाहर आइए। मैं चलता हूँ।” वह नौ-दो ग्यारह हो गया। मैंने मन ही मन कहा – “इतनी जल्दी आँख बदल गई।”
मैं घूमकर पान की दुकान पर आ गया। पान खाकर बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। झूले के पास लोगों का ऊपर-नीचे आना देखने लगा। अकस्मात् किसी ने ऊपर के हिंडोले से पुकारा- “बाबूजी!”
मैंने पूछा – “कौन?”
“मैं हूँ छोटा जादूगर।”
[2]कलकत्ता के सुरम्य बोटानिकल उद्यान में लाल कमलिनी से भरी हुई एक छोटी-सी झील के किनारे घने वृक्षों की छाया में अपनी मण्डली के साथ बैठा हुआ मैं जलपान कर रहा था। बातें हो रही थीं। इतने में वही छोटा जादूगर दिखाई पड़ा। हाथ में चारखाने की खादी का झोला। साफ जाँघिया। और आधी बाँहों का कुरता। फिर पर मेरा रूमाल सूत की रस्सी से बँधा हुआ था। मस्तानी चाल से झूमता हुआ आकर कहने लगा-
“बाबूजी नमस्ते। आज कहिए तो खेल दिखाऊँ? “ “नहीं जी, अभी हम लोग जलपान कर रहे हैं।” “फिर इसके बाद क्या गाना-बजाना होगा, बाबूजी?”
“नहीं जी…. तुमको….” क्रोध से कुछ कहने जा रहा था। श्रीमती ने कहा – “दिखलाओ जी, तुम तो अच्छे आए। भला कुछ मन तो बहले।” मैं चुप हो गया, क्योंकि श्रीमती की वाणी में वह माँ की सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता। उसने खेल आरम्भ किया।
उस दिन कार्निवल के सब खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगे। भालू मनाने लगा। बिल्ली रूठने लगी। बन्दर घुड़कने लगा।
गुड़िया का ब्याह हुआ। गुड्डा वर काना निकला। लड़के की वाचालता से ही अभिनय हो रहा था। सब हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।
मैं सोच रहा था। बालक को आवश्यकता ने कितने शीघ्र चतुर बना दिया। यही तो संसार है।
ताश के सब पत्ते लाल हो गए। फिर सब काले हो गए। गले की सूत की डोरी टुकड़े-टुकड़े होकर जुड़ गई। लट्टू अपने-आप नाच रहे थे। मैंने कहा- अब हो चुका। अपना खेल बटोर लो, हम लोग भी अब जाएँगे।”
श्रीमती ने धीरे से उसे एक रुपया दे दिया। वह उछल उठा। मैंने कहा- “लड़के!”
“छोटा जादूगर कहिए। यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका है।” मैं कुछ बोलना ही चाहता था कि श्रीमती ने कहा- “अच्छा तुम इस रुपए से क्या करोगे?”
“पहले भर पेट पकौड़ी खाऊँगा। फिर एक सूती कम्बल लूँगा।”
मेरा क्रोध अब लौट आया। मैं अपने पर बहुत क्रुद्ध होकर सोचने लगा – “ओह ! कितना स्वार्थी हूँ! मैं उसके एक रुपए पाने पर ईर्ष्या करने लगा था न।”
वह नमस्कार करके चला गया। हम लोग लताकुंज देखने के लिए चले। उस छोटे से बनावटी जंगल में संध्या साँय साँय करने लगी थी। अस्ताचलगामी सूर्य की अन्तिम किरण वृक्षों की पत्तियों से विदाई ले रही थी। एकदम शान्त वातावरण था। हम लोग धीरे-धीरे मोटर से हवड़ा की ओर आ रहे थे।
रह-रहकर छोटा जादूगर स्मरण होता था। सचमुच वह एक झोंपड़ी के पास कम्बल काँधे पर डाले खड़ा था। मैंने मोटर रोककर उससे पूछा – “तुम यहाँ कहाँ?”
“मेरी माँ यही है न। अब उसे अस्पताल वालों ने निकाल दिया है।” मैं उतर गया। उस झोंपड़ी में देखा, तो एक स्त्री चिथड़ों से लदी हुई काँप रही थी।
छोटे जादूगर ने कम्बल ऊपर से डालकर उसके शरीर से चिपटते हुए कहा- “माँ!”
मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
[3]बड़े दिन की छुट्टी बीत चली थी। मुझे अपने आफिस में समय से पहुँचना था। कलकत्ता से मन ऊब गया था। फिर भी चलते-चलते एक बार उद्यान को छोटा जादूगर देखने की इच्छा हुई। साथ ही साथ जादूगर भी दिखाई पड़ जाता, तो और भी… मैं उस दिन अकेले ही चल पड़ा। जल्द लौट आना था।
दस बज चुका था। मैंने देखा कि उस निर्मल धूप में सड़क के किनारे एक कपड़े पर छोटे जादूगर का रंगमंच सजा था। मोटर रोककर उतर पड़ा। वहाँ बिल्ली रूठ रही थी। भालू मनाने चला था। ब्याह की तैयारी थी, यह सब होते हुए भी जादूगर की वाणी में वह प्रसन्नता की तरी नहीं थी। जब वह औरों को हँसाने की चेष्टा कर रहा था, तब वह जैसे स्वयं कँप जाता था। मानो उसके रोएँ रो रहे थे। मैं आश्चर्य से देख रहा था। खेल हो जाने पर पैसा बटोर कर उसने भीड़ में मुझे देखा। वह जैसे क्षणभर के लिए स्फूर्तिमान हो गया। मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा – “आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं?”
“माँ ने कहा है कि आज तुरन्त चले आना। मेरी घड़ी समीप है।” – अविचल भाव से उसने कहा।
“तब भी तुम खेल दिखलाने चले आए हो?” मैंने कुछ क्रोध से कहा। मनुष्य के सुख-दुःख का माप अपना ही साधन तो है। उसी के अनुपात से वह तुलना करता है।
उसके मुँह पर वही परिचित तिरस्कार की रेखा फूट पड़ी।
उसने कहा- “न क्यों आता?”
और कुछ अधिक कहने में जैसे वह अपमान का अनुभव कर रहा था। क्षणभर में मुझे अपनी भूल मालूम हो गई। उसके झोले को गाड़ी में फेंककर उसे भी बैठाते हुए मैंने कहा – “जल्दी चलो।” मोटर वाला मेरे बताए हुए पथ पर चल पड़ा।
कुछ ही मिनटों में मैं झोंपड़े के पास पहुँचा। जादूगर दौड़कर झोंपड़े में माँ- माँ पुकारते हुए घुसा। मैं भी पीछे था, किन्तु स्त्री के मुँह से “बे…” निकल कर रह गया। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादूगर उससे लिपटा रो रहा था, मैं स्तब्ध था। उस उज्ज्वल धूप में समग्र संसार जैसे जादू-सा मेरे चारों ओर नृत्य करने लगा।
शब्द |
हिंदी अर्थ |
अंग्रेजी अर्थ |
कार्निवल |
उत्सव, मेले जैसा आयोजन |
Carnival |
जगमगाना |
चमकना, रोशनी बिखेरना |
Twinkle, Glow |
कलनाद |
मधुर ध्वनि, गूँज |
Melody, Echo |
प्रगल्भता |
साहस, निर्भीकता |
Boldness, Fluency |
संपूर्णता |
पूर्णता, परिपूर्णता |
Completeness |
अभाव |
कमी, न्यूनता |
Lack, Deficiency |
विषाद |
उदासी, निराशा |
Sadness, Gloom |
निशाना |
लक्ष्य, टारगेट |
Target, Aim |
बटोरना |
इकट्ठा करना, संकलन करना |
Collect, Gather |
निकम्मा |
अयोग्य, काम का न होना |
Useless, Worthless |
परदा |
पर्दा, आड़ |
Curtain, Screen |
तमाशा |
खेल, प्रदर्शन |
Show, Spectacle |
पथ्य |
पौष्टिक आहार, औषधीय भोजन |
Nutritious Diet |
तिरस्कार |
निंदा, अवहेलना |
Disdain, Rejection |
आश्चर्य |
चकित करने वाली बात |
Surprise, Wonder |
नौ-दो ग्यारह होना |
भाग जाना, बच निकलना |
Escape, Run Away |
स्वीकार |
मान लेना, सहमति देना |
Accept, Agree |
सुरम्य |
सुंदर, रमणीय |
Picturesque, Scenic |
मंडली |
समूह, टोली |
Group, Assembly |
क्रोध |
गुस्सा, रोष |
Anger, Wrath |
वाचालता |
अधिक बोलने की आदत, चंचलता |
Talkativeness |
चतुराई |
समझदारी, चालाकी |
Cleverness, Smartness |
मिठास |
कोमलता, स्नेह |
Sweetness, Tenderness |
हिंडोला |
झूला, झूलने का यंत्र |
Swing, Ferris Wheel |
काँधे पर डालना |
ओढ़ाना, कंधे पर रखना |
Put on Shoulder |
झोंपड़ी |
कुटिया, छोटी झुग्गी |
Hut, Shack |
जीविका |
आजीविका, जीवन निर्वाह |
Livelihood |
स्मरण |
याद, ध्यान |
Memory, Remembrance |
निर्मल |
स्वच्छ, शुद्ध |
Pure, Clean |
तिरस्कार की रेखा |
अवमानना की भावना |
Line of Contempt |
स्फूर्तिमान |
जोश से भरा, ऊर्जावान |
Energetic, Vibrant |
घड़ी समीप होना |
मृत्यु निकट आना |
Nearing Death |
व्यग्र |
बेचैन, चिंतित |
Restless, Anxious |
स्तब्ध |
अचंभित, चकित |
Stunned, Shocked |
बोध एवं विचार
- सही विकल्प का चयन करो :
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म हुआ था-
(अ) काशी में
(इ) पटना में
(आ) इलाहाबाद में
(ई) जयपुर में
उत्तर – (अ) काशी में
(ख) जयशंकर प्रसाद जी का साहित्यिक जीवन किस नाम से आरंभ हुआ था?
(अ) ‘विद्याधर’ नाम से
(आ) ‘कलाधर’ नाम से
(इ) ‘ज्ञानधर’ नाम से
(ई) ‘करुणाधर’ नाम से
उत्तर – (आ) ‘कलाधर‘ नाम से
(ग) प्रसाद जी का देहावसान हुआ-
(अ) 1935 ई. में
(आ) 1936 ई. में
(इ) 1937 ई. में
(ई) 1938 ई. में
उत्तर – (इ) 1937 ई. में
(घ) कार्निवाल के मैदान में लड़का चुपचाप किनको देख रहा था?
(अ) चाय पीने वालों को
(आ) मिठाई खाने वालों को
(इ) गाने वालों को
(ई) शरबत पीने वालों को
उत्तर – (ई) शरबत पीने वालों को
(ङ) लड़के को जादूगर का कौन-सा खेल अच्छा मालूम हुआ?
(अ) खिलौने पर निशाना लगाना
(आ) चूड़ी फेंकना
(ई) ताश का खेल दिखाना
(इ) तीर से नम्बर छेदना
उत्तर – (अ) खिलौने पर निशाना लगाना
- पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :
(क) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम क्या है?
उत्तर – ‘ग्राम’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम है।
(ख) प्रसाद जी द्वारा विरचित महाकाव्य का नाम बताओ।
उत्तर – ‘कामायनी’ प्रसाद जी द्वारा विरचित महाकाव्य का नाम है।
(ग) लड़का जादूगर को क्या समझता था?
उत्तर – लड़का जादूगर को निकम्मा समझता था और मानता था कि वह उससे अच्छा ताश का खेल दिखा सकता है।
(घ) लड़का तमाशा देखने परदे में क्यों नहीं गया था?
उत्तर – लड़का परदे के भीतर इसलिए नहीं गया था क्योंकि वहाँ जाने के लिए टिकट लगता था और उसके पास पैसे नहीं थे।
(ङ) श्रीमान ने कितने टिकट खरीद कर लड़के को दिए थे?
उत्तर – श्रीमान ने लड़के को बारह टिकट खरीदकर दिए थे।
(च) लड़के ने हिंडोले से अपना परिचय किस प्रकार दिया था?
उत्तर – लड़के ने हिंडोले से ‘बाबूजी!’ कहकर पुकारा और खुद को ‘छोटा जादूगर’ बताया।
(छ) बालक (छोटे जादूगर) को किसने बहुत ही शीघ्र चतुर बना दिया था?
उत्तर – आवश्यकता और परिस्थितियों ने छोटे जादूगर को बहुत शीघ्र चतुर बना दिया था।
(ज) श्रीमान कलकत्ते में किस अवसर पर की छुट्टी बिता रहे थे?
उत्तर – श्रीमान कलकत्ते में ‘बड़े दिन’ (क्रिसमस) की छुट्टी बिता रहे थे।
(झ) सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर खेल दिखाते समय छोटे जादूगर की वाणी में स्वभावसुलभ प्रसन्नता की तरी क्यों नहीं थी?
उत्तर – छोटे जादूगर की माँ बहुत बीमार थी और उसकी मृत्यु निकट थी, इसलिए खेल दिखाते समय वह प्रसन्न नहीं था।
(ञ) मृत्यु से ठीक पहले छोटे जादूगर की माँ के मुँह से कौन-सा अधूरा शब्द निकला था?
उत्तर – मृत्यु से ठीक पहले छोटे जादूगर की माँ के मुँह से ‘बे…’ अधूरा शब्द निकला था।
- अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय किन क्षेत्रों में मिलता है?
उत्तर – बाबू जयशंकर प्रसाद की बहुमुखी प्रतिभा कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और आलोचना के क्षेत्र में देखने को मिलती है। वे इतिहास और दर्शन के विद्वान भी थे।
(ख) श्रीमान ने छोटे जादूगर को पहली भेंट के दौरान किस रूप में देखा था?
उत्तर – श्रीमान ने छोटे जादूगर को एक निर्धन, मगर आत्मनिर्भर लड़के के रूप में देखा, जो अपने खेल-तमाशे से पैसे कमाकर अपनी बीमार माँ की सहायता करना चाहता था।
(ग) “वहाँ जाकर क्या कीजिएगा?”छोटे जादूगर ने ऐसा कब कहा था?
उत्तर – जब श्रीमान ने उसे टिकट लेकर पर्दे के अंदर चलने के लिए कहा, तो छोटे जादूगर ने यह कहकर मना किया कि वहाँ जाकर क्या करेंगे, निशाना लगाना अधिक अच्छा है।
(घ) निशानेबाज के रूप में छोटे जादूगर की कार्य कुशलता का वर्णन करो।
उत्तर – छोटे जादूगर ने निशानेबाजी में असाधारण कौशल दिखाया। उसने बारह में से एक भी निशाना खाली नहीं जाने दिया और सभी खिलौनों को जीत लिया।
(ङ) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान-श्रीमती को छोटा जादूगर किस रूप में मिला था?
उत्तर – बोटानिकल उद्यान में छोटा जादूगर अपने खेल-तमाशे के साथ मिला। वह खादी का झोला लिए था, और उसके पास वही रूमाल था जो श्रीमान ने दिया था।
(च) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान ने जब छोटे जादूगर को ‘लड़के!‘ कहकर संबोधित किया, तो उत्तर में उसने क्या कहा?
उत्तर – छोटे जादूगर ने उत्तर दिया—”छोटा जादूगर कहिए। यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका है।” यह उत्तर उसकी आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान को दर्शाता है।
(छ) आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं?”- इस प्रश्न के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या कहा?
उत्तर – छोटे जादूगर ने उत्तर दिया—”माँ ने कहा है कि आज तुरंत चले आना। मेरी घड़ी समीप है।” इससे उसकी माँ के प्रति चिंता और प्रेम प्रकट होता है।
- संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में)
(क) प्रसाद जी की कहानियों की विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर – प्रसाद जी की कहानियाँ भावनात्मक गहराई, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मानवीय संवेदना और आदर्शवाद से भरपूर होती हैं। उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी और काव्यात्मक होती है। उनकी कहानियों में समाज के विभिन्न वर्गों का चित्रण, राष्ट्रीय भावना और स्त्री-पुरुष संबंधों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति होती है।
(ख) “क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा? इस प्रश्न का उत्तर छोटे जादूगर ने किस प्रकार दिया था?
उत्तर – छोटे जादूगर ने आत्मसम्मान से उत्तर दिया कि उसने अपने खेल की खूबसूरती देखी। उसके लिए यह महज तमाशा नहीं था, बल्कि उसकी कला थी। वह अपने कौशल पर गर्व करता था और किसी की दया से नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभा से पहचाना जाना चाहता था।
(ग) अपने माँ-बाप से संबंधित प्रश्नों के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या क्या कहा था?
उत्तर – छोटे जादूगर ने बताया कि उसका पिताजी देश सेवा के कारण जेल में हैं और उसकी माँ बीमार रहती है। वह अपने तमाशे से कमाए पैसे से माँ का इलाज करवाता है। अपनी कठिनाइयों के बावजूद वह अपने कर्तव्य को निभाने के लिए संकल्पित था और किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता था।
(घ) श्रीमान ने तेरह चौदह वर्ष के छोटे जादूगर को किसलिए आश्चर्य से देखा था?
उत्तर – तेरह-चौदह वर्ष के इस लड़के की आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान देखकर श्रीमान चकित रह गए। इतनी छोटी उम्र में भी वह अपने जीवन का भार स्वयं उठा रहा था। उसकी गंभीरता, आत्मविश्वास और परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता उम्र से कहीं अधिक परिपक्व थी।
(ङ) श्रीमती के आग्रह पर छोटे जादूगर ने किस प्रकार अपना खेल दिखाया?
उत्तर – छोटे जादूगर ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना खेल दिखाया। उसने सधे हुए हाथों से निशाना लगाया और एक के बाद एक खिलौने गिरा दिए। उसका कौशल देखकर सभी प्रभावित हुए। खेल के दौरान उसके चेहरे पर गंभीरता थी, क्योंकि यह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि उसका जीवनयापन था।
(च) हवड़ा की ओर आते समय छोटे जादूगर और उसकी माँ के साथ श्रीमान की भेंट किस प्रकार हुई थी?
उत्तर – हावड़ा स्टेशन की ओर आते समय श्रीमान ने छोटे जादूगर को उसकी बीमार माँ के साथ बैठे देखा। लड़का चिंतित था, लेकिन माँ की देखभाल में लगा था। उसने माँ को सहारा दिया हुआ था और उसकी सहायता के लिए प्रयासरत था। उसकी आँखों में चिंता स्पष्ट झलक रही थी।
(छ) सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर छोटा जादूगर किस मनःस्थिति में और किस प्रकार खेल दिखा रहा था?
उत्तर – छोटा जादूगर उदास मनःस्थिति में खेल दिखा रहा था। उसकी आँखों में थकान और चिंता थी, लेकिन वह पूरी लगन से खेल कर रहा था। उसकी माँ के अस्वस्थ होने के कारण उसकी भावनाएँ प्रभावित थीं, फिर भी वह दर्शकों को प्रसन्न करने की पूरी कोशिश कर रहा था।
(ज) छोटे जादूगर और उसीक माँ के साथ श्रीमान की अंतिम भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करो।
उत्तर – अंतिम भेंट में श्रीमान ने देखा कि छोटे जादूगर की माँ का देहांत हो चुका था। वह असहाय और मौन बैठा था, लेकिन उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। परिस्थितियों से जूझने के लिए वह तैयार था। जीवन की कठोर वास्तविकता ने उसे और अधिक मजबूत बना दिया था।
- सम्यक उत्तर दो ( लगभग 100 शब्दों में)
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक देन का उल्लेख करो।
उत्तर – बाबू जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वे छायावादी युग के प्रवर्तक थे और कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास सहित विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं। उनकी प्रमुख कृतियाँ कामायनी, आँसू, कंकाल, तितली और सज्जन हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता को अपने साहित्य में विशेष स्थान दिया। उनकी भाषा शैली काव्यात्मक, सरल और प्रवाहमयी है। वे अपनी गहरी संवेदनशीलता, राष्ट्रीय चेतना और मानवीय मूल्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका साहित्य आज भी प्रेरणादायक और समाज के लिए मूल्यवान बना हुआ है।
(ख) छोटे जादूगर के मधुर व्यवहार एवं स्वाभिमान पर प्रकाश डालो।
उत्तर – छोटा जादूगर विनम्र और मधुर स्वभाव वाला बालक था। उसने अपनी परिस्थितियों को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया और हर कठिनाई का सामना धैर्य व आत्मसम्मान के साथ किया। वह कभी किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता था और अपनी कला के माध्यम से स्वयं के लिए आजीविका कमाता था। जब श्रीमान ने उससे सहानुभूति दिखाई, तो उसने दया की जगह अपनी कला की प्रशंसा करवाना पसंद किया। उसका स्वाभिमान उसे किसी के आगे हाथ फैलाने से रोकता था, और वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहता था।
(ग) छोटे जादूगर की चतुराई और कार्य कुशलता का वर्णन करो।
उत्तर – छोटा जादूगर अत्यंत कुशल और चतुर था। उसकी निशानेबाजी की कला प्रभावशाली थी। वह खेल में इतनी कुशलता से लक्ष्य साधता था कि दर्शक आश्चर्यचकित रह जाते थे। उसकी प्रत्येक हरकत में निपुणता झलकती थी, जिससे यह स्पष्ट होता था कि उसने अपने खेल में अत्यधिक अभ्यास किया था। वह केवल तमाशा नहीं दिखाता था, बल्कि अपने हुनर को आत्मसम्मान के साथ प्रस्तुत करता था। उसकी कार्यकुशलता इस बात में भी दिखती थी कि वह अपने खेल से न केवल स्वयं की जीविका चला रहा था, बल्कि अपनी बीमार माँ का भी भरण-पोषण कर रहा था।
(घ) छोटे जादूगर के देश-प्रेम और मातृ-भक्ति का परिचय दो।
उत्तर – छोटे जादूगर का अपनी माँ के प्रति अत्यंत गहरा प्रेम था। वह अपनी माँ के इलाज और देखभाल के लिए लगातार प्रयासरत रहता था। अपनी कठिनाइयों के बावजूद उसने कभी हार नहीं मानी और अपनी माँ की सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म समझा। उसकी मातृ-भक्ति उसके प्रत्येक कार्य में स्पष्ट रूप से झलकती थी। इसके साथ ही, उसका आत्मनिर्भर स्वभाव और स्वाभिमान भी उसके देशप्रेम को दर्शाता था। वह किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहता था और अपने श्रम से जीवन यापन करना चाहता था, जो एक सच्चे देशभक्त का गुण होता है।
(ङ) छोटे जादूगर की कहानी से तुम्हें कौन-सी प्रेरणा मिलती है?
उत्तर – छोटे जादूगर की कहानी हमें आत्मनिर्भरता, कर्तव्यपरायणता और स्वाभिमान का संदेश देती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। छोटे जादूगर की संघर्षशीलता यह दर्शाती है कि सच्चा सम्मान केवल परिश्रम और आत्मनिर्भरता से प्राप्त होता है, न कि दूसरों की दया से। उसकी मातृ-भक्ति हमें अपने माता-पिता के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का अहसास कराती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना चाहिए।
- सप्रसंग व्याख्या करो :
(क) “मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी संपूर्णता थी।”
उत्तर – संदर्भ – यह पंक्ति प्रेमचंद की कहानी छोटा जादूगर से ली गई है। इसमें कथावाचक (श्रीमान) छोटे जादूगर के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर यह विचार व्यक्त कर रहे हैं।
प्रसंग – जब श्रीमान ने छोटे जादूगर को पहली बार देखा, तो वे उसकी सादगी, आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान से अत्यधिक प्रभावित हुए। उसकी गरीबी और कठिनाइयों के बावजूद उसमें आत्मसम्मान की चमक थी। वह बालक किसी पर आश्रित नहीं था, बल्कि अपनी कला से जीवन यापन कर रहा था।
व्याख्या – लेखक इस पंक्ति में व्यक्त करता है कि छोटे जादूगर का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। उसकी परिस्थितियाँ कठिन थीं, फिर भी उसमें आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की भावना थी। वह किसी की दया पर निर्भर नहीं था, बल्कि अपने संघर्ष से अपनी पहचान बना रहा था। उसकी गरीबी ने उसे कमजोर नहीं बनाया था, बल्कि उसमें संघर्ष की अद्भुत शक्ति भर दी थी। लेखक इसी संपूर्णता को देखकर उसकी ओर आकर्षित हुए।
(ख) “श्रीमती की वाणी में वह माँ की सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता।”
उत्तर – संदर्भ – यह पंक्ति प्रेमचंद की कहानी छोटा जादूगर से ली गई है। इसमें लेखक श्रीमती के कोमल और ममतामयी स्वर का वर्णन कर रहे हैं।
प्रसंग – जब छोटे जादूगर को श्रीमान अपने साथ बोटानिकल गार्डन ले जाने लगे, तो उसने अनिच्छा व्यक्त की। तब श्रीमती ने उसे स्नेहपूर्वक पुकारा, और उनकी वाणी में ऐसी कोमलता थी कि वह इंकार न कर सका।
व्याख्या – इस पंक्ति में श्रीमती के मातृसुलभ स्वभाव को दर्शाया गया है। उनकी आवाज में जो स्नेह और ममता थी, वह किसी भी बच्चे को सहज ही आकर्षित कर सकती थी। बच्चे स्वभाव से ही मातृस्नेह के प्रति संवेदनशील होते हैं। छोटे जादूगर ने बहुत छोटी उम्र में कठिनाइयाँ झेली थीं और संभवतः उसे अपनी माँ का भरपूर स्नेह नहीं मिला था। ऐसे में श्रीमती की मधुर वाणी ने उसे भावनात्मक रूप से छू लिया और वह बिना किसी विरोध के उनके साथ चल पड़ा। यह पंक्ति माँ के स्नेह की शक्ति को उजागर करती है।
भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान
- सरल, मिश्र और संयुक्त वाक्यों को पहचानो
(क) कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी।
उत्तर – सरल वाक्य
(ख) माँजी बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।
उत्तर – संयुक्त वाक्य
(ग) मैं घूमकर पान की दुकान पर आ गया।
उत्तर – सरल वाक्य
(घ) माँ ने कहा है कि आज तुरंत चले आना।
उत्तर मिश्र – वाक्य
(ङ) मैं भी पीछे था, किंतु स्त्री के मुँह से ‘बे…‘ निकलकर रह गया।
उत्तर – संयुक्त वाक्य
- अर्थ लिखकर निम्नांकित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करो :
नौ-दो ग्यारह होना, आँखें बदल जाना, घड़ी समीप होना, दंग रह जाना, श्रीगणेश होना, अपने पाँवों पर खड़ा होना, अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना
- नौ-दो ग्यारह होना (अर्थ – भाग जाना)
वाक्य – चोरी करते समय पकड़े जाने के डर से चोर वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गया।
- आँखें बदल जाना (अर्थ – व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ जाना)
वाक्य – जैसे ही उसे पदोन्नति मिली, उसके मित्रों के प्रति आँखें बदल गईं।
- घड़ी समीप होना (अर्थ – मृत्यु निकट होना)
वाक्य – वृद्ध दादाजी बहुत बीमार थे, ऐसा लग रहा था कि उनकी घड़ी समीप है।
- दंग रह जाना (अर्थ – आश्चर्यचकित हो जाना)
वाक्य – जादूगर के अनोखे करतब देखकर दर्शक दंग रह गए।
- श्रीगणेश होना (अर्थ – शुभारंभ होना)
वाक्य – पूजा-पाठ के बाद नए विद्यालय भवन के निर्माण का श्रीगणेश हुआ।
- अपने पाँवों पर खड़ा होना (अर्थ – आत्मनिर्भर होना)
वाक्य – पढ़ाई पूरी करके अब वह अपने पाँवों पर खड़ा हो गया है।
- अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना (अर्थ – स्वयं का नुकसान करना)
वाक्य – आलस्य के कारण परीक्षा की तैयारी न करके उसने अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली।
- निम्नलिखित शब्दों के लिंग परिवर्तन करो :
रस्सी, जादूगर, श्रीमान, गुड़िया, वर, स्त्री, नायक, माली
रस्सी – रस्सा
जादूगर – जादूगरनी
श्रीमान – श्रीमती
गुड़िया – गुड्डा
वर – वधू
स्त्री – पुरुष
नायक – नायिका
माली – मलिन
- निम्नांकित शब्दों के लिंग निर्धारित करो :
रुकावट – स्त्रीलिंग
हँसी – स्त्रीलिंग
शरबत – पुल्लिंग
वाणी – स्त्रीलिंग
भीड़ – स्त्रीलिंग
तिरस्कार – पुल्लिंग
निशाना – पुल्लिंग
झील – स्त्रीलिंग
- निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तन करो :
खिलौना – खिलौने
आँख – आँखें
दुकान – दुकानें
छात्रा – छात्राएँ
बिल्ली – बिल्लियाँ
साधु – साधुगण
कहानी – कहानियाँ
योग्यता- विस्तार
- प्रसाद जी द्वारा रचित ‘ममता‘ शीर्षक कहानी का संग्रह करके पढ़ो।
उत्तर – छात्र शिक्षक की मदद से इसे पूरा करें।
- किसी किशोर / किशोरी की कर्तव्य परायणता पर एक छोटी-सी कहानी लिखो और अपने भाई-बहन को सुनाओ।
उत्तर – छात्र शिक्षक की मदद से इसे पूरा करें।
- खेल-तमाशे दिखाकर आजीविका कमाने वाले बच्चों के प्रति समाज का कर्तव्य क्या होना चाहिए- इस विषय पर कक्षा में चर्चा करो।
उत्तर – छात्र शिक्षक की मदद से इसे पूरा करें।