SEBA, Assam Class X Hindi Book, Alok Bhaag-2, Ch. 04 – Bholaram Ka Jeev, Harishankar Parsai, The Best Solutions, भोलाराम का जीव, हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई (1922-1995)

आधुनिक हिंदी व्यंग्यात्मक साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक हरिशंकर परसाई जी का जन्म सन् 1922 में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित जमानी नामक गाँव में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे नागपुर आए और नागपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. करने के बाद आपने अध्यापन कार्य शुरू किया। पर, सन् 1947 से आप स्वतंत्र लेखन कार्य से जुड़ गए। कुछ समय तक उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी काम किया। आपने जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक पत्रिका भी निकाली। सन् 1995 में आप दिवंगत हो गए।

परसाई जी ने साहित्य की कई विधाओं में प्रचुर रचनाएँ की हैं। परंतु हिंदी साहित्य जगत में वे व्यंग्य लेखक के रूप में अधिक विख्यात हुए। उनकी रचनाओं में रानी नागफनी की कहानी और तट की खोज (उपन्यास), हँसते हैं रोते हैं और जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह), भूत के पाँव पीछे, सदाचार की ताबीज, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, (निबंध संग्रह), ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर और तिरछी रेखाएँ (व्यंग्य संग्रह) आदि प्रमुख हैं। ‘परसाई रचनावली’ छह भागों में प्रकाशित हो चुके हैं।

परसाई जी के निबंधों के विषय मौलिक, सामयिक एवं आकार में लघु तथा अछूते विषयों को अपने आप में समेटे हुए हैं। जहाँ एक ओर उन्होंने व्यंग्य रचनाओं में समाज में फैले पाखण्ड, भ्रष्टाचार, शोषण, बेईमानी जैसी कुरीतियों का पर्दाफाश किया है, वहीं दूसरी ओर तिलमिलाहट पैदा करने वाली एक अजीब शक्ति भी है। इनके व्यंग्य सटीक एवं प्रभावशाली होते हैं। आम आदमी की बोलचाल की भाषा होने तथा बीच-बीच में अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग से आपकी रचनाएँ बेहद रोचक बन पड़ी है।

भोलाराम का जीव

ऐसा कभी नहीं हुआ था।

धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे- पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।

सामने बैठे चित्रगुप्त बार – बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में नहीं आ रही थी। आखिर उन्होंने खीझकर रजिस्टर इतने जोर से बंद किया कि मक्खी चपेट में आ गयी। उसे निकालते हुए वह बोले – ‘महाराज, रिकार्ड सब ठीक है। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर हाँ अभी यहाँ तक नहीं पहुँचा।’

धर्मराज ने पूछा— ‘और वह दूत कहाँ है?’

‘महाराज, वह भी लापता है।’

इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बहुत बदहवास – सा वहाँ आया। उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था। उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे – ‘अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है?’

यमदूत हाथ जोड़कर बोला- ‘दयानिधान! मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया। आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर इस बार भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया। पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम की देह त्यागी, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरम्भ की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ, त्यों ही वह मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्मांड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।’

धर्मराज क्रोध से बोले – ‘मूर्ख जीवों को लाते – लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया। ‘

दूत ने सिर झुकाकर कहा – ‘महाराज, मेरी सावधानी में बिल्कुल कसर नहीं थी। मेरे इन अभ्यस्त हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके, पर इस बार तो कोई इन्द्रजाल ही हो गया।’

चित्रगुप्त ने कहा- ‘महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत चला है। लोग दोस्तों को फल भेजते हैं और वे रास्ते में ही रेलवेवाले उड़ा लेते हैं। हौजरी के पार्सलों के मौजे रेलवे अफसर पहनते हैं। मालगाड़ी के डिब्बे-के-डिब्बे रास्ते में कट जाते हैं। एक बात और हो रही है। राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर कहीं बन्द कर देते हैं। कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने, मरने के बाद भी खराबी करने के लिए नहीं उड़ा दिया?’

धर्मराज ने व्यंग्य से चित्रगुप्त की ओर देखते हुए कहा – ‘तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गयी। भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना?’

इसी समय कहीं से घूमते-फिरते नारद मुनि वहाँ आ गये। धर्मराज को गुमसुम बैठे देख बोले- ‘क्यों धर्मराज, कैसे चिन्तित बैठे हैं? क्या नर्क में निवास स्थान की समस्या अभी हल नहीं हुई?”

धर्मराज ने कहा- ‘वह समस्या तो कभी की हल हो गयी, मुनिवर ! नर्क में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर आ गए हैं। कई ईमारतों के ठेकेदार हैं, जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनायीं।’

बड़े-बड़े इंजीनियर भी आ गए हैं, जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर भारत की पंचवर्षीय योजनाओ का पैसा खाया। ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मजदूरों की हाजिरी भरकर पैसा हड़पा, जो कभी काम पर गए ही नहीं। इन्होंने बहुत जल्दी नर्क में कई इमारतें तान दी हैं। वह समस्या तो हल हो गई। भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई। उसके जीव को यह दूत यहाँ ला रहा था कि जीव इसे रास्ते में चकमा देकर भाग गया। इसने सारे ब्रह्मांड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला। अगर ऐसा होने लगा, तो पाप-पुण्य का भेद ही मिट जाएगा।’

नारद ने पूछा- ‘उस पर इन्कम टैक्स तो बकाया नहीं था? हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो।’

चित्रगुप्त ने कहा – ‘इन्कम होता तो टैक्स होता!… भुखमरा था ! ‘ नारद बोले- ‘मामला बड़ा दिलचस्प है। अच्छा, मुझे उसका नाम- पता तो बतलाओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।’

चित्रगुप्त ने रजिस्टर देखकर बताया- ‘ भोलाराम नाम था उसका, जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के टूटे- फूटे मकान में वह परिवार समेत रहता था। उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की। उम्र लगभग पैंसठ साल सरकरी नौकर था; पाँच साल पहले रिटायर हो गया था। मकान का किराया उसने एक साल से नहीं दिया था, इसलिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था। इतने में भोलाराम ने संसार ही छोड़ दिया। आज पाँचवाँ दिन है। बहुत सम्भव है कि अगर मकान मालिक, वास्तविक मकान मालिक है, तो उसने भोलाराम के मरते ही, उसके परिवार को निकाल दिया होगा। इसलिए आपको परिवार की तलाश में काफी घूमना पड़ेगा।’

माँ-बेटी के सम्मिलित क्रंदन से ही नारद भोलाराम का मकान पहचान गए।

द्वार पर जाकर उन्होंने आवाज लगाई – ‘नारायण….नारायण !’ लड़की ने देखकर कहा – ‘ आगे जाओ, महाराज।’

नारद ने कहा-

कहा – ‘मुझे भिक्षा नहीं चाहिए। मुझे भोलाराम के बारे में कुछ पूछताछ करनी है। अपनी माँ को जरा बाहर भेजो, बेटी।’

भोलाराम की पत्नी बाहर आई। नारद ने कहा- ‘माता, भोलाराम को क्या बीमारी थी?”

क्या बताऊँ? गरीबी की बीमारी था। पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे, पर पेंशन अभी तक नहीं मिली। हर दस-पंद्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब ही नहीं आता था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों से मेरे सब गहने बेचकर हमलोग खा गए। फिर बर्तन बिके। अब कुछ नहीं बचा था। फाके होने लगे थे। चिन्ता में घुलते – घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया।’

नारद ने कहा- ‘क्या करोगी, माँ?.. उनकी इतनी ही उम्र थी।’

ऐसा तो मत कहो, महाराज। उम्र तो बहुत थी। पचास-साठ रुपया महीना पेंशन मिलती, तो कुछ और काम नहीं करके गुजारा हो जाता। पर क्या करें? पाँच साल नौकरी से बैठे हो गए और अभी तक एक कौड़ी नहीं मिली।’

दुख की कथा सुनने की फुरसत नारद को थी नहीं। वह अपने मुद्दे पर आए – ‘ माँ, यह तो बताओ कि यहाँ किसी से क्या उनका विशेष प्रेम था, जिसमें उनका जी लगा हो?’

पत्नी बोली-’ लगाव तो महाराज, बाल-बच्चों से ही होता है।’ नारद हँसकर बोले—’हाँ, तुम्हारा यह सोचना ठीक ही है। यही भ्रम अच्छी गृहस्थी का आधार है। अच्छा माता, मैं चला।’

व्यंग्य समझने की असमर्थता ने नारद को सती के क्रोध की ज्वाला से बचा लिया।

स्त्री ने कहा – ‘महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरुष हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी हुई पेंशन मिल जाए। इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाएगा।’

नारद को दया आ गई थी। वह कहने लगे – ‘ साधुओं की बात कौन मानता है? मेरा यहाँ कोई मठ तो है नहीं। फिर भी मैं सरकारी दफ्तर जाऊँगा और कोशिश करूँगा।’

वहाँ से चलकर नारद सरकारी दफ्तर में पहुँचे। वहाँ पहले ही कमरे में बैठे बाबू से उन्होंने भोलाराम के केस के बारे में बातें कीं। उस बाबू ने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा और बोला- ‘भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी।’

नारद ने कहा- ‘भाई, ये बहुत से पेपरवेट तो रखे हैं इन्हें क्यों नहीं रख दिया?’

बाबू हँसा – ‘आप साधु हैं, आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती। दरख्वास्तें पेपरवेट से नहीं दबतीं… खैर, आप उस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए।’

नारद उस बाबू के पास गए। उसने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास, चौथे ने पाँचवें के पास। जब नारद पच्चीस-तीस बाबुओं और अफसरों के पास घूम आए, तब एक चपरासी ने कहा – ‘महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए ! आप अगर साल भर भी यहाँ चक्कर लगाते रहें, तो भी काम नहीं होगा। आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए। उन्हें खुश कर लिया तो अभी काम हो जाएगा।’

नारद बड़े साहब के कमरे में पहुँचे। बाहर चपरासी ऊँघ रहा था, इसलिए उन्हें किसी ने छेड़ा नहीं। उन्हें एकदम बिना विजटिंग कार्ड के आया देख, साहब बड़े नाराज हुए। बोले-’ इसे कोई मंदिर – वंदिर समझ लिया क्या?’ धड़धड़ाते चले आए ! चिट क्यों नहीं भेजी?’

नारद ने कहा- ‘कैसे भेजता? चपरासी तो सो रहा है!’

‘काम है?’ – साहब ने रौब से पूछा।

नारद ने भोलाराम का पेंशन केस बतलाया।

साहब बोले- ‘आप हैं वैरागी; दफ्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते I असल में भोलाराम ने गलती की। भई, यह भी एक मंदिर है। यहाँ भी दान- पुण्य करना पड़ता है; भेंट चढ़ानी पड़ती है। आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं; इन पर वजन रखिए।’

नारद ने सोचा कि फिर वजन की समस्या खड़ी हो गई। साहब बोले- ‘भई, सरकारी पैसे का मामला है। पेशन का केस बीसों दफ्तरों में जाता है। देर लग ही जाती है। हजारों बार एक ही बात को हजार जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है। जितनी पेंशन मिलती है उतनी कीमत की स्टेशनरी लग जाती है। हाँ, जल्दी भी हो सकती है, मगर…’ साहब रुके।

नारद ने कहा- ‘ मगर क्या?’

साहब ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा- ‘मगर वजन चाहिए। आप समझे नहीं। जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा हैं, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है। यह मैं उसे दे दूँगा। साधुओं की वीणा तो बड़ी पवित्र होती है। लड़की जल्दी संगीत सीख गई, तो उसकी शादी हो जाएगी।’

नारद अपनी वीणा छिनते देखकर जरा घबराए। पर फिर सँभालकर उन्होंने वीणा टेबल पर रखकर कहा – ‘यह लीजिए। अब जरा जल्दी उसकी पेंशन का ऑर्डर निकाल दीजिए।’

साहब ने प्रसन्नता से उन्हें कुर्सी दी, वीणा को एक कोने में रखा और घंटी बजाई। चपरासी हाजिर हुआ।

साहब ने हुक्म दिया- ‘ बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फाइल लाओ!’

थोड़ी देर बाद चपरासी भोलाराम की सौ-डेढ़ सौ दरख्वास्तों से भरी फाइल लेकर आया। उसमें पेंशन के कागजात भी थे। साहब ने फाइल पर का नाम देखा और निश्चित करने के लिए पूछा- ‘क्या नाम बताया, साधुजी, आपने?’

नारद ने समझा कि साहब कुछ ऊँचा सुनता है। इसलिए जोर से बोल – ‘भोलाराम।’

सहसा फाइल में से आवाज आई- ‘कौन पुकार रहा है मुझे? पोस्टमैन है क्या? पेंशन का ऑर्डर आ गया?’

साहब डरकर कुर्सी से लुढ़क गए। नारद भी चौंके। पर दूसरे ही क्षण बात समझ गए। बोले-’भोलाराम ! तुम क्या भोलाराम के जीव हो।’

‘हाँ’ आवाज आई।

नारद ने कहा- ‘मैं नारद हूँ मैं तुम्हें लेने आया हूँ। चलो स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है।’

आवाज आई- ‘मुझे नहीं जाना। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता!’

 

पाठ का सार – भोलाराम का जीव

‘भोलाराम का जीव’ कहानी में पौराणिक कथा को आधार बनाकर कहानी में व्यंग्य समाहित है। धर्मराज, चित्रगुप्त और यमराज तीनों ही बड़े चिंतित होकर सोच रहे हैं कि पाँच दिन पहले जीव त्यागने वाले भोलाराम के जीव को लेकर यमदूत इस लोक में क्यों नहीं पहुँचा। उन्हें चिंतित देखकर वहाँ पहुँचे नारद ने उनकी समस्या का हल ढूँढने हेतु पृथ्वीतल पर जाने की योजना बनाई। नारद पृथ्वी पर पहुँच गए। भोलाराम के जीव की तलाश में नारद अनेक स्थानों पर भटकने के बाद एक दफ्तर पहुँचते हैं और वहाँ के कर्मचारियों की रिश्वत लेकर ही काम करने की पद्धति को देखकर हैरान ही नहीं, परेशान भी हो जाते हैं। अपनी पेंशन पाने के लिए भोलाराम ने रिश्वत नहीं दी थी। जब तक दरख्वास्तों पर वजन नहीं रखा जाता कोई काम नहीं होता। दफ्तर के बड़े बाबू नारद से साफ-साफ कहते हैं, ‘आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं; उस पर वजन रखिए। रिश्वत के रूप में नारद अपनी वीणा दे देते हैं। वीणा के रूप में वजन रखते ही पेंशन की फाइलों में से उन्हें भोलाराम के जीव की आवाज सुनाई देती है। नारद भोलाराम के जीव से कहते हैं, ‘मै तुम्हें लेने आया हूँ। चलो, स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है पर भोलाराम के जीव की विवशता है कि वह पेंशन की दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता। इसी कथा – सूत्र के व्यंग्यात्मक उपयोग द्वारा लेखक ने भ्रष्टाचार के अमानवीय रूप पर मार्मिक चोट की है। एक आम इंसान को जिंदगी में शासन तंत्र में फैले भ्रष्टाचार के कारण कितनी ही कठिनाई से गुजरना पड़ता है तथा इन सबसे लड़ने के बावजूद वह सफलता हासिल नहीं कर सकता है।

पाठ संक्षिप्त में

“ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस वाक्य से कहानी शुरू होती है। कैसा नहीं हुआ था? ‘धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों के कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान अलाट करते आ रहे थे।’ तो इस बार क्या हुआ? इस बार हुआ यह कि ‘भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा।’ सही है ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। धर्मराज ने पूछा- ‘और वह दूत कहाँ है?’ उत्तर मिला- ‘महाराज वह भी लापता है।’ फिर दूत अचानक बदहवास प्रकट हुआ । चित्रगुप्त चिल्ला उठे – अरे तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है? ‘यमदूत हाथ जोड़कर बोला- ‘दया निधान, मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया।… इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।’

इसी समय नारद जी वहाँ पहुँचे और उन्होंने समस्या पर विचार किया। उन्होंने पाया कि ‘मामला बड़ा दिलचस्प है।’ और कहा ‘अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।’ पृथ्वी पर जाकर उन्होंने पता लगाया कि उसको गरीबी की बीमारी थी। पाँच साल हो गए थे पेंशन पर बैठे। पेंशन अभी तक बँधी न थी। हर दस-पन्द्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों में सब गहने बेचकर खा लिए गए थे। चिन्ता में घुलते – घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया। नारद को इस दुःख गाथा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे तो भोलाराम का जीव ढूँढ़ रहे थे। लेकिन साधु का दिल पसीज गया सो वे पेंशन के दफ्तर जा पहुँचे। वहाँ उन्हें पता लगा कि भोलाराम ने दरख्वास्त तो दी थी लेकिन उस पर वज़न नहीं रखा था। नारद क्या रिश्वत देते? ‘वज़न के नाम पर उनके पास उनकी वीणा ही थी।

साहब ने कहा- ‘यह सुन्दर वीणा है। इसका वज़न भी दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है। यह मैं उसे दे दूँगा ।’ नारद जी की वीणा ले लेने के बाद साहब ने भोलाराम की फ़ाइल मँगवाई। नारद से उन्होंने नाम पूछा। नारद ने कहा, ‘भोलाराम!’ अपना नाम सुनकर सौ डेढ़ सौ दरख्वास्तों के बीच से आवाज़ आई – ‘कौन पुकार रहा है मुझे? पोस्टमैन है? क्या पेंशन का ऑर्डर आ गया?’ नारद ने कहा- ‘चलो, स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है।’ भोलाराम ने जवाब दिया- ‘मुझे नहीं जाना। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में भटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता।’

शब्द

हिंदी अर्थ

अंग्रेजी अर्थ

अवश्य

जरूर, निश्चित रूप से

Certainly, Surely

अहंकार

घमंड, अभिमान

Ego, Pride

अनुभव

तजुर्बा, एहसास

Experience, Realization

अस्वीकार

नकार, इंकार

Denial, Rejection

आकर्षण

मोह, रुझान

Attraction, Charm

आग्रह

ज़िद, निवेदन

Request, Insistence

आश्रय

सहारा, पनाह

Shelter, Refuge

इमानदारी

सत्यनिष्ठा, निष्ठा

Honesty, Integrity

उपलब्धि

प्राप्ति, सफलता

Achievement, Attainment

उत्साह

जोश, उमंग

Enthusiasm, Zeal

उपेक्षा

अनदेखी, तिरस्कार

Neglect, Disregard

कठोर

सख्त, कड़ा

Hard, Rigid

कर्तव्यनिष्ठा

जिम्मेदारी, फर्ज

Duty-bound, Responsibility

करुणा

दया, सहानुभूति

Compassion, Mercy

कुशल

निपुण, दक्ष

Skilled, Efficient

क्रोध

गुस्सा, रोष

Anger, Rage

गंभीर

सोचनीय, चिंतनीय

Serious, Grave

घृणा

नफरत, तिरस्कार

Hatred, Disgust

चातुर्य

चतुराई, बुद्धिमानी

Cleverness, Intelligence

चमत्कार

आश्चर्य, अद्भुत घटना

Miracle, Wonder

जिज्ञासा

जाँच, कौतूहल

Curiosity, Inquiry

त्याग

बलिदान, समर्पण

Sacrifice, Renunciation

दृढ़ता

मजबूती, स्थिरता

Firmness, Determination

दुर्लभ

विरल, कठिनाई से मिलने वाला

Rare, Uncommon

द्वेष

शत्रुता, बैर

Hatred, Enmity

निर्दयता

क्रूरता, कठोरता

Cruelty, Harshness

निराशा

हताशा, उम्मीद खोना

Despair, Hopelessness

परिश्रम

मेहनत, प्रयास

Hard Work, Effort

पारदर्शिता

स्पष्टता, स्पष्ट देख सकने की क्षमता

Transparency, Clarity

पीड़ा

दर्द, कष्ट

Pain, Suffering

प्रेरणा

उत्साह, मार्गदर्शन

Inspiration, Motivation

बलिदान

त्याग, न्योछावर

Sacrifice, Offering

बुद्धि

समझ, विवेक

Intelligence, Wisdom

मानवता

इंसानियत, करुणा

Humanity, Kindness

महत्वाकांक्षा

आकांक्षा, उच्च उद्देश्य

Ambition, Aspiration

मितव्ययिता

बचत, सादगी

Frugality, Economy

योगदान

सहयोग, सहायता

Contribution, Support

राजनीति

सत्ता नीति, शासन कला

Politics, Governance

रूचि

पसंद, झुकाव

Interest, Inclination

लज्जा

शर्म, संकोच

Shame, Modesty

लोभ

लालच, मोह

Greed, Avarice

समर्पण

अर्पण, त्याग

Dedication, Devotion

संकोच

झिझक, हिचकिचाहट

Hesitation, Reluctance

संघर्ष

लड़ाई, प्रयत्न

Struggle, Conflict

सहयोग

सहायता, समर्थन

Cooperation, Support

स्वाभिमान

आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा

Self-respect, Dignity

सहनशीलता

धैर्य, सहनशक्ति

Tolerance, Endurance

संदेह

शक, अविश्वास

Doubt, Suspicion

संतोष

तृप्ति, संतुष्टि

Satisfaction, Contentment

साहस

हिम्मत, वीरता

Courage, Bravery

सुविधा

सहूलियत, आराम

Facility, Convenience

स्वतंत्रता

आज़ादी, मुक्तता

Freedom, Independence

हताशा

निराशा, मायूसी

Frustration, Hopelessness

हर्ष

आनंद, खुशी

Joy, Delight

अज्ञान

अंधकार, मूर्खता

Ignorance, Unawareness

अनुमान

अटकल, पूर्वानुमान

Estimation, Guess

अवरोध

बाधा, रुकावट

Obstruction, Hindrance

आकांक्षा

इच्छा, अभिलाषा

Desire, Aspiration

आक्रोश

क्रोध, गुस्सा

Outrage, Anger

आनंद

हर्ष, प्रसन्नता

Joy, Happiness

इच्छा

चाह, लालसा

Wish, Desire

इज्जत

मान-सम्मान, प्रतिष्ठा

Respect, Honor

उन्नति

प्रगति, तरक्की

Progress, Development

उदाहरण

नमूना, मिसाल

Example, Instance

उत्तरदायित्व

जिम्मेदारी, कर्तव्य

Responsibility, Accountability

उपेक्षा

तिरस्कार, अनदेखी

Neglect, Disregard

एहतियात

सतर्कता, सावधानी

Precaution, Caution

ओजस्वी

तेजस्वी, प्रभावशाली

Energetic, Influential

कटुता

तीखापन, कड़वाहट

Bitterness, Harshness

कल्याण

भलाई, उत्थान

Welfare, Well-being

कामना

इच्छा, चाह

Desire, Wish

कुटिल

धूर्त, चालाक

Cunning, Devious

क्रियाशील

सक्रिय, कार्यरत

Active, Functional

गंभीरता

गहराई, महत्व

Seriousness, Gravity

गुप्त

छिपा हुआ, रहस्यपूर्ण

Secret, Hidden

घटना

हादसा, प्रसंग

Incident, Event

चेतना

जागरूकता, होश

Consciousness, Awareness

छल

धोखा, कपट

Deception, Fraud

जिम्मेदारी

उत्तरदायित्व, कर्तव्य

Responsibility, Duty

ज्योति

रोशनी, प्रकाश

Light, Radiance

झूठ

असत्य, मिथ्या

Lie, Falsehood

टकराव

संघर्ष, विरोध

Conflict, Clash

ठहराव

विराम, स्थिरता

Pause, Stability

दंभ

घमंड, अहंकार

Arrogance, Vanity

दीर्घायु

लंबी उम्र, दीर्घ जीवन

Longevity, Long life

दुर्दशा

खराब हालत, विपत्ति

Miserable condition, Plight

धैर्य

सहनशीलता, संयम

Patience, Perseverance

नियंत्रण

काबू, रोकथाम

Control, Regulation

पराजय

हार, विफलता

Defeat, Failure

परिवर्तन

बदलाव, संशोधन

Change, Transformation

प्रीति

प्रेम, स्नेह

Love, Affection

फलस्वरूप

परिणामस्वरूप, नतीजे में

Consequently, As a result

बाधा

रुकावट, अवरोध

Obstacle, Hurdle

मधुर

मीठा, प्रिय

Sweet, Pleasant

महानता

श्रेष्ठता, उच्चता

Greatness, Eminence

योग्यता

क्षमता, काबिलियत

Ability, Competence

रचना

निर्माण, रचावट

Composition, Creation

लगन

निष्ठा, उत्साह

Dedication, Passion

व्यथा

दुख, वेदना

Pain, Agony

संयोग

इत्तेफाक, संधि

Coincidence, Combination

संदेह

शक, अविश्वास

Doubt, Suspicion

साहसिकता

हिम्मत, बहादुरी

Bravery, Courage

संतुलन

समता, सामंजस्य

Balance, Equilibrium

सफलता

विजय, उपलब्धि

Success, Achievement

संवेदना

सहानुभूति, दुखद अनुभव

Sympathy, Sensitivity

सुखद

आनंददायक, संतोषजनक

Pleasant, Satisfactory

साहस

हिम्मत, वीरता

Courage, Bravery

शक्ति

बल, ताकत

Power, Strength

श्रद्धा

भक्ति, विश्वास

Faith, Devotion

स्वप्न

सपना, कल्पना

Dream, Vision

हास्य

मजाक, विनोद

Humor, Laughter

 

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

अलॉट = आवंटन कराना

रिकार्ड = लेखा-जोखा, अभिलेख

यमदूत = यमराज के दूत

विकृत = विरूप, अस्वाभाविक रूप

क्रंदन = रोना, रूदन

कसर = प्रयास, प्रयत्न

अभ्यास = आदी

बदहवास = डरा हुआ

इन्द्रजाल = हाथ की सफाई, जादू का खेल

फाका = उपवास करना, भूखमरी

सती = पतिव्रता स्त्री

इनकम टैक्स = आयकर दरख्वास्त प्रार्थनापत्र

सिद्ध पुरुष = सिद्धियों को वश में करने वाला, कहा जाता है कि सिद्धियाँ आठ प्रकार की होती है।

गुमसुम = चुपचाप

हौजरी = कपड़ा मिल

स्टेशनरी = कागज-कलम आदि

नगण्य = जिसे गिना न जा सके

पेपरवेट = कागजों अथवा प्रार्थनापत्रों को देखकर रखा जाने वाला काँच का गोला, यहाँ रिश्वत के अर्थ का द्योतक है

पार्सल = डाक अथवा रेलवे द्वारा वस्तुओं का भेजा जाना

लेखन सामग्री,

वीणा = एक प्रकार का वाद्य यंत्र

दीन = गरीब, दुखिया

गुणी = गुणवान व्यक्ति

तलाश = खोज

रिटायर = सेवानिवृत्त होना, अवकाशप्राप्त करना

ऊँचा सुनना = कुछ कम सुनना

बोध एवं विचार

  1. सही विकल्प का चयन करो-

(क) भोलाराम के जीव ने कितने दिन पहले देह त्यागी थी?

(अ) तीन दिन पहले

(आ) चार दिन पहले

(इ) पाँच दिन पहले

(ई) सात दिन पहले

उत्तर – (इ) पाँच दिन पहले

  

(ख) नारद भोलाराम का घर पहचान गए-

(अ) माँ-बेटी के सम्मिलित क्रंदन सुनकर

(आ) उसका टूटा-फूटा मकान देखकर

(इ) घर के बगल में नाले को देखकर

(ई) लोगों से घर का पता पूछकर

उत्तर – (अ) माँ-बेटी के सम्मिलित क्रंदन सुनकर

(ग) धर्मराज के अनुसार नर्क में इमारतें बनाकर रहनेवालों में कौन शामिल हैं?

(अ) ठेकेदार

(इ) ओवरसीयर

(आ) इंजीनियर

(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी

(घ) बड़े साहब ने नारद को भोलाराम के दरख्वास्तों पर वजन रहने की सलाह दी। यहाँ वजनका अर्थ है

(अ) पेपरवेट

(आ) वीणा

(इ) रिश्वत

(ई) मिठाई का डब्बा

उत्तर – (इ) रिश्वत

  1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :

(क) भोलाराम का घर किस शहर में था?

उत्तर – भोलाराम का घर जबलपुर शहर में था।

(ख) भोलाराम को सेवानिवृत हुए कितने वर्ष हुए थे?

उत्तर – भोलाराम को सेवानिवृत्त हुए पाँच वर्ष हो चुके थे।

(ग) भोलाराम की पत्नी ने भोलाराम को किस बीमारी का शिकार बताया?

उत्तर – भोलाराम की पत्नी ने उन्हें गरीबी की बीमारी का शिकार बताया।

 (घ) भोलाराम ने मकान मालिक को कितने साल से किराया दिया था?

उत्तर – भोलाराम ने मकान मालिक को एक साल से किराया नहीं दिया था।

(ङ) बड़े साहब ने नारद से भोलाराम की पेंशन मंजूर करने के बदले क्या माँगा?

उत्तर – बड़े साहब ने नारद से भोलाराम की पेंशन मंजूर करने के बदले उनकी वीणा माँगी।

  1. संक्षेप में उत्तर दो :

(क) पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।यहाँ किस घटना का संकेत मिलता है?

उत्तर –  यहाँ इस अनोखी घटना का संकेत दिया गया है कि भोलाराम का जीव मृत्यु के बाद स्वर्ग या नर्क नहीं पहुँचा, बल्कि लापता हो गया। धर्मराज और चित्रगुप्त के लिए यह पहली बार था कि कोई जीव इस प्रकार गायब हो गया हो।

(ख) यमदूत ने भोलाराम के जीव के लापता होने के बारे में क्या बताया?

उत्तर – यमदूत ने बताया कि जब वह भोलाराम के जीव को लेकर स्वर्ग की यात्रा पर निकला, तभी वह एक तीव्र वायु-तरंग पर से छूटकर गायब हो गया। यमदूत ने पूरे ब्रह्मांड में खोजबीन की, लेकिन जीव का कोई पता नहीं चला।

(ग) धर्मराज ने नर्क में किन-किन लोगों के आने की पुष्टि की? उनलोगों ने क्या-क्या अनियमितताएँ की थीं?

उत्तर – धर्मराज ने नर्क में ठेकेदारों, इंजीनियरों और ओवरसीयरों के आने की पुष्टि की। उन्होंने सरकारी धन का दुरुपयोग किया था, भ्रष्टाचार में लिप्त होकर घटिया निर्माण कार्य किए थे, और मजदूरों की झूठी हाजिरी भरकर पैसा हड़पा था।

(घ) भोलाराम की पारिवारिक स्थिति पर प्रकाश डालो।

उत्तर – भोलाराम जबलपुर के घमापुर मोहल्ले में एक टूटे-फूटे मकान में अपने परिवार के साथ रहते थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी थी। वह सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे, लेकिन पाँच वर्षों से पेंशन नहीं मिली थी, जिससे परिवार भुखमरी की स्थिति में था।

(ड.) भोलाराम ने दरख्वातें तो भेजी थीं, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी। – दफ्तर के बाबू के ऐसा कहने का क्या आशय था।

उत्तर – यहाँ ‘वजन’ का तात्पर्य रिश्वत से है। दफ़्तर के बाबू का यह तात्पर्य था कि चूँकि भोलाराम ने अपनी पेंशन के लिए कोई रिश्वत नहीं दी थी, इसलिए उनकी दरख्वास्तें अनदेखी कर दी गईं।

(च) चपरासी ने नारद को क्या सलाह दी?

उत्तर – चपरासी ने नारद को सलाह दी कि वे छोटे बाबुओं के चक्कर लगाने के बजाय सीधे बड़े साहब से मिलें और उन्हें खुश कर लें, क्योंकि बिना उचित ‘वजन’ रखे पेंशन का काम नहीं होगा।

(छ) बड़े साहब ने नारद को भोलाराम के पेंशन केस के बारे में क्या बताया?

उत्तर – बड़े साहब ने बताया कि सरकारी कार्य प्रणाली में पेंशन केस को कई विभागों से गुजरना पड़ता है, जिससे देरी होती है। उन्होंने संकेत दिया कि यदि कुछ ‘वजन’ रखा जाए तो काम जल्दी हो सकता है।

(ज) भोलाराम का जीवनामक व्यंग्यात्मक कहानी समाज में फैले भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी का पर्दाफाश करता है।

उत्तर – यह कहानी सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी पर करारा व्यंग्य है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे सरकारी कर्मचारी किसी भी कार्य के लिए रिश्वत की माँग करते हैं, चाहे वह किसी गरीब व्यक्ति की पेंशन ही क्यों न हो। भोलाराम पाँच साल तक पेंशन के लिए दरख्वास्त भेजते रहे, लेकिन रिश्वत न देने के कारण उनकी अर्जियाँ अनदेखी कर दी गईं। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका जीव स्वर्ग या नर्क में जाने के बजाय उन्हीं फाइलों में अटका रहा। कहानी यह दिखाती है कि भ्रष्टाचार किस तरह आम आदमी के जीवन को कठिन बना देता है और सरकारी व्यवस्था आम जनता की जरूरतों के प्रति कितनी असंवेदनशील हो गई है।

  1. कहानी के आधार पर पुष्टि करो। आशय स्पष्ट करो :

(क) दरख्वास्तें पेपरवेट से नहीं दबतीं।

उत्तर – इस कथन का आशय है कि सरकारी दफ्तरों में किसी फाइल को आगे बढ़ाने के लिए केवल कागजी कार्यवाही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि उसे ‘वज’ यानी रिश्वत का सहारा देना पड़ता है। भोलाराम की पेंशन की फाइल भी बिना रिश्वत के उपेक्षित पड़ी रही, जिससे उसका जीव दर-दर भटकता रहा।

(ख) यह भी एक मंदिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है।

उत्तर – यह कथन सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करता है। सरकारी दफ्तरों की तुलना मंदिर से की गई है, जहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए दान देना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दिए बिना कोई काम नहीं होता, जैसा कि भोलाराम की पेंशन मामले में देखा गया।

भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान

1 पाठ में आए निम्नांकित पदों पर ध्यान दो :

पाप-पुण्य, दान-दक्षिणा, गाना-बजाना, रीति-रिवाज, नाम-पता आदि। प्रत्येक में दो पद हैं और दोनों के बीच योजक (-) चिह्नों का प्रयोग हुआ है। ये पद द्वंद्व समास के उदाहरण हैं। इस प्रकार द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इसके तीन भेद हैं-

(1) इतरेतर द्वंद्व

(2) समाहार द्वंद्व और

(3) वैकल्पिक द्वंद्व।

(क) इतरेतर द्वंद्व समास में सभी पद ‘और’ से जुड़े होते हैं। जैसे- भाई-बहन (भाई और बहन)। राम कृष्ण (राम और कृष्ण)। इस प्रकार के समास का प्रयोग हमेशा बहुवचन में होता है।

(ख) समाहार द्वंद्व समास के दोनों पद ‘समुच्चयबोधक’ से जुड़े होने पर भी अलग-अलग समूह का अस्तित्व न रखकर समूह का बोध कराते हैं। जैसे- दाल-रोटी (दाल और रोटी) अर्थात् भोजन के सभी पदार्थ, हाथ-पाँव (हाथ और पाँव) अर्थात् हाथ और पाँव सहित शरीर के दूसरे अंग भी।

(ग) जिस समास में दो पदों के बीच ‘या’, ‘अथवा’ आदि विकल्प छिपे होते हैं, उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में अक्सर विपरीत अर्थ वाले शब्द जुड़े होते हैं। जैसे— पाप-पुण्य, भला- बुरा, दिन-रात।

अब नीचे दिए गए द्वंद्व समासों के भेद लिखकर उन्हें वाक्यों में प्रयोग करो :

खाना-पीना – समाहार द्वंद्व समास -सेहतमंद रहने के लिए अच्छा खाना-पीना जरूरी होता है।

माँ-बाप -समुच्चयार्थक द्वंद्व समास -माँ-बाप बच्चों के भविष्य को सँवारने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं।

घर-द्वार – समाहार द्वंद्व समास -बाढ़ में कई लोगों का घर-द्वार बह गया।

रुपया-पैसा – समाहार द्वंद्व समास -आज के जमाने में रुपया-पैसा ही सबसे बड़ी ताकत बन गया है।

भात-दाल – समाहार द्वंद्व समास -गाँवों में लोग अक्सर भात-दाल खाना पसंद करते हैं।

सीता-राम – इतरेतर द्वंद्व समास -लोग भक्ति भाव से सीता-राम का नाम जपते हैं।

नाक-कान – समाहार द्वंद्व समास -इस मामले में मेरी नाक-कान मत कटवाओ।

थोड़ा-बहुत – वैकल्पिक द्वंद्व समास -मुझे इस विषय की थोड़ी-बहुत जानकारी है।

ठंडा-गरम – वैकल्पिक द्वंद्व समास -बदलते मौसम में ठंडा-गरम खाने से बचना चाहिए।

उत्थान-पतन – वैकल्पिक द्वंद्व समास -किसी भी देश का उत्थान-पतन वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करता है।

आकाश-पाताल – वैकल्पिक द्वंद्व समास -उसने अपने बेटे के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया।

 

  1. दिए गए वाक्य को ध्यान से पढ़ो :

‘क्या बताऊँ? भोलाराम को गरीबी की बीमारी थी। – इस वाक्य में ‘गरीबी’ और ‘बीमारी’ शब्द भाववाचक संज्ञाएँ हैं, जो क्रमशः ‘गरीब’ और ‘बीमार’ विशेषण शब्दों से बने हैं। भाववाचक संज्ञाएँ किसी व्यक्ति वस्तु अथवा स्थान के गुण, धर्म, दशा अथवा स्वभाव का बोध कराती हैं। ये क्रमशः जातिवाचक संज्ञा से, विशेषण से, क्रिया से, सर्वनाम से तथा अव्यय से बनती हैं। जैसे-

लड़का लड़कपन (जातिवाचक संज्ञा से)

गर्म –  गर्मी (विशेषण से)

लिखना – लिखावट (क्रिया से)

अपना – अपनापन (सर्वनाम से)

समीप – सामीप्य (अव्यय से)

अब पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के भाववाचक संज्ञा बनाओ :

गरीब – गरीबी

असमर्थ – असमर्थता

खराब – खराबी

त्यागी – त्याग

तलाश – तलाशी

बहुत – अधिकता

गृहस्थ – गृहस्थी

कारीगर – कारीगरी

अभ्यस्त – अभ्यस्तता

मूर्ख – मूर्खता

परेशान – परेशानी

नेता – नेतृत्व

चिल्लाना – चिल्लाहट

वास्तविक – वास्तविकता

बीमार – बीमारी

ऊँचा – ऊँचाई

 

योग्यता- विस्तार :

1 हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित पगडंडियों का जमानातथा कबीरा आप ठगाइएनामक व्यंग्यात्मक निबंध पढ़ो और कक्षा में चर्चा करो।

उत्तर – हरिशंकर परसाई के निबंध ‘पगडंडियों का जमाना’ और ‘कबीरा आप ठगाइए’ सामाजिक व्यंग्य का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

पगडंडियों का जमाना में लेखक बदलते समय के साथ समाज में आ रहे व्यवहारगत परिवर्तन को दर्शाते हैं। पहले लोग संघर्ष कर अपने रास्ते स्वयं बनाते थे, लेकिन अब आसान और सुविधाजनक मार्गों की तलाश में हैं। यह निबंध उन लोगों पर कटाक्ष करता है जो मेहनत से बचने और शॉर्टकट अपनाने में विश्वास रखते हैं।

कबीरा आप ठगाइए में परसाई समाज में नैतिक मूल्यों के पतन पर व्यंग्य करते हैं। यहाँ कबीर के विचारों को संदर्भित करते हुए यह दिखाया गया है कि ईमानदार और सच्चे लोग ही अक्सर शोषण और ठगी का शिकार होते हैं, जबकि चालाक और भ्रष्ट लोग सफल माने जाते हैं।

इन निबंधों की कक्षा में चर्चा के दौरान हम यह समझ सकते हैं कि परसाई की व्यंग्यशैली न केवल हास्य उत्पन्न करती है, बल्कि समाज की गहरी सच्चाइयों को भी उजागर करती है।

  1. धर्मराज मनुष्यों के पाप-पुण्य का फैसला करते हैं। अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य को स्वर्ग या नर्क में स्थान मिलता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है। इस विषय में तर्क सहित अपना विचार प्रस्तुत करो।

उत्तर – धर्मराज द्वारा मनुष्यों के पाप-पुण्य का निर्णय और उसके आधार पर स्वर्ग या नर्क की प्राप्ति एक धार्मिक अवधारणा है, लेकिन इसे पूरी तरह सत्य मानना तर्कसंगत नहीं है।

तर्क

कर्म और न्याय – नैतिकता के अनुसार मनुष्य को उसके कर्मों का फल मिलना चाहिए, लेकिन वास्तविक जीवन में अक्सर अच्छे लोग संघर्ष करते रहते हैं जबकि अनैतिक लोग सफल होते हैं। इससे यह विचार संदेहास्पद हो जाता है।

व्यवस्था और भ्रष्टाचार – ‘भोलाराम का जीव’ जैसी कहानियाँ दिखाती हैं कि धरती पर ही न्याय की प्रक्रिया भ्रष्टाचार से प्रभावित होती है, तो परलोक में भी यह न्याय कितना निष्पक्ष होगा, यह सोचने योग्य है।

व्यक्ति की स्वतंत्रता – आधुनिक समाज में नैतिकता और कर्म का संबंध व्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय से जुड़ा है। केवल धार्मिक आधार पर स्वर्ग-नर्क के विचार को स्वीकार करना तार्किक नहीं है।

मानसिकता और विश्वास – पाप-पुण्य का विचार व्यक्ति विशेष की मानसिकता और धार्मिक आस्थाओं पर निर्भर करता है। हर धर्म और समाज में इसका अलग-अलग दृष्टिकोण है, जिससे इसकी सार्वभौमिक सत्यता संदिग्ध हो जाती है।

निष्कर्ष

यह विचार एक नैतिक मार्गदर्शन हो सकता है, लेकिन इसका पूर्णत: सत्य होना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। कर्म का परिणाम इसी जीवन में देखने को मिलता है, और स्वर्ग-नर्क की धारणा एक धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता भर हो सकती है।

 

यह भी जानें :

सरकारी सेवाओं के मामले में रिश्वत लेना और देना कानूनन अपराध है। उपभोक्ता एवं सूचना अधिकारों के द्वारा आरोपी कर्मचारी और अधिकारी को सरकारी कानून के तहत दंडित किए जाने का प्रावधान है। इस विषय में हमें जागरुक होने की आवश्यकता है।

 

 

 

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