SEBA, Assam Class X Hindi Book, Alok Bhaag-2, Ch. 05 – Sadak Ki Baat, Ravindranath Thakur, सड़क की बात, रवींद्रनाथ ठाकुर

रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941)

‘विश्व कवि’ की आख्या से विभूषित गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर उन प्रातः स्मरणीय मनीषियों की परंपरा में आते हैं, जिन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अपने समग्र रूप में चित्रित किया। आपने अपनी रचनाओं में न सिर्फ भारत की गौरवमयी सभ्यता-संस्कृति को अभिव्यक्ति दी, बल्कि विश्व मानवतावादी दृष्टि से पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति के उज्ज्वल तत्वों को अपनाने का आह्वान भी किया। आप मूलतः बांग्ला के कवि कलाकार थे, परन्तु अपनी उदारवादी मानवतावादी दृष्टि के कारण आपने क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता का फिर राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर अंतर्राष्ट्रीयता एवं विश्वबंधुत्व का स्पर्श किया। इस प्रकार वे पहले बंगाल के, फिर भारतवर्ष के और फिर संपूर्ण विश्व के चहेते बने।

कवि-गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 ई. को कोलकाता के जोरासाँको में एक संपन्न एवं प्रतिष्ठित बांग्ला परिवार में हुआ था। आपके पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर जी दार्शनिक प्रवृत्ति के प्रख्यात समाज सुधारक थे। रवींद्रनाथ ठाकुर की शिक्षा-दीक्षा मुख्यतः घर पर ही हुई। काव्य, संगीत, चित्रकला, आध्यात्मिक चिंतन, सामाजिक सुधार एवं राजनीतिक सुरुचि का वातावरण उन्हें परंपरा और परिवार से मिला। उन्होंने प्रकृति एवं जीवन की खुली पुस्तक को लगन के साथ पढ़ा। स्वाध्याय के बल पर आपने विविध विषयों का विपुल ज्ञान प्राप्त कर लिया। सत्रह वर्ष की अवस्था में आप इंग्लैंड गए। वहाँ आपको कई सुप्रतिष्ठित अंग्रेज कवि-साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त हुआ और वे पश्चिमी विचारधारा के आलोक से दीप्त होकर स्वदेश वापस आए।

काव्य प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ ठाकुर ने सात वर्ष की कोमल अवस्था में ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। तब से लेकर देहावसान के समय तक आपकी अमर लेखनी बराबर चलती रही। आपने कई हजार कविताओं, गीतों, कहानियों, रूपकों (भावनाट्य) एवं निबंधों की रचना की। आपने उपन्यास भी लिखे, जिनमें ‘गोरा’ और ‘घरे बाइरे’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आपके द्वारा रचित कहानियों में से ‘काबुलीवाला’ एक कालजयी कहानी है। कवि शिरोमणि रवींद्रनाथ ठाकुर की कीर्ति का आधार स्तंभ

है उनका काव्य-ग्रंथ ‘गीतांजलि’, जिस पर आपको सन् 1913 ई. में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। आपकी अन्य रचनाओं में ‘मानसी’, ‘संध्या-संगीत’ ‘नैवेद्य’, ‘बलाका’, ‘क्षणिका’ आदि अन्यतम हैं। आपके द्वारा विरचित सैकड़ों गीतों से रवींद्र संगीत नामक एक निराली संगीत-धारा ही बह निकली है। आपके द्वारा रचित ‘जन गण मन….’ भारतवर्ष का राष्ट्रीय संगीत है, तो आपकी ही रचना ‘आमार सोणार बांग्ला’ पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश का राष्ट्रीय संगीत है।

कवि-गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल में बोलपुर के निकट शांतिनिकेतन’ नाम के एक शैक्षिक-सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की थी। यह केन्द्र गुरुदेव के सपनों का मूर्त रूप रहा और आगे यह विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध हुआ। आपने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी रुचि ली थी। शांतिनिकेतन में आने पर मोहनदास करमचंद गाँधी को आपने ‘महात्मा’ के रूप में संबोधित किया था। राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के पक्ष में अपना मत देते हुए गुरुदेव ने कहा था- “उस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जो देश के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाती हो, अर्थात् हिन्दी।”7 अगस्त, 1941 ई. को इस महान पुण्यात्मा का स्वर्गवास हुआ।

सड़क की बात पाठ का सार

कवि, गीतकार, कहानीकार, उपन्यासकार, निबंधकार, संगीतकार, कलाकार, समाज-सुधारक, शिक्षा-संस्कृतिप्रेमी और राजनीतिज्ञ की बहुमुखी प्रतिभा के अधिकारी होते हुए भी गुरुदेव रवींद्रनाथ मूलतः कवि-हृदय के थे। उनके कोमल हृदय में अगर विश्वमानवता के प्रति प्रेम, करुणा और सहानुभूति थी, तो मानवेतर प्राकृतिक उपकरणों, जैसे- पेड़-पौधे, नदी-निर्झर, पशु-पक्षी, वन-उपवन, फूल-तारे, सूरज- चाँद आदि के प्रति भी भरपूर आकर्षण था। उनकी सूक्ष्म एवं पैनी दृष्टि जड़ और चेतन दोनों प्रकार के पदार्थों के अंतरतम तक पहुँच जाती थी। आपके द्वारा रचित ‘सड़क की बात’ वस्तुतः सड़क की आत्मकथा है। लेखक ने इसमें सड़क का मानवीकरण किया है। सड़क अपनी आप-बीती अथवा राम-कहानी स्वयं सुना रही है। दरअसल इस पाठ में लेखक ने अपनी सूक्ष्म और पैनी दृष्टि से सड़क के अंतरतम का निरीक्षण करके उसकी आकांक्षा, स्थिति एवं उनके मनोभावों का ऐसा मार्मिक चित्रण किया है कि सड़क की बातें जीवंत हो उठी हैं। यह एक मनोरम आत्मकथात्मक निबंध है। इसमें सड़क की बातों के जरिए मानव जीवन की कई महत्त्वपूर्ण बातें भी उजागर हुई हैं।

सड़क की बात

मैं सड़क हूँ। शायद किसी के शाप से चिरनिद्रित सुदीर्घ अजगर की भाँति वन जंगल और पहाड़ पहाड़ियों से गुजरती हुई पेड़ों की छाया के नीचे से और दूर तक फैले हुए मैदानों में ऊपर से देश-देशांतरों को घेरती हुई बहुत दिनों से बेहोशी की नींद सो रही हूँ। जड़ निद्रा में पड़ी पड़ी मैं अपार धीरज के साथ अपनी धूल में लोटकर शाप की आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही हूँ। हमेशा से जहाँ-तहाँ स्थिर हूँ, अविचल हूँ, हमेशा से एक ही करवट सो रही हूँ, इतना भी सुख नहीं कि अपनी इस कड़ी और सूखी सेज पर एक भी मुलायम हरी घास या दूब डाल सकूँ। इतनी भी फुरसत नहीं कि अपने सिरहाने के पास एक छोटा-सा नीले रंग का वनफूल भी खिला सकूँ।

मैं बोल नहीं सकती पर अंधे की तरह सब कुछ महसूस कर सकती हूँ। दिन-रात पैरों की ध्वनि, सिर्फ पैरों की आहट सुना करती हूँ। अपनी इस गहरी जड़ निद्रा में लाखों चरणों के स्पर्श से उनके हृदयों को पढ़ लेती हूँ, मैं समझ जाती हूँ कि कौन घर जा रहा है, कौन परदेश जा रहा है, कौन काम से जा रहा है, कौन आराम करने जा रहा है, कौन उत्सव में जा रहा है और कौन श्मशान को जा रहा है। जिसके पास सुख की घर-गृहस्थी है, स्नेह की छाया है, वह हर कदम पर सुख की तस्वीर खींचता है, आशा के बीज बोता है। जान पड़ता है, जहाँ-जहाँ उसके पैर पड़ते हैं, वहाँ-वहाँ क्षण भर में मानो एक-एक लता अंकुरित और पुष्पित हो उठेगी। जिसके पास घर नहीं, आश्रय नहीं, उसके पदक्षेप में न आशा है, न अर्थ है, उसके कदमों में न दायाँ है, न बायाँ है, उसके पैर कहते हैं, मैं चलूँ तो क्यों, और ठहरूँ तो किसलिए? उसके कदमों से मेरी सुखी हुई धूल मानो और सूख जाती है।

संसार की कोई भी कहानी मैं पूरी नहीं सुन पाती। आज सैकड़ों-हजारों वर्षों से मैं लाखों-करोड़ों लोगों की कितनी हँसी, कितने गीत, कितनी बातें सुनती आई हूँ। पर थोड़ी-सी बात सुन पाती हूँ। बाकी सुनने के लिए जब कान लगाती हूँ तब देखती हूँ कि वह आदमी ही नहीं रहा। इस तरह न जाने कितने युगों की कितनी टूटी-फूटी बातें और बिखरे हुए गीत मेरी धूल के साथ धूल बन गए हैं और धूल बनकर अब भी उड़ते रहते हैं।

वह सुनो गा रही है – कहते-कहते कह नहीं पाई। आह, ठहरो, जरा गीत को पूरा कर जाओ, पूरी बात तो सुन लेने दो मुझे, पर कहाँ ठहरी वह? गाते-गाते न जाने कहाँ चली गई? आखिर तब मैं सुन ही नहीं पाई। बस आज आधी रात तक उसकी पग-ध्वनि मेरे कानों में गूँजती रहेगी। मन ही मन सोचूँगी कौन थी वह? कहाँ जा रही थी न जाने? जो बात न कह पाई उसी को फिर कहने गई। अब की बार जब फिर उससे भेंट होगी, वह जब मुँह उठाकर इसके मुँह की तरफ ताकेगा, तब “कहते- कहते”फिर “कह नहीं पाई ”तो?

समाप्ति और स्थायित्व शायद कहीं होगा, पर मुझे तो नहीं दिखाई देता। एक चरण चिह्न को भी तो मैं ज्यादा देर तक नहीं रख सकती। मेरे ऊपर लगातार चरण-चिह्न पड़ रहे हैं, पर नए पाँव आकर पुराने चिह्नों को पोंछ जाते हैं। जो चला जाता है वह तो पीछे कुछ छोड़ ही नहीं जाता। कदाचित उसके सिर के बोझ से कुछ मिलता भी है तो हजारों चरणों के तले लगातार कुचला जाकर कुछ ही देर में वह धूल में मिल जाता है।

मैं किसी का भी लक्ष्य नहीं हूँ। सबका उपाय मात्र हैं। मैं किसी का घर नहीं हूँ, पर सबको घर ले जाती हूँ। मुझे दिन-रात यही संताप सताता रहता है कि मुझ पर कोई तबीयत से कदम नहीं रखना चाहता। मुझ पर कोई खड़ा रहना पसंद नहीं करता। जिनका घर बहुत दूर है, वे मुझे ही कोसते हैं और शाप देते रहते हैं। मैं जो उन्हें परम धैर्य के साथ उनके घर के द्वार तक पहुँचा देती हूँ, इसके लिए कृतज्ञता कहाँ पाती हूँ? वे अपने घर आराम करते हैं, घर पर आनंद मनाते हैं, घर में उनका सुख-सम्मिलन होता है, बिछुड़े हुए सब मिल जाते हैं, और मुझ पर केवल थकावट का भाव दरसाते हैं, केवल अनिच्छाकृत श्रम हुआ समझते हैं, मुझे केवल विच्छेद का कारण मानते हैं।

क्या इसी तरह बार-बार दूर ही से घर के झरोखे में से पंख पसार कर बाहर आती हुई मधुर हास्य-लहरी मेरे पास आते ही शून्य में विलीन हो जाया करेगी? घर के उस आनंद का एक कण भी, एक बूँद भी मैं नहीं पाऊँगी?

कभी-कभी वह भी पाती हूँ। छोटे-छोटे बच्चे जो हँसते-हँसते मेरे पास आते हैं और शोरगुल मचाते हुए मेरे पास आकर खेलते हैं, अपने घर का आनंद वे मेरे पास ले आते हैं। उनके पिता का आशीर्वाद और माता का स्नेह घर से बाहर निकल कर, मेरे पास आकर सड़क पर ही मानो अपना घर बना लेता है। मेरी धूल में वे स्नेह दे जाते हैं, प्यार छोड़ जाते हैं। मेरी धूल को वे अपने वश में कर लेते हैं और अपने छोटे-छोटे कोमल हाथों से उसकी ढेरी पर हौले-हौले थपकियाँ दे-देकर परम स्नेह से उसे सुलाना चाहते हैं। अपना निर्मल हृदय लेकर बैठे-बैठे वे उसके साथ बातें करते हैं। हाय-हाय, इतना स्नेह, इतना प्यार पाकर भी मेरी यह धूल उसका जवाब तक नहीं दे पाती। मेरे लिए कैसा शाप है यह!

छोटे-छोटे कोमल पाँव जब मेरे ऊपर से चले जाते हैं, तब अपने को मैं बड़ी कठिन अनुभव करती हूँ, मालूम होता है उनके पाँवों में लगती होगी। उस समय मुझे कुसुम कली की तरह कोमल होने की साध होती है। अरुण चरण ऐसी कठोर धरती पर क्यों चलते हैं? किंतु, यदि न चलते तो शायद कहीं भी हरी हरी घास पैदा न होती।

प्रतिदिन नियमित रूप से जो मेरे ऊपर चलते हैं, उन्हें मैं अच्छी तरह पहचानती हूँ। पर वे नहीं जानते कि उनके लिए मैं कितनी प्रतीक्षा किया करती हूँ। मैं मन ही मन कल्पना कर लेती हूँ। बहुत दिन हुए, ऐसी ही एक प्रतिमा अपने कोमल चरणों को लेकर दोपहर को बहुत दूर से आती, छोटे- छोटे दो नूपुर रूनझुन करके उसके पाँव में रो-रोकर बजते रहते। शायद उसके ओठ बोलने के ओठ न थे, शायद उसकी बड़ी-बड़ी आँखें संध्या के आकाश की भाँति म्लान दृष्टि से किसी के मुँह की ओर देखती रहती।

ऐसे कितने ही पाँवों के शब्द नीरव हो गए हैं। मैं क्या उनकी याद रख सकती हूँ? सिर्फ उन पाँवों की करुण नूपुर-ध्वनि अब भी कभी-कभी याद आ जाती है। पर मुझे क्या घड़ी भर भी शोक या संताप करने की छुट्टी मिलती है? शोक किस-किसके लिए करें? ऐसे कितने ही आते हैं और चले जाते हैं।

उफ कैसा कड़ा घाम है! एक बार साँस छोड़ती हूँ और तपी हुई धूल सुनील आकाश को धुआँधार करके उड़ी चली जाती है। अमीर और गरीब, जन्म और मृत्यु सब कुछ मेरे ऊपर एक ही साँस में धूल के स्रोत की तरह उड़ता चला जा रहा है। इसलिए सड़क के न हँसी है, न रोना। मैं अपने ऊपर कुछ भी पड़ा रहने नहीं देती, न हँसी, न रोना, सिर्फ मैं ही अकेली पड़ी हुई हूँ, और पड़ी रहूँगी।

 

शब्द

अर्थ (हिंदी में)

अर्थ (अंग्रेज़ी में)

सड़क

मार्ग, पथ

Road, Path

शाप

अभिशाप, बद्दुआ

Curse

चिरनिद्रित

हमेशा के लिए सोया हुआ

In deep sleep, Dormant

सुदीर्घ

बहुत लंबा

Very long

अजगर

बड़ा साँप

Python

वन

जंगल

Forest

पहाड़

पर्वत

Mountain

छाया

परछाईं, छत्र

Shadow

देश-देशांतर

विभिन्न देशों का विस्तार

Different countries, Beyond borders

बेहोशी

अचेतावस्था

Unconsciousness

जड़ निद्रा

गहरी नींद, अचेतन अवस्था

Deep sleep, Stupor

धैर्य

सहनशीलता, सब्र

Patience

मुलायम

कोमल, नरम

Soft

दूब

घास की एक कोमल प्रजाति

Grass (a soft type)

वनफूल

जंगल में उगने वाला फूल

Wildflower

पग-ध्वनि

पैरों की आवाज़

Footstep sound

चरण

पैर, पद

Foot, Step

गृहस्थी

घर-परिवार

Household

अंकुरित

उगना, विकसित होना

Sprouting, Germinating

पुष्पित

फूलों से भरा हुआ

Blooming

आश्रय

शरण, सहारा

Shelter, Refuge

पदक्षेप

कदमों के निशान

Footsteps

हँसी

हास्य, मुस्कान

Laughter, Smile

शोक

दुख, संताप

Sorrow, Grief

विच्छेद

अलगाव, बिछड़ना

Separation, Detachment

कृतज्ञता

आभार, धन्यवाद

Gratitude

नूपुर

पायल

Anklet

धुआँधार

धुएँ से भरा हुआ

Smoke-filled, Dusty

सुनील

नीला, स्वच्छ

Blue, Clear

स्रोत

प्रवाह, धारा

Stream, Flow

तपी हुई

गरम हुई, झुलसी हुई

Heated, Scorched

प्रतिमा

मूर्ति, छवि

Idol, Image

म्लान

फीका, उदास

Pale, Faded

अचेत

बेहोश, मूर्छित

Unconscious, Insensible

अपार

बहुत अधिक, विशाल

Immense, Boundless

अविचल

अडिग, स्थिर

Unshaken, Steadfast

करवट

शरीर का मोड़

Turn, Shift

फुरसत

खाली समय, अवकाश

Leisure, Free time

सिरहाना

तकिए का स्थान

Pillow side, Headrest

प्रतीक्षा

इंतजार, आशा

Waiting, Expectation

भाँति

तरह, प्रकार

Like, Manner

उड़ी

हवा में गई

Flew, Dispersed

अनुभव

एहसास, अनुभूति

Experience, Realization

ध्वनि

आवाज़, गूँज

Sound, Echo

अंकुरित

उगना, विकसित होना

Sprouting, Germinating

हृदय

दिल, मन

Heart, Mind

गृहस्थी

घर-परिवार, पारिवारिक जीवन

Household, Domestic life

परदेश

विदेश, दूर स्थान

Foreign land, Distant place

संताप

कष्ट, पीड़ा

Suffering, Agony

विच्छेद

अलगाव, दूरी

Separation, Detachment

कृतज्ञता

आभार, धन्यवाद

Gratitude, Thankfulness

बोझ

भार, वजन

Burden, Load

कुचलना

रौंदना, दबाना

Crush, Trample

परम

अत्यंत, सबसे अधिक

Supreme, Ultimate

बिछुड़े

अलग हुए, बिछड़े

Separated, Estranged

धूल

मिट्टी, गर्द

Dust, Dirt

कोमल

नरम, मुलायम

Soft, Tender

थपकियाँ

हल्की चोट, धीरे से मारना

Gentle pats, Taps

हास्य-लहरी

हँसी की तरंग

Wave of laughter

शापित

श्राप दिया गया

Cursed

अरुण

लालिमा युक्त

Reddish, Crimson

करुण

दयनीय, दुखभरा

Compassionate, Pathetic

श्रम

मेहनत, परिश्रम

Labor, Hard work

अनिच्छा

इच्छा न होना

Reluctance, Unwillingness

संध्या

शाम, सायंकाल

Evening, Dusk

स्थायित्व

स्थिरता, टिकाऊपन

Stability, Permanence

स्रोत

प्रवाह, धारा

Source, Stream

तपी हुई

गरम हुई, झुलसी हुई

Heated, Scorched

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

शाप = वह शब्द या वाक्य जो किसी अनिष्ट की कामना से कहा जाए

चिर निद्रित = सदा सोया हुआ

देशांतर = अन्य देश, अन्य स्थान

सेज = शय्या, बिस्तर

बेहोशी = अचेतन अवस्था

फुरसत = खाली समय, अवकाश

मुलायम = कोमल

सिरहाना = बिस्तर पर सिर रखने का स्थान

तस्वीर = चित्र, छवि

सैकड़ों = सौ-सौ

पदक्षेप = जमीन पर पाँव रखने का कार्य

आखिर = अंत में

तबीयत से = स्थिर और चिंतामुक्त होकर

संताप = मन का दुख

कोसना = गाली देना, भला-बुरा कहना

कृतज्ञता = किसी के उपकार को मानने का भाव

हास्य-लहरी = हँसी की तरंगें

साध = इच्छा, कामना

घाम = सूर्य का ताप, धूप

हौले-हौले = धीरे-धीरे

अरुण = लाल

धुआँधार = धुएँ से भरा, काला

 

बोध एवं विचार

  1. एक शब्द में उत्तर दो :

(क) गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर किस आख्या से विभूषित हैं?

उत्तर – विश्व कवि

(ख) रवींद्रनाथ ठाकुर जी के पिता का नाम क्या था?

उत्तर – देवेंद्रनाथ ठाकुर

(ग) कौन-सा काव्य-ग्रंथ रवींद्रनाथ ठाकुर जी की कीर्ति का आधार स्तंभ है?

उत्तर – गीतांजलि

(घ) सड़क किसकी आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही है?

उत्तर – शाप

(ङ) सड़क किसकी तरह सब कुछ महसूस कर सकती है?

उत्तर – अंधे

  1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :

(क) कवि – गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर – कवि-गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म कोलकाता के जोरासाँको में हुआ था।

(ख) गुरुदेव ने कब मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्माके रूप में संबोधित किया था?

उत्तर – गुरुदेव ने शांतिनिकेतन में मोहनदास करमचंद गाँधी को ‘महात्मा’ के रूप में संबोधित किया था।

(ग) सड़क के पास किस कार्य के लिए फुरसत नहीं है?

उत्तर – सड़क के पास अपने सिरहाने के लिए एक छोटा-सा नीले रंग का वनफूल भी खिलाने  के लिए फुरसत नहीं है।

(घ) सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना किससे की है?

उत्तर – सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना चिरनिद्रित सुदीर्घ अजगर से की है।

(ङ) सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर क्या नहीं डाल सकती?

उत्तर – सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर एक भी मुलायम हरी घास या दूब नहीं डाल सकती।

 

  1. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):

(क) रवींद्रनाथ ठाकुर जी की प्रतिभा का परिचय किन क्षेत्रों में मिलता है?

उत्तर – रवींद्रनाथ ठाकुर जी की प्रतिभा काव्य, संगीत, चित्रकला, निबंध, उपन्यास, नाटक और समाज सुधार में दिखती है। वे साहित्य, दर्शन और शिक्षा के क्षेत्र में भी महान योगदानकर्ता थे।

(ख) शांतिनिकेतनके महत्त्व पर प्रकाश डालो।

उत्तर – ‘शांतिनिकेतन’ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित एक शैक्षिक-सांस्कृतिक केंद्र है, जो बाद में विश्व भारती विश्वविद्यालय बना। यहाँ भारतीय संस्कृति, कला और शिक्षा का अद्भुत समन्वय और शिक्षण कार्य होता है।

(ग) सड़क शाप मुक्ति की कामना क्यों कर रही है?

उत्तर – सड़क शाप मुक्ति की कामना इसलिए कर रही है क्योंकि वह वर्षों से अचल और निष्क्रिय है। वह मुक्त होकर गति पाना चाहती है और एक नई ऊर्जा के साथ प्रवाहित होना चाहती है। अपने आस-पास कोमल फूल उगाना चाहती है।

(घ) सुख की घर-गृहस्थी वाले व्यक्ति के पैरों की आहट सुनकर सड़क क्या समझ जाती है?

उत्तर – सुख की घर-गृहस्थी वाला व्यक्ति जब सड़क पर चलता है, तो सड़क उसकी खुशी को महसूस कर लेती है। उसे प्रतीत होता है कि जहाँ उसके पैर पड़ते हैं, वहाँ आशा अंकुरित होती है। वह अपने परिजनों से मिलने के लिए लालायित है।

(ङ) गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुनने पर सड़क को क्या बोध होता है?

उत्तर – गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुनकर सड़क को यह बोध होता है कि उसके जीवन में न कोई आशा है, न कोई दिशा। उसके पदचिह्न जीवन की निरर्थकता दर्शाते हैं। उसे कहीं भी जाने की कोई हड़बड़ी नहीं है।

(च) सड़क अपने ऊपर पड़े एक चरण चिह्न को क्यों ज्यादा देर तक नहीं देख सकती?

उत्तर – सड़क अपने ऊपर पड़े चरण चिह्न को ज्यादा देर तक नहीं देख सकती क्योंकि नए पाँव आकर पुराने चिह्नों को मिटा देते हैं, जिससे कोई भी निशान स्थायी रूप से नहीं टिक पाता।

(छ) बच्चों के कोमल पाँवों के स्पर्श से सड़क में कौन-से मनोभाव बनते हैं?

उत्तर – बच्चों के कोमल पाँवों के स्पर्श से सड़क को आनंद की अनुभूति होती है। वह चाहती है कि उनके पैरों को कोई तकलीफ न हो और स्वयं को भी कोमल बना सके।

(ज) किसलिए सड़क को न हँसी है, न रोना?

उत्तर – सड़क को न हँसी है, न रोना, क्योंकि वह अपने ऊपर कुछ भी स्थायी रूप से नहीं रख पाती। वह निरंतर बदलती रहती है और उसके ऊपर से हर सुख-दुख निरंतर गुजरता जाता है।

(झ) राहगीरों के पाँवों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में सड़क ने क्या कहा है?

उत्तर – सड़क ने राहगीरों के पाँवों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में कहा है कि वह कितनों की बातें सुनती है, परंतु वे जल्दी ही चले जाते हैं, जिससे वह उनकी कहानियाँ पूरी नहीं जान पाती।

  1. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :

(क) जड़ निद्रा में पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श से उनके बारे में क्या-क्या समझ जाती है?

उत्तर – जड़ निद्रा में पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श से समझ जाती है कि कौन घर जा रहा है, कौन परदेश, कौन काम से और कौन उत्सव या श्मशान की ओर। सुखी व्यक्ति के कदमों में उत्साह होता है, जबकि गृहहीन व्यक्ति के पदचिह्न निराशा और अस्थिरता प्रकट करते हैं।

(ख) सड़क संसार की कोई भी कहानी क्यों पूरी नहीं सुन पाती?

उत्तर – सड़क संसार की कोई भी कहानी पूरी नहीं सुन पाती क्योंकि राहगीर अपनी कहानियाँ अधूरी छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। वह उनके शब्द, गीत और बातें सुनती है, लेकिन जब वह ध्यान देती है, तब तक वे आगे बढ़ चुके होते हैं, जिससे उनकी कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं।

(ग) “मैं किसी का भी लक्ष्य नहीं हूँ। सबका उपाय मात्र हूँ।”सड़क ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर – सड़क ने यह कहा क्योंकि उसका खुद का कोई उद्देश्य नहीं है, वह केवल लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने का माध्यम मात्र है। कोई भी सड़क को अपना घर या अंतिम लक्ष्य नहीं मानता, वह केवल लोगों को आगे बढ़ाने का कार्य करती है।

(घ) सड़क कब और कैसे घर का आनंद कभी-कभी महसूस करती है?

उत्तर – सड़क कभी-कभी घर का आनंद तब महसूस करती है जब छोटे-छोटे बच्चे वहाँ खेलते हैं। उनके माता-पिता का स्नेह, आशीर्वाद और घर का सुख-दुख उनके साथ आता है, जिससे सड़क को भी परिवार जैसी अनुभूति होती है।

(ङ) सड़क अपने ऊपर से नियमित रूप से चलने वालों की प्रतीक्षा क्यों करती है?

उत्तर – सड़क अपने ऊपर से नियमित रूप से चलने वालों की प्रतीक्षा इसलिए करती है क्योंकि वह उन्हें पहचानती है। वह उनके कदमों की आहट से उनके जीवन के सुख-दुःख को समझती है और उनके आने-जाने को लेकर मन में उत्सुकता रखती है।

  1. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :

(क) सड़क का कौन-सा मनोभाव तुम्हें सर्वाधिक हृदयस्पर्शी लगा और क्यों?

उत्तर – मुझे सड़क का यह मनोभाव अत्यंत हृदयस्पर्शी लगा कि वह हमेशा राहगीरों की प्रतीक्षा करती है, लेकिन कोई उस पर ठहरता नहीं है। वह सबको उनके गंतव्य तक पहुँचाने में मदद करती है, पर कोई उसे कृतज्ञता से नहीं देखता। विशेष रूप से, जब छोटे बच्चे सड़क पर खेलते हैं और अपने घर का आनंद सड़क पर ले आते हैं, तब सड़क को भी सुख का अनुभव होता है, लेकिन फिर भी वह स्वयं उस आनंद का हिस्सा नहीं बन पाती। उसकी यह भावना हमें त्याग, निःस्वार्थ सेवा और उपेक्षा का मार्मिक संदेश देती है। वह केवल माध्यम बनी रहती है, जिसका कोई स्थायी साथी नहीं होता।

(ख) सड़क ने अपने बारे में जो कुछ कहा है, उसे संक्षेप में प्रस्तुत करो.

उत्तर – सड़क अपने जीवन को शापित मानती है, क्योंकि वह हमेशा स्थिर है और सबकी सेवा करती है, परंतु कोई भी उसका अपना नहीं है। वह अंधे की तरह सब महसूस कर सकती है, लेकिन बोल नहीं सकती। राहगीरों के कदमों से वह उनके सुख-दुख को समझती है, पर किसी की कहानी पूरी नहीं सुन पाती। सुखी लोग उस पर चलते हुए आशा के बीज बोते हैं, जबकि गृहहीन लोग उसके लिए केवल निराशा छोड़ जाते हैं। वह किसी का लक्ष्य नहीं, केवल एक माध्यम है। उसकी धूल में असंख्य कहानियाँ समा चुकी हैं, लेकिन फिर भी वह अकेली है। उसके ऊपर से चलने वाले चरण-चिह्न स्थायी नहीं होते, सबकुछ धूल में मिल जाता है।

(ग) सड़क की बातों के जरिए मानव जीवन की जो बातें उजागर हुई हैं, उन पर संक्षिप्त प्रकाश डालो।

उत्तर – सड़क की बातों से हमें जीवन का एक महत्त्वपूर्ण दर्शन समझ में आता है। यह बताती है कि जीवन भी यात्रा की तरह होता है, जहाँ लोग आते-जाते रहते हैं, लेकिन कुछ भी स्थायी नहीं रहता। सुख और दुख दोनों ही अस्थायी हैं, ठीक वैसे ही जैसे सड़क पर कदमों के निशान। यह भी स्पष्ट होता है कि समाज में कुछ लोग निःस्वार्थ सेवा करते हैं, लेकिन उनकी अहमियत तब तक नहीं समझी जाती, जब तक वे स्वयं कुछ माँगते नहीं। सड़क का जीवन हमें बताता है कि सेवा और त्याग के बावजूद कभी-कभी कृतज्ञता नहीं मिलती, लेकिन फिर भी हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। यह हमें धैर्य, सहनशीलता और निरंतरता का संदेश देती है।

  1. सप्रसंग व्याख्या करो :-

(क) “अपनी इस गहरी जड़ निद्रा में लाखों चरणों के स्पर्श से उनके हृदयों को पढ़ लेती हूँ।

उत्तर – प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निबंध ‘सड़क की बात’ से ली गई है। इसमें सड़क अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए मानव जीवन की वास्तविकता को उजागर कर रहे हैं।

व्याख्या – सड़क स्वयं को निश्चल और शापग्रस्त मानती है, लेकिन वह राहगीरों के कदमों के स्पर्श से उनके हृदयों को पढ़ लेती है। वह समझ जाती है कि कौन व्यक्ति सुखी है, कौन दुखी है, कौन घर की ओर लौट रहा है और कौन बेघर है। सुखी व्यक्ति के कदमों में आशा होती है, जबकि निराश व्यक्ति के पगचिह्न सूनी उदासी से भरे होते हैं। इस कथन के माध्यम से लेखिका यह दर्शाना चाहती हैं कि संवेदनशील व्यक्ति बिना शब्दों के भी दूसरों की भावनाओं को समझ सकता है, ठीक वैसे ही जैसे सड़क बिना किसी संचार के मनुष्यों के मनोभावों को पहचान लेती है।

 

(ख) “मुझे दिन-रात यही संताप सताता रहता है कि मुझ पर कोई तबीयत से कदम नहीं रखना चाहता।

उत्तर – प्रसंग – यह वाक्य गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निबंध ‘सड़क की बात’ से लिया गया है। इसमें सड़क अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही है कि वह केवल एक माध्यम बनी हुई है, जिस पर कोई भी ठहरना नहीं चाहता।

व्याख्या – सड़क का दुख यह है कि वह हमेशा लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने के लिए बनी है, लेकिन कोई भी उसे आत्मीयता से नहीं देखता। लोग उस पर केवल चलते हैं, लेकिन उसे महसूस नहीं करते। कोई उस पर आराम से खड़ा होना या विश्राम करना पसंद नहीं करता। यह कथन जीवन के उस कटु सत्य को प्रकट करता है कि कुछ लोग हमेशा सेवा में लगे रहते हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति की महत्ता को कोई नहीं समझता। समाज में ऐसे लोग भी होते हैं जो दूसरों के लिए कार्य करते हैं, लेकिन उनके प्रति कोई स्नेह या सम्मान व्यक्त नहीं किया जाता।

(ग) “मैं अपने ऊपर कुछ भी पड़ा रहने नहीं देती, न हँसी, न रोना, सिर्फ मैं ही अकेली पड़ी हुई हूँ और पड़ी रहूँगी।

उत्तर – प्रसंग – यह पंक्ति गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निबंध ‘सड़क की बात’ से ली गई है। इसमें सड़क अपनी भावनाओं को प्रकट कर रही है कि वह किसी भी प्रकार की भावना को स्थायी रूप से अपने ऊपर रहने नहीं देती।

व्याख्या – सड़क पर हर प्रकार के लोग चलते हैं—कुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं, कुछ प्रसन्न होते हैं, तो कुछ दुखी होते हैं। लेकिन सड़क पर इन सबकी कोई छाप नहीं रहती। उनके पदचिह्न जल्द ही मिट जाते हैं, उनकी हँसी और आँसू सब धूल में मिल जाते हैं। सड़क यहाँ जीवन के उस सत्य को प्रकट करती है कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं होता। सुख-दुख दोनों ही क्षणभंगुर होते हैं, इसलिए किसी भी भावना से अधिक प्रभावित हुए बिना जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। यह कथन हमें जीवन के अस्थायी स्वभाव और निरंतरता का संदेश देता है।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

  1. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह करके समास का नाम लिखो :

दिन-रात – दिन और रात (द्वंद्व समास)

जड़निद्रा – जड़ के समान निद्रा (कर्मधारय समास)

पग-ध्वनि – पग की ध्वनि (तत्पुरुष समास)

चौराहा – चार राहों का समाहार (द्विगु समास)

प्रतिदिन – प्रत्येक दिन (अव्ययीभाव समास)

आजीवन – जीवन भर (अव्ययीभाव समास)

राहखर्च – राह के लिए खर्च (तत्पुरुष समास)

पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट (तत्पुरुष समास)

नीलकंठ – नीले कंठ वाला है जो वह ‘शिवजी’ (बहुव्रीहि समास)

महात्मा – महान है जो आत्मा वाला (कर्मधारय समास)

रातोंरात – रात ही रात में (अव्ययीभाव समास)

  1. निम्नांकित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाओ :

परा – पराजय, परामर्श

अप – अपमान, अपराध

अधि – अधिकार, अधिनायक

उप – उपकार, उपचार

अभि – अभिषेक, अभिनंदन

अति – अत्यधिक, अतिवृष्टि

सु – सुकुमार, सुसंस्कार

अव – अवनति, अवलोकन

  1. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गों को अलग करो :

अनुभव – अनु + भव

बेहोश – बे + होश

परदेश – पर + देश

खुशबू – खुश + बू

दुर्दशा – दुर् + दशा

दुस्साहस – दुस् + साहस

निर्दय – निर् + दय

  1. निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखो

सड़क  – मार्ग, पथ

जंगल  – वन, अरण्य

आनंद  – सुख, हर्ष

घर  – गृह, भवन

संसार  – जगत, विश्व

माता  – जननी, अंबा

आँख  – नेत्र, चक्षु

नदी  – सरिता, तटिनी

  1. विपरीतार्थक शब्द लिखो :

मृत्यु  – जीवन

अमीर  – गरीब

शाप  – वरदान

छाया  – प्रकाश

जड़  – चेतन

आशा  – निराशा

हँसी  – रोना

आरंभ  – अंत

कृतज्ञ  – कृतघ्न

पास  – दूर

निर्मल  – मलिन

जवाब  – प्रश्न

सूक्ष्म  – स्थूल

धनी  – निर्धन

आकर्षण  – विकर्षण

 

  1. संधि-विच्छेद करो :

देहावसान  – देह + अवसान

उज्ज्वल  – उत् + ज्वल

रवींद्र  – रवि + इंद्र

सूर्योदय  – सूर्य + उदय

सदैव  – सदा + एव

अत्यधिक  – अति + अधिक

जगन्नाथ  – जगत् + नाथ

उच्चारण  – उत् + चारण

संसार  – सम् + सार

मनोरथ  – मन: + रथ

आशीर्वाद  – आशी: + वाद

दुस्साहस  – दुस् + साहस

नीरस  – नि: + रस

योग्यता- विस्तार

(1) रवींद्रनाथ ठाकुर जी द्वारा रचित किसी अन्य निबंध अथवा कहानी का संग्रह करके पढ़ो और उसका सार अपने सहपाठियों को बताओ।

उत्तर – रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाएँ गहन भावनात्मकता, सामाजिक चेतना और मानवता के संदेश से भरपूर होती हैं। यदि आप उनकी किसी अन्य निबंध या कहानी को पढ़ना चाहते हैं, तो आप ‘गल्पगुच्छ’ (कहानियों का संग्रह) या ‘रवींद्र-रचनावली’ में से कोई निबंध चुन सकते हैं।

उदाहरण के लिए, उनकी प्रसिद्ध कहानी “काबुलीवाला” को पढ़ा जा सकता है। इसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है:

काबुलीवाला – सारांश

यह कहानी एक अफगानी पठान रहमत और एक छोटी बंगाली लड़की मिनी के भावनात्मक संबंध को दर्शाती है। रहमत काबुल से आकर भारत में मेवे और सूखे फलों का व्यापार करता है। उसकी मुलाकात मिनी से होती है, जो उसकी बेटी के समान बन जाती है। लेकिन एक अप्रत्याशित घटना के कारण उसे जेल हो जाती है। जब सालों बाद वह वापस आता है, तो मिनी बड़ी हो चुकी होती है और उसे पहचान नहीं पाती। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं, प्रेम, और बिछड़ने की पीड़ा को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत करती है।

आप इस कहानी को अपने सहपाठियों को सुना सकते हैं और उनकी राय जान सकते हैं। यदि आप किसी निबंध का सार चाहते हैं, तो मैं आपको रवींद्रनाथ ठाकुर के निबंधों में से एक चुनकर उसका सार दे सकता हूँ।

(2) ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि‘- इस कहावत पर ध्यान रखते हुए कवि-सामर्थ्य पर कक्षा में चर्चा करो।

उत्तर – यह कहावत दर्शाती है कि कवि की कल्पना और विचार शक्ति असीम होती है। जहाँ सूर्य की किरणें भी नहीं पहुँच पातीं, वहाँ कवि अपनी कल्पना और लेखनी के माध्यम से पहुँच जाता है। कवि समाज की वास्तविकता को उजागर करता है, भावनाओं को व्यक्त करता है और भविष्य की संभावनाओं को भी देख सकता है। उसकी रचनाएँ सिर्फ मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने का भी सामर्थ्य रखती हैं।

(3) ‘सड़क की बातकी तरह ही पत्थर की बातशीर्षक के अंतर्गत पत्थर की आत्मकथा लिखो।

उत्तर – पत्थर की आत्मकथा

मैं एक साधारण पत्थर हूँ, जन्म से लेकर आज तक न जाने कितने हाथों से गुजरा हूँ। कभी किसी पर्वत का हिस्सा था, तो कभी नदी की धारा ने मुझे बहाकर दूर ला फेंका। समय के साथ कारीगरों ने मुझे तराशा, मंदिरों और मूर्तियों का हिस्सा बनाया। कभी मैं किसी राजमहल की दीवारों में जड़ा था, तो कभी फुटपाथ पर बेसहारा पड़ा रहा। पर मैं चुपचाप सब कुछ सहता रहा, क्योंकि मेरी नियति यही है—सहनशीलता और स्थिरता!

(4) ‘नोबेल पुरस्कारऔर शांतिनिकेतनके बारे में जानकारी एकत्र करो।

उत्तर – नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कार विश्व का सर्वोच्च सम्मान है, जिसे स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में 1901 में शुरू किया गया था। यह पुरस्कार साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, शांति और अर्थशास्त्र के क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। रवींद्रनाथ ठाकुर को 1913 में उनकी काव्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, जिससे वे इसे प्राप्त करने वाले पहले एशियाई बने।

शांतिनिकेतन

शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल में स्थित एक शिक्षण संस्थान है, जिसकी स्थापना रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में की थी। यह केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि एक शिक्षण दर्शन था, जिसमें प्रकृति के बीच खुले वातावरण में अध्ययन कराया जाता था। बाद में यह विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। यहाँ कला, संगीत, साहित्य और संस्कृति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

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