SEBA, Assam Class X Hindi Book, Alok Bhaag-2, Ch. 12 – Mrittika, Naresh Mehta,  The Best Solutions, मृत्तिका, नरेश मेहता

नरेश मेहता (1922-2000)

नरेश मेहता का जन्म सन् 1922 में मालवा के (मध्य प्रदेश) के शाजापुर कस्बे में हुआ था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम. ए. करने के पश्चात उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद में कार्यक्रम अधिकारी के रूप में कार्य प्रारंभ किया, तत्पश्चात विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने अनेक साहित्यिक पत्रों का संपादन भी किया।

नरेश मेहता की ख्याति ‘दूसरा सप्तक’ के प्रमुख कवि के रूप में प्रारंभ हुई। आगे चलकर वे विविध विधाओं के यशस्वी रचनाकार के रूप में जाने गए। नरेश मेहता को उनके प्रसिद्ध उपन्यास वह पथ बंधु था के कारण विशेष प्रसिद्धि मिली। कवि के रूप में आरंभ में वे साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे, किन्तु बाद में उससे मोहभंग होने पर उन्होंने वैष्णव भावधारा को अपनाया। सनातन मानव मूल्यों में नरेश मेहता की अटूट आस्था थी। सन् 2000 में उनका निधन हो गया।

बनपाखी सुनो, बोलने तो चीड़ को तथा मेरा समर्पित एकांत नरेश मेहता के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं। संशय की एक रात उनका प्रसिद्ध खंडकाव्य है। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

नए कवि के रूप में नरेश मेहता की रचनाओं में दो बातें उभरकर सामने आती हैं- मानव और अस्तित्व की खोज तथा आधुनिक संकट से उत्पन्न आशंका और भय की अभिव्यक्ति। मानव के भविष्य के प्रति उनका विश्वास उनकी हर रचना में विद्यमान है। उनकी रचनाओं में सर्वत्र आधुनिकता का स्वर बोलता है तथा शिल्प और अभिव्यंजना के स्तर पर उनमें ताज़गी और नयापन है।

 

मृत्तिका – पाठ का परिचय

मृत्तिका कविता सीधे सरल बिंबों के सहारे पुरुषार्थी मनुष्य और मिट्टी के संबंधों पर प्रकाश डालती है। मनुष्य के पुरुषार्थ के बदलते रूपों के अनुरूप मिट्टी कभी माँ, कभी प्रिया, कभी प्रजा और कभी चिन्मयी शक्ति के रूप में ढल जाती है। पुरुषार्थ मिट्टी को दैवी शक्ति में बदल देता है।

मृत्तिका

मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ –

जब तुम

मुझे पैरों से रौंदते हो

तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो तब मैं

धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।

जब तुम

मुझे हाथों से स्पर्श करते हो

तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो

तब मैं –

कुंभ और कलश बनकर

जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।

जब तुम मेले में मेरे खिलौने रूप पर

आकर्षित होकर मचलने लगते हो

तब मैं –

तुम्हारे शिशु हाथों में पहुँच प्रजारूपा हो जाती हूँ।

पर जब भी तुम

अपने पुरुषार्थ पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो

तब मैं –

अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।

(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्य हो जाती हूँ)

विश्वास करो

यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि

तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो

और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।

मृत्तिका – ब्याख्या सहित

मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ –

जब तुम

मुझे पैरों से रौंदते हो

तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो तब मैं

धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।

जब तुम

मुझे हाथों से स्पर्श करते हो

तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो

तब मैं –

कुंभ और कलश बनकर

जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।

जब तुम मेले में मेरे खिलौने रूप पर

आकर्षित होकर मचलने लगते हो

तब मैं –

तुम्हारे शिशु हाथों में पहुँच प्रजारूपा हो जाती हूँ।

पर जब भी तुम

अपने पुरुषार्थ पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो

तब मैं –

अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।

(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्य हो जाती हूँ)

विश्वास करो

यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि

तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो

और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।

शब्दार्थ

शब्द

हिंदी अर्थ

अंग्रेज़ी अर्थ

मृत्तिका

मिट्टी

Earth / Clay

रौंदते

पैरों से दबाना या कुचलना

Trample

फाल

हल का लोहे का नुकीला भाग

Plough blade

विदीर्ण

चीर देना, काटना

Pierced / Torn

मातृरूपा

माता के रूप में

In the form of a mother

चाक

कुम्हार का घुमने वाला उपकरण

Potter’s wheel

कुंभ

मिट्टी का घड़ा

Earthen pot

कलश

पूजा में प्रयुक्त पवित्र पात्र

Sacred vessel / Pitcher

अंतरंग प्रिया

अत्यंत प्रिय पत्नी

Beloved wife

प्रजारूपा

संतान के रूप में

In the form of offspring / child

पुरुषार्थ

परिश्रम, प्रयत्न

Effort / Endeavor

पराजित स्वत्व

हारकर स्वयं को पुकारना

Defeated self

ग्राम्य देवत्व

गाँव का ईश्वरीय रूप

Rural divinity

चिन्मयी शक्ति

चेतन ऊर्जा, आत्मिक शक्ति

Conscious energy / Spiritual power

आराध्य

पूजा योग्य, पूजनीय

Worship-worthy / Deity

स्वरूप पाना

रूप धारण करना

To attain form

 

व्याख्या

इस कविता में कवि ने मिट्टी अर्थात् मृत्तिका का मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके उसे एक जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है, जो मनुष्य के स्पर्श और कर्म से विभिन्न रूपों में बदलती रहती है। कवि नरेश मेहता मिट्टी के माध्यम से यह दर्शाना चाहते हैं कि मिट्टी चाहे कितनी भी साधारण हो, मनुष्य के पुरुषार्थ (परिश्रम) से वह असाधारण बन जाती है।

 

जब किसान मिट्टी को हल से जोतता है और रौंदता है, तब वही मिट्टी मातृरूपा बनकर अन्न देती है।

जब कुम्हार उसे चाक पर घुमाता है, तब वही कलश और घड़ा बनकर प्रिया रूप में जल लाती है।

जब मेले में बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हैं, तब वही प्रजारूपा बनकर हर्ष देती है।

लेकिन जब थका-हारा, पराजित मनुष्य मिट्टी से सहायता माँगता है, तो वही चिन्मयी शक्ति बनकर देवता के रूप में आराध्य हो जाती है।

अंत में कवि कहते हैं कि यह सबसे बड़ा देवत्व है कि मिट्टी एक नम्र और सशक्त अस्तित्व है जो मनुष्य के पुरुषार्थ से अपना रूप बदलती है।

अतिरिक्त शब्दार्थ

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

मात्र = केवल

कुंभ = घड़ा, कलसा कलश

मृत्तिका = मिट्टी

विदीर्ण करना = चीरना, फाड़ना

अंतरंग = घनिष्ट, निकटतम

जल लाती = घड़े में जल भरकर लाने वाली प्रिया, जीवन में सरसता का संचार करने वाली

चिन्मयी शक्ति = ईश्वर की सत्ता, चेतनमयी शक्ति

स्वत्व = अधिकार

ग्राम्यदेव = लोक देवता, ग्रामवासियों के देवता

आराध्य = आराधना के योग्य

पुरुषार्थ = उद्योग, उद्यम

मातृरूपा = माँ-जैसी

प्रजारूपा = संतान जैसी

पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से – उद्योग द्वारा अहंभाव का त्याग करते हुए

स्वनिर्मित प्रश्न – उत्तर

(क) एक शब्द में उत्तर दीजिए :-

प्रश्न – यह कविता किसके दृष्टिकोण से लिखी गई है?

उत्तर – मृत्तिका (मिट्टी)

प्रश्न – मिट्टी किस यंत्र पर चढ़कर रूप लेती है?

उत्तर – चाक

प्रश्न – मिट्टी जब पूजा का रूप लेती है, तो उसे क्या कहा गया है?

उत्तर – चिन्मयी शक्ति / प्रतिमा

प्रश्न – मिट्टी को जब बोया जाता है, तो वह क्या बन जाती है?

उत्तर – मातृरूपा / धन-धान्य

(ख) सही विकल्प चुनिए :-

प्रश्न – जब मिट्टी चाक पर चढ़ती है, तब वह क्या बनती है?

अ) प्रतिमा

आ) खिलौना

इ) कुंभ और कलश

ई) हल

उत्तर – ) कुंभ और कलश

 

प्रश्न – “पुरुषार्थ पराजित स्वत्व” से तात्पर्य है –

अ) मेहनत करने वाला व्यक्ति

आ) हारा हुआ और थका मनुष्य

इ) खिलौनों से खेलने वाला

ई) मिट्टी बनाने वाला

उत्तर – आ) हारा हुआ और थका मनुष्य

 

प्रश्न – “प्रजारूपा” किसे कहा गया है?

अ) मृत्तिका को

आ) खिलौने रूपी मिट्टी को

इ) देवी प्रतिमा को

ई) हल को

उत्तर – आ) खिलौने रूपी मिट्टी को

(ग) संक्षिप्त उत्तर लिखिए-

  1. कविता में ‘मृत्तिका’ के कितने रूपों का वर्णन किया गया है?

उत्तर – इस कविता में मृत्तिका के चार रूपों का वर्णन है — मातृरूपा, प्रियारूपा, प्रजारूपा और चिन्मयी शक्ति।

  1. मृत्तिका ‘चिन्मयी शक्ति’ कब बनती है?

उत्तर – जब मनुष्य अपने पुरुषार्थ में असफल होकर उसे पुकारता है, तब मृत्तिका ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति बन जाती है।

  1. ‘विश्वास करो यह सबसे बड़ा देवत्व है’ – इस पंक्ति का आशय क्या है?

उत्तर – इसका आशय है कि मनुष्य जब पुरुषार्थ करता है, तब वह मिट्टी को रूप देता है और मिट्टी ईश्वरतुल्य बन जाती है — यही सबसे बड़ा देवत्व है।

(घ) दीर्घ उत्तर

  1. कविता ‘मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ’ में कवि ने मिट्टी के किन-किन भावात्मक और सामाजिक रूपों का वर्णन किया है?

उत्तर – इस कविता में कवि ने मृत्तिका के विविध रूपों को अत्यंत भावनात्मक और सामाजिक रूप में चित्रित किया है। वह जब खेत में बोई जाती है तो मातृरूपा बन जाती है और अन्न उपजाकर जीवन देती है। चाक पर चढ़ने पर वह प्रियारूपा बनकर कलश और कुंभ का रूप लेती है। जब वह खिलौनों के रूप में बच्चों के हाथों में जाती है तो प्रजारूपा कहलाती है। और जब मनुष्य उसे आस्था से पूजता है, तब वह चिन्मयी शक्ति बनकर आराध्य प्रतिमा में बदल जाती है।

 

  1. इस कविता में मनुष्य और मृत्तिका के संबंध को किस प्रकार दर्शाया गया है?

उत्तर – कविता में मनुष्य और मृत्तिका के संबंध को अत्यंत गहरा, आत्मीय और पूरक बताया गया है। मनुष्य जब मेहनत करता है, तभी मृत्तिका को रूप और पहचान मिलती है। वह उसके पुरुषार्थ की प्रतीक बन जाती है। मृत्तिका न केवल जीवन देती है, बल्कि संस्कृति, सौंदर्य, खेल, प्रेम और श्रद्धा का भी रूप लेती है। यह संबंध सृजन और समर्पण का अद्भुत प्रतीक है।

भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान

  1. बातचीत करते समय हम शब्दों या वाक्यों का एक ही गति से उच्चारण नहीं करते। कभी हम अपनी बीत पर बल देने के लिए और कभी हम अपने आशय को स्पष्ट करने के लिए बीच-बीच में रुकते हैं। यह रुकना ही विराम है। विराम का अर्थ है – रुकना। लिखते समय विरामचिह्नों का प्रयोग आवश्यक है। इनका प्रयोग न होने से कभी-कभी वाक्य का अर्थ एकदम बदल जाता है। हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले विराम चिह्न इस प्रकार हैं

पूर्णविराम (Full stop) ।

अल्प विराम (Comma) ,

अर्द्ध विराम (Semi-Colon) ;

प्रश्नसूचक (Question mark) ?

विस्मयादि सूचक (Mark of exclamation) !

कोष्ठक (Brackets) ()

उद्धरण चिह्न (Quotation mark) “”

निर्देशन चिह्न (Dash) —

योजक (Hyphen) –

विवरण- चिह्न (Sign of following) :-

उपविराम (Colon) :

लाघव चिह्न (Abbreviation) ॰

 

इन चिह्नों का प्रयोग देखें –

पूर्ण विराम (।) – वाक्य के अन्त में प्रायः पूर्ण विराम लगाया जाता है, जैसे- मैं खाना खा चुका हूँ।

अल्प विराम (,) – वाक्य में जहाँ कहीं भी शब्द या वाक्यांश का उच्चारण अलग-अलग करने की आवश्यकता हो, वहाँ अल्प विराम लगाते हैं, जैसे-राम, लक्ष्मण और सीता वन को गए।

अर्द्ध विराम (;) – वाक्य में जहाँ पूर्ण विराम से कम किंतु अल्प विराम से अधिक का प्रयोग होता है, जैसे-अवसर का लाभ उठाओ; सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी।

प्रश्नसूचक (?) – जिस वाक्य में कोई प्रश्न पूछा गया हो, उसके अंत में यह चिह्न लगाया जाता है, जैसे-आप कहाँ से आ रहे हैं?

विस्मयादि सूचक (!) – इस चिह्न का प्रयोग विस्मयादिबोधक पदों या वाक्यों में तथा संबोधन के साथ किया जाता है, जैसे- अहा ! कितना सुंदर फूल है।

कोष्ठक () – सामान्य कोष्ठक में वह शब्द या वाक्य रखा जाता है तो मुख्य कथन से सम्बद्ध होते हुए भी उसका अंग नहीं होता। उदाहण के लिए भवन निर्माण की सामग्री (ईंट, लोहा, सीमेंट, रोड़ी) बहुत महँगी हो गई है।

उद्धरण चिह्न (“”) – किसी व्यक्ति के कथन अथवा विचार या किसी ग्रंथ की पंक्ति को यथावत् उद्धृत करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे- “रघुपति रीति सदा चली आई। प्राण जाएँ पर वचन न जाई” यह कथन तुलसी दास जी का है।

योजक (-) – यह एक छोटी-सी रेखा है, जिसका उपयोग दो शब्दों के जोड़ने में होता है, जैसे- मनुष्य को हँसते-हँसते जीना चाहिए।

निर्देशक चिह्न (-) – यह योजक से बड़ी रेखा होती है। इस चिह्न का प्रयोग आगे आने वाले शब्द, वाक्यांश अथवा वाक्य के लिए होती है, जैसे- आदर्श विद्यार्थी में निम्नलिखित गुण होने चाहिए-

विवरण चिह्न (:-) इसका प्रयोग भी निर्देशक चिह्न की तरह आगे आने वाले शब्द, वाक्यांश अथवा वाक्य के लिए होता है, जैसे- घटना का पूर्ण विवरण इस प्रकार है :-

उपविराम (:) – इसका प्रयोग भी विवरण चिह्न की तरह होता है, जैसे- संज्ञा के भेदों का विवरण इस प्रकार है :

लाघव चिह्न (०) – शब्दों को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए इस चिह्न का प्रयोग होता है, जैसे-

डॉक्टर = डॉ०

प्रोफेसर = प्रो०

कृपया पृष्ठ उलटिए कृ० पृ० उ०

 

निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त विराम चिह्न लगाओ-

(क) महाभारत एक महान ग्रंथ है

उत्तर – ‘महाभारत’ एक महान ग्रंथ है।

(ख) युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव पाँच भाई थे

उत्तर – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाँच भाई थे।

(ग) भारत में कुल कितने प्रदेश हैं

उत्तर – भारत में कुल कितने प्रदेश हैं?

(घ) रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि थे

उत्तर – रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ‘राष्ट्रकवि’ थे।

(ङ) कर्ण ने कहा मित्रता सुखद छाया है

उत्तर – कर्ण ने कहा, “मित्रता सुखद छाया है।”

योग्यता- विस्तार

  1. मिट्टी और मनुष्य के अटूट संबंध के विषय में एक छोटा-सा लेख लिखो।

उत्तर – मिट्टी और मनुष्य का अटूट संबंध

मिट्टी और मनुष्य का संबंध आदिकाल से अत्यंत गहरा और आत्मीय रहा है। मनुष्य का जन्म भी मिट्टी से होता है और अंततः उसकी देह मिट्टी में ही विलीन हो जाती है। यह धरती हमें जीवन देने वाले अन्न, जल और औषधियाँ प्रदान करती है। मिट्टी ही वह आधार है जिस पर हमारा संपूर्ण जीवन टिका है।

मिट्टी से बने घरों में हम रहते हैं, मिट्टी में बीज बोकर हम अन्न उगाते हैं और मिट्टी के बर्तनों में भोजन करते हैं। यहाँ तक कि पूजा-पाठ में भी मिट्टी से बनी मूर्तियों को देवता मानकर पूजते हैं। मिट्टी को किसान माँ का रूप मानते हैं और उसके कण-कण को प्रणाम करते हैं।

कवियों और लेखकों ने भी मिट्टी को शक्ति, करुणा और मातृत्व का प्रतीक माना है। मिट्टी केवल धरती नहीं है, यह हमारी संस्कृति, परंपरा और आत्मा का हिस्सा है। वास्तव में, मिट्टी और मनुष्य का संबंध केवल भौतिक नहीं, बल्कि आत्मिक और भावनात्मक भी है। यही कारण है कि मिट्टी को हम ‘मातृभूमि’ कहते हैं – जो जन्म देती है, पालती है और अंततः अपनी गोद में समेट लेती है।

 

  1. देवत्व कोई अलौकिक वस्तु नहीं, बल्कि वह मनुष्य का पुरुषार्थ ही है, इस विषय पर अपना विचार प्रकट करो।

उत्तर – देवत्व को प्रायः एक अद्भुत, दिव्य और अलौकिक शक्ति माना जाता है, जिसे केवल ईश्वर या देवताओं से जोड़ा जाता है। परंतु यदि हम गहराई से विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि देवत्व कोई बाहर से प्राप्त होने वाली वस्तु नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के अपने पुरुषार्थ, कर्म और आत्मबल से उत्पन्न होता है।

जब एक किसान कठोर मेहनत से धरती को सींचकर अन्न उपजाता है, जब एक माँ अपने बच्चों को पालने के लिए दिन-रात समर्पित रहती है, जब एक सैनिक देश की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर देता है – तब उनके भीतर जो शक्ति प्रकट होती है, वही सच्चा देवत्व है। यह ईश्वरत्व मनुष्य के श्रम, संघर्ष, त्याग और सेवा में ही बसता है।

देवत्व का सार यही है कि मनुष्य अपने भीतर की श्रेष्ठता को पहचानकर उसे कर्म के रूप में प्रकट करे। यही पुरुषार्थ है – आत्मबल, संकल्प और निरंतर प्रयास की वह शक्ति जो किसी को भी महान बना सकती है। अतः सच्चा देवत्व न तो मंदिरों में बंद है, न ही किसी चमत्कार में, बल्कि यह हमारे भीतर है – हमारे पुरुषार्थ में।

  1. शिवमंगल सिंह सुमनकी मिट्टी की महिमाकविता को खोजकर पढ़ो और प्रस्तुत कविता से उसकी तुलना करो।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

 

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