जैनेंद्र कुमार
प्रेमचंदोत्तर कालीन हिंदी कथाकारों में जैनेंद्र कुमार का स्थान प्रमुख है। आपका जन्म 1905 ई. में अलीगढ़ के कोड़ियागंज के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा जैन गुरुकुल ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम, हस्तीनापुर में हुई। आपने आगे चलकर स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की। लिखने की प्रेरणा आपको जेल में ही मिली। आपकी लेखन कला से महान कथाकार प्रेमचंद काफी प्रभावित हुए। उन्होंने आपको हिंदी का गोर्की कहा। आपकी पहली कहानी खेल विशाल भारत में प्रकाशित हुई। इससे आपको काफी यश मिला। आपके उपन्यास परख पर हिन्दुस्तानी अकादमी ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
जैनेंद्र कुमार मूलत: मनोवैज्ञानिक कथाकार हैं। आप एक विचारक के रूप में भी सामने आते हैं। आपके विचारों पर गांधीवाद की छाप है।
कल्याणी, परख, सुनीता, त्याग पत्र, अनाम स्वामी आदि आपके उपन्यास हैं। एक रात, स्पर्धा, दो चिड़ियाँ, जैनेंद्र की कहानियाँ आदि आपके कहानी-संग्रह तथा समय और हम, परिप्रेक्ष्य, सोच-विचार, जड़ की बात आदि निबंध संग्रह हैं।
चिड़िया की बच्ची – पाठ का परिचय
चिड़िया की बच्ची जैनेंद्र कुमार की एक मनोविश्लेषनात्मक कहानी है। इसमें कहानीकार ने एक धनाढ्य व्यक्ति के विचार तथा एक छोटी चिड़िया की भावनाओं को बड़े मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है। सेठ माधवदास चिड़िया को कैद करके अपने पास रखना चाहता है। इसलिए वह तरह-तरह के प्रलोभन देकर उस चिड़िया को अपनी बातों में उलझाए रखता है, पर कोमलप्राण चिड़िया को सेठ की बातें समझ नहीं आतीं। वह तो केवल अपनी माँ को जानती है। अत: अँधेरा होने से पहले अपनी माँ के पास पहुँच जाना चाहती है। वह कोमलप्राण चिड़िया प्रेम की भूखी है। उसके मातृस्नेह के आगे धन का कोई महत्त्व नहीं है। इसलिए सेठ के नौकर के खुले पंजे में आकर भी वह न आ सकी और उड़ती हुई एक साँस में अपनी माँ के पास पहुँच गयी। यह कहानी बच्चों को सकारात्मक प्रेरणा देती है।
चिड़िया की बच्ची
माधवदास ने अपनी संगमरमर की नई कोठी बनवाई है। उसके सामने बहुत सुहावना बगीचा भी लगवाया है। उनको कला से बहुत प्रेम है। धन की कमी नहीं है और कोई व्यसन छू नहीं गया है। सुंदर अभिरुचि के आदमी हैं। फूल-पौधे, रकाबियों से हौजों में लगे फव्वारों में उछलता हुआ पानी उन्हें बहुत अच्छा लगता है। समय भी उनके पास काफी है। शाम को जब दिन की गरमी ढल जाती है और आसमान कई रंग का हो जाता है तब कोठी के बाहर चबूतरे पर तख्त डलवाकर मसनद के सहारे वह गलीचे पर बैठते हैं और प्रकृति की छटा निहारते हैं। इनमें मानो उनके मन को तृप्ति मिलती है। मित्र हुए तो उनसे विनोद-चर्चा करते हैं, नहीं तो उनसे रखे हुए फर्शी हुक्के की सटक को मुँह में दिए खयाल ही खयाल में संध्या को स्वप्न की भाँति गुजार देते हैं।
आज कुछ-कुछ बादल थे। घटा गहरी नहीं थी। धूप का प्रकाश उनमें से छन-छनकर आ रहा था। माधवदास मसनद के सहारे बैठे थे। उन्हें जिंदगी में क्या स्वाद नहीं मिला है! पर जी भरकर भी कुछ खाली सा रहता है।
उस दिन संध्या समय उनके देखते-देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी। चिड़िया बहुत सुन्दर थी। उसकी गरदन लाल थी और गुलाबी होते-होते किनारों पर जरा-जरा
नीली पड़ गई थी। पंख ऊपर से चमकदार स्याह थे। उसका नन्हा सा सिर तो बहुत प्यारा लगता था और शरीर पर चित्र-विचित्र चित्रकारी थी। चिड़िया को मानो माधवदास की सत्ता का कुछ पता नहीं था और मानो तनिक देर का आराम भी उसे नहीं चाहिए था। कभी पर हिलाती थी, कभी फुदकती थी। वह खूब खुश मालूम होती थी। अपनी नन्ही सी चोंच से प्यारी-प्यारी आवाज निकल रही थी।
माधवदास को वह चिड़िया बड़ी मनमानी लगी। उसकी स्वच्छंदता बड़ी प्यारी जान पड़ती थी। कुछ देर तक वह उस चिड़िया का इस डाल से उस डाल थिरकना देखते रहे। इस समय वह अपना बहुत-कुछ भूल गए। उन्होंने उस चिड़िया से कहा, “आओ, तुम बड़ी अच्छी आईं। यह बगीचा तुम लोगों के बिना सूना लगता है। सुनो चिड़िया, तुम खुशी से यह समझो कि यह बगीचा मैंने तुम्हारे लिए ही बनवाया है। तुम बेखटके यहाँ आया करो।”
चिड़िया पहले तो असावधान रही। फिर जानकर कि बात उससे की जा रही है, वह एकाएक तो घबराई। फिर संकोच को जीतकर बोली, “मुझे मालूम नहीं था कि यह बगीचा आपका है। मैं अभी चली जाती हूँ। पलभर साँस लेने मैं यहाँ टिक गई थी।”
माधवदास ने कहा, “हाँ, बगीचा तो मेरा है। यह संगमरमर की कोठी भी मेरी है। लेकिन, इस सबको तुम अपना भी समझ सकती हो। सब कुछ तुम्हारा है। तुम कैसी भोली हो, कैसी प्यारी हो। जाओ नहीं, बैठो। मेरा मन तुमसे बहुत खुश होता है।”
चिड़िया बहुत-कुछ सकुचा गई। उसे बोध हुआ कि यह उससे गलती तो नहीं हुई कि वह यहाँ बैठ गई है। उसका थिरकना रुक गया। भयभीत – सी वह बोली, “मैं थककर यहाँ बैठ गई थी। मैं अभी चली जाऊँगी। बगीचा आपका है। मुझे माफ करें!”
माधवदास ने कहा, “मेरी भोली चिड़िया, तुम्हें देखकर मेरा चित्त प्रफुल्लित हुआ है। मेरा महल भी सूना है। वहाँ कोई भी चहचहाता नहीं है। तुम्हें देखकर मेरी रागनियों का जी बहलेगा। तुम कैसी प्यारी हो, यहाँ ही तुम क्यों न रहो?”
चिड़िया बोली, “मैं माँ के पास जा रही हूँ, सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने मैं जरा घर से उड़ आई थी, अब साँझ हो गई है और माँ के पास जा रही हूँ। अभी-अभी मैं चली जा रही हूँ। आप सोच न करें।”
माधवदास ने कहा, “प्यारी चिड़िया, पगली मत बनो। देखो, तुम्हारी चारों तरफ कैसी बहार है। देखो, वह पानी खेल रहा है, उधर गुलाब हँस रहा है। भीतर महल में चलो, जाने क्या-क्या न पाओगी! मेरा दिल वीरान है। वहाँ कब हँसी सुनने को मिलती है? मेरे पास बहुत सा सोना-मोती है। सोने का एक बहुत सुन्दर घर मैं तुम्हें बना दूँगा, मोतियों की झालर उसमें लटकेगी। तुम मुझे खुश रखना। और तुम्हें क्या चाहिए! माँ के पास बताओ क्या है? तुम यहाँ ही सुख से रहो, मेरी भोली गुड़िया।”
चिड़िया इन बातों से बहुत डर गई। वह बोली, “मैं भटककर तनिक आराम के लिए इस डाली पर रुक गई थी। अब भूलकर भी ऐसी गलती नहीं होगी। मैं अभी यहाँ से उड़ी जा रही हूँ। तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं। मेरी माँ के घोंसले के बाहर बहुतेरी सुनहरी धूप बिखरी रहती है। मुझे और क्या करना है? दो दाने माँ ला देती है और जब मैं पर खोलने बाहर जाती हूँ तो माँ मेरी बाट देखती रहती है। मुझे तुम और कुछ मत समझो, मैं अपनी माँ की हूँ।”
माधवदास ने कहा, “भोली चिड़िया, तुम कहाँ रहती हो? तुम मुझे नहीं जानती हो?
चिड़िया, “मैं माँ को जानती हूँ, भाई को जानती हूँ, सूरज को और उसकी धूप को जानती हूँ। घास, पानी और फूलों को जानती हूँ। महामान्य, तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानती।”
माधवदास, “तुम भोली हो चिड़िया! तुमने मुझे नहीं जाना, तब तुमने कुछ नहीं जाना। मैं ही तो हूँ सेठ माधवदास। मेरे पास क्या नहीं है! जो माँगो, मैं वही दे सकता हूँ।”
चिड़िया, “पर मेरी तो छोटी-सी जात है। आपके पास सब कुछ है। तब मुझे जाने दीजिए।”
माधवदास, “चिड़िया, तू निरी अनजान है। मुझे खुश करेगी तो तुझे मालामाल कर सकता हूँ।”
चिड़िया, “तुम सेठ हो। मैं नहीं जानती, सेठ क्या होता है। पर सेठ कोई बड़ी बात होती होगी। मैं अनसमझ ठहरी। माँ मुझे बहुत प्यार करती है। वह मेरी राह देखती होगी। मैं मालामाल होकर क्या होऊँगी, मैं नहीं जानती। मालामाल किसे कहते हैं? क्या मुझे वह तुम्हारा मालामल होना चाहिए?”
सेठ, “अरी चिड़िया तुझे बुद्धि नहीं है। तू सोना नहीं जानती, सोना? उसी की जगत को तृष्णा है। वह सोना मेरे पास ढेर का ढेर है। तेरा घर समूचा सोने का होगा। ऐसा पिंजरा बनवाऊँगा कि कहीं दुनिया में न होगा, ऐसा कि तू देखती रह जाए। तू उसके भीतर थिरक- फुदककर मुझे खुश करियो। तेरा भाग्य खुल जाएगा। तेरे पानी पीने की कटोरी भी सोने की होगी।”
चिड़िया, “वह सोना क्या चीज होती है?”
सेठ, “तू क्या जानेगी, तू चिड़िया जो है। सोने का मूल्य सीखने के लिए तुझे बहुत सीखना है। बस, यह जान ले कि सेठ माधवदास तुझसे बात कर रहा है। जिससे मैं बात तक कर लेता हूँ उसकी किस्मत खुल जाती है। तू अभी जग का हाल नहीं जानती। मेरी कोठियों पर कोठियाँ हैं, बगीचों पर बगीचे हैं। दास-दासियों की संख्या नहीं है। पर तुझसे मेरा चित्त प्रसन्न हुआ है। री चिड़िया! तू इस बात को समझती क्यों नहीं?”
चिड़िया, “सेठ, मैं नादान हूँ। मैं कुछ समझती नहीं। पर, मुझे देर हो रही है। माँ मेरी बाट देखती होगी।”
सेठ, “ठहर-ठहर, इस अपने पास के फूल को तूने देखा? यह एक है। ऐसे अनगिनती फूल हैं। ऐसे अनगिनती फूल मेरे बगीचों में हैं। वे भाँति-भाँति के रंग के हैं। तरह-तरह की उनकी खुशबू हैं। चिड़िया, तैंने मेरा चित्त प्रसन्न किया है और वे सब फूल तेरे लिए खिला करेंगे। वहाँ घोंसले में तेरी माँ है, पर माँ क्या है? इस बहार के सामने तेरी माँ क्या है? वहाँ तेरे घोंसले में कुछ भी तो नहीं है। तू अपने को नहीं देखती? कैसी सुन्दर तेरी गरदन। कैसी रंगीन देह! तू अपने मूल्य को क्यों नहीं देखती? मैं तुझे सोने से मढ़कर तेरे मूल्य को चमका दूँगा। तैंने मेरे चित्त को प्रसन्न किया है। तू मत जा, यहीं रह।” चिड़िया, “सेठ, मैं अपने को नहीं जानती। इतना जानती हूँ कि माँ मेरी माँ है और मुझे यहाँ देर हो रही है। सेठ, मुझे रात मत करो, रात में अँधेरा बहुत हो जाता है और मैं राह भूल जाऊँगी।”
सेठ ने कहा, “अच्छा, चिड़िया जाती हो तो जाओ। पर, इस बगीचे को अपना ही समझो। तुम बड़ी सुंदर हो।”
यह कहने के साथ ही सेठ ने एक बटन दबा दिया। उसके दबने से दूर कोठी के अंदर आवाज हुई जिसे सुनकर एक दास झटपट भागकर बाहर आया। यह सब छनभर में हो गया और चिड़िया कुछ भी नहीं समझी।
सेठ कहते रहे, “तुम अभी माँ के पास जाओ। माँ बाट देखती होगी। पर, कल आओगी न? कल आना, परसों आना, रोज आना।” यह कहते-कहते दास को सेठ ने इशारा कर दिया और वह चिड़िया को पकड़ने के जतन में चला।
सेठ कहते रहे, “सच तुम बड़ी सुन्दर लगती हो! तुम्हारी भाई- बहिन हैं? कितने भाई-बहिन हैं? “
चिड़िया, “दो बहिन, एक भाई। पर मुझे देर हो रही है।” “हाँ हाँ जाना। अभी तो उजेला है। दो बहन, एक भाई है? बड़ी अच्छी बात है।”
पर चिड़िया के मन के भीतर जाने क्यों चैन नहीं था। वह चौकन्नी हो-हो चारों ओर देखती थी। उसने कहा, “सेठ मुझे देर हो रही है।”
सेठ ने कहा, “देर अभी कहाँ? अभी उजेला है, मेरी प्यारी चिड़िया! तुम अपने घर का इतने और हाल सुनाओ। भय मत करो।” चिड़िया ने कहा, “सेठ मुझे डर लगता है। माँ मेरी दूर है। रात हो जाएगी तो राह नहीं सूझेगी इतने में चिड़िया को बोध हुआ कि जैसे एक कठोर स्पर्श उसके देह को छू गया। वह चीख देकर चिचियाई और एकदम उड़ी। नौकर के फैले हुए पंजे में वह आकर भी नहीं आ सकी। तब वह उड़ती हुई एक साँस में माँ के पास गई और माँ की गोद में गिरकर सुबकने लगी, “ओ माँ, ओ माँ!”
माँ ने बच्ची को छाती से चिपटाकर पूछा, “क्या है मेरी बच्ची, क्या है?” पर, बच्ची काँप-काँपकर माँ की छाती से और चिपक गई, बोली कुछ नहीं, बस सुबकती रही, “ओ माँ, ओ माँ!”
बड़ी देर में उसे ढाढ़स बँधा और तब वह पलक मींच उस छाती में ही चिपककर सोई। जैसे अब पलक न खोलेगी।
क्रम | शब्द | अर्थ (हिन्दी में) | English Meaning |
1 | संगमरमर | सफेद रंग का चिकना पत्थर | Marble |
2 | कोठी | बड़ी और सुंदर इमारत | Mansion / Villa |
3 | अभिरुचि | रुचि, पसंद | Taste / Liking |
4 | फव्वारा | पानी की धार छोड़ने वाला उपकरण | Fountain |
5 | चबूतरा | ऊँचा बना चौरस स्थान | Platform / Raised surface |
6 | मसनद | टिकने का गद्देदार सहारा | Cushion / Bolster |
7 | विनोद | हँसी-ठिठोली, मनोरंजन | Amusement / Light talk |
8 | घटा | बादलों की घनी परत | Dense cloud |
9 | थिरकना | फुदकना, हल्के कदमों से नाचना | To skip / To dance lightly |
10 | स्वच्छंदता | स्वतंत्रता, खुलापन | Freedom / Spontaneity |
11 | सकुचाना | शर्माना, संकोच करना | To hesitate / To feel shy |
12 | भयभीत | डर से भरा हुआ | Frightened |
13 | प्रफुल्लित | बहुत खुश | Cheerful / Joyful |
14 | रागिनी | संगीत की मधुर ध्वनि | Melody |
15 | पगली | भोली या मासूम लड़की | Innocent girl / Crazy girl |
16 | तृष्णा | तीव्र इच्छा, लालच | Desire / Greed |
17 | मालामाल | बहुत धनवान | Wealthy / Rich |
18 | नादान | मासूम, अनुभवहीन | Innocent / Naive |
19 | बाट देखना | प्रतीक्षा करना | To wait |
20 | उजेला | उजाला, प्रकाश | Brightness / Light |
21 | बहार | सुंदरता, शोभा | Beauty / Splendor |
22 | चिचियाना | तेज़ चीखना | To shriek / To screech |
23 | ढाढ़स बँधना | साहस या हिम्मत आना | To gain courage |
24 | सुबकना | हल्के स्वर में रोना | To sob |
25 | पलक मींचना | आँखें बंद करना | To close eyelids |
26 | कठोर | सख़्त, कोमलता रहित | Harsh / Hard |
27 | छाती से चिपटना | बहुत पास लग जाना | To cling to the chest / embrace |
28 | स्वप्न | सपना | Dream |
29 | फर्शी हुक्का | ज़मीन पर रखा हुआ हुक्का | Traditional floor hookah |
30 | मूल्य | कीमत, महत्व | Value / Worth |
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
संध्या = शाम
प्रफुल्लित = आनंदित
पर = पंख
चित्त = मन
साँझ = शाम
वीरान = खाली, उजाड़
स्वप्न = सपना
निरी = बिल्कुल
थिरकना = नाचना
जगत = संसार
बेखटके = बेहिचक
व्यसन = आदत
तृप्ति = संतुष्टि
तृष्णा = चाह, इच्छा
किस्मत = भाग्य
स्याह = काले रंग का
तनिक = थोड़ा
जतन = प्रयत्न, प्रयास
सुबकना = रोना
ढाँढ़स = साहस
‘चिड़िया की बच्ची’ कहानी का सार
यह कहानी एक धनी सेठ माधवदास और एक भोली-भाली चिड़िया की है। माधवदास एक सुंदर संगमरमर की कोठी और मनमोहक बगीचे का स्वामी है। उसे सुंदरता और शांति प्रिय है, लेकिन उसके जीवन में एक खालीपन है जिसे वह भर नहीं पाया है। एक दिन शाम के समय, एक सुंदर चिड़िया उसकी कोठी के सामने गुलाब की डाली पर आ बैठती है। चिड़िया चहकती है, फुदकती है और माधवदास को बहुत प्यारी लगती है। सेठ उससे बात करता है और उसे यहीं रहने का प्रस्ताव देता है। वह चिड़िया को अपने धन, सोने, महलों और बगीचों का लालच देकर रोकने की कोशिश करता है। लेकिन चिड़िया बार-बार यह कहती है कि वह अपनी माँ के पास जाना चाहती है क्योंकि माँ उसकी राह देख रही होगी।
सेठ जबरदस्ती उसे रोकने के लिए नौकर को बुलाता है, लेकिन चिड़िया किसी तरह बच निकलती है और उड़कर माँ की गोद में जा गिरती है। वह काँपती हुई माँ से लिपटकर रोने लगती है – “ओ माँ, ओ माँ!” माँ उसे सीने से लगाकर ढाढ़स बँधाती है। इस कहानी मुख्य संदेश यही है कि सच्चा सुख, प्रेम और सुरक्षा धन या वैभव से नहीं, बल्कि अपनेपन और माँ की ममता में मिलता है। चिड़िया की मासूमियत, स्वतंत्रता और आत्मसम्मान इस बात को उजागर करते हैं कि कोई भी प्राणी अपनी आज़ादी और प्यार को किसी लालच के लिए नहीं छोड़ता।
बोध एवं विचार
- सही विकल्प का चयन करो :-
(क) सेठ माधवदास ने संगमरमर की क्या बनवाई है?
(1) कोठी
(2) मूर्ति
(3) मंदिर
(4) स्मारक
उत्तर – (1) कोठी
(ख) किसकी डाली पर एक चिड़िया आन बैठी?
(1) जूही
(2) गुलाब
(3) बेला
(घ) चमेली
उत्तर – (2) गुलाब
(ग) चिड़िया के पंख ऊपर से चमकदार और ________ थे।
(1) सफेद
(2) स्याह
(3) लाल
(4) पीला
उत्तर – (2) स्याह
(घ) चिड़िया से बात करते-करते सेठ ने एकाएक दबा दिया –
(1) हाथ
(2) पाँव
(3) बटन
(4) हुक्का
उत्तर – (3) बटन
- संक्षिप में उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-
(क) सेठ माधवदास की अभिरुचियों के बारे में बताओ।
उत्तर – सेठ माधवदास को कला, सुंदरता और प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्हें फूल-पौधों, फव्वारों और सजावट का शौक था। वे एक सौंदर्यप्रेमी, सुसंस्कृत और संपन्न व्यक्ति थे जिनकी कोई बुरी आदत नहीं थी।
(ख) शाम के समय सेठ माधवदास क्या-क्या करते हैं?
उत्तर – शाम के समय सेठ माधवदास मसनद के सहारे तख्त पर बैठकर बगीचे की शोभा निहारते हैं। यदि कोई मित्र होता है तो उससे बातचीत करते हैं, नहीं तो अकेले हुक्का पीते हुए अपने विचारों में खो जाते हैं।
(ग) चिड़िया के रंग-रूप के बारे में क्या जानते हो?
उत्तर – चिड़िया की गर्दन लाल और किनारों पर नीली थी, पंख ऊपर से चमकदार और स्याह थे। उसका नन्हा-सा सिर प्यारा था और शरीर पर रंग-बिरंगी चित्रकारी थी। वह देखने में बहुत सुंदर लगती थी।
(घ) चिड़िया किस बात से डरी रही थी?
उत्तर – चिड़िया सेठ की बातों और उनकी नियत को समझकर डर गई थी। वह जान गई थी कि सेठ उसे अपने पास कैद करना चाहता है, इसलिए वह माँ के पास लौट जाने को व्याकुल थी
(ङ) ‘तू सोना नहीं जानती, सोना? उसी की जगत को तृष्णा है।’ – आशय स्पष्ट करो।
उत्तर – यह वाक्य सेठ माधवदास ने चिड़िया से कहा। इसका अर्थ है कि सेठ के अनुसार सोना बहुत मूल्यवान है और संसार उसी की लालसा करता है। वह चिड़िया को यह समझाने की कोशिश कर रहा था कि सोने की चीजें उसे सुखी बना सकती हैं।
- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :-
(क) किन बातों से ज्ञात होता है कि माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा था और किन बातों से ज्ञात होता है कि वह सुखी नहीं था?
उत्तर – माधवदास के पास संगमरमर की कोठी, सुंदर बगीचा, सोना-मोती, दास-दासियाँ आदि सब कुछ था, जिससे उसकी संपन्नता स्पष्ट होती है। लेकिन वह अकेला था, उसका दिल वीरान था, उसके अकेलेपन को दूर करने वाला कोई भी नहीं था —इन बातों से ज्ञात होता है कि वह भीतर से सुखी नहीं था।
(ख) सेठ माधवदास चिड़िया को क्या-क्या प्रलोभन दे रहा था?
उत्तर – सेठ माधवदास चिड़िया को सोने का घर, मोतियों की झालर, सुंदर पिंजरा, सोने की कटोरी जैसे भौतिक सुखों का प्रलोभन देता है। वह चाहता था कि चिड़िया उसके पास रहे और उसे प्रसन्न रखे, ताकि उसकी सूनी जिंदगी में कुछ चहक और रंग आ जाए।
(ग) माधवदास क्यों बार-बार चिड़िया से कहता है कि यह बगीचा तुम्हारा ही है? क्या माधवदास निःस्वार्थ मन से ऐसा कह रहा था?
उत्तर – माधवदास बार-बार चिड़िया को यह कहकर आश्वस्त करना चाहता है कि वह यहाँ बेखटके रह सकती है। वह उसे आकर्षित कर अपने पास रोकना चाहता है। उसका यह व्यवहार निःस्वार्थ नहीं था, बल्कि अपने स्वार्थ और अकेलेपन को दूर करने का एक मोहक जाल था।
- सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :-
(क) सेठ माधवदास और चिड़िया के मनोभावों में क्या अंतर हैं? कहानी के आधार पर स्पष्ट करो।
उत्तर – सेठ माधवदास का मनोभाव भौतिक सुख-संपत्ति पर आधारित है। वह अकेला है और चिड़िया को देखकर उसे पाने की इच्छा करता है। वह धन और वैभव से चिड़िया को लुभाने की कोशिश करता है। इसके विपरीत, चिड़िया का मन निश्छल, स्वतंत्र और सरल है। वह अपनी माँ से प्रेम करती है और उसकी चिंता करती है। उसे सोना, धन या भव्यता से कोई मोह नहीं है। वह स्वतंत्रता को सबसे बड़ा सुख मानती है। दोनों के मनोभावों में यही अंतर है—एक का मन स्वार्थ और लालसा से भरा है, तो दूसरे का स्नेह, सहजता और स्वतंत्रता से।
(ख) कहानी के अंत में नन्ही चिड़िया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर तुम्हें कैसा लगा? अपने विचार लिखो।
उत्तर – कहानी के अंत में जब नन्ही चिड़िया सेठ के नौकर के पंजे से बचकर उड़ जाती है, तो मुझे बहुत सुकून और खुशी का अनुभव हुआ। यह पल स्वतंत्रता की जीत और लालच से बच निकलने का प्रतीक बन जाता है। चिड़िया की मासूमियत और उसकी माँ के प्रति प्रेम ने अंततः उसे सही रास्ता दिखाया। यह भागना केवल शारीरिक नहीं था, बल्कि लालच और मोह के जाल से मानसिक मुक्ति भी थी। यह दृश्य यह सिखाता है कि सच्चा सुख स्वतंत्रता में है, न कि सोने के पिंजरे में।
(ग) ‘माँ मेरी बाट देखती होगी’ – नन्ही चिड़िया बार-बार इसी बात को कहती है। अपने अनुभव के आधार पर बताओ कि हमारी जिंदगी में माँ का क्या महत्त्व है?
उत्तर – माँ हमारे जीवन की सबसे पहली साथी, मार्गदर्शक और संरक्षक होती है। वह न सिर्फ हमारी देखभाल करती है बल्कि हर परिस्थिति में हमारे लिए सबसे बड़ी ढाल बनकर खड़ी रहती है। चिड़िया की तरह हम भी चाहे कहीं भी रहें, माँ की याद, चिंता और स्नेह हमेशा हमारे साथ बना रहता है। माँ का प्यार निःस्वार्थ होता है—उसमें न कोई लालच होता है, न ही कोई शर्त। माँ की ममता से बढ़कर दुनिया में कोई संपत्ति नहीं होती। इसलिए माँ की बाट जोहना, उनके पास लौटना एक आत्मिक सुरक्षा और अपनापन का प्रतीक होता है।
(घ) क्या माधवदास के बनाए सोने के पिंजरे में चिड़िया सुख से रह सकती थी? – एक पक्षी के लिए पिंजरा का क्या महत्त्व है?
उत्तर – नहीं, माधवदास के बनाए सोने के पिंजरे में चिड़िया कभी सुखी नहीं रह सकती थी। भले ही वह पिंजरा बाहर से कितना भी सुंदर या मूल्यवान हो, पर उसमें स्वतंत्रता नहीं होती। एक पक्षी के लिए आकाश में उड़ना, पेड़ों पर फुदकना, अपनी माँ और साथियों के संग रहना ही असली सुख होता है। पिंजरा उसे एक बंदी बना देता है, चाहे वह लोहे का हो या सोने का। सोने का पिंजरा उसकी स्वतंत्र आत्मा के लिए जेल जैसा ही होता है। इसलिए चिड़िया का वहाँ रहना केवल शरीर का बंधन ही नहीं, आत्मा की पीड़ा भी होती।
- किसने किससे और कब कहा?
(क) यह बगीचा मैंने तुम्हारे लिए ही बनवाया है।
उत्तर – सेठ माधवदास ने यह बात नन्ही चिड़िया से तब कही जब वह उसे अपने बगीचे में रोकने का प्रयास कर रहा था।
(ख) मैं अभी चली जाऊँगी। बगीचा आपका है। मुझे माफ करें।
उत्तर – नन्ही चिड़िया ने यह बात सेठ माधवदास से तब कही जब वह उससे दूर जाने की अनुमति माँग रही थी और उसकी ममता उसे माँ के पास लौटने के लिए विवश कर रही थी।
(ग) सोने का एक बहुत सुन्दर घर मैं तुम्हें बना दूँगा।
उत्तर – सेठ माधवदास ने यह बात नन्ही चिड़िया से कही, जब वह उसे सोने के पिंजरे का प्रलोभन देकर अपने पास रोकना चाहता था।
(घ) क्या है मेरी बच्ची, क्या है?
उत्तर – चिड़िया की माँ ने यह बात चिड़िया से तब कही जब वह घबराई हुई-सी लग रही थी और उसकी बेचैनी देखकर उससे यह प्रश्न किया।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
- पाठ में पर शब्द के तीन प्रकार के प्रयोग हुए हैं –
(क) गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी।
(ख) कभी पर हिलाती थी।
(ग) पर बच्ची काँप-काँपकर माँ की छाती से और चिपक गई।
तीनों ‘पर’ के प्रयोग तीन उद्देश्यों से हुए हैं। इन वाक्यों का आधार लेकर तुम भी ‘पर’ का प्रयोग कर ऐसे तीन वाक्य बनाओ, जिनमें अलग-अलग उद्देश्यों के लिए ‘पर’ के प्रयोग हुए हों।
उत्तर – (1) स्थान सूचक ‘पर’
– मैं छत पर पतंग उड़ा रहा था।
(यहाँ ‘पर’ स्थान को दर्शाता है।)
(2) अंग सूचक ‘पर’
– पंछी अपने पर फैलाकर उड़ गया।
(यहाँ ‘पर’ पंछी के अंग यानी पंख का बोध कराता है।)
(3) विरोधसूचक स्थिति ‘पर’
– मैं जाना चाहता था पर पिताजी ने रोक दिया।
(यहाँ ‘पर’ विरोध की स्थिति को दर्शा रहा है।)
- पाठ में तैंने, छनभर, खुश करियो – तीन वाक्यांश ऐसे हैं, जो खड़ीबोली हिंदी के वर्तमान रूप में तूने, क्षणभर, खुश करना लिखे-बोले जाते हैं। इस तरह के कुछ अन्य शब्दों की खोज करो।
उत्तर – पाठ में प्रयुक्त शब्द – मानक हिंदी रूप
तैंने – तूने
छनभर – क्षणभर / पलभर
करियो – करना
कहे – कहते
देखती – देख रही
बाट – राह / प्रतीक्षा
ठहरी – ठहरी हुई / मानी गई
चित्त – मन
भागकर – दौड़कर / दौड़ते हुए
चिचियाई – चीखी
- मैं माँ के पास जा रही हूँ, सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने। मैं जरा घर से उड़ आयी थी।
इस वाक्य में रेखांकित शब्द कारक के विभक्ति चिह्न (परसर्ग) हैं। ये विभक्ति चिह्न संज्ञा और सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ जोड़ते हैं। पाठ से कुछ अन्य विभक्ति चिह्नों को चुनो और उसके भेद भी बताओ।
उत्तर – विभक्ति चिह्न (परसर्ग) – उदाहरण वाक्य – कारक का नाम
का / की / के – “माँ की छाती से और चिपक गई।” – संबंध कारक
से – “हवा से खेलने और फूलों से बात करने।” – करण कारक
में – “उसके शरीर पर चित्र-विचित्र चित्रकारी थी।” – संबंध और अधिकरण कारक
को – “माँ मुझे बहुत प्यार करती है।” – कर्म कारक
पर – “गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी।” – संबंध और अधिकरण कारक
ने – “सेठ ने एक बटन दबा दिया।” – कर्ता कारक
री – “जब मैं पर खोलने बाहर जाती हूँ तो माँ मेरी बाट देखती रहती है।” – संबंध कारक
योग्यता – विस्तार
- तुम अनेक रंग के पक्षी देखे होगे। अपने आसपास पाए जाने वाले कुछ पक्षियों के रंगों का अवलोकन करो और अपनी अभ्यास पुस्तिका में लिखो।
उत्तर – मैंने अनेक तरह के पक्षी अपने आस-पास के वातावरण में देखे हैं जो कुछ इस प्रकार हैं –
तोता (Parrot) – हरा रंग, लाल चोंच
मैना (Myna) – गहरे भूरे रंग की देह, पीली चोंच और आँखों के पास पीला घेरा
कबूतर (Pigeon) – हल्का स्लेटी या नीला-भूरा रंग, गले पर हरे-नीले चमकीले पर
गौरैया (Sparrow) – भूरे और सफेद रंग की छोटी सी चंचल चिड़िया
कोयल (Cuckoo) – काले रंग की चमकदार देह, मीठी आवाज
नीलकंठ (Indian Roller) – नीले और हल्के बैंगनी रंग का सुन्दर पक्षी
हंस (Swan) – सफेद रंग का शरीर, लंबी गर्दन
चील (Eagle) – भूरे रंग की बड़ी पक्षी, तीखी नजर और नुकीले पंजे
2 . तुमने गौर किया होगा कि मनुष्य, पशु, पक्षी इन तीनों में ही माँएँ अपने बच्चों का पूरा-पूरा ध्यान रखती हैं। प्रकृति की इस अद्भुत देन का अवलोकन कर अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर – बिलकुल! यह प्रकृति की सबसे सुंदर और कोमल देन है कि हर प्राणी की माँ अपने बच्चों के लिए सबसे पहले सोचती है, चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी। माँ का प्यार निःस्वार्थ होता है—वह अपने बच्चे को ठंडी हवा से बचाती है, भूख में पहले उसे खिलाती है और हर मुसीबत से उसकी रक्षा करती है।
मनुष्य की माँ बच्चे को पढ़ना-सिखाना चाहती है, पशु-पक्षियों की माँ बच्चों को खाना जुटाना और खतरे से बचना सिखाती है। चाहे जंगल हो या घर, माँ की ममता हर जगह एक-सी होती है—संवेदनशील, सतर्क और समर्पित।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए –
प्रश्न – सेठ माधवदास ने क्या बनवाया था?
उत्तर – सेठ माधवदास ने संगमरमर की कोठी और बगीचा बनवाया था।
प्रश्न – सेठ को किस चीज़ से सुख मिलता था?
उत्तर – सेठ को प्रकृति की सुंदरता देखने से सुख मिलता था।
प्रश्न – चिड़िया कहाँ बैठी थी?
उत्तर – चिड़िया गुलाब की डाली पर बैठी थी।
प्रश्न – सेठ को चिड़िया क्यों पसंद आई?
उत्तर – सेठ को चिड़िया उसकी सुंदरता और चहचहाहट के कारण पसंद आई।
प्रश्न – चिड़िया कहाँ जाना चाहती थी?
उत्तर – चिड़िया अपनी माँ के पास जाना चाहती थी।
प्रश्न – सेठ ने चिड़िया को क्या देने का वादा किया?
उत्तर – सेठ ने चिड़िया को सोने का घर और सुख-सुविधाएँ देने का वादा किया।
प्रश्न – चिड़िया ने सेठ की बात क्यों नहीं मानी?
उत्तर – चिड़िया ने सेठ की बात नहीं मानी क्योंकि वह अपनी माँ से प्रेम करती थी और स्वतंत्र रहना चाहती थी।
प्रश्न – सेठ ने चिड़िया को रोकने के लिए क्या किया?
उत्तर – सेठ ने चिड़िया को रोकने के लिए अपने नौकर को उसे पकड़ने को कहा।
प्रश्न – चिड़िया कैसे बच निकली?
उत्तर – वह डरकर उड़ गई और बच निकली तथा माँ की गोद में जा पहुँची।
प्रश्न – चिड़िया माँ से क्या कहती रही?
उत्तर – चिड़िया माँ “ओ माँ, ओ माँ!” कहती रही।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो–तीन पंक्तियों में लिखिए –
प्रश्न 1 – सेठ माधवदास के जीवन में कौन-सा खालीपन था, जिसे वह भरना चाहता था?
उत्तर – सेठ के पास धन, वैभव और सुंदरता थी, लेकिन उसके जीवन में आत्मिक संतोष और अपनापन नहीं था। वह एक साथी की तलाश में था जो उसे सच्चा सुख दे सके।
प्रश्न 2 – चिड़िया ने सेठ के सारे लालच को क्यों ठुकरा दिया?
उत्तर – चिड़िया स्वच्छंद थी और उसे लालच की नहीं, माँ के प्रेम और अपनी आज़ादी की ज़रूरत थी। उसने यह स्पष्ट किया कि वह किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता और माँ का स्नेह नहीं छोड़ेगी।
प्रश्न 3 – सेठ ने चिड़िया से कैसा व्यवहार किया और चिड़िया ने उसकी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया दी?
उत्तर – सेठ ने चिड़िया को धन, सोना और वैभव का लालच देकर अपने पास रोकना चाहा, लेकिन चिड़िया ने सहज मासूमियत से उसे नकारते हुए माँ के पास लौटने को प्राथमिकता दी।