SEBA, Assam Class IX Hindi Book, Alok Bhaag-1, Ch. 05 – Aap Bhala To Jag Bhala, Shreemannaryan, The Best Solutions, आप भले तो जग भला – श्रीमन्नारायण

आप भले तो जग भला – पाठ का परिचय

प्रस्तुत पाठ अत्यंत भाव-गंभीर तथा हृदय-स्पर्शी है। इस पाठ में जीवन जीने की एक दृष्टि दी गई है। लेखक ने विभिन्न दृष्टांतों, प्रसंगों और उद्धरणों द्वारा यह बताने का प्रयत्न किया है कि यदि मनुष्य स्वयं भला है तो उसे सारा संसार भला दिखाई देता है। भला होने से आशय है- सदैव दूसरों की अच्छाइयों को देखना, अपने अवगुणों पर भी ध्यान देना और हर परिस्थिति में खुश रहना। अपने निंदक का भी एहसानमंद होना और प्रत्येक व्यक्ति के साथ प्रेम और नम्रतापूर्ण व्यवहार करना।

आप भले तो जग भला

एक विशाल काँच के महल में न जाने किधर से एक भटका हुआ कुत्ता घुस गया। हजारों काँचों के टुकड़ों में अपनी शक्ल देखकर वह चौंका। उसने जिधर नजर डाली, उधर ही हजारों कुत्ते दिखाई दिए। वह समझा कि ये सब उस पर टूट पड़ेंगे और उसे मार डालेंगे। अपनी शान दिखाने के लिए वह भौंकने लगा, उसे सभी कुत्ते भौंकते हुए दिखाई पड़े। उसकी आवाज की ही प्रतिध्वनि उसके कानों में जोर- जोर से आती। उसका दिल धड़कने लगा। वह और जोर से भौंका।

सब कुत्ते भी अधिक जोर से भौंकते दिखाई दिए। आखिर वह उन कुत्तों पर झपटा, वे भी उस पर झपटे। बेचारा जोर-जोर से उछला, कूदा, भौंका और चिल्लाया। अंत में गश खाकर गिर पड़ा।

कुछ देर बाद उसी महल में एक दूसरा कुत्ता आया। उसको भी हजारों कुत्ते दिखाई दिए। वह डरा नहीं, प्यार से उसने अपनी दुम हिलाई। सभी कुत्तों की दुम हिलती दिखाई दी। वह खूब खुश हुआ और कुत्तों की ओर अपनी पूँछ हिलाता बढ़ा। सभी कुत्ते उसकी ओर दुम हिलाते बढ़े। वह प्रसन्नता से उछला – कूदा, अपनी ही छाया से खेला, खुश हुआ और फिर पूँछ हिलाता बाहर चला गया।

जब मैं अपने एक मित्र को हमेशा परेशान, नाराज और चिड़चिड़ाते देखता हूँ तब इसी किस्से का स्मरण हो आता है। मैं उनकी मिसाल भौंकने वाले कुत्ते से नहीं देना चाहता। यह तो बड़ी अशिष्टता होगी। पर इस कहानी से वे चाहें तो कुछ सबक जरूर सीख सकते हैं।  

दुनिया काँच के महल जैसी है। अपने स्वभाव की छाया ही उस पर पड़ती है।‘आप भले तो जग भला’, ‘आप बुरे तो जग बुरा।’ अगर आप प्रसन्नचित्त रहते हैं, दूसरों के दोषों को न देखकर उनके गुणों की ओर ध्यान देते हैं तो दुनिया भी आपसे नम्रता और प्रेम का बरताव करेगी। अगर आप हमेशा लोगों के ऐबों की ओर देखते हैं, उन्हें अपना शत्रु समझते हैं और उनकी ओर भौंका करते हैं तो फिर वे क्यों न आपकी ओर गुस्से से दौड़ेंगे? अंग्रेजी में एक कहावत है कि अगर आप हँसेंगे तो दुनिया भी आपका साथ देगी, पर अगर आपको गुस्सा होना और रोना ही है तो दुनिया से दूर किसी जंगल में चले जाना ही हितकर होगा।

अमेरिका के मशहूर नेता अब्राहम लिंकन से किसी ने एक बार पूछा, “आपकी सफलता का सबसे बड़ा रहस्य क्या है?”

उन्होंने जरा देर सोचकर उत्तर दिया, “मैं दूसरों की अनावश्यक नुक्ताचीनी कर उनका दिल नहीं दुखाता।”

मेरे मित्र की यही खास गलती है। वे दूसरों का दृष्टिकोण समझने की कोशिश नहीं करते। दूसरों के विचारों की, कामों की, भावनाओं की आलोचना करना ही अपना परम धर्म समझते हैं। उनका शायद यह ख्याल है कि ईश्वर ने उन्हें लोगों को सुधारने के लिए ही भेजा है। पर वे यह भूल जाते हैं कि शहद की एक बूँद ज्यादा मक्खियों को आकर्षित करती है, बजाय एक सेर जहर के।

दुनिया में पूर्ण कौन है? हरेक में कुछ न कुछ त्रुटियाँ रहती हैं। प्रत्येक व्यक्ति से गलतियाँ होती हैं। फिर एक-दूसरे को सुधारने की कोशिश करना अनुचित ही समझना चाहिए। जैसा ईसा ने कहा था, “लोग दूसरों की आँखों का तिनका तो देखते हैं पर अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखते।”दूसरों को सीख देना तो बहुत आसान काम है, अपने ही आदर्शों पर स्वयं अमल करना कठिन है। अगर हम अपने को ही सुधारने का प्रयत्न करें और दूसरों के अवगुणों पर टीका-टिप्पणी करना बंद कर दें तो हमारे मित्र जैसा हमारा हाल कभी नहीं होगा।

इसी सिलसिले में एक बात और। आप तो दूसरों की नुक्ताचीनी नहीं करेंगे, ऐसी उम्मीद है, पर दूसरे ही अगर आपकी नुक्ताचीनी करना न छोड़ें तो? मेरे मित्र अपनी बुराई या आलोचना सुनकर आगबबूला हो जाते हैं, भले ही वह दुनिया की दिन भर बुराई करते रहें। पर आपके लिए तो ऐसे मौके पर दादू की पंक्तियाँ गुनगुना लेना बड़ा कारगर होगा :

निंदक बाबा वीर हमारा, बिनही कौड़ी बहै बिचारा।

आपन डुबे और को तारे, ऐसा प्रीतम पार उतारे॥

अगर सचमुच कुछ त्रुटियाँ हैं, जिनकी ओर ‘निंदक’ हमारा ध्यान खींचता है तो उन अवगुणों को दूर करना हम सभी का कर्तव्य हो जाता है। जिसने उनकी ओर ध्यान दिलाया उसका उपकार ही मानना चाहिए। एक दिन एक सज्जन से कुछ गलती हो गई। हमारे मित्र तुरंत बिगड़कर बोले, “देखिए महाशय, यह आपकी सरासर गलती है। आइंदा ऐसा करेंगे तो ठीक नहीं होगा।”बेचारे महाशय जी बड़े दुखी हुए। उनका अपमान हो गया। मन में क्रोध जाग्रत हुआ और वे बिना कुछ उत्तर दिए ही उठकर चले गए। दूसरे दिन मैंने उन महाशय जी से एकांत में कहा, “देखिए, गलती तो सभी से होती है। ऐसी गलती मैं भी कर चुका हूँ। दुखी होने का कोई कारण नहीं। आप तो बड़े समझदार हैं। कोशिश करें तो यह क्या, बड़ी से बड़ी गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं। ठीक है न?”

उनकी आँखों में आँसू छलछला आए। बड़े प्रेम से बोले, “जी हाँ, मैं अपनी गलती मानता हूँ। आगे भला मैं वही गलती क्यों करने लगा! पर कोई मुहब्बत से पेश आए तब न! आदमी प्रेम का भूखा रहता है।”

जब सरदार पृथ्वीसिंह ने हिंसा का मार्ग त्यागकर अपने को बापू के सामने अर्पण कर दिया तब बापू को बहुत खुशी और संतोष हुआ। पर बापू जहाँ प्रेम और सहानुभूति की मूर्ति थे, वहाँ बड़े परीक्षक भी थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने पृथ्वीसिंह से कहा, “सरदार साहब, अगर आप सेवाग्राम में आकर मेरे आश्रय में रह सकें तभी मैं समझूँगा कि आपने अहिंसा का पाठ सचमुच सीख लिया है।”

पृथ्वीसिंह जरा चौंककर बोले, “आपका क्या मतलब बापूजी?”

‘भाई, मेरा आश्रम तो एक प्रयोगशाला जैसा ही है। जिन लोगों की कहीं नहीं बनती, अक्सर वे मेरे पास आ जाते हैं। उन सबको एक साथ रखने में मैं सीमेंट का काम करता हूँ और वह सीमेंट मेरी अहिंसा ही है।”

“मैं समझ गया, बापूजी! “- पृथ्वीसिंह ने मुस्कराकर कहा। आगे की कहानी यहाँ करने की जरूरत नहीं, पर इसमें बापू के प्रेममय व्यवहार की एक झलक मिल जाती है। उन्होंने अपने प्रेम और सहानुभूति से कितने ही व्यक्तियों को अपनी ओर खींचा था। बापू कड़ी-से- कड़ी आलोचना कर सकते थे और करते भी है, पर हँसकर मीठी चुटकियाँ लेकर, अपना प्रेम दरसाकर।”

अमेरिका के मशहूर लेखक इमर्सन की एक घटना याद आती है। उन्हें गाएँ पालने का शौक था। इसलिए गाएँ और नन्हे बछड़े मकान के पास एक कुटी में रहते थे। एक बार जोर की बारिश आने वाली थी। सभी गाएँ तो झोंपड़ी के अंदर चली गईं, पर एक बछड़ा बाहर ही रह गया। इमर्सन और उनका लड़का दोनों मिलकर उस बछड़े को पकड़कर खींचने लगे कि वह कुटी में चला आए पर ज्यों-ज्यों उन्होंने जोर से खींचना शुरू किया त्यों-त्यों वह बछड़ा भी सारी ताकत लगाकर पीछे हटने लगा। बेचारे इमर्सन बड़े परेशान हुए। इतने में उनकी बूढ़ी नौकरानी उधर से निकली। जैसे ही उसने यह तमाशा देखा, वह दौड़ी आई और अपना अँगूठा बछड़े के मुँह में प्यार से डालकर उसे झोंपड़ी की तरफ ले जाने लगी। बछड़ा चुपचाप कुटी के अंदर चला गया।

वह अनपढ़ नौकरानी किताबें और कविताएँ लिखना नहीं जानती थी, पर व्यवहार कुशल अवश्य थी और जब जानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं तो फिर मनुष्य होकर क्यों नहीं समझेंगे?

कल हमारे मित्र का रसोइया बिना खबर दिए ही चला गया। बेचारा करता भी क्या! सुबह से शाम तक उसके महाशय की डाँट खानी पड़ती थी।”तूने आज दाल बिलकुल बिगाड़ दी। उसमें नमक बहुत डाल दिया।” “अरे बेवकूफ तूने साग में नमक ही नहीं डाला।” “यह जली रोटी कौन खाएगा रे!” आदि की झड़ी लगी रहती थी।

जब कोई चीज जरा भी बिगड़ जाती तब तो उसे दिल खोलकर डाँटा जाता। पर अच्छा भोजन बनने पर कभी तारीफ के दो शब्द न बोले जाते। ”वाह! तारीफ कर देने से उसका दिमाग चढ़ जाएगा।” मेरे मित्र कह देते। ठीक है! है तो वह भी आदमी ही। उसके भी दिल है। बेचारा कुछ रुपए का नौकर यंत्र नहीं बन सकता। तंग आकर भाग जाने के सिवा और क्या चारा था?

कहने का मतलब यह कि उनकी किसी से नहीं बनती- न मित्रों से, न ऑफिस के कर्मचारियों से और न घर के नौकरों से।

उस पर भी मजा यह है कि वे अपनी जिंदगी और विचारों से पूरी तरह संतुष्ट हैं। वे मानते हैं कि उनका जीवन, आचार और विचार आदर्श हैं। दूसरे लोग जो उनका सम्मान नहीं करते, मूर्ख हैं। ग्रीस के महान संत सुकरात ने एक बात बड़े पते की कही थी, “जो मनुष्य मूर्ख है और जानता है कि वह मूर्ख है, वह ज्ञानी है, पर जो मूर्ख है और नहीं जानता कि वह मूर्ख है, वह सबसे बड़ा मूर्ख है।”

अच्छा हो, सुकरात के इस विचार को मेरे मित्र अपने कमरे में लिखकर टाँग लें। पर उनसे यह कहने का साहस कौन करे?

क्रम

शब्द

हिंदी में अर्थ

अंग्रेज़ी में अर्थ

1

विशाल

बहुत बड़ा, फैला हुआ

Huge, vast

2

महल

बड़ा और भव्य भवन

Palace

3

भटका

रास्ता भुला हुआ

Strayed, lost

4

चौंका

अचंभित हुआ, हैरान हुआ

Surprised, startled

5

प्रतिध्वनि

गूंज, आवाज की वापसी

Echo

6

झपटा

अचानक हमला किया

Pounced

7

गश खाकर

बेहोश होकर

Fainted

8

नुक्ताचीनी

दोष निकालना, आलोचना करना

Fault-finding, criticism

9

त्रुटि

गलती

Mistake, error

10

दृष्टिकोण

देखने का नजरिया

Point of view, perspective

11

अनुचित

गलत, अयोग्य

Improper, inappropriate

12

शहद

मधुर तरल पदार्थ

Honey

13

शहतीर

बड़ा लकड़ी का टुकड़ा, बीम

Beam

14

आदर्श

श्रेष्ठ उदाहरण

Ideal

15

आलोचना

दोषों को बताना, टीका

Criticism

16

निंदक

बुराई करने वाला

Critic

17

उपकार

भलाई, मदद

Favor, kindness

18

अपमान

बेइज़्ज़ती

Insult, humiliation

19

सहानुभूति

हमदर्दी, संवेदना

Sympathy

20

प्रयोगशाला

प्रयोग करने का स्थान

Laboratory

21

सीमेंट

जोड़ने वाला पदार्थ

Cement

22

मूर्ति

प्रतिमा, आदर्श व्यक्तित्व

Idol, embodiment

23

झोंपड़ी

छोटी झुग्गी, कुटिया

Hut

24

तमाशा

दृश्य, मजेदार दृश्य

Spectacle, scene

25

व्यवहार कुशल

व्यवहार में चतुर, समझदार

Well-mannered, tactful

26

तारीफ़

प्रशंसा

Appreciation, praise

27

यंत्र

मशीन

Machine

28

झड़ी

लगातार घटना

Series, stream

29

आदर्शवाद

उच्च नैतिक जीवन-दृष्टि

Idealism

30

मूर्ख

अज्ञानी, समझ से रहित व्यक्ति

Fool

31

संतुष्ट

पूरी तरह से खुश, तृप्त

Satisfied

32

पते की बात

समझदारी भरी, गहराई वाली बात

Sensible point, wise saying

33

साहस

हिम्मत, निडरता

Courage, bravery

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

काँच = शीशा

प्रतिध्वनि = टकराकर लौटी हुई ध्वनि

गश खाना = बेहोश होना, मूर्छित होना

मिसाल = उदाहरण

बरताव = व्यवहार

ऐब = दोष, बुराई

नुक्ताचीनी = दोष निकालना, आलोचना

शहतीर = लकड़ी का लंबा लट्ठा

अमल = आचरण, व्यवहार

टीका-टिप्पणी = आलोचना

आग बबूला होना = बहुत गुस्सा करना, गुस्से से लाल होना

सरासर = पूरी तरह

आइंदा = भविष्य में, आगे

सेवाग्राम = वर्धा में स्थित गांधी जी का आश्रम

जोड़ने और मिलाने का काम करना = सीमेंट का काम करना

मीठी चुटकियाँ लेना = हँसी-हँसी में व्यंग्य करना।

ग्रीस = यूनान देश

सुकरात = प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक।

निंदक बाबा वीर हमारा, बिनही कौड़ी बहै विचारा।

आपन डूबे और को तारे, ऐसा प्रीतम पार उतारे ॥ =

निंदा करनेवाला मनुष्य बड़ा वीर है। जो अपने विचारों को बिना कोई कीमत लिए प्रकट करता है। ऐसा करने में भले ही वह स्वयं डूब जाता है, अर्थात् दूसरों की बुराई करने का दोष अपने ऊपर ले लेता है, परंतु दूसरों को उनकी बुराई का ज्ञान करा देता है। ऐसा व्यक्ति प्रिय है क्योंकि वह सबका कल्याण करता है।

आप भले तो जग भला – पाठ का सार

यह पाठ एक प्रतीकात्मक कहानी के माध्यम से यह संदेश देता है कि हमारी सोच, दृष्टिकोण और व्यवहार का सीधा प्रभाव हमारे चारों ओर की दुनिया पर पड़ता है। एक काँच के महल में जब एक भटका हुआ कुत्ता घुसता है, तो वह अपनी ही छाया को दुश्मन समझकर डर जाता है और अंततः गश खाकर गिर पड़ता है। वहीं दूसरा कुत्ता वहाँ जाता है, प्रेम से पूँछ हिलाता है और प्रसन्न होकर बाहर आ जाता है। यह उदाहरण दर्शाता है कि जैसे हम दुनिया के प्रति व्यवहार करेंगे, वैसा ही व्यवहार हमें वापस मिलेगा।

लेखक अपने एक मित्र का उदाहरण देकर यह बताते हैं कि जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की आलोचना करता है, हर समय दोष निकालता है, उसकी किसी से नहीं बनती। जबकि अगर हम प्रेम, सहानुभूति और नम्रता से पेश आएँ, तो लोग हमारा साथ देंगे और हम खुश रहेंगे। गांधीजी, अब्राहम लिंकन, इमर्सन जैसे महान व्यक्तित्वों के उदाहरणों द्वारा यह बताया गया है कि प्रेम, सहानुभूति और सकारात्मक दृष्टिकोण से न केवल संबंध बेहतर बनते हैं बल्कि दूसरों को भी सुधारा जा सकता है।

पाठ का मुख्य संदेश है कि हमें दूसरों की आलोचना करने के बजाय पहले खुद को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हम भले हैं, तो संसार भी हमारे प्रति भला व्यवहार करेगा।

बोध एवं विचार

(अ) सही विकल्प का चयन करो :-

  1. एक काँच के महल में कितने कुत्ते घुसे थे?

(क) एक

(ग) एक हजार

(ख) दो

(घ) कई हजार

उत्तर – (ख) दो

  1. काँच का महल किसका प्रतीक है?

(क) संसार

(ग) चिड़ियाघर

(ख) अजायब घर

(घ) सपनों का महल

उत्तर – (क) संसार

  1. निंदक बाबा वीर हमारा, बिनही कौड़ी बहै विचारा।

आपन डूबे और को तारे, ऐसा प्रीतम पार उतारे।”

प्रस्तुत पंक्तियों के रचयिता कौन हैं?

(क) कबीर दास

(ख) रैदास

(ग) बिहारीलाल

(घ) दादू

उत्तर – (घ) दादू

  1. आदमी भूखा रहता है-

(क) धन का

(ग) प्रेम का

(ख) जन का

(घ) मान का

उत्तर – (ग) प्रेम का

  1. गांधीजी ने अहिंसा की तुलना सीमेंट से क्यों की है?

(क) अहिंसा से मनुष्य एक साथ रहता है।

(ख) अहिंसा किसी को अलग नहीं होने देती।

(ग) अहिंसा सीमेंट की तरह एक-दूसरे को जोड़ कर रखती है।

(घ) अहिंसा में सीमेंट जैसी ताकत है।

उत्तर – (ग) अहिंसा सीमेंट की तरह एक-दूसरे को जोड़ कर रखती है।

(आ) संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-

  1. दो कुत्तों की घटना का वर्णन करके लेखक क्या सीख देना चाहते हैं?

उत्तर – लेखक यह सीख देना चाहते हैं कि जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें भी प्राप्त होता है। यदि हम प्रेमपूर्वक और मित्रवत् व्यवहार करेंगे तो सामने वाला भी वैसा ही करेगा, लेकिन यदि हम चिड़चिड़ेपन और गुस्से से पेश आएँगे तो दुनिया भी वैसा ही व्यवहार करेगी।

  1. लेखक ने संसार की तुलना काँच के महल से क्यों की है?

उत्तर – लेखक ने संसार की तुलना काँच के महल से इसलिए की है क्योंकि जैसे उस महल में कुत्ते को अपनी ही छवि दिखाई दी, वैसे ही संसार में भी लोगों का व्यवहार हमारी सोच और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। यदि हम भले हैं तो दुनिया भी हमें भली लगेगी।

  1. अब्राहम लिंकन की सफलता का सबसे बड़ा रहस्य क्या था?

उत्तर – अब्राहम लिंकन की सफलता का सबसे बड़ा रहस्य यह था कि वे दूसरों की अनावश्यक नुक्ताचीनी नहीं करते थे और किसी का दिल दुखाना पसंद नहीं करते थे। वे दूसरों की भावनाओं की कद्र करते थे।

  1. लेखक ने गांधी और सरदार पृथ्वीसिंह के उदाहरण क्या स्पष्ट करने के लिए दिए हैं?

उत्तर – लेखक ने यह उदाहरण यह स्पष्ट करने के लिए दिया है कि प्रेम, सहानुभूति और अहिंसा के माध्यम से सबसे कठिन स्वभाव के लोगों को भी बदला जा सकता है। गांधीजी जैसे व्यक्ति ने उग्र स्वभाव वाले सरदार पृथ्वीसिंह को अपने प्रेममय व्यवहार से सौम्य बना दिया।

  1. रसोइया ने बिना खबर दिए लेखक के मित्र की नौकरी क्यों छोड़ दी?

उत्तर – रसोइया ने नौकरी इसलिए छोड़ दी क्योंकि उसे हमेशा डाँट-फटकार सुननी पड़ती थी। उसकी गलतियों पर डाँट पड़ती थी, लेकिन अच्छे काम पर कभी सराहना नहीं मिलती थी। प्रेम और सम्मान की कमी के कारण वह नौकरी छोड़कर चला गया।

  1. अच्छा हो, सुकरात के इस विचार को मेरे मित्र अपने कमरे में लिखकर टाँग लें।”- लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर – लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि उनके मित्र को यह भ्रम है कि वे हमेशा सही हैं और बाकी सब गलत। वे अपनी त्रुटियाँ नहीं देखते, जबकि दूसरों की आलोचना करते रहते हैं। सुकरात के विचार से उन्हें आत्मचिंतन करने और अपनी मूर्खताओं को पहचानने में मदद मिल सकती है।

(इ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :-

  1. अपने मित्र को परेशान देखकर लेखक को किस किस्से का स्मरण हो आता है?

उत्तर – लेखक को अपने मित्र को हमेशा चिड़चिड़ा और नाराज़ देखकर काँच के महल में घुसे दो कुत्तों की कहानी याद आती है। यह कहानी दिखाती है कि जैसा व्यवहार हम दूसरों से करते हैं, वैसा ही हमें लौटकर मिलता है। इसलिए प्रसन्न और विनम्र रहना ज़रूरी है।

  1. दुखड़ा रोते रहने वाले व्यक्ति का दुनिया से दूर किसी जंगल में चले जाना क्यों बेहतर है?

उत्तर – लेखक के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति हमेशा दुखी, नाराज़ और गुस्से में रहता है, तो वह समाज में खुशी फैलाने के बजाय नकारात्मकता फैलाता है। ऐसे व्यक्ति को अकेले जंगल में रहना बेहतर है, क्योंकि समाज को ऐसे लोगों से प्रेम, सहयोग और प्रसन्नता की प्राप्ति कभी भी नहीं होती है।

  1. प्रेम और सहानुभूति से किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है।’ यह स्पष्ट करने के लिए लेखक ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं?

उत्तर – ‘प्रेम और सहानुभूति से किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है।’ यह स्पष्ट करने के लिए लेखक ने गाँधीजी और पृथ्वीसिंह का उदाहरण दिया है, जहाँ बापू ने अहिंसा और प्रेम से उन्हें प्रभावित किया। एक बूढ़ी नौकरानी ने बड़े प्रेम से बछड़े को झोंपड़ी में ले गई, जबकि इमर्सन और उनका बेटा उसे खींचते रह गए। ये उदाहरण प्रेम की ताकत दिखाते हैं।

  1. लेखक ने अपने मित्र की किन गलतियों का वर्णन किया है?

उत्तर – लेखक के मित्र हमेशा दूसरों की आलोचना करते हैं, दूसरों के दृष्टिकोण को नहीं समझते, किसी की सराहना नहीं करते और हर समय चिड़चिड़े रहते हैं। वे खुद को आदर्श मानते हैं और दूसरों की भावनाओं का सम्मान नहीं करते। इसी कारण उनकी किसी से नहीं बनती

  1. इस पाठ का आधार पर बताओ कि ‘हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।’

उत्तर – हमें दूसरों के दोष देखने की बजाय उनके गुणों को पहचानना चाहिए, प्रेम और सहानुभूति से पेश आना चाहिए, विनम्र रहना चाहिए और आलोचना से सीखना चाहिए। हमें नकारात्मक सोच, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, और दूसरों की निंदा करने से बचना चाहिए।

(ई) आशय स्पष्ट करो (लगभग 100 शब्दों में) :-

(क) शहद की एक बूँद ज्यादा मक्खियों को आकर्षित करती है, बजाए एक सेर जहर के।

उत्तर – इस कथन का आशय है कि प्रेम, विनम्रता और मधुर व्यवहार से अधिक लोग हमारी ओर आकर्षित होते हैं, जबकि क्रोध, कटुता और कठोरता से लोग दूर भागते हैं। जैसे शहद की मिठास मक्खियों को खींचती है, वैसे ही मधुर और सहयोगपूर्ण व्यवहार दूसरों को हमारी ओर आकर्षित करता है। दूसरी ओर, गुस्सा, कड़वे शब्द और निंदा, चाहे वह कितनी ही मात्रा में क्यों न हो, लोगों को हमसे दूर कर देती है। यह कथन इस बात पर बल देता है कि रिश्तों में मिठास बनाए रखना ज़रूरी है।

(ख) लोग दूसरों की आँखों का तिनका तो देखते हैं, पर अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखते।

उत्तर – इस कथन का आशय है कि हम दूसरों की छोटी-छोटी गलतियाँ तुरंत देख लेते हैं और उन पर टिप्पणी करते हैं, लेकिन अपनी बड़ी-बड़ी गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यह मनुष्य के स्वभाव की एक दुर्बलता है कि वह आत्मनिरीक्षण करने के बजाय दूसरों की आलोचना में लगा रहता है। यह कथन हमें सिखाता है कि पहले हमें अपनी कमियों को पहचानना और सुधारना चाहिए, तभी हम दूसरों को सही रास्ता दिखा सकते हैं। यह आत्मविवेचन और विनम्रता की प्रेरणा देता है।

(ग) जो मनुष्य मूर्ख है और जानता है कि वह मूर्ख है, वह ज्ञानी है, पर जो मूर्ख है और नहीं जानता कि वह मूर्ख है, वह सबसे बड़ा मूर्ख है।

उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि अपनी सीमाओं और कमियों को पहचानना ही सच्चे ज्ञान की शुरुआत है। जो व्यक्ति यह स्वीकार कर लेता है कि वह सब कुछ नहीं जानता, उसमें सीखने की भावना बनी रहती है और वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जो व्यक्ति स्वयं को सर्वज्ञ समझता है, वह अपनी मूर्खता में डूबा रहता है और कभी कुछ नहीं सीख पाता। यह कथन हमें विनम्रता, आत्मस्वीकार और निरंतर सीखने की भावना को महत्त्व देने की प्रेरणा देता है।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

  1. निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण करो :-

नज़र, जोर, हज़ार, नाराज़, ज़रूर, ज़रा, जिंदगी, तारीफ़, ऑफ़िस, सफ़ाई, फैशन, फ़न।

उपर्युक्त शब्दों में ‘ज़’ और ‘फ़’ अरबी-फारसी तथा अंग्रेजी से आए तत्सम शब्दों की ध्वनियाँ हैं। इन्हें संघर्षी ध्वनि कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण करते समय हवा घर्षण के साथ निकलती है, जबकि ‘ज’ और ‘फ’ ध्वनि के उच्चारण में हवा रुकती है।

निम्नलिखित शब्दों में अंतर समझते हुए उच्चारण करो और उनका वाक्यों में प्रयोग करो-

जरा (बुढ़ापा)

राज (राज्य)

ज़रा (थोड़ा-सा)

राज़ (रहस्य)

तेज (चमक)

फन (साँप का फण)

तेज़ (फुर्तीला)

फ़न (कला)

नोट : आजकल इन शब्दों में ‘नुक्ता’ का प्रयोग बहुत कम हो रहा है।

उत्तर –  1. जरा (बुढ़ापा)

उच्चारण – जरा (ज का J जैसा उच्चारण)

वाक्य – जरा अवस्था में शरीर कमजोर हो जाता है।

  1. राज (राज्य)

उच्चारण – राज (साफ़ ‘ज’, कोई नुक्ता नहीं)

वाक्य – अशोक का राज बहुत विशाल था।

  1. ज़रा (थोड़ा-सा)

उच्चारण – ज़रा (ज़ = ज़े, उर्दू ध्वनि, नुक्ते के साथ)

वाक्य – ज़रा इधर तो आइए, कुछ दिखाना है।

  1. राज़ (रहस्य)

उच्चारण – राज़ (ज़ = ज़े, नुक्ते के साथ)

वाक्य – उसके दिल का राज़ कोई नहीं जान पाया।

  1. तेज (चमक)

उच्चारण – तेज (साफ़ ‘ज’)

वाक्य – सूरज का तेज आँखों को चुभने लगा।

  1. फन (साँप का फण)

उच्चारण – फन (साफ़ ‘न’, बिना नुक्ता)

वाक्य – साँप ने अपना फन फैलाकर डराया।

  1. तेज़ (फुर्तीला)

उच्चारण – तेज़ (ज़ = ज़े, नुक्ते के साथ)

वाक्य – वह दौड़ में बहुत तेज़ है।

  1. फ़न (कला)

उच्चारण – फ़न (फ़ = नुक्ते वाला फ, ज़्यादा गहराई से)

वाक्य – चित्रकारी उसका पसंदीदा फ़न है।

 

  1. निम्नलिखित गद्यांश का पाठ करते समय इसका ध्यान रखो कि तिरछी रेखाएँ क्षणभर ठहराव का संकेत देती हैं। इसी के अनुसार इसे पढ़ो।

महात्मा गांधी ने / पृथ्वीसिंह से कहा / “सरदार साहब, / अगर आप सेवाग्राम में आकर / मेरे आश्रम में रह सकें / तभी मैं समझूँगा कि / आपने अहिंसा का पाठ / सचमुच सीख लिया है।”

पृथ्वीसिंह जरा चौकर बोले, “आपका क्या मतलब बापूजी?”/ भाई, / मेरा आश्रय तो / एक प्रयोगशाला जैसा ही है/जिन लोगों की कहीं नहीं बनती,/ अक्सर वे मेरे पास आ जाते हैं। उन सबको एक साथ रखने में / मैं सीमेंट का काम करता हूँ / और वह सीमेंट / मेरी अहिंसा ही है।”

उत्तर – छात्र इसे स्वयं करें।

  1. निम्नलिखित विलोम शब्दों के अर्थ का अंतर स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग करो

ध्वनि – प्रतिध्वनि

क्रिया – प्रतिक्रिया

हिंसा – अहिंसा

फल – प्रतिफल

उत्तर – 1. ध्वनि – प्रतिध्वनि

ध्वनि का अर्थ है – कोई भी आवाज़ या आवाज़ का कंपन जो सुनाई देता है।

प्रतिध्वनि का अर्थ है – किसी ध्वनि का वापस लौटकर सुनाई देना, जैसे गूँज।

वाक्य –

झरने की ध्वनि बहुत मधुर लग रही थी।

पहाड़ों में चिल्लाने पर आपकी आवाज़ की प्रतिध्वनि सुनाई देती है।

  1. क्रिया – प्रतिक्रिया

क्रिया का अर्थ है – कोई कार्य या गतिविधि।

प्रतिक्रिया का अर्थ है – किसी कार्य या घटना पर व्यक्त की गई प्रतिक्रिया या जवाब।

वाक्य –

शिक्षक की हर क्रिया छात्रों पर प्रभाव डालती है।

उसके कठोर शब्दों पर मेरी प्रतिक्रिया शांतिपूर्ण रही।

  1. हिंसा – अहिंसा

हिंसा का अर्थ है – किसी को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुँचाना।

अहिंसा का अर्थ है – किसी को भी पीड़ा न पहुँचाना, शांति और करुणा से कार्य करना।

वाक्य –

हमें किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए।

गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा का मार्ग अपनाया।

  1. फल – प्रतिफल

फल का अर्थ है – किसी प्रयास या काम का सामान्य परिणाम।

प्रतिफल का अर्थ है – कर्म के अनुसार मिलने वाला विशेष या नैतिक परिणाम (अच्छा या बुरा)।

वाक्य –

मेहनत का फल मीठा होता है।

अपने कर्मों का प्रतिफल हमें अवश्य मिलता है।

 

  1. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित करो :-

(क) जब मैं अपने एक मित्र को हमेशा परेशान, नाराज और चिड़चिड़ाते देखता हूँ तब इसी किस्से का स्मरण हो आता है। (वचन बदलो)

उत्तर – जब हम अपने कुछ मित्रों को हमेशा परेशान, नाराज़ और चिड़चिड़ाते देखते हैं तब इसी किस्से का स्मरण हो आता है।

(ख) दुखी होने का कोई कारण नहीं। (प्रश्नवाचक बनाओ)

उत्तर – क्या दुखी होने का कोई कारण है?

(ग) रंग-बिरंगे फूल खिले हैं। (विस्मयादिबोधक बनाओ)

उत्तर – रंग-बिरंगे फूल खिले हैं!

(घ) वह अनपढ़ नौकरानी किताबें और कविताएँ लिखना नहीं जानती थी, पर व्यवहार कुशल अवश्य थी। (लिंग बदलो)

उत्तर – वह अनपढ़ नौकर किताबें और कविताएँ लिखना नहीं जानता था, पर व्यवहारकुशल अवश्य था।

(ङ) है तो वह भी आदमी ही। (सामान्य वाक्य बनाओ)

उत्तर – वह भी एक आदमी है।

  1. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर उनका वाक्यों में प्रयोग करो :-

आग बबूला होना, नुक्ताचीनी करना, टूट पड़ना, चुटकियाँ लेना, कोई चारा न होना

उत्तर – 1. आग बबूला होना

अर्थ – बहुत अधिक क्रोधित हो जाना

वाक्य – मेरी छोटी-सी भूल पर वह आग बबूला हो गया और सबके सामने डाँटने लगा।

  1. नुक्ताचीनी करना

अर्थ – छोटी-छोटी बातों में दोष निकालना

वाक्य – कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर बात में नुक्ताचीनी करते हैं, चाहे कोई कितनी भी मेहनत से काम क्यों न करे।

  1. टूट पड़ना

अर्थ – अचानक झपट पड़ना या हमला कर देना

वाक्य – जैसे ही मिठाइयाँ टेबल पर रखी गईं, बच्चे उन पर टूट पड़े।

  1. चुटकियाँ लेना

अर्थ – मज़ाक में ताना मारना या हँसी उड़ाना

वाक्य – परीक्षा में कम अंक आने पर दोस्तों ने मुझसे चुटकियाँ लेना शुरू कर दिया।

  1. कोई चारा न होना

अर्थ – किसी कार्य को करने के अलावा और कोई उपाय न होना

वाक्य – समय रहते इलाज नहीं मिला, इसलिए ऑपरेशन करना ही आखिरी चारा था।

योग्यता- विस्तार

  1. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥”

कबीर की इन पंक्तियों और पाठ में उल्लिखित दादू की पंक्तियों की तुलना करो।

उत्तर – 1. कबीर की पंक्तियाँ –

“निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥”

भावार्थ – कबीर कहते हैं कि निंदक (आलोचक) को अपने पास रखना चाहिए। वह बिना किसी साधन के हमारे स्वभाव को सुधारता है।

मुख्य विचार – आलोचक हमें आत्मनिरीक्षण और सुधार का अवसर देता है, इसलिए वह हमारे लिए हितैषी है।

  1. दादू की पंक्तियाँ (पाठ से ली गईं) –

“निंदक बाबा वीर हमारा, बिनही कौड़ी बहै बिचारा।

आपन डुबे और को तारे, ऐसा प्रीतम पार उतारे॥”

भावार्थ – दादू कहते हैं कि निंदक तो हमारे वीर गुरु जैसे होते हैं। वे स्वयं निंदा झेलते हैं पर हमें सुधार कर पार लगा देते हैं।

मुख्य विचार – निंदा करने वाला भले ही स्वयं संघर्ष करे, लेकिन वह दूसरों को सुधारने और सँवारने में मदद करता है।

अर्थात् दोनों के दोहे समान अर्थ की ही अभिव्यक्ति करते हैं कि निंदक हमारी उन्नति में हमारी सहायता करते हैं। 

  1. कबीर, रहीम और वृंद के उन नीतिपरक दोहों का संकलन करो जिनमें मीठा बोलने, परनिंदा न करने, प्रेम और विनम्रतापूर्ण व्यवहार करने की बातें कही गई हैं।

उत्तर – कबीर के दोहे

  1. “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय॥”

 – भावार्थ – ऐसी मीठी और मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे दूसरों को शांति मिले और स्वयं का अहं भी समाप्त हो।

  1. “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥”

 – भावार्थ – दूसरों में बुराई देखने गया, लेकिन कोई बुरा नहीं मिला। जब खुद के भीतर झाँका, तो पाया कि सबसे बुरा मैं ही हूँ।

  1. “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥”

 – भावार्थ – केवल ग्रंथ पढ़कर कोई ज्ञानी नहीं होता, सच्चा ज्ञान तो ‘प्रेम’ में है।

4.“कबीरा खड़ा बजार में, माँगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥”

 – भावार्थ – संत वह है जो सबके लिए भलाई की कामना करता है, न किसी से विशेष प्रेम, न वैर।

 

रहीम के दोहे

1.“बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि।

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥”

 – भावार्थ – वाणी अनमोल होती है। जो भी बोले, सोच-समझकर बोले और हृदय से तौलकर ही शब्दों को मुख से निकाले।

2.“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे पे फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ि जाय॥”

 – भावार्थ – प्रेम का संबंध बहुत नाजुक होता है, उसे झटके से नहीं तोड़ना चाहिए। एक बार टूट जाने पर वह जुड़ भी जाए तो उसमें गाँठ रह जाती है।

3.“जैसे तरुवर फल भरे, झुके रहत डाराय।

प्रेम सहित गुणदानियाँ, रहत सदा ही झुकाय॥”

 – भावार्थ – जैसे फलदार वृक्ष झुका रहता है, वैसे ही सज्जन और विनम्र लोग हमेशा नम्रता से रहते हैं।

 

वृंद के दोहे

1.“मीठो बचन प्रसून सम, बात करे रस पाय।

बिगड़े मन अनुराग से, आपहि अनुकूल बनाय॥”

 – भावार्थ – मीठे वचन फूल जैसे होते हैं। प्रेम से कही गई बात से बिगड़ा हुआ मन भी प्रेममय हो जाता है।

2.“वृंद कहा उर आपु को, देखहु बारम्बार।

निज बिनु दोष न दीखते, और सकल संसार॥”

 – भावार्थ – बार-बार अपने मन को देखो। यदि आत्मनिरीक्षण करें तो लगेगा कि सबसे अधिक दोष तो अपने ही हैं, बाकी संसार निर्दोष लगता है।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए –

प्रश्न – काँच के महल में कुत्ते ने क्या देखा?

उत्तर – काँच के महल में कुत्ते ने अपनी ही परछाईं को सैकड़ों कुत्तों के रूप में देखा।

प्रश्न – पहले कुत्ते ने क्या प्रतिक्रिया दी?

उत्तर – पहले कुत्ते ने डरकर भौंकना शुरू किया और अंत में गश खाकर गिर पड़ा।

प्रश्न – दूसरे कुत्ते का व्यवहार कैसा था?

उत्तर – दूसरे कुत्ते का व्यवहार प्रेमपूर्ण था। वह दुम हिलाता रहा और प्रसन्न होकर बाहर चला गया।

प्रश्न – लेखक के मित्र की मुख्य कमजोरी क्या है?

उत्तर – लेखक के मित्र की मुख्य कमजोरी है कि वे हर समय दूसरों की आलोचना करते हैं और खुश नहीं रहते।

प्रश्न – लेखक ने आलोचना के बारे में क्या विचार प्रकट किया है?

उत्तर – लेखक ने आलोचना के बारे में यह विचार प्रकट किया है कि आलोचना प्रेमपूर्वक होनी चाहिए, तभी उसका असर होता है।

प्रश्न – इमर्सन की नौकरानी ने बछड़े को कैसे अंदर किया?

उत्तर – इमर्सन की नौकरानी ने प्यार से अँगूठा बछड़े के मुँह में डालकर उसे अंदर ले गई।

प्रश्न – गांधीजी ने आश्रम को किससे जोड़ा है?

उत्तर – गांधीजी ने आश्रम को एक प्रयोगशाला बताया जहाँ लोग प्रेम से रहते हैं।

प्रश्न – लेखक ने ‘शहद और ज़हर’ के उदाहरण से क्या समझाया?

उत्तर – लेखक ने ‘शहद और ज़हर’ के उदाहरण से यह समझाया है कि प्रेम से ज्यादा असर होता है, कठोरता से नहीं।

प्रश्न – सुकरात के अनुसार सबसे बड़ा मूर्ख कौन है?

उत्तर – सुकरात के अनुसार “जो मूर्ख है और नहीं जानता कि वह मूर्ख है, वह सबसे बड़ा मूर्ख है।”

 

 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन पंक्तियों में लिखिए –

प्रश्न – काँच के महल में दो कुत्तों की प्रतिक्रियाओं में क्या अंतर था?

उत्तर – पहला कुत्ता डर गया और भौंकने लगा जिससे उसे अपनी ही छवि से डर लगने लगा, जबकि दूसरा कुत्ता प्रेम से पूँछ हिलाता रहा और वह प्रसन्न होकर चला गया। यह दिखाता है कि दुनिया हमारे व्यवहार की प्रतिक्रिया देती है।

प्रश्न – लेखक ने अपने मित्र के स्वभाव की तुलना किससे की है?

उत्तर – लेखक ने अपने चिड़चिड़े और आलोचनात्मक मित्र की तुलना अप्रत्यक्ष रूप से पहले कुत्ते से की है, जो हर किसी में दोष देखता है और इसीलिए दुखी रहता है।

प्रश्न – गांधीजी ने अहिंसा को ‘सीमेंट’ क्यों कहा?

उत्तर – गांधीजी ने कहा कि उनका आश्रम एक प्रयोगशाला है जहाँ कठिन स्वभाव वाले लोग भी प्रेम और अहिंसा के सीमेंट से जुड़े रहते हैं, जिससे उनका सामूहिक जीवन संभव हो पाता है।

प्रश्न – लेखक ने रसोइए के भाग जाने का कारण क्या बताया?

उत्तर – रसोइया मालिक की लगातार डाँट और अपमान से तंग आकर भाग गया क्योंकि उसे कभी सराहना नहीं मिली, केवल दोष ही मिले।

प्रश्न – इमर्सन और उनकी नौकरानी की घटना से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर – यह घटना सिखाती है कि प्रेम और व्यवहार-कुशलता से जिद्दी से जिद्दी को भी समझाया जा सकता है, जबकि जबरदस्ती से काम नहीं बनता।

 

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