शिवानी
शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर 1923 को विजया दशमी के दिन राजकोट (गुजरात) में हुआ था। इनका पूरा नाम गौरापंत शिवानी है, पर साहित्य जगत में ये शिवानी नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके पिता अश्विनी कुमार पाण्डेय राजकुमार कॉलेज के प्राचार्य फिर माणबदर और रामपुर रियासत के दीवान भी रहे। इनके माता-पिता संगीतप्रेमी तथा कई भाषाओं के ज्ञाता थे। पितामह हरिराम पाण्डेय संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। शिवानी की किशोरावस्था शांति निकेतन में बीता था। पर पति की असामयिक मृत्यु के पश्चात वे लखनऊ में रहने लगी। कुछ समय के लिए शिवानीजी अमेरिका में बसे अपने पुत्र के परिवार के बीच रहीं। उनका अंतिम समय दिल्ली में बीता, जहाँ 21 मार्च 2003 को वे परलोक सिधारीं।
शिवानीजी एक सशक्त लेखिका थी। उन्होंने कई उपन्यास, कहानियाँ, बाल उपन्यास तथा संस्मरण आदि लिखीं। उनकी पहली रचना ‘नटखट’ में प्रकाशित हुई थी। ‘मैं मुर्गा हूँ’ पहली बार 1951 में ‘धर्मयुग’ पत्रिका में छपी थी। ‘सुनहु तात’ (कहानी), ‘सोने दे’ (आत्मवृत्तात्मक आख्यान ) तथा ‘अतिथि’ (उपन्यास) उनकी बहुचर्चित रचनाओं में से हैं। लखनऊ से प्रकाशित ‘स्वतंत्र भारत’ का चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ की वे नियमित लेखिका थीं। साहित्य सेवा के लिए शिवाजी को भारत सरकार ने 1979 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।
अपराजिता – कहानी का परिचय
अपराजिता शीर्षक कहानी में शारीरिक रूप से अक्षम एक ऐसी महिला के जीवन पर आलोकपात किया गया है जो जीवन की विषम परिस्थितियों का सामना करती हुई अपराजिता बनी रही। शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण डॉ. चन्द्रा को सामान्य लोगों की तरह काम-काज करने में असुविधा होती थी। परन्तु उनके मन में असीम धैर्य और सुदृढ़ इच्छाशक्ति थी। उन्होंने जीवन में आनेवाली सभी बाधाओं और विकट परिस्थितियों का डटकर मुकाबला किया और उन पर विजय प्राप्त कर ली। विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. चन्द्रा ने महत्त्वपूर्ण अवदान दिया। निरंतर साधना के बल पर वे प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच गईं। डॉ. चन्द्रा की जीवन गाथा केवल शारीरिक अक्षम लोगों के लिए ही प्रेरणा- स्रोत नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणाप्रद है जो अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही निराश होकर मार्ग में आनेवाली बाधाओं के समक्ष पराजय स्वीकार कर लेते हैं।
अपराजिता
कभी-कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिला देता है, जिसे देख स्वयं अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगती है। हमें तब लगता है कि भले ही उस अंतर्यामी ने हमें जीवन में कभी अकस्मात् अकारण ही दंडित कर दिया हो किन्तु हमारे किसी अंग को हमसे विच्छिन्न कर हमें उससे वंचित तो नहीं किया। फिर भी हममें से कौन ऐसा मानव है जो अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नहीं ठहराता। मैंने अभी पिछले ही महीने, एक ऐसी अभिशप्त काया देखी है, जिसे विधाता ने कठोरतम दंड दिया है, किन्तु उसे वह नतमस्तक आनन्दी मुद्रा में झेल रही है, विधाता को कोसकर नहीं।
उसकी कोठी का अहाता एकदम हमारे बँगले के अहाते से जुड़ा था। अपनी शानदार कोठी में उसे पहली बार कार से उतरते देखा, तो आश्चर्य से देखती ही रह गई। कार का द्वार खुला, एक प्रौढ़ा ने उतरकर पिछली सीट से एक व्हील चेयर निकाल कर सामने रख दी और भीतर चली गई। दूसरे ही क्षण, धीरे-धीरे बिना किसी सहारे के, कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले धड़ को बड़ी दक्षता से नीचे उतारा, फिर बैसाखियों से ही व्हील चेयर तक पहुँच उसमें बैठ गई और बड़ी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चली गई। मैं फिर नित्य नियत समय पर उसका यह विचित्र आवागमन देखती और आश्चर्यचकित रह जाती ठीक जैसे कोई मशीन बटन खटखटाती अपना काम किए चली जा रही हो।
धीरे-धीरे मेरा उससे परिचय हुआ। कहानी सुनी तो दंग रह गई। नियति के प्रत्येक कठोर आघात को अति अमानवीय धैर्य एवं साहस से झेलती वह बित्ते-भर की लड़की मुझे किसी देवांगना से कम नहीं लगी। मैं चाहती हूँ कि मेरी पंक्तियों को उदास आँखों वाला वह गोरा, उजले वस्त्रों से सज्जित लखनऊ का मेधावी युवक भी पढ़े, जिसे मैंने कुछ माह पूर्व अपनी बहन के यहाँ देखा था। वह आई. ए. एस. की परीक्षा देने इलाहाबाद गया। लौटते समय किसी स्टेशन पर चाय लेने उतरा कि गाड़ी चल पड़ी। चलती ट्रेन में हाथ के कुल्हड़ सहित चढ़ने के प्रयास में गिरा और पहिए के नीचे हाथ पड़ गया। प्राण तो बच गए, पर दायाँ हाथ चला गया। उसी विच्छिन्न भुजा के साथ-साथ धीरे- धीरे वह मानसिक संतुलन भी खो बैठा। पहले दुख भुलाने के लिए नशे की गोलियाँ खाने लगा और अब नूर मंजिल की शरण गही है। केवल एक हाथ खोकर ही उसने हथियार डाल दिए। इधर चंद्रा, जिसका निचला धड़ है निष्प्राण मांसपिंड मात्र, सदा उत्फुल्ल है, चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं, बुद्धिदीप्त आँखों में अदम्य उत्साह, प्रतिपल – प्रतिक्षण भरपूर उत्कट जिजीविषा और फिर कैसी-कैसी महत्वाकांक्षाएँ।
“मैडम, आप लखनऊ जाते ही क्या मुझे ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट से पूछकर यह बताएँगी कि क्या वहाँ आने पर मेरे विषय माइक्रोबायोलॉजी से संबंधित कुछ सामग्री मिल सकती है?”
“मैडम आप कह रही थी कि आपके दामाद हवाई के ईस्ट- वेस्ट सेंटर में हैं। क्या आप उन्हें मेरा बायोडाटा भेजकर पूछ सकेंगी कि मुझे वहाँ की कोई फैलोशिप मिल सकता है?”
यहाँ कभी सामान्य-सी हड्डी टूटने पर या पैर में मोच आ जाने पर ही प्राण ऐसे कंठगत हो जाते हैं जैसे विपत्ति का आकाश ही सिर पर टूट पड़ा है। और इधर लड़की है कि पूरा निचला धड़ सुन्न है, फिर भी बोटी-बोटी फड़क रही है। आजकल वह आई.आई.टी. मद्रास में काम कर रही है।
जन्म के अठारहवें महीने में ही जिसकी गरदन के नीचे का पूरा शरीर पोलियो ने निर्जीव कर दिया हो, उसने किस अद्भुत साहस से नियति को अँगूठा दिखा अपनी थीसिस पर डॉक्टरेट ली होगी।
“मैडम, मैं चाहती हूँ कि कोई मुझे सामान्य-सा सहारा भी न दे। आप तो देखती हैं, मेरी माँ को मेरी कार चलानी पड़ती है। मैंने इसी से एक ऐसी कार का नक्शा बनाकर दिया है, जिससे मैं अपने पैरों के निर्जीव अस्तित्व को भी सजीव बना दूँगी। यह देखिए, मैंने अपनी प्रयोगशाला में अपना संचालन कैसा सुगम बना लिया है। मैं अपना सारा काम अब स्वयं निबटा लेती हूँ।”
उसने मुझे तस्वीरें दिखाईं। समस्त सामग्री उसके हाथों की पहुँच तक ऐसे धरी थी कि निचला धड़ ऊपर उठाए बिना ही वह मनचाही सामग्री मेज पर से उतार सकती थी। किन्तु उसकी आज की इस पटुता के पीछे है एक सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका। स्वयं डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में, “हमने आज तक दो व्यक्तियों द्वारा सम्मिलित रूप में नोबल पुरस्कार पाने के ही विषय में सुना था, किन्तु आज हम शायद पहली बार इस पी- एच.डी. के विषय में भी कह सकते हैं। देखा जाए तो यह डॉक्टरेट भी संयुक्त रूप से मिलनी चाहिए, डॉ. चंद्रा और उनकी अद्भुत साहसी जननी श्रीमती सुब्रह्मण्यम् को। पच्चीस वर्ष तक इस सहिष्णु महिला ने पुत्री के साथ-साथ कैसी कठिन साधना की और इस साधना का सुखद अंत हुआ 1976 में, जब चंद्रा को डॉक्टरेट मिली माइक्रोबायोलॉजी में अपंग स्त्री-पुरुषों में, इस विषय में डॉक्टरेट पाने वाली डॉ. चंद्रा भारतीय हैं। जब इसे सामान्य ज्वर के चौथे दिन पक्षाघात हुआ तो गरदन के नीचे इसका सर्वांग अचल हो गया। भयभीत होकर हमने इसे बड़े-से-बड़े डॉक्टर को दिखाया। सबने एक स्वर में कहा आप व्यर्थ पैसा बरबाद मत कीजिए। आपकी पुत्री जीवनभर केवल गरदन ही हिला पाएगी। संसार की कोई भी शक्ति इसे रोगमुक्त नहीं कर सकती।”
सहसा श्रीमती सुब्रह्मण्यम् का कंठ अवरूद्ध हो गया, फिर वे धीमे स्वर में मुझे बताने लगीं, “मेरे गर्भ में तब इसका भाई आ गया था। इसके भयानक अभिशाप के बावजूद मैंने कभी विधाता से यह नहीं कहा कि प्रभो, इसे उठा लो, इसके इस जीवन से तो मौत भली है। मैं निरंतर इसके जीवन की भीख ही माँगती रही। केवल सिर हिलाकर यह इधर-उधर देख-भर सकती थी। न हाथों में गति थी, न पैरों में, फिर भी मैंने आशा नहीं छोड़ी। एक आर्थोपेडिक सर्जन की बड़ी ख्याति सुनी थी, वहीं ले गई।”
एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपचार चला और एक दिन स्वयं ही इसके ऊपरी धड़ में गति आ गई, हाथ हिलने लगे, नन्हीं उँगलियाँ मुझे बुलाने लगीं। निर्जीव धड़ को मैंने सहारा देकर बैठना सिखा दिया। पाँच वर्ष की हुई, तो मैं ही इसका स्कूल बनी। मेधावी पुत्री की विलक्षण बुद्धि ने फिर मुझे चमत्कृत कर दिया, सरस्वती स्वयं ही जैसे आकर जिह्वाग्र में बैठ गई थी। बंगलौर के प्रसिद्ध माउंट कारमेल में उसे प्रवेश दिलाने में मुझे कॉन्वेंट द्वार पर लगभग धरना ही देना पड़ा।
“नहीं मिसेज सुब्रह्मण्यम्”, मदर ने कहा, “हमें आपसे पूरी सहानुभूति है, पर आप ही सोचिए आपकी पुत्री की व्हील चेयर लेकर कौन पूरे क्लास रूम में घुमाता फिरेगा?”
“आप चिंता न करें मदर, मैं हमेशा उसके साथ रहूँगी।” और फिर पूरी कक्षाओं में अपंग पुत्री की कुरसी की परिक्रमा मैं स्वयं कराती। वे पीरियड – दर – पीरियड उसके पीछे खड़ी रहती। प्रत्येक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चंद्रा ने स्वर्ण पदक जीते। बी.एस.सी. किया, प्राणिशास्त्र में, एम. एस. सी. में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बंगलौर के प्रख्यात इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस में अपने लिए स्पेशल सीट अर्जित की। केवल अपनी निष्ठा, धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक प्रोफेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया। इसी बीच माता-पिता ने पेंसिलवानिया से व्हील चेयर मँगवा दी, जिसे डॉ. चंद्रा स्वयं चलाती हुई पूरी प्रयोगशाला में बड़ी सुगमता से घूम सकती थी। लैदर जैकेट के कठिन जिरह – बख्तर में कसी उस हँसमुख लड़की को देख मुझे युद्ध-क्षेत्र में डटे राणा साँगा का ही स्मरण हो आता था। क्षत-विक्षत शरीर में असंख्य घाव, आभामंडित भव्य मुद्रा।
“मैडम, आप तो लिखती हैं, मेरी ये कविताएँ देखिए। कुछ दम है क्या इनमें?”
मैंने जब वे कविताएँ देखीं, तो आँखें भर आईं। जो उदासी उसके चेहरे पर कभी नहीं आने पाई वह अनजाने में उसकी कविता में छलक आई थी। फिर उसने कढ़ाई-बुनाई के सुंदर नमूने दिखाए। लड़की के दोनों हाथ जैसे दोनों पैरों का भी काम करते हों, निरंतर मशीनी खटखट में चलते रहते हैं। जर्मन भाषा में माता-पुत्री दोनों ने मैक्समूलर भवन से विशेष योग्यता सहित परीक्षा उत्तीर्ण की। गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण कार्ड पाने वाली वह प्रथम अपंग बालिका थी। यही नहीं, भारतीय एवं पाश्चात्य संगीत दोनों में उसकी समान रुचि है। अपने अलबम को अपनी निर्जीव टाँगों पर रख वह मुझे अपने चित्र दिखाने लगी। पुरस्कार ग्रहण करती डॉ. चंद्रा, प्रधानमंत्री के साथ मुस्कराती खड़ी डॉ. चंद्रा, राष्ट्रपति को सलामी देती बालिका चंद्रा और व्हील चेयर में लैदर जैकेट में जकड़ी बैसाखियों का सहारा लेकर डॉक्टरेट ग्रहण करती डॉ. चंद्रा।
“मेरी बड़ी इच्छा थी, मैं डॉक्टर बनूँ। मैं अपंग डॉ. मेरी वर्गीज के सफल जीवन की कहानी पढ़ चुकी थी। परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर भी मुझे मेडिकल में प्रवेश नहीं मिला। कहा गया मेरा निचला धड़ निर्जीव है, मैं एक सफल शल्य-चिकित्सक नहीं बन पाऊँगी। ”किन्तु डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में, “मुझे यह कहने में रंचमात्र भी हिचकिचाहट नहीं होती कि डॉ. चंद्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है। चिकित्सा ने जो खोया है, वह विज्ञान ने पाया।”
चंद्रा के अलबम के अंतिम पृष्ठ पर उसकी जननी का बड़ा-सा चित्र जिसमें वे जे. सी. बंगलौर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट पुरस्कार ग्रहण कर रही हैं- ‘वीर जननी’ का पुरस्कार। बहुत बड़ी-बड़ी उदास आँखें, जिनमें माँ की व्यथा भी है और पुत्री की भी, अपने सारे सुख त्यागकर नित्य छाया बनी पुत्री की पहिया-लगी कुरसी के पीछे चक्र- सी घूमती जननी, नाक के दोनों ओर हीरे की दो जगमगाती लौंगों, अधरों पर विजय का उल्लास, जूड़े में पुष्पवेणी। मेरे कानों में उस अद्भुत साहसी जननी शारदा सुब्रह्मण्यम् के शब्द अभी भी जैसे गूँज रहे हैं, “ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नहीं करता। यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है।”
कठिन शब्दों के अर्थ
क्रम | शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेज़ी अर्थ |
1 | विलक्षण | अद्भुत, असाधारण | Unique, Extraordinary |
2 | रिक्तता | खालीपन, शून्यता | Emptiness, Void |
3 | विच्छिन्न | अलग किया गया, कटा हुआ | Severed, Detached |
4 | नतमस्तक | सिर झुकाकर सम्मान देना | Bowed, Respectful |
5 | कोठी | बड़ा और सुंदर मकान | Mansion |
6 | तटस्थता | निष्पक्षता, भावशून्यता | Neutrality, Detachment |
7 | दक्षता | कुशलता, योग्यता | Skill, Proficiency |
8 | चमत्कृत | आश्चर्यचकित | Amazed |
9 | अभिशप्त | शापित, दुर्भाग्यपूर्ण | Cursed |
10 | जिजीविषा | जीने की तीव्र इच्छा | Strong Will to Live |
11 | विषाद | गहन दुःख, उदासी | Sorrow, Melancholy |
12 | महत्वाकांक्षा | बड़ी इच्छा, ऊँचा लक्ष्य | Ambition |
13 | फैलोशिप | छात्रवृत्ति, अध्ययन हेतु वित्तीय सहायता | Fellowship |
14 | प्रयोगशाला | प्रयोग करने का स्थान | Laboratory |
15 | पटुता | कुशलता, निपुणता | Dexterity, Skill |
16 | यातनाप्रद | पीड़ादायक, कष्टकारी | Painful, Agonizing |
17 | सहिष्णु | सहनशील, धैर्यवान | Tolerant, Patient |
18 | साधना | कठिन अभ्यास, समर्पित प्रयास | Rigorous Practice, Devotion |
19 | पक्षाघात | शरीर का पक्ष का लकवा | Paralysis |
20 | निर्जीव | प्राणहीन, बिना जान | Lifeless |
21 | अचल | हिलने-डुलने में असमर्थ | Immobile |
22 | परिक्रमा | चारों ओर घूमना | Circumambulation, Going Around |
23 | स्वर्ण पदक | प्रथम स्थान पर मिलने वाला सोने का पदक | Gold Medal |
24 | निष्ठा | सच्ची लगन, समर्पण | Dedication, Devotion |
25 | जिरह-बख्तर | कवच, सुरक्षा के लिए पहना जाने वाला वस्त्र | Armor |
26 | हँसमुख | प्रसन्न चेहरा, मुस्कराता चेहरा | Cheerful, Smiling |
27 | क्षत-विक्षत | घायल, टूटा-फूटा | Wounded, Mutilated |
28 | उदासी | मन का दुःखी होना | Sadness |
29 | छलकना | बाहर आ जाना, बह निकलना | Overflow, Spill |
30 | मशीनी खटखट | लगातार मशीन जैसा चलना | Mechanical Ticking, Repetitive Work |
31 | अलबम | फोटो या चित्रों की पुस्तक | Photo Album |
32 | सलामी | सम्मान प्रकट करने की क्रिया | Salute |
33 | शल्य-चिकित्सक | ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर | Surgeon |
34 | योगदान | योगदान देना, हिस्सा लेना | Contribution |
35 | वीर जननी | साहसी माँ | Brave Mother |
36 | व्यथा | पीड़ा, दुःख | Pain, Suffering |
37 | चक्र-सी घूमती | लगातार परिक्रमा करने वाली | Revolving like a wheel |
38 | विजय का उल्लास | जीत की खुशी | Joy of Victory |
39 | द्वार | दरवाजा | Door |
40 | बंद करना | बंद कर देना | To Close |
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
विलक्षण = विशेष प्रकार के, अद्भुत
काया = शरीर
रिक्तता = खालीपन
अंतर्यामी = मन की बातें जाननेवाला, भगवान
अकस्मात् = अचानक
विधाता = ईश्वर
अभिशप्त = अभिशाप से ग्रस्त
नतमस्तक = सिर झुकाकर
प्रौढ़ा = अधेड़ उम्र की महिला
आवागमन = आने-जाने का कार्य
नियति = भाग्य
आघात = चोट
देवांगना = देवलोक में रहनेवाली महिला, देवी, अप्सरा
बित्ते भर की = छोटी कद की
मेधावी = बुद्धिमान
प्रयास = कोशिश
विछिन्न = अलग
नूर मंजिल = लखनऊ में स्थित मानसिक रोगियों का अस्पताल
उत्फुल्ल = प्रसन्न
विषाद = दुःख, उदासी
उत्कट = तीव्र, प्रबल
जिजीविषा = जीने की इच्छा
माइक्रोबायोलॉजी = विज्ञान की एक शाखा जिसमें सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता है
कंठगत = गले में अटके हुए
पक्षाघात = लकवा मारने का रोग
पटुता = निपुणता
सर्वांग = सारे अंग, पूरा शरीर
यातनाप्रद = कष्ट देने वाला
कंठ अवरुद्ध होना = गला रुँधना, भावातिरेक के कारण बोल न पाना
उपचार = इलाज
ऑर्थोपेडिक = हड्डियों से संबंधित
निष्ठा = दृढ़ता, निश्चयतापूर्वक
जिरह – बख्तर = कवच
क्षत-विक्षत = बुरी तरह से घायल
आभामंडित = तेज से भरा हुआ
रंचमात्र = जरा भी
व्यथा = दुःख, कष्ट
उल्लास = खुशी, उमंग
अपराजिता कहानी का सार
यह प्रेरणादायक कथा डॉ. चंद्रा नामक एक अपंग युवती की असाधारण जीवटता, साहस और आत्मविश्वास की कहानी है। बचपन में ही पोलियो के कारण उसका पूरा निचला शरीर निष्क्रिय हो गया था, परंतु उसने अपनी इस शारीरिक कमजोरी को कभी अपनी शक्ति पर हावी नहीं होने दिया। व्हील चेयर पर रहते हुए उसने न केवल शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
उसकी माता श्रीमती सुब्रह्मण्यम ने भी चंद्रा के संघर्ष में अद्भुत धैर्य, ममता और दृढ़ता का परिचय दिया। माँ-बेटी की यह जोड़ी निरंतर संघर्ष करती रही और समाज के अनेक विरोधों को पीछे छोड़ती गई। चंद्रा न केवल विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ी, बल्कि संगीत, कढ़ाई, लेखन और भाषाओं में भी दक्षता हासिल की।
यह कहानी यह संदेश देती है कि यदि मनुष्य में जिजीविषा हो, तो विकलांगता भी उसकी राह नहीं रोक सकती। डॉ. चंद्रा का जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने का साहस रखते हैं।
बोध एवं विचार
(अ) सही विकल्प का चयन करो :-
- हम अपनी विपत्ति के लिए हमेशा दोषी ठहराते हैं-
(क) परिवार वालों को
(ग) विधाता को
(ख) अपने आप को
(घ) अपने दुश्मन को
उत्तर – (ग) विधाता को
- लेखिका से मुलाकात के समय डॉ. चन्द्रा किस संस्थान के साथ जुड़ी हुई थी।
(क) भारतीय विज्ञान संस्थान, मुंबई
(ख) आई.आई.टी., मद्रास
(ग) आई.आई.टी., खड़गपुर
(घ) भारतीय आयुर्वेद संस्थान, दिल्ली
उत्तर – (ख) आई.आई.टी., मद्रास
- अपनी शानदार कोठी में उसे पहली बार कार से उतरते देखा, तो आश्चर्य से देखती ही रह गई’- लेखिका कार से उतरती डॉ. चन्द्रा को आश्चर्य से देखती ही रह गई क्योंकि-
(क) लेखिका को वह कुछ जानी-पहचानी सी लग रही थी।
(ख) डॉ. चन्द्रा बहुत ही प्रसिद्ध महिला थी और लेखिका ने अखबार में उसकी तस्वीर देखी थी।
(ग) शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद डॉ. बिना किसी के सहारे कार से उतरकर व्हील चेयर में बैठी और कोठी के अन्दर चली गई।
(घ) अपने नयी पड़ोसिन के प्रति उसके मन में स्वाभाविक कौतूहल जन्मी थी।
उत्तर – (ग) शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद डॉ. बिना किसी के सहारे कार से उतरकर व्हील चेयर में बैठी और कोठी के अन्दर चली गई।
- ‘मैंने इसी से एक ऐसी कार का नक्शा बनाकर दिया है, जिससे मैं अपने पैरों के निर्जीव अस्तित्व को भी सजीव बना दूँगी’ – डॉ. चन्द्रा ने नई कार की नक्शा बनायी थी क्योंकि-
(क) उस समय वे कुछ नया आविष्कार करना चाहती थीं जिससे उन्हें विज्ञान जगत में प्रतिष्ठा मिले।
(ख) डॉ. चन्द्रा चाहती थीं कि कोई उसे सामान्य – सा सहारा भी न दे और इसलिए वे ऐसी कार बनाना चाहती थीं जिसे वे स्वयं चला सकतीं।
(ग) उन्होंने सोचा था कि उस नयी कार चलाने पर उनके पैर धीरे-धीरे ठीक हो जाएँगे।
(घ) उनकी कार माँ को चलानी पड़ती थी और वे माँ को कष्ट देना नहीं चाहती थीं।
उत्तर – (ख) डॉ. चन्द्रा चाहती थीं कि कोई उसे सामान्य – सा सहारा भी न दे और इसलिए वे ऐसी कार बनाना चाहती थीं जिसे वे स्वयं चला सकतीं।
- डॉ. चन्द्रा के एलबम के अंतिम पृष्ठ पर एक चित्र था, जिसमें
(का) वह डॉक्टरेट की उपाधि ले रही थी।
(ख) उनकी माँ जे. सी. बंगलौर द्वारा प्रदत्त ‘वीर जननी’ पुरस्कार ग्रहण कर रही थीI
(ग) उनके परिवार को सभी सदस्य थे।
(घ) वह राष्ट्रपति से ‘गर्ल गाइड’ का पुरस्कार ले रही थी।
उत्तर – (ख) उनकी माँ जे. सी. बंगलौर द्वारा प्रदत्त ‘वीर जननी’ पुरस्कार ग्रहण कर रही थीI
(आ) पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :-
- हमें कब अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगती है?
उत्तर – हमें तब अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगती है जब हम किसी ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिलते हैं जो कठोरतम विपत्तियों को भी धैर्य और साहस से झेलता है।
- डॉ. चन्द्रा के अध्ययन का विषय क्या था?
उत्तर – डॉ. चन्द्रा के अध्ययन का विषय माइक्रोबायोलॉजी था।
- लेखिका से डॉ. चन्द्रा ने हवाई के ईस्ट-वेस्ट सेंटर में क्या पूछने का अनुरोध किया था?
उत्तर – डॉ. चन्द्रा ने लेखिका से अनुरोध किया था कि वह उनके बायोडाटा को हवाई के ईस्ट-वेस्ट सेंटर भेजकर यह पूछें कि क्या उन्हें वहाँ की कोई फैलोशिप मिल सकती है।
- डॉ. चन्द्रा की स्कूली शिक्षा कहाँ तक हुई थी?
उत्तर – डॉ. चन्द्रा की स्कूली शिक्षा बंगलौर के माउंट कारमेल स्कूल में हुई थी।
- डॉ. चन्द्रा ने किस संस्थान से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी?
उत्तर – डॉ. चन्द्रा ने बंगलौर के प्रसिद्ध इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी।
(इ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :-
- लेखिका ने जब डॉ. चन्द्रा को पहली बार कार से उतरते देखा तो उनके मन में कैसा भाव उत्पन्न हुआ था? अपने शब्दों में लिखो
उत्तर – जब लेखिका ने पहली बार डॉ. चन्द्रा को बिना किसी सहायता के कार से उतरकर व्हील चेयर पर बैठते देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गईं। उनके मन में गहरी जिज्ञासा और सम्मान का भाव उत्पन्न हुआ क्योंकि डॉ. चन्द्रा की आत्मनिर्भरता उन्हें असाधारण लगी।
- लेखिका यह क्यों चाहती है कि ‘लखनऊ का वह मेधावी युवक’ डॉ. चन्द्रा के संबंध में लिखी उनकी पंक्तियों को पढ़े?
उत्तर – लेखिका चाहती हैं कि लखनऊ का वह युवक, जिसने केवल एक हाथ खोकर जीवन से हार मान ली, डॉ. चन्द्रा की प्रेरणादायक कहानी पढ़े ताकि उसमें भी जिजीविषा और साहस जाग सके।
- ‘अभिशप्त काया’ कहकर लेखिका डॉ. चन्द्रा की कौन-सी विशेषता स्पष्ट करना चाहती है?
उत्तर – ‘अभिशप्त काया’ कहकर लेखिका डॉ. चन्द्रा की गंभीर शारीरिक अक्षमता की ओर इशारा करती हैं, लेकिन साथ ही इस शरीर में बसे हुए अद्भुत आत्मबल और साहस को भी उजागर करना चाहती हैं।
- डॉ. चन्द्रा की कविताएँ पढ़कर लेखिका की आँखें क्यों भर आईं?
उत्तर – डॉ. चन्द्रा की कविताओं में वह उदासी और संवेदना छलक रही थी जो उनके चेहरे पर कभी दिखाई नहीं दी। यही भावनात्मक विरोधाभास लेखिका को गहराई से छू गया और उनकी आँखें भर आईं।
- शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. चन्द्रा की उपलब्धियों का उल्लेख करो।
उत्तर – डॉ. चन्द्रा ने विद्यालय की हर परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया, बी.एस.सी. और एम.एस.सी. में स्वर्ण पदक प्राप्त किए और भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर से माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
- विज्ञान के अतिरिक्त और किन-किन विषयों में डॉ. चन्द्रा की रुचि थी?
उत्तर – विज्ञान के अतिरिक्त डॉ. चन्द्रा को कविता लेखन, कढ़ाई-बुनाई, भारतीय एवं पाश्चात्य संगीत और जर्मन भाषा में रुचि थी। उन्होंने मैक्समूलर भवन से जर्मन भाषा की परीक्षा विशेष योग्यता से पास की थी।
- डॉ. चन्द्रा की माता कहाँ तक ‘वीर जननी पुरस्कार’ की हकदार है? – अपना विचार स्पष्ट करो।
उत्तर – डॉ. चन्द्रा की माता पूर्ण रूप से ‘वीर जननी पुरस्कार’ की हकदार हैं क्योंकि उन्होंने न केवल अपनी अपंग पुत्री का जीवन समर्पित भाव से सँवारा, बल्कि हर मोड़ पर उसका साथ देकर उसकी प्रतिभा को उभरने का अवसर भी दिया।
- ‘चिकित्सा ने जो खोया है वह विज्ञान ने पाया’- यह किसने और क्यों कहा था?
उत्तर – यह कथन डॉ. चन्द्रा के प्रोफेसर ने कहा था। उन्होंने यह इसलिए कहा क्योंकि चंद्रा शारीरिक अक्षमता के कारण डॉक्टर नहीं बन सकीं, लेकिन उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी में अद्वितीय शोध करके विज्ञान को एक महान योगदान दिया।
(ई). आशय स्पष्ट करो (लगभग 100 शब्दों में) :-
(क) नियति के प्रत्येक कठोर आघात को अति अमानवीय धैर्य एवं साहस से झेलती वह बित्ते भर की लड़की मुझे किसी देवांगना से कम नहीं लगी।
उत्तर – इस पंक्ति में लेखिका ने डॉ. चन्द्रा की विलक्षण साहसिकता और सहनशीलता की प्रशंसा की है। जीवन ने उन्हें कई विकट परिस्थितियों से गुज़ारा—शारीरिक अपंगता, संघर्ष और चुनौतियाँ— लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं, उस उम्र में उन्होंने अपार पीड़ा को सहा और फिर भी शिक्षा, साहित्य और विज्ञान में महान उपलब्धियाँ अर्जित कीं। लेखिका को वह एक सामान्य बालिका नहीं, बल्कि दिव्य गुणों से युक्त एक देवी के समान प्रतीत होती हैं, जो जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए भी आशा और प्रेरणा की मिसाल बनीं।
(ख) ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नहीं करता। यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि जब हमारे जीवन में कोई अवसर या रास्ता बंद हो जाता है, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि ईश्वर हमें कोई न कोई नया अवसर अवश्य प्रदान करता है। डॉ. चन्द्रा डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन शारीरिक सीमाओं के कारण वह संभव नहीं हो सका। फिर भी उन्होंने अपने भीतर की प्रतिभा को पहचानकर विज्ञान, साहित्य और भाषा के क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की। यह कथन हमें आशा, धैर्य और कर्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, यह सिखाता है कि हर अंत के साथ एक नई शुरुआत छिपी होती है।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
- हिंदी में अंग्रेजी की स्वर ध्वनि ‘ऑ’ का आगम हुआ। यद्यपि इसका
उच्चारण हिंदी की ध्वनि ‘औ’ की भाँति होता है परंतु वास्तव में यह ‘आँ’ है ‘औ’ नहीं। इसमें मुख को थोड़ा गोलाकार करना पड़ता है। जैसे- काल (समय), कॉल (बुलावा), कौल (शपथ )। तीनों के उच्चारण और अर्थ में अंतर दिखाई देता है। निम्नलिखित शब्दों को बोलकर पढ़ो :
डॉक्टर, कॉलेज, बॉल, कॉन्वेंट ऑफ
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- पाठ में कुछ ऐसे शब्द आए हैं जिनका अर्थ एक से नहीं, अनेक शब्दों से अर्थात् वाक्यांश से स्पष्ट हो सकता है।
जैसे- ‘जिजीविषा’ अर्थात् जिसमें जीने की इच्छा हो।
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ वाक्यांश में दो :-
अभिशप्त, आभामंडित, सुदीर्घ, निष्प्राण, सहिष्णु
उत्तर – अभिशप्त (जिसे शाप मिला हो; दुख या कष्ट से ग्रस्त)
अर्थ – शापग्रस्त, दुख भोगने वाला
वाक्य – जीवनभर अभिशप्त अवस्था में रहकर भी डॉ. चन्द्रा ने हिम्मत नहीं हारी।
आभामंडित (जिसके चारों ओर तेज़ या दिव्यता का प्रकाश फैला हो)
अर्थ – तेजोमय, प्रकाश से घिरा हुआ
वाक्य – उनके चेहरे पर आत्मविश्वास का ऐसा आभामंडित था कि हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
सुदीर्घ (बहुत लंबा या विस्तृत)
अर्थ – बहुत लंबा, दीर्घकालीन
वाक्य – उन्होंने सुदीर्घ संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाई।
निष्प्राण (जिसमें जान न हो; प्राणहीन)
अर्थ – निर्जीव, प्राण रहित
वाक्य – कमरे में फैली हुई किताबें और निष्प्राण दीवारें उसके अकेलेपन को दर्शा रही थीं।
सहिष्णु (जो सहन करने की क्षमता रखता हो)
अर्थ – सहनशील, धैर्यवान
वाक्य – डॉ. चन्द्रा का व्यक्तित्व अत्यंत सहिष्णु और शांतिपूर्ण था।
योग्यता- विस्तार
- ‘अपराजिता’ शीर्षक पाठ में शारीरिक अक्षमता के बावजूद डॉ. चन्द्रा किस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरने में सफल हुई इसके बारे में हम पढ़ चुके। ऐसे ही एक और व्यक्ति हैं डॉ. स्टीफेन हॉकिंग जिन्होंने डॉ. चन्द्रा की तरह ही विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इनके बारे में पढ़ो और संक्षेप में लिखकर कक्षा में सुनाओ।
उत्तर – डॉ. स्टीफेन हॉकिंग – एक प्रेरणादायक वैज्ञानिक व्यक्तित्व
डॉ. स्टीफेन हॉकिंग एक विश्वप्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने ब्रह्मांड, ब्लैक होल और समय की प्रकृति को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें मात्र 21 वर्ष की उम्र में एक गंभीर बीमारी एएलएस (Amyotrophic Lateral Sclerosis) हो गई थी, जिससे उनका शरीर धीरे-धीरे चलने-फिरने में असमर्थ हो गया।
शारीरिक रूप से लगभग पूरी तरह अक्षम होने के बावजूद, उन्होंने अपनी बौद्धिक शक्ति से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “A Brief History of Time” विज्ञान को आम लोगों के लिए सरल भाषा में समझाने का अद्भुत प्रयास थी।
डॉ. हॉकिंग ने साबित किया कि शारीरिक सीमाएं हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं—अगर हमारी सोच और संकल्प मजबूत हो। वे आज भी पूरी दुनिया के लिए अपराजेय साहस और बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं।
- शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार के प्रयास की जानकारी हासिल करो। अपने इलाके में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की सहायता के लिए काम करनेवाली सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं के बारे में भी जानने का प्रयास करो।
उत्तर – सरकार द्वारा दिव्यांगों के लिए प्रयास
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities)
यह केंद्र सरकार का विभाग है जो दिव्यांगों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाता है।
सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign)
इस योजना का उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों, सरकारी कार्यालयों और परिवहन व्यवस्था को दिव्यांगों के लिए अनुकूल बनाना है।
राष्ट्रीय वयोजन और दिव्यांगजन पुनर्वास संस्थान (NIEPID, NIEPMD, NIVH, NIRTAR आदि)
ये संस्थान विशेष रूप से दिव्यांगों की शिक्षा, पुनर्वास, और प्रशिक्षण के लिए काम करते हैं।
UDID कार्ड (Unique Disability ID)
यह पहचान पत्र सभी योजनाओं और सुविधाओं के लाभ लेने के लिए अनिवार्य है।
दिव्यांगजन कौशल विकास योजना
इसमें दिव्यांग व्यक्तियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे वे रोज़गार प्राप्त कर सकें।
कुछ प्रमुख संस्थाएँ (राष्ट्रीय स्तर पर)
अलिम्को (ALIMCO – Artificial Limbs Manufacturing Corporation of India)
कृत्रिम अंग, व्हील चेयर आदि निर्माण कर दिव्यांगों को उपलब्ध कराता है।
एन.जी.ओ. – हेल्पेज इंडिया, सक्षम, नास (NAAS), दृष्टि फाउंडेशन
ये संस्थाएँ शिक्षा, चिकित्सा, और व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहायता करती हैं।
- ‘शारीरिक अक्षमता प्रतिभा विकास के बाधक तत्त्व नहीं है’। — इस विषय पर कक्षा में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करो।
उत्तर – छात्र इसे अपने शिक्षक की सहायता से पूरा करें।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अत्यंत संक्षिप्त में लिखिए –
- डॉ. चंद्रा को कौन-सी बीमारी ने ग्रसित किया था?
उत्तर – पोलियो ने।
- डॉ. चंद्रा का निचला शरीर क्यों निष्क्रिय हो गया था?
उत्तर – पोलियो के कारण।
- डॉ. चंद्रा की माँ का नाम क्या था?
उत्तर – श्रीमती शारदा सुब्रह्मण्यम।
- डॉ. चंद्रा को किस विषय में डॉक्टरेट प्राप्त हुई थी?
उत्तर – माइक्रोबायोलॉजी में।
- चंद्रा को कब पक्षाघात हुआ?
उत्तर – अठारहवें महीने में।
- डॉ. चंद्रा किस प्रकार की गाड़ी चलाना चाहती थीं?
उत्तर – एक विशेष रूप से अनुकूलित कार।
- डॉ. चंद्रा का शोधकार्य किस संस्थान में हुआ?
उत्तर – बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में।
- डॉ. चंद्रा को शोध कार्य में किस प्रोफेसर का मार्गदर्शन मिला?
उत्तर – प्रोफेसर सेठना का।
- डॉ. चंद्रा के माता-पिता ने विदेश से क्या मँगवाया था?
उत्तर – एक विशेष व्हील चेयर।
- चंद्रा को बचपन में स्कूल में प्रवेश किस संघर्ष से मिला?
उत्तर – उसकी माँ ने स्कूल के सामने धरना दिया।
- चंद्रा ने राष्ट्रपति का कौन-सा सम्मान प्राप्त किया था?
उत्तर – गर्ल गाइड में स्वर्ण कार्ड।
- डॉ. चंद्रा को कौन-सी भाषाओं का ज्ञान था?
उत्तर – जर्मन व अंग्रेज़ी।
- डॉ. चंद्रा ने कौन-कौन से अन्य कार्य सीखे थे?
उत्तर – कढ़ाई-बुनाई, कविता लेखन, संगीत।
- माँ और बेटी ने कौन-सी भाषा एक साथ सीखी थी?
उत्तर – जर्मन भाषा।
- डॉ. चंद्रा की तुलना किस ऐतिहासिक योद्धा से की गई है?
उत्तर – राणा साँगा से।
- डॉ. चंद्रा के जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा कौन थीं?
उत्तर – उनकी माँ।
- डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर ने किन दो लोगों को संयुक्त रूप से डॉक्टरेट का पात्र माना?
उत्तर – डॉ. चंद्रा और उनकी माँ।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों मेन लिखिए –
- डॉ. चंद्रा को डॉक्टर बनने की अनुमति क्यों नहीं मिली?
उत्तर – चिकित्सा संस्थानों ने यह कहकर मना कर दिया कि वह शल्य-चिकित्सा में सफल नहीं हो पाएंगी क्योंकि उनका निचला शरीर निष्क्रिय है। इसके बावजूद उन्होंने विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान दिया।
- श्रीमती सुब्रह्मण्यम ने अपनी बेटी के लिए क्या-क्या त्याग किए?
उत्तर – उन्होंने 25 वर्षों तक बेटी के साथ रहकर उसे जीवन में आगे बढ़ाया, स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए संघर्ष किया, क्लासों में साथ-साथ रहीं और हर पल उसका संबल बनी रहीं।
- डॉ. चंद्रा ने अपनी प्रयोगशाला में क्या विशेष व्यवस्था की थी?
उत्तर – उन्होंने अपने प्रयोग की समस्त सामग्री को अपनी पहुँच में इस तरह रखा था कि उन्हें निचले शरीर का उपयोग न करना पड़े और वह स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
- लेखिका ने आईएएस अभ्यर्थी युवक की तुलना डॉ. चंद्रा से क्यों की?
उत्तर – युवक ने केवल एक हाथ गंवाकर हार मान ली थी, जबकि चंद्रा ने पूरा निचला शरीर निष्क्रिय होने पर भी जीवन में निरंतर प्रगति की।
- डॉ. चंद्रा की कविताओं में कौन-सा भाव प्रकट होता है?
उत्तर – उनकी कविताओं में उनके चेहरे पर न दिखने वाला विषाद अनजाने में छलक आता है; ये कविताएँ उनकी गहरी अनुभूतियों और भावनात्मक संघर्ष को प्रकट करती हैं।
- डॉ. चंद्रा को कब और किस विषय में डॉक्टरेट मिली?
उत्तर – उन्हें 1976 में माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि मिली, और वे इस विषय में भारत की पहली अपंग महिला डॉक्टर बनीं।
- ‘ईश्वर सभी द्वार एक साथ बंद नहीं करता‘—इस कथन का अर्थ क्या है?
उत्तर – यह कहावत दर्शाती है कि विपत्ति में भी ईश्वर कोई न कोई आशा की राह अवश्य खोल देता है, जैसे चंद्रा के जीवन में भी हुआ।