महादेवी वर्मा
आधुनिक हिंदी काव्य – साहित्य के अंतर्गत बहनेवाली छायावादी काव्य- धारा की चार प्रमुख विभूतियों में कवयित्री महादेवी वर्मा अन्यतम हैं। आपकी कविताओं में सर्वव्यापी परम सत्ता के पति विरहानुभूति की तीव्रता परिलक्षित होती है। इस आधार पर कृष्ण- प्रेम दीवानी मीराँबाई के साथ तुलना करते हुए आपको आधुनिक युग की मीराँ कहा जाता है। अपने प्रियतम अज्ञात सत्ता के प्रति तीव्र विरहानुभूति या रहस्यानुभूति के कारण आप रहस्यवादी कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हैं। अपने काव्य को आराध्य की विरहानुभूति और व्यक्तिगत दुःख-वेदना की अभिव्यक्ति में सीमित न रखकर महादेवी वर्माजी ने उसे लोक कल्याणकारी करुणा भाव से जोड़ दिया है। इन्हीं गुणों के कारण उनकी काव्य- रचनाएँ हिंदी – पाठकों को विशेष प्रिय रही हैं।
कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई. को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। उनके पिता-माता गोविंद प्रसाद वर्मा और हेमरानी वर्मा दोनों उदार विचारवाले थे। छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही महादेवीजी का विवाह हुआ था, परन्तु वैवाहिक संबंध आगे बना नहीं रहा। आपने शिक्षा और साहित्य की सेवा में अपने को समर्पित कर दिया। प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत और दर्शन – शास्त्र के साथ बी.ए. करने के पश्चात् आपने 1933 ई. को संस्कृत में एम.ए. किया। इसके बाद उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या के रूप में अपने कर्म- जीवन का श्रीगणेश किया। महादेवी वर्मा ने जीवन भर शिक्षा और साहित्य की साधना की। 1987 ई. को आपका स्वर्गवास हुआ।
महादेवी वर्माजी ने गद्य और पद्य दोनों शैलियों में सहित्य की रचना की है। उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’। ‘पद्मश्री’ उपाधि से सम्मानित महादेवी वर्मा को ‘यामा’ काव्य-संकलन पर ‘ज्ञापपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उनकी गद्य- रचनाओं में ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ और ‘पथ के साथी’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आपकी काव्य-भाषा संस्कृत-निष्ठ खड़ीबोली है, जो कोमलता, मधुरता, गेयता आदि गुणों से संपन्न है।
मुरझाया फूल – कविता का परिचय
मुरझाया फूल शीर्षक कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा ने कली के खिलकर फूल बनने से लेकर मुरझाते हुए भूमि पर गिरने तक का आकर्षक वर्णन किया है। कली और खिले फूल के प्रति सब आकर्षित होते हैं, जबकि मुरझाए फूल के प्रति उनका कोई आकर्षण नहीं रहता। यह संसार की स्वार्थपरता है, परंतु इससे बेखबर रहकर फूल अपना सर्वस्व दान करते हुए सबको हर्षाता जाता है। यहाँ कवयित्री ने प्रकारान्तर से मानव-जीवन की बात करते हुए महत्त्वपूर्ण संदेश दिया है।
मुरझाया फूल
था कली के रूप शैशव
में अहा, सूखे सुमन।
हास्य करता था, खिलाता
अंक में तुझको पवन॥
खिल गया जब पूर्ण तू,
मंजूल सुकोमल फूल बन।
लुब्ध मधु के हेतु मँडराने
लगे, उड़ते भ्रमर॥
स्निग्ध किरणें चंद्र की
तुझको हँसाती थीं सदा
ओस मुक्ता – जाल से
शृंगारती थी सर्वदा॥
वायु पंखा झल रही,
निद्रा विवश करती तुझे।
यत्न माली का रहा
आनंद से भरता तुझे॥
कर रहा अठखेलियाँ
इतरा सदा उद्यान में।
अंत का यह दृश्य आया,
था कभी क्या ध्यान में ॥
सो रहा अब तू धरा पर
शुष्क बिखराया हुआ।
गंध, कोमलता नहीं
मुख-मंजु मुरझाया हुआ।
आज तुझको देखकर
चाहक भ्रमर आता
नहीं। वृक्ष भी खोकर तुझे
हा, अश्रु बरसाता नहीं॥
जिस पवन ने अंक में
ले प्यार था तुझको किया।
तीव्र झोंके से सुला
उसने तुझे भू पर दिया॥
कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन।
किंतु रोता कौन है
तेरे लिए दानी सुमन?
मत व्यथित हो पुष्प, किसको
सुख दिया संसार ने?
स्वार्थमय सबको बनाया,
है यहाँ करतार ने॥
विश्व में हे पुष्प! तू
सबके हृदय भाता रहा।
दान कर सर्वस्व फिर भी,
हाय, हरषाता रहा।
जब न तेरी ही दशा पर,
दुःख हुआ संसार को!
कौन रोएगा सुमन,
हमसे मनुज निस्सार को?
मुरझाया फूल – व्याख्या सहित
01
था कली के रूप शैशव
में अहा, सूखे सुमन।
हास्य करता था, खिलाता
अंक में तुझको पवन॥
खिल गया जब पूर्ण तू,
मंजूल सुकोमल फूल बन।
लुब्ध मधु के हेतु मँडराने
लगे, उड़ते भ्रमर॥
शब्दार्थ –
कली – फूल का अपरिपक्व रूप, जिसे बाद में फूल बनना होता है।
शैशव – बाल्यावस्था या प्रारंभिक अवस्था।
सूखे सुमन – सूखा हुआ फूल (यहाँ फूल का सूखापन उस अवस्था की ओर इशारा करता है, जब फूल पहले से मुरझा या सुखा हुआ था)।
हास्य – हँसी, खुशी।
अंक – गोदी, पांव (यहाँ अंक का मतलब उस जगह से है, जहाँ फूल को हवा ने संवारा और सहेजा)।
पवन – हवा।
पूर्ण – पूरा, सम्पूर्ण।
मंजूल – वह जो पूरा और सुंदर रूप से खिल चुका हो।
सुकोमल – कोमल और सुंदर।
फूल – फूल, यहाँ पर पूर्ण रूप से विकसित फूल का संकेत।
लुब्ध – आकर्षित, ललचाया हुआ।
मधु – शहद (यहाँ यह फूल के रस का प्रतीक है)।
मँडराने – उड़ते हुए इधर-उधर घूमना।
भ्रमर – मधुमक्खी।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवयित्री यह कह रही हैं कि फूल पहले कली के रूप में थी, जैसे शैशव अवस्था में बच्चा होता है। उस समय वह पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था और सूखा हुआ था, जैसे उसकी सुंदरता अभी प्रकट नहीं हुई थी। कवयित्री यहाँ हवा (पवन) को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हवा फूल को अपनी गोदी में खिलाती थी, जैसे वह उस फूल को प्यार और देखभाल कर रही हो और उस फूल को अपने अंक में खिलाकर खुशी दे रही थी। पर जैसे ही फूल पूरी तरह से खिल गया, वह एक सुंदर और कोमल फूल बन गया। फूल अब अपने सम्पूर्ण रूप में सुंदरता का प्रतीक बन चुका था। जैसे ही फूल ने अपनी सुंदरता और मिठास से मधुमक्खियों (भ्रमरों) को आकर्षित किया, वे फूल के पास आईं और फूल के रस का आनंद लेने के लिए उसके चारों ओर मँडराने लगीं।
विशेष –
कवयित्री इन पंक्तियों में फूल के जीवन चक्र का चित्रण कर रही हैं। शुरुआत में, वह कली के रूप में था, जो बाद में पूरी तरह से खिलकर एक सुंदर और कोमल फूल बन जाता है। उसकी सुंदरता और रस से भ्रमर उसे ललचाकर उसे घेरे रहते हैं। यह प्रकृति के अद्भुत सृजन का उदाहरण है।
02
स्निग्ध किरणें चंद्र की
तुझको हँसाती थीं सदा
ओस मुक्ता – जाल से
शृंगारती थी सर्वदा॥
वायु पंखा झल रही,
निद्रा विवश करती तुझे।
यत्न माली का रहा
आनंद से भरता तुझे॥
शब्दार्थ –
स्निग्ध – कोमल, मुलायम।
किरणें – सूर्य या चंद्रमा की रौशनी की किरणें।
चंद्र – चाँद।
हँसाती – हँसी लाने वाली, खुश करने वाली।
ओस – ताजे घास या फूलों पर गिरने वाली बूँदें (सुबह के समय अक्सर होती हैं)।
मुक्ता – मोती।
जाल – जाल, यहाँ पर ओस के छोटे-छोटे मोती जैसे बूँदों का संकेत हैं।
शृंगारती – सजा रही थी, आभूषणों से सजाने का काम कर रही थी।
वायु – हवा
पंखा – हवा करने वाला साधन
निद्रा – नींद
विवश – मजबूर, शक्तिहीन
यत्न – प्रयास, मेहनत।
माली – बागवानी करने वाला व्यक्ति।
आनंद – खुशी, सुख।
व्याख्या –
इस पंक्ति में महादेवी जी यह कह रही हैं कि चंद्रमा की कोमल और सुखदायक किरणें हमेशा उस फूल को हँसाती और खुश करती थीं। चंद्रमा की रोशनी फूल को अपनी शीतलता और सुख प्रदान करती थी, जैसे फूल को उसकी सुंदरता और जीवन से आनंद मिल रहा हो। सुबह की ओस की बूँदें फूल को जैसे मोती के जाल से सजा देती थीं। ओस के इन मोती जैसे कणों से फूल को हमेशा सजाया जाता था, जिससे फूल और भी सुंदर और आकर्षक लगता था। महादेवी जी आगे कह रही हैं कि यहाँ हवा (वायु) पंखे की तरह फूल के पास आकर उसे शीतलता देती थी, और उस हवा की ठंडक के कारण फूल नींद में चला जाता था, जैसे वह स्वाभाविक रूप से सोने के लिए विवश हो जाता हो। माली ने फूल की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, और उसकी मेहनत से फूल हमेशा आनंदित और खुश रहता था। माली का प्रयास था कि फूल हमेशा हरा-भरा और सुंदर रहे।
विशेष –
इन पंक्तियों में कवि ने फूल के जीवन में प्राकृतिक तत्त्वों (चंद्रमा की किरण, ओस, हवा, माली की देखभाल) का खूबसूरत चित्रण किया है। फूल को हर ओर से खुशी और सुंदरता मिल रही है, चाहे वह चाँद की किरणों से हो, ओस से सजने से, या हवा से शीतलता और माली की देखभाल से। यह प्रकृति के सहारे और संरक्षण से फूल की खुशहाली का प्रतीक है।
03
कर रहा अठखेलियाँ
इतरा सदा उद्यान में।
अंत का यह दृश्य आया,
था कभी क्या ध्यान में ॥
सो रहा अब तू धरा पर
शुष्क बिखराया हुआ।
गंध, कोमलता नहीं
मुख-मंजु मुरझाया हुआ॥
शब्दार्थ –
अठखेलियाँ करना – चंचलता से खेलना, मस्ती करना
इतरा – घमंड से या आनंदित होकर चलना
उद्यान – बाग, बग़ीचा
अंत का दृश्य – मृत्यु या समाप्ति का समय
ध्यान में – विचार में, कल्पना में
सो रहा – मृत्यु को प्राप्त
धरा पर – धरती पर
शुष्क – सूखा हुआ
बिखराया हुआ – फैला हुआ, बिखरा हुआ
गंध – खुशबू
कोमलता – मुलायमपन
मुख-मंजु – सुंदर मुखड़ा (चेहरा)
मुरझाया हुआ – सूखा, मरा हुआ, जीवनहीन
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवयित्री महादेवी वर्मा उस फूल की जीवन-यात्रा का अंत दर्शा रही हैं। पहले वह फूल बाग़ में इतराता हुआ, मस्ती में अठखेलियाँ करता हुआ दिखता है। वह बहुत सुंदर, सुगंधित और कोमल था, जिसे देख सभी प्रसन्न होते थे। परंतु अब वही फूल सूखा हुआ, मुरझाया हुआ ज़मीन पर बिखरा पड़ा है।
फूल की यह स्थिति देखकर कवयित्री प्रश्न करती हैं—क्या किसी ने सोचा था कि इतना सुंदर और जीवंत फूल भी एक दिन ऐसा निष्प्राण हो जाएगा? अब उसमें न कोई खुशबू बची है, न कोमलता, और न ही उसका सुंदर चेहरा शेष है। यह पंक्तियाँ जीवन की नश्वरता और परिवर्तनशीलता का गहरा बोध कराती हैं।
विशेष –
कवयित्री फूल के माध्यम से जीवन के सुख-दुख, यौवन और मृत्यु की सच्चाई को दर्शाता है। सुंदरता और जीवन की चमक भी समय के साथ मुरझा जाती है, इसलिए हमें विनम्र और सजग रहना चाहिए।
04
आज तुझको देखकर
चाहक भ्रमर आता
नहीं। वृक्ष भी खोकर तुझे
हा, अश्रु बरसाता नहीं॥
जिस पवन ने अंक में
ले प्यार था तुझको किया।
तीव्र झोंके से सुला
उसने तुझे भू पर दिया॥
शब्दार्थ –
चाहक – चाहने वाला, प्रेमी
भ्रमर – भौंरा
वृक्ष – पेड़
अश्रु – आँसू
पवन – हवा
अंक में लेना – गोद में लेना
तीव्र झोंका – तेज़ हवा का झटका
सुला देना – यहाँ मृत्यु देना
भू पर – ज़मीन पर
व्याख्या –
कवयित्री महादेवी जी इन पंक्तियों में कहती हैं कि अब जब वह सुंदर फूल मुरझा चुका है, तो न तो उसे चाहने वाले भौंरे ही आते हैं और न ही वह वृक्ष जिससे वह जुड़ा था, उसकी मृत्यु पर आँसू बहाता है। जिस हवा (पवन) ने कभी प्यार से उसे गोद में लिया था, वही अब तेज़ झोंके के साथ उसे ज़मीन पर गिराकर मृत्यु की नींद सुला चुकी है। यह चित्रण फूल के जीवन के अंतिम क्षणों का है, जो एक समय सबका चहेता था, लेकिन अब अकेला, उपेक्षित और मृत पड़ा है।
विशेष –
यह पंक्तियाँ जीवन की निष्ठुर सच्चाई को उजागर करती हैं — जब तक कोई सुंदर और उपयोगी है, तब तक सब उसका आदर करते हैं, लेकिन जैसे ही वह मूल्यहीन हो जाता है, सभी उसे भूल जाते हैं। यह समाज की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य है।
05
कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन।
किंतु रोता कौन है
तेरे लिए दानी सुमन?
मत व्यथित हो पुष्प, किसको
सुख दिया संसार ने?
स्वार्थमय सबको बनाया,
है यहाँ करतार ने॥
शब्दार्थ –
मधु – शहद या मधुर रस
सौरभ – सुगंध, खुशबू
दान – देना, परोपकार
दानी सुमन – दान देने वाला फूल
व्यथित – दुखी, पीड़ित
करतार – सृष्टिकर्ता, भगवान
स्वार्थमय – स्वार्थ से भरा, अपने हित में डूबा हुआ व्यक्ति
व्याख्या –
कवयित्री महादेवी वर्मा जी कहती हैं कि यह फूल अपनी सारी मिठास (मधु) और सुगंध (सौरभ) को दुनिया के लिए दान कर चुका है — सबको आनंद देने के लिए। लेकिन जब वह मुरझा गया, तब कोई भी उसके लिए आँसू नहीं बहा। कवयित्री फूल से कहती हैं कि वह व्यथित न हो, क्योंकि इस संसार ने किसी को भी स्थायी सुख नहीं दिया है। यह संसार स्वार्थी है, और यहाँ के लोगों को सृष्टिकर्ता ने ही स्वार्थमय बनाया है। इसीलिए किसी को भी त्याग और सेवा की कद्र नहीं होती।
विशेष –
यह पंक्तियाँ त्याग, परोपकार और समाज की स्वार्थी प्रवृत्ति को उजागर करती हैं। फूल रूपी सज्जन व्यक्ति अपने सारे गुण दूसरों के लिए समर्पित कर देता है, पर अंत में वह अकेला ही रह जाता है — क्योंकि यह संसार केवल स्वार्थ देखता है, सेवा को नहीं।
06
विश्व में हे पुष्प! तू
सबके हृदय भाता रहा।
दान कर सर्वस्व फिर भी,
हाय, हरषाता रहा।
जब न तेरी ही दशा पर,
दुःख हुआ संसार को!
कौन रोएगा सुमन,
हमसे मनुज निस्सार को?
शब्दार्थ –
विश्व – संसार, दुनिया
पुष्प – फूल
हृदय भाता रहा – सभी को प्रिय लगता रहा
दान कर सर्वस्व – अपनी सारी चीजें (गुण, सुगंध, मधुरता आदि) दे देना
हरषाता – प्रसन्न करता
दशा – स्थिति, अवस्था
निस्सार – व्यर्थ, बेकार
मनुज – मनुष्य
व्याख्या –
कवयित्री फूल से कहती हैं कि — हे पुष्प! तू इस संसार में सभी के हृदय को प्रिय लगता रहा। तूने सब कुछ—अपना रंग, रस, सुगंध—दान कर दिया और लोगों को हर्षित करता रहा। लेकिन जब तेरा अंत आया, जब तू मुरझा गया, तब भी किसी ने तेरे दुःख की परवाह नहीं की। यदि इस सेवा करने वाले पुष्प की भी किसी ने चिंता नहीं की, तो हम जैसे साधारण, स्वार्थी और निस्सार मनुष्य के लिए भला कौन रोएगा?
विशेष –
कवयित्री ने समाज की उपेक्षा करने वाली प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है। त्याग और सेवा करने वाला व्यक्ति भी यदि समाज की उपेक्षा का शिकार हो जाता है, तो सामान्य, स्वार्थी मनुष्य की पीड़ा की किसी को क्या चिंता होगी? यह पंक्ति मानवीय संवेदनाओं के ह्रास और आत्मचिंतन की प्रेरणा देती है।
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
शैशव = बचपन
सुमन =फूल, पुष्प
अंक = गोद
मंजुव = मनोहर, सुंदर
लुब्ध = पूरी तरह लुभाया हुआ, मोहित, लालची
भ्रमर = भौंरा
स्निग्ध = निर्मल
मुक्ता = मोती
शृंगारती थी सदा = शृंगार करती थी
सर्वदा = हमेशा
निद्रा = नींद
विवश = बाध्य, मजबूर
अठखेलियाँ/अठखेली = मतवाली चाल, चपलता, चुलबुलापन
बोध एवं विचार
अ. सही विकल्प का चयन करो :-
(1) कवयित्री महादेवी वर्मा की तुलना की जाती है .
(क) सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ
(ख) मीराँबाई के साथ
(ग) उषा देवी मित्रा के साथ
(घ) मन्नू भंडारी के साथ
उत्तर – (ख) मीराँबाई के साथ
- कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) गाजियाबाद में
(ख) हैदराबाद में
(ग) फैजाबाद में
(घ) फर्रुखाबाद में
उत्तर – (घ) फर्रुखाबाद में
- महादेवी वर्मा की माता का नाम क्या था?
(क) हेमरानी वर्मा
(ख) पद्मावती वर्मा
(ग) फूलमती वर्मा
(घ) कलावती वर्मा
उत्तर – (क) हेमरानी वर्मा
- ‘हास्य करता था, …………. अंक में तुझको पवन।’
(क) खिलाता
(ख) हिलाता
(ग) सहलाता
(घ) सुलाता
उत्तर – (क) खिलाता
- यत्न माली का रहा ……… से भरता तुझे।’
(क) प्यार
(ख) आनंद
(ग) सुख
(घ) धीरे
उत्तर – (ख) आनंद
- करतार ने धरती पर सबको कैसा बनाया है?
(क) सुंदर
(ख) त्यागमय
(ग) स्वार्थमय
(घ) निर्दय
उत्तर – (ग) स्वार्थमय
(आ) ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में उत्तर दो :-
- छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा रहस्यवादी कवयित्री के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
उत्तर – हाँ
- महादेवी वर्मा के पिता-माता उदार विचारवाले नहीं थे।
उत्तर – नहीं
- महादेवी वर्मा ने जीवन भर शिक्षा और साहित्य की साधना की।
उत्तर – हाँ
- वायु पंखा झल कर फूल को सुख पहुँचाती रहती है।
उत्तर – हाँ
- मुरझाए फूल की दशा पर संसार को दुख नहीं होता।
उत्तर – हाँ
(इ) पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :-
- महादेवी वर्मा की कविताओं में किनके प्रति विरहानुभूति की तीव्रता परिलक्षित होती है?
उत्तर – महादेवी वर्मा की कविताओं में सर्वव्यापी परम सत्ता के प्रति विरहानुभूति की तीव्रता परिलक्षित होती है।
- महादेवी वर्मा का विवाह कब हुआ था?
उत्तर – महादेवी वर्मा का विवाह छठी कक्षा की शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् हुआ था।
- महादेवी वर्मा ने किस रूप में अपने कर्म-जीवन का श्रीगणेश किया था?
उत्तर – महादेवी वर्मा ने प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या के रूप में अपने कर्म-जीवन का श्रीगणेश किया था।
- फूल कौन-सा कार्य करते हुए भी हरषाता रहता है?
उत्तर – फूल अपना मधु और सौरभ का दान करते हुए भी सबको हर्षाता रहता है।
- भ्रमर फूल पर क्यों मँडराने लगते हैं?
उत्तर – भ्रमर फूल पर इसलिए मँडराने लगते हैं क्योंकि वे उसके मधु के प्रति लुब्ध हो जाते हैं।
(ई) अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-
- किन गुणों के कारण महादेवी वर्मा की काव्य-रचनाएँ हिंदी – पाठकों को विशेष प्रिय रही हैं?
उत्तर – महादेवी वर्मा के काव्य में करुणा भाव, रहस्यवाद, कोमल भाषा, मधुरता और लोककल्याण की भावना के कारण वे पाठकों को विशेष प्रिय रही हैं।
- महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य रचनाएँ क्या-क्या हैं? किस काव्य- संकलन पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था?
उत्तर – महादेवी वर्मा की ‘नीहार’, ‘नीरजा’, ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’ प्रमुख रचनाएँ हैं। ‘यामा’ पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
- फूल किस स्थिति में धरा पर पड़ा हुआ है?
उत्तर – फूल मुरझा जाने के बाद अपनी गंध और कोमलता खोकर सूखा बिखराया हुआ भूमि पर पड़ा है।
- खिले फूल और मुरझाए फूल के साथ पवन के व्यवहार में कौन-सा अंतर देखने को मिलता है?
उत्तर – खिले फूल को पवन प्यार से झुलाता है, जबकि मुरझाए फूल को तीव्र झोंके से गिरा देता है।
- खिले फूल और मुरझाए फूल के प्रति भौरे के व्यवहार क्या भिन्न-भिन्न होते हैं?
उत्तर – खिले फूल के मधु के प्रति लुब्ध होकर भौंरे मँडराते हैं, पर मुरझाए फूल की ओर वे देखना भी नहीं चाहते।
(उ) संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):-
- महादेवी वर्मा की साहित्यिक देन का उल्लेख करो।
उत्तर – महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री थीं। उन्होंने हिंदी साहित्य को कोमल भावनाओं, करुणा, आत्म-चिंतन और रहस्यात्मकता से समृद्ध किया। ‘नीहार’, ‘यामा’ जैसी रचनाओं में उनकी काव्य-प्रतिभा दिखाई देती है। गद्य-रचनाओं में ‘शृंखला की कड़ियाँ’ व ‘अतीत के चलचित्र’ उल्लेखनीय हैं। वे आधुनिक मीरा के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- खिले फूल के प्रति किस प्रकार सब आकर्षित होते हैं, पठित कविता के आधार पर वर्णन करो।
उत्तर – कविता के अनुसार जब फूल खिलता है, तब भ्रमर उस पर मधु के लिए मँडराने लगते हैं। चंद्रमा की स्निग्ध किरणें उसे हँसाती हैं, ओस उसे शृंगारती है, और पवन प्यार से झूलाता है। माली उसे आनंद से निहारता है। सब उसके सौंदर्य और सुगंध की ओर आकृष्ट होते हैं।
- पठित कविता के आधार पर मुरझाए फूल के साथ किए जाने वाले बर्ताव का उल्लेख करो।
उत्तर – मुरझाने के बाद फूल का न कोई प्रेमी भ्रमर आता है, न वृक्ष या पवन उसे याद करता है। वह सूखा हुआ, गंधहीन और बिखरा हुआ धरा पर पड़ा रहता है। संसार उसका त्याग कर देता है। यह कविता जीवन की नश्वरता और स्वार्थी समाज का चित्रण करती है।
- पठित कविता के आधार पर दानी सुमन की भूमिका पर प्रकाश डालो।
उत्तर – दानी सुमन अपने जीवन में मधु, सौरभ, सौंदर्य आदि सब कुछ दान करता है और सबको आनंद देता है। फिर भी जब वह मुरझा जाता है तो कोई उसे याद नहीं करता। वह बिना किसी शिकायत के त्याग की मिसाल बन जाता है। यह कविता सेवा और समर्पण का संदेश देती है।
(ऊ) सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :-
- कवयित्री महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय प्रस्तुत करो।
उत्तर – महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की छायावादी धारा की प्रमुख स्तंभ थीं। उनका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। वे एक संवेदनशील, रहस्यवादी और करुणामयी कवयित्री थीं। उनके काव्य में आत्मवेदना, विरह की अनुभूति तथा सेवा और त्याग का भाव प्रमुखता से दिखाई देता है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ ‘नीहार’, ‘नीरजा’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’ आदि हैं। उन्हें ‘यामा’ काव्य के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्होंने गद्य लेखन में भी योगदान दिया। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘अतीत के चलचित्र’ आदि उनकी प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं। वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या भी रहीं। उनका निधन 1987 में हुआ।
- ‘मुरझाया फूल’ शीर्षक कविता में फूल के बारे में क्या-क्या कहा गया है?
उत्तर – कविता में फूल के जन्म से लेकर मुरझाने तक की संपूर्ण यात्रा का चित्रण किया गया है। जब वह कली था, तब पवन उसे झुलाता था। पूर्णरूपेण खिलने पर भ्रमर उस पर मँडराने लगे, चंद्रमा की किरणें उसे हँसाती थीं, ओस से उसका शृंगार होता था और माली उसकी सेवा करता था। लेकिन मुरझाने के बाद वह सूखकर ज़मीन पर गिर जाता है और कोई उसकी ओर ध्यान नहीं देता। न भ्रमर आता है, न वृक्ष दुख व्यक्त करता है। यह संसार की स्वार्थपरता और उपेक्षा को दर्शाता है कि उपयोगिता समाप्त होते ही सम्मान भी समाप्त हो जाता है।
- ‘मुरझाया फूल’ कविता के माध्यम से कवयित्री ने मानव जीवन के संदर्भ में क्या संदेश दिया है?
उत्तर – ‘मुरझाया फूल’ कविता के माध्यम से महादेवी वर्मा ने जीवन की क्षणभंगुरता और समाज की स्वार्थपरता को उजागर किया है। कविता में फूल की अवस्था को मानव जीवन से जोड़ा गया है। जब तक फूल खिला रहता है, सभी उसकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन मुरझाने पर उसे कोई नहीं पूछता। इसी प्रकार जब मनुष्य शक्तिशाली, सुंदर या उपयोगी होता है तो समाज उसे महत्त्व देता है, परंतु दुर्बल या असहाय होते ही समाज उसे त्याग देता है। कवयित्री का यह संदेश है कि सेवा, त्याग और करुणा के भाव को ही जीवन की सार्थकता माना जाना चाहिए, न कि केवल स्वार्थ को।
- पठित कविता के आधार पर फूल के जीवन और मानव-जीवन की तुलना करो।
उत्तर कविता में फूल के जीवन को मानव जीवन का प्रतीक मानकर दोनों की स्थिति की तुलना की गई है। फूल जब कली होता है या खिला होता है, तब वह सबका आकर्षण बना रहता है—पवन झुलाता है, भ्रमर मँडराते हैं, माली सेवा करता है। परंतु मुरझाने पर कोई उसे देखता भी नहीं। इसी तरह मनुष्य जब तक उपयोगी और सक्षम होता है, समाज उसका आदर करता है। परंतु जब वह असहाय या बूढ़ा हो जाता है, तब उसकी उपेक्षा की जाती है। यह कविता मानवीय संवेदना और सेवा-भाव की महत्ता को उजागर करती है।-
(ई) प्रसंग सहित व्याख्या करो (लगभग 100 शब्दों में) :-
- ‘स्निग्ध किरणें चंद्र की शृंगारती थी सर्वदा।’
उत्तर – प्रसंग: यह पंक्ति महादेवी वर्मा की कविता ‘मुरझाया फूल‘ से ली गई है, जिसमें कवयित्री फूल के जीवन के सौंदर्य और स्नेहपूर्ण परिवेश का वर्णन करती हैं।
व्याख्या: जब फूल पूरी तरह खिला हुआ था, तब उसकी शोभा बढ़ाने के लिए प्रकृति की सारी शक्तियाँ उसकी सेवा में लगी थीं। चंद्रमा की स्निग्ध (कोमल व शीतल) किरणें उसे हँसाती थीं, अर्थात उसकी सुंदरता को और निखारती थीं। ओस की बूँदें मानो मोतियों की माला बनकर उसका शृंगार करती थीं। यह दृश्य फूल की गरिमा, सुख और सम्मान की अवस्था का प्रतीक है, जब समाज भी व्यक्ति को विशेष महत्त्व देता है। यह पंक्ति जीवन की चमक-दमक और समृद्धि के काल को दर्शाती है।
- ‘कर रहा अठखेलियाँ …… या कभी क्या दयान में।’
उत्तर – प्रसंग: यह पंक्तियाँ उस समय की हैं जब फूल पूरी तरह खिला हुआ था और अपने सौंदर्य पर इतराता हुआ बाग़ में अठखेलियाँ कर रहा था।
व्याख्या: जब फूल खिला हुआ था, तब वह इठलाकर, गर्व से उद्यान में अठखेलियाँ करता था। उसकी शोभा और सुगंध से वातावरण महकता था। वह निश्चिंत होकर जीवन का आनंद ले रहा था, उसे कभी इस बात का ध्यान भी नहीं आया कि उसका अंत भी आएगा, वह भी एक दिन मुरझा जाएगा। यह पंक्तियाँ इस सत्य को उजागर करती हैं कि जब व्यक्ति समृद्धि या यश के शिखर पर होता है, तब वह मृत्यु या पतन की संभावना पर विचार नहीं करता। यह जीवन की अनिश्चितता और क्षणभंगुरता को रेखांकित करती हैं।
- ‘मत व्यथित हो पुष्प………. यहाँ करतार ने
उत्तर – प्रसंग: यह पंक्तियाँ उस समय की हैं जब फूल मुरझा चुका है और उपेक्षित होकर ज़मीन पर पड़ा है। कवयित्री फूल को सांत्वना देती हैं।
व्याख्या: कवयित्री कहती हैं कि हे पुष्प! तुम व्यथित मत हो, क्योंकि यह संसार ही ऐसा है जहाँ किसी को स्थायी सुख नहीं मिलता। इस संसार को बनाने वाले ‘करतार’ ने सभी को स्वार्थमय बना दिया है। जब तक किसी से लाभ होता है, लोग उसकी कद्र करते हैं, और जब लाभ नहीं रहता, तो उपेक्षा करते हैं। यह पंक्तियाँ समाज की स्वार्थपरता पर करारा व्यंग्य करती हैं और यह संदेश देती हैं कि दुखी होने से अच्छा है, इस सच्चाई को स्वीकार करना सीखो।
- जब न तेरी ही दशा पर …. हमसे मनुज निस्सार को।’
उत्तर – प्रसंग: यह कविता के अंतिम भाग की पंक्तियाँ हैं, जब फूल मुरझा चुका है और कोई भी उसके लिए शोक नहीं करता।
व्याख्या: कवयित्री कहती हैं कि हे पुष्प! जब तुम्हारी जैसी कोमल, सुंदर और सबका प्रिय रही वस्तु की दुर्दशा पर संसार को दुख नहीं होता, तो हम जैसे साधारण, निस्सार मनुष्य के लिए कौन दुख करेगा? यह पंक्तियाँ मानवीय उपेक्षा और संवेदनहीनता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती हैं। यह भी स्पष्ट करती हैं कि संसार में त्याग और सेवा की भावना को अक्सर भुला दिया जाता है। यह कवयित्री का एक गहरा और करुण संदेश है कि मानव जीवन में भी जब उपयोगिता समाप्त हो जाती है, तो समाज उपेक्षा करने लगता है।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
- निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग करो :-
श्रीगणेश करना, आँखों का तारा, नौ दो ग्यारह होना, हवा से बातें करना, अंधे की लकड़ी, लकीर का फकीर होना
उत्तर – 1. श्रीगणेश करना
अर्थ – किसी कार्य की शुरुआत करना।
वाक्य में प्रयोग – आज मैंने अपने नए व्यवसाय का श्रीगणेश किया है।
- आँखों का तारा
अर्थ – किसी का प्रिय या अत्यधिक लाड़-प्यार किया गया व्यक्ति।
वाक्य में प्रयोग – वह अपनी बेटी का आँखों का तारा है, उसे हर चीज़ की सुविधा देता है।
- नौ-दो ग्यारह होना
अर्थ – किसी से जल्दी भाग जाना या गायब हो जाना।
वाक्य में प्रयोग – जैसे ही पुलिस आई, चोर नौ-दो ग्यारह हो गए।
- हवा से बातें करना
अर्थ – बहुत ही तीव्र गति
वाक्य में प्रयोग – आजकल के युवा मोटरसाइकिल को हवा से बातें करवाते हैं।
- अंधे की लकड़ी
अर्थ – एकमात्र सहारा
वाक्य में प्रयोग – सुदेश अपने पिताजी के लिए अंधे की लकड़ी बन चुका है।
- लकीर का फकीर होना
अर्थ – परंपराओं और पुराने तरीकों से चिपका रहना, कोई नया काम या विचार न करना।
वाक्य में प्रयोग – वह हमेशा लकीर का फकीर रहा है, कभी भी किसी नए विचार को अपनाने की कोशिश नहीं करता।
- निम्नांकित काव्य पंक्तियों को गद्य-रूप में प्रस्तुत करो –
(क) खिल गया जब पूर्ण तू,
मंजूल सुकोमल फूल बन।
लुब्ध मधु के हेतु मँडराने
लगे, उड़ते भ्रमर॥
उत्तर – जब तुम पूर्ण रूप से खिल गए, तो एक सुंदर और कोमल फूल की तरह सज गए। तुम्हारी सुंदरता को देखकर भ्रमर (मधुमक्खियाँ) ललचाई और तुम्हारे पास आकर उड़ने लगीं, ताकि वे तुम्हारे मधुर रस का आनंद ले सकें।
(ख) जिस पवन ने अंक में
ले प्यार था तुझको किया।
तीव्र झोंके से सुला उसने
तुझे भू पर दिया॥
उत्तर – जिस हवा ने तुम्हें अपनी गोदी में लिया और प्यार से तुम्हें सीने से चिपकाया, उसी ने एक तीव्र झोंके से तुम्हें झकझोरते हुए तुम्हें धरती पर सुला दिया।
- लिंग – निर्धारण करो :-
कली, शैशव, फूल, किरण, वायु, माली, कोमलता, सौरभ, दशा
उत्तर – कली – स्त्रीलिंग
शैशव – पुंलिंग
फूल – पुंलिंग
किरण – स्त्रीलिंग
वायु – स्त्रीलिंग
माली – पुंलिंग
कोमलता – स्त्रीलिंग
सौरभ – पुंलिंग
दशा – स्त्रीलिंग
- वचन परिवर्तन करो :-
भौंरा, किरणें, अठखेलियाँ, झोंके, चिड़िया, रेखाएँ, बात, कली
उत्तर – भौंरा – भौंरे
किरणें – किरण
अठखेलियाँ – अठखेली
झोंके – झोंका
चिड़िया – चिड़ियाँ
रेखाएँ – रेखा
बात – बातें
कली – कलियाँ
- लिंग परिवर्तन करो :-
कवयित्री, प्रियतम, पिता, पुरुष, प्राचार्या, माली, देव, मोरनी
उत्तर – कवयित्री – कवि
प्रियतम – प्रियतमा
पिता – माता
पुरुष – स्त्री
प्राचार्या – प्राचार्य
माली – मालिन
देव – देवी
मोरनी – मोर
- ‘कार’ शब्दांश के पूर्व आ, वि, प्र, उप, अप और प्रति उपसर्ग जोड़ कर शब्द बनाओ तथा उन शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करो।
उत्तर – 1. आ + कार
शब्द – आकार
वाक्य – उस चित्र का आकार बहुत सुंदर और आकर्षक था।
- वि + कार
शब्द – विकार
वाक्य – उसने अपनी विकार भरे सोच से सभी को परेशान कर दिया।
- प्र + कार
शब्द – प्रकार
वाक्य – यह काम करने का प्रकार बिल्कुल अलग था, लेकिन प्रभावी था।
- उप + कार
शब्द – उपकार
वाक्य – उसने मेरे प्रति बड़ा उपकार किया, जिसके लिए मैं हमेशा आभारी रहूँगा।
- अप + कार
शब्द – अपकार
वाक्य – उसने अपनी हरकतों से मेरे साथ अपकार किया, जिसके कारण मैं बहुत दुखी था।
- प्रति + कार
शब्द – प्रतिकार
वाक्य – उसके द्वारा किए गए प्रतिकार ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया।
योग्यता- विस्तार
- हाव-भाव के साथ प्रस्तुत कविता का पाठ करो
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर स्वयं करें।
- कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक निम्नोक्त कविता को पढ़ो और अपने गुरुजी की सहायता से इसके संदेश को समझने का प्रयास करो :-
‘चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं, प्रेमी – माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥
चाहा नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़, भाग्य पर इठलाऊँ॥
मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक॥’
उत्तर – यह कविता माखनलाल चतुर्वेदी जी की ‘पुष्प की अभिलाषा’ है। इसमें कवि ने अपने जीवन और कर्म को मातृभूमि की सेवा में समर्पित करने की भावना व्यक्त की है। वह फूल के माध्यम से यह कहते हैं कि उन्हें किसी भी भौतिक वस्तु या सामाजिक प्रतिष्ठा की कोई इच्छा नहीं है। वे न तो प्रेमिका के गहनों में गूँथना चाहते हैं, न सम्राटों के शवों पर चढ़कर प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते हैं, और न देवताओं के सिर पर चढ़कर इठलाना चाहते हैं। उनकी एकमात्र इच्छा यह है कि उनका जीवन मातृभूमि की सेवा में व्यतीत हो, और यदि उनका जीवन किसी भी रूप में समाप्त होता है, तो उन्हें उन वीर सिपाहियों के मार्ग में फेंक दिया जाए जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए शत्रुओं का मुक़ाबला करने मोर्चे पर जा रहे हों।
- ‘सो रहा अब तू धरा पर
शुष्क बिखराया हुआ
गंध, कोमलता, नहीं
मुख-मंजु मुरझाया हुआ॥’
– रेखांकित काव्य पंक्ति में आए अलंकार के बारे में अपने-अपने शिक्षक से जान लो।
उत्तर – अलंकार –
इस पंक्ति में मुख्य रूप से ‘रूपक अलंकार’ और ‘अनुप्रास अलंकार’ का प्रयोग किया गया है।
रूपक अलंकार –
इस अलंकार में किसी वस्तु, व्यक्ति या भाव को दूसरे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ पर ‘मुख-मंजु मुरझाया हुआ” में मुख (मुख का अर्थ यहाँ चेहरे से लिया गया है) को मुरझाए हुए फूल के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जैसा कि मुरझाया हुआ चेहरा किसी दुख या निराशा का प्रतीक है। यह एक रूपक अलंकार है, जहाँ चेहरे को मुरझाए फूल से तुलना की गई है।
अनुप्रास अलंकार –
यहाँ ‘मुख-मंजु मुरझाया’ में ‘म’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
- कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित किसी अन्य कविता का संग्रह करके कक्षा में सुनाओ।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- प्रकृति से संबंधित किसी विषय पर कविता लिखकर अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करो।
उत्तर – प्राकृतिक सुंदरता
हर सुबह सूर्य की किरणें,
प्यारी सी रौशनी बिखेरें हैं,
हवा में घुलती है ताजगी,
धरती की गोदी में नमी है।
पर्वतों की ऊँचाई से,
नदियाँ लहराती आतीं हैं,
आकाश में उड़ते पक्षी भी,
खुशियाँ फैलातीं जातीं हैं।
तरूओं की छाँव में विश्राम करें,
सुंदर फूलों का पैगाम पढ़ें,
इस चराचर में जीवन है,
इस परम सत्य का ध्यान करें।
चाहे सुबह और या फिर संध्या,
छटा अपनी प्रकृति दिखलाती है,
हमें चाहिए रखे सँजोकर,
जीना यह हमको सिखलाती है।