शब्दार्थ तालिका (Word meanings)
संस्कृत शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
अविश्वस्ते | अविश्वसनीय व्यक्ति में | In an untrustworthy (person) |
न | नहीं | Not |
विश्वसेत् | विश्वास करना चाहिए | Should trust |
एकदा | एक बार | Once |
एकस्मिन् वने | एक जंगल में | In a forest |
शृगालः | सियार | Jackal |
भोजनं | भोजन | Food |
प्राप्तुम् | प्राप्त करने के लिए | To obtain |
इतस्ततः | यहाँ-वहाँ | Here and there |
भ्रमति स्म | घूमता था | Was wandering |
तदैव | उसी समय | At that moment |
समूहम् | समूह | Group |
दृष्ट्वा | देखकर | Having seen |
खादितुं | खाने के लिए | To eat |
चिन्तयति | सोचता है | Thinks |
राजा | राजा | King |
हृष्टः पुष्टः | स्वस्थ और मोटा | Healthy and stout |
अनुसरति | अनुसरण करता है | Follows |
बिलस्य समीपं | बिल के पास | Near the hole |
चिन्तयित्वा | सोचकर | After thinking |
उद्घाटितेन | खोले हुए | Opened |
मुखेन | मुँह से | With mouth |
तिष्ठति | खड़ा होता है | Stands |
प्रातः | सुबह | Morning |
चकिताः | चकित | Surprised |
पृच्छति | पूछता है | Asks |
किमर्थं | क्यों | Why |
स्थितः | खड़ा है | Standing |
चतुरः पादान् | चारों पैर | Four legs |
धरायां | धरती पर | On earth |
स्थापयिष्यामि | रख दूँगा | I will place |
अधः | नीचे | Down |
गमिष्यति | चला जाएगा | Will go |
पूजयितुं | पूजने के लिए | To worship |
वायुः | हवा | Air |
एव | ही | Only |
भोजनम् | भोजन | Food |
पुण्यं | पुण्य | Virtue |
प्रतिदिनम् | रोज | Every day |
सेवां | सेवा | Service |
अवसरं | अवसर | Opportunity |
धूर्तः | चालाक / धोखेबाज़ | Clever / Wicked |
हृष्टः पुष्टः | मोटा-ताजा | Well-fed |
वार्तालापं | बातचीत | Conversation |
प्रणम्य | प्रणाम कर | Bowing |
न्यूना | कम | Reduced |
शङ्काशीलाः | संदेह करने वाले | Suspicious |
योजनानुसारं | योजना के अनुसार | According to plan |
एकाकी | अकेला | Alone |
सावधानः | सतर्क | Cautious |
कूर्दित्वा | कूदकर | Jumping |
प्रहरति | प्रहार करता है | Attacks |
आक्रम्य | आक्रमण करके | Attacking |
तीक्ष्णदन्तैः | तीखे दाँतों से | With sharp teeth |
नाशम् | नाश | Destruction |
कुर्वन्ति | करते हैं | Do |
अविश्वस्ते न विश्वसेत् – पाठ का हिंदी में सारांश / व्याख्या
“अविश्वस्ते न विश्वसेत्” का अर्थ है — जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता, उस पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए।
इस कहानी में एक धूर्त शृगाल (सियार) है जो भोजन की खोज में जंगल में भटकता है। वह एक दिन मूषकों (चूहों) के समूह को देखता है और उन्हें खाने की योजना बनाता है। इन चूहों का राजा बड़ा हृष्ट-पुष्ट (स्वस्थ और मोटा) होता है।
शृगाल एक चाल चलता है। वह चूहों के बिल के पास जाकर सूर्य की ओर मुँह करके और मुँह खोलकर खड़ा हो जाता है। जब चूहे उसे इस तरह खड़े देखते हैं, तो वह कहता है कि यदि वह जमीन पर पैर रखेगा तो धरती धँस जाएगी, और वह वायु ही खाता है।
चूहे उसकी बातों में आ जाते हैं और उसे एक महात्मा समझकर उसकी सेवा करने लगते हैं। प्रतिदिन वे उसकी पूजा करते हैं और यही मौका पाकर वह शृगाल रोज एक चूहे को खा जाता है। कुछ दिनों बाद चूहों को शक होता है कि उनकी संख्या घट रही है लेकिन शृगाल मोटा हो गया है।
मूषक राजा इसे समझ जाता है और योजना बनाता है। अगले दिन सभी चूहे दूर चले जाते हैं और राजा अकेला रह जाता है। फिर वह सतर्क होकर शृगाल पर कूदता है और हमला करता है। बाकी सभी चूहे भी आकर शृगाल को मार डालते हैं।
नीतिशिक्षा (Moral of the Story)
कभी भी अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए। केवल बाहरी दिखावे या मीठी बातों के कारण किसी को भरोसेमंद मानना उचित नहीं है। हमें सतर्क रहना चाहिए और समय पर निर्णय लेना चाहिए।
- वाक्य – शुद्ध / अशुद्ध चिन्हित करें:
क्रमांक | वाक्य | शुद्ध / अशुद्ध |
(i) | शृगालः मूषकसमूहं दृष्ट्वा दूरं गच्छति। | अशुद्ध (समीपं गच्छति) |
(ii) | शृगालः सूर्यं प्रति उद्घाटितेन मुखेन तिष्ठति। | शुद्ध |
(iii) | मूषकाः शृगालं दृष्ट्वा चकिताः भवन्ति। | शुद्ध |
(iv) | मूषकाः सूर्यं पूजयितुम् तत्र आगच्छन्ति स्म। | अशुद्ध (शृगालं सेवितुं आगच्छन्ति) |
(v) | विडालः प्रतिदिनं मूषकं खादति। | अशुद्ध (विडालः नहीं, शृगालः) |
(vi) | सर्वे मूषकाः शृगालस्य नाशम् अकुर्वन्। | शुद्ध |
- मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः रिक्तस्थानानि पूरयन्तु –
(खादितुम्, सेवितुम्, प्राप्तुम्, भक्षयितुम्, पूजयितुम्)
(i) शृगालः भोजनं _______ भ्रमति स्म।
(ii) सः मूषकान् _______ बिलस्य समीपम् आगच्छत्।
(iii) वायुं _______ तस्य मुखम् उद्घाटितम् आसीत्।
(iv) सूर्यं _______ तस्य मुखं सूर्यं प्रति आसीत्।
(v) मूषकाः शृगालं _______ तत्र आगच्छन्ति स्म।
क्रमांक | उत्तर |
(i) | प्राप्तुम् |
(ii) | खादितुम् |
(iii) | भक्षयितुम् |
(iv) | पूजयितुम् |
(v) | सेवितुम् |
- उचितं पर्यायपदं चुनें
(मञ्जूषा: नत्वा, मूषकसमूहम्, चकिताः, पृथ्वी, दृष्ट्वा):
पद | पर्यायपदम् |
(i) नत्वा | प्रणम्य |
(ii) मूषकसमूहम् | मूषकवृन्दम् |
(iii) चकिताः | विस्मिताः |
(iv) पृथ्वी | धरा |
(v) दृष्ट्वा | अवलोक्य |
- एकपदेन उत्तराणि
(मञ्जूषा: धरा, प्रणम्य, अवलोक्य, मूषकवृन्दम्, विस्मिताः):
प्रश्न | उत्तर |
(i) शृगालः कम् अनुसरति? | मूषकवृन्दम् |
(ii) शृगालः कम् प्रति मुखं कृत्वा तिष्ठति? | सूर्यं |
(iii) मूषकाः कं सेवन्ते? | शृगालम् |
(iv) हृष्टः पुष्टः कः अभवत्? | शृगालः |
(v) केषां सङ्ख्या न्यूनतरा अभवत्? | मूषकानाम् |
(vi) ‘एकः शृगालः’ – विशेष्यपदं किम्? | शृगालः |
- पूर्णवाक्येन उत्तराणि:
प्रश्न | उत्तर |
(i) शृगालः भोजनाय कुत्र भ्रमति स्म? | शृगालः भोजनाय वने भ्रमति स्म। |
(ii) मूषकराजः शृगालं कि पृच्छति? | मूषकराजः पृच्छति – भवान् एवम् किमर्थं स्थितः अस्ति? |
(iii) शृगालः किम् अवदत्? | शृगालः अवदत् – यदि अहं चतुरः पादान् स्थापयिष्यामि, तर्हि पृथ्वी अधः गमिष्यति। |
(iv) अवसरं प्राप्य धूर्तः शृगालः किं करोति स्म? | सः प्रतिदिनं एकं मूषकं खादति स्म। |
(v) मूषकराजः मूषकान् किम् अवदत्? | मूषकराजः अवदत् – अहम् अपि शृगालस्य विषये शङ्कां करोमि। |
(vi) ‘मूषकराजः तान् अवदत्’ – तान् इति पदं केभ्यः प्रयुक्तम्? | तान् इति पदं मूषकभ्यः प्रयुक्तम्। |
- स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणम्:
वाक्य | प्रश्न |
शृगालः भोजनाय भ्रमति स्म। | कः भोजनाय भ्रमति स्म? |
मूषकाः बिलं प्रविशन्ति। | के बिलं प्रविशन्ति? |
मूषकाः विलात् बहिः आगच्छन्ति। | मूषकाः कस्मात् बहिः आगच्छन्ति? |
मूषकराजः शृगालं कथयति। | मूषकराजः कं कथयति? |
मूषकाः शृगालस्य उपरि आक्रमणम् अकुर्वन्। | मूषकाः कस्य उपरि आक्रमणम् अकुर्वन्? |
मूषकाः तीक्ष्णदन्तैः शृगालस्य नाशम् अकुर्वन्। | मूषकाः कैः शृगालस्य नाशम् अकुर्वन्? |
- कथाक्रमानुसारं वाक्यानि क्रमबद्धतया लिखन्तु:
क्रम | वाक्य |
(i) | शृगालः मूषकवृन्दं दृष्टवान्। |
(ii) | शृगालः सूर्यं प्रति मुखं कृत्वा तिष्ठति। |
(iii) | सर्वे मूषकाः चकिताः अभवन्। |
(iv) | शृगालः प्रतिदिनम् एकं मूषकं खादति। |
(v) | शृगालं हृष्टं पुष्टं दृष्ट्वा मूषकाः चिन्तितवन्तः। |
(vi) | मूषकाः स्वतीक्ष्णदन्तैः शृगालस्य नाशम् अकुर्वन्। |
■ मूल्यात्मक प्रश्न उत्तर:
(i) अनेन भवान् / भवती किम् अवगच्छत्?
👉 इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी पर जल्दी विश्वास नहीं करना चाहिए। “अविश्वस्ते न विश्वसेत्” — जो अविश्वसनीय है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
(ii) भवान् / भवती मित्रैः सह मिलित्वा किं किं करोति?
👉 अहम् मित्रैः सह पठनं, क्रीडनं, सहकार्यम् च करोमि। मित्रैः सह एकत्र कार्यं कृत्वा सफलता अपि प्राप्तुं शक्यते।
गतिविधिः (नमूना कथा)
शीर्षकः – संघे शक्तिः (संघ की शक्ति)
कथा: –
एकदा ग्रामे एकः किसानः आसीत्। तेन पञ्च पुत्राः आसन्। ते सर्वे नित्यं कलहं कुर्वन्ति स्म। एकदा किसानः तान् एकत्र आहूय एकं लकुडबन्धं तेषु दत्तवान्। अवदत् – एषं भञ्जयन्तु। न कोऽपि तं भञ्जितुं अशकत। तदा सः लकुडानि पृथक् कृत्वा दत्तवान्। सर्वे पुत्राः सरलतया तानि भञ्जितवन्तः।
तदा पिता अवदत् – यदि यूयं एकत्र स्थास्यथ, न कोऽपि तुं बाधिष्यति। एकता एव शक्तिः।
पाठ: संघे शक्तिः।
1. Fill in the blanks (रिक्तस्थानानि पूरयन्तु):
Questions:
- शृगालः भोजनाय __________ भ्रमति स्म।
- मूषकाः __________ पूजयितुम् तत्र आगच्छन्ति स्म।
- शृगालः मूषकान् __________ बिलस्य समीपम् आगच्छत्।
- मूषकाः शृगालं __________ दृष्ट्वा चकिताः अभवन्।
- मूषकाः तीक्ष्णदन्तैः शृगालस्य __________ अकुर्वन्।
Answers:
- खादितुम्
- सूर्यं
- सेवितुम्
- अवलोक्य
- नाशम्
2. Multiple Choice Questions (MCQs):
Questions:
- शृगालः किमर्थं भ्रमति स्म?
a) जलं पीतुम्
b) खादितुम्
c) निद्रां कर्तुम्
d) मित्रं द्रष्टुम्
Answer: b) खादितुम् - मूषकाः प्रतिदिनं कुत्र गच्छन्ति स्म?
a) वनं
b) जलाशयम्
c) सूर्यं पूजयितुम्
d) ग्रामम्
Answer: c) सूर्यं पूजयितुम् - शृगालः प्रतिदिनं किम् करोति स्म?
a) भोजनं त्यजति
b) मूषकं खादति
c) जलं पिबति
d) मूषकैः सह क्रीडति
Answer: b) मूषकं खादति - मूषकाः शृगालस्य नाशं केन कुर्वन्ति?
a) तीक्ष्णदृष्ट्या
b) तीक्ष्णदन्तैः
c) तीक्ष्णनखैः
d) तीक्ष्णपदपातेन
Answer: b) तीक्ष्णदन्तैः
3. One-word Answer Questions (एकपदेन उत्तरम्):
Questions and Answers:
- शृगालः कम् अनुसरति? — मूषकवृन्दम्
- मूषकाः के चकिताः अभवन्? — विस्मिताः
- मूषकाः कम् प्रति सेवां कुर्वन्ति? — सूर्यम्
- शृगालस्य मुखं कस्य दिशायाम् आसीत्? — सूर्यं प्रति
- मूषकानां संख्या कदा न्यूनतरा अभवत्? — प्रत्यहम्
4. Short Questions (एक-द्विवाक्ये उत्तराणि):
Questions and Answers:
- शृगालः भोजनाय कुत्र भ्रमति स्म?
— शृगालः भोजनाय वनस्य चत्वरे भ्रमति स्म। - शृगालः मूषकान् कथं मोहयति स्म?
— सः सूर्यं पूजयितुं उद्यमं दर्शयन् मूषकान् मोहयति स्म। - मूषकराजः किं चिन्तयति स्म?
— सः चिन्तयति स्म यत् शृगालः कथं हृष्टः पुष्टः जातः। - अवसरं प्राप्य धूर्तः शृगालः किं करोति स्म?
— अवसरं प्राप्य सः प्रतिदिनं एकं मूषकं खादति स्म। - मूषकाः अन्ते किं कुर्वन्ति स्म?
— अन्ते सर्वे मूषकाः मिलित्वा तीक्ष्णदन्तैः शृगालस्य नाशं अकुर्वन्।