West Bengal, Hindi Course A, Class XI, Amir Khusro – Paheliyan,

कवि परिचय : अमीर खुसरो

अमीर खुसरो का जन्म सन् 1253 ई. में एटा (उत्तरप्रदेश) के पटियाली नामक क़स्बे में गंगा किनारे हुआ था। वे मध्य एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन के पुत्र थे। लाचन जाति के तुर्क चंगेज खाँ के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन (1266-1286 ई.) के राज्यकाल में शरणार्थी के रूप में भारत आकर बसे थे। खुसरो के बारे में फ़ारसी और हिंदवी दोनों भाषाओं में बहुत सारी रचनाएँ लिखी गई हैं। वह बहुत अच्छे कवि थे। उनके साहित्य के कई कार्यों में ग़ज़ल, मसनवी, कव्वाली और अन्य प्रकार की कविताएँ शामिल थीं। जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग उनकी कविता में रुचि रखते थे, जो ज्यादातर प्रेम, आध्यात्मिकता और समाज के अवलोकन के बारे में थी। जन्मजात कवि होते हुए भी खुसरो में व्यावहारिक बुद्धि की कमी नहीं थी। सामाजिक जीवन की उन्होंने कभी अवहेलना नहीं की। जहाँ एक ओर उनमें एक कलाकार की उच्च कल्पनाशीलता थी, वहीं दूसरी ओर वे अपने समय के सामाजिक जीवन के उपयुक्त कूटनीतिक व्यवहार कुशलता में भी दक्ष थे। उस समय बुद्धिजीवी कलाकारों के लिए आजीविका का सबसे उत्तम साधन राज्याश्रय ही था। खुसरो ने भी अपना सम्पूर्ण जीवन राज्याश्रय में बिताया। उन्होंने गुलाम, खिलजी और तुग़लक़-तीन अफ़ग़ान राज-वंशों तथा 11 सुल्तानों का उत्थान-पतन अपनी आँखों से देखा। आश्चर्य यह है कि निरन्तर राजदरबार में रहने पर भी खुसरो ने कभी भी उन राजनीतिक षड्यन्त्रों में किंचितमात्र भाग नहीं लिया जो प्रत्येक उत्तराधिकार के समय अनिवार्य रूप से होते थे। राजनीतिक दाँव-पेंच से अपने को सदैव अनासक्त रखते हुए खुसरो निरन्तर एक कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे।

अमीर खुसरो के पिता स्वयं पढ़े लिखे नहीं थे, क्योंकि उन्होंने अपने काव्य संग्रह ‘गुर्रतुल कमाल’ की भूमिका में ‘उम्मी’ अर्थात् अनपढ़ बताया है। परन्तु फिर भी उनके पिता ने उनकी शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया था। डॉ० शुजाअत अली सन्देलवी इस सन्दर्भ में लिखते है “चार बरस की उम्र तक अमीर खुसरो पटियाली में रहे इसके बाद अमीर सैफुद्दीन उनको अपने हमराह देहली ले लिये और वहाँ उनकी तालीम व तरबियत का बेहतर से बेहतर इन्तजाम किया।”

अमीर खुसरो ने अपने जीवनकाल में कई ग्रंथ लिखे हैं, जिनमें उनकी विचारधारा, संगीत, साहित्य,

तर्कशास्त्र और धार्मिक विषयों पर व्याख्यान शामिल हैं। इनकी कृतियों की संख्या 99 बताई जाती है, परंतु अभी तक 45 कृतियों का ही पता चला है। कुछ प्रमुख ग्रंथों का वर्णन निम्नलिखित है:

(Khalikbari) : यह ग्रंथ अमीर खुसरो की अत्यंत महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने तारीख, भक्ति, विचारधारा और धार्मिक मुद्दों पर व्याख्यान किया है।

(Nuh-Sipi) : इस ग्रंथ में अमीर खुसरो ने संगीत, ताल और रागों के विषय में व्याख्यान किया है। इसमें उन्होंने अपने सांगीतिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी साझा की है।

(Divan-e-Khusro) : यह अमीर खुसरो की कविताओं का संग्रह है। इसमें उनकी उर्दू, फारसी, संस्कृत और अरबी भाषा में लिखी गई कविताएँ शामिल हैं। यह ग्रंथ उनकी काव्यशैली, भाषा और विचारधारा को समर्पित है।

खुसरो फारसी के ही महान कवि नहीं थे, उन्हें अपनी मातृभाषा हिन्दी (हिन्दवी) से भी बहुत प्रेम था। खुसरो ने दिल्ली के आस-पास की बोली को जिसे आगे चलकर खड़ी बोली का नाम दिया गया सँवारनें, सुधारने और साहित्यिक स्वरूप देने का सर्वप्रथम प्रयास किया। कालांतर में यही भाषा अपने परिनिष्ठित रूप में आधुनिक हिन्दी और उर्दू का आधार बनी और स्वतंत्र भारत के संविधान में इसी हिन्दी को देश की राजभाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ।

अमीर खुसरो ने ताउम्र अपना जीवन एक अच्छा इंसान होकर बिताया। उन्होंने पूरी उम्र कोई भी गलत कार्य नहीं किए। वह हर पल ईश्वर और अपनी कविताओं में ही डूबे रहते। हिंदी साहित्य में इनका भी बड़ा योगदान रहा है। वह हिंदी, हिन्दवी और फारसी में लिखने के लिए जाने जाते हैं। अमीर खुसरो को भारत का तोता की उपाधि दी गई थी। कहते हैं कि वह अपने गुरु निज़ामुद्दीन मुहम्मद बदायूनी सुल्तानुलमशायख औलिया से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। जब औलिया साहब ने अपना देह त्यागा तो सबसे ज्यादा दुखी कोई हुआ तो वह अमीर खुसरो ही था। अमीर खुसरो को अपने गुरु को खोने से बड़ा सदमा लगा। कहते हैं कि कई दिन तक अमीर खुसरो अपने गुरु की समाधि पर ही सिर टिकाए सोया रहा। फिर एक दिन अक्टूबर 1325 में अमीर खुसरो ने भी अपने प्राण त्याग दिए।

पहेलियाँ / बूझ पहेली

  1. बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।

खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव॥

पहेली सामान्य भाषा में – जब यह छोटा होता है, तो सबको बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जब यह बड़ा हो जाता है तो किसी काम का नहीं रहता। खुसरो ने इसका नाम बता दिया है, बस इसका अर्थ करो और गाँव मत छोड़ो।

 

उत्तर – दीपक (दीया)

व्याख्या – एक नया दीया (छोटा) जब जलाया जाता है, तो वह सबको रोशनी देता है और सबको पसंद आता है। लेकिन जब वह जलकर बूझ या समाप्त हो जाता है या उसकी बाती टूट जाती है (बड़ा हो जाता है), तो किसी काम का नहीं रहता।

 

  1. फ़ारसी बोली आई ना। तुर्की ढूँढी पाई ना॥

हिन्दी बोली आरसी आए। खुसरो कहें कोई न बताए॥

पहेली सामान्य भाषा में – इसे फ़ारसी बोलना नहीं आता और तुर्की भी नहीं मिलती। यह हिंदी में ‘आरसी’ बोलती है। खुसरो कहते हैं कि कोई बता नहीं सकता।

उत्तर – तोता

व्याख्या – वास्तव में यह पहेली हिन्दी की प्राकृतिकता और सुलभता को दर्शाती है। खुसरो कहते हैं कि लोग विदेशी भाषाओं (फ़ारसी, तुर्की) की खोज में उलझे रहते हैं, लेकिन हिन्दी स्वाभाविक रूप से हमारे बीच है, यह हमें स्वत: ही आ जाती है। अपनी बातों को पुष्ट करने के लिए खुसरो कहते हैं कि तोता फारसी और तुर्की नहीं बोलता, लेकिन जब वह हिन्दी बोलता है (मनुष्य की बोली की नकल करता है), तब वह ‘आरसी’ (आईना) जैसा लगता है यानी हमारी ही बोली को दोहराता है।

 

  1. पौन चलत वह दें बढ़ावे। जल पीवत वह जीव गँवावे॥

है वह प्यारी सुंदर नार। नार नहीं पर है वह नार॥

पहेली सामान्य भाषा में – हवा चलने पर वह बढ़ती है। पानी पीने पर वह जान गँवा देती है। वह एक प्यारी सुंदर नार है, पर नार (स्त्री) नहीं है, फिर भी नार है।

उत्तर: आग (Aag)।

आग हवा से बढ़ती है लेकिन पानी से बुझ जाती है। यहाँ खुसरो जी ने ‘नार’ शब्द का प्रयोग बड़ी ही चतुरता से किया है; यह ‘नार’ का अर्थ स्त्री भी है और इसका एक अर्थ ‘ज्वाला’ या ‘अग्नि की लपट’ भी होता है।

 

  1. सावन भादों बहुत चलत है, माघ पूस में थोड़ी।

अमीर खुसरो यूँ कहें, तू बूझ पहेली मोरी।

पहेली सामान्य भाषा में – सावन और भादों (मानसून के महीनों) में यह बहुत चलती है, लेकिन माघ और पूस (सर्दियों के महीनों) में कम चलती है। अमीर खुसरो कहते हैं, मेरी पहेली बूझो।

उत्तर: नदी (या नाला)

व्याख्या – बारिश के मौसम (सावन-भादों) में नदियों में पानी का बहाव बहुत तेज़ होता है और वे भर जाती हैं। वहीं, सर्दियों में उनका बहाव या जलस्तर कम हो जाता है।

 

  1. गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।

खुसरो कहें नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।

पहेली सामान्य भाषा में – गोल, मोटा और छोटा है, हमेशा ज़मीन पर पड़ा रहता है। खुसरो कहते हैं कि यह झूठा नहीं है, जो इसे न बूझे वह अक्ल का खोटा (मूर्ख) है।

 

उत्तर: लोटा (बर्तन) या गेंद

व्याख्या – ‘लोटा’ गोल मटोल होता है, ज़मीन पर लुढ़कता है और इसे बहुधा घरेलू कार्यों में प्रयोग किया जाता है।

इसका उत्तर ‘गेंद’ भी हो सकता है। गेंद गोल और छोटी-मोटी होती है और खेलते समय जमीन पर लोटती रहती है।

 

  1. एक मंदिर के सहस्र दर, हर दर में तिरिया का घर।

बीच-बीच वाके अमृत ताल, बूझ है इनकी बड़ी महाल॥

पहेली सामान्य भाषा में – एक मंदिर है जिसमें हज़ारों दरवाज़े हैं, और हर दरवाज़े में एक स्त्री का घर है। उनके बीच-बीच में अमृत के तालाब हैं। यह बहुत बड़ी पहेली है।

 

उत्तर: मधुमक्खी का छत्ता/ मानव शरीर

व्याख्या: मधुमक्खी के छत्ते में हज़ारों छोटे-छोटे कोष्ठ (दरवाज़े) होते हैं, जिनमें मधुमक्खियाँ (स्त्रियाँ) रहती हैं। उन कोष्ठों में शहद रूपी अमृत भरा होता है।

यह मानव शरीर है जिसमें हजारों छिद्र (दरवाजे) हैं। हर जगह जीवन (स्त्री – प्रतीकात्मक) है। शरीर के भीतर रक्त का प्रवाह (अमृत ताल) होता है। शरीर सबसे बड़ा रहस्य है।

 

  1. पानी में निसदिन रहे, जाके हाड़ मास।

काम करे तलवार, का फिर पानी में बास॥

पहेली सामान्य भाषा में – वह दिन-रात पानी में रहता है, उसके पास हड्डियाँ और मांस है। वह तलवार का काम करता है, फिर भी पानी में रहता है।

 

उत्तर – मछली

व्याख्या – मछली पानी में रहती है, उसमें हड्डियाँ और मांस होते हैं। जब वह पानी में तैरती है, तो उसकी गति तलवार की तरह तेज़ होती है, इसलिए कहा गया है कि वह तलवार का काम करती है।

 

  1. चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़-हाड़ में वाके छेद।

मोहि अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे॥

पहेली सामान्य भाषा में – उसके पास न तो चमड़ा है और न ही मांस, उसकी हर हड्डी में छेद हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि उसमें जीवन कैसे बसता है।

 

उत्तर – पिंजरा

व्याख्या – इस पहेली में एक पिंजरे का वर्णन है। खुसरो कहते हैं कि इसमें कोई चमड़ी या मांस नहीं होता, लेकिन फिर भी उसमें पक्षी या अन्य जानवर रहते हैं। यही विरोधाभास इस पहेली को उच्च कोटी का बनाता है।

 

  1. एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥

पहेली सामान्य भाषा में – एक थाल मोतियों से भरा है। वह सबके सिर पर उलटा रखा हुआ है। वह थाली चारों ओर घूमती है, पर उससे एक भी मोती नहीं गिरता।

 

उत्तर – आकाश और तारे

व्याख्या – आकाश एक थाल की तरह है, जिसमें तारे मोतियों की तरह बिखरे हुए हैं। यह थाल (आकाश) हमें हमेशा हमारे सिर पर उल्टा दिखाई देता है, और यह घूमता रहता है, लेकिन तारे रूपी मोती कभी नहीं गिरते।

 

  1. श्याम बरन पीताम्बर काँधे, मुरलीधर ना होए।

बिन मुरली वह नाद करत है, बिरला बूझे कोय॥ 

पहेली सामान्य भाषा में – उसका रंग साँवला है, वह कंधे पर पीला वस्त्र रखता है, लेकिन वह मुरलीधर (श्री कृष्ण) नहीं है। वह बिना मुरली के आवाज़ करता है, इसे कोई-कोई ही बूझ पाता है।

 

उत्तर – बादल

व्याख्या – बारिश के बादल काले (श्याम वर्ण) होते हैं। जब सूर्य की रोशनी बादलों पर पड़ती है, तो वे कभी-कभी सुनहरे (पीताम्बर – पीले रंग के) दिखाई देते हैं। बादल बिना किसी वाद्य यंत्र (मुरली) के गरजते हैं, जिससे आवाज़ अर्थात् नाद निकलती है।

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