लेखक परिचय : ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गाँव में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। उनका बचपन संघर्षो से भरा रहा है। कलाम साहब हमेशा सीखने की कला को महत्त्व देते थे। वह बचपन में अखबार बेचते थे क्योंकि उनके परिवार के पास ज्यादा पैसे नहीं थे और न ही उनके पिता जैनुलाब्दीन ज्यादा पढ़े-लिखे थे। अब्दुल कलाम भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति रहे हैं। वे एक गैरराजनीतिक व्यक्ति रहे हैं फिर भी विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण इतने लोकप्रिय रहे कि देश ने उन्हें सिर माथे पर उठा लिया तथा सर्वोच्च पद पर आसीन कर दिया। एक वैज्ञानिक का राष्ट्रपति पद पर पहुँचना पूरे विज्ञान जगत के लिए सम्मान तथा प्रतिष्ठा की बात थी। कहते है कि जो व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है, उसके लिए दूसरे क्षेत्रों में भी सब कुछ आसान और सहज हो जाता है। डॉ. कलाम इस बात को चरितार्थ करते हैं। भारत को अंतरिक्ष में पहुँचाने तथा मिसाइल क्षमता प्रदान करने का श्रेय डॉ. कलाम को जाता है। उनके द्वारा सफलतापूर्वक विकसित अग्नि और पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों ने राष्ट्र की सुरक्षा को मजबूती प्रदान की है। डॉ. कलाम अविवाहित नागरिक रहे और इनकी जीवन-गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं है।
चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉ. कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत है कि वह सभी धर्म, जाति एवं संप्रदायों के व्यक्ति नजर आते हैं। वे एक ऐसे सर्वस्वीकार्य भारतीय हैं जो देश के सभी वर्गों के लिए ‘एक आदर्श’ बन चुके हैं। विज्ञान की दुनिया से होकर देश का प्रथम नागरिक बनना कोई कपोल-कल्पना नहीं है बल्कि यह एक जीवित प्रणेता की सत्यकथा है। डॉ. कलाम ने विंग्स आफ फायर, इग्नाइटेड माइंड्स, इंडिया माय ड्रीम, साइंटिस्ट टू प्रेसिडेंट, माईजन जैसी कई सुप्रसिद्ध पुस्तकें लिखी हैं। 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) शिलांग में व्याख्यान देते समय हृदय गति रुकने से अचानक उनका निधन हो गया।
विज्ञान में जीवन
सन् 1998 में भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण पोखरण में किया। मैं इसके विकास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था। मुझे विभिन्न सम्मान व उपाधियाँ दी गईं। कई वर्षों बाद तथा राष्ट्रपति के कार्यकाल के बाद भी एक उपाधि मेरे साथ रही- ‘मिसाइल मैन’। इस नाम से बुलाए जाने पर मुझे अच्छा लगता है। यह विज्ञान जगत् की शख्सियत की बजाय किसी बच्चे का कारनामा लगता था। इस देश की जनता ने कई बार मुझ पर अपार प्रेम और सम्मान की बारिश की है। मेरे लिए इंजीनियरिंग, रॉकेट और विज्ञान का क्षेत्र मेरी जीवन-यात्रा की चरम सीमा को प्रकट करता है। इस यात्रा का शुरुआती समय उस समय लौट आता है- जब मैं इतने पीछे की ओर जाकर सोचता हूँ। मैं अचंभित हो जाता हूँ कि क्या यह मेरे साथ हुआ? क्या यह किसी पुस्तक की एक कहानी है, जिसे मैंने पढ़ा है? ये सभी बातें मुझे एक ऐसा इनसान बनाने की ओर ले जाती हैं, जो वास्तव में विज्ञान का रास्ता चुनता है। जो उसे याद आ रहा है, वह नदी पर डेल्टा के छोर से की गई यात्रा है, जो दूर, बहुत दूर धारा के बहाव में मुझे अंत तक पहुँचाती है। जैसे मैं एक छोटा लड़का हूँ और अपने जीवन के रास्ते की खोज करने की कोशिश कर रहा हूँ।
मेरी शिक्षा सही मायनों में रामेश्वरम को छोड़कर उच्च शिक्षा के लिए रामनाथपुरम जाने पर आरंभ हुई, जिसके विषय में मैंने पहले भी लिखा है। यह पहली बार हुआ था, जब मैं रामेश्वरम, अपनी माँ और अन्य जाने-पहचाने सुरभित घेरे से बाहर निकला था। मैं एक शरमीला व छोटा कस्बाई लड़का था, जो अधिक बोलने से डरता था। श्वार्ट्ज हाई स्कूल में मेरा पहली बार विज्ञान के अजूबे से सामना हुआ, जो मेरे दिमाग में उतर गया। इस स्कूल में एक अध्यापक आदरणीय इयदुराई सोलोमन थे, जो उदार व खुले विचारोंवाले थे और मेरी प्रतिभा से प्रभावित भी थे। वे मेरे मार्गदर्शक बने।
मैं आकाश में पक्षियों की उड़ान देख मोहित हो जाता था और घंटों तक उनके उड़ने के अंदाज को तथा आकाश मार्ग में आगे बढ़ते रहने को देखता रहता था। मुझमें छोटी सी उम्र में ही उड़ने और उन पक्षियों में से एक होने की इच्छा जन्म ले चुकी थी। एक दिन जब मैं उड़ान की भौतिकी पढ़ रहा था, तब आदरणीय इयदुराई सोलोमन हमारे विद्यार्थियों के समूह को समुद्र तट पर ले गए। वहाँ वे हमें पक्षियों की ओर ध्यान देने के लिए कहते हैं और समुद्र के किनारे खड़े हो जाते हैं, जहाँ लहरों के सारस और सीगलों का शोर सुनाई पड़ता है। वे समुद्री धाराओं, वायु गतिकी, वैमानिकी तथा वायु बहाव की नई दुनिया को हमारे सामने खोलते हैं। मैं उन पंद्रह वर्षीय विद्यार्थियों के समूह में से एक था, शायद तब उसके लिए वह विज्ञान का पाठ सबसे महत्त्वपूर्ण था। अचानक उस समय मेरा मोहित होनेवाला विषय पूरी तरह से स्पष्ट और पारदर्शक हो गया था। यह इस प्रकार था, मानो मैं बादल से घिरी एक खिड़की के पीछे देख रहा था! अब खिड़की खुल गई और मैं खुली आँखों से इस विशाल संसार को देखने लगा। मुझे अधिक जानकारी प्राप्त करने की प्यास लग रही थी।
मेरा मार्ग विद्यालय में ही बना और फिर बाद में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली में। वहाँ कई प्रकार के सुनहरे अवसर मेरा इंतजार कर रहे थे। मैंने पहले ही सोच लिया था कि मुझे अपना दिमाग और आँखें खुली रखनी होंगी, अपने दिमाग को दुरुस्त व केंद्रित करना होगा। यहाँ मेरे रास्ते में कुछ भी ऐसा नहीं होगा, जिसे मैं सीखकर नहीं कर सकता। जब सेंट जोसेफ में प्रो. चिन्नादुरई और प्रो. कृष्णमूर्ति ने उप- परमाणु भौतिकी की संकल्पना बताई, तब मैंने पहली बार संसार के इस छुपे हुए विषय के बारे में और हमारे चारों ओर इसके क्षरण हो जाने पर सोचना आरंभ कर दिया। मैंने पदार्थों के अर्ध जीवनकाल और रेडियोधर्मी क्षय के बारे में जाना और एकाएक संसार उन ठोस निश्चितताओं से परे नजर आने लगा, जिनसे वह बना हुआ था। मैं विज्ञान एवं आध्यात्मिकता के द्वैत भाव की ओर भी सोचने लगा। क्या यह सब एक-दूसरे से अलग थे, जैसे वे दिख रहे थें? अगर उप-परमाणु अंश का स्तर अस्थायी और विघटित हो जाता है, तब यह सब मानव जीवन की अवस्था से कैसे दूर किया जाता था? विज्ञान ही समस्त प्राकृतिक घटनाक्रम का उत्तर दे सकता है और यह आध्यात्मिकता ब्रह्मांड की समूची संरचना में हमारे स्थान को समझने में हमारी सहायता करती है। जब कोई व्यक्ति गणित और सूत्र के ठोस निश्चित स्वरूप को देखता है, यही आध्यात्मिकता अनुभूति से मन को उदार बनाकर एवं व्यक्ति के स्व के भीतर गहराई में उतरकर ऐसा करती है। यहाँ मुझे मेरी विज्ञान की दुनिया पिताजी की अध्यात्म की दुनिया में समीपता नजर आने लगी थी।
मैं तिरुचिरापल्ली से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एम.आई.टी. (मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान) गया। यहाँ काम में न लाए जा रहे दो विमान रखे थे। यह दृश्य मानव उड़ान को लेकर मेरी इच्छा पूरी कर रहा था। मैं पतंगे की तरह इस विषय की ओर आकर्षित हुआ और महसूस किया कि यहाँ मेरा भविष्य या जीवन का लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक मैं उड्डयन से जुड़ी गतिविधियों व प्रक्रियाओ की तह तक नहीं जाता। एम.आई.टी. में तीन शिक्षकों ने मेरी अभिलाषा को साकार किया और मुझे वास्तविकता के धरातल पर ले गए। इनमें ऑस्ट्रियाई प्रोफेसर स्पॉण्डर ने मुझे वायुगतिकी, प्रो. के. ए. वी. पडालाई ने एयरी-स्ट्रक्चर डिजाइन और विश्लेषण तथा प्रो. नरसिंहा राव ने सैद्धांतिक वायुगतिकी का अध्ययन कराया।
ये तीन शिक्षक थे, जिनके कारण मुझमें वायुगतिकी के प्रति आकर्षण जाग्रत हुआ और जब स्पष्ट होता गया कि कैसे और क्यों वायु में वस्तुएँ गतिमान होती हैं, मैं अपने आप में जटिल, गतिशील अस्थायी दुनिया, गति के प्रकार एवं उलझी लहरों के महाजाल की खोज में खो गया। ठीक इसी समय मुझे वायुयान के आकार-प्रकार स्पष्ट हुए और मैंने पूरे उत्साह से बाई प्लेन, एकतल वायुयान, पुच्छ-रहित विमान और कई अन्य अध्ययन के विषयों को पढ़ना शुरू कर दिया।
यहाँ कई प्रकार की घटनाएँ घटित हुईं। जब मैं एम.आई.टी. में था, मैंने स्वयं विज्ञान की दुनिया की खोज शुरू कर दी। यह सब उस समय हुआ, जब देश की प्रगति में प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू वैज्ञानिक विकास पर विशेष बल दे रहे थे। मेरे चारों ओर, खासतौर पर शैक्षिक संस्थान में, मैंने यह पाया कि हमें सोचने के पारंपरिक तरीके को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना होगा, इस नए वातावरण का लाभ उठाना होगा। उत्तम होगा कि हम वैज्ञानिक तरीकों से ज्ञान की खोज करें। मैं रामेश्वरम के धार्मिक वातावरण में पला-बढ़ा था, इसलिए मेरे लिए ऐसा करना बहुत कठिन था, बल्कि मैं विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच अनिवार्य अभिन्नता के सूक्ष्म एहसास को साकार रूप देने का प्रयास करने लगा। मैं यह नहीं मानता कि प्रत्यक्ष संवेदी धारणा ही केवल सच्चाई और ज्ञान स्रोत हैं। मैं यह जान पाया कि आध्यात्म के क्षेत्र में वास्तविक सच्चाई सांसारिक उपकरणों पर आधारित होती है और सच्चा ज्ञान अपनी आंतरिक खोज का अंश होता है। अब मैं अधिक-से-अधिक किसी अन्य प्रकार की दुनिया का हिस्सा बनता जा रहा था— जो प्रमाणों, प्रशिक्षण और सूत्रों से प्रभावित है।
आखिरकार मैं एम.आई. टी. (मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान) से इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ बाहर निकला। अब तक मैंने मिसाइल और रॉकेट की दुनिया के बारे में बहुत अधिक जान लिया था और समझ गया था कि जिस दिशा में मैं जा रहा हूँ, यह मेरी प्रगति और भविष्य का हिस्सा है। जब मैं यह सब जान गया तो इस संसार की खोज के लिए द्वार खुल गए और अब मैं आकाश में ऊँची उड़ान भरने का कार्य कर रहा था।
कई वर्षों बाद डी. टी. डी. एंड पी. (एयर) में मैं विभिन्न समूहों का हिस्सा बन गया। यह हॉट कॉकपिट क्षेत्र कहलाता था, जहाँ प्लेटफॉर्म से जाने और सीधा उतरने की प्रणाली एवं रूपरेखा तैयार की जाती थी। यह सब बंगलौर के ‘एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट’ (ए.डी.ई.) में होता था। वहाँ मैंने अनुभव किया कि मुझे कुछ हटकर करने का पहला बड़ा अवसर मिला है। यह मेरे कॅरियर को उन्नत व विकसित करने का महत्त्वपूर्ण समय है। ए.डी.ई. में मैंने प्रारंभिक अध्ययन ‘भूमिगत दक्षता सामग्री’ पर किया। इस प्रकार एक स्वदेशी हॉवर क्राफ्ट प्रोटोटाइप आवर्ती ग्राउंड इक्यूपमेंट मशीन (जी.ई.एम.) के रूप में डिजाइन करके तैयार करना था। ए.डी.ई. के निदेशक डॉ. मेदीरत्ता ने चार लोगों की एक टीम बनाई और मुझे उसका प्रमुख बनाया गया।
यह हमारे लिए एक भारी चुनौती थी। इस प्रकार की प्रौद्योगिकी के लिए कोई साहित्य नहीं था, कोई अनुभवी व्यक्ति नहीं था, जिससे हम सलाह ले सकते थे। इसके लिए कोई पहले से निर्मित रूपरेखा या मानक नहीं था, जिसका हम प्रयोग कर सकते; बल्कि इस कार्य के लिए हमारे समूह को आगे बढ़ने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं था, केवल इस जानकारी के अलावा कि हमें सफल फ्लाइंग मशीन बनानी है। यह स्तंभित करनेवाली चुनौती थी। तब मैंने सोचा कि इंजीनियरों ने जब तक मशीन नहीं बनाई, उन्हें अकेले विमान उड़ाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? परियोजना को पूरा करने के लिए हमें तीन वर्ष दिए गए और हमने पहले के कई महीने अपने कदम जमाने की कोशिश में ही लगा दिए। तब मैंने एक लक्ष्य तय किया कि हमें सिर्फ उपयुक्त हार्डवेयर के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है और जैसे-जैसे वे सामने आते जाएँ, उनका प्रयोग किया जाए। इस बड़ी चुनौती के बावजूद यह परियोजना मेरे मन के करीब थी और मेरी कल्पना ऊँची उड़ान भर रही थी। कई महीनों के बाद हमने रूपरेखा की प्रक्रिया के विकास में गति पकड़ ली।
अब मैं अधिक दृढ़ निश्चयी एवं आत्मविश्वास से परिपूर्ण था, लेकिन छोटे कस्बे की मध्यम वर्ग की जड़ें अभी भी मेरी आत्मा में बसी थीं। मैं ऐसी दुनिया में आ गया था, जहाँ दूसरों को कार्य करने का निर्देश देना था; जबकि मुझे वरिष्ठ सहयोगियों के सवाल और शंकाओं का भी सामना करना था। मुझपर ऐसा प्रभाव पड़ रहा था, मानो लोहे को आग में तपाया जा रहा हो ! मेरे जैसे लोग आंतरिक दृष्टि से संकोची होते हैं, जो शहरी साथियों से अलग पृष्ठभूमि से आते हैं। वे तब तक सामने नहीं आना चाहते, जब तक कोई उन्हें केंद्र बिंदु की ओर धकेलता नहीं हैं। मैं समझ गया था कि मुझे वह ‘पुश’ मिल चुका है और मैं हॉवर क्राफ्ट परियोजना की सफलता के लिए अपना ज्ञान व श्रम लगाने के लिए कृत संकल्प हो चुका था। संगठन के भीतर ऐसे अनेक व्यक्ति थे, जो इस परियोजना की प्रासंगिकता तथा इस पर समय तथा धन लगाने के औचित्य पर प्रश्न उठाते थे। वे मेरी भूमिका पर सवाल उठा रहे थे, लेकिन मेरी टीम और मैं केवल अपना सिर नीचे किए चुपचाप काम करते रहे। हम धीरे-धीरे हर अवस्था से गुजरते गए और प्रोटोटाइप आकार लेने लगा, जैसे कि पहले एम.आई.टी. में प्रो. श्रीनिवासन ने मेरा डिजाइन कार्य रद्द कर दिया था और मैं लगातार दो रात कार्य करता रहा था, मैं पुनः उसी स्थिति में आ चुका था। मेरा मन अविश्वसनीय रूप से लचीला हो गया था। जब मेरा मन मस्तिष्क खुलता था, तो कोई बाधा आड़े नहीं आ सकती थी। खुद पर विश्वास ऐसी परिणति है, जिसे आपसे कोई नहीं छीन सकता।
इस परियोजना को ‘नंदी’ नाम दिया गया और रक्षा मंत्री वी. के. कृष्ण मेनन ने हमें आशीर्वाद दिया। वह दृढ़ विश्वास रखते थे कि यह भारत में रक्षा उपकरणों के विकास की शुरुआत है। वे उत्कंठा से हमारे कार्य को देख रहे थे और एक वर्ष के बाद वे हमारी कार्य प्रगति का परीक्षण कर रहे थे। उस समय डॉ. मेदीरत्ता से उन्होंने कहा, “कलाम और उसकी टीम को कामयाबी अवश्य मिलेगी।”
हम सचमुच कामयाब हो गए थे। तीन वर्ष बीतने से पहले ही हमने पूरी तरह से कार्यशील प्रोटोटाइप तैयार कर लिया था और हम मंत्रीजी को दिखाने के लिए तैयार थे। कृष्ण मेनन ‘नंदी’ से उड़ान भर रहे थे और मैं उसे उड़ा रहा था। हालाँकि सतर्कता की दृष्टि से कुछ और ही व्यवस्था आवश्यक थी और मैंने पहली बार आनंद एवं कुछ करने की अनुभूति महसूस की। यह हमारे ज्ञान और टीम वर्क का फल था। इस देश में पहली बार ऐसा दुआ। दुर्भाग्यवश, ‘नंदी’ की कहानी सुखांत नहीं रही। जब कृष्ण मेनन अपने पद पर नहीं थे, तब उनके उत्तराधिकारियों ने इस हॉवर क्राफ्ट के उपयोग से ज्यादा उम्मीद नहीं लगाई। वह विवादास्पद विषय बन गया और अंततः वह परियोजना बंद हो गई। यदि इस धरती पर कोई मुझे उतारता तथा दिखाता कि कभी कभी आकाश ही हमारी सबसे ऊपरी सीमा नहीं होती है तो यह कटु सबक मिलता कि अकसर आपसे भी ज्यादा बड़ी ताकत होती है, जो आपके काम को अंजाम देती है। मुझे अन्य सबक यह मिला कि कुछ क्षेत्रों को मैं प्रभावित नहीं कर सकता, परंतु मैं निश्चित रुप से भरसक प्रयास करता और अपनी पूरी क्षमता से करता और कौन जानता है कि हमारे कार्यक्रम का क्या फल मिलेगा? मैं अभी भी ‘नंदी’ की निराशा से उबरने का प्रयास कर रहा था। घटनाक्रम के परिणामस्वरूप ‘ TIFR’ (Tata Institute of Fundamental Research) के प्रो. एम. जी. के. मेनन इसे देखने आए तथा इसके बारे में सवाल पूछे। अंततः मैं रॉकेट इंजीनियर के रूप में ‘इन्कोस्पार’ (INCOSPAR) में काम करने लगा और मुझे डॉ विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में काम करना था।
‘इन्कोस्पार’ (INCOSPAR) के बाद मैं ‘इसरो’ (ISRO) में गया। वहाँ मुझे विभिन्न प्रकार के रॉकेट के विकास का कार्य सौंपा गया था और मुझे अंतरिक्ष वाहन के एक रॉकेट से दूसरे रॉकेट के चारों ओर की दूरी की पहुँच तक उपग्रह के वाहन को पहुँचाने का कार्य दिया गया। वे डॉ साराभाई ही थे, जिनकी देख-रेख में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास और विभिन्न विकासात्मक कार्य साथ-साथ हो रहे थे। मैं सौभाग्यशाली था, जो इस परियोजना का हिस्सा बना। मैं मानता था कि एस. एल. वी में बहुत जटिल चुनौती सामने आई थी। मैं उपग्रहों को कक्षा में भेजनेवाले लॉञ्च व्हीकल के विकास की बड़ी परियोजना को निर्देशित कर रहा था। इससे हम न केवल एक प्रौद्योगिकीवाले देश बन जाते बल्कि दूसरे देशों के उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करके धन भी कमा सकते थे।
मैंने अपनी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ में एस. एल.वी. की निर्माण यात्रा का विश्लेषण किया है। यह कई कारणों से अत्यधिक जटिल यात्रा थी। जब एक परियोजना विकसित होती है, तब लगातार कठिनाइयाँ आती हैं। हम एक बजट देते थे- समय और स्रोत दोनों रूपों से। यह हमारी जिम्मेदारी होती थी कि हमें इसी बजट में अपने परिणाम हासिल करने है। यह मेरे लिए एक तनाव का समय था। अंतरिक्ष कार्यक्रम के तीन वर्षो में, मैंने अपने तीन प्रिय व्यक्तियों-अहमद जलालुद्दीन, अपने पिताजी व अपनी माताजी को खो दिया था। लेकिन यह समय स्वयं को पूरी तरह से काम में डुबो देने का था और मुझे परिणाम पर ध्यान केंद्रित करना था। मुझे परियोजना को सफलता तक लाना था।
अगर मैं आज पूछता हूँ, कि सबसे बड़ी सीख क्या थी, जो मैंने एस. एल. वी के विकास से सीखी है, तो मैं कहूँगा कि यहाँ तीन कारण है- पहला, जब मुझे देश के विकास में विज्ञान, तकनीकी खोज और इंजीनियरिंग की भूमिका नजर आती थी। एस. एल. वी पर वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और इंजीनियरों के कई दल कार्यरत थे। एक टीम लीडर के रूप में मेरा कार्य रेखाओं को बनाना और निर्देशन देने जैसा था। मैंने सीखा कि विज्ञान असीमित तथा गवेषणात्मक है। इसमें उत्तर ढूँढ़ना यात्रा कर रहे यात्री के समान है, इसमें यात्रा करते हुए सबका विशलेषण करके एक दिन सब संभव हो जाएगा। विज्ञान एक आनंद और जुनून है। दूसरी ओर विकास एक बंद फंदा है। यह वैज्ञानिकों द्वारा किया गया कार्य है और यह कुछ कदम आगे ले जाता है। यह गलतियों की अनुमति नहीं देता। सुधार और प्रोन्नति में गलतियों से सीखता है। तब जहाँ वैज्ञानिक हमें राह दिखाता है और संभावनाओं को खोलता है, हम स्वदेशी लॉञ्च व्हीकल के विकास में सफल होते हैं। एक परियोजना की सफलता व्यावहारिक होती है। यह जरूरी होता है कि सभी भागों को आगे-पीछे और केंद्रित करके ऑरकेस्ट्रा के समान कार्य किया जाए।
दूसरा सबक मुझे यह मिला कि प्रतिबद्धता के साथ काम करना। उन दिनों, जब मैं परियोजना के अलावा अपने आप में कुछ अन्य सोच रहा था, यहाँ मेरी तरह अन्य भी थे, जो कड़ी मेहनत में वही विश्वास और उत्साह रखते थे। अब मेरे लिए कभी भी यह नहीं कहा जा सकता कि बुद्धिमानी के शब्द अधिक मूल्यवान् हैं, जिसे वेनंहर वॉन ब्राउन द्वारा कहा गया। रॉकेट के क्षेत्र में वॉन ने वी-2 मिसाइल तैयार की, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के समय लंदन का विनाश किया था। बाद में उन्होंने नासा (NASA) के रॉकेट कार्यक्रम में प्रवेश किया, जहाँ वे जुपिटर मिसाइल बनाते थे, जो पहली लंबी दूरी की मिसाइल थी। वे वैज्ञानिक, डिजाइनर, इंजीनियर, प्रशासक और एक प्रौद्योगिकी प्रबंधक थे। वे ‘आधुनिक रॉकेट की दुनिया’ के जनक माने जाते थे। जब वे भारत आए, मुझे उनके साथ उस समय उड़ान भरने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जब मैं उन्हें लेने चेन्नई गया और थुंबा तक साथ रहा। वे मुझसे कहते थे कि कार्य की प्रकृति की गहराई दिमाग में स्थिर है – “तुम्हें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हमें सिर्फ सफलता के लिए ही निर्माण नहीं करना है, हमें असफलता पर भी कार्य करना है।” वैज्ञानिक के पेशे के लिए बहुत कड़ी मेहनत और समर्पण की आवश्यकता होती है। वे कहते हैं, “रॉकेट के क्षेत्र में कड़ी मेहनत ही काफी नहीं है। यह एक खेल नहीं है, जहाँ हम सिर्फ कुछ घंटों में ही कड़ी मेहनत ले आएँ। यहाँ तुम्हारे पास सिर्फ एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि तुम्हें जल्द से जल्द अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सही नीति की आवश्यकता है।”
पूर्ण प्रतिबद्धता ही कड़ी मेहनत नहीं है। इसमें पूर्ण रूप से सक्रिय होना भी है। यह लक्ष्य की पृष्ठभूमि के विषय में है। अपके सामने लक्ष्य होना चाहिए कि आप कड़ी मेहनत की बदौलत परिणाम से कुछ अलग बना सकें। मैंने इन शब्दों में विश्वास करने के साथ-साथ इन्हें अपनाया भी “रॉकेटरी को अपना पेशा नहीं बनाना है, अपना लक्ष्य व धर्म बनाना है।” जीवन के इस क्षण में मैंने एस. एल. वी की परियोजना के अलावा सबकुछ रोक दिया था। मैंने तनाव पर काबू पाना सीख लिया था। यही एक रास्ता था, जिसके द्वारा आपका मन-मस्तिष्क उन मुश्किलों को झेल सकता था, जो आपके लक्ष्य के रास्ते में बिखरी होती हैं, जिस पर परिणाम निर्धारित होता है। मेरा विश्वास था कि हमें ऐसी मुश्किलों की आवश्यकता है, जिनसे किसी भी लक्ष्य के आखिरी मोड़ पर सफलता का आनंद लिया जा सके।
यह एस. एल. वी परियोजना मुझे तीसरे सबक की ओर ले जाती है, जो हमें बाधाओं के साथ संबंध स्थापित करने और सीखने योग्य बनाती है। यह ज्ञात तथ्य है कि एस. एल. वी – 3 का पहला प्रायोगिक परीक्षण एक दुर्घटना में परिणत हो गया था और लॉञ्च व्हीकल समुद्र में गिर गया था। पहला चरण पूर्ण सफल रहा था। यह दूसरी अवस्था थी, जब चीजें नियंत्रण के बाहर चली गई थीं। यह उड़ान 317 सेकंड के बाद समाप्त हो गई थी। पेलोड के साथ चौथी अवस्था को मिलाकर, व्हीकल समुद्र में टकराने के बाद बिखरकर श्रीहरिकोटा में 560 किलोमीटर तक चला गया था।
मैं घटना के बदलावों पर विश्वास करके सुन्न रह गया था। हाँ, मैने असफलता का अनुभव किया, परंतु यह कड़ी मेहनत का दुःखांत होने वाला था, जिससे उबरना मुश्किल था। मेरे दिमाग में विचारों की घुमड़ती श्रृंखला के लिए कोई जवाव नहीं था – क्या गलत हो रहा था? मेरी शारीरिक शक्ति क्षीण हो रही थी, जैसे मैं तनाव के साथ बाहर आ रहा था और अब यहाँ कुछ भी अपने लिए कहने को नहीं था या मेरे चारों ओर के किसी अनुभव से शून्य होना। आखिरकार मेरे सारे विचार सो गए थे। ‘मुझे विश्लेषण की राह पर जाने से पहले सोना होगा’- मैंने अपने आपसे कहा। मुझे याद है, मैं कई घंटों तक सोया और डॉ. ब्रह्मप्रकाश नें मुझे धीरे से उठाया। वे मेरे बॉस थे, लेकिन उस समय वे मेरे लिए सिर्फ आदरणीय व्यक्ति थे, जो मेरी चिंता करते थे। वे मुझे उठाते थे भोजनालय में जाकर भोजन करने में सहयोग देते थे। हम साथ-साथ खाना खाते थे और लॉञ्चिंग करने के बारे में पूरे समय वे मुझे तसल्ली देते रहते थे। उस समय सिर्फ हम दो व्यक्ति थे और थकान से परे हमें विश्वास था कि हमारी रचना खराब नहीं होगी। हम जानते थे कि हमें अधिक पहाड़ों पर चढ़ना होगा और आनेवाले दिनों में चोटी को जीतना होगा, लेकिन ठीक उसी समय वे मुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेते थे, जैसे कोई अभिभावक उस बच्चे के साथ करते हैं, जो अपनी दौड़ में रह जाने के बाद कुछ खो देता है – उसे खाना देते हैं, आराम देते हैं और उसके अगले कदम के बारे में सोचने का अवसर देते हैं।
शायद यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सीख है, जो मैंने एस. एल. वी-3 से सीखी कि मानवता, उदारता और समझदारी के गुण कभी भी गिरने नहीं देते हैं। दिन के अंत में, जब लक्ष्य निर्धारित हो गया तब राह टेढ़ी- मेढ़ी और बाधा सिर पर थी। यह सिर्फ मानवता का मूल्य है कि सच्ची सहायता निश्चित प्राप्त होगी। समय आने पर योग्यता, स्नेह, क्षमा, दया सबकी आवश्यकता पड़ती है, चाहे हमें स्कूल में पढ़ाना हो या मिसाइल का विकास करना हो या उच्च पद को सँभालना हो। अभिभावकों को अपने बच्चों को हमारे इस उलझे हुए संसार से बाहर लाना होगा। यहाँ से मेरी यात्रा विज्ञान के संसार में आगे चली जाती है – इसरो से मैं डी.आर.डी.ओ. की ओर मुड़ा, जहाँ मैं एक समूह का हिस्सा था, जो भारत के पहले स्वदेशी मिसाइल सिस्टम – पृथ्वी, त्रिशूल, नाग और अग्नि बना रहा था। वे कैसे बनते थे और किस तरीके से वे हमें इस कार्य पर ले जाते थे, इसका इतिहास पहले भी लिखा जा चुका है। जब हम कार्य कर रहे थे, मैं न सिर्फ रॉकेटरी और विज्ञान के क्षेत्र के बारे में नए ज्ञान को समझाता व तुलना करता था, बल्कि मैं परिवर्तन करना, प्रभावी तरह से निर्देश देना, संप्रेषण का अनुभव करता था। इसके साथ ही रूकावट और सफलता दोनों के अनुभव का भी आनंद उठाता था।
मुझे ये कहानियाँ बताने की आवश्यकता क्यों है? शायद मैं यह महसूस करता हूँ कि विषय के विविध स्तर पर जिन लोगों के साथ मैं संबंध रखता हूँ, मैं जीवन के हर पहलू का हमेशा सामना करता था, जो विस्मयकारी था। मैं उनके द्वारा कार्य करता था। मेरा ऐसा मानना है कि मैं जीवन की लहर में एक समान परिस्थिति को समझने में सबकी मदद कर सकता हूँ। तब मैं यह विश्वास करूँगा कि मेरी यह यात्रा सिर्फ मेरे जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य सभी अनगिनत लोगों के लिए भी है-
इस धरती पर
मैं
विशाल कुआँ,
मेरी जगत पर
खड़े होकर
न जाने कितने
बाल गोपाल
शांत जल सी
दिव्यता
मुझमें से
खींचते हैं,
विश्व के
कण-कण
को
अनंत करुणा से
सींचते हैं।
[‘मेरी जीवन यात्रा’ पुस्तक से संग्रहित अनुवादक महेन्द्र यादव]
शब्दार्थ
Hindi Word | Hindi Meaning (Simplified) | Bangla Meaning | English Meaning |
विज्ञान | प्रकृति के नियमों का अध्ययन | বিজ্ঞান (Biggyan) | Science |
जीवन | जीने की प्रक्रिया, अस्तित्व | জীবন (Jibon) | Life |
राष्ट्रपति | देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद | রাষ্ট্রপতি (Rashtropati) | President |
मिसाइल | लक्ष्य भेदने वाला स्वचालित हथियार | মিসাইল (Misail) | Missile |
अग्नि | एक भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल का नाम | অগ্নি (Agni) | Fire (name of a missile) |
पृथ्वी | एक भारतीय मिसाइल का नाम; धरती | পৃথিবী (Prithibi) | Earth (name of a missile) |
हॉवर क्राफ्ट | हवा और जमीन पर चलने वाला यान | হোভারক্রাফট (Hobharkraft) | Hovercraft |
वैमानिकी | उड़ान और विमान से संबंधित विज्ञान | বৈমানিকী (Baimaniki) | Aeronautics |
आध्यात्मिकता | आत्मा और ईश्वर से संबंधित चिंतन | আধ্যাত্মিকতা (Adhyatmikota) | Spirituality |
परमाणु | अणु से संबंधित, जैसे परमाणु ऊर्जा | পারমাণবিক (Paromanobik) | Nuclear |
प्रक्षेपण | अंतरिक्ष में वस्तु भेजने की क्रिया | প্রক্ষেপণ (Prokkhepon) | Launch |
उपग्रह | पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाला यंत्र | উপগ্রহ (Upogroho) | Satellite |
रॉकेट | अंतरिक्ष में ले जाने वाला यान | রকেট (Roket) | Rocket |
इंजीनियरिंग | तकनीकी डिजाइन और निर्माण का विज्ञान | ইঞ্জিনিয়ারিং (Injiniyaring) | Engineering |
प्रोटोटाइप | किसी यंत्र का प्रारंभिक मॉडल | প্রোটোটাইপ (Prototaip) | Prototype |
दृढ़ता | मजबूत इच्छाशक्ति और संकल्प | দৃঢ়তা (Drirhota) | Determination |
चुनौती | कठिन कार्य या बाधा | চ্যালেঞ্জ (Chyalenj) | Challenge |
असफलता | कार्य में विफल होने की स्थिति | ব্যর্থতা (Byarthota) | Failure |
आत्मविश्वास | स्वयं पर भरोसा | আত্মবিশ্বাস (Atmabishwas) | Confidence |
प्रेरणा | कार्य के लिए उत्साह बढ़ाने वाली शक्ति | প্রেরণা (Prerona) | Inspiration |
संघर्ष | कठिनाइयों का सामना | সংগ্রাম (Songram) | Struggle |
शिक्षा | ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया | শিক্ষা (Shikkha) | Education |
मार्गदर्शक | रास्ता दिखाने वाला | পথপ্রদর্শক (Pothprodorshok) | Mentor/Guide |
उड़ान | आकाश में उड़ने की क्रिया | উড়ান (Uran) | Flight |
वायुगतिकी | हवा में गति का विज्ञान | বায়ুগতিবিদ্যা (Bayugotibidya) | Aerodynamics |
प्रौद्योगिकी | तकनीकी ज्ञान और उपयोग | প্রযুক্তি (Projukti) | Technology |
सम्मान | आदर और प्रशंसा | সম্মান (Somman) | Honor |
आदर्श | अनुकरणीय उदाहरण | আদর্শ (Adorsho) | Ideal/Role Model |
परियोजना | नियोजित कार्य योजना | প্রকল্প (Prokolpo) | Project |
रक्षा | सुरक्षा प्रदान करने की क्रिया | রক্ষা (Rokkha) | Defense |
अविवाहित | जिसने विवाह नहीं किया | অবিবাহিত (Obibahito) | Unmarried |
उपाधि | सम्मानजनक खिताब | উপাধি (Upadhi) | Title |
अचंभित | आश्चर्यचकित होना | বিস্মিত (Bismito) | Amazed |
पारदर्शक | स्पष्ट और समझने योग्य | স্বচ্ছ (Shochcho) | Transparent |
संकल्प | दृढ़ निश्चय | সংকল্প (Shongkolpo) | Resolution |
बाधा | रास्ते में रुकावट | বাধা (Badha) | Obstacle |
तनाव | मानसिक दबाव | চাপ (Chap) | Stress |
मानवता | सभी मनुष्यों के प्रति करुणा | মানবতা (Manobota) | Humanity |
उदारता | दूसरों के प्रति सहानुभूति | উদারতা (Udarota) | Generosity |
प्रतिबद्धता | कार्य के प्रति समर्पण | প্রতিশ্রুতি (Protishruti) | Commitment |
जटिल | कठिन और उलझा हुआ | জটিল (Jotil) | Complex |
विकास | प्रगति और उन्नति | উন্নয়ন (Unnoyon) | Development |
गवेषणात्मक | अनुसंधान से संबंधित | গবেষণামূলক (Gobeshonamulok) | Exploratory |
सुधार | बेहतर बनाने की प्रक्रिया | সংস্কার (Shongskar) | Improvement |
लक्ष्य | उद्देश्य या मंजिल | লক্ষ্য (Lokkho) | Goal |
संप्रेषण | विचारों का आदान-प्रदान | যোগাযোগ (Jogajog) | Communication |
पाठ का सार – विज्ञान में जीवन
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. कलाम का जन्म रामेश्वरम के एक छोटे से कस्बे में हुआ था और वे एक शर्मीले तथा कम बोलने वाले बच्चे थे। उनकी उच्च शिक्षा रामेश्वरम छोड़कर रामनाथपुरम जाने पर शुरू हुई। यहीं श्वार्ट्ज हाई स्कूल में उनका परिचय विज्ञान से हुआ, जिसने उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला। उनके शिक्षक इयदुराई सोलोमन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनके मार्गदर्शक बने।
बचपन से ही कलाम को पक्षियों की उड़ान मोहित करती थी और वे घंटों उन्हें उड़ते हुए देखते रहते थे। इसी से उनके भीतर उड़ने की इच्छा जागी। सोलोमन सर ने उन्हें समुद्र तट पर पक्षियों का अवलोकन कराकर वायुगतिकी, वैमानिकी और वायु बहाव के सिद्धांतों से परिचित कराया, जिससे विज्ञान के प्रति उनकी समझ और गहरी हुई।
वैज्ञानिक यात्रा की शुरुआत: सेंट जोसेफ और एम.आई.टी.
उनकी शैक्षिक यात्रा सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली और फिर एम.आई.टी. (मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान) में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ आगे बढ़ी। सेंट जोसेफ में उन्होंने उप-परमाणु भौतिकी के बारे में सीखा और विज्ञान व आध्यात्मिकता के बीच के द्वैत पर विचार करना शुरू किया। एम.आई.टी. में, प्रो. स्पॉण्डर, प्रो. के.ए.वी. पडालाई और प्रो. नरसिम्हा राव जैसे शिक्षकों ने उन्हें वायुगतिकी, एयरो-स्ट्रक्चर डिजाइन और सैद्धांतिक वायुगतिकी का गहन ज्ञान दिया, जिससे वायुयान के आकार-प्रकार और उड़ान के सिद्धांत स्पष्ट हुए।
हॉवर क्राफ्ट परियोजना ‘नंदी’
एम.आई.टी. से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद, डॉ. कलाम डी.टी.डी. एंड पी. (एयर) में बंगलौर के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ए.डी.ई.) में शामिल हुए। यहाँ उन्हें स्वदेशी हॉवर क्राफ्ट प्रोटोटाइप ‘नंदी’ को डिजाइन करने और विकसित करने की चुनौती मिली। यह एक कठिन परियोजना थी क्योंकि इस तरह की प्रौद्योगिकी के लिए कोई पूर्व साहित्य या अनुभवी व्यक्ति उपलब्ध नहीं था। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद, उनकी टीम ने एक पूरी तरह से कार्यशील प्रोटोटाइप तैयार किया, जिसका रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन ने स्वयं परीक्षण किया। हालाँकि, ‘नंदी’ परियोजना बाद में बंद हो गई, जिससे कलाम को यह कड़वा सबक मिला कि कभी-कभी उनसे भी बड़ी ताकतें उनके काम को प्रभावित कर सकती हैं।
मिसाइल मैन की उपाधि: इसरो और एस.एल.वी.-3
‘नंदी’ की निराशा से उबरने के बाद, डॉ. कलाम को डॉ. विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में ‘इन्कोस्पार’ (INCOSPAR) में रॉकेट इंजीनियर के रूप में काम करने का अवसर मिला और बाद में वे ‘इसरो’ (ISRO) में शामिल हो गए। इसरो में उन्हें उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने वाले प्रक्षेपण यान (एस.एल.वी.) के विकास की बड़ी परियोजना का नेतृत्व करने का कार्य सौंपा गया।
एस.एल.वी.-3 का विकास एक अत्यंत जटिल यात्रा थी, जिसमें बजट, समय और संसाधनों की चुनौतियाँ थीं। इस दौरान उन्होंने अपने तीन प्रियजनों को खो दिया, लेकिन उन्होंने अपना ध्यान परिणाम पर केंद्रित रखा। एस.एल.वी.-3 के विकास से उन्होंने तीन महत्त्वपूर्ण सबक सीखे:
- विज्ञान और इंजीनियरिंग की भूमिका: विज्ञान असीमित और अन्वेषणात्मक है, जबकि विकास एक बंद फंदा है जो गलतियों से सीखता है। सफलता के लिए सभी भागों का एक ऑर्केस्ट्रा की तरह काम करना आवश्यक है।
- प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत: डॉ. कलाम ने वेनहर वॉन ब्राउन (आधुनिक रॉकेट्री के जनक) के शब्दों से प्रेरणा ली कि केवल कड़ी मेहनत ही काफी नहीं है, बल्कि लक्ष्य के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता और सक्रियता आवश्यक है। उन्होंने रॉकेट्री को अपना पेशा नहीं, बल्कि अपना लक्ष्य और धर्म बना लिया।
- बाधाओं से सीखना: एस.एल.वी.-3 का पहला प्रायोगिक परीक्षण विफल रहा था, जिससे उन्हें गहरी निराशा हुई। हालाँकि, डॉ. ब्रह्मप्रकाश जैसे सहयोगियों के समर्थन ने उन्हें इस विफलता से उबरने में मदद की। इस अनुभव ने उन्हें सिखाया कि मानवता, उदारता और समझदारी के गुण कभी नहीं गिरते और सच्ची सहायता हमेशा प्राप्त होती है।
डी.आर.डी.ओ. और मिसाइल कार्यक्रम
इसरो के बाद, डॉ. कलाम डी.आर.डी.ओ. (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी मिसाइल सिस्टम – पृथ्वी, त्रिशूल, नाग और अग्नि के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने रॉकेट्री और विज्ञान के क्षेत्र में नए ज्ञान को समझा, साथ ही प्रभावी नेतृत्व, संचार, और बाधाओं व सफलताओं दोनों का अनुभव किया।
निष्कर्ष
डॉ. कलाम अपनी कहानियों को साझा करने का उद्देश्य यह बताते हैं कि वे जीवन के हर पहलू को अद्भुत मानते थे और दूसरों को भी जीवन की चुनौतियों को समझने में मदद करना चाहते थे। उनका मानना था कि उनकी यात्रा केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि अनगिनत अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा है, जो उन्हें ‘विशाल कुआँ’ मानते हैं, जिससे वे ज्ञान और करुणा खींचते हैं। ‘मिसाइल मैन’ की उपाधि उन्हें प्रिय थी, जो उनके अनुसार किसी वैज्ञानिक की शख्सियत से बढ़कर एक बच्चे के कारनामे जैसी लगती थी, जो उनकी सादगी और विज्ञान के प्रति उनके जुनून को दर्शाती है।
पाठ विज्ञान में जीवन से जुड़े प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
- ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म कहाँ हुआ था?
a) चेन्नई
b) रामेश्वरम
c) दिल्ली
d) कोलकाता
उत्तर: b) रामेश्वरम - डॉ. कलाम को किस उपनाम से जाना जाता है?
a) रॉकेट मैन
b) मिसाइल मैन
c) विज्ञान मैन
d) अंतरिक्ष मैन
उत्तर: b) मिसाइल मैन - डॉ. कलाम ने किस संस्थान में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की?
a) आईआईटी दिल्ली
b) मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान (एम.आई.टी.)
c) आईआईएससी बैंगलोर
d) जादवपुर विश्वविद्यालय
उत्तर: b) मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान (एम.आई.टी.) - डॉ. कलाम ने कौन सी मिसाइलों के विकास में योगदान दिया?
a) ब्रह्मोस और त्रिशूल
b) अग्नि और पृथ्वी
c) नाग और आकाश
d) धनुष और निर्भय
उत्तर: b) अग्नि और पृथ्वी - डॉ. कलाम की पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ का मुख्य विषय क्या है?
a) उनकी आत्मकथा
b) भारत की अंतरिक्ष नीति
c) मिसाइल प्रौद्योगिकी
d) परमाणु परीक्षण
उत्तर: a) उनकी आत्मकथा - डॉ. कलाम का निधन कब और कहाँ हुआ?
a) 27 जुलाई 2015, IIM शिलांग
b) 15 अगस्त 2015, दिल्ली
c) 26 जनवरी 2015, चेन्नई
d) 10 जून 2015, बैंगलोर
उत्तर: a) 27 जुलाई 2015, IIM शिलांग - डॉ. कलाम ने किस परियोजना को ‘नंदी’ नाम दिया?
a) मिसाइल प्रणाली
b) हॉवर क्राफ्ट
c) उपग्रह प्रक्षेपण
d) परमाणु परीक्षण
उत्तर: b) हॉवर क्राफ्ट - डॉ. कलाम ने किस संगठन में रॉकेट इंजीनियर के रूप में कार्य शुरू किया?
a) इसरो
b) डीआरडीओ
c) इन्कोस्पार
d) नासा
उत्तर: c) इन्कोस्पार - डॉ. कलाम ने अपने शिक्षक इयदुराई सोलोमन से क्या प्रेरणा प्राप्त की?
a) मिसाइल डिजाइन
b) उड़ान की भौतिकी
c) परमाणु भौतिकी
d) रॉकेट प्रणाली
उत्तर: b) उड़ान की भौतिकी - एस.एल.वी.-3 का पहला प्रायोगिक परीक्षण कैसा रहा?
a) पूर्ण सफल
b) असफल
c) आंशिक सफल
d) स्थगित
उत्तर: b) असफल
एक वाक्य में प्रश्न और उत्तर
- प्रश्न: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। - प्रश्न: डॉ. कलाम को किस उपनाम से जाना जाता है?
उत्तर: डॉ. कलाम को ‘मिसाइल मैन’ के नाम से जाना जाता है। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने किस संस्थान से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की?
उत्तर: डॉ. कलाम ने मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान (एम.आई.टी.) से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। - प्रश्न: डॉ. कलाम की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या है?
उत्तर: डॉ. कलाम की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ है। - प्रश्न: डॉ. कलाम का निधन कहाँ हुआ था?
उत्तर: डॉ. कलाम का निधन IIM शिलांग में हुआ था। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने किन मिसाइलों के विकास में योगदान दिया?
उत्तर: डॉ. कलाम ने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में योगदान दिया। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
उत्तर: डॉ. कलाम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम और रामनाथपुरम से प्राप्त की। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने किस परियोजना को ‘नंदी’ नाम दिया?
उत्तर: डॉ. कलाम ने हॉवर क्राफ्ट परियोजना को ‘नंदी’ नाम दिया। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने किस संगठन में रॉकेट इंजीनियर के रूप में कार्य शुरू किया?
उत्तर: डॉ. कलाम ने इन्कोस्पार में रॉकेट इंजीनियर के रूप में कार्य शुरू किया। - प्रश्न: एस.एल.वी.-3 का पहला प्रायोगिक परीक्षण कैसा रहा?
उत्तर: एस.एल.वी.-3 का पहला प्रायोगिक परीक्षण असफल रहा।
संक्षिप्त प्रश्न और उत्तर (लगभग 40 शब्द)
- प्रश्न: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बचपन की किन परिस्थितियों ने उनके जीवन को प्रभावित किया?
उत्तर: डॉ. कलाम का बचपन आर्थिक तंगी और संघर्षों से भरा था। उनके पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, और कलाम ने अखबार बेचकर परिवार की मदद की, जिसने उनकी सीखने की इच्छा और दृढ़ता को बढ़ाया। - प्रश्न: डॉ. कलाम को ‘मिसाइल मैन’ क्यों कहा जाता था?
उत्तर: डॉ. कलाम को ‘मिसाइल मैन’ कहा जाता था क्योंकि उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने भारत की रक्षा क्षमता को मजबूत किया। - प्रश्न: डॉ. कलाम की शिक्षा ने उनके वैज्ञानिक जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: रामेश्वरम, रामनाथपुरम, और एम.आई.टी. में शिक्षा ने डॉ. कलाम को विज्ञान और उड़ान की भौतिकी से परिचित कराया, जिसने उनकी वैज्ञानिक सोच और मिसाइल विकास की नींव रखी। - प्रश्न: ‘नंदी’ परियोजना क्या थी और उसका परिणाम क्या रहा?
उत्तर: ‘नंदी’ एक स्वदेशी हॉवर क्राफ्ट परियोजना थी, जिसे डॉ. कलाम ने नेतृत्व किया। यह सफलतापूर्वक तैयार हुई, लेकिन रक्षा मंत्री के बदलने के बाद इसका उपयोग नहीं हुआ और परियोजना बंद हो गई। - प्रश्न: डॉ. कलाम के शिक्षक इयदुराई सोलोमन ने उन्हें कैसे प्रेरित किया?
उत्तर: इयदुराई सोलोमन ने डॉ. कलाम को उड़ान की भौतिकी और वैमानिकी की दुनिया से परिचित कराया, जिससे उनकी रुचि पक्षियों की उड़ान और विज्ञान में गहरी हो गई। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने विज्ञान और आध्यात्मिकता को कैसे जोड़ा?
उत्तर: डॉ. कलाम ने विज्ञान को प्राकृतिक घटनाओं का उत्तर देने वाला और आध्यात्मिकता को ब्रह्मांड में मानव के स्थान को समझने वाला माना, दोनों को जीवन के पूरक अंगों के रूप में देखा। - प्रश्न: एस.एल.वी.-3 की असफलता से डॉ. कलाम ने क्या सीखा?
उत्तर: एस.एल.वी.-3 की असफलता से डॉ. कलाम ने सीखा कि बाधाओं से सबक लेकर मानवता, उदारता और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना चाहिए, जो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने अपने करियर में किन संगठनों में कार्य किया?
उत्तर: डॉ. कलाम ने इन्कोस्पार, इसरो, और डीआरडीओ में कार्य किया, जहाँ उन्होंने रॉकेट, उपग्रह प्रक्षेपण यान, और मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
विस्तृत प्रश्न और उत्तर (लगभग 60 शब्द)
- प्रश्न: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बचपन और प्रारंभिक शिक्षा ने उनके वैज्ञानिक वृत्ति को कैसे आकार दिया?
उत्तर: डॉ. कलाम का बचपन रामेश्वरम में आर्थिक तंगी में बीता, जहाँ उन्होंने अखबार बेचकर परिवार की मदद की। रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हाई स्कूल में शिक्षक इयदुराई सोलोमन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उड़ान की भौतिकी से परिचित कराया। एम.आई.टी. में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई ने उनकी वैज्ञानिक सोच को मजबूत किया, जिसने मिसाइल और रॉकेट विकास की नींव रखी। - प्रश्न: ‘नंदी’ हॉवर क्राफ्ट परियोजना में डॉ. कलाम की भूमिका और चुनौतियाँ क्या थीं?
उत्तर: डॉ. कलाम ने ‘नंदी’ हॉवर क्राफ्ट परियोजना का नेतृत्व किया, जिसके लिए कोई पूर्व साहित्य या अनुभव उपलब्ध नहीं था। उनकी टीम ने तीन वर्ष में कार्यशील प्रोटोटाइप बनाया। वरिष्ठों के सवालों और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए, उन्होंने दृढ़ता और आत्मविश्वास से परियोजना को सफल बनाया, हालाँकि बाद में इसका उपयोग नहीं हुआ। - प्रश्न: एस.एल.वी.-3 की असफलता ने डॉ. कलाम को क्या सबक सिखाया?
उत्तर: एस.एल.वी.-3 की पहली उड़ान की असफलता ने डॉ. कलाम को मानवता, उदारता और दृढ़ता का महत्त्व सिखाया। डॉ. ब्रह्मप्रकाश के समर्थन से उन्होंने सीखा कि असफलता से सबक लेकर और सहानुभूति के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह अनुभव उन्हें लक्ष्य प्राप्ति में बाधाओं को पार करने की प्रेरणा देता रहा। - प्रश्न: डॉ. कलाम ने विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच संबंध को कैसे देखा?
उत्तर: डॉ. कलाम ने विज्ञान को प्राकृतिक घटनाओं का उत्तर देने वाला और आध्यात्मिकता को ब्रह्मांड में मानव के स्थान को समझने वाला माना। उन्होंने दोनों को जीवन के पूरक अंगों के रूप में देखा, जहाँ विज्ञान ठोस सूत्रों से और आध्यात्मिकता अनुभूति से मन को उदार बनाती है, जो उनके वैज्ञानिक और व्यक्तिगत जीवन को संतुलित करता था। - प्रश्न: डॉ. कलाम के नेतृत्व में मिसाइल विकास ने भारत की रक्षा को कैसे मजबूत किया?
उत्तर: डॉ. कलाम ने अग्नि और पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास का नेतृत्व किया, जिसने भारत की रक्षा क्षमता को अभूतपूर्व रूप से मजबूत किया। उनके प्रयासों से भारत स्वदेशी मिसाइल प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बना, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और विश्व में भारत की स्थिति को सुदृढ़ किया।