कवि परिचय : मैथिलीशरण गुप्त
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी के चिरगाँव में 3 अगस्त, सन 1866 ई. में हुआ था। मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के प्रथम कवि के रूप में माने जाते रहे हैं। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा आदि मैथिलीशरण गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हुआ करते थे। गुप्त जी की कीर्ति भारत में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुई थी। इसी कारण से महात्मा गांधी जी ने इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया था और आज भी हम सब लोग उनकी जयंती को एक कवि दिवस के रूप में मनाते हैं। इनके पिताजी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई था। इनके पिता रामचरण गुप्त जी एक निष्ठावान् प्रसिद्ध राम भक्त और काव्यानुरागी थे। गुप्त ने सरस्वती सहित विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ लिखकर हिंदी साहित्य की दुनिया में प्रवेश किया। 1909 में, उनका पहला खण्ड काव्य, रंग में भंग, इंडियन प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था। भारत भारती (1912-1913) के साथ, उनकी राष्ट्रवादी कविताएँ उन भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो गई, जो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनकी इस पुस्तक में उन्हें ‘राष्ट्रवादी’ कवि की पदवी प्रदान की। उनकी अधिकांश कविताएँ रामायण, महाभारत, बौद्ध कहानियों और प्रसिद्ध धार्मिक नेताओं के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनकी प्रसिद्ध कृति साकेत रामायण के लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि उनकी दूसरी कृति यशोधरा गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के इर्द- गिर्द घूमती है। उनकी कृतियों में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य बोलता है। वह मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। उनके दो महाकाव्य, बीस खंडकाव्य, सत्रह गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य, दो संस्मरणात्मक गद्य-कृतियाँ, चार निराख्यानक निबंध और अठारह अनूदित रचनाएँ उपलब्ध हैं।
प्रमुख कृतियाँ- महाकाव्य : साकेत (1931) खंडकाव्य : रंग में भंग (1909), जयद्रथ वध (1910), शकुंतला (1914), पंचवटी (1915), किसान (1916), सैरंध्री (1927), वकसंहार (1927), वन वैभव (1927), शक्ति (1927), यशोधरा (1932), द्वापर (1936)
मैथिलीशरण गुप्त जी का देहावसान 12 दिसंबर, 1964 को चिरगाँव में ही हुआ। इनके स्वर्गवास से हिंदी साहित्य को जो क्षति पहुँची, उसकी पूर्ति संभव नहीं है।
सखि वे मुझसे कह कर जाते
सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे
अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में –
क्षात्र धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
शब्दार्थ
शब्द | हिंदी अर्थ | बांग्ला अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
सखि | सहेली, मित्र | সখী, বান্ধবী | Female friend, confidante |
सिद्धि | किसी कार्य में पूर्णता या सफलता, मोक्ष | সিদ্ধি, সাফল্য | Attainment, perfection, spiritual accomplishment |
स्वामी | पति, मालिक | স্বামী, প্রভু | Husband, master |
गौरव | सम्मान, अभिमान, बड़प्पन | গৌরব, সম্মান | Pride, honour, glory |
व्याघात | बाधा, रुकावट, व्यवधान | ব্যাঘাত, বাধা | Obstruction, hindrance, disturbance |
पथ-बाधा | रास्ते की रुकावट, बाधा | পথের বাধা | Obstacle in the path |
पहचाना | जानना, समझना | চেনা, বোঝা | Recognized, understood |
मुख्य | प्रधान, महत्त्वपूर्ण | প্রধান, গুরুত্বপূর্ণ | Main, principal, important |
सुसज्जित | अच्छी तरह से सजाया हुआ, तैयार किया हुआ | সুসজ্জিত, প্রস্তুত | Well-decorated, prepared |
प्रियतम | सबसे प्यारा, पति | প্রিয়তম, পতি | Beloved, dearest, husband |
पण | प्रतिज्ञा, शर्त, दाँव | পণ, প্রতিজ্ঞা, বাজি | Vow, pledge, stake |
रण | युद्ध, संग्राम | রণ, যুদ্ধ | Battle, war |
क्षात्र धर्म | क्षत्रियों का कर्तव्य, वीरता का धर्म | ক্ষত্রিয় ধর্ম, বীরত্বের ধর্ম | Duty of a warrior, chivalry |
अभागा | दुर्भाग्यपूर्ण, बदकिस्मत | অভাগা, দুর্ভাগা | Unfortunate, unlucky |
विफल | असफल, व्यर्थ | বিফল, ব্যর্থ | Unsuccessful, futile |
गर्व | अभिमान, घमंड | গর্ব, অহংকার | Pride, arrogance |
त्यागा | छोड़ दिया, त्याग दिया | ত্যাগ করা, পরিত্যাগ করা | Abandoned, forsaken |
स्मरण | याद, स्मृति | স্মরণ, স্মৃতি | Remembrance, memory |
निष्ठुर | कठोर, निर्दयी | নিষ্ঠুর, নির্দয় | Cruel, ruthless |
सदय | दयालु, करुणामय | সদয়, দয়ালু | Kind-hearted, compassionate |
सहते | सहन करना, झेलना | সহ্য করা | Bear, endure |
तरस | दया, करुणा | করুণা, দয়া | Pity, compassion |
उपालम्भ | शिकायत, उलाहना | অভিযোগ, তিরস্কার | Reproach, complaint |
अधिक | बहुत ज्यादा, अधिक | অধিক, বেশি | More, much |
भाते | अच्छे लगते हैं, पसंद आते हैं | ভালো লাগে, পছন্দ হয় | Are pleasing, are liked |
अपूर्व | अनोखा, अद्भुत | অপূর্ব, অসাধারণ | Unique, unprecedented |
अनुपम | बेजोड़, जिसकी कोई तुलना न हो | অনুপম, অতুলনীয় | Matchless, incomparable |
01
सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मुझसे कह कर जाते
कह, तो क्या मुझसे वे अपनी पथ- बाधा ही पाते?
शब्दार्थ –
सिद्धि – सफलता, किसी महान उद्देश्य की प्राप्ति
स्वामी – यहाँ पति के लिए प्रयुक्त हुआ है
गौरव – सम्मान, गर्व
व्याघात – बाधा, दुखद घटना
सखी – सहेली, मित्र
पथ-बाधा – मार्ग की रुकावट
संदर्भ और प्रसंग –
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘यशोधरा’ से उद्धृत हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा इस प्रसंग में दुखी होकर सखी से मन की बात कह रही हैं।
व्याख्या –
सिद्धार्थ अपने जीवन के सत्य की खोज में सांसारिक सुखों का त्याग करके वन में चले गए। जन कल्याण हेतु उनका सत्य की खोज में चले जाना निश्चय ही गौरव और अभिमान की बात है। परंतु यशोधरा कह रही हैं कि वे उनसे छुपकर चले गए, इसलिए उसे बहुत दुख हुआ। वह अपनी सखि से प्रश्न करती है कि क्या यदि वे मुझसे कहकर जाते, तो मैं उनके मार्ग में बाधा बनती? लेकिन सिद्धार्थ ने ऐसा नहीं किया, इसलिए यशोधरा को अतीव कष्ट होता है।
विशेष –
- ‘बड़ा व्याघात’ में अनुप्रास, ‘चोरी-चोरी’ में पुनरुक्तिप्रकाश एवं ‘तो क्या ………. पथबाधा ही पाते?’ में प्रश्न अलंकार है।
- स्त्री को सबसे अधिक दुख यह जानकर होता है कि उसका पति उस पर अविश्वास करता है। पति पत्नी को पूर्ण विश्वास की अधिकारिणी नहीं समझता है।
- इन काव्य पंक्तियों की भाषा तत्सम प्रधान खड़ी बोली हिंदी है।
02
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना,
जो वे मन में लाते
सखी, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
मुझको बहुत उन्होंने माना – लोगों ने मुझे बहुत सम्मान दिया या महत्त्व दिया।
फिर भी क्या पूरा पहचाना? – फिर भी क्या उन्होंने मुझे पूरी तरह समझा?
मुख्य – सबसे महत्त्वपूर्ण
उसी को जाना – केवल उसी को समझा या पहचाना
जो वे मन में लाते – जो वे अपने मन में सोचते थे
सखी – प्रिय सखी या मित्र (यहाँ आत्मीय संबोधन के रूप में प्रयुक्त)
वे मुझसे कह कर जाते – वे मुझे अपने विचार स्पष्ट रूप से कहकर जाते (लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया)
संदर्भ तथा प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
यशोधरा अपने गृहस्थ जीवन की स्मृतियों को याद करते हुए कह रही हैं कि उनके पति से उन्हें अत्यधिक स्नेह, प्रेम और दुलार मिला है। वे उन्हें बहुत मानते भी रहे हैं। यशोधरा के मन में एक सवाल गूंजता है कि क्या वास्तव में उनके पति उन्हें पहचानते भी हैं? यदि वे उन्हें भली-भाँति पहचानते तो इस तरह रात के अँधेरे में चोरी-छुपे वन चले नहीं गए होते बल्कि उन्हें कहकर ही निकले होते। पुनः वे कहती हैं कि उन्होंने आज तक वही किया जो उन्हें पसंद रहा, जो उन्हें रुचिकर प्रतीत हुआ। वह मुख्यतः उसी बात को जान पाती थीं जो उनके मन में रहती थी। बेहतर होता कि वे यशोधरा से कहकर जाते। ऐसा होने पर यशोधरा को कोई मानसिक कष्ट न होता और उन्हें खुशी भी होती कि सिद्धार्थ उनकी मनोभावनाओं को समझते हैं। इससे यशोधरा का आत्म-सम्मान भी बना रहता। वह कभी भी उनकी राह की बाधा न बनती, वरन् उनके मार्ग को प्रशस्त करने में सहायता कर सकती थी।
विशेष –
- उपरोक्त अंश में विरहिणी यशोधरा की मनोव्यथा का चित्रण हुआ है।
- स्त्री के प्रति पुरुष की हीन मनोवृत्ति का परिचय मिलता है।
- गृहस्थ जीवन की स्मृतियों का स्मरण हुआ है।
- उपेक्षित और विरहिणी नारी के आत्मसम्मान को कवि ने प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
- खड़ी बोली में कविता का सहज और स्वाभाविक रूप विद्यमान है।
- नाटक, गीत, प्रबंध, पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक मिश्रित शैली में ‘यशोधरा’ की रचना हुई है।
03
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में-
क्षात्र धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
स्वयं सुसज्जित करके – स्वयं सजा-संवार कर या युद्ध के लिए तैयार करके
क्षण में – बहुत ही कम समय में
प्रियतम – प्रिय व्यक्ति (पति, पुत्र, भाई या कोई और स्नेही)
प्राणों के पण में – अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर
हमीं भेज देती हैं रण में – स्वयं ही युद्ध के लिए भेज देती हैं
क्षात्र धर्म – क्षत्रियों (युद्ध योद्धाओं) का धर्म, जिसमें युद्ध करना और राष्ट्र के लिए बलिदान देना सर्वोच्च कर्तव्य माना जाता है।
संदर्भ और प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
यशोधरा कहती हैं कि भारतीय नारी का इतिहास रहा है कि उसे क्षत्रिय कुल धर्म का पालन करना आता है। प्राचीन काल से स्त्री अपने पति को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित करके युद्ध क्षेत्र में भेजती रही हैं। उस युद्धक्षेत्र में जहाँ प्राणों की होड़ लगी रहती है। मंगल टीका लगाकर उनकी विजय कामना करते हुए उन्हें युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित करती रही है। जिस नारी की यह परंपरा रही है भला वह सिद्धि प्राप्ति हेतु वन में जानेवाले पति की राह का रोड़ा बनकर क्यों खड़ी होती? सिद्धि हेतु गमन करने वाले पति को भला वह रोक सकती है? कहने का आशय यह है कि यशोधरा अपने पति के मार्ग की बाधा बनकर कदापि खड़ी होना नहीं चाहती थीं।
विशेष –
- उपरोक्त अवतरण में भारतीय स्त्री के क्षत्राणी कुल की परंपरा का उल्लेख मिलता है।
- भारतीय स्त्री की अविचलता का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
- विरहिणी स्त्री की मनोदशा का जीवंत चित्रण किया गया है।
- खड़ी बोली कविता का सरल और सहज रूप विद्यमान है।
- तत्सम प्रधान भाषा की प्रवाहशीलता देखते ही बनती है।
- ‘स्वयं सुसज्जित’, ‘प्रियतम-प्राणों-पण’ में अनुप्रास अलंकार है।
04
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा,
रहे स्मरण ही आते।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
हुआ न यह भी भाग्य अभागा – मेरा भाग्य इतना भी बुरा नहीं था (या मेरा दुर्भाग्य इतना भी बड़ा नहीं था)।
किस पर विफल गर्व अब जागा? – अब किस पर अहंकार करूँ, जब सब कुछ व्यर्थ हो गया?
जिसने अपनाया था, त्यागा – जिसने मुझे कभी अपनाया था, अब उसने मुझे छोड़ दिया।
रहे स्मरण ही आते – अब केवल यादें ही रह गई हैं।
संदर्भ और प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
यशोधरा यह भी कहती हैं कि यदि सिद्धार्थ उन्हें कहकर जाते तो उन्हें आनंद के साथ विदा करतीं। लेकिन यशोधरा के लिए अपने पति को हर्षपूर्वक विदा करने का भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। अब तो यशोधरा के लिए मिथ्या गर्व करने के लिए भी कोई अवसर नहीं बचा। जिस पति ने उन्हें अत्यंत प्रेम के साथ अपनाया था उन्हीं ने अब यशोधरा को त्याग भी दिया है। भले ही सिद्धार्थ उन्हें भूल जाएँ लेकिन यशोधरा उन्हें सदैव स्मरण करती रहेंगी। अर्थात् सिद्धार्थ के प्रति यशोधरा के प्रेम के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
विशेष –
- विरहिणी स्त्री की मनोदशा का जीवंत चित्रण किया गया है।
- उपेक्षित और विरहिणी नारी के आत्मसम्मान को कवि ने प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
- खड़ी बोली कविता का सरल और सहज रूप विद्यमान है।
- तत्सम प्रधान भाषा की प्रवाहशीलता देखते ही बनती है।
05
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गए तरस ही खाते।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
हुआ न यह भी भाग्य अभागा – मेरा भाग्य इतना भी बुरा नहीं था (या मेरा दुर्भाग्य इतना भी बड़ा नहीं था)।
किस पर विफल गर्व अब जागा? – अब किस पर अहंकार करूँ, जब सब कुछ व्यर्थ हो गया?
जिसने अपनाया था, त्यागा – जिसने मुझे कभी अपनाया था, अब उसने मुझे छोड़ दिया।
रहे स्मरण ही आते – अब केवल यादें ही रह गई हैं।
संदर्भ और प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
उद्धृत अंश में यशोधरा अपनी शारीरिक दशा का वर्णन करते हुए कहती है कि आँखें उन्हें निष्ठुर कहती हैं क्योंकि उन्होंने नेत्रों को बिना बतलाए इस प्रकार त्याग दिया है, परंतु, नेत्रों से बहनेवाली अश्रुधारा को वे दयालु हृदय भला किस प्रकार सह सकते थे। इसलिए उन्होंने चोरी-चोरी गृह त्याग करना ही उपयुक्त समझा।
विशेष –
- मैथिली शरण गुप्त ने अवतरित अंश में सिद्धार्थ के प्रति यशोधरा के अमलिन प्रेम का चित्रण किया है। इस प्रेम चित्रण से गुजरते समय हमें गोपियों का कृष्ण प्रेम स्मरण हो आता है। प्रेम में प्रियतम की उद्देश्य और लक्ष्य प्राप्ति की कामना और अपनी स्थिति की परवाह न करना प्रेम को उदात्त बनाता है।
- अवतरित अंश में नारी का त्याग चित्रित हुआ है।
- भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
- तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता हैI
06
जायें सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
जायें – (वे) चले जाएँ
सिद्धि पावें – सफलता प्राप्त करें
सुख से – आनंद और प्रसन्नता के साथ
दुखी न हों – परेशान न हों
इस जन के दुख से – मेरे दुख से
उपालम्भ – उलाहना, शिकायत
किस मुख से? – किस अधिकार या हक़ से
आज अधिक वे भाते – आज वे पहले से भी अधिक अच्छे लगते हैं
संदर्भ और प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
यशोधरा का विचार है कि सिद्धार्थ ने वन जाकर उसके प्रति अच्छा ही आचरण किया। वे सुखपूर्वक सिद्धि प्राप्त करें। कभी भी यशोधरा के दुख से वे पीड़ित न हों। यशोधरा उन्हें किसी भी प्रकार का उलाहना नहीं देना चाहती हैं। इस विरहावस्था में भी वे अधिक प्रिय लग रहे हैं, क्योंकि उन्होंने संसार के कल्याण हेतु यह त्याग किया है।
विशेष –
- प्रेम भाव में प्रियतम का दोष न ढूँढना और उनसे किसी प्रकार की कोई शिकायत न करना तटस्थता नहीं बल्कि प्रेम की परिपक्वता है।
- बृहत्तर प्रेम हेतु निजी प्रेम को त्यागने की भावना तत्कालीन युग स्पंदन का प्रतीक है।
- भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
- तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता हैI
- नाटक, गीत, प्रबंध, पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक मिश्रित शैली में ‘यशोधरा’ की रचना हुई है।
07
गए, लौट भी वे आयेंगे,
कुछ अपूर्व अनुपम लायेंगे,
रोते प्राण उन्हें पायेंगे,
पर क्या गाते गाते?
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
शब्दार्थ –
गए – (वे) चले गए
लौट भी वे आयेंगे – (वे) वापस भी आएँगे
अपूर्व – अनोखा, विशेष
अनुपम – अतुलनीय, जिसकी कोई तुलना न हो
रोते प्राण – दुखी हृदय या आत्मा
उन्हें पायेंगे – (जब वे लौटेंगे, तो) उन्हें पाएँगे या देखेंगे
पर क्या गाते गाते? – लेकिन क्या खुशी में गाते हुए (मिलना होगा) या दुख ही बना रहेगा?
संदर्भ और प्रसंग –
उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।
व्याख्या –
कविता के अंतिम भाग में यशोधरा की स्पष्ट मान्यता है कि उनके पति भले ही अभी गृहत्याग किया है लेकिन उन्हें सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। इस सिद्धि प्राप्ति के पश्चात् उनका पुनरागमन होगा और तभी यशोधरा के व्यथित प्राण उन्हें प्राप्त कर सकेंगे। उनके दर्शन करेंगे। यह सिद्धि उनसे अधिक संपूर्ण लोक के कल्याण हेतु फलप्रसू होगी।
विशेष –
- गुप्त जी ने भारतीय नारी के अपूर्व उज्ज्वल जीवन की एक मधुर झलक दिखाई है। विलासिता से दूर भारतीय स्त्री अपने पति को पूर्णतया सहयोग प्रदान करती है। यदि इसे परंपरा कहें तो ‘सखि वे मुझसे कहकर जाते’ में उसका आत्मसम्मान, स्वाभिमान छिपा हुआ है जो नवीनता का सूचक है। इस तरह से यशोधरा में प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय साधित हुआ है। तत्कालीन भारतीय संदर्भ पर ध्यान केंद्रित करें तो पाते हैं कि गांधीजी ने अधिक अधिक से संख्या में स्त्रियों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए आह्वान किया था। इस दृष्टि से यशोधरा का चरित्र और व्यक्तित्व विशेष प्रासंगिक है।
- बृहत्तर प्रेम हेतु निजी प्रेम को त्यागने की भावना तत्कालीन युग स्पंदन का प्रतीक है।
- भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
- तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता है।
‘सखी वे मुझसे कहकर जाते’ कविता से बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. कविता में यशोधरा की मुख्य शिकायत क्या है?
A) स्वामी ने उनसे कुछ नहीं कहा।
B) स्वामी ने उन्हें धोखा दिया।
C) स्वामी ने उन्हें अपमानित किया।
D) स्वामी ने उन्हें उपहार नहीं दिया।
उत्तर – A) स्वामी ने उनसे कुछ नहीं कहा।
प्रश्न 2. “सखि, वे मुझसे कहकर जाते” पंक्ति का बार-बार प्रयोग कविता में किस भाव को दर्शाता है?
A) खुशी
B) पश्चाताप और शिकायत
C) गर्व
D) क्रोध
उत्तर – B) पश्चात्ताप और शिकायत
प्रश्न 3. यशोधरा को स्वामी के चोरी-चोरी जाने से क्या व्याघात हुआ?
A) आर्थिक नुकसान
B) मन का दुख और विश्वास का टूटना
C) सामाजिक अपमान
D) शारीरिक कष्ट
उत्तर – B) मन का दुख और विश्वास का टूटना
प्रश्न 4. कविता में यशोधरा स्वयं को स्वामी की तुलना में कैसा मानती है?
A) कमजोर और असहाय
B) सक्षम और समर्पित
C) क्रोधी और असंतुष्ट
D) उदासीन और लापरवाह
उत्तर – B) सक्षम और समर्पित
प्रश्न 5. कविता में “क्षात्र धर्म के नाते” का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है?
A) प्रियतम को युद्ध में भेजने की बात
B) स्वामी के सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा
C) यशोधरा के गर्व की भावना
D) स्वामी के चुपके से जाने का कारण
उत्तर – A) प्रियतम को युद्ध में भेजने की बात
प्रश्न 6. यशोधरा के अनुसार, यदि स्वामी उनसे कहकर जाते, तो क्या होता?
A) वे उन्हें रोक देतीं।
B) वे स्वामी को पथ-बाधा मानते।
C) वे स्वामी को रण में भेज देतीं।
D) वे स्वामी को उपहार देतीं।
उत्तर – C) वे स्वामी को रण में भेज देतीं।
प्रश्न 7. “नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते” पंक्ति में यशोधरा का भाव क्या है?
A) स्वामी के प्रति क्रोध
B) स्वामी के प्रति प्रेम और दुख
C) स्वामी के प्रति उदासीनता
D) स्वामी के प्रति घृणा
उत्तर – B) स्वामी के प्रति प्रेम और दुख
प्रश्न 8. कविता में यशोधरा स्वामी के लौटने की क्या आशा रखती है?
A) वे खाली हाथ लौटेंगे।
B) वे अपूर्व और अनुपम कुछ लावेंगे।
C) वे फिर से चुपके से चले जाएँगे।
D) वे उसे भूल जाएँगे।
उत्तर – B) वे अपूर्व और अनुपम कुछ लावेंगे।
प्रश्न 9. कविता में यशोधरा के आँसूओं का स्वामी पर क्या प्रभाव पड़ता?
A) स्वामी उन्हें देखकर क्रोधित होते।
B) स्वामी उन्हें देखकर तरस खाते।
C) स्वामी उन्हें देखकर हँसते।
D) स्वामी उन्हें देखकर उदासीन रहते।
उत्तर – B) स्वामी उन्हें देखकर तरस खाते।
प्रश्न 10. कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
A) प्रेम और वियोग का दुख
B) युद्ध और वीरता का गौरव
C) विश्वासघात और क्रोध
D) सामाजिक नियमों का पालन
उत्तर – A) प्रेम और वियोग का दुख
‘सखी वे मुझसे कहकर जाते’ कविता से अति लघूउत्तरीय प्रश्न
- प्रश्न: स्वामी किस उद्देश्य से गए थे?
उत्तर – स्वामी सिद्धि प्राप्ति के लिए गए थे। - प्रश्न: यशोधरा को स्वामी के जाने का कौन-सा तरीका खला?
उत्तर – यशोधरा को उनका चोरी-चोरी जाना खला। - प्रश्न: यशोधरा स्वामी को क्या समझती थीं?
उत्तर – यशोधरा उन्हें बहुत मानती थीं और उनका मन समझती थीं। - प्रश्न: यशोधरा ने रण में प्रियतम को किस नाते भेजने की बात कही?
उत्तर – यशोधरा ने क्षात्र धर्म के नाते प्रियतम को रण में भेजने की बात कही। - प्रश्न: यशोधरा को किस बात का दुःख है?
उत्तर – उन्हें बिना बताकर जाने का दुःख है। - प्रश्न: यशोधरा को स्वामी का कौन-सा रूप अधिक प्रिय लगने लगा है?
उत्तर – यशोधरा को आज स्वामी अधिक प्रिय लगने लगे हैं। - प्रश्न: यशोधरा की आँखों से क्या बह रहा है?
उत्तर – यशोधरा की आँखों से आँसू बह रहे हैं। - प्रश्न: यशोधरा को किस बात का विश्वास है?
उत्तर – यशोधरा को विश्वास है कि स्वामी लौटकर आएँगे। - प्रश्न: यशोधरा ने स्वामी पर कौन-सा आरोप नहीं लगाया?
उत्तर – यशोधरा ने उन पर कोई उलाहना नहीं दिया। - प्रश्न: यशोधरा के अनुसार स्वामी जब लौटेंगे तो क्या लाएँगे?
उत्तर – स्वामी अपूर्व और अनुपम कुछ लाएँगे।
‘सखी वे मुझसे कहकर जाते’ कविता से लघूउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: यशोधरा को किस बात का गर्व है और किस बात का दुःख?
उत्तर – यशोधरा को इस बात का गर्व है कि उनके स्वामी (सिद्धार्थ) सिद्धि प्राप्त करने गए हैं। लेकिन उन्हें इस बात का गहरा दुःख है कि वे उन्हें चोरी-चोरी (बिना बताए) छोड़कर गए, यही उनके लिए सबसे बड़ा आघात है।
प्रश्न 2: यशोधरा को क्या लगता है कि सिद्धार्थ उन्हें बिना बताए क्यों गए होंगे?
उत्तर – यशोधरा को लगता है कि सिद्धार्थ शायद यह सोचते होंगे कि वे उनके पथ की बाधा बन सकती हैं। उन्हें लगता है कि सिद्धार्थ ने उन्हें बहुत माना, पर शायद पूरी तरह से पहचाना नहीं, इसलिए वे उन्हें बताकर नहीं गए।
प्रश्न 3: ‘मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते’ – इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि यशोधरा ने हमेशा सिद्धार्थ के मन की बातों और उनके विचारों को ही सबसे अधिक महत्त्व दिया। उन्होंने सिद्धार्थ की इच्छाओं को अपनी इच्छाओं से ऊपर रखा और उन्हें ही अपना मुख्य ध्येय माना।
प्रश्न 4: क्षात्र धर्म के नाते यशोधरा क्या करने को तैयार थी?
उत्तर – यशोधरा कहती हैं कि क्षात्र धर्म के नाते वे स्वयं अपने प्रियतम (सिद्धार्थ) को क्षण भर में सुसज्जित करके और अपने प्राणों का पण लगाकर भी उन्हें रणभूमि में भेजने को तैयार थीं।
प्रश्न 5: यशोधरा अपने भाग्य को अभागा क्यों कहती है?
उत्तर – यशोधरा अपने भाग्य को अभागा इसलिए कहती हैं क्योंकि उन्हें अपने गर्व को सफल करने का अवसर ही नहीं मिला। जिसे उन्होंने अपनाया था, उसी ने उन्हें त्याग दिया, और अब केवल उनकी स्मृतियाँ ही शेष रह गई हैं।
प्रश्न 6: यशोधरा की आँखें सिद्धार्थ को निष्ठुर क्यों कहती हैं?
उत्तर – यशोधरा की आँखें सिद्धार्थ को निष्ठुर इसलिए कहती हैं क्योंकि वे उन्हें बिना बताए छोड़ गए, जिससे यशोधरा को गहरा दर्द हुआ है। उनकी आँखों से जो आँसू बहते हैं, वे इस पीड़ा के प्रतीक हैं।
प्रश्न 7: ‘सदय हृदय वे कैसे सहते? गए तरस ही खाते!’ – इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – इन पंक्तियों का भाव यह है कि यदि सिद्धार्थ उन्हें बताते और यशोधरा को दुखी देखते, तो उनका दयालु हृदय यह सब सहन नहीं कर पाता। शायद वे यशोधरा पर तरस खाकर ही चुपचाप चले गए, ताकि उन्हें विदाई का दुख न देखना पड़े।
प्रश्न 8: यशोधरा सिद्धार्थ को किस मुख से उपालम्भ नहीं देना चाहतीं?
उत्तर – यशोधरा सिद्धार्थ को किसी भी मुख से उपालम्भ (शिकायत) नहीं देना चाहतीं। वे कहती हैं कि भले ही वे उन्हें छोड़कर गए हों, पर आज वे उन्हें अधिक प्रिय लगते हैं। वे चाहती हैं कि उनके स्वामी सुख से सिद्धि प्राप्त करें।
प्रश्न 9: यशोधरा को क्या आशा है कि सिद्धार्थ वापस लौटेंगे?
उत्तर – हाँ, यशोधरा को आशा है कि सिद्धार्थ वापस लौटेंगे। उन्हें लगता है कि वे वापस आकर कुछ अपूर्व और अनुपम (अद्वितीय) ज्ञान या सिद्धि लाएँगे। वे उन्हें वापस पाकर रोते हुए ही सही, पर प्राप्त करेंगी।
प्रश्न 10: कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर – कविता का केंद्रीय भाव विरह वेदना, त्याग की भावना, और पति के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है। यशोधरा की पीड़ा, उनका स्वाभिमान, और उनके पति के महान उद्देश्य के प्रति सम्मान का भाव इस कविता में मुखर रूप से व्यक्त हुआ है।
‘सखी वे मुझसे कहकर जाते’ कविता से दीर्घउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कविता में यशोधरा की मुख्य शिकायत क्या है और यह उनके भावनात्मक दुख को कैसे दर्शाती है?
उत्तर – यशोधरा की मुख्य शिकायत यह है कि स्वामी बिना बताए चोरी-चोरी चले गए, जिससे उनका विश्वास टूटा और मन दुखी हुआ। यह शिकायत उनके गहरे प्रेम और अपनत्व को दर्शाती है, क्योंकि वे चाहती थीं कि स्वामी उनसे खुलकर बात करते। यह वियोग का दुख और विश्वास की कमी को व्यक्त करता है, जो यशोधरा के हृदय में गहरी चोट पहुँचाता है।
प्रश्न 2. “सखि, वे मुझसे कहकर जाते” पंक्ति का बार-बार प्रयोग कविता में किस भाव को उजागर करता है?
उत्तर – “सखि, वे मुझसे कहकर जाते” पंक्ति का बार-बार प्रयोग यशोधरा के मन में बसी शिकायत, पश्चात्ताप और वियोग के दुख को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि यशोधरा स्वामी के बिना बताए चले जाने से आहत हैं और चाहती थीं कि वे उनसे खुलकर बात करते। यह पंक्ति उनके प्रेम, विश्वास और भावनात्मक लगाव को बार-बार सामने लाती है।
प्रश्न 3. यशोधरा स्वामी के चोरी-चोरी जाने को ‘बड़ा व्याघात’ क्यों मानती है?
उत्तर – यशोधरा स्वामी के चोरी-चोरी जाने को ‘बड़ा व्याघात’ मानती हैं क्योंकि इससे उनका विश्वास टूटा और मन को गहरा दुख हुआ। वे चाहती थीं कि स्वामी उनसे खुलकर बात करते, जिससे वे उन्हें समर्पण के साथ विदा कर सकतीं। यह गुप्त प्रस्थान उनके प्रेम और विश्वास को ठेस पहुँचाता है, जो उनके भावनात्मक दुख को और गहरा करता है।
प्रश्न 4. कविता में यशोधरा स्वयं को स्वामी की तुलना में किस प्रकार सक्षम मानती है?
उत्तर – यशोधरा स्वयं को सक्षम मानती हैं क्योंकि वे स्वामी को युद्ध में भेजने के लिए तैयार थीं, यदि वे उनसे कहकर जाते। वे “प्राणों के पण में” स्वामी को क्षात्र धर्म के लिए भेजने को तत्पर थीं। यह उनके बलिदानी स्वभाव, प्रेम और समर्पण को दर्शाता है, जो स्वामी के प्रति उनकी गहरी निष्ठा और साहस को उजागर करता है।
प्रश्न 5. “क्षात्र धर्म के नाते” का कविता में क्या महत्त्व है और यह यशोधरा के चरित्र को कैसे दर्शाता है?
उत्तर – “क्षात्र धर्म के नाते” कविता में स्वामी के युद्ध में जाने के कर्तव्य को दर्शाता है। यशोधरा इस धर्म को समझती हैं और स्वामी को रण में भेजने के लिए तैयार हैं, जो उनके बलिदानी और समर्पित चरित्र को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि वे स्वामी के कर्तव्य और गौरव को महत्त्व देती हैं, भले ही यह उनके लिए दुखदायी हो।
प्रश्न 6. यशोधरा के आँसुओं का स्वामी पर क्या प्रभाव पड़ता और यह उनके संबंध को कैसे दर्शाता है?
उत्तर – यशोधरा के आँसू स्वामी के ‘सदय हृदय’ को प्रभावित करते, जिससे वे तरस खाते। यह उनके प्रेममय और संवेदनशील संबंध को दर्शाता है। यशोधरा मानती हैं कि यदि स्वामी उनके आँसुओं को देखते, तो उनका हृदय पिघल जाता और वे दुखी हो जाते। यह उनके बीच गहरे भावनात्मक बंधन और प्रेम को उजागर करता है, जो वियोग में भी जीवित है।
प्रश्न 7. यशोधरा स्वामी के लौटने की क्या आशा रखती हैं और यह उनके प्रेम को कैसे व्यक्त करता है?
उत्तर – यशोधरा आशा रखती हैं कि स्वामी सिद्धि प्राप्त कर लौटेंगे और कुछ ‘अपूर्व अनुपम’ लावेंगे। यह उनके प्रेम को व्यक्त करता है, क्योंकि वे स्वामी की सफलता और गौरव की कामना करती हैं, भले ही उनका मन वियोग में दुखी हो। यह उनके निस्वार्थ प्रेम और स्वामी के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाता है, जो उनकी भावनाओं की गहराई को उजागर करता है।
प्रश्न 8. कविता में वियोग का दुख यशोधरा के मन को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर – वियोग का दुख यशोधरा के मन को गहराई से आहत करता है, क्योंकि स्वामी बिना बताए चले गए। यह उनके विश्वास को तोड़ता है और मन में शिकायत, पश्चात्ताप और उदासी भर देता है। वे स्वामी के प्रति प्रेम और समर्पण के बावजूद उनके चुपके से जाने को ‘बड़ा व्याघात’ मानती हैं, जो उनकी भावनात्मक पीड़ा और अकेलेपन को दर्शाता है।
प्रश्न 9. यशोधरा के अनुसार, यदि स्वामी उनसे कहकर जाते, तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होती?
उत्तर – यदि स्वामी कहकर जाते, तो यशोधरा उन्हें पूरे समर्पण के साथ रण में भेजतीं। वे स्वयं को सुसज्जित कर ‘प्राणों के पण में’ स्वामी को क्षात्र धर्म के लिए विदा करतीं। यह उनकी निष्ठा, साहस और प्रेम को दर्शाता है। वे स्वामी के कर्तव्य को समझती हैं और उनकी सफलता के लिए तैयार हैं, जो उनके बलिदानी स्वभाव को उजागर करता है।
प्रश्न 10. कविता का केंद्रीय भाव क्या है और यह यशोधरा के चरित्र को कैसे उजागर करता है?
उत्तर – कविता का केंद्रीय भाव प्रेम, वियोग का दुख और समर्पण है। यशोधरा का चरित्र निस्वार्थ, बलिदानी और प्रेममय है, जो स्वामी के चुपके से जाने से आहत होने के बावजूद उनके कर्तव्य और सिद्धि की कामना करता है। वे स्वामी को रण में भेजने को तैयार हैं, जो उनकी साहसी और समर्पित प्रकृति को दर्शाता है, साथ ही उनके गहरे प्रेम को उजागर करता है।