लेखक परिचय : बनफूल
‘बनफुल’ का जन्म 19 जुलाई 1899 को बिहार के मनिहारी नामक कस्बे में हुआ था। ‘बनफूल’ का मूल नाम बलाई चाँद मुखोपाध्याय था। उनकी माता का नाम मृणालिणी देवी और पिता का नाम सत्यचरण मुखोपाध्याय था। छह भाइयों एवं दो बहनो में ‘बनफूल’ सबसे बड़े थे। 1914 में जब ‘बनफूल’ साहेबगंज के रेलवे हाई स्कूल में आये, तो यहाँ उन्होंने ‘विकास’ (बँगला में ‘बिकास’) नाम से एक हस्तलिखित पत्रिका निकालनी शुरु की। उनकी खुद की रचनाएँ भी इस पत्रिका में रहती थीं। अगले ही साल उनकी एक कविता स्तरीय बंगला पत्रिका ‘मालंच’ में छपी। इसके चलते संस्कृत के अध्यापक ने उन्हें डाँटा भी था कि वे यहाँ पढ़ाई करने आये है या कविताएँ लिखने ! प्रधानाध्यापक भी साहित्यिक गतिविधियों को पढ़ाई-लिखाई में बाधक मानते थे।
अत:, किशोर उम्र के ‘बनफूल’ ने लिखना छोड़ दिया। परन्तु आगे चलकर उन्होंने ‘वनफूल’ उपनाम से लेखन कार्य किया। उन्होंने कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अपनी मेडिकल की पढ़ाई को भी पूरा किया। इसके पश्चात् गैर सरकारी प्रयोगशाला में नौकरी की। फिर मुर्शिदाबाद के एक सरकारी अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्य किया। जल्दी ही नौकरी छोड़कर भागलपुर में आकर बस गए। वहाँ पैथोलॉजी लैब चलाने के साथ लेखन कार्य में व्यस्त रहे। लम्बे समय तक वहाँ रहने के कारण लोग उन्हें ‘भागलपुर के लेखक’ कहकर पुकारते थे। वनफूल का रचना संसार उपन्यास:- तृणखण्ड (1935), वैतरणी तीरे (1936), किछुखण (1937), द्वेरथ (1937), मृगया (1940), निर्मोक (1940), रात्रि (1941), से ओ आमि (1943), जंगम (चार खण्डों मे, 1943 -45), सप्तर्षि (1945), अग्नि (1946), सॉल्टलेक, कोलकाता में ही 7 फरवरी 1979 को ‘बनफूल’ का देहावसान हुआ। उनके घर के सामने वाली सड़क का नाम आज ‘बनफूल’ पथ है।
दूध का दाम
रेलगाड़ी के आने का अंदाजा स्पष्ट होने लगा था। अब जब कभी भी वह प्लेटफॉर्म पर पहुँचने ही वाली थी। उसे पकड़ने के लिए अत्यंत बेशकीमती सुंदर वस्त्रों में सजी-धजी, सुंदर सुडौल तन्वंगी सुदर्शना, सुरूपा युवतियाँ इठलाती, बलखाती हुई स्टेशन के उस प्लेटफॉम पर आ पहुँची थीं। सुंदर युवतियों के उस झुंड के आसपास चारों ओर कई बंगाली नौजवान भी घिरने शुरू हो गए थे। कोई-कोई तो इस तरह के भाव अपने चेहरों पर बनाए हुए थे, जैसे कि कहीं आ-भिड़ने में उनकी अपनी कोई दिलचस्पी नहीं है। जबकि कुछ तो अपनी पूरी समझदारी और चतुराई के साथ उन्हीं के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे थे। सुन्दर युवतियों के उस मधु-गुँजार भरे माहौल में एक ढली हुई अवस्था की वृद्धा महिला भी उसी रेलगाड़ी को पकड़ने की आशा में बढ़ती चली आई थी कि तभी वहाँ ढीले-ढाले ढंग से बाँधकर रखे किसी व्यक्ति के बिस्तरबंद के फीते में उनका पाँव जा उलझा और वह वहीं धड़ाम से गिर पड़ी। उससे उन्हें काफी चोट आई। वह जोर-जोर से कराहने लगीं, परंतु उसकी ओर किसी ने देखा तक नहीं। उनकी सहायता करने के लिए किसी ने भी न कुछ कहा, न कुछ किया। करने की कोई बात भी तो नहीं थी। कारण, स्त्रियों के प्रति सभ्य- ष्टाचार निभाने की भावना की जो बात है, वह तो विदेशियों के प्रभाव के रूप में वहाँ आई है, लेकिन वह केवल उनके अपने देश की युवतियों के लिए ही कार्य रूप में परिणत होती है।
इसलिए जो स्त्रियाँ युवती नहीं हैं, उनके प्रति शिष्टाचार दिखाने की आवश्यकता नए जमाने के नवयुवकों में कहाँ हैं? वैसे वहाँ जितने मुसाफिर थे, वे सभी के सभी केवल उन युवतियों के झुंड को लेकर ही प्रकट रूप में अथवा छिपे-छिपे तौर पर व्यस्त नहीं थे। जिन सज्जन महोदय के बिस्तरबंद के फैले फीते में पैर के अटक जाने से वह वृद्धा गिर पड़ी थीं, वे अच्छे-खासे पढ़े-लिखे शिक्षित और सुसभ्य समाज के सम्मानित पुरुष थे। वे भी वहाँ पास में ही खड़े थे। उन्होंने उस वृद्धा को डाँट फटकार भरे लहजे में एक उपदेश वाक्य झाड़ दिया- “रास्ते पर निगाह गड़ाकर चल नहीं सकती, अगर जरा और तेज का झटका लगता तो मेरे बिस्तरबंद का फीता ही टूट जाता !”
पक्के फर्श पर गिर पड़ने के कारण उस वृद्ध महिला के दाहिने पैर में गहरी चोट आई थी। फिर भी जैसे-तैसे खड़ी होकर वह लँगड़ाते लँगड़ाते प्लेटफॉर्म पर तेजी से आगे बढ़ने लगी; क्योंकि गाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ लगी थी। इस डिब्बे उस डिब्बे में दौड़-धूप करते हुए भी वह किसी एक में घुस नहीं पा रही थी हालाँकि चाहे जैसे भी हो, किसी-न-किसी डिब्बे में अपने लिए उसे एक ठिकाना जुटाना ही था। रेलगाड़ी ज्यादा देर तक अब रुकेगी नहीं, जबकि किसी भी डिब्बे में घुसना असंभव हो रहा था। जैसे-तैसे, गिरते- पड़ते वह एक इंटरक्लास (उस जमाने में रेलगाड़ियों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के अलावा एक इंटरक्लास का ड्योढ़ा डिब्बा भी होता था, जो आजकल के आरक्षित द्वितीय श्रेणी के शयनयानों जैसा होता था) के डिब्बे में घुस आई। उसे उसमें चढ़ते देख उस डिब्बे में बैठे सारे-के-सारे यात्री विरोध में चीखने- चिल्लाने लगे।
डिब्बे में चढ़ आने के बाद भी, उसे बैठने की कोई जगह नहीं मिली। वैसे उस डिब्बे में जगह की कोई कमी नहीं थी। सुसभ्य समाज के एक माननीय बंगाली महोदय अपने सारे बंडल – बिस्तर और सामान को बैठने की सीट पर फैलाकर ही पाँव पसारे बैठे थे। अगर वे जरा-सा भी सरक जाते तो उस वृद्धा को बैठने की जगह बहुत आसानी से दे सकते थे। सरककर जगह तो उन्होंने नहीं दी, परंतु उपदेश देने से नहीं चूके, “घुसने को तो डिब्बे में घुस आई, अब जरा यह तो बताओ बुढ़िया कि बैठोगी कहाँ?”
“मैं आप लोगों के पैरों के पास फर्श पर ही जैसे-तैसे बैठ जाउँगी, भाई साहब! बस दो ही स्टेशनों की तो बात है, उसके बाद रेलगाड़ी जहाँ रुकेगी, बस वहीं उतर जाऊँगी। आप लोगों को बहुत अधिक देर तक असुविधा नहीं पहुँचाउँगी।”
उन्हीं सज्जन के जूतों के जोड़ों को थोड़ा-सा सरकाकर वह उनके पैरों के तलवों के पास ही बैठ गई। उनके बैठ जाने से भी कोई खास असुविधा किसी को नहीं हुई, क्योंकि एक तो वह वृद्धा काफी दुबली- पतली और साधारण कद-काठी की थी, दूसरे वह अपने उस शरीर को भी काफी सिकोड़-मरोड़कर बैठी थी। उस तरह बैठे रहने से उसे खुद ही काफी असुविधा थी। उधर प्लेटफॉर्म पर उस आदमी के बिस्तरबंद के फीते में पाँव उलझ जाने के कारण गिर पड़ने से पैर में जो मोच आ गई थी; अब घाव के ठंडा पड़ने पर वह अधिक टीस पैदा करने लगी। अब वह सहज-स्वाभाविक ढंग से बैठ भी नहीं पा रही थी। मोच आए पैर को उसने जो फिर ध्यान से देखा, तो पाया कि घाव लगी जगह पर सूजन आ गई है। पैर के फूलने और दर्द के लगातार बढ़ते ही जाने के कारण अब उसके मन में एक भारी दुश्चिंता उठने लगी कि ऐसी हालत में वह इस डिब्बे से नीचे कैसे उतरेगी? बस दो स्टेशन बाद ही तो उतरना पड़ेगा! आनेवाले उस स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर केवल उतरना ही तो नहीं है, बल्कि वहाँ से फिर दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाकर एक और रेलगाड़ी पकड़नी है। जबकि अभी हालत यह है वह अपने पैर को हिला भी नहीं पा रही है; ऐसी हालत में तो खड़ा भी नहीं हुआ जा सकेगा। एक बार उसने उस डिब्बे में चारों ओर निहारा। डिब्बा अनेक बंगाली नागरिकों से भरा हुआ था। हालाँकि उनमें से ज्यादातर युवक थे, जो उसके बच्चों की उम्र के ही थे, कुछेक तो उसके नाती की उम्र के बराबर के भी थे। डिब्बे में उपस्थित लोगों को निहार लेने के बाद और अपने पहले के विभिन्न अनुभवों के आधार पर उसने अच्छी तरह समझ लिया कि आगे स्थिति क्या होगी! उनमें से कोई भी उसे खड़ा होने और फिर डिब्बे से नीचे उतरने में सहायता करेगा? इसकी उम्मीद वह नहीं लगा सकी। फिर भी अब तो यह मजबूरी ही थी कि उन्हीं लोगों से सहायता करने की याचना करनी पड़ेगी। नहीं तो और कोई उपाय ही कहाँ रहा?
उस वृद्धा को जिस स्टेशन पर उतरना था, रेलगाड़ी उस स्टेशन पर जा पहुँची। डिब्बे में बैठे वे सभी लोग हड़बड़ी में उतरने लगे, जिन्हें वहाँ उतरना था। परंतु उस वृद्धा की ओर किसी ने आँख उठाकर देखा तक नहीं।
“अरे, ओ भाई लोगों ! जरा मुझे भी नीचे उतार दो न, मैं अपनी चोट लगी टाँग के कारण खड़ी नहीं हो पा रही हूँ।” वृद्धा ने जो यह करुण विनती की थी, वह डिब्बे में उपस्थित सभी लोगों के कानों में पहुँची। परंतु उनमें से अधिकांश सज्जनों ने ऐसी मुद्रा बनाई, जैसे लगा कि वे कुछ सुन नहीं सके।
एक सज्जन, जिनकी मुद्रा ऐसी थी कि उन्होंने सुन लिया है, बोल पड़े- “इस भिखमंगी औरत का साहस देखा आप लोगों ने? अरे, कहाँ तो बिना टिकट के ही इस इंटरक्लास डिब्बे में चढ़कर जा रही है और अब यह हम लोगों से सेवा भी करवाना चाहती है!”
हालाँकि उस महोदय ने उस वृद्धा को भिखारी समझा, परंतु वह वृद्धा महिला न तो भिखारी थी और न ही पहनावे – ओढ़ावे या शक्त-सूरत अथवा आचार-व्यवहार में किसी भी तरह भिखारी दिखाई दे रही थी। उनके पास भी रेलवे का टिकट था; वह भी साधारण सेकंड क्लास का न होकर रिजर्व टाइप के इंटरक्लास का ही टिकट था।
एक अन्य सज्जन ने उससे भी और समझदारी भरा विचार प्रकट किया, “इस असहाय बूढ़ी औरत को रास्ते पर छोड़ दिया है घरवालों ने। इसका कोई पति अथवा बेटा नहीं है क्या? कितनी हैरानी की बात है यह?” इतना कहकर सिगार के लंबे-लंबे कश खींचते और धुआँ उगलते हुए वह भी नीचे उतर गए। डिब्बे में जो लोग बाकी बचे रह गए थे, उनमें से दो-चार लोगों ने अपने टिफिन-कैरियर खोलकर भोजन करने में अपना मन लगा दिया था। उस वृद्धा की दर्द भरी विनती उन लोगों के कानों में भी गई थी; परंतु उसकी ओर ध्यान देना उन लोगों ने उचित नहीं समझा। थोड़ी देर में वह वृद्धा अपने दोनों हाथों की टेक देकर किसी तरह घिसटते घिसटते डिब्बे के दरवाजे के सामने पहुँच गई थी, परंतु नीचे उतरने का साहस नहीं कर पा रही थी।
“अरे ओ बुढ़िया ! दरवाजे पर से हट जाओ।” – एक मारवाड़ी सज्जन इतना कहकर उसके हटने का इंतजार किए बगैर ही अपने पैरों से उसे धक्का मारते हुए डिब्बे के अंदर जा घुसे। उसके पीछे-पीछे एक बहुत ही हट्टा कट्टा बलिष्ठ शरीर का कुली भी चला आ रहा था। उसके सिर पर एक बहुत भारी सूटकेस और बँधा हुआ बिस्तरबंद रखा था। कुली के पीछे एक छोकरा भी चढ़ता चला आ रहा था, जिसने अपनी आँखों पर नीला चश्मा लगा रखा था तथा पैरों में चप्पल पहने हुए था। उसकी साज-पोशाक रंग-बिरंगी और बड़े विचित्र प्रकार की थी। उसने एक विचित्र प्रकार की मुद्रा बनाते हुए कहा, “दयामयी! कृपया रास्ता तो छोड़ें। ठीक दरवाजे पर क्यों विराजी हुई हैं?”
अब तुम्हें कैसे बतलाऊँ, बेटा! पैर में बहुत जोर से मोच आ गई है। इसी वजह से मैं नीचे उतर नहीं पा रही हूँ।”
“ओह, अच्छा तो यह बात है। ठीक है, जरा मैं देखकर आता हूँ कि कहीं से अस्पताल का स्ट्रेचर उठाकर ला पाता हूँ।” कहकर वह विचित्र हाव-भाववाला छोकरा प्लेटफॉर्म की उस भीड़ में ऐसा खो गया कि फिर उस दरवाजे पर लौटा ही नहीं।
थोड़ी देर पहले जो बलिष्ठ शरीरवाला कुली अपने सिर पर बक्सों का बोझा लिये हुए डिब्बे में घुसा था, वह बाहर जाने के लिए अब खुले माथे होकर लौट रहा था। बाहर उतरने के लिए जगह खाली न देख वह वहाँ आकर खड़ा हो गया और बोला – “माई जी ! जरा कृपा करके थोड़ा हटकर बैठो न! आप नाहक आने-जाने के रास्ते पर क्यों बैठ गई हैं?”
उसकी बात सुनते ही वृद्धा कुहर – कुहरकर रो पड़ी – “मुझे बैठना नहीं है, इस स्टेशन पर अभी उतरना है; मगर उतर नहीं पा रही हूँ। मेरे पैरों में इतनी गहरी चोट लगी है कि क्या बताऊँ बेटा!”
‘ओह, यह बात है? आपको जाना कहाँ है?”
गया शहर !”
अच्छा तो अभी आगे दूसरी गाड़ी में चढ़ना भी है। कोई चिंता-फिक्र नहीं। आइए, मैं आपको ले चलता हूँ।” जिस तरह से एक हृष्ट-पुष्ट बड़ा पुरुष एक नन्हे बच्चे को हाथों में घेरकर गोद में उठाकर अपनी छाती से लगा लेता है, ठीक उसी प्रकार उस कुली ने उस वृद्धा को अपनी दोनों बाँहों में भरकर गोदी में उठा लिया। फिर उसी तरह उठाए-उठाए ही वह उन्हें सीधे प्रथम श्रेणी के प्रतीक्षालय वाले कमरे में लेकर चला गया। वहाँ उसे एक जगह पर बैठाते हुए बोला, “माईजी ! आप यहीं पर आराम से बैठिए। गया शहर जानेवाली रेलगाड़ी के आने में अभी थोड़ी देरी है; परंतु आप घबराइए नहीं, मैं ठीक समय पर आकर आपको ले जाकर आपकी रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़ा दूँगा।”
प्रतीक्षालय के फर्श पर ही वृद्धा थोड़ी आराम की मुद्रा में बैठ गई। उस कमरे में लंबे हत्थों पर पैर फैलाकर आराम से बैठी जा सकनेवाली दो आरामकुर्सी पर अंग्रेजी सूट-बूट में सजे – धजे दो बंगाली सम्मानित व्यक्ति अपने-अपने पैर पसारे लंबी ताने लेटे हुए थे। एक सज्जन दैनिक समाचार पत्र पढ़ने में व्यस्त थे, जबकि दूसरे के हाथ में अंग्रेजी भाषा की एक मोटी-सी किताब थी। उस किताब के मुख पृष्ठ पर मुसकराती हुई मुद्रा में एक अर्धनग्न युवती की तस्वीर छपी हुई थी। उसकी मुसकान को देखते हुए उस वृद्धा के मन में आया, जैसे वह युवती उसकी ओर देखकर उसकी दुर्दशा पर व्यंग्य की हँसी हँसती जा रही है।
उन दोनों सज्जनों के बीच जो बात शुरू हुई, उससे लगा कि वह अभी इसी क्षण आरंभ नहीं हुई है, बल्कि उसके संबंध में काफी कुछ आलोचना प्रत्यालोचना पहले से होती चली आ रही थी। अब बात इस तरह शुरू हुई, “सभ्य समाज का नागरिक शिष्टाचार का रिवाज, कोई उन्हीं पश्चिमी देशों की जागीर थोड़े ही है। स्त्रियों के प्रति अति शालीन शिष्टाचार निभाने की प्रथा हमारे अपने इस देश में बहुत प्राचीनकाल में भी थी – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ( स्त्री जाति की जिस स्थल पर पूजा होती है; वहीं देवता लोग प्रसन्न मन से निवास करते हैं) यह सुविचार हमारे पुराने स्मृति शास्त्र में महाराज मनु ने ही लिख रखा है, महाशय !’
जो सज्जन नग्न स्त्री के चित्रोंवाली अंग्रेजी भाषा की पुस्तक पढ़ रहे थे, उनकी हड़बड़ाहट देख ऐसा जान पड़ा, जैसे यह वाक्य उनके लिए पहली पहली बार सुनी हुई कोई खबर हो, जिसके बारे में पहले से वे कुछ जानते ही न थे। वे आवेश में उठ खड़े हुए, “अरे वाह! यह आप क्या कह रहे हैं? आपने पहले क्यों नहीं बताया? यदि मैं इस बात को पहले से जानता होता, तो फिर उस अंग्रेज साले को यों ही छोड़ देता क्या? भला बतलाइए, महाराज मनु के जमाने में भी हमारे देश में स्त्री जाति के प्रति अतिशय शिष्ट और शालीन शिष्टाचार निभाने की परंपरा थी। हमलोग महा पिछड़े हुए बर्बर और जंगली नहीं थे। यह बात मैं उस छोकरे को अच्छी तरह समझा देता।”
वृद्धा ने अनुमान लगाया कि लगता है कि इससे पहले अंग्रेज जाति का कोई ब्रिटिश साहब यहाँ बैठा होगा, जिसकी भारतीयों के व्यवहार पर और उनकी सभ्यता पर की गई किसी टिप्पणी से ये लोग आहत हो गए थे। उसे लगा कि इन लोगों को उससे तर्क-वितर्क में अवश्य ही मुँह की खानी पड़ी होगी। संभव है कि उस गोरी चमड़ीवाले साहब ने अंग्रेजी पोशाक पहननेवाले काली- चमड़ी के इस बंगाली नौजवान को जंगली और बर्बर कहकर व्यंग्य कर दिया हो ! यह सोचकर उन्होंने मन-ही-मन बुदबुदाते हुए कहा, ‘इसमें कुछ गलत ही क्या है? मेरे प्यारे नौजवान बालको! तुम लोग अभी भी बर्बर, हिंसक, जंगली और असभ्य ही हो। वैसे शिष्टाचार तुमलोगों में है भी; विशेषकर स्त्रियों के प्रति अति शालीन नागरिक शिष्टाचार तो है ही, परंतु वे सब केवल युवतियों-कन्याओं के साथ व्यवहार करते समय ही दिखाई पड़ता है, औरों के मामलों में वह हवा हो जाता है।’ बँगला – भाषा के अलावा वृद्धा संस्कृत और अंग्रेजी का भी सामान्य ज्ञान रखती थी, क्योंकि उस जमाने में अंग्रेजी माध्यमवाले बेथुन स्कूल में उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी।
तभी उस दूसरे बंगाली सज्जन की दृष्टि इस वृद्धा पर पड़ी। वे यकायक उबल पड़े, “अरे-अरे! ये औरत इस जगह पर कहाँ से आ घुसी?”
लगता है, कोई भीख माँगनेवाली होगी, कुछ पाने की तलाश में घुस आई होगी!” दूसरे बंगाली भद्रपुरुष ने अपने द्वारा लगाए गए अनुमान का खुलासा किया।
“सच कहते हो, भाई ! हमारा यह पूरा देश ही भिखारियों से भर गया है। स्वतंत्रता मिलने के बाद से तो भिखमंगों की संख्या बड़ी तेजी से और भी बढ़ गई है। कुछ तो माँग-माँगकर परेशान कर देते हैं, परंतु सभी तो वैसे नहीं हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो मुँह खोलकर नहीं माँग पाते।”
फिर तो दिखाई पड़ा कि बंगाली सुसभ्य नागरिक महोदय ने अपनी जेब से एक पैसा निकालकर फेंक दिया।
उनके ऐसा कर गुजरने पर भी वृद्धा पहले की ही तरह निर्विकार भाव से बैठी रह गई।
“अरे, ओ बुढ़िया ! वह पैसा उठा लो, वह पैसा मैंने तुम्हें दिया है।”
इतना होने पर भी वृद्धा ने अपने मुँह से जबान नहीं खोली।
ऐसा होते देख उस दानदाता सभ्य सुसंस्कृत सज्जन के मन में यह संदेह हुआ कि संभव है, यह बुढ़िया बंगाली नहीं है, इसलिए परिष्कृत बँगला भाषा में कही हुई उनकी बात को समझ नहीं पा रही है। तब उसने राष्ट्रभाषा हिंदी का व्यवहार किया। राष्ट्रभाषा का ज्ञान उन्हें अभी कुछ पहले ही तब हुआ था, जब अपनी नौकरी में सुविधा पाने के उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रभाषा हिंदी की एक परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
“उस पैसे को मैंने तुम्हें ही दिया है। तुम बिना डरे ही उसे उठा लो।”
उसकी यह बात सुनकर इस बार वृद्धा चुप नहीं रह सकी। वह परिष्कृत बँगला भाषा में कह उठी, “हे महाशयो ! मैं कोई भीख माँगनेवाली नहीं। जिस तरह से आपलोग भारतीय रेल के यात्री के रुप में यहाँ हैं, मैं भी भारतीय रेल की एक यात्री हूँ।”
“अच्छा, तो फिर इस प्रतीक्षालय में क्यों आ गई हो? तुम्हें यह तो पता ही होगा कि यह कोई साधारण कमरा नहीं है, बल्कि यह उच्च श्रेणी के टिकटधारकों का प्रतीक्षालय है।”
“जी महाशय ! मुझे सब मालूम है और मेरा अपना रेल टिकट भी उसी श्रेणी का है।” इतना वह कह ही पाई थी कि दूसरे ही क्षण बलिष्ठ कायावाला वह कुली दरवाजे पर आता हुआ दिखाई पड़ा और वहीं से चिल्लाया, “उठिए माइजी ! अब चलिए। गया शहर को जानेवाली रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ लगी है।” फिर करीब आकर उसने अपनी बलिष्ठ भुजाओं में फिर से एक नन्हे बच्चे की तरह उस वृद्धा को गोदी में उठा लिया और उन्हें सँभालकर बाहर लिये चला गया।
गया शहर जानेवाली यात्री रेलगाड़ी में थोड़ी भीड़ थी; परंतु कुली बहुत ही मजबूत कद-काठी का था। आज के जमाने में शारीरिक शक्ति की सभी जगह विजय होती है, अतः अपनी इस क्षमता का लाभ उठाते हुए अन्य यात्रियों को डाँट-डपटकर उन्हें सरकाते हुए डिब्बे की एक बेंच के कोने के स्थान में आराम से बैठने की एक अच्छी जगह पाने में सफलता प्राप्त कर ली। उसने वृद्धा को बहुत आराम से वहाँ बिठा दिया। वह जैसे ही डिब्बे से बाहर जाने लगा, वृद्धा ने उसका हाथ पकड़कर उसे दो रुपए दिए।
वृद्धा के इस व्यवहार पर उस कुली के साथ हिंदी भाषा में जो उनका वार्तालाप हुआ, उसका सारांश इस प्रकार है-
नहीं माँजी! मैं इतने पैसे नहीं ले सकता। मेरी मजदूरी वस्तुतः कुल आठ आना की ही हुई। फिर आप मुझे आठ आने की जगह ये दो रुपए क्यों दे रही हैं?”
‘अरे, वाह! तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। उसका क्या कोई मूल्य नहीं? ले बेटा! मैंने जानबूझकर ही थोड़ा अधिक दिया है।”
“नहीं माँजी ! आप मुझे कृपया क्षमा करेंगी। मै एक मजदूर हूँ और अपनी मजदूरी की ही रोटी कमाता हूँ। मैं अपना धर्म बेचनेवाला नहीं हूँ।”
“नहीं रे! तू तो मेरा बेटा है, बेटा! बेटे का ही तो काम तुमने किया है। जबकि माँ होकर भी मैंने तुम्हें अपना दूध नहीं पिलाया था। आज इस घड़ी में जो ये मामूली से अधिक पैसे दे रही हूँ, उन्हें उस दूध का दाम समझकर ही रख लो, बेटा ! जाओ खुश रहो। सुखी रहो। दीर्घायु हो। भगवान् तुम्हारा मंगल करें।” कहते- कहते वृद्धा का गला भर आया। उनकी आवाज़ काँपने लगी। उनकी दोनों आँखों के कोनों में आँसू की बड़ी- बड़ी बूँदें झिलमिलाने लगीं।
कुछ देर के लिए तो वह कुली आश्चर्यचकित हो काठ सा खड़ा ही रह गया था, परंतु उसके थोड़ी ही देर बाद उसका सिर अपने आप वृद्धा के चरणों में झुक गया। बड़े आदर के साथ उस वृद्धा को प्रणाम कर वह रेलगाड़ी के उस डिब्बे से नीचे उतर गया।
अनुवादक महेन्द्रनाथ दुबे
कठिन शब्दों के सरल अर्थ
कठिन शब्द | हिंदी अर्थ | बांग्ला अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
बिस्तरबंद | बिस्तर को बाँधने वाला कपड़ा या रस्सी | বিছানার বাঁধন/কাপড় | Bedroll/Cloth for tying bedding |
सुडौल | अच्छे आकार वाला, सुंदर आकृति वाला | সুঠাম, সুন্দর গড়নের | Well-built, graceful, well-proportioned |
तन्वंगी | पतले और सुंदर शरीर वाली स्त्री | তন্বী, সরু শরীরযুক্ত নারী | Slender woman, woman with a delicate figure |
सुदर्शना | सुंदर दिखने वाली, आकर्षक | সুদর্শনা, দেখতে সুন্দর | Good-looking, attractive |
सुरूपा | सुंदर रूप वाली | সুরূপা, সুন্দর রূপের | Beautiful, of good appearance |
इठलाती | नखरे करती हुई, अदा दिखाती हुई | ইঠলানো, নখরানি করা | Flirting, showing airs, strutting |
बलखाती | लहराती हुई, इठलाती हुई | বলখানো, দুলতে থাকা | Swaying, undulating |
मधु-गुँजार | मधुर ध्वनि, भिनभिनाहट (यहाँ भीड़ की चहलकदमी) | মধুর গুঞ্জন, মৌমাছির গুঞ্জন (এখানে ভিড়ের কোলাহল) | Sweet hum, buzzing (here, the murmur of the crowघ. |
ढली हुई अवस्था | बुढ़ापा, वृद्धावस्था | ঢলে পড়া অবস্থা, বার্ধক্য | Advanced age, old age |
फीते | पतली पट्टी, डोरी | ফিতা, দড়ি | Laces, ribbons |
धड़ाम से | गिरने की आवाज़, तेज़ी से | ধড়াম করে, দ্রুত | With a thud, suddenly, with a crash |
कराहने | दर्द से आवाज़ निकालना, आह भरना | গোঙানো, ব্যথায় আর্তনাদ করা | Moaning, groaning |
सभ्य-शिष्टाचार | सभ्य व्यवहार, तहज़ीब | সভ্য আচরণ, শিষ্টাচার | Civility, good manners |
परिणत होना | बदलना, रूप लेना | পরিণত হওয়া, রূপান্তরিত হওয়া | To be transformed, to take shape |
प्रकट रूप में | खुले तौर पर, सामने | প্রকাশ্যে, স্পষ্ট ভাবে | Openly, overtly |
छिपे-छिपे तौर पर | गुप्त रूप से, चोरी-छिपे | গোপনে, আড়ালে | Secretly, discreetly |
डाँट फटकार भरे लहजे में | डाँटते हुए, गुस्से में | তিরস্কারপূর্ণ সুরে, বকাঝকা করে | In a scolding tone, reprimanding |
उपदेश वाक्य | सीख देने वाला वाक्य, नसीहत | উপদেশমূলক বাক্য, নির্দেশ | Precept, moralistic statement |
झाड़ देना | सुनाना, कह देना (गुस्से में) | ঝাড়িয়ে দেওয়া, শুনিয়ে দেওয়া (রাগে) | To scold, to give a piece of one’s mind |
मोच | हड्डियों के जोड़ में खिंचाव | মচকানো, মচকা | Sprain |
टीस | हल्का दर्द, कसक | মোচড়, হালকা ব্যথা | Twinge, throbbing pain |
दुश्चिंता | बुरी चिंता, घबराहट | দুশ্চিন্তা, উদ্বেগ | Anxiety, apprehension |
निहारा | देखा, ध्यान से देखा | চেয়ে দেখা, পর্যবেক্ষণ করা | Gazed, looked intently |
याचना | प्रार्थना, विनती | প্রার্থনা, আবেদন | Plea, supplication |
असंभव | नामुमकिन | অসম্ভব | Impossible |
हड़बड़ी | जल्दबाजी, शीघ्रता | তাড়াহুড়ো, দ্রুততা | Hurry, haste |
करुण विनती | दया भरी प्रार्थना, मार्मिक निवेदन | করুন প্রার্থনা, করুণ আবেদন | Piteous plea, pathetic appeal |
मुद्रा | हाव-भाव, मुख-भाव | অভিব্যক্তি, ভঙ্গি | Expression, posture |
भिखमंगी | भिखारी स्त्री | ভিখিরি | Beggar woman |
साहस | हिम्मत | সাহস | Courage, boldness |
टिकट के ही | बिना टिकट के | টিকিট ছাড়াই | Without a ticket |
अत्याचार | अन्याय, ज़ुल्म | অত্যাচার, অবিচার | Oppression, injustice |
छोकरा | लड़का, युवा | ছেলে, যুবক | Lad, young boy |
दयामयी | दया करने वाली, दयालु स्त्री | দয়াময়ী, দয়ালু নারী | Compassionate one, merciful woman |
विराजना | विराजमान होना, बैठना | বিরাজ করা, বসা | To be seated, to be enthroned |
स्ट्रैचर | रोगी को ले जाने वाला पलंग | স্ট্রেচার | Stretcher |
कुहर-कुहरकर रोना | सिसक-सिसक कर रोना, धीमी आवाज़ में रोना | ফুঁপিয়ে ফুঁপিয়ে কাঁদা | To sob, to cry softly |
स्वयंसेवक | अपनी इच्छा से सेवा करने वाला | স্বেচ্ছাসেবক | Volunteer |
बलिष्ठ | बलवान, शक्तिशाली | বলিষ্ঠ, শক্তিশালী | Strong, robust |
कुली | सामान ढोने वाला मज़दूर | কুলি, মালবাহক | Porter, coolie |
हृष्ट-पुष्ट | मोटा-ताज़ा, स्वस्थ शरीर वाला | হৃষ্টপুষ্ট, বলিষ্ঠ শরীরযুক্ত | Stout, well-built, sturdy |
दीर्घायु | लंबी उम्र वाला | দীর্ঘায়ু | Long-lived, having a long life |
झिलमिलाने | चमकने, टिमटिमाने | ঝিলমিল করা, চিকচিক করা | To sparkle, to shimmer |
काठ सा खड़ा रह जाना | स्तब्ध रह जाना, अवाक रह जाना | কাঠের মতো দাঁড়িয়ে থাকা, হতবাক হওয়া | To stand like a log, to be dumbfounded |
कहानी ‘दूध का दाम’ की मुख्य संवेदना
कहानी ‘दूध का दाम’ की मुख्य संवेदना मानवता, ममता और सामाजिक शिष्टाचार की कमी को उजागर करना है। यह एक वृद्ध महिला की रेल यात्रा के दौरान समाज की उदासीनता और असंवेदनशीलता को चित्रित करती है। सुसभ्य माने जाने वाले लोग उसकी चोट और असहायता की अनदेखी करते हैं, उसे भिखारी समझकर अपमानित करते हैं, जबकि समाज में शिष्टाचार केवल युवा और आकर्षक महिलाओं तक सीमित दिखता है। इसके विपरीत, एक साधारण कुली की निस्वार्थ सहायता, जो वृद्धा को गोद में उठाकर गाड़ी तक पहुँचाता है, सच्ची मानवता का प्रतीक है। वृद्धा का कुली को ‘दूध का दाम’ कहकर आशीर्वाद देना ममता और कृतज्ञता का भाव दर्शाता है। कहानी यह संदेश देती है कि सच्चा शिष्टाचार और सहानुभूति सामाजिक स्थिति या शिक्षा से नहीं, बल्कि हृदय की संवेदनशीलता से उत्पन्न होती है, जो आधुनिक समाज में वृद्धजनों के प्रति उपेक्षा को चुनौती देता है।
विस्तृत सारांश
यह कहानी एक वृद्ध महिला के रेल यात्रा के अनुभव और समाज में शिष्टाचार की कमी को दर्शाती है, जिसमें मानवीय संवेदनशीलता और सामाजिक असमानताओं पर गहरा प्रकाश डाला गया है। कहानी का केंद्रीय विषय एक वृद्धा की कठिनाइयों और समाज के उदासीन रवैये के बीच एक कुली की मानवता और सहानुभूति है।
कहानी शुरू होती है एक रेलवे स्टेशन पर, जहाँ रेलगाड़ी के आने का इंतज़ार हो रहा है। प्लेटफॉर्म पर सुंदर, सजी-धजी युवतियों का एक समूह आकर्षण का केंद्र बनता है, और उनके इर्द-गिर्द कई युवक चक्कर लगाते हैं। इस भीड़-भाड़ वाले माहौल में एक वृद्ध महिला भी रेल पकड़ने के लिए आती है। लेकिन रास्ते में एक व्यक्ति के बिस्तरबंद के फीते में उसका पैर उलझ जाता है, और वह धड़ाम से गिर पड़ती है। उसे गहरी चोट लगती है, और वह दर्द से कराहने लगती है, लेकिन आसपास मौजूद लोग उसकी ओर ध्यान नहीं देते। जिस व्यक्ति का बिस्तरबंद था, वह उसे डाँटता है कि उसका फीता टूट सकता था, बिना उसकी चोट की परवाह किए।
वृद्धा लँगड़ाते हुए किसी तरह प्लेटफॉर्म पर आगे बढ़ती है और रेलगाड़ी के एक इंटरक्लास डिब्बे में चढ़ने में कामयाब हो जाती है। लेकिन डिब्बे में बैठे यात्री उसका विरोध करते हैं और उसे बैठने की जगह नहीं मिलती। एक बंगाली सज्जन, जिन्होंने अपनी सीट पर सामान फैलाया हुआ है, उसे जगह देने के बजाय ताने मारते हैं और कर्कश स्वर में पूछते हैं कि वह बैठेगी कहाँ? वृद्धा विनम्रता से कहती है कि वह फर्श पर ही बैठ जाएगी, क्योंकि उसे सिर्फ दो स्टेशन तक जाना है। वह सिकुड़कर, अपने दर्द को सहते हुए सज्जन के पैरों के पास बैठ जाती है। उसका पैर सूज गया है, और दर्द बढ़ता जा रहा है, जिससे उसे चिंता होती है कि वह अगले स्टेशन पर कैसे उतरेगी और दूसरी गाड़ी कैसे पकड़ेगी?
जब रेलगाड़ी उस स्टेशन पर पहुँचती है जहाँ वृद्धा को उतरना है, कोई भी उसकी मदद नहीं करता। वह बार-बार सहायता की गुहार लगाती है, लेकिन डिब्बे में मौजूद लोग, जो ज्यादातर बंगाली युवक हैं, उसकी अनदेखी करते हैं। कुछ उसे भिखारी समझकर अपमानित करते हैं, हालाँकि उसके पास इंटरक्लास का रिजर्व टिकट है। एक सज्जन उसे घरवालों द्वारा छोड़ दी गई असहाय बूढ़ी औरत कहकर तंज कसता है। दूसरा व्यक्ति, जो दरवाजे पर आता है, उसे धक्का देकर हटाने की कोशिश करता है। एक रंग-बिरंगे कपड़ों वाला युवक उसकी चोट के बारे में सुनकर स्ट्रेचर लाने की बात कहता है, लेकिन वह भीड़ में गायब हो जाता है।
इसी बीच, एक बलिष्ठ कुली, जो पहले डिब्बे में सामान लेकर आया था, वृद्धा की पुकार सुनता है। वह उसकी हालत समझता है और पूछता है कि उसे जाना कहाँ है। जब वृद्धा बताती है कि उसे गया शहर जाना है, कुली उसे अपनी बाँहों में उठाकर प्रथम श्रेणी के प्रतीक्षालय में ले जाता है और वहाँ आराम से बिठाता है। वह वादा करता है कि वह उसे समय पर अगली गाड़ी में चढ़ा देगा। प्रतीक्षालय में दो बंगाली सज्जन बैठे हैं, जो स्त्री सम्मान और भारतीय संस्कृति की बातें कर रहे हैं, लेकिन वृद्धा को देखकर उसे भिखारी समझकर अपमानित करते हैं। एक सज्जन उसे एक पैसा फेंकता है, लेकिन वृद्धा जवाब देती है कि वह भिखारी नहीं, बल्कि एक टिकटधारी यात्री है।
जब गया जाने वाली गाड़ी आती है, कुली फिर से वृद्धा को गोद में उठाकर डिब्बे में ले जाता है और उसे एक आरामदायक सीट दिलवाता है। जब वृद्धा उसे दो रुपये देती है, वह कहता है कि उसकी मजदूरी सिर्फ आठ आने हैं और वह अतिरिक्त पैसे नहीं ले सकता।
तब वृद्धा ने अत्यंत भावुक होकर कहा, “नहीं रे! तू तो मेरा बेटा है, बेटा! बेटे का ही तो काम तुमने किया है। जबकि माँ होकर भी मैंने तुम्हें अपना दूध नहीं पिलाया था। आज इस घड़ी में जो ये मामूली से अधिक पैसे दे रही हूँ, उन्हें उस दूध का दाम समझकर ही रख लो, बेटा! जाओ खुश रहो। सुखी रहो। दीर्घायु हो। भगवान् तुम्हारा मंगल करें।” यह कहते-कहते उनका गला भर आया और आँखों में आँसू आ गए।
कुली कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गया, फिर उसने श्रद्धा से वृद्धा के चरणों को छूकर प्रणाम किया और ट्रेन से उतर गया। यह कहानी मानवीयता के सच्चे अर्थ को दर्शाती है, जहाँ शिक्षित और संपन्न लोग भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं, वहीं एक साधारण कुली निस्वार्थ भाव से मदद कर मानवता का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष
कहानी सामाजिक शिष्टाचार की कमी और वृद्धजनों, विशेषकर महिलाओं के प्रति समाज के उदासीन रवैये को उजागर करती है। सुसभ्य और शिक्षित माने जाने वाले लोग केवल युवा और आकर्षक महिलाओं के प्रति शिष्टाचार दिखाते हैं, जबकि वृद्ध और असहाय लोगों की अनदेखी करते हैं। इसके विपरीत, एक साधारण कुली अपनी मानवता और सहानुभूति से वृद्धा की मदद करता है, जो सच्ची सभ्यता का प्रतीक है। कहानी यह दर्शाती है कि सच्चा शिष्टाचार और मानवता सामाजिक स्थिति या शिक्षा से नहीं, बल्कि हृदय की संवेदनशीलता से आती है।
कहानी ‘दूध का दाम’ से जुड़े बहुविकल्पीय प्रश्न
- कहानी ‘दूध का दाम’ का केंद्रीय विषय क्या है?
क. रेल यात्रा का रोमांच
ख. सामाजिक शिष्टाचार और मानवता
ग. युवा और वृद्ध के बीच का प्रेम
घ. रेलवे स्टेशन का वर्णन
उत्तर – ख. सामाजिक शिष्टाचार और मानवता
- कहानी में वृद्धा महिला क्यों गिर पड़ी थी?
क. वह नशे में थी
ख. बिस्तरबंद के फीते में उसका पैर उलझ गया
ग. उसे किसी ने धक्का दिया
घ. वह बीमार थी
उत्तर – ख. बिस्तरबंद के फीते में उसका पैर उलझ गया
- वृद्धा के गिरने पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी?
क. सभी ने उसकी मदद की
ख. किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया
ग. कुछ लोग हँसने लगे
घ. लोग उसे उठाने दौड़े
उत्तर – ख. किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया
- बिस्तरबंद का मालिक वृद्धा को क्या कहता है?
क. उसकी चोट के बारे में पूछता है
ख. उसे डाँटता है कि उसका फीता टूट सकता था
ग. उससे माफी माँगता है
घ. उसे उठाने में मदद करता है
उत्तर – ख. उसे डाँटता है कि उसका फीता टूट सकता था
- वृद्धा किस डिब्बे में चढ़ती है?
क. प्रथम श्रेणी
ख. द्वितीय श्रेणी
ग. इंटरक्लास
घ. सामान्य डिब्बा
उत्तर – ग. इंटरक्लास
- डिब्बे में वृद्धा को बैठने की जगह क्यों नहीं मिलती?
क. डिब्बा पूरी तरह भरा था
ख. एक सज्जन ने सामान फैलाकर सीट घेरी थी
ग. सभी यात्री उसे बाहर निकालना चाहते थे
घ. वह खुद सीट नहीं चाहती थी
उत्तर – ख. एक सज्जन ने सामान फैलाकर सीट घेरी थी
- वृद्धा ने डिब्बे में कहाँ बैठने का निर्णय लिया?
क. खिड़की के पास
ख. सज्जन के पैरों के पास फर्श पर
ग. गलियारे में
घ. दरवाजे के पास
उत्तर – ख. सज्जन के पैरों के पास फर्श पर
- वृद्धा को डिब्बे में चढ़ने पर यात्रियों ने क्या किया?
क. उसका स्वागत किया
ख. विरोध में चीखने-चिल्लाने लगे
ग. उसे खाना दिया
घ. उसे पानी पिलाया
उत्तर – ख. विरोध में चीखने-चिल्लाने लगे
- वृद्धा को किस स्टेशन पर उतरना था?
क. कोलकाता
ख. गया
ग. दिल्ली
घ. मुंबई
उत्तर – ख. गया
- वृद्धा को उतरने में कौन मदद करता है?
क. एक बंगाली सज्जन
ख. एक बलिष्ठ कुली
ग. एक युवती
घ. रेलवे कर्मचारी
उत्तर – ख. एक बलिष्ठ कुली
- कुली वृद्धा को कहाँ ले जाता है?
क. अस्पताल
ख. प्रथम श्रेणी के प्रतीक्षालय
ग. स्टेशन मास्टर के पास
घ. दूसरी गाड़ी में
उत्तर – ख. प्रथम श्रेणी के प्रतीक्षालय
- प्रतीक्षालय में बंगाली सज्जन वृद्धा को क्या समझते हैं?
क. रेलवे कर्मचारी
ख. भिखारी
ग. उनकी रिश्तेदार
घ. शिक्षिका
उत्तर – ख. भिखारी
- एक बंगाली सज्जन वृद्धा को क्या देता है?
क. पानी की बोतल
ख. एक पैसा
ग. खाना
घ. टिकट
उत्तर – ख. एक पैसा
- वृद्धा बंगाली सज्जन को क्या जवाब देती है?
क. वह भिखारी नहीं, टिकटधारी यात्री है
ख. वह उनकी मदद माँगती है
ग. वह चुप रहती है
घ. वह गुस्सा हो जाती है
उत्तर – क. वह भिखारी नहीं, टिकटधारी यात्री है
- वृद्धा के पास किस श्रेणी का टिकट था?
क. सामान्य
ख. द्वितीय श्रेणी
ग. इंटरक्लास रिजर्व
घ. प्रथम श्रेणी
उत्तर – ग. इंटरक्लास रिजर्व
- कुली वृद्धा को गया जाने वाली गाड़ी में कहाँ बिठाता है?
क. दरवाजे के पास
ख. बेंच के कोने पर
ग. खिड़की के पास
घ. फर्श पर
उत्तर – ख. बेंच के कोने पर
- वृद्धा कुली को कितने रुपये देती है?
क. आठ आना
ख. एक रुपया
ग. दो रुपये
घ. पाँच रुपये
उत्तर – ग. दो रुपये
- कुली दो रुपये लेने से क्यों मना करता है?
क. उसे पैसे की जरूरत नहीं थी
ख. उसकी मजदूरी केवल आठ आना थी
ग. वह वृद्धा से डरता था
घ. वह पैसे नहीं लेता था
उत्तर – ख. उसकी मजदूरी केवल आठ आना थी
- वृद्धा कुली को पैसे क्यों देती है?
क. उसे डराने के लिए
ख. उसकी मदद का ‘दूध का दाम’ मानकर
ग. उसे रिश्वत देने के लिए
घ. उसे चुप कराने के लिए
उत्तर – ख. उसकी मदद का ‘दूध का दाम’ मानकर
- कुली वृद्धा के प्रति क्या भावना दिखाता है?
क. गुस्सा
ख. उदासीनता
ग. सम्मान और सहानुभूति
घ. घृणा
उत्तर – ग. सम्मान और सहानुभूति
- कहानी में शिष्टाचार की कमी किसके प्रति उजागर होती है?
क. युवतियों के प्रति
ख. वृद्धजनों के प्रति
ग. बच्चों के प्रति
घ. पुरुषों के प्रति
उत्तर – ख. वृद्धजनों के प्रति
- प्रतीक्षालय में बंगाली सज्जन किस बारे में बात कर रहे थे?
क. रेलवे की सुविधाओं के बारे में
ख. स्त्रियों के प्रति शिष्टाचार की परंपरा के बारे में
ग. स्वतंत्रता के बाद की समस्याओं के बारे में
घ. अंग्रेजी साहित्य के बारे में
उत्तर – ख. स्त्रियों के प्रति शिष्टाचार की परंपरा के बारे में
- वृद्धा को किस भाषा का सामान्य ज्ञान था?
क. केवल हिंदी
ख. बंगला, संस्कृत और अंग्रेजी
ग. केवल बंगला
घ. हिंदी और अंग्रेजी
उत्तर – ख. बंगला, संस्कृत और अंग्रेजी
- वृद्धा की शिक्षा कहाँ हुई थी?
क. बेथुन स्कूल
ख. दिल्ली विश्वविद्यालय
ग. गया कॉलेज
घ. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
उत्तर – क. बेथुन स्कूल
- कहानी का शीर्षक ‘दूध का दाम’ क्या दर्शाता है?
क. दूध की कीमत
ख. ममता और मानवता का मूल्य
ग. रेल यात्रा की लागत
घ. सामाजिक असमानता
उत्तर – ख. ममता और मानवता का मूल्य
- कहानी में कुली का व्यवहार कैसा था?
क. उदासीन और कठोर
ख. सहानुभूतिपूर्ण और मददगार
ग. लापरवाह और असभ्य
घ. चालाक और स्वार्थी
उत्तर – ख. सहानुभूतिपूर्ण और मददगार
- वृद्धा को किस तरह की चोट लगी थी?
क. सिर में चोट
ख. पैर में मोच और सूजन
ग. हाथ में फ्रैक्चर
घ. पीठ में दर्द
उत्तर – ख. पैर में मोच और सूजन
- कहानी में कौन-सा सामाजिक मुद्दा प्रमुख है?
क. शिक्षा की कमी
ख. वृद्धजनों के प्रति उपेक्षा
ग. बेरोजगारी
घ. भ्रष्टाचार
उत्तर – ख. वृद्धजनों के प्रति उपेक्षा
- वृद्धा के प्रति बंगाली सज्जनों का व्यवहार कैसा था?
क. सहानुभूतिपूर्ण
ख. अपमानजनक और उदासीन
ग. मददगार और विनम्र
घ. उत्साहपूर्ण
उत्तर – ख. अपमानजनक और उदासीन
- कहानी का अंत किस भावना के साथ होता है?
क. निराशा और दुख
ख. आशा और मानवता
ग. गुस्सा और असंतोष
घ. उदासीनता और लापरवाही
उत्तर – ख. आशा और मानवता
कहानी ‘दूध का दाम’ से जुड़े एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – रेलगाड़ी के आने से पहले प्लेटफॉर्म पर कौन-कौन आ पहुँचे थे?
उत्तर – रेलगाड़ी के आने से पहले प्लेटफॉर्म पर सुंदर वस्त्रों में सजी-धजी युवतियाँ और कई बंगाली नौजवान आ पहुँचे थे। - प्रश्न – वृद्धा महिला कैसे गिरी थी?
उत्तर – वृद्धा महिला एक व्यक्ति के ढीले-ढाले बाँधे बिस्तरबंद के फीते में पाँव उलझ जाने से गिर पड़ी थी। - प्रश्न – वृद्धा की चोट पर लोगों ने क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर – वृद्धा की चोट पर किसी ने कोई सहानुभूति नहीं दिखाई, यहाँ तक कि पास खड़े सज्जन ने उसे डाँट दिया। - प्रश्न – उस डिब्बे में बैठे यात्री वृद्धा को देखकर क्यों चिल्लाए?
उत्तर – यात्री वृद्धा को देखकर इसलिए चिल्लाए क्योंकि वे उसे बिना टिकट की यात्री समझ बैठे। - प्रश्न – वृद्धा ने किस प्रकार बैठने की अनुमति माँगी?
उत्तर – वृद्धा ने विनम्रता से कहा कि वह फर्श पर पैरों के पास बैठ जाएगी और किसी को असुविधा नहीं देगी। - प्रश्न – घायल पैर के कारण वृद्धा को क्या समस्या हो रही थी?
उत्तर – घायल पैर के कारण वृद्धा को खड़ा होने और चलने में कठिनाई हो रही थी। - प्रश्न – डिब्बे में बैठे अधिकांश लोग वृद्धा की सहायता क्यों नहीं करना चाहते थे?
उत्तर – डिब्बे में बैठे अधिकांश लोग केवल युवतियों के प्रति शिष्टाचार दिखाते थे, वृद्धा के प्रति नहीं। - प्रश्न – वृद्धा ने उतरने के लिए यात्रियों से क्या प्रार्थना की?
उत्तर – वृद्धा ने यात्रियों से करुणा से प्रार्थना की कि वे उसे नीचे उतरने में सहायता करें। - प्रश्न – एक सज्जन ने वृद्धा को क्यों भिखारी कहा?
उत्तर – एक सज्जन ने बिना कारण वृद्धा को भिखारी कहा क्योंकि वह वृद्धा को कमज़ोर और असहाय समझ रहे थे। - प्रश्न – वृद्धा ने कैसे सिद्ध किया कि वह भिखारी नहीं है?
उत्तर – वृद्धा ने बताया कि उसके पास इंटरक्लास श्रेणी का वैध रेल टिकट है। - प्रश्न – कुली ने वृद्धा की क्या सहायता की?
उत्तर – कुली ने वृद्धा को अपनी गोद में उठाकर प्रतीक्षालय तक पहुँचाया और फिर दूसरी ट्रेन में बैठाया। - प्रश्न – प्रतीक्षालय में बैठे लोगों ने वृद्धा को देखकर क्या सोचा?
उत्तर – प्रतीक्षालय में बैठे लोगों ने वृद्धा को भिखारी समझ लिया और पैसे फेंक दिए। - प्रश्न – वृद्धा ने क्यों पैसे नहीं उठाए?
उत्तर – वृद्धा ने पैसे नहीं उठाए क्योंकि वह स्वाभिमानी और सम्मानित महिला थी। - प्रश्न – वृद्धा ने कुली को दो रुपये क्यों दिए?
उत्तर – वृद्धा ने कुली को दो रुपये इसलिए दिए क्योंकि उसने पुत्रवत सेवा की थी। - प्रश्न – कुली ने पहले पैसे क्यों नहीं लिए?
उत्तर – कुली ने पहले पैसे नहीं लिए क्योंकि उसने कहा कि वह केवल मजदूरी लेता है, एहसान का मूल्य नहीं। - प्रश्न – वृद्धा ने कुली को क्या समझाया?
उत्तर – वृद्धा ने कहा कि वह पैसे दूध का दाम समझकर ले ले, क्योंकि उसने माँ जैसी सेवा की है। - प्रश्न – वृद्धा की बात सुनकर कुली की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर – वृद्धा की बात सुनकर कुली भावुक हो गया और उसने वृद्धा के चरणों में सिर झुका दिया। - प्रश्न – कहानी में बंगाली नौजवानों का व्यवहार कैसा दिखाया गया है?
उत्तर – कहानी में बंगाली नौजवानों का व्यवहार स्वार्थी और असंवेदनशील दिखाया गया है। - प्रश्न – प्रतीक्षालय में बैठे व्यक्ति क्या कर रहे थे?
उत्तर – प्रतीक्षालय में बैठे एक व्यक्ति अख़बार पढ़ रहे थे और दूसरे अंग्रेजी किताब पढ़ रहे थे। - प्रश्न – किताब पर कैसी तस्वीर थी, जिससे वृद्धा को व्यंग्य महसूस हुआ?
उत्तर – किताब पर एक अर्धनग्न युवती की मुस्कराती तस्वीर थी, जिससे वृद्धा को लगा कि वह उसकी दुर्दशा पर हँस रही है। - प्रश्न – बंगाली सज्जनों ने स्त्री शिष्टाचार पर क्या तर्क दिया?
उत्तर – बंगाली सज्जनों ने कहा कि स्त्रियों के प्रति शिष्टाचार पश्चिम से नहीं आया, बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। - प्रश्न – वृद्धा ने इन तर्कों पर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर – वृद्धा ने मन-ही-मन सोचा कि यह शिष्टाचार केवल युवतियों तक सीमित रह गया है। - प्रश्न – कुली की कौन-सी विशेषता उसे अन्य पात्रों से अलग बनाती है?
उत्तर – कुली की सहृदयता, मानवीयता और निःस्वार्थ सेवा उसे अन्य पात्रों से अलग बनाती है। - प्रश्न – कहानी का शीर्षक ‘दूध का दाम’ किस बात की ओर संकेत करता है?
उत्तर – ‘दूध का दाम’ मातृत्व और मानवता के मूल्य को दर्शाता है जो वृद्धा कुली को देती है। - प्रश्न – वृद्धा किस प्रकार शिक्षित थी?
उत्तर – वृद्धा ने बेथुन स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी और उसे संस्कृत तथा अंग्रेज़ी का भी ज्ञान था। - प्रश्न – वृद्धा की कौन-सी विशेषता उसे आदरणीय बनाती है?
उत्तर – वृद्धा का स्वाभिमान, करुणा और शिक्षित होना उसे आदरणीय बनाता है। - प्रश्न – कहानी समाज के किस पक्ष पर प्रश्न उठाती है?
उत्तर – यह कहानी समाज में वृद्धों और असहायों के प्रति उपेक्षा और असंवेदनशीलता पर प्रश्न उठाती है। - प्रश्न – वृद्धा को किस स्टेशन पर जाना था?
उत्तर – वृद्धा को गया शहर जाना था। - प्रश्न – वृद्धा ने प्लेटफॉर्म बदलने के लिए किसकी मदद ली?
उत्तर – वृद्धा ने कुली की मदद ली, जिसने उसे गोद में उठाकर ले गया। - प्रश्न – अंत में कुली ने वृद्धा को कहाँ बैठाया?
उत्तर – कुली ने वृद्धा को गया जानेवाली रेलगाड़ी के डिब्बे में एक सुरक्षित कोने में बैठाया।
कहानी ‘दूध का दाम’ से जुड़े प्रश्नोत्तर (30-40 शब्दों में)
- प्रश्न – प्लेटफॉर्म पर युवतियों का पहनावा कैसा था?
उत्तर – युवतियाँ अत्यंत बेशकीमती सुंदर वस्त्रों में सजी-धजी थीं और अपनी सुंदर सुडौल काया से आकर्षक लग रही थीं।
- प्रश्न – वृद्धा महिला कैसे गिरीं?
उत्तर – रेलगाड़ी पकड़ने की हड़बड़ी में उनका पाँव किसी व्यक्ति के बिस्तरबंद के ढीले फीते में उलझ गया और वे वहीं धड़ाम से गिर पड़ीं।
- प्रश्न – गिरने पर वृद्धा की मदद के लिए किसने क्या किया?
उत्तर – किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। पास खड़े शिक्षित सज्जन ने तो उलटा उन्हें डाँट दिया कि वे रास्ते पर देखकर क्यों नहीं चलतीं।
- प्रश्न – वृद्धा के पैर में चोट लगने का क्या कारण था?
उत्तर – पक्के फर्श पर गिरने के कारण उनके दाहिने पैर में गहरी मोच आ गई थी, जिससे उन्हें काफी दर्द हो रहा था।
- प्रश्न – वृद्धा किस डिब्बे में चढ़ पाईं?
उत्तर – बहुत मुश्किल से, गिरते-पड़ते वे एक इंटरक्लास डिब्बे में घुस पाईं, हालाँकि उसमें चढ़ते ही यात्रियों ने विरोध किया।
- प्रश्न – डिब्बे में सज्जन ने वृद्धा को बैठने की जगह क्यों नहीं दी?
उत्तर – वे अपनी सीट पर सारे बंडल-बिस्तर और सामान फैलाकर बैठे थे और जगह देने के बजाय उन्होंने वृद्धा को उपदेश देना उचित समझा।
- प्रश्न – वृद्धा ने बैठने के लिए क्या उपाय किया?
उत्तर – उन्होंने उन सज्जन के जूतों के जोड़ों को सरकाकर उनके पैरों के तलवों के पास ही सिकोड़-मरोड़कर जगह बना ली।
- प्रश्न – वृद्धा को किस स्टेशन पर उतरना था?
उत्तर – वृद्धा को अगले ही स्टेशन पर उतरना था, जहाँ से उन्हें दूसरी रेलगाड़ी पकड़कर गया शहर जाना था।
- प्रश्न – डिब्बे के यात्रियों का वृद्धा के प्रति कैसा व्यवहार था, जब उन्हें उतरना था?
उत्तर – सभी यात्री हड़बड़ी में उतरने लगे, लेकिन किसी ने भी वृद्धा की ओर देखा तक नहीं और न ही उनकी करुण विनती सुनी।
- प्रश्न – एक सज्जन ने वृद्धा को क्या कहकर संबोधित किया, जब उन्होंने मदद माँगी?
उत्तर – उन्होंने वृद्धा को “भिखमंगी औरत” कहकर संबोधित किया और उन पर बिना टिकट यात्रा करने का आरोप लगाया।
- प्रश्न – क्या वृद्धा वास्तव में भिखारी थीं?
उत्तर – नहीं, वृद्धा न तो भिखारी थीं और न ही उनका पहनावा भिखारी जैसा था। उनके पास आरक्षित इंटरक्लास का वैध टिकट था।
- प्रश्न – दूसरे सज्जन ने वृद्धा के बारे में क्या विचार प्रकट किया?
उत्तर – उन्होंने कहा कि यह असहाय बूढ़ी औरत घरवालों द्वारा रास्ते पर छोड़ दी गई है और इसका कोई पति या बेटा नहीं है।
- प्रश्न – “विचित्र हाव-भाववाला छोकरा” कौन था और उसने क्या किया?
उत्तर – वह एक युवा था जिसने नीले चश्मे पहने थे। उसने वृद्धा से रास्ता छोड़ने को कहा और स्ट्रेचर लाने की बात कहकर गायब हो गया।
- प्रश्न – कुली ने वृद्धा की मदद कैसे की?
उत्तर – कुली ने वृद्धा को अपनी भुजाओं में उठाकर गोद में ले लिया और उन्हें सीधे प्रथम श्रेणी के प्रतीक्षालय में बिठाया।
- प्रश्न – कुली ने वृद्धा को गया जाने वाली ट्रेन में कैसे चढ़ाया?
उत्तर – कुली ने अपनी शारीरिक शक्ति का लाभ उठाते हुए भीड़ में से रास्ता बनाया और वृद्धा को डिब्बे की एक बेंच के कोने में आरामदायक जगह पर बिठाया।
- प्रश्न – वृद्धा ने कुली को कितने पैसे दिए और कुली ने क्या कहा?
उत्तर – वृद्धा ने कुली को दो रुपए दिए, जबकि उसकी मजदूरी आठ आना थी। कुली ने अधिक पैसे लेने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि वह अपना धर्म नहीं बेचता।
- प्रश्न – वृद्धा ने अधिक पैसे देने का क्या कारण बताया?
उत्तर – वृद्धा ने कहा कि कुली ने उनके बेटे जैसा काम किया है और ये पैसे उस ‘दूध का दाम’ हैं जो उन्होंने उसे नहीं पिलाया था।
- प्रश्न – कुली की प्रतिक्रिया क्या थी जब वृद्धा ने उसे ‘दूध का दाम’ कहा?
उत्तर – कुली कुछ देर के लिए आश्चर्यचकित रह गया, फिर उसने श्रद्धा से वृद्धा के चरणों में झुककर प्रणाम किया।
- प्रश्न – कहानी में “सभ्य समाज” की क्या आलोचना की गई है?
उत्तर – कहानी में दिखाया गया है कि शिक्षित और संपन्न लोग कैसे दिखावटी शिष्टाचार अपनाते हैं और जरूरतमंदों के प्रति उदासीन और अमानवीय व्यवहार करते हैं।
- प्रश्न – कहानी का शीर्षक ‘दूध का दाम’ क्या दर्शाता है?
उत्तर – यह शीर्षक कुली की निस्वार्थ सेवा और मानवीयता के उस सर्वोच्च मूल्य को दर्शाता है, जो किसी भी पैसे से कहीं अधिक मूल्यवान है।
कहानी ‘दूध का दाम’ से जुड़े दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – कहानी ‘दूध का दाम’ में वृद्धा के साथ रेलवे स्टेशन पर क्या घटना घटती है, और इस घटना के प्रति अन्य यात्रियों की प्रतिक्रिया समाज के किस पहलू को दर्शाती है?
उत्तर – वृद्धा बिस्तरबंद के फीते में उलझकर गिर पड़ती है, जिससे उसे पैर में चोट लगती है। कोई भी यात्री उसकी मदद नहीं करता; कुछ उसे डाँटते हैं। यह समाज में वृद्धजनों, विशेषकर महिलाओं के प्रति उदासीनता और शिष्टाचार की कमी को दर्शाता है, जहाँ केवल युवा और आकर्षक लोगों को महत्व दिया जाता है। - प्रश्न – कहानी में वृद्धा को इंटरक्लास डिब्बे में चढ़ने पर यात्रियों का व्यवहार कैसा था, और यह व्यवहार सामाजिक मूल्यों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर – वृद्धा को इंटरक्लास डिब्बे में चढ़ने पर यात्री चीखने-चिल्लाने लगे और उसे बैठने की जगह नहीं दी। एक सज्जन ने सामान फैलाकर सीट घेरी और उसे ताने मारे। यह व्यवहार सामाजिक मूल्यों में कमी, विशेषकर वृद्ध और असहाय लोगों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है, जो दिखाता है कि शिष्टाचार केवल युवतियों तक सीमित है। - प्रश्न – वृद्धा को रेलवे स्टेशन पर किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और इन कठिनाइयों से वह कैसे निपटती है?
उत्तर – वृद्धा बिस्तरबंद के फीते में उलझकर गिर पड़ती है, जिससे पैर में मोच और सूजन आ जाती है। डिब्बे में जगह न मिलने पर वह फर्श पर बैठती है। उतरने में असमर्थ होने पर वह मदद माँगती है, लेकिन कोई सहायता नहीं करता। अंततः एक कुली उसकी मदद करता है, और वह उसकी सहानुभूति से अपनी यात्रा पूरी करती है। - प्रश्न – कहानी में कुली का वृद्धा के प्रति व्यवहार अन्य यात्रियों से कैसे भिन्न था, और यह क्या संदेश देता है?
उत्तर – अन्य यात्री वृद्धा को भिखारी समझकर अपमानित करते हैं और उसकी मदद नहीं करते, जबकि कुली उसकी चोट को समझकर उसे गोद में उठाकर प्रतीक्षालय और फिर गाड़ी में बिठाता है। उसका सहानुभूतिपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार यह संदेश देता है कि सच्ची मानवता और शिष्टाचार सामाजिक स्थिति या शिक्षा से नहीं, बल्कि हृदय की संवेदनशीलता से आती है। - प्रश्न – कहानी में बंगाली सज्जनों का वृद्धा के प्रति व्यवहार समाज के किन दोहरे मापदंडों को उजागर करता है?
उत्तर – बंगाली सज्जन वृद्धा को भिखारी समझकर अपमानित करते हैं और उसे पैसा फेंकते हैं, जबकि वे स्त्रियों के प्रति शिष्टाचार की बातें करते हैं। यह दोहरा मापदंड दर्शाता है कि समाज में शिष्टाचार केवल युवा और आकर्षक महिलाओं के लिए है, जबकि वृद्ध और असहाय महिलाओं की उपेक्षा की जाती है, जो सामाजिक असंवेदनशीलता को उजागर करता है। - प्रश्न – कहानी का शीर्षक ‘दूध का दाम’ किस प्रतीकात्मक अर्थ को व्यक्त करता है, और यह कहानी के कथानक से कैसे संबंधित है?
उत्तर – ‘दूध का दाम’ ममता, मानवता और सहानुभूति का प्रतीक है। वृद्धा कुली की मदद को ‘दूध का दाम’ कहती है, क्योंकि उसने बेटे जैसी सेवा की। यह कहानी के कथानक से संबंधित है, जहाँ कुली की निस्वार्थ मदद वृद्धा के प्रति समाज की उदासीनता के विपरीत सच्ची मानवता को दर्शाती है। - प्रश्न – कहानी में वृद्धा की शिक्षा और भाषा ज्ञान का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है, और यह उसके चरित्र को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर – वृद्धा को बंगला, संस्कृत और अंग्रेजी का सामान्य ज्ञान है, क्योंकि उसकी शिक्षा बेथुन स्कूल में हुई थी। यह उसे आत्मसम्मान और बुद्धिमत्ता प्रदान करता है, जिससे वह बंगाली सज्जनों के अपमान का जवाब परिष्कृत बंगला में देती है। यह उसके चरित्र को मजबूत और स्वाभिमानी बनाता है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी उसकी गरिमा को दर्शाता है। - प्रश्न – कहानी में प्रतीक्षालय में बंगाली सज्जनों की बातचीत समाज की किस विडंबना को दर्शाती है?
उत्तर – प्रतीक्षालय में बंगाली सज्जन स्त्रियों के प्रति प्राचीन भारतीय शिष्टाचार की बात करते हैं, लेकिन वृद्धा को भिखारी समझकर अपमानित करते हैं। यह विडंबना दर्शाती है कि समाज में शिष्टाचार की बातें तो होती हैं, लेकिन व्यवहार में यह केवल युवा और आकर्षक महिलाओं तक सीमित है, जबकि वृद्ध और असहाय लोगों के प्रति उदासीनता बरती जाती है। - प्रश्न – कुली और वृद्धा के बीच अंतिम संवाद कहानी के कथानक को कैसे समापन की ओर ले जाता है?
उत्तर – कुली दो रुपये लेने से मना करता है, कहता है कि वह केवल अपनी मजदूरी लेता है। वृद्धा उसे ‘दूध का दाम’ कहकर पैसे देती है, उसे बेटा मानकर आशीर्वाद देती है। यह संवाद निस्वार्थ सेवा और ममता के बंधन को दर्शाता है, जो कहानी को मानवता और आशा के सकारात्मक समापन की ओर ले जाता है। - प्रश्न – कहानी ‘दूध का दाम’ सामाजिक शिष्टाचार और मानवता के बारे में क्या संदेश देती है, और यह आधुनिक समाज से कैसे प्रासंगिक है?
उत्तर – कहानी दर्शाती है कि सच्चा शिष्टाचार और मानवता सामाजिक स्थिति या शिक्षा से नहीं, बल्कि हृदय की संवेदनशीलता से आती है। कुली की निस्वार्थ मदद समाज की उदासीनता के विपरीत मानवता का उदाहरण है। यह आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक है, जहाँ वृद्धजनों की उपेक्षा आम है, और हमें सभी के प्रति सहानुभूति अपनाने की प्रेरणा देती है।