Jhutputa, Nheeshm Sahani, West Bengal, Class XI, Hindi Course B, The Best Solution.

लेखक परिचय : भीष्म साहनी

आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 में रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘श्री हरवंशलाल साहनी’ व माता का नाम ‘श्रीमती लक्ष्मी देवी’ था। बता दें कि मशहूर अभिनेता रहे ‘बलराज साहनी’ उनके बड़े भाई थे। बड़े भाई के साथ अभिनेता और निर्देशक के रूप में उन्होंने काम किया। इनकी तमस रचना पर गोविन्द निहलानी ने टेलीफिल्म भी बनाई जो काफी चर्चित रही। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे भीष्म साहनी का आरंभिक बचपन रावलपिंडी में ही बीता। इसके पश्चात् सन् 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भीष्म साहनी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हिंदी व संस्कृत में हुई। उन्होंने स्कूल में उर्दू व अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1937 में ‘गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। भीष्म साहनी ने 1965 से 1967 तक ‘नई कहानियाँ’ का सम्पादन किया। साथ ही वे प्रगतिशील लेखक संघ तथा एफ्रो एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध रहे, उनकी पत्रिका लोटस से भी ये जुड़े रहे। ये ‘सहमत’ नामक नाट्यसंस्थापक और अध्यक्ष थे, जो अंतर सांस्कृतिक संगठन को बढ़ावा देने वाला संगठन है, जिसकी स्थापना थियेटर कलाकार सफदर हाशमी की याद में की गई। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं,

: झरोखे, तमस, बसन्ती, मायादास की माडी, कुन्तो, नीलू निलिमा निलोफर

: मेरी प्रिय कहानियां, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर,

: हनूश, माधवी, कबीरा खड़ा बजार में, मुआवज़े;

: बलराज माय ब्रदर;

: गुलेल का खेल।

भीष्म साहनी की मृत्यु 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुई थी।

झुटपुटा

दूध के बूथ के बाहर लोगों की लम्बी लाइन लगी थी। दो दिन बाद दूध मिलने की उम्मीद बँधी थी। लोग लपक-लपककर आने लगे थे, और लाइन लंबी खिंचती चली गई थी। देखते ही देखते उसका दूसरा सिरा पार्क तक जा पहुँचा। लोग चुप थे। लंबी लाइन के बावजूद माहौल में सन्नाटा था। कल दूध नहीं आया था। कल सब्जीवाले की दुकान के बाहर भी दिनभर टाट का परदा टँगा रहा था। मक्खन डबलरोटी की दुकानें भी कुछ देर के लिए खुली थी, फिर बंद हो गई थीं।

कल की तो बात ही दूसरी थी। कल तो लूट-पाट और आगजनी की घटनाएँ घटती रही थीं। इस समय प्रभात का झुटपुटा था, और काल की घटनाओं के अवशेष साफ-साफ दिखाई नहीं पड़ रहे थे। बूथ से थोड़ा हटकर ऐन चौराहे के बीचोबीच एक जली हुई मोटर का काला कंकाल-सा पड़ा था। जलानेवाले उसे आग लगाते समय, दाएँ बाजू उल्टा कर गए थे, जिससे वह और भी ज्यादा कुरुप और भयावह नजर आ रहा था। सड़क के पार दवाइयों की दुकान के भी अस्थि-पंथर नजर आ रहे थे। इस समय वह दुकान काली खोह जैसी नजर आ रही थी। साइनबोर्ड का एक सिरा टूटकर नीचे की ओर लटक रहा था, अंदर टूटी-फूटी अलमारियाँ मलबे के ढेर-जैसी लग रही थीं। बड़ा अटपटा लग रहा था। भला कोई दवाइयाँ भी लूटता है?

प्रोफेसर कन्हैयालाल भी लाइन में डोलची उठाए खड़ा था और सोच रहा था कि कैसे एक दिन में मुहल्ले का माहौल बदल गया है। यों, सन्नाटा तो सड़कों पर कल सुबह ही छा गया था, पर फिर भी, इक्का-दुक्का आदमी आ-जा रहे थे और कुछेक दुकानें भी खुली थीं। कन्हैयालाल स्वयं एक दुकान पर से सौदा-सूलफ लाया था। हवा में अनिश्चय डोल रहा था, और दुकान के कारिंदे ने भी कहा था- “और कुछ भी लेना हो तो अभी ले जाइए, क्या मालूम दुकानें फिर कब खुलें।”

“क्यों, क्या बात है? क्या किसी बात का अंदेशा है?”

क्या मालूम, कुछ भी हो सकता है।”

इसके कुछ ही देर बाद दुकानें बंद होने लगी थीं। लगभग दस बजे सुनने में आया था कि पिछली बस्ती में आग लगी है। शायद इसकी भनक दुकानदारों को पहले से लग गई थी। तभी बची-खुची दुकानें भी सहसा बंद हो गई थीं। प्रोफेसर कन्हैयालाल अपने घर की छत पर वह देखने के लिए चढ़ गया था कि आग सचमुच लगी है या झूठी अफवाह ही फैली है। पर उसने पाया कि आग एक जगह पर नहीं, अनेक स्थानों पर लगी थी। करोलबाग की ओर से तीन जगह से धुआँ उठ रहा था और भी बहुत-से लोग, अपनी-अपनी छतों पर, जगह-जगह से उठते धुएँ को देखते हुए कयास लगा रहे थे कि आग कहाँ लगी होगी। इधर पीछे मोतीनगर की ओर से भी, दो जगह से धुआँ उठ रहा था। एक जगह से तो बड़ा काले रंग का घुमड़ता-सा धुआँ था जो ऊपर उठ जाने पर भी छितर नहीं पा रहा था।

जगह-जगह पर से उठते धुएँ को देखकर कन्हैयालाल के दिल में धक्-सा हुआ था और फिर जैसे उसके मस्तिष्क में जड़ता-सी आ गई थी। इससे अधिक उसकी प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसे भी लगा जैसे वह यंत्रवत – सा उस दृश्य को देखे जा रहा है। प्रोफेसर कन्हैयालाल ने पहले भी अनेक बार आग के उठते शोले देखे थे, ऐसे शोले, जिनसे आधा आसमान लाल हो उठे। बाद में उन्हें याद करके वह आतंकित भी महसूस किया करता था। पर इस वक्त तो उसके जड़ मस्तिष्क में एक ही बात बार-बार उठ रही थी दिन को लगाई गई आग और रात को लगाई गई आग में बड़ा अंतर होता है। दिन को लगाई गई आग में दहशत नहीं होती, जबकि रात के वक्त लगाई गई आग बड़ी भयानक नजर आती है। रात की आग में धुआँ नजर नहीं आता, केवल धधकती आग की लौ नजर आती है। और साँपों की तरह ऊपर को उठते, आग के लपलपाते शोले नजर आते हैं, और आसमान लाल होने लगता है, जबकि दिन के वक्त धुआँ ज्यादा नजर आता है और आग के शोले धुएँ के बादलों में खोए-से रहते हैं। अनेक मकानों की छतों पर लोग खड़े थे, केवल सिख परिवारों के घरों की छतें खाली थी और छज्जे भी खाली थे। कन्हैयालाल की आँखों ने यह भी देखा। बात उसके मन में बैठ गई, पर उसकी कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई।

जब से यह घटनाचक्र शुरू हुआ था, लगभग तीन बरस पहले से, तभी से धीरे-धीरे उसके मस्तिष्क में जड़ता आने लगी थी। शुरू-शुरू में वह बड़ा उद्वेलित महसूस किया करता था। सही कौन है और गलत कौन, इसका अंदाज भी वह अपने बलबूते पर लगा लिया करता था। वह बहसें भी करता और उद्विग्न भी होता। पर धीरे-धीरे उसके मन में रिक्तता-सी आने लगी थी और उसे लगने लगा था जैसे कुछ है जो पकड़ में नहीं आ रहा है, जो हाथों में से छूटता-सा जा रहा है, कहीं कुछ फूट पड़ा है, जो काबू में नहीं आ रहा है। तभी वह चुपचाप और लोगों के तर्क सुनने लगा था, सभी पक्षों के, सभी मतों को सुनता रहता और केवल सिर हिलाता रहता। उसकी अवधारणा कहीं जमने भी लगती तो तर्क-कुतर्क के एक ही थपेड़े में वह बालू की भीत की तरह ढह जाती थी। बस, इतना ही रह गया था कि जब कोई रोमांचकारी घटना घटती तो वह सिर हिलाकर कहता- ‘बहुत बुरा हुआ है। च-च-च, बहुत बुरा ! ऐसा नहीं होना चाहिए था।’

इससे आगे उसका दिमाग काम नहीं कर पाता था। या फिर दिमागी उधेड़बुन शुरू हो जाती थी।

लगभग दो बजे लठैतों का एक गिरोह मुहल्ले में घुसा था। मोतीनगर की ओर से वे लोग आए थे। लाठियों और लोहे की लंबी-लंबी छड़े उठाए हुए। उस वक्त कन्हैयालाल मुहल्ले के कुछ लोगों के साथ बाहर चौक में खड़ा था। वे लोग चलते-चलते, सीधी सड़क छोड़कर बाएँ हाथ को घूम गए थे, और आँखों से ओझल हो गए थे। उनके ओझल हो जाने पर चौक में खड़े लोग कयास लगाने लगे थे कि वह किस दुकान पर वार करने गए होंगे।

वह हलवाई की दुकान थी। यही बहुत-से लोगों का कयास भी था। इसका पता धुएँ के उस बवंडर से लग गया था, जो उस ओर से शीघ्र ही उठने लगा था।

तरह-तरह की टिप्पणियाँ कन्हैयालाल के कानों में पड़ रही थीं – “मैंने कल रात ही कहा था कि गड़बड़ होगी, मुहल्ले की एक कमेटी बना लो। जब कोई गुंडे आएँ तो उन्हें मुहल्ले के अंदर ही नहीं घुसने दो।”

यह मल्होत्रा था, चौथे ब्लॉकवाला।

इस पर कोई नहीं बोला।

“इन सरदारों को एक चपत तो पड़नी ही चाहिए, “कोई दूसरा आदमी कह रहा था, “इन्होंने ‘अत्त’ उठा रखी थी।”

इस पर भी कोई नहीं बोला।

कृष्णलाल की बूढ़ी माँ कहीं से चली आ रही थी। चौक के पास खड़ी मंडली के पास से गुजरते हुए बोली, “वे जीणे जोगियो, इन्हाँ नूँ रोक देयो। इन्हाँ नूँ मना करा।”

पर किसी ने जवाब नहीं दिया। इस पर बुढ़िया खड़ी हो गई, “मेरा दिल थर-थर काँपता है। मेरे तीनों बेटे अमृतसर में है। यहाँ तुम सिखों को बचाओगे तो कोई माई का लाल वहाँ मेरे बच्चों को भी बचाएगा।”

फिर भी किसी ने उत्तर नहीं दिया।

जमाना था जब कहीं पर भी झगड़ा हो जाने पर कन्हैयालाल उसमें कूद पड़ता था और लड़नेवालों को छुड़ा देता था, कहीं पर शोर सुन लेता तो उस ओर भाग खड़ा होता था पर आज उसके पाँव उठ नहीं रहे थे। आँखें फाड़े केवल देखे जा रहा था। आगे बढ़ने के लिए टाँगे उठ ही नहीं रही थीं। केवल एक ही वाक्य मन में बार-बार उठ रहा था : ‘बहुत बुरा हो रहा है। बहुत बुरी बात है। बहुत बुरा…

तभी लठैतों का गिरोह फिर से सड़क पर आ गया था और मस्ती में झूमता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। दवाइयों की दुकान के सामने लोग रुक गए। साँवले रंग का एक लंबा-सा लड़का, जिसके हाथ में लंबी-सी लोहे की छड़ थी, सबसे पहले दुकान की ओर बढ़ा और उसने सीधे साइनबोर्ड पर वार किया। एक ही वार में साइनबोर्ड का सिरा टूट गया और वह नीचे की ओर लटक गया। फिर बाकी लोग सक्रिय हो गए। दरवाजा टूटा तो वे बड़े आराम से दुकान के अंदर जाने लगे और जो हाथ लगा, उठा-उठाकर हँसते- चहकते बाहर निकलने लगे। कोई हड़बड़ी नहीं थी, कोई हुल्लड़ नहीं था, न दुकान तोड़ने में, न उसे लूटने में। दूर खड़े लोग इस तरह उसकी तमाशबीनी कर रहे थे, मानो मेला देखने आए हों। लूटनेवाले बड़े आराम से, एक-एक करके, मानो लाइन बनाकर लूट रहे थे। कन्हैयालाल की पड़ोसिन, भारी-भरकम श्यामा कहीं से टहलती हुई वहाँ जा पहुँची थी और पाउडर का एक बड़ा-सा डिब्बा उठाए, हँसती-मुस्कराती हुई बाहर निकल आई थी। रास्ते में उसे अपनी बेटी मिल गई, तो उसे डाँटते हुए बोली, “मर जाणिए, जा भागकर जा, देर करेगी तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।?” और बेटी भागती हुई गई थी और दुकान के अन्दर में किन्हीं गोलियों की बोतल उठा लाई थी। सड़क पर कोई तनाव नहीं था। केवल सरदार लोग घरों के बाहर नहीं निकले थे, सभी घरों के अंदर चले गए थे।

“चिन्ता की कोई बात नहीं। दुकान वाले को बीमा कंपनी मुआवजा दे देगी।”

चौराहे पर खड़ी दर्शक – मण्डली में से एक बोला था। इस पर दूसरे ने इसका खंडन करते हुए कहा था-

“नहीं, फिसाद में अगर लूट-पाट हो तो उसका मुआवजा कंपनी नहीं देती।”

क्या मालूम उसने फिसाद का भी बीमा करा रखा हो !”

इस पर कुछ लोग हँस दिए।

तभी कुछ लोग दुकान के अंदर से एक अलमारी को घसीटकर सड़क के बीचोबीच ले आए और देखते-ही-देखते धू-धू करती आग के शोले उसमें में निकलने लगे। कुछ लोग घेरा बाँधे उसके इर्द-गिर्द खड़े हो गए थे, मानों लोहड़ी जलाई गई हो। साइनबोर्ड तोड़नेवाला अभी भी छड़ से अलमारी को पीट रहा था।

“दुकान सरदार की है मगर घर तो हिंदू का है, “तमाशबीनों में से एक आदमी बोला, “इसलिए अलमारी बाहर खींच लाए हैं।”

इस पर एक और आदमी ने टिप्पणी की; “इधर पीछे ड्राइक्लीनर की दुकान को आग नही लगाई।”

“क्यों?”

“क्योंकि उसमें एक हिंदू और एक सिख दोनों भाई वाले हैं?”

“यह भी अच्छी रही !” इस पर कुछ लोग हँस दिए।

“पीछे, मोतीनगर में ड्राईक्लीनर की एक दुकान किसी सिख सरदार की है। उसे जलाने गए तो किसी ने पुकारकर कहा, ‘ओ कमबख्तों, दुकान सिख की है, पर उसमें कपड़े तो ज्यादा हिन्दुओं के ही हैं ! “इस पर उसे भी छोड़ दिया।”

अब बगलवाली सड़क से कुछ मनचले एक कार धकेलकर ला रहे थे। दो लड़के उसकी छत पर बैठे सवारी कर रहे थे। साँवले रंग का लकड़ा यहाँ भी अपनी छड़ बराबर चला रहा था, जिसमें कभी मोटरकार का एक शीशा टूटता, तो कभी दूसरा, कभी उसकी छत पर गहरा गड्ढा पड़ जाता, कभी पुश्त पर। दूध के डिपो के निकट, चौराहे पर पहुँचकर, छत पर बैठे लड़कों को नीचे उतारने के लिए उन्होंने कार को एक बाजू उलट दिया। दोनों लड़के छलाँग लगाकर, हँसते हुए नीचे उतर आए। फिर छड़ का एक वार मोटर की टंकी पर हुआ, जिससे फौव्वारे की तरह पेट्रोल उसमें से फूट पड़ा। किसी ने माचिस से एक थिगली जलाई और उस पर फेंक दी। फिर लड़के कार के निकट से यों भागे जैसे दीवाली के समय, पटाखों की लड़ी को दियासलाई छूवाकर भागते हैं। धू-धू करके मोटरकार जलने लगी।

“लो, सेठी की कार तो गई!” एक आदमी बोला।

इस पर एक आदमी ठहाका मारकर हँस दिया।

“क्यों, इसमें हँसने की क्या बात है?”

यह कार सेठी की नहीं थी। ये लोग सेठी के घर के सामने से धकेल लाए है। यह कार सेठी के दामाद की है जो हिंदू है। वह गाजियाबाद में रहता है। हा, हा

जलती कार में से गहरे काले रंग का धुआँ निकल रहा था। शीघ्र ही कार का रंग काला पड़ गया। अभी भी लगता नहीं था कि कोई कार जल रही है। धुआँ कम होने पर लौंडे लपाड़े जलती मोटर पर एक और छड़ जमाते, हँसते- बतियाते आगे बढ़ गए। चौराहे के निकट खड़े लोग भी चुपचाप वहाँ से निकलने लगे। भीड़ तितर-बितर होने लगी। कन्हैयालाल भी ‘च-च-च, बहुत बुरा हुआ है, बहुत बुरा’, बुदबुदाता, अपने घर की ओर जाने लगा। हल्की-सी आत्म-प्रताड़ना की भावना उनके दिल को कचोटने लगी। पर उसने अपने को ढाढस बँधाते हुए मन ही मन कहा- “इन बातों को देखकर कम से कम मेरी आँखों में पानी तो भर आया था ! मेरी हिस तो नहीं मर गई है। और लोग तो मुँह बाए देखते रह गए थे, हँसी-ठट्ठा कर रहे थे।”

रास्ते में वही बुढ़िया, जो सड़क पर मिली थी, श्यामा को फटकार रही थी- “किस बदनसीब का सामान उठा लाई है। बेटी को भी ऐसे पाप करना सिखा रही है। लाख लानत है तुम पर! अभी जाओ, और जहाँ से यह सामान उठाया है, वहीं पर फेंककर आओ”।

और श्यामा, बुढ़िया की सीख को अनर्गल प्रलाप मानकर सुने जा रही थी और धीरे-धीरे मुस्कुराए जा रही थी।

घर पहुँचकर कन्हैयालाल को सभी घटनाएँ बड़ी बीहड़ और अटपटी लगी। यह कोई दंगा तो न हुआ। दंगे में तो लोग दुश्मन को पहचानते हैं, एक-दूसरे को ललकारते हैं, एक-दूसरे का पीछा करते हैं। पर यहाँ तो सड़क खाली थी और दुकान को जो चाहे तोड़ जाए, जो चाहे जला जाए। दंगे ऐसे तो नहीं होते। लुटेरों में एक भी चेहरा पहचाना नहीं था, एक भी आदमी अपने मुहल्ले का नहीं था। क्या हम इसे दंगा कह सकते हैं या नहीं?

और अब दूध की लम्बी लाइन में खड़ा वह तरह-तरह की चहम गोइयाँ, तरह-तरह के फिकरे, टिप्पणियाँ सुन रहा था। झुटपुटा पहले से कुछ साफ हुआ था। कैसी विडम्बना है, इन घटनाओं के बावजूद, एक उजला – सा दिन, आने से पहले वातावरण में अपनी चाँदी घोल रहा है। यहाँ भी बहुत भी अटपटी बातें नजर आने लगी थी। सड़क खाली थी, दुकानें बंद थीं, कोई आ-जा नहीं रहा था, फिर भी दूध लेनेवालों की लंबी लाइन लग गई थी। डोलची हाथ में पकड़े कन्हैयालाल, लाइन में खड़े और लोगों के चेहरे पहचानने की कोशिश कर रहा था।

उनके पीछे खड़े दो लड़के जो शक्ल-सूरत से घरों के नौकर जान पड़ते थे-आपस में बतिया रहे थे। एक कह रहा था – “मुँह पर लगानेवाली क्रीम होती है या नहीं? उसी की शीशियाँ मिली हैं। और तू? तू क्या लाया?”

वह ड्राइक्लीनर की दुकान थी यार, लोगों ने कुछ उठाने ही नहीं दिया। हम तो अंदर घुस गए थे, पर अंदर किसी आदमी ने हमें रोक दिया: ‘दुकान तो सरदार की है पर कपड़े तो सभी लोगों के हैं। अपने ही कपड़े लूटोगे? चलो, यहाँ से।’ हमारे हाथ तो कुछ नहीं लगा। “

तभी चौधरी वहाँ से गुजरा। चौधरी अपने को ‘सेवादार’ कहता है, ‘पब्लिक का सेवादार’। वक्त- बेवक्त, जब भी कोई काम हो, उसके पास जाओ तो उसी वक्त हाथ जोड़कर उठ खड़ा होता है, और बात को ठीक तरह से सुने-समझे बिना साथ हो लेता है।” हम तो पब्लिक के सेवादार है, “वह कहता है, “हमारा तो जिदंगी में कुछ बना-बनाया नहीं है। हमारा बाप, यह मकान हमारे नाम लिख गया है, इसी का किराया खाते है और पब्लिक की सेवा करते हैं।”

आज चौधरी बड़ी भौड़ी-सी टोपी पहनकर आया है। लगता है उसकी पत्नी ने, पुराने मोजों के धागे उधेड़कर बुन दी है, क्योंकि उसमें तीन-तीन रंगों की पट्टियाँ लगी हैं, और ऊपर फुदना लटक रहा है। चौधरी बिल्कुल जोकर लगता है।

“चौधरी, दूध की क्या पोजीशन है, आएगा या नही?” ऊँचे कद का एक मद्रासी लाइन में खड़े-खड़े पूछता है।

चौधरी खड़ा हो गया और हाथ जोड़ दिए – “अभी-अभी सेंटर में टेलीफोन किया है। बाबू बोलता है, दूध तो बहुत है, आओ और आकर ले जाओ।”

क्या मतलब! क्या हम दूध लेने जाएँगे? ऐसे भी कभी हुआ है। दूध है तो भेजता क्यों नहीं?”

“बोलता है, दूध के तो ड्रम के ड्रम भरे है, पर भेंजे कैसे?”

“क्यों?”

“सभी ड्राइवर सरदार हैं। उन्हें नहीं भेजा जा सकता। खतरा है ना।”

कहता हुआ चौधरी निकट आ गया, और मद्रासी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर बोला, “कोई हिन्दू यहाँ ट्रक चलाना जानता हो तो जाकर ले आए।”

“यहाँ से कौन जाएगा? चलाना जानता भी होगा, तो भी नहीं जाएगा। रास्ते में कुछ भी हो सकता है।”

इस पर चौधरी, वहीं खड़े-खड़े ऊँची आवाज में बोला, “इधर, दूध लेने के लिए सभी दौड़े आएँगे, पर वहाँ से लेने कोई नहीं जाएगा। पब्लिक की सेवा करने में हिदू की माँ मरती है।”

चौधरी फिर से अपना मुँह लंबे मद्रासी के कान के पास ले जाकर बोला, “कल रात वकील का बेटा बहुत बोलता था – हम यह कर देंगे, हम वह कर देंगे। हमने कहा – भाई, तू क्या कर देगा? यह मुहल्ला तो पहले ही शरणार्थियों का मुहल्ला है। यहाँ पर तो लुटे-पिटे लोग आकर सिर छिपाने के लिए बैठ गए थे, जब पाकिस्तान बना था। अब उन्ही में से सिखों को चुन-चुनकर मारेगा!”

लम्बा मद्रासी उनकी बात सुन रहा था और आँखें बंद किए सिर हिलाए जा रहा था। मुहल्ले भर में चौधरी की यह सिफ्त मशहूर थी कि जो बात कहने लायक नहीं होती थी उसे तो वह चिल्लाकर कहता था, पर जो बात बेमानी-सी होती थी, उसे पास आकर, कान में फुसफुसाकर कहता था।

कल तू कहाँ था, चौधरी? जब लूट-पाट मची थी? लोग दुकानें जला रहे थे। तू कहीं नजर नहीं आया?”

क्या मुझे मरना था। वे गुंडे, जाने कहाँ से आ गए थे। उनके मुँह लगने के लिए क्या चौधरी ही बैठा है?”

फिर आदत के मुताबिक, मद्रासी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर बोला, “मेरे घर में दरबार साहिब रखा है ना! एक कमरे में हमने छोटा-सा गुरुद्वारा बनाया हुआ है ना, साईं ! अब किसी बदमाश को पता चल जाता तो मेरे घर को ही आग लगा देता। अब अपना ही कोई आदमी उन गुंडों को बता देता कि इधर दरबार साहिब रखा है, तो वे मेरे घर को ही आग लगा देते। हम हिंदू तो एक-दूसरे को ही काटते हैं ना !”

मद्रासी फिर आँखें बंद किए चौधरी का रहस्य सुनता और सिर हिलाता रहा। फिर आँखें खोलकर बोला, “शहर की क्या पोजीशन है?”

“इधर पीछे, संतनगर के पास सात ट्रकों को जला दिया है। इधर भी तीन मोटरें जलाईं हैं।”

वह मोटर किसकी है? कहते हैं सेठी की है?”

“अरे सेठी की कहाँ है! मुझसे पूछो। वह तो सेठी के दामाद की है। गाजियाबाद में रहता है। वह हिंदू है। उसे पता चला कि शहर में खतरा है तो बेचारा गाड़ी लेकर मिलने आ गया। तो उसी की गाड़ी जला दी। सेठी की गाड़ी समझकर हिंदू की गाड़ी जला दी।”

मद्रासी की समझ में नहीं आ रहा था कि इस घटना पर हँस दे या अफसोस जाहिर करे।

“वेस्ट पटेलनगर के पीछे एक सरदार को भून डाला है।”

मद्रासी चौधरी के चेहरे की ओर देखने लगा। उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।

“कौन था वह?”

“कोई बढ़ई था। अपनी बेटी से मिलने आया था। उसे कुछ मालूम तो था नहीं, बलवाई आए तो बीच में कूद पड़ा। उन्हें रोकने लगा… अब वहाँ कौन सुननेवाला था? उसे वहीं…”

मद्रासी की आँखें खुली थीं और चेहरा पीला पड़ गया था, और वह चौधरी के चेहरे की ओर एकटक देखे जा रहा था।

चौधरी फिर अपने ढर्रे पर आ गया था।

कल रात, वकील का बेटा कहने लगा, ‘सभी सिख गुरुद्वारे में इकट्ठा हो रहे है। असला जमा कर रहे हैं। रात को दो बजे नंगी तलवारें लेकर बाहर निकल आएँगे।’ मैंने कहा, ‘अरे साईं, मेरे सामने तो एक भी सिख घर में से नहीं निकला। वे सब गुरुद्वारे में कैसे पहुँच गए? और इस वक्त असला कहाँ से लाएँगे? सभी सिख घरों के अंदर बैठे हैं।”

और चौधरी ने गर्दन पर हाथ फेरते हुए, अपनी रंग-बिरंगी टोपी को माथे पर धकेलते हुए कहा, “अरे साईं, इधर किसी को पता नहीं चल रहा कि क्या करे।” फिर मद्रासी के कान के पास मुँह ले जाकर बोला, “अभी नासमझ हैं ना, यही बात है। हिंदू-सिख में पहले कभी झगड़ा तो नहीं हुआ ना, यही बात है। अभी दोनों कच्चे खिलाड़ी हैं।” फिर हँसकर कहने लगा, “धीरे-धीरे सीख जाएँगे। हिंदू-मुसलमान का दंगा होता है या नहीं? उसे तो हम खूब पहचानते हैं। उसे अच्छी तरह से सीख लिया है। पीछे से किसी के कदमों की आहट भी आ जाए तो पहचान लेते हैं कि हिंदू आ रहा है या मुसलमान क्यों साईं? पर ये तो अभी इस काम में नए है ना!”

फिर आवाज धीमी करके बोला, “मेरे पड़ोस में वह सरदार रहता है कि नहीं? वह लंबा- ऊँचा- आज सुबह मैंने दरवाजा खोला तो देखा, वह अपने घर के बाहर खड़ा था। मैने पूछा, ‘सरदार जी, सुबह – सबेरे कहाँ जा रहे हो?’ तो बोला, ‘थोड़ा घूमने जा रहा हूँ।’ लो सुनो, शहर में क्या हो रहा है, और यह घूमने जा रहा है। मैंने कहा, ‘सरदार जी, आज के दिन घूमने कौन जाता है?’ तो कहने लगा, ‘घुमने की मुझे आदत है। घर पर बैठ नहीं सकता।’ वह रोज सुबह पार्क में टहलने जाता है। बड़ी मुश्किल से उसे घर के अंदर भेजा।”

फिर चौधरी बड़े फलसफाना अंदाज में बोला-

“अभी शुरुआत है, साईं, अभी शुरुआत है। जब सीख जाएँगे तो ऐसी गलतियाँ नहीं करेंगे। हम लोग अभी नौसिखुआ है ना, इसलिए जब सीख जाएँगे तब तुम देखना दूर से ही एक-दूसरे को देखकर रोंगटे खड़े हो जाया करेंगे। अभी तो बच्चा पैरों के बल खड़ा होना सीख रहा है…।”

चौधरी फिर से गर्दन पर हाथ फेरते हुए कहने लगा, “कल साईं, जब दवाइयों वाले की दुकान जलाई गई, तो इसी सरदार के छोटे-छोटे बेटे, पीछे दरवाजे में से भागकर निकल गए, आग का तमाशा देखने। यह तो हाल है! पीछे-पीछे माँ भागती आई।” फिर सहसा घड़ी की ओर देखकर बोला, “अच्छा चलूँ, दूध का पता लगाऊँ।”

और यह मुड़कर, तोंद खुजलाता, वहाँ से चला गया।

लाइन में खड़े कन्हैयालाल को लगा, जैसे हम सब किसी कगार पर खड़े है और एक झीनी, काँच की दीवार हमें गिरने से बचाए हुए है। यह काँच की दीवार चटक गई तो बचाव का कोई भी साधन नहीं रहेगा और हम सीधे किसी अथाह गर्त में जा गिरेंगे। और उसने फिर बुदबुदाकर कहा-

“बहुत बुरा हो रहा है, बहुत बुरा, च-च-च!”

और उसे भास हुआ कि प्रत्येक संकटपूर्ण घटना की सूचना मिलने पर, वह पिछले तीन साल से एक ही वाक्य दोहराता चला आ रहा है। जब आतंकवादियों द्वारा हत्याएँ हो रही थीं, तब भी वह यही कहता था, जब स्वर्ण मंदिर में फौजी कार्रवाई हुई तो भी उसने यही कहा, जब इंदिरा जी की नृशंस हत्या हुई तो भी वह यही कहता रहा, और अब जब उसे राष्ट्र, कगार पर खड़ा लग रहा है, तो भी उसके मुँह से यही शब्द निकल रहे हैं।

बढ़ई सिख के जिंदा जला दिए जाने की बात सुनकर उसकी टाँगे काँपने लगी थी। यों भी वह बड़ा खिन्न और उदास महसूस करने लगा था। खड़े-खड़े वह थक भी गया था, न जाने दूध आता भी है या नहीं। उसका मन हुआ कि वहाँ से निकल जाए। तभी उसकी नजर अपने निकट ही खड़ी, अपने मित्र सक्सेना की बेटी पर पड़ी जो हाथ में तीन डोलचियाँ उठाए खड़ी थी। कन्हैयालाल को बड़ा अजीब-सा लगा। यहाँ दूध का कोई ठिकाना नहीं, न मालूम आएगा भी या नहीं और इधर यह लड़की तीन डोलचियाँ उठाए खड़ी है।

“तुम तीन डोलचियाँ उठा लाई हो, बेटी! तुमने यह लाइन देखी है? अगर सभी लोग तीन-तीन डोलचियाँ दूध लेना चाहेंगे तो कितने लोगों को दूध मिलेगा?”

लड़की झेंप गई। फिर धीरे से बोली, “एक डोलची साथवालों की है, सरदार अंकल की, दूसरी ऊपरवालों की, एक हमारी।” साथवाले? तभी कन्हैयालाल के मन में कौंध गया कि वहाँ दोनों घरों में सिख परिवार रहते हैं। लड़की उनके लिए भी दूध लेने आई है।

अब कन्हैयालाल की नजर लाइन में खड़े अनेक अन्य लोगों पर भी पड़ी, जो अपने हाथ में दो-दो या तीन-तीन डोलचियाँ भी उठाए खड़े थे।

देखकर उसका मन जाने कैसा हो आया। वह उद्वेलित-सा महसूस करने लगा।

थोड़ी दूरी पर गंजे सिर का एक आदमी, लाइन में खड़े किसी व्यक्ति से, किसी घर का अता-पता पूछ रहा था। कन्हैयालाल ने उसे पहचान लिया। बलराम था, उसकी जान-पहचान का था, राजेंद्रनगर में रहता है। पर यहाँ क्या करने आया है?

बलराम !” कन्हैयालाल ने आवाज लगाकर उसे बुलाया।

बलराम ने सिर ऊँचा किया, और लाइन में कुछ देर तक देखते रहने के बाद कन्हैया को पहचान लिया और आगे बढ़ गया।

“इधर सुबह-सुबह क्या करने आए हो? कहीं आग लगाने आए हो क्या !”

बलराम मुस्कराया, “अब यही काम करना बाकी रह गया है, यही करने आया हूँ।” फिर धीरे से बोला, “इधर किसी से मिलने आया हूँ।’

“कौन है वह?”

“एक बुजुर्ग सरदार जी है। पीछे पाकिस्तान से हैं, हमारे ही कस्बे के है। हमारे पिता जी के बड़े दोस्त थे। मैंने सोचा, उनकी खैर-खबर ले आऊँ। कल बड़ी गड़बड़ रही है ना!”

फिर आसपास के मकानों को नीचे-ऊपर देखकर बोला, “यहीं कहीं रहते हैं। अब मैं मकान भूल गया हूँ। बहुत दिनों से मेल-मुलाकात नहीं हुई थी।” फिर कन्हैयालाल की तरफ देखकर मुस्कराता हुआ घूम गया, “शायद पिछली सड़क पर रहते हैं। सरदार केसर सिंह उनका नाम है, मोटर पार्ट्स की दुकान करते हैं। और वह पिछली सड़क की ओर घूम गया।

उसे जाते देखकर कन्हैयालाल को लगा, जैसे हम लोग इतिहास के झुटपुटे में जी रहे हैं। आपसी रिश्तों के इतिहास का पन्ना पलटा जा रहा है, दूसरा खुल रहा है। इस अगले पन्ने पर जाने हमारे लिए क्या लिखा होगा।

तभी कहीं दूर से घरघराने की-सी आवाज सुनाई दी। लाइन में खड़े सभी लोगों के कान खड़े हो गए। किसी प्रकार की भी ऊँची आवाज से लोग चौंक चौंक जा रहे थे। फिर एक आदमी, जो किसी घर का नौकर जान पड़ता था, मोड़ काटकर भागता हुआ सामने आया : “दूध आ गया ! दूध की लारी आ गई !”

और लाइन में अपनी जगह पर आकर खड़ा हो गया। दूध कैसे पहुँच गया? सभी की आँखें सड़क के मोड़ की ओर लग गईं।

लारी ने मोड़ काटा और इठलाती हुई-सी डिपो की ओर आने लगी। हिचकोले खाती, जगह-जगह से घिसी-पिटी पर लाइन में खड़े लोगों की नजर में सर्वांग सुंदरी लग रही थी। लाइन में हरकत आ गई। वह टूटने टूटने को हुई, पर शीघ्र ही सँभल गई। लंबी लाइन एक बार टूट गई तो बावेला मच जाएगा।

ऐन डिपो के सामने बस आकर रुकी। ड्राइवर ने खिड़की में से सिर बाहर निकाला और पीछे खड़े क्लीनर को आवाज लगाई। फिर दरवाजा खोलकर पायदान पर खड़ा हो गया।

अरे, ड्राइवर तो सरदार है! यह यहाँ कैसे पहुँच गया! लंबी लाइन में खड़े सभी लोग सिख ड्राइवर की ओर अचंभे से देखे जा रहे थे।

कन्हैयालाल से नहीं रहा गया। वह लाइन में से निकलकर लारी के पास जा पहुँचा।

“सरदार जी, आप कैसे…?”

इस पर सिख ड्राइवर मुस्कराया और बोला : “बीबी, बच्चों ने दूध तो पीना है ना! मैंने कहा, चल मना, देखा जाएगा जो होगा। दूध तो पहुँचा आएँ।”

और फिर क्लीनर को दूध का पाइप लगाने की हिदायत करने लगा।

शब्दार्थ

शब्द (Word)

हिंदी अर्थ (Hindi Meaning)

बांग्ला अर्थ (Bangla Meaning)

अंग्रेजी अर्थ (English Meaning)

झुटपुटा

साँझ का समय, गोधूलि वेला, सुबह की हल्की रोशनी

সন্ধ্যাবেলা, গোধূলি, ভোরের হালকা আলো

Dusk, twilight, dim light of dawn

उम्मीद बँधना

आशा जगना, भरोसा होना

আশা জাগা, ভরসা হওয়া

To have hope, to feel optimistic

लपक-लपककर

तेज़ी से आते हुए, झपटते हुए

দ্রুত গতিতে আসা, ঝাঁপিয়ে পড়া

Rushing, hurrying

माहौल

वातावरण, परिवेश

পরিবেশ, আবহ

Atmosphere, environment

सन्नाटा

चुप्पी, शांति

নীরবতা, নিস্তব্ধতা

Silence, stillness

टाट का परदा

बोरे का पर्दा, मोटे कपड़े का पर्दा

চটের পর্দা, মোটা কাপড়ের পর্দা

Jute curtain, coarse cloth curtain

आगजनी

आग लगाना, आगजनी की घटनाएँ

অগ্নিসংযোগ, আগুন লাগানো

Arson, incidents of setting fire

अवशेष

बचा हुआ भाग, निशान

অবশেষ, চিহ্ন

Remains, traces

ऐन

ठीक, बिल्कुल

ঠিক, একেবারে

Exactly, precisely

कंकाल

अस्थिपंजर, ढाँचा

কঙ্কাল, কাঠামো

Skeleton, framework

कुरुप

बदसूरत, भद्दा

কুৎসিত, বিশ্রী

Ugly, hideous

भयावह

डरावना, भयानक

ভয়ঙ্কর, ভীতিজনক

Terrifying, dreadful

अस्थि-पंजर

ढाँचा, कंकाल

কঙ্কাল, কাঠামো

Skeleton, framework

खोह

गुफा, गहरा गड्ढा

গুহা, গভীর গর্ত

Cave, deep hole

अटपटा

अजीब, बेतुका

অদ্ভুত, বেখাপ্পা

Odd, awkward

डोलची

दूध या पानी रखने का पात्र

দুধ বা জল রাখার পাত্র

Small pot/container (for milk/water)

मुहल्ले

मोहल्ले, पड़ोस

মহল্লা, পাড়া

Neighborhood

इक्का-दुक्का

यदा-कदा, कुछेक

এক-আধটা, দু-একটা

Few, scattered

सौदा-सूलफ

सामान, घरेलू ज़रूरत का सामान

জিনিসপত্র, গৃহস্থালীর প্রয়োজনীয় জিনিস

Groceries, household items

कारिंदे

कर्मचारी, नौकर

কর্মচারী, চাকর

Employee, worker

अंदेशा

आशंका, डर

আশঙ্কা, ভয়

Apprehension, fear

भनक लगना

संकेत मिलना, खबर मिलना

আভাস পাওয়া, খবর পাওয়া

To get a hint, to get news

सहसा

अचानक, यकायक

হঠাৎ, অকস্মাৎ

Suddenly, abruptly

अफवाह

झूठी खबर, जनश्रुति

গুজব, জনশ্রুতি

Rumor, hearsay

कयास लगाना

अनुमान लगाना, अटकल लगाना

অনুমান করা, ধারণা করা

To guess, to speculate

घुमड़ता-सा

घूमता हुआ, मंडराता हुआ

ঘূর্ণায়মান, ঘুরতে থাকা

Swirling, hovering

छितर नहीं पा रहा था

फैल नहीं पा रहा था

ছড়াতে পারছিল না

Was not dispersing

धक्-सा होना

डर लगना, दिल धड़कना

বুক কেঁপে ওঠা, ভয় পাওয়া

To feel a pang (of fear), heart pound

जड़ता

निष्क्रियता, गतिहीनता

জড়তা, নিষ্ক্রিয়তা

Inertia, numbness

यंत्रवत

मशीन की तरह, बिना भावना के

যন্ত্রের মতো, আবেগহীন

Mechanically, automatically

आतंकित

भयभीत, डरा हुआ

আতঙ্কিত, ভীত

Terrified, frightened

दहशत

भय, आतंक

আতঙ্ক, ভয়

Terror, dread

धधकती

जलती हुई, प्रज्ज्वलित

দাউ দাউ করে জ্বলতে থাকা, প্রজ্জ্বলিত

Blazing, flaming

लौ

लपट, ज्वाला

শিখা, লেলিহান শিখা

Flame, blaze

लपलपाते

लहराते हुए, काँपते हुए

লকলকে, কাঁপতে থাকা

Flickering, quivering

खोए-से

छिपे हुए, ढँके हुए

লুকানো, ঢাকা

Hidden, obscured

छज्जे

बालकनी, बरामदा

বারান্দা, ছাদ সংলগ্ন অংশ

Balcony, overhang

घटनाचक्र

घटनाओं का क्रम, घटनाएँ

ঘটনাক্রম, ঘটনাপ্রবাহ

Chain of events, sequence of events

उद्वेलित

बेचैन, उत्तेजित

উত্তেজিত, উদ্বিগ্ন

Restless, agitated

बलबूते पर

अपने दम पर, अपनी शक्ति से

নিজের ক্ষমতায়, নিজের জোরে

On one’s own strength, by oneself

उद्विग्न

चिंतित, परेशान

উদ্বিগ্ন, চিন্তিত

Anxious, distressed

रिक्तता

खालीपन, शून्यपन

শূন্যতা, রিক্ততা

Emptiness, void

अवधारणा

विचार, समझ

ধারণা, ধারণা

Concept, understanding

तर्क-कुतर्क

वाद-विवाद, बहस

তর্ক-বিতর্ক, যুক্তি-পাল্টা যুক্তি

Arguments and counter-arguments

थपेड़े

वार, आघात

আঘাত, ধাক্কা

Blow, slap

बालू की भीत

रेत की दीवार

বালির দেয়াল

Sand wall

ढह जाना

गिर जाना, ध्वस्त हो जाना

ভেঙে পড়া, ধসে যাওয়া

To collapse, to fall down

रोमांचकारी

रोमांच पैदा करने वाला, उत्तेजित करने वाला

রোমাঞ্চকর, উত্তেজনাপূর্ণ

Thrilling, exciting

च-च-च

अफ़सोस या निराशा व्यक्त करने की आवाज़

ছি ছি, দুঃখ প্রকাশের শব্দ

Sound expressing regret or disappointment

उधेड़बुन

असमंजस, सोच-विचार

দ্বিধা, চিন্তা-ভাবনা

Dilemma, contemplation

लठैतों का गिरोह

लाठी चलाने वालों का समूह

লাঠিয়ালদের দল

Gang of lathi-wielders

ओझल

गायब, अदृश्य

অদৃশ্য, চোখের আড়াল

Vanished, out of sight

बवंडर

तूफान, धुएँ का बड़ा बादल

ঘূর্ণিঝড়, ধোঁয়ার বড় মেঘ

Whirlwind, large cloud of smoke

टिप्पणियाँ

टिप्पणियाँ, कमेंट्स

মন্তব্য, মতামত

Comments, remarks

चपत

मार, थप्पड़

চড়, আঘাত

Slap, blow

अत्त उठा रखी थी

बहुत अत्याचार किया था

অত্যাধিক বাড়াবাড়ি করেছিল

Had caused too much trouble/oppression

मंडली

समूह, टोली

দল, মণ্ডলী

Group, gathering

जीणे जोगियो

हे जीने के लायक (पंजाबी में उपहास)

পাঞ্জাবি গালি (ব্যঙ্গাত্মক)

Worthy of living (sarcastic in Punjabi)

इन्हाँ नूँ रोक देयो

इन्हें रोक दो (पंजाबी)

এদের থামিয়ে দাও (পাঞ্জাবি)

Stop them (Punjabi)

इन्हाँ नूँ मना करा

इन्हें मना करो (पंजाबी)

এদের বারণ করো (পাঞ্জাবি)

Forbid them (Punjabi)

माई का लाल

साहसी व्यक्ति, बहादुर

মায়ের সাহসী সন্তান, বীর

Brave person, courageous child

टाँगे उठ ही नहीं रही थीं

पैर नहीं चल पा रहे थे

পা উঠছিল না

Legs were not moving

झूमता हुआ

मस्ती में चलता हुआ, हिलता हुआ

আনন্দে দুলতে থাকা, হেলতে দুলতে

Swaying, swaggering

साँवले रंग का

गहरे रंग का, सांवला

শ্যামলা রঙের, কালো

Dark-complexioned, dusky

सक्रिय हो गए

सक्रिय हो गए, काम करने लगे

সক্রিয় হয়ে ওঠা, কাজ শুরু করা

Became active, started working

चहकते

प्रसन्नता से बोलते हुए

আনন্দে কথা বলতে বলতে

Chirping with joy, speaking cheerfully

हड़बड़ी

जल्दबाज़ी, घबराहट

তাড়াহুড়ো, আতঙ্ক

Hurry, panic

हुल्लड़

शोरगुल, हंगामा

হট্টগোল, বিশৃঙ্খলা

Uproar, commotion

तमाशबीनी

दर्शक बनना, मूक दर्शक बनना

দর্শক হওয়া, নীরব দর্শক হওয়া

Spectatorship, being a silent spectator

मुआवजा

क्षतिपूर्ति, हर्जाना

ক্ষতিপূরণ

Compensation, indemnity

खंडन

विरोध, इनकार

খণ্ডন, অস্বীকার

Refutation, denial

फिसाद

दंगा, फसाद

দাঙ্গা, গোলমাল

Riot, disturbance

धू-धू करती आग

तेज़ी से जलती आग

দাউ দাউ করে আগুন জ্বলছে

Blazing fire, fire burning rapidly

घेरा बाँधे

चारों ओर खड़े होकर

ঘিরে দাঁড়িয়ে

Standing around (forming a circle)

इर्द-गिर्द

आस-पास, चारों ओर

আশেপাশে, চারিদিকে

Around, surrounding

लोहड़ी

एक त्योहार (आग जलाने का)

লোহরি (একটি উৎসব)

Lohri (a festival involving bonfire)

ड्राइक्लीनर

कपड़े धोने और सुखाने वाला

ড্রাইক্লিনার

Dry cleaner

मनचले

शैतान, शरारती

দুষ্টু, চঞ্চল

Mischievous, reckless

धकेलकर

धकेलते हुए, धक्का देकर

ঠেলে, ধাক্কা দিয়ে

Pushing, shoving

पुश्त

पिछला हिस्सा, पीठ

পিছন দিক, পিঠ

Back, rear

फौव्वारे की तरह

झरने की तरह, फुहार की तरह

ফোয়ারার মতো, ঝর্ণার মতো

Like a fountain, like a spray

फूट पड़ा

निकल पड़ा, बाहर आ गया

ফেটে পড়া, বেরিয়ে আসা

Gushed out, burst forth

थिगली

छोटी चिंगारी, जलता हुआ टुकड़ा

ছোট স্ফুলিঙ্গ, জ্বলন্ত টুকরা

Small spark, burning piece

दियासलाई

माचिस की तीली

দিয়াশলাই, ম্যাচের কাঠি

Matchstick

लौंडे लपाड़े

आवारा लड़के, गुंडे

বখাটে ছেলে, গুন্ডা

Hooligans, ruffians

बतियाते

बातें करते हुए

কথা বলতে বলতে

Chatting, conversing

तितर-बितर होना

बिखर जाना, छितर जाना

ছত্রভঙ্গ হওয়া, ছড়িয়ে পড়া

To disperse, to scatter

बुदबुदाता

धीरे-धीरे बड़बड़ाना

বিড়বিড় করা, ফিসফিস করে বলা

Muttering, mumbling

आत्म-प्रताड़ना

स्वयं को दोषी ठहराना, खुद को कोसना

আত্ম-পীড়ন, নিজেকে দোষারোপ করা

Self-reproach, self-blame

कचोटने लगी

दुख देने लगी, पीड़ा देने लगी

কষ্ট দিতে লাগল, পীড়া দিতে লাগল

Started to pain, started to trouble

ढाढस बँधाते हुए

हिम्मत देते हुए, दिलासा देते हुए

সান্ত্বনা দিতে দিতে, সাহস যোগাতে যোগাতে

Consoling, encouraging

हिस मर जाना

संवेदना मर जाना, भावनाहीन हो जाना

সংবেদনশীলতা মরে যাওয়া, অনুভূতিহীন হয়ে যাওয়া

To lose one’s humanity/sensibility

मुँह बाए

आश्चर्य से मुँह खोले हुए

হাঁ করে তাকিয়ে থাকা, বিস্মিত হওয়া

Gaping, astonished

हँसी-ठट्ठा

मज़ाक, ठिठोली

হাসি-ঠাট্টা, মজা

Jest, banter

फटकार रही थी

डाँट रही थी, झिड़क रही थी

বকাঝকা করছিল, ধমকাচ্ছিল

Scolding, rebuking

बदनसीब

अभागा, दुर्भाग्यशाली

দুর্ভাগা, হতভাগ্য

Unfortunate, ill-fated

लाख लानत

बहुत धिक्कार, बहुत निंदा

হাজার ধিক্কার, অনেক নিন্দা

A thousand curses, much condemnation

अनर्गल प्रलाप

बेतुकी बकवास, व्यर्थ की बातें

অর্থহীন বকবক, বৃথা কথা

Nonsensical talk, idle chatter

बीहड़

अजीब, कठोर, मुश्किल

অদ্ভুত, কঠোর, কঠিন

Strange, rugged, difficult

दंगा

फसाद, उपद्रव

দাঙ্গা, উপদ্রব

Riot, disturbance

ललकारते हैं

चुनौती देते हैं

চ্যালেঞ্জ করে

Challenge

चहम गोइयाँ

कानाफूसी, फुसफुसाहट

ফিসফিসানি, কানাকানি

Whispers, murmurs

फिकरे

व्यंग्यात्मक बातें, चुटकुले

ব্যাঙ্গাত্মক কথা, রসিকতা

Taunts, sarcastic remarks

विडम्बना

विडंबना, उपहास

বিড়ম্বনা, উপহাস

Irony, paradox

चाँदी घोल रहा है

चमक बिखेर रहा है, सुंदर लग रहा है

রূপালি আভা ছড়াচ্ছে, সুন্দর দেখাচ্ছে

Spreading silver light, looking beautiful

अता-पता

ठिकाना, पता

ঠিকানা, পরিচয়

Address, whereabouts

कौंध गया

समझ में आ गया, अचानक याद आया

মনে পড়ে গেল, হঠাৎ মনে পড়ল

Flashed in mind, suddenly realized

उद्वेलित-सा महसूस करना

बेचैन महसूस करना, भावुक हो जाना

উত্তেজিত বোধ করা, আবেগপ্রবণ হয়ে ওঠা

To feel agitated, to feel emotional

बुजुर्ग

वृद्ध व्यक्ति, बूढ़ा

বয়স্ক ব্যক্তি, বৃদ্ধ

Elderly person, old man

खैर-खबर

हाल-चाल, समाचार

খোঁজখবর, সংবাদ

Well-being, news

कस्बे

छोटा शहर, नगर

ছোট শহর, নগর

Town, small city

मेल-मुलाकात

मिलना-जुलना, भेंट

দেখা-সাক্ষাৎ, সাক্ষাৎ

Meeting, visit

फलसफाना अंदाज में

दार्शनिक अंदाज़ में

দার্শনিক ভঙ্গিতে

In a philosophical manner

नौसिखुआ

नया सीखने वाला, अनाड़ी

শিক্ষানবিশ, অনভিজ্ঞ

Novice, beginner

रोंगटे खड़े हो जाना

भय या रोमांच से बाल खड़े होना

লোম খাড়া হয়ে যাওয়া, ভয় বা রোমাঞ্চে লোম খাড়া হওয়া

To get goosebumps (from fear or excitement)

कगार

किनारा, ढलान

কিনারা, ঢাল

Edge, brink

झीनी

पतली, महीन

পাতলা, সূক্ষ্ম

Thin, delicate

चटक गई

टूट गई, दरार आ गई

ফেটে গেল, ফাটল ধরল

Cracked, broke

अथाह गर्त

गहरा गड्ढा, असीमित खाई

অতল গর্ত, অসীম খাদ

Bottomless pit, abyss

भास हुआ

महसूस हुआ, आभास हुआ

মনে হল, আভাস পাওয়া গেল

Felt, perceived

हत्याएँ

हत्याएँ, कत्ल

হত্যা, খুন

Murders

फौजी कार्रवाई

सैन्य कार्रवाई, सेना का हमला

সামরিক অভিযান, সেনাবাহিনীর হামলা

Military operation, army action

नृशंस हत्या

क्रूर हत्या, बर्बर हत्या

নৃশংস হত্যা, বর্বর হত্যা

Brutal murder, cruel killing

खिन्न

दुखी, उदास

দুঃখিত, বিষণ্ণ

Sad, dejected

ठिकाना नहीं

निश्चित नहीं, पता नहीं

ঠিক নেই, নিশ্চিত নয়

Uncertain, unknown

झेंप गई

शर्मिंदा हो गई, लज्जित हो गई

লজ্জিত হয়ে গেল, শরম পেল

Felt embarrassed, blushed

कौंध गया

समझ में आ गया, अचानक याद आया

মনে পড়ে গেল, হঠাৎ মনে পড়ল

Flashed in mind, suddenly realized

अचरज

आश्चर्य, हैरानी

আশ্চর্য, অবাক

Surprise, astonishment

घरघराने की-सी

खरखराने जैसी आवाज़

ঘড়ঘড় শব্দের মতো

Rattling sound, grinding sound

लारी

ट्रक, गाड़ी

লরি, গাড়ি

Lorry, truck

इठलाती हुई-सी

इतराती हुई, शान से चलती हुई

গর্বিতভাবে, শানদারভাবে

Swaggering, gracefully

हिचकोले खाती

झटके खाती हुई, डोलती हुई

ঝাঁকুনি খেতে খেতে, দুলতে দুলতে

Jerking, swaying

घिसी-पिटी

पुरानी, घिसी हुई

পুরনো, জীর্ণ

Worn out, battered

सर्वांग सुंदरी

हर अंग से सुंदर, अत्यंत सुंदर

সর্বাঙ্গসুন্দরী, অত্যন্ত সুন্দরী

Beautiful in every aspect, extremely beautiful

बावेला

हंगामा, शोरगुल

হট্টগোল, কোলাহল

Commotion, uproar

क्लीनर

सहायक, हेल्पर

ক্লিনার, সহকারী

Cleaner, helper

हिदायत

निर्देश, सलाह

নির্দেশ, উপদেশ

Instruction, advice

देखा जाएगा जो होगा

जो होगा देखा जाएगा, परिणाम की चिंता नहीं

যা হবে দেখা যাবে, পরিণতির চিন্তা নেই

We’ll see what happens, no worry about consequences

 



प्रसंग और पृष्ठभूमि
यह कहानी 1984 के सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में लिखी गई है। इसमें तत्कालीन सामाजिक, मानसिक और मानवीय स्थितियों को गहराई से उकेरा गया है। लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि जब समाज में हिंसा, नफरत और असहिष्णुता फैलती है, तब एक संवेदनशील नागरिक की मानसिक स्थिति कैसी हो जाती है।

मुख्य पात्र और उनके चरित्र –

  1. प्रोफेसर कन्हैयालाल – कहानी के केंद्रीय पात्र, जो शिक्षित और संवेदनशील हैं, लेकिन तीन साल से चली आ रही हिंसा ने उनके मन में जड़ता पैदा कर दी है। वे घटनाओं को देखकर केवल “बहुत बुरा हुआ” कहते हैं, पर सक्रिय प्रतिक्रिया नहीं देते। उनकी आंतरिक उधेड़बुन और आत्म-प्रताड़ना उनकी मानवीयता को दर्शाती है।
  2. चौधरी – स्वयं को “पब्लिक का सेवादार” कहने वाला व्यक्ति, जो दोहरे चरित्र का है। वह ऊँची आवाज में बेमानी बातें कहता है और गोपनीय बातें कान में फुसफुसाकर बताता है। उसकी टिप्पणियाँ साम्प्रदायिक तनाव और नौसिखुआपन को उजागर करती हैं।
  3. श्यामा और उसकी बेटी – पड़ोसिन श्यामा और उसकी बेटी लूटे गए सामान (पाउडर और गोलियाँ) को हँसी-मजाक में लेती हैं, जो सामान्य जनता की असंवेदनशीलता को दिखाता है।
  4. बलराम – कन्हैयालाल का मित्र, जो एक सिख बुजुर्ग की खैरियत जानने आता है, जो पुराने रिश्तों की मधुरता को दर्शाता है।
  5. सिख ड्राइवर – जो जोखिम उठाकर दूध की लारी लेकर आता है, यह दिखाता है कि मानवीयता अभी भी जीवित है।

प्रतीक –

  1. झुटपुटा – सुबह का अँधेरा अनिश्चितता और संक्रमण काल को प्रतीकित करता है, जहाँ पुराना खत्म हो रहा है और नया स्पष्ट नहीं है।
  2. जली मोटर और दुकानें – हिंसा और विनाश का चिह्न, जो समाज की बर्बादी को दर्शाता है।
  3. दूध की लाइन – जीवन की निरंतरता और बुनियादी जरूरतों की खोज का प्रतीक, जो संकट में भी एकता दिखाता है।
  4. सिख ड्राइवर – मानवीयता और साहस का प्रतीक, जो धार्मिक सीमाओं को तोड़ता है।
  5. काँच की दीवार – समाज को संकट से बचाने वाली नाजुक व्यवस्था, जो चटकने पर विनाश को निमंत्रण देती है।

भावनात्मक और सामाजिक संदेश:

कहानी साम्प्रदायिक हिंसा की भयावहता को उजागर करती है, जहाँ लोग एक-दूसरे को पहचान नहीं पाते और लूट-पाट को तमाशा बनाते हैं। कन्हैयालाल की जड़ता और चौधरी की दोमुही बातें समाज की असहायता और भ्रम को दर्शाती हैं। हालाँकि, बलराम और सिख ड्राइवर जैसे पात्र पुराने रिश्तों और मानवीयता की उम्मीद जगाते हैं। यह कहानी हमें चेतावनी देती है कि बिना समझ और एकता के समाज कगार पर खड़ा है।

‘झुटपुटा’ कहानी का सारांश

यह कहानी अशांति और हिंसा के दौर में मानवीय प्रतिक्रियाओं और सामाजिक ताने-बाने पर प्रकाश डालती है। कहानी की शुरुआत प्रभात के झुटपुटे (सुबह के धुंधलके) में दूध के बूथ के बाहर लगी एक लंबी लाइन से होती है। दो दिन बाद दूध मिलने की उम्मीद से लोग वहाँ इकट्ठे हुए हैं, लेकिन माहौल में गहरी चुपचाप और सन्नाटा छाया हुआ है। कल की लूटपाट और आगजनी की घटनाएँ शहर पर अपना निशान छोड़ गई हैं, जिसकी गवाही चौराहे पर जली हुई मोटर का कंकाल और दवाइयों की टूटी हुई दुकान दे रही है।

प्रोफेसर कन्हैयालाल, कहानी के मुख्य पात्र, भी इस लाइन में खड़े हैं और अपने मुहल्ले में आए अचानक बदलाव पर विचार कर रहे हैं। उन्हें याद आता है कि कैसे कल दुकानें अनिश्चितता के माहौल में बंद होती गईं और शहर के कई हिस्सों से धुएँ के गुबार उठने लगे। कन्हैयालाल अपनी छत से यह सब देखते हैं और उसके मन में एक जड़ता सी आ जाती है। वे पहले के दंगों और हिंसा से भयभीत होते थे, लेकिन अब उन्हें लगता है कि उनकी प्रतिक्रियाएँ धीमी पड़ गई हैं। उन्हें दिन की आग और रात की आग में अंतर महसूस होता है, और वह यह भी नोटिस करते हैं कि सिख परिवारों की छतें खाली हैं। यह जड़ता उसके अंदर पिछले तीन वर्षों से पनप रही है, जब से ये घटनाएँ शुरू हुई हैं। पहले वह उद्वेलित होता था और सही-गलत पर बहस करता था, लेकिन अब वह केवल “बहुत बुरा हुआ है” कहकर सिर हिलाते रह जाते हैं।

दोपहर में, लठैतों का एक गिरोह मुहल्ले में घुसता है और हलवाई की दुकान पर हमला करता है। चौक पर खड़े लोग मूक दर्शक बने रहते हैं और विभिन्न प्रकार की टिप्पणियाँ करते हैं, जैसे मल्होत्रा का कमेटी बनाने का सुझाव या सरदारों पर लगाए गए आरोप। कृष्णलाल की बूढ़ी माँ की गुहार भी अनसुनी रह जाती है। कन्हैयालाल, जो पहले झगड़ों में कूद पड़ता था, अब हिल भी नहीं पाता और केवल हिंसा को देखता रहता है।

दवाइयों की दुकान पर हुए हमले में लोग बिना किसी हड़बड़ी के लूटपाट करते हैं, मानो कोई मेला लगा हो। कन्हैयालाल की पड़ोसिन श्यामा भी इस लूटपाट में शामिल होती है और अपनी बेटी को भी उकसाती है। दर्शक मुआवजे पर बहस करते हैं और अलमारी को जलाने के पीछे हिंदू-सिख भेद को उजागर करते हैं। एक ड्राईक्लीनर की दुकान को छोड़ दिया जाता है क्योंकि उसमें हिंदू और सिख दोनों साझेदार थे, जो साझा हितों की एक अजीबोगरीब स्वीकृति को दर्शाता है। एक कार को जलाया जाता है, जिसे पंजाबी व्यक्ति सेठी की गाड़ी समझकर जलाया गया, लेकिन वह वास्तव में उसके हिंदू दामाद की थी, जिस पर लोग हँसते हैं। कन्हैयालाल इन सब घटनाओं से आत्म-प्रताड़ित महसूस करते हैं, लेकिन फिर खुद को यह कहकर ढाँढस बँधाते हैं कि कम से कम उसकी आँखों में पानी तो आया, उसकी संवेदना मरी नहीं है।

घर पहुँचकर कन्हैयालाल को यह सब अटपटा लगता है, क्योंकि यह किसी पारंपरिक दंगे जैसा नहीं है जहाँ दुश्मन को पहचाना जाता है। यहाँ लुटेरे बाहरी थे और सड़कें खाली थीं।

दूध की लाइन में, कन्हैयालाल को तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। दो नौकर आपस में लूटी हुई चीज़ों पर बात करते हैं। तभी चौधरी, जो खुद को ‘पब्लिक का सेवादार’ कहता है, आता है। वह बताता है कि दूध तो है, लेकिन सरदार ड्राइवर खतरे के कारण नहीं आ रहे हैं और अगर कोई हिंदू ट्रक चलाना जानता हो तो उसे लाने जाना पड़ेगा। चौधरी हिंदू समुदाय पर सार्वजनिक सेवा में उदासीनता का आरोप लगाता है। वह फुसफुसाकर मद्रासी को बताता है कि कैसे उसने अपने घर में गुरुद्वारा होने की बात छुपाई है और कैसे हिंदू-सिख झगड़े अभी “कच्चे खिलाड़ी” हैं, जबकि हिंदू-मुस्लिम दंगों का उन्हें पूरा अनुभव है। वह अपने सिख पड़ोसी के सुबह घूमने जाने का किस्सा सुनाता है, जिसे उसने बड़ी मुश्किल से घर भेजा था। चौधरी इन घटनाओं को ‘शुरुआत’ बताता है, जब लोग “धीरे-धीरे सीख जाएँगे” और दूर से ही एक-दूसरे को देखकर रोंगटे खड़े हो जाया करेंगे।

बढ़ई सिख के जिंदा जलाए जाने की खबर से कन्हैयालाल की टाँगें काँपने लगती हैं। वह उदास और थका हुआ महसूस करता है। तभी उसकी नज़र अपने मित्र सक्सेना की बेटी पर पड़ती है, जो तीन डोलचियाँ लिए खड़ी है। उसे अजीब लगता है कि दूध की अनिश्चितता के बावजूद लड़की इतनी डोलचियाँ लाई है। लड़की बताती है कि एक डोलची उसके सिख पड़ोसियों के लिए है। यह देखकर कन्हैयालाल का मन उद्वेलित हो जाता है।

थोड़ी देर बाद, कन्हैयालाल अपने परिचित बलराम को देखता है, जो एक बुजुर्ग सिख सरदार, सरदार केसर सिंह, से मिलने आया है। बलराम कहता है कि सरदार जी उनके पिता के दोस्त थे और वह उनकी खैर-खबर लेने आया है। बलराम को जाते देख कन्हैयालाल को लगता है कि वे इतिहास के झुटपुटे में जी रहे हैं, जहाँ रिश्तों का एक पन्ना पलट रहा है और दूसरा खुल रहा है, और उन्हें नहीं पता कि अगले पन्ने पर क्या लिखा होगा।

अंत में, एक आदमी चिल्लाता हुआ आता है कि “दूध आ गया! दूध की लारी आ गई!” लोगों की आँखें सड़क के मोड़ पर टिक जाती हैं। लारी आती है और हैरानी की बात यह है कि उसका ड्राइवर एक सरदार है। कन्हैयालाल उससे पूछता है कि वह कैसे आ गया। सिख ड्राइवर मुस्कुराकर जवाब देता है, “बीबी, बच्चों ने दूध तो पीना है ना! मैंने कहा, चल मना, देखा जाएगा जो होगा। दूध तो पहुँचा आएँ।” यह साहसी कदम उस भयावह माहौल में मानवीयता और परोपकार की एक छोटी-सी किरण जगाता है, जो यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ लोग दूसरों की भलाई के लिए आगे आते हैं।

 

‘झुटपुटा’ पाठ पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर 

  1. कहानी का समय कौन सा बताया गया है?

क. दोपहर
ख. प्रभात का झुटपुटा
ग. रात्रि
घ. सायंकाल
उत्तर – ख.

  1. दूध के बूथ के बाहर लाइन कहाँ तक पहुँच गई थी?

क. बाजार
ख. पार्क
ग. स्कूल
घ. मंदिर
उत्तर – ख.

  1. कल दूध क्यों नहीं आया था?

क. बारिश के कारण
ख. आपूर्ति बाधित होने के कारण
ग. दुकान बंद होने के कारण
घ. कोई कारण नहीं बताया
उत्तर – ख.

  1. कल कौन-सी घटनाएँ हुई थीं?

क. मेला और उत्सव
ख. लूट-पाट और आगजनी
ग. शादी और समारोह
घ. खेल प्रतियोगिता
उत्तर – ख.

  1. चौराहे के बीच में क्या पड़ा था?

क. एक जली हुई मोटर
ख. टूटी साइकिल
ग. पुराना ट्रक
घ. खाली डिब्बा
उत्तर – क.

  1. दवाइयों की दुकान का वर्णन क्या था?

क. चमकदार और नई
ख. काली खोह जैसी
ग. साफ और व्यवस्थित
घ. रंगीन और आकर्षक
उत्तर – ख.

  1. प्रोफेसर कन्हैयालाल क्या लेकर लाइन में खड़ा था?

क. थैला
ख. डोलची
ग. बोतल
घ. बाल्टी
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल ने छत पर चढ़कर क्या देखा?

क. बारिश
ख. जगह-जगह उठते धुएँ
ग. सूर्योदय
घ. बाजार की भीड़
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल के मन में जड़ता कब से आने लगी थी?

क. एक साल पहले
ख. तीन साल पहले
ग. छह महीने पहले
घ. पिछले हफ्ते
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल किस घटना पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते थे?

क. बारिश
ख. रोमांचकारी घटनाएँ
ग. बाजार खुलना
घ. खेल
उत्तर – ख.

  1. लठैतों का गिरोह कहाँ से आया था?

क. करोलबाग
ख. मोतीनगर
ग. संतनगर
घ. राजेंद्रनगर
उत्तर – ख.

  1. लठैतों ने किस दुकान पर वार किया?

क. हलवाई की दुकान
ख. कपड़े की दुकान
ग. दवाइयों की दुकान
घ. जूते की दुकान
उत्तर – ग.

  1. श्यामा ने लूटते समय क्या उठाया?

क. कपड़े
ख. पाउडर का डिब्बा
ग. किताबें
घ. जूते
उत्तर – ख.

  1. बुढ़िया ने श्यामा को क्या कहा?

क. सामान वापस फेंकने को
ख. और लूटने को
ग. दुकान खोलने को
घ. मदद करने को
उत्तर – क.

  1. चौधरी अपने को क्या कहता है?

क. नेता
ख. सेवादार
ग. व्यापारी
घ. शिक्षक
उत्तर – ख.

  1. चौधरी की टोपी का वर्णन क्या था?

क. चमकदार और नई
ख. भौड़ी और रंग-बिरंगी
ग. छोटी और सादी
घ. लाल और गोल
उत्तर – ख.

  1. मद्रासी ने चौधरी से दूध के बारे में क्या पूछा?

क. कीमत
ख. पोजीशन
ग. समय
घ. गुणवत्ता
उत्तर – ख.

  1. चौधरी ने दूध न भेजने का क्या कारण बताया?

क. ड्राइवरों का डर
ख. ट्रक टूट गया
ग. दूध कम था
घ. सड़क बंद थी
उत्तर – क.

  1. चौधरी ने किसे दूध लेने के लिए सुझाया?

क. सिख ड्राइवर
ख. हिंदू ट्रक ड्राइवर
ग. मद्रासी
घ. कन्हैयालाल
उत्तर – ख.

  1. वकील का बेटा क्या दावा कर रहा था?

क. दुकान खोलेगा
ख. सिखों को हराएगा
ग. गुरुद्वारे में असला जमा करेगा
घ. दूध लाएगा
उत्तर – ग.

  1. चौधरी ने सिखों के बारे में क्या कहा?

क. वे मजबूत हैं
ख. वे घरों में हैं
ग. वे लड़ेगे
घ. वे भाग गए
उत्तर – ख.

  1. संतनगर के पास क्या जला दिया गया?

क. दुकानें
ख. सात ट्रक
ग. मकान
घ. कार
उत्तर – ख.

  1. सेठी की गाड़ी किसकी निकली?

क. सेठी की
ख. सेठी के दामाद की
ग. चौधरी की
घ. मद्रासी की
उत्तर – ख.

  1. वेस्ट पटेलनगर में किसे मारा गया?

क. हलवाई
ख. बढ़ई
ग. ड्राइवर
घ. व्यापारी
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल को क्या प्रतीक लगा?

क. काँच की दीवार
ख. लोहे का दरवाजा
ग. पत्थर की चट्टान
घ. लकड़ी का पुल
उत्तर – क.

  1. कन्हैयालाल ने पिछले तीन साल से क्या दोहराया?

क. बहुत अच्छा हुआ
ख. बहुत बुरा हुआ
ग. सब ठीक है
घ. कोई बात नहीं
उत्तर – ख.

  1. सक्सेना की बेटी ने कितनी डोलचियाँ उठाई थीं?

क. एक
ख. दो
ग. तीन
घ. चार
उत्तर – ग.

  1. सक्सेना की बेटी ने किसके लिए दूध लाने की कोशिश की?

क. अपने परिवार के लिए
ख. सिख परिवारों के लिए
ग. चौधरी के लिए
घ. श्यामा के लिए
उत्तर – ख.

  1. बलराम किससे मिलने आया था?

क. चौधरी
ख. बुजुर्ग सरदार
ग. मद्रासी
घ. श्यामा
उत्तर – ख.

  1. बलराम का संबंध किससे था?

क. अपने पिता के दोस्त से
ख. अपने भाई से
ग. अपने शिक्षक से
घ. अपने पड़ोसी से
उत्तर – क.

  1. दूध की लारी किसने चलाई?

क. हिंदू ड्राइवर
ख. सिख ड्राइवर
ग. चौधरी
घ. कन्हैयालाल
उत्तर – ख.

  1. सिख ड्राइवर ने दूध लाने का क्या कारण बताया?

क. पैसा कमाने के लिए
ख. बीबी-बच्चों के लिए
ग. डर के बावजूद
घ. मजबूरी में
उत्तर – ख.

  1. लाइन में लोग किसकी ओर देख रहे थे?

क. चौधरी की
ख. सिख ड्राइवर की
ग. श्यामा की
घ. बलराम की
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल ने लारी के पास जाकर क्या पूछा?

क. दूध की कीमत
ख. ड्राइवर कैसे आया
ग. लारी का समय
घ. दूध की मात्रा
उत्तर – ख.

  1. लूट-पाट के दौरान लोग कैसा व्यवहार कर रहे थे?

क. डरपोक
ख. तमाशबीन
ग. क्रोधित
घ. उदास
उत्तर – ख.

  1. चौधरी की कौन सी आदत थी?

क. जोर से हँसना
ख. कान में फुसफुसाना
ग. दुकान खोलना
घ. लड़ाई करना
उत्तर – ख.

  1. ड्राइक्लीनर की दुकान क्यों नहीं जलाई गई?

क. वह बंद थी
ख. हिंदू और सिख दोनों के कपड़े थे
ग. वह मजबूत थी
घ. कोई नहीं जानता
उत्तर – ख.

  1. बुढ़िया का दिल क्यों काँप रहा था?

क. भूख के कारण
ख. बेटों की चिंता के कारण
ग. बीमारी के कारण
घ. ठंड के कारण
उत्तर – ख.

  1. कन्हैयालाल को इतिहास का कौन सा पन्ना खुलता दिखा?

क. युद्ध का
ख. रिश्तों का
ग. व्यापार का
घ. शिक्षा का
उत्तर – ख.

  1. कहानी का अंतिम संदेश क्या है?

क. हिंसा की जीत
ख. मानवीयता की उम्मीद
ग. दुकानों का नुकसान
घ. ड्राइवर का साहस
उत्तर – ख.

‘झुटपुटा’ पाठ पर आधारित एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर 

  1. प्रश्न – झुटपुटा कहानी की शुरुआत किस दृश्य से होती है?
    उत्तर – कहानी की शुरुआत दूध के बूथ पर लगी लंबी लाइन से होती है, जहाँ लोग दो दिन बाद दूध मिलने की उम्मीद में खड़े हैं। लाइन धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते पार्क तक पहुँच जाती है।
  2. प्रश्न – बूथ के पास लोग कैसे व्यवहार कर रहे थे?
    उत्तर – लोग चुपचाप खड़े थे। उनके चेहरे पर थकावट और इंतज़ार की झलक थी। सबको दूध की ज़रूरत थी, पर कोई अव्यवस्था नहीं फैला रहा था।
  3. प्रश्न – लेखक बूथ की स्थिति का वर्णन कैसे करता है?
    उत्तर – लेखक बूथ के बाहर की स्थिति को बेहद शांत और अनुशासित दिखाता है। भीड़ लंबी जरूर है, लेकिन संयमित और चुप है, जिससे सामाजिक अनुशासन का संकेत मिलता है।
  4. प्रश्न – कहानी में बूथ का प्रतीकात्मक महत्त्व क्या है?
    उत्तर – बूथ सिर्फ दूध वितरण का स्थान नहीं है, बल्कि यह समाज की आवश्यकताओं और संकट के समय एकजुटता का प्रतीक बन जाता है।
  5. प्रश्न – बूथ पर भीड़ किस चीज़ का प्रतीक है?
    उत्तर – यह भीड़ आम जनता की ज़रूरतों, धैर्य और सामूहिक संघर्ष की प्रतीक है। इसमें वर्ग, धर्म या जाति का भेद नहीं है, सभी एक जैसे प्रतीत होते हैं।
  6. प्रश्न – बूथ के पीछे की कालोनी में किस प्रकार का तनाव व्याप्त था?
    उत्तर – वहाँ सांप्रदायिक तनाव था। दो संप्रदायों के बीच संघर्ष हुआ था और वातावरण में भय और अविश्वास व्याप्त था।
  7. प्रश्न – लेखक ने ‘पुलिस पिकेट’ का उल्लेख क्यों किया है?
    उत्तर – ‘पुलिस पिकेट’ दर्शाता है कि क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा व्यवस्था लगाई गई थी, जिससे वहाँ के भय और तनाव को समझा जा सकता है।
  8. प्रश्न – बूथ पर आए लोगों का धर्म या जाति कैसे स्पष्ट होता है?
    उत्तर – शुरू में किसी का धर्म या जाति स्पष्ट नहीं होता। सभी एक समान प्रतीत होते हैं। पर जब कुछ लोग पहचानने लगते हैं, तो विभाजन स्पष्ट हो जाता है।
  9. प्रश्न – बूथ पर कौन सा विवाद खड़ा हो गया?
    उत्तर – जब दो समुदायों के व्यक्ति बूथ पर आमने-सामने आए, तो एक-दूसरे की पहचान को लेकर तनाव हुआ और अफवाह फैली कि भीड़ में ‘वो लोग’ भी शामिल हैं।
  10. प्रश्न – ‘वो लोग’ से लेखक का आशय क्या है?
    उत्तर – ‘वो लोग’ एक समुदाय विशेष के लिए संकेत है, जिसे लोग संदेह और पूर्वाग्रह की दृष्टि से देखते हैं। यह सांप्रदायिक भेदभाव को दर्शाता है।
  11. प्रश्न – बूथ पर मौजूद बच्चे किस भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं?
    उत्तर – बच्चे मासूम और निर्दोष होते हैं। वे जाति या धर्म नहीं जानते। उनकी उपस्थिति मानवता और एकता का संकेत देती है।
  12. प्रश्न – बूथ की स्थिति कैसे बदलती है जब एक समुदाय विशेष की पहचान होती है?
    उत्तर – पहचान होते ही भीड़ में हलचल मचती है, अफवाहें फैलती हैं और लोग पीछे हटने लगते हैं। एक साथ खड़ी भीड़ अब बँट जाती है।
  13. प्रश्न – ‘चुप्पी’ कहानी में किस बात का प्रतीक है?
    उत्तर – चुप्पी समाज के भीतर के डर, असुरक्षा और अविश्वास का प्रतीक है। यह बताती है कि लोग बहुत कुछ सोचते हैं, पर कह नहीं पाते।
  14. प्रश्न – बूथ पर आए लड़के ने दूध क्यों नहीं लिया?
    उत्तर – लड़के ने देखा कि वहाँ तनाव है और लोग उसके समुदाय से नफरत कर रहे हैं। उसे लगा कि उसे वहाँ से हट जाना चाहिए, इसलिए उसने दूध नहीं लिया।
  15. प्रश्न – लेखक ने किस भाव के साथ कहानी का अंत किया है?
    उत्तर – लेखक ने निराशा, विडंबना और अंतर्मन की पीड़ा के साथ कहानी समाप्त की है। मानवता हार जाती है और समाज सांप्रदायिकता में बँट जाता है।
  16. प्रश्न – झुटपुटा शीर्षक का क्या महत्त्व है?
    उत्तर – ‘झुटपुटा’ सांकेतिक शीर्षक है, जो उजाले और अँधेरे के बीच की स्थिति को दर्शाता है। यह समय और समाज की अनिश्चितता का प्रतीक है।
  17. प्रश्न – कहानी किस सामाजिक समस्या को उजागर करती है?
    उत्तर – यह कहानी सांप्रदायिकता, अफवाहों, सामाजिक विघटन और मानवता के ह्रास को उजागर करती है।
  18. प्रश्न – क्या बूथ की लाइन समाज का प्रतिबिंब है?
    उत्तर – हाँ, वह समाज का प्रतीक है जहाँ सब साथ खड़े तो होते हैं, पर पहचान सामने आते ही बँट जाते हैं।
  19. प्रश्न – कहानी में अफवाहों की भूमिका क्या है?
    उत्तर – अफवाहें तनाव बढ़ाती हैं, भ्रम फैलाती हैं और समाज को बाँटने का कार्य करती हैं। बूथ की भीड़ में फैली अफवाह ही स्थिति को बिगाड़ती है।
  20. प्रश्न – क्या कहानी का कोई सकारात्मक पक्ष भी है?
    उत्तर – हाँ, प्रारंभ में दिखी सामाजिक एकता और अनुशासन सकारात्मक पक्ष है। परंतु यह क्षणिक साबित होता है।
  21. प्रश्न – बूथ पर पुलिस की उपस्थिति क्या संकेत देती है?
    उत्तर – पुलिस की उपस्थिति क्षेत्र में अशांति और संभावित हिंसा की आशंका को दर्शाती है। यह तनावपूर्ण माहौल को प्रमाणित करती है।
  22. प्रश्न – क्या इस कहानी में वर्ग भेद दिखाई देता है?
    उत्तर – प्रत्यक्ष नहीं, पर अप्रत्यक्ष रूप से जब धर्म के आधार पर पहचान होती है, तो सामाजिक भेदभाव उजागर होता है।
  23. प्रश्न – क्या लेखक ने कहानी में निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाया है?
    उत्तर – हाँ, लेखक ने किसी पक्ष को दोषी ठहराए बिना सामाजिक यथार्थ को तटस्थ रूप से प्रस्तुत किया है।
  24. प्रश्न – दूध को प्रतीक रूप में कैसे लिया जा सकता है?
    उत्तर – दूध जीवन, ज़रूरत और समानता का प्रतीक है, जिसे सभी पाना चाहते हैं। परंतु सांप्रदायिकता उस पर भी अधिकार सीमित कर देती है।
  25. प्रश्न – क्या लेखक ने भाषा में प्रतीकों का प्रयोग किया है?
    उत्तर – हाँ, ‘झुटपुटा’, ‘चुप्पी’, ‘लाइन’, ‘दूध’ जैसे प्रतीकों का प्रयोग कर लेखक ने गूढ़ अर्थ प्रस्तुत किए हैं।
  26. प्रश्न – क्या बूथ पर हिंसा हुई?
    उत्तर – प्रत्यक्ष रूप से नहीं, पर वातावरण में तनाव और विभाजन की भावना थी, जो मानसिक हिंसा का रूप था।
  27. प्रश्न – कहानी का पात्र ‘लड़का’ किसका प्रतिनिधित्व करता है?
    उत्तर – वह एक आम इंसान है, जो सिर्फ ज़रूरत के लिए आया था, पर समाज की नफरत का शिकार बन गया।
  28. प्रश्न – भीड़ में मौन क्यों छा गया?
    उत्तर – पहचान और विभाजन की बात सुनते ही भय और असमंजस फैल गया। किसी ने विरोध भी नहीं किया, बस चुपचाप हटते गए।
  29. प्रश्न – ‘झुटपुटा’ समाज की कौन-सी सच्चाई उजागर करता है?
    उत्तर – यह कहानी बताती है कि सांप्रदायिकता हमारी मानवता पर भारी पड़ती है और हमें बाँट देती है, भले ही हमारी ज़रूरतें समान हों।
  30. प्रश्न – कहानी से क्या संदेश मिलता है?
    उत्तर – यह कहानी मानवता, समानता और सामाजिक एकता की आवश्यकता का संदेश देती है, और बताती है कि सांप्रदायिकता से सब कुछ छिन सकता है।

 

‘झुटपुटा’ पाठ पर आधारित 30-40 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर 

  1. प्रश्न – दूध के बूथ पर लोगों की लंबी लाइन क्यों लगी थी?

उत्तर – दूध के बूथ पर लोगों की लंबी लाइन इसलिए लगी थी क्योंकि उन्हें दो दिन बाद दूध मिलने की उम्मीद बँधी थी।

  1. प्रश्न – दूध की लाइन के बावजूद माहौल में सन्नाटा क्यों था?

उत्तर – लंबी लाइन के बावजूद माहौल में सन्नाटा था क्योंकि पिछले दिन लूटपाट और आगजनी की घटनाएँ घटी थीं, जिससे लोग सहमे हुए थे।

  1. प्रश्न – प्रभात के झुटपुटे में काल की घटनाओं के क्या अवशेष दिखाई पड़ रहे थे?

उत्तर – प्रभात के झुटपुटे में चौराहे के बीचोबीच एक जली हुई मोटर का काला कंकाल और सड़क के पार दवाइयों की दुकान के अस्थि-पंजर (टूटी-फूटी अलमारियाँ) दिखाई पड़ रहे थे।

  1. प्रश्न – प्रोफेसर कन्हैयालाल दूध की लाइन में क्या सोच रहा था?

उत्तर – प्रोफेसर कन्हैयालाल दूध की लाइन में यह सोच रहा था कि कैसे एक दिन में मुहल्ले का माहौल पूरी तरह बदल गया है।

  1. प्रश्न – दुकान के कारिंदे ने कन्हैयालाल से क्या कहा था?

उत्तर – दुकान के कारिंदे ने कन्हैयालाल से कहा था, “और कुछ भी लेना हो तो अभी ले जाइए, क्या मालूम दुकानें फिर कब खुलें।”

  1. प्रश्न – कन्हैयालाल ने अपनी छत पर चढ़कर क्या देखा?

उत्तर – कन्हैयालाल ने अपनी छत पर चढ़कर देखा कि आग एक जगह पर नहीं, बल्कि करोलबाग और मोतीनगर की ओर से अनेक स्थानों पर लगी थी।

  1. प्रश्न – कन्हैयालाल को दिन में लगी आग और रात में लगी आग में क्या अंतर महसूस हुआ?

उत्तर – कन्हैयालाल को लगा कि दिन में लगी आग में दहशत नहीं होती, जबकि रात में लगी आग भयानक नजर आती है, जिसमें केवल धधकती लौ दिखाई देती है।

  1. प्रश्न – कन्हैयालाल ने सिख परिवारों के घरों की छतों के बारे में क्या बात नोटिस की? उत्तर – कन्हैयालाल ने नोटिस किया कि अनेक मकानों की छतों पर लोग खड़े थे, लेकिन केवल सिख परिवारों के घरों की छतें और छज्जे खाली थे।
  2. प्रश्न – कन्हैयालाल के मस्तिष्क में जड़ता कब से आने लगी थी?

उत्तर – कन्हैयालाल के मस्तिष्क में जड़ता लगभग तीन साल पहले से आने लगी थी, जब से यह घटनाचक्र शुरू हुआ था।

  1. प्रश्न – लठैतों का गिरोह मुहल्ले में कब और कहाँ से घुसा था?

उत्तर – लठैतों का एक गिरोह लगभग दो बजे मोतीनगर की ओर से मुहल्ले में घुसा था।

  1. प्रश्न – चौक में खड़े लोगों ने किस दुकान पर हमले का कयास लगाया?

उत्तर – चौक में खड़े लोगों ने हलवाई की दुकान पर हमले का कयास लगाया, जिसका पता धुएँ के बवंडर से लगा।

  1. प्रश्न – मल्होत्रा ने मुहल्ले के लोगों से क्या सुझाव दिया था?

उत्तर – मल्होत्रा ने सुझाव दिया था कि मुहल्ले की एक कमेटी बना लेनी चाहिए ताकि जब कोई गुंडे आएँ तो उन्हें मुहल्ले के अंदर न घुसने दिया जाए।

  1. प्रश्न – कृष्णलाल की बूढ़ी माँ ने चौक में खड़ी मंडली से क्या गुहार लगाई?

उत्तर – कृष्णलाल की बूढ़ी माँ ने गुहार लगाई, “वे जीणे जोगियो, इन्हाँ नूँ रोक देयो। इन्हाँ नूँ मना करा।” (हे जीने वाले लोगों, इन्हें रोक दो, इन्हें मना करो।)

  1. प्रश्न – कन्हैयालाल पहले झगड़ों में कैसे प्रतिक्रिया देता था और अब कैसे?

उत्तर – पहले कन्हैयालाल झगड़ों में कूद पड़ता था और लड़नेवालों को छुड़ा देता था, लेकिन अब उसके पाँव उठ नहीं रहे थे और वह केवल “बहुत बुरा हो रहा है” बुदबुदाता रहता था।

  1. प्रश्न – दवाइयों की दुकान लूटने वाले लोग किस तरह लूटपाट कर रहे थे?

उत्तर – दवाइयों की दुकान लूटने वाले बड़े आराम से, एक-एक करके, मानो लाइन बनाकर लूट रहे थे, कोई हड़बड़ी या हुल्लड़ नहीं था।

  1. प्रश्न – कन्हैयालाल की पड़ोसिन श्यामा ने लूटपाट में क्या लिया और अपनी बेटी से क्या कहा?

उत्तर – श्यामा ने पाउडर का एक बड़ा-सा डिब्बा लिया और अपनी बेटी से कहा, “मर जाणिए, जा भागकर जा, देर करेगी तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।”

  1. प्रश्न – दर्शकों में से एक ने बीमा मुआवजे के बारे में क्या कहा?

उत्तर – एक दर्शक ने कहा कि “चिंता की कोई बात नहीं। दुकान वाले को बीमा कंपनी मुआवजा दे देगी।”

  1. प्रश्न – फिसाद में लूटपाट होने पर बीमा कंपनी मुआवजा क्यों नहीं देती?

उत्तर – दूसरे व्यक्ति ने खंडन करते हुए कहा कि फिसाद में अगर लूट-पाट हो तो उसका मुआवजा कंपनी नहीं देती।

  1. प्रश्न – लोगों ने सरदार की दुकान की अलमारी को बाहर खींचकर क्यों जलाया?

उत्तर – लोगों ने अलमारी बाहर खींचकर इसलिए जलाई क्योंकि दुकान सरदार की थी, लेकिन घर हिंदू का था।

  1. प्रश्न – ड्राईक्लीनर की उस दुकान को आग क्यों नहीं लगाई गई जहाँ एक हिंदू और एक सिख भाई वाले थे?

उत्तर – उस ड्राईक्लीनर की दुकान को आग नहीं लगाई गई क्योंकि उसमें एक हिंदू और एक सिख दोनों भाई वाले (साझेदार) थे।

  1. प्रश्न – मोतीनगर में सिख सरदार की ड्राईक्लीनर की दुकान को क्यों छोड़ दिया गया था?

उत्तर – मोतीनगर में सिख सरदार की ड्राईक्लीनर की दुकान को इसलिए छोड़ दिया गया था क्योंकि किसी ने पुकारकर कहा था कि “दुकान सिख की है, पर उसमें कपड़े तो ज्यादा हिन्दुओं के ही हैं!”

  1. प्रश्न – जलाई गई कार किसकी थी और लोगों ने उस पर हंसते हुए क्या टिप्पणी की?

उत्तर – जलाई गई कार सेठी के दामाद की थी जो हिंदू था और गाजियाबाद में रहता था; लोगों ने सेठी की कार समझकर हिंदू की कार जलाने पर ठहाका मारकर हँसा।

  1. प्रश्न – घर पहुँचकर कन्हैयालाल को घटनाओं के बारे में क्या महसूस हुआ?

उत्तर – घर पहुँचकर कन्हैयालाल को सभी घटनाएँ बड़ी बीहड़ और अटपटी लगीं, और उसे लगा कि यह कोई दंगा तो नहीं था।

  1. प्रश्न – चौधरी खुद को क्या कहता था और उसकी टोपी कैसी थी?

उत्तर – चौधरी खुद को ‘पब्लिक का सेवादार’ कहता था और उसकी टोपी पुराने मोजों के धागे उधेड़कर बुनी हुई, तीन-तीन रंगों की पट्टियों वाली और फुदने वाली थी, जिससे वह जोकर लगता था।

  1. प्रश्न – चौधरी ने मद्रासी को दूध की अनुपलब्धता का क्या कारण बताया?

उत्तर – चौधरी ने बताया कि दूध तो बहुत है, लेकिन सभी ड्राइवर सरदार हैं और उन्हें भेजना खतरनाक है, इसलिए कोई हिंदू ड्राइवर जाकर दूध ले आए।

  1. प्रश्न – चौधरी ने शरणार्थियों के मुहल्ले और सिखों को चुन-चुनकर मारने पर क्या टिप्पणी की?

उत्तर – चौधरी ने कहा कि यह मुहल्ला तो पहले ही शरणार्थियों का है, जब पाकिस्तान बना था तो लुटे-पिटे लोग आकर यहाँ सिर छिपाए थे, और अब उन्हीं में से सिखों को चुन-चुनकर मारेगा!

  1. प्रश्न – चौधरी की कौन-सी खासियत मशहूर थी?

उत्तर – मुहल्ले भर में चौधरी की यह खासियत मशहूर थी कि जो बात कहने लायक नहीं होती थी उसे तो वह चिल्लाकर कहता था, पर जो बात बेमानी-सी होती थी, उसे पास आकर, कान में फुसफुसाकर कहता था।

  1. प्रश्न – बढ़ई सिख के जिंदा जला दिए जाने की बात सुनकर कन्हैयालाल पर क्या असर हुआ?

उत्तर – बढ़ई सिख के जिंदा जला दिए जाने की बात सुनकर कन्हैयालाल की टाँगें काँपने लगीं और वह खिन्न व उदास महसूस करने लगा।

  1. प्रश्न – सक्सेना की बेटी कितनी डोलचियाँ लेकर दूध की लाइन में खड़ी थी और क्यों?

उत्तर – सक्सेना की बेटी तीन डोलचियाँ लेकर दूध की लाइन में खड़ी थी, जिनमें से एक उसकी अपनी, एक साथवाले सरदार अंकल की और दूसरी ऊपरवालों की थी।

  1. प्रश्न – दूध की लारी देखकर लोगों को कैसा लगा और सिख ड्राइवर ने क्या कहा?

उत्तर – दूध की लारी देखकर लोगों को वह सर्वांग सुंदरी लगी; सिख ड्राइवर ने मुस्कुराकर कहा, “बीबी, बच्चों ने दूध तो पीना है ना! मैंने कहा, चल मना, देखा जाएगा जो होगा। दूध तो पहुँचा आएँ।”

‘झुटपुटा’ पाठ पर आधारित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर 

  1. कहानी में झुटपुटा का क्या महत्त्व है?

उत्तर – झुटपुटा सुबह का अँधेरा है, जो अनिश्चितता और संक्रमण काल का प्रतीक है। यह कहानी में उस समय को दर्शाता है जब हिंसा के बाद जीवन सामान्य होने की कोशिश कर रहा है, पर स्पष्टता नहीं है। जली मोटर और दुकानों के अवशेष इस अँधेरे में विनाश की छाया बनाते हैं। झुटपुटा समाज के भ्रम और मानवीय संवेदना की तलाश को उजागर करता है, जो कहानी का केंद्रीय भाव है।

  1. प्रोफेसर कन्हैयालाल के चरित्र का वर्णन कैसे है?

उत्तर – प्रोफेसर कन्हैयालाल शिक्षित और संवेदनशील व्यक्ति हैं, पर तीन साल से चली हिंसा ने उनके मन में जड़ता ला दी है। वे घटनाओं को देखकर केवल “बहुत बुरा हुआ” कहते हैं, पर सक्रिय नहीं होते। उनकी आंतरिक उधेड़बुन और आत्म-प्रताड़ना उनकी मानवीयता को दर्शाती है। दूध की लाइन और सिख ड्राइवर की साहसिकता उन्हें उद्वेलित करती है, जो उनके चरित्र की गहराई को प्रकट करती है।

  1. लूट-पाट और आगजनी की घटनाओं का वर्णन कैसे है?

उत्तर – लूट-पाट और आगजनी पिछले दिन की हिंसा का चित्रण है, जहाँ लठैतों ने दवाइयों और हलवाई की दुकानों को तोड़ा। लोग तमाशबीन बने रहे, श्यामा और उसकी बेटी लूटे सामान को हँसी में लेती हैं। जली मोटर और अलमारी जलाने की घटना क्रूरता को दर्शाती है। यह हिंसा बिना दुश्मन पहचान के हुई, जो साम्प्रदायिक तनाव और असंवेदनशीलता को उजागर करती है।

  1. चौधरी का चरित्र और उसकी भूमिका क्या है?

उत्तर – चौधरी अपने को “पब्लिक का सेवादार” कहता है, पर उसका चरित्र दोहरा है। वह ऊँची आवाज में बेमानी बातें चिल्लाता और गोपनीय बातें कान में फुसफुसाता है। उसकी रंग-बिरंगी टोपी और तर्कहीन टिप्पणियाँ (जैसे हिंदू-सिख का नया झगड़ा) उसे जोकर जैसा बनाती हैं। वह दूध की स्थिति बताने की कोशिश करता है, पर उसकी कायरता और भ्रम समाज की कमजोरी को दर्शाते हैं।

  1. दूध की लाइन में खड़े लोगों का व्यवहार कैसा था?

उत्तर – दूध की लाइन में लोग चुप और सन्नाटे में थे, जो संकट की गंभीरता को दर्शाता है। कुछ नौकरों ने लूटी वस्तुओं (क्रीम, गोलियाँ) की बात की, जबकि सक्सेना की बेटी सिख परिवारों के लिए दूध लाने की कोशिश में थी। लोग ड्राइवर के आने पर आशान्वित हुए, पर लाइन टूटने का डर था। यह व्यवहार जीवन की निरंतरता और मानवीय एकता की उम्मीद को दिखाता है।

  1. सिख ड्राइवर की भूमिका और महत्त्व क्या है?

उत्तर – सिख ड्राइवर जोखिम उठाकर दूध की लारी लेकर आता है, जो मानवीयता और साहस का प्रतीक है। वह कहता है, “बीबी-बच्चों ने दूध तो पीना है,” जो पारिवारिक जिम्मेदारी को दर्शाता है। लोगों की आशा और अचंभा उसकी साहसिकता को उजागर करते हैं। यह घटना धार्मिक सीमाओं को तोड़कर एकता और सहानुभूति की किरण बनती है, जो कहानी के सकारात्मक अंत को संकेत देती है।

  1. कन्हैयालाल को “काँच की दीवार” का क्या मतलब लगा?

उत्तर – कन्हैयालाल को लगा कि समाज किसी कगार पर खड़ा है और एक झीनी काँच की दीवार उसे विनाश से बचा रही है। यह दीवार चटकने पर अथाह गर्त में गिरने का खतरा है। यह प्रतीक समाज की नाजुक शांति और एकता को दर्शाता है, जो हिंसा और भ्रम से टूट सकती है। यह उनके मन की चिंता और असहायता को भी व्यक्त करता है।

  1. बलराम का आना कहानी में क्या संदेश देता है?

उत्तर – बलराम का बुजुर्ग सिख मित्र केसर सिंह से मिलने आना पुराने रिश्तों और मानवीयता की याद दिलाता है। वह पाकिस्तान से आए अपने पिता के दोस्त की खैरियत जानने की कोशिश करता है, जो विभाजन के बाद भी बनी मित्रता को दर्शाता है। यह संदेश देता है कि संकट में भी व्यक्तिगत बंधन और करुणा जीवित रह सकती है, जो कहानी में आशा की किरण बनती है।

  1. श्यामा और उसकी बेटी का व्यवहार क्या दर्शाता है?

उत्तर – श्यामा और उसकी बेटी लूटी वस्तुओं (पाउडर, गोलियाँ) को हँसी-मजाक में लेती हैं, जो समाज की असंवेदनशीलता और नैतिक पतन को दर्शाता है। बुढ़िया की फटकार के बावजूद श्यामा की मुस्कराहट हिंसा को सामान्य मानने की मानसिकता को दिखाती है। यह चरित्र सामाजिक अव्यवस्था और व्यक्तिगत लालच को उजागर करता है, जो कहानी के काले पहलू को मजबूत करता है।

  1. कहानी का अंतिम संदेश क्या है?

उत्तर – कहानी का अंत सिख ड्राइवर की साहसिकता और बलराम की करुणा के साथ होता है, जो मानवीयता और एकता की उम्मीद जगाता है। कन्हैयालाल की उद्वेलना और “काँच की दीवार” का प्रतीक समाज को सतर्क करता है। यह संदेश देता है कि संकट में भी मानवीय रिश्ते और साहस ही समाज को बचा सकते हैं, भले ही हिंसा और भ्रम का माहौल हो।

 

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