लेखक परिचय : फणीश्वर नाथ रेणु
फणीश्वर नाथ’ ‘रेणु’ का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले में फारबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु ने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के आदर्श विद्यालय से कोइराला परिवार में रहकर की। इनकी लेखन-शैली वर्णनात्मक थी जिसमें पात्र के प्रत्येक मनोवैज्ञानिक सोच का विवरण लुभावने तरीके से किया होता था। रेणु की कहानियों और उपन्यासों में उन्होंने आंचलिक जीवन के हर धुन, हर गंध, हर लय, हर ताल, हर सुर, हर सुंदरता और हर कुरूपता को शब्दों में बाँधने की सफल कोशिश की है। रेणु के उपन्यास में मैला आँचल, परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड आदि है। रेणु के प्रसिद्ध कहानियाँ, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम), एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस, संवदिया। संस्मरण- श्रुत-अश्रुत पूर्व, वनतुलसी की गंध, ऋणजल धनजल, रिपोर्ताज, नेपाली क्रांति कथा आदि है। सन् 1954 में लेखक का बहुचर्चित आंचलिक उपन्यास मैला आँचल प्रकाशित हुआ जिसने हिंदी कथा लेखन को एक नई दिशा दी। गाँव की सहज बोल चाल की भाषा लोक जीवन के केन्द्र में आ खड़ी हुई। वहाँ के लोकगीत, लोक कथाएँ, लोकोक्तियों आदि ने कथा साहित्य की साहित्यिक परम्परा को न सिर्फ छुआ बल्कि मिट्टी की गंध, धूल और मैल को भी प्रत्यक्ष कर दिया। 11 अप्रैल 1977 ई. को रेणु ‘पैप्टिक अल्सर’ की बीमारी के कारण चल बसे।
पहलवान की ढोलक
जाड़े का दिन। अमावस्या की रात – ठंडी और काली। मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य ! अँधेरा और निस्तब्धता !
अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने ह्रदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज़ कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज़, ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी- सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ! संध्या से लेकर प्रातः काल तक एक ही गति से बजती रहती – ‘चट्-धा, गिड़-धा…. चट्-धा, गिड़-धा!’ यानी ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!’… बीच-बीच में ‘चटाक् – चट्-धा, चटाक् चट्-धा!’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
यही आवाज़ मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।
लुट्टन सिंह पहलवान !
यों तो वह कहा करता था – ‘लुट्टन सिंह पहलवान को होल इंडिया भर के लोग जानते हैं’, किंतु इसके ‘होल इंडिया’ की सीमा शायद एक जिले की सीमा के बराबर ही हो। जिले भर के लोग उसके नाम से अवश्य परिचित थे।
लुट्टन के माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मांसल बना दिया था। जवानी में कदम रखते ही वह गाँव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनों हाथों को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर, पहलवानों की भाँति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था।
एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज़ ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।
‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँद सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्टों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लँगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँद सिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
श्यामनगर के दंगल और शिकार- प्रिय वृद्ध राजा साहब उसे दरबार में रखने की बातें कर ही रहे थे कि लुट्टन ने शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। सम्मान प्राप्त चाँद सिंह पहले तो किंचित, उसकी स्पर्धा पर मुसकुराया फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा।
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई ‘पागल है पागल, मराऐं ! मरा-मरा!’… पर वाह रे बहादुर ! लुट्टन बड़ी सफ़ाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपये का नोट देकर कहने लगे- “जाओ, मेला देखकर घर जाओ!…”
“नहीं सरकार, लड़ेंगे… हुकुम हो सरकार….!”
“तुम पागल हो, …जाओ!…”
मैनेजर साहब से लेकर सिपाहियों तक ने धमकाया- “देह में गोश्त नहीं, लड़ने चला है शेर के बच्चे से! सरकार इतना समझा रहे हैं…!!”
रहा था।
“दुहाई सरकार, पत्थर पर माथा पटककर मर जाऊँगा… मिले हुकुम ! ” वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता
भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गए थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थी। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई-कोई लुट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था – “उसे लड़ने दिया जाए!”
अकेला चाँद सिंह मैदान में खड़ा व्यर्थ मुसकुराने की चेष्टा कर रहा था। पहली पकड़ में ही अपने प्रतिद्वंद्वी की शक्ति का अंदाज़ा उसे मिल गया था।
विवश होकर राजा साहब ने आज्ञा दे दी- “लड़ने दो!”
बाजे बजने लगे। दर्शकों में फिर उत्तेजना फैली। कोलाहल बढ़ गया। मेले के दुकानदार दुकान बंद
करके दौड़े- “चाँद सिंह की जोड़ी – चाँद की कुश्ती हो रही है !!”
‘चट्-धा, गिड़-धा, चट्-धा, गिड़-धा… ‘
भरी आवाज़ में एक ढोल- जो अब तक चुप था- बोलने लगा-
‘ढाक्-ढिना, ढाक्-ढिना, ढाक्-ढिना… ‘ (अर्थात्-वाह पट्टे ! वाह पट्टे !!)
लुट्टन को चाँद ने कसकर दबा लिया था।
-” अरे गया- गया !!” दर्शकों ने तालियाँ बजाई – “हलुआ हो जाएगा, हलुआ. ! हँसी-खेल नहीं शेर का बच्चा है… बच्चू!”
‘चट्-गिड़-धा, चट्-गिड़-धा, चट्-गिड़-धा… ‘
(मत डरना, मत डरना, मत डरना…)
लुट्टन की गर्दन पर केहुनी डालकर चाँद ‘चित्त’ करने की कोशिश कर रहा था।
“वहीं दफ़ना दे, बहादुर !” बादल सिंह अपने शिष्य को उत्साहित कर रहा था।
लुट्टन की आँखे बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने फटने को हो रही थी। राजमत, बहुमत चाँद के पक्ष में था। सभी चाँद को शाबाशी दे रहे थे। लुट्टन के पक्ष में सिर्फ़ ढोल की आवाज़ थी, जिसकी ताल पर वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था अपनी हिम्मत को बढ़ा रहा था। अचानक ढोल की एक पतली आवाज़ सुनाई पड़ी-
धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना…. !!’
लुट्टन को स्पष्ट सुनाई पड़ा, ढोल कह रहा था-“दाँव काटो, बाहर हो जा दाँव काटो, बाहर हो जा !!” लोगों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही, लुट्टन दाँव काटकर बाहर निकला और तुरंत लपककर उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।
” वाह रे मिट्टी के शेर !”
अच्छा! बाहर निकल आया? इसीलिए तो….।” जनमत बदल रहा था।
मोटी और भौंड़ी आवाज़ वाला ढोल बज उठा ‘चटाक् चट्-धा, चटाक् चट्-धा…’ (उठा पटक दे! उठा पटक दे!!)
लुट्टन ने चालाकी से दाँव और ज़ोर लगाकर चाँद को ज़मीन पर दे मारा।
‘धिना धिना धिक-धिना !’ (अर्थात् चित करो, चित करो !!)
लुट्टन ने अंतिम ज़ोर लगाया चाँद सिंह चारों खाने चित हो रहा।
धा-गिड़गिड़, धा- गिड़गिड़, धा- गिड़गिड़, … (वाह बहादुर ! वाह बहादुर !! वाह बहादुर !!) जनता यह स्थिर नहीं कर सकी कि किसकी जय-ध्वनि की जाए। फलतः अपनी-अपनी इच्छानुसार किसी ने’ माँ दुर्गा की’, ‘महावीर जी की’, कुछ ने राजा श्यामानंद की जय – ध्वनि की। अंत में सम्मिलित ‘जय !’ से
आकाश गूँज उठा।
विजयी लुट्टन कूदता – फाँदता, ताल ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की “हें हें… अरे रे !” किंतु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा- “जीते रहो, बहादुर ! तुमने मिट्टी की लाज रख ली !
पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा साहब ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुटन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज- पंडितों ने मुँह बिचकाया- “हुजूर ! जाति का … सिंह… !”
मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले-“हाँ सरकार, यह अन्याय है !”
राजा साहब ने मुसकुराते हुए सिर्फ़ इतना ही कहा – “उसने क्षत्रिय का काम किया है।”
उसी दिन से लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुँघाकर आसमान दिखा दिया।
काला खाँ के संबंध में यह बात मशहूर थी कि वह ज्यों ही लँगोट लगाकर ‘आ-ली’ कहकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर टूटता है, प्रतिद्वंद्वी पहलवान को लकवा मार जाता है लुट्टन ने उसको भी पटककर लोगों का भ्रम दूर कर दिया।
उसके बाद से वह राज दरबार का दर्शनीय ‘जीव’ ही रहा। चिड़ियाखाने में, पिंजड़े और ज़ंजीरों को झकझोर कर बाघ दहाड़ता-‘हाँ-ऊँ, हाँ-ऊँ !!’ सुनने वाले कहते- ‘राजा का बाघ बोला।’
ठाकुरबाड़े के सामने पहलवान गरजता ‘महावीर !’ लोग समझ लेते, पहलवान बोला।
मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह झूमता चलता। दुकानदारों को चुहल करने की सूझती। हलवाई अपनी दुकान पर बुलाता -“पहलवान काका! ताज़ा रसगुल्ला बना है, ज़रा नाश्ता कर लो!”
पहलवान बच्चों की सी स्वाभाविक हँसी हँसकर कहता “अरे तनी-मनी काहे ! ले आव डेढ़ सेर!” और बैठ जाता।
दो सेर रसगुल्ला को उदरस्थ करके, मुँह में आठ-दस पान की गिलोरियाँ ढूँस, ठुड्डी को पान के रस से लाल करते हुए अपनी चाल से मेले में घूमता। मेले से दरबार लौटने के समय उसकी अजीब हुलिया रहती – आँखों पर रंगीन अबरख का चश्मा, हाथ में खिलौने को नचाता और मुँह से पीतल की सीटी बजाता, हँसता हुआ वह वापस जाता। बल और शरीर की वृद्धि के साथ बुद्धि का परिणाम घटकर बच्चों की बुद्धि के बराबर ही रह गया था उसमें।
दंगल में ढोल की आवाज़ सुनते ही वह अपने भारी-भरकम शरीर का प्रदर्शन करना शुरु कर देता था। उसकी जोड़ी तो मिलती ही नहीं थी, यदि कोई उससे लड़ना भी चाहता तो राजा साहब लुट्टन को आज्ञा ही नहीं देते। इसलिए वह निराश होकर, लंगोट लगाकर देह में मिट्टी मल और उछालकर अपने को साँड़ या भैंसा साबित करता रहता था। बूढ़े राजा साहब देख-देखकर मुसकुराते रहते।
यों ही पंद्रह वर्ष बीत गए। पहलवान अजेय रहा। वह दंगल में अपने दोनों पुत्रों को लेकर उतरता था। पहलवान की सास पहले ही मर चुकी थी, पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी। दोनों लड़के पिता की तरह ही गठीले और तगड़े थे। दंगल में दोनों को देखकर लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता “वाह! बाप से भी बढ़कर निकलेंगे ऐ दोनों बेटे !”
दोनों ही लड़के राज- दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अतः दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रातः काल पहलवान स्वयं ढोलक बजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता-“समझे ! ढोलक की आवाज़ पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे ! ढोल की आवाज़ के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना, समझे!”… ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है, कब कैसा व्यवहार करना चाहिए, आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था।
किंतु उसकी शिक्षा-दीक्षा, सब किए-कराए पर एक दिन पानी फिर गया। वृद्ध राजा स्वर्ग सिधार गए। नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय शिथिलता आ गई थी, राजकुमार के आते ही दूर हो गई। बहुत से परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों की चपेटाघात में पड़ा पहलवान भी। दंगल का स्थान घोड़े की रेस ने लिया।
पहलवान तथा दोनों भावी पहलवानों का दैनिक भोजन-व्यय सुनते ही राजकुमार ने कहा- “टैरिबुल !” नए मैनेजर साहब ने कहा- “हौरिबुल!’
पहलवान को साफ़ जबाब मिल गया, राज दरबार में उसकी आवश्यकता नहीं। उसको गिड़गिड़ाने का भी मौका नहीं दिया गया।
उसी दिन वह ढोलक कंधे से लटकाकर, अपने दोनों पुत्रों के साथ अपने गाँव में लौट आया और वहीं रहने लगा। गाँव के एक छोर पर, गाँव वालों ने एक झोंपड़ी बाँध दी। वहीं रहकर वह गाँव के नौजवानों और चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। खाने-पीने का खर्च गाँववालों की ओर से बँधा हुआ था। सुबह-शाम वह स्वयं ढोलक बजाकर अपने शिष्यों और पुत्रों को दाँव-पेंच वगैरा सिखाया करता था।
गाँव के किसान और खेतिहर मज़दूर के बच्चे भला क्या खाकर कुश्ती सीखते ! धीरे-धीरे पहलवान का स्कूल खाली पड़ने लगा। अंत में अपने दोनों पुत्रों को ही वह ढोलक बजा-बजाकर लड़ाता रहा-सिखाता रहा। दोनों लड़के दिन भर मज़दूरी करके जो कुछ भी लाते, उसी में गुज़र होती रही।
अकस्मात गाँव पर यह वज्रपात हुआ। पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैज़े ने मिलकर गाँव को भूनना शुरु कर दिया।
गाँव प्रायः सूना हो चला था। घर के घर खाली पड़ गए थे। रोज़ दो-तीन लाशें उठने लगीं। लोगों में खलबली मची हुई थी। दिन में तो कलरव, हाहाकार तथा हृदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, शायद सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय होते ही लोग काँखते – कूँखते- कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे-
‘अरे क्या करोगी रोकर, दुलहिन ! जो गया सो तो चला गया, वह तुम्हारा नहीं था; वह जो है उसको तो देखो।”
‘भैया! घर में मुर्दा रखके कब तक रोओगे? कफ़न? कफ़न की क्या ज़रुरत है, दे आओ नदी में।” इत्यादि।
किंतु, सूर्यास्त होते ही जब लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते तो चूँ भी नहीं करते। उनकी बोलने की शक्ति भी जाती रहती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा!’ कहकर पुकारने की भी हिम्मत माताओं की नहीं होती थी।
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि उपचार- पथ्य- विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े बच्चे – जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन – शक्ति – शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
जिस दिन पहलवान के दोनों बेटे क्रूर काल की चपेटाघात में पड़े, असह्य वेदना से छटपटाते हुए दोनों ने कहा था- “बाबा ! उठा पटक दो वाला ताल बजाओ!’
‘चटाक् चट-धा, चटाक् चट धा… ‘ सारी रात ढोलक पीटता रहा पहलवान। बीच-बीच में पहलवानों की भाषा में उत्साहित भी करता था।” मारो बहादुर !”
प्रात:काल उसने देखा-उसके दोनों बच्चे ज़मीन पर निस्पंद पड़े हैं। दोनों पेट के बल पड़े हुए थे। एक ने दाँत से थोड़ी मिट्टी खोद ली थी। एक लंबी साँस लेकर पहलवान ने मुसकुराने की चेष्टा की थी- “दोनों बहादुर गिर पड़े !”
उस दिन पहलवान ने राजा श्यामानंद की दी हुई रेशमी जाँघिया पहन ली। सारे शरीर में मिट्टी मलकर थोड़ी कसरत की, फिर दोनों पुत्रों को कंधों पर लादकर नदी में बहा आया। लोगों ने सुना तो दंग रह गए। कितनों की हिम्मत टूट गई।
किंतु, रात में फिर पहलवान की ढोलक की आवाज़, प्रतिदिन की भाँति सुनाई पड़ी। लोगों की हिम्मत दुगुनी बढ़ गई। संतप्त पिता-माताओं ने कहा- “दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर पहलवान की हिम्मत तो देखो, डेढ़ हाथ का कलेजा है !”
चार-पाँच दिनों के बाद एक रात को ढोलक की आवाज़ नहीं सुनाई पड़ी। ढोलक नहीं बोली। पहलवान के कुछ दिलेर, किंतु रुग्ण शिष्यों ने प्रातः काल जाकर देखा – पहलवान की लाश ‘चित’ पड़ी है।
आँसू पोंछते हुए एक ने कहा- “गुरु जी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊँ तो चिता पर मुझे चित नहीं, पेट के बल सुलाना। मैं जिदंगी में कभी ‘चित’ नहीं हुआ। और चिता सुलगाने के समय ढोलक बजा देना।” वह आगे बोल नहीं सका।
कठिन शब्दों के सरल अर्थ
शब्द (Word) | हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) | बांग्ला अर्थ (Bangla Meaning) | अंग्रेजी अर्थ (English Meaning) |
भयार्त्त | भय से ग्रस्त, डरा हुआ | ভীত, আতঙ্কিত | Terrified, frightened |
निर्धूम | बिना धुआँ, धुएँ रहित | ধোঁয়াহীন, ধোঁয়া ছাড়া | Smokeless, without smoke |
सन्नाटा | गहन शांति, चुप्पी | নীরবতা, নিস্তব্ধতা | Silence, stillness |
निस्तब्धता | खामोशी, शांति | নীরবতা, নিস্তব্ধতা | Stillness, quietness |
करुण | दया से भरा, दुखद | করুণ, দুঃখজনক | Pitiful, sorrowful |
सिसकियाँ | रुक-रुक कर रोने की आवाज़ | ফোঁস ফোঁস শব্দ, কান্নার আওয়াজ | Sobs |
क्रंदन | रोना, ज़ोर से चिल्लाना | ক্রন্দন, উচ্চস্বরে কান্না | Crying, loud wail |
पेचक | उल्लू | পেঁচা | Owl |
टेर | पुकार, आवाज़ | ডাক, আওয়াজ | Call, shout |
ताड़ने | पहचानने, समझने की शक्ति | শনাক্ত করা, বোঝা | To perceive, to understand |
घूरों | कूड़े का ढेर | আবর্জনার স্তূপ | Heaps of rubbish |
गठरी | कपड़े या अन्य चीज़ों का बंडल | গাঁট, পুঁটুলি | Bundle, knot |
भीषणताओं | भयंकरताएँ, भयानक परिस्थितियाँ | ভয়াবহতা, ভয়ঙ্কর পরিস্থিতি | Horrors, severities |
ताल ठोककर | कुश्ती के लिए चुनौती देना | কুস্তির জন্য চ্যালেঞ্জ করা | Challenging (in wrestling), striking the thigh |
ललकारती | चुनौती देती हुई | চ্যালেঞ্জ করা, ডাক দেওয়া | Challenging, inciting |
संजीवनी शक्ति | जीवन-दायिनी शक्ति | সঞ্জীবনী শক্তি, জীবনদায়ী শক্তি | Life-giving power |
अनाथ | जिसके माता-पिता न हों | অনাথ, মা-বাবাহীন | Orphan |
धारोष्ण | सीधे पशु से निकला गर्म दूध | গরম দুধ, সবে দোয়ানো দুধ | Warm milk directly from the animal |
सुडौल | सुंदर आकार का, अच्छी बनावट वाला | সুগঠিত, সুন্দর গড়নের | Well-shaped, well-built |
मांसल | माँस से भरा, पुष्ट | পেশীবহুল, মাংসল | Muscular, fleshy |
दंगल | कुश्ती का अखाड़ा | কুস্তির আখড়া, মল্লযুদ্ধ ক্ষেত্র | Wrestling arena |
दाँव-पेंच | कुश्ती के तरीके और चालें | কুস্তির কৌশল, কসরত | Wrestling techniques and moves |
किलकारी | प्रसन्नता की तीव्र आवाज़ | উল্লাসের চিৎকার, আনন্দধ্বনি | Shriek of joy, triumphant cry |
दुलकी | छोटी दौड़, हल्की चाल | ছোট দৌড়, হালকা গতি | Short run, light pace |
पट्टों | पहलवान, योद्धा | পালোয়ান, যোদ্ধা | Wrestlers, strong men |
टायटिल | उपाधि, ख़िताब | খেতাব, উপাধি | Title |
प्रमाणित | सिद्ध करना | প্রমাণ করা, সত্য প্রতিপন্ন করা | To prove, to verify |
किंचित | थोड़ा, कुछ | সামান্য, কিছুটা | A little, somewhat |
स्पर्धा | प्रतियोगिता, होड़ | প্রতিযোগিতা, প্রতিদ্বন্দ্বিতা | Competition, rivalry |
बाज़ | एक शिकारी पक्षी | বাজপাখি | Hawk, falcon |
खलबली | अशांति, बेचैनी | চাঞ্চল্য, অস্থিরতা | Commotion, stir |
पैंतरा | कुश्ती की चाल, दाँव | কৌশল, চাল | Maneuver (in wrestling) |
तुंदिल नरपतियों | मोटे पेट वाले राजाओं | মোটা পেটওয়ালা রাজারা | Pot-bellied kings |
क्षम्य | क्षमा करने योग्य | ক্ষমাযোগ্য | Forgivable, excusable |
प्रज्ञता | बुद्धिमत्ता, ज्ञान | প্রজ্ঞা, জ্ঞান | Wisdom, sagacity |
विदग्ध | कुशल, निपुण | দক্ষ, নিপুণ | Expert, skilled |
कृषीवल | किसान, खेती करने वाला | কৃষক, চাষী | Farmer, cultivator |
निर्दलित | बिना दबाया हुआ | দলিত না করা, না পেষা | Uncrushed, undepressed |
ईक्षुदंड | गन्ने का डंठल | আখের ডাঁটা | Sugarcane stalk |
अनासक्ति | लगाव रहित, तटस्थता | অনাসক্তি, নিরপেক্ষতা | Detachment, disinterest |
अभ्रभेदी | आकाश को छूने वाला, बहुत ऊँचा | আকাশচুম্বী, অত্যুচ্চ | Sky-piercing, very high |
अतिक्रम | पार करना, उल्लंघन करना | অতিক্রম করা, লঙ্ঘন করা | To cross, to transgress |
चिलकती | चमकती हुई, तेज | ঝলমলে, তীব্র | Glistening, intense |
बवंडर | तूफान, चक्रवात | ঘূর্ণি ঝড়, সাইক্লোন | Tornado, whirlwind |
हुक उठती है | मन में तीव्र कसक उठना | মনের মধ্যে তীব্র কষ্ট হওয়া | A pang arises (in the heart) |
शिथिलता | ढीलापन, सुस्ती | শিথিলতা, অলসতা | Laxity, sluggishness |
चपेटाघात | अचानक वार, चपेट | আকস্মিক আঘাত, চপেটাঘাত | Sudden blow, slap |
टैरिबुल | भयानक, बहुत बुरा (अंग्रेजी से) | ভয়ঙ্কর, খুব খারাপ | Terrible |
हौरिबुल | भयानक, डरावना (अंग्रेजी से) | ভয়ঙ্কর, ভয়ানক | Horrible |
वज्रपात | बिजली गिरना, भारी आपदा | বজ্রপাত, গুরুতর বিপর্যয় | Thunderbolt, great calamity |
अनावृष्टि | वर्षा का अभाव, सूखा | অনাবৃষ্টি, খরা | Drought, lack of rain |
भूनना | जलाना, तबाह करना | ভাজা, ধ্বংস করা | To roast, to devastate |
कलरव | पक्षियों का चहचहाना, शोर | কলরব, পাখির কিচিরমিচির | Chirping (of birds), clamor |
हाहाकार | त्राहि-त्राहि, कोलाहल | হাহাকার, কোলাহল | Uproar, lamentation |
हृदय विदारक रुदन | हृदय को चीरने वाला रोना | হৃদয় বিদারক কান্না | Heart-rending cry |
दृष्टिगोचर | दिखाई देना, नज़र आना | দৃশ্যমান, চোখে পড়া | Visible, perceptible |
काँखते-कूँखते | खाँसते-खाँसते, कराहते हुए | কাশি করতে করতে, যন্ত্রণায় কাতরাতে কাতরাতে | Coughing and groaning |
ढाढ़स | दिलासा, हिम्मत बढ़ाना | সান্ত্বনা, সাহস বাড়ানো | Consolation, encouragement |
विभीषिका | भयानकता, दहशत | ভয়াবহতা, আতঙ্ক | Terror, horror |
अर्द्धमृत | आधा मरा हुआ | অর্ধমৃত | Half-dead |
पथ्य-विहीन | भोजन और उपचार रहित | পথ্যহীন, চিকিৎসা ও খাবার ছাড়া | Without diet and treatment |
स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं | धड़कन रहित नसें | স্পন্দনহীন স্নায়ু | Nerves devoid of pulsation |
सर्वनाश | पूरी तरह नष्ट करना | সর্বনাশ, সম্পূর্ণ ধ্বংস | Annihilation, total destruction |
चित | कुश्ती में पीठ के बल गिराना | চিত করা, পিঠের উপর ফেলানো | To pin down (in wrestling), on one’s back |
निस्पंद | बिना हलचल, शांत | নিশ্চল, শান্ত | Motionless, still |
जाँघिया | जाँघ तक का वस्त्र | জাঙ্গিয়া, প্যান্টের মতো পোশাক | Underwear, shorts |
दंग रह गए | आश्चर्यचकित हो गए | স্তম্ভিত হয়ে গেল | Were astonished, were stunned |
कलेजा | हृदय, हिम्मत | হৃদয়, সাহস | Heart, courage |
दिलेर | साहसी, हिम्मती | সাহসী, বীর | Brave, courageous |
रुग्ण | बीमार, रोगी | অসুস্থ, রোগগ্রস্ত | Sick, ill |
पितृहीन | पिता रहित, अनाथ | পিতৃহীন, অনাথ | Fatherless, orphan |
अनायास | बिना प्रयास के, सहज ही | অনায়াসে, সহজেই | Effortlessly, spontaneously |
गठीले | सुगठित, मज़बूत शरीर वाले | সুগঠিত, শক্তিশালী শরীরওয়ালা | Well-built, sturdy (body) |
भरण-पोषण | पालन-पोषण | ভরণপোষণ | Upbringing, sustenance |
सांसारिक ज्ञान | दुनियावी ज्ञान | জাগতিক জ্ঞান | Worldly knowledge |
क्षीण | कमज़ोर, दुर्बल | ক্ষীণ, দুর্বল | Weak, feeble |
अत्याचारी | ज़ुल्म करने वाला | অত্যাচারী | Oppressive, tyrannical |
दृष्टि | नज़र, निगाह | দৃষ্টি, নজর | Gaze, sight |
कीर्ति | यश, प्रसिद्धि | কীর্তি, খ্যাতি | Fame, renown |
पौष्टिक | पोषक तत्वों से भरपूर | পুষ্টিকর | Nutritious |
प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए | प्रसिद्धि बहुत बढ़ा दी | খ্যাতি অনেক বাড়িয়ে দিল | Enhanced reputation greatly |
मिट्टी सुँघाना | हराना, पराजित करना | পরাজিত করা | To defeat, to humiliate |
आसमान दिखाना | पराजित करना, हराना | পরাজিত করা | To defeat, to make one fall |
भ्रम | गलतफ़हमी | ভ্রম, ভুল ধারণা | Illusion, misconception |
दर्शनीय | देखने योग्य | দর্শনীয় | Worth seeing, spectacular |
झकझोर | हिलाना, कंपकंपाना | ঝাঁকান, কাঁপানো | To shake, to rattle |
ठाकुरबाड़े | मंदिर, धार्मिक स्थल | ঠাকুরবাড়ি, মন্দির | Temple, sacred place |
चोगा | लंबा ढीला वस्त्र | চোঙা, ঢিলেঢালা পোশাক | Loose long garment |
अस्त-व्यस्त | बिखरा हुआ, अव्यवस्थित | এলোমেলো, অগোছালো | Disheveled, unkempt |
चुहल | मज़ाक, हँसी-मज़ाक | ঠাট্টা, হাসি-মজা | Jest, banter |
उदरस्थ | पेट में डालना, खाना | উদরস্থ করা, খাওয়া | To consume, to eat |
गिलोरियाँ | पान की बनी हुई छोटी पुड़ियाँ | পানের খিলি | Small folded betel leaves |
ढूँस | भरना, ठूंसना | ভরা, ঠাসা | To stuff, to cram |
ठुड्डी | ठोड़ी | থুতনি | Chin |
हुलिया | वेशभूषा, शक्ल-सूरत | বেশভূষা, চেহারা | Appearance, get-up |
अबरख | एक खनिज, चमकीला पदार्थ | অভ্র | Mica |
सीटी | ध्वनि निकालने वाला एक यंत्र | বাঁশি, সিটি | Whistle |
दुर्बल | कमज़ोर, शक्तिहीन | দুর্বল, শক্তিহীন | Weak, frail |
घटाकर | कम करके | কমিয়ে | Reducing, decreasing |
साँड़ | बैल, वृषभ | ষাঁড় | Bull |
भैंसा | नर भैंस | মহিষ | Buffalo (male) |
अजेय | जिसे जीता न जा सके | অজেয়, যাকে জয় করা যায় না | Invincible, unconquerable |
गठीले | सुगठित, बलिष्ठ | সুগঠিত, পেশীবহুল | Well-built, sturdy |
तगड़े | मज़बूत, शक्तिशाली | শক্তিশালী, মোটা-সোটা | Strong, robust |
अनायास ही | बिना प्रयास के, स्वतः ही | অনায়াসে, স্বতঃস্ফূর্তভাবে | Effortlessly, spontaneously |
भावी | भविष्य का, होने वाला | ভাবী, ভবিষ্যৎ | Future, prospective |
दैनिक | रोज़ का, हर दिन का | দৈনিক, প্রতিদিনের | Daily |
व्यय | खर्च | ব্যয়, খরচ | Expense, cost |
गिड़गिड़ाने | विनती करने, गिड़गिड़ाने | অনুনয় করা, মিনতি করা | To plead, to beg |
अनुकूल | पक्ष में, उचित | অনুকূল, উপযুক্ত | Favorable, suitable |
अकस्मात | अचानक | অকস্মাৎ, হঠাৎ | Suddenly, unexpectedly |
वज्रपात | भारी संकट, आकाशीय बिजली | বজ্রপাত, মহাবিপদ | Thunderbolt, severe calamity |
अनावृष्टि | सूखा | অনাবৃষ্টি, খরা | Drought |
भूनना | जलाना, नष्ट करना | ভাজা, ধ্বংস করা | To roast, to destroy |
कलरव | शोरगुल, कोलाहल | কলরব, কোলাহল | Clamor, noise |
हाहाकार | चीख-पुकार | হাহাকার, আর্তনাদ | Uproar, lamentation |
हृदय विदारक रुदन | दिल दहला देने वाला रोना | হৃদয় বিদারক কান্না | Heart-rending cry |
दृष्टिगोचर | दिखाई देना | দৃশ্যমান, চোখে পড়া | Visible, perceptible |
काँखते-कूँखते | खाँसते-खाँसते, कराहते हुए | কাশি করতে করতে, যন্ত্রণায় কাতরাতে কাতরাতে | Coughing and groaning |
ढाढ़स देते | हिम्मत बँधाते हैं | সান্ত্বনা দেয়, সাহস যোগায় | Console, encourage |
कफ़न | मृत शरीर ढकने का कपड़ा | কাফন | Shroud |
विभीषिका | भयानकता | ভয়াবহতা | Terror, horror |
अर्द्धमृत | आधा मृत | অর্ধমৃত | Half-dead |
औषधि उपचार | दवा और इलाज | ঔষধ ও চিকিৎসা | Medicine and treatment |
पथ्य | रोग के लिए निर्धारित भोजन | পথ্য, রোগীর খাবার | Prescribed diet (for illness) |
संजीवनी शक्ति | जीवन-दायिनी शक्ति | সঞ্জীবনী শক্তি, জীবনদায়ী শক্তি | Life-giving power |
स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं | धड़कन रहित नसें | স্পন্দনহীন স্নায়ু | Nerves devoid of pulsation |
महामारी | बड़ी बीमारी, प्लेग | মহামারী, মড়ক | Epidemic, plague |
चपेटाघात | अचानक आघात | চপেটাঘাত, আকস্মিক আঘাত | Sudden blow, impact |
असह्य वेदना | असहनीय पीड़ा | অসহ্য যন্ত্রণা | Unbearable pain |
निस्पंद | शांत, गतिहीन | নিশ্চল, গতিহীন | Motionless, still |
उत्साहित | प्रोत्साहित करना | উৎসাহিত করা | To encourage, to motivate |
रेशमी जाँघिया | रेशम की जाँघिया | রেশমের জাঙ্গিয়া | Silk shorts |
मिट्टी मलकर | शरीर पर मिट्टी लगाकर | গায়ে মাটি মেখে | Rubbing mud on the body |
दंग रह गए | आश्चर्यचकित रह गए | স্তম্ভিত হয়ে গেল | Were astonished |
संतप्त | दुखी, पीड़ित | সন্তপ্ত, দুঃখিত | Grieved, afflicted |
डेढ़ हाथ का कलेजा | बहुत साहसी, अत्यधिक हिम्मत वाला | খুব সাহসী, বিশাল সাহস | Very courageous, extremely brave |
दिलेर | साहसी | সাহসী | Brave, bold |
रुग्ण | बीमार | অসুস্থ | Sick, ill |
चित | पीठ के बल गिरा हुआ | চিত, চিৎপাত | Lying on one’s back (in wrestling) |
पेट के बल | पेट के सहारे, औंधा | পেটের উপর, উপুড় করে | On one’s stomach, face down |
ज़िंदगी में कभी ‘चित’ नहीं हुआ | जीवन में कभी पराजित नहीं हुआ | জীবনে কখনো পরাজিত হয়নি | Never been defeated in life |
चिता सुलगाने | चिता जलाने | চিতায় আগুন লাগানো | Lighting the pyre |
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का सामान्य परिचय
यह कहानी कथाकार रेणु की समस्त विशेषताओं को एक साथ अभिव्यक्त करती है। रेणु की लेखनी में अपने गाँव, अंचल एवं संस्कृति को सजीव करने की अद्भुत क्षमता है। ऐसा लगता है मानो हरेक पात्र वास्तविक जीवन ही जी रहा हो। पात्रों एवं परिवेश का इतना सच्चा चित्रण अत्यंत दुर्लभ है। रेणु वैसे गिने-चुने कथाकारों में से हैं जिन्होंने गघ में भी संगीत पैदा कर दिया है, अन्यथा ढोलक की उठती-गिरती आवाज़ और पहलवान के क्रियाकलापों का ऐसा सामंजस्य दुर्लभ है।
इन विशेषताओं के साथ रेणु की यह कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। राजा साहब की जगह नए राजकुमार का आकर जम जाना सिर्फ़ व्यक्तिगत सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि ज़मीनी पुरानी व्यवस्था के पूरी तरह उलट जाने और उस पर सभ्यता के नाम पर एकदम नयी व्यवस्था के आरोपित हो जाने का प्रतीक है। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने की समस्या है, जो लुट्टन पहलवान को लोक-कलाकार के आसन से उठा कर पेट-भरने के लिए हाय-तौबा करने वाली निरीहता की भूमि पर पटक देती है। ऐसी स्थिति में गाँव की गरीबी पहलवानी जैसे शौक को क्या पालती? फिर भी, पहलवान जीवट ढोल के बोल में अपने आपको न सिर्फ़ जिलाए रखता है, बल्कि भूख व महामारी से दम तोड़ रहे गाँव को मौत से लड़ने की ताकत भी देते रहता है। कहानी के अंत में भूख-महामारी की शक्ल में आए मौत के षड्यंत्र जब अजेय लुट्टन की भरी-पूरी पहलवानी को फटे ढोल की पोल में बदल देते हैं, तो इस करुणा/त्रासदी में लु ‘ न हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाता है। वह पोल पुरानी व्यवस्था की है या नयी व्यवस्था की? क्या कला की प्रासंगिकता व्यवस्था की मुखापेक्षी है अथवा उसका कोई स्वतंत्र मूल्य भी है? मनुष्यता की साधना और जीवन-सौंदर्य के लिए लोक कलाओं को प्रासंगिक बनाए रखने हेतु हमारी क्या भूमिका हो सकती है? निश्चय ही यह पाठ हमारे मन में कई ऐसे प्रश्न छोड़ जाता है।
पहलवान की ढोलक – सारांश
श्यामनगर के समीप का एक गाँव सरदी के मौसम में मलेरिया और हैजे से ग्रस्त था। चारों ओर सन्नाटे से युक्त बाँस-फूस की झोंपड़ियाँ खड़ी थीं। रात्रि में घना अँधेरा छाया हुआ था। चारों ओर करुण सिसकियों और कराहने की आवाजें गूँज रही थीं। सियारों और पेचक की भयानक आवाजें इस सन्नाटे को बीच-बीच में अवश्य थोड़ा-सा तोड़ रही थीं। इस भयंकर सन्नाटे में कुत्ते समूह बाँधकर रो रहे थे। रात्रि भीषणता और सन्नाटे से युक्त थी, लेकिन लुट्टन पहलवान की ढोलक इस भीषणता को तोड़ने का प्रयास कर रही थी। इसी पहलवान की ढोलक की आवाज इस भीषण सन्नाटे से युक्त मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भर रही थी।
लुट्टन सिंह के माता-पिता नौ वर्ष की अवस्था में ही उसे छोड़कर चले गए थे। उसकी बचपन में शादी हो चुकी थी, इसलिए विधवा सास ने ही उसका पालन-पोषण किया। ससुराल में पलते-बढ़ते वह पहलवान बन गया था। एक बार श्यामनगर में एक मेला लगा। मेले के दंगल में लुट्टन सिंह ने एक पंजाब के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को चुनौती दे डाली, जो शेर के बच्चे के नाम से जाना जाता था। श्यामनगर के राजा ने बहुत कहने के बाद ही लुट्टन सिंह को उस पहलवान के साथ लड़ने की आज्ञा दी, क्योंकि वह एक बहुत प्रसिद्ध पहलवान था।
लुट्टन सिंह ने ढोलक की ‘धिना धिना धिकधिना’, आवाज से प्रेरित होकर चाँद सिंह पहलवान को बड़ी मेहनत के बाद चित कर दिया। चाँद सिंह के हारने के बाद लुट्टन सिंह की जय-जयकार होने लगी और वह लुट्टन सिंह पहलवान के नाम से प्रसिद्ध हो गया। राजा ने उसकी वीरता से प्रभावित होकर उसे अपने दरबार में रख लिया। अब लुट्टन सिंह की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। लुट्टन सिंह पहलवान की पत्नी भी दो पुत्रों को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई थी।
लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों को भी पहलवान बनाना चाहता था, इसलिए वह बचपन से ही उन्हें कसरत आदि करवाने लग गया। उसने बेटों को दंगल की संस्कृति का पूरा ज्ञान दिया। लेकिन दुर्भाग्य से एक दिन उसके वयोवृद्ध राजा श्यामानंद का स्वर्गवास हो गया। तत्पश्चात् विलायत से नए महाराज आए। राज्य की गद्दी संभालते ही नए राजा साहब ने अनेक परिवर्तन कर दिए।
दंगल का स्थान घोड़ों की रेस ने ले लिया। बेचारे लुट्टन सिंह पहलवान पर कुठाराघात हुआ। वह हतप्रभ रह गया। राजा के इस रवैये को देखकर लुट्टन सिंह अपनी ढोलक कंधे में लटकाकर बच्चों सहित अपने गाँव वापस लौट आया। वह गाँव के एक किनारे पर झोंपड़ी में रहता हुआ नौजवानों और चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। गाँव के किसान व खेतिहर मजदूर भला क्या कुश्ती सीखते।
अचानक गाँव में अनावृष्टि अनाज की कमी, मलेरिया, हैजे आदि भयंकर समस्याओं का वज्रपात हुआ। चारों ओर लोग भूख, हैजे और मलेरिये से मरने लगे। सारे गाँव में तबाही मच गई। लोग इस त्रासदी से इतना डर गए कि सूर्यास्त होते ही अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे। रात्रि की विभीषिका और सन्नाटे को केवल लट्टन सिंह पहलवान की ढोलक की तान ही ललकारकर चुनौती देती थी। यही तान इस भीषण समय में धैर्य प्रदान करती थी। यही तान शक्तिहीन गाँववालों में संजीवनी शक्ति भरने का कार्य करती थी। पहलवान के दोनों बेटे भी इसी भीषण विभीषिका के शिकार हुए। प्रातः होते ही पहलवान ने अपने दोनों बेटों को निस्तेज पाया। बाद में वह अशांत मन से दोनों को उठाकर नदी में बहा आया। लोग इस बात को सुनकर दंग रह गए। इस असह्य वेदना और त्रासदी से भी पहलवान नहीं टूटा। एक दिन गाँव वालों को लुट्टन पहलवान की ढोलक रात में नहीं सुनाई दी। सुबह उसके कुछ शिष्यों ने जाकर देखा तो पहलवान की लाश चित्त पड़ी हुई थी।
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ पर बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- कहानी का समय कौन सा बताया गया है?
क. गर्मी का दिन
ख. जाड़े का दिन
ग. बारिश का दिन
घ. वसंत का दिन
उत्तर – ख.
- रात का प्रकार क्या था?
क. पूर्णिमा की
ख. अमावस्या की
ग. चंद्र ग्रहण की
घ. सूर्य ग्रहण की
उत्तर – ख.
- गाँव किस बीमारी से पीड़ित था?
क. मलेरिया और हैजा
ख. बुखार और खांसी
ग. डेंगू और चिकनगुनिया
घ. टाइफाइड
उत्तर – क.
- गाँव की झोंपड़ियों का वर्णन क्या था?
क. सुंदर और मजबूत
ख. पुरानी और उजड़ी
ग. नई और चमकदार
घ. पक्की और साफ
उत्तर – ख.
- आकाश में क्या चमक रहा था?
क. चाँद
ख. तारे
ग. बिजली
घ. बादल
उत्तर – ख.
- पृथ्वी पर क्या नहीं था?
क. अंधेरा
ख. प्रकाश
ग. सन्नाटा
घ. ठंड
उत्तर – ख.
- निस्तब्धता को कौन भंग करता था?
क. पक्षियों की चहचहाहट
ख. सियारों का क्रंदन
ग. हवा का बहना
घ. बारिश की बूंदें
उत्तर – ख.
- कुत्तों का व्यवहार दिन में कैसा था?
क. भौंकते थे
ख. राख पर सिकुड़कर पड़े थे
ग. दौड़ते थे
घ. खेलते थे
उत्तर – ख.
- रात को कौन सी आवाज़ गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थी?
क. घंटी की
ख. ढोलक की
ग. शंख की
घ. घड़ी की
उत्तर – ख.
- लुट्टन सिंह का दावा क्या था?
क. पूरा भारत उसे जानता है
ख. केवल गाँव उसे जानता है
ग. जिला उसे जानता है
घ. शहर उसे जानता है
उत्तर – क.
- लुट्टन के माता-पिता कब मरे?
क. उसकी शादी के बाद
ख. उसकी नौ वर्ष की उम्र में
ग. उसकी जवानी में
घ. उसकी बुढ़ापे में
उत्तर – ख.
- लुट्टन को किसने पाला?
क. चाचा
ख. विधवा सास
ग. दोस्त
घ. गुरु
उत्तर – ख.
- लुट्टन ने कसरत क्यों शुरू की?
क. स्वास्थ्य के लिए
ख. बदला लेने के लिए
ग. प्रसिद्धि के लिए
घ. खेल के लिए
उत्तर – ख.
- लुट्टन ने किसे चुनौती दी?
क. बादल सिंह
ख. शेर के बच्चे
ग. राजा साहब
घ. मैनेजर साहब
उत्तर – ख.
- शेर के बच्चे का असल नाम क्या था?
क. लुट्टन सिंह
ख. चाँद सिंह
ग. बादल सिंह
घ. श्याम सिंह
उत्तर – ख.
- शेर के बच्चे का गुरु कौन था?
क. लुट्टन सिंह
ख. बादल सिंह
ग. राजा साहब
घ. मैनेजर साहब
उत्तर – ख.
- राजा साहब ने लुट्टन को क्या दिया?
क. ढोलक
ख. दस रुपये
ग. तलवार
घ. घोड़ा
उत्तर – ख.
- लुट्टन की जीत में किसकी मुख्य भूमिका थी?
क. राजा साहब
ख. ढोलक
ग. दर्शक
घ. मैनेजर साहब
उत्तर – ख.
- लुट्टन ने राजा साहब के साथ क्या किया?
क. झगड़ा किया
ख. गोद में उठाया
ग. नजरअंदाज किया
घ. माफी मांगी
उत्तर – ख.
- राजा साहब ने लुट्टन को क्या कहा?
क. तुम पागल हो
ख. तुमने मिट्टी की लाज रखी
ग. तुम हार गए
घ. तुम चले जाओ
उत्तर – ख.
- लुट्टन की प्रसिद्धि कैसे बढ़ी?
क. पौष्टिक भोजन और व्यायाम से
ख. धन से
ग. जादू से
घ. शत्रुओं से
उत्तर – क.
- काला खाँ से संबंधित कौन सी बात मशहूर थी?
क. उसकी हार
ख. उसका लकवा मारना
ग. उसकी ताकत
घ. उसका डर
उत्तर – ख.
- लुट्टन का व्यवहार मेले में कैसा था?
क. गंभीर
ख. बच्चों जैसा
ग. क्रोधित
घ. उदास
उत्तर – ख.
- लुट्टन के कितने पुत्र थे?
क. एक
ख. दो
ग. तीन
घ. चार
उत्तर – ख.
- नए राजकुमार ने क्या परिवर्तन किया?
क. ढोलक का उपयोग
ख. दंगल का स्थान घोड़े की रेस
ग. पहलवानों की संख्या
घ. भोजन का समय
उत्तर – ख.
- गाँव पर कौन सी आपदा आई?
क. बाढ़
ख. अनावृष्टि और महामारी
ग. भूकंप
घ. आग
उत्तर – ख.
- लुट्टन के पुत्रों की मृत्यु कैसे हुई?
क. दुर्घटना में
ख. महामारी से
ग. युद्ध में
घ. भूख से
उत्तर – ख.
- लुट्टन ने अपने पुत्रों को कहाँ बहाया?
क. नदी में
ख. कुएँ में
ग. तालाब में
घ. समुद्र में
उत्तर – क.
- पहलवान की मृत्यु के बाद क्या हुआ?
क. ढोलक बजी
ख. ढोलक चुप रही
ग. लोग रोए
घ. राजा आए
उत्तर – ख.
- पहलवान ने मृत्यु के लिए क्या इच्छा जताई?
क. चिता पर फूल
ख. पेट के बल सुलाना
ग. ढोलक बजाना
घ. मंदिर में ले जाना
उत्तर – ख.
शिरीष के फूल पाठ पर आधारित एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – अमावस्या की रात गाँव का क्या हाल था?
उत्तर – गाँव भय, रोग और सन्नाटे से काँप रहा था। - प्रश्न – गाँव की झोंपड़ियों में कैसा साम्राज्य था?
उत्तर – अंधकार और निस्तब्धता का सम्मिलित साम्राज्य था। - प्रश्न – गाँव में संजीवनी शक्ति किसकी वजह से महसूस होती थी?
उत्तर – पहलवान की ढोलक की आवाज़ से। - प्रश्न – लुट्टन सिंह पहलवान की पहचान कहाँ तक थी?
उत्तर – वह जिले भर में प्रसिद्ध था। - प्रश्न – लुट्टन पहलवान को पहलवानी का अभ्यास क्यों करने लगा था?
उत्तर – लोगों से बदला लेने की भावना से। - प्रश्न – लुट्टन पहली बार दंगल में कहाँ गया था?
उत्तर – श्यामनगर मेले में। - प्रश्न – चाँद सिंह को किस उपाधि से जाना जाता था?
उत्तर – ‘शेर के बच्चे’ के नाम से। - प्रश्न – चाँद सिंह ने लुट्टन की चुनौती पर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर – उसने मुस्कुराकर उसे स्वीकार किया और उस पर टूट पड़ा। - प्रश्न – लुट्टन को ढोलक की आवाज़ दंगल में क्या प्रेरणा देती थी?
उत्तर – हिम्मत, साहस और ज़ोर लगाने की प्रेरणा। - प्रश्न – लुट्टन ने चाँद सिंह को किस दाँव से हराया?
उत्तर – दाँव काटकर और ज़ोर लगाकर उसे चित्त कर दिया। - प्रश्न – लुट्टन ने जीतने के बाद सबसे पहले क्या किया?
उत्तर – ढोलकों को श्रद्धा से प्रणाम किया। - प्रश्न – राजा साहब ने लुट्टन को क्या उपाधि दी?
उत्तर – राज-पहलवान की। - प्रश्न – लुट्टन की प्रसिद्धि किस कारण और कहाँ तक फैल गई?
उत्तर – राजा साहब के संरक्षण और विजय से, दूर-दूर तक। - प्रश्न – काला खाँ के विरुद्ध लड़कर लुट्टन ने क्या सिद्ध किया?
उत्तर – कि वह अजेय पहलवान है और डर फैलाने वाले भी हारे जा सकते हैं। - प्रश्न – लुट्टन के साथ उसके दोनों बेटे कहाँ लड़ते थे?
उत्तर – दंगल में। - प्रश्न – लुट्टन अपने बेटों को किसकी प्रेरणा से कुश्ती सिखाता था?
उत्तर – ढोलक की आवाज़ से। - प्रश्न – लुट्टन के गुरु कौन थे, उसकी मान्यता के अनुसार?
उत्तर – उसकी ढोलक। - प्रश्न – लुट्टन को दरबार से क्यों निकाला गया?
उत्तर – नए राजकुमार के आने के बाद दंगल की जगह घुड़दौड़ शुरू हुई और पहलवान अनावश्यक मान लिया गया। - प्रश्न – दरबार से निकालने के बाद लुट्टन कहाँ गया?
उत्तर – अपने गाँव लौट आया। - प्रश्न – गाँव लौटने के बाद लुट्टन क्या करता था?
उत्तर – नौजवानों और बेटों को कुश्ती सिखाता था। - प्रश्न – गाँव में आपदा आने के बाद क्या हुआ?
उत्तर – महामारी और भूख से गाँव खाली होने लगा और लोग मरने लगे। - प्रश्न – संकट के समय गाँव में किसकी आवाज़ हिम्मत देती थी?
उत्तर – पहलवान की ढोलक की। - प्रश्न – लुट्टन के बेटे मरते समय क्या सुनना चाहते थे?
उत्तर – ‘उठा पटक दो’ वाला ढोलक की ताल। - प्रश्न – लुट्टन ने बेटे मरने के बाद क्या किया?
उत्तर – दोनों को नदी में बहाया और रात को फिर ढोलक बजाई। - प्रश्न – लोगों ने लुट्टन के हौसले को क्या कहा?
उत्तर – डेढ़ हाथ का कलेजा। - प्रश्न – पहलवान की मृत्यु कब हुई?
उत्तर – जब कुछ दिनों बाद ढोलक की आवाज़ सुनाई नहीं दी। - प्रश्न – पहलवान ने अपनी चिता के लिए क्या इच्छा जताई थी?
उत्तर – पेट के बल सुलाने की और ढोलक बजाने की। - प्रश्न – पहलवान की जीवन शक्ति किस चीज़ से जुड़ी थी?
उत्तर – ढोलक की आवाज़ से। - प्रश्न – राजा साहब ने पहलवान को सिंह कहने पर क्या कहा था?
उत्तर – “उसने क्षत्रिय का काम किया है।” - प्रश्न – पाठ के अनुसार लुट्टन की सबसे बड़ी ताकत क्या थी?
उत्तर – आत्मविश्वास, ढोलक की प्रेरणा और अडिग साहस।
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ पर आधारित दो-तीन वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
- प्रश्न – गाँव में फैली महामारी का क्या प्रभाव था?
उत्तर – गाँव में मलेरिया और हैजे का भयंकर प्रकोप था। चारों ओर अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था, जिससे गाँव भयाक्रांत शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। रातें कराहने, कै करने और बच्चों के रोने की आवाज़ों से भरी थीं, जिससे गाँव की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी।
- प्रश्न – रात्रि की निस्तब्धता को कौन भंग करता था?
उत्तर – रात्रि की भयावह निस्तब्धता को सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज़ें कभी-कभी भंग कर देती थीं। इसके अतिरिक्त, गाँव की झोपड़ियों से मरीजों की कराहने और कै करने की आवाज़ें, तथा बच्चों के “माँ-माँ” पुकार कर रोने की आवाज़ें भी सुनाई देती थीं।
- प्रश्न – ढोलक की आवाज़ मृत गाँव में संजीवनी शक्ति कैसे भरती थी?
उत्तर – पहलवान की ढोलक की “चट्-धा, गिड़-धा” और “चटाक् चट्-धा” की आवाज़ें अंधेरी और भयावह रात में मृतप्राय गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थीं। यह आवाज़ लोगों को हिम्मत देती थी और उनमें जीवन की आशा का संचार करती थी, जिससे वे भयानक परिस्थितियों का सामना कर पाते थे।
- प्रश्न – लुट्टन सिंह के माता-पिता का देहांत कब हुआ और उसके बाद उसका पालन-पोषण किसने किया?
उत्तर – लुट्टन सिंह के माता-पिता का देहांत उसके नौ वर्ष की उम्र में ही हो गया था, जिससे वह अनाथ हो गया। सौभाग्य से उसकी शादी हो चुकी थी, इसलिए उसकी विधवा सास ने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया। इसी समय से लुट्टन ने अपनी कसरत की धुन शुरू की थी।
- प्रश्न – लुट्टन के कसरत करने का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर – लुट्टन के कसरत करने का मुख्य कारण गाँव के लोगों से बदला लेना था। गाँव के लोग उसकी विधवा सास को तरह-तरह से परेशान करते थे, जिससे लुट्टन के मन में बदला लेने की भावना जागी और उसने अपनी शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए कसरत करना शुरू कर दिया।
- प्रश्न – चाँद सिंह कौन था और उसे ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि क्यों मिली थी? उत्तर – चाँद सिंह पंजाब का एक प्रसिद्ध पहलवान था और गुरु बादल सिंह का शिष्य था। श्यामनगर मेले में उसने तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के सभी पट्टों को पछाड़ दिया था, जिसके कारण उसे ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि मिली थी।
- प्रश्न – लुट्टन ने दंगल में चाँद सिंह को चुनौती क्यों दी?
उत्तर – लुट्टन सिंह ने श्यामनगर मेले में दंगल में पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर खुद को रोक नहीं पाया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती आवाज़ ने उसकी नसों में जोश भर दिया, जिसके कारण उसने बिना सोचे-समझे चाँद सिंह को चुनौती दे दी।
- प्रश्न – राजा साहब ने लुट्टन को कुश्ती लड़ने से रोकने की कोशिश क्यों की?
उत्तर – राजा साहब ने लुट्टन को कुश्ती लड़ने से रोकने की कोशिश की क्योंकि उन्हें लगा कि लुट्टन के शरीर में चाँद सिंह जैसे ‘शेर के बच्चे’ से लड़ने जितना बल नहीं है। वे उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए उसे दस रुपये का नोट देकर वापस घर जाने को कहने लगे, ताकि उसे कोई चोट न लगे।
- प्रश्न – लुट्टन ने राजा साहब की आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया?
उत्तर – लुट्टन ने राजा साहब की आज्ञा का उल्लंघन किया क्योंकि उसे कुश्ती लड़ने की धुन सवार थी। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि वह पत्थर पर माथा पटककर मर जाएगा, लेकिन कुश्ती अवश्य लड़ेगा। उसकी लगन और जुनून ने उसे राजा साहब की बात मानने नहीं दी।
- प्रश्न – ढोल की आवाज़ ने लुट्टन को किस प्रकार प्रेरित किया?
उत्तर – ढोल की आवाज़ लुट्टन के लिए गुरु के समान थी। जब वह चाँद सिंह से पराजित होने वाला था, तो ढोल की पतली आवाज़ “दाँव काटो, बाहर हो जा” सुनकर उसने दाँव काटा और चाँद सिंह को पटक दिया। ढोल की तालों ने उसे हर कदम पर प्रोत्साहित किया और हिम्मत बढ़ाई।
- प्रश्न – चाँद सिंह की हार के बाद जनता की प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर – चाँद सिंह की हार के बाद जनता में आश्चर्य और उत्साह का मिला-जुला माहौल था। लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि किसकी जय-ध्वनि करें। अंत में, “माँ दुर्गा की,” “महावीर जी की,” और “राजा श्यामानंद की” जय-जयकार के साथ आकाश गूँज उठा, जो लुट्टन की जीत का प्रतीक था।
- प्रश्न – लुट्टन को राज-दरबार में कैसे जगह मिली?
उत्तर – चाँद सिंह को हराने के बाद, राजा श्यामानंद ने लुट्टन की बहादुरी से प्रसन्न होकर उसे पुरस्कृत किया और अपने दरबार में हमेशा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन ‘राज-पहलवान’ बन गया और राजा साहब उसे ‘लुट्टन सिंह’ कहकर पुकारने लगे।
- प्रश्न – राज-पंडितों और मैनेजर साहब ने लुट्टन को ‘सिंह’ की उपाधि दिए जाने का विरोध क्यों किया?
उत्तर – राज-पंडितों ने लुट्टन की जाति को लेकर आपत्ति जताई, क्योंकि वह क्षत्रिय नहीं था। मैनेजर साहब, जो स्वयं क्षत्रिय थे, ने भी इसे अन्याय बताया। वे नहीं चाहते थे कि एक सामान्य जाति के व्यक्ति को ‘सिंह’ जैसी क्षत्रिय उपाधि मिले, जिससे उनकी जातिगत श्रेष्ठता पर सवाल उठे।
- प्रश्न – लुट्टन सिंह की प्रसिद्धि कैसे बढ़ी?
उत्तर – राज-पहलवान बनने के बाद, लुट्टन को पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम मिला, साथ ही राजा साहब की स्नेह-दृष्टि भी प्राप्त हुई। इन सबने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। उसने एक-एक करके सभी नामी पहलवानों को हराया, जिससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।
- प्रश्न – काला खाँ के विषय में क्या बात मशहूर थी और लुट्टन ने उसका भ्रम कैसे दूर किया?
उत्तर – काला खाँ के बारे में यह बात मशहूर थी कि वह लँगोट लगाकर “आ-ली” कहकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर टूटता था, तो पहलवान को लकवा मार जाता था। लुट्टन ने उसे भी पटककर लोगों के इस भ्रम को दूर कर दिया, जिससे उसकी शक्ति और भी प्रमाणित हुई।
- प्रश्न – लुट्टन का व्यवहार बच्चों जैसा क्यों हो गया था?
उत्तर – बल और शरीर की वृद्धि के साथ, लुट्टन की बुद्धि का विकास रुक गया था, और वह बच्चों जैसी बुद्धि का ही रह गया था। वह मेलों में बच्चों की तरह खिलौने नचाता, सीटी बजाता और बेफिक्री से घूमता था, जिससे उसका व्यवहार बच्चों जैसा प्रतीत होता था।
- प्रश्न – वृद्ध राजा के स्वर्ग सिधारने के बाद लुट्टन के जीवन में क्या बदलाव आया?
उत्तर – वृद्ध राजा के स्वर्ग सिधारने के बाद नए राजकुमार ने राज्य का कार्यभार संभाला। उन्होंने दंगल का स्थान घोड़े की रेस से बदल दिया और पहलवान तथा उसके पुत्रों के भोजन-व्यय को ‘टेरिबल’ व ‘हॉरिबल’ बताया। इससे लुट्टन को राज दरबार से साफ जवाब मिल गया और उसे वापस गाँव लौटना पड़ा।
- प्रश्न – गाँव लौटने के बाद लुट्टन ने क्या काम किया?
उत्तर – गाँव लौटने के बाद लुट्टन ने गाँव के नौजवानों और चरवाहों को कुश्ती सिखाना शुरू कर दिया। गाँव वालों ने उसे रहने के लिए एक झोपड़ी बांध दी और उसके खाने-पीने का खर्च भी तय कर दिया। वह सुबह-शाम खुद ढोलक बजाकर शिष्यों और बेटों को दाँव-पेंच सिखाता था।
- प्रश्न – गाँव में फैली महामारी के दौरान ढोलक की भूमिका क्या थी?
उत्तर – गाँव में फैली महामारी के दौरान, जब लोग भय और निराशा से घिरे थे, तो पहलवान की ढोलक की आवाज़ ही एकमात्र आशा की किरण थी। यह ढोलक मरते हुए प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरती थी, जिससे उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता था और वे शांति से आँखें मूँद पाते थे।
- प्रश्न – पहलवान की मृत्यु कैसे हुई और उसने चिता के बारे में क्या इच्छा जताई थी?
उत्तर – पहलवान के दोनों बेटों की मृत्यु के बाद भी वह ढोलक बजाता रहा, लेकिन एक रात ढोलक की आवाज़ नहीं आई। अगले दिन सुबह उसके शिष्यों ने देखा कि वह चित्त पड़ा हुआ था। पहलवान ने मरने से पहले कहा था कि उसे चिता पर पेट के बल सुलाया जाए, क्योंकि वह जीवन में कभी चित्त नहीं हुआ था, और चिता जलाते समय ढोलक बजाई जाए।
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ पर आधारित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कहानी में गाँव की स्थिति का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – कहानी में गाँव को जाड़े की अमावस्या रात में ठंडा और काला दर्शाया गया है, जहाँ मलेरिया और हैजा ने भय और पीड़ा फैलाई है। पुरानी बाँस-फूस की झोंपड़ियाँ अंधकार और सन्नाटे से भरी हैं। रात चुपचाप आँसू बहाती है, निस्तब्धता कराहों को दबाती है, और सियारों का क्रंदन वातावरण को भयावह बनाता है। यह गाँव को एक मृतप्राय और दुखी शिशु की तरह प्रस्तुत करता है, जो सहायता की प्रतीक्षा में है।
- पहलवान की ढोलक का गाँव के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर – पहलवान की ढोलक गाँव में संजीवनी शक्ति का प्रतीक है, जो रात्रि की भीषणता को ललकारती है। संध्या से प्रातः तक बजती रहती है, “चट्-धा, गिड़-धा” और “चटाक्-चट्-धा” की ताल से लोगों में हिम्मत जगाती है। यह मृतप्राय गाँव में जीवन का संचार करती है, दंगल के दृश्य याद दिलाती है, और मृत्यु के भय को कम करती है। ढोलक की आवाज़ लोगों को प्रेरित करती है, भले ही वह बीमारी को ठीक न कर सके।
- लुट्टन सिंह के जीवन में ढोलक की भूमिका क्या रही?
उत्तर – लुट्टन सिंह के लिए ढोलक उसका गुरु और प्रेरणा स्रोत रही। बचपन में कसरत से शुरू हुआ उसका सफर ढोल की ताल पर आगे बढ़ा। श्यामनगर में चाँद सिंह से लड़ाई में ढोल ने उसे दाँव काटने और जीतने की प्रेरणा दी। उसने अपने पुत्रों को भी ढोल की ताल पर प्रशिक्षित किया। अंत में, पुत्रों की मृत्यु के बाद भी ढोलक बजाकर वह गाँव की हिम्मत बढ़ाता रहा, जो उसके जीवन का आधार बना।
- लुट्टन और चाँद सिंह की कुश्ती का वर्णन कैसे है?
उत्तर – लुट्टन और चाँद सिंह की कुश्ती श्यामनगर मेले में हुई, जहाँ चाँद ने शुरू में लुट्टन को दबा लिया था। दर्शक चाँद की जीत पर उत्साहित थे, पर ढोल की ताल “दाँव काटो, बाहर हो जा” ने लुट्टन को प्रेरित किया। उसने चतुराई से चाँद को पछाड़कर चित कर दिया। यह कुश्ती हिम्मत और चालाकी का प्रतीक बनी, जहाँ लुट्टन की जीत ने उसे राज-पहलवान बना दिया और जनता का सम्मान अर्जित किया।
- राजा साहब ने लुट्टन के प्रति कैसा व्यवहार किया?
उत्तर – राजा साहब ने शुरू में लुट्टन को चाँद से लड़ने से रोका और दस रुपये देकर घर भेजने की कोशिश की, पर उसकी हिम्मत देखकर आज्ञा दे दी। जीत के बाद उन्होंने उसे छाती से लगाकर “मिट्टी की लाज रखने” की प्रशंसा की और दरबार में रख लिया। मैनेजर और पंडितों की आपत्ति के बावजूद राजा ने उसे “क्षत्रिय का काम” कहकर सम्मान दिया, जो लुट्टन की वफादारी और साहस को दर्शाता है।
- गाँव पर आई आपदा का प्रभाव क्या था?
उत्तर – गाँव पर अनावृष्टि, अन्न की कमी, मलेरिया और हैजा ने वज्रपात सा प्रभाव डाला। घर खाली हो गए, रोज़ लाशें उठने लगीं। दिन में लोग एक-दूसरे को ढाढ़स देते थे, पर रात में सन्नाटा और मृत्यु का भय छा जाता था। माताएँ अपने मरते बच्चों को पुकारने में असमर्थ थीं। यह आपदा गाँव को मृतप्राय बना दिया, जहाँ केवल पहलवान की ढोलक ही उम्मीद की किरण थी।
- लुट्टन के पुत्रों की मृत्यु का वर्णन कैसे है?
उत्तर – लुट्टन के पुत्र महामारी से पीड़ित होकर असह्य वेदना में छटपटाए। उन्होंने “उठा पटक दो वाला ताल” की माँग की, और लुट्टन ने रातभर ढोलक बजाकर उन्हें प्रेरित किया। प्रातः वे पेट के बल मृत पड़े मिले—एक ने मिट्टी खोदी थी। लुट्टन ने मुस्कुराकर उन्हें बहादुर कहा, रेशमी जाँघिया पहनी, और कंधों पर लादकर नदी में बहाया, जो उसकी हिम्मत और दुख का मेल दर्शाता है।
- पहलवान की मृत्यु के बाद ढोलक का महत्त्व क्या रहा?
उत्तर – पहलवान की मृत्यु के बाद ढोलक की आवाज़ बंद हो गई, जो उसके जीवन और हिम्मत का प्रतीक थी। शिष्यों ने उसे चित पाया, जो उसके “चित न होने” के संकल्प के विपरीत था। उसकी इच्छा थी कि चिता पर पेट के बल सुलाया जाए और ढोलक बजी जाए, पर यह पूरी न हुई। फिर भी, उसकी हिम्मत ने गाँव वालों को प्रेरित किया, जो ढोलक के माध्यम से जीवित रही और उनकी स्मृति को अमर बनाया।