Bavara Aheri, Ageya, West Bengal, Class XI, Hindi Course B, The Best Solution.

कवि परिचय : अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्त्व खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और प्रखर कवि होने के साथ ही साथ अज्ञेय की फोटोग्राफी भी उम्दा हुआ करती थी और यायावरी तो शायद उनको दैव-प्रदत्त ही थी। उनके पिता, हीरानंद शास्त्री, एक पुरातत्त्वविद् थे। उनकी माता व्यंतीदेवी (मृत्यु 1924) थीं, जो अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थीं। हीरानंद शास्त्री और व्यंतीदेवी की 10 संतानें थीं, जिनमें से अज्ञेय चौथे थे। 1943 में, उन्होंने तार सप्तक का संपादन और प्रकाशन किया, जो सात युवा लेखकों की कविताओं का संग्रह था। तार सप्तक ने हिंदी कविता में प्रयोगवाद को जन्म दिया, और हिंदी कविता में एक नई प्रवृत्ति स्थापित की, जिसे नई कविता के नाम से जाना जाता है। (नयी कविता)।

अज्ञेय का कविता संग्रह :-  भग्नदूत – 1933, चिन्ता- 1942, इत्यलम् – 1946, हरी घास पर क्षण भर – 1949, बावरा अहेरी -1954, इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये 1957, अरी ओ करुणा प्रभामय – 1959, आँगन के पार द्वार – 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967) क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970) सागर मुद्रा (1970) पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974) महावृक्ष के नीचे (1977) नदी की बाँक पर छाया (1981) प्रिजन डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में, 1946)।

अज्ञेय की मृत्यु 4 अप्रैल 1987 नई दिल्ली में हुई थी।

बावरा अहेरी

भोर का बावरा अहेरी

पहले बिछाता है आलोक की

लाल-लाल कनियाँ

पर जब खींचता है जाल को

बाँध लेता है सभी को साथ

छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे बड़े-बड़े पंखी

डैनों वाले, डील वाले डौल के बेडौल

उड़ने जहाज

कलस-तिसूल वाले मन्दिर – शिखर से ले

तारघर की नाटी मोटी चपटी गोल घुस्सों वाली

उपयोग-सुंदररी

बेपनाह काया को :

गोधूलि की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी

पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक- खची तन्वि

रूपरेखा को

और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो

धुआँ यों उगलती हैं, मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।

बावरे अहेरी रे

कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट है :

एक बस मेरे मन- विवर में दुबकी कलौंस को

दुबकी ही छोड़ कर क्या तू चला जाएगा?

ले, मैं खोल देता हूँ कपाट सारे

मेरे इस खँढर की शिरा-शिरा छेद के

आलोक की अनी से अपनी,

गढ़ सारा ढाह कर दूह भर कर दे :

विफल दिनों की तू कलौंस पर माँज जा

मेरी आँखे आँज जा

कि तुझे देखें

देखूँ और मन में कृतज्ञता उमड़ आये

पहनूँ सिरोपे से ये कनक-तार तेरे

– बावरे अहेरी

बावरा अहेरी’ कविता के कठिन शब्दार्थ

कठिन शब्द

हिंदी अर्थ

बांग्ला अर्थ

अंग्रेजी अर्थ

बावरा

पागल, दीवाना (यहाँ उन्मत्त, मस्त)

পাগল, উন্মত্ত

Mad, crazy (here, ecstatic, absorbeघ.

अहेरी

शिकारी

শিকারী

Hunter

भोर

सुबह, प्रभात

ভোর, প্রভাত

Dawn, morning

आलोक

प्रकाश, रोशनी

আলোক, আলো

Light, illumination

कनियाँ

किरणें, छोटे-छोटे कण

রশ্মি, ক্ষুদ্র কণা

Rays, small particles

परेवे

कबूतर

পায়রা

Pigeons

पंखी

बड़े पक्षी

বড় পাখি

Large birds

डैनों वाले

पंखों वाले

ডানাযুক্ত

Winged ones

डील वाले

बड़े डील-डौल वाले, भारी शरीर वाले

বড় শরীরের

Large-bodied, bulky

डौल के बेडौल

आकार में विकृत, भद्दे आकार वाले

আকৃতিতে বিকৃত, বেঢপ

Misshapen, unwieldy

कलस-तिसूल वाले

मंदिर के शिखर पर लगे कलश और त्रिशूल वाले

কলস-ত্রিশূলযুক্ত (মন্দিরের শিখর)

With kalasha and trident (on temple spires)

तारघर

टेलीग्राफ ऑफिस

টেলিগ্রাফ অফিস

Telegraph office

नाटी

छोटी, ठिगनी

বেঁটে, খাটো

Short, stubby

घुस्सों वाली

गोल गुंबदों या गाँठों वाली

গোলাকার গম্বুজ বা গিঁটযুক্ত

With round domes or knots

उपयोग-सुंदरी

उपयोगिता के कारण सुंदर दिखने वाली

ব্যবহারের কারণে সুন্দর

Beautiful due to utility

बेपनाह काया

विशालकाय, असीमित शरीर या आकार

বিশাল দেহ, অসীম আকৃতি

Immense body, boundless form

गोधूलि

शाम का समय जब गायें चर कर लौटती हैं, संध्या

গোধূলি, সন্ধ্যা

Dusk, twilight (when cows return)

पुष्पिताग्र कर्णिकार

कनेर का पेड़ जिसके अग्रभाग पर फूल खिले हों

কর্ণিকার গাছ যার আগায় ফুল ফুটেছে

Indian laburnum tree with flowers at the tip

आलोक-खची

प्रकाश से जड़ी हुई, प्रकाशमय

আলো ঝলমলে, আলোকচিত

Studded with light, luminous

तन्वि रूपरेखा

पतली रूपरेखा, बारीक आकृति

সূক্ষ্ম রূপরেখা, পাতলা আকৃতি

Slender outline, delicate form

उद्दंड चिमनियों

अहंकारी, उद्दंड चिमनियां (धुआँ उगलने वाली)

উদ্ধত চিমনি

Arrogant, defiant chimneys

अवध्य

जिसका वध न किया जा सके, जिसे मारा न जा सके

অবধ্য, যাকে হত্যা করা যায় না

Invulnerable, that which cannot be killed

आखेट

शिकार

শিকার

Prey, hunt

मन-विवर

मन की गुफा, हृदय

মনের গুহা, হৃদয়

Cave of the mind, heart

दुबकी कलौंस

छिपी हुई कालिमा/कलंक/मलिनता

লুকিয়ে থাকা কলঙ্ক/মলিনতা

Hidden blemish/stain/darkness

कपाट

दरवाज़े

কপাট, দরজা

Doors

खँढर

खंडहर, टूटा-फूटा स्थान

ভাঙা স্থান, ধ্বংসাবশেষ

Ruin, dilapidated place

शिरा-शिरा

नस-नस, हर कोने

শিরায় শিরায়, প্রতিটি কোণে

Vein by vein, every corner

अनी

नोक, धार

ধার, অগ্রভাগ

Point, tip

गढ़

किला, दुर्ग

দুর্গ, কেল্লা

Fort, citadel

ढाह कर

गिराकर, नष्ट करके

ভেঙে ফেলে, ধ্বংস করে

Demolishing, destroying

दूह भर कर दे

ढेर कर दे, पूरा भर दे

স্তূপ করে দেওয়া, ভরে দেওয়া

To heap up, to fill completely

विफल दिनों की कलौंस

असफल दिनों की मलिनता/निराशा

ব্যর্থ দিনের কালিমা/হতাশা

Blemish/gloom of failed days

माँज जा

साफ़ कर दे, धो दे

মেজে দেওয়া, ধুয়ে দেওয়া

To cleanse, to scrub clean

आँखे आँज जा

आँखों को काजल या अंजन से सुंदर कर दे (यहाँ: स्पष्ट दृष्टि दे)

চোখ এঁকে দেওয়া (এখানে: স্পষ্ট দৃষ্টি দাও)

To adorn eyes with kohl (here: give clear vision)

कृतज्ञता

आभार, एहसानमंदी

কৃতজ্ঞতা, ধন্যবাদ

Gratitude, thankfulness

सिरोपे से

शिरोभूषण के रूप में, सम्मान के प्रतीक के रूप में

শিরভূষণ হিসাবে, সম্মানের প্রতীক হিসাবে

As a head-dress, as a symbol of honor

कनक-तार

सोने के तार, सुनहरी किरणें

সোনার তার, সোনালী রশ্মি

Golden wires, golden rays

बावरा अहेरी कविता का सामान्य परिचय  

‘बावरा अहेरी’ कविता अज्ञेय के काव्य संकलन ‘बावरा अहेरी’ में संकलित है। जिसका प्रकाशन 1957 में हुआ था। इस संकलन की सभी कविताएँ प्रकृति समन्वयी हैं। कवि ने कहीं तो प्रकृति के रस और उल्लास को अपने भीतर भरना चाहा है तो कहीं प्रकृति कवि के संवेदनों का अंग बनकर आई है। ‘बावरा अहेरी’ कविता प्रातःकाल के सौंदर्य के वर्णन से संबंधित है। कवि ने उषाकाल को बावरा अहेरी अर्थात् पागल शिकारी बताया है।

बावरा अहेरी कविता का वर्ण्य बिंदु

इस कविता में कवि ने व्यापक सत्य से पाठकों को अवगत कराया है। सामान्यत: यह माना जाता है कि शिकारी पागल होते हैं और दूसरों को अहित करते हैं। लेकिन कवि का यह मानना है कि एक शिकारी ऐसा भी है जो सबका हित करता है। वह इतना अच्छा शिकारी है कि लोगों के हृदय में रहे द्वेष का शिकार करके उसके मन को पवित्र कर देता है। यह शिकारी और कोई नहीं बल्कि सूर्य है और इस सूर्य को बावरा (पागल) इसलिए कहा गया है क्योंकि आज के कलयुग में जब कोई केवल अच्छे कार्य करता रहता है तो यह तथाकथित समाज उसे पागल की संज्ञा ही देता है। मूल रूप से यही कहा जा सकता है कि इस कविता में बावरा अहेरी अर्थात् सूर्य सुंदर को सुंदरतर से सुंदरतम की अवस्था तक ले जाता है और पतितों को भी पावन कर पूजनीय बनाने की क्षमता रखता है।   

 

पंक्तियाँ – 01

बावरा अहेरी

भोर का बावरा अहेरी

पहले बिछाता है आलोक की

लाल-लाल कनियाँ

पर जब खींचता है जाल को

बाँध लेता है सभी को साथ

छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे बड़े-बड़े पंखी

डैनों वाले, डील वाले डौल के बेडौल

उड़ने जहाज

कलस-तिसूल वाले मन्दिर – शिखर से ले

तारघर की नाटी मोटी चपटी गोल घुस्सों वाली

उपयोग-सुंदरी

बेपनाह काया को :

गोधूलि की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी

पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक- खची तन्वि

रूपरेखा को

और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो

धुआँ यों उगलती हैं, मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।

 

शब्दार्थ –

बावरा अहेरी – पागल शिकारी, यहाँ सूर्य को कहा गया है।

कनियाँ – दाने।

मँझोले परेवे – मध्यम आकार का तेज उड़ने वाला कबूतर।

कलस-तिसूल – मन्दिर पर लगने वाला कलश और त्रिशूल।

घुस्सों वाली – कंबल धारण करने वाली।

पुष्पिताग्र – जिसके अग्रभाग फूलों से लदे हों।

कर्णिकार – कन्नेर।

आलोक-खची – प्रकाश से युक्त।

तन्वी – पतली।

उद्दण्ड – उच्छृंखल।

 

प्रसंग –

प्रस्तुत अवतरण कविवर अज्ञेय विरचित ‘बावरा अहेरी’ काव्य संकलन में संकलित ‘बावरा अहेरी’ कविता से अवतरित है। इसमें कवि सूर्य के व्यापक प्रकाश का चित्रण करता है। उनका कहना है कि सूर्य जड़ एवं चेतन दोनों को ही आलोकित करता है।

व्याख्या –

प्रातःकाल का पागल शिकारी सूर्य लाल-लाल किरणों रूपी दानों को बिखेरकर सभी को जाल में पहले तो फँसा लेता है। फिर शिकारी की ही तरह अपने जाल को खींचता है तो सभी को उसमें बाँध लेता है। वह छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मध्यम आकार के पक्षी, बड़े आकार के पक्षी, आकाश में उड़ने वाले वायुयान, कलश और त्रिशूल लगे मंदिर, डील-डौल आकार के पक्षी, तारघर में काम कंरने वाली ठिगने कद की मोटी, चपटी, गोल और ऊन के कंबल धारण करने वाली सुंदरी, आश्रयहीन शरीर, गायों के खुरों से उड़ी हुई धूल, गाड़ी मोटरों से निकला हुआ धुआँ, पार्क के किनारे, अग्रभाग अर्थात् डालियों के सिरों में पुष्पित कन्नेर के प्रकाश से निर्मित कोमल एवं सुंदरर रेखा और दूर कूड़ा-करकट जलाने वाली चिमनियाँ जो इस प्रकार धुआँ उगलती हैं, मानो धुएँ से ही अहेरी अर्थात् सूर्य को हरा देंगी। इन सबको ही सूर्य अपनी किरणों के जाल में बाँध कर खींच लेता है। अर्थात् प्रकृति और यंत्र सभ्यता दोनों ही सूर्य के आलोक से आलोकित होते हैं।

विशेष –

  1. कवि कहना चाहता है कि सूर्य के प्रकाश से प्रकृति एवं यंत्र सभ्यता दोनों ही प्रकाशित होते हैं।
  2. डैनों-डील, धूली, धूल, धुएँ अनुप्रास अलंकार,

बावरा अहेरी – रूपक अलंकार,

‘लाल-लाल, बड़े-बड़े, छोटी-छोटी – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।  

पंक्तियाँ – 02

बावरे अहेरी रे

कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट हैं:

एक बस मेरे मन-विवर में दुबकी कलौंस को

दुबकी ही छोड़कर क्या तू चला जाएगा?

ले, मैं खोल देता हूँ कपाट सारे

मेरे इस खँडहर की शिरा-शिरा छेद दे

आलोक की अनी से अपनी,

गढ़ सारा ढाह कर दूह भर कर दे :

विफल दिनों की तू कलौंस पर माँज जा

मेरी आँख आँज जा

कि तुझे देखूँ

देखूँ, और मन में क तज्ञता उमड़ आय

पहनूँ सिरोपे – से ये कनक – तार तेरे –

बावरे अहेरी रे !

 

शब्दार्थ –

अवध्य – जिसका वध न हो।

विवर – गुफा।

दुबकी – दबी हुई, डरी हुई।

कलौंस – कालिमा।

दूह – ढेर।

माँज जा – साफ कर दे।

आँज जा – काजल लगा जा।

सिरोफा – परिधान।

प्रसंग –

प्रस्तुत अवतरण कविवर अज्ञेय विरचित ‘बावरा अहेरी’ काव्य संकलन में संकलित ‘बावरा अहेरी’ कविता से अवतरित है। इसमें कवि सूर्य के व्यापक प्रकाश का चित्रण करता है। उनका कहना है कि सूर्य जड़ एवं चेतन दोनों को ही आलोकित करता है।

व्याख्या –

कवि कहते हैं कि अरे पागल शिकारी सूर्य! विश्व में ऐसा कोई नहीं है जिसका तू वध न कर सके। सब तेरे शिकार हैं। अर्थात् तू इतना शक्तिशाली है कि तू संसार के हर प्राणी को नष्ट कर सकता है। जब तू इतना शक्तिशाली है तो मेरा भी एक काम कर दे, मेरे मन की अँधेरी गुफा में जो कालिमा छिपी है उसे धो दे, नष्ट कर दे। हे! प्रकाश-पुंज सूर्य क्या तू उसे छिपी ही छोड़कर चला जाएगा? अर्थात् हे सूर्य मेरे अंदर जो अहंभाव है, उसे नष्ट कर दे। मैं अपने हृदय के सारे दरवाजे खोल देता हूँ जिससे कि तेरा प्रकाश वहाँ तक पहुँच जाए और इसे नष्ट कर दे। मेरे खंडहर हृदय की एक-एक नस को अपने आलोक के रश्मि-बाणों से छेद दे। मेरे अहंकार को ढहाकर ढेर बना दे। मेरे असफल दिनों के कलंक को तू धो दे। तू मेरी आँखों में काजल डाल दे ताकि मैं तुझे, तेरे ज्ञान को पहचान सकूँ। तेरे इस उपकार के प्रति मेरे हृदय में कृतज्ञता के भाव उमड़ पड़े। ऐ! पागल शिकारी सूर्य मेरी इच्छा है कि मैं तेरी प्रातःकालीन स्वर्णिम किरणों को परिधान (वस्त्र) समझकर पहन सकूँ। अर्थात् मैं नख से शिख तक तेरे ज्ञान से मंडित हो सकूँ।

विशेष –

  1. कवि ने सूर्य को ज्ञान का प्रतीक मानकर उससे प्रार्थना की है कि मेरे मन में छिपे अहंकार को नष्ट कर दे और मुझे अपने आलोक से आलोकित कर दे।
  2. सूर्य ज्ञान एवं अहेरी का प्रतीक है।
  3. भाषा की दृष्टि से माँज जा, आँज जा, गढ़ सारा ढाह कर ढूह भरकर दे आदि प्रयोग भावपूर्ण, प्रवाहमयी और प्रभावपूर्ण है।
  4. मन-विवर, आलोक की कली – रूपक अलंकार

शिरा – शिरा – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

सिरोपे-से – उपमा अलंकार

  1. अहेरी प्रतीक है – दर्शन का

खंडहर प्रतीक है – अन्तस् का

अनी प्रतीक है – सूर्य किरणों का

टिप्पणीः यहाँ अज्ञेय फिट्जेराल्ड से प्रभावित दिखाई देते हैं फिट्जेराल्ड ने ‘रूबाइयट ऑफ उमर खय्याम’ में सूर्य के लिए ‘पूर्व के अहेरी’ शब्द प्रयुक्त किया है। यहाँ अज्ञेय ने भी यही प्रतीक लिया है।

‘बावरा अहेरी’ कविता से जुड़े बहुविकल्पीय प्रश्न

  1. कविता ‘बावरा अहेरी’ में बावरा अहेरीकिसका प्रतीक है?
    क. सूर्य
    ख. चंद्रमा
    ग. हवा
    घ. बादल
    उत्तर – क. सूर्य
  2. कविता में आलोक की लाल-लाल कनियाँका तात्पर्य क्या है?
    क. सूर्य की किरणें
    ख. फूलों की पंखुड़ियाँ
    ग. लाल रंग के बादल
    घ. पक्षियों की चहचहाहट
    उत्तर – क. सूर्य की किरणें
  3. बावरा अहेरीअपने जाल में क्या-क्या बाँध लेता है?
    क. केवल पक्षियों को
    ख. चिड़ियाँ, परेवे, पंखी, मंदिर, तारघर आदि
    ग. केवल मोटरों का धुआँ
    घ. केवल फूलों को
    उत्तर – ख. चिड़ियाँ, परेवे, पंखी, मंदिर, तारघर आदि
  4. कविता में कलौंसकिसका प्रतीक है?
    क. सूर्य की रोशनी
    ख. मन की उदासी या अँधेरे विचार
    ग. पक्षियों की प्रजाति
    घ. मंदिर का शिखर
    उत्तर – ख. मन की उदासी या अँधेरे विचार
  5. कविता में कवि बावरे अहेरीसे क्या करने की प्रार्थना करता है?
    क. उसके घर को रोशन करने की
    ख. उसके मन के अँधेरे को दूर करने की
    ग. उसे धन देने की
    घ. उसे पक्षियों से बचाने की
    उत्तर – ख. उसके मन के अँधेरे को दूर करने की
  6. गोधूलि की धूलऔर मोटरों के धुएँका उल्लेख कविता में किस संदर्भ में है?
    क. पर्यावरण प्रदूषण के प्रतीक के रूप में
    ख. सूर्य के जाल में बँधने वाली चीजों के रूप में
    ग. कवि के मन की स्थिति के रूप में
    घ. मंदिर के सौंदर्य के रूप में
    उत्तर – ख. सूर्य के जाल में बँधने वाली चीजों के रूप में
  7. कविता में कर्णिकारका उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?
    क. एक पक्षी के नाम के रूप में
    ख. पुष्पित वृक्ष के रूप में
    ग. मंदिर के शिखर के रूप में
    घ. सूर्य की किरण के रूप में
    उत्तर – ख. पुष्पित वृक्ष के रूप में
  8. कविता में कवि अपने खँढरके कपाट खोलने की बात क्यों कहता है?
    क. सूर्य की रोशनी को अंदर आने देने के लिए
    ख. पक्षियों को बाहर निकालने के लिए
    ग. मंदिर के दर्शन के लिए
    घ. धुएँ को बाहर निकालने के लिए
    उत्तर – क. सूर्य की रोशनी को अंदर आने देने के लिए
  9. कविता में कनक-तारका क्या अर्थ है?
    क. सुनहरी रस्सी
    ख. सूर्य की सुनहरी किरणें
    ग. मंदिर का शिखर
    घ. तारघर की तारें
    उत्तर – ख. सूर्य की सुनहरी किरणें
  • कविता का मुख्य भाव क्या है?
    क. प्रकृति का सौंदर्य
    ख. सूर्य की सर्वव्यापी शक्ति और मन के अँधेरे को दूर करने की प्रार्थना
    ग. मंदिर और तारघर का वर्णन
    घ. पक्षियों का जीवन
    उत्तर – ख. सूर्य की सर्वव्यापी शक्ति और मन के अँधेरे को दूर करने की प्रार्थना

कविता बावरा अहेरी’ पर आधारित एक वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर –

  1. प्रश्न – कविता में ‘बावरा अहेरी’ किसका प्रतीक है?
    उत्तर – कविता में ‘बावरा अहेरी’ भोर के समय फैलने वाले प्रकाश का प्रतीक है।
  2. प्रश्न – बावरा अहेरी सबसे पहले क्या बिछाता है?
    उत्तर – बावरा अहेरी सबसे पहले आलोक की लाल-लाल कनियाँ बिछाता है।
  3. प्रश्न – बावरा अहेरी अपने जाल में किन्हें बाँध लेता है?
    उत्तर – बावरा अहेरी अपने जाल में सभी को बाँध लेता है, जैसे चिड़ियाँ, परेवे, पंखी, मंदिर-शिखर और यहाँ तक कि धुएँ को भी।
  4. प्रश्न – कवि ने किस रूप में मोटरों के धुएँ और चिमनियों को प्रस्तुत किया है?
    उत्तर – कवि ने मोटरों के धुएँ और चिमनियों को बावरे अहेरी को चुनौती देने वाली शक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया है।
  5. प्रश्न – कवि अपने मन की कौन-सी वस्तु को उजागर करने की बात करता है?
    उत्तर – कवि अपने मन के विवर में दुबकी ‘कलौंस’ अर्थात् अंधकार को उजागर करने की बात करता है।
  6. प्रश्न – कवि बावरे अहेरी से क्या अनुरोध करता है?
    उत्तर – कवि बावरे अहेरी से अनुरोध करता है कि वह उसके खंडहर जैसे मन को प्रकाश से भर दे।
  7. प्रश्न – कवि अपने मन की स्थिति को किससे तुलना करता है?
    उत्तर – कवि अपने मन की स्थिति को एक खंडहर से तुलना करता है।
  8. प्रश्न – कवि अहेरी से अपने विफल दिनों की किस वस्तु पर प्रकाश माँजने की प्रार्थना करता है?
    उत्तर – कवि अहेरी से अपने विफल दिनों की कलौंस पर प्रकाश माँजने की प्रार्थना करता है।
  9. प्रश्न – कवि किस वस्तु से अपनी आँखें आँजने की इच्छा व्यक्त करता है?
    उत्तर – कवि अहेरी से अपनी आँखें आलोक से आँजने की इच्छा व्यक्त करता है।
  • प्रश्न – कवि अंत में अहेरी के प्रति किस भावना से भर उठता है?
    उत्तर – कवि अंत में बावरे अहेरी के प्रति कृतज्ञता की भावना से भर उठता है।

कविता बावरा अहेरी’ पर आधारित 30-40 शब्दों में प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – कवि ने ‘बावरा अहेरी’ किसे कहा है?

उत्तर – कवि ने भोर (सुबह) को ‘बावरा अहेरी’ कहा है। यह सूर्य का प्रतीक है जो अपने प्रकाश के जाल से हर चीज़ को अपने में समेट लेता है।

  1. प्रश्न – बावरा अहेरी सबसे पहले क्या बिछाता है?

उत्तर – बावरा अहेरी अर्थात् सूर्य सबसे पहले आलोक की लाल-लाल कनियाँ अर्थात् प्रकाश की किरणें बिछाता है। ये किरणें सुबह के लालिमापूर्ण वातावरण को दर्शाती हैं।

  1. प्रश्न – अहेरी अपने जाल में किन-किन प्राणियों को बाँध लेता है?

उत्तर – अहेरी अपने प्रकाश के जाल में छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे अर्थात् कबूतर और बड़े-बड़े पंखी – सभी को बाँध लेता है, यानी अपने प्रकाश से प्रकाशित कर देता है।

  1. प्रश्न – कवि ने अहेरी की व्यापकता दर्शाने के लिए किन निर्जीव वस्तुओं का उल्लेख किया है?

उत्तर – अहेरी कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर, तारघर की इमारतों, गोधूलि की धूल, मोटरों के धुएँ, और चिमनियों तक को अपने प्रकाश में ले लेता है, जो उसकी व्यापक पहुँच दिखाती है।

  1. प्रश्न – कवि अपने मन से अहेरी से क्या दूर करने की प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर – कवि अपने मन-विवर (मन की गुफा) में दुबकी कलौंस (छिपी हुई मलिनता या निराशा) को दूर करने की प्रार्थना कर रहा है, ताकि उसका मन भी प्रकाशमान हो सके।

  1. प्रश्न – कवि अहेरी से अपनी आँखों को आँजने के लिए क्यों कहता है?

उत्तर – कवि अपनी आँखों को आँजने के लिए कहता है ताकि वह अहेरी अर्थात् सूर्य को स्पष्ट रूप से देख सके और उसके मन में कृतज्ञता का भाव उमड़ आए।

  1. प्रश्न – कवि ‘कनक-तार’ को सिरोपे से पहनने की बात क्यों कहता है?

उत्तर – कवि अहेरी अर्थात् सूर्य की सुनहरी किरणों को सिरोपे (सम्मान के प्रतीक) से पहनने की बात कहता है, क्योंकि वह उसके प्रकाश और प्रभाव के प्रति आदर और आभार व्यक्त करना चाहता है।

कविता बावरा अहेरी’ पर आधारित 60-70 शब्दों में प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – कविता ‘बावरा अहेरी’ में ‘बावरा अहेरी’ किसका प्रतीक है, और यह कविता के कथ्य को कैसे प्रभावित करता है?
    उत्तर – ‘बावरा अहेरी’ सूर्य का प्रतीक है, जो अपनी किरणों के जाल से प्रकृति और मानव जीवन के हर पहलू को बाँध लेता है। यह प्रतीक कविता में सूर्य की सर्वव्यापी शक्ति और जीवनदायिनी ऊर्जा को दर्शाता है। कवि सूर्य से अपने मन के अंधेरे (कलौंस) को दूर करने की प्रार्थना करता है, जो कविता को आशा और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
  2. प्रश्न – कविता में सूर्य के जाल में बँधने वाली विभिन्न चीजों का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है, और यह कविता के भाव को कैसे गहरा करता है?
    उत्तर – सूर्य का जाल चिड़ियों, परेवों, मंदिरों, तारघर, धूल, धुएँ और कर्णिकार वृक्ष को बाँधता है, जो उसकी सर्वग्राही शक्ति को दर्शाता है। यह प्रकृति, मानव निर्मित संरचनाओं और प्रदूषण तक को समेट लेता है। यह उल्लेख कविता के भाव को गहराता है, जो सूर्य की निष्पक्षता और जीवन के हर पहलू को प्रभावित करने की क्षमता को रेखांकित करता है।
  3. प्रश्न – कविता में ‘कलौंस’ का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है, और कवि इसे दूर करने के लिए सूर्य से क्या प्रार्थना करता है?
    उत्तर – ‘कलौंस’ कवि के मन में छिपी उदासी, निराशा या अँधेरे विचारों का प्रतीक है। कवि सूर्य से प्रार्थना करता है कि वह अपने आलोक की किरणों से इन अंधेरे विचारों को दूर कर दे। वह अपने मन के ‘खँढर’ के कपाट खोलकर सूर्य को आमंत्रित करता है, ताकि उसकी आत्मा को शुद्ध और प्रेरित किया जा सके, जो आशा और नवीकरण का संदेश देता है।
  4. प्रश्न – कविता में कवि अपने ‘खँढर’ के कपाट खोलने की बात क्यों कहता है, और यह कविता के केंद्रीय भाव से कैसे जुड़ा है?
    उत्तर – कवि अपने ‘खँढर’ (मन) के कपाट खोलने की बात कहता है ताकि सूर्य की किरणें उसके अंदर प्रवेश कर सकें और उदासी को दूर करें। यह कविता के केंद्रीय भाव से जुड़ा है, जो सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति और मन के अंधेरे को हटाने की प्रार्थना है। यह आध्यात्मिक नवीकरण और सकारात्मकता की खोज को दर्शाता है।
  5. प्रश्न – कविता ‘बावरा अहेरी’ का मुख्य भाव क्या है, और यह आधुनिक संदर्भ में कैसे प्रासंगिक है?
    उत्तर – कविता का मुख्य भाव सूर्य की सर्वव्यापी शक्ति और उसके द्वारा मन के अँधेरे को दूर करने की प्रार्थना है। कवि सूर्य को जीवन, आशा और प्रेरणा का प्रतीक मानता है। आधुनिक संदर्भ में, यह कविता मानसिक तनाव और निराशा के दौर में आशावाद और प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा देती है, जो व्यक्तिगत और आध्यात्मिक नवीकरण के लिए प्रासंगिक है।

 

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