कवि परिचय : नागार्जुन
नागार्जुन का जन्म 11 जून सन् 1911 ज्येष्ठ मास को उनके ननिहाल ‘सतलखा’ गाँव जिला मधुबनी में हुआ था। बचपन में ही चार पुत्रों के काल कवलित हो जाने के बाद उनके पिता ने रावणेश्वर वैद्यनाथ (महादेव) से संतान की याचना की थी, अतः उनका जन्म नाम ‘वैद्यनाथ’ मिश्र रखा गया जो लगभग 25 वर्षों तक किसी न किसी रूप में उनसे जुड़ा रहा। बाबा नागार्जुन ने स्वेच्छापूर्वक ‘यात्री’ नाम का चयन अपनी मैथिली रचनाओं के लिए किया था। नागार्जुन के पिता का नाम गोकुल मिश्र तथा माता का नाम श्रीमती उमादेवी था।
उनकी माता सरल हृदयी, परिश्रमी एवं दृढ़ चरित्र महिला थी। दुर्भाग्य से चार वर्ष की अवस्था में ही बालक बैद्यनाथ को माता उमादेवी के स्नेहाँचल से वंचित होना पड़ा। नागार्जुन के काव्य में अब तक की पूरी भारतीय काव्य परंपरा ही जीवंत रूप में उपस्थित देखी जा सकती है। उन्होंने लगभग 650 कविताओं का सृजन किया है। उनके चौदह काव्य संग्रह एवं दो खण्डकाव्य प्रकाशित हैं।
प्रमुख रचनाएँ – प्यासी पथराई आँखें, तालाब की मछलियाँ, युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, भस्मांकुर (खण्ड काव्य), खून और शोले, पुरानी जूतियों का कोरस।
उपन्यास संग्रह – रतिनाथ की चाची, बल चनमा, बाबा बटेसर नाथ, वरुण के बेटे।
लंबी अवधि तक बीमार रहने के पश्चात् 5 नवम्बर 1998 ई, को इस असाधारण कवि की जीवन यात्रा पूर्ण हुई। हिंदी और मैथिली साहित्य में दिए गये उनके अवदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
प्रेत का बयान
“ओ रे प्रेत
कड़ककर बोले नरक के मालिक यमराज
“सच सच बतला !
कैसे मरा तू?
भूख से अकाल से?
बुखार कालाजार से?
पेचिस बदहजमी, प्लेग महामारी से?
कैसे मरा तू, सच-सच बतला !’
खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़
काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा
नचाकर लंबे चमचों-सा पंचगुरा हाथ
रूखी पतली किट किट आवाज़ में
प्रेत ने जवाब दिया –
“महाराज!
सच-सच कहूँगा
झूठ नहीं बोलूँगा
नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के
पूर्णिया जिला है, सूबा बिहार के सिवान पर
थाना धमदाहा, बस्ती रूपउली
जाति का कायस्थ
उमर कुछ अधिक पचपन साल की
पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था –
“किंतु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका
ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको
सावधान महाराज,
नाम नहीं लीजिएगा
हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!”
निकल गया भाप आवेग का
तदनंतर शांत-स्तंभित स्वर में प्रेत बोला
“जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है
सुनिए महाराज,
तनिक भी पीर नहीं
दुःख नहीं, दुविधा नहीं
सरलतापूर्वक निकले थे प्राण
सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला.. “
सुनकर दहाड़
स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के
भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की
रह गए निरूत्तर
महामहिम नर्केश्वर।
‘प्रेत का बयान’ कठिन शब्दों के अर्थ
हिंदी (कठिन शब्द) | हिंदी (सरल अर्थ) | बांग्ला (অর্থ) | अंग्रेज़ी (Meaning) |
प्रेत | भूत, आत्मा | প্রেত, ভূত | Ghost, Spirit |
कड़ककर | तेज़ आवाज़ में, क्रोध से | গর্জন করে, কঠোরভাবে | Sternly, Roaringly |
यमराज | मृत्यु के देवता | যমরাজ | Yama (God of Death) |
अकाल | सूखा, भुखमरी | দুর্ভিক্ষ | Famine, Scarcity |
कालाजार | एक प्रकार का बुखार, एक संक्रामक रोग | কালাজ্বর | Kala-azar (a parasitic disease) |
पेचिस | दस्त, अतिसार | আমাশয় | Dysentery |
बदहजमी | अपच, अजीर्ण | বদহজম | Indigestion |
प्लेग | एक संक्रामक महामारी | প্লেগ | Plague |
महामारी | बड़ी बीमारी का फैलना | মহামারী | Epidemic, Pandemic |
खड़ खड़ खड़ खड़ | हड्डियों के हिलने की आवाज़ | খড় খড় খড় খড় | Rattling sound (of bones) |
हड़ हड़ हड़ हड़ | तेज़ आवाज़, कंपन की ध्वनि | হড় হড় হড় হড় | Rumbling, Trembling sound |
मानवीय ढाँचा | मनुष्य का कंकाल | মানুষের কঙ্কাল | Human skeleton/frame |
चमचों-सा | चम्मच जैसा | চামচ-এর মতো | Spoon-like |
पंचगुरा हाथ | पाँच उँगलियों वाला हाथ (यहाँ हड्डियों भरा) | পাঁচ আঙ্গুলের হাত | Five-fingered hand (here, bony) |
रूखी | सूखी, कर्कश | রুক্ষ, কর্কশ | Dry, Hoarse |
किट किट आवाज़ | दाँत बजने या हड्डियों की आवाज़ | কিট কিট শব্দ | Grating, Clattering sound |
महाराज | राजा, स्वामी | মহারাজ | Maharaja, Lord |
स्वाधीन | आज़ाद, स्वतंत्र | স্বাধীন | Independent, Free |
सूबा | प्रांत, राज्य | সুবা, প্রদেশ | Province, State |
कायस्थ | एक जाति विशेष | কায়স্থ | Kayastha (a caste) |
पेशा | व्यवसाय, धंधा | পেশা | Profession, Occupation |
क्षुधा | भूख, बुभुक्षा | ক্ষুধা | Hunger, Appetite |
व्याधि | रोग, बीमारी | ব্যাধি | Disease, Ailment |
समक्ष | सामने, उपस्थिति में | সামনে, উপস্থিতিতে | Before, In presence of |
भाप आवेग का | आवेश या क्रोध का वाष्प | আবেগের বাষ্প | Vapor of impulse/fury |
तदनंतर | उसके बाद | তারপর | Thereafter, Subsequently |
शांत-स्तंभित स्वर | शांत और अवाक आवाज़ | শান্ত-স্তম্ভিত স্বর | Calm and stunned voice |
सम्बन्ध | संबंध, रिश्ता | সম্পর্ক | Relation, Connection |
तनिक भी | ज़रा भी, थोड़ा भी | একটুও | Even a little |
पीर | दर्द, पीड़ा | ব্যথা, যন্ত্রণা | Pain, Agony |
दुविधा | संशय, असमंजस | দ্বিধা | Dilemma, Hesitation |
सरलतापूर्वक | आसानी से, सहजता से | সহজে, সরলভাবে | Easily, Simply |
आँत | आँतें, अंतड़ियाँ | অন্ত্র | Intestine |
हमला | आक्रमण, वार | আক্রমণ, হামলা | Attack |
दहाड़ | गर्जना, ज़ोर की आवाज़ | গর্জন | Roar, Loud sound |
भुखमरे | भूख से मरने वाले | অনাহারে মৃত | Starving, Died of hunger |
स्वाभिमानी | आत्मसम्मानी | আত্মমর্যাদাশীল | Self-respecting |
सुशिक्षक | अच्छी तरह से शिक्षित अध्यापक | সুশিক্ষক | Well-educated teacher |
निरूत्तर | निरुत्तर, जवाब रहित | নিরুত্তর | Speechless, Unable to answer |
महामहिम | माननीय, अति प्रतिष्ठित | মহামহিম | His Excellency, Most Honored |
नर्केश्वर | नरक का स्वामी | নরকেশ্বর | Lord of Hell |
‘प्रेत का बयान’ कविता का परिचय
नागार्जुन की कविता ‘प्रेत का बयान’ एक व्यंग्यात्मक और मार्मिक रचना है, जो स्वतंत्र भारत की विडंबनाओं और गरीबों की दुर्दशा पर गहरा प्रहार करती है। यह कविता एक प्रेत और नरक के मालिक यमराज के बीच के संवाद के माध्यम से समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।
‘प्रेत का बयान’ कविता की व्याख्या –
- “ओ रे प्रेत कड़ककर बोले नरक के मालिक यमराज ‘सच सच बतला ! कैसे मरा तू?'”
अर्थ – हे प्रेत! नरक के स्वामी यमराज कड़कते हुए बोले, “सच-सच बता, तू कैसे मरा?”
व्याख्या – यमराज, जो मृतात्माओं का न्याय करते हैं, प्रेत से उसकी मृत्यु के कारण की जाँच करते हैं। उनका कड़क स्वर डरावना और अधिकारपूर्ण है, जो प्रेत को सच बोलने के लिए मजबूर करता है।
- “भूख से अकाल से? बुखार कालाजार से? पेचिस बदहजमी, प्लेग महामारी से? कैसे मरा तू, सच-सच बतला !”
अर्थ – क्या तू भूख या अकाल से मरा? बुखार, कालाजार, पेचिश, बदहजमी या प्लेग जैसी महामारी से? सच-सच बता!
व्याख्या – यमराज विभिन्न बीमारियों और कठिनाइयों का उल्लेख करके प्रेत से स्पष्ट जवाब माँगते हैं। यहाँ गरीबी और स्वास्थ्य समस्याओं को मृत्यु के संभावित कारणों के रूप में दिखाया गया है, जो उस युग की सामाजिक स्थिति को प्रतिबिंबित करता है।
- “खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा”
अर्थ – खड़-खड़ और हड़-हड़ की आवाज़ के साथ प्रेत का हड्डियों का मानवीय ढाँचा काँप उठा।
व्याख्या – प्रेत का कंकाल जैसे शरीर यमराज के सवालों से डर जाता है, और इस ध्वन्यात्मक वर्णन से उसकी कमजोरी और भय को दर्शाया गया है।
- “नचाकर लंबे चमचों-सा पंचगुरा हाथ रूखी पतली किट किट आवाज़ में”
अर्थ – अपने लंबे, चमचों जैसे पंचगुरा (हाथ) नचाते हुए, रूखी और पतली किट-किट आवाज़ में।
व्याख्या – प्रेत का हाथ काँपता है, और उसकी आवाज़ कमजोर और टूटती हुई है, जो उसके दयनीय हालत को व्यक्त करती है। “चमचों-सा” से तात्पर्य उसकी हड्डियों की पतली संरचना से है।
- “प्रेत ने जवाब दिया – ‘महाराज! सच-सच कहूँगा झूठ नहीं बोलूँगा'”
अर्थ – प्रेत ने जवाब दिया, “हे महाराज! मैं सच-सच कहूँगा, झूठ नहीं बोलूँगा।”
व्याख्या – प्रेत यमराज के प्रति सम्मान दिखाते हुए सच बोलने की कसम खाता है, जो उसके स्वाभिमान को दर्शाता है।
- “नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के पूर्णिया जिला है, सूबा बिहार के सिवान पर थाना धमदाहा, बस्ती रूपउली जाति का कायस्थ उमर कुछ अधिक पचपन साल की पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था –”
अर्थ – हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं, पूर्णिया जिले के, बिहार प्रांत के सिवान में, थाना धमदाहा, बस्ती रूपउली के रहने वाले, कायस्थ जाति के, उम्र लगभग 55 साल, और पेशे से प्राइमरी स्कूल के शिक्षक थे।
व्याख्या – प्रेत अपनी पहचान और सामाजिक स्थिति को विस्तार से बताता है, जो उसके शिक्षित और सम्मानित जीवन को दर्शाता है। यह स्वतंत्र भारत के एक साधारण नागरिक की कहानी है।
- “किंतु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको”
अर्थ – लेकिन भूख या क्षुधा नाम की किसी बीमारी का हमें पता नहीं।
व्याख्या – प्रेत कहता है कि उसकी मृत्यु भूख से नहीं हुई, जो यमराज के सवाल का जवाब देने का एक तरीका है। यहाँ व्यंग्य है कि भूख को बीमारी के रूप में मान्यता नहीं दी गई।
- “सावधान महाराज, नाम नहीं लीजिएगा हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!”
अर्थ – हे महाराज, सावधान रहें, हमारे सामने फिर कभी भूख का नाम न लें!
व्याख्या – प्रेत भूख के नाम से इतना आहत है कि वह यमराज को चेतावनी देता है। यह उसकी गरिमा और भूख से पीड़ा का प्रतीक है।
- “निकल गया भाप आवेग का तदनंतर शांत-स्तंभित स्वर में प्रेत बोला”
अर्थ – उसके आवेग की भाप निकल गई, और फिर शांत और स्तब्ध स्वर में प्रेत बोला।
व्याख्या – प्रेत का गुस्सा शांत हो जाता है, और वह अब धीरे-धीरे अपनी कहानी सुनाता है।
- “जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है सुनिए महाराज, तनिक भी पीर नहीं दुःख नहीं, दुविधा नहीं सरलतापूर्वक निकले थे प्राण सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला..”
अर्थ – जहाँ तक मेरा संबंध है, हे महाराज, सुनिए, मुझे कोई पीड़ा, दुख या दुविधा नहीं थी; प्राण सहजता से निकले जब पेचिश के हमले ने आँतों को सहन नहीं किया।
व्याख्या – प्रेत कहता है कि उसकी मृत्यु दर्दरहित थी, लेकिन पेचिश (डायरिया) ने उसे मार डाला। यहाँ गरीबी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का संकेत है।
- “सुनकर दहाड़ स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की रह गए निरूत्तर महामहिम नर्केश्वर।”
अर्थ – इस दहाड़ को सुनकर स्वतंत्र भारत के प्राइमरी स्कूल के भूखे, स्वाभिमानी शिक्षक प्रेत की बात सुनकर महामहिम यमराज निरुत्तर रह गए।
व्याख्या – प्रेत की कहानी—एक शिक्षक की भूख और बीमारी से मृत्यु—यमराज को भी चुप करा देती है। “भुखमरे स्वाभिमानी” शब्द उसकी गरिमा और दुख को उजागर करते हैं, जो समाज की विफलता को दिखाता है।
समग्र भाव
कविता में एक प्रेत, जो स्वतंत्र भारत के एक प्राइमरी स्कूल का शिक्षक था, अपनी मृत्यु का बयान यमराज के सामने देता है। वह भूख को बीमारी के रूप में स्वीकार करने से इनकार करता है, लेकिन अंततः पेचिश से मरने की बात कहता है, जो गरीबी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का परिणाम है। उसका स्वाभिमान और यमराज के प्रति जवाबदेही उसकी गरिमा को दर्शाती है। कवि ने स्वतंत्र भारत में शिक्षा और गरीबी के बीच विरोधाभास को उजागर किया है, जहाँ एक शिक्षक—जो समाज का निर्माता होता है—भूख और बीमारी से मर जाता है। यमराज का निरुत्तर होना इस विडंबना पर चोट है कि मृत्यु के बाद भी न्याय नहीं मिलता। इस कविता का संदेश यह है कि स्वतंत्रता के बाद भी गरीबी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और शिक्षकों की उपेक्षा जैसे मुद्दों पर कटाक्ष करती है। यह समाज को आईना दिखाती है कि एक शिक्षक, जो बच्चों का भविष्य बनाता है, खुद भूख और बीमारी का शिकार हो जाता है।
‘प्रेत का बयान’ कविता से जुड़े बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर –
प्रश्न – यमराज ने प्रेत से क्या पूछा?
क. तुम कहाँ से आए हो?
ख. तुम कैसे मरे हो, सच-सच बताओ?
ग. तुम्हारा नाम क्या है?
घ. तुम्हारा परिवार कहाँ है?
प्रश्न – प्रेत का शरीर कविता में कैसे वर्णित है?
क. मोटा और मजबूत
ख. हड्डियों का काँपता हुआ मानवीय ढाँचा
ग. सुनहरा और चमकदार
घ. कोमल और सुंदर
प्रश्न – प्रेत ने अपनी मृत्यु का कारण क्या बताया?
क. भूख
ख. पेचिश का हमला
ग. प्लेग
घ. बुखार
प्रश्न – प्रेत ने भूख के नाम को क्यों अस्वीकार किया?
क. क्योंकि उसे शर्म आई
ख. क्योंकि उसे भूख की बीमारी का पता नहीं था
ग. क्योंकि वह झूठ बोलना चाहता था
घ. क्योंकि यमराज ने उसे डराया
प्रश्न – प्रेत का पेशा क्या था?
क. किसान
ख. प्राइमरी स्कूल का मास्टर
ग. सैनिक
घ. व्यापारी
प्रश्न – प्रेत ने अपनी पहचान में किस जिले का उल्लेख किया?
क. पटना
ख. पूर्णिया
ग. मुजफ्फरपुर
घ. गया
प्रश्न – प्रेत ने अपनी मृत्यु के समय कैसा अनुभव बताया?
क. बहुत दर्द और पीड़ा
ख. सरलता और पीड़ा रहित
ग. डर और दुविधा
घ. गुस्सा और क्रोध
प्रश्न – यमराज प्रेत की बात सुनकर क्या प्रतिक्रिया दिखाई?
क. गुस्सा
ख. हँसी
ग. निरुत्तर रह गए
घ. प्रशंसा
प्रश्न – कविता में प्रेत का स्वभाव कैसा दर्शाया गया है?
क. डरपोक और कमजोर
ख. स्वाभिमानी और सच्चा
ग. क्रूर और चालाक
घ. लापरवाह
प्रश्न – कविता का मुख्य संदेश क्या है?
क. मृत्यु के बाद सब बराबर होते हैं
ख. स्वतंत्र भारत में गरीबी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
ग. यमराज का डर
घ. प्रेतों की कहानियाँ
‘प्रेत का बयान’ कविता से जुड़े एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर –
प्रश्न: यमराज ने प्रेत से क्या पूछा?
उत्तर: यमराज ने प्रेत से उसकी मृत्यु का कारण पूछा।
प्रश्न: प्रेत किस राज्य और जिले का निवासी था?
उत्तर: प्रेत बिहार राज्य के पूर्णिया जिले का निवासी था।
प्रश्न: प्रेत का पेशा क्या था?
उत्तर: प्रेत एक प्राइमरी स्कूल का शिक्षक था।
प्रश्न: प्रेत की उम्र कितनी थी?
उत्तर: प्रेत की उम्र पचपन वर्ष से थोड़ी अधिक थी।
प्रश्न: प्रेत की मृत्यु किस कारण हुई थी?
उत्तर: प्रेत की मृत्यु पेचिश के कारण हुई थी।
प्रश्न: प्रेत ने भूख के बारे में क्या कहा?
उत्तर: प्रेत ने कहा कि वह भूख को कोई व्याधि नहीं मानता और उसके सामने भूख का नाम न लिया जाए।
प्रश्न: प्रेत ने अपनी जाति क्या बताई?
उत्तर: प्रेत ने अपनी जाति कायस्थ बताई।
प्रश्न: यमराज प्रेत से कैसे बोले?
उत्तर: यमराज प्रेत से कड़ककर बोले।
प्रश्न: प्रेत की आवाज़ कैसी थी?
उत्तर: प्रेत की आवाज़ रूखी, पतली और किटकिटाहट भरी थी।
प्रश्न: यमराज का प्रश्न सुनकर प्रेत ने कैसा उत्तर दिया?
उत्तर: प्रेत ने शांत और स्वाभिमानी ढंग से यथार्थपूर्ण उत्तर दिया।
‘प्रेत का बयान’ कविता से जुड़े 40-50 शब्दों के प्रश्न और उत्तर –
प्रश्न: यमराज प्रेत से क्या जानना चाहते थे?
उत्तर: यमराज प्रेत से उसकी मृत्यु का कारण जानना चाहते थे। वे पूछते हैं कि क्या वह भूख, अकाल, बुखार, कालाजार, पेचिस, बदहजमी या किसी महामारी से मरा था, ताकि उसकी मौत की सही वजह का पता चल सके।
प्रश्न: प्रेत अपनी पहचान किस रूप में बताता है?
उत्तर: प्रेत अपनी पहचान एक स्वाधीन भारत के नागरिक के रूप में बताता है, जो बिहार के पूर्णिया जिले के रूपउली गाँव का निवासी था। वह पेशे से प्राइमरी स्कूल का मास्टर और जाति का कायस्थ था, जिसकी उम्र पचपन साल से अधिक थी।
प्रश्न: प्रेत ने यमराज को भूख के बारे में क्या कहकर चौंका दिया?
उत्तर: प्रेत ने यमराज को चौंकाते हुए कहा कि उसे भूख या क्षुधा नामक किसी बीमारी का कोई पता नहीं है। उसने यमराज को अपने सामने फिर कभी ‘भूख’ का नाम न लेने की चेतावनी दी, जो उसकी मजबूरी और स्वाभिमान को दर्शाता है।
प्रश्न: प्रेत के शरीर का ढाँचा कैसा वर्णित किया गया है?
उत्तर: प्रेत के शरीर का ढाँचा हड्डियों का मानवीय ढाँचा था, जो खड़-खड़ और हड़-हड़ की आवाज़ के साथ काँप रहा था। उसके लंबे, पतले हाथ चमचों-से दिखते थे, और उसकी आवाज़ रूखी और किट-किट करती हुई थी, जो उसकी अत्यधिक कमज़ोरी दर्शाती है।
प्रश्न: प्रेत अपनी मृत्यु का वास्तविक कारण क्या बताता है?
उत्तर: प्रेत अपनी मृत्यु का वास्तविक कारण पेचिस का हमला बताता है, जिसे उसकी आँतें सह नहीं सकीं। यह दर्शाता है कि भूख ने उसके शरीर को इतना दुर्बल कर दिया था कि एक सामान्य बीमारी भी उसकी जान लेने के लिए पर्याप्त थी।
प्रश्न: ‘भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत’ वाक्यांश का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह वाक्यांश उस विडंबना को दर्शाता है जहाँ एक शिक्षित और स्वाभिमानी व्यक्ति को भी भूख के कारण (अप्रत्यक्ष रूप से) मरना पड़ता है, लेकिन वह अपनी भूख को सीधे स्वीकार नहीं कर पाता। यह व्यवस्था की क्रूरता पर व्यंग्य है।
प्रश्न: कविता के अंत में यमराज निरूत्तर क्यों रह जाते हैं?
उत्तर: यमराज निरूत्तर रह जाते हैं क्योंकि प्रेत की कहानी – कि कैसे एक शिक्षित और स्वाभिमानी व्यक्ति को भूख के कारण मरना पड़ा लेकिन उसे अपनी भूख को स्वीकार करने की भी अनुमति नहीं थी – इतनी मार्मिक और यथार्थवादी थी कि स्वयं मृत्यु के देवता के पास भी इसका कोई जवाब नहीं था।
‘प्रेत का बयान’ कविता से जुड़े दीर्घ उत्तरीय प्रश्न और उत्तर
- कविता में प्रेत का चरित्र कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर: कविता में प्रेत एक स्वाभिमानी शिक्षक के रूप में चित्रित है, जो स्वतंत्र भारत के पूर्णिया जिले का निवासी था। उसका शरीर हड्डियों का काँपता ढाँचा है, जो गरीबी को दर्शाता है। वह यमराज से सच बोलता है कि पेचिश से मरा, पर भूख को बीमारी मानने से इनकार करता है, जो उसका गर्व दिखाता है। उसकी रूखी आवाज़ और यमराज को चेतावनी देना उसके स्वाभिमान को उजागर करती है।
- यमराज की भूमिका कविता में क्या है?
उत्तर: यमराज कविता में नरक के कठोर स्वामी के रूप में हैं, जो प्रेत से उसकी मृत्यु का कारण पूछते हैं। उनका कड़क स्वर और भूख, पेचिश जैसे सवाल मृत्यु की जाँच को दर्शाते हैं। परंतु प्रेत की भूखमरे शिक्षक की कहानी सुनकर वे निरुत्तर रह जाते हैं, जो सामाजिक विफलता पर चुप्पी का प्रतीक है। यह उनकी शक्ति और बेबसी का मिश्रण है, जो कविता को गहराई देता है।
- कविता में गरीबी का चित्रण कैसे हुआ है?
उत्तर: कविता में गरीबी प्रेत के जीवन और मृत्यु से चित्रित है। वह एक शिक्षक था, फिर भी पेचिश से मरा, जो स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी दिखाता है। भूख को बीमारी मानने से इनकार करना गरीबी को छिपाने की मानसिकता को उजागर करता है। उसका हड्डियों का शरीर और यमराज का निरुत्तर होना समाज की उपेक्षा को दर्शाते हैं, जो स्वतंत्र भारत की विडंबना है।
- प्रेत की मृत्यु का कारण क्या था, और इसका क्या संदेश है?
उत्तर: प्रेत की मृत्यु पेचिश के हमले से हुई, जो उसने यमराज को बताया। प्राण सरलता से निकले, पर यह बीमारी गरीबी और चिकित्सा की कमी का परिणाम थी। संदेश है कि स्वतंत्र भारत में भी शिक्षक जैसे सम्मानित व्यक्ति भूख और बीमारी से मरते हैं, जो समाज को जागरूक करता है। यह स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: कविता का मुख्य संदेश स्वतंत्र भारत में गरीबी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को उजागर करना है। प्रेत, एक शिक्षक, भूख और पेचिश से मरता है, जो समाज की विफलता को दिखाता है। उसका स्वाभिमान और यमराज का निरुत्तर होना हमें सिखाता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। यह समाज को गरीब वर्ग की बेहतरी के लिए कदम उठाने की प्रेरणा देती है।