डॉ. राजन यादव – लेखक परिचय
डॉ. राजन यादव का जन्म 19 अक्टूबर सन् 1968 को कबीरधाम जिले के पीपरमाटी गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह ग्राम कंझेटा और कुण्डा में हुई। डॉ. यादव भक्तिकालीन हिंदी साहित्य और लोक साहित्य के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनकी प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ तुलसी तरंग (समीक्षा ग्रंथ) विविधा (साहित्यिक निबंध) मध्ययुगीन हिंदी कविता में बसंत वर्णन (शोध ग्रंथ) हैं।
पाठ परिचय
अपने परिवेश की सांस्कृतिक धरोहरों की पहचान कराता हुआ पाठ कलातीर्थ खैरागढ़ का संगीत विश्वविद्यालय एशिया में अपनी तरह के अनूठे इस विश्वविद्यालय से न केवल हमें परिचित कराता है बल्कि गुणवत्ता और श्रेष्ठता पर गर्व करने हेतु प्रेरित भी करता है।
कलातीर्थ – खैरागढ़ का संगीत विश्वविद्यालय
कलात्मक सौंदर्य का संबंध जीवन और समाज से होता है। युग की उपलब्धियाँ और सीमाएँ दोनों ही कला में उभरती हैं। इसलिए कला को भारतीय जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहां कला के विविध रूपों की साधना हमारी जीवन यात्रा की लम्बी और गौरवपूर्ण गाथा है। भारतीय संस्कृति जितनी पुरानी है, उतनी ही पुरानी इसकी कलाएँ हैं। भारतीय कला-चिंतन में कला को एक साधना माना गया है। प्राचीन आचार्यों ने कला को भक्ति से भी जोड़ा है। भर्तृहरि ने तो साहित्य संगीत और कला से विहीन मनुष्य को पूँछ और सींग से रहित साक्षात् पशु कहा है- ‘साहित्य संगीतकला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाण हीनः। भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का एक कारण उसकी कलात्मकता भी है। संगीत आदि ललित कलाएँ मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करती हैं तथा मानवता को प्रांजल बनाती हैं। इनमें व्यक्ति का व्यक्तित्व तो भास्वर होता ही है, समष्टि – चेतना भी समन्वित रूप में बलवती हो उठती है। भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर इन्हीं कलाओं के संवर्धन और संरक्षण में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ का योगदान अविस्मरणीय है। विगत छप्पन वर्षों में विश्वविद्यालय ने उन्नति के अनेक शिखर छुए हैं।
खैरागढ़ भारत के मध्य भाग में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिले के अंतर्गत आता है। यहाँ का ग्रामीण एवं शांत परिवेश विश्वविद्यालय की कला और कला – साधना में विशेष सहायक है। यहाँ रियासत कालीन कलात्मक व गुलाबी रंग के महल की अपनी विशेषता है। नागवंश के दानवीर राजा-रानी ने अर्धशती पहले जो संगीत की बगिया लगाई थी, उसमें आज संगीत ही नहीं, सभी ललित कलाओं के बहुरंगी व बहुगंधी पुष्प विकसित हो रहे हैं।
खैरागढ़ राज्य और नागवंश के अतीत पर दृष्टि डालें तो खैरागढ़ के इतिहास का आरंभ खोलवा – परगना से होता है जिसे मण्डला के राजा ने लक्ष्मीनिधि कर्णराय को उनकी वीरता के लिए सन् 1487 ई में पुरस्कार स्वरूप दिया था। इन्हीं के चारण कवि दलपतराव ने इस क्षेत्र के लिए पहली बार छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग अपनी कविता में 1497 ई. में किया था। स्व. लाल प्रद्युम्न सिंह रचित ग्रंथ नागवंश के अनुसार वर्तमान खैरागढ़ में नागवंशी राजाओं के इतिहास का आरंभ राजा खड़गराय से हुआ। वे खोलवा राज्य के सोलहवें तथा नई राजधानी खैरागढ़ के प्रथम राजा थे। उन्होंने पिपरिया, मुस्का तथा आमनेर नदी के मध्य अपने नाम से एक नगर बसाया। उस नगर के चारों ओर खैर वृक्षों की अधिकता थी। इतिहासकार दोनों मान्यताओं से सहमत हैं कि राजा खड़गराय या खैर वृक्षों की अधिकता की वजह से नगर को खैरागढ़ कहा जाने लगा।
कालांतर में यहाँ के नागवंशी राजा उमराव सिंह व राजा कमलनारायण सिंह जैसे प्रजावत्सल, विद्यानुरागी, कलाप्रेमी तथा साहित्य सृजक राजाओं ने स्वास्थ्य तथा संगीत-कला पर विशेष ध्यान दिया। प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक वैभव से सम्पन्न इसी धरती के मनोहर प्रांगण में आज से छप्पन वर्ष पूर्व एक अपूर्व विश्वविद्यालय का अविर्भाव हुआ। गुरु-शिष्य परम्परा से पल्लवित संगीत की शिक्षा के लिए विद्यालयों की परिकल्पना भी बाल्यावस्था में थी, उसी समय तत्कालीन मध्यप्रदेश के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में स्थित खैरागढ़ नगर को इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना का गौरव प्राप्त हुआ। यहाँ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह एवं रानी पद्मावती देवी की प्रसिद्धि सदैव मुस्काती रहेगी, जिन्होंने अपनी दिवंगत पुत्री राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में सम्पूर्ण राजभवन का उदारतापूर्वक दान करके इस विश्वविद्यालय की स्थापना की। 14 अक्टूबर 1956 ईस्वी में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इसका उद्घाटन किया। यहीं से मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल के सहयोग से एशिया के इस प्रथम एवं एक मात्र विश्वविद्यालय की स्वर्णयात्रा आरंभ हुई।
इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद्मभूषण पं. एस. एन. रातंजनकर का संगीत के आरंभिक पाठ्यक्रम बनाने में महती योगदान रहा। उन्होंने संगीत की शिक्षा को घरानों की चहारदीवारी से निकालकर संस्थागत किया। शास्त्र और प्रयोग को एक दूसरे के नजदीक लाने और जोड़ने का कार्य किया इससे गीत, संगीत और नृत्य की शिक्षा के प्रति समाज का दृष्टिकोण सकारात्मक हुआ।
वर्तमान में विश्वविद्यालय के शिक्षण विभाग द्वारा संगीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला, छापाकला, लोककला तथा साहित्य संबंधी डिप्लोमा, स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित हैं। यहाँ के बी.ए., बी.ए. (आनर्स) संगीत, नृत्य, लोकसंगीत तथा बी.एफ.ए., एम.ए., एम. एफ.ए. के पाठ्यक्रम रोजगारमूलक तथा जीवन पर्यंत उपयोगी हैं। यहाँ गायन पक्ष में- हिन्दुस्तानी गायन, कर्नाटक गायन, सुगमसंगीत तथा लोकसंगीत की प्रभावी शिक्षण व्यवस्था है। नृत्य पक्ष में कथक, भरतनाट्यम तथा ओडिसी नृत्य की शास्त्रीय और प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती है। वाद्यपक्ष में तबला, वायलिन, सितार, सरोद, कर्नाटक बेला तथा लोकवाद्यों की शिक्षा दी जाती है। दृश्यकला के अंतर्गत चित्रकला, मूर्तिकला तथा छापाकला में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा व्यवस्था है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा स्वीकृत दो स्पेशलाइजेशन पाठ्यक्रम बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.ओक.) फैशन डिजाइनिंग और टेक्सटाइल डिजाइनिंग का पाठ्यक्रम संचालित करने वाला यह एक मात्र विश्वविद्यालय है।
यहाँ कला संकाय में हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के पाठ्यक्रम संचालित हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व तथा थियेटर की स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है। यहाँ पर्यावरण से लेकर दैनिक जीवन में उपयोगी अनेक प्रकार की शिक्षा दी जाती है। विश्वविद्यालय में दर्जनों मनोरंजक तथा रोजगारमूलक डिप्लोमा तथा सर्टिफिकेट कोर्स संचालित हैं। विश्वविद्यालय में पाँच संकाय के बीस विभागों द्वारा संस्थागत, जीवन शिक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है। छत्तीसगढ़ का यह एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिनके संबद्ध महाविद्यालय भारत के कई राज्यों में हैं। सम्पूर्ण भारत में 24 सम्बद्ध महाविद्यालय तथा 35 परीक्षा केन्द्रों में परिव्याप्त यह विश्वविद्यालय ललितकलाओं का गौरव स्तंभ है। यहाँ पी-एच.डी. तथा डी.लिट्. तक शोध कार्य होते हैं। यहाँ से प्रकाशित उच्चस्तरीय शोध पत्रिकाएँ ‘कलासौरभ’ ‘कला-वैभव’ तथा ‘लिटरेरी डिस्कोर्स विश्वविद्यालय के गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के दर्पण हैं। यहां ललित कलाओं के सृजक – चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुकार, संगीतकार और काव्यकार सभी नवीन उद्भावनाओं को मूर्तरूप देने के प्रयास में संलग्न हैं।
ललितकलाओं की दृष्टि से यहाँ का ग्रंथालय भारतवर्ष में प्रथम है, जो पैंतालिस हजार से अधिक पुस्तकें, ऑडियो (श्रव्यताफोन, अभिलेख) और सी.डी., भारतीय चित्रकारों की विडियो स्लाइड्स, लोक एवं जनजातीय कलाकारों के कला नमूनों के उल्लेखनीय संग्रह से सुसज्जित है। ग्रंथालय में भव्य श्रव्यकक्ष है, जहाँ विद्यार्थी, शोधार्थी तथा कला – जिज्ञासु अपने विषय के अनुरूप महान कलाकारों के ऑडियो-विडियो कैसेट्स द्वारा ज्ञान अर्जन करते हैं। विश्वविद्यालय के संग्रहालय में कलात्मक अवशेषों का विपुल संग्रह है, जो देश के इस हिस्से की बहुविध समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करता है। शास्त्रीय एवं लोकसंगीत के वाद्यों की कलावीथिका भी मनोहारी है। विश्वविद्यालय का शिक्षण तथा प्रशासनिक कार्य दो परिसरों में संपन्न होता है।
छत्तीसगढ़ का प्रथम तथा भव्य आडिटोरियम विश्वविद्यालय में ही स्थित है। अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त ‘रिकार्डिंग रूम’ तथा ‘लैंग्वेज लैब’ की अपनी विशिष्टता है। हाइटेक कम्प्यूटर सेंटर तथा योग केंद्र की भी महती भूमिका है। देशी-विदेशी विद्यार्थियों, शोधार्थियों के लिए सुविधायुक्त कई महिला एवं पुरुष छात्रावास हैं। साथ ही बाहर से आने वाले अतिथियों के ठहरने के लिए अतिथिगृह की भी उत्तम व्यवस्था है। इतना ही नहीं, यहाँ का हरा-भरा परिसर कलासाधकों की साधना के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करता है।
इस उत्सवधर्मी विश्वविद्यालय में वर्षभर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, उत्सव, प्रदर्शनियाँ आयोजित होती हैं। देश-विदेश के ख्यातिलब्ध कलाकार, साहित्यकार, नाटककार इस कलातीर्थ में आकर गौरव का अनुभव करते हैं। महान नृत्य गुरु पं. लच्छू महाराज, संगीत मर्मज्ञ ठाकुर जयदेव सिंह, प्रसिद्ध नृत्यांगना सितारा देवी, विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पं. रविशंकर, भारत रत्न लता मंगेशकर, छत्तीसगढ़ माटी के विश्वविख्यात रंग निदेशक हबीब तनवीर, प्रख्यात कला विदुषी डॉ. कपिला वात्स्यायन, चित्रकला के पुरोधा सैयद हैदर रजा, विश्व प्रसिद्ध कलाकार जोहरा सहगल सदृश अनेक विभूतियाँ इस विश्वविद्यालय में मानद डी. लिट् से सम्मानित हुई हैं।
इस कलातीर्थ में भारत के कई प्रांतों तथा श्रीलंका, पोलैण्ड, थाईलैण्ड, ऑस्ट्रिया, फिजी, तुर्की, मॉरिशस, नेपाल, अफगानिस्तान, मलेशिया आदि देशों से विद्यार्थी- शोधार्थी श्रद्धाभाव से आते हैं। अलग-अलग स्थानों से आए, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम एवं शोध आवश्यकताओं की अपेक्षाएँ पूरी होती हैं। यहाँ की अनूठी प्रकृति विद्यार्थियों को भारत की समृद्ध पारंपरिक भारतीयता के ज्ञानार्जन की अनुभूति कराती है।
कलाकार को मनोनुकूल परिवेश के लिए ऐसे समाज की तलाश होती है जिससे बेगानेपन का भाव न हो और वह पड़ोस के समुदाय से भावनात्मक रूप से जुड़ सके। महात्मा गाँधी ने 23 नवम्बर 1924 में प्रसिद्ध संगीतज्ञ श्री दिलीपकुमार राय से कला के संबंध में बातें करते हुए कहा था- “कलाकार जब कला को कल्याणकारी बनाएँगे और जनसाधारण के लिए सुलभ कर देंगे, तभी उस कला को जीवन में स्थान मिलेगा। जब कला लोक की न रहकर थोड़े लोगों की रह जाती है, तब मैं मानता हूँ कि उसका महत्त्व कम हो गया।”
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की भावना के अनुरूप इस कलातीर्थ के प्रथम कुलपति रातंजनकर हों या प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रजी या रामकथा गायक व विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरुण कुमार सेन हों, अब तक कार्यरत विश्वविद्यालय के समस्त कुलपतियों, शिक्षकों, संगीतकारों व कर्मचारियों ने इसके संरक्षण और संवर्धन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्थान से लेकर अब तक के 20वें कुलपति प्रो. डॉ. माण्डवी सिंह ने ललितकला को समर्पित इस विश्वविद्यालय के विकास में प्रभावी भूमिका का निर्वाह किया है। यहां राज्य सरकार के सहयोग से हर वर्ष ‘खैरागढ़ महोत्सव’ का भव्य आयोजन होता है जिसमें देश-विदेश के स्वनामधन्य कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय आज प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (नेशनल एसेसमेंट एण्ड एक्रीडिटेशन काउंसिल) द्वारा 24 सितम्बर 2014 को विश्वविद्यालय को प्रत्यायित कर ‘ए’ दर्जा प्राप्त हुआ है। देश के प्रतिष्ठित संस्थान, रिक्रूटमेंट के लिए विश्वविद्यालय आते हैं जिसमें यहाँ के विद्यार्थी चयनित होते हैं। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार व फैलोशिप प्राप्त शिक्षक, शोधार्थी तथा विद्यार्थी यहाँ की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए क्रियाशील हैं।
यहाँ से दीक्षित कलाकार देश-विदेश में भारतीय कला संस्कृति के ध्वजवाहक बने हुए हैं। क्योंकि कला राष्ट्र के जीवन का एक मुख्य अंग है, उससे ही हमारे जीवन को रस, सुकुमारता और सहृदयता का आहार मिलता है। आज अन्य देशों के लोगों ने अपनी जिस संस्कृति के आधार पर अपने आचार-विचार और समस्त जीवन को कार्यान्वित किया है, उससे वे ऊब रहे हैं, वे भारतीय जीवन की सरलता, मधुरता व उपयोगिता को अपनाने में सुख शांति का अनुभव कर रहे हैं। भारतीय कृतियों में आनंद को समस्त कलाओं का एकमात्र लक्ष्य माना गया है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘समस्त काव्य, चित्रकला और संगीत, शब्द, रंग और ध्वनि के द्वारा भावना की ही अभिव्यक्ति है।’ हमारी अवधारणा में मनुष्य कोई पदार्थ नहीं, पूर्ण चेतन है, जो परमेश्वर का ही सांस्कृतिक प्रतिनिधि माना गया है। यहाँ के कला साधक यही बोध कराने के लिए क्रियाशील हैं। गायन विभाग के पूर्व प्रवक्ता डॉ. अनिता सेन द्वारा रचित एवं स्वरबद्ध विश्वविद्यालय के कुलगीत में भी जनकल्याणकारी भावना प्रतिबिंबित होती है-
प्रतिपल जीवन नव कोणों में विकसित होता जाए।
धन्य विश्वविद्यालय पावन, स्वर्ग धरा पर लाए॥
इस कलातीर्थ का ध्येय वाक्य है- “सुस्वराः संतु सर्वेऽपि” अर्थात् “सभी सुन्दर स्वर वाले हों।” कला के पथ पर निरंतर अग्रसर होते हुए हमारी समृद्ध संस्कृति का वाहक यह विश्वविद्यालय अपने ध्येय वाक्य की सार्थकता को सिद्ध कर रहा है।
सारांश
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़, छत्तीसगढ़, भारतीय संस्कृति और ललित कलाओं का प्रमुख केंद्र है, जो 1956 में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती देवी द्वारा अपनी पुत्री इंदिरा की स्मृति में स्थापित किया गया। यह विश्वविद्यालय संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, लोककला और साहित्य में डिप्लोमा, स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध पाठ्यक्रम संचालित करता है। प्रथम कुलपति पं. एस.एन. रातंजनकर ने संगीत शिक्षा को संस्थागत किया। विश्वविद्यालय का ग्रंथालय, संग्रहालय, और भव्य आडिटोरियम कलात्मक धरोहर को संरक्षित करते हैं। यहाँ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ, खैरागढ़ महोत्सव, और रोजगारमूलक पाठ्यक्रम आयोजित होते हैं। विश्वविद्यालय को UGC द्वारा ‘ए’ दर्जा प्राप्त है। यह भारतीय कला-संस्कृति के वैश्विक प्रचार और जनकल्याणकारी शिक्षा का प्रतीक है।
शब्दार्थ
प्रांजल – खरा, सरल या शुद्ध, ईमानदार, समतल
संरक्षण – सहेजना
संवर्धन – समुचित रूप से बनना
आलोकित – प्रकाशित
आविर्भाव – उत्पन्न
फल लगना – फूलना,
कला वीथिका – कला गलियारा
पुरोधा – आदिपुरुष।
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
कलात्मक सौंदर्य | कला से संबंधित सुंदरता | Artistic beauty |
प्रांजल | स्पष्ट, निर्मल | Clear, pure |
भास्वर | चमकदार, तेजस्वी | Radiant, luminous |
समष्टि-चेतना | सामूहिक चेतना | Collective consciousness |
संवर्धन | विकास, संरक्षण | Enrichment, preservation |
दानवीर | उदार, दान करने वाला | Philanthropist |
विद्यानुरागी | ज्ञान और विद्या का प्रेमी | Lover of knowledge |
प्रजावत्सल | प्रजा का प्रेम करने वाला | Benevolent towards subjects |
अविर्भाव | प्रादुर्भाव, उदय | Emergence, establishment |
उदारतापूर्वक | उदारता के साथ | Generously |
घरानों की चहारदीवारी | संगीत घरानों की सीमाएँ | Boundaries of musical traditions |
छापाकला | मुद्रण कला | Printmaking |
मनोहारी | मन को आकर्षित करने वाली | Captivating, charming |
स्वनामधन्य | प्रसिद्ध, ख्याति प्राप्त | Renowned, celebrated |
प्रत्यायित | प्रमाणित, स्वीकृत | Accredited |
ध्वजवाहक | प्रतीक, वाहक | Flagbearer, representative |
सुकुमारता | कोमलता, शालीनता | Delicacy, refinement |
सहृदयता | संवेदनशीलता, हृदय की कोमलता | Sensibility, empathy |
कुलगीत | विश्वविद्यालय का गीत | University anthem |
ध्येय वाक्य | आदर्श वाक्य, मिशन स्टेटमेंट | Motto, mission statement |
अभ्यास
पाठ से
- भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों माना गया है?
उत्तर – भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का एक कारण उसकी कलात्मकता भी है। संगीत आदि ललित कलाएँ मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करती हैं तथा मानवता को प्रांजल बनाती हैं। इनमें व्यक्ति का व्यक्तित्व भास्वर व चमकीला होता है और सामूहिक चेतना भी समन्वित रूप में बलवती हो उठती है।
- पाठ के आधार पर खैरागढ़ राज्य के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – खैरागढ़ के इतिहास का आरंभ खोलवा-परगना से होता है, जिसे सन् 1487 ई. में मंडला के राजा ने लक्ष्मीनिधि कर्णराय को उनकी वीरता के लिए पुरस्कार स्वरूप दिया था। इन्हीं के चारण कवि दलपतराव ने 1497 ई. में इस क्षेत्र के लिए पहली बार ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का प्रयोग किया था।
नागवंश के इतिहास का आरंभ राजा खड़गराय से हुआ, जो खोलवा राज्य के सोलहवें तथा नई राजधानी खैरागढ़ के प्रथम राजा थे। उन्होंने पिपरिया, मुस्का और आमनेर नदी के मध्य अपने नाम से एक नगर बसाया। इतिहासकारों का मत है कि राजा खड़गराय या फिर नगर के चारों ओर खैर वृक्षों की अधिकता के कारण इसे खैरागढ़ कहा जाने लगा।
- खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना किस तरह हुई?
उत्तर – खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती देवी ने अपनी दिवंगत पुत्री राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में की थी। उन्होंने अपनी उदारता का परिचय देते हुए संपूर्ण राजभवन का दान कर दिया था। इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन 14 अक्टूबर 1956 ईस्वी में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने किया था। यह एशिया का प्रथम एवं एकमात्र विश्वविद्यालय है जो ललित कलाओं को समर्पित है।
- विश्वविद्यालय के कुलपति पं. एस. एन. रातंजनकर के योगदान को लिखिए।
उत्तर – प्रथम कुलपति पद्मभूषण पं. एस. एन. रातंजनकर का संगीत के आरंभिक पाठ्यक्रम बनाने में महती योगदान रहा।
उन्होंने संगीत की शिक्षा को घरानों की चहारदीवारी से निकालकर संस्थागत किया।
उन्होंने शास्त्र और प्रयोग को एक-दूसरे के नजदीक लाने और जोड़ने का कार्य किया।
इन कार्यों से गीत, संगीत और नृत्य की शिक्षा के प्रति समाज का दृष्टिकोण सकारात्मक हुआ।
- खैरागढ़ विश्वविद्यालय में कौन-कौन से शिक्षण विषय उपलब्ध हैं?
उत्तर – वर्तमान में विश्वविद्यालय के शिक्षण विभाग द्वारा निम्नलिखित विषयों संबंधी डिप्लोमा, स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित हैं –
संगीत कला
गायन पक्ष – हिन्दुस्तानी गायन, कर्नाटक गायन, सुगम संगीत, लोक संगीत।
नृत्य पक्ष – कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी नृत्य।
वाद्य पक्ष – तबला, वायलिन, सितार, सरोद, कर्नाटक बेला, लोकवाद्य।
चित्रकला
मूर्तिकला
छापाकला
लोककला
साहित्य (हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य)
प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व
थियेटर
बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.ओक.) – फैशन डिजाइनिंग और टेक्सटाइल डिजाइनिंग (यू.जी.सी. द्वारा स्वीकृत स्पेशलाइजेशन पाठ्यक्रम)।
- टिप्पणी लिखिए-
(क) ग्रंथालय
उत्तर – खैरागढ़ विश्वविद्यालय का ग्रंथालय ललितकलाओं की दृष्टि से भारतवर्ष में प्रथम है। यह पैंतालिस हजार से अधिक पुस्तकों के साथ-साथ निम्नलिखित उल्लेखनीय संग्रहों से सुसज्जित है –
ऑडियो (श्रव्यताफोन, अभिलेख) और सी.डी.
भारतीय चित्रकारों की विडियो स्लाइड्स।
लोक एवं जनजातीय कलाकारों के कला नमूनों का संग्रह।
इसमें एक भव्य श्रव्यकक्ष भी है, जहाँ विद्यार्थी, शोधार्थी और कला-जिज्ञासु अपने विषय के अनुरूप महान कलाकारों के ऑडियो-विडियो कैसेट्स द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं।
(ख) ललितकला
उत्तर – ललितकलाएँ वे कलाएँ हैं जो मुख्य रूप से सौंदर्य और आनंद की अभिव्यक्ति पर केंद्रित होती हैं, जैसे संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला और काव्य। पाठ के अनुसार –
ललित कलाएँ मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करती हैं तथा मानवता को प्रांजल बनाती हैं।
इनसे व्यक्ति का व्यक्तित्व भास्वर होता है और समष्टि-चेतना बलवती होती है।
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय इन कलाओं के संवर्धन और संरक्षण में अविस्मरणीय योगदान दे रहा है।
- इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय को कलातीर्थ क्यों कहा गया है?
उत्तर – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय को ‘कलातीर्थ’ (कला का पवित्र स्थल) कहा गया है क्योंकि –
यह ललित कलाओं को समर्पित एशिया का प्रथम और एकमात्र विश्वविद्यालय है।
यह भारतीय कला संस्कृति की अमूल्य धरोहर के संवर्धन और संरक्षण का केंद्र है।
यहाँ कला की उच्च-स्तरीय साधना होती है, जो कला-चिंतन में एक साधना मानी गई है।
यह एक उत्सवधर्मी विश्वविद्यालय है जहाँ वर्षभर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, उत्सव आदि आयोजित होते हैं।
देश-विदेश के ख्यातिलब्ध कलाकार, साहित्यकार यहाँ आकर गौरव का अनुभव करते हैं।
भारत के कई प्रांतों तथा विभिन्न देशों (श्रीलंका, पोलैंड, थाईलैंड, ऑस्ट्रिया आदि) से विद्यार्थी-शोधार्थी श्रद्धाभाव से यहाँ ज्ञानार्जन के लिए आते हैं।
इसका ध्येय वाक्य है – “सुस्वराः संतु सर्वेऽपि” अर्थात् “सभी सुन्दर स्वर वाले हों,” जो जनकल्याणकारी भावना को दर्शाता है। यह एक ऐसा केंद्र है जहाँ कला-साधकों को अनुकूल परिवेश और समृद्ध पारंपरिक भारतीयता के ज्ञानार्जन की अनुभूति मिलती है।
पाठ से आगे
- कलाएँ हमारे जीवन को किस तरह खुशहाल व परिपूर्ण बनाती हैं?
उत्तर – कलाएँ हमारे जीवन को कई तरह से खुशहाल और परिपूर्ण बनाती हैं –
आनंद और सौंदर्य – कलाएँ (जैसे संगीत, चित्रकला) आनंद और सौंदर्य की अनुभूति कराती हैं, जो जीवन की नीरसता को दूर कर उसे सरस बनाती हैं।
भावनात्मक अभिव्यक्ति और शांति – कला भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है (जैसा कि विवेकानंद ने कहा है)। यह मन को सुकुमारता और सहृदयता का आहार देती है, जिससे व्यक्ति को सुख-शांति मिलती है और वह तनावमुक्त होता है।
व्यक्तित्व का विकास – ललित कलाएँ व्यक्ति के व्यक्तित्व को भास्वर बनाती हैं और उसे पूर्णता प्रदान करती हैं, जिससे उसमें संवेदनशीलता और रचनात्मकता विकसित होती है।
सांस्कृतिक जुड़ाव – कलाएँ हमारी संस्कृति और परम्पराओं का ज्ञान कराती हैं, जिससे हम अपनी जड़ों से जुड़ते हैं और जीवन को एक गौरवपूर्ण गाथा के रूप में देखते हैं।
- ललितकलाएँ कौन-सी हैं और उन्हें ललितकलाएँ क्यों कहा गया है?
उत्तर – ललितकलाएँ (Fine Arts) वे कलाएँ हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सौंदर्य की अभिव्यक्ति और आध्यात्मिक/मानसिक आनंद प्रदान करना होता है। ये कलाएँ मुख्य रूप से उपयोगिता (utility) के बजाय भावनात्मक और सौंदर्यपरक मूल्य पर केंद्रित होती हैं।
प्रमुख ललितकलाएँ हैं –
संगीत (Vocal and Instrumental)
काव्य (Poetry/Literature)
नृत्य (Dance)
चित्रकला (Painting)
मूर्तिकला (Sculpture)
इन्हें ‘ललितकलाएँ’ क्यों कहा गया है?
‘ललित’ शब्द का अर्थ है सुंदर, मनोहारी, मनोहर। इन्हें ललितकलाएँ इसलिए कहा जाता है क्योंकि –
ये कलाएँ सूक्ष्म, कोमल और सुंदर भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं।
इनमें कलात्मक सौंदर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है, और ये आनंद की अनुभूति कराती हैं।
ये मानव मन को उच्च और परिष्कृत बनाती हैं, जिससे जीवन में सरसता और मधुरता आती है। ये हमारे भीतर के परम चेतन (ईश्वर का प्रतिनिधि) का बोध कराती हैं।
- कलाकार क्या विशिष्ट व्यक्ति होते हैं या आप और हम भी कलाकार हो सकते हैं? आपस में विचारकर लिखिए।
उत्तर – इस विषय पर दो दृष्टिकोण हो सकते हैं –
- कलाकार विशिष्ट व्यक्ति होते हैं (पेशेवर दृष्टिकोण)
व्यावसायिक कौशल – कुछ कलाकार वे होते हैं जिन्होंने कला के किसी विशेष रूप (जैसे शास्त्रीय संगीत, भरतनाट्यम, तैल चित्रकला) में वर्षों का गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया हो और उसमें असाधारण कौशल व सृजनात्मकता दिखाई हो। ये पेशेवर रूप से प्रदर्शन या सृजन करते हैं।
जन्मजात प्रतिभा – कई लोगों का मानना है कि कुछ व्यक्तियों में कला की जन्मजात प्रतिभा (Innate Talent) होती है जो उन्हें आम लोगों से अलग बनाती है।
- आप और हम भी कलाकार हो सकते हैं (व्यापक दृष्टिकोण)
रचनात्मकता – कला केवल मंच या कैनवास तक सीमित नहीं है। रचनात्मकता (Creativity) हर व्यक्ति में होती है। जब कोई व्यक्ति अपने कार्य को प्रेम, समर्पण और सौंदर्य बोध के साथ करता है—चाहे वह खाना बनाना हो, बागवानी करना हो, या किसी समस्या का अनूठा समाधान खोजना हो—तो वह एक प्रकार का कलाकार ही होता है।
स्वांतः सुखाय (स्वयं के सुख के लिए) – कला ‘स्वांतः सुखाय’ (स्वयं के आनंद के लिए) भी होती है। यदि कोई शौक के तौर पर गाता है, चित्र बनाता है, या लिखता है और उसे उससे खुशी मिलती है, तो वह अपने जीवन का कलाकार है।
निष्कर्ष –
जबकि पेशेवर कलाकार अपने क्षेत्र में विशिष्ट होते हैं और अपनी कला से समाज को लाभान्वित करते हैं, हर व्यक्ति में कलात्मकता की क्षमता निहित होती है। अपने जीवन को सुंदर, सुव्यवस्थित और आनंदमय बनाना भी एक कला है। इस प्रकार, हर व्यक्ति अपनी जीवन-यात्रा का कलाकार हो सकता है, बस उसे अपनी रचनात्मकता को पहचानने और अभिव्यक्त करने की आवश्यकता है।
- विभिन्न कलाओं की शिक्षा प्राप्त कर आप किस तरह के रोजगार चुन सकते हैं? तालिका में लिखिए-
कला व्यवसाय के क्षेत्र
तबला वादन तबला वादक, तबला शिक्षक आदि।
उत्तर –
कला | व्यवसाय के क्षेत्र |
तबला वादन | तबला वादक (प्रदर्शन कलाकार), तबला शिक्षक/गुरु, संगीत निर्देशक/कम्पोजर, स्टूडियो रिकॉर्डिंग आर्टिस्ट। |
गायन (हिन्दुस्तानी/कर्नाटक/सुगम/लोक) | पेशेवर गायक/गायिका, संगीत शिक्षक, प्लेबैक सिंगर, जिंगल आर्टिस्ट, संगीत थेरेपिस्ट। |
कथक/भरतनाट्यम | नर्तक/नृत्यांगना (प्रदर्शन कलाकार), नृत्य शिक्षक/कोरियाग्राफर, नृत्य-आधारित फिटनेस इंस्ट्रक्टर। |
चित्रकला | चित्रकार, कला शिक्षक, ग्राफ़िक डिज़ाइनर, इलस्ट्रेटर (चित्रकार), आर्ट क्यूरेटर (कला संग्रह प्रबंधक)। |
मूर्तिकला | मूर्तिकार, कला शिक्षक, सेट डिज़ाइनर (फिल्म/थिएटर), मॉडल मेकर, कला रेस्टोरेशन विशेषज्ञ। |
थिएटर | अभिनेता/अभिनेत्री, नाटककार, रंग निदेशक (डायरेक्टर), थिएटर शिक्षक, वॉयस ओवर आर्टिस्ट। |
फैशन डिज़ाइनिंग | फैशन डिज़ाइनर, टेक्सटाइल डिज़ाइनर, फैशन मर्चेन्डाइज़र, स्टाइलिस्ट, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर। |
- कला ‘स्वांतः सुखाय’ भी होती है। कैसे? शिक्षक से पूछकर लिखिए।
उत्तर – कला ‘स्वांतः सुखाय’ (अर्थात् ‘स्वयं के सुख के लिए’ या ‘आत्म-आनंद के लिए’) होती है, क्योंकि –
भावनात्मक मुक्ति – कला व्यक्ति को अपनी दबी हुई या अव्यक्त भावनाओं (जैसे दुःख, प्रेम, क्रोध) को व्यक्त करने का सुरक्षित और रचनात्मक माध्यम देती है। यह अभिव्यक्ति मन को हल्का करती है और एक प्रकार की भावनात्मक शुद्धि (Catharsis) प्रदान करती है।
ध्यान और एकाग्रता – किसी कलाकृति के निर्माण या प्रदर्शन में व्यक्ति पूरी तरह से तल्लीन हो जाता है। यह क्रिया एक तरह का सक्रिय ध्यान बन जाती है, जो मन को वर्तमान क्षण में केंद्रित कर तनाव और चिंता को दूर करती है।
सृजन का आनंद – किसी नई चीज़ को ‘शून्य’ से ‘सत्य’ में लाने का अनुभव—चाहे वह एक धुन हो, एक कविता हो, या एक चित्र—गहन संतुष्टि और आत्म-सम्मान की भावना पैदा करता है। यह रचनात्मकता आत्मा को पोषण देती है।
सौंदर्यबोध – कला स्वयं के लिए सौंदर्य का निर्माण या उपभोग करने का अवसर देती है, जो जीवन को सरस और सार्थक बनाता है। यह आनंद बाहरी प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता, बल्कि आंतरिक अनुभूति पर निर्भर करता है।
भाषा के बारे में
- ‘भावना’ स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द है इसमें जब ‘आत्मक’ प्रत्यय जुड़ेगा तो प्राप्त शब्द ‘भावनात्मक’ एक विशेषण शब्द होगा। इसी प्रकार निम्नांकित शब्दों में ‘आत्मक’ प्रत्यय जोड़कर विशेषण शब्द बनाइए-
कला, व्याख्या, तुलना, रचना।
उत्तर –
मूल शब्द | प्रत्यय | विशेषण शब्द |
कला | आत्मक | कलात्मक |
व्याख्या | आत्मक | व्याख्यात्मक |
तुलना | आत्मक | तुलनात्मक |
रचना | आत्मक | रचनात्मक |
- निम्नांकित शब्दों में कुछ अन्य शब्द जोड़कर नए शब्द बनाइए- जैसे साहित्य से साहित्य सम्मेलन
(क) गायन
(ख) परंपरा
(ग) कला
उत्तर –
मूल शब्द | जोड़ा गया शब्द | नया शब्द |
(क) गायन | पक्ष | गायन पक्ष |
शैली | गायन शैली | |
प्रतियोगिता | गायन प्रतियोगिता | |
(ख) परंपरा | गत | परंपरागत |
विरोधी | परंपरा विरोधी | |
शिष्य | गुरु-शिष्य परंपरा | |
(ग) कला | तीर्थ | कलातीर्थ |
प्रेमी | कलाप्रेमी | |
संकाय | कला संकाय |
- पाठ के चौथे अनुच्छेद में दी गई जानकारी के आधार पर राजा वीरेन्द्र बहादुर और रानी पद्मावती के बीच एक संवाद लिखिए।
उत्तर – सन्दर्भ – राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में राजभवन को विश्वविद्यालय के लिए दान करने का विचार।
राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह – (रानी पद्मावती को देखते हुए) प्रिये पद्मावती, हमारी इंदिरा अब हमारे बीच नहीं है, पर मैं चाहता हूँ कि उसकी स्मृति युगों-युगों तक इस धरा पर मुस्काती रहे।
रानी पद्मावती देवी – (सजल आँखों से) नाथ! इंदिरा को संगीत से कितना प्रेम था। उसकी पायल की खनक आज भी इस महल में गूँजती है। उसे भुला पाना असंभव है।
राजा – इसीलिए मैंने यह राजभवन, जो कभी हमारी बेटी का क्रीड़ा-स्थल था, उसे संगीत और कला की शिक्षा के लिए दान करने का निर्णय लिया है।
रानी – क्या आप… इस पूरे राजभवन को?
राजा – हाँ, प्रिय। हम इसे एक संगीत विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करेंगे। जहाँ कला-साधना हो, जहाँ गुरु-शिष्य परंपरा पल्लवित हो। यह एशिया का पहला ऐसा विश्वविद्यालय होगा।
रानी – (एक गहरी साँस लेते हुए) यह तो सचमुच एक अपूर्व विश्वविद्यालय होगा! हमारी बेटी का नाम अमर हो जाएगा। उसका प्रेम संगीत के रूप में इस धरती पर सदैव जीवित रहेगा। इससे बड़ा दान और क्या हो सकता है!
राजा – मुझे विश्वास है, यह विश्वविद्यालय लाखों विद्यार्थियों को ज्ञान देगा और हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर को संवर्धित करेगा। यह हमारे नागवंश की सबसे बड़ी विरासत होगी।
- अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें खैरागढ़ के संगीत विश्वविद्यालय की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर – प्रिय [मित्र का नाम],
मैं तुम्हें छत्तीसगढ़ में स्थित एक अद्भुत स्थान के बारे में बताना चाहता हूँ—इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़। इसे सचमुच ‘कलातीर्थ’ कहा जाता है!
यह एशिया का पहला और एकमात्र ललित कला विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 14 अक्टूबर 1956 को हुई थी। यहाँ के तत्कालीन राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने अपनी दिवंगत बेटी राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में अपना पूरा राजभवन दान कर दिया था।
यह विश्वविद्यालय संगीत (गायन, वाद्य, नृत्य), चित्रकला, मूर्तिकला, लोककला और साहित्य जैसे विषयों में डिप्लोमा से लेकर डी.लिट्. तक की शिक्षा देता है। यहाँ का शांत, ग्रामीण परिवेश कला-साधना के लिए बहुत अनुकूल है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसका ध्येय वाक्य है “सुस्वराः संतु सर्वेऽपि” (सभी सुन्दर स्वर वाले हों)।
तुम्हें यदि ललित कलाओं में रुचि है, तो तुम्हें एक बार यहाँ के भव्य ग्रंथालय और शांत परिसर को देखना चाहिए। यह देश-विदेश के कलाकारों और शोधार्थियों का केंद्र है।
तुम्हारा मित्र,
[आपका नाम](क) ‘भावनात्मक’ शब्द में ‘आत्मक’ प्रत्यय है ऐसे ही दस शब्द और बनाइए।
प्रतीकात्मक, गुणात्मक, निर्णयात्मक, व्यवस्थात्मक, रूपात्मक, रचनात्मक, कल्पनात्मक, तुलनात्मक, व्याख्यात्मक, कलात्मक।
(ख) कल्याणकारी शब्द में ‘कारी’ प्रत्यय ‘करने वाला या करने वाली का बोध कराता है ऐसे ही आप ‘कारी’ प्रत्यय लगाकर दस नए शब्द बनाइए।
उत्तर – लाभकारी (लाभ करने वाला)
अहितकारी (अहित करने वाला)
हितकारी (हित करने वाला)
उपकारी (उपकार करने वाला)
गुणकारी (गुण करने वाला)
रोगकारी (रोग करने वाला)
संक्रामककारी (संक्रमण करने वाला)
परिवर्तनकारी (परिवर्तन करने वाला)
अलंकारकारी (अलंकार/सजावट करने वाला)
शुद्धिकारी (शुद्धि करने वाला)
(ग) संस्कृत से मूल रूप में बिना परिवर्तित हुए हिंदी में लिए गए शब्दों को तत्सम शब्द कहते हैं। जैसे— कर्ण, अग्नि, इत्यादि। इस पाठ में आए तत्सम शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर – सौंदर्य
संबंध
समाज
उपलब्धियाँ
सीमाएँ
महत्त्वपूर्ण
विविध
साधना
गौरवपूर्ण
संस्कृति
प्राचीन
आचार्यों
साहित्य
संगीत
विहीनः
पशुः
विषाण
श्रेष्ठता
ललित
मानवता
प्रांजल
व्यक्तित्व
भास्वर
समष्टि
चेतना
समन्वित
अमूल्य
धरोहर
संरक्षण
योगदान
अविस्मरणीय
उन्नति
शिखर
परिवेश
विशेष
सहायक
नागवंश
अतीत
आरंभ
इतिहास
प्रथम
नगर
अधिक्ता
कालांतर
प्रजावत्सल
विद्यानुरागी
सृजक
स्वास्थ्य
प्राकृतिक
सांस्कृतिक
योग्यता विस्तार
- संगीत में कितने स्वर होते हैं. उनके क्या-क्या नाम हैं पता लगाकर लिखिए।
उत्तर – क्र.सं. स्वर का नाम (संक्षेप) स्वर का पूरा नाम
1 सा षड्ज (जहाँ से संगीत की उत्पत्ति होती है)
2 रे ऋषभ (बैल की ध्वनि)
3 ग गंधार (बकरी की ध्वनि)
4 म मध्यम (बीच का स्वर)
5 प पंचम (पाँचवाँ स्वर)
6 ध धैवत (घोड़े की ध्वनि)
7 नि निषाद (हाथी की ध्वनि)
कुल 12 स्वर – इन सात शुद्ध स्वरों के अलावा पाँच विकृत स्वर भी होते हैं, जिससे कुल स्वरों की संख्या 12 हो जाती है –
चार कोमल स्वर – रे (कोमल), ग (कोमल), ध (कोमल), नि (कोमल)
एक तीव्र स्वर – म (तीव्र)
- पता लगाकर लिखिए कि एक गायक अन्य भाषा के गीतों को किस प्रकार आसानी से गा लेता है?
उत्तर – एक गायक अन्य भाषा के गीतों को आसानी से निम्नलिखित कारकों के कारण गा लेता है –
संगीत सार्वभौमिक है (Music is Universal) – संगीत का व्याकरण (स्वर, ताल, लय, राग) भाषा की सीमा से परे होता है। दुनिया के अधिकांश संगीत प्रणालियों में मूलभूत रूप से सा,रे,ग,म,प,ध,नि के समकक्ष सप्तक मौजूद होता है। यदि गायक को संगीत संरचना का ज्ञान है, तो वह किसी भी भाषा की धुन को आसानी से पकड़ सकता है।
रागों और धुनों का ज्ञान – भारतीय शास्त्रीय संगीत (हिंदुस्तानी और कर्नाटक) में रागों की एक मजबूत नींव होती है। गायक राग के नियमों और मनोभावों को समझते हैं, जिससे वे विभिन्न भाषाओं की धुनों को उसी राग के भीतर ‘फिट’ कर सकते हैं।
ध्वन्यात्मक अभ्यास (Phonetic Practice) – गायक मूल भाषा के शब्दों के शुद्ध उच्चारण को सीखने के लिए केवल ध्वनियों (Sounds) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि हमेशा अर्थ पर। वे शब्दों को रोमन या देवनागरी लिपि में लिखकर, और देशी वक्ताओं से सुनकर, ध्वनियों की बारीकियों का अभ्यास करते हैं।
भाव (Expression) पर पकड़ – गायक केवल स्वर ही नहीं, बल्कि गाने के भाव (Emotion/Bhava) को भी समझते हैं। भले ही वे शब्द का अर्थ न जानते हों, यदि वे उस भाषा के संगीत की शैली और भाव को आत्मसात कर लेते हैं, तो वे गाने को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं।
- छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों एवं लोकगायकों की सूची बनाकर उनकी गायन शैली/ विधा लिखिए।
उत्तर –
क्र.सं. | गायक का नाम | गायन शैली/ विधा |
1 | तीजन बाई | पंडवानी (महाभारत की कथा का लोक गायन), कापालिक शैली |
2 | मदन सिंह चौहान | पंडवानी (महाभारत की कथा का लोक गायन) |
3 | सूरज बाई खांडे | पंडवानी (महाभारत की कथा का लोक गायन), वेदमती शैली |
4 | कविता वासनिक | लोक गीत (छत्तीसगढ़ी, जस गीत), सुगम संगीत |
5 | रेखा जलक्षत्री | सूफी गायन, छत्तीसगढ़ी लोक गीत |
6 | राजा चक्रधर सिंह | शास्त्रीय संगीत (इन्होंने स्वयं रायगढ़ घराना विकसित किया, जिसमें कथक, तबला, और संगीत का समन्वय था) |
7 | रामेश्वर वैष्णव | लोक गायन, भक्ति गीत |
8 | अरुण कुमार सेन | रामकथा गायन, शास्त्रीय संगीत (ये खैरागढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे) |
- रायगढ़ के चक्रधर समारोह के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए और शाला की भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर – रायगढ़ का चक्रधर समारोह – कला, संगीत और नृत्य का महाकुंभ
परिचय –
चक्रधर समारोह छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सांस्कृतिक उत्सव है। इसे भारतीय संगीत, नृत्य और कला का एक प्रमुख महोत्सव माना जाता है।
इतिहास और नामकरण –
यह समारोह गणेश चतुर्थी के अवसर पर आयोजित किया जाता है।
इसका नामकरण रायगढ़ रियासत के संगीतज्ञ राजा महाराजा चक्रधर सिंह (1905-1947) के नाम पर किया गया है। महाराजा चक्रधर सिंह स्वयं एक उत्कृष्ट संगीतकार, कथक नर्तक, तबला वादक और संगीत के संरक्षक थे। उन्होंने रायगढ़ कथक घराना की नींव रखी।
विशेषताएँ –
कलाओं का संगम – समारोह में मुख्य रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत (गायन और वादन), शास्त्रीय नृत्य (कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी आदि), और लोक कलाओं का प्रदर्शन होता है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच – इसमें देश और विदेश के विख्यात और उभरते हुए कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
सांस्कृतिक महत्त्व – यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, विशेषकर रायगढ़ घराने की कला को प्रदर्शित करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह छत्तीसगढ़ी लोक कलाओं (जैसे पंडवानी, करमा) को भी राष्ट्रीय मंच प्रदान करता है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है?
a) रायपुर
b) खैरागढ़
c) बिलासपुर
d) दुर्ग
उत्तर – b) खैरागढ़
विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
a) 1947
b) 1956
c) 1965
d) 1972
उत्तर – b) 1956
विश्वविद्यालय की स्थापना किसकी स्मृति में हुई?
a) रानी पद्मावती
b) राजकुमारी इंदिरा
c) राजा वीरेन्द्र
d) पं. रविशंकर
उत्तर – b) राजकुमारी इंदिरा
विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति कौन थे?
a) पं. रविशंकर
b) पं. एस.एन. रातंजनकर
c) डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
d) डॉ. अरुण कुमार सेन
उत्तर – b) पं. एस.एन. रातंजनकर
खैरागढ़ का नाम किसके कारण पड़ा?
a) राजा खड़गराय या खैर वृक्षों की अधिकता
b) मण्डला के राजा
c) इंदिरा गाँधी
d) नागवंश
उत्तर – a) राजा खड़गराय या खैर वृक्षों की अधिकता
विश्वविद्यालय में कौन-सा पाठ्यक्रम अद्वितीय है?
a) बैचलर ऑफ वोकेशन (फैशन और टेक्सटाइल डिजाइनिंग)
b) बैचलर ऑफ साइंस
c) मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन
d) बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग
उत्तर – a) बैचलर ऑफ वोकेशन (फैशन और टेक्सटाइल डिजाइनिंग)
विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य क्या है?
a) विद्या विनयति विनादति
b) सुस्वराः संतु सर्वेऽपि
c) सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
d) ज्ञानं परमं ध्येयम्
उत्तर – b) सुस्वराः संतु सर्वेऽपि
विश्वविद्यालय को UGC द्वारा कब ‘ए‘ दर्जा प्राप्त हुआ?
a) 2010
b) 2014
c) 2018
d) 2020
उत्तर – b) 2014
खैरागढ़ विश्वविद्यालय में कितने संकाय हैं?
a) तीन
b) चार
c) पाँच
d) छह
उत्तर – c) पाँच
विश्वविद्यालय के ग्रंथालय में कितनी पुस्तकें हैं?
a) 25,000 से अधिक
b) 45,000 से अधिक
c) 10,000 से अधिक
d) 60,000 से अधिक
उत्तर – b) 45,000 से अधिक
खैरागढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना में किसका योगदान था?
a) पं. रविशंकर शुक्ल
b) राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती
c) इंदिरा गाँधी
d) उपरोक्त सभी
उत्तर – b) राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती
विश्वविद्यालय में कौन-सा नृत्य पाठ्यक्रम नहीं है?
a) कथक
b) भरतनाट्यम
c) कथकली
d) ओडिसी
उत्तर – c) कथकली
खैरागढ़ के इतिहास का आरंभ किससे माना जाता है?
a) मण्डला के राजा
b) खोलवा-परगना
c) राजा उमराव सिंह
d) इंदिरा गाँधी
उत्तर – b) खोलवा-परगना
विश्वविद्यालय की शोध पत्रिकाओं में से एक का नाम क्या है?
a) कला-वैभव
b) विज्ञान दर्पण
c) साहित्य समीक्षा
d) संगीत सौरभ
उत्तर – a) कला-वैभव
विश्वविद्यालय में कितने सम्बद्ध महाविद्यालय हैं?
a) 12
b) 24
c) 35
d) 50
उत्तर – b) 24
किस प्रसिद्ध व्यक्तित्व को विश्वविद्यालय ने मानद डी.लिट् से सम्मानित किया?
a) लता मंगेशकर
b) सलमान खान
c) सचिन तेंदुलकर
d) अमिताभ बच्चन
उत्तर – a) लता मंगेशकर
विश्वविद्यालय का पहला भव्य आडिटोरियम कहाँ स्थित है?
a) रायपुर
b) खैरागढ़
c) भोपाल
d) दिल्ली
उत्तर – b) खैरागढ़
महात्मा गाँधी ने कला के बारे में क्या कहा?
a) कला केवल मनोरंजन है
b) कला को जनसाधारण के लिए सुलभ करना चाहिए
c) कला केवल अभिजात वर्ग के लिए है
d) कला जीवन से अलग है
उत्तर – b) कला को जनसाधारण के लिए सुलभ करना चाहिए
विश्वविद्यालय में कौन-सा वाद्य यंत्र पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है?
a) सितार
b) तबला
c) पियानो
d) वायलिन
उत्तर – c) पियानो
विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचयिता कौन हैं?
a) डॉ. कपिला वात्स्यायन
b) डॉ. अनिता सेन
c) सितारा देवी
d) लता मंगेशकर
उत्तर – b) डॉ. अनिता सेन
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – भर्तृहरि ने किस प्रकार के मनुष्य को पूँछ और सींग से रहित साक्षात् पशु कहा है?
उत्तर – भर्तृहरि ने साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य को पूँछ और सींग से रहित साक्षात् पशु कहा है।
- प्रश्न – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिले के अंतर्गत खैरागढ़ में स्थित है।
- प्रश्न – नागवंश के किस चारण कवि ने पहली बार ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का प्रयोग किया था?
उत्तर – नागवंश के चारण कवि दलपतराव ने 1497 ई. में इस क्षेत्र के लिए पहली बार ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का प्रयोग किया था।
- प्रश्न – खैरागढ़ नगर का नाम किन दो मान्यताओं के कारण पड़ा?
उत्तर – खैरागढ़ नगर का नाम राजा खड़गराय के नाम पर या नगर के चारों ओर खैर वृक्षों की अधिकता की वजह से पड़ा।
- प्रश्न – खैरागढ़ विश्वविद्यालय की स्थापना किसकी स्मृति में और किनके द्वारा की गई थी?
उत्तर – खैरागढ़ विश्वविद्यालय की स्थापना राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह एवं रानी पद्मावती देवी द्वारा उनकी दिवंगत पुत्री राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में की गई थी।
- प्रश्न – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय का उद्घाटन कब और किसके द्वारा किया गया था?
उत्तर – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय का उद्घाटन 14 अक्टूबर 1956 ईस्वी में श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा किया गया था।
- प्रश्न – एशिया के इस प्रथम एवं एकमात्र विश्वविद्यालय की स्वर्णयात्रा किसके सहयोग से आरंभ हुई?
उत्तर – एशिया के इस प्रथम एवं एकमात्र विश्वविद्यालय की स्वर्णयात्रा मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल के सहयोग से आरंभ हुई।
- प्रश्न – प्रथम कुलपति पं. एस. एन. रातंजनकर का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान क्या था?
उत्तर – प्रथम कुलपति पं. एस. एन. रातंजनकर का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान संगीत की शिक्षा को घरानों की चहारदीवारी से निकालकर संस्थागत करना था।
- प्रश्न – खैरागढ़ विश्वविद्यालय में नृत्य पक्ष में कौन-कौन से शास्त्रीय नृत्यों की शिक्षा दी जाती है? उत्तर – खैरागढ़ विश्वविद्यालय में नृत्य पक्ष में कथक, भरतनाट्यम तथा ओडिसी नृत्य की शास्त्रीय और प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती है।
- प्रश्न – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत दो स्पेशलाइजेशन पाठ्यक्रम कौन से हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत दो स्पेशलाइजेशन पाठ्यक्रम बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.ओक.) फैशन डिजाइनिंग और टेक्सटाइल डिजाइनिंग हैं।
- प्रश्न – विश्वविद्यालय में दृश्यकला (Visual Arts) के अंतर्गत कौन-कौन से विषय शामिल हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय में दृश्यकला के अंतर्गत चित्रकला, मूर्तिकला तथा छापाकला में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा व्यवस्था है।
- प्रश्न – खैरागढ़ विश्वविद्यालय के ग्रंथालय को भारतवर्ष में प्रथम क्यों माना जाता है?
उत्तर – खैरागढ़ विश्वविद्यालय के ग्रंथालय को पैंतालिस हजार से अधिक पुस्तकों और ऑडियो-वीडियो कैसेट्स तथा कला नमूनों के उल्लेखनीय संग्रह के कारण भारतवर्ष में प्रथम माना जाता है।
- प्रश्न – विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली तीन उच्चस्तरीय शोध पत्रिकाएँ कौन सी हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली तीन उच्चस्तरीय शोध पत्रिकाएँ ‘कलासौरभ’, ‘कला-वैभव’ तथा ‘लिटरेरी डिस्कोर्स’ हैं।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ का प्रथम तथा भव्य आडिटोरियम कहाँ स्थित है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ का प्रथम तथा भव्य आडिटोरियम इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में ही स्थित है।
- प्रश्न – किन कारणों से देश-विदेश के विद्यार्थी इस ‘कलातीर्थ’ में श्रद्धाभाव से आते हैं?
उत्तर – यहाँ की अनूठी प्रकृति और भारत की समृद्ध पारंपरिक भारतीयता के ज्ञानार्जन की अनुभूति के कारण देश-विदेश के विद्यार्थी इस ‘कलातीर्थ’ में श्रद्धाभाव से आते हैं।
- प्रश्न – महात्मा गाँधी ने कलाकार की कला को कब जीवन में स्थान मिलने की बात कही थी?
उत्तर – महात्मा गाँधी ने कहा था कि कलाकार जब कला को कल्याणकारी बनाएँगे और जनसाधारण के लिए सुलभ कर देंगे, तभी उस कला को जीवन में स्थान मिलेगा।
- प्रश्न – इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (NAAC) द्वारा कौन सा दर्जा प्राप्त हुआ है?
उत्तर – इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (NAAC) द्वारा 24 सितम्बर 2014 को प्रत्यायित कर ‘ए’ दर्जा प्राप्त हुआ है।
- प्रश्न – स्वामी विवेकानंद के अनुसार समस्त कलाओं का उद्देश्य क्या है?
उत्तर – स्वामी विवेकानंद के अनुसार समस्त काव्य, चित्रकला और संगीत शब्द, रंग और ध्वनि के द्वारा भावना की ही अभिव्यक्ति है।
- प्रश्न – विश्वविद्यालय के कुलगीत में कौन सी भावना प्रतिबिंबित होती है?
उत्तर – विश्वविद्यालय के कुलगीत में जनकल्याणकारी भावना प्रतिबिंबित होती है।
- प्रश्न – खैरागढ़ विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य क्या है और उसका अर्थ क्या है?
उत्तर – खैरागढ़ विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य “सुस्वराः संतु सर्वेऽपि” है, जिसका अर्थ है “सभी सुन्दर स्वर वाले हों।”
लघु प्रश्न और उत्तर (40-50 शब्द)
- इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य क्या था?
उत्तर – विश्वविद्यालय की स्थापना ललित कलाओं जैसे संगीत, नृत्य, चित्रकला और साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए हुई। यह भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देता है और रोजगारमूलक, जीवन उपयोगी शिक्षा प्रदान करता है।
- खैरागढ़ विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति का योगदान क्या रहा?
उत्तर – पं. एस.एन. रातंजनकर ने संगीत शिक्षा को घरानों की सीमाओं से निकालकर संस्थागत किया। उन्होंने शास्त्र और प्रयोग को जोड़ा, जिससे संगीत, नृत्य और कला शिक्षा के प्रति समाज का दृष्टिकोण सकारात्मक हुआ।
- विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य क्या है और इसका अर्थ क्या है?
उत्तर – विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य “सुस्वराः संतु सर्वेऽपि” है, जिसका अर्थ है “सभी सुंदर स्वर वाले हों।” यह कला के माध्यम से जीवन को सुंदर और समृद्ध बनाने का संदेश देता है।
- खैरागढ़ के इतिहास में नागवंश का क्या महत्त्व है?
उत्तर – नागवंशी राजाओं, जैसे खड़गराय, उमराव सिंह और कमलनारायण सिंह, ने खैरागढ़ को सांस्कृतिक और कला केंद्र बनाया। उनकी विद्या और कला प्रेम ने विश्वविद्यालय की नींव के लिए प्रेरणा दी।
- विश्वविद्यालय के ग्रंथालय की विशेषता क्या है?
उत्तर – विश्वविद्यालय का ग्रंथालय भारत में प्रथम है, जिसमें 45,000 से अधिक पुस्तकें, ऑडियो-वीडियो कैसेट्स, और लोक-जनजातीय कला संग्रह हैं। यह विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए ज्ञान का प्रमुख स्रोत है।
- विश्वविद्यालय में कौन-से नृत्य पाठ्यक्रम संचालित हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय में कथक, भरतनाट्यम, और ओडिसी नृत्य के शास्त्रीय और प्रयोगात्मक पाठ्यक्रम संचालित हैं, जो विद्यार्थियों को भारतीय नृत्य परंपराओं में निपुण बनाते हैं।
- खैरागढ़ महोत्सव का महत्त्व क्या है?
उत्तर – खैरागढ़ महोत्सव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक भव्य आयोजन है, जिसमें देश-विदेश के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। यह भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच प्रदान करता है।
- विश्वविद्यालय के संग्रहालय में क्या संग्रहित है?
उत्तर – विश्वविद्यालय के संग्रहालय में कलात्मक अवशेष, शास्त्रीय और लोकसंगीत के वाद्य यंत्रों की कलावीथिका, और छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का संग्रह है, जो अनुसंधान और प्रदर्शन के लिए उपयोगी है।
- महात्मा गाँधी ने कला के बारे में क्या कहा?
उत्तर – महात्मा गाँधी ने कहा कि कला को जनसाधारण के लिए सुलभ और कल्याणकारी होना चाहिए। जब कला केवल कुछ लोगों तक सीमित रहती है, तो उसका महत्त्व कम हो जाता है।
- विश्वविद्यालय के कुलगीत का क्या संदेश है?
उत्तर – डॉ. अनिता सेन द्वारा रचित कुलगीत में जनकल्याण और जीवन को नवीन दिशाओं में विकसित करने की भावना है। यह विश्वविद्यालय के पावन उद्देश्य को स्वर्गीय अनुभूति से जोड़ता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति के संरक्षण में कैसे योगदान देता है?
उत्तर – इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, और साहित्य के पाठ्यक्रमों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को संरक्षित करता है। इसका ग्रंथालय, संग्रहालय, और खैरागढ़ महोत्सव सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों और शोध के माध्यम से यह विश्व स्तर पर भारतीय कला का प्रचार करता है, जिससे संस्कृति की समृद्धि बनी रहती है।
- विश्वविद्यालय की स्थापना में नागवंशी राजाओं की भूमिका क्या थी?
उत्तर – नागवंशी राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने अपनी पुत्री इंदिरा की स्मृति में राजभवन दान कर विश्वविद्यालय की स्थापना की। राजा खड़गराय, उमराव सिंह और कमलनारायण जैसे कला प्रेमी राजाओं ने खैरागढ़ को सांस्कृतिक केंद्र बनाया, जिसने विश्वविद्यालय की नींव के लिए प्रेरणा और आधार प्रदान किया।
- विश्वविद्यालय के ग्रंथालय और संग्रहालय की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय का ग्रंथालय भारत में प्रथम है, जिसमें 45,000 से अधिक पुस्तकें, ऑडियो-वीडियो संग्रह, और लोक-जनजातीय कला नमूने हैं। संग्रहालय में शास्त्रीय-लोक वाद्य यंत्रों की कलावीथिका और सांस्कृतिक अवशेष हैं, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं और शोध-शिक्षण में सहायक हैं।
- खैरागढ़ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों की रोजगारमूलक विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर – विश्वविद्यालय में संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, और फैशन-टेक्सटाइल डिजाइनिंग जैसे रोजगारमूलक पाठ्यक्रम हैं। बैचलर ऑफ वोकेशन और डिप्लोमा कोर्स विद्यार्थियों को कला आधारित करियर के लिए तैयार करते हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में चयन और पुरस्कार प्राप्त शिक्षक-विद्यार्थी इसकी गुणवत्ता को प्रमाणित करते हैं।
- विश्वविद्यालय का खैरागढ़ महोत्सव और इसकी वैश्विक पहचान कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर – खैरागढ़ महोत्सव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित भव्य आयोजन है, जिसमें देश-विदेश के कलाकार अपनी कला प्रस्तुत करते हैं। यह भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच देता है और विश्वविद्यालय की पहचान को सुदृढ़ करता है। श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल आदि से आए विद्यार्थी इसकी वैश्विकता को रेखांकित करते हैं।

