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मन्नू भण्डारी – लेखिका परिचय

हिंदी की चर्चित कहानीकार मन्नू भंडारी का जन्म सन् 1931 ई. में भानपुरा, मध्यप्रदेश में हुआ। चर्चित स्त्री रचनाकार के रूप में इन्होंने बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं, जो आठ संग्रहों में संकलित हैं। उनकी एक कहानी यही सच हैं पर हिंदी में फिल्म भी बनी, जो बहुत लोकप्रिय हुई थी। उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे हैं जिनमें ‘महाभोज’ एवं ‘आपका बंटी विशेष उल्लेखनीय है।

अकेली – कहानी परिचय

मन्नू भंडारी की कहानी अकेली में सोमा बुआ के युवा पुत्र की मृत्यु से पनपे एकाकीपन और अपनों द्वारा भावात्मक अस्वीकार्यता का मार्मिक चित्रण किया गया है। दोनों रचनाएँ वृद्धों और बच्चों के प्रति समाज के असहज व्यवहार को रेखांकित करती हैं, जबकि हमारा दायित्व है कि हम बुजुर्गों और बच्चों का विशेष ध्यान रखें।

अकेली

सोमा बुआ बुढ़िया हैं।

सोमा बुआ परित्यक्ता हैं।

सोमा बुआ अकेली हैं।

सोमा बुआ का जवान बेटा क्या जाता रहा, उनकी अपनी जवानी चली गई। पति को पुत्र-वियोग का ऐसा सदमा लगा कि वे पत्नी, घर-बार तजकर तीरथवासी हुए और परिवार में कोई ऐसा सदस्य था नहीं जो उनके एकाकीपन को दूर करता। पिछले बीस वर्षों से उनके जीवन की इस एकरसता में किसी प्रकार का कोई व्यवधान उपस्थित नहीं हुआ, कोई परिवर्तन नहीं आया। यों हर साल एक महीने के लिए उनके पति उनके पास आकर रहते थे। पर कभी उन्होंने पति की प्रतीक्षा नहीं की, उनकी राह में आँखें नहीं बिछाई। जब तक पति रहते उनका मन और भी मुरझाया हुआ रहता क्योंकि पति के स्नेहहीन व्यवहार का अंकुश उनके रोजमर्रा के जीवन की अबाध गति से बहती स्वच्छंद धारा को कुंठित कर देता। उस समय उनका घूमना-फिरना, मिलना-जुलना बंद हो जाता है और संन्यासीजी महाराज से तो यह भी नहीं होता कि दो मीठे बोल-बोलकर सोमा बुआ को एक ऐसा संबल ही पकड़ा दें, जिसका आसरा लेकर वह उनके वियोग के ग्यारह महीने काट दें। इस स्थिति में बुआ को अपनी जिंदगी पास-पड़ोसवालों के भरोसे ही काटनी पड़ती थी। किसी के घर मुंडन हो, छठी हो, जनेऊ हो, शादी हो या ग़मी, बुआ पहुँच जातीं और फिर छाती फाड़कर काम करतीं, मानो वे दूसरे के घर नहीं अपने ही घर में काम कर रही हों।

आजकल सोमा बुआ के पति आए हुए हैं और अभी-अभी कुछ कहा-सुनी हो चुकी है। बुआ आँगन में बैठी धूप खा रही हैं, पास रखी कटोरी से तेल लेकर हाथों में मल रही हैं, और बड़बड़ा रही हैं। इस एक महीने में अन्य अवयवों के शिथिल हो जाने के कारण उनकी जीभ ही सबसे अधिक सजीव और सक्रिय हो उठती है। तभी हाथ में एक फटी साड़ी और पापड़ लेकर ऊपर से राधा भाभी उतरीं।

“क्या हो गया बुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो, फिर संन्यासीजी महाराज ने कुछ कह दिया क्या?”

“अरे, मैं कहीं चली जाऊँ सो भी इन्हें नहीं सुहाता। कल चौकवाले किशोरीलाल के बेटे का मुंडन था, सारी बिरादरी का न्यौता था। मैं तो जानती थी कि ये पैसे का ही गुरूर है, जो मुंडन पर भी सारी बिरादरी को न्यौता है, पर काम उन नई-नवेली बहुओं से सँभलेगा नहीं, सो जल्दी ही चली गई। हुआ भी वही…” और सरककर बुआ ने राधा के हाथ से पापड़ लेकर सुखाने शुरू कर दिए। “एक काम गत से नहीं हो रहा था। अब घर में कोई बड़ा – बूढ़ा हो तो बतावे या कभी किया हो तो जानें। गीतवाली औरतें मुंडन पर बन्ना बन्नी गा रही थीं, मेरा तो हँसते-हँसते पेट फूल गया।” और उसकी याद से ही कुछ देर पहले का दुःख और आक्रोश धुल गया। अपने सहज स्वाभाविक रूप में वे कहने लगीं- “भट्टी पर देखा तो अजब तमाशा… समोसे कच्चे ही उतार दिए और इतने बना दिए कि दो बार खिला दो और गुलाबजामुन इतने कम कि एक पंगत में भी पूरे न पड़ें। उसी समय खोया मँगवाकर नए गुलाबजामुन बनाए। दोनों बहुएँ और किशोरीलाल तो बिचारे इतना जस मान रहे थे कि क्या बताऊँ? कहने लगे- “अम्मा! तुम न होती तो आज भद्द उड़ जाती। अम्मा! तुमने लाज रख ली!” मैंने तो कह दिया कि “अरे, अपने ही काम नहीं आवेंगे तो कोई बाहर से तो आवेगा नहीं। ये तो आजकल इनका रोटी-पानी का काम रहता है, नहीं तो मैं तो सवेरे से ही चली आती!”

“तो संन्यासी महाराज क्यों बिगड़ पड़े? उन्हें तुम्हारा आना-जाना अच्छा नहीं लगता बुआ?”

“यों तो मैं कहीं आऊँ जाऊँ सो ही इन्हें नहीं सुहाता और फिर कल किशोरी के यहाँ से बुलावा नहीं आया। अरे, मैं तो कहूँ कि घरवालों को कैसा बुलावा? वे लोग तो मुझे अपनी माँ से कम नहीं समझते, नहीं तो कौन भला यों भट्ठी और भंडार – घर सौंप दे? पर इन्हें अब कौन समझावे कहने लगे, तू जबरदस्ती दूसरों के घर में टाँग अड़ाती फिरती है।” और एकाएक उन्हें उस क्रोध-भरी वाणी और कटुवचनों का स्मरण हो आया जिनकी बौछार कुछ देर पहले ही उन पर होकर गुजर चुकी थी। याद आते ही फिर उनके आँसू बह चले।

“अरे, रोती क्या हो बुआ ! कहना सुनना तो चलता रहता है। संन्यासीजी महाराज एक महीने को तो आकर रहते हैं, सुन लिया करो और क्या?”

“सुनने को तो सुनती ही हूँ, पर मन तो दुखता ही है कि एक महीने को आते हैं तो भी कभी मीठे बोल नहीं बोलते। मेरा आना-जाना इन्हें सुहाता नहीं, सो तू ही बता राधा, ये तो साल में ग्यारह महीने हरिद्वार रहते हैं। इन्हें तो नाते-रिश्तेवालों से कुछ लेना-देना नहीं, पर मुझे तो सबसे निभाना पड़ता है। मैं भी सबसे तोड़-ताड़ कर बैठ जाऊँ तो कैसे चले? मैं तो इनसे कहती हूँ कि जब पल्ला पकड़ा है तो अंत समय में भी साथ ही रखो, सो तो इनसे होता नहीं। सारा धरम-करम ये ही लूटेंगे, सारा जस ये ही बटोरेंगे और मैं अकेली पड़ी पड़ी यहाँ इनके नाम को रोया करूँ। उस पर से कहीं आऊँ जाऊँ, वह भी इनसे बर्दाश्त नहीं होता!” और बुआ फूट-फूटकर रो पड़ीं। राधा ने आश्वासन देते हुए कहा- “रोओ नहीं बुआ, अरे वे तो इसलिए नाराज हुए कि बिना बुलाए तुम चली गई।”

“बेचारे इतने हंगामे में बुलाना भूल गए तो मैं भी मान करके बैठ जाती? फिर घरवालों को कैसा बुलाना? मैं तो अपनेपन की बात जानती हूँ। कोई प्रेम नहीं रखे तो दस बुलावे पर नहीं जाऊँ और प्रेम रखे तो बिना बुलाए भी सिर के बल जाऊँ। मेरा अपना हरखू होता और उसके घर काम होता तो क्या मैं बुलावे के भरोसे बैठी रहती? मेरे लिए जैसा हरखू वैसा किशोरीलाल। आज हरखू नहीं है इसी से दूसरों को देखकर मन भरमाती रहती हूँ।” और वे हिचकियाँ लेने लगीं।

पापड़ों को फैलाकर स्वर को भरसक कोमल बनाकर राधा ने कहा- “तुम भी बुआ बात को कहाँ से कहाँ ले गई? अब चुप भी होओ! अच्छा देखो, तुम्हारे लिए एक पापड़ भूनकर लाती हूँ, खाकर बताना कैसा है?” और वह पापड़ लेकर ऊपर चढ़ गई।

कोई सप्ताह भर बाद बुआ बड़े प्रसन्न मन से आई और संन्यासीजी से बोलीं- “सुनते हो, देवरजी के ससुरालवालों की किसी लड़की का संबंध भागीरथी के यहाँ हुआ है। वे सब लोग यहीं आकर ब्याह कर रहे हैं। देवरजी के बाद तो उन लोगों से कोई संबंध ही नहीं रहा, फिर भी हैं तो समधी ही। वे तो तुमको भी बुलाए बिना नहीं मानेंगे। समधी को आखिर कैसे छोड़ सकते हैं?” और बुआ पुलकित होकर हँस पड़ीं। संन्यासीजी की मौन उपेक्षा से उनके मन को ठेस पहुँची, फिर भी वे प्रसन्न थीं। इधर-उधर जाकर वे इस विवाह की प्रगति की खबरें लातीं! आखिर एक दिन वे यह भी सुन आई कि उनके समधी यहाँ आ गए हैं और जोर-शोर से तैयारियाँ हो रही हैं। सारी बिरादरी को दावत दी जाएगी- खूब रौनक होनेवाली है। दोनों ही पैसेवाले ठहरे।

“क्या जानें! हमारे घर तो बुलावा भी आएगा या नहीं, देवरजी को मरे पच्चीस बरस हो गए, उसके बाद से तो कोई संबंध ही नहीं रखा रखे भी कौन, यह काम तो मर्दों का होता है, मैं तो मरदवाली होकर भी बेमरद की हूँ।” और एक ठंडी साँस उनके दिल से निकल गई।

“अरे वाह बुआ ! तुम्हारा नाम कैसे नहीं होगा। तुम तो समधिन ठहरीं। देवर चाहे न रहे पर कोई रिश्ता थोड़े ही टूट जाता है!” दाल पीसती हुई घर की बड़ी बहू बोली।

” है बुआ, नाम है। मैं तो सारी लिस्ट देखकर आई हूँ।” विधवा ननद बोली। बैठे-ही-बैठे दो कदम आगे सरककर बुआ ने बड़े उत्साह से पूछा – “तू अपनी आँखों से देखकर आई है नाम? नाम तो होना ही चाहिए। पर मैंने सोचा कि क्या जाने आजकल के फैशन में पुराने संबंधियों को बुलाना हो, न हो।” और बुआ बिना दो पल भी रुके वहाँ से चल पड़ीं। अपने घर जाकर सीधे राधा भाभी के कमरे में चढ़ीं- “क्यों री राधा ! तू तो जानती है कि नई फैशन में लड़की की शादी में क्या दिया जावे है? समधियों का मामला ठहरा, सो भी पैसेवाले खाली हाथ जाऊँगी तो अच्छा नहीं लगेगा। मैं तो पुराने ज़माने की ठहरी, तू ही बता दे क्या दूँ? अब कुछ बनाने का समय तो रहा नहीं, दो दिन बाकी हैं, सो कुछ बना-बनाया ही खरीद लाना।”

“क्या देना चाहती हो अम्मा? जेवर, कपड़ा, श्रृंगारदान या कोई और चाँदी की चीज़?”

“मैं तो कुछ भी नहीं समझू री। जो कुछ पास है तुझे लाकर दे देती हूँ, जो तू ठीक समझे ले आना। बस, भद्द नहीं उड़नी चाहिए ! अच्छा देखूँ पहले कि रुपये कितने हैं?” और वे डगमगाते कदमों से नीचे आईं। दो-तीन कपड़ों की गठरियाँ हटाकर एक छोटा-सा बक्सा निकाला। उसका ताला खोला। इधर-उधर करके एक छोटी-सी डिबिया निकाली। बड़े जतन से उसे खोला उसमें सात रुपए की कुछ रेजगारी पड़ी थी और एक अँगूठी बुआ का अनुमान था कि रुपए कुछ ज्यादा होंगे, पर जब सात ही रुपए निकले तो सोच में पड़ गई। रईस समधियों के घर में इतने से रुपयों से बिंदी भी नहीं लगेगी। उनकी नज़र अँगूठी पर गई। यह उनके मृतपुत्र की एक मात्र निशानी उनके पास रह गई थी। बड़े-बड़े आर्थिक संकटों के समय भी वे उस अँगूठी का मोह नहीं छोड़ सकी थीं। आज भी एक बार उसे उठाते समय उनका दिल धड़क गया, फिर भी उन्होंने पाँच रुपए और वह अँगूठी आँचल से बाँध ली। बक्से को बंद किया और फिर ऊपर को चलीं, पर इस बार उनके मन का उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया था और पैरों की गति शिथिल। राधा के पास जाकर बोलीं- “रुपए तो नहीं निकले बहू। आएँ भी कहाँ से, मेरे कौन कमानेवाला बैठा है? उस कोठरी का किराया आता है, उसमें दो समय की रोटी निकल जाती है जैसे-तैसे !” और वे रो पड़ीं। राधा ने कहा- “क्या करूँ बुआ, आजकल मेरा भी हाथ तंग है, नहीं तो मैं ही दे देती। अरे, पर तुम देने के चक्कर में पड़ती ही क्यों हो? आजकल तो लेन-देन का रिवाज़ ही उठ गया है।”

“नहीं रे राधा, समधियों का मामला ठहरा! पच्चीस बरस हो गए तो भी वे नहीं भूले और मैं खाली हाथ जाऊँ? नहीं-नहीं, इससे तो न जाऊँ सो ही अच्छा!”

“तो जाओ ही मत। चलो छुट्टी हुई, इतने लोगों में किसे पता लगेगा कि आई या नहीं।” राधा ने सारी समस्या का सीधा-सा हल बताते हुए कहा।

“बड़ा बुरा मानेंगे। सारे शहर के लोग जावेंगे और मैं समधिन होकर नहीं जाऊँगी, तो यही समझेंगे कि देवरजी मरे तो संबंध भी तोड़ लिया। नहीं-नहीं, तू यह अँगूठी बेच ही दे।” और उन्होंने आँचल की गाँठ खोलकर एक पुराने ज़माने की अंगूठी राधा के हाथ पर रख दी। फिर बड़े मिन्नत भरे स्वर में बोलीं, “तू तो बाज़ार जाती है राधा, इसे बेच देना और जो कुछ ठीक समझे खरीद लेना। बस, शोभा रह जावे इतना ख़याल रखना।”

गली में बुआ ने चूड़ी वाले की आवाज़ सुनी तो एकाएक ही उनकी नज़र अपने हाथ की भद्दी मटमैली चूड़ियों पर जाकर टिक गई। कल समधियों के यहाँ जाना है, ज़ेवर नहीं है तो कम-से-कम काँच की चूड़ी तो अच्छी पहन लें, पर एक अव्यक्त लाज ने उनके कदमों को रोक दिया, कोई देख लेगा तो! लेकिन दूसरे ही क्षण अपनी इस कमज़ोरी पर विजय पाती-सी वे पीछे के दरवाज़े पर पहुँच गईं और एक रुपया कलदार खर्च करके लाल-हरी चूड़ियों के बंद पहन लिए। पर सारे दिन हाथों को साड़ी के आँचल से ढँके-ढँके फिरीं।

शाम को राधा भाभी ने बुआ को चाँदी की एक सिंदूरदानी, एक साड़ी और एक ब्लाउज का कपड़ा लाकर दे दिया। सब कुछ देख – पाकर बुआ बड़ी प्रसन्न हुईं और यह सोच-सोचकर कि जब वे ये सब दे देंगी तो उनकी समधिन पुरानी बातों की दुहाई दे-देकर उनकी मिलनसारिता की कितनी प्रशंसा करेंगी, उनका मन पुलकित होने लगा। अँगूठी बेचने का गम भी जाता रहा। पासवाले बनिए के यहाँ से एक आने का पीला रंग लाकर रात में उन्होंने साड़ी रँगी। शादी में सफेद साड़ी पहनकर जाना क्या अच्छा लगेगा? रात में सोई तो मन कल की ओर दौड़ रहा था।

दूसरे दिन नौ बजते-बजते खाने का काम समाप्त कर डाला। अपनी रँगी हुई साड़ी देखी तो कुछ जँची नहीं। फिर ऊपर राधा के पास पहुँची -“क्यों राधा ! तू तो रँगी साड़ी पहनती है तो बड़ी आब रहती है, चमक रहती है, इसमें तो चमक आई नहीं?”

“तुमने कलफ जो नहीं लगाया अम्मा, थोड़ा-सा माँड़ दे देतीं तो अच्छा रहता। अभी दे लो, ठीक हो जाएगी। बुलावा कब का है?”

“अरे नए फैशनवालों की मत पूछो, ऐन मौकों पर बुलावा आता है। पाँच बजे का मुहरत है, दिन में कभी भी आ जावेगा।”

राधा भाभी मन-ही-मन मुस्करा उठीं।

बुआ ने साड़ी में माँड़ लगाकर सुखा दिया। फिर एक नई थाली निकाली, अपनी जवानी के दिनों में बुना हुआ क्रोशिए का एक छोटा सा मेज़पोश निकाला। थाली में साड़ी, सिंदूरदानी, एक नारियल और थोड़े-से बताशे सजाए, फिर जाकर राधा को दिखाया। संन्यासी महाराज सवेरे से इस आयोजन को देख रहे थे। उन्होंने कल से लेकर आज तक कोई पच्चीस बार चेतावनी दे दी थी कि यदि कोई बुलाने न आए तो चली मत जाना, नहीं तो ठीक नहीं होगा। हर बार बुआ ने बड़े ही विश्वास के साथ कहा- “मुझे क्या बावली ही समझ रखा है, जो बिना बुलाए चली जाऊँगी?

अरे, वह पड़ोसवालों की नंदा अपनी आँखों से बुलावे की लिस्ट में नाम देखकर आई है और बुलावेंगे क्यों नहीं? शहरवालों को बुलावेंगे और समधियों को नहीं बुलावेंगे क्या?”

तीन बजे के करीब बुआ को अनमने भाव से छत पर इधर-उधर घूमते देख राधा भाभी ने आवाज़ लगाई- “गई नहीं बुआ?”

एकाएक चौंकते हुए बुआ ने पूछा- “कितने बज गए राधा? क्या कहा, तीन? सरदी में तो दिन का पता ही नहीं लगता है। बजे तीन ही हैं और धूप सारी छत पर से ऐसे सिमट गई मानो शाम हो गई हो।” फिर एकाएक जैसे ख़याल आया कि यह तो भाभी के प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ तो ज़रा ठंडे स्वर में बोलीं- “मुहरत तो पाँच बजे का है, जाऊँगी तो चार बजे तक जाऊँगी, अभी तो तीन ही बजे हैं।” बड़ी सावधानी से उन्होंने स्वर में लापरवाही का पुट दिया। बुआ छत पर से गली में नज़र फैलाए खड़ी थीं, उनके पीछे ही रस्सी पर धोती फैली हुई थी, उसमें कलफ लगा था और अबरक छिड़का हुआ था। अबरक के बिखरे हुए कण रह-रहकर धूप जाते थे, ठीक वैसे ही जैसे किसी में चमक को भी गली में घुसता देख बुआ का चेहरा चमक उठता था।

सात बजे के धुंधलके में राधा ने ऊपर से देखा की दीवार से सटी गली की ओर मुँह किए एक छाया – मूर्ति दिखाई दी। उसका मन भर आया। बिना कुछ पूछे इतना ही कहा, “बुआ ! सर्दी में खड़ी खड़ी यहाँ क्या कर रही हो? आज खाना नहीं बनेगा क्या? सात तो बज गए।”

“जैसे एकाएक नींद में से जागते हुए बुआ ने पूछा- “क्या कहा ! सात बज गए?” फिर जैसे अपने से ही बोलते हुए पूछा, “पर सात कैसे बज सकते हैं, मुहरत तो पाँच बजे का था।” और फिर एकाएक ही सारी स्थिति को समझते हुए, स्वर को भरसक संयत बनाकर बोलीं- “अरे, खाने का क्या है, अभी बना लूँगी। दो जनों का तो खाना है, क्या खाना और क्या पकाना।”

फिर उन्होंने सूखी साड़ी को उतारा। नीचे जाकर अच्छी तरह उसकी तह की, धीरे-धीरे हाथों से चूड़ियाँ खोलीं, थाली में सजाया हुआ सारा सामान उठाया और सारी चीजें बड़े जतन से अपने एकमात्र संदूक में रख दीं। और फिर बड़े ही बुझे दिल से अँगीठी जलाने बैठीं।

 

पाठ का सार

कहानी “अकेली” सोमा बुआ के एकाकी और दुखद जीवन को चित्रित करती है। वे एक विधवा और परित्यक्ता हैं, जिनका बेटा मर चुका है और पति तीर्थयात्री बनकर केवल एक महीने के लिए घर आते हैं। उनके पति का स्नेहहीन व्यवहार और सामाजिक अलगाव सोमा बुआ को पड़ोसियों के सहारे जीने को मजबूर करता है। वे पड़ोस के आयोजनों में सक्रियता से भाग लेती हैं, पर अपने पति के कारण उनकी स्वच्छंदता कुंठित हो जाती है। कहानी में सोमा बुआ की भावनात्मक और आर्थिक तंगी, सामाजिक रिश्तों के प्रति उनकी संवेदनशीलता और अपने मृत बेटे की अंगूठी के प्रति उनका मोह दिखाया गया है। अंत में, समधियों की शादी में बुलावे की प्रतीक्षा में उनकी निराशा और अकेलापन गहरा जाता है, जो उनके जीवन की एकरसता और दुख को उजागर करता है।

शब्दार्थ

परित्यक्ता – त्यागी हुई स्त्री

तजकर – छोड़कर, त्यागकर

गुरूर- घमंड –

अबाध – बिना किसी रोक-टोक के

शिथिल – सुस्त;

भरमाना – भ्रम में डालना

भरसक – यथा संभव, जहाँ तक हो सके

पुलकित – खुश होते हुए;

कलदार – सरकारी टकसाल में बना हुआ नया रूपया

अबरक – एक तरह का चमकदार पदार्थ।

 

Hindi Word

Hindi Meaning

English Meaning

परित्यक्ता

जिसे छोड़ दिया गया हो

Abandoned, forsaken

पुत्र-वियोग

बेटे से बिछड़ने का दुख

Grief of separation from son

तीरथवासी

तीर्थयात्रा करने वाला

Pilgrim

एकरसता

एकसमान स्थिति, नीरसता

Monotony, uniformity

स्वच्छंद

स्वतंत्र, बिना बंधन

Free-spirited, unrestrained

कुंठित

रुका हुआ, बाधित

Suppressed, restrained

संन्यासी

जो सांसारिक जीवन त्याग दे

Ascetic, renunciant

संबल

सहारा, आधार

Support, strength

बिरादरी

समुदाय, समाज

Community, fraternity

जस

प्रशंसा, यश

Praise, glory

मुरझाया

उदास, म्लान

Wilted, gloomy

अवयव

अंग, हिस्सा

Limbs, parts

शिथिल

ढीला, कमजोर

Slack, weakened

हंगामा

अव्यवस्था, उथल-पुथल

Commotion, chaos

भद्द

शर्मिंदगी, अपमान

Embarrassment, disgrace

मिन्नत

अनुरोध, विनती

Plea, entreaty

अबरक

चमकदार पदार्थ

Mica, glitter

संयत

नियंत्रित, संतुलित

Restrained, composed

क्रोशिए

हुक से बुनाई

Crochet

मुहरत

शुभ समय

Auspicious time

 

अभ्यास

पाठ से

  1. पाँच रुपए और अँगूठी को आँचल में बाँधते समय बुआ के मन में क्या विचार चल रहे थे?

उत्तर – पाँच रुपए और अँगूठी को आँचल में बाँधते समय बुआ का मन बहुत दुखी और दुविधा में था। वह अँगूठी उनके मृत पुत्र की एकमात्र निशानी थी, जिसे उन्होंने बड़े-बड़े आर्थिक संकटों में भी सँभाल कर रखा था। एक ओर उन्हें उस निशानी को खोने का गहरा दुख था, तो दूसरी ओर समधियों के घर खाली हाथ न जाने और अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने की चिंता थी। इसी कशमकश के बीच भारी मन से उन्होंने अँगूठी को बेचने का फैसला किया।

  1. सोमा बुआ अपने पति की प्रतीक्षा क्यों नहीं करती थीं?

उत्तर – सोमा बुआ अपने पति की प्रतीक्षा इसलिए नहीं करती थीं क्योंकि उनके पति का व्यवहार स्नेहहीन और कठोर था। जब तक पति रहते थे, वे बुआ के घूमने-फिरने और आस-पड़ोस में मिलने-जुलने पर रोक लगा देते थे। वे कभी दो मीठे बोल भी नहीं बोलते थे, जिससे बुआ का अकेलापन कम होने के बजाय और बढ़ जाता था। इसलिए पति की उपस्थिति उन्हें सुखद नहीं लगती थी।

  1. सोमा बुआ किशोरी लाल के घर मुंडन के कार्यक्रम में पहुँची तो उन्होंने वहाँ क्या हालात देखे? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – जब सोमा बुआ किशोरी लाल के घर मुंडन में पहुँचीं तो उन्होंने देखा कि वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित था। नई बहुओं को काम का अनुभव नहीं था। समोसे कच्चे ही उतार दिए गए थे और गुलाबजामुन इतने कम थे कि एक पंक्ति में भी पूरे नहीं पड़ते। गीत गाने वाली औरतें मुंडन पर बन्ना-बन्नी के गीत गा रही थीं, जो एक हास्यास्पद स्थिति थी। बुआ ने तुरंत हालात को सँभाला और खोया मँगवाकर नए गुलाबजामुन बनवाए।

  1. बुआ की सोच और नए फैशनवाली सोच में आप किस तरह का अंतर पाते हैं?

उत्तर – बुआ की सोच पुराने ज़माने की है जो आपसी प्रेम, अपनेपन और सामाजिक संबंधों को अधिक महत्व देती है। उनके लिए औपचारिक निमंत्रण से बढ़कर रिश्तों का मान होता है। इसके विपरीत, ‘नए फैशनवाली सोच’ अधिक औपचारिक और व्यक्तिगत है, जिसमें पुराने और दूर के रिश्तों को निभाने पर उतना जोर नहीं दिया जाता। बुआ के लिए रिश्ते निभाना जरूरी है, जबकि नई सोच में औपचारिकता प्रमुख है।

  1. “मानो वे दूसरे के घर में नहीं अपने ही घर में काम कर रही हों‘ इस पंक्ति के माध्यम से सोमा बुआ के व्यक्तित्व के बारे में कौन-कौन सी बातें सामने आती हैं?

उत्तर – इस पंक्ति से सोमा बुआ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती हैं –

अपनत्व की भावना – वे पड़ोसियों को अपना परिवार समझती थीं।

कर्मठता – वे बहुत मेहनती थीं और किसी भी काम से जी नहीं चुराती थीं।

निःस्वार्थ सेवा – वे बिना किसी अपेक्षा के दूसरों की मदद करती थीं।

अकेलेपन से मुक़ाबला – दूसरों के कामों में व्यस्त रहकर वे अपना अकेलापन दूर करने का प्रयास करती थीं।

  1. कहानी में आए पात्र सोमा बुआ के पति, राधा भाभी और विधवा ननद के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – सोमा बुआ के पति (संन्यासीजी) – वे एक कठोर, स्नेहहीन और आत्मकेंद्रित व्यक्ति हैं। उन्हें अपनी पत्नी की भावनाओं की कोई कद्र नहीं है और वे सामाजिक संबंधों को व्यर्थ समझते हैं।

राधा भाभी – वह एक संवेदनशील, दयालु और समझदार स्त्री है। वह बुआ के दुख को समझती है, उन्हें सांत्वना देती है और उनकी एकमात्र सच्ची हितैषी है।

विधवा ननद – वह एक सामान्य पड़ोसिन की भूमिका में है जो आस-पड़ोस की खबरों में रुचि रखती है। वह उत्साह में आकर बुआ को लिस्ट में नाम होने की खबर तो देती है, पर बाद में उनकी कोई सुध नहीं लेती।

  1. आपके अनुसार कहानी का शीर्षक ‘अकेली’ क्यों है?

उत्तर – इस कहानी का शीर्षक ‘अकेली’ सर्वथा उपयुक्त है क्योंकि यह कहानी की मुख्य पात्र सोमा बुआ के जीवन के केंद्रीय भाव को व्यक्त करता है। पति और पुत्र के होते हुए भी वे अकेली हैं। वे इस अकेलेपन को दूर करने के लिए सामाजिक संबंधों में सहारा ढूँढ़ती हैं, लेकिन अंत में समाज की औपचारिकता के कारण उन्हें फिर अकेलेपन और निराशा का ही सामना करना पड़ता है। कहानी की हर घटना उनके अकेलेपन को और गहरा करती है।

 

पाठ से आगे

  1. तोत्तो–चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाना साहसिक कार्य था। हम अपने दैनिक जीवन में कौन-कौन से बहादुरी या साहस के कार्य करते हैं। उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर – दैनिक जीवन में साहस का अर्थ सिर्फ शारीरिक वीरता नहीं होता, बल्कि नैतिक दृढ़ता और मानसिक मजबूती भी होती है। तोत्तो-चान का कार्य शारीरिक और भावनात्मक साहस दोनों का उदाहरण था।

हम अपने दैनिक जीवन में निम्नलिखित बहादुरी या साहस के कार्य करते हैं –

सत्य बोलना और स्वीकार करना (नैतिक साहस) – जब किसी गलती के लिए डाँट पड़ने या परिणाम भुगतने का डर हो, तब भी सच बोलना और अपनी गलती स्वीकार करना।

उदाहरण – होमवर्क न करने पर झूठ न बोलकर शिक्षक को ईमानदारी से कारण बताना।

भेदभाव का विरोध करना (सामाजिक साहस) – किसी के साथ हो रहे अन्याय या भेदभाव को देखकर उसके पक्ष में आवाज उठाना, भले ही आपको समूह या दोस्तों के बीच अलोकप्रिय होने का डर हो।

उदाहरण – किसी दोस्त को उसके रंग-रूप या शारीरिक कमजोरी के कारण चिढ़ाया जा रहा हो, तो उसका समर्थन करना।

अपनी कमजोरी पर विजय पाना (व्यक्तिगत साहस) – किसी बड़े डर (जैसे ऊँचाई, पानी, मंच पर बोलने का डर) का सामना करना या किसी बुरी आदत को छोड़ना।

उदाहरण – परीक्षा में कम अंक आने के डर के बावजूद, कठिन विषय को सीखने के लिए अतिरिक्त मेहनत करना।

मदद के लिए आगे आना (मानवीय साहस) – किसी मुसीबत में फंसे व्यक्ति, खासकर अपरिचित की मदद के लिए जोखिम उठाना।

उदाहरण – सड़क पर किसी को चोट लगी हो तो तुरंत मदद करना या आपातकालीन नंबर पर कॉल करना।

  1. यासुकी – चान जैसे शारीरिक चुनौतियों वाले व्यक्ति के प्रति सहानुभूति जताना अथवा असंवेदनशीलता दोनों ही प्रकार के व्यवहार उन्हें ठेस पहुँचाते हैं। आपकी समझ से उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए?

उत्तर – यासुकी-चान जैसे शारीरिक चुनौतियों वाले व्यक्तियों के साथ सम्मान, संवेदनशीलता और समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए।

सहानुभूति (Pity) क्यों नहीं – सहानुभूति में अक्सर दया का भाव होता है, जो उन्हें कमजोर या असहाय महसूस करा सकता है। यह उन्हें अपमानित या दूसरों से भिन्न महसूस कराता है। वे सहानुभूति नहीं, बल्कि समान अवसर और सामान्य व्यवहार चाहते हैं।

असंवेदनशीलता क्यों नहीं – असंवेदनशीलता (जैसे- नज़रअंदाज़ करना, मज़ाक उड़ाना, या उनकी चुनौतियों को न समझना) उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से गहरा ठेस पहुँचाती है।

सही व्यवहार कैसा हो –

समानता और सम्मान – उनके साथ सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करें। उनकी शारीरिक चुनौती को पहचानें, लेकिन उसे ही उनकी संपूर्ण पहचान न मानें। उन्हें फैसले लेने और भाग लेने का मौका दें।

सक्रिय सहयोग (Empathy) – सहानुभूति की जगह समानुभूति (Empathy) रखें, यानी उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करें और जरूरत पड़ने पर ही पूछकर मदद करें, न कि जबरदस्ती।

सुविधाजनक वातावरण – ऐसे भौतिक संसाधन (जैसे रैंप, सुलभ शौचालय) उपलब्ध कराने में सहयोग करें जिससे वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।

उनकी क्षमता पर ध्यान दें – उनकी चुनौतियों पर नहीं, बल्कि उनकी क्षमताओं, हुनर और सकारात्मक गुणों पर ध्यान केंद्रित करें। जैसे तोत्तो-चान ने यासुकी-चान के पोलियो पर ध्यान न देकर, उसके पेड़ पर चढ़ने की इच्छा पर ध्यान दिया।

  1. तोत्तो–चान ने माता-पिता से झूठ बोलकर अपने मित्र यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने जैसा साहसिक कार्य किया। आपने भी यदि किसी की सहयोग के लिए या किसी अच्छे कार्य के लिए झूठ का सहारा लिया हो, तो निःसंकोच उल्लेख करें।

उत्तर – हाँ, एक बार मैंने भी किसी की मदद के लिए झूठ का सहारा लिया था।

एक बार मेरी दोस्त स्कूल के एक महत्त्वपूर्ण खेल प्रतियोगिता में भाग लेना चाहती थी, लेकिन उसके पास उस खेल के लिए जरूरी जूते नहीं थे और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उसने मुझे बताया था कि वह झूठ बोलकर घर पर रुकेगी क्योंकि वह शर्मिंदा थी।

मैंने अपने माता-पिता से झूठ बोला कि मुझे एक अतिरिक्त प्रोजेक्ट के लिए पैसे चाहिए थे और मैंने उस पैसे से चुपके से अपनी दोस्त के लिए वे जूते खरीद लिए। मैंने उससे कहा कि ये जूते मेरे छोटे हो गए हैं और वह इन्हें रख ले।

यह झूठ बोलना उचित नहीं था, लेकिन उस समय मुझे लगा कि दोस्त का आत्मविश्वास और उसका सपना मेरे एक छोटे से झूठ से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। मेरी दोस्त ने प्रतियोगिता में भाग लिया और जीत गई भी। बाद में मैंने अपनी माँ को सच्चाई बताई, जिन्होंने मुझे झूठ न बोलने की सलाह दी, लेकिन मदद करने की भावना की सराहना भी की।

  1. यासुकी – चान जैसे शारीरिक चुनौतियों से जूझने वाले व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधा की आवश्यकता होती है। विद्यालयों अथवा सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे कौन-कौन से भौतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। आपसी चर्चा के पश्चात् एक सूची तैयार कीजिए।

उत्तर – यासुकी-चान जैसे शारीरिक चुनौतियों (विशेषकर चलने-फिरने से संबंधित) वाले व्यक्तियों के लिए सुगम्यता (Accessibility) सबसे महत्त्वपूर्ण है। विद्यालयों और सार्वजनिक स्थलों पर आवश्यक भौतिक संसाधनों की सूची इस प्रकार है:

क्र.सं.

भौतिक संसाधन

(Physical Resources)

उपयोगिता (Utility)

1.

रैंप (ढलान वाले रास्ते)

सीढ़ियों की जगह, व्हीलचेयर और बैसाखी के सहारे चलने वालों के लिए सुगम प्रवेश/निकास सुनिश्चित करना।

2.

लिफ्ट या एस्केलेटर

बहुमंजिला इमारतों में ऊपरी मंजिलों तक आसानी से पहुँचना।

3.

सुलभ शौचालय (Accessible Toilets)

चौड़े दरवाज़े, हैंडरेल और व्हीलचेयर की जगह वाला विशेष शौचालय।

4.

हैंडरेल (सहारे वाली रेलिंग)

सीढ़ियों, रैंप और गलियारों में सहारे के लिए मजबूत रेलिंग।

5.

चौड़े दरवाज़े और गलियारे

व्हीलचेयर को बिना रुकावट के अंदर-बाहर आने-जाने के लिए पर्याप्त जगह।

6.

विशेष पार्किंग स्थान

प्रवेश द्वार के सबसे पास दिव्यांगजनों के लिए आरक्षित पार्किंग की जगह।

7.

संकेतक और सूचनाएँ

ऊँचाई पर लगे स्पर्शनीय (Tactile) संकेत और ब्रेले लिपि में सूचना पट्ट (दृष्टिबाधितों के लिए भी)।

8.

कम ऊँचाई के काउंटर

टिकट काउंटर, रिसेप्शन डेस्क या कैंटीन काउंटर की ऊँचाई व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति के अनुकूल होना।

9.

श्रवण सहायता प्रणाली

सभागार, क्लासरूम में कम सुनने वालों के लिए ऑडियो सिस्टम (Hearing Loop System)।

 

भाषा के बारे में

अनुनासिक ()  – स्वरों का उच्चारण करते समय वायु को केवल मुख से ही बाहर निकाला जाता है। उच्चारण करते समय जब वायु को मुख साथ-साथ नाक से भी बाहर निकाला जाए तो वहाँ अनुनासिक स्वर हो जाता है। अनुनासिकता का हिंदी में चिह्न चन्द्रबिन्दु () है। मानक वर्तनी में इसके लेखन सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं-

(क) जिन स्वरों अथवा उनकी मात्राओं का कोई भी हिस्सा यदि शिरोरेखा से बाहर नहीं निकलता है तो अनुनासिकता के लिए चन्द्रबिन्दु (ं) लगाया जाना चाहिए; जैसे साँस, चाँद, गाँव, कुआँ, उँगली, पूँछ आदि।

(ख) जिन स्वरों अथवा उनकी मात्राओं का यदि कोई भी हिस्सा शिरोरेखा के ऊपर निकला रहता है तो वहाँ अनुनासिकता को भी बिंदु से ही लिखना चाहिए; जैसे चोंच, कोंपल, मैं में, केंचुआ, गेंद, सौंफ आदि।

अनुस्वार ()  – हिंदी में अनुस्वार एक नासिक्य व्यंजन है, जिसे () से लिखा जाता है। इसे प्रायः स्वर या व्यंजन के ऊपर लगाया जाता है। अनुस्वार का अपना कोई विशेष स्वरूप नहीं होता, बल्कि इसका उच्चारण इसके आगे आनेवाले व्यंजन से प्रभावित होता है। जैसे कि-

कवर्ग के पूर्व (ङ) – पड्कज – पंकज, गंगा – गङ्गा

चवर्ग के पूर्व (ञ) – चञ्चल – चंचल, पञ्छी – पंछी

टवर्ग के पूर्व (ण्) – डण्डा – डंडा, कण्ठी – कंठी

तवर्ग के पूर्व (न्) – पन्त – पंत, अन्धा – अंधा

पवर्ग के पूर्व (म्) – चम्पक – चंपक, खम्भा – खंभा

इसके अतिरिक्त सभी वर्णों के पहले आने पर अनुस्वार का उच्चारण पंचम वर्ण में से न् या म् किसी एक वर्ण की भाँति हो सकता है। जैसे संवाद में ‘म्’ की तरह और संसार में ‘न्’ की तरह। अनुस्वार के विपरीत आप पाएँगे कि अनुनासिक का स्वरूप स्थिर रहता है।

  1. इस पाठ में अनुनासिक ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए दो तरह के संकेतों चन्द्र बिंदु () और बिंदु () का उपयोग हुआ है और अनुस्वार को व्यक्त करने के लिए बिंदु () का उपयोग कई जगह हुआ है। कक्षा में समूह बनाकर नीचे दी गई सारणी में ऐसे शब्दों को खोज कर लिखिए।

अनुनासिक (ँ)          अनुनासिक ()               अनुस्वार ()

पाँच                  पापड़ों                            पंकज

उत्तर –

अनुनासिक (ँ)

अनुनासिक (ं)

अनुस्वार (ं)

पाँच

मैं

संबंध

आँखें

नहीं

संन्यासी

जाऊँ

हैं

मुंडन

आँगन

क्यों

तुरंत

मुँह

में

अंदर

गाँव

दोनों

पसंद

 

  1. पाठ में आए अनुनासिक और अनुस्वार के उपयोग वाले शब्दों के अलावा ऐसे शब्दों का चयन कर एक सूची बनाइए, जिसमें अनुनासिक और अनुस्वार का प्रयोग हुआ हो।

अनुनासिक ()

अनुस्वार ()

उत्तर – अनुनासिक (ँ) – चाँद, साँप, ऊँट, काँच, दाँत, माँ।

अनुस्वार (ं) – कंधा, ठंडा, पतंग, बंदर, सुंदर, जंगल।

  1. घर – बार मिलना-जुलना, आस-पास, अभी-अभी आदि इस तरह के शब्द अक्सर प्रयोग में आते हैं, इस कहानी में भी आए हैं। कक्षा में समूह बनाकर इसी प्रकार के शब्दों को ढूँढ़कर सूची बनाइए एवं उन्हें निम्नांकित सारणी के अनुसार वर्गीकृत कीजिए।

दोनों समान शब्द – धीरे-धीरे

परस्पर विरोधी शब्द – आना-जाना

विपरीत लिंगी शब्द – पति-पत्नी

पहला सार्थक दूसरा निरर्थक शब्द – चाय-वाय

दोनों निरर्थक शब्द – आँय-बाँय

उत्तर –

वर्गीकरण

कहानी से शब्द

दोनों समान शब्द

अभी-अभी, ढँके-ढँके, क्या-क्या

परस्पर विरोधी शब्द

इधर-उधर, आना-जाना

पहला सार्थक दूसरा निरर्थक

घर-बार, रोटी-पानी, तोड़-ताड़

 

 

  1. “समधियों का मामला ठहरा, सो भी पैसेवाले”।

(क) यहाँ ‘ठहरा’ शब्द से क्या आशय है?

उत्तर – यहाँ ‘ठहरा’ शब्द से आशय है – ‘है’ या ‘निकला’। वाक्य का अर्थ है कि यह समधियों का मामला है, और वे भी पैसेवाले हैं।

(ख) “ठहरा” शब्द के अलग-अलग अर्थ बताने वाले वाक्य लिखिए।

उत्तर – रुकना – यात्री कुछ देर के लिए पेड़ के नीचे ठहरा।

निवास करना – वह शहर में एक होटल में ठहरा है।

तय होना – दोनों के बीच रिश्ता ठहरा।

 

योग्यता विस्तार

  1. कहानी के अंत को दर्शाते हुए चित्र बनाइए और उस पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

  1. विवाह के अवसर पर गीत गाए जाते हैं। इसी तरह से विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले गीतों का अपना एक संकलन तैयार कीजिए। घर के बड़ों से बातचीत करके अपने पसंद के किसी एक गीत को सीखकर समूह में गाइए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

  1. आपने ‘अकेली’ कहानी पढ़ी। इस कहानी में निहित मूल भावों से मिलती-जुलती और भी कई कहानियाँ हैं, यथा- प्रेमचंद की ‘बूढ़ी काकी’, भीष्म साहनी की ‘चीफ की दावत आदि शिक्षक की सहायता से इन कहानियों को पढ़कर निम्न आधारों पर चर्चा कीजिए-

(क) पात्र

(ख) सामाजिक स्थिति

(ग) शब्दों का चयन

(घ) भाषा आदि।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

 

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. कहानी “अकेली” का मुख्य पात्र कौन है?
    a) राधा भाभी
    b) सोमा बुआ
    c) संन्यासीजी महाराज
    d) किशोरीलाल
    उत्तर – b) सोमा बुआ
  2. सोमा बुआ के पति का व्यवहार कैसा है?
    a) स्नेही और सहायक
    b) स्नेहहीन और कठोर
    c) उदासीन और चुप
    d) प्रेमपूर्ण
    उत्तर – b) स्नेहहीन और कठोर
  3. सोमा बुआ का बेटा क्यों नहीं है?
    a) वह घर छोड़कर चला गया
    b) वह मर चुका है
    c) वह विदेश में है
    d) वह तीर्थयात्रा पर है
    उत्तर – b) वह मर चुका है
  4. सोमा बुआ का पति साल में कितने समय के लिए घर आता है?
    a) छह महीने
    b) एक महीने
    c) तीन महीने
    d) पूरे साल
    उत्तर – b) एक महीने
  5. सोमा बुआ के जीवन की एकरसता का क्या कारण है?
    a) उनके पास धन की कमी
    b) परिवार का अभाव और पति का स्नेहहीन व्यवहार
    c) पड़ोसियों से दूरी
    d) बीमारी
    उत्तर – b) परिवार का अभाव और पति का स्नेहहीन व्यवहार
  6. सोमा बुआ पड़ोस के आयोजनों में क्यों जाती हैं?
    a) धन कमाने के लिए
    b) अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए
    c) प्रसिद्धि के लिए
    d) पति के कहने पर
    उत्तर – b) अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए
  7. किशोरीलाल के बेटे के मुंडन में सोमा बुआ ने क्या किया?
    a) गाने गाए
    b) खाना बनाया और व्यवस्था संभाली
    c) केवल दावत खाई
    d) उपहार दिए
    उत्तर – b) खाना बनाया और व्यवस्था संभाली
  8. सोमा बुआ के पति को क्या अच्छा नहीं लगता?
    a) उनका खाना बनाना
    b) उनका पड़ोसियों से मिलना-जुलना
    c) उनका हँसना-बोलना
    d) उनका धूप में बैठना
    उत्तर – b) उनका पड़ोसियों से मिलना-जुलना
  9. सोमा बुआ ने समधियों की शादी के लिए क्या बेचने का फैसला किया?
    a) अपनी साड़ी
    b) अपने बेटे की अंगूठी
    c) अपनी चूड़ियाँ
    d) अपना बक्सा
    उत्तर – b) अपने बेटे की अंगूठी
  10. सोमा बुआ ने शादी में जाने के लिए साड़ी को कैसे तैयार किया?
    a) उसे खरीदा
    b) उसे रंगा और माँड़ लगाया
    c) उसे सिलवाया
    d) उसे धोया
    उत्तर – b) उसे रंगा और माँड़ लगाया
  11. राधा भाभी ने सोमा बुआ को क्या सलाह दी?
    a) शादी में नहीं जाने की
    b) पति की बात मानने की
    c) अधिक पैसे खर्च करने की
    d) नई साड़ी खरीदने की
    उत्तर – a) शादी में नहीं जाने की
  12. सोमा बुआ ने समधियों की शादी में जाने की तैयारी क्यों की?
    a) धन कमाने के लिए
    b) सामाजिक रिश्ते निभाने के लिए
    c) पति के कहने पर
    d) प्रसिद्धि के लिए
    उत्तर – b) सामाजिक रिश्ते निभाने के लिए
  13. सोमा बुआ के लिए उनके बेटे की अंगूठी का क्या महत्व था?
    a) यह उनकी शादी की निशानी थी
    b) यह उनके बेटे की एकमात्र निशानी थी
    c) यह उनकी संपत्ति थी
    d) यह उनके पति की थी
    उत्तर – b) यह उनके बेटे की एकमात्र निशानी थी
  14. सोमा बुआ ने चूड़ियाँ क्यों खरीदीं?
    a) पति को खुश करने के लिए
    b) शादी में अच्छा दिखने के लिए
    c) राधा भाभी के कहने पर
    d) पड़ोसियों को दिखाने के लिए
    उत्तर – b) शादी में अच्छा दिखने के लिए
  15. कहानी में सोमा बुआ का अकेलापन किस तरह उजागर होता है?
    a) उनके खाना बनाने से
    b) बुलावे की प्रतीक्षा और निराशा से
    c) पड़ोसियों के साथ हँसी-मजाक से
    d) पति के साथ बातचीत से
    उत्तर – b) बुलावे की प्रतीक्षा और निराशा से
  16. सोमा बुआ ने शादी में देने के लिए क्या-क्या तैयार किया?
    a) साड़ी, सिंदूरदानी, नारियल, बताशे
    b) चूड़ियाँ और अंगूठी
    c) खाना और मिठाई
    d) पैसे और जेवर
    उत्तर – a) साड़ी, सिंदूरदानी, नारियल, बताशे
  17. सोमा बुआ के पति ने उन्हें शादी में जाने के लिए क्या चेतावनी दी?
    a) बिना बुलाए न जाने की
    b) ज्यादा खर्च न करने की
    c) जल्दी वापस आने की
    d) पड़ोसियों से न मिलने की
    उत्तर – a) बिना बुलाए न जाने की
  18. कहानी में सोमा बुआ की आर्थिक स्थिति कैसी है?
    a) बहुत अच्छी
    b) सामान्य
    c) बहुत तंग
    d) संपन्न
    उत्तर – c) बहुत तंग
  19. सोमा बुआ ने अपनी साड़ी को रंगने के लिए क्या किया?
    a) उसे बाजार में रंगवाया
    b) पीला रंग और माँड़ लगाया
    c) नया रंग खरीदा
    d) राधा से रंगवाया
    उत्तर – b) पीला रंग और माँड़ लगाया
  20. कहानी का अंत सोमा बुआ की किस भावना को दर्शाता है?
    a) खुशी
    b) निराशा और अकेलापन
    c) गुस्सा
    d) उत्साह
    उत्तर – b) निराशा और अकेलापन

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 – सोमा बुआ का बेटा कैसे मरा था?

उत्तर – कहानी में यह नहीं बताया गया है कि सोमा बुआ का बेटा कैसे मरा था, केवल यह बताया गया है कि वह जवान था।

प्रश्न 2 – सोमा बुआ के पति साल में कितने महीने उनके पास आकर रहते थे?

उत्तर – सोमा बुआ के पति साल में केवल एक महीने के लिए उनके पास आकर रहते थे।

प्रश्न 3 – पति के रहने पर सोमा बुआ का जीवन कैसा हो जाता था?

उत्तर – पति के रहने पर सोमा बुआ का घूमना-फिरना और मिलना-जुलना बंद हो जाता था, जिससे उनका मन और भी मुरझाया हुआ रहता था।

प्रश्न 4 – किशोरीलाल के घर मुंडन में बुआ क्यों बिना बुलाए चली गई थीं?

उत्तर – बुआ यह सोचकर बिना बुलाए चली गई थीं कि घरवाले बुलाना भूल गए होंगे और नई बहुओं से काम नहीं सँभलेगा, इसलिए उन्हें मदद के लिए जाना चाहिए।

प्रश्न 5 – किशोरीलाल के परिवार ने बुआ के काम की प्रशंसा कैसे की?

उत्तर – किशोरीलाल के परिवार ने कहा, “अम्मा! तुम न होती तो आज भद्द उड़ जाती। अम्मा! तुमने लाज रख ली!”

प्रश्न 6 – पति ने बुआ को किशोरीलाल के घर जाने पर क्या कहकर डाँटा?

उत्तर – पति ने कहा, “तू जबरदस्ती दूसरों के घर में टाँग अड़ाती फिरती है।”

प्रश्न 7 – बुआ के अनुसार, लोगों के घर कब जाना चाहिए?

उत्तर – बुआ के अनुसार, यदि कोई प्रेम रखे तो बिना बुलाए भी सिर के बल जाना चाहिए और यदि प्रेम न रखे तो दस बुलावे पर भी नहीं जाना चाहिए।

प्रश्न 8 – बुआ अपने मृत पुत्र ‘हरखू’ को कब याद करती हैं?

उत्तर – जब पति उन पर गुस्सा करते हैं तो वे राधा से अपना दुख बताते हुए कहती हैं कि जैसा उनके लिए हरखू था, वैसा ही किशोरीलाल है, और हरखू नहीं है इसीलिए वे दूसरों को देखकर मन बहलाती हैं।

प्रश्न 9 – बुआ को शादी की खबर से इतनी खुशी क्यों हुई?

उत्तर – बुआ को शादी की खबर से इसलिए खुशी हुई क्योंकि इससे उन्हें लोगों से मिलने-जुलने, एक सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होने और अपने अकेलेपन को दूर करने का एक अवसर मिल रहा था।

प्रश्न 10 – बुआ के देवर को मरे हुए कितने साल हो गए थे?

उत्तर – बुआ के देवर को मरे हुए पच्चीस बरस हो गए थे।

प्रश्न 11 – बुआ ने शादी में उपहार देने के लिए पैसे कहाँ से निकाले?

उत्तर – बुआ ने उपहार के लिए पैसे अपने एक छोटे से बक्से में रखी डिबिया से निकाले, जिसमें सात रुपए और एक अँगूठी थी।

प्रश्न 12 – वह अँगूठी बुआ के लिए क्यों खास थी?

उत्तर – वह अँगूठी बुआ के मृत पुत्र ‘हरखू’ की एकमात्र निशानी थी जो उनके पास बची थी।

प्रश्न 13 – उपहार खरीदने के लिए बुआ ने किसकी मदद ली?

उत्तर – उपहार खरीदने के लिए बुआ ने अपनी पड़ोसिन राधा भाभी की मदद ली।

प्रश्न 14 – राधा ने बुआ के लिए उपहार में क्या-क्या खरीदा?

उत्तर – राधा ने चाँदी की एक सिंदूरदानी, एक साड़ी और एक ब्लाउज का कपड़ा खरीदा।

प्रश्न 15 – बुआ ने अपनी सफेद साड़ी को शादी में पहनने लायक कैसे बनाया?

उत्तर – बुआ ने पास वाले बनिए से एक आने का पीला रंग लाकर रात में अपनी सफेद साड़ी को रँग लिया।

प्रश्न 16 – संन्यासीजी ने बुआ को शादी में जाने के लिए क्या चेतावनी दी थी?

उत्तर – संन्यासीजी ने चेतावनी दी थी कि यदि कोई बुलाने न आए तो चली मत जाना, नहीं तो ठीक नहीं होगा।

प्रश्न 17 – बुआ को किसने बताया था कि बुलावे की लिस्ट में उनका नाम है?

उत्तर – पड़ोस की विधवा ननद (नंदा) ने बुआ को बताया था कि उसने अपनी आँखों से लिस्ट में उनका नाम देखा है।

प्रश्न 18 – बुआ शाम तक छत पर किसका इंतजार करती रहीं?

उत्तर – बुआ शाम तक छत पर समधी के घर से निमंत्रण पत्र आने का इंतजार करती रहीं।

प्रश्न 19 – जब बुआ को समझ आ गया कि बुलावा नहीं आएगा, तो उन्होंने क्या किया?

उत्तर – जब बुआ को समझ आ गया कि बुलावा नहीं आएगा, तो उन्होंने अपनी रँगी हुई साड़ी की तह की, नई चूड़ियाँ उतारीं और उपहार का सारा सामान वापस अपने संदूक में रख दिया।

प्रश्न 20 – कहानी के अंत में बुआ की मनोदशा कैसी थी?

उत्तर – कहानी के अंत में बुआ का दिल पूरी तरह से टूट चुका था और वे अत्यंत निराश और बुझे हुए मन से अँगीठी जलाने बैठी थीं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. सोमा बुआ के जीवन की एकरसता का मुख्य कारण क्या है?
    उत्तर – सोमा बुआ के जीवन की एकरसता का कारण उनके बेटे की मृत्यु, पति का स्नेहहीन व्यवहार और सामाजिक अलगाव है। वे पड़ोसियों के सहारे जीती हैं, पर पति के आने पर उनकी स्वच्छंदता कुंठित हो जाती है।
  2. सोमा बुआ पड़ोस के आयोजनों में क्यों सक्रिय रहती हैं?
    उत्तर – सोमा बुआ अपने अकेलेपन को दूर करने और सामाजिक रिश्ते निभाने के लिए पड़ोस के आयोजनों में सक्रिय रहती हैं। वे मुंडन, शादी जैसे अवसरों पर काम करती हैं, मानो अपने घर का काम कर रही हों।
  3. सोमा बुआ के पति का व्यवहार उनके प्रति कैसा है?
    उत्तर – सोमा बुआ के पति का व्यवहार स्नेहहीन और कठोर है। वे केवल एक महीने घर आते हैं, पर मीठे बोल नहीं बोलते। उनका रवैया सोमा बुआ की स्वच्छंदता को कुंठित करता है, जिससे उनका मन मुरझाया रहता है।
  4. सोमा बुआ ने किशोरीलाल के बेटे के मुंडन में क्या योगदान दिया?
    उत्तर – सोमा बुआ ने किशोरीलाल के बेटे के मुंडन में खाना बनाने और व्यवस्था संभालने में मदद की। उन्होंने गुलाबजामुन बनवाए और आयोजन को सफल बनाया, जिसके लिए उन्हें बहुत प्रशंसा मिली।
  5. सोमा बुआ ने समधियों की शादी में जाने की तैयारी क्यों की?
    उत्तर – सोमा बुआ ने सामाजिक रिश्ते निभाने और समधियों के प्रति अपनेपन के कारण शादी में जाने की तैयारी की। वे नहीं चाहती थीं कि उनके न जाने से रिश्ता टूटने का संदेश जाए।
  6. सोमा बुआ ने अपनी साड़ी को कैसे तैयार किया?
    उत्तर – सोमा बुआ ने अपनी साड़ी को पीले रंग से रंगा और माँड़ लगाकर चमकदार बनाया। यह तैयारी उन्होंने समधियों की शादी में अच्छा दिखने और रिश्ते निभाने के लिए की थी।
  7. सोमा बुआ के लिए उनके बेटे की अंगूठी का क्या महत्व था?
    उत्तर – उनके बेटे की अंगूठी सोमा बुआ के लिए उनके मृत बेटे की एकमात्र निशानी थी। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने इसे कभी नहीं बेचा, पर समधियों की शादी के लिए इसे बेचने का निर्णय लिया।
  8. राधा भाभी ने सोमा बुआ को क्या सलाह दी?
    उत्तर – राधा भाभी ने सोमा बुआ को समधियों की शादी में न जाने की सलाह दी, क्योंकि बुलावा नहीं आया था। उन्होंने कहा कि इतने लोगों में उनके न जाने का किसी को पता नहीं चलेगा।
  9. सोमा बुआ ने चूड़ियाँ क्यों खरीदीं?
    उत्तर – सोमा बुआ ने लाल-हरी काँच की चूड़ियाँ खरीदीं ताकि समधियों की शादी में अच्छा दिख सकें। उनकी आर्थिक तंगी के कारण जेवर नहीं थे, इसलिए चूड़ियों से सजने का प्रयास किया।
  10. कहानी का अंत सोमा बुआ की किस भावना को दर्शाता है?
    उत्तर – कहानी का अंत सोमा बुआ की निराशा और अकेलेपन को दर्शाता है। बुलावे की प्रतीक्षा में उनकी सारी तैयारियाँ व्यर्थ हो जाती हैं, और वे बुझे मन से अपनी दिनचर्या में लौट आती हैं।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. सोमा बुआ के अकेलेपन को कहानी में कैसे चित्रित किया गया है?
    उत्तर – सोमा बुआ का अकेलापन उनके बेटे की मृत्यु, पति के स्नेहहीन व्यवहार और सामाजिक अलगाव से चित्रित किया गया है। वे पड़ोसियों के सहारे जीती हैं, पर पति के आने पर उनकी स्वच्छंदता कुंठित होती है। समधियों की शादी में बुलावे की प्रतीक्षा और निराशा उनके अकेलेपन को गहरा करती है, जो उनकी भावनात्मक और सामाजिक स्थिति को दर्शाता है।
  2. कहानी में सोमा बुआ की सामाजिक भूमिका को कैसे दर्शाया गया है?
    उत्तर – सोमा बुआ की सामाजिक भूमिका को पड़ोस के आयोजनों में उनकी सक्रियता के माध्यम से दर्शाया गया है। वे मुंडन, शादी जैसे अवसरों पर पूरे मन से काम करती हैं, मानो अपने परिवार का हिस्सा हों। उनकी यह भागीदारी उनके अकेलेपन को कम करने और सामाजिक रिश्ते निभाने की कोशिश को दिखाती है, पर पति की अस्वीकृति इसे कुंठित करती है।
  3. सोमा बुआ के बेटे की अंगूठी का कहानी में क्या महत्व है?
    उत्तर – सोमा बुआ के लिए उनके बेटे की अंगूठी उनकी सबसे कीमती और भावनात्मक निशानी है, जो उनके मृत बेटे की याद को जीवित रखती है। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने इसे कभी नहीं बेचा, पर समधियों की शादी में रिश्ता निभाने के लिए इसे बेचने का निर्णय लिया, जो उनके त्याग और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है।
  4. कहानी में संन्यासीजी महाराज का चरित्र सोमा बुआ के जीवन को कैसे प्रभावित करता है?
    उत्तर – संन्यासीजी महाराज, सोमा बुआ के पति, उनके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उनका स्नेहहीन और कठोर व्यवहार सोमा बुआ की स्वच्छंदता को कुंठित करता है। वे उनके सामाजिक मेल-जोल को पसंद नहीं करते और मीठे बोलों का सहारा नहीं देते, जिससे सोमा बुआ का अकेलापन और गहरा जाता है। उनकी उपस्थिति सोमा बुआ के मन को मुरझा देती है।
  5. कहानी में समधियों की शादी के लिए सोमा बुआ की तैयारियों का क्या महत्व है?
    उत्तर – समधियों की शादी के लिए सोमा बुआ की तैयारियाँ उनकी सामाजिक रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता और अपनेपन को दर्शाती हैं। उन्होंने साड़ी रंगी, चूड़ियाँ खरीदीं और बेटे की अंगूठी बेचकर उपहार तैयार किए। यह उनकी सामाजिक जिम्मेदारी और रिश्ते निभाने की इच्छा को दिखाता है, पर बुलावे की अनुपस्थिति उनकी निराशा और अकेलेपन को उजागर करती है।

 

 

 

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