Path 5.3: Budhi Prithvi Ka Dukh, Kavita, Nirmala Putul, Class IX, Hindi Book, Chhattisgarh Board, The Best Solutions.

निर्मला पुतुल –कवयित्री परिचय

निर्मला पुतुल का जन्म 6 मार्च सन् 1972 ई. को झारखंड के दुमका जिले में एक संथाली परिवार में हुआ। वे संथाली भाषा की प्रसिद्धकवयित्री हैं और सामाजिक कार्यकर्त्ता भी हैं। साथ ही विलुप्त होती आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, जो उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता हैं। प्रस्तुत कविता आधुनिक सभ्यता के संदर्भ में होने वाले विकास एवं प्रगति पर कई प्रश्न उठाती है।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख – पाठ परिचय

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता में निर्मला पुतुल ने आधुनिक सभ्यता एवं विकासशीलता के दौर में धरती के बदलते स्वरूप एवं लगातार हो रहे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की समस्या को प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है। प्रकृति के दर्द को रेखांकित करती इस कविता में मानव के संवेदनहीन होने पर कटाक्ष किया गया है।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख

क्या तुमने कभी सुनी है

सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से

पेड़ों की चीत्कार?

कुल्हाड़ियों के वार सहते

किसी पेड़ की हिलती टहनियों में

दिखाई पड़े हैं तुम्हें

बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथ?

क्या होती है तुम्हारे भीतर धमस

कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?

सुना है कभी

रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुँह ढाँप

किस कदर रोती हैं नदियाँ?

इस घाट अपने कपड़े और मवेशी धोते

सोचा है कभी कि उस घाट

पी रहा होगा कोई प्यासा पानी

या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य?

कभी महसूसा है कि किस कदर दहलता है

मौन समाधि लिए बैठे

पहाड़ का सीना

विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?

सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में

हथौड़ों की चोट से

टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख?

ख़ून की उल्टियाँ करते

देखा है कभी हवा को,

अपने घर के पिछवाड़े में?

भाग-दौड़ की जिंदगी से

थोड़ा-सा वक्त चुराकर

बतियाया है कभी

कभी शिकायत न करने वाली

गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?

अगर नहीं,

तो क्षमा करना !

मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है।

 

व्याख्या

पहला अंश –

क्या तुमने कभी सुनी है
सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार?

भावार्थ –
कवयित्री पूछता है कि क्या तुमने कभी देखा या सुना है कि पेड़ कुल्हाड़ियों के डर से चिल्ला उठते हैं? यह पंक्तियाँ पेड़ों की पीड़ा का प्रतीक हैं, जो मनुष्य की निर्दयता से दुखी हैं।

 

दूसरा अंश –

कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े हैं तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथ?

भावार्थ –
जब कोई पेड़ काटा जाता है तो उसकी शाखाएँ हिलती हैं, मानो वे अपने बचाव के लिए मदद मांग रही हों। कवयित्री पेड़ों को जीवित प्राणी मानकर उनकी व्यथा को महसूस करने को कहता है।

 

तीसरा अंश –

क्या होती है तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?

भावार्थ –
कवयित्री पूछता है कि जब कोई पेड़ धरती पर गिरता है तो क्या तुम्हारे मन में कोई दर्द, कोई हलचल होती है?
यह पंक्ति मनुष्य की संवेदनहीनता पर कटाक्ष है।

 

चौथा अंश –

सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुँह ढाँप
किस कदर रोती हैं नदियाँ?

भावार्थ –
कवयित्री कहता है कि क्या तुमने कभी सुना है कि नदियाँ रात के सन्नाटे में रोती हैं?
यह नदियों के प्रदूषण और उनके दर्द का प्रतीक है, जिन्हें मनुष्य ने गंदा और बेबस बना दिया है।

 

पाँचवाँ अंश –

इस घाट अपने कपड़े और मवेशी धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य?

भावार्थ –
कवयित्री कहता है कि जब हम नदी में कपड़े और पशु धोते हैं, क्या कभी सोचते हैं कि यही पानी कोई प्यासा पीता होगा या कोई स्त्री पूजा के लिए जल अर्पण करती होगी?
यह पंक्ति हमें जल संरक्षण और स्वच्छता की ओर चेताती है।

 

छठा अंश –

कभी महसूसा है कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठे
पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?

भावार्थ –
कवयित्री कहता है कि जब पहाड़ों को विस्फोटों से तोड़ा जाता है, तब उनका मौन हृदय दहल उठता है। यह पहाड़ों के विनाश और खनन के दुष्प्रभाव का प्रतीक है।

 

सातवाँ अंश –

सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में
हथौड़ों की चोट से
टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख?

भावार्थ –
कवयित्री प्रश्न करता है कि क्या तुमने कभी पत्थरों के टूटने की चीख सुनी है?
यह प्रकृति के दर्द की ओर संकेत करता है, जो हमारी प्रगति की कीमत पर कराह रही है।

 

आठवाँ अंश –

ख़ून की उल्टियाँ करते
देखा है कभी हवा को,
अपने घर के पिछवाड़े में?

भावार्थ –
कवयित्री कहता है कि प्रदूषण के कारण हवा भी अब “खून की उल्टियाँ” कर रही है — यानी वह जहरीली हो चुकी है। यह पंक्तियाँ वायु प्रदूषण की गंभीरता को दर्शाती हैं।

 

नौवाँ अंश –

भाग-दौड़ की जिंदगी से
थोड़ा-सा वक्त चुराकर
बतियाया है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?

भावार्थ –
कवयित्री कहता है कि क्या तुमने कभी अपनी व्यस्त जिंदगी से थोड़ा समय निकालकर उस मौन पृथ्वी से उसका दुख पूछा है, जो हमेशा सहती है, पर कभी शिकायत नहीं करती?

 

दसवाँ अंश –

अगर नहीं,
तो क्षमा करना!
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है।

भावार्थ –
कवयित्री अंत में कहता है कि यदि तुमने कभी पृथ्वी का दुख महसूस नहीं किया, तो तुम सच्चे इंसान नहीं हो।
यह मानवता और संवेदनशीलता की सबसे गहरी पुकार है।

 

 कविता का सारांश (सार भाव) –

कवयित्री ने इस कविता में मनुष्य की संवेदनहीनता पर करारा प्रहार किया है।
वह कहता है कि यदि हम प्रकृति के दुख को नहीं समझते, तो हमारा मानव होना व्यर्थ है। पेड़, नदियाँ, पहाड़ और हवा — सब दुखी हैं, पर हम मौन हैं। यह कविता हमें संवेदनशील और पर्यावरण-सचेत बनने की प्रेरणा देती है।

शब्दार्थ

धमस – ऐसी आवाज़ जो आपको भीतर तक हिला दे, (दिल दहलाने वाली आवाज़)

अर्घ्य देना – देवताओं को जल चढ़ाना

गुमसुम – चुपचाप।

कठिन शब्द (Difficult Word)

हिंदी अर्थ (Hindi Meaning)

अंग्रेज़ी अर्थ (English Meaning)

चीत्कार

दर्द भरी तेज़ आवाज़, ज़ोर की चीख

Scream, shriek, loud cry of pain

टहनियों

पेड़ की पतली डालियाँ

Twigs, branches

धमस

भारी चीज़ के ज़मीन पर गिरने की आवाज़; आघात

Thud; impact; sudden shock

सन्नाटे

पूरी तरह चुप्पी, नीरवता, शांति

Silence, stillness, quietness

मवेशी

पालतू पशु, गाय-भैंस आदि

Cattle, livestock

अर्घ्य

देवताओं को जल चढ़ाने की क्रिया या जल

Offering of water to a deity

दहलता

भय या पीड़ा से काँपना, विचलित होना

To tremble, to be shaken/disturbed

मौन समाधि

चुपचाप ध्यान की मुद्रा में बैठना

Silent meditation, deep stillness

छिटकता

टूटकर या उछलकर दूर तक फैल जाना

To scatter, to fly off/apart

दुपहरिया

दोपहर का समय

Midday, noon

बतियाया

बातचीत की, बातें की

Talked, conversed

गुमसुम

चुपचाप, खामोश, उदास

Silent, quiet, brooding, melancholic

संदेह

शक, अविश्वास

Doubt, suspicion

कुल्हाड़ियों

लकड़ी काटने का औजार

Axes, hatchets

 

 



पाठ से

  1. पेड़ों के चित्कारने से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – पेड़ों के चित्कारने का अर्थ है, काटे जाने पर उनकी असहनीय पीड़ा और मौन वेदना।कवयित्री कल्पना करती हैं कि जब पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलती है, तो वे इंसानों की तरह ही दर्द से चीखते हैं, भले ही उनकी यह चीख हमें सुनाई न देती हो।

  1. नदी मुँह ढाँप कर क्यों रो रही है?

उत्तर – नदी प्रदूषण के कारण मुँह ढाँप कर रो रही है। लोग उसमें गंदगी, कूड़ा-करकट और मवेशियों को धोते हैं, जिससे उसका निर्मल जल जहरीला और मैला हो गया है। अपनी इस दुर्दशा पर वह चुपचाप आँसू बहा रही है।

  1. गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी कभी किसी से कोई शिकायत नहीं करती। ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर – ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि पृथ्वी इंसानों द्वारा किए जा रहे हर अत्याचार—जैसे पेड़ों का कटना, पहाड़ों का टूटना, और प्रदूषण—को चुपचाप सहन करती है। वह एक धैर्यवान माँ की तरह अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं करती और सब कुछ अपने भीतर समेटे हुए है।

  1. खून की उल्टियाँ करते देखा है कभी हवा को

(क) इस पंक्ति में किस समस्या की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – इस पंक्ति में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की गंभीर समस्या की ओर संकेत किया गया है। कारखानों और गाड़ियों से निकलता जहरीला धुआँ हवा को इतना दूषित कर चुका है कि वह साँस लेने योग्य नहीं रही। यह प्रदूषित हवा ‘खून की उल्टी’ के समान घातक है।

(ख) इस समस्या को कम करने के क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं?

उत्तर – इस समस्या को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं –

अधिक से अधिक पेड़ लगाना।

निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन (बस, ट्रेन) का उपयोग करना।

इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।

कारखानों में प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाना अनिवार्य करना।

कूड़ा-करकट और पराली न जलाना।

  1. कविता के अंत मेंकवयित्री ने आदमी के आदमी होने पर संदेह क्यों व्यक्त किया है?

उत्तर -कवयित्री ने आदमी के आदमी होने पर संदेह इसलिए व्यक्त किया है क्योंकि मनुष्य प्रकृति के दर्द और पीड़ा के प्रति संवेदनहीन हो गया है। जो व्यक्ति पेड़ों की चीख, नदियों का रोना और हवा का दर्द महसूस नहीं कर सकता, उसमें मानवता और करुणा जैसे भावों की कमी है, और इन्हीं भावों के बिना कोई भी इंसान सही मायने में इंसान नहीं कहलाता।

  1. पृथ्वी को बूढ़ी कहने का क्या तात्पर्य है?

उत्तर – पृथ्वी को ‘बूढ़ी’ कहने का तात्पर्य यह है कि वह करोड़ों वर्षों से अस्तित्व में है और उसने बहुत कुछ सहा है। इंसानों द्वारा लगातार किए जा रहे शोषण और अत्याचार के कारण वह एक थकी हुई और कमजोर वृद्धा की तरह हो गई है, जिसकी सहनशक्ति अब जवाब दे रही है।

 

पाठ से आगे

  1. कविता के माध्यम से प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाली किन-किन समस्याओं को उभारा गया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – इस कविता में प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाली कई गंभीर समस्याओं को उभारा गया है, जैसे –

वनोन्मूलन – पेड़ों की अंधाधुंध कटाई।

जल प्रदूषण – नदियों को गंदा करना।

खनन – पहाड़ों को विस्फोट से तोड़ना।

वायु प्रदूषण – हवा को जहरीले धुएँ से भरना।

संवेदनहीनता – प्रकृति के दुख के प्रति मनुष्य की उदासीनता।

  1. वर्तमान में पहाड़ों को लगातार तोड़ा जा रहा है या दोहन किया जा रहा है।

(क) आपके अनुसार इसके क्या कारण हैं? लिखिए।

उत्तर – पहाड़ों को तोड़ने के मुख्य कारण हैं –

निर्माण कार्य – सड़क, भवन और बांध बनाने के लिए पत्थर, रेत और बजरी निकालना।

खनन – कोयला, लोहा और अन्य कीमती खनिजों को प्राप्त करना।

शहरीकरण – बढ़ते शहरों और बस्तियों के लिए जगह बनाना।

(ख) इससे पर्यावरण में किस प्रकार का असंतुलन बढ़ रहा है? चर्चा कीजिए।

उत्तर – पहाड़ों के टूटने से पर्यावरण का संतुलन बुरी तरह बिगड़ रहा है –

भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

जंगलों के नष्ट होने से वन्यजीवों का आवास छिन जाता है।

नदियों के उद्गम स्रोत सूखने लगते हैं, जिससे पानी की कमी होती है।

खनन से वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलता है।

  1. यदि सचमुच में पेड़, नदी और हवा बोल पाते तो वे अपनी पीड़ा किस प्रकार व्यक्त करते? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – पेड़ कहता – “मुझे काटो मत! मैं तुम्हें जीवन देने वाली ऑक्सीजन, फल और ठंडी छाया देता हूँ। जब तुम मुझ पर कुल्हाड़ी चलाते हो, तो मेरी आत्मा काँप उठती है।”

नदी कहती – “मैं तुम्हारी प्यास बुझाती हूँ, खेतों को सींचती हूँ। फिर क्यों तुम मुझमें जहर घोलते हो? मेरा साफ पानी अब गंदा और बीमार करने वाला हो गया है।”

हवा कहती – “मैं हर पल तुम्हें जिंदा रखती हूँ, पर तुमने मेरा दम घोंट दिया है। तुम्हारे कारखानों के धुएँ से मैं खुद बीमार हो गई हूँ और अब तुम्हें बीमार कर रही हूँ।”

  1. हमारे आसपास किन-किन प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है? इन्हें रोकने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है? लिखिए।

उत्तर – हमारे आसपास पानी, बिजली, जंगल और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है।

इन्हें रोकने में हमारी भूमिका –

पानी – ब्रश करते या नहाते समय नल बंद रखकर पानी बचा सकते हैं।

बिजली – जरूरत न होने पर पंखे और लाइट बंद कर सकते हैं।

जंगल – कागज का कम से कम इस्तेमाल करके और पेड़ लगाकर जंगलों को बचा सकते हैं।

मिट्टी – प्लास्टिक का उपयोग बंद करके और कचरा सही जगह फेंककर मिट्टी को प्रदूषित होने से रोक सकते हैं।

  1. हमारी संस्कृति व परंपराओं में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जिनमें पेड़ों को बचाने के प्रयास नज़र आते हैं, जैसे पेड़ों को राखी बाँधना, गोद लेना और किसी न किसी व्रत व पर्व में उसकी पूजा करना आदि।

क्या आपके परिवेश में पेड़ों से जुड़े पर्व या व्रत हैं? इनके बारे में जानकारी इकट्ठा कर निम्नलिखित सारणी में लिखिए।

पेड़ का नाम – पीपल

इनसे जुड़े व्रत, पर्व – पितृ-अमावस्या

जुड़ी मान्यताएँ – पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती

फलदार हैं या नहीं – फलदार है परंतु खाने के लिए उपयोगी नहीं है।

पत्तियों के बारे में – गहरे हरे रंग की, दिल के आकार की, चिकनी एवं जालीदार

उत्तर –

पेड़ का नाम

इनसे जुड़े व्रत, पर्व

जुड़ी मान्यताएँ

फलदार हैं या नहीं

पत्तियों के बारे में

पीपल

पितृ-अमावस्या, शनि पूजा

पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।

फलदार है परंतु खाने के लिए उपयोगी नहीं है।

गहरे हरे रंग की, दिल के आकार की, चिकनी।

बरगद (वट)

वट सावित्री पूजा

पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है।

फलदार है परंतु खाने के लिए उपयोगी नहीं है।

बड़ी, मोटी और गहरे हरे रंग की।

आँवला

आँवला नवमी

इस दिन पेड़ के नीचे भोजन करने से सौभाग्य मिलता है।

हाँ, इसके फल बहुत गुणकारी होते हैं।

छोटी-छोटी पत्तियाँ एक टहनी पर लगी होती हैं।

तुलसी

तुलसी विवाह, दैनिक पूजा

यह पवित्र पौधा माना जाता है और इसमें देवी का वास होता है।

नहीं, इसमें बीज (मंजरी) लगते हैं।

छोटी, सुगंधित और हरे या श्यामा रंग की।

 

भाषा के बारे में

  1. कविता में पेड़ों, नदियों, पहाड़ों आदि को मानव के समान व्यवहार करते बताया गया है, जैसे पेड़ चीत्कार कर रहे हैं, नदी रो रही है, आदि।

इस प्रकार के प्रयोग को मानवीकरण अलंकार कहा जाता है।

मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जिन-जिन पंक्तियों में हुआ है, उन्हें छाँटकर लिखिए।

उत्तर – पेड़ों की चीत्कार?

बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथ?

किस कदर रोती हैं नदियाँ?

दहलता है…पहाड़ का सीना

टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख?

ख़ून की उल्टियाँ करते…हवा को

शिकायत न करने वाली गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?

  1. कविता में ऐसे शब्दों का प्रयोग हुआ है जिनमें स्थानीय / बोलचाल की भाषा का प्रभाव झलकता है। जैसे महसूसाअर्थात् महसूस किया‘, ‘बतियायाअर्थात् बात की।

इसी प्रकार के अन्य शब्दों को स्वयं से ढूँढ़कर लिखिए।

उत्तर – कविता में आए बोलचाल के अन्य शब्द हैं –

धमस

दुपहरिया

छिटकता

  1. नीचे लिखे वाक्यों को पढ़िए-

(क) किस कदर रोती हैं नदियाँ।

(ख) हम आपकी बहुत कदर करते हैं।

दोनों वाक्यों में कदरशब्द के अर्थ अलग-अलग हैं। पहले वाक्य में इसका अर्थ के समान और दूसरे वाक्य में सम्मान / आदर है। ऐसे शब्द जिनके एक से ज्यादा अर्थ होते हैं, उन्हें हम अनेकार्थी शब्द कहते हैं।

नीचे दिए गए शब्दों के अलग-अलग अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

सीना, जीना, उत्तर, अंक, चरण

उत्तर – उत्तर – सीना –

(छाती) – वीर सैनिक ने सीना तानकर दुश्मन का सामना किया।

(सिलना) – माँ मेरे लिए कपड़े सी रही है।

जीना –

(जीवन बिताना) – हमें दूसरों की भलाई करते हुए जीना चाहिए।

(सीढ़ी) – वह जीना चढ़कर ऊपर चला गया।

उत्तर –

(जवाब) – शिक्षक ने छात्र से प्रश्न का उत्तर पूछा।

(एक दिशा) – हिमालय भारत की उत्तर दिशा में है।

अंक –

(नंबर) – उसे गणित में पूरे अंक मिले।

(गोद) – माँ ने रोते हुए बच्चे को अपने अंक में उठा लिया।

चरण –

(पैर) – हमें अपने बड़ों के चरण स्पर्श करने चाहिए।

(हिस्सा/भाग) – यह योजना अपने अंतिम चरण में है।

  1. क्याशब्द का प्रयोग करके बनाए गए प्रश्नवाचक वाक्यों को पढ़िए-

(क) क्या आप घर जा रहे हैं?

(ख) आपने नाश्ते में क्या खाया?

भाषा में प्रश्नवाचक वाक्य दो प्रकार के होते हैं – “हाँ ना” उत्तरवाले प्रश्नवाचक वाक्य और सूचनाओं की अपेक्षा रखनेवाले प्रश्नवाचक वाक्य। पहलेवाले प्रश्नवाचक वाक्य का उत्तर हाँ / नहीं में ही होगा। इसमें क्या का प्रयोग हमेशा वाक्य के शुरू में ही होगा।

(क) हाँ-नाउत्तरवाले पाँच प्रश्नवाचक वाक्य सोचकर लिखिए।

क्या आपने अपना गृहकार्य पूरा कर लिया है?

क्या कल आप बाजार चलेंगे?

क्या यह आपकी कलम है?

क्या आपने कभी शेर देखा है?

क्या आपको चाय पसंद है?

 

दूसरेवाले प्रश्नवाचक वाक्य के उत्तर में आपको कुछ न कुछ बताना होगा। इनके उत्तर में हमेशा नई सूचनाओं की उम्मीद रहती है। इन्हें सूचनाओं की अपेक्षा रखनेवाला प्रश्नवाचक वाक्य कहा जाता है। इनसे प्राप्त होने वाला उत्तर वाक्य में उसी स्थान पर आएगा जिस स्थान पर क्या का प्रयोग हुआ है।

जैसे- आपने नाश्ते में क्या खाया?

उत्तर – मैंने नाश्ते में सेब खाया।

ऐसे प्रश्नवाचक वाक्यों में क्याके अतिरिक्त कौन‘, ‘कहाँ‘, ‘कब‘, ‘कितने‘, ‘किसनेआदि शब्दों का इस्तेमाल भी वाक्य में ठीक उसी स्थान पर होता है, जहाँ उसका उत्तर होता है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं-

वाक्य – राम ने कल शाम अपने कमरे में दो सेब खाए।

प्रश्नवाचक वाक्य-

प्रश्न – किसने कल शाम अपने कमरे में दो सेब खाए?

उत्तर – राम ने

प्रश्न – राम ने कब अपने कमरे में दो सेब खाए?

उत्तर – कल शाम

प्रश्न – राम ने कल शाम कहाँ दो सेब खाए?

उत्तर – अपने कमरे में

प्रश्न – राम ने कल शाम अपने कमरे में क्या खाया?

उत्तर – सेब

प्रश्न – राम ने कल शाम अपने कमरे में कितने सेब खाए?

उत्तर – दो

(ख) इसी तरह से आप भी निम्नलिखित वाक्य से सूचनात्मक / प्रश्नवाचक वाक्य बनाइए।

वाक्य – हथौड़ों की चोट से भरी दुपहरिया में भी पत्थर चीख उठे।

उत्तर – किसकी चोट से भरी दुपहरिया में भी पत्थर चीख उठे? (उत्तर – हथौड़ों की)

हथौड़ों की चोट से कब पत्थर चीख उठे? (उत्तर – भरी दुपहरिया में)

हथौड़ों की चोट से भरी दुपहरिया में क्या चीख उठे? (उत्तर – पत्थर)

 

 

योग्यता विस्तार

  1. चिपको आंदोलन पर्यावरण रक्षा का आंदोलन है। इसे किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। एक दशक से भी ज्यादा चले इस आंदोलन में भारी संख्या में स्त्रियों ने भाग लिया था। चिपको आंदोलनके बारे में शिक्षकों से अथवा पुस्तकालय से और भी जानकारी इकट्ठा कीजिए तथा इस जानकारी को निम्न बिन्दुओं के अनुसार लिखिए-

(क) यह आंदोलन कहाँ हुआ?

उत्तर – यह आंदोलन 1973 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के चमोली जिले में शुरू हुआ।

(ख) इसके सूत्रधार कौन थे?

उत्तर – इसके प्रमुख सूत्रधार सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी और चंडी प्रसाद भट्ट थे।

(ग) इसके पीछे क्या सोच / विचार था?

उत्तर – इसके पीछे यह सोच थी कि जंगल पर स्थानीय लोगों का अधिकार है और पर्यावरण की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। यह पेड़ों की व्यावसायिक कटाई के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था, जिसमें महिलाएँ पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाती थीं।

(घ) इसकी सफलता किस हद तक रही?

उत्तर – यह आंदोलन अत्यंत सफल रहा। इसके कारण तत्कालीन सरकार को हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगानी पड़ी और यह आंदोलन पूरे भारत में पर्यावरण चेतना का प्रतीक बन गया।

  1. तेजी से बढ़ते शहरीकरण व औद्योगिकीकरण से किस प्रकार पर्यावरण प्रभावित हो रहा है? इस विषय पर समूह में चर्चा कीजिए।

उत्तर – बढ़ते शहरीकरण (Urbanization) और औद्योगिकीकरण (Industrialization) से पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है –

वायु प्रदूषण – कारखानों और गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ हवा को जहरीला बना रहा है।

जल प्रदूषण – फैक्ट्रियों का रासायनिक कचरा नदियों और झीलों में मिलकर पानी को दूषित कर रहा है।

वनों की कटाई – शहर बसाने और उद्योग लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे जा रहे हैं।

संसाधनों पर दबाव – बढ़ती आबादी के कारण पानी, जमीन और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे उनकी कमी हो रही है।

बढ़ता कचरा – शहरों में प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ढेर लग रहा है, जिसका निपटान एक बड़ी चुनौती है

 

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. कविता का शीर्षक क्या है?

अ) पृथ्वी का दर्द

ब) कुल्हाड़ियों का भय

स) बूढ़ी पृथ्वी का दुख

द) प्रकृति का रोना

उत्तर – स) बूढ़ी पृथ्वी का दुख

  1. चमकती कुल्हाड़ियों के भय सेकौन चीत्कार कर रहे हैं?

अ) आदमी

ब) पशु

स) पेड़

द) नदियाँ

उत्तर – स) पेड़

  1. बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथकिसमें दिखाई पड़ते हैं?

अ) कुल्हाड़ियों में

ब) हिलती टहनियों में

स) सपनों में

द) पहाड़ों में

उत्तर – ब) हिलती टहनियों में

  1. जब कोई पेड़ धरती पर कटकर गिरता है, तो भीतर क्या होती है?

अ) खुशी

ब) उत्साह

स) धमस

द) शांति

उत्तर – स) धमस

  1. रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुँह ढाँपकर कौन रोती हैं?

अ) स्त्रियाँ

ब) हवाएँ

स) नदियाँ

द) पृथ्वी

उत्तर – स) नदियाँ

  1. कवयित्री प्यासे व्यक्ति की तुलना किससे कर रहे हैं?

अ) कपड़े धोने वाले से

ब) अर्घ्य चढ़ाने वाली स्त्री से

स) मवेशी धोने वाले से

द) नदियाँ से

उत्तर – ब) अर्घ्य चढ़ाने वाली स्त्री से

  1. नदी के घाट पर क्या-क्या काम हो रहे हैं?

अ) सिर्फ स्नान

ब) कपड़े और मवेशी धोना

स) पानी पीना और अर्घ्य देना

द) ब) और स) दोनों

उत्तर – द) ब) और स) दोनों

  1. पहाड़ का सीना किससे दहलता है?

अ) पेड़ों के गिरने से

ब) नदी के रोने से

स) विस्फोट से टूटकर छिटकते पत्थर से

द) सन्नाटे से

उत्तर – स) विस्फोट से टूटकर छिटकते पत्थर से

  1. पहाड़ किस मुद्रा में बैठा है?

अ) क्रोध में

ब) मौन समाधि लिए

स) चिंता में

द) रोते हुए

उत्तर – ब) मौन समाधि लिए

  1. पत्थरों की चीख कब सुनाई पड़ती है?

अ) रात के सन्नाटे में

ब) भारी दुपहरिया में हथौड़ों की चोट से

स) नदी के किनारे

द) जंगल में

उत्तर – ब) भारी दुपहरिया में हथौड़ों की चोट से

  1. ख़ून की उल्टियाँ करतेकिसे देखने की बात कही गई है?

अ) पेड़ को

ब) पहाड़ को

स) हवा को

द) पत्थर को

उत्तर – स) हवा को

  1. कवयित्री बूढ़ी पृथ्वीको कैसी बताते हैं?

अ) शिकायत करने वाली

ब) बातूनी

स) कभी शिकायत न करने वाली गुमसुम

द) क्रोधी

उत्तर – स) कभी शिकायत न करने वाली गुमसुम

  1. कवयित्री किससे थोड़ा-सा वक्त चुराने की बात करते हैं?

अ) परिवार से

ब) भाग-दौड़ की जिंदगी से

स) दफ्तर से

द) दोस्तों से

उत्तर – ब) भाग-दौड़ की जिंदगी से

  1. यदि व्यक्ति पृथ्वी का दुख न बतियाए, तो कवयित्री को किस बात पर संदेह होगा?

अ) उसकी ईमानदारी पर

ब) उसके मनुष्य होने पर (आदमी होने पर)

स) उसकी बुद्धिमानी पर

द) उसके प्रेम पर

उत्तर – ब) उसके मनुष्य होने पर (आदमी होने पर)

  1. सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भयमें कौन सा अलंकार है?

अ) उपमा

ब) रूपक

स) मानवीकरण

द) अनुप्रास

उत्तर – स) मानवीकरण

  1. गुमसुम बूढ़ी पृथ्वीमें विशेषण क्या है?

अ) पृथ्वी

ब) गुमसुम

स) बूढ़ी

द) गुमसुम और बूढ़ी

उत्तर – द) गुमसुम और बूढ़ी

  1. नदी के रोने का क्या कारण हो सकता है, जैसा कि कविता में संकेत दिया गया है?

अ) पानी का सूख जाना

ब) अत्यधिक प्रदूषण और उपयोग

स) तेज बहाव

द) मछली का कम होना

उत्तर – ब) अत्यधिक प्रदूषण और उपयोग

  1. हजारों-हजार हाथकिसका प्रतीक हैं?

अ) बहुत सारे लोगों का

ब) पेड़ों की पत्तियाँ और डालियों का

स) मशीनों का

द) नदियों का जल

उत्तर – ब) पेड़ों की पत्तियाँ और डालियों का

  1. कवयित्री ने हवा को खून की उल्टियाँ करतेदेखने की बात कहाँ की है?

अ) जंगल में

ब) नदी के किनारे

स) अपने घर के पिछवाड़े में

द) पहाड़ पर

उत्तर – स) अपने घर के पिछवाड़े में

  1. कविता में किस बात पर ध्यान देने के लिए कहा गया है?

अ) केवल अपने सुख-दुख पर

ब) प्रकृति और पर्यावरण के दुख-दर्द पर

स) भाग-दौड़ की जिंदगी पर

द) पैसे कमाने पर

उत्तर – ब) प्रकृति और पर्यावरण के दुख-दर्द पर

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – कविता “बूढ़ी पृथ्वी का दुख” केकवयित्री कौन हैं?

उत्तर – कविता “बूढ़ी पृथ्वी का दुख” केकवयित्री एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जिन्होंने मानव की असंवेदनशीलता और प्रकृति के दर्द को व्यक्त किया है।

  1. प्रश्न – कविता में ‘पेड़ों की चीत्कार’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

उत्तर – ‘पेड़ों की चीत्कार’ सेकवयित्री का अभिप्राय पेड़ों की उस पीड़ा से है जो वे कुल्हाड़ियों के वार सहते समय महसूस करते हैं।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने पेड़ों की टहनियों की तुलना किससे की है?

उत्तर – कवयित्री ने पेड़ों की हिलती टहनियों की तुलना बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथों से की है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने ‘धमस’ शब्द से क्या तात्पर्य लिया है?

उत्तर – ‘धमस’ शब्द सेकवयित्री का तात्पर्य मनुष्य के भीतर होने वाली उस संवेदना या झंझोरने वाली भावना से है जो किसी पेड़ के गिरने पर होनी चाहिए।

  1. प्रश्न – नदियाँ कब और क्यों रोती हैं?

उत्तर – नदियाँ रात के सन्नाटे में इसलिए रोती हैं क्योंकि मनुष्य ने उन्हें गंदा और प्रदूषित कर दिया है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने घाट का उल्लेख किस उद्देश्य से किया है?

उत्तर – कवयित्री ने घाट का उल्लेख यह दिखाने के लिए किया है कि हम उसी नदी को गंदा करते हैं जिसका जल लोग पूजा या पीने के लिए उपयोग करते हैं।

  1. प्रश्न – कवयित्री के अनुसार मनुष्य का नदियों के प्रति व्यवहार कैसा है?

उत्तर – कवयित्री के अनुसार मनुष्य नदियों के प्रति लापरवाह और असंवेदनशील है, वह उनके दुख को नहीं समझता।

  1. प्रश्न – पहाड़ के ‘सीने के दहलने’ से कवयित्री का क्या आशय है?

उत्तर – पहाड़ के ‘सीने के दहलने’ से आशय यह है कि जब विस्फोट से पहाड़ टूटता है तो मानो उसका हृदय भी दर्द से कांप उठता है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने ‘पत्थरों की चीख’ का उल्लेख क्यों किया है?

उत्तर – कवयित्री ने ‘पत्थरों की चीख’ का उल्लेख यह दिखाने के लिए किया है कि पत्थरों के टूटने से भी प्रकृति पीड़ा महसूस करती है।

  1. प्रश्न – हवा ‘खून की उल्टियाँ’ क्यों कर रही है?

उत्तर – हवा ‘खून की उल्टियाँ’ इसलिए कर रही है क्योंकि प्रदूषण के कारण वह जहरीली और अस्वस्थ हो गई है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने मनुष्य की भाग-दौड़ भरी जिंदगी पर क्या टिप्पणी की है?

उत्तर – कवयित्री कहता है कि मनुष्य अपनी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इतना व्यस्त है कि उसने प्रकृति की पीड़ा को महसूस करना ही बंद कर दिया है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने पृथ्वी को ‘गुमसुम बूढ़ी’ क्यों कहा है?

उत्तर – कवयित्री ने पृथ्वी को ‘गुमसुम बूढ़ी’ इसलिए कहा है क्योंकि वह सब कुछ सहती है, पर कभी शिकायत नहीं करती।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने मनुष्य से क्या करने का आग्रह किया है?

उत्तर – कवयित्री ने मनुष्य से आग्रह किया है कि वह अपनी व्यस्तता से थोड़ा समय निकालकर पृथ्वी से उसके दुख के बारे में बात करे।

  1. प्रश्न – कविता के अनुसार, पृथ्वी के दुख का कारण क्या है?

उत्तर – पृथ्वी के दुख का कारण है—मनुष्य द्वारा पेड़ों की कटाई, नदियों का प्रदूषण, पहाड़ों का विस्फोट और हवा का दूषित होना।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने मनुष्य की संवेदनहीनता पर कैसी प्रतिक्रिया दी है?

उत्तर – कवयित्री ने मनुष्य की संवेदनहीनता पर दुख और क्रोध दोनों व्यक्त किए हैं और कहा है कि ऐसे व्यक्ति पर ‘आदमी होने का संदेह’ है।

  1. प्रश्न – कवयित्री का उद्देश्य इस कविता के माध्यम से क्या है?

उत्तर – कवयित्री का उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता जगाना है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने किन प्राकृतिक तत्वों के दुख को व्यक्त किया है?

उत्तर – कवयित्री ने पेड़, नदियाँ, पहाड़, पत्थर, हवा और पृथ्वी के दुख को व्यक्त किया है।

  1. प्रश्न – कवयित्री ने मनुष्य से क्या प्रश्न किया है?

उत्तर – कवयित्री ने पूछा है कि क्या तुमने कभी पेड़ों की चीत्कार, नदियों के आँसू या पहाड़ों की पीड़ा को महसूस किया है?

  1. प्रश्न – कविता के अंतिम भाग में कवयित्री ने क्या कहा है?

उत्तर – कविता के अंत में कवयित्री कहता है कि यदि तुमने कभी पृथ्वी का दुख नहीं समझा, तो मुझे तुम्हारे इंसान होने पर संदेह है।

  1. प्रश्न – कविता हमें क्या सिखाती है?

उत्तर – कविता हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील, करुणामय और जिम्मेदार बनना चाहिए क्योंकि वही हमारे जीवन का आधार है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. कवयित्री पेड़ों की चीत्कार सुनने की बात क्यों करते हैं?

उत्तर – कवयित्री पेड़ों की चीत्कार सुनने की बात इसलिए करते हैं, क्योंकि मनुष्य कुल्हाड़ियों से लगातार पेड़ों को काट रहा है। पेड़ों की चीत्कार मनुष्य द्वारा पर्यावरण को पहुँचाई जा रही गहरी पीड़ा और विनाश के भय का प्रतीक है।

  1. बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथका आशय क्या है?

उत्तर – ‘बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथ’ का आशय यह है कि जब कोई पेड़ कटता है, तो उसकी टहनियाँ और पत्तियाँ हिलती हैं। कवयित्री इन हिलती टहनियों को पेड़ की ओर से बचाव के लिए की गई अंतिम गुहार मानते हैं, जो मनुष्य से करुणा की अपेक्षा करती है।

  1. कवयित्री के अनुसार नदियाँ रात के सन्नाटे में क्यों रोती हैं?

उत्तर – नदियाँ इसलिए रोती हैं क्योंकि मनुष्य एक ही घाट पर कपड़े, मवेशी धोता है और उसी घाट पर दूसरा व्यक्ति पानी पी रहा होता है या अर्घ्य दे रहा होता है। यह प्रदूषण और स्वार्थपूर्ण उपयोग नदियों को विवश कर देता है, जिससे वे अपना दुख व्यक्त करती हैं।

  1. पहाड़ का सीना कब और क्यों दहलता है?

उत्तर – पहाड़ का सीना तब दहलता है जब विस्फोट से टूटकर कोई पत्थर दूर तक छिटकता है। पहाड़ अपनी मौन समाधि में प्रकृति की स्थिरता और सहनशीलता का प्रतीक है, लेकिन मनुष्य द्वारा खनिजों के लिए किए जा रहे अत्याचार से वह भी पीड़ा से काँप उठता है।

  1. हवा ख़ून की उल्टियाँ करतेकैसे दिखाई देती है?

उत्तर – हवा ‘ख़ून की उल्टियाँ करते’ दिखाई देती है, यह कथन वायु प्रदूषण के भयानक स्तर का प्रतीक है। मनुष्य की लापरवाही से वातावरण में विषैली गैसें और धूल घुल गई है, जिससे कवयित्री को ऐसा लगता है जैसे हवा शुद्ध न होकर रक्त-रंजित हो गई है।

  1. कवयित्री को व्यक्ति के आदमी होने पर संदेह कब होता है?

उत्तर – कवयित्री को व्यक्ति के आदमी होने पर संदेह तब होता है जब वह अपनी भाग-दौड़ की जिंदगी से थोड़ा-सा भी वक्त चुराकर, कभी शिकायत न करने वाली गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख बतियाता (साँझा करता) नहीं है।

  1. बूढ़ी पृथ्वीको गुमसुमक्यों कहा गया है?

उत्तर – ‘बूढ़ी पृथ्वी’ को ‘गुमसुम’ इसलिए कहा गया है क्योंकि वह मनुष्य के अत्याचारों को बिना शिकायत किए चुपचाप सहती रहती है। उसकी पीड़ा इतनी गहरी है कि वह शोर मचाने के बजाय गहरे मौन में डूबी हुई है।

  1. कवयित्री ने पहाड़ों और पत्थरों की पीड़ा को किस तरह व्यक्त किया है?

उत्तर – कवयित्री ने पहाड़ की पीड़ा को विस्फोट से सीना दहलने के रूप में और पत्थरों की पीड़ा को भरी दुपहरिया में हथौड़ों की चोट से टूटने पर निकलने वाली चीख के रूप में व्यक्त किया है। यह खनन और निर्माण के नाम पर हो रहे शोषण को दर्शाता है।

  1. भाग-दौड़ की जिंदगीसे क्या अभिप्राय है?

उत्तर – ‘भाग-दौड़ की जिंदगी’ से अभिप्राय मनुष्य की अत्यधिक व्यस्त, भौतिकवादी और स्व-केन्द्रित जीवनशैली से है। इस जीवन में व्यक्ति अपने लक्ष्यों और जरूरतों को पूरा करने में इतना उलझा है कि उसके पास प्रकृति के दुःख पर ध्यान देने का समय नहीं है।

  1. कविता का मुख्य संदेश क्या है?

उत्तर – कविता का मुख्य संदेश यह है कि मनुष्य को संवेदनशील बनना चाहिए और पर्यावरण के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। कवयित्री हमें यह याद दिलाते हैं कि यदि हम प्रकृति के दर्द को महसूस नहीं कर सकते, तो हमारे भीतर की मानवता अधूरी है।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. कवयित्री ने मनुष्य और प्रकृति के संबंध पर किस प्रकार प्रश्नचिह्न लगाया है?

उत्तर – कवयित्री ने मनुष्य और प्रकृति के बीच के विघटित संबंध पर प्रश्नचिह्न लगाया है। वे पूछते हैं कि क्या मनुष्य ने पेड़ों की चीत्कार, नदियों का रोना और पहाड़ का दहलना कभी महसूस किया है? मनुष्य केवल अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का शोषण कर रहा है और उसके दुःख को अनदेखा कर रहा है। कवयित्री कहते हैं कि यदि व्यक्ति प्रकृति का दुख नहीं समझता, तो उसका आदमी होना ही संदेहपूर्ण है, क्योंकि संवेदनशीलता मानवता का मूल आधार है।

  1. कविता में नदियों के प्रदूषण और उपयोग के विरोधाभास को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कविता में नदियों के प्रदूषण और उपयोग के विरोधाभास को स्पष्ट किया गया है। कवयित्री कहते हैं कि एक ही घाट पर लोग अपने कपड़े और मवेशी धोकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं, जबकि उसी समय या थोड़े ही आगे कोई प्यासा पानी पी रहा होगा या कोई स्त्री अर्घ्य चढ़ा रही होगी। यह विरोधाभास दर्शाता है कि मनुष्य बिना सोचे-समझे नदी को अपवित्र कर रहा है, जबकि उसी नदी को कोई जीवन का आधार या पवित्र देवता मानकर पूज रहा है।

  1. कवयित्री ने बूढ़ी पृथ्वीके लिए किन विशेषणों का प्रयोग किया है और वे क्या दर्शाते हैं?

उत्तर – कवयित्री ने ‘बूढ़ी पृथ्वी’ के लिए ‘कभी शिकायत न करने वाली’ और ‘गुमसुम’ विशेषणों का प्रयोग किया है। ये विशेषण पृथ्वी की असीम सहनशीलता और निरंतर पीड़ा को दर्शाते हैं। ‘बूढ़ी’ शब्द उसके प्राचीन अस्तित्व और युगों-युगों के दुःख को समेटे हुए है, जबकि ‘गुमसुम’ बताता है कि पृथ्वी अपनी पीड़ा व्यक्त करने के बजाय मौन रहकर मनुष्य के अत्याचार सह रही है। कवयित्री का उद्देश्य यह दिखाना है कि उसका दुख इतना गहरा है कि वह शिकायत करना भी छोड़ चुकी है।

  1. कविता में पर्यावरण के किन तीन मुख्य तत्वों पर मनुष्य के अत्याचारों का वर्णन है?

उत्तर – कविता में पर्यावरण के तीन मुख्य तत्वों – पेड़, नदी और पहाड़ पर मनुष्य के अत्याचारों का वर्णन है –

पेड़ – कुल्हाड़ियों से काटने पर चीत्कार करते हैं।

नदी – प्रदूषण से दुखी होकर रात के सन्नाटे में रोती हैं।

पहाड़ – खनिजों के लिए किए गए विस्फोट से उनका सीना दहल जाता है और पत्थर चीखते हैं।

यह वर्णन बताता है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए भूमि, जल और वन तीनों का निर्दयता से शोषण कर रहा है।

  1. कवयित्री का अंतिम कथन, “मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है,” का मर्म क्या है?

उत्तर – कवयित्री का यह अंतिम कथन कविता का सबसे मार्मिक और चुनौती भरा अंश है। इसका मर्म यह है कि मानव होने का अर्थ केवल जैविक अस्तित्व नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, करुणा और सहानुभूति से परिपूर्ण होना है। यदि कोई व्यक्ति प्रकृति के दुःख और पीड़ा को महसूस नहीं कर पाता, उसे दूर करने का प्रयास नहीं करता, तो वह अपनी मानवीयता खो चुका है। कवयित्री सीधे शब्दों में उस व्यक्ति को नैतिक और भावनात्मक रूप से मनुष्य मानने से इनकार करते हैं।

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