संकलित
आज भी वाचिक परंपरा में लोक साहित्य विद्यमान है। जिसे हम लोककथा, लोकगीत, लोकगाथा, कहावतें (हाना) मुहावरे, जनउला (पहेली) आदि के नाम से जानते हैं। ये लोक संपत्ति हैं। इनकी रचना किसने की यह अज्ञात है। लोक के इस ज्ञान को अब अनेक रचनाकारों द्वारा लिखा जा रहा है। इस पाठ में एक हल्बी और एक छत्तीसगढ़ी लोककथा दी जा रही है।
पाठ परिचय –
यह लोककथा जीवन में परिश्रम, साहस और सूझबूझ के महत्त्व को व्यक्त करती है। दूसरी लोककथा पंचतंत्र की कथाओं की तरह तात्कालिक बुद्धि और चतुराई के उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- साँच ल आँच का (हल्बी लोककथा)
बहुत दिन पहिली के बात आय। एक झन किसान के बेटा हर एकेल्ला जंगल डहर जावत रहिस। सँगे – सँगवारी के बिना रद्दा कइसे रेंगे जाय, ये सोच के वोहर एकठन ठेंगा म तुमड़ी ल बाँध के जंगल के रद्दा रेंगे लागिस रद्दा रेंगत-रेंगत ओला एकटन बड़का असन केकरा मिलिस। वोहर किसान के बेटा के सँगे-सँग कोरकिर – कोरकिर आए लागिस। तब किसान के बेटा हर ओला रद्दा ले दुरिहा मढ़ा के कहिस, “तैं मोर सँग रेंगत-रेंगत कहाँ जाबे, इहिच्च करा रहे राह, मोला अड़बड़ दुरिहा जाना हे, थक जाबे।” ये कहि के वोहा अपन रद्दा रेंगे लागिस।
तब केकरा हर कहिस, भाई- ददा,
सँग म सँगवारी होही,
रद्दा थोकिन सरू होही।
मोला तैं सँग ले जाबे,
हरहिंछा तैं जिनगी पाबे।
केकरा के निक बात ल सुन के किसान के बेटा हर सोंचिस, चल आज इही ल सँगवारी मान लेथौं। अउ ओला तुमड़ी म धर के आगू डहर चल दिस।
कटकटाए जंगल। साँकुर रद्दा। काँटा – खूँटी ले बाँचत आगू रेंगे लागिस रेंगत-रेंगत वो हर एकठन जंगल म पहुँच गिस, जिहाँ एकठन साँप अउ कउँवा के गजब दबदबा राहय, डर अउ तरास राहय जउन ओ जंगल में जाय वोहर कभू लहूट के नइ आय। साँप अउ कउँआ हर उनला मार के खा जाँय उही पाय के ओ राज के राजा हर हाँका परवा दे रहिस, “जउन हर साँप अउ कउँआ ल मारही, वोकर सँग राजकुमारी के बिहाव कर दे जाही अउ ओला आधा राज के मालिक बना दे जाही।”
किसान के बेटा ल जब थकासी लागे लागिस, तब सोंचिस, रद्दा दुरिहा हे, चिटिक बिसराम कर ले जाय। ये सोंच के घमघमाए मउँहा के छइहाँ म सुरताये लागिस। सुग्घर हवा चलत रहिस। चिटिक बेरा म ओकर नींद परगे। उही मउँहा के रूख म साँप अउ कउँवा के बासा राहय। किसान के बेटा ल सुते देख के साँप हर अइस अउ ओला चाब दिस। साँप के चाबे ले तुरते वोकर मउत होगे। तब कउँवा हर रूख ले उतर के कहिस, “तैं हर एकर पाँव ल चाबे हस त पाँव डहर तोर अउ मूड़ डहर मोर।”
साँप अउ कउँवा के गोठ बात ल तुमड़ी म बइठे केकरा हर सुनत राहय। बेरा देख के धिरलगहा आइस अउ साँप के घेंच ल धर लिस अउ कहिस, “तैं हर मोर सँगवारी ल जिया नहीं त तोरो परान नइ बाँचय।” साँप छटपटाए लागिस, फेर वोकर छक्का पंजा नइ चलिस। एला देख के कउँवा के टोंटा सुखाए लागिस। मउका देख के ठेंगा हर अइस अउ कउँवा ल ठठाये लागिस कउँवा अधमरहा होगे। तब साँप अउ कउँवा हर किलोली करिन, “हमला माफी दे दव सगा भाई, अब अइसन गलती कभू नइ करन।” केकरा हर कहिस, “जब परान संकट म हे, तब नत्ता – रिस्ता के सुरता आथे। माफी तभे मिलही जब हमर सँगवारी ल जियाबे। “जब खुद के परान संकट म होथे, तब सब सरत मंजूर होथे। साँप तुरते किसान के बेटा के देह ले बिख ल तीर लिस।
साँप के बिख तीरे के बाद जब ओला होस अइस तब कहिस, “अड़बड़ बेर ले सुत गेंव केकरा भाई, अब चलौ।” केकरा हर सबो बात ल किसान के बेटा ल बताइस किसान के बेटा हर कहिस, दुस्मन ल कइसे माफी केकरा भाई, ये कहि के साँप अउ कउँवा के मुड़ी ल काट के गमछा म गुरमेट के धर लिस।
ये सब ल उही लकठा म गाय चरावत धोरइ हर देखत रहिस। जइसे किसान के बेटा हर अपन रद्दा रेंगिस, धोरइ हर मरे साँप अउ कउँवा ल धर के राज दरबार में पहुँच गे। राजा हर दरबार म बइठे राहय। राजा के आगू म जा के धोरइ हर कहिस, “राजा साहब, मैं हर साँप अउ कउँवा ल मार डारेंव। “ये कहिके मरे साँप अउ कउँवा के धड़ ल राजा के आगू म मढ़ा दिस।
धोरइ के बात ल सुन के राज दरबार म उछाह के बादर छागे। आज अतियाचारी साँप अउ कउँवा ले मुक्ती मिलगे। राजा हर कहिस, “हमर घोसना के पालन होना चाही। राजकुमारी के बिहाव धोरइ के सँग करे के तियारी करे जाय।” राजा के हुकुम ले, चारों मुड़ा म राजकुमारी के बिहाव के तियारी होय लागिस। एक तो अतियाचारी साँप अउ कउँवा ले मुक्ती, दूसर तरफ राजकुमारी के बिहाव। ये खबर ह जंगल के आगी असन पूरा राज म बगरगे। परजा म दून खुसी छागे। राज भर म तिहार कस उछाह होगे। सबके मन म आनंद हमागे। चारों मुड़ा धोरइ के गुनगान होय लागिस धोरइ खुस होगे। अब तो ओकर बिहाव राजकुमारी के सँग होही। अब वो राजा के दमाँद बन जाही। आधा राज के मालिक बन जाही। अब वोकर दुख के रात हर पहागे।
राज भर के छोटे-बड़े मनखे राजकुमारी के बिहाव म सामिल होए बर राज दरबार पहुँचे लागिन। घूमत- घूमत किसान के बेटा घलो उही राज म पहुँचिस राज म होवइया उछाह ल देख के वोहर दू-चार झन ल पूछिस, ये राज म अभी कउन तिहार मनावत हे भाई! सब झन एके बात कहिन, अतियाचारी साँप अउ कउँवा ल धोरइ हर मार डारिस। राजा साहब के घोसना के अधार म राजकुमारी के बिहाव धोरइ के सँग होए के तियारी हे।
ये बात ल सुन के किसान के बेटा अचरज में परगे। साँप अउ कउँवा ल तो मैं मारे हौं, ये धोरइ हर कइसे जान डारिस। वो हर कहिस, भाई, “साँप अउ कउँवा ल तो मैं मारे हँव। धोरइ हर सच नइ कहत है।”
ये बात हर ये कान ले वो कान होवत राज दरबार म पहुँचगे। मंत्री हर राजा ल बताइस, एक झन परदेसी आए हे। वोहर कहिथे – “साँप अउ कउँवा ल मैं मारे हौं।” राजा कहिस- “अइसे हे, त वो परदेसी ल राज दरबार म हाजिर करे जाय। अउ धोरइ ला घलो बलाए जाय।”
राजा के आग्या ले किसान के बेटा अउ धोरइ ल राज दरबार म पेस करे गिस राजा हर किसान के बेटा ल कहिस, यदि साँप अउ कउँवा ल तैं मारे हस त सबूत पेस कर किसान के बेटा हर अपन गमछा म बाँधे साँप अउ कउँवा के मुड़ी ल राजा साहब के आगू म रख दिस। राजा हर अचरज में परगे। साँप अउ कउँवा ल धोरइ मारे हे कि ये किसान के बेटा! राजा हर बिचार कर के कहिस, “मैं कइसे मानव, साँप अउ कउँवा ल तैं मारे हस।” किसान के बेटा हर कहिस, मोर करा एकर गवाही है। ये कहिके अपन तुमड़ी ले केकरा ल निकाल के एक तरफ राजा के आगू म मढ़ा दिस त दूसर तरफ ठेंगा ल धर दिस। वोकर गवाही ल देख के सबो दरबारी मन के मुँहू ले हाँसी फूटगे।
दरबारी मन ल हाँसत देख के केकरा हर सबो बात ल ओसरी पारी बताए लागिस केकरा के बात ल सुन के तो राजा के बिस्वास हर पक्का होगे। तब वोहर मंत्री ल कहिस, “अब ये धोरइ बर का नियाव हे?” मंत्री कहिस, “धोरइ ल घलो अपन बात रखे के मउका दिए जाय।” लेकिन धोरइ के मुँहू ले तो एको भाखा नइ फूटिस। वो का कही सकत हे? इहाँ तो दूध के दूध अउ पानी के पानी हो गे रहिस। धोरइ हर अपराधी कस मुड़ी गड़ियाये खड़े रहिस त राजा सब बात ल बिन कहे समझगे। राजा हर कहिस, धोरइ ह हमर सँग धोखा करे हे एकर सजा मिलना चाही। ये कहि के धोरइ ल जेल म धंधवा दिस अउ किसान के बेटा के सँग राजकुमारी के बिहाव कर दिस।
किसान के बेटा हर अब राजा के दमाँद बनके राजमहल म रहे लागिस। उहाँ सब सुख सुविधा होय के बाद वोकर मन ह उहाँ नइ लागत राहय। चोबीस घंटा बइठे-बइठे दिन हर घलो नई पहाय। तब वोहर राजकुमारी ल कहिस, मोर ददा हर कहे रहिस, “सदा मिहनत करके जिनगी बिताबे।” ये बात सही आय, बिना मिहनत करे अनाज नइ खाना चाही। बिन मिहनत के भोजन खाना पाप बरोबर होथे। ये कहिके वोहर राजा के खेत म जाके काम – बूता करे लागिस।
किसान के बेटा ल खेत म काम करत देख के लोगन हाँसे। कतको मन तो वोकर खिल्ली उड़ाय। “हड़िया के मुँहू ल परई म ढाँकबे, मनखे के मुँहू म काला ढाँकबे।” जे ठन मुँहू ते ठन बात। कोनो काहय, राजा के दमाँद होके मिहनत करथे, कतिक गुनिक मनखे हे। त कोनो काहय, मजूर के बेटा मजूरी नइ करही त अउ का करही। धीरे-धीरे ये बात राजा के कान म पहुँचगे।
राजा हर ओला दरबार म बला के कहिस, “तैं हर अब किसान के बेटा नो हस, राजा के दमाँद आस। अब तोला ये तरह ले काम- बूता करना सोभा नइ देवय। परजा म बने बात नइ होवत हे।” किसान के बेटा ह कहिस, “महराज, मोला छीमा दूहू। काम करना कोनो अपराध नोहै। मैं अपन खेत म मिहनत करथैव। राजा के दमाँद होके जब मैं मिहनत करहूँ तब परजा के मन म मिहनत बर आदर के भाव जागही, अउ कोनो काम ल वोहर छोटे-बड़े नइ समझही। हमर राज म धन दिनदुनी रात चउगुनी बाढ़ही। जउन राज के राजा हर मिहनत करथे, ओ राज म कभू अकाल अउ भूखमरी नइ होवय।”
अपन दमाँद के बिचार ल सुन के राजा हर गदगद होगे। ओला अपन छाती ले लगा लिस। अब ओला बिस्वास होगे कि ये हर मिहनती के सँगे-सँग बिचारवान घलो हे राजा हर दरबार म घोसना कर दिस, “मोर इही दमाँद हर राज के उत्तराधिकारी होही।” राजा के घोसना ल सुन के दरबार म उछाह छागे।
- हिरन अउ कोलिहा (छत्तीसगढ़ी लोककथा)
एक बखत के बात आय। हिरन अउ कोलिहा पानी पीये बर जावत रहिन। कुँआ तीर जा के कोलिहा हहिरन ले कहिस “ये मितान! मैं हर पहिली खाल्हे डहर लटक के पानी पी लेयँव पाछू तैं पानी पी लेबे।” कोलिहा ह हिरन के पूछी ल धर के खाल्हे डहर लटक के पानी पीये लागिस जब वो हर पानी पी डारिस तब हिरन के पारी आइस। जब कोलिहा हर हिरन के पूछी ल धरिस तब हिरन ह कुआँ डहर लटक के पानी पीये छपाक लागिस। आन देखिस न तान, कोलिहा हा हिरन ला कुआँ म ढकेल दिस। हिरन हर कुआँ म भदाक ले गिर गे। कुआँ ले थोरिक दुरिहा खेत में किसान मन बटुरा टोरत रहिन। कोलिहा हर किसान मन ला हूँत कराके बलाइस, अउ कहिस, “एकठन हिरना हर ये कुआँ मा गिर गे हे।” किसान मन कुआँ म गिरे हिरन ल अड़बड़ उदीम कर के बाहिर निकालिन। हिरन के तो परान निकल गे रहिस। ओला थोरिक दूरिहा म ले जा के नान-नान काटे लागिन। तब्भेच्च कोलिहा ह उकर तीर म जाके कहिस, “सँगवारी हो, एक भागा माँस महू ल नइ दुहू का?”
किसान मन कहिन, गजब मिहनत करके हमन हिरन ल कुआँ ले बाहिर निकाले हन, ये पाये के येमा पोगरी हिस्सा हमरे हे। कोलिहा हर कहिस, फेर हिरन के कुआँ म गिरे के खबर तो मैं हर दे हौं? वोकर ले का होथे, “जे करे काम, ते खाये चाम।” अइसे कहिके किसान मन इनकार कर दिन।
अब कोलिहा हा कहिस, “ठीक हे भाई हो! जइसे तुहर
मरजी। तुमन मोला हिरन के माँस खाये बर नइ देना चाहौ त मत देवौ। फेर मोला नानकुन आगी तो दे दो।”
किसान मन कोलिहा ल आगी दे दिन। कोलिहा हर आगी ल धरिस अउ किसान मन के बटुरा के खेत म फेंक दिस। बटुरा के खेत ह जरे लागिस वोला देख के किसान मन अकबका गे। अउ आगी ल बुझाये बर खेत डहर दउँडिन। जइसे किसान मन खेत डहर गइन कोलिहा हर हिरन के माँस ल पेट भर खाइस।
पाठ का सार
यह हल्बी लोककथा सत्य की विजय और मेहनत के महत्त्व को दर्शाती है। एक किसान का बेटा जंगल जाता है और एक केकड़ा को अपना साथी बना लेता है। जंगल में साँप और कौवे के जाल से बचते हुए, केकड़ा किसान के बेटे की जान बचाता है और बदले में साँप व कौवे को हराता है। किसान का बेटा उनके सिर काटकर सबूत के रूप में ले जाता है। एक धोबी झूठ बोलकर श्रेय लेने की कोशिश करता है, लेकिन सत्य सामने आता है। किसान का बेटा राजकुमारी से विवाह करता है, फिर भी खेतों में मेहनत करता रहता है। राजा उसके विचारों से प्रभावित होकर उसे उत्तराधिकारी घोषित करता है। कथा सिखाती है कि सत्य कभी हारता नहीं और मेहनत ही सच्ची संपत्ति है।
शब्दार्थ
एकेल्ला – अकेला
डहर – रास्ता
सँगवारी – साथी
रद्दा – रास्ता
तुमड़ी – लौकी का सूखा खोल,
कटकटाए – बहुत घना
साँकुर – सँकरा
घमघमाए – आच्छादित
सुग्घर – सुन्दर
चिटिक बेरा – थोड़ा समय
रूख – वृक्ष
हाँका पारना – मुनादी करना
बासा – निवास
टोंटा – गला
मुड़ी – सिर
उछाह – उत्साह
धोरइ – चरवाहा (एक तरह की जाति)
ओसरी पारी – एक के बाद एक, क्रमशः
मढ़ा के – रखकर
अड़बड़ – बहुत;
गुनिक – गुणवान
बिख – विष, जहर,
कोलिहा – सियार
खाल्हे – नीचे
बटुरा – मटर
थोरिक – थोड़ा
तीर – पास
नानकुन – छोटा-सा
आगी – आग
तरास – भय
उदीम प्रयास।
Halbi Word | Hindi Meaning | English Meaning |
रद्दा | रास्ता | Path/Way |
डहर | अंदर | Inside |
कोरकिर | चिपकना | Clinging/Sticking |
कटकटाए | कठिन/काँटेदार | Thorny/Difficult |
साँकुर | संकर/संकुचित | Narrow |
काँटा-खूँटी | काँटे | Thorns |
दबदबा | प्रभुत्व | Dominance |
तरास | भय | Fear |
घोसना | घोषणा | Proclamation |
घमघमाए | थकान से चूर | Exhausted |
छइहाँ | छाया | Shade |
सुरताये | सो जाना | Fall asleep |
बासा | घोंसला | Nest |
चाब | काटना | Bite |
घेंच | पैर | Leg/Claw |
छक्का पंजा | छटपटाहट | Struggle |
टोंटा | चोंच | Beak |
सुखाए | चोंच मारना | Peck |
किलोली | किलकारी/चिल्लाहट | Shriek |
गमछा | गमछा (तौलिया) | Towel/Gamcha |
गुरमेट | बाँधना | Tie |
धोरइ | धोबी | Washerman |
उछाह | उत्साह | Excitement |
परजा | प्रजा | Subjects |
दमाँद | दामाद | Son-in-law |
मिहनत | मेहनत | Hard work |
खिल्ली | मजाक | Ridicule |
गुनगान | गान/स्तुति | Praise/Song |
पाठ से
निर्देश – हिंदी में दिए गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में तथा छत्तीसगढ़ी में दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपनी मातृभाषा
में लिखिए।
- किसान के बेटे को साथ ले चलने के लिए केकड़े ने क्या तर्क दिया?
उत्तर – किसान के बेटे को साथ ले चलने के लिए केकड़े ने यह तर्क दिया कि साथ में संगी-साथी होने से रास्ता आसानी से कट जाता है और यदि तुम मुझे साथ ले जाओगे तो तुम्हारा जीवन हमेशा सुरक्षित रहेगा।
- केकड़ा और ठेंगा ने किसान के बेटे की रक्षा किस तरह की?
उत्तर – जब साँप ने किसान के बेटे को डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई, तब तुमड़ी में बैठे केकड़े ने साँप की गर्दन पकड़ ली और उसे किसान के बेटे का विष चूसने के लिए मजबूर किया। वहीं, ठेंगा ने कौए को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। इस प्रकार अपनी जान संकट में देख साँप और कौए ने किसान के बेटे को पुनर्जीवित कर दिया और केकड़ा व ठेंगा ने उसकी रक्षा की।
- साँप और कौए के आतंक से पूरा राज्य किस तरह प्रभावित था?
उत्तर – साँप और कौए के आतंक से पूरा राज्य भयभीत था। उनके जंगल में जो कोई भी जाता, वे उसे मारकर खा जाते थे और वह कभी लौटकर वापस नहीं आता था। इसी आतंक से मुक्ति पाने के लिए राजा को यह घोषणा करनी पड़ी कि जो भी उन्हें मारेगा, उसके साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया जाएगा।
- किसान के बेटे ने परिश्रम के महत्त्व को किस तरह परिभाषित किया?
उत्तर – किसान के बेटे ने परिश्रम के महत्त्व को परिभाषित करते हुए कहा कि बिना मेहनत किए भोजन करना पाप के बराबर है। उसने राजा से कहा कि जब राजा का दामाद होकर वह स्वयं मेहनत करेगा तो प्रजा के मन में भी मेहनत के प्रति आदर का भाव जागेगा, कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं समझा जाएगा और राज्य में धन-धान्य की दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि होगी।
- हिरण और कोलिहा ने कुएँ से पानी पीने के लिए कौन सी तरकीब सोची?
उत्तर – हिरण और कोलिहा ने कुएँ से पानी पीने के लिए यह तरकीब सोची कि वे बारी-बारी से एक-दूसरे की पूँछ पकड़कर कुएँ में लटकेंगे और पानी पिएँगे।
- हिरण को कुएँ में धकेलने के पीछे कोलिहा का क्या उद्देश्य रहा होगा?
उत्तर – हिरण को कुएँ में धकेलने के पीछे कोलिहा का उद्देश्य उसे मारकर उसका मांस खाना रहा होगा। वह जानता था कि अकेला वह हिरण को मार नहीं सकता, इसलिए उसने हिरण को कुएँ में धकेल दिया और किसानों को बुला लिया ताकि वे उसे बाहर निकालें और उसे मांस मिल सके।
- कोलिहा के द्वारा माँस माँगने पर किसानों ने क्या कहा?
उत्तर – कोलिहा के द्वारा मांस माँगने पर किसानों ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्होंने हिरण को कुएँ से बाहर निकालने में बहुत मेहनत की है, इसलिए उस पर पूरा अधिकार उन्हीं का है। उन्होंने कहा, “जे करे काम, ते खाये चाम” अर्थात जो काम करता है, फल उसी को मिलता है।
- धोरइ अपन बात ल काबर नइ रखिस?
उत्तर – धोरइ अपन बात ल एखरे सेती नइ रख सकिस काबर के ओकर झूठ ह धरा गे रहिस। किसान के बेटा ह साँप अउ कउँवा के मुड़ी ल सबूत के तौर म राजा के आघू म रख दे रहिस अउ केकरा ह घलो सबो बात के गवाही दे दे रहिस। अब धोरइ करा कहे बर कुछु नइ बाँचिस, ते पाय के वोहर अपराधी कस मुड़ी गड़ियाये खड़े रहिगे।
- कोलिहा हर बटुरा के खेत म आगी काबर लगा दिस?
उत्तर – जब किसान मन कोलिहा ल हिरन के माँस दे बर मना कर दिन, त कोलिहा हर बदला लेय बर अउ माँस खाय बर एक ठन उपाय सोचिस। वो ह किसान मन ले आगी मांगिस अउ ओ आगी ल उंखर बटुरा के खेत म फेंक दिस। जेखर सेती किसान मन आगी बुझाय बर अपन खेत डाहर दउड़िन अउ एही मउका म कोलिहा ह पेट भर हिरन के माँस ल खाइस।
पाठ से आगे
- जनजाति समूह के व्यक्तियों में कौन-कौन सी विशेषताएँ होती है? बड़े-बुजुर्गों से चर्चा करके लिखिए।
उत्तर – जनजाति समूह के व्यक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –
वे प्रकृति-प्रेमी होते हैं और जल, जंगल, जमीन से गहरा जुड़ाव रखते हैं।
उनका जीवन बहुत सरल और सादगीपूर्ण होता है।
वे सामुदायिक भावना में विश्वास रखते हैं और मिल-जुलकर रहते हैं।
उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपरा, बोली, लोकगीत और लोकनृत्य होते हैं।
वे मेहनती, ईमानदार और आत्मविश्वासी होते हैं।
- छत्तीसगढ़ में लोककथा कहने के साथ-साथ लोकगीत भी गाए जाते हैं किन्हीं पाँच लोकगीतों के नाम लिखकर एक-एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ के पाँच प्रमुख लोकगीत और उनके उदाहरण –
ददरिया – इसे ‘लोकगीतों का राजा’ कहा जाता है। यह प्रेम और श्रृंगार का गीत है।
उदाहरण – “काँटा तैंहा झन मारबे… काँटा तैंहा झन मारबे गइया के चरइया…”
सुआ गीत – यह दीपावली के समय महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला विरह गीत है।
उदाहरण – “तरी हरी नाना मोर नाना रे सुअना, कहँवा तोरे सोन के ठोर…”
करमा गीत – यह करमा पर्व पर आदिवासियों द्वारा गाया जाने वाला सामूहिक नृत्य-गीत है।
उदाहरण – “झन मारो मोला कांकरी ग, करम के छइहाँ…”
पंडवानी – यह महाभारत की कथा का संगीतमय गायन है।
उदाहरण – “दुर्योधन के छल भारी, पांडव पाँचों भाई…”
भरथरी – यह राजा भरथरी के वैराग्य जीवन पर आधारित लोकगीत है।
उदाहरण – “राजा भरथरी के सुनले गाथा, जोगिया बन के निकलगें…”
- “जो कोई साँप और कौए को मारेगा, उससे मैं राजकुमारी का विवाह कराऊँगा।” क्या राजा की यह घोषणा उचित थी? अपने विचार दीजिए।
उत्तर – मेरे विचार में, राजा की यह घोषणा पूरी तरह से उचित नहीं थी। यद्यपि साँप और कौए का आतंक समाप्त करना राज्य के लिए आवश्यक था, लेकिन इसके लिए अपनी पुत्री के विवाह को पुरस्कार के रूप में रखना अनुचित है। इससे राजकुमारी एक वस्तु के समान प्रतीत होती है। विवाह के लिए साहस के साथ-साथ व्यक्ति का स्वभाव, चरित्र और योग्यता भी देखी जानी चाहिए, जो केवल एक कार्य से तय नहीं की जा सकती।
- पानी पीये बर हिरन हर कोलिहा के सँग दिस, फेर कोलिहा के पारी आए ले वोहर हिरन ल कुँआ म ढकेल दिस। कोलिहा के अइसन आचरन के बारे म अपन बिचार लिखौ।
उत्तर – कोलिहा के आचरन ह एकदम बिसवासघाती अउ मतलबी रहिस। हिरन ह ओला अपन मितान समझ के ओकर ऊपर भरोसा करिस, फेर कोलिहा ह अपन स्वार्थ बर ओकर संग धोखा करिस। एखर ले ये सीख मिलथे के हमन ल अंधबिसवास नइ करना चाही अउ कोनो ऊपर भरोसा करे के पहिली ओला अच्छा से जाँच-परख लेना चाही। धोखा देना सबले बड़ पाप आय।
- खेत की खड़ी फसल में आग लग जाने पर उसे बुझाने के कौन-कौन से तरीके हो सकते हैं? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर – खेत की खड़ी फसल में आग लग जाने पर उसे बुझाने के निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं –
पानी का प्रयोग – आसपास के तालाब, कुएँ या नहर से पानी डालकर आग बुझाई जा सकती है।
मिट्टी या रेत फेंकना – आग पर मिट्टी या रेत फेंकने से ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है और आग बुझ जाती है।
हरी टहनियों से पीटना – पेड़ों की हरी टहनियों या गीले बोरों से आग को पीटने पर वह बुझ सकती है।
फायर ब्रिगेड को बुलाना – यदि आग बड़ी हो, तो तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना देनी चाहिए।
फायर ब्रेक बनाना – आग के फैलने की दिशा में कुछ दूर की फसल को तेजी से काट देना चाहिए, ताकि आग को आगे बढ़ने के लिए ईंधन न मिले और वह वहीं रुक जाए।
भाषा के बारे में
- निम्नलिखित छत्तीसगढ़ी शब्दों को हिंदी में लिखिए?
ओसरी- पारी, घटाटोप, नेकी-बदी, अधमरहा, घेंच, अचरज, ठट्ठा-दिल्लगी, डहर, हुरहा, मुड़ी, नजिक आदि।
उत्तर – ओसरी- पारी – बारी-बारी से
घटाटोप – घना, अंधकारपूर्ण
नेकी-बदी – भलाई-बुराई
अधमरहा – अधमरा
घेंच – गर्दन
अचरज – आश्चर्य
ठट्ठा-दिल्लगी – हँसी-मजाक
डहर – रास्ता, ओर/तरफ
हुरहा – जंगली कुत्ता
मुड़ी – सिर
नजिक – नज़दीक, पास
- अपने क्षेत्र में प्रचलित किन्हीं पाँच लोकोक्तियों का संग्रह करके उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर – घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध। (अर्थ – अपने घर या क्षेत्र के गुणी व्यक्ति का सम्मान नहीं होता।)
वाक्य प्रयोग – गाँव के वैद्य जी का कोई मोल नहीं समझता, पर शहर वाले उन्हीं की दवा ले जाते हैं, सच है घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध।
एक हाथ म ताली नइ बाजै। (अर्थ – किसी भी झगड़े में गलती दोनों पक्षों की होती है।)
वाक्य प्रयोग – तुम केवल राम को दोष मत दो, श्याम भी कम नहीं है, आखिर एक हाथ म ताली नइ बाजै।
अपन मरे बिना सरग नइ दिखय। (अर्थ – सफलता पाने के लिए स्वयं परिश्रम करना पड़ता है।)
वाक्य प्रयोग – केवल दूसरों के भरोसे बैठे रहने से काम नहीं बनेगा, अपन मरे बिना सरग नइ दिखय।
जेकरे लाठी, ओकरे भईंस। (अर्थ – जिसके पास शक्ति होती है, उसी की चलती है।)
वाक्य प्रयोग – पंचायत में सरपंच ने अपने भाई का ही पक्ष लिया, आखिर जेकरे लाठी, ओकरे भईंस।
लइका के आँखी म काजल अउ सियान के बात म मान। (अर्थ – बच्चों की आँखों में काजल और बड़ों की बातों का सम्मान करना ही शोभा देता है।)
वाक्य प्रयोग – अपने दादाजी की सलाह मान लो, क्योंकि लइका के आँखी म काजल अउ सियान के बात म मान होता है।
- अव्यय शब्द- संस्कृत भाषा में कुछ अव्यय शब्द होते हैं, जिन्हें प्रयोग में लाते समय उनके मूल स्वरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ी भाषा में भी अव्यय शब्द होते हैं, जिनके रूप नहीं बदलते, जैसे- डहर, तब्भे, सेती, बर, कनि आदि। इसी तरह छत्तीसगढ़ी के अन्य अव्यय युक्त शब्दों को ढूँढकर उनके अर्थ भी लिखिए।
उत्तर – पहिली – पहले
पाछू – बाद में
खाल्हे – नीचे
ऊपर – ऊपर
तीर – पास
कभू – कभी
फेर – लेकिन, फिर
अउ – और
आज – आज
काली – कल (आने वाला/बीता हुआ)
- पाठ में आए क्रिया शब्दों को लिखकर उनका हिंदी में अनुवाद कीजिए।
जैसे – कहिस – कहा
खइस – खाया
होइस – हुआ
उत्तर – जावत रहिस – जा रहा था
रेंगे लागिस – चलने लगा
मिलिस – मिला
सुनिस – सुना
देखिस – देखा
पहुँच गिस – पहुँच गया
बताइस – बताया
निकालिन – निकाला (बहुवचन/आदरसूचक)
मार डारेंव – मार डाला
करिन – किया (बहुवचन)
योग्यता विस्तार
- आप अपने क्षेत्र में प्रचलित दो लोककथाओं को अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर – यह एक रचनात्मक गतिविधि है। छात्र अपने क्षेत्र में प्रचलित लोककथाओं जैसे ‘धुरुवा-मरार की कहानी’ या ‘सात भाई चंपा’ को अपने बड़ों से सुनकर अपनी भाषा में लिख सकते हैं।
- हिंदी भाषा में लिखी गई किन्हीं दो लोककथाओं का अनुवाद अपनी मातृभाषा में कीजिए।
उत्तर – यह एक अनुवाद-आधारित गतिविधि है। छात्र हिंदी की प्रसिद्ध लोककथाओं जैसे पंचतंत्र की कहानियाँ या ‘बीरबल की खिचड़ी’ का अपनी मातृभाषा (जैसे छत्तीसगढ़ी) में अनुवाद कर सकते हैं।
- लोककथा किसे कहते हैं? यह लोकगीतों से किस प्रकार भिन्न होती है? शिक्षक से चर्चा कीजिए।
उत्तर – लोककथा – लोककथाएँ वे कहानियाँ हैं जो किसी संस्कृति में पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से सुनाई जाती हैं। ये गद्य रूप में होती हैं और इनमें सामान्यतः उस क्षेत्र के लोगों के जीवन, विश्वासों और परंपराओं की झलक मिलती है।
भिन्नता – लोककथा और लोकगीत में मुख्य अंतर उनकी विधा का है। लोककथा गद्य (कहानी) होती है जिसे सुनाया जाता है, जबकि लोकगीत पद्य (कविता/गीत) होता है जिसे गाया जाता है। लोककथाओं में एक विस्तृत कथानक होता है, जबकि लोकगीत भावनाओं, उत्सवों या किसी संक्षिप्त घटना पर आधारित होते हैं।
- छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अनेक लोकगाथाएँ गाई जाती हैं। कुछ लोकगाथाओं एवं उनके प्रसिद्ध गायकों के नाम लिखिए।
उत्तर –
क्र. सं. | लोकगाथा का नाम | लोकगाथा गायक / गायिका |
1. | पंडवानी | तीजन बाई, झाडूराम देवांगन, रितु वर्मा |
2. | भरथरी | सुरुजबाई खांडे |
3. | चंदैनी गोंदा | चिंता दास, रामचन्द्र देशमुख |
4. | ढोला-मारू | सुरुजबाई खांडे, जगन्नाथ कुमार |
5. | लोरिक-चंदा | दाऊ रामचंद्र देशमुख |
- अपने पुस्तकालय से लोककथाओं की पुस्तकें लेकर उनमें दी गई लोककथाओं को पढ़िए।
उत्तर – यह छात्रों के लिए एक पठन गतिविधि है जिससे वे अपनी संस्कृति और साहित्य के बारे में ज्ञान बढ़ा सकते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
कथा में हिरन और कोलिहा क्या करने जाते हैं?
a) शिकार
b) पानी पीने
c) भोजन
d) सोने
उत्तर – b) पानी पीने
कोलिहा पानी पीने के लिए क्या करता है?
a) उड़ता है
b) हिरन की पूँछ पकड़कर लटकता है
c) कूदता है
d) दौड़ता है
उत्तर – b) हिरन की पूँछ पकड़कर लटकता है
हिरन कुएँ में कैसे गिरता है?
a) फिसलकर
b) कोलिहा के धक्के से
c) कूदकर
d) सोकर
उत्तर – b) कोलिहा के धक्के से
किसान हिरन को कैसे बचाता है?
a) छोड़ देता है
b) उदीम से निकालता है
c) मार देता है
d) बेचता है
उत्तर – b) उदीम से निकालता है
कोलिहा किसान से क्या मांगता है?
a) पानी
b) मांस का हिस्सा
c) आग
d) हिरन
उत्तर – b) मांस का हिस्सा
किसान हिस्सा क्यों नहीं देता?
a) भूखा है
b) मेहनत का फल अपना
c) डरता है
d) भूल जाता है
उत्तर – b) मेहनत का फल अपना
कोलिहा आग क्यों मांगता है?
a) खाना पकाने
b) खेत जलाने
c) गर्मी के लिए
d) रोशनी
उत्तर – b) खेत जलाने
किसान आग बुझाने क्या करता है?
a) भागता है
b) दौड़ता है
c) सोता है
d) खाता है
उत्तर – b) दौड़ता है
कोलिहा हिरन का मांस कैसे खाता है?
a) किसान के साथ
b) चुपके से
c) बाँटकर
d) न देकर
उत्तर – b) चुपके से
कथा का मुख्य संदेश क्या है?
a) मित्रता
b) श्रम का फल श्रमिक को
c) धोखा
d) पानी पीना
उत्तर – b) श्रम का फल श्रमिक को
हिरन पानी पीते समय क्या करता है?
a) लटकता है
b) कुएँ में झुकता है
c) उड़ता है
d) दौड़ता है
उत्तर – b) कुएँ में झुकता है
कोलिहा किसान को कैसे सूचना देता है?
a) चुपके से
b) हूँत करके
c) लिखकर
d) दौड़कर
उत्तर – b) हूँत करके
हिरन को मारने के बाद किसान क्या करता है?
a) बेचता है
b) टुकड़े करता है
c) छोड़ देता है
d) खाता है
उत्तर – b) टुकड़े करता है
“जे करे काम, ते खाये चाम” का अर्थ क्या है?
a) काम न करना
b) श्रम का फल श्रमिक को
c) धोखा देना
d) भागना
उत्तर – b) श्रम का फल श्रमिक को
कोलिहा का धोखा कैसे सफल होता है?
a) किसान के सोने से
b) आग जलाने से
c) दौड़ाने से
d) खाने से
उत्तर – b) आग जलाने से
किसान खेत दौड़कर क्या करता है?
a) मांस खाता है
b) आग बुझाता है
c) सोता है
d) गाता है
उत्तर – b) आग बुझाता है
कोलिहा का चरित्र क्या दर्शाता है?
a) वफादारी
b) धोखेबाजी
c) मेहनत
d) मित्रता
उत्तर – b) धोखेबाजी
हिरन और कोलिहा का संबंध क्या था?
a) मित्र
b) शत्रु
c) भाई
d) पिता-पुत्र
उत्तर – a) मित्र
कथा में कुआँ का महत्त्व क्या है?
a) पानी का स्रोत
b) धोखे का स्थान
c) भोजन
d) घर
उत्तर – b) धोखे का स्थान
कथा लोककथा क्यों मानी जाती है?
a) नैतिक शिक्षा
b) लंबी कहानी
c) युद्ध
d) प्रेम
उत्तर – a) नैतिक शिक्षा
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – किसान का बेटा जंगल के रास्ते पर अकेलापन दूर करने के लिए किसे अपना साथी बनाता है? उत्तर – किसान का बेटा जंगल के रास्ते पर अपना अकेलापन दूर करने के लिए एक केकड़े को अपना साथी बनाता है और उसे अपनी तुमड़ी में रख लेता है।
प्रश्न 2 – राजा ने जंगल के साँप और कौए को मारने वाले के लिए क्या घोषणा की थी?
उत्तर – राजा ने घोषणा की थी कि जो कोई भी उस अत्याचारी साँप और कौए को मारेगा, उसके साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया जाएगा और उसे आधा राजपाट भी दिया जाएगा।
प्रश्न 3 – जब किसान का बेटा सो रहा था, तब केकड़े और ठेंगा ने उसकी रक्षा कैसे की?
उत्तर – जब साँप ने सोए हुए किसान के बेटे को डस लिया, तब केकड़े ने साँप की गर्दन पकड़ ली और ठेंगा ने कौए को पीटा, जिससे डरकर उन दोनों को किसान के बेटे को फिर से जीवित करना पड़ा।
प्रश्न 4 – किसान के बेटे ने साँप और कौए को मारने के बाद अपने पास क्या सबूत रखा?
उत्तर – किसान के बेटे ने साँप और कौए को मारने के बाद सबूत के तौर पर उन दोनों के सिर काटकर अपने गमछे में बाँध लिए।
प्रश्न 5 – धोरइ (ग्वाले) ने राजा के सामने जाकर क्या झूठा दावा किया?
उत्तर – धोरइ ने राजा के सामने जाकर यह झूठा दावा किया कि उसने ही साँप और कौए को मारा है, और सबूत के तौर पर उनके बिना सिर वाले धड़ राजा को दिखा दिए।
प्रश्न 6 – किसान के बेटे ने राज दरबार में अपनी सच्चाई कैसे साबित की?
उत्तर – किसान के बेटे ने राज दरबार में अपने गमछे में बंधे साँप और कौए के असली सिर दिखाकर अपनी सच्चाई साबित की।
प्रश्न 7 – राज दरबार में किसान के बेटे के गवाह कौन बने?
उत्तर – राज दरबार में किसान के बेटे के गवाह उसका साथी केकड़ा और उसका ठेंगा बने, जहाँ केकड़े ने पूरी घटना का वर्णन किया।
प्रश्न 8 – सच्चाई सामने आने पर झूठे धोरइ का क्या हुआ?
उत्तर – सच्चाई सामने आने पर राजा ने धोरइ को धोखा देने के अपराध में जेल में डलवा दिया।
प्रश्न 9 – राजमहल में सुख-सुविधा होने के बावजूद किसान के बेटे का मन क्यों नहीं लग रहा था?
उत्तर – किसान के बेटे का मन राजमहल में इसलिए नहीं लग रहा था क्योंकि उसे बिना मेहनत किए बैठे-बैठे भोजन करना पाप के बराबर लगता था।
प्रश्न 10 – जब राजा के दामाद ने खेतों में काम करना शुरू किया तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर – जब राजा के दामाद ने खेतों में काम करना शुरू किया तो कुछ लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगे और कुछ लोग उसे मेहनती और गुणी व्यक्ति कहने लगे।
प्रश्न 11 – किसान के बेटे ने राजा को परिश्रम का क्या महत्त्व समझाया?
उत्तर – किसान के बेटे ने समझाया कि जब राजा का दामाद मेहनत करेगा तो प्रजा में भी परिश्रम के प्रति आदर भाव जागेगा, जिससे राज्य में दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की होगी।
प्रश्न 12 – अपने दामाद के विचारों से प्रभावित होकर राजा ने अंत में क्या घोषणा की?
उत्तर – अपने दामाद के विचारों से प्रभावित होकर राजा ने उसे राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कर दी।
प्रश्न 13 – हिरण और लोमड़ी (कोलिहा) ने कुएँ से पानी पीने के लिए क्या योजना बनाई थी?
उत्तर – हिरण और लोमड़ी ने योजना बनाई कि वे बारी-बारी से एक-दूसरे की पूँछ पकड़कर कुएँ में लटकेंगे और पानी पिएंगे।
प्रश्न 14 – लोमड़ी ने हिरण के साथ क्या विश्वासघात किया?
उत्तर – जब हिरण की पानी पीने की बारी आई, तो लोमड़ी ने उसकी पूँछ छोड़कर उसे कुएँ में धकेल दिया।
प्रश्न 15 – कुएँ में गिरे हिरण को बाहर किसने निकाला?
उत्तर – कुएँ में गिरे हिरण को लोमड़ी के बुलाने पर पास के खेत में काम कर रहे किसानों ने बहुत मेहनत करके बाहर निकाला।
प्रश्न 16 – किसानों ने लोमड़ी को हिरण का मांस देने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर – किसानों ने यह कहकर मांस देने से मना कर दिया कि हिरण को निकालने की मेहनत उन्होंने की है, इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है।
प्रश्न 17 – लोमड़ी ने किसानों से मांस लेने के लिए क्या चालाकी की?
उत्तर – लोमड़ी ने किसानों से थोड़ी सी आग माँगी और उसे उनके बटुरा (मटर) के खेत में फेंक दिया ताकि वे आग बुझाने में व्यस्त हो जाएँ।
प्रश्न 18 – लोमड़ी अपनी योजना में कैसे सफल हुई?
उत्तर – जैसे ही किसान अपने खेत की आग बुझाने के लिए दौड़े, लोमड़ी ने मौके का फायदा उठाकर पेट भरकर हिरण का मांस खा लिया।
प्रश्न 19 – “जे करे काम, ते खाये चाम” इस कहावत का किसानों ने किस संदर्भ में प्रयोग किया?
उत्तर – किसानों ने इस कहावत का प्रयोग यह बताने के लिए किया कि जिसने परिश्रम किया है, फल पर अधिकार भी उसी का होता है।
प्रश्न 20 – इस कहानी से लोमड़ी के स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर – इस कहानी से पता चलता है कि लोमड़ी एक चालाक, स्वार्थी और विश्वासघाती स्वभाव की थी जो अपना काम निकालने के लिए किसी को भी धोखा दे सकती थी।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- हिरन और कोलिहा कुएँ पर कैसे पहुँचते हैं?
उत्तर – दोनों पानी पीने जाते हैं। कोलिहा हिरन की पूँछ पकड़कर कुएँ के किनारे लटकता है और पानी पी लेता है। फिर हिरन को पूँछ पकड़कर झुकने देता है, लेकिन धोखे से धक्का देकर गिरा देता है। यह धोखेबाजी की शुरुआत है।
- किसान हिरन को कैसे बचाता है?
उत्तर – कोलिहा चिल्लाकर किसान को बुलाता है कि हिरन कुएँ में गिर गया। किसान प्रयास करके हिरन को बाहर निकालता है। हिरन का प्राण बच जाता है, लेकिन किसान थोड़ी दूर ले जाकर टुकड़े करने लगता है। यह मेहनत का प्रतीक है।
- कोलिहा मांस का हिस्सा क्यों मांगता है?
उत्तर – कोलिहा कहता है कि हिरन गिरने की खबर तो मैंने दी। किसान कहता है कि निकालने की मेहनत मेरी। कोलिहा तर्क देता है “जे करे काम, ते खाये चाम”। लेकिन किसान इनकार करता है, जो श्रम के अधिकार को दर्शाता है।
- कोलिहा आग माँगकर क्या करता है?
उत्तर – कोलिहा कहता है कि मांस न दो तो आग दे दो। किसान आग दे देता है। कोलिहा आग लेकर किसान के खेत में फेंक देता है, जिससे फसल जलने लगती है। यह बदला और धोखे को दिखाता है।
- किसान खेत जलते देख क्या करता है?
उत्तर – किसान घबरा जाता है और आग बुझाने के लिए खेत की ओर दौड़ता है। इसी बीच कोलिहा चुपके से हिरन का मांस खा लेता है। यह कोलिहा की चालाकी और किसान की मेहनत की हानि को उजागर करता है।
- कथा में कोलिहा का धोखा कैसे सफल होता है?
उत्तर – कोलिहा पहले हिरन को गिराकर, फिर खबर देकर, हिस्सा मांगकर और आग से खेत जलाकर धोखा देता है। किसान की मेहनत व्यर्थ जाती है, कोलिहा पेट भर लेता है। यह अवसरवाद को चित्रित करता है।
- हिरन का कुएँ में गिरना क्या प्रतीक है?
उत्तर – हिरन का गिरना मित्र पर विश्वास का प्रतीक है। कोलिहा का धक्का धोखे को दर्शाता है। कथा सिखाती है कि झूठे मित्रों से सावधान रहें, अन्यथा हानि होती है।
- किसान का तर्क क्या था?
उत्तर – किसान कहता है कि हिरन निकालने की गजब मेहनत मैंने की, इसलिए पूरा हिस्सा मेरा। खबर देने से क्या फायदा? यह श्रम और योगदान के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- कथा का शीर्षक “हिरन अउ कोलिहा” का महत्त्व क्या है?
उत्तर – शीर्षक दो पात्रों पर केंद्रित है, जो मित्रता के दिखावे और धोखे को दर्शाता है। हिरन निर्दोष, कोलिहा चालाक। कथा नैतिक शिक्षा देती है कि सच्चे मित्र पहचानें।
- लोककथा का संदेश आज प्रासंगिक क्यों है?
उत्तर – कथा सिखाती है कि मेहनत का फल चोर को न मिले। आज के प्रतिस्पर्धी समाज में धोखेबाज सफल होते दिखते हैं, लेकिन कथा चेतावनी देती है कि सत्य अंत में जीतता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कथा में कोलिहा के धोखे का वर्णन कीजिए।
उत्तर – कोलिहा हिरन की पूँछ पकड़कर पानी पीता है, फिर धक्का देकर कुएँ में गिरा देता है। किसान को चिल्लाकर बुलाता है, हिस्सा मांगता है। इनकार पर आग मांगकर खेत जला देता है और मांस खा लेता है। यह चालाकी, लालच और बदले को दर्शाता है, जो नैतिक पतन का प्रतीक है।
- श्रम के महत्त्व को कथा कैसे दर्शाती है?
उत्तर – किसान हिरन को निकालने की मेहनत करता है और कहता है कि फल उसका। कोलिहा की खबर व्यर्थ, श्रम ही मूल्यवान। आग से खेत जलने पर किसान दौड़ता है, लेकिन कोलिहा लाभ ले लेता है। कथा “जे करे काम, ते खाये चाम” से सिखाती है कि मेहनत ही सच्चा अधिकार है।
- हिरन का चरित्र क्या प्रतिनिधित्व करता है?
उत्तर – हिरन निर्दोष और विश्वासी है, जो मित्र पर भरोसा करता है। कुएँ में गिरना उसकी भोलेपन को दिखाता है। कथा के माध्यम से हिरन उन लोगों का प्रतीक है जो धोखेबाजों का शिकार होते हैं। अंत में उसका मांस बँटना जीवन की कठोर सच्चाई दर्शाता है।
- कोलिहा का चरित्र लोककथाओं में क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर – कोलिहा चालाक, लालची और धोखेबाज है, जो लोककथाओं में नकारात्मक पात्र के रूप में आता है। वह मित्रता का दिखावा करता है, लेकिन स्वार्थ सिद्ध करता है। कथा उसके माध्यम से चेतावनी देती है कि ऐसे मित्रों से दूर रहें, अन्यथा हानि होती है। यह नैतिक शिक्षा का साधन है।
- कथा का समग्र संदेश और प्रासंगिकता समझाइए।
उत्तर – कथा का संदेश है कि श्रम का फल श्रमिक को मिले, धोखा क्षणिक। कोलिहा सफल होता दिखता है, लेकिन नैतिक हारता है। आज के समाज में जहाँ चालाकी पुरस्कृत होती है, यह चेतावनी देती है कि सच्चाई और मेहनत ही स्थायी हैं। लोककथा के रूप में यह पीढ़ियों को नैतिक मूल्य सिखाती रहती है।

