पवन दीवान – कवि परिचय
संत – कवि पवन दीवान का जन्म 01 जनवरी 1945 को ग्राम किरवई (राजिम) जिला गरियाबंद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बासिन, राजिम एवं फिंगेश्वर में हुई। उन्होंने हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। श्री दीवान प्रख्यात वक्ता और सहृदय साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ अंबर का आशीष, मेरा हर स्वर इसका पूजन, फूल, छत्तीसगढ़ महतारी, मर-मर कर जीता है मेरा देश, मेरे देश की माटी, याद आते हैं गाँधी आदि हैं।
सुरुज टघलत हे … – पाठ परिचय
वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ी में काफी रचनाएँ लिखी जा रही हैं। यहाँ दी गई सुरुज टघलत हे… ऐसी ही एक कविता है। इस कविता में ग्रीष्मऋतु के स्वरूप और मानव जीवन पर उसके प्रभाव को सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है।
सुरुज टघलत हे …
टघल-टघल के सुरुज
झरत हे धरती ऊपर
डबकत गिरे पसीना
माथा छिपिर- छापर।
झाँझ चलत हे चारो कोती
तिपगे कान, झँवागे चेथी
सुलगत हे आँखी म आगी
पाँव परत हे ऐती-तेती।
भरे पलपला, जरे भोंभरा
फोरा परगे गोड़ म
फिनगेसर ले रेंगत-रेंगत
पानी मिलिस पोड़ म
नदिया पातर पातर होगे
तरिया रोज अँटावत हे
खंड म रुखवा खड़े उमर के
टँगिया ताल कटावत हे।
चट-चट जरथे अँगना बैरी
तावा बनगे छानी
टप टप टपके कारी पसीना
नोहर होगे पानी।
साँय – साँय सोखत हे पानी
अड़बड़ मुँह चोपियावै
कुँवर ओठ म पपड़ी परगे
सिट्टा – सिट्टा खावै।
चारो कोती फूँके आगी
तन म बरगे भुर्रा
खड़े मँझनिया बैरी लागे
सबके छाँड़िस धुर्रा।
डामर लक-लक ले तीपे हे
लस- लस लस-लस बइठत हे
नस-नस बिजली तार बने हे
अँगरी – अँगरी अँइठत हे।
लकर-लकर मैं कइसे रेंगव
धकर-धकर जी लागे
हँकर-हँकर के पथरा फोरँव
हरहर के दिन आगे।
लहर तहर सबके परान हे
केती साँस उड़ाही
बुड़बे जब मन के दहरा म
तलफत जीव जुड़ाही।
पाठ का सारांश
कविता “सुरुज टघलत हे…” छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखी गई एक रचना है, जो ग्रीष्म ऋतु की तीव्रता और इसके मानव जीवन पर प्रभाव को चित्रित करती है। कवि ने सूरज की तपन, पसीने की बूँदें, जलते हुए शरीर, सूखती नदियाँ, और प्रकृति की कठिनाइयों का जीवंत वर्णन किया है। यह कविता गर्मी के कष्टों को दर्शाते हुए मानव की सहनशक्ति और प्रकृति के साथ उसके संघर्ष को उजागर करती है।
शब्दार्थ
डबकत – उबलता हुआ
दहरा – गहरा भाग
झँवागे – झुलस गया
तलफत – तड़पता हुआ
नोहर – दुर्लभ
अँटावत – सूखता हुआ
कुँवर – कोमल, नरम
लक-लक ले तीपना – अत्यधिक गर्म होना
पोंड़ – एक गाँव का नाम।
दुर्लभ अँइठत ऐंठता हुआ, अकड़ता हुआ;
चोपियावै – प्यास लगने पर मुँह सूखना
फिनगेसर – फिंगेश्वर (एक गाँव का नाम)
Chhattisgarhi Word | Hindi Meaning | English Meaning |
टघलत | तपता हुआ | Scorching/Burning |
झरत | गिरता हुआ | Falling/Dripping |
डबकत | टपकता हुआ | Dripping |
छिपिर-छापर | पसीने से भीगा हुआ | Drenched with sweat |
झाँझ | गर्म हवा | Hot wind |
तिपगे | जलन होना | Burning sensation |
झँवागे | सूख जाना | Drying up |
सुलगत | जलता हुआ | Smoldering/Burning |
ऐती-तेती | इधर-उधर | Here and there |
पलपला | जलन/तपन | Heat/Burning |
भोंभरा | भँवरा | Bumblebee |
फोरा | फफोले | Blisters |
फिनगेसर | छटपटाता हुआ | Writhing/Crawling |
पातर | सूखा/पतला | Dry/Thin |
अँटावत | सूखता हुआ | Drying up |
खंड | सूखा क्षेत्र | Barren land |
टँगिया | कुल्हाड़ी | Axe |
चट-चट | चटकना | Cracking |
बैरी | आँगन | Courtyard |
तावा | तवा | Griddle |
नोहर | नाली | Drain |
साँय-साँय | तेजी से सूखना | Sucking dry |
चोपियावै | चिपक जाना | Sticking |
कुँवर | होंठ | Lips |
पपड़ी | सूखी त्वचा | Cracked skin |
सिट्टा-सिट्टा | छोटे-छोटे टुकड़े | Small pieces |
फूँके | जलना | Burning |
भुर्रा | राख | Ashes |
मँझनिया | दोपहर | Midday |
धुर्रा | धूल | Dust |
लक-लक | चमकना | Shining/Glittering |
लस-लस | चिपचिपा | Sticky |
अँइठत | ऐंठना | Twisting/Cramping |
लकर-लकर | कमजोरी से | Weakly |
धकर-धकर | थकान से | Wearily |
हँकर-हँकर | हाँफते हुए | Panting |
पथरा | पत्थर | Stones |
हरहर | तेजी से | Rapidly |
लहर तहर | लहरों की तरह | Like waves |
उड़ाही | उड़ जाना | Fleeing/Escaping |
दहरा | गहराई | Depth |
तलफत | तड़पता हुआ | Writhing in pain |
जुड़ाही | ठंडा होना | Cooling down |
पाठ से
निर्देश – हिंदी में दिए गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में तथा छत्तीसगढ़ी में दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपनी मातृभाषा
में लिखिए।
- “टघल-टघल के सुरुज झरत हे” इस पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि गर्मी इतनी भीषण और तेज है कि ऐसा महसूस हो रहा है मानो सूर्य पिघलकर धरती पर बरस रहा है। यह प्रचंड गर्मी और उसकी तीव्रता को व्यक्त करने का एक काव्यात्मक तरीका है।
- कविता में तेज गर्मी के एहसास का भाव निहित है। इसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कविता में गर्मी की भीषणता का सजीव चित्रण है। कवि कहते हैं कि सूर्य पिघलकर धरती पर बरस रहा है, जिससे माथे से पसीना बह रहा है। चारों ओर गर्म हवा (लू) चल रही है, जिससे कान और सिर जल रहे हैं। धरती इतनी गर्म है कि पैरों में छाले पड़ गए हैं। आंगन और छत गर्म तवे की तरह जल रहे हैं। सड़कें पिघल रही हैं और शरीर में आग सी लगी महसूस हो रही है। यह सब वर्णन गर्मी के प्रचंड एहसास को व्यक्त करता है।
- ग्रीष्मकाल में झाँझ के चलने से मनुष्य किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर – ग्रीष्मकाल में ‘झाँझ’ (गर्म हवा/लू) के चलने से मनुष्य बुरी तरह प्रभावित होता है। कविता के अनुसार, इससे कान जलने लगते हैं और माथा (चेथी) झुलस जाता है। चारों ओर गर्म हवा के थपेड़े शरीर को झुलसा देते हैं।
- इन पंक्तियों का अर्थ लिखिए-
“चट-चट जरथे अँगना बैरी
तावा बनगे छानी
टप टप टपके कारी पसीना
नोहर होगे पानी।‘
उत्तर – इन पंक्तियों का अर्थ है कि गर्मी इतनी तेज है कि दुश्मन की तरह आँगन चटक कर जल रहा है और घर की छत गर्म तवे के समान तप रही है। शरीर से पसीना टप-टप करके गिर रहा है और पानी दुर्लभ हो गया है (मिलना मुश्किल हो गया है)।
- ग्रीष्मकाल में पानी का अभाव हो जाता है। कवि ने किन पंक्तियों में इस बात का उल्लेख किया है?
उत्तर – कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में पानी के अभाव का उल्लेख किया है –
“नदिया पातर पातर होगे, तरिया रोज अँटावत हे।”
“नोहर होगे पानी।”
“साँय – साँय सोखत हे पानी।”
- ‘पलपला‘ और ‘भोंभरा‘ शब्द के अर्थ में क्या अंतर है?
उत्तर – ‘पलपला’ का अर्थ है त्वचा पर गर्मी या रगड़ से बना पानी भरा फफोला या छाला। यह आमतौर पर सतह पर होता है। ‘भोंभरा’ का अर्थ है एक बड़ा और गहरा फोड़ा, जो अधिक दर्दनाक होता है। कविता के संदर्भ में, यह गर्मी के कारण पैरों में हुए गंभीर छालों या फोड़ों को दर्शाता है।
- हर-हर के दिन आगे ले आप का समझथव?
उत्तर – ‘हर-हर के दिन आगे’ ले हम समझथन के अब बहुत जादा मेहनत अउ कष्ट करे के दिन आ गे हे। गरमी के मारे काम करना बहुत मुस्किल हो गे हे, जेमा हाँफत-हाँफत पथरा फोरे ल परत हे। ए हा कठिन परिश्रम वाले दिन ल बतावत हे।
पाठ से आगे
- ग्रीष्मऋतु में तालाब / नदी के सूख जाने पर जल-जीवों पर क्या प्रभाव पड़ता है? लिखिए।
उत्तर – ग्रीष्मऋतु में तालाब और नदी के सूख जाने पर जल-जीवों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। पानी के बिना मछलियाँ, मेंढक, केंकड़े और अन्य जलीय जीव मर जाते हैं। उनका आश्रय छिन जाता है और पूरी जलीय पारिस्थितिकी नष्ट हो जाती है। कुछ जीव जो कीचड़ में रह सकते हैं, वे जीवित बच जाते हैं, लेकिन अधिकांश का जीवन समाप्त हो जाता है।
- गर्मी के दिनों में पानी की समस्या पर अपने आस-पास के अनुभवों को लिखिए।
उत्तर – गर्मी के दिनों में हमारे आस-पास पानी की भारी समस्या हो जाती है। नलों में पानी का आना अनियमित हो जाता है और कई बार तो दो-दो दिन तक पानी नहीं आता। हैंडपंप सूख जाते हैं और लोगों को पानी के लिए सरकारी टैंकरों का इंतजार करना पड़ता है, जहाँ लंबी कतारें लगती हैं। पानी की कमी के कारण दैनिक कार्यों जैसे नहाना, कपड़े धोना और सफाई में भी बहुत परेशानी होती है।
- नगरीकरण के कारण लगातार वृक्ष काटे जा रहे हैं। वृक्षों के कटने से प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – वृक्षों के कटने से प्रकृति पर निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़ते हैं –
तापमान में वृद्धि – पेड़-पौधे छाया देते हैं और वातावरण को ठंडा रखते हैं। इनके कटने से धरती का तापमान बढ़ता है।
वर्षा की कमी – वृक्ष वर्षा लाने में सहायक होते हैं। वनों की कटाई से वर्षा की मात्रा में कमी आती है और सूखे की स्थिति बनती है।
मिट्टी का कटाव – पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं। इनके कटने से मिट्टी का कटाव बढ़ता है।
प्रदूषण में वृद्धि – वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इनकी कमी से वायु प्रदूषण बढ़ता है।
वन्यजीवों का विनाश – जंगल कटने से अनगिनत पशु-पक्षियों का आश्रय छिन जाता है, जिससे वे विलुप्त होने लगते हैं।
- टप-टप, रिमझिम, चम-चम, बिजली, घुमड़ते बादल, काली घटा, साथ-साथ, हवा, उफनते नदी-नाले, झूमते पेड़ आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए वर्षा ऋतु पर एक कविता / लेख लिखिए।
उत्तर – वर्षा की बहार
आसमान में घुमड़ते बादल छाए,
साथ में काली घटा भी लाए।
चम-चम करती बिजली चमकी,
ठंडी-ठंडी हवा भी सनकी।
रिमझिम बूँदों की लगी झड़ी,
टप-टप गिरती हर एक घड़ी।
देखते ही देखते उफनते नदी-नाले,
सबने अपने रंग दिखा डाले।
बागों में झूमते पेड़ लगे प्यारे,
मोर भी नाचते खुशी के मारे।
भाषा के बारे में
- निम्नलिखित छत्तीसगढ़ी मुहावरों के हिंदी अर्थ लिखिए।
नोहर होना, फोड़ा परना, कान तिपना, आँखी मा आगी जलना, आगी फूँकना, पथरा फोरना, साँस उड़ना।
उत्तर – नोहर होना – दुर्लभ होना, मिलना कठिन होना।
फोड़ा परना – छाला पड़ना।
कान तिपना – (गर्मी या डांट से) कान का जलना।
आँखी मा आगी जलना – अत्यधिक क्रोधित होना।
आगी फूँकना – झगड़ा बढ़ाना, उकसाना।
पथरा फोरना – बहुत कठिन परिश्रम करना।
साँस उड़ना – बहुत अधिक डर जाना, घबरा जाना।
- कविता में आए युग्म शब्दों को छाँटकर लिखिए जैसे- टप -टप चम चम। इसी तरह पाठ्यपुस्तक में हिंदी के भी युग्म शब्द आए हैं। उनकी सूची बनाइए।
उत्तर – कविता में आए छत्तीसगढ़ी युग्म शब्द –
टघल-टघल, छिपिर-छापर, चारो-कोती, ऐती-तेती, पातर-पातर, रेंगत-रेंगत, चट-चट, टप-टप, साँय-साँय, सिट्टा-सिट्टा, लक-लक, लस-लस, नस-नस, अँगरी-अँगरी, लकर-लकर, धकर-धकर, हँकर-हँकर, हर-हर, लहर-तहर।
हिंदी के कुछ सामान्य युग्म शब्द –
आस-पास, साथ-साथ, धीरे-धीरे, कभी-कभी, भाग-दौड़, रहन-सहन, जैसे-तैसे, घर-घर।
योग्यता विस्तार
- प्रकृति वर्णन से संबंधित अन्य कवियों की छत्तीसगढ़ी कविताओं / गीतों का संकलन कीजिए।
उत्तर – यह एक गतिविधि है। आप छत्तीसगढ़ी के प्रसिद्ध कवि जैसे कोदूराम ‘दलित’, लक्ष्मण मस्तुरिया, डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा आदि की प्रकृति पर लिखी कविताओं को पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता से खोजकर संकलित कर सकते हैं।
- पवन दीवान जी की अन्य हिंदी कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्रों में छत्तीसगढ़ी की प्रकाशित कविताओं का संकलन करें और उन पर अपनी कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – यह एक सामूहिक गतिविधि है। आप ‘हरिभूमि’, ‘नवभारत’, ‘पत्रिका’ जैसे छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्रों के रविवारीय संस्करणों में अक्सर स्थानीय साहित्य पाते हैं। वहाँ से कविताओं को संकलित कर कक्षा में चर्चा करें।
- छत्तीसगढ़ के अन्य रचनाकारों की कविताएँ संकलित कर पढ़िए।
उत्तर – यह एक पठन गतिविधि है। आप छत्तीसगढ़ के अन्य प्रसिद्ध रचनाकारों जैसे सुंदरलाल शर्मा, मुकुटधर पांडेय, गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, प्यारेलाल गुप्त आदि की रचनाओं को पुस्तकालय से लेकर पढ़ सकते हैं।
- जब किसी कविता की पंक्ति में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन होता है तब वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। “टघल-टघल के सुरुज, झरत हे धरती ऊपर” में अतिशयोक्ति अलंकार है।
उत्तर – हाँ, यह कथन सही है। इस पंक्ति में सूर्य के पिघलकर गिरने का वर्णन किया गया है, जो वास्तविकता से कहीं बढ़कर है। किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहना ही अतिशयोक्ति अलंकार कहलाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- कविता “सुरुज टघलत हे…” में किस ऋतु का वर्णन किया गया है?
a) शीत ऋतु
b) ग्रीष्म ऋतु
c) वर्षा ऋतु
d) वसंत ऋतु
उत्तर – b) ग्रीष्म ऋतु - कविता में सूरज को कैसा बताया गया है?
a) ठंडा
b) टघलत (तपता हुआ)
c) चमकता हुआ
d) शांत
उत्तर – b) टघलत (तपता हुआ) - कविता में पसीने का वर्णन कैसे किया गया है?
a) डबकत गिरे
b) ठंडा बहता
c) सूखा हुआ
d) रुक गया
उत्तर – a) डबकत गिरे - कविता में “झाँझ” का अर्थ क्या है?
a) ठंडी हवा
b) गर्म हवा
c) बारिश
d) कोहरा
उत्तर – b) गर्म हवा - कविता में आँखों में क्या सुलग रहा है?
a) पानी
b) आग
c) धूल
d) रेत
उत्तर – b) आग - कविता में पैरों का क्या हाल बताया गया है?
a) ठंडे हो गए
b) फफोले पड़ गए
c) आरामदायक हैं
d) सूज गए
उत्तर – b) फफोले पड़ गए - कविता में नदियों का क्या हाल वर्णित है?
a) भरपूर पानी
b) पातर (सूखी)
c) उफन रही हैं
d) जमी हुई हैं
उत्तर – b) पातर (सूखी) - कविता में आँगन को किसके समान बताया गया है?
a) तालाब
b) तवा
c) बगीचा
d) नदी
उत्तर – b) तवा - कविता में होंठों पर क्या पड़ गया है?
a) रंग
b) पपड़ी
c) पानी
d) मिट्टी
उत्तर – b) पपड़ी - कविता में गर्मी के कारण क्या साँय-साँय सोख रहा है?
a) पानी
b) हवा
c) मिट्टी
d) धूल
उत्तर – a) पानी - कविता में “भुर्रा” का अर्थ क्या है?
a) राख
b) पानी
c) पत्थर
d) हवा
उत्तर – a) राख - कविता में दोपहर को किस शब्द से दर्शाया गया है?
a) मँझनिया
b) साँझ
c) रात
d) सुबह
उत्तर – a) मँझनिया - कविता में डामर सड़क का क्या हाल बताया गया है?
a) ठंडा
b) लक-लक तीपे (चमकता हुआ)
c) टूट गया
d) गीला
उत्तर – b) लक-लक तीपे (चमकता हुआ) - कविता में जीव किसके लिए तड़प रहा है?
a) भोजन
b) पानी
c) छाया
d) हवा
उत्तर – b) पानी - कविता में “फिनगेसर” का अर्थ क्या है?
a) ठंडा होना
b) छटपटाना
c) चलना
d) सोना
उत्तर – b) छटपटाना - कविता में पेड़ों को क्या काट रहा है?
a) आग
b) टँगिया (कुल्हाड़ी)
c) पानी
d) हवा
उत्तर – b) टँगिया (कुल्हाड़ी) - कविता में शरीर की नसों को किसके समान बताया गया है?
a) तार
b) रस्सी
c) नदी
d) पत्थर
उत्तर – a) तार - कविता में “लकर-लकर” का अर्थ क्या है?
a) तेजी से
b) कमजोरी से
c) खुशी से
d) आराम से
उत्तर – b) कमजोरी से - कविता में साँस को किस तरह वर्णित किया गया है?
a) ठंडी
b) उड़ाही (उड़ रही)
c) शांत
d) रुकी हुई
उत्तर – b) उड़ाही (उड़ रही) - कविता में गर्मी से राहत कैसे मिलती है?
a) बारिश से
b) मन के दहरा में बुड़बे (हृदय की गहराई में डूबने) से
c) पंखे से
d) भोजन से
उत्तर – b) मन के दहरा में बुड़बे (हृदय की गहराई में डूबने) से
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कविता में सूर्य की प्रचंड गर्मी का वर्णन किस प्रकार किया गया है?
उत्तर – कविता में सूर्य की प्रचंड गर्मी का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि ऐसा लग रहा है मानो सूर्य पिघल-पिघल कर धरती पर बरस रहा है।
प्रश्न 2 – तेज गर्मी के कारण माथे की क्या स्थिति हो गई है?
उत्तर – तेज गर्मी के कारण माथे से पसीना बहकर उसे पूरी तरह से भिगो रहा है।
प्रश्न 3 – ‘झाँझ’ चलने का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर – चारों ओर ‘झाँझ’ अर्थात गर्म लू चलने के कारण कान और सिर का पिछला भाग (चेथी) बुरी तरह झुलस रहे हैं।
प्रश्न 4 – गर्मी की वजह से पैरों में क्या हो गया है?
उत्तर – अत्यधिक गर्मी के कारण व्यक्ति के पैरों में फफोले और बड़े-बड़े छाले पड़ गए हैं।
प्रश्न 5 – गर्मी का नदियों और तालाबों पर क्या असर हुआ है?
उत्तर – गर्मी के कारण नदियाँ पतली होकर सूख रही हैं और तालाबों का पानी भी प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
प्रश्न 6 – कविता में आँगन और छत की तुलना किससे की गई है?
उत्तर – कविता में जलते हुए आँगन की तुलना दुश्मन से और तपती हुई छत की तुलना गर्म तवे से की गई है।
प्रश्न 7 – भीषण गर्मी में पानी की क्या स्थिति हो गई है?
उत्तर – भीषण गर्मी में पानी दुर्लभ हो गया है और शरीर से केवल काला पसीना टपक रहा है।
प्रश्न 8 – प्यास के कारण होठों की क्या दशा हो गई है?
उत्तर – अत्यधिक प्यास के कारण कोमल होठों पर पपड़ी जम गई है और मुँह बार-बार सूख रहा है।
प्रश्न 9 – दोपहर की धूप को दुश्मन क्यों कहा गया है?
उत्तर – दोपहर की धूप को दुश्मन इसलिए कहा गया है क्योंकि वह इतनी तेज और असहनीय है कि शरीर को जला देती है और सबको बेहाल कर देती है।
प्रश्न 10 – गर्मी से सड़क के डामर की क्या हालत है?
उत्तर – गर्मी के कारण सड़क का डामर चमकते हुए पिघल रहा है और उस पर चलने से वह चिपचिपा होकर चिपक रहा है।
प्रश्न 11 – कवि ने ‘हर-हर के दिन आगे’ पंक्ति से क्या आशय व्यक्त किया है?
उत्तर – ‘हर-हर के दिन आगे’ पंक्ति से कवि का आशय है कि अब अत्यंत हाँफते हुए कठिन परिश्रम और संघर्ष करने के दिन आ गए हैं।
प्रश्न 12 – कविता के अनुसार पेड़ों की कटाई क्यों हो रही है?
उत्तर – कविता के अनुसार, खेतों और मैदानों में खड़े पुराने पेड़ों को कुल्हाड़ी से काटा जा रहा है।
प्रश्न 13 – अत्यधिक गर्मी से शरीर की नसों और उंगलियों में कैसा अनुभव हो रहा है?
उत्तर – अत्यधिक गर्मी से ऐसा महसूस हो रहा है जैसे शरीर की नसें बिजली का तार बन गई हैं और उंगलियां ऐंठ रही हैं।
प्रश्न 14 – गर्मी से व्याकुल प्राणों को शांति कैसे मिलेगी? उत्तर – कवि के अनुसार, जब मन रूपी गहरे तालाब में डुबकी लगाएंगे, तभी इस तड़पते हुए जीव को शांति मिलेगी।
प्रश्न 15 – कविता में किस ऋतु के कष्टों का मार्मिक चित्रण किया गया है?
उत्तर – इस कविता में ग्रीष्म ऋतु के कारण मानव जीवन और प्रकृति पर पड़ने वाले कष्टों का मार्मिक चित्रण किया गया है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कविता “सुरुज टघलत हे…” में ग्रीष्म ऋतु की तीव्रता को कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – कविता में ग्रीष्म ऋतु की तीव्रता को सूरज की तपन, पसीने की बूँदें, जलती आँखें, फफोले, सूखती नदियाँ, और चटकते आँगन के माध्यम से दर्शाया गया है। यह मानव और प्रकृति पर गर्मी के कठिन प्रभाव को जीवंत रूप से चित्रित करता है। - कविता में सूरज का क्या चित्रण किया गया है?
उत्तर – कविता में सूरज को “टघलत” (तपता हुआ) बताया गया है, जो धरती पर गर्मी बरसाता है। यह गर्मी इतनी तीव्र है कि पसीना टपकता है, आँखें जलती हैं, और प्रकृति सूखने लगती है, जो सूरज की प्रचंडता को दर्शाता है। - कविता में पसीने का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – कविता में पसीना “डबकत गिरे” और “कारी पसीना” के रूप में वर्णित है, जो माथे और शरीर से टपकता है। यह गर्मी की तीव्रता को दर्शाता है, जहाँ पसीना नाली में बहता है और शरीर थकान से चूर हो जाता है। - कविता में प्रकृति पर गर्मी का क्या प्रभाव बताया गया है?
उत्तर – कविता में प्रकृति पर गर्मी का प्रभाव सूखती नदियों, पतले तालाबों, और जलते भँवरों के रूप में दर्शाया गया है। पेड़ों को कुल्हाड़ी से काटा जा रहा है, और धरती की उर्वरता कम हो रही है, जो पर्यावरणीय क्षति को दर्शाता है। - कविता में मानव शरीर पर गर्मी का क्या प्रभाव दिखाया गया है?
उत्तर – कविता में गर्मी से मानव शरीर पर फफोले, जलती आँखें, सूखे होंठ, और ऐंठती नसों का प्रभाव दिखाया गया है। लोग थकान, कमजोरी, और साँसों के उड़ने से तड़प रहे हैं, जो गर्मी की कठिनाई को उजागर करता है। - कविता में “झाँझ” का क्या महत्त्व है?
उत्तर – “झाँझ” (गर्म हवा) कविता में ग्रीष्म ऋतु की तीव्रता का प्रतीक है। यह चारों ओर चलती है, जिससे कानों में जलन, चटकती त्वचा, और सूखापन होता है। यह गर्मी के दमनकारी प्रभाव को और गहराई से दर्शाता है। - कविता में आँगन का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – कविता में आँगन को “चट-चट जरथे” और “तावा बनगे” के रूप में वर्णित किया गया है, जो गर्मी से तपता और चटकता है। यह गर्मी की तीव्रता को दर्शाता है, जहाँ आँगन तवे की तरह गर्म हो जाता है। - कविता में पानी की कमी को कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – कविता में पानी की कमी को सूखती नदियों, पतले तालाबों, और “साँय-साँय सोखत हे पानी” के माध्यम से दर्शाया गया है। लोग पानी के लिए तड़पते हैं, और यह गर्मी की वजह से पर्यावरण और मानव जीवन पर संकट को दिखाता है। - कविता में मानव की थकान और कमजोरी को कैसे व्यक्त किया गया है?
उत्तर – मानव की थकान को “लकर-लकर”, “धकर-धकर”, और “हँकर-हँकर” जैसे शब्दों से व्यक्त किया गया है। लोग कमजोरी से रेंगते हैं, साँसें हाँफती हैं, और पत्थर तोड़ने में थक जाते हैं, जो गर्मी की मार को दर्शाता है। - कविता में राहत का क्या स्रोत बताया गया है?
उत्तर – कविता में राहत का स्रोत “मन के दहरा में बुड़बे” (हृदय की गहराई में डूबना) बताया गया है। यह मानसिक शांति और आध्यात्मिक ठंडक को दर्शाता है, जो गर्मी की तपन से निजात दिलाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कविता “सुरुज टघलत हे…” में ग्रीष्म ऋतु के मानव और प्रकृति पर प्रभाव को विस्तार से समझाइए।
उत्तर – कविता में ग्रीष्म ऋतु की तीव्रता को सूरज की तपन, गर्म हवाओं, और सूखती नदियों के माध्यम से दर्शाया गया है। मानव शरीर पर फफोले, जलती आँखें, और सूखे होंठों का प्रभाव पड़ता है, जबकि प्रकृति में नदियाँ सूखती हैं और पेड़ कटते हैं। यह कविता गर्मी के कष्टों और मानव की सहनशक्ति के बीच संघर्ष को जीवंत रूप से चित्रित करती है। - कविता में गर्मी की तीव्रता को व्यक्त करने के लिए किन प्रतीकों का उपयोग किया गया है?
उत्तर – कविता में गर्मी की तीव्रता को व्यक्त करने के लिए “टघलत सुरुज”, “झाँझ”, “सुलगत आँखी”, “तावा बनगे छानी”, और “साँय-साँय सोखत पानी” जैसे प्रतीकों का उपयोग किया गया है। ये प्रतीक सूरज की प्रचंडता, गर्म हवाओं, जलते शरीर, और सूखती प्रकृति को दर्शाते हैं, जो गर्मी के दमनकारी प्रभाव को उजागर करते हैं। - कविता में पर्यावरणीय क्षति के संदर्भ में क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर – कविता में पर्यावरणीय क्षति को सूखती नदियों, पतले तालाबों, और कटते पेड़ों के माध्यम से दर्शाया गया है। “खंड म रुखवा खड़े उमर के, टँगिया ताल कटावत हे” पंक्ति पेड़ों की कटाई और प्रकृति के विनाश को दिखाती है। यह पर्यावरण संरक्षण और गर्मी के प्रभावों से बचाव का संदेश देती है। - कविता में मानव की शारीरिक और मानसिक स्थिति का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – कविता में मानव की शारीरिक स्थिति को फफोले, सूखे होंठ, ऐंठती नसें, और हाँफती साँसों से दर्शाया गया है। मानसिक स्थिति “लकर-लकर”, “धकर-धकर”, और “तलफत जीव” जैसे शब्दों से व्यक्त होती है, जो थकान और तड़प को दिखाते हैं। अंत में, “मन के दहरा” में डूबने से मानसिक राहत का संदेश दिया गया है। - कविता में छत्तीसगढ़ी भाषा की विशेषताओं का उपयोग कैसे हुआ है?
उत्तर – कविता में छत्तीसगढ़ी भाषा की बोलचाल की शैली और स्थानीय शब्दावली जैसे “टघलत”, “झाँझ”, “डबकत”, और “लकर-लकर” का उपयोग हुआ है। ये शब्द गर्मी के अनुभव को जीवंत और प्रामाणिक बनाते हैं। लयबद्धता और स्थानीय संस्कृति का समावेश कविता को ग्रामीण जीवन से जोड़ता है, जो छत्तीसगढ़ी साहित्य की विशेषता है।

