जगदीश चंद्र माथुर – लेखक परिचय
सुपरिचित नाटककार जगदीश चंद्र माथुर का जन्म सन् 16 जुलाई 1917 ई. को उत्तर प्रदेश के खुर्जा, जिला बुलंदशहर में हुआ। उन्होंने ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक लिखे हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ भोर का तारा, ओ मेरे सपने (एकांकी), शारदीया कोणार्क, पहला राजा (नाटक), जिन्होंने जीना सीखा तथा दस तस्वीरें (रेखाचित्र) आदि हैं। जगदीश चंद्र माथुर का निधन सन् 14 मई 1978 ई. को हुआ।
रीढ़ की हड्डी – पाठ परिचय
जगदीश चंद्र माथुर की प्रसिद्ध एकांकी रीढ़ की हड्डी समाज में स्त्रियों के प्रति व्याप्त रूढ़िवादी मानसिकता पर प्रहार करते हुए, स्त्रियों में शिक्षा से उत्पन्न आत्मविश्वास, साहस व स्वयं निर्णय लेने की क्षमता को प्रस्तुत करती है।
रीढ़ की हड्डी
पात्र परिचय
उमा – लड़की
रामस्वरूप – लड़की का पिता
प्रेमा – लड़की की माता
शंकर – लड़का
गोपाल प्रसाद – लड़के का बाप
रतन – रामस्वरूप का नौकर
(मामूली तरह से सजा हुआ एक कमरा अंदर के दरवाजे में आते हुए जिन महाशय की पीठ नजर आती है वह अधेड़ उम्र के मालूम होते हैं। एक तख्त को पकड़े हुए पीछे की ओर चलते-चलते कमरे में आते हैं। तख्त का दूसरा सिरा उनके नौकर ने पकड़ रखा है।)
रामस्वरूप – अबे, धीरे-धीरे चल। अबे, तख्त को उधर मोड़ दे.. उधर। बस। (तख्त के रखे जाने की आवाज आती है।)
नौकर – बिछा दूँ साहब?
रामस्वरूप – (जरा तेज आवाज़) और क्या करेगा? परमात्मा के यहाँ जब अक्ल बँट रही थी, तो तू देर से पहुँचा था क्या? बिछा दूँ साब… और ये पसीना किसलिए बहाया है?
नौकर – (तख्ता बिछाता है।) ही ही ही।
रामस्वरूप – हँसता क्यों है? अबे, हमने भी जवानी में कसरत की है। कलसों से नहाता था लोटों की तरह। तख्त क्या चीज़ है? उसे सीधा कर यो बस और सुन, बहू जी से दरी माँग ला, इसके ऊपर बिछाने के लिए।… चद्दर भी, कल जो धोबी के यहाँ से आई है, वही (नौकर जाता है। बाबू साहब इस बीच में मेजपोश ठीक करते हैं। एक झाड़न से गुलदस्ता साफ करते कुर्सियों पर भी दो-चार हाथ लगाते हैं। सहसा घर की मालकिन प्रेमा का आना। गंदुमी रंग, छोटा कद, चेहरे की आवाज़ से ज़ाहिर होता है कि किसी काम में बहुत व्यस्त है। उनके पीछे-पीछे भीगी बिल्ली की तरह नौकर आ रहा है।. खाली हाथ बाबू रामस्वरूप दोनों की तरफ देखने लगते हैं।)
प्रेमा – मैं कहती हूँ, तुम्हें इस वक्त धोती की क्या जरुरत पड़ गई? एक तो वैसे ही जल्दी-जल्दी में…..
रामस्वरूप – धोती?
प्रेमा – हाँ, अभी तो बदलकर आए हो और फिर न जाने किसलिए …..
रामस्वरूप – लेकिन धोती माँगी किसने?
प्रेमा – यही तो कह रहा था रतन?
रामस्वरूप – क्यों बे रतन, तेरे कानों में डाट लगी है? मैंने कहा था- धोबी के यहाँ से जो चादर आई है, उसे माँग ला। … अब तेरे लिए दिमाग कहाँ से लाऊँ। उल्लू कहीं का!
प्रेमा – अच्छा जा, पूजावाली कोठरी में लकड़ी के बाक्स के ऊपर धुले हुए कपड़े रखे हैं न, उन्हीं में से चद्दर उठा ला।
रतन – और दरी?
प्रेमा – दरी तो यहीं रखी है कोने में वह पड़ी तो है।
रामस्वरूप -(दरी उठाते हुए।) और बीबी के कमरे में से हारमोनियम उठा ला और सितार भी। जल्दी.. जा (रतन जाता है। पति-पत्नी तख्त पर दरी बिछाते हैं।)
प्रेमा – लेकिन वह तुम्हारी लाड़ली बेटी तो मुँह फुलाए पड़ी है।
रामस्वरूप – मुँह फुलाए? और तुम उसकी माँ किस मर्ज की दवा हो? जैसे-तैसे करके तो वे लोग पकड़ में आए हैं। अब तुम्हारी बेवकूफी से सारी मेहनत बेकार जाए, तो मुझे दोष मत देना।
प्रेमा – तो मैं ही क्या करूँ? सारे जतन करके हार गई। तुम्हीं ने उसे पढ़ा-लिखाकर इतना सर चढ़ा कर रखा है। मेरी समझ में तो ये पढ़ाई-लिखाई का जंजाल आता नहीं अपना जमाना अच्छा था। ‘आ’ ‘ई’ पढ़ ली, गिनती सीख ली और बहुत हुआ तो स्त्री-सुबोधिनी पढ़ ली। सच पूछो तो स्त्री-सुबोधिनी में ऐसी-ऐसी बातें लिखी हैं.. ऐसी बातें कि क्या तुम्हारी बी.ए. एम.ए की पढ़ाई में होगी और आजकल के लच्छन ही अनोखे हैं…
रामस्वरूप – ग्रामोफोन बाजा होता है न?
प्रेमा – क्यों
रामस्वरूप – दो तरह का होता है। एक तो आदमी का बनाया हुआ। उसे एक बार चलाकर चाहे रोक लो और दूसरा परमात्मा का बनाया हुआ। उसका रिकार्ड एक बार चढ़ा तो रुकने का नाम नहीं।
प्रेमा – हटो भी! तुम्हें ठिठोली सूझती रहती है। यह तो होता नहीं कि उस अपनी उमा को राह पर लाते। अब देर ही कितनी रही है उन लोगों के आने में?
रामस्वरूप – तो हुआ क्या?
प्रेमा – तुम्हीं ने तो कहा था कि जरा ठीक-ठीक करके नीचे लाना। आजकल तो लड़की कितनी ही सुंदर हो, बिना टीम-टाम के भला कौन पूछता है? इसी मारे मैंने तो पौडर – वौडर उसके सामने रखा था। पर उसे तो इन चीजों से न जाने किस जन्म की नफरत है मेरा कहना था कि आँचल से मुँह लपेट लेट गई; भई मैं तो बाज आई तुम्हारी इस लड़की से
रामस्वरूप – न जाने कैसे इसका दिमाग है। वरना आजकल की लड़कियों के सहारे तो पौडर का कारोबार चलता है।
प्रेमा – अरे, मैंने तो पहले ही कहा था इंट्रेंस ही पास करा लेते- लड़की अपने हाथ रहती और उतनी परेशानी उठानी न पड़ती। पर तुम तो
रामस्वरूप – (बात काटकर) चुप चुप (दरवाजे में झाँकते हुए) तुम्हें कतई अपनी जुबान पर काबू नहीं है। कल ही बता दिया था कि उन लोगों के सामने जिक्र और ही ढंग से होगा। मगर तुम तो अभी से सब कुछ उगले देती हो उनके आने तक तो न जाने क्या हाल करोगी।
प्रेमा – अच्छा बाबा, मैं न बोलूँगी, जैसी तुम्हारी मर्जी हो, करना। बस मुझे तो मेरा काम बता दो।
रामस्वरूप – तो उमा को जैसे-तैसे तैयार कर दो। न सही पाउडर। वैसे कौन बुरी है। पान लेकर भेज देना उसे और नाश्ता तो तैयार है न? (रतन का आना) आ गया रतन !. इधर ला इधर बाजा नीचे रख दे। चद्दर खोल पकड़ तो जरा उधर से (चद्दर बिछाते हैं।)
प्रेमा – नाश्ता तो तैयार है। मिठाई तो वे लोग ज्यादा खाएँगे नहीं। कुछ नमकीन चीजें बना दी हैं। फल रखे हैं ही। चाय तैयार है और टोस्ट भी। मगर हाँ मक्खन? मक्खन तो आया ही नहीं।
रामस्वरूप – क्या कहा? मक्खन नहीं आया? तुम्हें भी किस वक्त याद आई है। जानती हो कि मक्खनवाले की दुकान दूर है, पर तुम्हें तो ठीक वक्त पर कोई बात सुझती ही नहीं। अब बताओ रतन मक्खन लाए कि यहाँ का काम करे। दफ्तर के चपरासी से कहा था आने के लिए सो नखरों के मारे…
प्रेमा – यहाँ का काम कौन-सा ज्यादा है? कमरा तो सब ठीक-ठाक है ही, बाजा-सितार आ ही गया। नाश्ता यहाँ बराबरवाले कमरे में करना है- ट्रे में रखा हुआ है, सो तुम्हें पकड़ा दूँगी। एकाध चीज खुद ले आना। इतनी देर से रतन मक्खन ले ही आएगा। दो आदमी ही तो हैं।
रामस्वरूप – हाँ, एक तो बाबू गोपाल प्रसाद और दूसरा खुद लड़का है। देखो, उमा से कह देना कि जरा करीने से आए। ये लोग जरा ऐसे ही हैं। गुस्सा तो मुझे बहुत आता है, इनके दकियानूसी ख्यालों पर। खुद पढ़े-लिखे हैं, सभा-सोसाइटियों में जाते हैं, मगर लड़की चाहते हैं ऐसी कि ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो।
प्रेमा – और लड़का?
रामस्वरूप – बताया तो था तुम्हें। बाप सेर है, तो लड़का सवा सेर। बी.एस.सी के बाद लखनऊ में ही तो पढ़ता है, मेडिकल कॉलेज में कहता है कि शादी का सवाल दूसरा है तालीम का दूसरा क्या करूँ मजबूरी है। मतलब अपना है, वरना इन लड़कों और बापों को ऐसी कोरी कोरी सुनाता कि ये भी…
रतन – (जो अब तक दरवाजे के पास चुपचाप खड़ा हुआ था, जल्दी-जल्दी) बाबूजी, बाबूजी!
रामस्वरूप – क्या है?
रतन – कोई आए हैं।
रामस्वरूप – (दरवाजे से बाहर झाँककर, जल्दी से मुँह अंदर करते हुए) अरे, ऐ प्रेमा, वे आ भी गए (नौकर पर नजर पड़ते ही) और तू यहीं खड़ा है, बेवकूफ! गया नहीं मक्खन लाने? सब चौपट कर दिया। अबे, उधर से, अंदर के दरवाजे से जा (नौकर अंदर जाता है) और तुम जल्दी करो। प्रेमा, उमा को समझा देना थोड़ा-सा गा देगी। (प्रेमा जल्दी से अंदर की तरफ जाती है। उसकी धोती जमीन पर रखे हुए बाजे से अटक जाती है।)
प्रेमा – उँह ! यह बाजा नीचे ही रख गया है। कम्बख्त।
रामस्वरूप – तुम जाओ, मैं रखे देता हूँ … जल्दी (प्रेमा जाती है। बाबू रामस्वरूप बाजा उठाकर रखते हैं। किवाड़ों पर दस्तक।)
रामस्वरूप – हँ हँ हँ। आइए, आइए। हँ-हँ-हँ।
(बाबू गोपाल प्रसाद और उसके लड़के शंकर का आना आँखों से लोक चतुराई टपकती है। आवाज से मालूम होता है काफी अनुभवी और फितरती महाशय है। उनका लड़का कुछ खीसे निपोरनेवाले नौजवानों में से है, आवाज पतली है और खिसियाहट भरी झुकी कमर इसकी खासियत है।)
रामस्वरूप – (अपने दोनों हाथ मलते हुए) हँ.. हँ इधर तशरीफ लाइए, इधर (बाबूगोपाल प्रसाद बैठते हैं मगर बेंत गिर पड़ता है।)
रामस्वरूप – यह बेंत ! लाइए मुझे दीजिए कोने में रख देता हूँ। (सब बैठते हैं।) हँ हँ ! (सब बैठते हैं।) हँ-हँ! मकान ढूँढ़ने में कुछ तकलीफ तो नहीं हुई?
गो. प्रसाद – (खँखारकर) नहीं, तांगेवाला जानता था। और फिर हमें तो यहाँ आना ही था, रास्ता मिलता कैसे नहीं?
रामस्वरूप – हँ-हँ-हँ, यह तो आपकी बड़ी मेहरबानी है। मैंने आपको तकलीफ तो दी।
गो. प्रसाद – अरे नहीं साहब! जैसा मेरा काम, वैसा आपका काम आखिर लड़के की शादी तो करनी ही है। बल्कि यों कहिए कि मैंने आपके लिए खासी परेशानी कर दी।
रामस्वरूप – हँ हँ ! यह लीजिए, आप तो मुझे काँटों में घसीटने लगे। हम तो आपके हँ-हँ सेवक ही हैं। हँ-हँ (थोड़ी देर बाद लड़के की तरफ मुखातिब होकर) और कहिए, शंकर बाबू, कितने दिनों की छुट्टियाँ हैं?
शंकर – जी, कालेज की छुट्टियाँ नहीं हैं। वीक एंड में चला आया था।
रामस्वरूप – आपके कोर्स खत्म होने में तो अब साल भर रहा होगा?
शंकर – जी, यही कोई साल दो साल।
रामस्वरूप – साल दो साल?
शंकर – हँ-हँ हँ ! जी, एकाध साल का मार्जिन रखता हूँ।
गो. प्रसाद – बात यह है साहब कि यह शंकर एक साल बीमार हो गया था। क्या बताएँ, इन लोगों को इसी उम्र में सारी बीमारियाँ सताती हैं। एक हमारा ज़माना था कि स्कूल से आकर दर्जनों कचौड़ियाँ उड़ा जाते थे, मगर फिर जो खाना खाने बैठते, तो वैसे की वैसी ही भूख।
रामस्वरूप – कचौड़ियाँ भी तो उस जमाने में पैसे की दो आती थीं।
गो. प्रसाद – जनाब, यह हाल था कि चार पैसे में ढेर -सी मलाई आती थी और अकेले दो आने की हजम करने की ताकत थी, अकेले ! और अब तो बहुतेरे खेल वगैरह होते हैं स्कूलों में तब न वॉलीबॉल जानता था, न टेनिस, न बैडमिंटन। बस, कभी हॉकी या कभी क्रिकेट कुछ लोग खेला करते थे। मगर मजाल कि कोई कह जाए कि यह लड़का कमजोर है। (शंकर और रामस्वरूप खीसे निपोरते हैं।)
रामस्वरूप – जी हाँ, जी हाँ! उस जमाने की बात ही दूसरी थी। हँ-हँ…
गो. प्रसाद – (जोशीली आवाज में) और पढ़ाई का यह हाल था कि एक बार कुर्सी पर बैठे कि बारह घंटे की सिटिंग हो गई, बारह घंटे ! जनाब, मैं सच कहता हूँ कि उस जमाने का मैट्रिक भी वह अंग्रेजी लिखता था फर्राटे की, कि आजकल के एम. ए. भी मुकाबला नहीं कर सकते।
रामस्वरूप – जी हाँ, जी हाँ! यह तो है ही।
गो. प्रसाद – माफ कीजिएगा बाबू रामस्वरूप उस ज़माने की जब याद आती है, अपने को जब्त करना मुश्किल हो जाता है।
रामस्वरूप – हँ-हँ हँ ! जी हाँ, वह तो रंगीन ज़माना था, रंगीन जमाना! हँ-हँ-हँ (शंकर भी ही ही करता है।)
गो. प्रसाद – (एक साथ अपनी आवाज़ और तरीका बदलते हुए) अच्छा तो साहब, फिर बिजिनेस की बातचीत हो जाए।
रामस्वरूप – (चौंककर) बिजिनेस? बिजि (समझकर) आह ! अच्छा-अच्छा! लेकिन जरा नाश्ता तो कर लीजिए। (उठते हैं।)
गो. प्रसाद – यह सब आप क्यों तकल्लुफ करते हैं?
रामस्वरूप – हँ-हँ तकल्लुफ किस बात का है? हँ-हूँ! यह तो मेरी बड़ी तकदीर है कि आप मेरे यहाँ तशरीफ लाए। वरना मैं किस काबिल हूँ। हँ-हाँ- माफ कीजिएगा जरा। अभी हाजिर हुआ। (अंदर जाते हैं।)
गो. प्रसाद – (थोड़ी देर बाद दबी आवाज़ में) आदमी तो भला है। मकान-वकान से हैसियत भी बुरी नहीं मालूम होती। पता चले, लड़की कैसी है?
शंकर – जी
(कुछ खखारकर इधर-उधर देखता है।)
गो. प्रसाद – क्यों क्या हुआ?
शंकर – कुछ नहीं।
गो. प्रसाद – झुककर क्यों बैठते हो? ब्याह तय करने आए, तो कमर सीधी करके बैठो। तुम्हारे दोस्त ठीक कहते हैं कि शंकर की बैक बोन. …
(इतने में बाबू रामस्वरूप आते हैं, हाथ में चाय की ट्रे लिए हुए मेज पर रख देते हैं।)
गो. प्रसाद – आखिर आप माने नहीं।
रामस्वरूप – (चाय प्याले में डालते हुए) हँ-हँ हँ? आपको विलायती चाय पसंद है या हिन्दुस्तानी?
गो. प्रसाद – नहीं-नहीं साहब, मुझे आधा दूध और आधी चाय दीजिए और चीनी भी ज्यादा डालिएगा। मुझे तो भाई यह नया फैशन पसंद नहीं। एक तो वैसे ही चाय में पानी काफी होता है और फिर चीनी भी नाम के लिए डाली जाए, तो जायका क्या रहेगा?
रामस्वरूप – हँ हँ। कहते तो आप सही हैं। (प्याला पकड़ाते हुए)
शंकर – (खखारकर) सुना है, सरकार अब ज्यादा चीनी लेनेवालों पर टैक्स लगाएगी।
गो. प्रसाद – (चाय पीते हुए) हूँ। सरकार जो चाहे सो कर ले, पर अगर आमदनी करनी है, तो सरकार को बस एक ही टैक्स लगाना चाहिए।
रामस्वरूप – (शंकर को प्याला पकड़ाते हुए) वह क्या?
गो. प्रसाद – खूबसूरती पर टैक्स! (रामस्वरूप और शंकर हँस पड़ते हैं।)
मजाक नहीं साहब, यह ऐसा टैक्स है जनाब कि देने वाली भी चूँ न करेंगी। बस शर्त यह है कि औरत पर यह छोड़ दिया जाए कि वह अपनी खूबसूरती के स्टैंडर्ड के माफ़िक अपने ऊपर टैक्स तय कर ले, फिर देखिए सरकार की कैसी आमदनी बढ़ती है।
रामस्वरूप – (जोर से हँसते हुए) वाह वाह ! खूब सोचा आपने। वाकई आजकल यह खूबसूरती का सवाल भी बेढब हो गया है। हम लोगों के जमाने में तो यह कभी उठता भी न था। (तश्तरी गोपाल प्रसाद की तरफ बढ़ाते हैं।) लीजिए।
गो. प्रसाद – (समोसा उठाते हुए) कभी नहीं साहब, कभी नहीं।
रामस्वरूप – (शंकर की तरफ मुखातिब होकर) आपका क्या ख्याल है, शंकर बाबू?
रामस्वरूप – किस मामले में?
रामस्वरूप – यही कि शादी तय करने में खूबसूरती का हिस्सा कितना होना चाहिए?
गो. प्रसाद – (बीच में ही) यह बात दूसरी है कि बाबू रामस्वरूप, मैंने आपसे पहले ही कहा था, लड़की का खूबसूरत होना निहायत जरूरी है। कैसे भी हो, चाहे पौडर वगैरह लगाए, चाहे वैसे ही बात यह है कि हम आप मान भी जाएँ, मगर घर की औरतें तो राजी नहीं होतीं। आपकी लड़की तो ठीक है?
रामस्वरूप – जी हाँ, वह तो आप देख लीजिएगा।
गो. प्रसाद – देखना क्या ! जब आपसे इतनी बातचीत हो चुकी है, तब तो यह रस्म ही समझिए।
रामस्वरूप – हँ-हँ, यह तो आपका मेरे ऊपर भारी अहसान है। हँ-हँ।
गो. प्रसाद – और जायचा (जन्मपत्री) तो मिल ही गया होगा?
रामस्वरूप – जी, जायचे का मिलना क्या मुश्किल बात है। ठाकुर जी के चरणों में रख दिया। बस खुद-ब-खुद मिला हुआ समझिए।
गो. प्रसाद – यह ठीक कहा आपने, बिल्कुल ठीक। (थोड़ी देर रुककर) लेकिन हाँ, यह जो मेरे कानों को भनक पड़ी है, यह गलत है न?
रामस्वरूप – (चौंककर) क्या?
गो. प्रसाद – यह पढ़ाई-लिखाई के बारे में! जी हाँ, साफ बात है साहब, हमें ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की नहीं चाहिए। मेम साहब तो रखनी नहीं, कौन भुगतेगा उनके नखरों को। बस, हद-से-हद मैट्रिक पास होनी चाहिए।
क्यों शंकर?
शंकर – जी हाँ, कोई नौकरी तो करनी नहीं।
रामस्वरूप – नौकरी का तो कोई सवाल ही नहीं उठता।
गो. प्रसाद – और क्या साहब! देखिए कुछ लोग मुझसे कहते हैं कि जब आपने अपने लड़के को बी. ए. एम. ए. तक पढ़ाया है, तब उनकी बहुएँ भी ग्रेजुएट लीजिए। भला पूछिए इन अक्ल के ठेकेदारों से कि क्या लड़कों की पढ़ाई और लड़कियों की पढ़ाई एक बात है। अरे मर्दों का काम तो है ही पढ़ना और काबिल होना। अगर औरतें भी वही करने लगीं, अंग्रेजी अखबार पढ़ने लगीं और पॉलिटिक्स वगैरह पर बहस करने लगीं, तब तो हो चुकी गृहस्थी। जनाब मोर के पंख होते हैं, मोरनी के नहीं, शेर के बाल होते हैं, शेरनी के नहीं।
रामस्वरूप – जी हाँ, और मर्द की दाढ़ी होती है, औरतों की नहीं। हँ-हँ-हँ
(शंकर भी हँसता है, मगर गोपाल प्रसाद गंभीर हो जाते हैं।)
गो. प्रसाद – हाँ, हाँ वह भी सही है। कहने का मतलब यह है कि कुछ बातें दुनिया में ऐसी हैं, जो सिर्फ मर्दों के लिए हैं और ऊँची तालीम भी ऐसी चीजों में से एक है।
रामस्वरूप – (शंकर से) चाय और लीजिए।
शंकर – धन्यवाद, पी चुका।
रामस्वरूप – (गोपाल प्रसाद से) आप?
गो. प्रसाद – बस साहब, अब तो खत्म ही कीजिए।
रामस्वरूप – आपने तो कुछ खाया ही नहीं। चाय के साथ टोस्ट नहीं थे। क्या बताएँ, वह मक्खन
गो. प्रसाद – नाश्ता ही तो करना था साहब, कोई पेट तो भरना था नहीं। और फिर टोस्ट वोस्ट मैं खाता ही नहीं।
रामस्वरूप – हँ-हँ (मेज को एक तरफ सरका देते हैं। फिर अंदर के दरवाजे की तरफ मुँह कर जरा जोर से) अरे, जरा पान भिजवा देना… सिगरेट मँगवाऊँ?
गो. प्रसाद – जी नहीं।
(पान की तश्तरी हाथों में लिए उमा आती है। सादगी के कपड़े। गर्दन झुकी हुई। बाबू गोपाल प्रसाद आँखें गड़ाकर और शंकर छिपकर उसे ताक रहे हैं
रामस्वरूप – हँ-हँ हँ-हँ, आपकी लड़की है? लाओ बेटी, पान मुझे दो।
(उमा पान की तश्तरी अपने पिता को दे देती है। उस समय उसका चेहरा ऊपर को उठ जाता है, नाक पर रखा हुआ सोने की रिमवाला चश्मा दिखता है। बाप-बेटे चौंक उठते हैं।)
रामस्वरूप – – (जरा सकपकाकर जी, वह तो वह पिछले महीने में इसकी आँखें आ गई थीं, सो कुछ दिनों के लिए चश्मा लगाना पड़ रहा है।
गो. प्रसाद – पढ़ाई लिखाई की वजह से तो नहीं है कुछ?
रामस्वरूप – नहीं साहब, वह तो मैंने अर्ज किया न।
गो. प्रसाद – हूँ। (संतुष्ट होकर कुछ कोमल स्वर में बैठो बेटी !
रामस्वरूप – वहाँ बैठ जाओ उमा, उस तख्त पर अपने बाजे के पास (उमा बैठती है।)
गो. प्रसाद – चाल में तो कुछ खराबी है नहीं। चेहरे पर भी छबि है. हाँ, कुछ गाना-बजाना सीखा है?
रामस्वरूप – जी हाँ, सितार भी और बाजा भी सुनाओ तो उमा एकाध गीत सितार के साथ।
(उमा सितार उठाती है। थोड़ी देर बाद मीरा का मशहूर गीत, ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न
कोई’ गाना शुरू कर देती है। स्वर से जाहिर है कि गाने का अच्छा ज्ञान है। उसकी आँखें शंकर
की झेंपती-सी आँखों से मिल जाती हैं और वह गाते-गाते एकदम रुक जाती है।)
रामस्वरूप – क्यों, क्या हुआ? गाने को पूरा करो उमा !
गो. प्रसाद – नहीं-नहीं साहब, काफी है। लड़की आपकी अच्छा गाती है।
(उमा सितार रखकर अंदर जाने को उठती है।)
गो. प्रसाद – अभी ठहरो, बेटी।
रामस्वरूप – थोड़ा और बैठी रहो, उमा।
(उमा बैठती है।)
गो. प्रसाद – (उमा से) तो तुमने पेंटिंग भी सीखी है.
उमा – (चुप)।
रामस्वरूप – हाँ, वह तो मैं आपको बताना भूल ही गया। यह जो तस्वीर टँगी हुई है, कुत्तेवाली, इसी ने खींची है और वह उस दीवार पर भी।
गो. प्रसाद – हूँ। यह तो बहुत अच्छा है। और सिलाई वगैरह?
रामस्वरूप – सिलाई तो सारे घर की इसी के जिम्मे रहती है, यहाँ तक कि मेरी कमीजें भी, हँ-हँ हँ।
गो. प्रसाद – ठीक है। लेकिन, हाँ बेटी, तुमने कुछ इनाम जीते हैं?
(उमा चुप। रामस्वरूप इशारे के लिए खाँसते हैं, लेकिन उमा चुप है, उस तरह गर्दन झुकाए। गोपाल प्रसाद अधीर हो उठते हैं और रामस्वरूप सकपकाते हैं।)
रामस्वरूप – जवाब दो उमा (गो. प्रसाद से) हँ हँ जरा शरमाती है। इनाम तो इसने…..
गो. प्रसाद – (जरा रुखी आवाज में) जरा मुँह भी तो खोलना चाहिए।
रामस्वरूप – उमा, देखो आप क्या कह रहे हैं? जवाब दो न
उमा – (हल्की, लेकिन मजबूत आवाज में) क्या जवाब दूँ बाबू जी ! जब कुर्सी, मेज बिकती है, तब दुकानदार कुर्सी, मेज से कुछ नहीं पूछता, सिर्फ खरीददार को दिखला देता है, पसंद आ गई तो अच्छा है वरना…..
रामस्वरूप – (चौककर खड़े हो जाते हैं) उमा, उमा !
उमा – अब मुझे कह लेने दो बाबू जी ! ये जो महाशय मेरे खरीददार बनकर आए हैं, उनसे जरा पूछिए कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होते? क्या उनको चोट नहीं लगती है? क्या वे बेबस भेड़-बकरियाँ हैं? जिन्हें कसाई अच्छी तरह देख-भालकर?
गो. प्रसाद – (ताव में आकर) बाबू रामस्वरूप, आपने मेरी इज्जत उतारने के लिए मुझे यहाँ बुलाया था?
उमा – (तेज आवाज में) हाँ, और हमारी बेइज्जती नहीं होती, जो आप इतनी देर से नाप तौल कर रहे हैं? और जरा अपने इन साहबजादे से पूछिए कि अभी पिछले फरवरी में ये लड़कियों के हॉस्टल के इर्द-गिर्द क्यों घूम रहे थे, और वहाँ से क्यों भगाए गए थे?
शंकर – बाबू जी चलिए।
गो. प्रसाद – लड़कियों के हॉस्टल में? क्या तुम कॉलेज में पढ़ी हो?
(रामस्वरूप चुप)
उमा – जी हाँ, मैं कॉलेज में पढ़ी हूँ। मैंने बी.ए. पास किया है कोई पाप नहीं किया, कोई चोरी नहीं की और न आपके पुत्र की तरह ताक-झाँककर कायरता दिखाई है। मुझे अपनी इज्जत, अपने मान का ख्याल तो है, लेकिन इनसे पूछिए कि ये किस तरह नौकरानी के पैरों पड़कर अपना मुँह छिपाकर भागे थेI
रामस्वरूप – उमा, उमा?
गो. प्रसाद – (खड़े होकर गुस्से में) बस हो चुका। बाबू रामस्वरूप आपने मेरे साथ दगा किया। आपकी लड़की बी. ए. पास है, आपने मुझसे कहा था कि सिर्फ मैट्रिक तक पढ़ी है। लाइए मेरी छड़ी कहाँ है? मैं चलता हूँ! (बेंत ढूँढ़कर उठाते हैं।) बी. ए. पास! उफफोह! गजब हो जाता! झूठ का भी कुछ ठिकाना है, आओ, बेटे, चलो…. (दरवाजे की ओर बढ़ते हैं।)
उमा – जी हाँ, जाइए, लेकिन घर जाकर जरा यह पता लगाइएगा कि आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं- यानी बैकबोन बैकबोन।
(बाबू गोपाल प्रसाद के चेहरे पर बेबसी का गुस्सा है। उनके लड़के के रुआँसापन। दोनों बाहर चले जाते हैं। बाबू रामस्वरूप कुर्सी पर धम से बैठ जाते हैं। उमा सहसा चुप हो जाती है, लेकिन उसकी हँसी सिसकियों में तब्दील हो जाती है। प्रेमा का घबराहट की हालत में आना।)
प्रेमा – उमा, उमा …… रो रही है।
(यह सुनकर रामस्वरूप खड़े होते हैं। रतन आता है।)
रतन – बाबू जी मक्खन।
(सब रतन की तरफ देखते हैं और परदा गिरता है।)
नाटक का सारांश
यह नाटक ‘रीढ़ की हड्डी’ एक व्यंग्यात्मक कहानी है जो भारतीय समाज में विवाह व्यवस्था की रूढ़िवादिता पर कटाक्ष करता है। रामस्वरूप अपनी बेटी उमा का विवाह शंकर से तय करने के लिए उसके पिता गोपाल प्रसाद को घर बुलाते हैं। गोपाल प्रसाद एक कम पढ़ी-लिखी, सुंदर और घरेलू लड़की चाहते हैं, जबकि उमा बी.ए. पास है और स्वतंत्र विचारों वाली। जब गोपाल प्रसाद और शंकर उमा को जांचते हैं, उमा अपना विरोध जताती है, शंकर के अतीत का खुलासा करती है और विवाह को अस्वीकार कर देती है। नाटक लड़कियों की गरिमा और पुरुषों की कायरता पर जोर देता है, अंत में मक्खन की देरी से हास्यपूर्ण मोड़ आता है।
शब्दार्थ
मर्ज़ – बीमारी / रोग
ग्रामोफोन – एक तरह का यंत्र जिससे संगीत सुना जाता था
दकियानूसी – पुरातन पंथी, रुढ़िवादी
तकल्लुफ – शिष्टाचार, औपचारिकता
इंट्रेंस – प्रवेश
बेबसी – लाचारी।
शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
अधेड़ | मध्यम आयु वाला | Middle-aged |
तख्त | लकड़ी का बिस्तर या आसन | Wooden bed or platform |
झाड़न | झाड़ने की वस्तु | Duster |
गंदुमी | गेहूँ जैसे रंग वाली | Wheatish complexion |
दकियानूसी | पुरानी रूढ़िवादी विचारों वाला | Orthodox or conservative |
खीसे निपोरना | शर्म से मुस्कुराना या सिकुड़ना | To smirk shyly or cringe |
फितरती | चालाक या धूर्त | Cunning or sly |
तशरीफ | सम्मानजनक रूप से बैठना | To grace with presence |
तकल्लुफ | औपचारिकता या अतिरिक्त प्रयास | Formality or bother |
जायचा | जन्मपत्री या कुंडली | Horoscope |
दगा | धोखा | Deceit |
भनक | हल्की खबर या संकेत | Hint or whisper |
सकपकाकर | हड़बड़ाकर या घबराकर | Flustered or startled |
छबि | सौंदर्य या आकर्षण | Grace or beauty |
अधीर | बेचैन या व्याकुल | Impatient |
रुआँसापन | रोने जैसी स्थिति | Tearfulness or whimpering |
सिसकियाँ | रोते हुए छोटी साँसें | Sobs |
कंबख्त | अभागा या बदकिस्मत | Wretched or unfortunate |
नखरे | नाज-नखरे या ऐंठ | Tantrums or airs |
फर्राटे | तेज गति से | Fluently or rapidly |
पाठ से
- लड़केवालों के स्वागत में रामस्वरूप के घर में हो रही तैयारियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – लड़केवालों के स्वागत के लिए रामस्वरूप और उनका नौकर रतन कमरे को सजाने में लगे थे। उन्होंने कमरे में एक तख्त रखा, उस पर दरी और चादर बिछाई। मेजपोश को ठीक किया गया और गुलदस्ते को साफ करके रखा गया। हारमोनियम और सितार जैसे संगीत वाद्ययंत्र भी कमरे में रखे गए ताकि उनकी बेटी उमा के गुणों का प्रदर्शन हो सके। घर में नाश्ते की तैयारी भी चल रही थी, जिसमें मिठाई, नमकीन, फल और चाय-टोस्ट शामिल थे। इन तैयारियों में थोड़ी हड़बड़ी और घबराहट का माहौल था, जैसा कि मक्खन लाने की आखिरी मिनट की भागदौड़ से पता चलता है।
- पुराने ज़माने की लड़कियों और उमा के बीच क्या अंतर है?
उत्तर – पुराने ज़माने की लड़कियों और उमा के बीच शिक्षा, सोच और आत्मसम्मान को लेकर बड़ा अंतर है। प्रेमा के अनुसार, पुराने जमाने में लड़कियाँ बस ‘आ-ई’ पढ़ना, गिनती सीखना या ‘स्त्री-सुबोधिनी’ जैसी किताबें पढ़ लेती थीं। वे शर्मीली, संकोची और घर के कामों तक सीमित रहती थीं। इसके विपरीत, उमा एक पढ़ी-लिखी और आधुनिक विचारों वाली लड़की है। उसने बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह कला (पेंटिंग) और संगीत (सितार वादन) में भी निपुण है। सबसे बड़ा अंतर यह है कि उमा अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करती और समाज की दकियानूसी सोच का दृढ़ता से विरोध करती है।
- उमा गोपाल प्रसाद से यह क्यों कहती है, “घर जाकर यह पता लगाइएगा कि आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं?”
उत्तर – उमा गोपाल प्रसाद से ऐसा इसलिए कहती है क्योंकि वह शंकर के दोहरे चरित्र और व्यक्तित्वहीनता पर व्यंग्य कर रही थी। इस कथन के दो अर्थ हैं –
शाब्दिक अर्थ – नाटक में बताया गया है कि शंकर की कमर झुकी हुई है, जिससे लगता है कि उसे शारीरिक रूप से पीठ की कोई समस्या है।
लाक्षणिक अर्थ – ‘रीढ़ की हड्डी’ व्यक्तित्व, चरित्र और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। शंकर का अपना कोई स्वतंत्र विचार नहीं है, वह पूरी तरह अपने पिता पर निर्भर है। इसके अलावा, उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है, जैसा कि लड़कियों के हॉस्टल वाली घटना से पता चलता है। उमा के कहने का तात्पर्य था कि शंकर का न तो कोई चरित्र है और न ही कोई व्यक्तित्व।
- पाठ के आधार पर उमा का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर – पाठ के आधार पर उमा के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
शिक्षित और गुणी – उमा बी.ए. पास है और उसे सितार बजाना, गाना और पेंटिंग करना भी आता है।
स्वाभिमानी – उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई उसे भेड़-बकरी की तरह जाँचे-परखे। वह पाउडर आदि लगाकर अपनी स्वाभाविकता को छिपाना नहीं चाहती।
स्पष्टवादी और साहसी – जब उसके आत्मसम्मान पर चोट की जाती है, तो वह बिना डरे अपनी बात रखती है और गोपाल प्रसाद तथा शंकर की गलत मानसिकता का पर्दाफाश करती है।
आदर्शवादी – वह मानती है कि शिक्षा कोई पाप या चोरी नहीं है और लड़कियों को भी सम्मान से जीने का अधिकार है।
संवेदनशील – अंत में, जब मेहमान चले जाते हैं, तो अपने माता-पिता की चिंता और अपमान की पीड़ा के कारण उसकी हँसी सिसकियों में बदल जाती है, जो उसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
- लड़केवालों के लौटने के बाद उमा की हँसी सिसकियों में क्यों तब्दील हो गई?
उत्तर – लड़केवालों के लौटने के बाद उमा की हँसी सिसकियों में इसलिए तब्दील हो गई क्योंकि उस हँसी में गुस्सा, विद्रोह और व्यंग्य का भाव था। वह समाज की पिछड़ी सोच पर हँस रही थी, लेकिन इसके तुरंत बाद उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसके विद्रोह के कारण उसके माता-पिता की उम्मीदें टूट गईं और उन्हें अपमानित होना पड़ा। अपने माता-पिता की पीड़ा और अपनी स्थिति की बेबसी को महसूस कर उसकी व्यंग्यात्मक हँसी दुख और वेदना की सिसकियों में बदल गई।
- उमा के पिता द्वारा अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के समय उसे छिपाना। यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को दिखाता है?
उत्तर – यह विरोधाभास रामस्वरूप की एक मजबूर पिता की विवशता को दिखाता है। एक ओर, वे प्रगतिशील सोच वाले व्यक्ति हैं जो अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देते हैं और उसे काबिल बनाते हैं। दूसरी ओर, वे समाज की उन रूढ़िवादी धारणाओं से डरते हैं, जहाँ लोग पढ़ी-लिखी बहू को स्वीकार नहीं करते। अपनी बेटी का विवाह करने की सामाजिक जिम्मेदारी और एक अच्छा वर खोजने की चिंता उन्हें अपनी प्रगतिशील सोच को छिपाने और झूठ बोलने पर मजबूर कर देती है। यह समाज में एक पिता के उस द्वंद्व को दिखाता है, जो बेटी को आगे तो बढ़ाना चाहता है, पर समाज के डर से पीछे हट जाता है।
पाठ से आगे
- पढ़ी-लिखी लड़की के घर में आ जाने से स्थितियाँ किस प्रकार बदलती हैं? अपना उत्तर तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – एक पढ़ी-लिखी लड़की के घर में आने से सकारात्मक बदलाव आते हैं। वह परिवार को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकती है। वह बच्चों की शिक्षा में मदद कर सकती है और उन्हें अच्छे संस्कार दे सकती है। आर्थिक संकट के समय वह नौकरी करके परिवार का सहारा भी बन सकती है। वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होती है, जिससे परिवार में समानता और सम्मान का माहौल बनता है। एक शिक्षित महिला पुरानी कुरीतियों और अंधविश्वासों को खत्म कर परिवार को एक प्रगतिशील दिशा दे सकती है।
- क्या लड़के और लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था अलग-अलग तरह की होनी चाहिए? कारण बताते हुए अपना उत्तर लिखिए।
उत्तर – नहीं, लड़के और लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था अलग-अलग नहीं होनी चाहिए। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का बौद्धिक और चारित्रिक विकास करना है, और यह लड़के और लड़की दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है। समाज के निर्माण में दोनों का योगदान बराबर है। अगर लड़कियों को शिक्षा के कम अवसर दिए जाएँगे, तो वे आत्मनिर्भर नहीं बन पाएँगी और समाज का एक बड़ा हिस्सा पिछड़ जाएगा। इसलिए, दोनों को समान शिक्षा और समान अवसर मिलने चाहिए ताकि वे कंधे से कंधा मिलाकर समाज को आगे बढ़ा सकें।
- “अब मुझे कह लेने दो बाबूजी! ये जो महाशय खरीददार बनकर आए हैं। उनसे ज़रा पूछिए कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होते? क्या उनको चोट नहीं लगती है? क्या वे बेबस भेड़-बकरियाँ हैं जिन्हें कसाई अच्छी तरह देख-भालकर..?”
(क) इस वक्तव्य में उमा ने किन प्रवृत्तियों पर चोट की है?
उत्तर – इस वक्तव्य में उमा ने समाज की उन पुरुष-प्रधान प्रवृत्तियों पर चोट की है जो –
लड़कियों को वस्तु या सामान समझती हैं।
विवाह के नाम पर लड़की की योग्यता और भावनाओं का अपमान करती हैं।
यह मानती हैं कि लड़की की अपनी कोई पहचान या इच्छा नहीं होती।
लड़कियों को बेबस और कमजोर मानकर उनके साथ मनमाना व्यवहार करती हैं।
(ख) वक्तव्य के अंत में अधूरे छोड़े गए वाक्य को पूरा कीजिए।
उत्तर – “…जिन्हें कसाई अच्छी तरह देख-भालकर खरीदता है।”
- रामस्वरूप अपनी बेटी की पढ़ाई-लिखाई छुपाते हैं और गोपाल प्रसाद अपने बेटे की कमज़ोरियों पर पर्दा डालते हैं। क्या आपको उन दोनों का यह व्यवहार उचित लगता है? अपने पक्ष के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर – नहीं, उन दोनों का यह व्यवहार उचित नहीं लगता। दोनों ही झूठ और धोखे का सहारा ले रहे हैं, जो किसी भी रिश्ते की नींव के लिए गलत है।
रामस्वरूप का व्यवहार उनकी सामाजिक मजबूरी को दिखाता है, लेकिन झूठ बोलना फिर भी गलत है। उन्हें अपनी बेटी की शिक्षा पर गर्व होना चाहिए और ऐसे परिवार में रिश्ता नहीं करना चाहिए जो उनकी बेटी की योग्यता का सम्मान न करे।
गोपाल प्रसाद का व्यवहार और भी निंदनीय है। वे जानबूझकर अपने चरित्रहीन और कमजोर बेटे की कमियों को छिपाकर एक अच्छी लड़की के जीवन को धोखा देना चाहते हैं। उनका उद्देश्य केवल एक कम पढ़ी-लिखी, सुंदर बहू लाना है, चाहे उनका बेटा इसके लायक हो या नहीं।
दोनों ही पिताओं को अपने बच्चों के भविष्य के लिए ईमानदारी से काम लेना चाहिए था।
भाषा के बारे में
- पाठ में आए इन मुहावरों और लोकोक्ति के अर्थ लिखकर उनका प्रयोग अपने वाक्यों में कीजिए-
(क) बाप सेर है तो बेटा सवा सेर
(ख) खींसे निपोरना
(ग) काँटों में घसीटना
(घ) चूँ न करना
(ङ) कानों में भनक पड़ना
(च) आँखें गड़ाकर देखना
उत्तर – (क) बाप सेर है तो बेटा सवा सेर
अर्थ – बेटे का अपने बाप से भी अधिक चालाक या धूर्त होना।
वाक्य प्रयोग – सेठ करोड़ीमल तो चालाक थे ही, पर उनका बेटा तो सवा सेर निकला, उसने तो पूरे व्यापार पर ही कब्जा कर लिया।
(ख) खींसे निपोरना
अर्थ – लज्जित होकर या बेबसी में हँसना।
वाक्य प्रयोग – जब मालिक ने नौकर की चोरी पकड़ ली, तो वह बस खींसे निपोरने लगा।
(ग) काँटों में घसीटना
अर्थ – संकट या मुश्किल में डालना, औपचारिक व्यवहार करना।
वाक्य प्रयोग – आप हमारे आदरणीय अतिथि हैं, कृपया हमें काँटों में न घसीटें और भोजन ग्रहण करें।
(घ) चूँ न करना
अर्थ – जरा भी विरोध न करना, चुपचाप सहन कर लेना।
वाक्य प्रयोग – जमींदार के अत्याचारों के आगे गरीब किसान चूँ तक नहीं कर पाते थे।
(ङ) कानों में भनक पड़ना
अर्थ – उड़ती हुई खबर सुनना, अफवाह सुनना।
वाक्य प्रयोग – मेरे कानों में भनक पड़ी है कि दफ्तर में कुछ कर्मचारियों का तबादला होने वाला है।
(च) आँखें गड़ाकर देखना
अर्थ – बहुत ध्यान से या घूरकर देखना।
वाक्य प्रयोग – जासूस उस संदिग्ध व्यक्ति की हर गतिविधि पर आँखें गड़ाकर देख रहा था।
- इन वाक्यों के रेखांकित शब्दों को उनके हिंदी पर्यायवाची शब्दों से इस तरह बदलिए कि वाक्य का अर्थ न बदले-
(क) तुम्हारी बेवकूफी से सारी मेहनत बेकार न हो जाए।
उत्तर – तुम्हारी मूर्खता से सारी मेहनत बेकार न हो जाए।
(ख) लड़कियों के दिल नहीं होते।
उत्तर – लड़कियों के हृदय नहीं होते।
(ग) उनके दकियानूसी खयालों पर मुझे गुस्सा आता है।
उत्तर – उनके पुराने खयालों पर मुझे गुस्सा आता है।
(घ) उसकी हँसी सिसकियों में तब्दील हो जाती है।
उत्तर – उसकी हँसी सिसकियों में बदल जाती है।
(ङ) चीनी नाम के लिए डाली जाए तो ज़ायका क्या रहेगा?
उत्तर – चीनी नाम के लिए डाली जाए तो स्वाद क्या रहेगा?
- हिंदी में कुछ शब्द पुल्लिंग रूप में प्रयोग किए जाते हैं किंतु उनके पर्यायवाची उर्दू शब्द स्त्रीलिंग रूप में है।
(क) उदाहरणों को समझते हुए तालिका पूरी कीजिए-
हिंदी पुल्लिंग उर्दू स्त्रीलिंग
मार्ग राह
विलंब देर
रोग – बीमारी
स्वर – आवाज़
याम – वर्जिश
चित्र – तस्वीर
(ख) परिवर्तित उर्दू स्त्रीलिंग शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर – बीमारी – लंबी बीमारी के बाद वह ठीक हो गया।
आवाज़ – कोयल की आवाज़ बहुत मीठी होती है।
वर्जिश – अच्छी सेहत के लिए रोज़ वर्जिश करनी चाहिए।
तस्वीर – यह तस्वीर मेरे बचपन की है।
- पाठ में आए इन शब्दों को देखिए-
‘टोस्ट-वोस्ट‘, पेंटिंग – वेंटिंग, पढ़ाई-वढ़ाई
शब्दों के इस तरह के युग्म में पहला शब्द सार्थक होता है और दूसरा निरर्थक। इन शब्दों में निरर्थक शब्द के स्थान पर ‘आदि‘ या ‘वगैरह लिखने से भी शब्दों के अर्थ में कोई बदलाव नहीं होता है। जैसे- ‘टोस्ट – वगैरह‘ को ‘टोस्ट-आदि‘ भी लिखा जा सकता है।
अपनी बातचीत में आमतौर पर प्रयोग में आने वाले 20 ऐसे ही शब्दों को लिखिए।
उत्तर – चाय-वाय
खाना-वाना
पानी-वानी
काम-वाम
रोटी-वोटी
दाल-वाल
कपड़ा-लत्ता
पैसा-वैसा
नाश्ता-वाश्ता
मिठाई-विठाई
घूमना-घामना
हल्ला-गुल्ला
अनाप-शनाप
ठीक-ठाक
आस-पास
मिलना-जुलना
उलटा-पुलटा
पढ़ाई-वढ़ाई
अड़ोस-पड़ोस
भागम-भाग
- नीचे एक बाल नाटिका के कुछ संवाद दिए गए हैं। खिलाड़ियों के दो दलों के बीच संवाद हो रहा है। दल एक के कथन पूरे-पूरे दिए गए हैं, किंतु दल दो के कथन नहीं दिए गए हैं। आप अपनी समझ के अनुसार दल दो के कथनों को लिखिए।
दल एक – अरे, तुम लोग कहाँ जा रहे हो?
दल दो – हम लोग खेलने जा रहे हैं।
दल एक – क्या? तिकोने मैदान में? किसलिए?
दल दो – हाँ, वहीं। हम वहाँ क्रिकेट खेलेंगे।
दल एक – नहीं, तुम वहाँ नहीं खेल सकते। वह हमारा मैदान है, क्योंकि हमने उसे पहले ढूँढ़ा है।
दल दो – मैदान किसी का नहीं होता, सब यहाँ खेल सकते हैं।
दल एक – नहीं, तुम कोई और जगह ढूँढो।
दल दो – हम क्यों ढूँढें? हम तो यहीं खेलेंगे।
दल एक – हम नहीं मानते। वह हमारा मैदान है।
दल दो – तुम्हारे मानने या न मानने से क्या होता है?
दल एक – तुम झगड़ा करना चाहते हो?
दल दो – झगड़ा हम नहीं, तुम शुरू कर रहे हो।
दल एक – आओ, वहाँ खड़े मत रहो।
दल दो – हम कहीं नहीं जा रहे हैं। हिम्मत है तो हटाकर दिखाओ।
योग्यता विस्तार
- महिलाएँ आजकल कई क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। क्षेत्र का नाम लिखकर उस क्षेत्र की सफल / प्रसिद्ध महिलाओं के नाम लिखिए-
क्षेत्र कार्य / विधा उल्लेखनीय महिला
संगीत वायलिन वादन एन. राजम
उत्तर – खेल – मुक्केबाजी – मैरी कॉम
विज्ञान – मिसाइल प्रौद्योगिकी – टेसी थॉमस
राजनीति – प्रधानमंत्री/राजनेता – इंदिरा गाँधी
साहित्य – कवयित्री/लेखिका – महादेवी वर्मा
व्यापार – उद्यमी/सी.ई.ओ. – फाल्गुनी नायर
अभिनय – फिल्म अभिनेत्री – शबाना आज़मी
पुलिस सेवा – आई.पी.एस. अधिकारी – किरण बेदी
- दहेज प्रथा पर लगभग 300 शब्दों में एक निबंध लिखिए। +
उत्तर – प्रस्तावना –
दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक गंभीर कुरीति है। यह एक ऐसी परंपरा है जिसमें विवाह के समय वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को नकद, आभूषण, और अन्य कीमती सामान दिया जाता है। जो प्रथा कभी स्वेच्छा से दिए जाने वाले उपहार का प्रतीक थी, आज वह लालच और सामाजिक दबाव का एक घिनौना रूप ले चुकी है।
समस्या का स्वरूप –
आज दहेज एक सामाजिक अनिवार्यता बन गया है। वर पक्ष की ओर से की जाने वाली माँगें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, जिससे कन्या का पिता कर्ज के बोझ तले दब जाता है। कई बार, गरीब माता-पिता अपनी बेटियों को शिक्षित करने के बजाय दहेज के लिए पैसा जमा करने पर मजबूर हो जाते हैं। विवाह के बाद भी, कम दहेज लाने पर लड़कियों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। घरेलू हिंसा, मानसिक तनाव और यहाँ तक कि ‘दहेज हत्या’ जैसी घटनाएँ इसी कुप्रथा की देन हैं।
दुष्परिणाम और समाधान –
दहेज प्रथा के कारण समाज में लड़कियों को एक बोझ के रूप में देखा जाता है, जो कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं को जन्म देता है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम’ बनाया, लेकिन यह कानून पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाया है। इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए कानूनी सख्ती के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी आवश्यक है। युवाओं को दहेज लेने और देने के खिलाफ खड़ा होना होगा। शिक्षा का प्रसार, विशेषकर लड़कियों की शिक्षा और उनकी आत्मनिर्भरता, इस समस्या को हल करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
निष्कर्ष –
दहेज समाज के लिए एक कलंक है। इसे समाप्त करने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि हम सब की है। जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी और लड़कियों को वस्तु नहीं, बल्कि एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाएगा, तब तक यह अभिशाप खत्म नहीं होगा।
- समाचार पत्र-पत्रिकाओं से दहेज प्रताड़ना से संबद्ध खबरों की कतरन एकत्र कर विद्यालय की भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर – यह एक क्रियात्मक गतिविधि है जिसे छात्रों को स्वयं करना है।
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार
बच्चे किसी भी देश के सर्वोच्च संपत्ति होने के साथ-साथ भविष्य के संभावित मानव संसाधन भी है इस बात को दृष्टिगत रखते हुए संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य कानून बनाकर 6 से 14 आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपबंध कराएगा।
इसी प्रकार अप्रैल 2002 में कश्मीर राज्य को छोड़कर संपूर्ण भारत में यह लागू हुआ। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में अनुच्छेद 45 के तहत निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित हुआ तथा अप्रैल 2010 से यह लागू हुआ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
नाटक का शीर्षक क्या है?
a) रीढ़ की हड्डी
b) विवाह की समस्या
c) उमा की कहानी
d) गोपाल प्रसाद की जिद
उत्तर – a) रीढ़ की हड्डी
उमा के पिता का नाम क्या है?
a) गोपाल प्रसाद
b) रामस्वरूप
c) शंकर
d) रतन
उत्तर – b) रामस्वरूप
नाटक में रतन कौन है?
a) उमा का भाई
b) रामस्वरूप का नौकर
c) शंकर का पिता
d) प्रेमा का पति
उत्तर – b) रामस्वरूप का नौकर
गोपाल प्रसाद लड़की में क्या खासियत चाहते हैं?
a) ज्यादा पढ़ी-लिखी
b) कम पढ़ी-लिखी और घरेलू
c) डॉक्टर
d) गायिका
उत्तर – b) कम पढ़ी-लिखी और घरेलू
उमा ने कौन-सा गीत गाया?
a) मेरे तो गिरधर गोपाल
b) राम नाम जपो
c) हरि हरि बोल
d) कृष्ण की लीला
उत्तर – a) मेरे तो गिरधर गोपाल
शंकर की पढ़ाई क्या है?
a) बी.ए.
b) मेडिकल कॉलेज
c) इंजीनियरिंग
d) एम.ए.
उत्तर – b) मेडिकल कॉलेज
रामस्वरूप ने ग्रामोफोन की तुलना किससे की?
a) प्रेमा की बातों से
b) उमा की पढ़ाई से
c) गोपाल प्रसाद की हँसी से
d) रतन की मूर्खता से
उत्तर – a) प्रेमा की बातों से
उमा ने शंकर के बारे में क्या खुलासा किया?
a) वह चोर है
b) वह हॉस्टल के इर्द-गिर्द घूमता था
c) वह बीमार है
d) वह अमीर है
उत्तर – b) वह हॉस्टल के इर्द-गिर्द घूमता था
नाटक का अंत किस चीज की देरी से होता है?
a) चाय
b) मक्खन
c) पान
d) सितार
उत्तर – b) मक्खन
प्रेमा उमा को क्या लगाने की सलाह देती है?
a) चश्मा
b) पाउडर
c) साड़ी
d) हारमोनियम
उत्तर – b) पाउडर
गोपाल प्रसाद ने किस पर टैक्स लगाने का मजाक किया?
a) चाय पर
b) खूबसूरती पर
c) पढ़ाई पर
d) शादी पर
उत्तर – b) खूबसूरती पर
उमा की शिक्षा का स्तर क्या है?
a) मैट्रिक
b) इंटरमीडिएट
c) बी.ए.
d) एम.ए.
उत्तर – c) बी.ए.
रामस्वरूप ने उमा की आँखों के बारे में क्या झूठ बोला?
a) वह अंधी है
b) चश्मा कुछ दिनों के लिए है
c) वह पेंटिंग करती है
d) वह गाती है
उत्तर – b) चश्मा कुछ दिनों के लिए है
नाटक में हास्य किससे उत्पन्न होता है?
a) रतन की मूर्खता से
b) उमा की हँसी से
c) गोपाल प्रसाद की बातों से
d) शंकर की पढ़ाई से
उत्तर – a) रतन की मूर्खता से
उमा ने खुद को किससे तुलना की?
a) कुर्सी-मेज से
b) गायिका से
c) डॉक्टर से
d) नौकर से
उत्तर – a) कुर्सी-मेज से
गोपाल प्रसाद अपने जमाने की क्या तारीफ करते हैं?
a) पढ़ाई की
b) खेलों की
c) फैशन की
d) संगीत की
उत्तर – a) पढ़ाई की
रतन ने गलती से क्या समझा?
a) चद्दर को धोती
b) दरी को बाजा
c) पान को चाय
d) मक्खन को फल
उत्तर – a) चद्दर को धोती
शंकर की कमर किस तरह की है?
a) सीधी
b) झुकी
c) मजबूत
d) लंबी
उत्तर – b) झुकी
उमा ने शंकर को क्या कहा?
a) उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है
b) वह बहादुर है
c) वह अमीर है
d) वह गाता है
उत्तर – a) उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है
नाटक का मुख्य संदेश क्या है?
a) विवाह में शिक्षा महत्त्वपूर्ण नहीं
b) लड़कियों की गरिमा और स्वतंत्रता
c) पुरुषों की श्रेष्ठता
d) नौकरों की मूर्खता
उत्तर – b) लड़कियों की गरिमा और स्वतंत्रता
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- इस एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ क्यों रखा गया है?
उत्तर – इस एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ शंकर के चरित्र को ध्यान में रखकर रखा गया है, जो शारीरिक और चारित्रिक रूप से कमजोर है और जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है। यह शीर्षक समाज के उन लोगों पर भी व्यंग्य करता है जिनकी सोच पिछड़ी हुई है।
- रामस्वरूप अपने घर में क्या तैयारियाँ कर रहे थे और क्यों?
उत्तर – रामस्वरूप अपनी बेटी उमा को देखने आने वाले मेहमानों, गोपाल प्रसाद और उनके बेटे शंकर, के स्वागत के लिए अपने नौकर रतन के साथ मिलकर कमरे को व्यवस्थित कर रहे थे।
- गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ क्यों कहते हैं?
उत्तर – गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ इसलिए कहते हैं क्योंकि वे शादी को दो परिवारों के बीच एक सौदा मानते हैं, जिसमें नफा-नुकसान देखा जाता है, न कि मानवीय भावनाएँ और रिश्ते।
- प्रेमा अपनी बेटी उमा से क्यों नाराज थी?
उत्तर – प्रेमा अपनी बेटी उमा से इसलिए नाराज थी क्योंकि लड़के वालों के आने से पहले वह मुँह फुलाकर बैठी थी और सजना-सँवरना नहीं चाहती थी।
- रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को क्यों छिपाते हैं?
उत्तर – रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को इसलिए छिपाते हैं क्योंकि लड़के वाले (गोपाल प्रसाद) दकियानूसी ख्यालों के हैं और उन्हें अपने बेटे के लिए एक कम पढ़ी-लिखी बहू चाहिए।
- शंकर का चरित्र कैसा है?
उत्तर – शंकर एक बिना व्यक्तित्व वाला, अपने पिता पर आश्रित, शारीरिक रूप से कमजोर और चरित्रहीन युवक है, जिसे लड़कियों के हॉस्टल से भगाया गया था।
- उमा की माँ प्रेमा की सोच कैसी है?
उत्तर – उमा की माँ प्रेमा एक पारंपरिक महिला हैं, जिन्हें लड़कियों का अधिक पढ़ना-लिखना पसंद नहीं है और वे मानती हैं कि पुराने जमाने की तरह लड़कियों को बस थोड़ी-बहुत शिक्षा ही मिलनी चाहिए।
- गोपाल प्रसाद को कैसी बहू चाहिए थी?
उत्तर – गोपाल प्रसाद को एक ऐसी बहू चाहिए थी जो खूबसूरत हो, घर के काम-काज जानती हो, लेकिन ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो, अर्थात मुश्किल से मैट्रिक पास हो।
- उमा ने अपनी चुप्पी कब और क्यों तोड़ी?
उत्तर – जब गोपाल प्रसाद उमा से अपमानजनक सवाल पूछने लगे और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने लगे, तब उमा ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपनी शिक्षा तथा विचारों को दृढ़ता से व्यक्त किया।
- उमा ने लड़के वालों के सामने कौन-सा गीत गाया?
उत्तर – उमा ने लड़के वालों के सामने सितार के साथ मीरा का प्रसिद्ध भजन “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई” गाया।
- रामस्वरूप ने उमा के चश्मे के बारे में क्या बहाना बनाया?
उत्तर – रामस्वरूप ने बहाना बनाया कि पिछले महीने उमा की आँखें दुखने आ गई थीं, जिस वजह से उसे कुछ दिनों के लिए चश्मा लगाना पड़ रहा है।
- गोपाल प्रसाद लड़कियों की पढ़ाई के बारे में क्या राय रखते थे?
उत्तर – गोपाल प्रसाद का मानना था कि ऊँची तालीम सिर्फ मर्दों के लिए है और अगर औरतें भी अंग्रेजी अखबार पढ़कर राजनीति पर बहस करने लगेंगी तो गृहस्थी नहीं चल पाएगी।
- उमा ने अपनी तुलना किससे की और क्यों?
उत्तर – उमा ने अपनी तुलना बेची जाने वाली कुर्सी-मेज से की क्योंकि जिस तरह ग्राहक सामान को जाँच-परखकर खरीदता है, उसी तरह लड़के वाले उससे हर तरह के सवाल पूछकर उसे तौल रहे थे।
- उमा ने शंकर की कौन-सी पोल खोली?
उत्तर – उमा ने यह पोल खोली कि शंकर पिछले फरवरी में लड़कियों के हॉस्टल के पास घूमते हुए पकड़ा गया था और डर के मारे नौकरानी के पैरों में पड़कर वहाँ से भागा था।
- “बाप सेर है, तो लड़का सवा सेर” यह संवाद किसके लिए और क्यों कहा गया है?
उत्तर – यह संवाद प्रेमा के पति रामस्वरूप ने गोपाल प्रसाद और उनके बेटे शंकर के लिए कहा था, क्योंकि दोनों ही पिछड़ी सोच और चालाकी में एक-दूसरे से बढ़कर थे।
- रामस्वरूप की क्या विवशता थी?
उत्तर – रामस्वरूप की विवशता यह थी कि वे अपनी पढ़ी-लिखी बेटी के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूँढ़ने के लिए समाज की पिछड़ी सोच के सामने झुकने और झूठ बोलने पर मजबूर थे।
- एकांकी के अंत में उमा रोने क्यों लगती है?
उत्तर – रिश्ता टूट जाने और अपने माता-पिता को अपनी वजह से दुखी देखकर उमा की मुखरता और गुस्सा सिसकियों में बदल जाता है और वह रोने लगती है।
- गोपाल प्रसाद को किस बात पर गुस्सा आया और उन्होंने क्या किया?
उत्तर – जब गोपाल प्रसाद को यह पता चला कि उमा बी.ए. पास है, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और वे रामस्वरूप पर झूठ बोलने व धोखा देने का आरोप लगाकर अपने बेटे के साथ वहाँ से चले गए।
- इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर – इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य समाज में स्त्रियों की शिक्षा के प्रति दोहरी मानसिकता रखने वाले लोगों पर प्रहार करना और स्त्रियों के सम्मान व उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता लाना है।
- रतन कौन था और वह मक्खन लाने में देरी क्यों कर देता है?
उत्तर – रतन रामस्वरूप का नौकर था। वह मक्खन लाने में इसलिए देरी कर देता है क्योंकि घर में मेहमानों के आने की हड़बड़ी में उसे एक के बाद एक कई काम सौंप दिए जाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – नाटक में रामस्वरूप उमा के विवाह के लिए क्या तैयारी करते हैं?
उत्तर – रामस्वरूप कमरे को सजाते हैं, तख्त बिछवाते हैं, हारमोनियम और सितार मँगवाते हैं। वे प्रेमा से उमा को तैयार करने को कहते हैं, नाश्ता तैयार करवाते हैं और रतन से मक्खन लाने भेजते हैं, ताकि गोपाल प्रसाद और शंकर को प्रभावित कर सकें।
- प्रश्न – प्रेमा उमा के व्यवहार से क्यों परेशान है?
उत्तर – प्रेमा उमा के मुँह फुलाने और पाउडर न लगाने से परेशान है। वह मानती है कि लड़की को सजना चाहिए, अन्यथा विवाह नहीं होगा। प्रेमा पुराने जमाने की सादगी पसंद करती है और उमा की पढ़ाई को जिम्मेदार ठहराती है।
- प्रश्न – गोपाल प्रसाद अपने जमाने की तुलना आज से कैसे करते हैं?
उत्तर – गोपाल प्रसाद कहते हैं कि उनके जमाने में लड़के मजबूत थे, ज्यादा खाते थे, लंबे समय पढ़ते थे। आजकल के लड़के कमजोर हैं। वे मैट्रिक की अंग्रेजी को एम.ए. से बेहतर बताते हैं और पुरानी जीवनशैली की तारीफ करते हैं।
- प्रश्न – उमा गोपाल प्रसाद और शंकर के सामने कैसे व्यवहार करती है?
उत्तर – उमा पान लेकर आती है, सितार बजाती और गीत गाती है। लेकिन जब पूछताछ होती है, वह चुप रहती है। अंत में वह खुलकर विरोध करती है, खुद को वस्तु की तरह बेचे जाने का आरोप लगाती है और शंकर के अतीत का खुलासा करती है।
- प्रश्न – रतन की भूमिका नाटक में क्या है?
उत्तर – रतन रामस्वरूप का नौकर है, जो मूर्खतापूर्ण गलतियाँ करता है जैसे चद्दर को धोती समझना। वह सामान लाता है, मक्खन लाने जाता है और अंत में मक्खन लेकर आता है, जो हास्य पैदा करता है और नाटक को हल्का बनाता है।
- प्रश्न – गोपाल प्रसाद खूबसूरती पर टैक्स का मजाक क्यों करते हैं?
उत्तर – गोपाल प्रसाद मजाक में कहते हैं कि सरकार को खूबसूरती पर टैक्स लगाना चाहिए, जहाँ औरतें खुद अपना स्टैंडर्ड तय करें। इससे आमदनी बढ़ेगी और कोई शिकायत नहीं करेगी। यह उनके रूढ़िवादी विचारों और हास्य का उदाहरण है।
- प्रश्न – रामस्वरूप उमा की शिक्षा के बारे में क्या झूठ बोलते हैं?
उत्तर – रामस्वरूप गोपाल प्रसाद से कहते हैं कि उमा सिर्फ मैट्रिक पास है, जबकि वह बी.ए. पास है। वे चश्मे को आँखों की अस्थायी समस्या बताते हैं और पढ़ाई से इनकार करते हैं, ताकि विवाह तय हो सके।
- प्रश्न – शंकर का चरित्र कैसा दर्शाया गया है?
उत्तर – शंकर शर्मीला, झुकी कमर वाला और कायर दिखाया गया है। वह बातों में हकलाता है, उमा को छिपकर देखता है। उमा उसके हॉस्टल घूमने और भगाए जाने का खुलासा करती है, जो उसकी कमजोरी को उजागर करता है।
- प्रश्न – नाटक में हास्य के स्रोत क्या हैं?
उत्तर – हास्य रतन की मूर्खताओं, रामस्वरूप की हँसी, प्रेमा की शिकायतों, गोपाल प्रसाद के पुराने जमाने की तारीफ और मक्खन की देरी से आता है। रामस्वरूप का ग्रामोफोन वाला मजाक और गोपाल का टैक्स मजाक भी हास्य जोड़ते हैं।
- प्रश्न – नाटक का अंत कैसे होता है?
उत्तर – गोपाल प्रसाद और शंकर गुस्से में चले जाते हैं। उमा रोने लगती है, प्रेमा उसे सांत्वना देती है। रतन मक्खन लेकर आता है, सब उसकी ओर देखते हैं और परदा गिरता है, जो व्यंग्यपूर्ण और हास्यपूर्ण मोड़ देता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – नाटक “रीढ़ की हड्डी” समाज की किस समस्या पर व्यंग्य करता है?
उत्तर – नाटक विवाह व्यवस्था में लड़कियों को वस्तु की तरह देखने की रूढ़िवादिता पर व्यंग्य करता है। गोपाल प्रसाद जैसे लोग कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहते हैं, जबकि उमा जैसी शिक्षित लड़की अपना सम्मान बचाती है। यह पुरुषों की कायरता और महिलाओं की स्वतंत्रता पर जोर देता है, साथ ही शिक्षा के महत्त्व को उजागर करता है। हास्य के माध्यम से समाज की दोहरी मानसिकता को चित्रित किया गया है।
- प्रश्न – उमा के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं और वह नाटक में कैसे परिवर्तन दिखाती है?
उत्तर – उमा शिक्षित, स्वतंत्र और साहसी है। शुरू में वह शर्मीली और चुप रहती है, लेकिन पूछताछ से तंग आकर खुलकर बोलती है। वह खुद को कुर्सी-मेज की तरह बेचे जाने का विरोध करती है, शंकर के अतीत का खुलासा करती है। यह परिवर्तन उसकी आंतरिक शक्ति और रीढ़ की हड्डी को दर्शाता है, जो नाटक का मुख्य संदेश है।
- प्रश्न – रामस्वरूप और प्रेमा के बीच संबंध कैसा है और वे उमा की शिक्षा पर कैसे सोचते हैं?
उत्तर – रामस्वरूप और प्रेमा पति-पत्नी हैं, जहाँ रामस्वरूप व्यावहारिक और हास्यप्रिय है, प्रेमा व्यस्त और पुराने विचारों वाली। रामस्वरूप उमा की शिक्षा का समर्थन करते हैं लेकिन विवाह के लिए छिपाते हैं। प्रेमा शिक्षा को जंजाल मानती है और पुराने जमाने की सरल पढ़ाई को बेहतर बताती है। उनका संबंध सहयोगी है लेकिन बहस भरा।
- प्रश्न – गोपाल प्रसाद का चरित्र नाटक में कैसे रूढ़िवादी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है?
उत्तर – गोपाल प्रसाद रूढ़िवादी हैं, जो लड़कियों को कम पढ़ी-लिखी और घरेलू चाहते हैं। वे पुरुषों को श्रेष्ठ मानते हैं, जैसे मोर के पंख या शेर के बाल। वे शिक्षा को सिर्फ पुरुषों के लिए मानते हैं और खूबसूरती को महत्त्व देते हैं। उमा के विरोध से वे गुस्सा हो जाते हैं, जो समाज की पुरानी सोच को उजागर करता है।
- प्रश्न – नाटक में हास्य और व्यंग्य का उपयोग कैसे किया गया है?
उत्तर – हास्य रतन की गलतियों, रामस्वरूप की हँसी, गोपाल के मजाकों और मक्खन की देरी से आता है। व्यंग्य विवाह की जांच-पड़ताल, शिक्षा के दोहरे मापदंड और पुरुषों की कमजोरी पर है। उमा का विरोध व्यंग्यपूर्ण है, जो समाज की रूढ़ियों को उजागर करता है। यह मिश्रण नाटक को मनोरंजक और विचारोत्तेजक बनाता है।

