डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम – लेखक परिचय
भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के 11वें राष्ट्रपति रहे। डॉ. कलाम की मिसाइलमैन एवं पीपुल प्रेसिडेंट के रूप में पहचान रही है। बच्चों और युवाओं के अतिशय प्रिय डॉ. कलाम ने कई पुस्तकों का लेखन किया है जिनमें उनकी बहुचर्चित आत्मकथा- अग्नि की उड़ान (विंग्स ऑफ फायर), इग्नाइटेड माइंड्स, इण्डिया 2020 चर्चित कृतियां रही हैं। प्रस्तुत लेख में डॉ. कलाम ने प्राचीन ज्ञानवान समाज से लेकर विकसित भारत के स्वरूप और चुनौतियों पर प्रकाश डाला है।
पाठ परिचय – विकसित भारत का स्वप्न
चर्चित वैज्ञानिक एवं राष्ट्र के 11वें राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के विचारों पर आधारित इस लेख में डॉ. कलाम द्वारा राष्ट्र को अपनी क्षमताओं के पहचानने की प्रक्रिया को रेखांकित किया गया है जिससे कि विकसित भारत स्वप्न के रूप में न होकर एक विकसित देश की वास्तविकता के स्वरूप में हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन सके।
विकसित भारत का स्वप्न
प्राचीन भारत एक ज्ञानवान समाज था। कालांतर में हमलों और औपनिवेशिक शासन ने इसकी संस्थाओं को नष्ट कर दिया तथा इसकी योग्यता को चौपट कर डाला। इसकी जनता का अस्तित्व निचले स्तरों तक सिमटकर रह गया। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तब तक हमारे युवाओं ने अपने लक्ष्य धूल-धुसरित कर लिए थे और वे साधारण जीवन से ही संतुष्ट हो जाया करते थे। भारत मूलतः ज्ञान की भूमि है और उसे अपने इस पहलू की नए सिरे से खोज करनी चाहिए। एक बार यह खोज कर ली गई तो जीवन की गुणवत्ता तथा विकसित राष्ट्र की ताकत और संप्रुभता को प्राप्त करने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
ज्ञान के कई रूप होते हैं और यह कई स्थानों पर उपलब्ध होता है। इसे शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी तथा अनुभव के जरिए प्राप्त किया जा सकता है। यह शैक्षिक संस्थानों में अध्यापकों के पास, पुस्तकालयों में, शोध पत्रों में, गोष्ठियों तथा विभिन्न संगठनों में और कार्यस्थलों में कर्मियों, प्रबंधकों, ड्राइंग, प्रक्रिया दस्तावेजों और यहां तक कि दुकानों तक में होता है। हालाँकि ज्ञान का शिक्षा से करीबी नाता है। लेकिन यह कलाकारों, दस्तकारों, हकीमों, वैद्यों, दार्शनिकों और संतों तथा यहां तक कि हमारी गृहणियों के पास मौजूद कौशलों से भी प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान इन सभी के प्रदर्शन तथा कार्य-उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारी विरासत और इतिहास, कर्मकांड, महाकांड और वे परंपराएँ, जो हमारी चेतना का हिस्सा हैं, ये सब दरअसल, पुस्तकालयों तथा विश्वविद्यालयों की ही तरह ज्ञान के विशाल स्रोत हैं। हमारे गाँवों में गैर- पुरातनपंथी और दुनियावी समझदारों की भरमार है। हमारे वातावरण में, महासागरों में, जैव-संरक्षण और रेगिस्तानों में तथा पेड़-पौधों और पशु-जीवन तक में ज्ञान भंडार छिपे हैं। हमारे देश के हर राज्य में ज्ञानवान् समाज के लिए उसकी अपनी अनूठी और अद्भुत क्षमता मौजूद है।
ज्ञान हमेशा से समृद्धि और ताकत का स्रोत रहा है। यही कारण है कि दुनिया भर में ज्ञान की प्राप्ति पर जोर दिया जाता रहा है। भारत में तो ज्ञान को आपस में बाँटने की संस्कृति रही है और इसके लिए गुरु-शिष्य परंपरा के अलावा पड़ोसी देशों से, नालंदा तथा ज्ञान के अन्य केंद्रों की ख्याति से प्रभावित होकर यहां आए यात्रियों के जरिए इसके प्रचार-प्रसार की भी परंपरा रही है। भारत कहीं-कहीं प्राकृतिक तथा प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टि से कई मायने में लाभ की स्थिति में है; लेकिन ऐसे क्षेत्र अलग-थलग हैं और उनके बारे में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। पिछली शताब्दी के दौरान यह विश्व मानव श्रम-आधारित कृषि-समाज न रहकर औद्योगिक समाज बन गया, जिसमें प्रौद्योगिकी, पूंजी तथा श्रम का प्रबंध ही प्रतिस्पर्धात्मक लाभ दिला सकता है। इक्कीसवीं शताब्दी में एक नए समाज का उदय हो रहा है, जिसमें पूँजी और श्रम की बजाय ज्ञान ही प्राथमिक उत्पादन संसाधन है। पहले से मौजूद ज्ञान के इस आधार का कुशल इस्तेमाल हमारे लिए बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रगति के अन्य संकेतकों के रूप में पूँजी पैदा कर सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में हुई उन्नति का लाभ उठाते हुए कौशल और उत्पादकता को बढ़ाकर ज्ञान रूपी ढाँचागत तंत्र का निर्माण तथा उसका रख-रखाव ही इस समाज की समृद्धि बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। कोई देश ज्ञानवान् समाज की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं इसका पता इस प्रकार लगाया जा सकता है कि वह ज्ञान के सर्जन और उसके उचित इस्तेमाल के क्षेत्र में कैसा कार्य कर रहा है।
ज्ञानवान् समाज के दो महत्त्वपूर्ण अवयव सामाजिक बदलाव तथा धन निर्माण से प्रेरित होते हैं। सामाजिक बदलाव दरअसल, शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा, कृषि और शासन के क्षेत्र में आते हैं। ये ही रोजगार सर्जन, उच्च उत्पादकता तथा ग्रामीण समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेंगे। देश के लिए धन निर्माण के कार्य को राष्ट्रीय क्षमताओं से जोड़कर देखा जाना चाहिए तभी विकसित भारत के मिशन को सफल बनाया जा सकता है और इसमें आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए युवकों के अदम्य साहस, संकल्पशक्ति और सम्मिलित प्रयास की आवश्यकता है। कोई राष्ट्र अपने नागरिकों की सोचने-समझने के तौर-तरीकों से महान बनता है। खासकर भारत की युवा पीढ़ी महान उद्देश्य होना चाहिए, छोटे-छोटे लक्ष्यों में अपने आप को सीमित कर लेना गुनाह जैसा है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली छात्रों पर काम का बोझ बढ़ा रही है, किंतु यह उन्हें सपने देखने से वंचित न करे। यह उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाधक न बने। कठिन परिश्रम और लगन जीवन में खूबसूरत पैगाम लाते हैं जो हमेशा आपको सहयोग देते रहेंगे।
सन् 1960 के दशक में हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के दूरद्रष्टा वैज्ञानिक प्रो. विक्रम साराभाई ने एक ध्येय सामने रखा कि भारत को अपने संचार उपग्रह और दूर संवेदी उपग्रहों की रूपरेखा तैयार कर उन्हें खुद विकसित करना चाहिए, और भारत के प्राकृतिक संसाधनों के आंकलन के लिए उन्हें भारतीय जमीन से ध्रुवीय कक्षाओं में प्रक्षेपित करना चाहिए। आज उनके सपने सच हो गए. आज भारत किसी भी प्रकार की अंतरिक्ष प्रणाली के निर्माण में सक्षम है।
विकसित भारत महज एक सपना नहीं, जब यह सपना सच हो जाएगा तो इसका सबसे अधिक लाभ युवाओं को होगा। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि इस सपने को साकार करने में शुरू से ही युवा पीढ़ी को सहयोग करना चाहिए। उसे अपनी शैक्षिक और पारिवारिक सीमाओं में रहते हुए अपनी शोध यात्रा के अनुरूप बेहद अनोखे अंदाज में निभा सकते हैं। माता-पिता और बच्चों की टोली में यह चिंता उमड़ती-घुमड़ती रहती है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद कौन सा रोजगार मिलेगा, छोटी-मोटी बाधाओं से घबराए बिना जिस विषय का अध्ययन करते हैं यदि उसमें आपका प्रदर्शन उत्कृष्ट बना रहता है, तो इसके कोई शक नहीं कि आपकी संभावना और भविष्य जगमगाते रहेंगे।
रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं, किंतु जब कोई व्यक्ति बहुत ही खासमखास चाहत रखता है और कहता है कि उसे सिर्फ सरकारी नौकरी चाहिए तो काफी दिक्कतें आती हैं। यदि आप उद्यमशीलता, डिजाइन, उद्योग, अपने नए विचारों के साथ कृषि कार्य करने, सूचना प्रौद्योगिकी उत्पाद बनाने के बारे में सोच सकते हैं तो युवा पीढ़ी के सामने अनंत संभावनाएँ हैं। भावी युवा पीढ़ी के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वे ज्ञान और शारीरिक सहयोग के हथियार का उपयोग करते हुए सभी क्षेत्रों में सहयोग करने का मन बना लें।
एक विकसित राष्ट्र का बहुत ही महत्त्वपूर्ण पैमाना है उसका साक्षर स्तर सौ करोड़ लोगों को शिक्षित करना कोई खेल नहीं, यह लक्ष्य अपने सभी युवकों के सहयोग से ही प्राप्त किया जा सकता है, आप में से ऐसे बहुत से खुशनसीब हैं जो अच्छे स्कूल में पढ़कर स्तरीय शिक्षा ले रहे हैं किंतु बहुत से आपके भाई-बहनों को यह नसीब नहीं, खासकर जो आपके आस-पास के गाँवों में रहते हैं।
एक विकसित राष्ट्र की पहचान है कि उसमें अमीर-गरीब के भेद दृढ़तापूर्वक मिटा दिए जाएँ। इसका एक तरीका यह है कि आपका स्कूल आपके पड़ोस के एक गाँव को अपना ले और अपने प्रत्येक छुट्टियों के दिन उस गाँव में जाए और कम से कम दो लोगों को साक्षर बनाने में सहयोग देकर ज्ञान का दीप जलाए। इसके साथ ही बच्चे अपने विद्यालय परिसर या घर में दस पौधे लगा सकते हैं। जो आज से कुछ सालों के बाद हम सभी हरे-भरे परिवेश में काम कर सकेंगे, जिससे हमारे अंदर सृजनात्मक सोच और सक्रियता पनपेगी। छात्र बुजुगों, बीमारों और विशेष आवश्यकता वाले लोगों की देखभाल कर सकते हैं। ऐसे भद्र व्यवहार से विकास के लिए अनुकूल और शांतिपूर्ण माहौल तैयार हो सकेगा तो निष्ठापूर्ण कार्य हो सकेंगे और शत-प्रतिशत सफलता मिलेगी। यहां पर मुझे संत तिरुवल्लुवर की वो पंक्तियां याद आती हैं जो उन्होंने तिरुक्कुरल में बड़ी सुंदरता से कहा है- “सफलता और धन अपना मार्ग ढूँढ़ लेते हैं और उस व्यक्ति तक पहुँच जाते हैं, जिसमें वह दृढ़ इच्छाशक्ति और योजनाबद्ध लगन होती है। नसीब उस इंसान तक खुद चलकर आ जाता है, जिसमें अदम्य उत्साह और कभी न पस्त होने वाली हिम्मत होती है।”
विकसित भारत का स्वप्न – सारांश
प्राचीन भारत ज्ञानवान समाज था, लेकिन औपनिवेशिक शासन ने इसे नष्ट कर दिया। अब ज्ञान (शिक्षा, अनुभव, विरासत, प्रकृति से) को फिर से अपनाकर विकसित भारत बनाना है। 21वीं सदी में ज्ञान मुख्य संसाधन है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और समृद्धि लाएगा। युवाओं को उद्यमशीलता, ग्रामीण साक्षरता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवा से योगदान देना चाहिए। विक्रम साराभाई के अंतरिक्ष सपनों की तरह, दृढ़ इच्छा से विकसित भारत का स्वप्न साकार होगा।
शब्दार्थ
औपनिवेशिक – उपनिवेश में रहने वाला
अस्तित्व – सत्ता, विद्यमान होना;
संप्रभुता – सर्वप्रधान, जिसे संपूर्ण अधिकार प्राप्त हो, जैसे- राष्ट्र
प्रतिस्पर्धा – आगे बढ़ने की प्रवृत्ति
गुनाह – अपराध
पैगाम – संदेश
तंत्र – शासन प्रबंध, शासन की विशिष्ट प्रणाली
मिशन – उद्देश्य, कोई विशेष लक्ष्य अथवा ध्येय
सर्जन – रचना, निर्माण
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेजी अर्थ (English Meaning) |
औपनिवेशिक | विदेशी शासन वाला | Colonial |
धूल-धुसरित | धूल से ढका या भुला हुआ | Dust-covered |
संप्रुभता | कुशलता या दक्षता | Proficiency |
गोष्ठियों | सभाओं या चर्चाओं | Seminars |
दस्तकारों | कारीगरों | Craftsmen |
हकीमों | चिकित्सकों | Physicians |
वैद्यों | आयुर्वेद चिकित्सकों | Ayurvedic Doctors |
पुरातनपंथी | रूढ़िवादी | Conservative |
दुनियावी | सांसारिक या व्यावहारिक | Worldly |
ढाँचागत | संरचनात्मक | Structural |
अवयव | अंग या भाग | Components |
अदम्य | अटल या अजेय | Indomitable |
ध्येय | उद्देश्य | Objective |
रूपरेखा | योजना या डिजाइन | Blueprint |
उद्यमशीलता | उद्यम करने की क्षमता | Entrepreneurship |
निष्ठापूर्ण | समर्पित | Devoted |
तिरुक्कुरल | तमिल साहित्यिक ग्रंथ | Tirukkural |
साक्षर | पढ़ना-लिखना जानने वाला | Literate |
कर्मकांड | धार्मिक अनुष्ठान | Rituals |
महाकांड | बड़े धार्मिक आयोजन | Grand Ceremonies |
पाठ से
- ज्ञानवान समाज से लेखक का आशय क्या है?
उत्तर – ज्ञानवान समाज से लेखक का आशय एक ऐसे समाज से है, जहाँ ज्ञान ही पूँजी और श्रम की बजाय प्राथमिक उत्पादन संसाधन होता है। यह एक ऐसा समाज है जो ज्ञान के सृजन (निर्माण) और उसके कुशल इस्तेमाल (उपयोग) के आधार पर अपनी समृद्धि और विकास सुनिश्चित करता है।
- लेखक के अनुसार ज्ञान के कई रूप हैं जिसे शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी तथा अनुभव के जरिए कहां-कहां से प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर – लेखक के अनुसार, ज्ञान को शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी तथा अनुभव के जरिए कई स्थानों से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे –
शैक्षिक संस्थानों में अध्यापकों से
पुस्तकालयों और शोध पत्रों से
गोष्ठियों, संगठनों और कार्यस्थलों (कर्मियों, प्रबंधकों) से
कलाकारों, दस्तकारों, हकीमों, वैद्यों, दार्शनिकों, संतों और गृहणियों के कौशल से
हमारी विरासत, इतिहास, कर्मकांडों और परंपराओं से
गाँवों में मौजूद समझदारों से
प्रकृति (वातावरण, महासागरों, जैव-संरक्षण, पेड़-पौधों) से
- “भारत में ज्ञान बाँटने की संस्कृति रही है” का निहितार्थ क्या है?
उत्तर – इसका निहितार्थ यह है कि भारत की परंपरा ज्ञान को संजोकर रखने या छिपाने की नहीं, बल्कि उसे साझा करने की रही है। यह ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया गया, और नालंदा जैसे ज्ञान केन्द्रों के माध्यम से यहाँ आए विदेशी यात्रियों और विद्वानों के जरिए इसका विश्वभर में प्रचार-प्रसार भी हुआ।
- ज्ञानवान समाज के दो महत्त्वपूर्ण अवयव कौन-कौन से हैं इस पर अपने विचार रखें।
उत्तर – लेखक के अनुसार, ज्ञानवान समाज के दो महत्त्वपूर्ण अवयव सामाजिक बदलाव तथा धन निर्माण हैं। ये दोनों ही ज्ञान से प्रेरित होते हैं।
सामाजिक बदलाव का अर्थ है ज्ञान का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा, कृषि और शासन (Governance) को बेहतर बनाने में करना, जिससे रोजगार बढ़ता है और ग्रामीण समृद्धि आती है।
धन निर्माण का अर्थ है ज्ञान का उपयोग करके राष्ट्रीय क्षमताओं (जैसे प्रौद्योगिकी, उद्योग) को बढ़ाना, जिससे देश आर्थिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर बनता है।
- विकसित भारत के मिशन में आई चुनौतियों का किस तरह से सामना किया जा सकता है?
उत्तर – विकसित भारत के मिशन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए मुख्य रूप से देश के युवकों के अदम्य साहस, दृढ़ संकल्पशक्ति और सम्मिलित प्रयास (एकजुट होकर काम करने) की आवश्यकता है।
- आशय स्पष्ट कीजिए- “विकसित भारत महज एक सपना नहीं है।”
उत्तर – इसका आशय यह है कि ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य केवल एक कोरी कल्पना या असंभव सपना नहीं है, बल्कि यह एक प्राप्त किया जा सकने वाला लक्ष्य है। लेखक ने प्रो. विक्रम साराभाई का उदाहरण दिया, जिन्होंने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम का सपना देखा था, जो आज सच हो गया है। उसी प्रकार, यदि युवा पीढ़ी दृढ़ संकल्प करे तो विकसित भारत का सपना भी यथार्थ बन सकता है।
- “सफलता और धन अपना मार्ग ढूँढ लेते हैं संत तिरुवल्लुवर के इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – संत तिरुवल्लुवर के इस कथन का अर्थ है कि सफलता और समृद्धि (धन) उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त होती है जिनमें दो गुण होते हैं – पहला, दृढ़ इच्छाशक्ति (मजबूत संकल्प) और दूसरा, योजनाबद्ध लगन (योजना बनाकर लगातार मेहनत करना)। जिस व्यक्ति में ये गुण होते हैं, भाग्य और सफलता स्वयं उस तक पहुँच जाते हैं।
पाठ से आगे
- लेखक ने हमारे गाँवों में कई तरह के ज्ञान के भण्डारों की चर्चा की है? आपको अपने गाँव के लोगों में ऐसे किस तरह के ज्ञान की जानकारी मिलती है?
उत्तर – हमारे गाँव के लोगों में आज भी पारंपरिक और दुनियावी समझदारी का ज्ञान देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, बुजुर्गों को मौसम का मिजाज (हवा और बादलों को देखकर) पहचानने का अनुभव होता है। कई लोगों को स्थानीय जड़ी-बूटियों से सामान्य बीमारियों (जैसे सर्दी-खाँसी या चोट) के इलाज का ज्ञान (वैद्यों जैसा) होता है। इसके अलावा, बीजों को सहेजने, कम पानी में फसल उगाने और मिट्टी की गुणवत्ता पहचानने का पारंपरिक ज्ञान भी किसानों के पास होता है, जो किसी किताबी ज्ञान से कम नहीं है।
- प्राचीन भारतीय समाज में किस प्रकार के ज्ञान और कौशल उपलब्ध थे उनकी सूची बनाइए एवं उस पर अपने साथियों से चर्चा कीजिए।
उत्तर – प्राचीन भारतीय समाज में ज्ञान और कौशल के कई रूप उपलब्ध थे, जिनकी सूची निम्न प्रकार है –
खगोल विज्ञान – ग्रहों और नक्षत्रों की गति की सटीक गणना।
गणित – शून्य (0) का आविष्कार, दशमलव प्रणाली और बीजगणित।
आयुर्वेद (चिकित्सा) – जड़ी-बूटियों से जटिल रोगों का उपचार और शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का ज्ञान।
धातु विज्ञान – उन्नत लौह तकनीक (जैसे दिल्ली का लौह स्तंभ जिसमें आज तक जंग नहीं लगा)।
वास्तुकला – भव्य मंदिरों और नगरों का निर्माण (जैसे सिन्धु घाटी सभ्यता)।
दर्शन और साहित्य – वेद, उपनिषद और महाकाव्यों (रामायण, महाभारत) के रूप में गहरा दार्शनिक ज्ञान।
शिल्प कौशल – उत्तम कपड़ा बुनाई और दस्तकारी।
- अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर एक आलेख तैयार कीजिए।
उत्तर – अंतरिक्ष में भारत की ऊँची उड़ान भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रो. विक्रम साराभाई के स्वप्न को न केवल साकार किया है, बल्कि विश्व में अपनी एक विशिष्ट पहचान भी बनाई है। 1975 में अपने पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण से शुरू हुआ यह सफर आज नई ऊँचाइयों पर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पीएसएलवी (PSLV) और जीएसएलवी (GSLV) जैसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान (रॉकेट) विकसित कर लिए हैं, जिनसे हम न केवल अपने बल्कि दूसरे देशों के उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में भेज रहे हैं।
भारत की प्रमुख उपलब्धियों में चंद्रयान-1 (2008) शामिल है, जिसने चाँद पर पानी की खोज की। हमारा मंगलयान (2014) पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुँचने वाला दुनिया का पहला मिशन बना। हाल ही में, चंद्रयान-3 (2023) ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल सॉफ्ट-लैंडिंग करके इतिहास रच दिया, ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। आज भारत संचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अपने स्वयं के उपग्रहों (जैसे INSAT और RISAT श्रृंखला) पर पूरी तरह आत्मनिर्भर है।
- विकसित भारत के सम्बंध में डॉ. कलाम के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – डॉ. कलाम के लिए ‘विकसित भारत’ एक ऐसा स्वप्न था जिसका आधार ‘ज्ञानवान समाज’ था। उनका मानना था कि 21वीं सदी में ज्ञान ही सबसे बड़ी शक्ति है। वे चाहते थे कि भारत के युवा बड़े सपने देखें और छोटे लक्ष्यों को ‘गुनाह’ समझें। उनका विचार था कि शिक्षा केवल नौकरी पाने के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव (जैसे स्वास्थ्य, कृषि, शासन) लाने का माध्यम होनी चाहिए। वे युवाओं को सरकारी नौकरी की मानसिकता से निकालकर उद्यमशीलता (Entrepreneurship), डिजाइनिंग, उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नए विचार लाने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने युवाओं से राष्ट्र निर्माण में सीधा सहयोग करने का आह्वान किया, जैसे गाँवों को अपनाकर लोगों को साक्षर बनाना और पेड़ लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा करना।
भाषा के बारे में
- वर्तनी शुद्ध कर लिखिए
(1) विकसीत (2) मुलतः, (3) बुद्धी (4) दूकान, (5) प्राक्रतिक, (6) ओधोगिक, (7) परयाप्त, (8) स्तेमाल, (9) प्रतिधात्मक, (10) ऊत्पादन।
उत्तर – (1) विकसीत – विकसित (2) मुलतः – मूलतः (3) बुद्धी – बुद्धि (4) दूकान – दुकान (5) प्राक्रतिक – प्राकृतिक (6) ओधोगिक – औद्योगिक (7) परयाप्त – पर्याप्त (8) स्तेमाल – इस्तेमाल (9) प्रतिधात्मक – प्रतिस्पर्धात्मक (10) ऊत्पादन – उत्पादन
- संधि विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए-
पुस्तकालय – पुस्तक + आलय
दीर्घ स्वर संधि
विद्यालय, महर्षि, यद्यपि, अन्वय, रामायण, महेन्द्र, तथैव, परमेश्वर, पावन, पवन
उत्तर – विद्यालय = विद्या + आलय (दीर्घ स्वर संधि)
महर्षि = महा + ऋषि (गुण स्वर संधि)
यद्यपि = यदि + अपि (यण् स्वर संधि)
अन्वय = अनु + अय (यण् स्वर संधि)
रामायण = राम + अयन (दीर्घ स्वर संधि)
महेन्द्र = महा + इन्द्र (गुण स्वर संधि)
तथैव = तथा + एव (वृद्धि स्वर संधि)
परमेश्वर = परम + ईश्वर (गुण स्वर संधि)
पावन = पौ + अन (अयादि स्वर संधि)
पवन = पो + अन (अयादि स्वर संधि)
- निम्नांकित शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
(1) योजनाबद्ध, (2) उमड़ती -घुमड़ती (3) माता – पिता (4) श्रम – आधारित, (5) आपदा प्रबंधन
उत्तर – (1) योजनाबद्ध = योजना से बद्ध (करण तत्पुरुष समास)
(2) उमड़ती-घुमड़ती = उमड़ती और घुमड़ती (द्वन्द्व समास)
(3) माता-पिता = माता और पिता (द्वन्द्व समास)
(4) श्रम-आधारित = श्रम पर आधारित (अधिकरण तत्पुरुष समास)
(5) आपदा प्रबंधन = आपदा का प्रबंधन (संबंध तत्पुरुष समास)
- जब दो अलग-अलग वाक्य को जोड़कर एक संयुक्त वाक्य बनाना हो तो हम क्योंकि, चूँकि, इसलिए, बल्कि इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते हैं।
जैसे- (क) – उसका गृह कार्य अधूरा था।
संयुक्त वाक्य
(ख) – उसे शिक्षक की डाँट खानी पड़ी।
उसका गृह कार्य अधूरा था इसलिए उसे शिक्षक की डाँट खानी पड़ी।
इस तरह के योजक शब्दों की सहायता से निम्नांकित दो वाक्य के समूह को क्रम की उचित अदला-बदली के साथ संयुक्त वाक्य में बदलिए-
(क) (i) बारिश हो रही थी।
(ii) वे नहीं आ सके।
(i) बारिश हो रही थी। (ii) वे नहीं आ सके। संयुक्त वाक्य – बारिश हो रही थी, इसलिए वे नहीं आ सके।
(ख) (i) वस्तुएँ महँगी थीं।
(ii) वे नहीं खरीद सके।
(i) वस्तुएँ महँगी थीं। (ii) वे नहीं खरीद सके। संयुक्त वाक्य – वस्तुएँ महँगी थीं, इसलिए वे नहीं खरीद सके।
(ग) (i) भोजन हमेशा संतुलित मात्रा में करना लाभदायक होता है।
(ii) ज्यादा मात्रा में भोजन करना रोगों को दावत देना है।
(i) भोजन हमेशा संतुलित मात्रा में करना लाभदायक होता है। (ii) ज्यादा मात्रा में भोजन करना रोगों को दावत देना है। संयुक्त वाक्य – भोजन हमेशा संतुलित मात्रा में करना लाभदायक होता है, क्योंकि ज्यादा मात्रा में भोजन करना रोगों को दावत देना है।
(घ) (i) वह डर गया था।
(ii) वह बोल नहीं पा रहा था।
(i) वह डर गया था। (ii) वह बोल नहीं पा रहा था। संयुक्त वाक्य – वह डर गया था, इसलिए वह बोल नहीं पा रहा था।
(ङ) (i) सामान बहुत वजनी था। (ii) वह उठा नहीं पा रहा था।
(i) सामान बहुत वजनी था। (ii) वह उठा नहीं पा रहा था। संयुक्त वाक्य – सामान बहुत वजनी था, इसलिए वह उठा नहीं पा रहा था।
- पाठ में से सरल वाक्य, संयुक्त वाक्य व मिश्र वाक्यों के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर – सरल वाक्य –
प्राचीन भारत एक ज्ञानवान समाज था।
ज्ञान हमेशा से समृद्धि और ताकत का स्रोत रहा है।
विकसित भारत महज एक सपना नहीं।
संयुक्त वाक्य – (जो ‘और’, ‘तथा’, ‘किंतु’, ‘लेकिन’ आदि से जुड़े हों)
कालांतर में हमलों और औपनिवेशिक शासन ने इसकी संस्थाओं को नष्ट कर दिया तथा इसकी योग्यता को चौपट कर डाला।
हमारे युवाओं ने अपने लक्ष्य धूल-धुसरित कर लिए थे और वे साधारण जीवन से ही संतुष्ट हो जाया करते थे।
रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं, किंतु जब कोई व्यक्ति बहुत ही खासमखास चाहत रखता है… तो काफी दिक्कतें आती हैं।
मिश्र वाक्य – (जो ‘कि’, ‘जो’, ‘जब’, ‘तब’, ‘यदि’, ‘तो’, ‘जैसा’ आदि से जुड़े हों)
जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तब तक हमारे युवाओं ने अपने लक्ष्य धूल-धुसरित कर लिए थे।
यही कारण है कि दुनिया भर में ज्ञान की प्राप्ति पर जोर दिया जाता रहा है।
यदि आप उद्यमशीलता… के बारे में सोच सकते हैं तो युवा पीढ़ी के सामने अनंत संभावनाएँ हैं।
योग्यता विस्तार
- डॉ. कलाम के विद्यार्थी जीवन के बारे में पता कर एक लेख तैयार कीजिए।
उत्तर – डॉ. कलाम – एक प्रेरणादायी विद्यार्थी जीवन डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का विद्यार्थी जीवन सादगी, परिश्रम और दृढ़ संकल्प की एक मिसाल है। उनका जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उन्हें बचपन में ही संघर्ष करना पड़ा। वे सुबह जल्दी उठकर गणित की ट्यूशन पढ़ते थे और उसके बाद अपने चचेरे भाई के साथ अख़बार बाँटने का काम करते थे, ताकि वे अपनी स्कूल की फीस भर सकें। वे पढ़ाई में अत्यधिक मेधावी थे और गणित तथा भौतिकी उनके प्रिय विषय थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम में पूरी करने के बाद, उन्होंने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से भौतिकी में स्नातक (B.Sc.) किया। इसके बाद 1955 में, उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उनके विद्यार्थी जीवन का यह संघर्ष ही था जिसने उन्हें इतना मजबूत बनाया कि वे आगे चलकर भारत के ‘मिसाइल मैन’ और राष्ट्रपति बने।
- छत्तीसगढ़ में डॉ. कलाम का आगमन हुआ था। उस समय उनके द्वारा छत्तीसगढ़ पर एक कविता लिखी गई थी, इसे खोजकर लिखिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्राचीन भारत को क्या कहा गया है?
a) कृषि प्रधान
b) ज्ञानवान समाज
c) औद्योगिक समाज
d) गरीब समाज उत्तर –
b) ज्ञानवान समाज
औपनिवेशिक शासन ने भारत की क्या नष्ट कर दिया?
a) अर्थव्यवस्था
b) संस्थाओं और योग्यता को
c) संस्कृति
d) भाषा
उत्तर – b) संस्थाओं और योग्यता को
ज्ञान मुख्य रूप से कहाँ से प्राप्त होता है?
a) केवल पुस्तकालयों से
b) शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी, अनुभव से
c) केवल बाजार से
d) केवल सेना से
उत्तर – b) शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी, अनुभव से
भारत में ज्ञान बाँटने की क्या परंपरा रही है?
a) गुरु-शिष्य परंपरा
b) केवल युद्ध
c) केवल व्यापार
d) केवल कृषि
उत्तर – a) गुरु-शिष्य परंपरा
21वीं सदी में मुख्य उत्पादन संसाधन क्या है?
a) पूँजी
b) श्रम
c) ज्ञान
d) भूमि
उत्तर – c) ज्ञान
ज्ञानवान समाज की कसौटी क्या है?
a) धन संचय
b) ज्ञान सर्जन और उपयोग
c) सेना
d) कृषि
उत्तर – b) ज्ञान सर्जन और उपयोग
ज्ञानवान समाज के दो मुख्य अवयव क्या हैं?
a) युद्ध और शांति
b) सामाजिक बदलाव और धन निर्माण
c) खेल और कला
d) व्यापार और उद्योग
उत्तर – b) सामाजिक बदलाव और धन निर्माण
सामाजिक बदलाव के क्षेत्र कौन-से हैं?
a) शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शासन
b) केवल युद्ध
c) केवल व्यापार
d) केवल खेल
उत्तर – a) शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शासन
विकसित भारत के लिए युवाओं में क्या आवश्यक है?
a) साधारण जीवन
b) अदम्य साहस और संकल्प
c) छोटे लक्ष्य
d) नौकरी की चिंता
उत्तर – b) अदम्य साहस और संकल्प
विक्रम साराभाई ने 1960 के दशक में क्या ध्येय रखा?
a) सड़क निर्माण
b) अंतरिक्ष उपग्रह विकसित करना
c) केवल कृषि
d) व्यापार
उत्तर – b) अंतरिक्ष उपग्रह विकसित करना
आज भारत किसमें सक्षम है?
a) केवल कृषि
b) अंतरिक्ष प्रणाली निर्माण
c) केवल व्यापार
d) केवल खेल
उत्तर – b) अंतरिक्ष प्रणाली निर्माण
युवाओं को किससे बचना चाहिए?
a) बड़े सपनों से
b) छोटे लक्ष्यों से
c) शिक्षा से
d) परिवार से
उत्तर – b) छोटे लक्ष्यों से
युवाओं के लिए संभावनाएँ कौन-सी हैं?
a) केवल सरकारी नौकरी
b) उद्यमशीलता, डिजाइन, आईटी
c) केवल कृषि
d) केवल खेल
उत्तर – b) उद्यमशीलता, डिजाइन, आईटी
विकसित राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण पैमाना क्या है?
a) सेना
b) साक्षर स्तर
c) व्यापार
d) खेल
उत्तर – b) साक्षर स्तर
सौ करोड़ लोगों को शिक्षित करने के लिए क्या चाहिए?
a) केवल सरकार
b) युवाओं का सहयोग
c) केवल धन
d) केवल मशीनें
उत्तर – b) युवाओं का सहयोग
अमीर-गरीब भेद मिटाने का तरीका क्या है?
a) युद्ध
b) गाँव अपनाकर साक्षरता
c) केवल व्यापार
d) केवल खेल
उत्तर – b) गाँव अपनाकर साक्षरता
छात्र क्या कर सकते हैं?
a) केवल पढ़ाई
b) पौधे लगाना, बुजुर्गों की देखभाल
c) केवल खेल
d) केवल व्यापार
उत्तर – b) पौधे लगाना, बुजुर्गों की देखभाल
संत तिरुवल्लुवर ने क्या कहा?
a) धन महत्त्वपूर्ण है
b) दृढ़ इच्छाशक्ति से सफलता आती है
c) युद्ध जीतो
d) सो जाओ
उत्तर – b) दृढ़ इच्छाशक्ति से सफलता आती है
वर्तमान शिक्षा प्रणाली क्या न करे?
a) बोझ बढ़ाए
b) सपने देखने से रोके
c) पढ़ाए
d) खेलने दे
उत्तर – b) सपने देखने से रोके
विकसित भारत का लाभ किसे सबसे अधिक मिलेगा?
a) बुजुर्गों को
b) युवाओं को
c) विदेशियों को
d) जानवरों को
उत्तर – b) युवाओं को
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्राचीन भारत को ज्ञानवान समाज क्यों कहा गया है?
उत्तर – प्राचीन भारत को ज्ञानवान समाज इसलिए कहा गया है क्योंकि यहाँ ज्ञान, शिक्षा, दर्शन और विज्ञान का अत्यधिक विकास हुआ था और लोग विद्या तथा संस्कृति में समृद्ध थे। - औपनिवेशिक शासन ने भारत को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर – औपनिवेशिक शासन ने भारत की संस्थाओं को नष्ट कर दिया, उसकी योग्यता को चौपट कर दिया और जनता का आत्मविश्वास कम कर दिया। - अंग्रेजों के जाने के बाद भारतीय युवाओं की स्थिति कैसी थी?
उत्तर – अंग्रेजों के जाने के बाद भारतीय युवाओं ने अपने बड़े लक्ष्य भुला दिए थे और वे साधारण जीवन से ही संतुष्ट हो जाया करते थे। - भारत को अपने किस पहलू की पुनः खोज करनी चाहिए?
भा उत्तर – रत को अपने ज्ञान-प्रधान पहलू की पुनः खोज करनी चाहिए क्योंकि वही उसकी असली शक्ति है। - ज्ञान प्राप्त करने के प्रमुख माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर – ज्ञान शिक्षा, सूचना, बुद्धिमत्ता और अनुभव के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। - ज्ञान केवल शिक्षण संस्थानों में ही क्यों सीमित नहीं है?
उत्तर – ज्ञान केवल शिक्षण संस्थानों में सीमित नहीं है, बल्कि यह कलाकारों, दस्तकारों, वैद्यों, गृहिणियों और समाज के हर वर्ग के अनुभव में मौजूद है। - भारत की विरासत और परंपराएँ किस प्रकार ज्ञान के स्रोत हैं?
उत्तर – भारत की विरासत, इतिहास, कर्मकांड और महाकाव्य हमारी चेतना का हिस्सा हैं और ये सब ज्ञान के विशाल स्रोत हैं। - ज्ञान को समृद्धि और ताकत का स्रोत क्यों कहा गया है?
उत्तर – ज्ञान को समृद्धि और ताकत का स्रोत इसलिए कहा गया है क्योंकि इसके माध्यम से समाज में विकास, उत्पादन और नवाचार संभव होता है। - भारत में ज्ञान बाँटने की कौन-सी परंपरा रही है?
उत्तर – भारत में ज्ञान बाँटने की परंपरा गुरु-शिष्य परंपरा तथा नालंदा जैसे ज्ञान-केंद्रों के माध्यम से रही है। - इक्कीसवीं शताब्दी के समाज की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर – इक्कीसवीं शताब्दी का समाज ज्ञान-आधारित समाज है, जहाँ पूँजी और श्रम की बजाय ज्ञान ही सबसे बड़ा उत्पादन संसाधन है। - ज्ञानवान समाज की कसौटी क्या मानी गई है?
उत्तर – ज्ञानवान समाज की कसौटी यह है कि वह ज्ञान के सर्जन और उसके उचित उपयोग के क्षेत्र में कितना अच्छा कार्य कर रहा है। - सामाजिक बदलाव किन क्षेत्रों से प्रेरित होता है?
उत्तर – सामाजिक बदलाव शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और शासन के क्षेत्रों से प्रेरित होता है। - विकसित भारत के मिशन को सफल बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर – विकसित भारत के मिशन को सफल बनाने के लिए युवाओं के अदम्य साहस, संकल्पशक्ति और सम्मिलित प्रयास की आवश्यकता है। - युवाओं को छोटे लक्ष्यों में सीमित न रहने की बात क्यों कही गई है?
युवाओं को छोटे लक्ष्यों में सीमित न रहने की बात इसलिए कही गई है क्योंकि महान उद्देश्य ही राष्ट्र को महान बनाते हैं। - विक्रम साराभाई का भारत के लिए क्या सपना था?
उत्तर – विक्रम साराभाई का सपना था कि भारत अपने संचार और दूर संवेदी उपग्रहों को स्वयं विकसित करे और उन्हें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करे। - विकसित भारत के निर्माण में युवाओं की क्या भूमिका है?
उत्तर – विकसित भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे ज्ञान, ऊर्जा और नए विचारों से राष्ट्र को आगे बढ़ा सकते हैं। - रोजगार के अवसर पाने के लिए युवाओं को क्या करना चाहिए?
उत्तर – युवाओं को उद्यमशीलता, डिजाइन, उद्योग, कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नए विचारों के साथ कार्य करना चाहिए। - साक्षरता बढ़ाने के लिए छात्रों को क्या करना चाहिए?
उत्तर – छात्रों को अपने स्कूल के आस-पास के गाँव को गोद लेकर वहाँ के लोगों को साक्षर बनाने में सहयोग करना चाहिए। - छात्रों को पर्यावरण के लिए क्या योगदान देना चाहिए?
उत्तर – छात्रों को अपने विद्यालय या घर के आसपास दस पौधे लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा बनाने में योगदान देना चाहिए। - संत तिरुवल्लुवर की पंक्तियों से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – संत तिरुवल्लुवर की पंक्तियाँ हमें यह सिखाती हैं कि सफलता और धन उसी व्यक्ति के पास पहुँचते हैं जिसमें दृढ़ इच्छाशक्ति, लगन और कभी न हार मानने वाला उत्साह होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – प्राचीन भारत की विशेषता क्या थी और औपनिवेशिक शासन ने क्या किया?
उत्तर – प्राचीन भारत ज्ञानवान समाज था। औपनिवेशिक शासन ने संस्थाओं को नष्ट कर दिया, योग्यता चौपट कर दी और जनता को निचले स्तर पर सिमटा दिया। युवाओं के लक्ष्य धूल-धुसरित हो गए, वे साधारण जीवन से संतुष्ट हो गए।
- प्रश्न – ज्ञान के स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर – ज्ञान शिक्षा, सूचना, बुद्धिमानी, अनुभव से प्राप्त होता है। यह संस्थानों, पुस्तकालयों, शोध पत्रों, विरासत, परंपराओं, गाँवों के समझदारों, प्रकृति, पेड़-पौधों और पशु-जीवन में छिपा है। कलाकारों, दस्तकारों, वैद्यों और गृहणियों के कौशलों में भी मौजूद है।
- प्रश्न – भारत में ज्ञान बाँटने की परंपरा क्या रही है?
उत्तर – गुरु-शिष्य परंपरा से ज्ञान बाँटा जाता रहा। नालंदा जैसे केंद्रों से प्रभावित विदेशी यात्री भी ज्ञान लेकर-देकर जाते थे। यह संस्कृति ज्ञान के प्रचार-प्रसार का आधार रही।
- प्रश्न – 21वीं सदी का समाज कैसा है?
उत्तर – 21वीं सदी में ज्ञान मुख्य उत्पादन संसाधन है, न कि पूँजी या श्रम। मौजूदा ज्ञान का कुशल उपयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रगति लाएगा। कौशल और उत्पादकता बढ़ाकर ज्ञान ढाँचा बनाना समृद्धि का आधार है।
- प्रश्न – ज्ञानवान समाज के अवयव क्या हैं?
उत्तर – सामाजिक बदलाव (शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शासन) और धन निर्माण। ये रोजगार, उत्पादकता और ग्रामीण समृद्धि लाएँगे। राष्ट्रीय क्षमताओं से जोड़कर युवाओं के साहस से विकसित भारत बनेगा।
- प्रश्न – युवाओं की भूमिका क्या होनी चाहिए?
उत्तर – युवा बड़े उद्देश्यों अपनाएँ, छोटे लक्ष्यों से बचें। उद्यमशीलता, डिजाइन, आईटी, कृषि में नए विचार लाएँ। ग्रामीण साक्षरता, पौधरोपण, बुजुर्ग सेवा से योगदान दें। दृढ़ इच्छाशक्ति से सफलता मिलेगी।
- प्रश्न – विक्रम साराभाई का ध्येय क्या था?
उत्तर – 1960 के दशक में उन्होंने संचार और दूर संवेदी उपग्रह विकसित करने, प्राकृतिक संसाधनों के आकलन के लिए ध्रुवीय कक्षाओं में प्रक्षेपण का ध्येय रखा। आज भारत सभी अंतरिक्ष प्रणालियों में सक्षम है।
- प्रश्न – शिक्षा प्रणाली में क्या सुधार चाहिए?
उत्तर – वर्तमान शिक्षा बोझ बढ़ाती है, लेकिन सपने देखने से न रोके। ज्ञान प्राप्ति में बाधक न बने। कठिन परिश्रम और लगन से जीवन में सफलता मिलेगी। उत्कृष्ट प्रदर्शन से भविष्य उज्ज्वल होगा।
- प्रश्न – अमीर-गरीब भेद मिटाने का तरीका क्या है?
उत्तर – स्कूल गाँव अपनाए, छुट्टियों में दो लोगों को साक्षर बनाए। बच्चे दस पौधे लगाएँ, बुजुर्गों-बीमारों की देखभाल करें। इससे शांतिपूर्ण माहौल बनेगा, निष्ठापूर्ण कार्य होगा।
- प्रश्न – संत तिरुवल्लुवर का संदेश क्या है?
उत्तर – तिरुक्कुरल में कहा- सफलता और धन दृढ़ इच्छाशक्ति, योजनाबद्ध लगन, अदम्य उत्साह और हिम्मत वाले तक पहुँचते हैं। नसीब खुद आ जाता है ऐसे व्यक्ति के पास।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – विकसित भारत के लिए ज्ञान की भूमिका क्या है और यह कैसे प्राप्त होगा?
उत्तर – ज्ञान समृद्धि और ताकत का स्रोत है। 21वीं सदी में यह मुख्य संसाधन है। शिक्षा, अनुभव, विरासत, परंपराओं, प्रकृति, गाँवों के समझदारों से प्राप्त होगा। भारत की गुरु-शिष्य परंपरा और नालंदा जैसे केंद्रों से प्रेरणा लें। ज्ञान सर्जन और उपयोग से समाज मजबूत बनेगा, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार लाएगा।
- प्रश्न – ज्ञानवान समाज के निर्माण में सामाजिक बदलाव और धन निर्माण की क्या भूमिका है?
उत्तर – सामाजिक बदलाव शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शासन से रोजगार, उत्पादकता, ग्रामीण समृद्धि लाएगा। धन निर्माण राष्ट्रीय क्षमताओं से जुड़े। युवाओं के साहस, संकल्प से चुनौतियाँ हल होंगी। राष्ट्र नागरिकों की सोच से महान बनता है। युवा बड़े उद्देश्य अपनाएँ, छोटे लक्ष्यों से बचें।
- प्रश्न – युवा पीढ़ी विकसित भारत के स्वप्न को कैसे साकार कर सकती है?
उत्तर – युवा उद्यमशीलता, डिजाइन, आईटी, कृषि में नए विचार लाएँ। सरकारी नौकरी सीमित न रखें। ग्रामीण साक्षरता के लिए गाँव अपनाएँ, दो लोगों को पढ़ाएँ। पौधरोपण, बुजुर्ग सेवा से पर्यावरण और शांति बनाएँ। उत्कृष्ट प्रदर्शन से अनंत संभावनाएँ खुलेंगी। विक्रम साराभाई के सपनों की तरह दृढ़ता से सफल होंगे।
- प्रश्न – वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियाँ क्या हैं और सुधार कैसे हो?
उत्तर – शिक्षा बोझ बढ़ाती है, सपने देखने से रोकती है। ज्ञान प्राप्ति में बाधक न बने। कठिन परिश्रम, लगन से सफलता मिलेगी। पढ़ाई के बाद रोजगार चिंता न करें, उत्कृष्ट प्रदर्शन से भविष्य उज्ज्वल होगा। साक्षरता बढ़ाने के लिए युवा गाँवों में सहयोग दें, अमीर-गरीब भेद मिटाएँ।
- प्रश्न – संत तिरुवल्लुवर के संदेश से विकसित भारत का क्या संबंध है?
उत्तर – तिरुक्कुरल में कहा- दृढ़ इच्छाशक्ति, योजनाबद्ध लगन, अदम्य उत्साह, हिम्मत से सफलता और धन आते हैं। विकसित भारत के लिए युवाओं में यही गुण चाहिए। सौ करोड़ साक्षरता, ग्रामीण सेवा, पर्यावरण संरक्षण से शांतिपूर्ण माहौल बनेगा। निष्ठापूर्ण कार्य से शत-प्रतिशत सफलता मिलेगी।

