Path 7.1: Pad, Bhakti Pad, Sankalit, Class IX, Hindi Book, Chhattisgarh Board, The Best Solutions.

पद परिचय

यहाँ हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के चार कवियों के पदों को संकलित किया गया है। इनमें तुलसी व सूर सगुण भक्ति काव्यधारा से हैं, तो कबीर व धरमदास निर्गुण काव्यधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कवि परिचय

तुलसीदास अवधी भाषा के अप्रतिम कवि हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में रामकथा को अनेक रूपों में प्रस्तुत किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, विनयपत्रिका इत्यादि हैं। यहाँ दिया हुआ पद विनयपत्रिका से लिया गया है। सूरदास ब्रज भाषा के कवि हैं। सूरसागर, सूरसारावली, साहित्यलहरी आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उनके द्वारा लिखे गए श्रीकृष्ण के बाल-वर्णन ब्रज भाषा ही नहीं समूचे भारतीय साहित्य की धरोहर हैं। कबीर मध्यकाल के अकेले कवि हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में कई देशज भाषाओं का प्रयोग किया हैं। उनकी कविताएँ मुख्यतः साखी, सबद और रमैनी बीजक में संकलित हैं, जिसमें साखी दोहा रूप में और सबद व रमैनी पद रूप में हैं। उनकी कविता अपने समय में ही नहीं, आज भी प्रासंगिक हैं। धनी धरमदास का जन्म 1433 में छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में हुआ था। वे कबीर के शिष्य थे और कबीर की विचारधारा को आगे बढ़ाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी रचनाएँ बाद में धरमदास की बानी के रूप में प्रकाशित हुईं।

तुलसीदास

मन पछितैहैं अवसर बीते।

दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु करम, बचन अरु ही ते॥

सहसबाहु, दसवदन आदि नृप बचे न काल बली ते।

हम-हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥

सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।

अंतहु तोहि तजेंगे पामर ! तू न तजै अबही ते॥

अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जी ते।

बुझे न काम-अगिनि तुलसी कहुँ बिषयभोग बहु घी ते॥

– विनय पत्रिका

प्रसंग

यह पद तुलसीदास जी के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘विनय पत्रिका’ से लिया गया है। इसमें गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मन को (और उसके माध्यम से समस्त संसार को) चेतावनी दे रहे हैं। वे समझा रहे हैं कि यह मनुष्य शरीर अत्यंत दुर्लभ है और इसे व्यर्थ के सांसारिक मोह-माया में गँवा देने पर अंत में केवल पश्चाताप ही हाथ लगेगा।

व्याख्या

तुलसीदास जी अपने मन को सचेत करते हुए कहते हैं कि “हे मन! यह अवसर (मनुष्य जीवन) बीत जाने पर तू बहुत पछताएगा।” यह दुर्लभ मानव शरीर पाकर, अपने कर्म, वचन और हृदय से भगवान के चरणों का भजन कर।

वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सहस्रबाहु और रावण जैसे बड़े-बड़े प्रतापी राजा भी उस बलवान काल (मृत्यु) से नहीं बच सके। उन्होंने जीवन भर ‘मैं-मैं’ (अहंकार) करके धन और महल (धाम) इकट्ठा किए, परन्तु अंत में (मृत्यु के समय) वे सब यहीं छोड़कर खाली हाथ ही चले गए।

तुलसीदास जी आगे कहते हैं, “पुत्र, पत्नी आदि जितने भी संबंधी हैं, उन्हें अपने स्वार्थ में लिप्त जान। इसलिए इन सब से बहुत अधिक स्नेह मत कर।” “हे पापी मन! ये सभी स्वार्थी लोग अंत में तुझे त्याग देंगे, तो तू अभी से इन्हें क्यों नहीं त्याग देता?”

अंतिम पंक्तियों में वे उपदेश देते हैं- “हे मूर्ख मन! अब भी जाग जा और अपने स्वामी (ईश्वर) से प्रेम कर। अपने हृदय से व्यर्थ की आशाओं (दुरासा) को निकाल दे।” तुलसीदास जी कहते हैं कि काम-वासना की यह आग विषय-भोगों से कभी नहीं बुझती, बल्कि सांसारिक सुखों (विषयभोग) रूपी घी डालने से यह आग और भी अधिक भड़क उठती है।

सूरदास

खेलन हरि निकसे ब्रज खोरी

कटि कछनी पीतांबर बाँधे हाथ लए भौंरा चक डोरी

गए स्याम रवि तनया के तट, अंग लसति चंदन की खोरी

औचक ही देखीं तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिए रोरी

नील बसन फरिया कटि पहिरै बेनि पीठि रुलति झकझोरी,

संग लरिकिनी चलि इति आवति, दिन थोरी अति छवितन गोरी,

सूरस्याम देखत ही रीझैं नैन-नैन मिल परी ठगोरी॥

सूरसागर

प्रसंग- यह पद ‘सूरसागर’ से लिया गया है। इसमें सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल-लीला का और राधा जी से उनके प्रथम मिलन का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। कृष्ण खेलने के लिए निकलते हैं और यमुना किनारे उनकी भेंट राधा जी से होती है।

व्याख्या –

सूरदास जी कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ब्रज की गलियों में खेलने के लिए निकले। उन्होंने अपनी कमर में छोटी धोती (कछनी) और पीला वस्त्र (पीतांबर) बाँधा हुआ है, और हाथ में लट्टू व डोरी ले रखी है।

श्याम (कृष्ण) खेलते-खेलते यमुना नदी (रवि तनया) के किनारे पहुँच गए। उनके शरीर पर चन्दन की धारी (खोरी) सुशोभित हो रही है। वहीं पर अचानक उन्होंने राधा जी को देखा। राधा जी की आँखें बड़ी-बड़ी (बिसाल) थीं और माथे (भाल) पर रोली का टीका लगा हुआ था।

उन्होंने कमर में नीले वस्त्र का लहंगा (फरिया) पहना हुआ था और उनकी चोटी (बेनि) पीठ पर झूमती हुई लटक रही थी। वह कम उम्र की (दिन थोरी), गोरे शरीर वाली और अत्यंत सुंदर (अति छवि) थीं, और अपनी सखियों के संग इसी ओर चली आ रही थीं।

सूरदास जी कहते हैं कि श्याम (कृष्ण) उन्हें देखते ही उन पर मोहित (रीझैं) हो गए। जैसे ही दोनों की आँखें (नैन-नैन) मिलीं, वे एक-दूसरे को ठगे से देखते रह गए (मानो एक-दूसरे पर जादू हो गया हो)।

 

कबीर

साधो देखो जग बौराना।

साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।

हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना।

आपस में दोऊ लड़े मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।

बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना।

आतम-छाँडि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना।

आसन मारि डिंभ धरि बैठे मन में बहुत गुमाना।

पीपर – पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना।

माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना।

सबद

प्रसंग- यह कबीरदास जी का एक ‘सबद’ (शब्द) है, जिसमें उन्होंने समाज में फैले धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास और बाहरी आडम्बरों पर कठोर प्रहार किया है। वे सत्य के मार्ग को छोड़कर व्यर्थ के कर्मकांडों में उलझे लोगों को ‘पागल’ (बौराना) कहते हैं।

व्याख्या –

कबीरदास जी कहते हैं, “हे साधुजनों! देखो, यह सारा संसार पागल हो गया है।” यदि इनसे सच्ची बात (ईश्वर एक है) कहो तो ये मारने दौड़ते हैं, और झूठी बातों (आडम्बरों) पर तुरंत विश्वास कर लेते हैं।

हिन्दू कहता है ‘राम हमारा है’ और मुसलमान ‘रहमान’ को अपना बताता है। (ईश्वर के नाम पर) दोनों आपस में लड़-लड़कर मर रहे हैं, लेकिन (ईश्वर की एकता का) सच्चा मर्म किसी ने नहीं जाना।

कबीर कहते हैं, “मुझे ऐसे बहुत से नियम-धर्मी लोग मिले जो रोज़ सुबह स्नान (असनाना) करते हैं।” लेकिन वे अपनी आत्मा (आतम) को छोड़कर पत्थरों (पषानै) को पूजते हैं; उनका ज्ञान बिलकुल खोखला (थोथा) है।

वे (पाखंडी गुरु) आसन लगाकर (आसन मारि) दम्भ धारण करके बैठे हैं और उनके मन में अपने ज्ञान का बहुत घमंड (गुमाना) है। वे (सच्चे ज्ञान को भूलकर) पीपल के पेड़ और पत्थर पूजने लगे हैं, और (ज्ञान के) असली तीर्थ और व्रत को भूल गए हैं।

वे गले में माला पहनते हैं, सिर पर टोपी लगाते हैं और माथे पर तिलक-छाप लगाते हैं, लेकिन गुरु के उपदेश (साखी) और भजन (शब्द) गाना भूल गए हैं। उन्हें अपनी आत्मा की (आतम खबर) कोई सुध ही नहीं है (वे आत्मज्ञान से शून्य हैं)।

धनी धरमदास

हम सत्त नाम के बैपारी।

कोइ कोइ लादै काँसा पीतल, कोइ कोइ लौंग सुपारी॥

हम तो लाद्यो नाम धनी को, पूरन खेप हमारी॥

पूँजी न टूटै नफा चौगुना, बनिज किया हम भारी॥

हाट जगाती रोक न सकिहै, निर्भय गैल हमारी॥

मोती बूँद घटहिं में उपजै, सुकिरत भरत कोठारी॥

नाम पदारथ लाद चला है, धरमदास बैपारी॥

धरमदास की बानी

प्रसंग- यह पद कबीरदास जी के प्रमुख शिष्य, धनी धरमदास जी का है। इस पद में उन्होंने निर्गुण भक्ति का एक अद्भुत रूपक (metaphor) प्रस्तुत किया है। वे स्वयं को एक व्यापारी (बैपारी) बताते हैं, जो दुनिया का सामान नहीं, बल्कि ईश्वर के ‘सत्य नाम’ (सत्त नाम) का व्यापार करता है।

व्याख्या (Explanation)-

धरमदास जी कहते हैं, “हम (भक्त) ईश्वर के ‘सत्य नाम’ के व्यापारी हैं।” जहाँ दुनिया के अन्य व्यापारी नश्वर चीजें जैसे काँसा, पीतल, लौंग और सुपारी का व्यापार (लादै) करते हैं, वहीं हमने अपने स्वामी (धनी) के ‘नाम’ को लादा है। (नाम-स्मरण से) हमारी (आध्यात्मिक) खेप पूरी हो गई है।

यह (नाम-स्मरण) एक ऐसा महान व्यापार (बनिज) है जिसमें लगी हुई पूँजी (भक्ति) कभी समाप्त (न टूटै) नहीं होती, और इससे मिलने वाला लाभ (नफा) चौगुना (यानी असीमित) होता है।

इस रास्ते पर हमें बाज़ार का कर वसूलने वाला (हाट जगाती – अर्थात् मृत्यु/यमराज या माया) भी नहीं रोक सकता। हमारा यह (आध्यात्मिक) मार्ग पूरी तरह निर्भय है।

(यह नाम) रूपी मोती और (अमृत) बूँद कहीं बाहर नहीं, बल्कि (अपने) शरीर रूपी घड़े (घट) के भीतर ही उत्पन्न होती है, और हमारे अच्छे कर्म (सुकिरत) ही इस भण्डार (कोठारी) को भरते हैं।

धरमदास (स्वयं को कहते हैं) कहते हैं कि यह व्यापारी (धरमदास) ईश्वर के ‘नाम’ रूपी अमूल्य पदार्थ को लादकर (संसार से) चला है।

शब्दार्थ

ही ते – हिय ते अर्थात हृदय से

रीते – खाली हाथ

पामर – पापी, दुर्जन

दुरासा – बुरी आशा

खोरी – गली

चंदन की खोरी – चंदन का टीका

नेमी – नियम का पालन करने वाला

रवि तनया – सूर्य की पुत्री अर्थात यमुना

बौराना – पागल होना

पीतांबर – पीले रंग का कपड़ा

पतियाना – विश्वास कर लेना

डिंभ – गर्व, यहाँ पर पाखंड या आडंबर से है।

गुमाना – घमण्ड करना

बैपारी – व्यापारी

लाद्यो – लाद लिया है

बनिज – व्यापार

जगाती – चौकीदार

गैल – रास्ता

दसबदन – रावण

सहस्रबाहु – हैहयवंश का एक बलशाली राजा

पाठ से

  1. अवसर बीत जाने के पश्चात् पछताना क्यों पड़ता है? पद में दिए गए उदाहरणों के भाव लिखिए।

उत्तर – तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन एक दुर्लभ अवसर है, जिसे सांसारिक मोह-माया में गँवा देने पर अंत में केवल पश्चात्ताप ही हाथ लगता है। अवसर बीत जाने पर पछतावा इसलिए होता है क्योंकि यह मानव शरीर भगवान की भक्ति और आत्मकल्याण के लिए मिला है, लेकिन लोग इसे व्यर्थ के सांसारिक सुखों में बिता देते हैं। जब मृत्यु आती है, तब उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने जीवन का सही उपयोग नहीं किया।

उदाहरणों के भाव-

सहस्रबाहु और रावण- तुलसीदास जी सहस्रबाहु और रावण जैसे शक्तिशाली राजाओं का उदाहरण देते हैं, जो अपने वैभव और अहंकार में डूबे रहे, परंतु काल (मृत्यु) से नहीं बच सके। यह दर्शाता है कि सांसारिक शक्ति और धन क्षणभंगुर हैं।

धन-धाम सँवारना- लोग अहंकार में ‘मैं-मैं’ करके धन और संपत्ति जमा करते हैं, लेकिन मृत्यु के समय सब कुछ यहीं छूट जाता है, और वे खाली हाथ जाते हैं। यह पंक्ति सांसारिक संग्रह की निस्सारता को दर्शाती है।

  1. अंत चले उठि रीते पंक्ति का भावार्थ क्या है?

उत्तर – इस पंक्ति का भावार्थ है कि मनुष्य जीवन भर धन, संपत्ति, और सांसारिक सुखों को जमा करने में लगा रहता है, लेकिन मृत्यु के समय वह सब कुछ यहीं छोड़कर खाली हाथ (रीते) चला जाता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि लोग ‘मैं-मैं’ के अहंकार में धन और वैभव इकट्ठा करते हैं, परंतु अंत में ये सभी चीजें व्यर्थ हो जाती हैं, क्योंकि मृत्यु के समय केवल भक्ति और अच्छे कर्म ही साथ जाते हैं।

  1. सूरस्याम देखते ही रीझैँ, नैन-नैन मिली ठगोरीसे कवि का क्या आशय है?

उत्तर – इस पंक्ति में सूरदास जी श्रीकृष्ण और राधा के प्रथम मिलन का वर्णन करते हैं। कवि का आशय है कि जब श्रीकृष्ण ने राधा को देखा, तो उनकी सुंदरता और आकर्षण पर वे तुरंत मोहित (रीझैँ) हो गए। दोनों की आँखें मिलीं, और इस मिलन में एक अलौकिक प्रेम का जादू छा गया। यह पंक्ति राधा-कृष्ण के बीच प्रेम के प्रारंभिक आकर्षण और उनके परस्पर मोह को दर्शाती है, जो उनकी बाल-लीला का एक मनोहारी चित्रण है।

  1. कबीर के पद में जग के बौराने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर – कबीरदास जी ‘जग बौराना’ कहकर संसार के लोगों को अज्ञानता और पाखंड में डूबा हुआ बताते हैं। उनका अभिप्राय है कि लोग सत्य और आत्मज्ञान को छोड़कर बाहरी कर्मकांडों, धार्मिक आडंबरों, और सामाजिक भेदभाव में उलझे हुए हैं। वे ईश्वर की एकता को नहीं समझते और हिन्दू-मुसलमान जैसे भेदों में लड़ते-मरते हैं। कबीर इस अंधविश्वास और अज्ञान को ‘पागलपन’ (बौराना) कहते हैं, क्योंकि लोग सच्चे मार्ग से भटक गए हैं।

  1. मरमसे कबीर का क्या आशय है?

उत्तर – ‘मरम’ से कबीर का आशय ईश्वर की सच्चाई और एकता के गूढ़ रहस्य से है। वे कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान अपने-अपने नामों अर्थात् राम और रहमान को लेकर लड़ते हैं, लेकिन ईश्वर की वास्तविक सत्ता और उसकी एकता का सच्चा मर्म कोई नहीं समझता। कबीर इस शब्द के माध्यम से आत्मज्ञान और ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानने की बात कहते हैं, जो बाहरी कर्मकांडों से परे है।

  1. कबीर ने किसके ज्ञान को थोथा कहा है? और क्यों?

उत्तर – कबीर ने उन लोगों के ज्ञान को ‘थोथा’ अर्थात् कहा है, जो बाहरी कर्मकांडों और पाखंड में लिप्त हैं। ये लोग सुबह स्नान करते हैं, पत्थरों की पूजा करते हैं, और आसन लगाकर दम्भपूर्ण व्यवहार करते हैं, लेकिन उनकी आत्मा का ज्ञान शून्य है। कबीर इसे ‘थोथा’ कहते हैं क्योंकि यह ज्ञान केवल दिखावे का है, जिसमें आत्मिक गहराई और सच्चाई का अभाव है। वे सच्चे आत्मज्ञान को छोड़कर बाहरी रस्मों में उलझे रहते हैं, जो व्यर्थ है।

  1. धनी धरमदास के पद में सत्य – व्यापार की बात की गई है। सत्य – व्यापार से कवि का क्या आशय है?

उत्तर – धनी धरमदास ‘सत्य-व्यापार’ से ईश्वर के ‘सत्य नाम’ के आध्यात्मिक व्यापार का उल्लेख करते हैं। उनका आशय है कि वे एक व्यापारी की तरह सांसारिक वस्तुओं जैसे काँसा, पीतल, लौंग, सुपारी का व्यापार नहीं करते, बल्कि ईश्वर के नाम का व्यापार करते हैं। यह व्यापार भक्ति और आत्मज्ञान का मार्ग है, जो मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाता है। यह सत्य-नाम का व्यापार अनश्वर और लाभकारी है, जो आत्मिक शांति और मुक्ति प्रदान करता है।

  1. पूँजी न टूटै नफा चौगुना से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – इस पंक्ति का अभिप्राय है कि ईश्वर के नाम-स्मरण रूपी व्यापार में लगाई गई पूँजी (भक्ति) कभी नष्ट नहीं होती और उसका लाभ (आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष) कई गुना अधिक होता है। धरमदास जी कहते हैं कि यह व्यापार सांसारिक व्यापार से भिन्न है, क्योंकि इसमें नुकसान का डर नहीं है, और इससे प्राप्त होने वाला लाभ असीमित और शाश्वत है। यह भक्ति के अमर फल और ईश्वर की कृपा को दर्शाता है।

 

पाठ से आगे

  1. अवसर निकल जाने पर पछतावा होता है। जीवन में अवसर को कैसे पहचाना जाए?

उत्तर – जीवन में अवसर को पहचानने के लिए आत्म-जागरूकता, चिंतन, और सही दृष्टिकोण आवश्यक है। निम्नलिखित उपायों से अवसर पहचाने जा सकते हैं-

आत्म-निरीक्षण- अपनी क्षमताओं, रुचियों, और लक्ष्यों को समझें। यह जानने में मदद करता है कि कौन सा अवसर आपके लिए उपयुक्त है।

वर्तमान में जीना- वर्तमान क्षण पर ध्यान दें, क्योंकि अवसर अक्सर छोटे-छोटे रूपों में आते हैं।

ज्ञान और अनुभव- नई चीजें सीखें और अनुभवों से शिक्षा लें, ताकि आप सही समय पर सही निर्णय ले सकें।

सकारात्मक दृष्टिकोण- हर चुनौती में अवसर देखें। नकारात्मकता अवसरों को छिपा सकती है।

मार्गदर्शन- बुद्धिमान लोगों, गुरुओं, या शास्त्रों से मार्गदर्शन लें, जो आपको सही दिशा दिखा सकते हैं।

तुलसीदास जी की तरह, हमें यह समझना चाहिए कि मानव जीवन स्वयं में एक अनमोल अवसर है, जिसे भक्ति और अच्छे कर्मों में लगाना चाहिए।

  1. अत्यधिक संग्रह की प्रवृत्ति सुखकर क्यों नहीं हो सकती है? अगर नहीं तो क्यों? अपने विचार लिखिए।

उत्तर – अत्यधिक संग्रह की प्रवृत्ति सुखकर नहीं हो सकती, क्योंकि यह मनुष्य को लालच, तनाव, और असंतोष की ओर ले जाती है। इसपर मेरे विचार निम्नलिखित हैं-

अनित्यता- तुलसीदास जी कहते हैं कि धन और संपत्ति अंत में छूट जाती है। यह संग्रह मनुष्य को सच्चे सुख (आत्मिक शांति) से वंचित रखता है।

लालच और असंतोष- अधिक संग्रह की इच्छा कभी पूरी नहीं होती, जिससे मनुष्य हमेशा असंतुष्ट रहता है।

संबंधों पर प्रभाव- धन के पीछे भागने से पारिवारिक और सामाजिक संबंध कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है।

आध्यात्मिक रिक्तता- अत्यधिक संग्रह में डूबा व्यक्ति आत्मिक और नैतिक मूल्यों को भूल जाता है, जो सच्चा सुख दे सकते हैं।

इसलिए, संतुलित जीवन और भक्ति ही सच्चा सुख प्रदान करते हैं। आवश्यकता से अधिक संग्रह व्यर्थ और दुखदायी है।

  1. (क) औचक ही देखीं तहँ राधा इस पंक्ति में औचक देखने से क्या आशय है?

उत्तर – ‘औचक ही देखीं तहँ राधा’ से आशय है कि श्रीकृष्ण ने राधा को अचानक और अप्रत्याशित रूप से देखा। यह मुलाकात संयोगवश हुई, जिसमें कोई पूर्व योजना नहीं थी। सूरदास जी इस पंक्ति के माध्यम से राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन की स्वाभाविकता और उसमें उत्पन्न होने वाले प्रेम के आकर्षण को दर्शाते हैं।

(ख) आप किसी परिचित को अचानक अपने सामने पाते हैं, तो आपके मन में क्या-क्या भाव आते हैं?

उत्तर – किसी परिचित को अचानक सामने पाने पर मन में निम्नलिखित भाव आ सकते हैं-

खुशी और आश्चर्य- अप्रत्याशित मुलाकात से उत्साह और आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है।

पुरानी यादें- उस व्यक्ति से जुड़ी पुरानी यादें ताजा हो सकती हैं।

जिज्ञासा- यह जानने की उत्सुकता हो सकती है कि वह व्यक्ति अब क्या कर रहा है।

स्नेह या दूरी- संबंध की प्रकृति के आधार पर स्नेह, आत्मीयता, या कभी-कभी असहजता का भाव भी आ सकता है।

उम्मीद- भविष्य में उससे फिर मिलने या बातचीत की उम्मीद जाग सकती है।

  1. आपके अनुसार व्यक्ति का सामाजिक व्यवहार कैसा होना चाहिए?

उत्तर – मेरे विचार से व्यक्ति का सामाजिक व्यवहार निम्नलिखित होना चाहिए-

सम्मान और विनम्रता- सभी के प्रति सम्मान और विनम्रता का भाव रखना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, या वर्ग का हो।

सहानुभूति- दूसरों के दुख-दर्द को समझने और उनकी मदद करने का प्रयास करना चाहिए।

सत्य और ईमानदारी- व्यवहार में सच्चाई और पारदर्शिता होनी चाहिए, जैसा कि कबीरदास जी सत्य के मार्ग की बात कहते हैं।

सहयोग- समाज में एक-दूसरे के साथ सहयोग और एकता का भाव रखना चाहिए।

आडंबर से दूरी- बाहरी दिखावे और पाखंड से बचकर आत्मिक और नैतिक मूल्यों को अपनाना चाहिए।

ऐसा व्यवहार समाज में शांति और सौहार्द बढ़ाता है।

  1. पद में किशोर कृष्ण और राधा के मिलने का वर्णन ब्रज भाषा में दिया है। आप इसे अपनी भाषा में लिखिए।

उत्तर – श्रीकृष्ण ब्रज की गलियों में खेलने निकले। उन्होंने कमर में छोटी-सी धोती और पीला वस्त्र बाँध रखा था, और हाथ में लट्टू और डोरी थी। खेलते-खेलते वे यमुना नदी के किनारे पहुँचे, जहाँ उनके शरीर पर चंदन की धारियाँ सुशोभित थीं। तभी अचानक उनकी नजर राधा पर पड़ी। राधा की बड़ी-बड़ी आँखें थीं और माथे पर रोली का टीका लगा था। उन्होंने नीला लहँगा पहना था, और उनकी चोटी पीठ पर लटक रही थी। वह अपनी सखियों के साथ आ रही थीं, कम उम्र की, गोरी, और बहुत सुंदर। जैसे ही कृष्ण ने उन्हें देखा, वे उनके रूप पर मोहित हो गए। दोनों की आँखें मिलीं, और मानो एक-दूसरे पर जादू-सा चल गया।

 

भाषा के बारे में

  1. जहाँ एक ही ध्वनि की आवृत्ति होती है उसे अनुप्रास अलंकार कहा जाता है। जैसे- पीपर पाथर पूजन लागे (यहाँ पध्वनि की एक से अधिक बार आवृत्ति हो रही है) इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ पाठ से छाँट कर लिखिए।

उत्तर – निम्नलिखित पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है-

तुलसीदास- “हम-हम करि धन-धाम सँवारे” (‘ह’ ध्वनि की आवृत्ति)

सूरदास- “कटि कछनी पीतांबर बाँधे” (‘क’ और ‘ब’ ध्वनि की आवृत्ति)

कबीर- “साखी सब्दै गावत भूले” (‘स’ ध्वनि की आवृत्ति)

धरमदास- “पूँजी न टूटै नफा चौगुना” (‘न’ ध्वनि की आवृत्ति)

  1. आपके घर की भाषा और इन पदों की भाषा में किस तरह का अंतर व समानता है? इस पाठ में बहुत से शब्द होंगे, जो आपके घर की भाषा में भी थोड़े फेर बदल के साथ प्रचलित होंगे। उन शब्दों की सूची बनाइए।

उत्तर – समानता-

इन पदों की भाषा (ब्रज, अवधि, और भोजपुरी प्रभाव) और आधुनिक हिंदी में कई शब्द और भाव समान हैं, जैसे भक्ति, प्रेम, और नैतिकता का महत्त्व।

दोनों में सरल और सहज शब्दों का उपयोग होता है, जो आम जन तक पहुँचते हैं।

काव्यात्मकता और भावनात्मक गहराई दोनों में मौजूद है।

अंतर-

भाषा का रूप- इन पदों में ब्रज, अवधि, और पुरानी हिंदी का प्रयोग है, जो आधुनिक हिंदी से अधिक काव्यात्मक और प्राचीन है। आधुनिक हिंदी में सरल और मानक शब्दों का प्रयोग होता है।

शब्दावली- इन पदों में पुराने शब्द (जैसे ‘बौराना’, ‘थोथा’, ‘बैपारी’) हैं, जो आज कम प्रचलित हैं।

उच्चारण और व्याकरण- ब्रज और अवधि में व्याकरण और उच्चारण (जैसे ‘खेलन’, ‘लरिकिनी’) आधुनिक हिंदी से भिन्न हैं।

प्रचलित शब्दों की सूची (थोड़े फेरबदल के साथ)-

पद में शब्द – आधुनिक हिंदी में

मन – मन

हरि – ईश्वर/भगवान

देह – शरीर

काल – मृत्यु

धाम – घर/महल

बनिता – पत्नी

नाथ – स्वामी/प्रभु

बौराना – पागल होना

साँची – सच्ची

नेमी – नियमित

आसन – स्नान

माला – माला

नाम – नाम

पूँजी – पूंजी

नफा – लाभ

 

योग्यता विस्तार

  1. अपने घर परिवार और बड़े बूढ़ों से पता कीजिए कि कबीर के कौन-कौन से भजन गाए जाते हैं, अपने दोस्तों के साथ मिलकर उनका एक संकलन तैयार कीजिए।

उत्तर – इसके लिए आपको अपने परिवार और बड़े-बूढ़ों से बात करनी होगी। कुछ प्रसिद्ध कबीर भजन जो आमतौर पर गाए जाते हैं-

“निर्गुण भजनों” जैसे “साधो ये मुरदों का गाँव”।

“माया महाठगिनी हम जानी”।

“झीनी झीनी बीनी चदरिया”।

“मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे”।

आप अपने दोस्तों के साथ इन भजनों को इकट्ठा कर सकते हैं और उनके बोल, अर्थ, और गायन शैली का संकलन बना सकते हैं। स्थानीय मंदिरों, सत्संगों, या कबीरपंथी समुदायों से भी जानकारी ले सकते हैं।

  1. ब्रज, अवधि एवं छत्तीसगढ़ी के अन्य भक्तिकालीन कवियों की रचनाएँ ढूँढ़कर पढ़िए।

उत्तर – आप निम्नलिखित भक्तिकालीन कवियों की रचनाएँ पढ़ सकते हैं-

ब्रज भाषा-

सूरदास- सूरसागर (कृष्ण भक्ति पर आधारित)।

रसखान- प्रेम और कृष्ण भक्ति की रचनाएँ।

बिहारी- सतसई (शृंगार और भक्ति रस)।

अवधि-

तुलसीदास- रामचरितमानस, विनय पत्रिका।

जायसी- पद्मावत (सूफी भक्ति और प्रेम कथा)।

छत्तीसगढ़ी-

लोक कवि और भक्त- छत्तीसगढ़ में भक्तिकालीन कविता लोक परंपराओं में मिलती है, जैसे पंथी गीत या सतनामी भजन, जो कबीर और गुरु घासीदास की परंपरा से प्रभावित हैं।

इन रचनाओं को पुस्तकालयों, ऑनलाइन स्रोतों (जैसे साहित्य अकादमी की वेबसाइट), या स्थानीय विद्वानों से प्राप्त कर पढ़ा जा सकता है।

  1. नीचे कबीर के कुछ दोहे दिए गए हैं इन्हें भी पढ़िए। अर्थ के बारे में साथियों से चर्चा कीजिए।

तिनका कबहुँ न नींदिये, जो पाँयन तर होय।

कबहुँ उड़ आँखिन परै, पीर घनेरी होय॥1॥  

रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय।

हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥2॥

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख।

माँगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख॥3॥

दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय।

बिना जीव की श्वास से, लौह भस्म हो जाय॥ 4॥

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा – परजा जेहि रुचै, शीश देई ले जाय॥ 5॥

शब्दार्थ

निंदिये – निन्दा करना या बुरा भला कहना

पीर – दर्द

बाड़ी – सब्जी की बगिया।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. तुलसीदास जी के विनय पत्रिका के पद में मन को किस बारे में चेतावनी दी गई है?
    a) धन संग्रह करने
    b) मनुष्य जीवन का अवसर बीत जाने पर पछताने
    c) परिवार से झगड़ा करने
    d) अस्वस्थ भोजन करने
    उत्तर- b) मनुष्य जीवन का अवसर बीत जाने पर पछताने
    विश्लेषण- तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है, और इसे सांसारिक मोह में गँवाने पर अंत में केवल पश्चाताप होता है। भक्ति में समय बिताना चाहिए।
  2. तुलसीदास जी के अनुसार कौन से राजा बलवान काल से नहीं बच सके?
    a) अशोक और अकबर
    b) सहस्रबाहु और रावण
    c) राम और कृष्ण
    d) विक्रमादित्य और हर्ष
    उत्तर- b) सहस्रबाहु और रावण
    विश्लेषण- तुलसीदास जी सहस्रबाहु और रावण का उदाहरण देकर बताते हैं कि शक्तिशाली राजा भी मृत्यु से नहीं बच सके, जो सांसारिक वैभव की क्षणभंगुरता को दर्शाता है।
  3. तुलसीदास जी पुत्र, पत्नी आदि के प्रति क्या सलाह देते हैं?
    a) उनसे असीमित प्रेम करें
    b) अधिक स्नेह न करें, क्योंकि वे स्वार्थी हैं और अंत में त्याग देंगे
    c) उनके लिए धन इकट्ठा करें
    d) उन्हें पूरी तरह अनदेखा करें
    उत्तर- b) अधिक स्नेह न करें, क्योंकि वे स्वार्थी हैं और अंत में त्याग देंगे
    विश्लेषण- तुलसीदास जी कहते हैं कि सांसारिक रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं, इसलिए उनमें अत्यधिक आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
  4. तुलसीदास जी के पद में काम-अग्नि क्यों नहीं बुझती?
    a) पानी की कमी के कारण
    b) विषय-भोग रूपी घी डालने से यह और भड़कती है
    c) ध्यान के अभाव से
    d) पारिवारिक प्रेम के कारण
    उत्तर- b) विषय-भोग रूपी घी डालने से यह और भड़कती है
    विश्लेषण- तुलसीदास जी कहते हैं कि सांसारिक सुख (विषय-भोग) काम की आग को बुझाने के बजाय और बढ़ाते हैं।
  5. सूरदास जी के सूरसागर के पद में कृष्ण खेलते समय हाथ में क्या लिए हैं?
    a) बाँसुरी और छड़ी
    b) लट्टू (भौंरा) और डोरी (चक डोरी)
    c) गेंद और बल्ला
    d) तलवार और ढाल
    उत्तर- b) लट्टू (भौंरा) और डोरी (चक डोरी)
    विश्लेषण- सूरदास जी कृष्ण की बाल-लीला का चित्रण करते हैं, जिसमें वे ब्रज में लट्टू और डोरी लेकर खेल रहे हैं।
  6. सूरदास जी के वर्णन में कृष्ण राधा को कहाँ अचानक देखते हैं?
    a) जंगल में
    b) यमुना नदी के तट पर
    c) महल में
    d) उत्सव के दौरान
    उत्तर- b) यमुना नदी के तट पर
    विश्लेषण- सूरदास जी बताते हैं कि कृष्ण यमुना तट पर खेलते समय राधा को संयोगवश देखते हैं, जो उनके प्रेम की शुरुआत दर्शाता है।
  7. सूरदास के पद में राधा के माथे पर क्या सजा हुआ है?
    a) बिंदिया
    b) रोली का टीका (भाल पर रोरी)
    c) चंदन
    d) कुमकुम
    उत्तर- b) रोली का टीका (भाल पर रोरी)
    विश्लेषण- सूरदास जी राधा के रूप का वर्णन करते हुए बताते हैं कि उनके माथे पर रोली का टीका उनकी सुंदरता को बढ़ाता है।
  8. सूरदास जी कृष्ण और राधा की आँखों के मिलन को कैसे वर्णित करते हैं?
    a) वे झगड़ते हैं
    b) वे मोहित होकर ठगे से देखते हैं (ठगोरी)
    c) वे रोते हैं
    d) वे नजरें चुराते हैं
    उत्तर- b) वे मोहित होकर ठगे से देखते हैं (ठगोरी)
    विश्लेषण- सूरदास जी राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन में उनके परस्पर प्रेम और आकर्षण को ‘ठगोरी’ शब्द से व्यक्त करते हैं।
  9. कबीर के सबद में ‘जग बौराना’ का क्या अर्थ है?
    a) संसार बुद्धिमान है
    b) संसार पाखंड और अंधविश्वास में पागल हो गया है
    c) संसार शांतिपूर्ण है
    d) संसार आनंद से भरा है
    उत्तर- b) संसार पाखंड और अंधविश्वास में पागल हो गया है
    विश्लेषण- कबीर कहते हैं कि लोग सत्य और आत्मज्ञान को छोड़कर कर्मकांडों और भेदभाव में उलझे हैं, जिसे वे ‘पागलपन’ कहते हैं।
  10. कबीर के अनुसार हिन्दू और मुसलमान क्यों लड़ते हैं?
    a) जमीन के लिए
    b) अपने-अपने ईश्वर को मानते हैं, पर एकता का मर्म नहीं समझते
    c) भोजन के लिए
    d) भाषा के अंतर के कारण
    उत्तर- b) अपने-अपने ईश्वर को मानते हैं, पर एकता का मर्म नहीं समझते
    विश्लेषण- कबीर कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान राम और रहमान को अलग मानकर लड़ते हैं, पर ईश्वर की एकता को नहीं समझते।

दीर्घ प्रश्न (60-70 शब्दों में)

  1. कबीर अपने सबद में किन लोगों के ज्ञान को ‘थोथा’ कहते हैं और क्यों?
    a) विद्वानों का
    b) कर्मकांडियों का, क्योंकि उनका ज्ञान आत्मज्ञान से शून्य है
    c) भक्तों का
    d) गुरुओं का
    उत्तर- b) कर्मकांडियों का, क्योंकि उनका ज्ञान आत्मज्ञान से शून्य है
    विश्लेषण- कबीर उन लोगों के ज्ञान को ‘थोथा’ कहते हैं जो स्नान, पत्थर पूजा, और बाहरी कर्मकांडों में लिप्त हैं, लेकिन आत्मा का सच्चा ज्ञान नहीं रखते। उनका ज्ञान केवल दिखावे का है, जिसमें आत्मिक गहराई का अभाव है। वे सत्य और ईश्वर की एकता को समझने के बजाय आडंबरों में उलझे रहते हैं, इसलिए उनका ज्ञान खोखला है।
  2. धनी धरमदास के पद में ‘सत्य-व्यापार’ से क्या तात्पर्य है?
    a) मसालों का व्यापार
    b) ईश्वर के सत्य नाम का आध्यात्मिक व्यापार
    c) सोने का व्यापार
    d) कपड़ों का व्यापार
    उत्तर- b) ईश्वर के सत्य नाम का आध्यात्मिक व्यापार
    विश्लेषण- धरमदास जी ‘सत्य-व्यापार’ से ईश्वर के नाम-स्मरण के आध्यात्मिक मार्ग का उल्लेख करते हैं। वे स्वयं को व्यापारी बताते हैं, जो सांसारिक वस्तुओं (काँसा, पीतल) का नहीं, बल्कि सत्य नाम का व्यापार करते हैं। यह भक्ति का मार्ग है, जो आत्मिक शांति और मोक्ष प्रदान करता है, और सांसारिक व्यापार से कहीं अधिक लाभकारी है।
  3. धनी धरमदास के पद में ‘पूँजी न टूटै नफा चौगुना’ का क्या अर्थ है?
    a) पूँजी समाप्त हो जाती है
    b) भक्ति रूपी पूँजी कभी नष्ट नहीं होती और लाभ कई गुना होता है
    c) पूँजी दोगुनी हो जाती है
    d) पूँजी खो जाती है
    उत्तर- b) भक्ति रूपी पूँजी कभी नष्ट नहीं होती और लाभ कई गुना होता है
    विश्लेषण- धरमदास जी कहते हैं कि ईश्वर के नाम-स्मरण रूपी व्यापार में लगाई गई भक्ति (पूँजी) कभी नष्ट नहीं होती। इससे प्राप्त लाभ (आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष) कई गुना होता है। यह व्यापार सांसारिक व्यापार से भिन्न है, क्योंकि इसमें नुकसान का डर नहीं और लाभ असीमित है।
  4. सूरदास के पद में राधा और कृष्ण के मिलन का वर्णन किस भाव से किया गया है?
    a) क्रोध भरे भाव से
    b) प्रेम और आकर्षण के अलौकिक भाव से
    c) उदासी के भाव से
    d) भय के भाव से
    उत्तर- b) प्रेम और आकर्षण के अलौकिक भाव से
    विश्लेषण- सूरदास जी राधा और कृष्ण के प्रथम मिलन को प्रेम और आकर्षण के अलौकिक भाव से चित्रित करते हैं। जब उनकी आँखें मिलती हैं, दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो जाते हैं। ‘नैन-नैन मिली ठगोरी’ पंक्ति उनके परस्पर प्रेम और जादुई आकर्षण को दर्शाती है, जो उनकी बाल-लीला का मनोहारी चित्रण है।
  5. तुलसीदास के पद में ‘अंत चले उठि रीते’ का भावार्थ क्या है?
    a) धन इकट्ठा करके मरना
    b) मृत्यु के समय सब छोड़कर खाली हाथ जाना
    c) परिवार के साथ मरना
    d) भक्ति करके मरना
    उत्तर- b) मृत्यु के समय सब छोड़कर खाली हाथ जाना
    विश्लेषण- तुलसीदास जी इस पंक्ति में कहते हैं कि मनुष्य जीवन भर धन और वैभव जमा करता है, लेकिन मृत्यु के समय वह सब यहीं छोड़कर खाली हाथ जाता है। यह सांसारिक संग्रह की निस्सारता को दर्शाता है और भक्ति के महत्त्व को रेखांकित करता है, क्योंकि केवल भक्ति और अच्छे कर्म ही साथ जाते हैं।

सामान्य प्रश्न (जारी)

  1. कबीर के सबद में ‘मरम’ से उनका क्या तात्पर्य है?
    a) धन का रहस्य
    b) ईश्वर की एकता का गूढ़ रहस्य
    c) युद्ध का रहस्य
    d) जीवन का रहस्य
    उत्तर- b) ईश्वर की एकता का गूढ़ रहस्य
    विश्लेषण- कबीर ‘मरम’ से ईश्वर की सच्चाई और एकता के रहस्य का उल्लेख करते हैं। लोग राम और रहमान को अलग मानकर लड़ते हैं, लेकिन सच्चा मर्म (ईश्वर की एकता) नहीं समझते।
  2. धनी धरमदास के पद में सांसारिक व्यापारी किन वस्तुओं का व्यापार करते हैं?
    a) किताबें और कलम
    b) काँसा, पीतल, लौंग और सुपारी
    c) फल और सब्जियाँ
    d) हथियार
    उत्तर- b) काँसा, पीतल, लौंग और सुपारी
    विश्लेषण- धरमदास जी सांसारिक व्यापारियों को काँसा, पीतल, लौंग, और सुपारी जैसी नश्वर वस्तुओं का व्यापार करने वाला बताते हैं, जबकि वे स्वयं सत्य नाम का व्यापार करते हैं।
  3. इन सभी पदों का केंद्रीय विषय क्या है?
    a) युद्ध और विजय
    b) भक्ति, सांसारिक माया से विरक्ति और आध्यात्मिक जागृति
    c) प्रेमकथा
    d) राजनीति
    उत्तर- b) भक्ति, सांसारिक माया से विरक्ति और आध्यात्मिक जागृति
    विश्लेषण- सभी कवि भक्ति, सत्य, और आत्मज्ञान पर जोर देते हैं, सांसारिक मोह को त्यागने और ईश्वर के प्रति समर्पण की प्रेरणा देते हैं।
  4. इन पदों में किन भाषाओं का प्रभाव दिखता है?
    a) संस्कृत और अंग्रेजी
    b) ब्रज, अवधि और भोजपुरी प्रभावित हिंदी
    c) उर्दू और फारसी
    d) तमिल और तेलुगु
    उत्तर- b) ब्रज, अवधि और भोजपुरी प्रभावित हिंदी
    विश्लेषण- ये पद ब्रज, अवधि और भोजपुरी जैसी प्राचीन हिंदी बोलियों में लिखे गए हैं, जो भक्तिकाल की विशेषता हैं।
  5. धनी धरमदास के पद में प्रमुख साहित्यिक अलंकार क्या है?
    a) उपमा
    b) सत्य नाम के व्यापार का रूपक (मेटाफर)
    c) मानवीकरण
    d) अतिशयोक्ति
    उत्तर- b) सत्य नाम के व्यापार का रूपक (मेटाफर)
    विश्लेषण- धरमदास जी भक्ति को व्यापार के रूपक के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं, जिसमें सत्य नाम को अमूल्य पदार्थ और भक्ति को पूँजी बताया गया है।

तुलसीदास (विनय पत्रिका) पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न- तुलसीदास जी ने अपने पद में किसे संबोधित किया है?
    उत्तर- तुलसीदास जी ने अपने पद में अपने मन को संबोधित करते हुए उसे सचेत किया है।
  2. प्रश्न- तुलसीदास जी के अनुसार मनुष्य जीवन को क्यों दुर्लभ कहा गया है?
    उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार मनुष्य जीवन दुर्लभ है क्योंकि यह केवल इसी जन्म में ईश्वर की भक्ति और मुक्ति का अवसर प्रदान करता है।
  3. प्रश्न- सहस्रबाहु और रावण का उदाहरण तुलसीदास जी ने क्यों दिया है?
    उत्तर- उन्होंने यह बताने के लिए सहस्रबाहु और रावण का उदाहरण दिया कि बड़े-बड़े प्रतापी राजा भी मृत्यु से नहीं बच सके।
  4. प्रश्न- तुलसीदास जी सांसारिक मोह के बारे में क्या चेतावनी देते हैं?
    उत्तर- तुलसीदास जी चेतावनी देते हैं कि पुत्र, पत्नी आदि संबंधी अंत में साथ नहीं देंगे, इसलिए उनसे अत्यधिक मोह नहीं रखना चाहिए।
  5. प्रश्न- तुलसीदास जी के अनुसार ‘कामाग्नि’ किससे नहीं बुझती?
    उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार कामाग्नि विषयभोग रूपी घी से कभी नहीं बुझती, बल्कि और प्रबल हो जाती है।

 

सूरदास (सूरसागर) पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न- सूरदास जी के अनुसार श्रीकृष्ण कहाँ खेलने के लिए निकले थे?
    उत्तर- सूरदास जी के अनुसार श्रीकृष्ण ब्रज की गलियों में खेलने के लिए निकले थे।
  2. प्रश्न- श्रीकृष्ण ने अपने वस्त्रों का कैसा वर्णन किया गया है?
    उत्तर- श्रीकृष्ण ने अपनी कमर में पीतांबर बाँधा हुआ है और छोटी धोती (कछनी) धारण की है।
  3. प्रश्न- राधा जी का रूप वर्णन सूरदास जी ने कैसे किया है?
    उत्तर- राधा जी को गोरी, कम उम्र की, बड़ी-बड़ी आँखों वाली और अत्यंत सुंदर बताया गया है।
  4. प्रश्न- श्रीकृष्ण और राधा की भेंट कहाँ हुई?
    उत्तर- श्रीकृष्ण और राधा की भेंट यमुना के तट पर हुई।
  5. प्रश्न- दोनों की दृष्टि मिलते ही क्या हुआ?
    उत्तर- दोनों की दृष्टि मिलते ही वे एक-दूसरे पर मोहित हो गए और जैसे ठगे से एक-दूसरे को देखते रह गए।

 

कबीर (सबद) पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न- कबीरदास जी ने संसार को ‘बौराना’ क्यों कहा है?
    उत्तर- कबीरदास जी ने संसार को ‘बौराना’ कहा क्योंकि लोग सत्य को अस्वीकार कर झूठे आडम्बरों पर विश्वास करते हैं।
  2. प्रश्न- कबीरदास जी के अनुसार हिन्दू और मुसलमान की गलती क्या है?
    उत्तर- उनके अनुसार हिन्दू ‘राम हमारा’ और मुसलमान ‘रहमान हमारा’ कहकर आपस में लड़ते हैं, पर ईश्वर की एकता का मर्म नहीं समझते।
  3. प्रश्न- कबीरदास जी ने ‘आतम-छाँडि पषानै पूजै’ कहकर क्या आलोचना की है?
    उत्तर- इस पंक्ति में कबीरदास जी ने उन लोगों की आलोचना की है जो आत्मज्ञान छोड़कर पत्थरों की पूजा करते हैं।
  4. प्रश्न- कबीरदास जी के अनुसार सच्चा ज्ञान किसमें है?
    उत्तर- कबीरदास जी के अनुसार सच्चा ज्ञान आत्मा के भीतर है, न कि बाहरी कर्मकांडों में।
  5. प्रश्न- कबीरदास जी ने धार्मिक आडंबरों के किन प्रतीकों का उल्लेख किया है?
    उत्तर- उन्होंने माला, टोपी, तिलक, पीपल और तीर्थ-बरत जैसे बाहरी प्रतीकों का उल्लेख किया है।

 

धनी धरमदास (धरमदास की बानी) पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न- धरमदास जी स्वयं को किस रूप में प्रस्तुत करते हैं?
    उत्तर- धरमदास जी स्वयं को ‘सत्त नाम’ के व्यापारी (बैपारी) के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
  2. प्रश्न- अन्य व्यापारी किन वस्तुओं का व्यापार करते हैं?
    उत्तर- अन्य व्यापारी काँसा, पीतल, लौंग और सुपारी जैसी नश्वर वस्तुओं का व्यापार करते हैं।
  3. प्रश्न- धरमदास जी ने अपने व्यापार को ‘पूरन खेप’ क्यों कहा है?
    उत्तर- उन्होंने अपने व्यापार को ‘पूरन खेप’ कहा क्योंकि उन्होंने ईश्वर के नाम को अपना सम्पूर्ण लाभ मान लिया है।
  4. प्रश्न- धरमदास जी के अनुसार इस व्यापार की पूँजी कैसी है?
    उत्तर- इस व्यापार की पूँजी कभी नहीं टूटती और इसका लाभ चौगुना होता है।
  5. प्रश्न- ‘मोती बूँद घटहिं में उपजै’ का क्या अर्थ है?
    उत्तर- इसका अर्थ है कि ईश्वर का सच्चा नाम और आनंद बाहरी जगत में नहीं, बल्कि हमारे शरीर रूपी घट (अंतरात्मा) में ही उत्पन्न होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. तुलसीदास जी ने अपने मन को क्यों चेताया है?

उत्तर- तुलसीदास जी ने अपने मन को चेताया है क्योंकि वे उसे यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभ है। यदि यह अवसर व्यर्थ के मोह-माया और विषय-भोगों में नष्ट हो गया, तो अंत में केवल पश्चाताप ही शेष रहेगा। इसलिए मन को भक्ति में लगाना चाहिए।

  1. तुलसीदास जी ने किसे अस्थायी बताया है और क्यों?

उत्तर- तुलसीदास जी ने धन, वैभव और संबंधियों को अस्थायी बताया है क्योंकि ये सब मृत्यु के समय साथ नहीं जाते। रावण और सहस्रबाहु जैसे शक्तिशाली लोग भी इन्हें छोड़कर चले गए। इसलिए मनुष्य को स्थायी सुख के लिए ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए।

  1. सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के बाल-रूप का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर- सूरदास जी ने श्रीकृष्ण को पीतांबर और कछनी धारण किए, हाथ में लट्टू और डोरी लिए हुए बालक के रूप में चित्रित किया है। वे खेलते-खेलते यमुना तट पर पहुँचते हैं, जहाँ उनकी राधा से पहली भेंट होती है, जो अत्यंत मधुर और भावनात्मक है।

  1. राधा का सौंदर्य चित्रण सूरदास जी ने किस रूप में किया है?

उत्तर- सूरदास जी ने राधा को कोमल, गोरी, बड़ी आँखों वाली और अत्यंत सुंदर बताया है। उनके माथे पर रोरी का टीका और पीठ पर झूलती चोटी (बेनि) है। वे अपनी सखियों के संग आती हैं और कृष्ण को देखकर दोनों की आँखें मिलते ही मोहक भाव उत्पन्न होता है।

  1. कबीरदास जी ने समाज को ‘बौराना’ क्यों कहा है?

उत्तर- कबीरदास जी ने समाज को ‘बौराना’ इसलिए कहा है क्योंकि लोग सत्य को अस्वीकार कर झूठे आडम्बरों में उलझ गए हैं। वे धर्म के नाम पर एक-दूसरे से लड़ते हैं और मूर्तिपूजा जैसे कर्मकांडों में समय नष्ट करते हैं, पर आत्मा और सच्चे ईश्वर को नहीं पहचानते।

  1. कबीरदास जी ने धार्मिक पाखंडियों पर क्या प्रहार किया है?

उत्तर- कबीरदास जी ने उन लोगों पर प्रहार किया है जो बाहर से तो धर्मात्मा दिखते हैं—माला, टोपी, तिलक पहनते हैं—परंतु उनके मन में अहंकार और अज्ञान भरा है। वे आत्मज्ञान से दूर रहकर केवल बाहरी पूजा में उलझे रहते हैं, जो वास्तविक भक्ति नहीं है।

  1. धरमदास जी अपने व्यापार को ‘सत्त नाम का व्यापार’ क्यों कहते हैं?

उत्तर- धरमदास जी अपने व्यापार को ‘सत्त नाम का व्यापार’ कहते हैं क्योंकि वे सांसारिक वस्तुओं का नहीं, ईश्वर के सत्य नाम का व्यापार करते हैं। यह ऐसा व्यापार है जिसमें न पूँजी घटती है, न हानि होती है, बल्कि आध्यात्मिक लाभ सदैव बढ़ता ही जाता है।

  1. धरमदास जी के अनुसार ‘नाम’ की प्राप्ति कहाँ होती है?

उत्तर- धरमदास जी के अनुसार ईश्वर का ‘नाम’ किसी बाहरी स्थान पर नहीं, बल्कि अपने शरीर रूपी घट के भीतर ही उत्पन्न होता है। यह आत्मिक अनुभूति और भक्ति के माध्यम से प्राप्त होता है, और यही मनुष्य को सच्चा सुख तथा मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है।

  1. तुलसीदास जी के अनुसार मनुष्य को सच्चा लाभ किससे प्राप्त होता है?

उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार मनुष्य को सच्चा लाभ केवल ईश्वर की भक्ति और उनके चरणों का स्मरण करने से प्राप्त होता है। सांसारिक धन, परिवार और वैभव नश्वर हैं, इसलिए सच्चा आनंद और शांति केवल भक्ति और आत्मसमर्पण में ही संभव है।

  1. कबीरदास जी ने ‘आतम खबर’ से क्या तात्पर्य लिया है?

उत्तर- कबीरदास जी के अनुसार ‘आतम खबर’ का अर्थ है आत्मा की पहचान या आत्मज्ञान। वे कहते हैं कि लोग पूजा-पाठ, तीर्थ और बाहरी कर्मों में उलझे हैं, लेकिन अपनी आत्मा के स्वरूप को नहीं जानते। आत्मा की पहचान ही सच्चे धर्म और ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. तुलसीदास जी के पद में संसारिक मोह से विरक्ति का भाव कैसे प्रकट हुआ है?

उत्तर- तुलसीदास जी के पद में संसारिक मोह से विरक्ति का गहरा भाव झलकता है। वे मनुष्य को समझाते हैं कि यह जीवन क्षणभंगुर है। धन, परिवार और वैभव सब अंततः छूट जाते हैं। उन्होंने रावण और सहस्रबाहु के उदाहरण देकर बताया कि मृत्यु से कोई नहीं बच सकता। इसलिए मनुष्य को मोह-माया त्यागकर ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए, जिससे जीवन सार्थक बन सके।

  1. सूरदास जी ने राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन का दृश्य कैसे चित्रित किया है?

उत्तर- सूरदास जी ने राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन को अत्यंत कोमलता और सौंदर्य के साथ चित्रित किया है। कृष्ण पीतांबर पहने, हाथ में लट्टू लिए यमुना तट पर पहुँचते हैं, जहाँ राधा अपनी सखियों संग आती हैं। दोनों की आँखें मिलते ही एक मधुर आकर्षण उत्पन्न होता है। यह दृश्य भक्ति और प्रेम का अद्भुत प्रतीक है, जिसमें दैवी प्रेम की अनुभूति होती है।

  1. कबीरदास जी ने अपने सबद में समाज के अंधविश्वासों और पाखंडों की क्या आलोचना की है?

उत्तर- कबीरदास जी ने अपने सबद में समाज की धार्मिक संकीर्णता और पाखंड पर तीखा प्रहार किया है। वे कहते हैं कि लोग सत्य से दूर होकर बाहरी आडम्बरों में फँसे हैं। हिन्दू और मुसलमान धर्म के नाम पर लड़ते हैं, पर ईश्वर की एकता नहीं समझते। वे आत्मा को भूलकर पत्थर पूजते हैं। कबीर आत्मज्ञान और सत्यनिष्ठा को सच्चे धर्म का आधार मानते हैं।

  1. धरमदास जी के पद में ‘नाम-स्मरण’ की महिमा कैसे प्रकट हुई है?

उत्तर: धरमदास जी के पद में ‘नाम-स्मरण’ की महिमा अत्यंत भावपूर्ण ढंग से प्रकट हुई है। उन्होंने नाम-स्मरण को एक अमूल्य व्यापार बताया है, जिसमें पूँजी कभी नहीं घटती और लाभ अनंत मिलता है। यह मार्ग निर्भय और शाश्वत है। उनके अनुसार ईश्वर का नाम मनुष्य के भीतर ही विद्यमान है, जिसे सच्ची साधना और भक्ति द्वारा अनुभव किया जा सकता है।

  1. तुलसीदास, सूरदास, कबीर और धरमदास – इन चारों कवियों की भक्ति में क्या समानता है?

उत्तर: इन चारों कवियों की भक्ति में ईश्वर के प्रति गहन प्रेम और सांसारिक मोह से विरक्ति की समानता मिलती है। तुलसीदास ईश्वर भक्ति का उपदेश देते हैं, सूरदास प्रेममयी बाल-लीलाओं से भक्ति को मधुर बनाते हैं, कबीर सच्चे ज्ञान और आडम्बर-विरोधी भक्ति सिखाते हैं, जबकि धरमदास नाम-स्मरण की महिमा बताते हैं। चारों की भक्ति मानवता और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती है।

 

 

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