Raskhan ke pad Chapter 03, Hindi Book, Class X, Tamilnadu Board, The Best Solutions,

कवि परिचयः रसखान

रसखान दिल्ली के पठान थे। वे वल्लभ संप्रदाय के गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। गुरु से दीक्षा लेकर वे भगवान कृष्ण के भक्त बन गए। उनकी रचनाओं में भक्ति, शृंगार एवं वात्सल्य रस की प्रधानता है। रसखान की रचनाएँ हैं- (1) प्रेम वाटिका और (2) सुजान रसखान, प्रेमवाटिका में प्रेम के महत्त्व का वर्णन है। सुजान रसखान में प्रेम और भक्ति का अद्भु समन्वय है।

रसखान के पद

  1. मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज- गोकुल – गाँव के ग्वारन।

जो पसु हौं तौं कहा बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तौं वही गिरि कौ, जो धर्मों कर छत्र पुरंदर-धारन।

जो खग हौं तौं बसेरो करौं, मिली कालिंदीकूल कदंब की डारन॥

प्रसंग – कवि रसखान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं यदि मेरा पुनर्जन्म हो तो कृष्ण जहाँ रहते हैं, वहीं होना चाहिए।

व्याख्या – रसखान प्रार्थना करते हैं कि यदि मुझे अगले जन्म में मनुष्य का जन्म मिले तो व्रज भूमि – गोकुल – गाँव के ग्वाले के घर में जन्म मिले। पशु का जन्म हो तो नंद की गाय के रूप होना चाहिए जिसे रोज़ श्रीकृष्ण चरने ले जाएँगे। पत्थर के रूप में जन्म हो तो वे गोवर्धन गिरि का पत्थर बनना पसंद करेंगे। जिसे श्रीकृष्ण ने छत्र बनाकर लोगों को अति वर्षा से बचाया था। पक्षी के रूप में जन्म हो तो कालिंदी नदी के कदंब के पेड़ पर के घोंसले में होना चाहिए। रसखान अपनी अनन्य भक्ति के कारण हर जन्म में कृष्ण के संपर्क में रहना चाहते हैं।

विशेष – पठान रसखान की श्रीकृष्ण के संपर्क में रहने की कामना हिन्दू धर्म और कृष्ण की महिमा का उदाहरण है।

 

शब्दार्थ –

धेनु – गाय

पसु – पशु,

ग्वारन – ग्वाला,

कूल – किनारा,

डारन – डाली

पाहन – पत्थर

चर- चरना,

 

  1. मोर पंखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।

ओढ़ि पीताम्बर ले लकुटी बन, गोधन ग्वारिनसंग फिरौंगी॥

भावतो वोहि मेरे ‘रसखानि’, सो तेरे कहे सब स्वांग भरौंगी।

या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरान धरौंगी॥

प्रसंग – यह पद्यांश रसखान रचित ‘रसखान लहरी’ से दिया गया है।

व्याख्या – मुगल पठान होने पर भी कृष्ण के प्रति रसखान की अनन्य भक्ति का परिचय मिलता है। रसखान श्रीकृष्ण प्रेमी होने से उनकी हर चाल का अनुसरण करना चाहते हैं। गोपिका बनकर वे कृष्ण की वेश-भूषा में मोहित होकर कहते हैं कि मैं कृष्ण की तरह सिर पर पंख रखूँगी। गले में गुंजों की माला पहनूँगी। पीतांबर पहनकर गायें चराने हाथ में लाठी लेकर वन में जाऊँगी। श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों में रखकर बजाऊँगी।

विशेष – भक्तों को अपने ईश्वर जैसी वेश-भूषा धारण करने में बड़ा आनंद आता है। आज भी कृष्ण जयंती के दिन अपने पुत्त्रों का भी कृष्णालंकार करके माता- पिता प्रसन्न होते हैं। यह मनुष्य का स्वभाव है।

शब्दार्थः

मोर – मयूर,

पहिनैंगी – पहनूँगी,

स्वांग – नाटक, अभिनय,

अधरान – ओंठ

 

  1. सेस महेस गणेश दिनेस, सुरेसहुँ जाहि निरंतर गावैं।

जाहि अनादि अनंत अखंड, अछेद अभेद सुवेद बतावें॥

नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।

ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछपे नाच नचावैं॥

भावार्थ –

 

ज्ञान, ध्यान, तप, वैराग्य, भक्ति ये सब भगवत प्राप्ति के मार्ग हैं, लेकिन इन सबमें भक्ति को सुलभ मार्ग कहा गया है। भक्ति के बस में आकर भगवान भक्तों के कैसे निकट आते हैं और लीलाएँ करते हैं। उसकी एक झाँकी इस सवैये में दिखाई गई है। सहस्त्र मुखों के आदिशेष, भगवान महेश्वर समस्त देवगणों के अध्यक्ष विनायक, प्रकाश के देवता, सूर्य और देवराज इन्द्र, जिसका गुणगान निरंतर करते हैं, जिसको श्रेष्ठ वेद (उपनिषद) आदि और अनंत (शाश्वत) तथा अखंड और अच्छेद्य व अभेद कहकर वर्णित करते हैं और नारद से लेकर व्यास शुक तक के भक्त महर्षि जिसका गुणगान निरंतर करते हुए भी तंग आकर थक जाते हैं, किन्तु पास नहीं पहुँच पाते, अर्थात्त् पूर्णतः जान नहीं सकते उस भगवान कृष्ण को ग्वाल बालिकाएँ एक छोटी-सी मटकी भर छाछ के लिए नचा रही हैं। अर्थात्त् जब ग्वाल बालिकाएँ छाछ बेचने मटका सिर पर रखकर जा रही थीं तब बालक कृष्ण उनके सामने जाकर पीने के लिए छाछ माँगता है तो वे देती नहीं तब कृष्ण बाँहें फैलाकर उछल-कूद करते हुए उनके आगे मचलने लगते हैं। भाव यह है कि नारद आदि ज्ञानी- भक्ति युगों तक साधना करते हुए भी जिसका अनुराग प्राप्त न कर सके, उसको अहीर बालिकाएँ निश्चल प्रेम के द्वारा वशीभूत करती हैं। अनुप्रास अलंकार का सुंदर उदाहरण इस पद्य में देखा जा सकता है। अंतिम पंक्ति द्वारा कृष्ण लीला का दृश्य प्रस्तुत किया गया है।

कठिन शब्दार्थ –

जाहि – जिसको

सुवेद – श्रेष्ठ वेद

सुक – शुकमहर्षि

रटैं – जपते हैं

पचि हारे – थककर हार मान गए

तऊ – तब भी

छोहरियाँ – छोकरियाँ

छछिया- मिट्टी का छोटा पात्र।

Hindi Word

Hindi Meaning (व्याख्या)

English Meaning

Tamil Meaning (பொருள்)

ग्वारन

ग्वाला, गोपालक

Cowherd

ஆயர் (Aayar)

धेनु

गाय

Cow

பசு (Pasu)

पाहन

पत्थर

Stone

கல் (Kal)

कूल

किनारा, तट

Bank/Shore

கரை (Karai)

डारन

डाली, शाखा

Branch

கிளை (Kilai)

पुरंदर

इंद्र, देवराज

King of Gods

தேவராஜன் (Devaraajan)

मोर

मयूर, मोर

Peacock

மயில் (Mayil)

पीताम्बर

पीला वस्त्र

Yellow garment

மஞ்சள் ஆடை (Manjal Aadai)

लकुटी

छोटी लाठी

Small stick

சிறு குச்சி (Siru Kuchi)

स्वांग

नाटक, अभिनय

Disguise/Act

நாடகம் (Naadagam)

अधरान

होंठ

Lips

உதடுகள் (Uthadugal)

सेस

शेषनाग, सहस्र मुख वाला

Serpent Shesha

ஆயிரம் தலைகள் கொண்ட பாம்பு (Aayiram Thalaigal Konda Paambu)

अनादि

जिसका कोई आदि न हो

Eternal

ஆதியில்லாத (Aadhiyillaatha)

अछेद

जिसे काटा न जा सके

Indivisible

பிரிக்க முடியாத (Pirikka Mudiyaatha)

छछिया

मटकी, छाछ का घड़ा

Buttermilk pot

மோர் குடம் (Mor Kudam)

 

अभ्यास के लिए प्रश्न

  1. रसखान रसों की खान हैं कथन स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – सखान को रसों की खान इसलिए कहा गया है क्योंकि उनकी रचनाओं में अनेक रसों की अभिव्यक्ति मिलती है। विशेष रूप से भक्ति रस, शृंगार रस और वात्सल्य रस की प्रधानता उनके काव्य में देखने को मिलती है। वे श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम का वर्णन करते हुए भक्तिभाव, निस्स्वार्थ समर्पण और प्रेम की मधुरता को अत्यंत भावपूर्ण ढंग से व्यक्त करते हैं। उनके पदों में भक्ति की कोमलता और प्रेम की गहराई दोनों का सुंदर संगम है, इसलिए वे रसों की खान कहे गए हैं।

  1. रसखान के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – रसखान के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

भक्तिभाव की प्रधानता – उनके पदों में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति झलकती है।

शृंगार और वात्सल्य रस का समन्वय – वे कृष्ण की बाल लीलाओं, गोपियों के प्रेम और ग्वाल जीवन का चित्रण प्रेमपूर्वक करते हैं।

सरल व मधुर भाषा – उन्होंने ब्रजभाषा का प्रयोग सरल, सहज और भावपूर्ण रूप में किया है।

ईश्वर-भक्ति का सार्वभौमिक दृष्टिकोण – मुसलमान होते हुए भी उन्होंने कृष्ण के प्रति भक्ति दिखाई, जो धार्मिक एकता का अद्भुत उदाहरण है।

चित्रात्मकता – उनके वर्णनों में दृश्यात्मकता और जीवंतता स्पष्ट दिखाई देती है।

  1. रसखान की कृष्ण भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर – रसखान की कृष्ण भक्ति अद्वितीय, अनन्य और आत्मीय है। वे केवल उपासना के भाव से नहीं, बल्कि प्रेम, वात्सल्य और सान्निध्य की भावना से कृष्ण को अपना मानते हैं। वे अपने प्रत्येक जन्म में किसी न किसी रूप में कृष्ण के समीप रहना चाहते हैं। उनकी भक्ति बाहरी आडंबर से रहित और हृदय की गहराइयों से उपजी हुई है। एक मुसलमान होते हुए भी उन्होंने कृष्ण के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया, जिससे उनकी भक्ति सार्वभौमिक और निष्काम बन गई है।

  1. रसखान कृष्ण दर्शन के लिए क्या-क्या चाहते हैं?

उत्तर – रसखान कृष्ण दर्शन के लिए अपने अगले जन्मों में भी कृष्ण के समीप रहने की इच्छा प्रकट करते हैं। वे कहते हैं—

यदि मनुष्य जन्म मिले तो गोकुल के ग्वाले के घर में जन्म लें,

यदि पशु जन्म मिले तो नंद की गाय बनें,

यदि पत्थर बनें तो गोवर्धन पर्वत का अंग बनें,

और यदि पक्षी बनें तो यमुना तट के कदंब वृक्ष पर निवास करें।

इस प्रकार रसखान हर जन्म में कृष्ण के सान्निध्य की आकांक्षा रखते हैं।

  1. रसखान ने कृष्ण की महिमा का उल्लेख किस प्रकार किया है?

उत्तर – रसखान ने कृष्ण की महिमा का वर्णन अत्यंत भक्तिपूर्ण ढंग से किया है। उन्होंने बताया कि—

जिन भगवान का गुणगान शेषनाग, महेश, गणेश, सूर्य और इंद्र जैसे देवता निरंतर करते हैं,

जिनका वर्णन वेद, उपनिषद और ऋषि-मुनि भी नहीं कर पाते,

वही भगवान ग्वालिनों के स्नेह से बँधकर उनके लिए नाचते हैं।

इस प्रकार रसखान ने भक्ति की महानता और भगवान की प्रेम-शीलता का अद्भुत चित्रण किया है।

  1. रसखान के कृष्ण प्रेमी का रूप वर्णन कीजिए।

उत्तर – रसखान एक सच्चे कृष्ण-प्रेमी और भावुक भक्त हैं। उनका कृष्ण-प्रेम शुद्ध, निष्काम और आत्मिक है। वे कृष्ण की लीलाओं, उनकी बालसुलभ चंचलता और गोपियों के साथ के प्रेम से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे स्वयं को गोपिका के रूप में देखना चाहते हैं और कृष्ण की तरह ही वेश-भूषा धारण करना चाहते हैं। उनके हृदय में कृष्ण के प्रति गहरी तन्मयता और प्रेममय समर्पण है। वे कहते हैं कि मैं मुरलीधर की मुरली को अपने अधरों से लगाकर बजाऊँ — यही उनका परम आनंद है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. रसखान की कविता में मुख्य रूप से किस रस की प्रधानता है?
    a) वीर रस
    b) भक्ति और शृंगार रस
    c) करुण रस
    d) हास्य रस
    उत्तर – b
  2. रसखान किसके शिष्य थे?
    a) तुलसीदास
    b) गोस्वामी विट्ठलनाथ
    c) सूरदास
    d) कबीर
    उत्तर – b
  3. “मानुष हौं तो वही रसखानि” में रसखान क्या बनना चाहते हैं?
    a) व्रज का ग्वाला
    b) साधु
    c) राजा
    d) व्यापारी
    उत्तर – a
  4. पशु के रूप में रसखान क्या बनना चाहते हैं?
    a) घोड़ा
    b) नंद की गाय
    c) शेर
    d) कुत्ता
    उत्तर – b
  5. यदि पत्थर बनें तो रसखान किस रूप में जन्म लेना चाहते हैं?
    a) मंदिर का पत्थर
    b) गोवर्धन पर्वत का पत्थर
    c) नदी का कंकड़
    d) साधारण पत्थर
    उत्तर – b
  6. पक्षी बनने पर रसखान कहाँ रहना चाहते हैं?
    a) जंगल में
    b) कालिंदी नदी के कदंब की डाली पर
    c) पहाड़ पर
    d) गाँव में
    उत्तर – b
  7. “मोर पंखा सिर ऊपर राखिहौं” में रसखान किसके समान बनना चाहते हैं?
    a) गोपियों के
    b) श्रीकृष्ण के
    c) नारद के
    d) व्यास के
    उत्तर – b
  8. “पीताम्बर” का कविता में क्या अर्थ है?
    a) नीला वस्त्र
    b) पीला वस्त्र
    c) लाल वस्त्र
    d) हरा वस्त्र
    उत्तर – b
  9. “या मुरली मुरलीधर की” में रसखान की इच्छा क्या है?
    a) मुरली चुराना
    b) मुरली को होंठों से बजाना
    c) मुरली तोड़ना
    d) मुरली बेचना
    उत्तर – b
  10. “सेस महेस गणेश दिनेस” में किन देवताओं का उल्लेख है?
    a) शेषनाग, शिव, गणेश, सूर्य
    b) विष्णु, ब्रह्मा, हनुमान
    c) राम, लक्ष्मण, सीता
    d) कृष्ण, राधा, यमुना
    उत्तर – a
  11. “नारद से सुक व्यास रटै” में किसका गुणगान होता है?
    a) यमुना का
    b) श्रीकृष्ण का
    c) गोवर्धन का
    d) व्रज का
    उत्तर – b
  12. “छछिया भरि छाछपे नाच नचावैं” का क्या भाव है?
    a) कृष्ण को दंड देना
    b) छाछ के लिए कृष्ण को नचाना
    c) गोपियों को नाचना
    d) मटकी तोड़ना
    उत्तर – b
  13. रसखान की भक्ति का आधार क्या है?
    a) तप और वैराग्य
    b) प्रेम और भक्ति का समन्वय
    c) ज्ञान और ध्यान
    d) युद्ध और शक्ति
    उत्तर – b
  14. “अनादि अनंत अखंड” किसके लिए कहा गया है?
    a) गोवर्धन पर्वत
    b) श्रीकृष्ण
    c) कालिंदी नदी
    d) गोपियाँ
    उत्तर – b
  15. रसखान की रचना “प्रेम वाटिका” में क्या वर्णित है?
    a) प्रेम का महत्त्व
    b) युद्ध का वर्णन
    c) प्रकृति का सौंदर्य
    d) दुख का चित्रण
    उत्तर – a
  16. “स्वांग भरौंगी” का अर्थ क्या है?
    a) नाचना
    b) अभिनय करना
    c) गाना
    d) भागना
    उत्तर – b
  17. कविता में “कूल” का अर्थ क्या है?
    a) जंगल
    b) नदी का किनारा
    c) पहाड़
    d) गाँव
    उत्तर – b
  18. रसखान की कविता में कौन-सा अलंकार प्रमुख रूप से प्रयोग हुआ है?
    a) उपमा
    b) अनुप्रास
    c) यमक
    d) रूपक
    उत्तर – b
  19. “अहीर की छोहरियाँ” किसे संदर्भित करता है?
    a) साधुओं को
    b) गोपियों को
    c) रानियों को
    d) विद्वानों को
    उत्तर – b
  20. रसखान की कविता का मुख्य संदेश क्या है?
    a) धन संचय
    b) भक्ति के माध्यम से भगवान की निकटता
    c) युद्ध में विजय
    d) प्रकृति की पूजा
    उत्तर – b

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

कवि परिचय से संबंधित प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1 – रसखान का वास्तविक नाम क्या था और वे कहाँ के निवासी थे?
उत्तर – रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहीम था और वे दिल्ली के निवासी थे।

प्रश्न 2 – रसखान किस संप्रदाय से प्रभावित थे?
उत्तर – रसखान वल्लभ संप्रदाय से प्रभावित थे।

प्रश्न 3 – रसखान के गुरु कौन थे?
उत्तर – रसखान के गुरु गोस्वामी विट्ठलनाथ थे।

प्रश्न 4 – रसखान की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर – रसखान की प्रमुख रचनाएँ प्रेमवाटिका और सुजान रसखान हैं।

प्रश्न 5 – रसखान की रचनाओं में किन रसों की प्रधानता पाई जाती है?
उत्तर – रसखान की रचनाओं में भक्ति, शृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता पाई जाती है।

 

पहले पद “मानुष हौं तो वही रसखानि…” पर प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 6 – रसखान अपने अगले जन्म में कहाँ जन्म लेना चाहते हैं यदि उन्हें मनुष्य का जन्म मिले?
उत्तर – यदि रसखान को मनुष्य का जन्म मिले तो वे ब्रज भूमि, गोकुल गाँव के ग्वाले के घर में जन्म लेना चाहते हैं।

प्रश्न 7 – यदि रसखान को पशु का जन्म मिले तो वे क्या बनना चाहेंगे?
उत्तर – यदि रसखान को पशु का जन्म मिले तो वे नंद की गाय बनना चाहेंगे।

प्रश्न 8 – रसखान पत्थर के रूप में क्या बनना चाहते हैं?
उत्तर – रसखान गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाया था।

प्रश्न 9 – पक्षी के रूप में रसखान कहाँ रहना चाहते हैं?
उत्तर – पक्षी के रूप में रसखान कालिंदी नदी के किनारे कदंब के पेड़ की डाल पर रहना चाहते हैं।

प्रश्न 10 – इस पद में रसखान की भक्ति का कौन-सा भाव व्यक्त होता है?
उत्तर – इस पद में रसखान की अनन्य भक्ति और कृष्ण के सान्निध्य में रहने की इच्छा व्यक्त होती है।

 

 

दूसरे पद “मोर पंखा सिर ऊपर राखिहौं…” पर प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 11 – रसखान इस पद में किस रूप में रहना चाहते हैं?
उत्तर – इस पद में रसखान गोपिका के रूप में रहकर श्रीकृष्ण की वेश-भूषा धारण करना चाहते हैं।

प्रश्न 12 – रसखान सिर पर क्या धारण करना चाहते हैं?
उत्तर – रसखान सिर पर मोर पंख रखना चाहते हैं।

प्रश्न 13 – रसखान गले में क्या पहनना चाहते हैं?
उत्तर – रसखान गले में गुंज की माला पहनना चाहते हैं।

प्रश्न 14 – रसखान किसके समान वन में फिरना चाहते हैं?
उत्तर – रसखान श्रीकृष्ण के समान गोपियों और गोधन के साथ वन में फिरना चाहते हैं।

प्रश्न 15 – रसखान मुरली के साथ क्या करना चाहते हैं?
उत्तर – रसखान मुरली को अपने अधरों पर रखकर बजाना चाहते हैं।

 

तीसरे पद “सेस महेस गणेश दिनेस…” पर प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 16 – इस पद में किन देवताओं का उल्लेख किया गया है?
उत्तर – इस पद में शेषनाग, महेश, गणेश, सूर्य और इंद्र देवताओं का उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 17 – नारद, शुक और व्यास क्या करते हुए भी भगवान को नहीं पा सके?
उत्तर – नारद, शुक और व्यास भगवान का गुणगान करते हुए भी उन्हें पूर्ण रूप से जान नहीं सके।

प्रश्न 18 – अहीर की छोहरियाँ भगवान को किस चीज़ के लिए नचाती हैं?
उत्तर – अहीर की छोहरियाँ भगवान कृष्ण को छाछ की छोटी-सी मटकी के लिए नचाती हैं।

प्रश्न 19 – इस पद के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर – कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि सच्ची भक्ति से भगवान को सहज ही पाया जा सकता है, ज्ञान या तप से नहीं।

प्रश्न 20 – इस पद में कौन-सा अलंकार प्रमुख रूप से प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर – इस पद में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. रसखान की भक्ति का मुख्य आधार क्या है?

उत्तर – रसखान की भक्ति प्रेम और भक्ति के समन्वय पर आधारित है। वे श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखते हैं, जो उनकी रचनाओं में गोपियों, गायों, और व्रज की निकटता की कामना में झलकता है। उनकी कविताएँ भक्ति को सुलभ और प्रेममय मार्ग दर्शाती हैं।

  1. “मानुष हौं तो वही रसखानि” में रसखान की क्या इच्छा है?

उत्तर – रसखान चाहते हैं कि मनुष्य के रूप में उन्हें व्रज के ग्वाले का जन्म मिले। वे श्रीकृष्ण के निकट रहना चाहते हैं, चाहे पशु, पत्थर, या पक्षी के रूप में, ताकि हर जन्म में कृष्ण की संगति मिले।

  1. “मोर पंखा सिर ऊपर राखिहौं” का भाव क्या है?

उत्तर – रसखान श्रीकृष्ण की वेश-भूषा की नकल करना चाहते हैं। वे मोर पंख, गुंज माला, और पीतांबर पहनकर गोपिका बनना चाहते हैं, ताकि कृष्ण की तरह वन में गाय चराएँ और उनकी मुरली बजाएँ।

  1. रसखान की कविता में गोवर्धन पर्वत का महत्त्व क्या है?

उत्तर – रसखान गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे श्रीकृष्ण ने छत्र बनाकर लोगों को वर्षा से बचाया था। यह उनकी कृष्ण के प्रति भक्ति और उस पवित्र स्थान से जुड़ने की गहरी इच्छा दर्शाता है।

  1. “छछिया भरि छाछपे नाच नचावैं” का क्या अर्थ है?

उत्तर – यह पंक्ति दर्शाती है कि गोपियाँ साधारण छाछ के लिए श्रीकृष्ण को नचाती हैं। यह भक्ति की शक्ति दिखाता है, जहाँ नारद जैसे ऋषि भी कृष्ण को नहीं पा सके, पर गोपियों का निश्छल प्रेम उन्हें वशीभूत करता है।

  1. रसखान की रचनाओं में कौन-से रस प्रमुख हैं?

उत्तर – रसखान की रचनाओं में भक्ति, शृंगार, और वात्सल्य रस की प्रधानता है। उनकी कविताएँ श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को व्यक्त करती हैं, जो गोपियों, व्रज, और कृष्ण की लीलाओं में झलकता है।

  1. रसखान की कविता में अनुप्रास अलंकार का उपयोग कैसे हुआ है?

उत्तर – रसखान की कविता, विशेषकर “सेस महेस गणेश दिनेस” में, अनुप्रास अलंकार का सुंदर उपयोग है। समान ध्वनियों की पुनरावृत्ति (जैसे “सेस”, “महेस”) काव्य को संगीतमय बनाती है और भक्ति भाव को और प्रभावी बनाती है।

  1. रसखान की भक्ति में गोपियों की क्या भूमिका है?

उत्तर – गोपियाँ रसखान की कविता में निश्छल प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं। वे छाछ के लिए श्रीकृष्ण को नचाती हैं, जो दर्शाता है कि सच्चा प्रेम ज्ञान और तप से अधिक शक्तिशाली है। उनकी भक्ति सुलभ और प्रेममय है।

  1. रसखान की कविता में कालिंदी नदी का उल्लेख क्यों है?

उत्तर – रसखान कालिंदी नदी के कदंब वृक्ष की डाली पर पक्षी बनकर रहना चाहते हैं, क्योंकि यह श्रीकृष्ण की लीलाओं का केंद्र है। यह उनकी भक्ति और कृष्ण के निकट रहने की गहरी इच्छा को दर्शाता है।

  1. रसखान की कविता में प्रेम और भक्ति का समन्वय कैसे दिखता है?

उत्तर – रसखान की कविताएँ प्रेम और भक्ति के अद्भुत समन्वय को दर्शाती हैं। वे श्रीकृष्ण के प्रति प्रेममय भक्ति व्यक्त करते हैं, जो गोपियों, व्रज, और कृष्ण की लीलाओं में प्रकट होती है। यह समन्वय उनकी रचनाओं को सुलभ और भावपूर्ण बनाता है।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. रसखान की कविता में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति की विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर – रसखान की भक्ति श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण पर आधारित है। वे हर जन्म में कृष्ण के निकट रहना चाहते हैं, चाहे ग्वाले, गाय, पत्थर, या पक्षी के रूप में। उनकी कविताएँ भक्ति, शृंगार, और वात्सल्य रस से युक्त हैं, जो गोपियों और व्रज की लीलाओं में झलकती हैं। अनुप्रास अलंकार और प्रेममय भाव उनकी भक्ति को और गहन बनाते हैं, जो सुलभ और भावपूर्ण है।

  1. “सेस महेस गणेश दिनेस” में रसखान ने श्रीकृष्ण की महिमा को कैसे दर्शाया है?

उत्तर – रसखान इस पंक्ति में श्रीकृष्ण को अनादि, अनंत, और अखंड बताते हैं, जिनका गुणगान शेषनाग, शिव, गणेश, और सूर्य करते हैं। नारद और व्यास भी उनकी महिमा को पूर्णतः नहीं जान पाते। फिर भी, गोपियाँ साधारण छाछ के लिए उन्हें नचाती हैं, जो भक्ति की शक्ति और निश्छल प्रेम की महिमा को दर्शाता है। अनुप्रास अलंकार काव्य को संगीतमय बनाता है।

  1. रसखान की कविता में गोपियों की भूमिका को समझाइए।

उत्तर – गोपियाँ रसखान की कविता में निश्छल प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं। वे छाछ की मटकी के लिए श्रीकृष्ण को नचाती हैं, जो दर्शाता है कि सच्चा प्रेम ज्ञान और तप से अधिक शक्तिशाली है। उनकी भक्ति सुलभ और प्रेममय है, जो नारद जैसे ऋषियों की साधना से भी अधिक प्रभावी है। यह कृष्ण की लीलाओं और भक्ति की सरलता को उजागर करता है।

  1. रसखान की कविता में प्रतीकात्मकता का उपयोग कैसे हुआ है?

उत्तर – रसखान प्रतीकों जैसे गोवर्धन पर्वत (कृष्ण की रक्षा का प्रतीक), कालिंदी कूल (कृष्ण की लीलास्थली), और मुरली (प्रेम और भक्ति) का उपयोग करते हैं। “लोहे का चना” कठिनाइयों का प्रतीक नहीं, बल्कि “छछिया भरि छाछ” साधारणता में भक्ति की शक्ति दर्शाता है। ये प्रतीक उनकी भक्ति को गहन और भावपूर्ण बनाते हैं, जो पाठकों को कृष्ण के निकट लाते हैं।

  1. रसखान की कविता में भक्ति और प्रेम का समन्वय कैसे प्रकट होता है?

उत्तर – रसखान की कविताएँ भक्ति और प्रेम के अद्भुत समन्वय को दर्शाती हैं। वे श्रीकृष्ण के प्रति प्रेममय भक्ति व्यक्त करते हैं, जो गोपियों, व्रज, और कृष्ण की लीलाओं में झलकता है। चाहे ग्वाले, गाय, या पक्षी बनने की इच्छा हो, उनकी कविताएँ सुलभ भक्ति को दर्शाती हैं। अनुप्रास और प्रेममय भाव उनकी रचनाओं को भावपूर्ण और प्रेरक बनाते हैं, जो भक्तों को कृष्ण के निकट लाते हैं।

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