कवि परिचयः मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन 1886 में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में स्थित चिरगाँव नामक गाँव में हुआ था। कविता करने की प्रेरणा आपको अपने पिता से प्राप्त हुई थी। गुप्तजी भारतीय संस्कृति के गायक हैं। ‘साकेत’ आपका महाकाव्य है। आपकी अन्य रचनाएँ हैं ‘पंचवटी’, ‘भारत भारती’, ‘चित्रकूट’, ‘काबा और कर्बला’, ‘यशोधरा’ आदि। आप भारत के राष्ट्रकवि हैं।
राष्ट्रकवि गुप्त जी इस कविता में मातृभूमि की महिमा का बखान करते हैं। जन्मभूमि की प्राकृतिक शोभा किसके मन को आनंदित नहीं करती? मातृभूमि भारत वर्ष के भौगोलिक स्वरूप में से सर्वेश के दर्शन करते हैं। मनोहारणी प्रकृति के भिन्न-भिन्न अंग, पर्वत, नदियां, वृक्ष, वायु आदि सब उन्हें मातृभूमि का अभिनंदन करते प्रतीत होते हैं। शांति और मंगलदायक मातृभूमि की संतान होने पर उन्हें गर्व है।
मातृभूमि
“नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,
सूर्य-चंद्र योग मुकुट, मेखला रत्नाकर है,
नदियाँप्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है,
बंदीजन, खगवृन्द, शेषफन सिंहासन हैं,
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि, तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंधित पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृष्ट युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है,
शुचि-सुधा सींचता रात में तुझ पर चंद्रप्रकाश है।
मातृभूमि दिन में तरिण करता तम का नाश है॥
सुरभित, सुंदर सुमन तुझ पर खेलते हैं,
भांति-भांति के सरस सुधोपम फल मिलते हैं,
औषधियाँ हैं प्राप्त एक से एक निराली,
खानें शोभित कहीं धातु से एक निराली,
जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं,
हे मातृभूमि, वसुधा, धरा तेरे नाम यथार्थ है॥
दीख रही है कहीं दूर पर शैलश्रेणी,
कहीं घनावलि बनी हुई है तेरी वेणी,
नदियाँ पैर पसार रही है बनकर चेरी,
पुष्पों से तरु-राशि कर रही पूजा तेरी,
मृदु मलय वायु मानो तुझे चंदन चारु चढ़ा रही,
हे मातृभूमि, किसका न तू सात्विक भाव बढ़ा रही॥
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुखहर्त्री है,
भय निवारण, शांतिकारिणीसुखकर्त्री है।
हे शरणादायिनी देवी तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम तू जननी तू प्राण है॥”
कठिन शब्दार्थ —
परिधान – पहनावा
मेखला – करधनी
खग-वृन्द– पक्षी समूह
पवन – वायु हवा
तरू-राशि – वृक्ष समूह
पयोद – मेघ
फर्श – बिछी हुई कालीन
बिछावन शैल श्रेणी – पर्वतों की पंक्ति
चारु – सुंदर
प्रिय क्षेम – मंगल
दुखहर्त्री – दुःख हरने वाली
त्राण – रक्षा।
Hindi Word | Hindi Meaning | Tamil Meaning | English Meaning |
नीलांबर | नीला आकाश | நீல வானம் (Nīla vāṉam) | Blue sky |
हरित | हरा, हरियाली | பச்சை (Paccai) | Green, greenery |
मेखला | कमरबंद, कटि-सूत्र | இடுப்பு ஆடை (Iṭuppu āṭai) | Waistband, girdle |
रत्नाकर | समुद्र (रत्नों का भंडार) | கடல் (Kaṭal) | Ocean (storehouse of gems) |
खगवृन्द | पक्षियों का समूह | பறவைகளின் கூட்டம் (Paṟavaikaḷiṉ kūṭṭam) | Flock of birds |
शेषफन | सर्प, नाग | பாம்பு (Pāmpu) | Serpent |
अभिषेक | पवित्र जल से स्नान कराना | அபிஷேகம் (Apiṣēkam) | Consecration, ceremonial bathing |
पयोद | बादल | மேகம் (Mēkam) | Cloud |
बलिहारी | प्रशंसा, नमन | புகழ்ச்சி (Pukaḻcci) | Praise, salutation |
सगुण | गुणों से युक्त | குணமுள்ள (Kuṇamuḷḷa) | With attributes, manifested |
सुधोपम | अमृत के समान | அமிர்தத்துக்கு ஒப்பான (Amirtattukku oppāṉa) | Like nectar |
मलय | सुगंधित पवन | மலையக் காற்று (Malaiyak kāṟṟu) | Fragrant breeze (from Malaya hills) |
सात्विक | पवित्र, शुद्ध | தூய்மையான (Tūymaiyāṉa) | Pure, virtuous |
क्षमामयी | क्षमा करने वाली | மன்னிப்பவள் (Maṉṉippavaḷ) | Forgiving |
दयामयी | दया से भरी | இரக்கமுள்ள (Irakkamuḷḷa) | Compassionate |
क्षेममयी | कल्याण करने वाली | நலம் அளிப்பவள் (Nalam aḷippavaḷ) | Benevolent, welfare-giving |
सुधामयी | अमृत से परिपूर्ण | அமிர்தம் நிறைந்த (Amirtam niṟainta) | Full of nectar |
वात्सल्यमयी | स्नेह से परिपूर्ण | பாசம் நிறைந்த (Pācam niṟainta) | Full of affection |
विश्वपालिनी | विश्व की रक्षक | உலகைப் பாதுகாப்பவள் (Ulakaip pāthukāppavaḷ) | Protector of the world |
दुखहर्त्री | दुख को हरने वाली | துன்பத்தை நீக்குபவள் (Tuṉpattainīkkupavaḷ) | Remover of sorrow |
शरणादायिनी | शरण देने वाली | புகலிடம் அளிப்பவள் (Pukaliṭam aḷippavaḷ) | Giver of refuge |
त्राण | रक्षा, उद्धार | பாதுகாப்பு (Pāthukāppu) | Protection, salvation |
व्याख्या
प्रथम छंद –
“नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,
सूर्य-चंद्र योग मुकुट, मेखला रत्नाकर है,
नदियाँप्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है,
बंदीजन, खगवृन्द, शेषफन सिंहासन हैं,
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि, तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
(मातृभूमि की शारीरिक और आध्यात्मिक सुंदरता)
प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में भारत की पवित्र भूमि की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – कवि मातृभूमि को एक सुंदर नारी के रूप में देखता है, जिसका परिधान (वस्त्र) नीला आकाश है और हरे-भरे मैदान उसकी साड़ी के समान हैं। सूर्य और चंद्रमा उसके मुकुट के रूप में चमकते हैं, और समुद्र उसकी कमरबंद (मेखला) की तरह है, जो रत्नों से सुसज्जित है। नदियाँ प्रेम का प्रवाह हैं, और फूल-तारे उसका शृंगार हैं। पक्षी और जीव-जंतु उसके सिंहासन के समान हैं, जो उसकी महिमा को बढ़ाते हैं। बादल (पयोद) उसका अभिषेक करते हैं। कवि कहता है कि मातृभूमि साक्षात् ईश्वर की सगुण मूर्ति है, जो सत्य और पवित्रता का प्रतीक है।
भाव – मातृभूमि की प्राकृतिक सुंदरता और उसकी दैवीय महिमा का वर्णन करते हुए कवि उसे सर्वोच्च स्थान देता है।
द्वितीय छंद –
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंधित पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृष्ट युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है,
शुचि-सुधा सींचता रात में तुझ पर चंद्रप्रकाश है।
मातृभूमि दिन में तरिण करता तम का नाश है॥
(प्रकृति की शुद्धता और सौंदर्य)
प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में भारत की पवित्र भूमि के प्रकृतिक तत्त्वों की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – इस छंद में कवि मातृभूमि के प्राकृतिक तत्त्वों की प्रशंसा करता है। यहाँ का जल अमृत के समान शुद्ध और उत्तम है। हवा शीतल, सुगंधित और थकान मिटाने वाली है। छह ऋतुओं का क्रम अद्भुत और विविधतापूर्ण है। हरे-भरे मैदान मखमल के फर्श जैसे कोमल हैं। रात में चंद्रमा की रोशनी मातृभूमि को और पवित्र बनाती है, और दिन में सूर्य अंधकार को नष्ट करता है।
भाव – मातृभूमि की प्रकृति को कवि जीवनदायिनी और शुद्धता की प्रतीक मानता है, जो हर पल मनुष्य को सुख और शांति देती है।
तृतीय छंद –
सुरभित, सुंदर सुमन तुझ पर खेलते हैं,
भांति-भांति के सरस सुधोपम फल मिलते हैं,
औषधियाँ हैं प्राप्त एक से एक निराली,
खानें शोभित कहीं धातु से एक निराली,
जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं,
हे मातृभूमि, वसुधा, धरा तेरे नाम यथार्थ है॥
(मातृभूमि की समृद्धि)
प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में भारत की पवित्र भूमि के प्राकृतिक संपदाओं की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – यहाँ कवि मातृभूमि की प्राकृतिक संपदा का वर्णन करता है। यहाँ सुगंधित फूल खिलते हैं, रसयुक्त फल प्राप्त होते हैं, और विभिन्न प्रकार की औषधियाँ उपलब्ध हैं। खानों में अनमोल धातुएँ और खनिज पाए जाते हैं। मातृभूमि वह सब कुछ प्रदान करती है, जो मनुष्य के लिए आवश्यक है। कवि कहता है कि “वसुधा” और “धरा” जैसे मातृभूमि के नाम पूरी तरह सार्थक हैं, क्योंकि यह धरती वास्तव में धन-संपदा और जीवन की दात्री है।
भाव – मातृभूमि को कवि एक ऐसी माता के रूप में देखता है, जो अपनी संतानों को हर प्रकार की समृद्धि और सुख प्रदान करती है।
चतुर्थ छंद –
दीख रही है कहीं दूर पर शैलश्रेणी,
कहीं घनावलि बनी हुई है तेरी वेणी,
नदियाँ पैर पसार रही है बनकर चेरी,
पुष्पों से तरु-राशि कर रही पूजा तेरी,
मृदु मलय वायु मानो तुझे चंदन चारु चढ़ा रही,
हे मातृभूमि, किसका न तू सात्विक भाव बढ़ा रही॥
(प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण)
प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में भारत की पवित्र भूमि के भौगोलिक और प्राकृतिक सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – इस छंद में कवि मातृभूमि के भौगोलिक और प्राकृतिक सौंदर्य को और गहराई से चित्रित करता है। दूर-दूर तक फैली पर्वत-श्रृंखलाएँ, घने जंगल जो उसकी केशराशि (वेणी) जैसे प्रतीत होते हैं, नदियाँ जो उसकी सखी (चेरी) की तरह फैली हैं, और फूलों से सजे वृक्ष जो उसकी पूजा करते हैं, इन सबका वर्णन है। मलय पवन (हल्की सुगंधित हवा) मानो मातृभूमि को चंदन चढ़ा रही हो। कवि कहता है कि मातृभूमि का यह सौंदर्य हर किसी के मन में सात्विक भाव जागृत करता है।
भाव – मातृभूमि का सौंदर्य इतना प्रभावशाली है कि यह हर प्राणी में पवित्रता और भक्ति की भावना उत्पन्न करता है।
पंचम छंद –
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुखहर्त्री है,
भय निवारण, शांतिकारिणीसुखकर्त्री है।
हे शरणादायिनी देवी तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम तू जननी तू प्राण है॥
(मातृभूमि की दयालुता और शक्तियाँ)
प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में मातृभूमि की दयालुता और शक्तियों की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – अंतिम छंद में कवि मातृभूमि को दयालु, क्षमाशील, और प्रेममयी माता के रूप में वर्णन करता है। वह विश्व की पालक, दुखों को हरने वाली, और शांति प्रदान करने वाली है। वह भय को दूर करती है और सुख देती है। कवि उसे शरणदायिनी देवी कहता है, जो सभी का उद्धार करती है। अंत में, वह मातृभूमि को अपनी जननी (माता) और प्राण (जीवन) कहकर अपनी भक्ति और निष्ठा व्यक्त करता है।
भाव – मातृभूमि को कवि एक ऐसी माता के रूप में देखता है, जो अपनी संतानों को हर प्रकार से पोषित करती है और उनकी रक्षा करती है।
अभ्यास के लिए प्रश्न
- मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ था।
- मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएँ क्या-क्या हैं?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएँ साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी और द्वापर हैं।
- मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी ‘मातृभूमि’ कविता में क्या संदेश दिया है?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी ‘मातृभूमि’ कविता में यह संदेश दिया है कि हमारी मातृभूमि सर्वगुण संपन्न और सभी ऐश्वर्यों की मूर्ति है, और हमें इसका सम्मान करना चाहिए।
- ‘मातृभूमि’ कविता का प्रकृति-चित्रण कीजिए।
उत्तर – कविता में मातृभूमि का प्रकृति-चित्रण बहुत सजीव है, जिसमें नीले आकाश को वस्त्र, सूर्य और चंद्रमा को मुकुट, नदियों को प्रेम का प्रवाह, और फूलों-तारों को आभूषण के रूप में दर्शाया गया है।
- मैथिलीशरण गुप्त मातृभूमि की संतान किसे मानते हैं?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त मातृभूमि पर रहने वाले हम सभी मनुष्यों को उसकी संतान मानते हैं।
- मातृभूमि के विविध रूप का परिचय दीजिए।
उत्तर – कविता के अनुसार, मातृभूमि के विविध रूप हैं; वह क्षमा करने वाली, दया करने वाली, कल्याण करने वाली, अमृत देने वाली, वात्सल्य और प्रेम से भरी हुई, ऐश्वर्यशालिनी, विश्व का पालन करने वाली और दुखों को हरने वाली है।
- I) सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- “नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,
सूर्य-चंद्र योग मुकुट, मेखला रत्नाकर है,
नदियाँप्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है,
बंदीजन, खगवृन्द, शेषफन सिंहासन हैं,
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि, तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
उत्तर – प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में भारत की पवित्र भूमि की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – कवि मातृभूमि को एक सुंदर नारी के रूप में देखता है, जिसका परिधान (वस्त्र) नीला आकाश है और हरे-भरे मैदान उसकी साड़ी के समान हैं। सूर्य और चंद्रमा उसके मुकुट के रूप में चमकते हैं, और समुद्र उसकी कमरबंद (मेखला) की तरह है, जो रत्नों से सुसज्जित है। नदियाँ प्रेम का प्रवाह हैं, और फूल-तारे उसका शृंगार हैं। पक्षी और जीव-जंतु उसके सिंहासन के समान हैं, जो उसकी महिमा को बढ़ाते हैं। बादल (पयोद) उसका अभिषेक करते हैं। कवि कहता है कि मातृभूमि साक्षात् ईश्वर की सगुण मूर्ति है, जो सत्य और पवित्रता का प्रतीक है।
- क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुखहर्त्री है,
भय निवारण, शांतिकारिणीसुखकर्त्री है।
हे शरणादायिनी देवी तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम तू जननी तू प्राण है॥
उत्तर – प्रसंग – यह कविता हमारी हिन्दी पुस्तक के पाँचवे अध्याय ‘मातृभूमि’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में मातृभूमि की दयालुता और शक्तियों की सुंदरता को उकेरा गया है।
व्याख्या – अंतिम छंद में कवि मातृभूमि को दयालु, क्षमाशील, और प्रेममयी माता के रूप में वर्णन करता है। वह विश्व की पालक, दुखों को हरने वाली, और शांति प्रदान करने वाली है। वह भय को दूर करती है और सुख देती है। कवि उसे शरणदायिनी देवी कहता है, जो सभी का उद्धार करती है। अंत में, वह मातृभूमि को अपनी जननी (माता) और प्राण (जीवन) कहकर अपनी भक्ति और निष्ठा व्यक्त करता है।
भाव – मातृभूमि को कवि एक ऐसी माता के रूप में देखता है, जो अपनी संतानों को हर प्रकार से पोषित करती है और उनकी रक्षा करती है।
- II) ‘मातृभूमि’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर – यह कविता मातृभूमि के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करती है। कवि ने भारत को एक सजीव, सगुण और दैवीय शक्ति के रूप में चित्रित किया है, जो प्रकृति, संस्कृति, और मानवीय मूल्यों का संगम है। मातृभूमि की प्राकृतिक सुंदरता, उसकी समृद्धि, और उसकी करुणा को कवि ने विभिन्न रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से उभारा है। यह कविता देशभक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर ले जाती है, जहाँ मातृभूमि केवल भूमि नहीं, बल्कि एक माता और जीवनदायिनी शक्ति है। यह कविता हमें अपनी मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता, प्रेम और सम्मान की भावना जगाती है, और हमें उसकी रक्षा और सेवा के लिए प्रेरित करती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कविता के पहले छंद में कवि नीले आकाश की तुलना किससे करता है?
a) मुकुट
b) परिधान (नीलांबर)
c) मेखला
d) सिंहासन
उत्तर – b) परिधान (नीलांबर)
प्रश्न 2. मातृभूमि की मेखला (कमरबंद) के रूप में कविता में क्या बताया गया है?
a) नदियाँ
b) पर्वत
c) समुद्र (रत्नाकर)
d) जंगल
उत्तर – c) समुद्र (रत्नाकर)
प्रश्न 3. पहले छंद में पयोद (बादल) मातृभूमि के लिए क्या करते हैं?
a) छाया प्रदान करते हैं
b) अभिषेक करते हैं
c) फूल लाते हैं
d) प्रशंसा करते हैं
उत्तर – b) अभिषेक करते हैं
प्रश्न 4. “सगुण मूर्ति सर्वेश की” का अर्थ क्या है?
a) निराकार शक्ति
b) गुणों से युक्त मूर्त रूप
c) पौराणिक प्राणी
d) अमूर्त विचार
उत्तर – b) गुणों से युक्त मूर्त रूप
प्रश्न 5. दूसरे छंद में जल (नीर) की तुलना किससे की गई है?
a) हवा
b) अमृत
c) ऋतुएँ
d) चंद्रप्रकाश
उत्तर – b) अमृत
प्रश्न 6. “षट्ऋतुओं का विविध दृष्ट युत अद्भुत क्रम” का तात्पर्य है –
a) छह नदियाँ
b) छह ऋतुओं का अद्भुत क्रम
c) छह पर्वत
d) छह फल
उत्तर – b) छह ऋतुओं का अद्भुत क्रम
प्रश्न 7. तीसरे छंद में मातृभूमि के फलों (फल) के बारे में क्या कहा गया है?
a) वे कड़वे हैं
b) वे अमृत के समान (सुधोपम) हैं
c) वे दुर्लभ हैं
d) वे विषैले हैं
उत्तर – b) वे अमृत के समान (सुधोपम) हैं
प्रश्न 8. “वसुधा” और “धरा” नामों को कवि ने किस रूप में वर्णित किया है?
a) अर्थहीन नाम
b) धरती के लिए सार्थक नाम
c) नदियों के नाम
d) देवताओं के नाम
उत्तर – b) धरती के लिए सार्थक नाम
प्रश्न 9. चौथे छंद में शैलश्रेणी (पर्वत श्रृंखला) किसका प्रतीक है?
a) मुकुट
b) दूरस्थ सौंदर्य
c) सिंहासन
d) घूँघट
उत्तर – b) दूरस्थ सौंदर्य
प्रश्न 10. घनावलि (जंगल) की तुलना किससे की गई है?
a) मातृभूमि की वेणी (चोटी)
b) उसके पैर
c) उसके फूल
d) उसकी हवा
उत्तर – a) मातृभूमि की वेणी (चोटी)
प्रश्न 11. कविता में मृदु मलय वायु (हल्की सुगंधित हवा) क्या करती है?
a) बारिश लाती है
b) चंदन चढ़ाती है
c) गीत गाती है
d) फसल काटती है
उत्तर – b) चंदन चढ़ाती है
प्रश्न 12. मातृभूमि सभी में किस प्रकार की भावना जागृत करती है?
a) भयपूर्ण
b) सात्विक (पवित्र)
c) क्रोधपूर्ण
d) उदासीन
उत्तर – b) सात्विक (पवित्र)
प्रश्न 13. अंतिम छंद में मातृभूमि को “क्षमामयी” क्यों कहा गया है?
a) प्रतिशोधी
b) क्षमा करने वाली
c) कमजोर
d) गर्वीली
उत्तर – b) क्षमा करने वाली
प्रश्न 14. “विश्वपालिनी” का अर्थ क्या है?
a) विश्व की विनाशक
b) विश्व की रक्षक
c) नदियों की शासक
d) फलों की दात्री
उत्तर – b) विश्व की रक्षक
प्रश्न 15. “शरणादायिनी देवी” का अर्थ है –
a) शरण देने वाली
b) युद्ध लाने वाली
c) सहायता मांगने वाली
d) शत्रुओं का नाश करने वाली
उत्तर – a) शरण देने वाली
प्रश्न 16. दूसरे छंद में दिन में अंधकार को कौन नष्ट करता है?
a) चंद्रमा
b) सूर्य (तरिण)
c) तारे
d) नदियाँ
उत्तर – b) सूर्य (तरिण)
प्रश्न 17. खगवृन्द और शेषफन (पक्षी और सर्प) मातृभूमि के लिए क्या बनाते हैं?
a) उसका मुकुट
b) उसका सिंहासन
c) उसके गहने
d) उसके हथियार
उत्तर – b) उसका सिंहासन
प्रश्न 18. तीसरे छंद में मातृभूमि में क्या प्रचुर मात्रा में पाया जाता है?
a) रेगिस्तान
b) अनूठी औषधियाँ
c) युद्ध
d) छायाएँ
उत्तर – b) अनूठी औषधियाँ
प्रश्न 19. अंतिम छंद में “सुधामयी” का अर्थ है –
a) विष से परिपूर्ण
b) अमृत से परिपूर्ण
c) पत्थरों से भरी
d) अग्नि से भरी
उत्तर – b) अमृत से परिपूर्ण
प्रश्न 20. कविता का समग्र विषय क्या है?
a) धरती की आलोचना
b) मातृभूमि की प्रशंसा और भक्ति
c) युद्ध की कहानी
d) केवल ऋतुओं का वर्णन
उत्तर – b) मातृभूमि की प्रशंसा और भक्ति
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि ने मातृभूमि को किसकी सगुण मूर्ति कहा है?
उत्तर – कवि ने मातृभूमि को सर्वेश (ईश्वर) की सगुण मूर्ति कहा है, क्योंकि उसमें ईश्वर के सभी गुण साकार रूप में विद्यमान हैं।
प्रश्न 2. कविता में सागर को मातृभूमि का कौन-सा आभूषण बताया गया है?
उत्तर – कविता में रत्नाकर अर्थात् सागर को मातृभूमि की मेखला (करधनी) बताया गया है।
प्रश्न 3. मातृभूमि की वंदना करने वाले ‘बंदीजन’ कौन हैं?
उत्तर – कविता के अनुसार, पक्षियों का समूह (खगवृन्द) ही मातृभूमि की वंदना करने वाले ‘बंदीजन’ हैं, जो सुबह-शाम अपने कलरव से उसका यशगान करते हैं।
प्रश्न 4. मातृभूमि पर बहने वाली पवन मनुष्य का क्या हर लेती है?
उत्तर – मातृभूमि पर बहने वाली शीतल, मंद और सुगंधित पवन मनुष्य का सारा श्रम (थकान) हर लेती है।
प्रश्न 5. कविता में छह ऋतुओं के क्रम को कैसा बताया गया है?
उत्तर – कविता में छह ऋतुओं के विविध दृश्यों से युक्त क्रम को अद्भुत बताया गया है।
प्रश्न 6. दिन के समय मातृभूमि से अंधकार का नाश कौन करता है?
उत्तर – दिन के समय सूर्य (तरणि) अपने प्रकाश से मातृभूमि के अंधकार का नाश करता है।
प्रश्न 7. रात में चंद्रमा मातृभूमि पर क्या सींचता है?
उत्तर – रात में चंद्रमा अपने प्रकाश के द्वारा मातृभूमि पर पवित्र अमृत (शुचि-सुधा) सींचता है।
प्रश्न 8. मातृभूमि पर मिलने वाले फल कैसे होते हैं?
उत्तर – मातृभूमि पर अमृत के समान मीठे और रसभरे (सरस सुधोपम) फल मिलते हैं।
प्रश्न 9. कवि ने मातृभूमि के ‘वसुधा’ और ‘धरा’ नाम को यथार्थ क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने मातृभूमि के ‘वसुधा’ और ‘धरा’ नाम को यथार्थ कहा है क्योंकि वह हमें सभी आवश्यक पदार्थ धारण करके प्रदान करती है।
प्रश्न 10. आकाश में छाई घनी घटाओं को किसकी उपमा दी गई है?
उत्तर – आकाश में छाई हुई घनी काली घटाओं (घनावलि) को मातृभूमि की वेणी (चोटी) की उपमा दी गई है।
प्रश्न 11. नदियाँ किस रूप में मातृभूमि की सेवा कर रही हैं?
उत्तर – नदियाँ एक दासी (चेरी) बनकर और दूर-दूर तक अपने पैर पसारकर मातृभूमि की सेवा कर रही हैं।
प्रश्न 12. मलय पर्वत से आने वाली वायु क्या कर रही है?
उत्तर – मलय पर्वत से आने वाली शीतल और सुगंधित वायु मानो मातृभूमि को सुंदर चंदन का लेप चढ़ा रही है।
प्रश्न 13. मातृभूमि को ‘क्षमामयी’ और ‘दयामयी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर – मातृभूमि को ‘क्षमामयी’ और ‘दयामयी’ इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपनी संतानों के सभी अपराधों को क्षमा कर उन पर सदैव दया करती है।
प्रश्न 14. मातृभूमि को ‘विश्वपालिनी’ और ‘दुखहर्त्री’ कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – मातृभूमि को ‘विश्वपालिनी’ और ‘दुखहर्त्री’ कहने का तात्पर्य है कि वह पूरे विश्व का पालन-पोषण करती है और सबके दुखों को हर लेती है।
प्रश्न 15. मातृभूमि अपनी संतानों का त्राण (रक्षा) किस प्रकार करती है?
उत्तर – मातृभूमि शरणादायिनी देवी के रूप में अपनी संतानों को आश्रय देकर और उनका भय तथा दुख दूर करके उनकी रक्षा करती है।
प्रश्न 16. कविता के अंत में कवि ने मातृभूमि को अपनी संतानों के लिए क्या माना है?
उत्तर – कविता के अंत में कवि ने मातृभूमि को अपनी संतानों के लिए जननी (माता) और प्राण माना है।
प्रश्न 17. मातृभूमि के आभूषण क्या-क्या हैं?
उत्तर – फूल और तारे मातृभूमि के आभूषण हैं, जो उसकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं।
प्रश्न 18. मातृभूमि पर किस प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं?
उत्तर – मातृभूमि पर एक से बढ़कर एक निराली और गुणकारी औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 19. कविता में मातृभूमि का सिंहासन किसे बताया गया है?
उत्तर – कविता में शेषनाग के फन (शेषफन) को मातृभूमि का विशाल सिंहासन बताया गया है।
प्रश्न 20. मातृभूमि किसका सात्विक भाव बढ़ा रही है?
उत्तर – मातृभूमि अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण से सभी प्राणियों का सात्विक भाव बढ़ा रही है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कविता “मातृभूमि” का केंद्रीय विषय क्या है?
उत्तर – कविता का केंद्रीय विषय मातृभूमि की दैवीय और पोषक छवि की प्रशंसा है। कवि भारत को शुद्धता, करुणा और रक्षा की प्रतीक माता के रूप में चित्रित करता है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता के माध्यम से देशभक्ति को प्रेरित करती है।
प्रश्न 2 – पहले छंद में मातृभूमि के परिधान का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – कवि मातृभूमि को नीले आकाश (नीलांबर) से सुसज्जित, हरे मैदानों से सजी, सूर्य-चंद्रमा को मुकुट और समुद्र को रत्नमयी मेखला के रूप में वर्णित करता है, जो उसकी दैवीय सुंदरता और महिमा को दर्शाता है।
प्रश्न 3 – कविता में नदियाँ और बादल किस भूमिका में हैं?
उत्तर – नदियाँ प्रेम का प्रवाह और बादल मातृभूमि का अभिषेक करने वाले तत्व हैं। ये प्रकृति की भक्ति और पोषण शक्ति को दर्शाते हैं, जो मातृभूमि की पवित्रता और जीवनदायिनी प्रकृति को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 4 – दूसरे छंद में छह ऋतुओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर – छह ऋतुएँ (षट्ऋतुएँ) मातृभूमि की विविधता और सामंजस्य को दर्शाती हैं। इनका अद्भुत क्रम प्रकृति की सुंदरता को बढ़ाता है, जो मखमल के फर्श से भी अधिक आकर्षक है, और उसकी शाश्वत जीवंतता को दर्शाता है।
प्रश्न 5 – तीसरे छंद में मातृभूमि की समृद्धि कैसे दर्शाई गई है?
उत्तर – कवि सुगंधित फूलों, अमृत जैसे फलों, अनूठी औषधियों और खानों में धातुओं का वर्णन करता है। ये सभी आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं, जो “वसुधा” और “धरा” नामों को सार्थक बनाते हैं।
प्रश्न 6 – चौथे छंद में पर्वतों और जंगलों की दृश्यात्मकता क्या है?
उत्तर – पर्वत दूरस्थ शैलश्रेणी, जंगल मातृभूमि की वेणी, नदियाँ उसकी सखी और फूलों से सजे वृक्ष उसकी पूजा करने वाले प्रतीत होते हैं। यह चित्रण मातृभूमि को पूजनीय और पवित्र बनाता है।
प्रश्न 7 – अंतिम छंद में मातृभूमि के किन गुणों का वर्णन है?
उत्तर – मातृभूमि को क्षमामयी, दयामयी, क्षेममयी, सुधामयी, वात्सल्यमयी, विश्वपालिनी, दुखहर्त्री और शरणादायिनी कहा गया है। ये गुण उसे एक दैवीय माता के रूप में चित्रित करते हैं, जो सभी की रक्षा करती है।
प्रश्न 8 – कविता देशभक्ति को आध्यात्मिकता से कैसे जोड़ती है?
उत्तर – मातृभूमि को सगुण मूर्ति के रूप में चित्रित कर कवि देशभक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर ले जाता है। प्रकृति और उसकी करुणा को ईश्वरीय गुणों के रूप में दिखाकर वह भक्ति और जीवन का आधार बनाती है।
प्रश्न 9 – कविता में सूर्य और चंद्रमा की क्या भूमिका है?
उत्तर – सूर्य दिन में अंधकार नष्ट करता है, और चंद्रमा रात में शुद्ध अमृत बरसाता है। ये प्रतीक मातृभूमि की ज्ञान, शुद्धता और निरंतर देखभाल को दर्शाते हैं, जो उसे जीवनदायिनी बनाते हैं।
प्रश्न 10 – कवि “वसुधा” और “धरा” नामों को यथार्थ क्यों कहता है?
उत्तर – “वसुधा” और “धरा” नाम इसलिए यथार्थ हैं क्योंकि मातृभूमि फूल, फल, औषधियाँ और धातुएँ प्रदान करती है। यह सभी आवश्यक संसाधनों की दात्री है, जो उसे धन और जीवन की प्रतीक बनाती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कविता “मातृभूमि” में कवि ने मातृभूमि को किस प्रकार मानवीकरण (Personification) के माध्यम से चित्रित किया है?
उत्तर – कवि मातृभूमि को एक दैवीय नारी के रूप में चित्रित करता है, जिसका परिधान नीला आकाश, मेखला समुद्र, और मुकुट सूर्य-चंद्रमा है। नदियाँ उसकी सखी, वृक्ष पूजा करने वाले, और मलय वायु चंदन चढ़ाने वाली है। यह मानवीकरण उसे क्षमामयी, दयामयी और शरणदायिनी माता के रूप में दर्शाता है, जो देशभक्ति और भक्ति को प्रेरित करता है।
प्रश्न 2 – कविता में प्रकृति के प्रतीकात्मक चित्रण और मातृभूमि की दैवीयता के बीच संबंध की चर्चा करें।
उत्तर – प्रकृति के तत्व—जल अमृत, हवा थकान मिटाने वाली, ऋतुएँ सामंजस्यपूर्ण, और फल-धातुएँ समृद्धि के प्रतीक हैं। बादल अभिषेक करते हैं, सूर्य अंधकार नष्ट करता है, और चंद्रमा शुद्धता बरसाता है। ये तत्व मातृभूमि को सगुण, क्षमामयी, विश्वपालिनी और दुखहर्त्री के रूप में दर्शाते हैं, जो आध्यात्मिक और जीवनदायिनी शक्ति के रूप में पूजनीय है।
प्रश्न 3 – कविता में मातृभूमि को दात्री और रक्षक के रूप में कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – मातृभूमि अमृत जैसे फल, औषधियाँ, धातुएँ, शुद्ध जल और सुगंधित हवा प्रदान करती है, जो “वसुधा” और “धरा” नामों को सार्थक बनाता है। वह दयामयी, दुखहर्त्री, भय निवारक और शांतिकारिणी है, जो शरण देती और विश्व की रक्षा करती है। प्रकृति की भक्ति से वह जीवनदायिनी और उद्धारक माता बनती है।
प्रश्न 4 – कविता में भौतिक सौंदर्य से आध्यात्मिक गुणों तक की प्रगति को समझाइए।
उत्तर – कविता भौतिक सौंदर्य से शुरू होती है—नीला आकाश, हरे मैदान, समुद्र, पर्वत और जंगल। फिर समृद्धि—फल, औषधियाँ और धातुएँ—का वर्णन करती है। अंत में, यह आध्यात्मिक गुणों—क्षमामयी, दयामयी, विश्वपालिनी, दुखहर्त्री और शरणदायिनी—को उजागर करती है। यह प्रगति मातृभूमि को दृश्य सौंदर्य से दैवीय माता तक ले जाती है, जो भक्ति और देशप्रेम को प्रेरित करती है।
प्रश्न 5 – कविता “मातृभूमि” मानव और मातृभूमि के संबंध के बारे में क्या संदेश देती है?
उत्तर – कविता मातृभूमि को केवल भूमि नहीं, बल्कि दैवीय माता के रूप में चित्रित करती है, जिसके प्रति श्रद्धा और रक्षा का कर्तव्य है। वह शुद्ध तत्वों, संसाधनों और करुणा की दात्री है। प्रकृति की भक्ति और उसके गुण सात्विक भाव जागृत करते हैं, जो कृतज्ञता, निष्ठा और सेवा को प्रेरित करते हैं।

