Main neer bhari dukh ki badali Chapter 06, Hindi Book, Class X, Tamilnadu Board, The Best Solutions,

कवयित्री परिचयः महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में फरूखाबाद (उत्तर प्रदेश) में एक सुसंपन्न परिवार में हुआ था। महादेवी जी रहस्यवादी एवं छायावादी कवयित्री ही नहीं कुशल चित्रकार भी थी। आपकी प्रसिद्ध रचना’ यामा’ के लिए आपको ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’ आदि आपकी रचनाएँ हैं। लोग इनको ‘आधुनिक मीरा’ मानते हैं।

कविता परिचय – मैं नीर भरी दुःख की बदली!

इस कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा के मन की पीड़ा उभरकर आई है। पर साथ ही उनकी परिणति सुख के रूप में अभिव्यंजित हुई है। दुःख में अंतर्निहित सुख के रूप में वह कभी निर्झरणी बनकर मचलती हैं तो कभी मलय-बयार बनकर बहती है। कभी नवजीवन का अंकुर बनकर विकसित होती हैं तो कभी सुख की सिहरन बनकर खिल उठती हैं, दुःख की बदली सुख बरसाकर अपना इतिहास रचकर विलीन हो जाती है। कविता में रहस्यवाद की झलक स्पष्ट है।

मैं नीर भरी दुःख की बदली!

मैं नीर भरी दुःख की बदली!

स्पन्दन में चिर निस्पन्दन बसा,

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा,

नयनों में दीपक से जलते

पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा,

श्वासों से स्वप्न पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय-बयार पली!

मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,

चिन्ता का भार बनी अविरल,

मैं नीर भरी दुःख की बदली!

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नवजीवन – अंकुर बन निकली।

पथ को न मलिन करना आना,

पद-चिह्न न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की! जग में!

सुख की सिहरन हो अन्त खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही,

उमड़ी कल थी मिट आज चली।

कठिन शब्दार्थ —

बदली – मेघ

स्पन्दन – गतिशीलता, कंपन

निस्पंद – स्पंदनहीन

पराग – मकरंद

नभ – आकाश

नव – नवीन

दुकूल – वस्त्र

अविरल – निरंतर

आगम – आना।

 



व्याख्या सहित

मैं नीर भरी दुख की बदली – व्याख्या सहित

01

मैं नीर भरी दुख की बदली!

शब्दार्थ –

नीर भरी – पानी या आँसू से भरी हुई

दुख की बदली – दुख से निर्मित बादलों की तरह

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

इस पंक्ति में महादेवी जी कहती हैं कि मैं आँसुओं से भरी हुई दुख की बदली के समान हूँ। यहाँ ‘मैं’ का अर्थ केवल कवयित्री महादेवी वर्मा तक सीमित नहीं है, बल्कि स्त्री-समाज और उसके जीवन से है। महादेवी बदली के रूपक के माध्यम से बताना चाहती हैं कि स्त्री के जीवन में कितना दुख है और स्त्री का जीवन किस तरह कुछ विशेषताओं से बना हुआ है। इस कविता में समानांतर रूप से बदली का अर्थ और स्त्री का अर्थ मौजूद है।

02

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

क्रंदन में आहत विश्व हँसा,

नयनों में दीपक से जलते

पलकों में निर्झरिणी मचली!

शब्दार्थ –

स्पंदन – सूक्ष्म गतिमयता, सिहरन के स्तर की गति,

चिर निस्पंद – स्थायी रूप से गतिहीनता

आहत विश्व – दुखी संसार

नयनों में दीपक से जलते – आकाश में बिजली का कौंधना

निर्झरिणी – नदी

मचली – उमड़ी

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि बदली स्पंदित होती है। उसके स्पंदन में न जाने कितने समय का निस्पंदन मौजूद होता है अर्थात् जब वह रोती है तो उसमें उस समय की पीड़ा भर नहीं रहती बल्कि कितने समय की पीड़ा समाहित रहती है। बदली जब क्रंदन अर्थात् गड़गड़ाहट और बारिश करती है तो पानी की प्रतीक्षा में दुखी संसार खुशी से हँस पड़ता है। बदली की आँखों में बिजली चमकती है, मानो दीपक जल उठते हैं। उसकी पलकों में निर्झरिणी मचल उठती है और बारिश होने लगती है। इस रूपक को स्त्री-जीवन के सन्दर्भ में समझें तो कह सकते हैं कि स्त्री की सिहरन तक में न जाने कितनी खामोशियों की अभिव्यक्ति होती है। उसके दुख का उपहास इस स्तर तक किया गया है कि जब वह रोती है तब शाश्वत रूप से दुखी इस संसार को भी खुशी मिलती है। स्त्री की आँखों में उम्मीद की चमक हमेशा बनी रही और उन्हीं आँखों से वह रोती भी रही।

03

मेरा पग पग संगीत भरा,

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय-बयार पली!

शब्दार्थ –

पग पग – हर पद

श्वासों से – साँसों से

स्वप्न-पराग – सपनों की तरह सुंदर परागकण,

झरा – निकलना, गिरना

नभ के नव रंग – आकाश के नए रंग

दुकूल – दुपट्टा

छाया में – छत्रच्छाया में, प्रभाव में

मलय – बयार सुगंधित वायु

 

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

महादेवी जी कहती हैं कि बदली का पग-पग संगीत से भरा है। जब वह चलती है तब अपने राग में संगीतमय ध्वनि करती हुई चलती है। बदली के छा जाने पर साँसों की तरह जो हवा चलती है उसके प्रभाव से न जाने कितने सुगंधित सपनों का जन्म होता है। बदली कहती है कि आकाश अपने नए-नए रंगों से मेरे लिए दुपट्टे का निर्माण करता है। मेरी छाया में चलनेवाली हवा मलय-बयार की तरह सुहानी होती है। इस रूपक का अर्थ इस तरह खुलता है कि स्त्री को प्रकृति ने अपेक्षाकृत ज्यादा कलात्मकता बनाया है। उसके चलने तक में प्रकृति ने एक तरह की लयात्मकता दी है। चाहे जितना भी दुख रहा हो, स्त्री की साँसों में सपने जरूर पलते रहे। रंगों की शोभा उस पर ही खिल पाई और उसकी छाया में न जाने कितने सपनों को पलने का मौका मिला। स्त्री की इस भूमिका को ठीक से समझने के लिए पुरुष से उसके रिश्ते को ध्यान में रखना प्रासंगिक होगा। पुरुषों ने कला के विभिन्न माध्यमों में स्त्री का जो व्यक्तित्व गढ़ा है, उनसे भी इन बातों की पुष्टि होती है। कलात्मक रचनाओं में बताया गया कि स्त्री सपनों को जन्म देती है, उसका साहचर्य सुगंध से भरा होता है, उसकी सुंदरता पर पुरुष न्योछावर हो जाता है।

 

04

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी

नवजीवन-अंकुर बन निकली!

शब्दार्थ –

क्षितिज-भृकुटि – क्षितिज मानो उस बदली की भृकुटी के समान है

धूमिल – धुएँ के रंग का

अविरल – निरंतर

रज-कण – धूल के कण

जल-कण – वर्षा की बूँदें

नवजीवन-अंकुर – नए जीवन के प्रतीक अंकुर के रूप में

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

कवयित्री कहती हैं कि वह स्वयं को एक ऐसी बदली के रूप में देखती हैं, जो क्षितिज (आकाश के अंतिम छोर) पर धूमिल रूप से फैली हुई है। धुएँ की तरह बदली जब क्षितिज पर छा जाती है, तब मौसम के बिगड़ने की चिंता प्रकट की जाने लगती है लेकिन वही बदली जब धूलकणों पर जल बनकर बरसती है तो उसके बरस जाने से नए जीवन को अंकुरित होने का अवसर प्राप्त होता है। इस रूपक को स्त्री जीवन से कुछ ऐसे जोड़ कर देखा जा सकता है कि स्त्री के होने की संभावना से ही चिंता प्रकट की जाने लगती है। मगर मनुष्य की सृष्टि को नवजीवन प्रदान करने में उसकी भूमिका सबसे बड़ी है। उनका दुख भी किसी न किसी के लिए प्रेरणा और नवजीवन का कारण बन जाता है।

 

05

पथ को न मलिन करता आना,

पद-चिह्न न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में

सुख की सिहरन हो अंत खिली!

शब्दार्थ –

मलिन – अशुद्ध, अपवित्र

पद-चिह्न – कदमों के निशान

सुधि – याद, स्मृति

आगम – जन्म, आना

सिहरन – कंपन

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

कवयित्री कहती हैं कि बदली छाती है, आकाश में चलती है और बरस जाती है। मगर वह अपने रास्ते को कभी भी मलिन नहीं करती है। उसके चले जाने के बाद आकाश मार्ग एकदम साफ-सुथरा नजर आता है। अपने पद चिह्नों को छोड़ते जाने का अहंकार भी उसमें नहीं है। लेकिन यह सच है कि मेरे आने की स्मृति संसार को सुख की सिहरन से भर देती है। उसी प्रकार स्त्री संसार में आती है, मगर उसकी भूमिका कहीं दर्ज नहीं की जाती है। पुरुषों के नाम और काम याद रखे जाते हैं। लेकिन महिलाओं के नाम-काम संसार में कहीं गुम हो जाते हैं। लेकिन जब कभी भी स्त्री के आगमन को याद किया गया है, एक सुखद रोमांच की अनुभूति हुई है।

 

06

विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

 

शब्दार्थ –

विस्तृत नभ – विशाल आकाश

कोना – कोई भी हिस्सा

इतिहास – जीवन-वृत्त

उमड़ी कल थी – जन्म हुआ था

मिट आज चली – मृत्यु हो गई

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

कविता की अंतिम पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि इस विस्तृत आकाश का कोई कोना बदली के नाम दर्ज नहीं हो सका। उसका परिचय और इतिहास बस इतना ही रहा कि कल वह उमड़ी थी और आज मिट गई। स्त्री अधिकार-विहीन रही है। इस विस्तृत संसार में वह अनेक अधिकारों से वंचित रही। जिन अधिकारों को प्राप्त कर पुरुष अपने को इतिहास में बनाए रख सका, उन अधिकारों से वंचित रहने के कारण स्त्री के हिस्से अमरता नहीं आई। वह मौजूद तो रही, मगर दर्ज न हो सकी। उसका परिचय इतना ही रहा कि वह किसी पुरुष के नाम से पहचानी गई। उसके बारे में बस इतना ही सच रहा कि उसका जन्म हुआ था और फिर उसकी मृत्यु हो गई। उसके जीवन की भूमिका अलिखित रह गई।

इस तरह महादेवी वर्मा ने इस कविता में बदली के रूपक से स्त्री-जीवन के दुख को व्यक्त किया है। समाज के द्वारा जो उपेक्षा मिली है उसका भाव-प्रवण चित्रण इस कविता की विशेषता है। महादेवी इसमें केवल दुख का बयान करके रुक नहीं जाती हैं, बल्कि वे स्त्री की सकारात्मक भूमिका को भी बताती चलती हैं।

अभ्यास के लिए प्रश्न

  1. महादेवी वर्मा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर – महादेवी वर्मा (जन्म – 26 मार्च 1907, फर्रुखाबाद; मृत्यु – 11 सितंबर 1987, प्रयाग) हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उन्हें ‘आधुनिक युग की मीरा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे एक कवयित्री होने के साथ-साथ एक सिद्धहस्त गद्यकार, चित्रकार और संगीतकार भी थीं। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म विभूषण’ और ‘यामा’ काव्य संग्रह के लिए ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

  1. महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं का नाम उल्लेख कीजिए।

उत्तर – महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं –

कविता संग्रह – नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942) और यामा।

रेखाचित्र और संस्मरण – अतीत के चलचित्र (1941), स्मृति की रेखाएँ (1943), पथ के साथी (1956), मेरा परिवार (1972) और शृंखला की कड़ियाँ (1942)।

  1. मैं नीर भरी दुःख की बदली’ का भाव समझाइये।

उत्तर – ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ का भाव यह है कि कवयित्री जो स्त्री-समाज का प्रतिनिधित्व कर रही हैं अपने जीवन की तुलना आँसुओं से भरी हुई एक बदली से करती हैं। इसका भाव है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ है, लेकिन इसमें केवल दुख ही नहीं है, बल्कि बदली की तरह उसमें जीवन की सुंदरता, संगीत, रंग और सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति (संभावना) भी भरी हुई है। हालाँकि, संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाकर उसकी भूमिका को अनदेखा (अलक्षित और अनुल्लिखित) करने की कोशिश की है।

  1. महादेवी वर्मा ने अपने मन की पीड़ा को किस प्रकार प्रस्तुत किया है?

उत्तर – महादेवी वर्मा ने अपने मन की पीड़ा को ‘दुख की बदली’ के रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया है। वे कहती हैं कि जिस प्रकार बदली पानी से भरी होती है, उसी प्रकार उनका जीवन आँसुओं और दुख से भरा है। उन्होंने अपनी पीड़ा को बदली के इतिहास के माध्यम से व्यक्त किया है, जिसका इस विशाल आकाश में कोई अपना कोना नहीं है और जिसका परिचय केवल इतना है कि वह कल उमड़ी थी और आज मिट गई । यह स्त्री जीवन की उपेक्षा और उसके अलिखित इतिहास की पीड़ा को दर्शाता है।

  1. दुःख को सुख में कवयित्री ने किस प्रकार परिणति की है?

उत्तर – कवयित्री ने दुःख को सुख में इस प्रकार परिणत किया है कि बदली (स्त्री) का दुख और उसका रोना (क्रंदन) संसार के लिए सुख और नवजीवन का कारण बनता है।

जब बदली क्रंदन (गड़गड़ाहट और बारिश) करती है, तो पानी की प्रतीक्षा में दुखी संसार (आहत विश्व) खुशी से हँस पड़ता है।

जब बदली धूलकणों (रज-कण) पर जल-कण बनकर बरसती है, तो उससे नए जीवन के अंकुर (नवजीवन-अंकुर) फूट पड़ते हैं।

बदली के आने की स्मृति (सुधि मेरे आगम की) भी संसार में ‘सुख की सिहरन’ बनकर खिल उठती है।

इस प्रकार, स्त्री का दुख भी संसार के लिए सृजनात्मक और सुखदायी बन जाता है।

 

  1. महादेवी वर्मा ने अपना परिचय किस प्रकार दिया।

उत्तर – महादेवी वर्मा ने कविता की अंतिम पंक्तियों में अपना परिचय एक ऐसी बदली के रूप में दिया है जिसका इस विशाल संसार (विस्तृत नभ) में कोई स्थायी स्थान या अधिकार (कोई कोना अपना) नहीं है। उन्होंने अपना परिचय और इतिहास (जीवन-वृत्त) बस इतना ही बताया है कि “उमड़ी कल थी मिट आज चली!” अर्थात्, उसका जन्म हुआ और फिर उसकी मृत्यु हो गई। उसका परिचय किसी पुरुष के नाम से ही पहचाना गया और उसके अपने जीवन की भूमिका अलिखित ही रह गई।

 

  1. I) सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  2. मेरा पग पग संगीत भरा,

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय-बयार पली!

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

महादेवी जी कहती हैं कि बदली का पग-पग संगीत से भरा है। जब वह चलती है तब अपने राग में संगीतमय ध्वनि करती हुई चलती है। बदली के छा जाने पर साँसों की तरह जो हवा चलती है उसके प्रभाव से न जाने कितने सुगंधित सपनों का जन्म होता है। बदली कहती है कि आकाश अपने नए-नए रंगों से मेरे लिए दुपट्टे का निर्माण करता है। मेरी छाया में चलनेवाली हवा मलय-बयार की तरह सुहानी होती

 

  1. विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

प्रसंग –

मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में महादेवी वर्मा ने कहा है कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा हुआ तो है, मगर उसमें जीवन की सुंदरता और संभावना भी भरी हुई है। प्रकृति ने उसे संगीत और रंगों से भरपूर सजाया है, उसमें सृष्टि को आगे बढ़ाने की शक्ति दी है। यहीं यह बात भी सही है कि संसार ने उसे अधिकार-विहीन बनाया है। उसकी भूमिका को अलक्षित और अनुल्लिखित बनाने की पूरी कोशिश की गई है।

व्याख्या –

कविता की अंतिम पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि इस विस्तृत आकाश का कोई कोना बदली के नाम दर्ज नहीं हो सका। उसका परिचय और इतिहास बस इतना ही रहा कि कल वह उमड़ी थी और आज मिट गई। स्त्री अधिकार-विहीन रही है। इस विस्तृत संसार में वह अनेक अधिकारों से वंचित रही। जिन अधिकारों को प्राप्त कर पुरुष अपने को इतिहास में बनाए रख सका, उन अधिकारों से वंचित रहने के कारण स्त्री के हिस्से अमरता नहीं आई। वह मौजूद तो रही, मगर दर्ज न हो सकी। उसका परिचय इतना ही रहा कि वह किसी पुरुष के नाम से पहचानी गई। उसके बारे में बस इतना ही सच रहा कि उसका जन्म हुआ था और फिर उसकी मृत्यु हो गई। उसके जीवन की भूमिका अलिखित रह गई।

 

II)‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ कविता का सारांश लिखिए।

उत्तर – यह कविता महादेवी वर्मा के साथ-साथ समस्त नारी समुदाय की भावनात्मक गहराई और आत्मा की शुद्धता को दर्शाती है। इसमें वे अपने साथ नारियों को नि -स्वार्थ प्रेम, त्याग और करुणा का प्रतीक मानती हैं। यह कविता केवल उनके आत्मसंघर्ष की अभिव्यक्ति ही नहीं, बल्कि एक दार्शनिक संदेश भी है कि जीवन क्षणिक है और हमें अपने दुख को भी किसी के लिए प्रेरणा और सुख का कारण बना देना चाहिए। महादेवी वर्मा ने अपने दुख को बादल की तरह प्रस्तुत किया है, जो दूसरों के लिए सुखदायी बनता है। उनका व्यक्तित्व किसी चिह्न को छोड़कर नहीं जाता, लेकिन उनकी स्मृति सुकून देने वाली होती है। वह जीवन की नश्वरता को भी स्वीकार करती हैं और अपने अस्तित्व को प्रकृति से जोड़ती हैं।

 

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 – ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ में ‘मैं’ का अर्थ क्या है?

  1. A) केवल महादेवी वर्मा
  2. B) स्त्री-समाज और उसके जीवन से
  3. C) वर्षा का जल
  4. D) आकाश का कोना

उत्तर – B

प्रश्न 2 – ‘नीर भरी’ शब्द का अर्थ क्या है?

  1. A) धूल से भरी
  2. B) पानी या आँसू से भरी हुई
  3. C) संगीत से भरी
  4. D) रंगों से भरी

उत्तर – B

प्रश्न 3 – कविता में बदली का रूपक किसके लिए प्रयुक्त है?

  1. A) पुरुष जीवन
  2. B) स्त्री जीवन
  3. C) प्रकृति
  4. D) संसार

उत्तर – B

प्रश्न 4 – ‘स्पंदन में चिर निस्पंद बसा’ का अर्थ क्या है?

  1. A) गति में स्थिरता
  2. B) रोने में स्थायी गतिहीनता
  3. C) सिहरन में खामोशियाँ
  4. D) हँसने में दुख

उत्तर – C

प्रश्न 5 – ‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से क्या तात्पर्य है?

  1. A) दुखी संसार रोता है
  2. B) स्त्री के रोने से संसार हँसता है
  3. C) बदली गड़गड़ाती है
  4. D) वर्षा रुक जाती है

उत्तर – B

प्रश्न 6 – ‘नयनों में दीपक से जलते’ का प्रतीक क्या है?

  1. A) आँखों में आँसू
  2. B) बिजली चमकना
  3. C) पलकों में नदी
  4. D) संगीत बजना

उत्तर – B

प्रश्न 7 – ‘मेरा पग पग संगीत भरा’ से स्त्री के बारे में क्या कहा गया?

  1. A) उसके चलने में लयात्मकता
  2. B) उसके रोने में संगीत
  3. C) उसके जाने में दुख
  4. D) उसके इतिहास में संगीत

उत्तर – A

प्रश्न 8 – ‘श्वासों से स्वप्न-पराग झरा’ का अर्थ है?

  1. A) साँसों से सपनों के कण गिरते हैं
  2. B) श्वासों से दुख झरता है
  3. C) पराग से स्वप्न बनते हैं
  4. D) झरने से श्वास आती है

उत्तर – A

प्रश्न 9 – ‘नभ के नव रंग बुनते दुकूल’ में ‘दुकूल’ का अर्थ?

  1. A) दुपट्टा
  2. B) संगीत
  3. C) वर्षा
  4. D) छाया

उत्तर – A

प्रश्न 10 – ‘क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल’ से क्या संकेत है?

  1. A) आकाश साफ होना
  2. B) बदली के फैलने से चिंता
  3. C) वर्षा रुकना
  4. D) संगीत बजना

उत्तर – B

प्रश्न 11 – ‘रज-कण पर जल-कण हो बरसी’ का परिणाम क्या है?

  1. A) धूल मलिन होना
  2. B) नवजीवन-अंकुर निकलना
  3. C) पथ मलिन होना
  4. D) इतिहास मिटना

उत्तर – B

प्रश्न 12 – ‘पथ को न मलिन करता आना’ से बदली/स्त्री की क्या विशेषता?

  1. A) रास्ता गंदा करना
  2. B) साफ-सुथरा छोड़ना
  3. C) पदचिह्न छोड़ना
  4. D) स्मृति मिटाना

उत्तर – B

प्रश्न 13 – ‘सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन हो अंत खिली’ का अर्थ?

  1. A) आने की याद से सुखद रोमांच
  2. B) जाने से दुख
  3. C) इतिहास मिटना
  4. D) कोना अपना होना

उत्तर – A

प्रश्न 14 – ‘विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना’ से क्या तात्पर्य?

  1. A) अधिकार प्राप्ति
  2. B) अधिकार-विहीनता
  3. C) संगीत भरा जीवन
  4. D) रंग बुनना

उत्तर – B

प्रश्न 15 – कविता का इतिहास क्या है?

  1. A) उमड़ी कल थी मिट आज चली
  2. B) पग पग संगीत
  3. C) नयनों में दीपक
  4. D) स्पंदन में निस्पंद

उत्तर – A

प्रश्न 16 – कविता की मुख्य विशेषता क्या है?

  1. A) केवल दुख का बयान
  2. B) दुख और सकारात्मक भूमिका दोनों
  3. C) पुरुष जीवन
  4. D) वर्षा का वर्णन

उत्तर – B

प्रश्न 17 – ‘मलय-बयार पली’ का अर्थ?

  1. A) सुगंधित वायु
  2. B) दुखी हवा
  3. C) मलिन पथ
  4. D) निर्झरिणी

उत्तर – A

प्रश्न 18 – स्त्री की भूमिका क्या है?

  1. A) सृष्टि को आगे बढ़ाना
  2. B) इतिहास मिटाना
  3. C) कोना अपना करना
  4. D) पदचिह्न देना

उत्तर – A

प्रश्न 19 – ‘चिंता का भार बनी अविरल’ से क्या?

  1. A) निरंतर चिंता का प्रतीक
  2. B) सुख का प्रतीक
  3. C) संगीत का प्रतीक
  4. D) रंगों का प्रतीक

उत्तर – A

प्रश्न 20 – कविता में समाज की क्या कोशिश?

  1. A) स्त्री को अलक्षित बनाना
  2. B) अधिकार देना
  3. C) संगीत सिखाना
  4. D) इतिहास लिखना

उत्तर – A

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता की कवयित्री कौन हैं?
    उत्तर – ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा हैं।
  2. प्रश्न – कवयित्री ने स्वयं की तुलना किससे की है?
    उत्तर – कवयित्री ने स्वयं की तुलना आँसुओं से भरी हुई दुख की बदली से की है।
  3. प्रश्न – कविता में ‘नीर भरी’ शब्द का क्या अर्थ है?
    उत्तर – ‘नीर भरी’ का अर्थ है पानी या आँसू से भरी हुई।
  4. प्रश्न – कवयित्री के अनुसार ‘मैं’ शब्द का आशय किससे है?
    उत्तर – कवयित्री के अनुसार ‘मैं’ शब्द का आशय केवल उनसे नहीं बल्कि पूरे स्त्री-समाज से है।
  5. प्रश्न – बदली के क्रंदन से विश्व क्यों हँस पड़ता है?
    उत्तर – बदली के क्रंदन अर्थात वर्षा से संसार को राहत मिलती है, इसलिए दुखी विश्व हँस पड़ता है।
  6. प्रश्न – कवयित्री ने बदली की आँखों में क्या देखा है?
    उत्तर – कवयित्री ने बदली की आँखों में दीपक की तरह जलती हुई बिजली की चमक देखी है।
  7. प्रश्न – ‘स्पंदन में चिर निस्पंद बसा’ पंक्ति का क्या अर्थ है?
    उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि बदली के क्षणिक स्पंदन में भी लंबे समय की निस्पंदता समाई हुई है।
  8. प्रश्न – कवयित्री ने बदली के पग-पग में क्या बताया है?
    उत्तर – कवयित्री ने बदली के पग-पग में संगीत भरा बताया है।
  9. प्रश्न – ‘स्वप्न-पराग’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
    उत्तर – ‘स्वप्न-पराग’ से अभिप्राय है कि बदली की साँसों से सुंदर और कोमल सपनों की सृष्टि होती है।
  10. प्रश्न – ‘नभ के नव रंग बुनते दुकूल’ से कवयित्री क्या कहना चाहती हैं?
    उत्तर – कवयित्री कहना चाहती हैं कि आकाश अपने नए रंगों से बदली के लिए दुपट्टा बुनता है।
  11. प्रश्न – बदली के धूमिल होने पर लोग कैसी भावना प्रकट करते हैं?
    उत्तर – बदली के धूमिल होने पर लोग चिंता की भावना प्रकट करते हैं।
  12. प्रश्न – बदली के बरसने पर क्या फल मिलता है?
    उत्तर – बदली के बरसने पर रजकणों पर जल गिरता है और नए जीवन के अंकुर फूटते हैं।
  13. प्रश्न – कवयित्री के अनुसार बदली अपने मार्ग को कैसा रखती है?
    उत्तर – कवयित्री के अनुसार बदली अपने मार्ग को कभी मलिन नहीं करती, उसे स्वच्छ रखती है।
  14. प्रश्न – बदली अपने जाने के बाद क्या छोड़ जाती है?
    उत्तर – बदली अपने जाने के बाद सुख की सिहरन और शांति का वातावरण छोड़ जाती है।
  15. प्रश्न – कवयित्री का ‘इतिहास’ क्या बताया गया है?
    उत्तर – कवयित्री का इतिहास इतना ही बताया गया है कि वह कल उमड़ी थी और आज मिट गई।
  16. प्रश्न – कवयित्री ने ‘विस्तृत नभ’ का उल्लेख किस संदर्भ में किया है?
    उत्तर – कवयित्री ने ‘विस्तृत नभ’ का उल्लेख यह बताने के लिए किया है कि इस विशाल संसार में उसका कोई कोना उसका अपना नहीं है।
  17. प्रश्न – कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाहती हैं?
    उत्तर – कवयित्री यह संदेश देना चाहती हैं कि स्त्री का जीवन दुखों से भरा है, फिर भी वह सृष्टि की सुंदरता और नवजीवन की आधार है।
  18. प्रश्न – कविता में ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ पंक्ति का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
    उत्तर – इस पंक्ति का प्रतीकात्मक अर्थ है कि स्त्री समाज के दुख, संवेदना और सृजनशीलता का प्रतीक है।
  19. प्रश्न – कवयित्री ने समाज में स्त्री की स्थिति को कैसे चित्रित किया है?
    उत्तर – कवयित्री ने समाज में स्त्री की स्थिति को अधिकार-विहीन, उपेक्षित और अलिखित रूप में चित्रित किया है।
  20. प्रश्न – कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
    उत्तर – कविता का केंद्रीय भाव यह है कि स्त्री का जीवन दुःखमय होते हुए भी सृजन, सौंदर्य और त्याग से परिपूर्ण है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 – ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ पंक्ति की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – महादेवी जी कहती हैं कि मैं आँसुओं से भरी दुख की बदली हूँ। ‘मैं’ स्त्री-समाज का प्रतीक है। बदली रूपक से स्त्री के दुखपूर्ण जीवन को दर्शाया गया है, जिसमें दुख के साथ सुंदरता और सृजन शक्ति भी है। समाज ने स्त्री को अधिकार-विहीन बनाया।

प्रश्न 2 – ‘स्पंदन में चिर निस्पंद बसा’ की व्याख्या।

उत्तर – बदली के स्पंदन (सिहरन) में स्थायी गतिहीनता (खामोशी) बसती है। स्त्री की सिहरन में अनगिनत दुख की अभिव्यक्ति होती है। उसके क्रंदन से दुखी संसार हँसता है। आँखों में बिजली चमकती और पलकों से वर्षा उमड़ती है, जो स्त्री की आशा और दुख को दर्शाता है।

प्रश्न 3 – ‘मेरा पग पग संगीत भरा’ पंक्ति का अर्थ।

उत्तर – बदली का हर कदम संगीतमय है। स्त्री को प्रकृति ने लयात्मकता दी। उसके चलने में संगीत, साँसों से सपनों के कण झरते हैं। आकाश नए रंगों से दुपट्टा बुनता और छाया में सुगंधित हवा बहती है, जो स्त्री की कलात्मक सुंदरता को प्रकट करता है।

प्रश्न 4 – ‘क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल’ की व्याख्या।

उत्तर – बदली क्षितिज पर धूमिल फैलकर चिंता का कारण बनती है, किंतु धूल पर बरसकर नवजीवन अंकुरित करती है। स्त्री के अस्तित्व से चिंता होती है, मगर वह सृष्टि को नया जीवन देती है। उसका दुख प्रेरणा बनता, जो समाज की उपेक्षा के बावजूद सृजन शक्ति को रेखांकित करता है।

प्रश्न 5 – ‘पथ को न मलिन करता आना’ का तात्पर्य।

उत्तर – बदली आकाश में चलती-बरसती है, मगर पथ मलिन नहीं करती और पदचिह्न नहीं छोड़ती। स्त्री संसार में आती है, किंतु उसकी भूमिका दर्ज नहीं होती। पुरुषों के नाम याद रहते, स्त्री गुम हो जाती। फिर भी, उसके आगमन की स्मृति सुखद सिहरन जगाती है।

प्रश्न 6 – ‘विस्तृत नभ का कोई कोना…’ पंक्तियों की व्याख्या।

उत्तर – बदली का आकाश में कोई कोना अपना नहीं। उसका इतिहास केवल जन्म-मृत्यु। स्त्री अधिकार-विहीन रही, संसार में वंचित। पुरुष इतिहास बनाए, स्त्री अमर न हो सकी। उसका परिचय पुरुष के नाम से, जीवन अलिखित रहा।

प्रश्न 7 – कविता में स्त्री की सकारात्मक भूमिका क्या है?

उत्तर – स्त्री दुखी तो है, मगर प्रकृति ने उसे संगीत-रंगों से सजाया। वह सृष्टि आगे बढ़ाती, सपनों को जन्म देती। छाया में सुगंध फैलाती, नवजीवन अंकुरित करती। पुरुष कला में स्त्री को सुंदर साहचर्य मानता, जो उसकी रचनात्मक शक्ति को दर्शाता है।

प्रश्न 8 – ‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ का स्त्री से संबंध।

उत्तर – बदली के क्रंदन (वर्षा) से दुखी संसार हँसता। स्त्री के रोने का उपहास होता, मगर उससे संसार को सुख मिलता। शाश्वत दुखी जगत को स्त्री की पीड़ा से आनंद, जो समाज की क्रूरता और स्त्री की जीवनदायिनी भूमिका दोनों को उजागर करता है।

प्रश्न 9 – ‘नभ के नव रंग बुनते दुकूल’ की व्याख्या।

उत्तर – आकाश नए रंगों से बदली का दुपट्टा बुनता। स्त्री पर रंगों की शोभा खिलती। पुरुष कला में स्त्री को न्योछावर मानता। उसकी सुंदरता पर रंग, जो प्रकृति द्वारा दी गई कलात्मकता और सृजन शक्ति को व्यक्त करता है।

प्रश्न 10 – कविता का प्रसंग क्या है?

उत्तर – स्त्री जीवन दुखपूर्ण मगर सुंदर। प्रकृति ने संगीत-रंग दिए, सृष्टि शक्ति प्रदान की। समाज ने अधिकार छीने, भूमिका अलक्षित की। महादेवी बदली रूपक से दुख-उपेक्षा और सकारात्मकता दोनों चित्रित करती हैं।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 – कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ की समग्र व्याख्या कीजिए।

उत्तर – महादेवी वर्मा ने बदली रूपक से स्त्री जीवन चित्रित किया। वह आँसुओं से भरी दुख की बदली है, जिसमें स्पंदन-क्रंदन से संसार हँसता, पग-पग संगीत, साँसों से स्वप्न झरते। क्षितिज पर चिंता बनती, मगर नवजीवन अंकुरित करती। पथ मलिन न कर, स्मृति सुखद सिहरन जगाती। अधिकार-विहीन रही, इतिहास जन्म-मृत्यु मात्र। दुख के साथ सृजन शक्ति, उपेक्षा का भाव-प्रवण चित्रण कविता की विशेषता।

प्रश्न 2 – स्त्री की सकारात्मक विशेषताओं का वर्णन कविता के आधार पर कीजिए।

उत्तर – कविता में स्त्री को प्रकृति ने संगीत-रंगों से सजाया। पग-पग संगीतमय, श्वासों से स्वप्न-पराग झरता। नभ नव रंग बुनता, छाया में मलय-बयार पलती। नयनों में दीपक जलते, निर्झरिणी मचलती। रज-कण पर बरसकर नवजीवन अंकुरित करती। आगम की सुधि सुख सिहरन जगाती। समाज उपेक्षा करे, स्त्री सृष्टि आगे बढ़ाती, सपनों को जन्म देती, सुगंधित साहचर्य प्रदान करती। पुरुष कला में उसे न्योछावर मानता।

प्रश्न 3 – कविता में समाज द्वारा स्त्री की उपेक्षा का चित्रण कैसे हुआ?

उत्तर – बदली रूपक से दिखाया कि विस्तृत नभ का कोना अपना न होना, इतिहास ‘उमड़ी कल थी मिट आज चली’। स्त्री अधिकार-विहीन, भूमिका अलक्षित-अनुल्लिखित। पथ मलिन न कर, पदचिह्न न देकर चली। पुरुष नाम-काम याद, स्त्री गुम। क्षितिज पर धूमिल हो चिंता बने, क्रंदन का उपहास। समाज ने सृजन शक्ति को नजरअंदाज कर अमरता न दी। परिचय पुरुष नाम से, जीवन अलिखित। दुख-उपेक्षा का भावपूर्ण वर्णन।

प्रश्न 4 – ‘स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ पंक्तियों की विस्तृत व्याख्या।

उत्तर – स्पंदन (सिहरन) में चिर निस्पंद (खामोशी) बसती, अर्थात् स्त्री की सिहरन में अनगिनत दुख की स्थायी अभिव्यक्ति। क्रंदन (रोना-वर्षा) से आहत विश्व हँसता, स्त्री के दुख का उपहास कर संसार सुखी। नयनों में दीपक (बिजली) जलते, आशा चमकती; पलकों में निर्झरिणी मचलती, आँसू उमड़ते। समाज क्रूर, स्त्री की पीड़ा से लाभान्वित। किंतु आँखों में उम्मीद बनी रहती। यह दुख-सृजन का समांतर चित्रण स्त्री जीवन की जटिलता उजागर करता।

प्रश्न 5 – कविता की अंतिम पंक्तियों से स्त्री के इतिहास का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर – ‘विस्तृत नभ का कोई कोना… उमड़ी कल थी मिट आज चली!’ से स्पष्ट कि बदली/स्त्री का आकाश/संसार में कोई हिस्सा अपना न। परिचय-इतिहास जन्म-मृत्यु मात्र। अधिकार वंचना से पुरुष अमर, स्त्री अलिखित। भूमिका सृजनपूर्ण मगर दर्ज न। पुरुष नाम से पहचान, जीवन गुम। समाज की कोशिश अलक्षित रखना सफल। महादेवी दुख बयान कर सकारात्मकता जोड़तीं, स्त्री को सिहरन जगाने वाली स्मृति बनाती।

You cannot copy content of this page