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लेखक परिचय – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी भी उन्हीं दुर्लभ हस्तियों में से थे जिन्होंने आज की हिंदी के लिए रास्ता बनाया. किसी बड़े और घने दरख़्त की तरह वे एक लंबे समय तक साहित्यिक जगत के सिर पर साया बनकर खड़े रहे. उनकी इस छाया में हिंदी साहित्य के कई नाम फले-फूले. यह उनका अतुलनीय योगदान ही था जिसके चलते आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ (1893-1918) के नाम से जाना जाता है। 

 

लोभ

लोभ बहुत बुरा है। वह मनुष्य का जीवन दुःखमय कर देता है क्योंकि अधिक धनी होने से कोई सुख नहीं होता है। धन देने से सुख मोल नहीं मिलता। इसलिए जो मनुष्य सोने और चाँदी के ढेर को ही सब कुछ समझता है वह मूर्ख है। मूर्ख नहीं तो वह वृथा अहंकारी अवश्य है, जो बहुत धनवान है, वह यदि बुद्धिमान और बहुत योग्य भी होता तो हम धन ही को सब-कुछ समझते, परंतु ऐसा नहीं है। धनी मनुष्य सबसे अधिक बुद्धिमान नहीं होते। इसलिए धन को विशेष आदर की दृष्टि से देखना भूल है क्योंकि उससे सच्चा सुख नहीं मिलता। इस देश के पहुँचे हुए विद्वानों ने धन को तुच्छ माना है। यह बात आजकल के समय के अनुकूल नहीं है। यूरोप और अमेरिका के ज्ञानी धन ही को बल, बल नहीं सर्वस्व समझते हैं परंतु जब धन के कारण अनेक अनर्थ होते हैं, उस धन को प्रधानता कैसे दी जा सकती है? और देशों में उसे भले ही प्रधानता दी जाए परंतु भारतवर्ष में उसे प्रधानता मिलना कठिन है। जिस देश के निवासी संसार ही को माया में एक दुख का मूल कारण समझते हैं वे धन को कदापि सिक्का है तो नहीं मान सकते।

बहुत धनवान होना व्यर्थ है उससे कोई लाभ नहीं, क्योंकि साधारण नृत्य पर खाने-पीने और पहनने आने के लिए जो धन काम आता है वही सफल है। उससे अधिक धन होने से कोई काम नहीं निकलता। स्वभाव अथवा प्रकृति के अनुसार ही खाने-पीने की आवश्यकताओं को दूर करने के लिए धन की चाह होती है। दूसरों को दिखलाने अथवा उसे स्वयं देखने के लिए धन इकट्ठा करने से कोई लाभ नहीं। कोई जगत सेठ ही क्यों न हो यदि वह सितार या वीणा बजाना सीखना चाहेगा तो उसे उस विद्या को उसी तरह सीखना पड़ेगा जिस तरह एक निर्धन महाकंगाल को सीखना पड़ता है। उस गुण को प्राप्त करने में उसकी धनाढ्यता जरा भी काम न देगी। वह उसे मोल नहीं ले सकता, जब उसे धन के बल से वीणा बजाने के समान एक साधारण गुण भी नहीं मिल सकता। तब शांति शुद्धता और अधीरता आदि पवित्र गुण क्या कभी उसे मिल सकते हैं? कभी नहीं।

जिसके पास आवश्यकता से थोड़ा भी अधिक धन हो जाता है वह अपने आप को अर्थात्त् यों कहिए अपनी आत्मा को, अपने वश में नहीं रख सकता, क्योंकि संतोष न होने के कारण वह उस धन को प्रतिदिन बढ़ाने का यत्न करता है। अतएव वह धन किस काम का जो लोभ को बढ़ाता जाए? भूख लगने पर भोजन कर लेने से तृप्ति हो जाती है। प्यास लगने पर पानी पी लेने से तृप्ति हो जाती है परंतु धन से तृप्ति नहीं होती। उसे पाकर और भी लोभ बढ़ता है, इसलिए धनी होना एक प्रकार का रोग है। रात को जाड़े से बचने के लिए एक लिहाफ काफी होता है। यदि किसी के ऊपर आठ, दस लिहाफ डाल दिए जाएँ, तो उसे बोझ मालूम होने लगेगा और उल्टा कष्ट होगा। इसीलिए धनाढ्यता भी एक प्रकार की बीमारी है जिससे भरसक रोग हो जाता है। वह खाता ही चला जाता है उसे कभी तृप्ति नहीं होती। जिसे धनाढ्यता का रोग हो जाता है वह भी कभी प्राप्त नहीं होता। तृप्ति का न होना अर्थात्त् आवश्यकताओं का बढ़ जाना ही दुख का कारण है। और दुख है, वहाँ सुख रह ही नहीं सकता। उन दोनों में परस्पर बैर है। अतएव उसी को धनी समझना चाहिए जिसकी आवश्यकताएँ कम है, क्योंकि वह थोड़े में तृप्त हो जाता है तृप्ति ही सुख है और लोभ ही दुख है।

संतोष निरोगता का लक्षण है, लोभ बीमारी का लक्षण है। जो मनुष्य खाते-खाते संतुष्ट नहीं होता उसे अधिक खिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, उसके लिए वैध की आवश्यकता होती है। ऐसे मनुष्य को अधिक खिलाने की अपेक्षा उनके खाए हुए पदार्थ को वमन कराके बाहर निकालना पड़ता है क्योंकि अनावश्यक अथवा आवश्यकता से अधिक पदार्थ पेट में रहने से रोग हुए बिना नहीं रहता। इसी तरह जिनको संतोष नहीं अर्थात्त् जो लोग प्रतिदिन अधिक से अधिक धन इकट्ठा करने के यत्न में लगे रहते हैं उनको अधिक देने की अपेक्षा उनसे कुछ छीन लेना अच्छा है, क्योंकि जब कोई वस्तु कम हो जाती है तब मनुष्य बची हुई से संतोष करता है। अतएव संतोष होने से उसे सुख मिलता है। संतोष न होने से कभी सुख नहीं मिलता। किसी न किसी वस्तु की सदैव कमी बनी ही रहती है। लोभी मनुष्य को चाहे त्रिलोक की संपत्ति मिल जाए तो भी उसे और संपत्ति पाने की इच्छा बनी ही रहेगी। लोभ एक तरह की बीमारी है परंतु है बड़ी सख्त बीमारी। सख्त इसीलिए कि वह अपने को बढ़ाने का यत्न करती है घटाने का नहीं। जो मनुष्य भूखा होता है वह भोजन करता है, भोजन छोड़ नहीं देगा। परंतु लोभी का प्रकार उल्टा है उसे द्रव्य की भूख रहती है परंतु जब वह उसे मिल जाता है तब उसे वह काम में नहीं लाता, रख छोड़ता है और अधिक धन पाने के लिए दौड़-धूप करने लगता है।

लोभी मनुष्य बहुधा इसीलिए धन इकट्ठा करता है जिसमें उसे किसी समय उसकी कमी ना पड़े परंतु उसे कमी हमेशा ही बनी रहती है पहले उसकी कमी कल्पित होती है परंतु पीछे से वह यथार्थ असली हो जाती है क्योंकि घर में धन होने पर भी वह काम में नहीं ला सकता है लोभ से असंतोष की वृद्धि होती है और संतोष का सुख खाक में मिल जाता है लोभ से भूख बढ़ती है और तृप्ति घटती है लोभो से मूल धन व्यस्त भरता है और उसका उपयोग कम होता है लोभी का धन देखने के लिए व्यथा रक्षा करने के लिए और दूसरों को छोड़ जाने के लिए है ऐसे धन से क्या लाभ ऐसे धन को इकट्ठा करने में अनेक कष्ट उठाने की अपेक्षा संसार भर में कितना धन है उसे अपना ही समझना अच्छा है लोभी का धन उसके काम तो आता नहीं इसलिए उसे दूसरे का धन मन ही मन अपना समझने में कोई हानि नहीं उससे उल्टा लाभ है क्योंकि उसे प्राप्त करने के लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता लोगों को हंसाने के संतरी समझना चाहिए लोभी मनुष्य जब तक जीते हैं तब तक संतरी सामान अपने धन की रखवाली करते हैं और मरने पर उसे दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं।

कोई लोभी अपने पीछे अपने लड़कों के काम आने के लिए धन इकट्ठा करते हैं उनको यह समझ नहीं कि जिस धन के बिना उनका काम चल गया उसके बिना उनके लड़कों का भी चल जाएगा इस प्रकार बाप-दादे का धन पाकर अनेक लोग बहुधा उसे बुरे कामों में लगा कर खुद भी बदनाम होते हैं और अपने बाप-दादे को भी बदनाम करते हैं।

धनवान यदि लोभी है तो उसे रात को वैसे ही नींद नहीं आ सकती, जैसी निर्धन अथवा नीलू भी को आती है धनवान को निर्धन की अपेक्षा में भी अधिक रहता है यदि मनुष्य लोभी है तो थोड़ी संपत्ति वाले से हम अधिक संपत्ति वाले को ही दरिद्री कहेंगे। क्योंकि जिसे 5 रुपए की आवश्यकता हैवहउतनादरिद्रीनहींजितना 500 रुपए की आवश्यकता वाला है।कहाँ पाँच और कहाँ 500 सघनता और निर्धनता मन की बात है जिनका मन उधार है बे अनुदान और लोभ भी मनुष्यों की अपेक्षा अधिक धनवान है क्योंकि उदारता के कारण उनका धन किसी के काम तो आता है चाहे वह बहुत ही तोड़ा क्यों न हो बहुत धन होकर भी यदि मनुष्य लोभी हुआ और उसका धन किसी के काम ना आया तो उसका होना ना होना दोनों बराबर है शेख सादी ने बहुत ठीक कहा है-

“तवङ्गरी बढ़िलस्त न बमाल” अर्थात्त् अमीरी दिल से होती है, माल से नहीं।

सारांश

लेख में लोभ को एक गंभीर बीमारी के रूप में वर्णित किया गया है जो मनुष्य के जीवन को दुखमय बनाता है। धन संचय से सच्चा सुख नहीं मिलता, बल्कि लोभ बढ़ता है, जो असंतोष और दुख का कारण बनता है। संतोष ही सुख का आधार है, जबकि लोभ से तृप्ति नहीं होती। धन की अधिकता बोझ बन जाती है, और लोभी व्यक्ति अपने धन का उपयोग नहीं कर पाता, केवल उसकी रखवाली करता है। सच्चा धनी वही है जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं और जो थोड़े में संतुष्ट रहता है।

 

शब्दार्थ-

मायामय – मायायुक्त

निर्धन – धनहीन

सन्तरी – पहरेदार

निर्लोभी – लोभ रहित

भरमक -एक रोग

निर्धनता – गरीबी।

हिंदी शब्द

हिंदी अर्थ

तमिल अर्थ

English Meaning

लोभ

धन की तीव्र इच्छा

பேராசை

Greed

दुःखमय

दुख से भरा

துன்பமயமான

Full of sorrow

धनाढ्यता

धन की अधिकता

செல்வ வளம்

Wealthiness

तुच्छ

महत्त्वहीन

அற்பமான

Insignificant

अनर्थ

हानि, विपत्ति

தீங்கு

Calamity

तृप्ति

संतुष्टि

திருப்தி

Satisfaction

संतोष

मन की शांति

திருப்தி

Contentment

निरोगता

स्वस्थता

நோயின்மை

Healthiness

वृथा

व्यर्थ

வீண்

Futile

अहंकारी

अभिमानी

ஆணவமான

Arrogant

माया

भ्रम, संसार

மாயை

Illusion

प्रकृति

स्वभाव

இயல்பு

Nature

पवित्र

शुद्ध

தூய

Pure

अधीरता

बेचैनी

பொறுமையின்மை

Impatience

व्यस्त

नष्ट, बर्बाद

பாழாக்கப்பட்ட

Wasted

रक्षा

सुरक्षा

பாதுகாப்பு

Protection

उदारता

दानशीलता

உதாரணமான

Generosity

परिश्रम

मेहनत

உழைப்பு

Effort

संपत्ति

धन, समृद्धि

செல்வம்

Wealth

बदनाम

अपयश प्राप्त

இழிவு பெற்ற

Defamed

 



I) ‘लोभ’ पर आधारित प्रश्न

  1. लोभ किसे कहते हैं लोभ का परिणाम क्या होता है?

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, लोभ एक प्रकार की बीमारी या रोग है। इसका परिणाम यह होता है कि यह मनुष्य के जीवन को दुःखमय कर देता है। लोभ से मनुष्य को कभी तृप्ति नहीं मिलती, बल्कि उसका लोभ और असंतोष बढ़ता ही जाता है। यह आवश्यकताओं को बढ़ाकर दुःख का कारण बनता है।

  1. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने लोभ मनोविकार के बारे में क्या कहा?

उत्तर – दिए गए गद्यांश में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए इस प्रश्न का उत्तर गद्यांश के आधार पर नहीं दिया जा सकता।

  1. लोभ से लाभ नहीं, लेखक के शब्दों में समझाइए।

उत्तर – लेखक के अनुसार, लोभ से कोई लाभ इसलिए नहीं है क्योंकि लोभी मनुष्य धन को केवल इकट्ठा करता है, उसे काम में नहीं लाता। वह धन सिर्फ देखने, रक्षा करने और मरने पर दूसरों के लिए छोड़ जाने के लिए होता है। लेखक कहते हैं कि साधारण खाने-पीने और पहनने के लिए जितना धन चाहिए, वही सफल है; उससे अधिक धन इकट्ठा करने से कोई काम नहीं निकलता। चूँकि लोभी का धन उसके अपने ही काम नहीं आता, इसलिए ऐसे धन से कोई लाभ नहीं है।

  1. लोभ – प्रलोभ है समाधान कीजिए।

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, लोभ एक बीमारी है जिसका समाधान ‘संतोष’ है। लेखक कहते हैं कि लोभी मनुष्य को अधिक धन देने की अपेक्षा उससे कुछ छीन लेना अच्छा है। इसका कारण यह है कि जब कोई वस्तु कम हो जाती है, तब मनुष्य बची हुई वस्तु से संतोष करना सीखता है। गद्यांश के अनुसार, तृप्ति और संतोष ही सच्चा सुख है, जो लोभ का एकमात्र समाधान है।

 

II) सही या गलत चुनकर लिखिए

1 संतोष निरोगता का लक्षण है।

उत्तर – सही

2 लोभ बीमारी का लक्षण है

उत्तर – सही

3 लोभी मनुष्य बहुधा धन इकट्ठा करता है।।

उत्तर – सही

4 लोभी मनुष्य जब तक जीते हैं तब तक संतरी सामान अपने धन की रखवाली करते है

उत्तर – सही

 

III) खाली जगह भरिए

1 __________ भी एक प्रकार की बीमारी है जिससे भरसक रोग हो जाता है।

उत्तर – धनाढ्यता

2 किसी न किसी वस्तु की सदैव __________ बनी ही रहती है।

उत्तर – कमी

3 __________ दिल से होती है, माल से नहीं।

उत्तर – अमीरी

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार लोभ का मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
    a) जीवन सुखमय बनता है
    b) जीवन दुःखमय बनता है
    c) जीवन संतोषपूर्ण बनता है
    d) जीवन शांतिपूर्ण बनता है
    उत्तर – b) जीवन दुःखमय बनता है
  2. लेख में धन को विशेष आदर की दृष्टि से देखना क्यों भूल माना गया है?
    a) क्योंकि धन से सुख मिलता है
    b) क्योंकि धन से सच्चा सुख नहीं मिलता
    c) क्योंकि धन से विद्या प्राप्त होती है
    d) क्योंकि धन से शांति मिलती है
    उत्तर – b) क्योंकि धन से सच्चा सुख नहीं मिलता
  3. लेख के अनुसार भारतवर्ष में धन को प्रधानता देना क्यों कठिन है?
    a) क्योंकि लोग धन की पूजा करते हैं
    b) क्योंकि लोग संसार को माया मानते हैं
    c) क्योंकि लोग धन को सर्वस्व मानते हैं
    d) क्योंकि लोग धन से संतुष्ट रहते हैं
    उत्तर – b) क्योंकि लोग संसार को माया मानते हैं
  4. लेख में धन की अधिकता को किसके समान बताया गया है?
    a) सुख का कारण
    b) बोझ और बीमारी
    c) शांति का स्रोत
    d) विद्या का आधार
    उत्तर – b) बोझ और बीमारी
  5. लेख के अनुसार सच्चा धनी कौन है?
    a) जिसके पास बहुत धन है
    b) जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं
    c) जो धन का प्रदर्शन करता है
    d) जो धन से विद्या खरीदता है
    उत्तर – b) जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं
  6. लेख में लोभ को किसके समान माना गया है?
    a) सुख का आधार
    b) बीमारी का लक्षण
    c) संतोष का प्रतीक
    d) शांति का स्रोत
    उत्तर – b) बीमारी का लक्षण
  7. लेख के अनुसार धन से क्या प्राप्त नहीं हो सकता?
    a) भोजन और वस्त्र
    b) शांति और पवित्रता
    c) आवश्यकताओं की पूर्ति
    d) दिखावा और प्रदर्शन
    उत्तर – b) शांति और पवित्रता
  8. लेख में संतोष को किसका लक्षण बताया गया है?
    a) बीमारी का
    b) निरोगता का
    c) लोभ का
    d) अहंकार का
    उत्तर – b) निरोगता का
  9. लेख के अनुसार लोभी व्यक्ति का धन किस काम के लिए होता है?
    a) उपयोग और सुख के लिए
    b) रखवाली और प्रदर्शन के लिए
    c) दान और सेवा के लिए
    d) विद्या प्राप्ति के लिए
    उत्तर – b) रखवाली और प्रदर्शन के लिए
  10. लेख में लोभ को किस प्रकार की बीमारी बताया गया है?
    a) सामान्य और ठीक होने वाली
    b) सख्त और बढ़ने वाली
    c) अस्थायी और कम होने वाली
    d) हल्की और उपचार योग्य
    उत्तर – b) सख्त और बढ़ने वाली
  11. लेख के अनुसार धन से तृप्ति क्यों नहीं होती?
    a) क्योंकि धन सुख देता है
    b) क्योंकि धन से लोभ बढ़ता है
    c) क्योंकि धन से शांति मिलती है
    d) क्योंकि धन से आवश्यकताएँ पूरी होती हैं
    उत्तर – b) क्योंकि धन से लोभ बढ़ता है
  12. लेख में धन की अधिकता को किसके समान माना गया है?
    a) एक लिहाफ के
    b) आठ-दस लिहाफों के बोझ के
    c) भोजन की तृप्ति के
    d) पानी की शांति के
    उत्तर – b) आठ-दस लिहाफों के बोझ के
  13. लेख के अनुसार लोभी व्यक्ति धन का उपयोग क्यों नहीं कर पाता?
    a) क्योंकि वह संतुष्ट रहता है
    b) क्योंकि वह धन की रखवाली करता है
    c) क्योंकि वह धन दान करता है
    d) क्योंकि वह धन से विद्या खरीदता है
    उत्तर – b) क्योंकि वह धन की रखवाली करता है
  14. लेख में धन को तुच्छ मानने का क्या कारण बताया गया है?
    a) क्योंकि धन से सुख मिलता है
    b) क्योंकि विद्वानों ने इसे महत्त्वहीन माना
    c) क्योंकि धन से शांति प्राप्त होती है
    d) क्योंकि धन सर्वस्व है
    उत्तर – b) क्योंकि विद्वानों ने इसे महत्त्वहीन माना
  15. लेख के अनुसार लोभ का परिणाम क्या होता है?
    a) सुख और शांति
    b) असंतोष और दुख
    c) विद्या और गुण
    d) संतोष और तृप्ति
    उत्तर – b) असंतोष और दुख
  16. लेख में लोभी व्यक्ति को किसके समान बताया गया है?
    a) विद्वान के
    b) संतरी के
    c) दानी के
    d) शांत व्यक्ति के
    उत्तर – b) संतरी के
  17. लेख के अनुसार धन की आवश्यकता कब तक सीमित रहनी चाहिए?
    a) प्रदर्शन और दिखावे तक
    b) खाने-पीने और पहनने तक
    c) विद्या प्राप्ति तक
    d) शांति और पवित्रता तक
    उत्तर – b) खाने-पीने और पहनने तक
  18. लेख में लोभ से क्या बढ़ता है?
    a) संतोष
    b) भूख और असंतोष
    c) शांति
    d) सुख
    उत्तर – b) भूख और असंतोष
  19. लेख के अनुसार सच्चा सुख किसमें है?
    a) धन संचय में
    b) तृप्ति और संतोष में
    c) दिखावे और प्रदर्शन में
    d) अधिक आवश्यकताओं में
    उत्तर – b) तृप्ति और संतोष में
  20. लेख में शेख सादी के कथन का क्या अर्थ है?
    a) धन से अमीरी होती है
    b) अमीरी दिल से होती है
    c) धन से विद्या मिलती है
    d) धन से शांति मिलती है
    उत्तर – b) अमीरी दिल से होती है

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – लोभ क्या है?
    उत्तर – लोभ धन या वस्तुओं को अधिक से अधिक पाने की अतृप्त इच्छा है।
  2. प्रश्न – लेखक ने लोभ को कैसा बताया है?
    उत्तर – लेखक ने लोभ को बहुत बुरा और मनुष्य का जीवन दुखमय करने वाला बताया है।
  3. प्रश्न – क्या अधिक धनी होने से सुख मिलता है?
    उत्तर – नहीं, अधिक धनी होने से कोई सच्चा सुख नहीं मिलता।
  4. प्रश्न – धन से क्या नहीं खरीदा जा सकता?
    उत्तर – धन से सुख, शांति, और पवित्र गुण नहीं खरीदे जा सकते।
  5. प्रश्न – जो मनुष्य सोने-चाँदी के ढेर को ही सब कुछ समझता है, वह कैसा है?
    उत्तर – वह मनुष्य मूर्ख या व्यर्थ अहंकारी है।
  6. प्रश्न – क्या धनी मनुष्य सबसे बुद्धिमान होते हैं?
    उत्तर – नहीं, धनी मनुष्य सबसे बुद्धिमान नहीं होते।
  7. प्रश्न – हमारे देश के विद्वानों ने धन को किस दृष्टि से देखा है?
    उत्तर – हमारे देश के विद्वानों ने धन को तुच्छ माना है।
  8. प्रश्न – लेखक ने यूरोप और अमेरिका के ज्ञानी लोगों के विचारों के बारे में क्या कहा है?
    उत्तर – लेखक ने कहा है कि यूरोप और अमेरिका के ज्ञानी धन को ही बल और सर्वस्व समझते हैं।
  9. प्रश्न – भारतवर्ष में धन को प्रधानता क्यों नहीं दी जा सकती?
    उत्तर – क्योंकि भारतवासी संसार को माया और दुख का मूल कारण मानते हैं।
  10. प्रश्न – किस मात्रा का धन सफल माना गया है?
    उत्तर – उतना धन सफल है जो खाने-पीने और पहनने जैसी आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
  11. प्रश्न – आवश्यकता से अधिक धन का क्या परिणाम होता है?
    उत्तर – आवश्यकता से अधिक धन से लोभ बढ़ता है और मनुष्य असंतुष्ट हो जाता है।
  12. प्रश्न – धनाढ्यता को लेखक ने किससे तुलना की है?
    उत्तर – धनाढ्यता को लेखक ने बीमारी और बोझ से तुलना की है।
  13. प्रश्न – लेखक ने लिहाफ का उदाहरण क्यों दिया है?
    उत्तर – यह समझाने के लिए कि अधिक वस्तुएँ सुविधा नहीं, बल्कि कष्ट देती हैं।
  14. प्रश्न – लोभ को किस प्रकार की बीमारी बताया गया है?
    उत्तर – लोभ को ऐसी बीमारी बताया गया है जो घटने के बजाय बढ़ती जाती है।
  15. प्रश्न – लोभी व्यक्ति की विशेषता क्या होती है?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं होता और हमेशा अधिक धन पाने की इच्छा करता है।
  16. प्रश्न – लोभ के कारण कौन-सी भावना समाप्त हो जाती है?
    उत्तर – लोभ के कारण संतोष की भावना समाप्त हो जाती है।
  17. प्रश्न – संतोष को किससे तुलना की गई है?
    उत्तर – संतोष को निरोगता का लक्षण बताया गया है।
  18. प्रश्न – लोभ के कारण सुख क्यों नष्ट हो जाता है?
    उत्तर – क्योंकि लोभ से आवश्यकताएँ बढ़ जाती हैं और तृप्ति का अभाव हो जाता है।
  19. प्रश्न – लोभी मनुष्य का धन किसके लिए होता है?
    उत्तर – लोभी मनुष्य का धन देखने, रक्षा करने और दूसरों के लिए छोड़ जाने के काम आता है।
  20. प्रश्न – लोभ से मनुष्य के जीवन में क्या घटता है?
    उत्तर – लोभ से शांति, सुख और संतोष घटता है।
  21. प्रश्न – लोभी व्यक्ति को वैद्य की आवश्यकता क्यों बताई गई है?
    उत्तर – क्योंकि लोभ मानसिक बीमारी है और उसका इलाज आवश्यक है।
  22. प्रश्न – लोभ का बढ़ना किसका संकेत है?
    उत्तर – लोभ का बढ़ना असंतोष और दुख का संकेत है।
  23. प्रश्न – लोभी व्यक्ति धन क्यों इकट्ठा करता है?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति भविष्य में धन की कमी से बचने के लिए धन इकट्ठा करता है।
  24. प्रश्न – क्या लोभी व्यक्ति कभी तृप्त होता है?
    उत्तर – नहीं, लोभी व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता, उसकी इच्छाएँ बढ़ती ही रहती हैं।
  25. प्रश्न – लोभी व्यक्ति के धन का उपयोग कैसे होता है?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति का धन केवल संग्रह और दिखावे के लिए होता है, उपयोग के लिए नहीं।
  26. प्रश्न – लोभ से मनुष्य की आवश्यकताओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
    उत्तर – लोभ से मनुष्य की आवश्यकताएँ निरंतर बढ़ती रहती हैं।
  27. प्रश्न – निर्धन और लोभी में कौन अधिक दुखी होता है?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति निर्धन से भी अधिक दुखी होता है।
  28. प्रश्न – किसे सच्चा धनी माना गया है?
    उत्तर – सच्चा धनी वही है जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं और जो संतुष्ट है।
  29. प्रश्न – लोभी व्यक्ति अपने पीछे धन क्यों छोड़ जाता है?
    उत्तर – क्योंकि वह जीवन भर धन की रखवाली करता है पर उसे उपयोग नहीं करता।
  30. प्रश्न – शेख सादी ने अमीरी के बारे में क्या कहा है?
    उत्तर – शेख सादी ने कहा है – “अमीरी दिल से होती है, माल से नहीं।”

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार लोभ को क्यों बीमारी माना गया है?
    उत्तर – लेख में लोभ को बीमारी माना गया है क्योंकि यह असंतोष और दुख का कारण बनता है। लोभ से तृप्ति नहीं होती, बल्कि धन की चाह बढ़ती जाती है, जो व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक रूप से रोगी बनाती है।
  2. लेख में धन की अधिकता को बोझ क्यों कहा गया है?
    उत्तर – धन की अधिकता को बोझ कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति को संतुष्ट नहीं करता, बल्कि लोभ को बढ़ाता है। जैसे आठ-दस लिहाफ डालने से कष्ट होता है, वैसे ही अधिक धन से दुख और असंतोष बढ़ता है।
  3. लेख के अनुसार सच्चा धनी कौन है?
    उत्तर – सच्चा धनी वही है जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं और जो थोड़े में संतुष्ट रहता है। संतोष ही सुख का आधार है, जबकि अधिक धन लोभ को बढ़ाता है और दुख का कारण बनता है।
  4. लेख में संतोष को निरोगता का लक्षण क्यों कहा गया है?
    उत्तर – संतोष को निरोगता का लक्षण कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति को मानसिक शांति और तृप्ति देता है। संतुष्ट व्यक्ति लोभ से मुक्त रहता है और आवश्यकताओं को सीमित रखकर सुखी जीवन जीता है।
  5. लेख में लोभी व्यक्ति को संतरी के समान क्यों बताया गया है?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति को संतरी के समान बताया गया है क्योंकि वह अपने धन की केवल रखवाली करता है, उसका उपयोग नहीं करता। वह धन को इकट्ठा करता है, लेकिन उसे काम में लाने की बजाय उसकी सुरक्षा में लगा रहता है।
  6. लेख के अनुसार धन से क्या प्राप्त नहीं हो सकता?
    उत्तर – धन से शांति, शुद्धता, और पवित्र गुण प्राप्त नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए, धन से वीणा बजाने की विद्या नहीं खरीदी जा सकती; यह मेहनत और अभ्यास से ही प्राप्त होती है।
  7. लेख में भारतवर्ष में धन को प्रधानता न मिलने का क्या कारण है?
    उत्तर – भारतवर्ष में धन को प्रधानता नहीं मिलती क्योंकि यहाँ के लोग संसार को माया और दुख का कारण मानते हैं। विद्वानों ने धन को तुच्छ माना है, और संतोष को सुख का आधार बताया है।
  8. लेख में लोभ के परिणामों का क्या वर्णन किया गया है?
    उत्तर – लोभ से असंतोष और दुख बढ़ता है। लोभी व्यक्ति धन इकट्ठा करता है, लेकिन उसका उपयोग नहीं करता, जिससे उसकी भूख बढ़ती है और तृप्ति घटती है। यह मानसिक रोग का कारण बनता है।
  9. लेख में धन के उपयोग का क्या महत्त्व बताया गया है?
    उत्तर – धन का महत्त्व केवल खाने-पीने और पहनने जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति तक है। इसके अतिरिक्त धन संचय व्यर्थ है, क्योंकि यह लोभ को बढ़ाता है और सच्चा सुख नहीं देता।
  10. लेख में शेख सादी के कथन का क्या अर्थ है?
    उत्तर – शेख सादी का कथन “तवङ्गरी बढ़िलस्त न बमाल” का अर्थ है कि सच्ची अमीरी दिल की उदारता और संतोष से होती है, न कि धन के संचय से। धन से सुख नहीं, बल्कि लोभ बढ़ता है।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार लोभ को बीमारी क्यों माना गया है और इसके क्या परिणाम हैं?
    उत्तर – लेख में लोभ को बीमारी माना गया है क्योंकि यह असंतोष और दुख को बढ़ाता है। लोभी व्यक्ति धन संचय करता है, लेकिन तृप्ति नहीं पाता, जिससे उसकी भूख और असंतोष बढ़ता है। यह मानसिक रोग की तरह है, जो व्यक्ति को सुख से वंचित करता है और उसे केवल धन की रखवाली करने वाला संतरी बनाता है।
  2. लेख में धन की अधिकता को बोझ के समान क्यों बताया गया है?
    उत्तर – धन की अधिकता को बोझ माना गया है क्योंकि यह लोभ को बढ़ाता है और संतोष को नष्ट करता है। जैसे आठ-दस लिहाफ डालने से कष्ट होता है, वैसे ही अधिक धन व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक बोझ देता है। यह सुख नहीं, बल्कि दुख और असंतोष का कारण बनता है, क्योंकि लोभी कभी तृप्त नहीं होता।
  3. लेख के अनुसार सच्चा धनी कौन है और संतोष का क्या महत्त्व है?
    उत्तर – सच्चा धनी वही है जिसकी आवश्यकताएँ कम हैं और जो थोड़े में संतुष्ट रहता है। संतोष को निरोगता का लक्षण कहा गया है, क्योंकि यह मानसिक शांति और सुख देता है। लोभ के विपरीत, संतोष व्यक्ति को दुख से मुक्त करता है और उसे सच्चा सुख प्रदान करता है।
  4. लेख में लोभी व्यक्ति के धन संचय के क्या परिणाम बताए गए हैं?
    उत्तर – लोभी व्यक्ति धन संचय करता है, लेकिन उसका उपयोग नहीं करता, केवल उसकी रखवाली करता है। इससे असंतोष और भूख बढ़ती है, तृप्ति घटती है। उसका धन व्यर्थ जाता है, क्योंकि वह न तो स्वयं इसका उपयोग करता है और न ही दूसरों के काम आता है। यह मानसिक रोग और दुख का कारण बनता है।
  5. लेख में भारतवर्ष में धन को तुच्छ मानने का क्या कारण बताया गया है?
    उत्तर – भारतवर्ष में धन को तुच्छ माना गया है क्योंकि यहाँ के विद्वान संसार को माया और दुख का मूल मानते हैं। धन से सच्चा सुख, शांति, या पवित्र गुण प्राप्त नहीं होते। लोग संतोष को सुख का आधार मानते हैं, इसलिए धन को प्रधानता देना यहाँ कठिन है।

 

 

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