Aatmanirbharta Chapter 12, Hindi Book, Class X, Tamilnadu Board, The Best Solutions

आत्मनिर्भरता

आत्मनिर्भरता (अपने भरोसे पर रहना) ऐसा श्रेष्ठ गुण है कि जिसके न होने से पुरुष में पौरुषत्व का अभाव कहना अनुचित नहीं मालूम होता, जिनको अपने भरोसे का बल है, वे जहाँ होंगे जल में तुम्बी के समान संत के ऊपर रहेंगे, ऐसे ही के चरित्र पर लक्ष्य कर महाकवि भारती ने कहा है कि तेज और प्रताप से संसार भर को अपने नीचे करते हुए ऊँची उमंग वाले दूसरों के द्वारा अपना वैभव नहीं बढ़ाना चाहते। शारीरिक बल, चतुरंगिनी सेना का बल, प्रभुता का बल, मंत्र-तंत्र का बल इत्यादि जितने बल हैं निज बहु-बल के आगे सब क्षीण बल हैं। आत्मनिर्भरता की बुनियादी यह बाहुबल सब तरह के बलों को सहारा देने वाला और उभारने वाला है।

यूरोप के देशों की जो इतनी उन्नति है तथा अमेरिका, जापान आदि जो इस समय मनुष्य जाति के सरताज हो रहे हैं, इसका यही कारण है कि उन देशों में लोग अपने भरोसे पर रहना या कोई काम करना अच्छी तरह जानते हैं। हिन्दुस्तान का जो सत्यानाश है इसका यही कारण है कि यहाँ के लोग अपने भरोसे पर रहना ही भूल गए हैं। इसी से सेवकाई करना यहाँ के लोगों से जैसे खूबसूरती के साथ बन पड़ता है। वैसा स्वामित्व नहीं, अपने भरोसे पर रहना जब हमारा गुण नहीं तब क्यों कर संभव है कि हारे में प्रभुत्व शक्ति को अवकाश मिले। निरी किस्मत और भाग्य पर वे ही लोग रहते हैं, जो आलसी हैं। किसी ने अच्छा कहा है- “दैव, दैव आलसी पुकारा।”

ईश्वर भी ज्ञानानुकूल और सहायक उन्हीं का होता है जो अपनी सहायता अपने आप कर सकते हैं। अपने आप अपनी सहायता करने की वासना आदमी में सच्ची तरक्की की बुनियादी है। अनेक सुप्रसिद्ध सत्पुरुषों की जीवनियाँ इसके उदाहरण तो हैं ही, वरन् प्रत्येक देश या जाति के लोगों में बल और ओज तथा गौरव और महत्त्व के आने का सच्चा इकरार मात्र निर्भरता है। बहुधा देखने में आता है कि किसी काम के करने में बाहरी सहायता इतना लाभ नहीं पहुँच सकती जितनी आत्मनिर्भरता।

समाज के बंधन में भी देखिए तो बहुत तरह से संशोधित सरकारी कानूनों के द्वारा वैसे नहीं हो सकता, जैसे समाज के एक-एक मनुष्य के अलग-अलग अपने संशोधन अपने आप करने से हो सकते हैं। कड़े से कड़े नियम आलसी समाज परिश्रमी अतिव्ययी को परिमित व्यसशील शराबी को संयमी, क्रोधी को शांत या सहनशील, कंजूस को उदार, लोभी को संतोषी मूर्ख को विद्वान, दपींध को नम्र, दुराचारी को सदाचारी, कर्दभ को उन्नत मना, दरिद्र भिखारी को आद्य, भीरू-डरपोक को वीर, धुरीण झूठे गपोड़िए को सच्चा, चोर को सहनशील, व्यभिचारी को एक पत्नी व्रतधारी इत्यादि नहीं बना सकता। किन्तु ये सब बातें हम अपने ही प्रयत्न और चेष्टा से अपने में ला सकते हैं।

सच पूछो तो जाति ही ऐसे ही सुधरे एक-एक व्यक्ति की समिष्टि है। समाज या जाति का एक-एक आदमी यदि अलग-लग अपने को सुधारे तो जाति की जाति या समाज का समाज सुधर जाए। सभ्यता और है क्या। यही कि सभ्य जाति के एक-एक मनुष्य वृद्ध, वनिता सबो में सभ्यता के सब लक्षण पाए जाएँ, जिसमें आधे या तिहाई सभ्य हैं वही जाति अशिक्षित कहलाती है। जातीय उन्नति भी अलग-अलग एक-एक आदमी के परिश्रम, योग्यता, सुचाल और सौजन्य का मानो जोड़ है। उसी तरह जाति की अवनति एक – एक आदमी सुस्ती, कमीनापन, नीची प्रकृति, स्वार्थपरता और भांति-भांति की बुराइयों का बड़ा जोड़ है। इन्हीं गुणों एवं अवगुणों को जाति एवं धर्म के नाम से पुकारते हैं। जैसे सिक्खों में वीरता और जंगली जातियों में लुटेरापन।

जाति गुणों या अवगुणों को सरकार कानून के द्वारा रोक या जड़-मूल से नष्ट-भ्रष्ट नहीं कर सकते हैं, वे किसी दूसरी शक्ल में न सिर्फ फिर से उबर आएँगे वरन् पहले से ज्यादा तरोताजगी और हरियाली की हालत में हो जाएँगे। जब तक किसी जाति के हर एक व्यक्ति के चरित्र में आदि से मौलिक सुधार न किया जाए, तब तक पहले दर्जे का देशानुराग और सर्वसाधारण के हित की आकांक्षा सिर्फ कानून के अदलने बदलने से या नए कानून के जारी करने से नहीं पैदा हो सकती।

जालिम-से-जालिम बादशाह की हुकूमत में रहकर कोई जाति गुलाम नहीं कही जा सकती वरन् गुलाम वही जाति है जिसमें एक-एक व्यक्ति सब भांति कदर्भ, स्वार्थ परायण और जातीयता के भाव से रहित हो। ऐसी जाति जिसकी नस-नस में दास्य भाव समाया हुआ है, कभी उन्नति नहीं करेगी चाहे कैसे ही उदार शासन से वह शासित क्यों न की जाए। तो निश्चय हुआ कि देश की स्वतंत्रता की गहरी और मजबूत नींव उस देश के एक-एक आदम के आत्मनिर्भरता आदि गुणों पर स्थित है।

ऊँचे-से-ऊँचे दर्जे की शिक्षा बिल्कुल बेफायदा है। यदि हम अपने ही सहारे अपनी भलाई न कर सकें। जान स्टुअर्ट मिल का सिद्धांत है कि – राजा का भयानक से भयानक अत्याचार देश पर कभी कोई असर नहीं पैदा कर सकता, जब तक उस देश के एक-एक व्यक्ति में अपने सुधार की अटल वासना, दृढ़ता के साथ बद्धमूल है।

पुराने लोगों से जो चूक और गलती बन पड़ी है उसी का परिणाम वर्तमान समय में हम लोग भुगत रहे हैं। उसी को चाहे जिस नाम से प्रकाशित यथा जातीयता का भाव जाता रहा, एक नहीं है आपस की सहानुभूति नहीं है इत्यादि, तब पुराने क्रम को अच्छा माना और उस पर श्रद्धा जमाए रखना। हम क्यों कर अपने लिए उपकारी और उत्तम मानें हम तो इसे निरी चंदाखाने की गप समझते हैं कि हमारा धर्म इसमें आगे बढ़ने नहीं देता अथवा विदेशी राज से शासित है इसी से हम उन्नति नहीं कर सकते।

वास्तव में सच पूछो तो आत्मनिर्भरता अर्थात्त् अपनी सहायता अपने आप करने का भाव हमारे बीच है ही नहीं। यह बात हमारी वर्तमान दुर्गति उसी का परिणाम है। बुद्धिमानों का अनुभव हमें यही कहता है कि मनुष्य में पूर्णता विद्या से नहीं वरन् उन प्रसिद्ध पुरुषार्थी पुरुषों के चरित्र का अनुसरण करने से आती है।

यूरोप की सभ्यता जो आजकल हमारे लिए प्रत्येक उन्नति की बातों में उदाहरण स्वरूप मानी जाती है। एक दिन या एक आदमी के काम का परिणाम नहीं है। जब कई पीढ़ी तक देश का देश ऊँचे काम, ऊँचे विचार और ऊँची वासनाओं की ओर प्रबल चित रहा, तब वे इस अवस्था को पहुँचे हैं। यहाँ के हर एक संप्रदाय जाति या वर्ण के लोग धैर्य के साथ धुन बाँध के बराबर अपनी-अपनी उन्नति में लगे हैं। नीचे से नीचे दर्जे के मनुष्य, किसान, कूली, कारीगर आदि और ऊँचे से ऊँचे दर्जे वाले कवि, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ सबों से मिलकर जातीय उन्नति को इस सीमा तक पहुँचाया है। एक ने एक बात को आरंभ कर उसका ढाँचा खड़ा कर दिया। दूसरे ने उसी ढांचे पर आसन्न रहकर दर्जा बढ़ाया इसी तरह क्रम क्रम से कई पीढ़ी के उपरांत वह बात जिसका केवल ढांचा मात्र पड़ा था, पूर्णता और सिद्धि की अवस्था तक पहुँच गई।

ये अनेक शिल्प तथा विज्ञान जिनकी दुनिया भर में धूम मची है, इसी तरह शुरू किए गए थे और ढांचा छोड़ने वाले पूर्ण पुरुष अपनी भाग्यवान भावी संतान को उस शिल्प कौशल और विज्ञान की बड़ी भारी बपौती का उत्तराधिकारी बना गए थे।

आत्मनिर्भरता के संबंध में जो शिक्षा हमें खेतिहर, दुकानदार, बढ़ई, लोहार आदि कारीगरों से मिलती है उसके मुकाबलों में स्कूल और कालेजों की शिक्षा कुछ नहीं है और यह शिक्षा हमें पुस्तकों या किताबों से नहीं मिलती, वरन् एक-एक मनुष्य के चरित्र, आत्म-दमन, दृढ़ता, धैर्य, परिश्रम, स्थिर अध्यवसाय पर दृष्टि रखने से मिलती है। इन सब गुणों से हमारे जीवन की सफलता है। ये गुण मनुष्य जाति के उत्तम उन्नति के छोर है और हमें जन्म में क्या करना चाहिए, इसके सारांश हैं।

बहुतेरे सत्पुरुषों के जीवन-चरित्र धर्म ग्रंथों के समा हैं जिनके पढ़ने से हमें कुछ न कुछ आदर्श जरूर मिलता है। बड़प्पन किसी जाति – विशेष या खास दर्जे के आदमियों के हिस्से में नहीं पड़ा, जो कोई बड़ा काम करे या जिससे सर्वसाधारण का उपकार हो वही बड़े लोगों की कोटि में आ सकता है। वह चाहे गरीब से गरीब या छोटे दर्जे का क्यों न हो, बड़े-से-बड़े है। उस मनुष्य के तन में साक्षात् देवता है।

हमारे यहाँ अवतार ऐसे ही लोग हो गए हैं। सबेरे उठकर जिनका नाम ले लेने से दिन भर के लिए मंगल होना पक्का समझा जाता है, ऐसे महा महिमाशाली जिस कुल में जन्मते हैं, वह कुल उजागर और पुनीत हो जाता है। ऐसे हों कि जननी वीर-प्रभु कही जाती है। पुरुष सिंह ऐसा एक पुत्र अच्छा, गीदड़ों की विशेषता वाले सौ पुत्र भी किस काम के।

सारांश

लेख में आत्मनिर्भरता को श्रेष्ठ गुण बताया गया है, जो व्यक्ति में पौरुषत्व और समाज में उन्नति का आधार है। यह बाहरी सहायता से अधिक प्रभावी है और व्यक्ति को स्वयं के बल पर प्रगति करने में सक्षम बनाती है। यूरोप, अमेरिका, जापान की उन्नति का कारण आत्मनिर्भरता है, जबकि भारत की अवनति का कारण इसका अभाव है। समाज और जाति की उन्नति प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-सुधार और परिश्रम पर निर्भर करती है। आत्मनिर्भरता धैर्य, दृढ़ता, और सत्पुरुषों के चरित्र से प्रेरित होती है, जो सभ्यता और देश की स्वतंत्रता की नींव है।

शब्दार्थ

हिंदी शब्द

हिंदी अर्थ

तमिल अर्थ

English Meaning

आत्मनिर्भरता

स्वयं पर भरोसा

சுயநம்பிக்கை

Self-reliance

पौरुषत्व

पुरुषार्थ, वीरता

ஆண்மை

Manliness

तुम्बी

नाव की तरह तैरने वाला

மிதவை

Gourd (used as float)

प्रताप

वैभव, प्रभाव

மகிமை

Glory

उमंग

उत्साह

உற்சாகம்

Enthusiasm

बाहुबल

शारीरिक शक्ति

கைவலிமை

Physical strength

चतुरंगिनी

चार प्रकार की सेना

நான்கு பிரிவு படை

Fourfold army

प्रभुता

शासन, अधिकार

ஆதிக்கம்

Sovereignty

क्षीण

कमजोर

பலவீனமான

Weak

सत्यानाश

विनाश, बर्बादी

அழிவு

Destruction

सेवकाई

नौकरी, सेवा

பணிவிடை

Servitude

स्वामित्व

मालिकाना हक

உரிமை

Ownership

वासना

इच्छा, आकांक्षा

ஆசை

Desire

संशोधित

सुधारा हुआ

திருத்தப்பட்ட

Reformed

परिमित

सीमित, संयमित

மட்டுப்படுத்தப்பட்ட

Restrained

व्यसनी

लत वाला

பழக்கமுடையவர்

Addict

सौजन्य

शिष्टाचार

மரியாதை

Courtesy

दास्य

गुलामी

அடிமைத்தனம்

Slavery

धुरीण

झूठा, गपोड़ी

பொய்யர்

Liar

बपौती

विरासत

பரம்பரை

Inheritance

 



I) लेख ‘आत्मनिर्भरता’ पर आधारित प्रश्न

  1. ‘आत्मनिर्भरता’ क्या है? इसका विकास कैसे करना चाहिए।

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, ‘आत्मनिर्भरता’ का अर्थ है ‘अपने भरोसे पर रहना’। यह एक ऐसा श्रेष्ठ गुण है कि इसके बिना पुरुष में पौरुषत्व का अभाव लगता है। इसका विकास बाहरी सहायता या सरकारी कानूनों से नहीं हो सकता, बल्कि व्यक्ति को अपने ही प्रयत्न और चेष्टा से इसे अपने भीतर लाना होता है। यह शिक्षा किताबों से नहीं, बल्कि खेतिहर, दुकानदार और कारीगरों जैसे परिश्रमी लोगों के चरित्र, आत्म-दमन, दृढ़ता, धैर्य और परिश्रम को देखकर मिलती है।

  1. मानव-कल्याण कैसे हो सकता है? बताइए।

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, मानव-कल्याण (या सर्वसाधारण का हित) केवल कानून बदलने से नहीं हो सकता। सच्चा कल्याण तभी संभव है, जब समाज या जाति का हर एक व्यक्ति अलग-अलग अपने को सुधारे। जब एक-एक व्यक्ति अपने चरित्र में मौलिक सुधार (जैसे- संयम, सदाचार, परिश्रम, उदारता) अपने प्रयत्न से लाएगा, तो पूरी जाति या समाज स्वयं सुधर जाएगा, और इसी से मानव-कल्याण होगा।

  1. यूरोप के उन्नति का कारण बताइए।

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, यूरोप के देशों की उन्नति तथा अमेरिका, जापान आदि के मनुष्य जाति के सरताज होने का यही कारण है कि उन देशों में लोग ‘अपने भरोसे पर रहना’ यानी आत्मनिर्भरता को अच्छी तरह जानते हैं और उसका अभ्यास करते हैं।

  1. भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – लेखक भारतीय समाज (हिन्दुस्तान) की वर्तमान दशा की आलोचना करते हुए कहते हैं कि यहाँ की दुर्गति या ‘सत्यानाश’ का मूल कारण आत्मनिर्भरता का अभाव है। उनके अनुसार, यहाँ के लोग अपने भरोसे पर रहना भूल गए हैं। इसी कारण यहाँ के लोगों में सेवकाई (नौकरी) करने की प्रवृत्ति तो है, लेकिन आत्मनिर्भरता के अभाव में स्वामित्व (प्रभुत्व शक्ति) का गुण विकसित नहीं हो पाता।

  1. हमारे देश में पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव कैसे पड़ा है?

उत्तर – इस गद्यांश में यह नहीं बताया गया है कि पाश्चात्य सभ्यता का भारत पर कैसे प्रभाव पड़ा है। गद्यांश में यूरोप की सभ्यता को केवल एक ‘उदाहरण स्वरूप’ प्रस्तुत किया गया है, यह दिखाने के लिए कि आत्मनिर्भरता के बल पर ही वे उन्नति कर पाए हैं। लेखक ने पाश्चात्य प्रभाव के बजाय, भारत में आत्मनिर्भरता के अभाव को दुर्गति का मुख्य कारण माना है।

  1. ‘आत्मनिर्भरता’ का पाठ बच्चों को क्यों पढ़ाना चाहिए?

उत्तर – ‘आत्मनिर्भरता’ का पाठ इसलिए पढ़ाना चाहिए क्योंकि यही मनुष्य की ‘सच्ची तरक्की की बुनियादी’ है। लेखक के अनुसार, ऊँची-से-ऊँची किताबी शिक्षा भी ‘बेफायदा’ है, यदि व्यक्ति अपने सहारे अपनी भलाई नहीं कर सकता। आत्मनिर्भरता ही वह गुण है जो व्यक्ति, समाज और देश की स्वतंत्रता की नींव को मजबूत करता है और जीवन में वास्तविक सफलता दिलाता है।

  1. ‘आत्मनिर्भरता’ से होने वाले लाभ बताइए।

उत्तर – गद्यांश के अनुसार, आत्मनिर्भरता से अनेक लाभ हैं। यह मनुष्य में पौरुषत्व लाती है। आत्मनिर्भर व्यक्ति जीवन में जल में तुम्बी (लौकी) के समान सदा ऊपर (श्रेष्ठ) रहता है। यह सच्ची तरक्की की बुनियाद है और इसी से देश या जाति में बल, ओज, गौरव और महत्त्व आता है। आत्मनिर्भरता से ही व्यक्ति अपना सच्चा सुधार कर सकता है और जीवन में सफलता प्राप्त करता है।

 

II) सही या गलत चुनकर लिखिए

1 ऊँचे-से-ऊँचे दर्जे की शिक्षा बिल्कुल बेफायदा है

उत्तर – सही (गद्यांश में यह पंक्ति है, जिसके बाद शर्त जोड़ी गई है “यदि हम अपने ही सहारे अपनी भलाई न कर सकें।”)

  1. अपनी सहायता अपने आप करने का भाव हमारे बीच है ही नहीं।

उत्तर – सही

  1. सत्पुरुषों के जीवन चरित्र धर्म ग्रंथों के समा हैं

उत्तर – सही

  1. किसी ने अच्छा कहा है दैव दैव आलसी पुकारा॥

उत्तर – सही

  1. सच पूछो तो जाति ही ऐसे ही सुधारे एक एक व्यक्ति की समिश्टि है।

उत्तर – सही

 

III) खाली जगह भरिए

1 __________ के लोग अपने भरोसे पर रहना हीं भूल गए हैं।

उत्तर – हिन्दुस्तान

2 जाति गुणों को सरकार __________ रोक नहीं सकता।

उत्तर – कानून के द्वारा

3 उँचे से उँचे दर्जे की शिक्षा बिलकुल __________ ।

उत्तर – बेफायदा है

4 आत्म निर्भरता के संबंध में जो शिक्षा हमें __________ से मिलती है।

उत्तर – खेतिहर, दुकानदार, बढ़ई, लोहार आदि कारीगरों

 

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता का क्या महत्त्व है?
    a) यह व्यक्ति को आलसी बनाती है
    b) यह पौरुषत्व और उन्नति का आधार है
    c) यह केवल बाहरी सहायता पर निर्भर करती है
    d) यह समाज को गुलाम बनाती है
    उत्तर – b) यह पौरुषत्व और उन्नति का आधार है
  2. लेख में भारत की अवनति का क्या कारण बताया गया है?
    a) आत्मनिर्भरता की कमी
    b) विदेशी शासन
    c) शिक्षा की कमी
    d) धन की कमी
    उत्तर – a) आत्मनिर्भरता की कमी
  3. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता की तुलना किससे की गई है?
    a) जल में तुम्बी से
    b) सेना के बल से
    c) मंत्र-तंत्र से
    d) भाग्य से
    उत्तर – a) जल में तुम्बी से
  4. लेख में यूरोप और अमेरिका की उन्नति का क्या कारण बताया गया है?
    a) धन की अधिकता
    b) आत्मनिर्भरता का गुण
    c) सैन्य शक्ति
    d) कानून का शासन
    उत्तर – b) आत्मनिर्भरता का गुण
  5. लेख के अनुसार समाज की उन्नति का आधार क्या है?
    a) कड़े सरकारी कानून
    b) प्रत्येक व्यक्ति का आत्म-सुधार
    c) विदेशी सहायता
    d) भाग्य और किस्मत
    उत्तर – b) प्रत्येक व्यक्ति का आत्म-सुधार
  6. लेख में “दैव, दैव आलसी पुकारा” का क्या अर्थ है?
    a) भाग्य मेहनती लोगों का साथ देता है
    b) भाग्य पर आलसी लोग निर्भर रहते हैं
    c) भाग्य सभी का साथ देता है
    d) भाग्य से उन्नति होती है
    उत्तर – b) भाग्य पर आलसी लोग निर्भर रहते हैं
  7. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता किसके लिए आवश्यक है?
    a) बाहरी सहायता प्राप्त करने के लिए
    b) सच्ची तरक्की और प्रगति के लिए
    c) धन संचय के लिए
    d) समाज में प्रदर्शन के लिए
    उत्तर – b) सच्ची तरक्की और प्रगति के लिए
  8. लेख में सभ्यता का क्या अर्थ बताया गया है?
    a) समाज में धन की अधिकता
    b) प्रत्येक व्यक्ति में सभ्यता के लक्षण
    c) कड़े कानूनों का पालन
    d) विदेशी शासन का प्रभाव
    उत्तर – b) प्रत्येक व्यक्ति में सभ्यता के लक्षण
  9. लेख के अनुसार गुलाम जाति कौन सी है?
    a) जिसमें आत्मनिर्भरता हो
    b) जिसमें दास्य भाव और स्वार्थ हो
    c) जो विदेशी शासन में हो
    d) जो धनवान हो
    उत्तर – b) जिसमें दास्य भाव और स्वार्थ हो
  10. लेख में आत्मनिर्भरता को किस बल का आधार बताया गया है?
    a) शारीरिक बल
    b) बाहुबल
    c) मंत्र-तंत्र का बल
    d) प्रभुता का बल
    उत्तर – b) बाहुबल
  11. लेख के अनुसार समाज का सुधार कैसे संभव है?
    a) कड़े कानूनों से
    b) प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-सुधार से
    c) बाहरी सहायता से
    d) भाग्य के भरोसे
    उत्तर – b) प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-सुधार से
  12. लेख में आत्मनिर्भरता से क्या प्राप्त होता है?
    a) धन और संपत्ति
    b) बल, ओज, और गौरव
    c) गुलामी और दास्य भाव
    d) आलस्य और कमजोरी
    उत्तर – b) बल, ओज, और गौरव
  13. लेख के अनुसार सत्पुरुषों के जीवन से क्या प्रेरणा मिलती है?
    a) धन संचय की
    b) आत्मनिर्भरता और परिश्रम की
    c) बाहरी सहायता की
    d) भाग्य पर निर्भरता की
    उत्तर – b) आत्मनिर्भरता और परिश्रम की
  14. लेख में जातीय उन्नति का आधार क्या बताया गया है?
    a) प्रत्येक व्यक्ति का परिश्रम और सौजन्य
    b) सरकार के कड़े कानून
    c) विदेशी सहायता
    d) धन की अधिकता
    उत्तर – a) प्रत्येक व्यक्ति का परिश्रम और सौजन्य
  15. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता का अभाव भारत में क्यों है?
    a) क्योंकि लोग धनवान हैं
    b) क्योंकि लोग अपने भरोसे पर रहना भूल गए
    c) क्योंकि लोग शिक्षित हैं
    d) क्योंकि लोग सैन्य बल रखते हैं
    उत्तर – b) क्योंकि लोग अपने भरोसे पर रहना भूल गए
  16. लेख में शिक्षा की तुलना में आत्मनिर्भरता को क्यों श्रेष्ठ माना गया है?
    a) क्योंकि शिक्षा बेकार है
    b) क्योंकि आत्मनिर्भरता से चरित्र बनता है
    c) क्योंकि शिक्षा धन देती है
    d) क्योंकि शिक्षा कानून बनाती है
    उत्तर – b) क्योंकि आत्मनिर्भरता से चरित्र बनता है
  17. लेख के अनुसार देश की स्वतंत्रता की नींव किस पर टिकी है?
    a) विदेशी शासन पर
    b) आत्मनिर्भरता और गुणों पर
    c) धन और संपत्ति पर
    d) भाग्य और किस्मत पर
    उत्तर – b) आत्मनिर्भरता और गुणों पर
  18. लेख में सिक्खों का उदाहरण किस गुण के लिए दिया गया है?
    a) लुटेरापन
    b) वीरता
    c) आलस्य
    d) स्वार्थपरता
    उत्तर – b) वीरता
  19. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता से क्या संभव है?
    a) बाहरी सहायता प्राप्त करना
    b) स्वयं का सुधार और उन्नति
    c) धन संचय
    d) गुलामी का भाव
    उत्तर – b) स्वयं का सुधार और उन्नति
  20. लेख में जॉन स्टुअर्ट मिल का सिद्धांत क्या कहता है?
    a) राजा का अत्याचार देश को प्रभावित नहीं करता
    b) शिक्षा देश की उन्नति का आधार है
    c) धन से स्वतंत्रता मिलती है
    d) भाग्य से प्रगति होती है
    उत्तर – a) राजा का अत्याचार देश को प्रभावित नहीं करता

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – आत्मनिर्भरता का क्या अर्थ है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता का अर्थ है अपने भरोसे पर रहना और अपने कार्य स्वयं करना।
  2. प्रश्न – लेखक के अनुसार आत्मनिर्भरता किस प्रकार का गुण है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता एक श्रेष्ठ और उच्च कोटि का गुण है।
  3. प्रश्न – जिनमें आत्मनिर्भरता नहीं होती, उनमें क्या अभाव कहा गया है?
    उत्तर – जिनमें आत्मनिर्भरता नहीं होती, उनमें पौरुषत्व का अभाव कहा गया है।
  4. प्रश्न – आत्मनिर्भर व्यक्ति को किससे तुलना की गई है?
    उत्तर – आत्मनिर्भर व्यक्ति को जल में तैरती हुई तुम्बी से तुलना की गई है जो हमेशा ऊपर रहती है।
  5. प्रश्न – महाकवि भारती ने आत्मनिर्भर व्यक्तियों के बारे में क्या कहा है?
    उत्तर – महाकवि भारती ने कहा है कि ऊँची उमंग वाले लोग दूसरों से अपना वैभव नहीं बढ़ाते।
  6. प्रश्न – आत्मनिर्भरता का मूल बल क्या है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता का मूल बल बाहुबल है जो अन्य सभी बलों को सहारा देता है।
  7. प्रश्न – यूरोप और अमेरिका की उन्नति का क्या कारण बताया गया है?
    उत्तर – वहाँ के लोग आत्मनिर्भर हैं और अपने भरोसे पर कार्य करना जानते हैं, यही उनकी उन्नति का कारण है।
  8. प्रश्न – भारत के पतन का मुख्य कारण क्या बताया गया है?
    उत्तर – भारत के पतन का कारण यह बताया गया है कि यहाँ के लोग आत्मनिर्भर रहना भूल गए हैं।
  9. प्रश्न – आलसी लोग किस पर निर्भर रहते हैं?
    उत्तर – आलसी लोग किस्मत और भाग्य पर निर्भर रहते हैं।
  10. प्रश्न – लेखक ने “दैव, दैव आलसी पुकारा” से क्या अर्थ बताया है?
    उत्तर – इसका अर्थ है कि केवल आलसी लोग ही भाग्य को दोष देते हैं।
  11. प्रश्न – ईश्वर की सहायता किसे मिलती है?
    उत्तर – ईश्वर की सहायता उन्हीं को मिलती है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।
  12. प्रश्न – सच्ची तरक्की की बुनियाद क्या है?
    उत्तर – सच्ची तरक्की की बुनियाद आत्मनिर्भरता है।
  13. प्रश्न – किसी काम में सबसे अधिक लाभ किससे पहुँचता है?
    उत्तर – किसी काम में सबसे अधिक लाभ आत्मनिर्भरता से पहुँचता है, बाहरी सहायता से नहीं।
  14. प्रश्न – समाज का सुधार कैसे संभव है?
    उत्तर – समाज का सुधार तब संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सुधार ले।
  15. प्रश्न – सभ्यता किसे कहा गया है?
    उत्तर – सभ्यता वही है जिसमें समाज के सभी लोग सभ्य गुणों से युक्त हों।
  16. प्रश्न – जातीय उन्नति किससे होती है?
    उत्तर – जातीय उन्नति प्रत्येक व्यक्ति के परिश्रम, योग्यता और सौजन्य से होती है।
  17. प्रश्न – जाति या धर्म के गुण-अवगुण किससे बनते हैं?
    उत्तर – जाति या धर्म के गुण-अवगुण उसके प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव और कर्म से बनते हैं।
  18. प्रश्न – क्या सरकार कानून बनाकर लोगों के स्वभाव को सुधार सकती है?
    उत्तर – नहीं, कानून से स्वभाव नहीं सुधरता, यह कार्य व्यक्ति के आत्म-सुधार से ही संभव है।
  19. प्रश्न – किसी जाति के उन्नत होने की शर्त क्या है?
    उत्तर – उस जाति के हर व्यक्ति में आत्मनिर्भरता और अच्छे गुणों का होना आवश्यक है।
  20. प्रश्न – कौन-सी जाति वास्तव में गुलाम कहलाती है?
    उत्तर – वह जाति गुलाम कहलाती है जिसकी नस-नस में दास्यभाव समाया हुआ हो।
  21. प्रश्न – देश की स्वतंत्रता की नींव किन गुणों पर टिकी है?
    उत्तर – देश की स्वतंत्रता की नींव आत्मनिर्भरता और परिश्रम के गुणों पर टिकी है।
  22. प्रश्न – लेखक ने ऊँचे दर्जे की शिक्षा को कब बेकार कहा है?
    उत्तर – जब व्यक्ति अपने ही सहारे अपनी भलाई न कर सके, तब शिक्षा बेकार है।
  23. प्रश्न – जान स्टुअर्ट मिल का सिद्धांत क्या है?
    उत्तर – उनका सिद्धांत है कि जब तक व्यक्ति स्वयं सुधार की इच्छा रखता है, तब तक कोई अत्याचार देश को नुकसान नहीं पहुँचा सकता।
  24. प्रश्न – हमारी वर्तमान दुर्गति का कारण क्या बताया गया है?
    उत्तर – हमारी वर्तमान दुर्गति का कारण आत्मनिर्भरता का अभाव बताया गया है।
  25. प्रश्न – मनुष्य में पूर्णता किससे आती है?
    उत्तर – मनुष्य में पूर्णता विद्या से नहीं, बल्कि पुरुषार्थी व्यक्तियों के चरित्र से आती है।
  26. प्रश्न – यूरोप की सभ्यता किसका परिणाम है?
    उत्तर – यूरोप की सभ्यता कई पीढ़ियों के परिश्रम, ऊँचे विचार और दृढ़ संकल्प का परिणाम है।
  27. प्रश्न – जातीय उन्नति में कौन-कौन लोग सहभागी रहे हैं?
    उत्तर – किसान, मजदूर, कारीगर, कवि, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ – सभी सहभागी रहे हैं।
  28. प्रश्न – आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी शिक्षा हमें कहाँ से मिलती है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी शिक्षा हमें खेतिहर, दुकानदार, बढ़ई और कारीगरों से मिलती है।
  29. प्रश्न – आत्मनिर्भरता की शिक्षा पुस्तकों से क्यों नहीं मिलती?
    उत्तर – क्योंकि यह शिक्षा व्यवहार, परिश्रम, धैर्य और चरित्र से मिलती है, पुस्तकों से नहीं।
  30. प्रश्न – सच्चा बड़प्पन किसमें है?
    उत्तर – सच्चा बड़प्पन उसी में है जो समाज का उपकार करे, चाहे वह किसी भी दर्जे का व्यक्ति क्यों न हो।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता का क्या महत्त्व है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता व्यक्ति में पौरुषत्व और समाज में उन्नति का आधार है। यह बाहुबल का रूप है, जो सभी बलों को सहारा देता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति जल में तुम्बी की तरह सदा ऊपर रहता है और स्वयं प्रगति करता है।
  2. लेख में भारत की अवनति का क्या कारण बताया गया है?
    उत्तर – भारत की अवनति का कारण लोगों का आत्मनिर्भरता भूल जाना है। लोग अपने भरोसे पर रहने के बजाय भाग्य और बाहरी सहायता पर निर्भर रहते हैं, जिससे स्वामित्व की कमी और गुलामी का भाव बढ़ता है।
  3. लेख में आत्मनिर्भरता को बाहुबल क्यों कहा गया है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता को बाहुबल कहा गया है क्योंकि यह सभी प्रकार के बलों—शारीरिक, सैन्य, या प्रभुता—को सहारा देता और उभारता है। यह व्यक्ति को स्वयं के भरोसे पर प्रगति करने की शक्ति देता है।
  4. लेख के अनुसार समाज का सुधार कैसे संभव है?
    उत्तर – समाज का सुधार प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-सुधार से संभव है। यदि हर व्यक्ति अपने गुणों को सुधारे, जैसे आलस्य, स्वार्थ, या दुराचार को त्यागे, तो समाज और जाति स्वतः सभ्य और उन्नत हो जाएगी।
  5. लेख में सभ्यता का क्या अर्थ बताया गया है?
    उत्तर – सभ्यता का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति—वृद्ध, महिला, या अन्य—में सभ्यता के लक्षण हों। यह परिश्रम, सौजन्य, और योग्यता का जोड़ है, न कि केवल आधे या कुछ लोगों की सभ्यता।
  6. लेख में आत्मनिर्भरता और भाग्य के बीच क्या अंतर बताया गया है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता व्यक्ति को अपने प्रयासों से प्रगति करने की शक्ति देती है, जबकि भाग्य पर निर्भरता आलस्य को दर्शाती है। लेख कहता है कि “दैव, दैव आलसी पुकारा,” अर्थात् भाग्य पर आलसी लोग भरोसा करते हैं।
  7. लेख के अनुसार यूरोप की उन्नति का क्या कारण है?
    उत्तर – यूरोप की उन्नति का कारण वहाँ के लोगों की आत्मनिर्भरता है। लोग अपने भरोसे पर कार्य करते हैं, जिससे धैर्य, परिश्रम, और उच्च विचारों के साथ वे सभ्यता और प्रगति की ऊँचाइयों तक पहुँचे हैं।
  8. लेख में सत्पुरुषों के जीवन से क्या प्रेरणा मिलती है?
    उत्तर – सत्पुरुषों के जीवन से आत्मनिर्भरता, परिश्रम, धैर्य, और दृढ़ता की प्रेरणा मिलती है। उनके चरित्र का अनुसरण करने से व्यक्ति में पूर्णता आती है, जो विद्या से नहीं, बल्कि आत्म-सुधार और प्रयास से प्राप्त होती है।
  9. लेख में गुलाम जाति की क्या विशेषता बताई गई है?
    उत्तर – गुलाम जाति वह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति में दास्य भाव, स्वार्थ, और कदाचार हो। ऐसी जाति आत्मनिर्भरता और जातीयता के अभाव में उन्नति नहीं कर सकती, चाहे शासन कितना भी उदार क्यों न हो।
  10. लेख में आत्मनिर्भरता को देश की स्वतंत्रता का आधार क्यों माना गया है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता देश की स्वतंत्रता की नींव है क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति को अपने सुधार और प्रगति की शक्ति देती है। जब हर व्यक्ति आत्मनिर्भर हो, तो देश स्वतः स्वतंत्र और उन्नत बनता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता व्यक्ति और समाज के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता व्यक्ति में पौरुषत्व और समाज में उन्नति का आधार है। यह बाहुबल की तरह सभी शक्तियों को सहारा देती है, जिससे व्यक्ति स्वयं प्रगति करता है। समाज का सुधार प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-सुधार पर निर्भर करता है। आत्मनिर्भरता आलस्य और दास्य भाव को दूर कर सभ्यता और स्वतंत्रता की नींव रखती है।
  2. लेख में भारत की अवनति का कारण और समाधान क्या बताया गया है?
    उत्तर – भारत की अवनति का कारण लोगों का आत्मनिर्भरता भूल जाना और भाग्य पर निर्भर रहना है। समाधान है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने गुणों को सुधारे, परिश्रम और धैर्य से आत्मनिर्भर बने। जब हर व्यक्ति स्वयं को सुधारेगा, तो समाज और जाति स्वतः उन्नत हो जाएगी।
  3. लेख में आत्मनिर्भरता और सभ्यता के बीच क्या संबंध बताया गया है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता सभ्यता की नींव है। सभ्यता तब होती है जब समाज के प्रत्येक व्यक्ति में सभ्यता के लक्षण—परिश्रम, सौजन्य, और योग्यता—हों। आत्मनिर्भरता व्यक्ति को आलस्य, स्वार्थ, और कदाचार से मुक्त कर सभ्य बनाती है, जो समाज और जाति की उन्नति का आधार है।
  4. लेख के अनुसार आत्मनिर्भरता बाहरी सहायता से अधिक प्रभावी क्यों है?
    उत्तर – आत्मनिर्भरता बाहरी सहायता से अधिक प्रभावी है क्योंकि यह व्यक्ति को स्वयं के बल पर प्रगति करने की शक्ति देती है। बाहरी सहायता या कड़े कानून गुणों को स्थायी रूप से नहीं बदल सकते, लेकिन आत्मनिर्भरता से व्यक्ति अपने आलस्य, स्वार्थ, और बुराइयों को सुधारकर सभ्य और उन्नत बनता है।
  5. लेख में सत्पुरुषों के चरित्र से आत्मनिर्भरता की प्रेरणा कैसे मिलती है?
    उत्तर – सत्पुरुषों के चरित्र से आत्मनिर्भरता की प्रेरणा मिलती है क्योंकि वे धैर्य, परिश्रम, दृढ़ता, और आत्म-दमन के उदाहरण हैं। उनके जीवन से पता चलता है कि पूर्णता विद्या से नहीं, बल्कि आत्म-सुधार और प्रयास से आती है। यह प्रेरणा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाकर उन्नति की ओर ले जाती है।

 

 

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