विष्णु प्रभाकर – लेखक परिचय
विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गाँव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गए जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की हालत ठीक नहीं होने के कारण चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपए मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिंदी में प्रभाकर व हिंदी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
ऐसे-ऐसे (एकांकी)
पात्र परिचय
मोहन – एक विद्यार्थी
दीनानाथ – एक पड़ोसी
माँ – मोहन की माँ
पिता – मोहन के पिता
मास्टर – मोहन के मास्टर जी
वैद्य जी –
डॉक्टर
एक पड़ोसिन।
वैद्य जी डॉक्टर तथा एक पड़ोसिन।
(सड़क के किनारे एक सुंदर फ़्लैट में बैठक का दृश्य। उसका एक दरवाज़ा सड़कवाले बरामदे में खुलता है, दूसरा अंदर के कमरे में, तीसरा रसोईघर में। अलमारियों में पुस्तकें लगी हैं। एक ओर रेडियो का सेट है। दो ओर दो छोटे तख़्त हैं, जिन पर ग़लीचे बिछे हैं। बीच में कुर्सियाँ हैं। एक छोटी मेज़ भी है। उस पर फ़ोन रखा है। पर्दा उठने पर मोहन एक तख़्त पर लेटा है। आठ-नौ वर्ष के लगभग उम्र होगी उसकी। तीसरी क्लास में पढ़ता है। इस समय बड़ा बेचैन जान पड़ता है। बार-बार पेट को पकड़ता है। उसके माता-पिता पास बैठे हैं।)
माँ – (पुचकारकर) न-न, ऐसे मत कर! अभी ठीक हुआ जाता है। अभी डॉक्टर को बुलाया है। ले, तब तक सेंक ले। (चादर हटाकर पेट पर बोतल रखती है। फिर मोहन के पिता की ओर मुड़ती है। इसने कहीं कुछ अंट-शंट तो नहीं खा लिया?
पिता – कहाँ? कुछ भी नहीं। सिर्फ़ एक केला और एक संतरा खाया था। अरे, यह तो दफ़्तर से चलने तक कूदता फिर रहा था। बस अड्डे पर आकर यकायक बोला—पिता जी, मेरे पेट में तो कुछ ‘ऐसे-ऐसे’ हो रहा है।
माँ – कैसे?
पिता – बस ‘ऐसे-ऐसे’ करता रहा। मैंने कहा—अरे, गड़गड़ होती है? तो बोला—नहीं। फिर पूछा—चाकू-सा चुभता है? तो जवाब दिया—नहीं। गोला-सा फूटता है? तो बोला—नहीं। जो पूछा उसका जवाब नहीं। बस एक ही रट लगाता रहा, कुछ ‘ऐसे-ऐसे’ होता है।
माँ – (हँसकर) हँसी की हँसी, दुख का दुख, यह ‘ऐसे-ऐसे’ क्या होता है? कोई नई बीमारी तो नहीं? बेचारे का मुँह कैसे उतर गया है! हवाइयाँ उड़ रही हैं।
पिता – अजी, एकदम सफ़ेद पड़ गया था। खड़ा नहीं रहा गया। बस में भी नाचता रहा मेरे पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ होता है। ‘ऐसे-ऐसे’ होता है।
मोहन – (ज़ोर से कराहकर) माँ! ओ माँ!
माँ – न-न मेरे बेटे, मेरे लाल, ऐसे नहीं। अजी, ज़रा देखना, डॉक्टर क्यों नहीं आया! इसे तो कुछ ज़्यादा ही तकलीफ़ जान पड़ती है। यह ‘ऐसे-ऐसे’ तो कोई बड़ी ख़राब बीमारी है। देखो न, कैसे लोट रहा है! ज़रा भी कल नहीं पड़ती। हींग, चूरन, पिपरमेंट सब दे चुकी हूँ। वैद्य जी आ जाते! (तभी फ़ोन की घंटी बजती है। मोहन के पिता उठाते हैं।)
पिता – यह 43332 है। जी, जी हाँ। बोल रहा हूँ…कौन? डॉक्टर साहब! जी हाँ, मोहन के पेट में दर्द है…जी नहीं, खाया तो कुछ नहीं, …बस यही कह रहा है…बस जी…नहीं, गिरा भी नहीं…’ ऐसे-ऐसे’ होता है। बस जी, ‘ऐसे-ऐसे’ होता है। बस जी, ‘ऐसे-ऐसे!’ यह ‘ऐसे-ऐसे’ क्या बला है, कुछ समझ में नहीं आता। जी…जी हाँ! चेहरा एकदम सफ़ेद हो रहा है। नाचा…नाचता फिरता है…जी नहीं, दस्त तो नहीं आया…जी हाँ, पेशाब तो आया था…जी नहीं, रंग तो नहीं देखा। आप कहें तो अब देख लेंगे…अच्छा जी! ज़रा जल्दी आइए। अच्छा जी, बड़ी कृपा है। (फ़ोन का चोंगा रख देते हैं। डॉक्टर साहब चल दिए हैं। पाँच मिनट में आ जाते हैं।
(पड़ोस के लाला दीनानाथ का प्रवेश। मोहन ज़ोर से कराहता है।)
मोहन – माँ…माँ…ओ…ओ…(उलटी आती है। उठकर नीचे झुकता है। माँ सिर पकड़ती है। मोहन तीन-चार बार ‘ओ-ओ’ करता है। थूकता है, फिर लेट जाता है।) हाय, हाय!
माँ – (कमर सहलाती हुई) क्या हो गया? दुपहर को भला चंगा गया था। कुछ समझ में नहीं आता! कैसा पड़ा है! नहीं तो मोहन भला कब पड़ने वाला है! हर वक़्त घर को सिर पर उठाए रहता है।
दीनानाथ – अजी, घर क्या, पड़ोस को भी गुलज़ार किए रहता है। इसे छेड़, उसे पछाड़; इसके मुक्का, उसके थप्पड़। यहाँ-वहाँ, हर कहीं मोहन ही मोहन।
पिता – बड़ा नटखट है।
माँ – पर अब तो बेचारा कैसा थक गया है। मुझे तो डर है कि कल स्कूल कैसे जाएगा!
दीनानाथ – जी हाँ, कुछ बड़ी तकलीफ़ है, तभी तो पड़ा। मामूली तकलीफ़ को तो यह कुछ समझता नहीं। पर कोई डर नहीं। मैं वैद्य जी से कह आया हूँ। वे आ ही रहे हैं। ठीक कर देंगे।
मोहन – (तेज़ी से कराहकर) अरे…रे-रे-रे…ओह!
माँ – (घबराकर) क्या है, बेटा? क्या हुआ?
मोहन – (रुआँसा-सा) बड़े ज़ोर से ऐसे-ऐसे होता है। ऐसे-ऐसे।
माँ – ऐसे कैसे, बेटे? ऐसे क्या होता है?
मोहन – ऐसे-ऐसे। (पेट दबाता है।)
(वैद्य जी का प्रवेश।)
वैद्य जी – कहाँ है मोहन? मैंने कहा, जय राम जी की! कहाँ बेटा, खेलने से गया क्या? कोई धमा-चौकड़ी करने को नहीं बची है क्या? जी भर (सब उठकर हाथ जोड़ते हैं। वैद्य जी मोहन के पास कुर्सी पर बैठ जाते हैं।)
पिता – वैद्य जी, शाम तक ठीक था। दफ़्तर से चलते वक़्त रास्ते में एकदम बोला—मेरे पेट में दर्द होता है। ‘ऐसे-ऐसे’ होता है। समझ नहीं आता, यह कैसा दर्द है!
वैद्य जी – अभी बता देता हूँ। असल में बच्चा है। समझा नहीं पाता है। (नाड़ी दबाकर) वात का प्रकोप है…मैंने कहा, बेटा, जीभ तो दिखाओ। (मोहन जीभ निकालता है।) कब्ज़ है। पेट साफ़ नहीं हुआ। (पेट टटोलकर) हूँ, पेट साफ़ नहीं है। मल रुक जाने से वायु बढ़ गई है। क्यों बेटा? (हाथ की उँगलियों को फैलाकर फिर सिकोड़ते हैं।) ऐसे-ऐसे होता है?
मोहन – (कराहकर) जी हाँ…ओह!
वैद्य जी – (हर्ष से उछलकर) मैंने कहा न, मैं समझ गया। अभी पुड़िया भेजता हूँ। मामूली बात है, पर यही मामूली बात कभी-कभी बड़ों-बड़ों को छका देती है। समझने की बात है। मैंने कहा, आओ जी, दीनानाथ जी, आप ही पुड़िया ले लो। (मोहन की माँ से) आधे-आधे घंटे बाद गर्म पानी से देनी है। दो-तीन दस्त होंगे। बस फिर ‘ऐसे-ऐसे’ ऐसे भागेगा जैसे गधे के सिर से सींग! (वैद्य जी द्वार की ओर बढ़ते हैं। मोहन के पिता पाँच का नोट निकालते हैं।)
पिता – वैद्य जी, यह आपकी भेंट। (नोट देते हैं।)
वैद्य जी – (नोट लेते हुए) अरे मैंने कहा, आप यह क्या करते हैं? आप और हम क्या दो हैं? (अंदर के दरवाज़े से जाते हैं। तभी डॉक्टर प्रवेश करते हैं।)
डॉक्टर – हैलो मोहन! क्या बात है? ‘ऐसे-ऐसे’ क्या कर लिया? (माँ और पिता जी फिर उठते हैं। मोहन कराहता है। डॉक्टर पास बैठते हैं।)
पिता – डॉक्टर साहब, कुछ समझ में नहीं आता।
डॉक्टर – (पेट दबाने लगते हैं।) अभी देखता हूँ। जीभ तो दिखाओ बेटा। (मोहन जीभ निकालता है।) हूँ, तो मिस्टर, आपके पेट में कैसे होता है? ऐसे-ऐसे? (मोहन बोलता नहीं, कराहता है।)
माँ – बताओ, बेटा! डॉक्टर साहब को समझा दो।
मोहन – जी…जी…ऐसे-ऐसे। कुछ ऐसे-ऐसे होता है। (हाथ से बताता है। उँगलियाँ भींचता है।) डॉक्टर, तबीयत तो बड़ी ख़राब है।
डॉक्टर – (सहसा गंभीर होकर) वह तो मैं देख रहा हूँ। चेहरा बताता है, इसे काफ़ी दर्द है। असल में कई तरह के दर्द चल पड़े हैं। कौलिक पेन तो है नहीं। और फोड़ा भी नहीं जान पड़ता। (बराबर पेट टटोलता रहता है।)
माँ – (काँपकर) फोड़ा!
डॉक्टर – जी नहीं, वह नहीं है। बिलकुल नहीं है। (मोहन से) ज़रा मुँह फिर खोलना। जीभ निकालो। (मोहन जीभ निकालता है।) हाँ, कब्ज़ ही लगता है। कुछ बदहज़मी भी है। (उठते हुए) कोई बात नहीं। दवा भेजता हूँ। (पिता से) क्यों न आप ही चलें! मेरा विचार है कि एक ही ख़ुराक पीने के बाद तबीयत ठीक हो जाएगी। कभी-कभी हवा रुक जाती है और फंदा डाल लेती है। बस उसी की ऐंठन है। (डॉक्टर जाते हैं। मोहन के पिता दस का नोट लिए पीछे-पीछे जाते हैं और डॉक्टर साहब को देते हैं।)
माँ – सेंक तो दूँ, डॉक्टर साहब?
डॉक्टर – (दूर से) हाँ, गर्म पानी की बोतल से सेंक दीजिए। (डॉक्टर जाते हैं। माँ बोतल उठाती है। पड़ोसिन आती है।)
पड़ोसिन – क्यों मोहन की माँ, कैसा है मोहन?
माँ – आओ जी, रामू की काकी! कैसा क्या होता! लोचा-लोचा फिरे है। जाने वह ‘ऐसे-ऐसे’ दर्द क्या है, लड़के का बुरा हाल कर दिया।
पड़ोसिन – ना जी, इत्ती नई-नई बीमारियाँ निकली हैं। देख लेना, यह भी कोई नया दर्द होगा। राम मारी बीमारियों ने तंग कर दिया। नए-नए बुखार निकल आए हैं। वह बात है कि खाना-पीना तो रहा नहीं।
माँ – डॉक्टर कहता है कि बदहज़मी है। आज तो रोटी भी उनके साथ खाकर गया था। वहाँ भी कुछ नहीं खाया। आजकल तो बिना खाए बीमारी होती है। (बाहर से आवाज़ आती है ‘मोहन! मोहन!’। फिर मास्टर जी का प्रवेश होता है।)
माँ – ओह, मोहन के मास्टर जी हैं। (पुकारकर) आ जाइए!
मास्टर – सुना है कि मोहन के पेट में कुछ ‘ऐसे-ऐसे’ हो रहा है! क्यों, भाई? (पास आकर) हाँ, चेहरा तो कुछ उतरा हुआ है। दादा, कल तो स्कूल जाना है। तुम्हारे बिना तो क्लास में रौनक ही नहीं रहेगी। क्यों माता जी, आपने क्या खिला दिया था इसे?
माँ – खाया तो बेचारे ने कुछ नहीं।
मास्टर – तब शायद न खाने का दर्द है। समझ गया, उसी में ‘ऐसे-ऐसे’ होता है।
माँ – पर मास्टर जी, वैद्य और डॉक्टर तो दस्त की दवा भेजेंगे।
मास्टर – माता जी, मोहन की दवा वैद्य और डॉक्टर के पास नहीं है। इसकी ‘ऐसे-ऐसे’ की बीमारी को मैं जानता हूँ। अकसर मोहन जैसे लड़कों को वह हो जाती है।
माँ – सच! क्या बीमारी है यह?
मास्टर – अभी बताता हूँ। (मोहन से) अच्छा साहब! दर्द तो दूर हो ही जाएगा। डरो मत। बेशक कल स्कूल मत आना। पर हाँ, एक बात तो बताओ, स्कूल का काम तो पूरा कर लिया है? (मोहन चुप रहता है।)
माँ – जवाब दो, बेटा, मास्टर जी क्या पूछते हैं।
मास्टर – हाँ, बोलो बेटा।
(मोहन कुछ देर फिर मौन रहता है। फिर इंकार में सिर हिलाता है।)
मोहन – जी, सब नहीं हुआ।
मास्टर – हूँ! शायद सवाल रह गए हैं।
मोहन – जी!
मास्टर – तो यह बात है। ‘ऐसे-ऐसे’ काम न करने का डर है।
माँ – (चौंककर) क्या?
(मोहन सहसा मुँह छिपा लेता है।)
मास्टर – (हँसकर) कुछ नहीं, माता जी, मोहन ने महीना भर मौज की। स्कूल का काम रह गया। आज ख़याल आया। बस डर के मारे पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ होने लगा—‘ऐसे-ऐसे’! अच्छा, उठिए साहब! आपके ‘ऐसे-ऐसे’ की दवा मेरे पास है। स्कूल से आपको दो दिन की छुट्टी मिलेगी। आप उसमें काम पूरा करेंगे और आपका ‘ऐसे-ऐसे’ दूर भाग जाएगा। (मोहन उसी तरह मुँह छिपाए रहता है।) अब उठकर सवाल शुरू कीजिए। उठिए, खाना मिलेगा। (मोहन उठता है। माँ ठगी-सी देखती है। दूसरी ओर से पिता और दीनानाथ दवा लेकर प्रवेश करते हैं।)
माँ – क्यों रे मोहन, तेरे पेट में तो बहुत बड़ी दाढ़ी है। हमारी तो जान निकल गई। पंद्रह-बीस रुपए ख़र्च हुए, सो अलग। (पिता से) देखा जी आपने!
पिता – (चकित होकर) क्या-क्या हुआ?
माँ – क्या-क्या होता! यह ‘ऐसे-ऐसे’ पेट का दर्द नहीं है, स्कूल का काम न करने का डर है।
पिता – हें!
(दवा की शीशी हाथ से छूटकर फ़र्श पर गिर पड़ती है। एक क्षण सब ठगे-से मोहन को देखते हैं। फिर हँस पड़ते हैं।)
दीनानाथ – वाह, मोहन, वाह!
पिता – वाह, बेटा जी, वाह! तुमने तो ख़ूब छकाया!
(एक अट्टहास के बाद पर्दा गिर जाता है।)
सारांश
“ऐसे-ऐसे” एक हास्यप्रद एकांकी है, जिसमें तीसरी कक्षा के विद्यार्थी मोहन के पेट दर्द की शिकायत को केंद्र में रखा गया है। मोहन बार-बार कहता है कि उसके पेट में “ऐसे-ऐसे” हो रहा है, जिसे माता-पिता, वैद्य, और डॉक्टर गंभीर बीमारी समझते हैं। अंत में मास्टर जी खुलासा करते हैं कि यह दर्द स्कूल का अधूरा काम करने के डर से है, न कि कोई शारीरिक बीमारी। यह नाटक बच्चों की शरारत और डर को हास्य के साथ दर्शाता है।
शब्दार्थ
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | तमिल अर्थ | English Meaning |
पुचकारकर | प्यार से सांत्वना देना | அன்பாக ஆறுதல் கூறுதல் | Caressing |
अंट-शंट | बेकार, अनुचित चीजें | தேவையற்றவை | Rubbish |
गड़गड़ | पेट में गैस की आवाज | வயிற்றில் ஒலி | Gurgling |
हवाइयाँ | भय या कमजोरी की स्थिति | பயம் அல்லது பலவீனம் | Paleness |
कराहना | दर्द में आवाज करना | வலியில் முனகுதல் | Moaning |
गुलज़ार | चहल-पहल, रौनक | உற்சாகமான | Lively |
नटखट | शरारती | குறும்பு | Naughty |
वात | आयुर्वेद में गैस की समस्या | வாதம் | Flatulence |
प्रकोप | अधिकता, प्रभाव | தாக்கம் | Aggravation |
कब्ज़ | मल निष्कासन में रुकावट | மலச்சிக்கல் | Constipation |
बदहज़मी | अपच, पाचन की समस्या | செரிமானக் கோளாறு | Indigestion |
ऐंठन | मरोड़, दर्द | வலி முறுக்கு | Cramp |
लोचा | उलझन, परेशानी | குழப்பம் | Trouble |
मारी | बीमारी | நோய் | Disease |
रौनक | चमक, जीवंतता | பிரகாசம் | Vibrancy |
ठगा | धोखा खाया हुआ | ஏமாற்றப்பட்ட | Deceived |
अट्टहास | ज़ोरदार हँसी | உரத்த சிரிப்பு | Loud laughter |
दाढ़ी | छल, धोखा | ஏமாற்று | Deception |
छकाना | मूर्ख बनाना | முட்டாளாக்குதல் | Fooling |
ख़याल | विचार, चिंता | எண்ணம் | Thought |
प्रश्नोत्तर
- ऐसे-ऐसे’ एकांकी के प्रमुख पात्रों के नाम बताइए?
उत्तर – ऐसे-ऐसे’ एकांकी के प्रमुख पात्र हैं – मोहन (एक विद्यार्थी), मोहन की माँ, मोहन के पिता, और मोहन के मास्टर जी। इनके अतिरिक्त दीनानाथ (पड़ोसी), वैद्य जी, डॉक्टर और एक पड़ोसिन भी एकांकी के पात्र हैं।
- ‘ऐसे-ऐसे’ एकांकी की विशेषता बताइए?
उत्तर – यह एक हास्य एकांकी है जो बाल मनोविज्ञान को बहुत सजीव ढंग से प्रस्तुत करती है। इसकी विशेषता इसकी सरल, रोजमर्रा की और संवादात्मक भाषा है। लेखक ने ‘ऐसे-ऐसे’ रूपी एक रहस्यमयी बीमारी के माध्यम से पाठकों की उत्सुकता को अंत तक बनाए रखा है, जिसका समाधान बहुत ही हास्यपूर्ण और स्वाभाविक निकलता है।
- मोहन के पेट के दर्द का कारण क्या था और यह दर्द क्यों हुआ?
उत्तर – मोहन के पेट के दर्द का असली कारण कोई बीमारी नहीं, बल्कि स्कूल का काम (होमवर्क) पूरा न करने का डर था। यह दर्द इसलिए हुआ क्योंकि मोहन ने (जैसा कि मास्टर जी ने कहा) “महीना भर मौज की” और स्कूल का काम अधूरा रह गया। जब अगले दिन स्कूल जाने का ख्याल आया, तो मास्टर जी की सज़ा के डर से उसके पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ होने लगा, जो कि एक बहाना था।
- माँ मोहन के पेट के दर्द से क्यों परेशान हुई और वैद्य से क्या बोली?
उत्तर – माँ इसलिए परेशान थीं क्योंकि मोहन, जो आम तौर पर बहुत नटखट (घर को सिर पर उठाए रहता) है, दर्द के मारे बेचैन होकर लेटा था, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया था और वह बुरी तरह कराह रहा था। माँ को लगा कि ‘ऐसे-ऐसे’ कोई नई और ख़राब बीमारी है। गद्यांश में माँ वैद्य जी से सीधे बात नहीं करती हैं, बल्कि मोहन के पिता वैद्य जी को बताते हैं कि मोहन के पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ हो रहा है।
- मोहन के ऐसे-ऐसे करने का नतीजा क्या होता है?
उत्तर – मोहन के ‘ऐसे-ऐसे’ करने का नतीजा यह हुआ कि उसके माता-पिता बुरी तरह घबरा गए। उन्होंने इसे कोई गंभीर बीमारी समझ लिया। पिता ने डॉक्टर को फोन किया, पड़ोसी दीनानाथ वैद्य जी को बुला लाए, और डॉक्टर भी घर पर आ गए। माँ, पिता और पड़ोसी सब बहुत चिंतित हो गए। अंत में, माता-पिता की (जैसा माँ कहती हैं) ‘जान निकल गई’ और वैद्य-डॉक्टर की फीस में पंद्रह-बीस रुपए भी ख़र्च हो गए।
- वैद्य ने ऐसे-ऐसे कहकर मोहन के पेट दर्द को कैसे दूर किया?
उत्तर – वैद्य जी ने मोहन के पेट दर्द को दूर नहीं किया, बल्कि उन्होंने ‘ऐसे-ऐसे’ का कारण ‘वात का प्रकोप’ (गैस) बताया। उन्होंने नाड़ी दबाकर और जीभ देखकर कहा कि मोहन को ‘कब्ज़’ है और पेट साफ़ न होने से वायु बढ़ गई है। उन्होंने इलाज के लिए एक पुड़िया (चूर्ण) भेजी और कहा कि इसे गर्म पानी से देने पर दो-तीन दस्त होंगे और दर्द “गधे के सिर से सींग” की तरह गायब हो जाएगा।
- ‘ऐसे-ऐसे’ एकांकी का सारांश लिखिए।
उत्तर – ‘ऐसे-ऐसे’ एक हास्य एकांकी है, जो एक विद्यार्थी मोहन के इर्द-गिर्द घूमती है। मोहन स्कूल न जाने के लिए पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ होने का बहाना करता है। उसके माता-पिता इसे कोई गंभीर बीमारी समझकर बहुत चिंतित हो जाते हैं। वे हींग, चूरन सब देते हैं, पर मोहन का दर्द ठीक नहीं होता। पहले वैद्य जी को बुलाया जाता है, जो इसे कब्ज़ और ‘वात का प्रकोप’ बताते हुए पुड़िया देते हैं। फिर डॉक्टर आते हैं, जो इसे ‘बदहज़मी’ या ‘हवा रुक जाना’ बताकर दवा की शीशी भेजते हैं। पड़ोसिन भी इसे कोई नई बीमारी बताती है। अंत में, मोहन के मास्टर जी आते हैं। वे मोहन की असलियत समझ जाते हैं और उससे पूछते हैं कि क्या स्कूल का काम पूरा कर लिया है। मोहन इंकार में सिर हिलाता है। मास्टर जी सबको बताते हैं कि ‘ऐसे-ऐसे’ कोई बीमारी नहीं, बल्कि महीने भर मौज करने के बाद स्कूल का काम अधूरा रह जाने का डर है। वे मोहन को दो दिन की छुट्टी देकर काम पूरा करने को कहते हैं और मोहन का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है, जिसे देखकर सब हँस पड़ते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- मोहन की शिकायत क्या थी?
a) सिर में दर्द
b) पेट में “ऐसे-ऐसे”
c) पैर में दर्द
d) बुखार
उत्तर – b) पेट में “ऐसे-ऐसे” - मोहन की उम्र कितनी थी?
a) 5-6 वर्ष
b) 8-9 वर्ष
c) 12-13 वर्ष
d) 15-16 वर्ष
उत्तर – b) 8-9 वर्ष - मोहन किस कक्षा में पढ़ता था?
a) पहली कक्षा
b) तीसरी कक्षा
c) पाँचवीं कक्षा
d) सातवीं कक्षा
उत्तर – b) तीसरी कक्षा - मोहन के माता-पिता ने उसकी बीमारी के लिए किसे बुलाया?
a) केवल वैद्य जी को
b) केवल डॉक्टर को
c) वैद्य जी और डॉक्टर दोनों को
d) मास्टर जी को
उत्तर – c) वैद्य जी और डॉक्टर दोनों को - मोहन के पिता ने मोहन के खाने के बारे में क्या बताया?
a) उसने बहुत सारा खाना खाया
b) उसने एक केला और एक संतरा खाया
c) उसने कुछ नहीं खाया
d) उसने मिठाई खाई
उत्तर – b) उसने एक केला और एक संतरा खाया - मोहन के “ऐसे-ऐसे” दर्द का क्या अर्थ था?
a) पेट में गैस
b) स्कूल का काम न करने का डर
c) बदहज़मी
d) फोड़ा
उत्तर – b) स्कूल का काम न करने का डर - वैद्य जी ने मोहन की बीमारी का क्या कारण बताया?
a) बुखार
b) कब्ज और वात का प्रकोप
c) चोट लगना
d) भोजन विषाक्तता
उत्तर – b) कब्ज और वात का प्रकोप - डॉक्टर ने मोहन की बीमारी का क्या निदान किया?
a) फोड़ा
b) कब्ज और बदहज़मी
c) बुखार
d) चोट
उत्तर – b) कब्ज और बदहज़मी - मोहन की बीमारी का असली कारण किसने बताया?
a) वैद्य जी
b) डॉक्टर
c) मास्टर जी
d) पड़ोसिन
उत्तर – c) मास्टर जी - मोहन के पिता ने वैद्य जी को क्या दिया?
a) दस का नोट
b) पाँच का नोट
c) दवा की शीशी
d) कोई उपहार
उत्तर – b) पाँच का नोट - मोहन की माँ ने उसे क्या करने को कहा?
a) स्कूल जाने को
b) सेंक लेने को
c) दवा खाने को
d) खेलने को
उत्तर – b) सेंक लेने को - पड़ोसिन ने मोहन की बीमारी के बारे में क्या कहा?
a) यह पुरानी बीमारी है
b) यह नई बीमारी हो सकती है
c) यह खाने की कमी से है
d) यह खेलने से हुआ
उत्तर – b) यह नई बीमारी हो सकती है - मास्टर जी ने मोहन की बीमारी को क्या बताया?
a) बदहज़मी
b) स्कूल का काम न करने का डर
c) वात का प्रकोप
d) बुखार
उत्तर – b) स्कूल का काम न करने का डर - मोहन ने स्कूल का काम पूरा किया था?
a) हाँ, पूरा किया था
b) नहीं, अधूरा था
c) आधा किया था
d) बिल्कुल नहीं किया था
उत्तर – b) नहीं, अधूरा था - मास्टर जी ने मोहन को क्या सुझाव दिया?
a) दवा खाने को
b) दो दिन की छुट्टी लेकर काम पूरा करने को
c) स्कूल न आने को
d) खेलने को
उत्तर – b) दो दिन की छुट्टी लेकर काम पूरा करने को - मोहन की बीमारी का निदान करने में किसने गलती की?
a) मास्टर जी
b) वैद्य जी और डॉक्टर
c) पड़ोसिन
d) मोहन के पिता
उत्तर – b) वैद्य जी और डॉक्टर - मोहन की माँ ने कितने रुपये खर्च होने की बात कही?
a) पाँच-दस रुपये
b) पंद्रह-बीस रुपये
c) तीस-चालीस रुपये
d) पचास रुपये
उत्तर – b) पंद्रह-बीस रुपये - मोहन की बीमारी का अंत में क्या परिणाम हुआ?
a) वह ठीक हो गया
b) उसे अस्पताल ले जाया गया
c) उसका डर सामने आया
d) उसे दवा दी गई
उत्तर – c) उसका डर सामने आया - नाटक का अंत कैसे होता है?
a) मोहन स्कूल जाता है
b) सब हँस पड़ते हैं
c) मोहन को दवा दी जाती है
d) डॉक्टर दोबारा आता है
उत्तर – b) सब हँस पड़ते हैं - नाटक में हास्य का स्रोत क्या है?
a) मोहन की शरारत
b) “ऐसे-ऐसे” दर्द का रहस्य
c) वैद्य जी की दवा
d) पड़ोसिन की बातें
उत्तर – b) “ऐसे-ऐसे” दर्द का रहस्य
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – एकांकी “ऐसे-ऐसे” का प्रमुख पात्र कौन है?
उत्तर – एकांकी “ऐसे-ऐसे” का प्रमुख पात्र मोहन नाम का एक विद्यार्थी है। - प्रश्न – मोहन की उम्र कितनी बताई गई है?
उत्तर – मोहन की उम्र लगभग आठ-नौ वर्ष बताई गई है। - प्रश्न – मोहन किस कक्षा में पढ़ता है?
उत्तर – मोहन तीसरी कक्षा में पढ़ता है। - प्रश्न – एकांकी की शुरुआत में मोहन किस स्थिति में है?
उत्तर – एकांकी की शुरुआत में मोहन पेट दर्द से बेचैन होकर तख़्त पर लेटा हुआ है। - प्रश्न – मोहन के माता-पिता को उसके पेट दर्द का कारण क्या लगता है?
उत्तर – मोहन के माता-पिता को लगता है कि उसने कुछ ग़लत खा लिया है। - प्रश्न – मोहन अपने दर्द को किस शब्दों में व्यक्त करता है?
उत्तर – मोहन अपने दर्द को “ऐसे-ऐसे होता है” कहकर व्यक्त करता है। - प्रश्न – जब पिता उससे पूछते हैं कि दर्द कैसे है, तो वह क्या जवाब देता है?
उत्तर – वह हर बार यही कहता है कि मेरे पेट में “ऐसे-ऐसे” होता है। - प्रश्न – डॉक्टर को सबसे पहले किसने बुलाया?
उत्तर – डॉक्टर को मोहन के पिता ने फ़ोन करके बुलाया। - प्रश्न – डॉक्टर से बात करते समय पिता ने मोहन की हालत कैसे बताई?
उत्तर – पिता ने बताया कि मोहन का चेहरा सफ़ेद हो गया है और वह “ऐसे-ऐसे” कहता रहता है। - प्रश्न – मोहन का पड़ोसी कौन है?
उत्तर – मोहन का पड़ोसी लाला दीनानाथ है। - प्रश्न – दीनानाथ मोहन के स्वभाव के बारे में क्या कहता है?
उत्तर – दीनानाथ कहता है कि मोहन बहुत नटखट और शरारती लड़का है। - प्रश्न – वैद्य जी मोहन की बीमारी को क्या बताते हैं?
उत्तर – वैद्य जी कहते हैं कि मोहन को कब्ज़ है और पेट साफ़ नहीं हुआ है। - प्रश्न – वैद्य जी किस कारण को मोहन के दर्द का कारण मानते हैं?
उत्तर – वैद्य जी मानते हैं कि मल रुक जाने से वायु बढ़ गई है, जिससे पेट दर्द हो रहा है। - प्रश्न – वैद्य जी ने मोहन को क्या दवा दी?
उत्तर – वैद्य जी ने पुड़िया बनाकर भेजने को कहा जिसे गर्म पानी से आधे घंटे पर देना था। - प्रश्न – वैद्य जी के जाने के बाद कौन आता है?
उत्तर – वैद्य जी के जाने के बाद डॉक्टर साहब आते हैं। - प्रश्न – डॉक्टर ने मोहन की बीमारी के बारे में क्या कहा?
उत्तर – डॉक्टर ने कहा कि मोहन को बदहज़मी और कब्ज़ है, चिंता की बात नहीं है। - प्रश्न – डॉक्टर ने मोहन को क्या करने की सलाह दी?
उत्तर – डॉक्टर ने कहा कि उसे गर्म पानी की बोतल से सेंक दिया जाए और दवा दी जाएगी। - प्रश्न – डॉक्टर के बाद कौन मिलने आता है?
उत्तर – डॉक्टर के बाद पड़ोसिन और फिर मोहन के मास्टर जी मिलने आते हैं। - प्रश्न – पड़ोसिन मोहन की बीमारी के बारे में क्या कहती है?
उत्तर – पड़ोसिन कहती है कि आजकल बहुत सी नई-नई बीमारियाँ निकल आई हैं, शायद यह भी कोई नई बीमारी हो। - प्रश्न – मास्टर जी जब आते हैं तो क्या कहते हैं?
उत्तर – मास्टर जी कहते हैं कि सुना है मोहन के पेट में कुछ “ऐसे-ऐसे” हो रहा है। - प्रश्न – मास्टर जी ने मोहन से कौन-सा प्रश्न पूछा?
उत्तर – मास्टर जी ने पूछा कि क्या तुमने स्कूल का सारा काम पूरा कर लिया है? - प्रश्न – क्या मोहन ने स्कूल का सारा काम पूरा किया था?
उत्तर – नहीं, मोहन ने स्कूल का सारा काम पूरा नहीं किया था। - प्रश्न – मास्टर जी को मोहन की असली बीमारी क्या समझ में आई?
उत्तर – मास्टर जी को समझ में आया कि मोहन को डर की बीमारी है, क्योंकि उसने स्कूल का काम नहीं किया है। - प्रश्न – मोहन के पेट में “ऐसे-ऐसे” क्यों हो रहा था?
उत्तर – मोहन के पेट में “ऐसे-ऐसे” इसलिए हो रहा था क्योंकि वह स्कूल का काम न करने के डर से घबराया हुआ था। - प्रश्न – मास्टर जी ने मोहन को क्या दवा बताई?
उत्तर – मास्टर जी ने कहा कि दो दिन की छुट्टी में स्कूल का काम पूरा करने की दवा ही उसकी असली दवा है। - प्रश्न – जब सच पता चला तो मोहन की माँ ने क्या कहा?
उत्तर – माँ ने कहा कि यह तो स्कूल का काम न करने का डर है, पेट की कोई बीमारी नहीं। - प्रश्न – मोहन के पिता ने क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर – मोहन के पिता हैरान रह गए और बोले, “हें!”, फिर सब हँस पड़े। - प्रश्न – अंत में सबकी क्या स्थिति रही?
उत्तर – अंत में सब मोहन की नटखटाई पर हँस पड़े और माहौल हल्का हो गया। - प्रश्न – इस एकांकी का प्रमुख हास्य तत्व क्या है?
उत्तर – इस एकांकी का प्रमुख हास्य तत्व यह है कि ‘पेट दर्द’ की गंभीर बात अंत में स्कूल के काम के डर से जुड़ जाती है। - प्रश्न – “ऐसे-ऐसे” एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – “ऐसे-ऐसे” एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बच्चों को डरने की नहीं, सच्चाई बताने की आदत डालनी चाहिए और माता-पिता को भी समझदारी से काम लेना चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- नाटक में मोहन की बीमारी का क्या लक्षण था?
उत्तर – मोहन बार-बार कहता था कि उसके पेट में “ऐसे-ऐसे” हो रहा है। वह बेचैन था, कराहता था, और उसका चेहरा सफेद पड़ गया था। वह पेट दबाता और बार-बार उलटी जैसी हरकत करता था। - मोहन के माता-पिता ने उसकी बीमारी के लिए क्या किया?
उत्तर – मोहन के माता-पिता ने उसे सेंक दी, हींग, चूरन, और पिपरमेंट दिए। उन्होंने वैद्य जी और डॉक्टर को बुलाया, और पिता ने फोन पर डॉक्टर से बात की। वे मोहन की हालत से चिंतित थे। - वैद्य जी ने मोहन की बीमारी का क्या निदान किया?
उत्तर – वैद्य जी ने मोहन की नाड़ी देखकर और पेट टटोलकर निदान किया कि कब्ज के कारण वात का प्रकोप है। उन्होंने पुड़िया भेजने को कहा, जो गर्म पानी के साथ देने से दस्त के बाद ठीक हो जाएगा। - डॉक्टर ने मोहन की बीमारी को क्या समझा?
उत्तर – डॉक्टर ने मोहन की जीभ और पेट की जाँच की और निदान किया कि यह कब्ज और बदहज़मी के कारण हवा की ऐंठन है। उन्होंने दवा भेजने और गर्म पानी से सेंक देने का सुझाव दिया। - मास्टर जी ने मोहन की बीमारी का असली कारण कैसे जाना?
उत्तर – मास्टर जी ने मोहन से स्कूल के काम के बारे में पूछा। जब मोहन ने स्वीकार किया कि उसका काम अधूरा है, मास्टर जी ने समझ लिया कि “ऐसे-ऐसे” दर्द स्कूल के काम न करने के डर से है। - पड़ोसिन ने मोहन की बीमारी के बारे में क्या राय दी?
उत्तर – पड़ोसिन ने कहा कि यह कोई नई बीमारी हो सकती है, क्योंकि आजकल नई-नई बीमारियाँ और बुखार निकल रहे हैं। उसने खान-पान की कमी को भी इसका कारण बताया। - नाटक में मोहन की शरारत कैसे सामने आई?
उत्तर – मोहन की शरारत तब सामने आई जब मास्टर जी ने खुलासा किया कि उसका “ऐसे-ऐसे” दर्द स्कूल का काम न करने का डर है। मोहन ने बीमारी का बहाना बनाकर सबको छकाया था। - मोहन के पिता ने वैद्य जी और डॉक्टर को क्या दिया?
उत्तर – मोहन के पिता ने वैद्य जी को पाँच रुपये का नोट और डॉक्टर को दस रुपये का नोट दिया। यह उनकी सेवाओं के लिए भेंट थी, जिसे दोनों ने स्वीकार किया। - नाटक में हास्य का स्रोत क्या है?
उत्तर – नाटक में हास्य का स्रोत मोहन का “ऐसे-ऐसे” दर्द है, जिसे सब गंभीर बीमारी समझते हैं, लेकिन अंत में पता चलता है कि यह स्कूल का काम न करने का डर है। यह विडंबना हास्य उत्पन्न करती है। - मास्टर जी ने मोहन को क्या सुझाव दिया?
उत्तर – मास्टर जी ने मोहन को दो दिन की छुट्टी लेकर स्कूल का अधूरा काम पूरा करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इससे उसका “ऐसे-ऐसे” दर्द दूर हो जाएगा, क्योंकि यह डर से उत्पन्न हुआ था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- नाटक में मोहन की बीमारी का वर्णन कैसे किया गया है, और इसका असली कारण क्या था?
उत्तर – मोहन बार-बार कराहता और कहता कि उसके पेट में “ऐसे-ऐसे” हो रहा है। उसका चेहरा सफेद पड़ गया, और वह बेचैन था। वैद्य जी और डॉक्टर ने इसे कब्ज और बदहज़मी माना, लेकिन मास्टर जी ने खुलासा किया कि यह स्कूल का अधूरा काम करने का डर था, जो मोहन की शरारत थी। - नाटक में वैद्य जी और डॉक्टर की भूमिका क्या थी, और उन्होंने मोहन की बीमारी का क्या निदान किया?
उत्तर – वैद्य जी और डॉक्टर को मोहन की बीमारी की जाँच के लिए बुलाया गया। वैद्य जी ने कब्ज और वात का प्रकोप बताया, जबकि डॉक्टर ने कब्ज और बदहज़मी के कारण हवा की ऐंठन माना। दोनों ने दवा देने का सुझाव दिया, लेकिन असली कारण मास्टर जी ने बताया कि यह स्कूल के काम का डर था। - नाटक में हास्य कैसे उत्पन्न होता है, और यह क्या संदेश देता है?
उत्तर – हास्य मोहन के “ऐसे-ऐसे” दर्द से उत्पन्न होता है, जिसे सब गंभीर बीमारी समझते हैं, लेकिन यह स्कूल का काम न करने का डर निकलता है। यह विडंबना हँसी पैदा करती है। नाटक का संदेश है कि बच्चों की शरारतें और डर गलतफहमियाँ पैदा कर सकते हैं, जिन्हें समझदारी से सुलझाना चाहिए। - मोहन की माँ और पिता ने उसकी बीमारी को लेकर क्या कदम उठाए, और उनकी प्रतिक्रिया कैसी थी?
उत्तर – मोहन की माँ ने सेंक दिया, हींग, चूरन, और पिपरमेंट दिए, और वैद्य जी व डॉक्टर को बुलाया। पिता ने फोन पर डॉक्टर से बात की और दोनों को भेंट दी। वे चिंतित और घबराए हुए थे, लेकिन अंत में मोहन की शरारत जानकर ठगे-से रह गए और हँस पड़े। - मास्टर जी ने नाटक में क्या भूमिका निभाई, और उन्होंने मोहन की समस्या का समाधान कैसे किया?
उत्तर – मास्टर जी ने मोहन की बीमारी का असली कारण पहचाना कि यह स्कूल का अधूरा काम करने का डर था। उन्होंने मोहन को दो दिन की छुट्टी लेकर काम पूरा करने का सुझाव दिया, जिससे उसका डर और “ऐसे-ऐसे” दर्द दूर हो जाएगा। उनकी समझदारी ने सबको हँसी और राहत दी।

