रामधारी सिंह ‘दिनकर’ – लेखक परिचय
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार प्रांत मुंगेर जिले में स्थित सिमरियाघाट नामक स्थान में हुआ था। इन्होंने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के जयद्रथ वध, भारती भारत आदि सेप्रेरित होकर अनेक रचनाएँ की। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के बाद राष्ट्रकवि के रूप में दिनकर का नाम लिया जाता है। दिनकर क्रांति और विद्रोही भावों के ओजस्वी कवि थे। रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा और कुरुक्षेत्र आपकी श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। उनकी भाषा शैली ओज की प्रधानता है। प्रमुख कविताएँ – रेणुका, हुंकार, रसवंती, द्वन्दवगीत, सामधेनी, परशुराम की प्रतीक्षा, नीम के पत्ते, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
संस्कृति क्या है?
संस्कृति ऐसी चीज है, जिसे लक्षणों से तो हम जान सकते हैं, लेकिन उसकी परिभाषा नहीं दे सकते सभ्यता से भिन्न गुण है। अंग्रेजी में कहावत है कि सभ्यता वह चीज है, जो हमारे पास है, संस्कृति वह गुण है, जो हममें व्याप्त है। मोटर,महल, सड़क, हवाई जहाज, पोशाक और अच्छा भोजन, ये तथा इनके समान सारी अन्य स्थूल वस्तुएँ, संस्कृति नहीं सभ्यता के समान है। मगर पोशाक पहनने और भोजन करने में जो कला है, वह संस्कृति की चीज है। इसी प्रकार मोटर बनाने और उसका उपयोग करने, महलों के निर्माण में रुचि का परिचय देने और सड़कों तथा हवाई जहाजों की रचना में जो ज्ञान लगता है, उसे अर्जित करने में संस्कृति अपने को व्यक्त करती है। हरसुसभ्य आदमी सुसंस्कृत ही होता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता; क्योंकि अच्छी पोशाक पहनने वाला आदमी भी तबीयत से नंगा हो सकता है और तबीयत से नंगा होना संस्कृति के खिलाफ बात है क्योंकि सभ्यता की पहचान सुख-सुविधा और ठाट-बाट है। मगर, बहुत-से ऐसे लोग हैं, सड़े-गले झोपड़ों में रहते हैं, उनके पास काफी कपड़े भी नहीं होते और पहनने के अच्छे ढंग ही उन्हें मालूम होते हैं, लेकिन फिर भी उनमें विनय और सदाचार होता है, वे दूसरों के दुख से दुखी होते हैं तथा दूसरों का दुख दूर करने के लिए वह खुद मुसीबत उठाने को भी तैयार रहते हैं।
छोटा नागपुर की आदिवासी जनता पूर्ण रूप से सभ्य तो नहीं कही जा सकती, क्योंकि सभ्यता के बड़े-बड़े उदाहरण उपकरण उसके पास नहीं है लेकिन दया- माया सच्चाई और सदाचार उसमें कम नहीं है। अतएव, उन्हें सुसंस्कृत समझने में कोई ज्ज नहीं होना चाहिए। प्राचीन भारत में ऋषिगण जंगलों में रहते थे और जंगलों में वे कोठे और महल बना कर नहीं रहते थे। फूस की झोंपड़ियों में वास करना, जंगल के जीवन से दोस्ती और प्यार करना, किसी भी मोटे काम को अपने हाथ से करने में हिचकिचाहट नहीं दिखती, पत्तों में खाना और मिट्टी के बर्तनों में रसोई पकाना, यही उनकी जिंदगी थी यह लक्षण आज की यूरोपीय परिभाषा के अनुसार के लक्षण नहीं माने जाते है।, फिर भी वे ऋषिगण सुसंस्कृत ही नहीं थे बल्कि वह हमारी जाति की संस्कृति का निर्माण करते थे। सभ्यता और संस्कृति में यह एक मौलिक भेद है, जिसे समझे बिना हमें कहीं-कहीं कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
मगर, यह कठिनाई कहीं-कहीं ही आती है। साधारण नियम यही है कि संस्कृति की सभ्यता की प्रगति, अधिकतर एक साथ होती है और दोनों का एक दूसरे पर प्रभाव भी पड़ता रहता है। उदाहरण के लिए जब हम कोई घर बनाने लगते हैं, तब स्थूल रूप से यह सभ्यता का कार्य होता है। मगर, हम घर का कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं, इसका निर्णय हमारी संस्कृति की रुचि करती है और संस्कृति की प्रेरणा से हम जैसा घर बनाते हैं, वह सिर्फ सभ्यता का अंग बन जाता है। इस प्रकार सभ्यता का संस्कृति पर और संस्कृति का सभ्यता पर पड़ने वाले प्रभाव का क्रम निरंतर चलता ही रहता है।
यही एक बात यह भी समझ लेनी चाहिए की संस्कृति और प्रकृति में भी भेद है। गुस्सा करना मनुष्य की प्रकृति है, लोभ में पड़ना उसका स्वभाव है, ईर्ष्या, मोह, राग, द्वेष और कामवासना ये सब-के-सब प्रकृति प्रदत्त गुण हैं मगर, प्रकृति के ये गुण बेरोक छोड़ दिए जाएँ तो आदमी और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाएगा। इसलिए, मनुष्य प्रकृति के इन आवेगों पर रोक लगाता है और कोशिश करता है कि वह गुस्से के बस में नहीं बल्कि गुस्सा ही उसके बस में रहे; वह ईर्ष्या, मोह, राग, द्वेष और कामवासना का गुलाम नहीं रहे, बल्कि, ये दुर्गुण उसके गुलाम रहें और इन दुर्गुणों पर आदमी जितना विजयी होता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है।
निष्कर्ष यह है कि संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा महीन चीज होती है। यह सभ्यता के भीतर उसी तरह व्याप्त रहती है जैसे दूध में मक्खन या फूलों में सुगंध और सभ्यता की अपेक्षा यह टिकाऊ भी अधिक है, क्योंकि सभ्यता की सामग्रियाँ फूट-फूटकर विनष्ट हो जा सकती हैं, लेकिन, संस्कृति का विनाश इतनी आसानी से नहीं किया जा सकता।
एक बात और है किस सभ्यता के उपकरण जल्दी से बटोरे भी जा सकते हैं, मगर, उनके उपयोग के लिए संस्कृति चाहिए, वह तुरंत नहीं आ सकती जो आदमी अचानक धनी हो जाता है या एक-ब-एक किसी ऊँचे पद पर पहुंच जाता है, उसे चिढ़ाने के लिए अंग्रेजी में एक शब्द ‘अपस्टार्ट’ है। ‘अपस्टार्ट’ को लोग बुरा समझते हैं और इसलिए बुरा नहीं समझते कि अचानक धनी हो जाना या एक-ब-एक किसी ऊँचे पद पर पहुंच जाना कोई बुरी बात है, वरन, इसलिए की धनियों तथा ऊँचे ओहदेवालों की जो संस्कृति है, वह तुरंत सीखी नहीं जा सकती। इसलिए ऊँचे ओहदे पर पहुँचा हुआ व्यक्ति यदि पहले से अधिक विनयशील नहीं हो जाए, तो वह चिढ़ाने लायक हो जाता है।
संस्कृति ऐसी चीज नहीं है जिसकी रचना दस, बीस या सौ, पचास वर्षों में की जा सकती हो। अनेक शताब्दियों तक एक समाज के लोग जिस तरह खाते-पीते रहते-सहते, पढ़ते-लिखते, सोचते-समझते, और राजकाज चलाते अथवा धर्म-कर्म करते हैं उन सभी कार्यों से उनकी संस्कृति उत्पन्न होती है। हम जो भी करते हैं उसमें हमारी संस्कृति की झलक होती है। यहाँ तक कि हमारे उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने, और रोने- हंसने से भी हमारी संस्कृति की पहचान होती है, यद्यपि हमारा कोई भी एक काम हमारी संस्कृति का पर्याय नहीं बन सकता। असल में, संस्कृति जिंदगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं। इसलिए जिस समाज में हम पैदा हुए हैं अथवा जिस समाज से मिलकर हम जी रहे हैं उसकी संस्कृति हमारी संस्कृति है, यद्यपि अपने जीवन में हम जो भी संस्कार जमा करते हैं वह भी हमारी संस्कृति का अंग बन जाता है और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी संतानों के लिए छोड़ देते हैं। इसलिए, संस्कृति वह चीज मानी जाती है जो हमारे सारे जीवन को व्यापे हुए हैं तथा जिसकी रचना और विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है बल्कि संस्कृति हमारा पीछा जन्म जन्मांतर तक करती है। अपने यहां एक साधारण कहावत है जिसका जैसा संस्कार है उसका वैसा ही पुनर्जन्म भी होता है। जबहम किसी बालक या बालिका को बहुत तेज पाते हैं तब हम अचानक ही कह उठते हैं कि यह पूर्व जन्म का संस्कार है। संस्कार या संस्कृति असल में शरीर का नहीं आत्मा का गुण है और जब की सभ्यता की सामग्रियों से हमारा संबंध शरीर के साथ ही छूट जाता है तब भी हमारी संस्कृति का प्रभाव हमारी आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।
आदिकाल से हमारे लिए जो लोग काव्य और दर्शन रचने आए हैं, चित्र और मूर्ति बनाते आए हैं, वह हमारी संस्कृति के रचयिता है। आदिकाल से हम जिस-जिस रूप में शासन चलाते आए हैं, पूजा करते आए हैं, मंदिर और मकान बनाते आए हैं, नाटक और अभिनय करते आए हैं, बर्तन और घर के दूसरे सामान बनाते आए हैं, कपड़े और जेवर पहनते आए हैं, पर्व और त्योहार मनाते आए हैं, परिवार पड़ोसी और संसार से दोस्ती या दुश्मनी का जो भी सलूक करते आए हैं, सब का सब हमारी संस्कृति का ही अंश है। संस्कृति के उपकरण हमारे पुस्तकालय और संग्रहालय म्यूजियम नाटक शाला और सिनेमा गृह ही नहीं बल्कि हमारे राजनीतिक और आर्थिक संगठन भी होते हैं, क्योंकि उन पर भी हमारी रुचि और चरित्र की छाप लगी होती है।
संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब भी दो देश वाणिज्य-व्यापार अथवा शत्रुता या मित्रता के कारण आपस में मिलते हैं तब उनकी संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करने लगती हैं, ठीक उसी प्रकार, जैसे दो व्यक्तियों की संगति का प्रभाव दोनों पर पड़ता है। संसार में शायद ही कोई ऐसा देश हो जो यह दावा कर सके कि उस पर किसी अन्य देश की संस्कृति का प्रभाव नहीं पड़ा है। इसी प्रकार, कोई जाति भी यह नहीं जान सकती कि उस पर किसी दूसरी जाति का प्रभाव नहीं है।
जो जाति केवल देना ही है, जानती है लेना कुछ नहीं, उसकी संस्कृति का एक न एक दिन दिवाला निकल जाता है। इसके विपरीत, जिस जलाशय के पानी लाने वाले दरवाजे बराबर खुले रहते हैं उसकी संस्कृति कभी नहीं सूखती। उसमें सदा ही स्वच्छ जल लहराता और कमल के फूल खिलते रहते हैं। कूपमण्डूकता और दुनिया से रूठ कर अलग बैठने का भाव संस्कृति को ले उठता है। अकसर देखा जाता है कि जब हम एक भाषा में किसी अद्भुत कला को विकसित होते देखते हैं तब तुरंत आसपास पड़ोस या संपर्क वाली दूसरी भाषा में हम उसके उत्स की खोज करने लगते हैं। पहले भाषा में ‘शैली’ और ‘कीड्स’ पैदा होते हैं, तब दूसरी भाषा में ‘रवींद्र’ उत्पन्न होते हैं। पहले एक देश में ‘बुद्ध’ पैदा होते हैं। देश में यीशु मसीह का जन्म होता है। मगर मुसलमान इस देश में नहीं आए होते तो ऊर्दु भाषा का जन्म नहीं होता और ना मोगल-कलम की चित्रकारी ही यहाँ पैदा हुई होती। अगर यूरोप से भारत का संपर्क नहीं हुआ होता तो भारत की विचारधारा पर विज्ञान का प्रभाव देर से पढ़ता और राम मोहनराय, दयानंद, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, गांधी में से कोई भी सुधारक उस समय जन्म नहीं लेते, जिस समय उनका जन्म हुआ। जब भी दो जातियाँ मिलते हैं उनके संपर्क एवं संघर्ष से जिंदगी की एक नई धारा फूट निकलती है, इसका प्रभाव दोनों पर पड़ता है। आदान-प्रदान की प्रक्रिया संस्कृति की जान है और इसी के सहारे वह अपने को जिंदा रखती है।
केवल चित्र, कविता, मूर्ति, मकान और पोशाक पर ही नहीं, सांस्कृतिक संपर्क का प्रभाव दर्शन और विचार पर भी पड़ता है।एक देश में जो दार्शनिक और महात्मा उत्पन्न होते हैं, उनकी आवाज दूसरे देशों में भी मिलते-जुलते दार्शनिकों और महात्माओं को जन्म देती है। एक देश में जो धर्म खड़ा होता है, वह दूसरे देशों के धर्मों को भी बहुत कुछ बदल देता है। यही नहीं बल्कि प्राचीन जगत में तो बहुत से ऐसे देवी देवता भी मिलते हैं जो कई जातियों के संस्कारों से निकल कर एक जगह जमा हुए हैं। एक जाति का धार्मिक रिवाज दूसरी जाति का रिवाज बन जाता और एक देश की आदत दूसरे देश के लोगों की आदत में समा जाती है। अतएव, सांस्कृतिक दृष्टि से वह देश और वह जाति अधिक शक्तिशाली और महान समझी जानी चाहिए, जिसने विश्व के अधिक से अधिक देशों अधिक से अधिक जातियों की संस्कृतियों को अपने भीतर जज्ब करके उन्हें पचा करके, बड़े-से-बड़े समन्वय को उत्पन्न किया है। भारत देश और भारतीय जाति इस दृष्टि से संसार में सबसे महान है क्योंकि यहाँ की सामासिक संस्कृति में अधिक से अधिक जातियों की शक्तियाँ पची हुई है।
सारांश
निबंध में संस्कृति को सभ्यता से भिन्न और सूक्ष्म गुण बताया गया है। सभ्यता भौतिक सुख-सुविधाओं (मोटर, महल, सड़क) से संबंधित है, जबकि संस्कृति व्यवहार, कला, विनय, और सदाचार में व्यक्त होती है। संस्कृति प्रकृति के आवेगों (गुस्सा, लोभ) पर नियंत्रण और समाज के सदियों के अनुभवों से बनती है। यह आदान-प्रदान से फलती-फूलती है और भारत की सामासिक संस्कृति को विश्व में महान बताया गया है।
शब्दार्थ (Word Meanings)
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | तमिल अर्थ | English Meaning |
संस्कृति | सामाजिक गुणों का समूह | பண்பாடு | Culture |
सभ्यता | भौतिक प्रगति | நாகரிகம் | Civilization |
स्थूल | भौतिक, मूर्त | புலப்படுத்தக்கூடிய | Tangible |
सुसंस्कृत | संस्कारयुक्त | நற்பண்பு மிக்க | Cultured |
ठाट-बाट | दिखावा, वैभव | ஆடம்பரம் | Pomp and show |
विनय | नम्रता | பணிவு | Humility |
सदाचार | नैतिक आचरण | நற்குணம் | Good conduct |
हिचकिचाहट | संकोच | தயக்கம் | Hesitation |
मौलिक | मूलभूत | அடிப்படை | Fundamental |
प्रकृति | स्वाभाविक गुण | இயற்கை | Nature |
आवेग | तीव्र भावना | உணர்ச்சி | Impulse |
महीन | सूक्ष्म | நுட்பமான | Subtle |
अपस्टार्ट | अचानक ऊँचे पद पर पहुँचा व्यक्ति | திடீரென உயர்ந்தவர் | Upstart |
संस्कार | नैतिक गुण | பண்பு | Values |
विरासत | उत्तराधिकार | பரம்பரை | Heritage |
आदान-प्रदान | देना-लेना | பரிமாற்றம் | Exchange |
कूपमण्डूकता | संकीर्णता | குறுகிய பார்வை | Narrow-mindedness |
समन्वय | मिश्रण, एकीकरण | ஒருங்கிணைப்பு | Synthesis |
सामासिक | मिश्रित | கூட்டு | Composite |
जज्ब | आत्मसात करना | உள்வாங்குதல் | Assimilation |
संस्कृति क्या है? के प्रश्न
- रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति के बे में क्या कहा हैं?
उत्तर – प्रस्तुत पाठ के लेखक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के अनुसार संस्कृति के बारे में मुख्य बातें ये हैं –
परिभाषा असंभव, लक्षण ज्ञात – संस्कृति की परिभाषा नहीं दी जा सकती, पर इसे इसके लक्षणों से जाना जा सकता है।
अभिव्यक्ति का गुण – संस्कृति वह गुण है जो हममें व्याप्त है, जबकि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है।
कला और ज्ञान – पोशाक पहनने, भोजन करने की कला, और मोटर बनाने, महल निर्माण में लगने वाले ज्ञान को अर्जित करने में संस्कृति व्यक्त होती है।
प्रकृति पर विजय – प्रकृति प्रदत्त दुर्गुणों जैसे गुस्सा, लोभ, ईर्ष्या, मोह आदि पर मनुष्य जितना विजयी होता है, उसकी संस्कृति उतनी ही ऊँची समझी जाती है।
जिंदगी का तरीका – संस्कृति असल में जिंदगी का एक तरीका है, जो सदियों के अनुभवों से जमा होकर समाज में छाया रहता है।
आत्मा का गुण – संस्कृति शरीर का नहीं, आत्मा का गुण है, जिसका प्रभाव जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।
- जीवन में संस्कृति के बारे में लिखिए।
उत्तर – जीवन में संस्कृति का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। संस्कृति ही हमारे जीवन को दिशा देती है –
दैनिक कार्यों में झलक – हमारे उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, रोने-हँसने और सोचने-समझने सहित हर कार्य में संस्कृति की झलक होती है।
जीवन जीने का तरीका – संस्कृति जिंदगी का एक तरीका है, जो समाज के अनेक शताब्दियों के अनुभवों से निर्मित होता है।
चरित्र और रुचि – महलों के निर्माण में रुचि का परिचय देना या भोजन करने में कला का होना संस्कृति के कारण ही संभव होता है। यहाँ तक कि हमारे राजनीतिक और आर्थिक संगठन भी हमारी रुचि और चरित्र की छाप से युक्त होते हैं।
मानवता का आधार – संस्कृति, प्रकृति के आवेगों जैसे गुस्सा, लोभ पर रोक लगाकर मनुष्य को जानवर से अलग करती है और उसमें विनय, सदाचार, दया और परोपकार जैसे मानवीय गुण विकसित करती है।
- संस्कृति और सभ्यता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – संस्कृति और सभ्यता एक-दूसरे से भिन्न, पर गहरे से जुड़े हुए गुण हैं –
सभ्यता (जो हमारे पास है) – यह स्थूल वस्तुएँ और सुख-सुविधा व ठाट-बाट की पहचान है। जैसे मोटर, महल, सड़क, हवाई जहाज, पोशाक आदि। यह जल्दी बटोरी जा सकती है और इसकी सामग्रियाँ आसानी से नष्ट (विनष्ट) हो सकती हैं।
संस्कृति (जो हममें व्याप्त है) – यह महीन और टिकाऊ चीज है। यह सभ्यता के भीतर उसी तरह व्याप्त रहती है जैसे दूध में मक्खन या फूलों में सुगंध। यह मनुष्य का आंतरिक गुण जैसे विनय, सदाचार, कला, ज्ञान, दया-माया है और इसकी रचना सदियों के अनुभवों से होती है।
मौलिक भेद – कोई आदमी सुसभ्य हो सकता है पर सुसंस्कृत नहीं । ऋषि-मुनि सभ्यता के उपकरणों के बिना भी सुसंस्कृत थे।
आपसी प्रभाव – दोनों में निरंतर आदान-प्रदान चलता है। जब हम घर बनाते हैं, तो नक्शे का चुनाव संस्कृति की रुचि करती है।
- संस्कृति किसे कहते हैं उसका लक्षण क्या है?
उत्तर – संस्कृति किसे कहते हैं – संस्कृति वह महीन चीज है, जो किसी समाज के लोगों के सोचने-समझने, खाने-पीने, रहते-सहते, पढ़ने-लिखने, राजकाज चलाने और धर्म-कर्म करने के सदियों के अनुभवों से उत्पन्न होती है। यह असल में जिंदगी जीने का तरीका है, जो किसी समाज की आत्मा में व्याप्त रहता है।
संस्कृति का लक्षण –
यह वह गुण है जो हममें व्याप्त है।
यह विनय, सदाचार, दया, माया, सच्चाई का भाव है।
यह प्रकृति के आवेगों जैसे गुस्सा, ईर्ष्या पर नियंत्रण रखने की क्षमता है।
यह जीवन को बेहतर बनाने में लगने वाले ज्ञान और कला को अर्जित करने में व्यक्त होती है।
यह सभ्यता की अपेक्षा टिकाऊ है।
यह शरीर का नहीं, आत्मा का गुण है, जो जन्म-जन्मांतर तक पीछा करता है।
- संस्कृति का प्रभाव किन-किन बातों पर पड़ता है?
उत्तर – संस्कृति का प्रभाव जीवन के लगभग हर पहलू पर पड़ता है, जिनमें मुख्य हैं –
कला और ज्ञान – पोशाक पहनने और भोजन करने की कला, तथा मोटर बनाने, महल निर्माण में लगने वाला ज्ञान।
दैनिक व्यवहार – उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने, रोने-हँसने का तरीका।
सामाजिक संबंध – परिवार, पड़ोसी और संसार से दोस्ती या दुश्मनी का सलूक।
सृजन कार्य – काव्य और दर्शन की रचना, चित्र और मूर्ति बनाना, बर्तन और घर के दूसरे सामान बनाना।
शासन और पूजा – जिस रूप में शासन चलाते हैं, पूजा करते हैं, मंदिर और मकान बनाते हैं।
संगठन और पर्व – राजनीतिक और आर्थिक संगठन, तथा पर्व और त्योहार मनाने का तरीका।
वैचारिक धारा – दार्शनिकों, महात्माओं, और धार्मिक रिवाजों तथा विचारधारा पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
- संस्कृति और सभ्यता सिक्के के दो पहलू हैं? समझाइए।
उत्तर – हाँ, संस्कृति और सभ्यता को सिक्के के दो पहलू नहीं, बल्कि एक दूसरे के भीतर व्याप्त गुण-अवयव के रूप में समझा जा सकता है।
अविभाज्यता – यद्यपि दोनों भिन्न हैं, लेकिन सभ्यता और संस्कृति की प्रगति अधिकतर एक साथ होती है।
पारस्परिक प्रभाव – सभ्यता का संस्कृति पर और संस्कृति का सभ्यता पर निरंतर प्रभाव पड़ता रहता है।
संस्कृति का सभ्यता पर प्रभाव – जब हम घर बनाते हैं, तो हम कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं, यह निर्णय हमारी संस्कृति की रुचि करती है।
सभ्यता का संस्कृति पर प्रभाव – संस्कृति की प्रेरणा से जैसा घर बनता है, वह फिर हमारी संस्कृति को प्रभावित करता है।
सूक्ष्म और स्थूल – संस्कृति सभ्यता के भीतर उसी प्रकार व्याप्त रहती है जैसे दूध में मक्खन या फूलों में सुगंध। सभ्यता शरीर है, तो संस्कृति उसकी आत्मा है।
- संस्कृति पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर – संस्कृति क्या है?’ निबंध में रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति और सभ्यता के बीच मौलिक भेद को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार, सभ्यता वह स्थूल चीज है जो हमारे पास है (जैसे मोटर, महल), जबकि संस्कृति वह महीन, आंतरिक गुण है जो हममें व्याप्त है (जैसे कला, ज्ञान, विनय)। संस्कृति सदियों के अनुभवों से बनती है, आत्मा का गुण है, और यह प्रकृति के आवेगों (गुस्सा, लोभ) पर नियंत्रण रखकर मनुष्य को जानवर से अलग करती है।
लेखक बताते हैं कि सुसभ्य होना सुसंस्कृत होने की गारंटी नहीं है; एक झोपड़ी में रहने वाला आदिवासी भी दया-माया और सदाचार के कारण सुसंस्कृत हो सकता है। संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा अधिक टिकाऊ होती है और यह हमारे सोचने, खाने, पहनने, शासन चलाने से लेकर दर्शन और विचारों तक हर चीज़ में झलकती है। अंत में, दिनकर जी ने आदान-प्रदान को संस्कृति की जान बताया है, जिसके कारण संस्कृतियाँ समृद्ध होती हैं। उन्होंने भारत की सामासिक संस्कृति को महान माना है, क्योंकि इसने विश्व की अधिक से अधिक जातियों की शक्तियों को पचाकर समन्वय उत्पन्न किया है।
II) सही या गलत चुनकर लिखिए
- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के बाद राष्ट्रकवि के रूप में दिनकर का नाम लिया जाता है।
उत्तर – सही
- सभ्यता वह चीज है, जो हमारे पास है।
उत्तर – सही
- फूस की झोपड़ियों में वास करना, पत्तों में खाना और मिट्टी के बर्तनों में रसोई पकाना ही, जिंदगी थी।
उत्तर – सही (प्राचीन भारत के ऋषियों के संदर्भ में।)
- संस्कृति की सभ्यता की प्रगति, अधिकतर एक साथ होती है।
उत्तर – सही
- संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा महीन चीज होती है।
उत्तर – सही
III) खाली जगह भरिए
1 संस्कृति __________ से बढ़ती है।
उत्तर – आदान-प्रदान
- हमारे राजनीतिक और __________ भी होते हैं।
उत्तर – आर्थिक संगठन
- एक जाति का __________ दूसरी जाति का रिवाज बन जाता है।
उत्तर – धार्मिक रिवाज
- __________ में अधिक से अधिक जातियों की शक्तियाँ पची हुई है।
उत्तर – भारत देश
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- निबंध में संस्कृति की क्या विशेषता बताई गई है?
a) यह भौतिक वस्तुओं से बनती है
b) यह व्यवहार और कला में व्यक्त होती है
c) यह सभ्यता के समान है
d) यह प्रकृति से भिन्न नहीं है
उत्तर – b) यह व्यवहार और कला में व्यक्त होती है - सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
a) सभ्यता सूक्ष्म और संस्कृति भौतिक है
b) सभ्यता भौतिक और संस्कृति सूक्ष्म है
c) दोनों एक ही हैं
d) सभ्यता नैतिक और संस्कृति अनैतिक है
उत्तर – b) सभ्यता भौतिक और संस्कृति सूक्ष्म है - निबंध के अनुसार सभ्यता की पहचान क्या है?
a) विनय और सदाचार
b) सुख-सुविधा और ठाट-बाट
c) प्रकृति के आवेग
d) आदान-प्रदान
उत्तर – b) सुख-सुविधा और ठाट-बाट - छोटा नागपुर की आदिवासी जनता को क्यों सुसंस्कृत माना गया?
a) उनके पास भौतिक साधन हैं
b) उनमें दया, सच्चाई, और सदाचार है
c) वे महल बनाते हैं
d) वे आधुनिक पोशाक पहनते हैं
उत्तर – b) उनमें दया, सच्चाई, और सदाचार है - प्राचीन भारत के ऋषियों की जीवनशैली कैसी थी?
a) महल और कोठों में रहते थे
b) फूस की झोंपड़ियों में रहते थे
c) आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते थे
d) सभ्यता के प्रतीक थे
उत्तर – b) फूस की झोंपड़ियों में रहते थे - संस्कृति और सभ्यता का संबंध कैसा है?
a) दोनों एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं
b) दोनों एक-दूसरे से अलग हैं
c) संस्कृति सभ्यता से बनी है
d) सभ्यता संस्कृति से बनी है
उत्तर – a) दोनों एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं - निबंध में प्रकृति के गुणों पर नियंत्रण को क्या कहा गया?
a) सभ्यता का आधार
b) संस्कृति का आधार
c) अनैतिक कार्य
d) सामाजिक बुराई
उत्तर – b) संस्कृति का आधार - संस्कृति की तुलना किससे की गई है?
a) मोटर और महल से
b) दूध में मक्खन और फूलों में सुगंध से
c) सड़क और हवाई जहाज से
d) पोशाक और भोजन से
उत्तर – b) दूध में मक्खन और फूलों में सुगंध से - “अपस्टार्ट” शब्द का क्या अर्थ है?
a) अचानक धनी या ऊँचे पद पर पहुँचा व्यक्ति
b) विनम्र व्यक्ति
c) सुसंस्कृत व्यक्ति
d) गरीब व्यक्ति
उत्तर – a) अचानक धनी या ऊँचे पद पर पहुँचा व्यक्ति - संस्कृति का निर्माण कैसे होता है?
a) दस-बीस वर्षों में
b) सदियों के अनुभवों से
c) केवल धन से
d) केवल शिक्षा से
उत्तर – b) सदियों के अनुभवों से - संस्कृति को टिकाऊ क्यों माना गया है?
a) यह भौतिक वस्तुओं से बनी है
b) यह आत्मा का गुण है
c) यह सभ्यता से अलग नहीं है
d) यह जल्दी बनती है
उत्तर – b) यह आत्मा का गुण है - निबंध में भारतीय संस्कृति को क्यों महान माना गया?
a) यह भौतिक साधनों से बनी है
b) इसने कई संस्कृतियों को आत्मसात किया है
c) यह केवल धार्मिक है
d) यह आधुनिक है
उत्तर – b) इसने कई संस्कृतियों को आत्मसात किया है - संस्कृति का विकास कैसे होता है?
a) केवल एक देश में
b) आदान-प्रदान से
c) अलगाव से
d) केवल धार्मिक कार्यों से
उत्तर – b) आदान-प्रदान से - निबंध में कूपमण्डूकता का क्या अर्थ है?
a) खुले दिमाग का होना
b) संकीर्णता और अलगाव
c) सभ्यता का विकास
d) धार्मिक विश्वास
उत्तर – b) संकीर्णता और अलगाव - संस्कृति की पहचान किसमें होती है?
a) केवल पोशाक में
b) उठने-बैठने, व्यवहार, और जीवनशैली में
c) केवल भौतिक वस्तुओं में
d) केवल धन में
उत्तर – b) उठने-बैठने, व्यवहार, और जीवनशैली में - निबंध में सभ्यता की सामग्रियाँ कैसी बताई गई हैं?
a) टिकाऊ और स्थायी
b) नष्ट होने वाली
c) सूक्ष्म और आत्मिक
d) केवल धार्मिक
उत्तर – b) नष्ट होने वाली - संस्कृति के उपकरणों में क्या शामिल है?
a) केवल मोटर और महल
b) पुस्तकालय, संग्रहालय, और संगठन
c) केवल पोशाक और भोजन
d) केवल धार्मिक स्थल
उत्तर – b) पुस्तकालय, संग्रहालय, और संगठन - निबंध में आदान-प्रदान को संस्कृति की क्या कहा गया है?
a) कमजोरी
b) जान
c) बाधा
d) अनावश्यक चीज
उत्तर – b) जान - किस देश की संस्कृति को सबसे महान बताया गया है?
a) यूरोप
b) भारत
c) अमेरिका
d) चीन
उत्तर – b) भारत - संस्कृति को आत्मा का गुण क्यों माना गया?
a) यह भौतिक वस्तुओं से बनती है
b) यह जन्म-जन्मांतर तक चलती है
c) यह केवल धार्मिक है
d) यह जल्दी नष्ट हो जाती है
उत्तर – b) यह जन्म-जन्मांतर तक चलती है
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
संस्कृति की परिभाषा और स्वरूप
- प्रश्न – संस्कृति को कैसे जाना जा सकता है?
उत्तर – संस्कृति को उसके लक्षणों से जाना जा सकता है, परंतु उसकी सटीक परिभाषा देना कठिन है। - प्रश्न – सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
उत्तर – सभ्यता बाहरी वस्तुओं और सुख-सुविधाओं से संबंधित है, जबकि संस्कृति आंतरिक गुणों और आचरण से जुड़ी है। - प्रश्न – अंग्रेजी कहावत के अनुसार सभ्यता और संस्कृति में क्या भेद बताया गया है?
उत्तर – अंग्रेजी कहावत के अनुसार सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, और संस्कृति वह है जो हमारे भीतर व्याप्त है। - प्रश्न – मोटर, महल और सड़कें किसकी पहचान हैं — संस्कृति या सभ्यता की?
उत्तर – मोटर, महल और सड़कें सभ्यता की पहचान हैं, संस्कृति की नहीं। - प्रश्न – पोशाक पहनने और भोजन करने में कौन-सी चीज संस्कृति का परिचायक है?
उत्तर – पोशाक और भोजन करने में जो कला, मर्यादा और सौंदर्य-बोध होता है, वही संस्कृति का परिचायक है। - प्रश्न – क्या हर सुसभ्य व्यक्ति सुसंस्कृत होता है?
उत्तर – नहीं, हर सुसभ्य व्यक्ति सुसंस्कृत नहीं होता, क्योंकि सभ्यता बाहरी ठाट-बाट है जबकि संस्कृति आंतरिक गुण है। - प्रश्न – संस्कृति किससे संबंधित होती है — शरीर से या आत्मा से?
उत्तर – संस्कृति आत्मा से संबंधित होती है, शरीर से नहीं।
सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति का संबंध
- प्रश्न – सभ्यता की पहचान किन बातों से होती है?
उत्तर – सभ्यता की पहचान सुख-सुविधा, ठाट-बाट और भौतिक साधनों से होती है। - प्रश्न – संस्कृति और प्रकृति में क्या अंतर है?
उत्तर – प्रकृति में मनुष्य के स्वाभाविक आवेग जैसे क्रोध, लोभ, राग-द्वेष शामिल हैं, जबकि संस्कृति इन आवेगों पर नियंत्रण सिखाती है। - प्रश्न – मनुष्य की संस्कृति का स्तर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर – मनुष्य जितना अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करता है, उसकी संस्कृति उतनी ही ऊँची मानी जाती है। - प्रश्न – संस्कृति को किससे तुलना की गई है?
उत्तर – संस्कृति की तुलना दूध में मक्खन और फूलों में सुगंध से की गई है। - प्रश्न – सभ्यता और संस्कृति में कौन अधिक टिकाऊ है?
उत्तर – संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा अधिक टिकाऊ होती है।
सुसंस्कृत और असंस्कृत के उदाहरण
- प्रश्न – छोटा नागपुर के आदिवासी किस दृष्टि से सुसंस्कृत माने गए हैं?
उत्तर – वे दया, माया, सच्चाई और सदाचार से संपन्न हैं, इसलिए उन्हें सुसंस्कृत कहा गया है। - प्रश्न – प्राचीन भारत के ऋषिगण कैसे जीवन जीते थे?
उत्तर – ऋषिगण जंगलों में फूस की झोंपड़ियों में रहते थे और सादा जीवन जीते थे। - प्रश्न – ऋषिगणों का जीवन किस बात का प्रमाण था?
उत्तर – उनका जीवन यह प्रमाण था कि सादगी और परिश्रम में भी उच्च संस्कृति पाई जा सकती है। - प्रश्न – क्या सभ्यता के बिना संस्कृति संभव है?
उत्तर – हाँ, सभ्यता के बिना भी संस्कृति संभव है, जैसे ऋषियों और आदिवासियों के जीवन में दिखता है।
सभ्यता और संस्कृति का पारस्परिक प्रभाव
- प्रश्न – क्या सभ्यता और संस्कृति एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं?
उत्तर – हाँ, सभ्यता और संस्कृति का एक-दूसरे पर निरंतर प्रभाव पड़ता रहता है। - प्रश्न – घर बनाने का उदाहरण सभ्यता और संस्कृति से कैसे जुड़ा है?
उत्तर – घर बनाना सभ्यता का कार्य है, परंतु उसका नक्शा और रूप संस्कृति की रुचि से तय होता है। - प्रश्न – क्या सभ्यता संस्कृति के बिना सार्थक हो सकती है?
उत्तर – नहीं, सभ्यता संस्कृति के बिना अधूरी और दिशाहीन हो जाती है।
संस्कृति की स्थायित्व और निर्माण प्रक्रिया
- प्रश्न – संस्कृति का निर्माण कितने समय में होता है?
उत्तर – संस्कृति का निर्माण कुछ वर्षों में नहीं, बल्कि अनेक शताब्दियों में होता है। - प्रश्न – संस्कृति किन क्रियाओं से उत्पन्न होती है?
उत्तर – संस्कृति लोगों के खाने-पीने, रहन-सहन, सोचने, समझने और कर्मकांडों से उत्पन्न होती है। - प्रश्न – संस्कृति की झलक किन-किन कार्यों में दिखाई देती है?
उत्तर – हमारे पहनने-ओढ़ने, बोलने, हँसने-रोने और व्यवहार में संस्कृति की झलक मिलती है। - प्रश्न – व्यक्ति अपनी संस्कृति आगे कैसे बढ़ाता है?
उत्तर – व्यक्ति अपनी जीवनशैली और संस्कारों के माध्यम से संस्कृति अपनी संतानों को सौंपता है। - प्रश्न – संस्कृति का संबंध किससे माना गया है — शरीर से या आत्मा से?
उत्तर – संस्कृति का संबंध आत्मा से माना गया है, इसलिए वह जन्म-जन्मांतर तक रहती है।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विकास
- प्रश्न – संस्कृति कैसे बढ़ती है?
उत्तर – संस्कृति आदान-प्रदान और पारस्परिक संपर्क से बढ़ती है। - प्रश्न – जब दो देश आपस में मिलते हैं तो क्या होता है?
उत्तर – जब दो देश संपर्क में आते हैं तो उनकी संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। - प्रश्न – “कूपमंडूकता” का संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – कूपमंडूकता यानी दुनिया से कट जाना संस्कृति को नष्ट कर देता है। - प्रश्न – किस प्रकार की जाति की संस्कृति जीवित रहती है?
उत्तर – जो जाति आदान-प्रदान के लिए खुली रहती है, उसकी संस्कृति सदा जीवित रहती है। - प्रश्न – भारत की संस्कृति को महान क्यों कहा गया है?
उत्तर – क्योंकि भारतीय संस्कृति ने अनेक जातियों और देशों की संस्कृतियों को आत्मसात कर समन्वय उत्पन्न किया है। - प्रश्न – लेखक के अनुसार संस्कृति का सार क्या है?
उत्तर – संस्कृति जीवन जीने का एक तरीका है, जो सदियों के अनुभव और संस्कारों से निर्मित होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- निबंध में सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर बताया गया है?
उत्तर – सभ्यता भौतिक सुख-सुविधाओं जैसे मोटर, महल, और सड़क से संबंधित है, जबकि संस्कृति सूक्ष्म गुण है जो व्यवहार, कला, विनय, और सदाचार में व्यक्त होती है। सभ्यता स्थूल और नष्ट होने वाली है, संस्कृति आत्मिक और टिकाऊ है। - संस्कृति को दूध में मक्खन से क्यों तुलना की गई है?
उत्तर – संस्कृति को दूध में मक्खन या फूलों में सुगंध से तुलना की गई क्योंकि यह सभ्यता के भीतर सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहती है। यह सभ्यता से महीन और टिकाऊ है, जो व्यवहार और चरित्र में प्रकट होती है। - छोटा नागपुर की आदिवासी जनता को सुसंस्कृत क्यों माना गया?
उत्तर – छोटा नागपुर की आदिवासी जनता में दया, सच्चाई, और सदाचार जैसे गुण हैं, भले ही उनके पास सभ्यता के भौतिक साधन न हों। ये गुण उन्हें सुसंस्कृत बनाते हैं, जो संस्कृति का आधार हैं। - प्राचीन भारत के ऋषियों की संस्कृति कैसी थी?
उत्तर – प्राचीन भारत के ऋषि फूस की झोंपड़ियों में रहते थे, जंगल से प्रेम करते थे, और सादा जीवन जीते थे। वे काम में हिचकिचाहट नहीं दिखाते थे और उनकी विनय, सदाचार ने भारतीय संस्कृति का निर्माण किया। - संस्कृति और प्रकृति में क्या अंतर है?
उत्तर – प्रकृति में गुस्सा, लोभ, और ईर्ष्या जैसे स्वाभाविक आवेग हैं, जबकि संस्कृति इन आवेगों पर नियंत्रण और विनय, सदाचार जैसे गुणों का विकास है। संस्कृति मनुष्य को जानवर से अलग करती है। - संस्कृति का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर – संस्कृति सदियों के अनुभवों, व्यवहार, कला, और सामाजिक कार्यों जैसे खाने-पीने, पढ़ने-लिखने, और धर्म-कर्म से बनती है। यह समाज के उठने-बैठने और जीवनशैली में झलकती है और पीढ़ियों तक चलती है। - संस्कृति को टिकाऊ क्यों माना गया है?
उत्तर – संस्कृति आत्मा का गुण है, जो जन्म-जन्मांतर तक चलती है। सभ्यता की भौतिक वस्तुएँ नष्ट हो सकती हैं, लेकिन संस्कृति व्यवहार और चरित्र में व्याप्त रहकर टिकाऊ बनी रहती है। - “अपस्टार्ट” व्यक्ति को चिढ़ाने लायक क्यों माना जाता है?
उत्तर – “अपस्टार्ट” व्यक्ति अचानक धनी या ऊँचे पद पर पहुँच जाता है, लेकिन संस्कृति की कमी के कारण वह विनयशील नहीं होता। यह कमी उसे चिढ़ाने लायक बनाती है, क्योंकि संस्कृति तुरंत नहीं सीखी जा सकती। - संस्कृति के विकास में आदान-प्रदान की क्या भूमिका है?
उत्तर – आदान-प्रदान संस्कृति की जान है। देशों और जातियों के बीच व्यापार, मित्रता, या शत्रुता से संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जिससे नई धाराएँ बनती हैं और संस्कृति समृद्ध होती है। - भारतीय संस्कृति को सबसे महान क्यों बताया गया है?
उत्तर – भारतीय संस्कृति को महान बताया गया क्योंकि इसने विश्व की अनेक संस्कृतियों को आत्मसात कर समन्वय किया है। यह सामासिक संस्कृति विभिन्न जातियों की शक्तियों को पचाकर समृद्ध और शक्तिशाली बनी है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- निबंध में सभ्यता और संस्कृति के बीच अंतर को कैसे समझाया गया है?
उत्तर – सभ्यता भौतिक सुख-सुविधाओं जैसे मोटर, महल, और सड़क से संबंधित है, जो स्थूल और नष्ट होने वाली है। संस्कृति सूक्ष्म गुण है, जो व्यवहार, कला, विनय, और सदाचार में व्यक्त होती है। यह आत्मा का गुण है, जो सभ्यता से टिकाऊ और महीन है, जैसे दूध में मक्खन। - प्राचीन भारत के ऋषियों की जीवनशैली से संस्कृति के बारे में क्या सीख मिलती है?
उत्तर – प्राचीन भारत के ऋषि फूस की झोंपड़ियों में रहते थे, जंगल से प्रेम करते थे, और सादा जीवन जीते थे। वे काम में हिचकिचाहट नहीं दिखाते थे और विनय, सदाचार जैसे गुणों से भारतीय संस्कृति का निर्माण किया, जो भौतिक सभ्यता से परे थी। - संस्कृति के निर्माण और विकास में आदान-प्रदान की क्या भूमिका है?
उत्तर – आदान-प्रदान संस्कृति की जान है। देशों और जातियों के बीच व्यापार, मित्रता, या शत्रुता से संस्कृतियाँ प्रभावित होती हैं, जिससे नई धाराएँ बनती हैं। यह प्रक्रिया संस्कृति को समृद्ध और जीवंत रखती है, जैसे स्वच्छ जल से जलाशय लहराता रहता है। - निबंध में भारतीय संस्कृति को विश्व में सबसे महान क्यों माना गया है?
उत्तर – भारतीय संस्कृति को महान माना गया क्योंकि इसने विश्व की अनेक संस्कृतियों को आत्मसात कर समन्वय किया है। यह सामासिक संस्कृति विभिन्न जातियों की शक्तियों को पचाकर समृद्ध बनी है, जो इसे शक्तिशाली और महान बनाती है। - संस्कृति को आत्मा का गुण क्यों कहा गया है?
उत्तर – संस्कृति को आत्मा का गुण कहा गया क्योंकि यह व्यवहार, विनय, और सदाचार में व्याप्त है और जन्म-जन्मांतर तक चलती है। सभ्यता की भौतिक वस्तुएँ नष्ट हो सकती हैं, लेकिन संस्कृति आत्मिक होने के कारण टिकाऊ और समाज के अनुभवों से निर्मित होती है।

