आचार्य नरेन्द्र देव – लेखक परिचय
आधुनिक मनीषियों में आचार्य नरेन्द्र देव का स्थान महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि वे कांग्रेस से जुड़े हुए तथापि कांग्रेस के अंतर्गत जो समाजवादी विचारों का मंच था उसमें आचार्य नरेन्द्र देव का वैचारिक योगदान एवं मार्गदर्शन महनीय माना जाता है। व अपने विचारों की मौलिकता, चिंतन की गंभीरता एवं कथन की स्पष्टता के कारण बुद्धिजीवियों के बीच अधिक चर्चित रहे।
विभिन्न विश्वविद्यालयों में उन्होंने आचार्य पद पर काम किया और लखनऊ तथा अन्य दो विश्वविद्यालयों में इन्होंने उपकुलपति का कार्यभार भी सफलता से सँभाला। इसके साथ ही साथ राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने समाजवाद को जो सैद्धांतिक रूप दिया उसके कारण भी उनको लोग याद करते रहेंगे।
युवकों का समाज में स्थान
उपर्युक्त विविध क्षेत्रों में काम करते समय भारतीय समाज की जो त्रुटियाँ उन्हें दिखाई पड़ी थीं, वर्तमान पीढ़ी की अनुत्तरदायित्वपूर्ण नीति के संबंध में विचार करने पर उन्होंने जो कुछ अनुभव किया था उसे युवकों का समाज में स्थान शीर्षक निबंध में व्यक्त किया है तथा स्पष्ट शब्दों में यह घोषित किया है कि जब तक पुरानी पीढ़ी युवकों को असमर्थ, अविश्वसनीय, अनुत्तरदायी और नालायक समझती रहेगी तब तक समाज में आदर्श अथवा अभीष्ट की स्थापना नहीं हो सकती। लेखक ने युवकों को भी एक मर्यादा अथवा संहिता के अंदर रखने का प्रयास किया है। तथा उनकी शक्ति, साहस, तेज आदि से उन्हें परिचित कराया है। संक्षेप में प्रस्तुत निबंध के माध्यम से आचार्य जी ने जो कुछ कहा है वह आज के युवाओं और बूढ़ों, दोनों की दृष्टि से पठनीय है तथा विचारणीय भी है।
सामान्यतः उन समाजों में, जहाँ स्थिरता आ गई है और जहाँ विकास की गति अत्यंत मंद है, वृद्धों की सबसे अधिक प्रतिष्ठा होती है। ऐसे समाज में वृद्धों का ही नेतृत्व होता है और उनका अनुभव ही समाज का मुख्य आधार होता है। चीन और भारत के समाज इसके उदाहरण हैं। हमारे पूर्वजों का कहना है कि वह सभा ही नहीं जहाँ वृद्ध नहीं है। ऐसे समाज की शिक्षा प्रणाली में लोक परंपरा का बड़ा महत्त्व होता है। वहां शिक्षा के नए प्रकारों की परख का प्रश्न ही नहीं उठता जिनकी संस्कृति और जिनका इतिहास प्राचीन है, उनकी यही कथा है। जब तक समाज के आधारभूत मौलिक सिद्धांतों के परिवर्तन का प्रश्न नहीं उठता और जब तक समाज के आर्थिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होता तब तक यही अवस्था बनी रहती है।
किंतु जब समाज की ऐसी अवस्था हो जाती है कि उसको जीवित रहने के लिए अपनी पुरानी पद्धति को बदलने के लिए विवश होना पड़ता है तब उसके सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्य भी बदलने लगते हैं। नूतन समाज के आरंभक प्रायः युवक ही होते हैं। कम से कम उनके सहयोग के बिना नूतन समाज की प्रतिष्ठा नहीं होती है। इसका कारण यह है कि युवक में साहस, शौर्य, तेज और त्याग की भावना प्रबल होती है। वह अभी संसार के कीचड़ में नहीं फंसा है, इसलिए वह वस्तुस्थिति की अपेक्षा कर आदर्श के लिए आत्म- बलिदान करने के लिए उद्धत तो हो जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि उसकी अभी कोई ऐसी दृष्टि नहीं बनी है जो उसको समाज की नवीन आवश्यकताओं को समझने से रोके। इसके विपरीत इन आवश्यकताओं का उसे विशेष अनुभव होता है। अतीत से नाता तोड़ने में उसे वह कठिनाई नहीं होती जो वृद्धों को होती है।
जिस समाज में ऐसी अवस्था उत्पन्न होती होने लगती है, वहाँ नए समाज का उपक्रम करने के लिए युवकों का आंदोलन प्रारंभ हो जाता है और युवक अपनी संस्थाएँ बनाने लगते हैं। जब तक ऐसी अवस्था उत्पन्न नहीं हो जाती तब तक किसी समाज में युवक आंदोलन की सृष्टि नहीं होती। युवक आंदोलन का होना, न होना इस पर भी आश्रित है कि उस जाति विशेष का क्या स्वभाव है और समाज की परंपरा क्या रही है? यदि लोग समय से सुधार करने के अभ्यस्त हैं और संकट की अवस्था को टालना जानते हैं तो युवक आंदोलन कदाचित न भी हो; किंतु जो जाति क्रांति प्रिय है और जहाँ के समाज- नेता काफी दूरदर्शी नहीं है तथा अपने कट्टरपन के कारण समझौते के लिए तैयार नहीं हो जाते वहाँ युवक आंदोलन और संगठन का होना अनिवार्य हो जाता है।
साधारणतःसमाज को नव युवकों की प्रसुप्त शक्तियों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वृद्ध होने पर वह पुरानी पीढ़ी का स्थान लेते हैं। किंतु जब किसी समाज के जीवन-मरण का प्रश्न उपस्थित हो जाता है जैसा कि युद्ध के समय होता है तब युवकों की प्रसुप्त शक्तियों का उपयोग किए बिना संकट टल नहीं सकता। जब कभी कोई आकस्मिक संकट आ जाता है अथवा समाज को नवीन दृष्टि की आवश्यकता होती है, तब युवकों की शक्ति भंडार का उपयोग करना ही पड़ता है।
आज पुराने युग का अंत हो रहा है और हम एक नवीन युग में प्रवेश कर रहे हैं, सारे संसार का यही हाल है। यह संक्रमण काल है। युद्ध के पश्चात जीवन के मूल्य सर्वत्र बदल रहे हैं। पुरानी संस्थाएँ जीर्ण-शीर्ण हो रही है और उनके आधारभूत विचारों पर से लोगों की आस्था उठती जा रही है। समाज को नए आदर्श की आवश्यकता है जो उसका पथ प्रदर्शक हो।
यों तो प्रत्येक समाज नवीन परिस्थिति के अनुकूल अपना आचरण और व्यवहार बदलने का प्रयत्न करता है, किंतु जब तक किसी महान उद्देश्य की गंभीर अनुभूति नहीं होती तब तक समाज में सामंजस्य और स्थिरता नहीं आती और उसकी समग्रता नष्ट होने लगती है। इस नवीन दर्शन में नव युवकों की ही आस्था होती है। उन्होंने ही इस नवीन मूल्यों की सृष्टि की है और उन्हीं को उनके अनुसार जीवन व्यतीत करना है।
यही कारण है कि हम सर्वत्र देखते हैं कि नवयुवक समाज का नेतृत्व करने आगे आ रहे हैं। नव-समाज में, जिनका इतिहास पुराना नहीं है, नव युवकों का स्वागत होता है और वह शीघ्र ही अधिकार रूढ़ हो जाते हैं, किंतु पुरातन समाज में वृद्धों का वही पुराना स्थान अब भी चला आता है। उनमें युवक के अधिकार स्वीकार नहीं किए जाते। इसलिए नव-युग के लाने में देर होती है। युवकों को अपनी कल्पना के बल से नई नीति बनाने का अवसर नहीं मिलता। अतः उनका असंतोष बढ़ता है और वह अपनी शक्तियों का उपयोग रचनात्मक कार्य में न कर, टीका टिप्पणी और आलोचना में ही उन्हें नष्ट कर देते हैं। इससे समाज का अहित ही होता है।
यह ठीक है कि पुरानी परम्परा की रक्षा के लिए वृद्धों का रहना भी आवश्यक है, किन्तु उनको यह स्वीकार करना चाहिए कि अब समय आ गया है जब उन्हें युवकों को जिम्मेदारी के पदों पर बैठाना चाहिए। युवकों का अधिकार स्वीकार कर लिया जाए तो इसके कई लाभ है पहली बात तो यह समझने की है कि जो आज अधिकार रूढ हैं उनका कर्तव्य है कि वह अपने उत्तराधिकारियों को आज से तैयार करें अन्यथा इन वृद्धों के हट जाने पर उनकी जगह लेने वाले योग अनुभव व्यक्ति ना मिलेंगे दूसरी बात यह है कि भारत के स्वतंत्र होने पर जो बड़ी जिम्मेदारी देश पर आ गई है उसका भार सहन करने की शक्ति कुछ वृद्धों को छोड़कर अन्य वृद्धों में नहीं है पुनः नूतन समाज की रचना करने और प्रचलित सामाजिक पद्धति को तोड़ने की युवक में सामर्थ है जो समाज नया उपक्रम करना चाहता है और किस को क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता है उसको युवक का सहयोग अवश्य चाहिए और यह संयोग युवक के अधिकार को स्वीकार करना करके ही प्राप्त हो सकता है।
स्वतंत्र राष्ट्र के विद्यार्थियों को हड़ताल करते हम नहीं सुनते। उनको इसकी आवश्यकता नहीं होती। परतंत्र राष्ट्र के विद्यार्थी राजनीतिक आंदोलन में खूब भाग लेते हैं उनको समय-समय पर प्रदर्शन और हड़ताल करनी पड़ती है, राजा के अधिकारियों के साथ संघर्ष होने से उनको गोली भी खानी पड़ती है। ऐसे वातावरण में रहने से उनकी एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति बन जाती है।
किंतु जब राष्ट्र स्वतंत्र हो जाता है, तब यही मनोवृत्ति हानिकारक सिद्ध होती है। राष्ट्र के संचालकों का कर्तव्य है कि बदलती हुई परिस्थिति में वह ऐसे विधान और उपायों का अविलंब लें जिनसे युवकों की मनोवृत्ति बदले और वह अपनी शक्तियों का विनियोग रचनात्मक कार्यों में करें। पहले तो पुराने अभ्यास को छोड़ना कठिन होता है और दूसरे जब समाज के नेता पुरानी वृत्ति को बदलने का प्रयास नहीं करते, तब कठिनाई और बढ़ जाती है। पुरानी मनोवृत्ति को बदलने का उपाय युवक के अधिकार को स्वीकार करना है। यदि आज की पीढ़ी आने वाली पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा का भार अपने ऊपर न लोगी और उसे विकास का अवसर न देगी, तो वह इतिहास के सम्मुख दोषी ठहराई जाएगी।
राष्ट्र-निर्माण कार्य अभी आरंभ भी नहीं हुआ है। प्रत्येक दिशा में हमको प्रगति करनी है। शताब्दियों का रास्ता थोड़े वर्षों में तय करना है। लोकतंत्र की स्थापना के लिए सार्वजनिक शिक्षा की आवश्यकता है। इसके लिए स्पष्टता का निवारण और जाति-पाँति के कठोर बंधनों को तोड़ना भी जरूरी है। लोकतंत्र अभ्यास का विषय है, कि वह लोकतंत्र का पाठ पढ़ने से और उसका नारा लगाने से उसकी स्थापना नहीं होती है।
इसलिए सहयोग का प्रचार कर सामाजिक संबंधों को बदलना तथा नई आर्थिक पद्धति को प्रतिष्ठित करना नितांत आवश्यक है। सुंदर भविष्य के निर्माण के लिए आज सर्वसाधारण से त्याग की अपील करनी है, किंतु जब तक कोई ऐसा उद्देश्य समाज के सम्मुख नहीं रखा जाता जिसके लिए लोग श्रम करें, तब तक त्याग की आशा करना व्यर्थ है। इन सब कामों के लिए युवक की आदर्शप्रियता, उसकी निर्भीकता, उसका साहस, उसकी लगन चाहिए। यह तभी हो सकता है जब हम युवक के अधिकार को स्वीकार करें।
यदि हम इस विषय में अपने कर्तव्य का पालन ना करेंगे तो भय है कि हमारा युवक गैर-जिम्मेदार ना हो जाए। विद्यार्थी समाज की उच्छृंखलता, विदेशी शासन से लड़ने का एक अनिवार्य फल है। एक अर्थ में कांग्रेस कार्यकर्ता भी उच्छृंखलता थे। किंतु स्वतंत्रता की जो कीमत हमको अदा करनी थी, उसमें यह भी शामिल था। लेकिन अब समय आ गया है जब विद्यार्थियों को आत्मशासन के महत्त्व को समझना चाहिए। आज की उच्छृंखलता के बदले में कोई सारवस्तु नहीं मिलती। इतना ही नहीं उससे समाज का अनिष्ट ही होगा। यह उच्छृंखलता युवक के अधिकार को स्वीकार करने से ही दूर होगी।
इस संबंध में एक बात और विचारने के योग्य है। युवक शक्ति का भंडार होता है। जिस परिस्थिति में रहता है, उससे वह अत्यंत प्रभावित होता है। यह भाव प्रणव होता है तथा शूरता दिखाने की किसी अवस्था को छोड़ना नहीं चाहता। यदि उसका समाज स्वतंत्र होने की चेष्टा कर रहा है तो वह उसी में लग जाता है और यदि उसका समाज सांप्रदायिक युद्ध में लगा है तो वह उसका अगुवा बनना चाहता है। यदि इस दृष्टि से देखा जाए, तो युवक न प्रगतिशील है और न प्रतिक्रियावादी वह किसी भी नए काम में लगाया जा सकता है। शर्त यह है कि उसकी भावना पूरी होनी चाहिए और उसे काम का मौका मिलना चाहिए।
इसलिए यदि हम युवक की शक्ति का सदुपयोग नहीं करेंगे तो दूसरा उसका दुरुपयोग करेंगे। ‘फासिस्ट’ राष्ट्रों ने युवक की शक्ति के महत्त्व को समझा और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसका दुरुपयोग किया।
क्या हम राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए युवकों के अधिकार को स्वीकार नहीं करेंगे? मैं यह जानता हूँ कि प्रत्येक अधिकार के साथ कर्तव्य होता है किंतु आज की परिस्थिति में अधिकार को स्वीकार करके ही कर्तव्य की बात कही जा सकती है।स्थूल सत्य है कि आज की किसी भी समस्या का समाधान युवकों के सहयोग के बिना समुचित रूप से नहीं हो सकता।
सारांश
लेख में व्यक्तित्व की अवधारणा को गहराई से समझाया गया है। व्यक्तित्व वह गुण है जो व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ता है, उसे संगठित करता है, और विश्वास, प्रेम, और आकर्षण पैदा करता है। यह केवल कार्यों की जिम्मेदारी निभाने तक सीमित नहीं, बल्कि व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव और हृदय की कोमलता से प्रकट होता है। व्यक्तित्व अकड़ या प्रचार नहीं, बल्कि हृदय की स्वच्छता, सेवा, और खुलेपन से बनता है। यह शासन और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्ति को विश्व के सामने प्रभावशाली बनाता है। व्यक्तित्व के अभाव में रूखापन, चंचलता, और अविश्वास पैदा होता है। यह अच्छी आदतों और बाहरी-भीतरी जीवन के मेल से विकसित होता है, जो जीवन में आकर्षण और विश्वास लाता है।
शब्दार्थ
Hindi Word | Hindi Meaning | Tamil Meaning | English Meaning |
उपर्युक्त | ऊपर उल्लिखित | மேலே குறிப்பிடப்பட்ட | Mentioned above |
अनुत्तरदायित्वपूर्ण | जिम्मेदारी न लेने वाला | பொறுப்பற்ற | Irresponsible |
अभीष्ट | इच्छित, वांछित | விரும்பப்பட்ட | Desired |
मर्यादा | सीमा, नियम | வரம்பு | Discipline, limit |
संहिता | नियमावली, संग्रह | விதிமுறைகள் | Code, collection |
स्थिरता | स्थायित्व, दृढ़ता | நிலைத்தன்மை | Stability |
प्रतिष्ठा | सम्मान, ख्याति | மரியாதை | Prestige, reputation |
आधारभूत | मूलभूत, बुनियादी | அடிப்படையான | Fundamental |
क्रांतिकारी | परिवर्तनकारी | புரட்சிகரமான | Revolutionary |
साहस | हिम्मत, नन्हा | தைரியம் | Courage |
शौर्य | वीरता | வீரம் | Valor |
उद्धत | उत्साहित, प्रेरित | உற்சாகமடைந்த | Enthusiastic, motivated |
परंपरा | रीति-रिवाज | பாரம்பரியம் | Tradition |
आकस्मिक | अचानक, अप्रत्याशित | திடீர் | Sudden |
जीर्ण-शीर्ण | पुराना, खराब | பழைய, சிதிலமடைந்த | Dilapidated, worn out |
सामंजस्य | तालमेल | ஒத்திசைவு | Harmony |
समग्रता | पूर्णता | முழுமை | Completeness |
मनोवृत्ति | दृष्टिकोण, सोच | மனப்பான்மை | Attitude |
आत्मशासन | स्वयं पर नियंत्रण | சுயகட்டுப்பாடு | Self-discipline |
उच्छृंखलता | अनुशासनहीनता | ஒழுக்கமின்மை | Indiscipline |
I) ‘युवकों का समाज में स्थान’ लेख के प्रश्न
- समाज का मुख्य आधार कौन है और क्यों?
उत्तर – सामान्यतः उन समाजों में, जहाँ स्थिरता आ गई है और जहाँ विकास की गति अत्यंत मंद है, वृद्धों का अनुभव ही समाज का मुख्य आधार होता है। इसका कारण यह है कि ऐसे समाजों में वृद्धों की सबसे अधिक प्रतिष्ठा होती है और उनका ही नेतृत्व होता है।
- बदलते परिप्रेक्ष्य में समाज की भूमिका कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – जब समाज को जीवित रहने के लिए अपनी पुरानी पद्धति को बदलने के लिए विवश होना पड़ता है तब उसके सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्य भी बदलने लगते हैं। समाज को नए आदर्श की आवश्यकता होती है जो उसका पथ प्रदर्शक हो। उसे नवीन परिस्थिति के अनुकूल अपना आचरण और व्यवहार बदलने का प्रयत्न करना चाहिए, युवकों को जिम्मेदारी के पदों पर बैठाना चाहिए और उनके अधिकार को स्वीकार करना चाहिए ताकि वे रचनात्मक कार्यों में अपनी शक्ति का उपयोग करें।
- युवकों का समाज में क्या स्थान है?
उत्तर – युवक नूतन समाज के आरंभक होते हैं, क्योंकि उनके सहयोग के बिना नए समाज की प्रतिष्ठा नहीं होती।
उनमें साहस, शौर्य, तेज और त्याग की भावना प्रबल होती है।
वे आदर्श के लिए आत्म-बलिदान के लिए उद्धत होते हैं और अतीत से नाता तोड़ने में उन्हें कठिनाई नहीं होती।
वे शक्ति का भंडार होते हैं, जिसका उपयोग समाज के जीवन-मरण के प्रश्न (जैसे युद्ध) या आकस्मिक संकट के समय या नवीन दृष्टि की आवश्यकता होने पर करना अनिवार्य हो जाता है।
नवयुवक समाज का नेतृत्व करने आगे आ रहे हैं और नव-समाज में उनका स्वागत होता है।
- युवकों के कौन-कौन से कर्तव्य और जिम्मेदारी है?
उत्तर – यद्यपि निबंध में लेखक ने मुख्य रूप से युवकों के अधिकार को स्वीकार करने पर जोर दिया है, फिर भी उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का संकेत मिलता है:
उन्हें आत्मशासन के महत्व को समझना चाहिए।
उन्हें अपनी शक्तियों का विनियोग रचनात्मक कार्यों में करना चाहिए, न कि टीका-टिप्पणी या आलोचना में।
उन्हें समाज की नवीन आवश्यकताओं को समझना चाहिए।
उन्हें नवीन मूल्यों की सृष्टि करनी है और उन्हीं के अनुसार जीवन व्यतीत करना है।
उन्हें सुंदर भविष्य के निर्माण के लिए अपनी आदर्शप्रियता, निर्भीकता, साहस और लगन का उपयोग करना है।
- समाज कल्याण के लिए हमें कौन-कौन से सिद्धांतों को अपनाना होगा?
उत्तर – समाज कल्याण और राष्ट्र-निर्माण के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों को अपनाना होगा:
युवकों के अधिकार को स्वीकार करना और उन्हें जिम्मेदारी के पदों पर बैठाना।
आने वाली पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा का भार अपने ऊपर लेना और उन्हें विकास का अवसर देना।
सार्वजनिक शिक्षा की आवश्यकता पर ध्यान देना।
अस्पृश्यता का निवारण करना और जाति-पाँति के कठोर बंधनों को तोड़ना।
सहयोग का प्रचार कर सामाजिक संबंधों को बदलना।
नई आर्थिक पद्धति को प्रतिष्ठित करना।
कोई ऐसा महान उद्देश्य समाज के सम्मुख रखना जिसके लिए लोग श्रम करें और त्याग कर सकें।
- युवकों का समाज में स्थान निर्धारित कीजिए। बहुत ही मीठे स्वरों के साथ
उत्तर – प्रिय युवको, आप समाज के भविष्य के निर्माता और आशा का सुंदर दीपक हैं। आपमें साहस का ज्वार, शौर्य का तेज और त्याग की पवित्र भावना भरी है। आप परिवर्तन के अग्रदूत हैं, जो जीर्ण-शीर्ण होती पुरानी संस्थाओं को छोड़कर, एक नवीन, आदर्श और प्रगतिशील युग का शिलान्यास करने आए हैं। आपका स्थान किसी से कम नहीं, बल्कि आप नव-समाज का नेतृत्व करने वाले हैं। समाज को आपकी ऊर्जा, रचनात्मक शक्ति और निर्भीकता की परम आवश्यकता है। जब वृद्ध पीढ़ी आपके अधिकारों को स्वीकार करेगी, तभी राष्ट्र-निर्माण का सपना साकार हो पाएगा। आप शक्ति का वह मधुर भंडार हैं जिसका सदुपयोग समाज को स्वर्णिम भविष्य की ओर ले जाएगा।
II) सही या गलत चुनकर लिखिए
- आचार्य नरेन्द्र देव का वैचारिक योगदान एवं मार्गदर्शन महनीय माना जाता है
उत्तर – सही
- वृद्धों का अनुभव ही समाज का मुख्य आधार होता है।
उत्तर – सही
- नवयुवक समाज का नेतृत्व करने आगे आ रहे हैं।
उत्तर – सही
- लोकतंत्र अभ्यास का विषय है,
उत्तर – सही
- युवक शक्ति का भंडार होता है।
उत्तर – सही
- आज पुराने युग का अंत हो रहा है।
उत्तर – सही
- समाज अपना आचरण और व्यवहार बदलने का प्रयत्न करता है।
उत्तर – सही
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
लेखक के अनुसार समाज में आदर्श स्थापना के लिए क्या आवश्यक है?
a) पुरानी पीढ़ी का पूर्ण नियंत्रण
b) युवकों को जिम्मेदारी देना
c) परंपराओं का कड़ाई से पालन
d) केवल आर्थिक परिवर्तन
उत्तर – b) युवकों को जिम्मेदारी देना
परंपरागत समाजों में किसका नेतृत्व होता है?
a) युवकों का
b) वृद्धों का
c) विद्वानों का
d) व्यापारियों का
उत्तर – b) वृद्धों का
लेखक ने युवकों की कौन-सी विशेषता पर बल दिया है?
a) अनुशासनहीनता
b) साहस और शौर्य
c) परंपराओं का पालन
d) आलोचना करना
उत्तर – b) साहस और शौर्य
युवक आंदोलन कब प्रारंभ होता है?
a) जब समाज में स्थिरता हो
b) जब समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता हो
c) जब वृद्धों का पूर्ण नियंत्रण हो
d) जब आर्थिक ढांचा स्थिर हो
उत्तर – b) जब समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता हो
लेखक के अनुसार स्वतंत्र राष्ट्र में युवकों की क्या भूमिका होनी चाहिए?
a) हड़ताल और प्रदर्शन
b) रचनात्मक कार्यों में भागीदारी
c) परंपराओं का पालन
d) आलोचना करना
उत्तर – b) रचनात्मक कार्यों में भागीदारी
लेखक ने पुरानी पीढ़ी को क्या सलाह दी है?
a) युवकों को अविश्वसनीय मानना
b) युवकों को जिम्मेदारी देना
c) परंपराओं को कड़ाई से लागू करना
d) युवकों को आंदोलन करने देना
उत्तर – b) युवकों को जिम्मेदारी देना
लेखक के अनुसार युवकों की शक्ति का उपयोग कब आवश्यक होता है?
a) सामान्य परिस्थितियों में
b) युद्ध या संकट के समय
c) केवल आर्थिक विकास के लिए
d) परंपराओं को बनाए रखने के लिए
उत्तर – b) युद्ध या संकट के समय
युवकों की शक्ति का दुरुपयोग कहाँ देखा गया?
a) लोकतांत्रिक राष्ट्रों में
b) फासिस्ट राष्ट्रों में
c) परंपरागत समाजों में
d) स्वतंत्र राष्ट्रों में
उत्तर – b) फासिस्ट राष्ट्रों में
लेखक के अनुसार समाज में स्थिरता कहाँ अधिक होती है?
a) जहाँ विकास की गति तेज हो
b) जहाँ वृद्धों की प्रतिष्ठा हो
c) जहाँ युवक नेतृत्व करें
d) जहाँ आर्थिक परिवर्तन हो
उत्तर – b) जहाँ वृद्धों की प्रतिष्ठा हो
लेखक ने युवकों की मनोवृत्ति बदलने का क्या उपाय सुझाया है?
a) परंपराओं का पालन
b) युवकों को अधिकार देना
c) हड़ताल को प्रोत्साहन
d) आलोचना को बढ़ावा देना
उत्तर – b) युवकों को अधिकार देना
लेखक के अनुसार नवीन समाज के आरंभक कौन होते हैं?
a) वृद्ध
b) विद्वान
c) युवक
d) नेता
उत्तर – c) युवक
युवकों में कौन-सी भावना प्रबल होती है?
a) भय
b) त्याग
c) लालच
d) अनुशासनहीनता
उत्तर – b) त्याग
लेखक के अनुसार स्वतंत्र राष्ट्र में विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?
a) हड़ताल और प्रदर्शन
b) आत्मशासन सीखना
c) परंपराओं का पालन
d) आलोचना करना
उत्तर – b) आत्मशासन सीखना
लेखक ने युवकों की शक्ति को क्या कहा है?
a) अनुशासनहीनता का स्रोत
b) शक्ति का भंडार
c) समाज के लिए खतरा
d) परंपराओं का आधार
उत्तर – b) शक्ति का भंडार
लेखक के अनुसार समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन कब होता है?
a) जब वृद्ध नेतृत्व करें
b) जब आर्थिक ढांचा बदले
c) जब परंपराएँ मजबूत हों
d) जब युवक आंदोलन न करें
उत्तर – b) जब आर्थिक ढांचा बदले
लेखक ने किसे समाज का पथ प्रदर्शक कहा है?
a) पुरानी परंपराएँ
b) नए आदर्श
c) वृद्धों का अनुभव
d) आर्थिक नीतियाँ
उत्तर – b) नए आदर्श
लेखक के अनुसार युवकों का असंतोष क्यों बढ़ता है?
a) उन्हें जिम्मेदारी न मिलने से
b) परंपराओं के पालन से
c) आर्थिक स्थिरता से
d) वृद्धों के नेतृत्व से
उत्तर – a) उन्हें जिम्मेदारी न मिलने से
लेखक ने किसे राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक बताया है?
a) वृद्धों का अनुभव
b) युवकों का सहयोग
c) परंपराओं का पालन
d) आर्थिक स्थिरता
उत्तर – b) युवकों का सहयोग
लेखक के अनुसार युवकों की उच्छृंखलता का कारण क्या है?
a) स्वतंत्रता की लड़ाई
b) परंपराओं का पालन
c) आर्थिक समस्याएँ
d) वृद्धों का नेतृत्व
उत्तर – a) स्वतंत्रता की लड़ाई
लेखक ने युवकों की शक्ति के सदुपयोग के लिए क्या सुझाया है?
a) उन्हें आलोचना करने देना
b) उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाना
c) परंपराओं को बनाए रखना
d) वृद्धों के नियंत्रण में रखना
उत्तर – b) उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाना
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – ‘युवकों का समाज में स्थान’ निबंध के लेखक कौन हैं?
उत्तर – ‘युवकों का समाज में स्थान’ निबंध के लेखक आचार्य नरेंद्र देव हैं। - प्रश्न – आचार्य जी ने यह निबंध किस उद्देश्य से लिखा है?
उत्तर – आचार्य जी ने यह निबंध युवकों के समाज में महत्त्व, उनकी जिम्मेदारियों और उनके प्रति वृद्धों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए लिखा है। - प्रश्न – लेखक के अनुसार, समाज में आदर्श की स्थापना कब तक संभव नहीं है?
उत्तर – जब तक पुरानी पीढ़ी युवकों को असमर्थ, अविश्वसनीय और नालायक समझती रहेगी, तब तक समाज में आदर्श की स्थापना संभव नहीं है। - प्रश्न – लेखक ने युवकों को किसके प्रति परिचित कराया है?
उत्तर – लेखक ने युवकों को उनकी शक्ति, साहस और तेज के प्रति परिचित कराया है। - प्रश्न – स्थिर समाजों में किसकी प्रतिष्ठा अधिक होती है?
उत्तर – स्थिर समाजों में वृद्धों की प्रतिष्ठा सबसे अधिक होती है। - प्रश्न – चीन और भारत के समाज को किस रूप में उदाहरण दिया गया है?
उत्तर – चीन और भारत के समाज को ऐसे समाजों के उदाहरण के रूप में दिया गया है जहाँ वृद्धों का नेतृत्व प्रमुख होता है। - प्रश्न – लेखक के अनुसार, शिक्षा प्रणाली में लोक परंपरा का क्या महत्त्व है?
उत्तर – शिक्षा प्रणाली में लोक परंपरा का बहुत बड़ा महत्त्व होता है क्योंकि वह समाज के अनुभव और परंपराओं को आगे बढ़ाती है। - प्रश्न – समाज के मौलिक सिद्धांतों के परिवर्तन से क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – समाज के मौलिक सिद्धांतों में परिवर्तन होने पर उसके सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्य भी बदलने लगते हैं। - प्रश्न – नूतन समाज के आरंभक कौन होते हैं?
उत्तर – नूतन समाज के आरंभक प्रायः युवक ही होते हैं। - प्रश्न – युवक अतीत से नाता तोड़ने में क्यों सक्षम होते हैं?
उत्तर – युवक अतीत से नाता तोड़ने में इसलिए सक्षम होते हैं क्योंकि वे अभी संसार के बंधनों में नहीं फंसे होते और उनमें नई दृष्टि होती है। - प्रश्न – जब समाज में संकट आता है तो किसकी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर – जब समाज में संकट आता है तो युवकों की प्रसुप्त शक्तियों की आवश्यकता पड़ती है। - प्रश्न – संक्रमण काल से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर – संक्रमण काल से लेखक का आशय पुराने युग के अंत और नए युग की शुरुआत के बीच के परिवर्तनशील समय से है। - प्रश्न – युद्ध के पश्चात जीवन के मूल्य कैसे हो गए हैं?
उत्तर – युद्ध के पश्चात जीवन के मूल्य सर्वत्र बदल गए हैं और पुरानी संस्थाओं पर लोगों की आस्था कम हो गई है। - प्रश्न – नवयुवक समाज के नेतृत्व में क्यों आगे आते हैं?
उत्तर – नवयुवक समाज के नेतृत्व में इसलिए आगे आते हैं क्योंकि उनमें आदर्श के लिए त्याग, साहस और लगन होती है। - प्रश्न – पुरातन समाजों में युवक के अधिकार क्यों स्वीकार नहीं किए जाते?
उत्तर – पुरातन समाजों में परंपरा के कारण वृद्धों का वर्चस्व होता है, इसलिए युवकों के अधिकार स्वीकार नहीं किए जाते। - प्रश्न – वृद्धों को युवकों को जिम्मेदारी क्यों देनी चाहिए?
उत्तर – वृद्धों को युवकों को जिम्मेदारी इसलिए देनी चाहिए ताकि वे भविष्य के नेतृत्व के योग्य बन सकें और देश की प्रगति में भाग ले सकें। - प्रश्न – स्वतंत्र भारत की नई जिम्मेदारी कौन निभा सकता है?
उत्तर – स्वतंत्र भारत की नई जिम्मेदारी मुख्यतः युवकों द्वारा निभाई जा सकती है। - प्रश्न – निबंध में लोकतंत्र की स्थापना के लिए क्या आवश्यक बताया गया है?
उत्तर – लोकतंत्र की स्थापना के लिए सार्वजनिक शिक्षा, अस्पष्टता का निवारण और जाति-पाँति के बंधनों को तोड़ना आवश्यक बताया गया है। - प्रश्न – लोकतंत्र अभ्यास का विषय क्यों कहा गया है?
उत्तर – लोकतंत्र अभ्यास का विषय इसलिए कहा गया है क्योंकि केवल नारा लगाने से नहीं, बल्कि व्यवहार में उतारने से ही लोकतंत्र स्थापित होता है। - प्रश्न – समाज में त्याग की भावना कब आती है?
उत्तर – समाज में त्याग की भावना तब आती है जब कोई महान उद्देश्य सामने रखा जाता है जिसके लिए लोग श्रम करें। - प्रश्न – यदि युवकों की शक्ति का सदुपयोग नहीं होगा तो क्या होगा?
उत्तर – यदि युवकों की शक्ति का सदुपयोग नहीं होगा तो उसका दुरुपयोग होगा जिससे समाज को हानि पहुँचेगी। - प्रश्न – ‘फासिस्ट’ राष्ट्रों ने युवक शक्ति का किस प्रकार उपयोग किया?
उत्तर – ‘फासिस्ट’ राष्ट्रों ने युवक शक्ति का दुरुपयोग अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया। - प्रश्न – लेखक के अनुसार, प्रत्येक अधिकार के साथ क्या जुड़ा होता है?
उत्तर – प्रत्येक अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़ा होता है। - प्रश्न – विद्यार्थी समाज की उच्छृंखलता का क्या कारण बताया गया है?
उत्तर – विद्यार्थी समाज की उच्छृंखलता का कारण विदेशी शासन से संघर्ष की मनोवृत्ति को बताया गया है। - प्रश्न – स्वतंत्र राष्ट्रों के विद्यार्थी हड़ताल क्यों नहीं करते?
उत्तर – स्वतंत्र राष्ट्रों के विद्यार्थियों को हड़ताल करने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वे रचनात्मक कार्यों में संलग्न रहते हैं। - प्रश्न – राष्ट्र के संचालकों का क्या कर्तव्य बताया गया है?
उत्तर – राष्ट्र के संचालकों का कर्तव्य है कि वे युवकों की मनोवृत्ति बदलकर उनकी शक्तियों को रचनात्मक कार्यों में लगाएँ। - प्रश्न – समाज में युवकों की उच्छृंखलता को कैसे दूर किया जा सकता है?
उत्तर – युवकों की उच्छृंखलता को उनके अधिकार को स्वीकार कर और उन्हें जिम्मेदारी देकर दूर किया जा सकता है। - प्रश्न – लेखक ने युवक को किस रूप में प्रस्तुत किया है—प्रगतिशील या प्रतिक्रियावादी?
उत्तर – लेखक ने युवक को न प्रगतिशील और न प्रतिक्रियावादी बताया है, बल्कि उसे ऐसी शक्ति बताया है जो किसी भी कार्य में लगाई जा सकती है। - प्रश्न – समाज में युवकों के अधिकार को स्वीकार करने से क्या लाभ होगा?
उत्तर – युवकों के अधिकार को स्वीकार करने से राष्ट्र-निर्माण कार्य में ऊर्जा, नवाचार और गति आएगी। - प्रश्न – निबंध का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – निबंध का मुख्य संदेश यह है कि राष्ट्र और समाज की प्रगति के लिए युवकों की शक्ति, साहस और अधिकार को स्वीकार करना आवश्यक है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- लेखक ने पुरानी पीढ़ी के प्रति क्या शिकायत व्यक्त की है?
लेखक ने शिकायत की है कि पुरानी पीढ़ी युवकों को असमर्थ, अविश्वसनीय, और अनुत्तरदायी मानती है। इससे युवकों को जिम्मेदारी नहीं मिलती, जिसके कारण समाज में आदर्श स्थापना में बाधा आती है और युवकों का असंतोष बढ़ता है।
- परंपरागत समाजों में वृद्धों की क्या भूमिका होती है?
परंपरागत समाजों में वृद्धों का नेतृत्व होता है और उनका अनुभव समाज का मुख्य आधार होता है। उनकी प्रतिष्ठा सबसे अधिक होती है, और शिक्षा प्रणाली में लोक परंपराओं का महत्त्व होता है।
- लेखक के अनुसार युवकों में कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
लेखक के अनुसार, युवकों में साहस, शौर्य, तेज, और त्याग की भावना प्रबल होती है। वे संसार के कीचड़ में नहीं फंसे होते, इसलिए आदर्शों के लिए आत्म-बलिदान करने को तैयार रहते हैं।
- युवक आंदोलन कब और क्यों प्रारंभ होता है?
युवक आंदोलन तब प्रारंभ होता है जब समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और पुरानी पद्धति बदलने की जरूरत पड़ती है। यह समाज की क्रांतिकारी परिवर्तन की मांग पर निर्भर करता है।
- स्वतंत्र राष्ट्र में युवकों की मनोवृत्ति क्यों हानिकारक हो सकती है?
स्वतंत्र राष्ट्र में युवकों की पुरानी उच्छृंखल मनोवृत्ति हानिकारक हो सकती है क्योंकि यह रचनात्मक कार्यों में बाधा डालती है। लेखक सुझाते हैं कि उनकी शक्ति को रचनात्मक दिशा में लगाना चाहिए।
- लेखक ने युवकों की शक्ति का उपयोग कब आवश्यक बताया है?
लेखक ने युवकों की शक्ति का उपयोग युद्ध या आकस्मिक संकट के समय और समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता होने पर आवश्यक बताया है। उनकी शक्ति राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण है।
- लेखक ने फासिस्ट राष्ट्रों के संदर्भ में क्या कहा है?
लेखक ने कहा कि फासिस्ट राष्ट्रों ने युवकों की शक्ति के महत्त्व को समझा और इसका दुरुपयोग अपने उद्देश्यों के लिए किया। इससे युवकों की ऊर्जा का गलत उपयोग हुआ।
- लेखक ने युवकों के अधिकार स्वीकार करने के क्या लाभ बताए हैं?
युवकों के अधिकार स्वीकार करने से समाज में रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा मिलता है, असंतोष कम होता है, और राष्ट्र निर्माण में उनकी शक्ति का उपयोग होता है। यह समाज को प्रगति की ओर ले जाता है।
- लेखक ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए क्या आवश्यक बताया है?
लेखक ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए सार्वजनिक शिक्षा, स्पष्टता का निवारण, और जाति-पाँति के बंधनों को तोड़ने की आवश्यकता बताई है। यह अभ्यास और सहयोग से संभव है।
- लेखक ने युवकों की उच्छृंखलता को दूर करने का क्या उपाय सुझाया है?
लेखक ने युवकों की उच्छृंखलता को दूर करने के लिए उनके अधिकार स्वीकार करने और उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाने का उपाय सुझाया है। इससे उनकी शक्ति का सही उपयोग होगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- लेखक ने भारतीय समाज में युवकों की भूमिका के बारे में क्या विचार व्यक्त किए हैं?
लेखक का मानना है कि भारतीय समाज में युवकों को असमर्थ और अनुत्तरदायी मानने की पुरानी पीढ़ी की धारणा गलत है। युवकों में साहस, शौर्य, और त्याग की भावना होती है, जो समाज को बदलने में महत्त्वपूर्ण है। उन्हें जिम्मेदारी देकर उनकी शक्ति का उपयोग करना चाहिए, अन्यथा उनका असंतोष बढ़ेगा, जो समाज के लिए हानिकारक होगा।
- लेखक ने परंपरागत समाजों और नवीन समाजों में युवकों की भूमिका में क्या अंतर बताया है?
परंपरागत समाजों में वृद्धों का नेतृत्व और अनुभव प्रमुख होता है, जबकि नवीन समाजों में युवकों की शक्ति और साहस को महत्त्व दिया जाता है। परंपरागत समाज स्थिरता पर आधारित होते हैं, लेकिन जब क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता होती है, तब युवकों का सहयोग आवश्यक हो जाता है, क्योंकि वे आदर्शों के लिए बलिदान करने को तैयार रहते हैं।
- लेखक ने स्वतंत्र भारत में युवकों की मनोवृत्ति बदलने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया है?
लेखक ने स्वतंत्र भारत में युवकों की मनोवृत्ति बदलने पर बल दिया क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम की उच्छृंखलता अब हानिकारक है। उनकी शक्ति को रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहिए। यदि समाज के नेता पुरानी सोच को नहीं बदलते, तो युवकों का असंतोष बढ़ेगा, जिससे राष्ट्र निर्माण में बाधा आएगी। उनकी ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करना आवश्यक है।
- लेखक ने युवकों की शक्ति के सदुपयोग और दुरुपयोग के बारे में क्या कहा है?
लेखक ने कहा कि युवकों की शक्ति एक भंडार है, जिसका उपयोग समाज की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि समाज स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है, तो युवक उसमें भाग लेते हैं। फासिस्ट राष्ट्रों ने इसका दुरुपयोग किया। राष्ट्र निर्माण के लिए युवकों को रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहिए, अन्यथा उनकी शक्ति गलत दिशा में जा सकती है।
- लेखक ने राष्ट्र निर्माण में युवकों के सहयोग की आवश्यकता पर क्या तर्क दिए हैं?
लेखक का कहना है कि राष्ट्र निर्माण के लिए युवकों का सहयोग अनिवार्य है क्योंकि उनकी आदर्शप्रियता, साहस, और लगन समाज को नई दिशा दे सकती है। स्वतंत्र भारत में प्रगति, लोकतंत्र की स्थापना, और सामाजिक बंधनों को तोड़ने के लिए उनकी शक्ति की आवश्यकता है। यदि उनकी ऊर्जा का उपयोग न किया गया, तो समाज का विकास रुक सकता है।

