आरिगपूडी – लेखिका परिचय
आधुनिक हिंदी कहानी के विकास में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान है व आप आधुनिक हिंदी कहानी निर्माताओं में से एक थे। भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से ये कहानियाँ आधुनिक कहानी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
बदला
मामूली आदमी, मामूली बात, मामूली रकम…. सभी कुछ मामूली। ऐसा कोई मामला नहीं, जिस पर कोई खास गौर किया जाए। पर कहने वाले कहते सुने गए हैं…… बूँद-बूँद मिलकर ही बाढ़ बनती है और उसमें पहाड़ के पहाड़ भी कट जाते हैं।बात यों हैं …… धम्मपट्टनम में एक अस्पताल है, उस इलाके का सबसे बड़ा। बहुत से डॉक्टर वे भी अपने को कभी-कभी सुविधानुसार मामूली बताते हैं। हो सकता है। यह विनम्रता हो और पदा भी…. मैं नहीं जानता। पर उनके मातहत बहुत से नौकर चाकर हैं …. नर्स, क्लर्क, भंगी, मेहतर, वगैरह, यों मामूली आदमी हैं और इनको किसी आड़-परदे की ज़रूरत नहीं है।
अस्पताल है,तिस पर सरकारी मुक्त है, बड़े-बड़े लोगों से थोड़ा बहुत रुपया जरूर लिया जाता है, पर बिना पैसे के वहाँ कुछ नहीं होता, न मरीज दाखिल किया जाता है, इलाज किया जाता है, ना खारिज किया जाता है। कदम-कदम पर घूसखोरी, भ्रष्टाचार, दिन-दहाड़े ‘मालूम’ वसूला जाता है और जो इसे वसूलते हैं उनकी नजर में यह मामूली बात है।
मामूली लोग हैं, घूस भी लेंगे तो कितना लेंगे…… यह ही मामूली रकम। ज़्यादा-से-ज्यादा पाँच-दस रुपये और यह लेना-देना इतना आम है कि किसी को यह गैर मामूली नहीं मालूम होता। कोई देन क आदी हो गया है, तो कोई लेने का।
शायद कोई इन सब बातों के बारे में सोचता भी न, अगर कोटय्या हो हल्ला न करता, रोता-धोता न। कोटय्या अस्पताल के मामूली आदमियों से भी अधिक मामूली है। मरा-पिटा किसान मज़दूर। कभी एक डेढ़ एकड़ ज़मीन थी, पर पास की नहीं में बाढ़ आई और वह ज़मीन कटकटा कर उसमें जा मिली। तब से वह दूसरों की खेती में मजदूरी करता है। खास पढ़ा-लिखा नहीं है, निरा कालाक्षर भैंस बराबर भी नहीं। अख़बार बाँच लेता है।
उसकी पत्नी गर्भवती थी, नवाँ महीना आते-आते उसके पैर सूज गए। रक्तचाप भी बढ़ गया और भी कितनी ही उलझनें। उसनें अपने मालिक की बैलगाड़ी माँगी और उसमें अपनी पत्नी को लिटाकर वह धम्मपट्टनम पहुँचा। बीस मील तक कोई अस्पताल न था, डॉक्टर न था।
अस्पताल के फाटक के पास पहुँचा तो रोक दिया गया। बहुत मिन्नत करने के बाद और चवन्नी हाथ में थमाने के बाद, दरबान ने उसे अंदर जाने दिया। शायद कुछ सफर के कारण या किसी और कारण, अस्पताल में घुसते ही उसकी पत्नी बेहोश हो गई। कोटय्या ने सोचा कि लोग भागे-भागे आयेंगे…. दो चार आए भी पर जिनको आना चाहिए था, वे नहीं आए। अस्पताल है शायद वहाँ बेहोशी भी मामूली बात है। किसी को मनाया, किसी के हाथ जोड़े, किसी के पैरो पड़ा, पर सब यूँ देखकर चलते हुए जैसे उससे भी अधिक कोई सीरियस बीमार हो और वे उसको देखने में लगे हों।
कोटय्या दुकानदार न था, अस्पताल भी पहली बार आया था, पहली बार उसकी पत्नी गर्भवती हुई थी। पैसेवाला न था कि पैसे की करामात जानता। इतना जना-सुना भीन था कि उस अस्पताल में बिना “मामूल” के मुर्दे भी नहीं हटाए जाते थे। वह चिंतित खड़ा रहा। पसीना-पसीना हो गया, घुटने थरथराने लगे। हट्टा-कट्टा आदमी, काँपने लगा….. भय, विवशता, अज्ञान, अंधकार।
कुछ देर बाद एकलेटी ड़क्टर आई, बाद में उसको पता लगा कि उनका नाम पद्मा था। उन्होंने कोटय्या की पत्नी को अंदर भरती करवा दिया नर्सों ने उनके सामने उसे देखा-भाला भी और कोटय्या बाहर खड़ा खड़ा भगवान को हाथ जोड़ रहा था। “….कुछ भी हो…. सुशीला जाती रहे, बच्चा हो तो भला, न हो तो भला पर वह ज़िन्दी रहे, हे भगवान…….।” नर्से अंदर आ जा रही थीं, उस कमरे में और भी कई मरीज़ थे। कोटय्या उनके आता जाता देख, न मालूम क्या-क्या सोच रहा था ….. ऐसा भी क्या हो गया सुशीला को, कि इन लोगों की इतनी भागदौड़ मची हुई है। उसकी फिक्र बढ़ी उसका डर बढ़ा।
कुछ देर बाद, उसको बताया गया कि प्रसव के पहले ही, उसकी पत्नी के प्राण चले गए। वह लंबी साँसे खींचता अंदर गया। उसने देखा कि उसकी पत्नी वहीं पड़ी थी, जहाँ उसको पहले लिटाया गया था। कुछ नहीं किया गया था। नर्सों की भाग-दौड़ शायद किसी और के लिए थी। बेपढ़ ही सही, कोटय्या इतना बुड़बक न था कि यह आँखों देखी बात न समझ सके।
दो चार आदमियों ने आकर मुरदा एक तरफ ले जाकर रख दिया और उसके इधर-उधर इस तरह प्रदक्षिणा करने लगे जैसे उनको “मामूल” मिलना अभी बाकी हो। किसी की पत्नी मरती है तो मरे, अपनी बला से। उनको क्या? उन्होंने काम किया है और उनको काम के पैसे मिलने ही चाहिए। कोटय्या पत्नी को देखता देखता खड़ा खड़ा जम-सा गया। वे उसको घूरते घूरते चले गए।
कोटय्या का गाँव दूर था और धम्मपट्टनम में उसकी जान-पहचान का कोई न था। क्या करता? मुरदे को उसी गाड़ी में, वह गाँव ले गया। बैलों को अगर गाँव रास्ता याद न होता तो जाने वह कहाँ पहुँचता ! गाड़ी अपने आप चलती जाती थी और वह बिलखता, सिसकता, पत्नी की बगल में, गाड़ी में ही पड़ा रहा।
“पत्नी ही तो सब कुछ थी! इस संसार में जब वह नहीं है, तो मेरे लिए संसार ही नहीं है…. मैं भी उसी रास्ते चला जाऊँगा, जिस रास्ते वह गई है, उसी जगह जाकर धरना दूँगा, जहाँ वह जीने के लिए गई थी और अब मरकर वापिस जा रही है….ये अस्पताल नहीं बूचड़खाने हैं… मर जाऊँगा, पर मरते-मरते दुनिया की आँखों खोलता जाऊँगा……” उसका दुःख इस रोष में उमड़ता और रोष एक दृढ़ निश्चय के रूप में उसके मन में जड़ कर गया।
“जीकर क्या पाऊँगा? मर जाऊँ…… यही बात कोटय्या के मन में गाड़ी के पहिए की तरह चक्कर काटती जाती थी,….दुख, क्रोध, प्रतिकार, सभी मन में गाड़ी के चरमर की तरह गुन-गुना रहे थे।”
गाँव में हर किसी ने हाथ दिया और पत्नी का दहन संस्कार हो गया कोटय्या अपनी सूनी झोपड़ी में पल भर न बैठ सका। तेरहवीं के होते ही, वह धम्मपट्टनम चला आया। अस्पताल के सामने भूख हड़ताल करने लगा। कभी गाँव में गाँधी के नारे लगाए थे, पर यह न सोचा था कि कभी उसे यूँ, सत्याग्रह करना होगा।
एक दिन बीता, कहीं कोई खलबली न मची। दूसरा दिन बीता, कहीं कोई हल्ला-गुल्ला नहीं। तीसरा दिन भी बीता, किसी के कान पर जूँ तक न रेंगी। चौथा दिन बीता, कहीं कोई सनसनी न हुई धम्मपट्टनम का अस्पताल जैसे रोज़ चलता था, चलता रहा।
कोटय्या ने अस्पताल के फाटक के पास नीम के पेड़ के नीचे धरना दे रख था। और उसके पास एक कपड़े पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था – “इस अस्पताल से प्राणखाऊ घूसखोरी हटाओ।” यह कपड़ा वह शायद स्वयं न लगाता यदि उसको सुझाव व दिया जाता। इसके बावजूद उसको इलाज के लिया हुआ, गँवार समझकर लोग नज़र फेरकर चले जाते थे।
जब वह ठीक तरह न खड़ा हो पाता था, न बैठे ही पाता था, वह कड़ी ज़मीन पर लेट गया। लोग उसको पागल समझ रहे थे और जो कुछ अस्पताल में हो रहा था, असाधारण नहीं लग रहा था, इलाज करवाने के लिए अगर पाँच-दस रुपए यूँ बिखेरने पड़ जाएँ, तो क्या खराबी है। खैर!
पाँचवां जिन धम्मपट्टनम की बड़ी डॉक्टर, पद्मा जिनकी मेहरबानी से उसकी पत्नी को एक कमरे में फर्श पर ही कही, कम-से-कम जगह मिल गई थी उससे मिलने आयी। समझाया बुझाया, पर वे भी शायद समझ न पा रही थीं, कि जिसको अस्पताल में दाखला नहीं चाहिए। उसको अस्पताल के बाहर धरना देने की क्या ज़रूरत है। हाँ, उन्होंने अपना अफसोस ज़रूर प्रकट किया, पर कोटय्या ने अपना सत्याग्रह यथापूर्व जारी रखी।
अगर उन दिनों समाचार-पत्रों में, एकाएक भ्रष्टाचार के विरूद्ध खबरें न छपतीं तो कोटय्या शायद “शहीदों” में शामिल हो जाता और शहीद न माना जाता। शहर के दो-तीन नेता उससे मिलने आए। उसने उनसे अपनी शिकायत की, उनको शिकायत करता देख और कई शिकायत करने लगे। देखते-देखते शिकायतों का ढेर-सा लगा गया। उसके बाद तो कोटय्या के पास हमेशा छोटी-मोटी भीड़ बनी रहती। शायद जो चिंगारी उसने शुरू की थी, वह जलने-बढ़ने लगी थी।
बात इतनी बढ़ी कि सरकार तक पहुंची। उस छोटे शहर में बढ़ी सरगर्मी फैल गई। अफसरों की दौड़-धूप बढ़ने लगी। पर कोटय्या की भूख हड़ताल जारी रही वह दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। हालात नाजुक थी। उसको बताया गया कि जिस डॉक्टर को वह अपनी पत्नी की मौत के लिए जिम्मेदार समझ रहा था उनका तबादला कर दिया जाएगा।
परंतु कोटय्या ने कहा- “मैं किसी का तबादला वगैरा नहीं चाहता, मैं चाहता हूं कि सारे मामले की पूरी तहकीकात हो और इंतजाम हो कि बिना घूस रिश्वत के हर किसी का इलाज हो और जब तक यह नहीं होगा मैं अपनी हड़ताल नहीं तोडूँगा।”
तहकीकात करना तो छत्ते को कुरेदना था। बहुत आनाकानी की गई। बाद में सरकार स्थानीय दबाव कारण तहकीकात के लिए मान गई।
कोटय्या भूख हड़ताल के कारण इतना कमजोर हो गया था कि उसकी हालत अब और तब की हो गई, यद्यपि उसने हड़ताल अब तोड़ दी थी। उसे स्वास्थ्य सुधार के लिए उसी अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।
पूछताछ शुरू हुई। बहुत-सी बातें प्रकाश में आने लगीं। कई कारनामें जो बड़ों की आड़ में होते थे, बाहर आए। पूछताछ का रुख कुछ-कुछ विस्फोटक होने लगा था। कई काम ऐसे थे, जिनके बारे में बड़ी डॉक्टर पद्मा को जानकारी न थी, वह शायद आँखें मूंदे बैठी थीं। रास्ता कुछ भी हो, जब तक उनका हिस्सा उनके पास आ जाता था, उनको कोई फिक्र ना थी। कौन जानता था कि कोई सिरफिरागँवार यूँ सत्याग्रह करेगा और तबाही ढाएगा।
डॉ. पद्मा को कमेटी के सामने गवाही देने के लिए बुलाया गया। उन्होंने पहले छुट्टी पर जाने की सोची, फिर बीमारी का बहाना किया, आखिर इधर-उधर के डोरे भी खींचने पड़े। पर पाँचछ- दिन के लिए सुनवाई मुल्तवी कर अंत में डॉक्टर पद्मा को कमेटी के सामने पेश किया गया।
डॉ. पद्मा की सांसें एकाएक लंबी हो गई। दुनिया भर के ठेकेदार, दूध के ठेकेदार, रोटी के ठेकेदार, दवाइयों के दुकानदार……… शहर के और कई लोग जो अस्पताल में कभी न कभी मरीज थे उनको यूँ देखने लगे जैसे कोई अपराधिनी रंगे हाथ पकड़ी गई हो। कमबख्त इन लोगों में एहसान मानने की भी तमीज नहीं है। इनकी बीमारियाँठीक क्या हुई कि अब ये मुझ पर ही ईंट पत्थर फेंकने को उतारू है। डॉक्टर पद्मा की लाल पीली होती आँखें कहती-सी लगती थीं।
डॉ. पद्मा ने यह भी देखा की सुनवाई कोटय्या के केस तक ही सीमित न। थी उनका ख्याल था कि और बातों की पूछ तलब न हो, पर उन्होंने यह पाया कि सारे अस्पताल के बारे में, वहाँ के कर्मचारियों के बारे में तहकीकात हो रही थी। वे शायद इसके लिए तैयार न थीं। कुछ घबरा गई।
कई ऐसे प्रश्न किए गए, जिनका जवाब उन से नहीं बनता था। वे कैसे जाने कि उनके नाम पर, उनकी नाक के नीचे ही इतनी सब कुछ गंदगी थी घूसखोरी थी। तैयार न थी, इसलिए कई उत्तर ऐसे दे गई जिससे औरों की नौकरी पर भी आँच आने की संभावना थी।
सुनवाई डॉक्टर पद्मा की हो रही थी और सारे अस्पताल में, शहर में कोहराम मचा हुआ था। हर कोई इसके बारे में ही पूछताछ कर रहा था। सब जगह सनसनी फैली हुई थी।
दूसरे दिन फिर डॉक्टर पद्मा बुलवायी गई। पिछले दिन जो सुराग की तरह शुरू हुआ था, पूछताछ के सिलसिले में वह एक बड़ी सुरंग – सी हो गई थी। कई की पोल खुली। कई का भंडाफोड़ हुआ। डॉक्टर पद्मा, संभव है यह सब न बताती बताना चाहती थीं पर चुप भी ना रह सकी थीं।
काफी कुछ जानकारी मिल गई थी, फिर भी साफ था और भी कई मुख्य बातें थीं जो समिति से छिपी थीं और छिपाई जा रही थीं।
डॉ. पद्मा दो-तीन दिन अस्पताल न गई। वे सचमुच कुछ अस्वस्थ थीं। सुनवाई भी न हो सकी थी। उनके रहने की व्यवस्था अस्पताल के अहाते में ही थी। वह बुरी तरह भयभीत थीं। स्थिति ऐसी थी कि अस्पताल छोड़कर कोई विशेष रक्षा की आवश्यकता थी।
उस दिन रात थी, उस अस्पताल में उसी तरह आई जैसे और दिन आया करती थीं। पर सवेरा कुछ और तरह का था। अस्पताल के अंदर-बाहर सब जगह होहल्ला हो रहा था। बड़ी भीड़ लगी हुई थी। मुँह अँधेरे किसी ने अस्पताल में डॉक्टर पद्मा को मार दिया था और पुलिस ने कोटय्या को पकड़ लिया था।
डॉ. पद्मा को मार दिया जाना समझा जा सकता था पर हत्यारा कोटय्या ठहराया जाएगा, यह हर किसी को समझ में नहीं आ रहा था। परंतु अब गवाही उसके विरुद्ध थी।
जिस कमरे में रखा गया था, वह डॉक्टर पद्मा के मकान के पास था। अब वह अब पूर्ण स्वस्थ भले ही न हुआ हो पर चल-फिर सकता था। उसके पास अस्पताल की ही खून से तरबतर सर्जिकल नाइफ पाई गई, जिससे कहा जा रहा था उसने डॉक्टर पद्मा की हत्या की थी। उसके कपड़ों पर खून के धब्बे भी थे।
वह इस कदर घबराया हुआ था कि न मालूम क्या-क्या बड़बड़ा रहा था। पुलिस को यह भी बताया गया कि उसने अपनी पत्नी की मृत्यु के लिए यूँ डॉक्टर पद्मा से बदला लिया था।
पुलिस उसको चलाकर वेन की ओर ले जा रही थी और कुटिया गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा था …… मैं निर्दोष हूँ, मैंने यह हत्या नहीं की है। मैं कुछ नहीं जानता मुझ पर यूँ ही झूठ – मुठ हत्या का अपराध थोपा जा रहा है…..” पर कोई उसकी बात सुनता न लगता था। उस अस्पताल में जहाँ बड़ी-बड़ी बातें भी मामूली समझी जाती थी शायद यह एक मामूली घटना थी।
बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पीछे वर्दी पहने ‘मामूल’ के आदी मुलाज़िम मुस्कुरा रहे थे, यूँ खिलखिला रहे थे जैसे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हों, पर उनके मन कह रहे थे…… जो उनके बारे में और भेद बता सकती थी वह डॉक्टर पद्मा जान से गई और अपराध भी उनके सिर पर न आकर किसी गँवार के सिर पर मढ़ दिया गया था। हो भला इस कोटिय्या का।
कोटय्या शायद न जानता था कि वह एक ऐसी गंदी नाली में आ पड़ा था, जहाँ अच्छी चीज़ भी, गंदी हो जाती है और गंदगी ही गंदगी को ढकेलती हुई जाती है।
कोटय्या संसार छोड़ना चाहता था, पर वह न जानता था कि उसके हाथ पैर बाँध कर उसे धकेलने का यूँ प्रयत्न किया जाएगा। उसकी हालत उस बैल की जोड़ी की तरह थी, जो बियाबान जंगल में, बेसहारा था और कभी भी शेर या भालू का शिकार बन सकता है।
सारांश
‘बदला’ कहानी धम्मपट्टनम के सरकारी अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार और घूसखोरी के विरुद्ध एक साधारण किसान मजदूर कोटय्या के संघर्ष की मार्मिक गाथा है।
कहानी की शुरुआत में लेखक बताता है कि अस्पताल में घूस लेना-देना एक मामूली बात बन गई है। कोटय्या अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला जो रक्तचाप और सूजन से पीड़ित थी को बीस मील दूर स्थित अस्पताल लेकर आता है। चवन्नी घूस देकर वह अस्पताल में प्रवेश करता है, पर वहाँ समय पर इलाज के अभाव में और कर्मचारियों की गैर-जिम्मेदारी के कारण सुशीला की मृत्यु हो जाती है। कोटय्या देखता है कि उसकी पत्नी को छूआ भी नहीं गया था और नर्सों की भागदौड़ किसी और के लिए थी।
पत्नी की मृत्यु से दुखी और क्रोधित कोटय्या प्रतिकार का निश्चय करता है। वह तेरहवीं के बाद धम्मपट्टनम लौटकर अस्पताल के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर देता है। उसकी माँग होती है कि घूसखोरी हटे और मामले की पूरी तहकीकात हो, न कि केवल तबादला। अखबारों में खबरें छपने और स्थानीय दबाव के कारण सरकार तहकीकात के लिए मान जाती है।
तहकीकात शुरू होने पर अस्पताल में गंदगी और घूसखोरी के कई कारनामे उजागर होते हैं। बड़ी डॉक्टर पद्मा जिन्हें कुछ बातों की जानकारी नहीं थी या उन्होंने आँखें मूँद रखी थीं को गवाही के लिए बुलाया जाता है। उनके बयानों से और कर्मचारियों के भेद खुलने का डर पैदा हो जाता है।
कहानी का अंत दुखद है- एक रात डॉक्टर पद्मा की हत्या कर दी जाती है। पुलिस कोटय्या को पकड़ लेती है और हत्या का आरोप उस पर लगा दिया जाता है, यह कहकर कि उसने अपनी पत्नी की मौत का बदला लिया। अस्पताल के भ्रष्ट कर्मचारी वर्दी पहने मुस्कुराते हैं, क्योंकि जो उनके भेद खोल सकती थी, वह मारी गई और इल्जाम एक गँवार पर आ गया। कोटय्या चीखता रह जाता है कि वह निर्दोष है, पर कोई उसकी बात नहीं सुनता। इस प्रकार, कोटय्या को बदला तो नहीं मिला, बल्कि वह भ्रष्ट व्यवस्था के जाल में फँसकर स्वयं बलि का बकरा बन जाता है।
कठिन शब्दार्थ
शब्द (Hindi) | अर्थ (Hindi) | பொருள் (Tamil) | Meaning (English) |
मामूली | साधारण, तुच्छ | சாதாரணமான, சிறிய | Ordinary, trivial |
घूसखोरी | रिश्वत लेना | லஞ்சம் பெறுதல் | Bribery, corruption |
भ्रष्टाचार | भ्रष्टाचार, अनैतिकता | ஊழல் | Corruption, graft |
मिन्नत | विनती, अनुरोध | வேண்டுகோள் | Entreaty, supplication |
विवशता | असहायता, बेबसी | அனுபவமின்மை | Helplessness, impotence |
प्रसव | बच्चे का जन्म देना | பிரசவம் | Delivery, childbirth |
बेपढ़ | अनपढ़ | அறியாமை | Illiterate, unlettered |
प्रदक्षिणा | परिक्रमा | பிரதக்ஷிணம் | Circumambulation |
सत्याग्रह | अहिंसक प्रतिरोध | சத்தியாகிரகம் | Non-violent resistance |
खलबली | हलचल, उत्तेजना | குழப்பம் | Commotion, flutter |
तहकीकात | जाँच, खोज | விசாரணை | Investigation, inquiry |
विस्फोटक | विस्फोट करने वाला, उत्तेजक | வெடிப்பான | Explosive, sensational |
कोहराम | हंगामा, कोलाहल | கூச்சல் | Uproar, pandemonium |
भंडाफोड़ | राज खोलना, पर्दाफाश | ரகசியம் தெரிய வருதல் | Exposure, revelation |
सुरंग | गुप्त मार्ग | தோண்டல் | Tunnel, burrow |
सिरफिरा | पागल, उन्मादी | சீரழிந்த | Reckless, madcap |
रंगे हाथ | अपराध करते पकड़ा जाना | சிவந்த கையுடன் | Red-handed |
गँवार | अज्ञानी, ग्रामीण | அறியா மக்கள் | Ignoramus, rustic |
ठोपा | थोपना, लादना | அழுத்துதல் | Imposed, foisted |
बियाबान | जंगल, वीरान | வனமற்ற | Wilderness, desert |
‘बदला’ कहानी पर आधारित प्रश्न
- ‘बदला’ किसकी कहानी हैं?
उत्तर – ‘बदला’ कहानी मामूली लोगों के साथ होने वाले अन्याय, सरकारी अस्पतालों में व्याप्त घूसखोरी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक साधारण किसान-मजदूर कोटय्या के संघर्ष की कहानी है।
- ‘बदला’ कहानी के प्रमुख पात्रों के नाम बताइए।
उत्तर – ‘बदला’ कहानी के प्रमुख पात्रों के नाम हैं-
कोटय्या- कहानी का केंद्रीय पात्र, एक किसान मजदूर।
डॉक्टर पद्मा- धम्मपट्टनम अस्पताल की बड़ी डॉक्टर।
सुशीला- कोटय्या की पत्नी।
विजय (डॉक्टर)- एक लेडी डॉक्टर, जिसने शुरू में कोटय्या की पत्नी को भर्ती करवाया था (अनुच्छेद में लेडी डॉक्टर का नाम पद्मा दिया गया है, हालाँकि आगे चलकर बड़ी डॉक्टर पद्मा का जिक्र है, जो संभवतः वही पात्र हैं)।
- कोटय्या कैसा आदमी था?
उत्तर – कोटय्या एक मरा-पिटा किसान मजदूर था।
वह मामूली आदमी था, जिसे लेखक ने “अस्पताल के मामूली आदमियों से भी अधिक मामूली” बताया है।
वह हट्टा-कट्टा आदमी था, जो बाढ़ में अपनी ज़मीन खोने के बाद दूसरों की खेती में मजदूरी करता था।
वह ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन ‘निरा कालाक्षर भैंस बराबर’ भी नहीं था, क्योंकि वह अखबार बाँच लेता था।
वह सीधा-सादा, भोला-भाला और अस्पताल में पहली बार आने वाला व्यक्ति था, जो पैसे की करामात नहीं जानता था।
- कोटय्या कौन था?
उत्तर – कोटय्या धम्मपट्टनम से दूर रहने वाला एक किसान मजदूर था, जिसकी ज़मीन बाढ़ में कटकर नदी में मिल गई थी। वह अब दूसरों के खेतों में मजदूरी करता था।
- लेखक ने मामूल को मामूली बात के रूप में किस प्रकार जिक्र किया है?
उत्तर – लेखक ने ‘मामूल’ (घूस या रिश्वत) को मामूली बात के रूप में इस प्रकार ज़िक्र किया है-
आम और प्रचलित- अस्पताल में कदम-कदम पर घूसखोरी, भ्रष्टाचार था और दिन-दहाड़े ‘मालूम’ वसूला जाता था, जो वहाँ के कर्मचारियों की नज़र में मामूली बात थी।
छोटी रकम- घूस की रकम भी मामूली होती थी—ज़्यादा-से-ज़्यादा पाँच-दस रुपये।
आदत- यह लेना-देना इतना आम था कि किसी को गैर-मामूली नहीं लगता था। लोग देन के आदी हो गए थे, तो कर्मचारी लेने के आदी।
परिणामहीनता- यह भ्रष्टाचार इतना सामान्य था कि अगर कोटय्या हो हल्ला न करता, तो शायद कोई इन सब बातों के बारे में सोचता भी न।
- कोटय्या की पत्नी का दशा कैसी थी?
उत्तर – कोटय्या की पत्नी गर्भवती थी और उसे नवाँ महीना लगा हुआ था। उसकी दशा गंभीर थी-
उसके पैर सूज गए थे।
रक्तचाप भी बढ़ गया था।
और भी कितनी ही उलझनें थीं।
अस्पताल में घुसते ही वह बेहोश हो गई थी।
- अस्पताल गाँव से कितनी दूरी पर था?
उत्तर – कोटय्या का गाँव धम्मपट्टनम अस्पताल से लगभग बीस मील की दूरी पर था, क्योंकि बीस मील तक कोई और अस्पताल या डॉक्टर नहीं था।
- कोटय्या के अस्पताल के अंदर जाने मामूल के रूप में कितने रुपए देने पड़े?
उत्तर – कोटय्या को अस्पताल के अंदर जाने के लिए दरबान को चवन्नी (चार आना) हाथ में थमानी पड़ी थी।
- मरीज के इलाज के लिए लोगों को क्या-क्या करना पड़ता है?
उत्तर – कहानी के अनुसार, धम्मपट्टनम के सरकारी अस्पताल में मरीज के इलाज के लिए लोगों को बहुत कुछ करना पड़ता था-
घूस देना- मरीज को दाखिल करने, इलाज करने या खारिज करने के लिए कदम-कदम पर घूसखोरी करनी पड़ती थी।
मिन्नतें करना- कोटय्या को अस्पताल में घुसने के लिए दरबान से बहुत मिन्नतें करनी पड़ीं और पत्नी के बेहोश होने पर लोगों से मनाना, हाथ जोड़ना, और पैरों पर पड़ना पड़ा।
सहानुभूति की कमी- लोगों को ‘मामूल’ देने के लिए तैयार रहना पड़ता था, क्योंकि बिना ‘मामूल’ के तो वहाँ मुर्दे भी नहीं हटाए जाते थे।
- जब पत्नी का इलाज समय पर नहीं हुआ तो कोटय्या ने क्या किया?
उत्तर – जब पत्नी का इलाज समय पर नहीं हुआ और उसकी मृत्यु हो गई, तो कोटय्या ने पहले तो बिलखते और सिसकते हुए अपनी पत्नी का शव गाड़ी में ही गाँव ले गया।
इसके बाद, दुःख और रोष से भरा हुआ उसने प्रतिकार का निश्चय किया-
उसने अपनी पत्नी का दहन संस्कार किया।
तेरहवीं के होते ही, वह धम्मपट्टनम वापस चला आया।
उसने अस्पताल के सामने नीम के पेड़ के नीचे भूख हड़ताल (सत्याग्रह) शुरू कर दी।
उसने एक कपड़े पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा “इस अस्पताल से प्राणखाऊ घूसखोरी हटाओ।”
- अस्पताल के डॉक्टरों का गैर-जिम्मेदारी के कारण नतीजा क्या हुआ?
उत्तर – अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों की गैर-जिम्मेदारी और घूसखोरी के कारण कोटय्या की पत्नी सुशीला को समय पर इलाज नहीं मिला और प्रसव के पहले ही उसके प्राण चले गए।
- कोटय्या ने सत्याग्रह क्यों किया?
उत्तर – कोटय्या ने सत्याग्रह (भूख हड़ताल) इसलिए किया क्योंकि-
पत्नी की मृत्यु- उसकी पत्नी की मृत्यु अस्पताल में इलाज के अभाव और कर्मचारियों की घूसखोरी के कारण हुई थी, जहाँ बिना ‘मामूल’ के मुर्दे भी नहीं हटाए जाते थे।
रोष और प्रतिकार- इस अन्याय से उपजे दुःख और रोष ने उसे प्रतिकार के लिए प्रेरित किया। उसने ठान लिया कि वह मरते-मरते दुनिया की आँखें खोलता जाएगा।
भ्रष्टाचार का अंत- वह चाहता था कि घूसखोरी समाप्त हो और बिना घूस-रिश्वत के हर किसी का इलाज हो।
- कोटय्या क्या चाहता था?
उत्तर – कोटय्या केवल इतना चाहता था कि-
वह किसी का तबादला वगैरह नहीं चाहता था।
वह चाहता था कि सारे मामले की पूरी तहकीकात हो।
और इंतजाम हो कि बिना घूस रिश्वत के हर किसी का इलाज हो।
- कोटय्या की बातें सुनकर सरकार ने क्या किया?
उत्तर – पहले तो सरकार ने तहकीकात करने में आनाकानी की।
लेकिन जब-
समाचार-पत्रों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध खबरें छपने लगीं।
शहर के नेता और छोटी-मोटी भीड़ कोटय्या के पास जमा होने लगी।
स्थानीय दबाव बढ़ गया।
तब सरकार तहकीकात के लिए मान गई।
- सत्याग्रह के कारण कोटय्या की दशा क्या हुई?
उत्तर – सत्याग्रह के कारण कोटय्या की दशा बहुत नाज़ुक हो गई थी-
वह दिन प्रतिदिन कमज़ोर होता जा रहा था।
उसकी हालत अब और तब की (यानी मौत के करीब) हो गई थी।
उसे स्वास्थ्य सुधार के लिए उसी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
- कोटय्या का चरित्र-चित्रण लिखिए।
उत्तर – कोटय्या ‘बदला’ कहानी का नायक है, जिसका चरित्र साधारणता, करुणा, दृढ़ निश्चय और सामाजिक आक्रोश का मिश्रण है।
साधारण किसान- वह एक मरा-पिटा किसान-मजदूर है, जो अपनी ज़मीन खो चुका है। वह कम पढ़ा-लिखा और भोला है, जो शहर और अस्पताल के ‘मामूल’ से अपरिचित है।
भावुक और प्रेमी पति- अपनी पत्नी की मृत्यु पर वह बिलखता, सिसकता है और कहता है कि पत्नी ही उसके लिए सब कुछ थी।
दृढ़ निश्चयी सत्याग्रही- पत्नी की मृत्यु के अन्याय से उपजे दुःख और रोष ने उसे दृढ़ निश्चय वाला बना दिया। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ भूख हड़ताल करता है और अपनी मांगों पर अटल रहता है कि केवल तबादला नहीं, बल्कि पूरी तहकीकात होनी चाहिए।
नैतिकता का प्रतीक- वह निर्दोष होते हुए भी बलि का बकरा बनाया जाता है। कहानी के अंत में उसका गला फाड़कर “मैं निर्दोष हूँ” चिल्लाना, ईमानदार व्यक्ति की लाचारी और व्यवस्था के अंधकार को दर्शाता है।
संक्षेप में, कोटय्या शोषित, पीड़ित जनता का प्रतीक है जो व्यक्तिगत दुःख के बल पर सामाजिक लड़ाई लड़ने का साहस करता है, पर अंत में भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार हो जाता है।
- डॉक्टर पद्मा के बरे में पाँच वाक्य लिखिए।
उत्तर – डॉक्टर पद्मा धम्मपट्टनम अस्पताल की बड़ी डॉक्टर थीं। उनके बारे में पाँच वाक्य-
वे अस्पताल की बड़ी डॉक्टर थीं, जिनके मातहत बहुत से नर्स, क्लर्क, आदि काम करते थे।
वे विनम्रता और पद के कारण खुद को कभी-कभी मामूली बताती थीं, पर उनके नाम पर और उनकी नाक के नीचे घूसखोरी और गंदगी होती थी, जिससे वे आँखें मूंदे बैठी रहती थीं (शायद ‘मामूल’ का हिस्सा उन तक पहुँच जाता था)।
उन्होंने कोटय्या की पत्नी को भर्ती करने में मेहरबानी दिखाई, पर बाद में कोटय्या के सत्याग्रह के समय अफसोस जताकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की कोशिश की।
तहकीकात के दौरान वे घबरा गईं और कई ऐसे जवाब दे गई जिससे औरों की नौकरी पर भी आँच आने की संभावना हुई, क्योंकि वे अस्पताल में फैले भ्रष्टाचार की पूरी जानकारी के लिए तैयार नहीं थीं।
अंत में, जब उनका भंडाफोड़ होने की संभावना बनी, तो किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा अस्पताल में ही उनकी हत्या कर दी गई और अपराध एक निर्दोष कोटय्या के सिर पर मढ़ दिया गया।
- ‘बदला’ कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर – कहानी “बदला” धम्मपट्टनम के सरकारी अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार और घूसखोरी की पृष्ठभूमि पर आधारित है। गरीब किसान कोटय्या अपनी गर्भवती पत्नी सुशीला को इलाज के लिए लाता है, लेकिन मामूली घूस न देने से उसे भरती नहीं किया जाता और वह प्रसव से पहले मर जाती है। कोटय्या भूख हड़ताल कर अस्पताल के भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह करता है। इससे जाँच शुरू होती है, जो डॉक्टर पद्मा और कर्मचारियों के कारनामों को उजागर करती है। लेकिन रात में पद्मा की हत्या हो जाती है और सबूत कोटय्या पर मढ़ दिए जाते हैं। वह निर्दोष होने का चिल्लाता है, लेकिन अस्पताल के ‘मामूली’ लोग मुस्कुराते हुए इसे दबा देते हैं। कहानी सामाजिक अन्याय और व्यवस्था की गंदगी पर तीखा व्यंग्य करती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
कहानी का मुख्य विषय क्या है?
a) प्रेम कहानी
b) अस्पताल में भ्रष्टाचार
c) किसान जीवन
d) राजनीति
उत्तर- b) अस्पताल में भ्रष्टाचार
कोटय्या का पेशा क्या है?
a) डॉक्टर
b) मजदूर किसान
c) क्लर्क
d) दुकानदार
उत्तर- b) मजदूर किसान
कोटय्या की पत्नी का नाम क्या है?
a) पद्मा
b) सुशीला
c) आरिगपूडी
d) नर्स
उत्तर- b) सुशीला
अस्पताल में प्रवेश के लिए कोटय्या ने दरबान को क्या दिया?
a) दस रुपये
b) चवन्नी
c) कुछ नहीं
d) बैलगाड़ी
उत्तर- b) चवन्नी
डॉक्टर पद्मा ने कोटय्या की पत्नी को क्या किया?
a) इलाज किया
b) भरती करवाया
c) नजरअंदाज किया
d) घूस मांगा
उत्तर- b) भरती करवाया
कोटय्या ने अस्पताल के बाहर क्या किया?
a) भूख हड़ताल
b) सत्याग्रह
c) नारे लगाए
d) सब a और b
उत्तर- d) सब a और b
कोटय्या के धरने पर क्या लिखा था?
a) घूस हटाओ
b) प्राणखाऊ घूसखोरी हटाओ
c) न्याय दो
d) डॉक्टर बदलो
उत्तर- b) प्राणखाऊ घूसखोरी हटाओ
तहकीकात के दौरान क्या हुआ?
a) डॉक्टर का तबादला
b) भ्रष्टाचार उजागर
c) कोटय्या की रिहाई
d) कुछ नहीं
उत्तर- b) भ्रष्टाचार उजागर
डॉक्टर पद्मा की हत्या कैसे हुई?
a) रात में चाकू से
b) दिन में गोली से
c) हादसे में
d) जहर से
उत्तर- a) रात में चाकू से
हत्या का हथियार क्या था?
a) सर्जिकल नाइफ
b) चाकू
c) बंदूक
d) लाठी
उत्तर- a) सर्जिकल नाइफ
कोटय्या पर हत्या का आरोप क्यों लगा?
a) उसकी गवाही
b) सबूत उसके पास मिले
c) डॉक्टर ने कहा
d) नेता ने लगाया
उत्तर- b) सबूत उसके पास मिले
अस्पताल के कर्मचारी अंत में क्या कर रहे थे?
a) रो रहे थे
b) मुस्कुरा रहे थे
c) भाग रहे थे
d) मदद कर रहे थे
उत्तर- b) मुस्कुरा रहे थे
कोटय्या की पत्नी की मृत्यु कब हुई?
a) प्रसव के बाद
b) प्रसव से पहले
c) इलाज के दौरान
d) अस्पताल के बाहर
उत्तर- b) प्रसव से पहले
कोटय्या गाँव से कितनी दूर अस्पताल लाया?
a) दस मील
b) बीस मील
c) पचास मील
d) सौ मील
उत्तर- b) बीस मील
डॉक्टर पद्मा को गवाही के दौरान क्या महसूस हुआ?
a) खुशी
b) घबराहट
c) गर्व
d) उदासीनता
उत्तर- b) घबराहट
कोटय्या ने तहकीकात में क्या मांगा?
a) तबादला
b) मुआवजा
c) घूस-रहित इलाज
d) नौकरी
उत्तर- c) घूस-रहित इलाज
कहानी में ‘मामूली’ शब्द का कितना उपयोग है?
a) कभी-कभी
b) बार-बार व्यंग्य के लिए
c) अंत में
d) शुरुआत में
उत्तर- b) बार-बार व्यंग्य के लिए
कोटय्या को अस्पताल में भर्ती क्यों किया गया?
a) इलाज के लिए
b) हड़ताल तोड़ने के बाद कमजोरी
c) हत्या के बाद
d) जाँच के लिए
उत्तर- b) हड़ताल तोड़ने के बाद कमजोरी
डॉक्टर पद्मा का अंत कैसा हुआ?
a) तबादला
b) हत्या
c) इस्तीफा
d) छुट्टी
उत्तर- b) हत्या
कहानी का अंतिम दृश्य क्या दर्शाता है?
a) न्याय की जीत
b) व्यवस्था की गंदगी
c) कोटय्या की जीत
d) डॉक्टर की माफी
उत्तर- b) व्यवस्था की गंदगी
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न- कहानी “बदला” की लेखिका कौन हैं?
उत्तर- कहानी “बदला” की लेखिका आरिगपूडी हैं, जो आधुनिक हिंदी कहानीकारों में एक प्रमुख स्थान रखती हैं। - प्रश्न- कहानी “बदला” का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर- कहानी का मुख्य विषय है – समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और एक साधारण व्यक्ति की प्रतिरोध की भावना। - प्रश्न- कहानी की घटना किस स्थान पर घटित होती है?
उत्तर- कहानी की घटना धम्मपट्टनम नामक स्थान के एक सरकारी अस्पताल में घटित होती है। - प्रश्न- धम्मपट्टनम का अस्पताल कैसा था?
उत्तर- धम्मपट्टनम का अस्पताल उस इलाके का सबसे बड़ा था, परंतु वहाँ हर काम घूस और भ्रष्टाचार के बिना नहीं होता था। - प्रश्न- अस्पताल में किसे मामूली कहा गया है?
उत्तर- अस्पताल के क्लर्क, नर्स, भंगी और छोटे कर्मचारी स्वयं को मामूली लोग कहते थे। - प्रश्न- कहानी का नायक कौन है?
उत्तर- कहानी का नायक कोटय्या है, जो एक गरीब किसान-मज़दूर है। - प्रश्न- कोटय्या का जीवन कैसा था?
उत्तर- कोटय्या बहुत गरीब था; पहले उसके पास एक-डेढ़ एकड़ ज़मीन थी, पर बाढ़ में वह भी बह गई थी। - प्रश्न- कोटय्या की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर- कोटय्या की पत्नी का नाम सुशीला था। - प्रश्न- सुशीला को क्या बीमारी थी?
उत्तर- सुशीला गर्भवती थी और नवें महीने में उसके पैर सूज गए थे तथा रक्तचाप बढ़ गया था। - प्रश्न- कोटय्या अपनी पत्नी को कहाँ ले गया?
उत्तर- कोटय्या अपनी पत्नी को इलाज के लिए धम्मपट्टनम के अस्पताल में ले गया। - प्रश्न- अस्पताल पहुँचने पर कोटय्या को किसने रोका?
उत्तर- अस्पताल के फाटक पर दरबान ने उसे रोका और चवन्नी लेने के बाद अंदर जाने दिया। - प्रश्न- सुशीला अस्पताल में पहुँचते ही क्यों बेहोश हो गई?
उत्तर- लंबी यात्रा और कमजोरी के कारण सुशीला अस्पताल पहुँचते ही बेहोश हो गई। - प्रश्न- कोटय्या ने किस डॉक्टर से मुलाकात की?
उत्तर- कोटय्या की पत्नी का इलाज डॉक्टर पद्मा के अधीन होना था। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा ने क्या किया?
उत्तर- डॉक्टर पद्मा ने सुशीला को अस्पताल में भर्ती करने का आदेश दिया। - प्रश्न- सुशीला की मृत्यु कब हुई?
उत्तर- प्रसव से पहले ही सुशीला की मृत्यु हो गई क्योंकि उसका उचित इलाज नहीं किया गया था। - प्रश्न- सुशीला की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर- उचित इलाज और ध्यान न मिलने के कारण सुशीला की मृत्यु हो गई। - प्रश्न- अस्पताल के कर्मचारियों का व्यवहार कैसा था?
उत्तर- अस्पताल के कर्मचारी घूसखोर और निर्दयी थे; वे केवल पैसों के लिए मरीजों की परवाह करते थे। - प्रश्न- पत्नी की मृत्यु के बाद कोटय्या ने क्या किया?
उत्तर- कोटय्या अपनी पत्नी का शव गाड़ी में रखकर गाँव ले गया और अंतिम संस्कार किया। - प्रश्न- कोटय्या की मन- स्थिति कैसी थी?
उत्तर- पत्नी की मृत्यु से कोटय्या पूरी तरह टूट गया और प्रतिकार की भावना उसके मन में पैदा हो गई। - प्रश्न- कोटय्या ने प्रतिरोध का कौन-सा तरीका अपनाया?
उत्तर- कोटय्या ने अस्पताल के सामने भूख हड़ताल और धरना शुरू किया। - प्रश्न- कोटय्या ने धरना कहाँ दिया?
उत्तर- उसने अस्पताल के फाटक के पास नीम के पेड़ के नीचे धरना दिया। - प्रश्न- कोटय्या के बैनर पर क्या लिखा था?
उत्तर- उसके बैनर पर लिखा था — “इस अस्पताल से प्राणखाऊ घूसखोरी हटाओ।” - प्रश्न- पहले कुछ दिनों में जनता की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर- पहले कुछ दिनों में किसी ने कोटय्या की परवाह नहीं की और सब उसे पागल समझते रहे। - प्रश्न- कोटय्या की हालत कब गंभीर हो गई?
उत्तर- कई दिनों की भूख हड़ताल से कोटय्या बहुत कमजोर और असहाय हो गया। - प्रश्न- समाचार पत्रों ने कोटय्या के बारे में क्या छापा?
उत्तर- समाचार पत्रों में भ्रष्टाचार और कोटय्या के सत्याग्रह की खबरें छपने लगीं। - प्रश्न- नेताओं ने कोटय्या से मिलने पर क्या किया?
उत्तर- नेताओं ने उसकी शिकायत सुनी और सरकार तक यह मामला पहुँचाया। - प्रश्न- सरकार ने क्या कदम उठाया?
उत्तर- सरकार ने अस्पताल की जाँच के लिए एक समिति गठित की। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा की भूमिका जाँच में कैसी रही?
उत्तर- डॉक्टर पद्मा को जाँच समिति के सामने गवाही के लिए बुलाया गया। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा किस बात से घबराईं?
उत्तर- वे इस बात से घबराईं कि अस्पताल की सारी गड़बड़ियाँ उजागर हो रही थीं। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा को क्यों दोषी माना गया?
उत्तर- क्योंकि उनके ज्ञान और अनुमति से अस्पताल में रिश्वतखोरी हो रही थी और वे जानबूझकर आँखें मूँदे बैठी थीं। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा को गवाही देने में कैसी कठिनाई आई?
उत्तर- उन्होंने पहले छुट्टी और बीमारी का बहाना किया, लेकिन अंत में उन्हें गवाही देनी ही पड़ी। - प्रश्न- गवाही के बाद अस्पताल में क्या माहौल बन गया?
उत्तर- अस्पताल और पूरे शहर में सनसनी फैल गई और सभी भ्रष्ट लोगों की पोल खुलने लगी। - प्रश्न- डॉक्टर पद्मा के साथ अंत में क्या हुआ?
उत्तर- एक रात डॉक्टर पद्मा की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई। - प्रश्न- हत्या का आरोप किस पर लगाया गया?
उत्तर- हत्या का आरोप कोटय्या पर लगाया गया। - प्रश्न- कोटय्या के विरुद्ध क्या सबूत पाए गए?
उत्तर- उसके पास खून से सनी सर्जिकल नाइफ और कपड़ों पर खून के धब्बे पाए गए। - प्रश्न- क्या कोटय्या ने अपराध स्वीकार किया?
उत्तर- नहीं, कोटय्या बार-बार चिल्लाता रहा कि वह निर्दोष है और हत्या उसने नहीं की। - प्रश्न- पुलिस और अस्पताल कर्मचारियों ने क्या किया?
उत्तर- उन्होंने झूठे सबूतों से कोटय्या को दोषी ठहरा दिया ताकि असली अपराधियों पर से पर्दा न उठे। - प्रश्न- कहानी के अंत में क्या व्यंग्य छिपा है?
उत्तर- कहानी के अंत में व्यंग्य यह है कि जहाँ बड़ी-बड़ी गलतियाँ भी मामूली समझी जाती हैं, वहाँ एक निर्दोष की हत्या भी मामूली घटना मानी गई। - प्रश्न- कहानी “बदला” का नैतिक संदेश क्या है?
उत्तर- कहानी का संदेश है कि भ्रष्ट व्यवस्था में सच्चाई और ईमानदारी को अक्सर कुचल दिया जाता है, पर अंततः अन्याय टिकता नहीं। - प्रश्न- कहानी “बदला” का शीर्षक कैसे सार्थक है?
उत्तर- कहानी में “बदला” केवल हत्या नहीं, बल्कि व्यवस्था के खिलाफ एक प्रतीकात्मक प्रतिरोध है — यह आम आदमी के आत्मसम्मान और न्याय की पुकार का प्रतीक बनता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न: कहानी “बदला” का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर: कहानी “बदला” समाज में व्याप्त घूसखोरी और भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार करती है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार गरीब और असहाय व्यक्ति, कोटय्या, अन्याय के विरुद्ध खड़ा होता है और भ्रष्ट व्यवस्था से टकराकर भी अपने आत्मसम्मान को जीवित रखता है। - प्रश्न: कोटय्या की पत्नी की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: कोटय्या की पत्नी सुशीला गर्भवती थी। अस्पताल में दाखिला होने के बाद उसका कोई इलाज नहीं किया गया। डॉक्टरों और नर्सों की लापरवाही के कारण प्रसव से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना अस्पताल की भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करती है। - प्रश्न: धम्मपट्टनम के अस्पताल में कैसी स्थिति थी?
उत्तर: अस्पताल पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबा था। बिना रिश्वत के कोई भी काम नहीं होता था—मरीजों को भर्ती करना, इलाज करना या छुट्टी देना सब “मामूल” यानी रिश्वत पर निर्भर था। यह व्यवस्था गरीबों के लिए अत्यंत अपमानजनक थी। - प्रश्न: कोटय्या ने भ्रष्टाचार के विरोध में क्या किया?
उत्तर: पत्नी की मृत्यु के बाद कोटय्या ने अस्पताल के सामने भूख हड़ताल शुरू की। वह चाहता था कि अस्पताल से घूसखोरी खत्म हो और सबको समान इलाज मिले। उसकी हड़ताल ने धीरे-धीरे समाज और सरकार का ध्यान आकर्षित किया। - प्रश्न: डॉक्टर पद्मा की भूमिका कहानी में क्या रही?
उत्तर: डॉक्टर पद्मा अस्पताल की प्रमुख डॉक्टर थीं। उनके अधीन भ्रष्टाचार पनप रहा था। वे सब कुछ जानती थीं, पर आँखें मूँदकर बैठी रहीं। बाद में जाँच के दौरान उन्हीं पर सवाल उठे और अंततः उनकी हत्या हो गई। - प्रश्न: कोटय्या को डॉक्टर पद्मा की मृत्यु का दोषी क्यों ठहराया गया?
उत्तर: डॉक्टर पद्मा की हत्या के बाद पुलिस ने अस्पताल के पास कोटय्या को गिरफ्तार किया। उसके कपड़ों पर खून के धब्बे और एक सर्जिकल नाइफ मिलने से उसे दोषी ठहरा दिया गया, जबकि वह निर्दोष था और फँसाया गया था। - प्रश्न: कहानी में ‘मामूली’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
उत्तर: ‘मामूली’ शब्द यहाँ व्यंग्यात्मक रूप में प्रयुक्त हुआ है। अस्पताल के भ्रष्ट कर्मचारी हर अपराध, रिश्वत और लापरवाही को “मामूली बात” कहकर टाल देते हैं। वास्तव में, यह ‘मामूलीपन’ समाज की नैतिक पतन की निशानी है। - प्रश्न: कोटय्या की भूख हड़ताल का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर: कोटय्या की हड़ताल से लोगों का ध्यान अस्पताल की भ्रष्ट व्यवस्था की ओर गया। मीडिया और नेता इसमें शामिल हुए। सरकार ने जाँच समिति बनाई, जिससे अस्पताल के गुप्त घोटाले उजागर होने लगे। - प्रश्न: कहानी के अंत में व्यंग्य कहाँ प्रकट होता है?
उत्तर: कहानी के अंत में यह व्यंग्य है कि जहाँ बड़ी-बड़ी गलतियाँ भी “मामूली” समझी जाती हैं, वहाँ एक निर्दोष की हत्या भी मामूली घटना मानी जाती है। यह समाज की असंवेदनशीलता और नैतिक गिरावट का प्रतीक है। - प्रश्न: कहानी का शीर्षक “बदला” क्यों उपयुक्त है?
उत्तर: “बदला” केवल हत्या का संकेत नहीं देता, बल्कि यह अन्याय, भ्रष्टाचार और असमानता के विरुद्ध एक प्रतीकात्मक प्रतिरोध है। कोटय्या का संघर्ष समाज के भीतर छिपे ‘मामूल’ तंत्र के खिलाफ जागृति का प्रतीक बन जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न: कहानी “बदला” किस प्रकार समाज के भ्रष्ट तंत्र का पर्दाफाश करती है?
उत्तर: कहानी “बदला” सरकारी अस्पताल के माध्यम से पूरे समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और घूसखोरी का खुलासा करती है। अस्पताल में बिना पैसे के मरीजों का इलाज नहीं होता। कोटय्या की पत्नी की मृत्यु इस लापरवाही की परिणति है। कोटय्या का प्रतिरोध बताता है कि आम आदमी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकता है, भले ही परिणाम दुखद क्यों न हो। - प्रश्न: कोटय्या के चरित्र से लेखक ने क्या संदेश देने की कोशिश की है?
उत्तर: कोटय्या एक गरीब, अशिक्षित किसान होते हुए भी अन्याय के विरुद्ध उठ खड़ा होता है। वह जानता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना कठिन है, फिर भी सत्य और न्याय के लिए वह अपनी जान जोखिम में डाल देता है। लेखक यह संदेश देते हैं कि सच्चा साहस सत्ता या धन से नहीं, बल्कि अंतःकरण की शक्ति से आता है। - प्रश्न: कहानी में डॉक्टर पद्मा का चरित्र किन विरोधाभासों को प्रकट करता है?
उत्तर: डॉक्टर पद्मा शिक्षित, उच्च पद पर आसीन और संवेदनशील दिखने वाली महिला हैं, लेकिन भीतर से स्वार्थी और बेपरवाह हैं। वे अस्पताल की भ्रष्ट गतिविधियों को जानते हुए भी चुप रहती हैं। अंततः उनकी ही निष्क्रियता और स्वार्थ उन्हें विनाश की ओर ले जाते हैं। यह चरित्र सत्ता में बैठे लोगों की नैतिक कमजोरी को उजागर करता है। - प्रश्न: कहानी का अंत समाज के लिए किस प्रकार आईना प्रस्तुत करता है?
उत्तर: कहानी का अंत समाज की निष्ठुरता को उजागर करता है। डॉक्टर पद्मा की हत्या के लिए निर्दोष कोटय्या को फँसाया जाता है, जबकि असली दोषी हँसते रहते हैं। यह दिखाता है कि जहाँ न्याय तंत्र कमजोर और भ्रष्ट हो, वहाँ सत्य को अपराधी बना दिया जाता है। यह अंत हमारे नैतिक पतन पर गहरा व्यंग्य करता है। - प्रश्न: कहानी “बदला” में शीर्षक का प्रतीकात्मक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: “बदला” शीर्षक केवल प्रतिशोध की भावना नहीं, बल्कि जागरूकता और प्रतिरोध का प्रतीक है। कोटय्या अपनी पत्नी की मृत्यु के लिए तंत्र से प्रतिशोध नहीं लेता, बल्कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होता है। अंत में वह स्वयं शिकार बन जाता है, पर उसका संघर्ष समाज के भीतर परिवर्तन की चिंगारी छोड़ जाता है।

