विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक
कथाकार विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक का जन्म अम्बाला छावनी में 1891 में हुआ। आप जब चार वर्ष के थे तब आपके दादाजी आपको कानपुर ले आए। आपने लगभग 300 कहानियाँ लिखी हैं।
कथाकार विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की गणना प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, गुलेरी के समकक्ष की जाती है। समस्त हिंदी कथा-साहित्य में अकेले ‘कौशिक’ जी ही ऐसे कथाकार हैं जो इस क्षेत्र में प्रेमचंद के अधिक निकट हैं। आधुनिक हिंदी कहानी के विकास में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान है व आप आधुनिक हिंदी कहानी निर्माताओं में से एक थे।
आपकी कहानी ‘ताई’ हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। ‘ताई’ कहानी में नारी की मनोवृति का सफल चित्रण किया गया है।
आपकी कहानियाँ उस समय की प्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसे ‘सरस्वती’, ‘माधुरी’ और ‘सुधा’ इत्यादि में प्रकाशित होती थीं।
कौशिक जी ‘विजयानन्द दुबे’ के नाम से ‘दुबेजी की चिट्टियाँ’ व ‘दुबे जी की डायरी’ भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं। उनका हास्य- साहित्य अपने समय में मौलिक व बेजोड़ था।
1945 में ‘कौशिक’ जी का निधन हो गया।
मुख्य साहित्यिक कृतियाँ-
उपन्यास- माँ, भिखारिणी
कहानी संग्रह- खोटा बेटा, पेरिस की नर्तकी, साध की होली, चित्रशाला, मणिमाला, कल्लोल
रक्षा बंधन
“माँ, मैं भी राखी बाँधूँगी।”
श्रावण की धूम है। नगरवासी स्त्री-पुरुष बड़े आनंद तथा उत्साह से श्रावणी का उत्सव मना रहे हैं। बहनें भाइयों की और ब्राह्मण अपने यजमानों के यहाँ राखियाँ बाँध बाँधकर चाँदी कर रहे हैं। ऐसे ही समय एक छोटे-से घर में एक दस वर्ष की बालिका ने अपनी माता से कहा- माँ मैं भी राखी बाँधूँगी।
उत्तर में माता ने एक ठंडी साँस भरी और कहा – किसको बांधेगी बेटी, आज तेरा भाई होता तो…….
माता आगे कुछ न कह सकीं। उसका गला रुँध गया, नैन अश्रुपूर्ण हो गए।
अबोध बालिका ने इठलाकर कहा- तो क्या भइया के हो राखी बांधी जाती है और किसी को नहीं? भइया नहीं है तो अम्मा, मैं तुम्हारे ही राखी बाँधूँगी।
इस दुःख के समय भी पुत्री की बात सुनकर माता मुसकुराने लगी और बोली- अरी, तू इतनी बड़ी हो गई। भला कहीं माँ के भी राखी बाँधी जाती है?
बालिका ने कहा- वाह, जो पैसा दे उसी के राखी बाँधी जाती है।
माता- अरी कँगली। पैसे भर के नहीं भाई ही के राखी बांधी जाती है।
बालिका उदास हो गई।
माता घर का काम-काज करने लगी। घर का काम पूरा करके उसने पुत्री से कहा- आ, तुझे नहला दूँ।
बालिका मुख गंभीर करके बोली- मैं नहीं नहाऊँगी।
माता- क्यों, नहाएगी क्यों नहीं?
बालिका- मुझे क्या किसके राखी बाँधनी है?
माता-अरी, राखी नहीं बाँधनी है, तो क्या नहावेगी भी नहीं? आज त्यौहार का दिन है। चल, उठ नहा।
बालिका- राखी नहीं बाँधूंगी, तो तिवहार काहे का?
माता- (कुछ कृद्ध होकर) अरी, कुछ …… हो गई है? राखी राखी रट लगी रखी है। बड़ा राखी बाँधना वाली बनी है।
ऐसा ही होता तो आज यह दिन देखना पड़ता? पैदा होते ही बाप को खो बैठी। ढाई बरस की होते-होते भाई का घर छुड़ा दिया। तेरे ही कर्मों से ये सब त्रास (नाश) हो गया।
बालिका बड़ी अप्रतिभ हुई और आँखों में आँसू भरे हुए चुपचाप नहाने को उठ खड़ी हुई।
एक घंटा पश्चात हम उसी बालिका को उसके घर के द्वार पर खड़ी देखते हैं। इसी समय भी उसके सुंदर मुख पर उदासी विद्यमान है। अब भी उसके बड़े-बड़े नेत्रों में पानी छलछला रहा है।
परंतु बालिका इस समय द्वार पर क्यों? जान पड़ता है, वह किसी कार्यवश खड़ी है क्योंकि उसके द्वार के सामने से जब कांडे निकालता है, तब वह खड़ी उत्सुकता से उसकी ओर ताकने लगती है। मानो वह मुख से कुछ कहे बिना केवल इच्छा-शक्ति ही से उस पुरुष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की चेष्टा कर रही थी। परंतु जब उसे इसमें सफलता नहीं होती, तब उनकी उदासी बढ़ जाती है।
इसी प्रकार एक, दो, तीन करके कई पुरुष बिना उसकी ओर देखे निकल गए। अंत में बालिका निराश होकर घर के भीतर लौट जाने को उद्यत हुई थी कि एक सुंदर युवक की दृष्टि जो कुछ सोचता हुआ धीरे-धीरे जा रहा था, बालिका पर पड़ी। बालिका की आँखें युवक की आँखों से जा लगी। न जाने उन उदास तथा करुणा-पूर्ण नेत्रों में क्या जादू भरा था कि युवक ठिठककर खड़ा हो गया और बड़े ध्यान से पैर तक देखने लगा। ध्यान से देखने पर युवक को ज्ञान हुआ कि बालिका की आँखें अश्रुपूर्ण हैं। तब वह अधीर हो गया। निकट जाकर पूछा- बेटी, क्यों रोती हो?
बालिका इसका कुछ उत्तर न दे सकी। परंतु उसने अपना एक हाथ युवक की ओर बढ़ा दिया। युवक ने देखा, बालिका के हाथ में एक लाल डोरा है। उसने पूछा- यह क्या है? बालिका ने आँखें नीची करके उत्तर दिया- राखी। युवक समझ गया। उसने मुस्कुराकर अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ा दिया।
बालिका का मुख – कमल खिल उठा। उसने बड़े चाव से युवक के हाथ में राखी बाँध दी।
राखी बँधवा चुकने पर युवक ने जेब में हाथ डाला और दो रुपए निकालकर बालिका को देने लगा। परंतु बालिका ने उन्हें लेना स्वीकार न किया। बोली- नहीं, पैसे दो।
युवक – ये पैसे से भी अच्छे है।
बालिका – नहीं, मैं पैसे लूँगी, यह नहीं।
युवक – ले लो बिटिया। इसके पैसे मँगा लेना। बहुत से मिलेंगे।
बालिका – नहीं, पैसे दो।
युवक ने चार आने पैसे निकालकर कहा – अच्छा, ले पैस भी ले और यह भी ले।
बालिका – नहीं खाली पैसे लूँगी।
तुझे दोनों लेने पड़ेंगे। यह कहकर युवक ने बलपूर्वक पैसे तथा रुपए बालिका के हाथ पर रख दिए।
इतने में घर के भीतर से किसने पुकारा अरी सरखुनी कहाँ गई?
बालिका ने आयी कहकर युवक की ओर कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि डाली और चली गई।
गीलागंज (लखनऊ) की एक बड़ी तथा सुंदर अट्लिका के एक सुसज्जित कमरे में एक युवक चिन्ता-सागर में निमग्न बैठा है। तभी वह ठंडी साँस भरता है, कभी रुमाल से आँखें पोंछता है, कभी आप ही आप कहता है, हाँ, सारा परिश्रम व्यर्थ गया। सारी चेष्टाएँ निष्फल हुईं। क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? उन्हें कहाँ ढूंढूँ? सारा उन्नाव छान डाला, परंतु फिर भी पता न लगा। युवक आगे कुछ और कहने को था कि कमरे का द्वार धीरे-धीरे खुला और एक नौकर अंदर आया।
युवक ने कुछ विखत होकर पूछा, क्यों, क्यों है?
नौकर – सरकार, अमरनाथ बाबू आए हैं।
युवक – (संभलकर) अच्छा, यहीं भेज दो।
नौकर के जाने के बाद युवक ने रुमाल से आँखें पोंछ डाली और मुख पर गंभीरता लेने की चेष्टा करने लगा।
द्वार फिर खुला और एक युवक अंदर आया।
युवक – आओ भाई, अमरनाथ !
अमरनाथ – कहो घनश्याम, आज अकेले कैसे बैठे हो? कानपुर से कब लौटे?
घनश्याम – कल आया था।
अमरनाथ – उन्नाव ही अवश्य उतरे होगे?
घनश्याम – (एक ठंडी साँस भरकर) हाँ, उतरा था। परंतु व्यर्थ। वहाँ अब मेरा क्या रखा है?
अमरनाथ – परंतु करने क्या? हृदय नहीं मानता, क्यों? यदि तुम्हारे स्थान पर मैं होता, तो मैं भी ऐसा ही करता।
घनश्याम – क्या कहूँ मित्र, मैं तो हार गया। तुम तो जानते ही हो कि मुझे लखनऊ आकर रहे एक वर्ष हो गया और जब से यहाँ आया हूँ उन्हें ढूंढने में कुछ भी कसर उठा नहीं रखी, परंतु सब व्यर्थ।
अमरनाथ – उन्होंने उन्नाव न जान क्यों छोड़ दिया और कब छोड़ा इसका भी कोई पता नहीं चलना।
घनश्याम – इसका तो पता चल गया न कि वे लोग मेरे चले जाने के एक वर्ष पश्चात उन्नाव से चले गए। परंतु कहाँ गए, यह नहीं मालूम।
अमरनाथ – यह किससे मालूम हुआ?
घनश्याम – उसी मकानवाले से, जिसके मकान में हम लोग रहते थे।
अमरनाथ – हाँ शोक।
घनश्याम – कुछ नहीं, यह सब मेरे ही कर्मों का फल है। यदि मैं उन्हें छोड़कर न जाता, यदि गया था, तो भी उनकी खोज-खबर लेता रहता। परंतु मैं तो दक्षिण जाकर रुपया कमाने में इतना व्यस्त रहा कि कभी याद ही न आया। और जो आई भी तो क्षण मात्र के लिए। उफ, कोई भी अपने घर को भूल जाता है? मैं ही ऐसा अधम………
अमरनाथ – (बात काटकर) अजी नहीं, सब समय की बात है।
घनश्याम – मैं दक्षिण न जाता तो अच्छा था।
अमरनाथ – तुम्हारा दक्षिण जाना तो व्यर्थ नहीं हुआ। यदि न जाने तो इतना धन …….
घनश्याम – अजी, चूल्हे में जाए धन ऐसा धन किस काम का? मेरे हृदय में सुख-शांति नहीं तो धन किस मर्ज की दवा है?
अमरनाथ – ऐं, यह हाथ में लाल डोरा क्यों बाँधा है?
घनश्याम – इसकी तो बात ही भूल गया। यह राखी है।
अमरनाथ – भई, वाह। अच्छी राखी है।
लाल डोरे को राखी बताते हो। यह किसने बाँधी है? किसी बड़े कंजूस ब्राह्मण ने एक पैसा तक खरचना पाप समझा। डोरे ही से काम निकाला।
घनश्याम – संसार में यदि कोई बढ़िया से बढ़िया राखी बन सकती है, तो मुझे उससे भी कहीं अधिक प्यारा यह लाल डोरा है।
यह कहकर घनश्याम ने उसे खोलकर बड़े यत्नपूर्वक अपने बक्स में रख लिया।
अमरनाथ – भई, तुम भी विचित्र मनुष्य हो। आखिर यह डोरा बाँधा किसने है?
घनश्याम – एक बालिका ने।
अमरनाथ – बालिका ने कैसे बाँधा और कहाँ?
घनश्याम – कानपुर में।
घनश्याम ने सारी घटना कह सुनाई।
अमरनाथ – यदि यह बात है तो सत्य ही यह डोरा अमूल्य है।
घनश्याम – न जाने क्यों, उस बालिका का ध्यान मेरे मन से नहीं उतरता।
अमरनाथ – उसकी सरलता तथा प्रेम ने तुम्हारे हृदय पर प्रभाव डाला है। भला उसका नाम क्या है?
घनश्याम – नाम तो मुझे नहीं मालूम भीत से किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा था। परंतु मैं सुन न सका।
अमरनाथ – अच्छा, खैर। अब तुमने क्या करना विचारा है?
घनश्याम – धैर्य रखकर चुपचाप बैठने के अतिरिक्त और मैं कर ही क्या सकता हूँ? मुझसे जो हो सका, मैं कर चुका।
अमरनाथ – हाँ, यही ठीक भी है। ईश्वर पर छोड़ दो, देखो, क्या होता है।
पूर्वोत्तर घटना हुई पाँच वर्ष व्यतीत हो गए। घनश्याम पिछली बातें प्रायः भूल गए हैं। परंतु उस बालिका की याद कभी-कभी आ जाती है। उसे देखने वे एक बार कानपुर भी गए थे। परंतु उसका पता न चला उस घर में पूछने पर ज्ञान हुआ कि वह वहाँ से अपनी माता सहित, बहुत दिन हुए न जाने कहाँ चली गई।
इसके पश्चात ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, उसका ध्यान भी कम होता गया। पर अब भी जब वे अपना बक्स खोलते हैं, तब कोई वस्तु देखकर चौंक पड़ते हैं और खास ही कोई पुराना दृश्य भी आँखों के सामने आ जाता है।
घनश्याम अभी तक अविवाहित है। पहले तो उन्होंने निश्चय कर लिया था कि विवाह करेंगे ही नहीं। पर मित्रों के कहने और स्वयं अपने अनुभव ने उनका यह विचार बदल दिया। अब वे विवाह करने पर तैयार हैं। परंतु अभी तक कोई कन्या उनकी रुचि के अनुसार नहीं मिली।
जेठ का महीना है। दिन भर की जला देने वाली धूप के पश्चात सूर्यास्त के समय अत्यन्त सुखमयी प्रतीत हो रहा है। इस समय घनश्याम दास अपनी कोठी के बाग़ में मित्रों सहित बैठे मंद-मंद शीतल वायु का आनंद ले रहे हैं। आपस में हास्य-रस पूर्ण बातें हो रही हैं। बातें करते-करते एक मित्र ने कहा- अजी, अभी तक अमरनाथ नहीं आए?
घनश्याम – वह मनमौजी आदमी हैं। कहीं रम गया होगा।
दूसरा – नहीं रमा नहीं, वह आजकल तुम्हारे लिए वर ढूँढने की चिंता में रहता है।
घनश्याम – बड़े दिल्लगीबाज हो।
दूसरा – नहीं, दिल्लगी की बात नहीं है।
तीसरा – हाँ, परसों मुझसे भी वह कहता था कि घनश्याम का विवाह हो जाए, तो मुझे चैन पड़े।
ये बातें हो रही थी कि अमरनाथ लपकते हुए आ पहुँचे।
घनश्याम – आओ यार, बड़ी उमर। अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी।
अमरनाथ – इस समय बोलिए नहीं, एकाध को मार बैठूँगा।
दूसरा – जान पड़ता है कहीं से पिटकर आए हो।
अमरनाथ – तू फिर बोला, क्यों?
दूसरा – क्यों बोल ना किसी के हाथ क्या बेच खाया है?
अमरनाथ – अच्छा, दिल्लगी छोड़ों। एक आवश्यक बात है।
सब उत्सुक होकर बोले- कहो कहो, क्या बात है?
अमरनाथ – (घनश्याम से) तुम्हारे लिए दुल्हन ढूँढ ली है।
सब – (एक स्वर से) फिर क्या, तुम्हारी शादी है।
अमरनाथ – फिर वही दिल्लगी? यार, तुम लोग अजीब आदमी हो।
तीसरा – अच्छा बताओ, कहाँ ढूँढा?
अमरनाथ – यहीं लखनऊ में।
दूसरा – लड़की का पिता क्या करता है?
अमरनाथ – पिता तो स्वर्गवास करता है।
तीसरा – यह बुरी बात है।
अमरनाथ – लड़की है और उसकी माँ। बस तीसरा कोई नहीं। विवाह में कुछ मिलेगा भी नहीं। लड़की की माता बड़ी गरीब है।
दूसरा – यह उससे भी बुरी बात है।
तीसरा – उल्लू मर गए, पट्टे छोड़ गए। घर भी ढूँढ़ा तो गरीब। कहाँ हमारे घनश्याम इतने धनाढ्य और कहाँ ससुराल इतनी दरिद्र। लोग क्या कहेंगे?
अमरनाथ – अरे भाई, कहने या ना कहने वाले हमी लोग हैं और यहाँ उनका कौन बैठा है जो कहेगा?
घनश्यामदास ने एक ठंडी साँस ली।
तीसरा – आपने क्या भलाई देखी, जो यह संबंध करना विचारा है?
अमरनाथ – लड़की की भलाई। लड़की लक्ष्मी रूपा है। जैसी सुंदर वैसी ही सरल। ऐसी लड़की यदि दीपक लेकर ढूँढी जाए तो भी कदाचित ही मिले।
दूसरा – हाँ, यह अवश्य एक बात है।
अमरनाथ – परंतु लड़की की माता लड़का देखकर विवाह करने को कहती है।
तीसरा – यह तो व्यवहार की बात है।
घनश्याम – और, मैं भी लड़की देखकर विवाह करूँगा।
दूसरा – यह भी ठीक है।
अमरनाथ – तो इसके लिए क्या विचार है?
तीसरा – विचार क्या, लड़की देखेंगे।
अमरनाथ – तो कब?
घनश्याम – कल !
(4)
दूसरे दिन शाम को घनश्याम और अमरनाथ गाड़ी पर सवार होकर लड़की देखने चले। गाड़ी चक्कर खाती हुई दहिया गंज की एक गली के सामने जा खड़ी हुई। गाड़ी से उतरकर दोनों मित्र गली में घुसे। लगभग सौ कदम चलकर अमरनाथ एक छोटे से मकान के सामने खड़े हो गए और मकान का द्वार खटखटाया।
घनश्याम बोले – मकान देखने से तो बड़े गरीब मान पड़ते हैं। अमरनाथ- हाँ, बात तो ऐसी हाँ है। परंतु यदि लड़की तुम्हारी पसंद आ जाए, तो यह सब सहन किया जा सकता है।
इतने में द्वार खुला और दोनों भीतर गए। संध्या हो जाने के कारण मकान में अँधेरा हो गया था। अतएव ये लोग द्वार खोलने वाले को स्पष्ट न देख सके।
एक दालान में पहुँचने पर ये दोनों चारपाइयों पर बिठा दिए गए और बिठाने वाली ने जो स्त्री थी, कहा- मैं जरा दिया जला लूँ। अमरनाथ – हाँ जला लो I
स्त्री ने दीपक जलाया और पास ही एक दीवार पर उसे रख दिया। फिर उनकी ओर मुख करके नीचे चटाई पर बैठ गई। परंतु ज्यों ही उसने घनश्याम पर दृष्टि डाली – एक हृदयभेदी आह उनकी मुख से निकली और वह ज्ञान-शून्य होकर गिर पड़ी। स्त्री की ओर कुछ अँधेरा था, इस कारण उन लोगों को उसका मुख स्पष्ट न दिखाई पड़ता था। घनश्याम उसे उठाने को उठे। परंतु ज्यों ही उन्होंने उसका सिर उठाया और रोशनी उसके मुख पर पड़ी, त्यों ही घनश्याम के मुख से निकला – मेरी माता! और उठकर वे भूमि पर बैठ गए।
अमरनाथ विस्मित हो काष्ठवत बैठे रहे। अंत को कुछ क्षण उपरांत बोले – उफ ईश्वर की महिमा बड़ी विचित्र है। जिसके लिए तुमने न जाने कहाँ-कहाँ की ठोकरें खायीं, वे अंत को इस प्रकार मिले।
घनश्याम अपने को संभालकर बोले थोड़ा पानी मँगाओ।
अमरनाथ – किससे मंगाऊँ? यहाँ तो कोई और दिखाई ही नहीं पड़ता। परंतु हाँ, वह लड़की तुम्हारी कहते अमरनाथ रुक गए। फिर उन्होंने पुकारा बिटिया थोड़ा पानी दे जाओ। परंतु कोई उत्तर न मिला। अमरनाथ ने फिर पुकारा-बेटी तुम्हारी माँ अचेत हो गई है। थोड़ा पानी दे जाओ। इस अचेत शब्द में ना जाने क्या बात थी कि तुरंत ही घर के दूसरी ओर बरतन खड़कने का शब्द हुआ। तत्पश्चात एक पूर्णवयस्क लड़की लोटा लिए आई।
लड़की मुँह कुछ ढँके हुए थी। अमरनाथ ने पानी लेकर घनश्याम की माता की आँखों तथा मुख धो दिया। थोड़ी देर में उसे होश आया। उसने आँख खोलते ही फिर घनश्याम को देखा तब वह शीघ्रता से उठकर बैठ गई और बोली – ऐ, मैं क्या स्वप्न देख रही हूँ? घनश्याम – क्या तू मेरा खोया हुआ घनश्याम है? या कोई और?
माता ने पुत्र को उठाकर छाती से लगा लिया और अश्रुबिंदु विसर्जन किए। परंतु वे बिंदु सुख के थे अथवा दुख के कौन कहे? लड़की ने यह सब देख-सुनकर अपना मुँह खोल लिया। और भैया- भैया कहती हुई घनश्याम से लिपट गई। घनश्याम ने देखा लड़की कोई और नहीं, वही बालिका है जिसने पाँच वर्ष पूर्व उसको राखी बाँधी थी और जिसकी याद प्रायः उन्हें आया करती थी।
श्रावण का महीना है और श्रावणी का महोत्सव। घनश्यामदास की कोठी खूब सजायी गई है। घनश्याम अपने कमरे में बैठे एक पुस्तक पढ़ रहे हैं। इतने में एक दासी ने आकर कहा- बाबू, भीतर चलो, घनश्याम भीतर गए। माता ने उन्हें एक आसन पर बिठाया और उनकी भगिनी सरस्वती ने उनके तिलक लगाकर राखी बाँधी। घनश्याम ने दो अशरफियाँ उसके हाथ में रख दी। और मुसकुराकर बोले- क्या पैसे भी देने पड़ेंगे?
सरस्वती ने हँसकर कहा – नहीं भैया, ये अशरफियाँ पैसों से अच्छी हैं। इनसे बहुत पैसे आवेंगे।
सारांश
‘रक्षा-बंधन’ विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ द्वारा रचित एक भावुक कहानी है जो भाई-बहन के प्रेम, पश्चाताप और नियति को दर्शाती है।
कहानी की शुरुआत श्रावण मास की पूर्णिमा से होती है। दस वर्षीय बालिका सरखुनी (जिसे बाद में सरस्वती नाम से पुकारा जाता है) उदास है क्योंकि उसका कोई भाई नहीं है जिसके वह राखी बाँध सके। उसकी माँ बताती है कि उसके कर्मों के कारण उसके पिता और भाई दोनों ही संसार छोड़ गए। उदास होकर सरखुनी द्वार पर खड़ी हो जाती है और अंततः एक युवक घनश्याम को रोककर उसे लाल डोरे की राखी बाँधती है। घनश्याम, जो उस समय रुपये-पैसे देने की कोशिश करता है, राखी को अमूल्य मानकर अपने पास रख लेता है।
कहानी का दूसरा भाग पाँच साल बाद शुरू होता है। धनी बन चुका घनश्याम अपनी माता और छोटी बहन को ढूँढ न पाने के पश्चाताप में डूबा है, जिन्हें वह दक्षिण जाने के दौरान अकेला छोड़ गया था। अपने मित्र अमरनाथ से वह अपनी परेशानी और उस अमूल्य राखी का ज़िक्र करता है।
कहानी का अंतिम भाग नियति के चमत्कार को दिखाता है। अमरनाथ घनश्याम के लिए एक गरीब लड़की का रिश्ता ढूँढता है, जिसका पिता नहीं है, और वह लड़की अपनी माँ के साथ रहती है। जब घनश्याम लड़की देखने जाता है, तो वहाँ की गरीब स्त्री को देखकर दोनों मित्र विस्मित हो जाते हैं। वह स्त्री कोई और नहीं, घनश्याम की खोई हुई माता थी। माता को होश आने पर, लड़की अंदर से आकर “भैया, भैया” कहकर घनश्याम से लिपट जाती है। वह लड़की और कोई नहीं, वही सरखुनी थी, जिसने पाँच साल पहले घनश्याम को राखी बाँधी थी।
निष्कर्ष- अगले श्रावण मास में, घनश्याम की कोठी पर त्योहार मनाया जाता है, जहाँ उसकी बहन सरस्वती (सरखुनी) उसे राखी बाँधती है। इस बार वह खुशी से अशरफियाँ स्वीकार करती है, क्योंकि अब उसके पास संपन्न भाई है। कहानी यह संदेश देती है कि सच्चा प्रेम और पारिवारिक बंधन नियति की विचित्र लीला से अवश्य मिल जाते हैं, और संबंध हमेशा धन से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
कठिन शब्दार्थ
शब्द (Hindi) | अर्थ (Hindi) | பொருள் (Tamil) | Meaning (English) |
अबोध | नासमझ, मासूम | அறியாமை | Innocent, naive |
इठलाकर | नखरे से, ऐंठकर | ஆடம்பரமாக | Coquettishly, playfully |
रुँध गया | गला बंद होना | தொண்டை அடைத்தல் | Choked, stifled |
कँगली | गरीब, कंगाल | ஏழை | Pauper, destitute |
अप्रतिभ | लज्जित, संकोची | தயங்குதல் | Embarrassed, abashed |
उद्यत | तैयार, तत्पर | தயாராக | Ready, prepared |
करुणा-पूर्ण | दया से भरा | இரக்கம் நிறைந்த | Full of compassion |
अधीर | बेचैन, व्याकुल | அமைதியற்ற | Restless, anxious |
चेष्टा | प्रयास, कोशिश | முயற்சி | Effort, attempt |
विखत | नाराज, व्यथित | கோபமடைந்த | Annoyed, distressed |
निष्फल | व्यर्थ, असफल | பயனற்ற | Fruitless, futile |
अधम | नीच, दुष्ट | தாழ்ந்த | Base, vile |
विचित्र | अजीब, अनोखा | விசித்திரமான | Strange, peculiar |
यत्नपूर्वक | सावधानी से | கவனமாக | Carefully, diligently |
संभलकर | सँभालकर, सावधान | கவனித்து | Carefully, composedly |
अशरफियाँ | स्वर्ण मुद्राएँ | தங்க நாணயங்கள் | Gold coins |
लक्ष्मी रूपा | सुंदर, गुणवती | அழகான, பண்பான | Beautiful, virtuous |
दरिद्र | गरीब, निर्धन | ஏழ்மையான | Poor, indigent |
सुखमयी | सुखद, आनंददायक | இனிமையான | Pleasant, delightful |
कृतज्ञता | आभार, धन्यवाद | நன்றியுணர்வு | Gratitude, thankfulness |
अभ्यास के लिए प्रश्न
1) पर्व ‘रक्षा-बंधन’ की विशेषता एवं महत्त्व पर पाँच वाक्य लिखिए।
उत्तर – पवित्र बंधन- यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम और सुरक्षा के अटूट बंधन का प्रतीक है।
रक्षा का वचन- बहन अपने भाई की कलाई पर राखी या रक्षा सूत्र बाँधकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती है, और भाई बदले में बहन की जीवन भर रक्षा करने का वचन देता है।
सामाजिक महत्त्व- यह सिर्फ सगे भाई-बहन का त्योहार नहीं है, बल्कि जाति, धर्म और रक्त संबंध से परे भी किसी को भाई मानकर रक्षा सूत्र बांधा जा सकता है, जैसा कि कहानी में घनश्याम और सरखुनी के बीच हुआ।
स्नेह का आदान-प्रदान- इस दिन भाई अपनी बहन को उपहार और पैसे (नेग) देकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं, जबकि बहनें अपने प्रेम और मंगल कामना को राखी के रूप में व्यक्त करती हैं।
सांस्कृतिक उत्साह- यह श्रावण मास की पूर्णिमा को पूरे भारत में बड़े आनंद तथा उत्साह से मनाया जाता है, जिससे समाज में प्रेम और भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
2) रक्षा-बंधन का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर – रक्षा-बंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
यह त्योहार मुख्य रूप से भाई-बहन के बीच के प्रेम और कर्तव्य के बंधन को निभाने के लिए मनाया जाता है। बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र अर्थात् राखी बाँधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं और उनके मंगल की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहन को उपहार और धन देकर उसकी रक्षा का प्रण दोहराते हैं।
3) युवक ने बालिका से क्या कहा और क्या दिया?
उत्तर – जब युवक (घनश्याम) ने बालिका (सरखुनी) को उदास देखा, तो-
कहा- उसने निकट जाकर पूछा— “बेटी, क्यों रोती हो?”
दिया- राखी बँधवाने के बाद युवक ने अपनी जेब से दो रुपये निकालकर बालिका को देने चाहे। जब बालिका ने उसे अस्वीकार कर दिया, तो युवक ने चार आने पैसे (जो बालिका चाहती थी) और वह दो रुपये भी बलपूर्वक बालिका के हाथ पर रख दिए।
4) बालिका की खुशी का कारण बताइए।
उत्तर – बालिका सरखुनी की खुशी का कारण यह था कि उसे एक भाई मिल गया जिसके वह राखी बाँध सकती थी।
वह अपनी माँ के मना करने पर उदास थी क्योंकि उसका कोई भाई नहीं था और वह राखी बाँधने के त्योहार को व्यर्थ मान रही थी। जब युवक घनश्याम उसकी ओर ठिठककर रुका और उसकी उदास, करुणा-पूर्ण आँखों को देखकर राखी बँधवाने को तैयार हो गया, तो बालिका का मुख-कमल खिल उठा। उसकी उदासी समाप्त हो गई और वह बड़े चाव से युवक के हाथ में राखी बाँधने में सफल रही।
5) युवक की परेशानी का विवरण दीजिए।
उत्तर – युवक घनश्याम की परेशानी का मुख्य कारण अपनी माता और छोटी बहन को ढूँढ न पाना था।
वह एक वर्ष पहले दक्षिण जाकर रुपया कमाने में व्यस्त हो गया था और उस दौरान उसने अपने परिवार की खोज-खबर नहीं ली थी। वापस आने पर उसे पता चला कि उसके चले जाने के एक वर्ष बाद ही वे लोग उन्नाव से कहीं और चले गए थे, जिसका कोई पता नहीं था।
वह चिंता-सागर में निमग्न था।
वह स्वयं से कहता था— “सारा परिश्रम व्यर्थ गया। सारी चेष्टाएँ निष्फल हुईं।”
वह खुद को अधम मानता था और सोचता था कि यदि वह उन्हें छोड़कर न जाता, या उनकी खोज-खबर लेता रहता, तो यह दिन न देखना पड़ता।
यह पश्चात्ताप और असफलता की भावना ही उसकी सबसे बड़ी परेशानी थी।
6) घनश्याम और अमरनाथ के बीच हुए संवाद का सार बताइए।
उत्तर – घनश्याम और अमरनाथ के बीच हुए संवाद का सार मुख्यतः घनश्याम की चिंता और राखी के इर्द-गिर्द घूमता है-
परिवार की खोज- घनश्याम ने बताया कि वह कानपुर और उन्नाव में अपने परिवार (माँ और बहन) को ढूँढने की सारी कोशिशें कर चुका है, पर वे लोग उसके जाने के एक साल बाद उन्नाव छोड़कर न जाने कहाँ चले गए।
पश्चात्ताप- घनश्याम अपने दक्षिण जाकर रुपया कमाने और परिवार को भूल जाने पर गहरा पश्चाताप व्यक्त करता है, और कहता है कि ऐसा धन किसी काम का नहीं जिसमें सुख-शांति न हो।
राखी का महत्त्व- अमरनाथ घनश्याम के हाथ में लाल डोरा (राखी) देखकर आश्चर्य प्रकट करता है। घनश्याम बताता है कि यह राखी उसे कानपुर में एक बालिका ने बाँधी थी और वह इसे अमूल्य मानता है। वह कहता है कि उस बालिका की सरलता और प्रेम उसके हृदय पर बहुत प्रभाव डाल गए हैं।
संवाद का अंत अमरनाथ की इस सलाह से होता है कि घनश्याम को धैर्य रखकर ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।
7) घनश्याम स्त्री को देखकर क्यों विस्मित हो गया?
उत्तर – जब घनश्याम और अमरनाथ लड़की देखने के लिए उस छोटे से मकान के दालान में पहुँचे, तो दीपक जलाने वाली स्त्री को देखकर घनश्याम विस्मित हो गया क्योंकि-
स्त्री (सरस्वती की माँ) ने जैसे ही घनश्याम पर दृष्टि डाली, वह हृदयभेदी आह भरकर ज्ञान-शून्य होकर गिर पड़ी।
घनश्याम उसे उठाने के लिए उठे और जैसे ही उन्होंने उसका सिर उठाया और रोशनी उसके मुख पर पड़ी, त्यों ही घनश्याम के मुख से निकला— “मेरी माता!”
घनश्याम को उस गरीब घर में जिसके लिए वह अपनी बहन देखने गया था, अपनी खोई हुई माँ मिल गईं। यह अकस्मात और अप्रत्याशित मिलन ही उसके विस्मय का कारण था।
8) ‘रक्षा-बंधन’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कहानी ‘रक्षा बंधन’ विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की एक भावनात्मक रचना है। एक गरीब बालिका सरखुनी अपनी माँ से राखी बाँधने की इच्छा जताती है, पर भाई न होने से उदास होती है। वह एक युवक घनश्याम को राखी बाँधती है, जो पैसे देना चाहता है, पर वह केवल चार आने लेती है। बाद में पता चलता है कि घनश्याम उसका खोया हुआ भाई है, जो दक्षिण में धन कमाने गया था और माँ-बहन को खोज रहा था। पाँच साल बाद लखनऊ में उनकी मुलाकात होती है। अंत में सरस्वती (बालिका) घनश्याम को राखी बाँधती है, और वह अशरफियाँ देता है। कहानी रक्षा बंधन के पवित्र बंधन और पारिवारिक पुनर्मिलन को दर्शाती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
बालिका का नाम क्या था?
a) सरस्वती
b) सरखुनी
c) लक्ष्मी
d) राधा
उत्तर- b) सरखुनी
बालिका की उम्र कितनी थी जब उसने राखी बाँधने की इच्छा जताई?
a) आठ वर्ष
b) दस वर्ष
c) बारह वर्ष
d) पंद्रह वर्ष
उत्तर- b) दस वर्ष
घनश्याम ने बालिका को क्या देने की कोशिश की?
a) दो रुपये
b) चार रुपये
c) एक अशरफी
d) दस पैसे
उत्तर- a) दो रुपये
बालिका ने अंत में क्या लिया?
a) दो रुपये
b) चार आने
c) अशरफी
d) कुछ नहीं
उत्तर- b) चार आने
घनश्याम कहाँ धन कमाने गया था?
a) उत्तर
b) दक्षिण
c) पूरब
d) पश्चिम
उत्तर- b) दक्षिण
घनश्याम का दोस्त कौन था?
a) रामनाथ
b) अमरनाथ
c) श्यामनाथ
d) हरिनाथ
उत्तर- b) अमरनाथ
घनश्याम ने कितने समय तक माँ-बहन को खोजा?
a) एक वर्ष
b) दो वर्ष
c) पाँच वर्ष
d) दस वर्ष
उत्तर- a) एक वर्ष
बालिका ने राखी किसके लिए बाँधने की इच्छा जताई?
a) भाई
b) माँ
c) पिता
d) दोस्त
उत्तर- b) माँ
घनश्याम ने राखी को कहाँ रखा?
a) जेब में
b) बक्स में
c) मेज पर
d) रुमाल में
उत्तर- b) बक्स में
घनश्याम लखनऊ में कितने समय से रह रहा था?
a) छह महीने
b) एक वर्ष
c) दो वर्ष
d) पाँच वर्ष
उत्तर- b) एक वर्ष
अमरनाथ ने घनश्याम के लिए क्या ढूंढा?
a) नौकरी
b) दुल्हन
c) मकान
d) दोस्त
उत्तर- b) दुल्हन
लड़की देखने कहाँ गए घनश्याम और अमरनाथ?
a) दहिया गंज
b) गीलागंज
c) उन्नाव
d) कानपुर
उत्तर- a) दहिया गंज
घनश्याम की माता को क्या हुआ जब उन्होंने उसे देखा?
a) हँसी
b) अचेत हो गईं
c) चिल्लाईं
d) भागीं
उत्तर- b) अचेत हो गईं
कहानी का अंतिम दृश्य कहाँ घटित होता है?
a) उन्नाव
b) कानपुर
c) घनश्याम की कोठी
d) दहिया गंज
उत्तर- c) घनश्याम की कोठी
सरस्वती ने अंत में राखी बाँधकर क्या लिया?
a) चार आने
b) दो अशरफियाँ
c) दो रुपये
d) कुछ नहीं
उत्तर- b) दो अशरफियाँ
माता ने बालिका को क्या कहा जब उसने राखी की बात की?
a) पैसे दो
b) भाई को बाँधी जाती है
c) नहा लो
d) चुप रहो
उत्तर- b) भाई को बाँधी जाती है
घनश्याम ने पहले क्या निश्चय किया था?
a) विवाह न करना
b) कानपुर जाना
c) धन कमाना
d) मकान बनाना
उत्तर- a) विवाह न करना
बालिका द्वार पर क्यों खड़ी थी?
a) खेलने
b) राखी बाँधने
c) माँ को बुलाने
d) पैसे लेने
उत्तर- b) राखी बाँधने
घनश्याम ने उन्नाव क्यों छोड़ा था?
a) नौकरी के लिए
b) धन कमाने
c) पढ़ाई के लिए
d) विवाह के लिए
उत्तर- b) धन कमाने
कहानी का मुख्य विषय क्या है?
a) रक्षा बंधन और पारिवारिक पुनर्मिलन
b) धन की खोज
c) विवाह की समस्या
d) गरीबी का दुख
उत्तर- a) रक्षा बंधन और पारिवारिक पुनर्मिलन
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न- कहानी ‘रक्षा बंधन’ के लेखक कौन हैं?
उत्तर- कहानी ‘रक्षा बंधन’ के लेखक विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ हैं। - प्रश्न- विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर- विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म 1891 में अम्बाला छावनी में हुआ था। - प्रश्न- ‘कौशिक’ जी को उनके दादाजी कहाँ ले गए थे?
उत्तर- ‘कौशिक’ जी को उनके दादाजी चार वर्ष की आयु में कानपुर ले गए थे। - प्रश्न- ‘कौशिक’ जी ने लगभग कितनी कहानियाँ लिखीं?
उत्तर- ‘कौशिक’ जी ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं। - प्रश्न- कौशिक जी को किन प्रसिद्ध कथाकारों के समकक्ष माना जाता है?
उत्तर- कौशिक जी को प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और गुलेरी के समकक्ष माना जाता है। - प्रश्न- कौशिक जी की कौन-सी कहानी हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती है?
उत्तर- उनकी कहानी ‘ताई’ हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती है। - प्रश्न- कौशिक जी का निधन कब हुआ था?
उत्तर- कौशिक जी का निधन 1945 में हुआ था। - प्रश्न- कहानी ‘रक्षा बंधन’ में बालिका की उम्र कितनी बताई गई है?
उत्तर- कहानी में बालिका की उम्र लगभग दस वर्ष बताई गई है। - प्रश्न- बालिका ने अपनी माँ से राखी बाँधने की बात क्यों कही?
उत्तर- बालिका भी श्रावणी पर्व पर राखी बाँधना चाहती थी, इसलिए उसने माँ से ऐसा कहा। - प्रश्न- माँ ने बालिका से क्यों कहा कि “किसको बाँधेगी बेटी”?
उत्तर- माँ ने यह इसलिए कहा क्योंकि उसकी बेटी का कोई भाई नहीं था। - प्रश्न- बालिका ने राखी किसे बाँधने का निश्चय किया?
उत्तर- बालिका ने अपनी माँ को राखी बाँधने का निश्चय किया। - प्रश्न- माँ ने बालिका को पैसे वाली राखी की बात क्यों कही?
उत्तर- माँ ने कहा कि राखी केवल भाई को बाँधी जाती है और उससे उपहार के रूप में पैसे मिलते हैं। - प्रश्न- माँ ने बालिका को उसके कर्मों के लिए क्यों दोषी ठहराया?
उत्तर- माँ ने क्रोध में कहा कि बालिका के ही कर्मों से पिता और भाई दोनों का नाश हुआ। - प्रश्न- बालिका द्वार पर क्यों खड़ी थी?
उत्तर- बालिका किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में द्वार पर खड़ी थी जिसे वह राखी बाँध सके। - प्रश्न- घनश्याम ने बालिका से राखी क्यों बँधवाई?
उत्तर- घनश्याम ने बालिका की उदासी देखकर उसे खुश करने के लिए उससे राखी बँधवाई। - प्रश्न- राखी बाँधने के बाद घनश्याम ने बालिका को क्या दिया?
उत्तर- घनश्याम ने बालिका को दो रुपए और चार आने पैसे दिए। - प्रश्न- बालिका ने रुपए क्यों नहीं लेना चाहा?
उत्तर- बालिका केवल पैसे लेना चाहती थी, रुपए नहीं। - प्रश्न- बालिका का नाम क्या था?
उत्तर- बालिका का नाम सरस्वती था। - प्रश्न- घनश्याम जब लखनऊ पहुँचे तो वे क्यों चिंतित थे?
उत्तर- वे चिंतित थे क्योंकि उन्हें अपनी माँ और बहन का कोई पता नहीं मिल रहा था। - प्रश्न- अमरनाथ कौन था?
उत्तर- अमरनाथ, घनश्याम का घनिष्ठ मित्र था। - प्रश्न- घनश्याम ने दक्षिण क्यों गया था?
उत्तर- घनश्याम पैसे कमाने के लिए दक्षिण गया था। - प्रश्न- घनश्याम ने किस वस्तु को ‘सबसे प्यारी राखी’ कहा?
उत्तर- उसने बालिका द्वारा बाँधे गए लाल डोरे को सबसे प्यारी राखी कहा। - प्रश्न- घनश्याम ने लाल डोरे को कहाँ रख दिया?
उत्तर- उसने लाल डोरे को यत्नपूर्वक अपने बक्स में रख दिया। - प्रश्न- पाँच वर्ष बाद भी घनश्याम उस बालिका को क्यों नहीं भूल पाया?
उत्तर- क्योंकि उसकी सरलता और प्रेम ने घनश्याम के हृदय पर गहरा प्रभाव डाला था। - प्रश्न- अमरनाथ ने घनश्याम के लिए किस कार्य की चिंता की?
उत्तर- अमरनाथ ने घनश्याम के विवाह के लिए उपयुक्त कन्या ढूँढने की चिंता की। - प्रश्न- लड़की देखने के लिए घनश्याम और अमरनाथ कहाँ गए?
उत्तर- वे लोग लखनऊ के दहिया गंज में लड़की देखने गए। - प्रश्न- घनश्याम को देखकर वह स्त्री अचेत क्यों हो गई?
उत्तर- क्योंकि वह स्त्री घनश्याम की खोई हुई माता थी। - प्रश्न- जब घनश्याम ने स्त्री का चेहरा देखा तो उसने क्या कहा?
उत्तर- उसने कहा – “मेरी माता!” - प्रश्न- अमरनाथ ने ईश्वर की महिमा को क्यों विचित्र कहा?
उत्तर- क्योंकि घनश्याम अपनी खोई हुई माँ और बहन से अचानक इसी प्रकार मिल गया। - प्रश्न- अमरनाथ ने किसे पानी लाने के लिए पुकारा?
उत्तर- अमरनाथ ने घर की लड़की को पानी लाने के लिए पुकारा। - प्रश्न- पानी लाने पर जब लड़की ने मुँह खोला, तो घनश्याम ने क्या पहचाना?
उत्तर- उसने पहचाना कि वह वही बालिका थी जिसने पाँच वर्ष पूर्व उसे राखी बाँधी थी। - प्रश्न- घनश्याम की बहन का क्या नाम था?
उत्तर- घनश्याम की बहन का नाम सरस्वती था। - प्रश्न- कहानी के अंत में कौन-सा पर्व मनाया जा रहा था?
उत्तर- कहानी के अंत में रक्षा बंधन का पर्व मनाया जा रहा था। - प्रश्न- घनश्याम को राखी किसने बाँधी?
उत्तर- घनश्याम को उसकी बहन सरस्वती ने राखी बाँधी। - प्रश्न- राखी बाँधने पर घनश्याम ने सरस्वती को क्या दिया?
उत्तर- घनश्याम ने सरस्वती को दो अशरफियाँ दीं। - प्रश्न- जब घनश्याम ने पूछा “क्या पैसे भी देने पड़ेंगे?”, तो सरस्वती ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर- सरस्वती ने हँसकर कहा कि “नहीं भैया, ये अशरफियाँ पैसों से अच्छी हैं।” - प्रश्न- कहानी में ‘राखी’ किस भाव का प्रतीक है?
उत्तर- ‘राखी’ भाई-बहन के स्नेह, प्रेम और सुरक्षा के भाव का प्रतीक है। - प्रश्न- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर- कहानी का संदेश यह है कि सच्चा संबंध धन या उपहार से नहीं, प्रेम और भावना से बनता है। - प्रश्न- कहानी में माँ और बेटी का जीवन कैसा दिखाया गया है?
उत्तर- कहानी में माँ और बेटी का जीवन अत्यंत दुखमय, संघर्षपूर्ण और गरीबी से भरा दिखाया गया है। - प्रश्न- कहानी ‘रक्षा बंधन’ शीर्षक कितना उपयुक्त है?
उत्तर- यह शीर्षक अत्यंत उपयुक्त है क्योंकि पूरी कहानी भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और राखी के भाव के इर्द-गिर्द घूमती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
छात्र उत्तर लिखते समय सटीक वाक्य संरचना का प्रयोग करें।
- बालिका सरखुनी ने राखी बाँधने की इच्छा क्यों जताई?
उत्तर – श्रावण में रक्षा बंधन का उत्सव देख सरखुनी उत्साहित हुई। भाई न होने पर माँ को राखी बाँधने की सोची। माँ ने कहा भाई को बाँधी जाती है। उदास होकर वह द्वार पर किसी को राखी बाँधने खड़ी हुई।
- घनश्याम ने बालिका को देखकर क्या किया?
उत्तर – घनश्याम ने सरखुनी की अश्रुपूर्ण आँखें देखीं, अधीर होकर पूछा—क्यों रोती हो? उसने राखी दिखाई। घनश्याम ने मुस्कुराकर हाथ बढ़ाया। सरखुनी ने चाव से राखी बाँधी। उसने दो रुपये देने की कोशिश की, पर सरखुनी ने चार आने लिए।
- माता ने सरखुनी को क्यों डाँटा?
उत्तर – सरखुनी ने राखी बाँधने की जिद की, नहाने से मना किया। माता क्रुद्ध होकर बोलीं—राखी रट लगी है। बाप और भाई खोए, कर्मों का नाश बताया। सरखुनी अप्रतिभ हो चुपचाप नहाने उठी, आँखों में आँसू भरे।
- घनश्याम का दक्षिण जाना क्यों व्यर्थ लगा?
उत्तर – घनश्याम दक्षिण जाकर धन कमाया, पर माँ-बहन को खो दिया। लखनऊ में एक वर्ष खोजने पर भी पता न चला। धन बेकार लगा, क्योंकि हृदय में सुख-शांति न थी। वह अपने कर्मों को दोष देता।
- अमरनाथ ने घनश्याम को क्या सलाह दी?
उत्तर – अमरनाथ ने कहा कि उन्नाव छानने के बाद भी माँ-बहन न मिले, तो धैर्य रखो। ईश्वर पर छोड़ दो, देखो क्या होता है। घनश्याम ने माना कि उसने सब कोशिश की, अब चुपचाप बैठना ही ठीक है।
- घनश्याम और सरखुनी की पहली मुलाकात कैसी थी?
उत्तर – कानपुर में सरखुनी द्वार पर उदास खड़ी थी। घनश्याम की नजर उसकी अश्रुपूर्ण आँखों पर पड़ी। उसने पूछा—क्यों रोती हो? सरखुनी ने राखी दिखाई। घनश्याम ने हाथ बढ़ाया, उसने चाव से राखी बाँधी और चार आने लिए।
- घनश्याम ने राखी को क्यों महत्त्वपूर्ण माना?
उत्तर – घनश्याम ने लाल डोरे की राखी को अमूल्य बताया। सरखुनी की सरलता और प्रेम ने उसके हृदय को छुआ। वह बक्स में यत्नपूर्वक रखता। उसकी याद बार-बार आती, क्योंकि वह उसकी खोई बहन की याद दिलाती थी।
- लखनऊ में मुलाकात कैसे हुई?
उत्तर – अमरनाथ घनश्याम को दुल्हन देखने दहिया गंज ले गया। मकान में घुसते ही माँ अचेत हो गईं। घनश्याम ने उन्हें पहचाना, पुकारा—मेरी माता! सरस्वती पानी लाई, भैया कहकर लिपट गई। पाँच साल बाद परिवार मिला।
- अमरनाथ ने दुल्हन के बारे में क्या कहा?
उत्तर – अमरनाथ ने बताया कि लड़की लक्ष्मी रूपा, सुंदर, सरल है। माँ गरीब, पिता स्वर्गवासी, कुछ मिलेगा नहीं। घनश्याम को लड़की देखने की सलाह दी। मित्रों ने गरीबी पर आपत्ति की, पर अमरनाथ ने भलाई पर जोर दिया।
- कहानी का अंतिम दृश्य क्या दर्शाता है?
उत्तर – श्रावणी उत्सव में घनश्याम की कोठी सजी। सरस्वती ने तिलक लगाकर राखी बाँधी। घनश्याम ने दो अशरफियाँ दीं, हँसकर पूछा—पैसे भी देने पड़ेंगे? सरस्वती ने हँसी—ये अच्छी हैं। यह पारिवारिक पुनर्मिलन और रक्षा बंधन की पवित्रता दिखाता।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
छात्र उत्तर लिखते समय सटीक वाक्य संरचना का प्रयोग करें।
- कहानी में रक्षा बंधन का महत्त्व कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र बंधन का प्रतीक है। सरखुनी भाई न होने पर भी राखी बाँधने की जिद करती है। अनजाने में घनश्याम को राखी बाँधती, जो उसका भाई निकलता है। अंत में सरस्वती राखी बाँधती, अशरफियाँ लेती। यह पुनर्मिलन और स्नेह का उत्सव दर्शाता है, जो दुखों के बाद सुख लाता है।
- घनश्याम का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर – घनश्याम धनाढ्य, पर भावुक और पारिवारिक है। दक्षिण जाकर धन कमाया, पर माँ-बहन को खोया। लखनऊ में खोजता रहा, पर निष्फल। सरखुनी की राखी को अमूल्य मान बक्स में रखता। माँ-बहन से मिलने पर अश्रुपूरित, सुखी। अविवाहित, पर मित्रों के कहने पर विवाह को तैयार। उसका संवेदनशील हृदय कहानी को भावनात्मक बनाता।
- सरखुनी की भूमिका कहानी में क्या है?
उत्तर – सरखुनी अबोध, मासूम दस वर्षीया बालिका है, जो राखी बाँधने की जिद करती है। भाई न होने पर उदास, फिर घनश्याम को राखी बाँधती है। उसकी सरलता घनश्याम के हृदय को छूती। बाद में सरस्वती बनकर भाई से मिलती, राखी बाँधती। वह परिवार के पुनर्मिलन का सूत्र और कहानी का केंद्र है।
- माता का दुख और पुनर्मिलन कैसे दर्शाया गया?
उत्तर – माता ने पति और बेटे को खोया, सरखुनी के साथ गरीबी में रहती। बेटी की राखी की जिद पर भाई की याद में अश्रुपूरित। घनश्याम को देख अचेत, फिर छाती से लगाती। सुख-दुख के अश्रु बहाती। पुनर्मिलन में सुखी, बेटी को राखी बाँधने देती। उनका दुख और सुख कहानी को भावनात्मक बनाता।
- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – रक्षा बंधन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है। सरखुनी की राखी अनजाने भाई घनश्याम को बाँधती, जो पुनर्मिलन का सूत्र बनती। दुख, गरीबी, और खोज के बाद परिवार मिलता है। धन सुख-शांति नहीं, परिवार लाता। ईश्वर की महिमा और धैर्य से असंभव संभव। कहानी स्नेह, विश्वास और पुनर्मिलन की विजय दिखाती।

