कवि परिचय – श्री मैथिलीशरण गुप्त
राष्ट्र कवि श्री मैथिलीशरण गुप्तजी का जन्म झाँसी जिले के चिरगाँव में हुआ था। आप बापूजी के सच्चे अनुयायी थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में आप की कविताओं ने लोगों में देश प्रेम जगाने का महान कार्य किया। भारत सरकार ने आपको संसद का सदस्य मनोनीत किया तथा पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। भारत भारती, पंचवटी, साकेत, यशोधरा आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। ‘साकेत’ पर आपको ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार भी मिला है।
कवि भारतवासियों के कल्याण की कामना करते हुए भगवान से प्रार्थना करता है कि हे गणेश! लोगों की उन्नति में अवलंब देकर अपने विघ्नहर को नाम सार्थक बनाइए। सभी सद्गुण प्रदान कर उन्हें कर्तव्यनिष्ठ बनाइए। राष्ट्रीयता की भावना जगाइए और भाईचारे को बढ़ाइए। कठिनाइयों में भी अविचल रहने का आत्मबल दीजिए तथा सत्य पथ पर चलने की शक्ति प्रदान कीजिए।
शुभकामना
सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाह हो।
गुण, शील, साहस, बल तथा सबसे भरा उत्साह हो॥
सबके हृदय में सर्वदा समवेदना का दाह हो।
हमको तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो॥
विद्या, कला-कौशल में सबका अटल अनुराग हो।
उद्योग का उन्माद हो, आलस्य अघ का त्याग हो॥
सुख और दुख में एक-सा सब भाइयों का भाग हो।
अन्तः करण में गूँजता राष्ट्रीयता का राग हो॥
कठिनाइयों के मध्य अध्यावसाय का उन्मेष हो।
जीवन सरल हो, तन सबल हो, मन विमल सविशेष हो॥
छुटे कदापि न सत्यपथ, निज देश हो कि विदेश हो।
अखिलेश का आदेश हो, जो बस वही उद्देश्य हो॥
उपलक्ष्य के पीछे कभी विगलित न जीवन-लक्ष्य हो।
जब तक रहे यह प्राण तन में पुण्य का ही पक्ष हो॥
कर्तव्य एक न एक पावन नित्य नेत्र समक्ष हो।
सम्पति और विपत्ति में विचलित कदापि न वक्ष हो॥
व्याख्या सहित
पद्यांश 1 –
सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाह हो।
गुण, शील, साहस, बल तथा सबसे भरा उत्साह हो॥
सबके हृदय में सर्वदा समवेदना का दाह हो।
हमको तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो॥
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तद्वारा रचित कविता ‘शुभकामना’से ली गई हैं।
प्रसंग – कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए समस्त भारतवासियों में नैतिक बल और पारस्परिक प्रेम की भावना स्थापित करने की कामना कर रहे हैं।
व्याख्या – कवि कामना करते हैं कि सभी देशवासियों की नसों में उनके पूर्वजों का पवित्र रक्त अर्थात् पुण्य कार्य करने की प्रेरणा प्रवाहित हो। हर किसी में गुण, नम्रता, साहस और शक्तिभरी हो, और सबसे बढ़कर, वे उत्साह से भरे रहें। कवि चाहते हैं कि सबके हृदय में सदैव समवेदना की तीव्र भावना बनी रहे। अंत में, वे पारस्परिक प्रेम की कामना करते हैं कि हमको एक-दूसरे की चाह हो और तुमको हमारी चाह हो।
पद्यांश 2 –
विद्या, कला-कौशल में सबका अटल अनुराग हो।
उद्योग का उन्माद हो, आलस्य अघ का त्याग हो॥
सुख और दुख में एक-सा सब भाइयों का भाग हो।
अन्तः करण में गूँजता राष्ट्रीयता का राग हो॥
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तद्वारा रचित कविता ‘शुभकामना’ से ली गई हैं।
प्रसंग – कवि देश की उन्नति के लिए परिश्रम, ज्ञान और राष्ट्रीय एकता की भावना पर बल देते हैं।
व्याख्या – कवि प्रार्थना करते हैं कि सभी भारतवासियों का विद्या, कला और कौशल सीखने में अटल प्रेम बना रहे। लोगों में परिश्रम करने का तीव्र जुनून हो और वे आलस्य रूपी पाप को पूरी तरह त्याग दें। कवि यह भी कामना करते हैं कि सुख और दुख की हर परिस्थिति में सभी भाई एक-दूसरे के समान भागीदार रहें। सबके हृदय में हमेशा राष्ट्रीयता और देशप्रेम का गीत गूँजता रहे।
पद्यांश 3 –
कठिनाइयों के मध्य अध्यावसाय का उन्मेष हो।
जीवन सरल हो, तन सबल हो, मन विमल सविशेष हो॥
छुटे कदापि न सत्यपथ, निज देश हो कि विदेश हो।
अखिलेश का आदेश हो, जो बस वही उद्देश्य हो॥
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तद्वारा रचित कविता ‘शुभकामना’से ली गई हैं।
प्रसंग – कवि विपरीत परिस्थितियों में आत्मबल, पवित्रता और सत्यनिष्ठा बनाए रखने की कामना करते हैं।
व्याख्या – कवि चाहते हैं कि कठिनाइयों के बीच भी परिश्रम का विकास हो। सभी का जीवन सरल हो, शरीर मजबूत हो और मन विशेष रूप से पवित्र और निर्मल बना रहे। कवि की कामना है कि चाहे हम अपने देश में हों या विदेश में हों, सत्य के मार्ग को कभी न छोड़ें। हमारा एकमात्र उद्देश्य वही होना चाहिए जो ईश्वर का आदेश हो।
पद्यांश 4 –
उपलक्ष्य के पीछे कभी विगलित न जीवन-लक्ष्य हो।
जब तक रहे यह प्राण तन में पुण्य का ही पक्ष हो॥
कर्तव्य एक न एक पावन नित्य नेत्र समक्ष हो।
सम्पति और विपत्ति में विचलित कदापि न वक्ष हो॥
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तद्वारा रचित कविता ‘शुभकामना’ से ली गई हैं।
प्रसंग – कवि जीवन में लक्ष्य की स्थिरता, कर्तव्यनिष्ठा और धैर्य बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।
व्याख्या – कवि चाहते हैं कि छोटी-मोटी चीज़ों के चक्कर में पड़कर हमारा मूल जीवन-लक्ष्य कभी बिगड़े नहीं। जब तक शरीर में प्राण रहें, हम सदैव पुण्य का ही समर्थन करें। हमारे नेत्रों के सामने हर दिन कोई न कोई पवित्र कर्तव्य बना रहे, जिसे हम पूरा करें। सबसे महत्त्वपूर्ण, कवि प्रार्थना करते हैं कि सुख (सम्पति) और दुख (विपत्ति), दोनों ही स्थितियों में हृदय कभी भी विचलित न हो।
कठिन शब्दार्थ
अखिलेश – विघ्नेश्वर
उपलक्ष – संकेत
उन्मेष – विकास, प्रकाश
समक्ष – सामने
समवेदना – सहानुभूति
विगलित- बिगड़ा हुआ।
अटल – अचल
कदापि – कभी नहीं
अघ – पाप
वक्ष – हृदय
अध्यवसाय – परिश्रम
क्रमांक | हिंदी शब्द | हिंदी पर्यायवाची | अंग्रेजी अर्थ | तमिल अर्थ |
1 | पुण्य | शुभ कर्म | Merit/Virtuous deed | புண்ணியம் (Puṇṇiyam) |
2 | शील | चरित्र/स्वभाव | Character/Modesty | குணம் (Kuṇam) |
3 | साहस | हिम्मत/वीरता | Courage | தைரியம் (Tairiyam) |
4 | उत्साह | जोश/उमंग | Enthusiasm | உற்சாகம் (Uṟcākam) |
5 | समवेदना | सहानुभूति | Sympathy | இரக்கம் (Irakkam) |
6 | दाह | जलन/तीव्रता | Burning/Intensity | எரியல் (Eriyal) |
7 | अटल | दृढ़/अचल | Unwavering/Firm | உறுதியான (Uṟutiyāṉa) |
8 | अनुराग | प्रेम/लगाव | Affection/Attachment | அன்பு (Aṉpu) |
9 | उद्योग | परिश्रम/व्यवसाय | Industry/Effort | உழைப்பு (Uḻaippu) |
10 | उन्माद | जुनून/पागलपन | Frenzy/Mania | பித்து (Pittu) |
11 | आलस्य | सुस्ती/काहिली | Laziness | சோம்பல் (Cōmpal) |
12 | अघ | पाप/दुष्कर्म | Sin/Evil | பாவம் (Pāvam) |
13 | राग | संगीत/मेलोडी | Melody/Raga | ராகம் (Rākam) |
14 | अध्यावसाय | परिश्रम/दृढ़ता | Perseverance/Diligence | விடாமுயற்சி (Viṭāmuyaṟci) |
15 | उन्मेष | विकास/उदय | Blossoming/Emergence | விரிவு (Virivu) |
16 | विमल | निर्मल/शुद्ध | Pure/Spotless | தூய்மையான (Tūymaiyāṉa) |
17 | कदापि | कभी नहीं/नहीं | Never/By no means | ஒருபோதும் (Orupōtum) |
18 | अखिलेश | ब्रह्मांड का स्वामी/ईश्वर | Lord of the universe | உலகின் இறைவன் (Ulakiṉ iṟaivaṉ) |
19 | उपलक्ष्य | संकेत/बहाना | Pretext/Indication | குறிப்பு (Kuṟippu) |
20 | विगलित | विकृत/नष्ट | Dissolved/Corrupted | கெட்டுப்போன (Keṭṭuppōṉa) |
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लिखिए।
- श्री मैथिलीशरण गुप्त के बारे में लिखिए।
उत्तर – राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी जिले के चिरगाँव में हुआ था। वह महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी कविताओं ने लोगों में देशप्रेम की भावना जगाई। भारत सरकार ने उन्हें संसद का सदस्य मनोनीत किया और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘भारत भारती’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, और ‘यशोधरा’। ‘साकेत’ पर उन्हें ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार भी मिला था।
- कवि की शुभकामना क्या है?
उत्तर – कवि की शुभकामना है कि सभी देशवासी गुण, शील, साहस और उत्साह से भरे हों, उनके हृदय में सहानुभूति हो, वे ज्ञान और परिश्रम के प्रति समर्पित हों, राष्ट्रीय एकता बनाए रखें, कठिनाइयों में अविचलित रहें और सदैव सत्य तथा कर्तव्य पथ पर चलें।
- कवि सबके हृदय में किसकी दाह चाहता है?
उत्तर – कवि सबके हृदय में समवेदना अर्थात् सहानुभूति की दाह यानी तीव्र भावना चाहते हैं।
- किस पर उन्माद होना चाहते हैं?
उत्तर – कवि उद्योग या परिश्रम पर उन्माद होना चाहते हैं।
- कवि किस से दूर रहना चाहते हैं?
उत्तर – कवि आलस्य रूपी पाप अर्थात् अघ से दूर रहना चाहते हैं।
- कवि की दृष्टि में तन, मन, धन कैसे हो?
उत्तर – कवि की दृष्टि में –
तन – सबल अर्थात् मजबूत हो।
मन – विमल अर्थात् विशेष रूप से पवित्र और निर्मल हो।
जीवन – सरल हो।
- कवि जीवन में किन बातों से विचलित नहीं होना चाहता है?
उत्तर – कवि जीवन में निम्नलिखित बातों से विचलित नहीं होना चाहता है –
सत्य के मार्ग से, चाहे वह निज देश हो या विदेश हो।
जीवन-लक्ष्य से, छोटी-मोटी चीज़ों के पीछे पड़कर।
सम्पति (सुख) और विपत्ति (दुख), दोनों ही स्थितियों में हृदय से।
- ‘शुभकामना’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर – ‘शुभकामना’ कविता में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने संपूर्ण देश और समाज के लिए ईश्वर से कल्याणकारी प्रार्थना की है। कवि कामना करते हैं कि लोगों में पूर्वजों के समान पुण्य और उत्साह भरा रहे तथा वे गुण, साहस और शील से युक्त हों। वे पारस्परिक प्रेम और सहानुभूति की भावना को सर्वोपरि मानते हैं। देश की उन्नति के लिए वे ज्ञान, कला, कौशल और परिश्रम के प्रति अटल अनुराग चाहते हैं, साथ ही आलस्य के त्याग पर ज़ोर देते हैं। कवि की इच्छा है कि सुख-दुख में सबमें राष्ट्रीयता और एकता का भाव गूँजे। अंत में, वे प्रार्थना करते हैं कि लोग कठिनाइयों में भी धैर्य न खोएँ, उनका जीवन सरल, तन सबल और मन पवित्र रहे। वे सदैव सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन-लक्ष्य से विचलित न हों।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
पद्यांश 1 में ‘पुण्य रक्त’ से क्या तात्पर्य है?
a) दूषित रक्त
b) पूर्वजों के पुण्य कार्यों की प्रेरणा
c) शारीरिक शक्ति
d) आलस्य का प्रतीक
उत्तर – b) पूर्वजों के पुण्य कार्यों की प्रेरणा
कवि किस भावना को ‘समवेदना का दाह’ कहते हैं?
a) घृणा की जलन
b) दूसरों के दुख के प्रति तीव्र सहानुभूति
c) खुशी की उत्तेजना
d) आलस्य का त्याग
उत्तर – b) दूसरों के दुख के प्रति तीव्र सहानुभूति
पद्यांश 2 में ‘उद्योग का उन्माद’ का अर्थ क्या है?
a) आलस्य का जुनून
b) परिश्रम करने का तीव्र जुनून
c) विद्या का त्याग
d) दुख का भाग
उत्तर – b) परिश्रम करने का तीव्र जुनून
‘आलस्य अघ का त्याग’ से कवि क्या कामना करते हैं?
a) पाप का समर्थन
b) आलस्य रूपी पाप को त्यागना
c) सुख का त्याग
d) राष्ट्रीयता का राग
उत्तर – b) आलस्य रूपी पाप को त्यागना
पद्यांश 3 में ‘अध्यावसाय का उन्मेष’ किस संदर्भ में है?
a) कठिनाइयों में परिश्रम का विकास
b) जीवन का सरलीकरण
c) मन की अशुद्धि
d) सत्यपथ का त्याग
उत्तर – a) कठिनाइयों में परिश्रम का विकास
‘तन सबल हो, मन विमल सविशेष हो’ का अर्थ क्या है?
a) शरीर कमजोर, मन अशुद्ध
b) शरीर मजबूत, मन विशेष रूप से निर्मल
c) विदेश में सत्य का त्याग
d) ईश्वर का आदेश न मानना
उत्तर – b) शरीर मजबूत, मन विशेष रूप से निर्मल
कवि ‘अखिलेश का आदेश’ से क्या समझाते हैं?
a) राजा का आदेश
b) ईश्वर का आदेश, जो धर्म और कर्तव्य अनुकूल हो
c) आलस्य का प्रतीक
d) विपत्ति का भाग
उत्तर – b) ईश्वर का आदेश, जो धर्म और कर्तव्य अनुकूल हो
पद्यांश 4 में ‘उपलक्ष्य के पीछे’ से क्या अभिप्राय है?
a) मुख्य लक्ष्य का पालन
b) छोटी चीजों के चक्कर में मुख्य लक्ष्य न बिगड़ना
c) प्राण का त्याग
d) कर्तव्य का विमुख होना
उत्तर – b) छोटी चीजों के चक्कर में मुख्य लक्ष्य न बिगड़ना
‘पुण्य का ही पक्ष’ का अर्थ क्या है?
a) पाप का समर्थन
b) शुभ कर्मों का ही समर्थन करना
c) जीवन का अंत
d) नेत्रों का बंद होना
उत्तर – b) शुभ कर्मों का ही समर्थन करना
‘सम्पति और विपत्ति में विचलित न वक्ष हो’ से कवि क्या कहते हैं?
a) सुख-दुख में हृदय विचलित न हो
b) केवल सुख में स्थिर रहना
c) दुख में विचलित होना
d) कर्तव्य का त्याग
उत्तर – a) सुख-दुख में हृदय विचलित न हो
कविता का मुख्य विषय क्या है?
a) युद्ध की कामना
b) भारतवासियों के लिए नैतिक बल, प्रेम और उन्नति की प्रार्थना
c) व्यक्तिगत सुख
d) आलस्य का गुणगान
उत्तर – b) भारतवासियों के लिए नैतिक बल, प्रेम और उन्नति की प्रार्थना
पद्यांश 1 का प्रसंग क्या है?
a) आलस्य का त्याग
b) नैतिक बल और पारस्परिक प्रेम की भावना
c) विद्या का अनुराग
d) कठिनाइयों का विकास
उत्तर – b) नैतिक बल और पारस्परिक प्रेम की भावना
‘राष्ट्रीयता का राग’ किस पद्यांश में है?
a) पद्यांश 1
b) पद्यांश 2
c) पद्यांश 3
d) पद्यांश 4
उत्तर – b) पद्यांश 2
कवि किससे प्रार्थना कर रहे हैं?
a) मित्र से
b) ईश्वर से
c) पूर्वजों से
d) शत्रु से
उत्तर – b) ईश्वर से
‘सत्यपथ’ का अर्थ क्या है?
a) असत्य का मार्ग
b) सत्य का मार्ग
c) विदेश का रास्ता
d) आलस्य का पथ
उत्तर – b) सत्य का मार्ग
पद्यांश 3 का मुख्य भाव क्या है?
a) आलस्य पर बल
b) विपरीत परिस्थितियों में आत्मबल और सत्यनिष्ठा
c) सुख का भाग
d) उपलक्ष्य का पीछा
उत्तर – b) विपरीत परिस्थितियों में आत्मबल और सत्यनिष्ठा
‘कर्तव्य एक न एक पावन’ से क्या तात्पर्य है?
a) पापपूर्ण कर्तव्य
b) हर दिन कोई पवित्र कर्तव्य सामने हो
c) कर्तव्य का त्याग
d) विचलित हृदय
उत्तर – b) हर दिन कोई पवित्र कर्तव्य सामने हो
कविता किस कवि की है?
a) सूरदास
b) मैथिलीशरण गुप्त
c) तुलसीदास
d) कबीर
उत्तर – b) मैथिलीशरण गुप्त
‘विद्या, कला-कौशल में अटल अनुराग’ का अर्थ क्या है?
a) विद्या का त्याग
b) विद्या और कला में दृढ़ प्रेम
c) आलस्य का जुनून
d) दुख का भाग
उत्तर – b) विद्या और कला में दृढ़ प्रेम
पद्यांश 4 का प्रसंग क्या है?
a) लक्ष्य की स्थिरता और धैर्य
b) आलस्य का त्याग
c) समवेदना का दाह
d) उन्मेष का विकास
उत्तर – a) लक्ष्य की स्थिरता और धैर्य
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कविता ‘शुभकामना’ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर – कविता ‘शुभकामना’ के रचयिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं।
प्रश्न 2. कवि ने कविता ‘शुभकामना’ में किसके कल्याण की कामना की है?
उत्तर – कवि ने समस्त भारतवासियों के कल्याण और नैतिक उन्नति की कामना की है।
प्रश्न 3. पहले पद्यांश में कवि ने किस रक्त के प्रवाह की कामना की है?
उत्तर – पहले पद्यांश में कवि ने सभी की नसों में पूर्वजों के पुण्य रक्त के प्रवाह की कामना की है।
प्रश्न 4. “गुण, शील, साहस, बल तथा सबसे भरा उत्साह हो”—इस पंक्ति में कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर – कवि चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति में गुण, नम्रता, साहस, शक्ति और उत्साह का संचार हो।
प्रश्न 5. कवि ने समवेदना के बारे में क्या कहा है?
उत्तर – कवि ने कहा है कि सबके हृदय में दूसरों के दुख-सुख में सहभागिता की भावना, अर्थात् समवेदना सदा बनी रहनी चाहिए।
प्रश्न 6. “हमको तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो”—इसका क्या अर्थ है?
उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि सबमें पारस्परिक प्रेम, सहयोग और एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता बनी रहे।
प्रश्न 7. दूसरे पद्यांश में कवि ने विद्या और कला के प्रति कैसी भावना व्यक्त की है?
उत्तर – कवि ने कामना की है कि सबका विद्या, कला और कौशल के प्रति अटल अनुराग बना रहे।
प्रश्न 8. कवि ने आलस्य के बारे में क्या कहा है?
उत्तर – कवि ने कहा है कि लोगों को आलस्य रूपी पाप को पूरी तरह त्याग देना चाहिए।
प्रश्न 9. “उद्योग का उन्माद हो”—इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर – इसका अभिप्राय है कि सभी में कार्य करने और परिश्रम करने का तीव्र उत्साह एवं लगन हो।
प्रश्न 10. कवि चाहते हैं कि सुख और दुख में लोगों का व्यवहार कैसा हो?
उत्तर – कवि चाहते हैं कि सभी भाई सुख और दुख दोनों परिस्थितियों में समान रूप से भागीदार रहें।
प्रश्न 11. “अन्तःकरण में गूँजता राष्ट्रीयता का राग हो”—इस पंक्ति से कवि की कौन-सी भावना प्रकट होती है?
उत्तर – इस पंक्ति से कवि की देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की भावना प्रकट होती है।
प्रश्न 12. तीसरे पद्यांश में कवि ने कठिनाइयों में किस गुण की आवश्यकता बताई है?
उत्तर – तीसरे पद्यांश में कवि ने कठिनाइयों में अध्यवसाय, अर्थात धैर्य और परिश्रम की आवश्यकता बताई है।
प्रश्न 13. कवि ने जीवन, तन और मन के संबंध में क्या कामना की है?
उत्तर – कवि ने कामना की है कि जीवन सरल, शरीर सबल और मन विशेष रूप से निर्मल एवं पवित्र हो।
प्रश्न 14. कवि सत्यपथ के संबंध में क्या कहते हैं?
उत्तर – कवि कहते हैं कि चाहे हम अपने देश में हों या विदेश में, सत्य के मार्ग से कभी विचलित न हों।
प्रश्न 15. “अखिलेश का आदेश हो, जो बस वही उद्देश्य हो”—इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर – इसका तात्पर्य है कि हमारा जीवन उद्देश्य वही हो जो ईश्वर की आज्ञा और धर्म के अनुरूप हो।
प्रश्न 16. चौथे पद्यांश में कवि ने उपलक्ष्य और जीवन-लक्ष्य के विषय में क्या चेतावनी दी है?
उत्तर – कवि ने चेतावनी दी है कि छोटी-छोटी बातों (उपलक्ष्यों) के कारण हमें अपने मुख्य जीवन-लक्ष्य से कभी विचलित नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 17. कवि के अनुसार प्राण रहते हुए मनुष्य को किसका पक्ष लेना चाहिए?
उत्तर – कवि के अनुसार प्राण रहते हुए मनुष्य को सदा पुण्य और सन्मार्ग का ही पक्ष लेना चाहिए।
प्रश्न 18. “कर्तव्य एक न एक पावन नित्य नेत्र समक्ष हो”—इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर – इसका अर्थ है कि हमारे सामने प्रतिदिन कोई न कोई पवित्र कर्तव्य उपस्थित रहे, जिसे हम पूरी निष्ठा से निभाएँ।
प्रश्न 19. कवि सम्पत्ति और विपत्ति की स्थिति में क्या आचरण करने की शिक्षा देते हैं?
उत्तर – कवि सिखाते हैं कि हमें सुख (सम्पत्ति) और दुख (विपत्ति) दोनों परिस्थितियों में धैर्य और संतुलन बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 20. कविता ‘शुभकामना’ का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – कविता ‘शुभकामना’ का मुख्य संदेश है— नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम, सत्य, एकता, और देशभक्ति के मार्ग पर चलकर समाज और राष्ट्र का उत्थान करना।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- पद्यांश 1 की व्याख्या में कवि पारस्परिक प्रेम की कामना कैसे करते हैं?
उत्तर – कवि चाहते हैं कि सभी देशवासियों की नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाहित हो, गुण, शील, साहस, बल और उत्साह भरा हो। हृदय में समवेदना का दाह हो तथा एक-दूसरे की चाह बनी रहे, जो नैतिक बल और प्रेम की स्थापना करता है।
- पद्यांश 2 में देश की उन्नति के लिए कवि किन भावनाओं पर बल देते हैं?
उत्तर – कवि प्रार्थना करते हैं कि विद्या, कला-कौशल में अटल अनुराग हो, उद्योग का उन्माद हो, आलस्य का त्याग हो। सुख-दुख में सब भाइयों का समान भाग हो तथा हृदय में राष्ट्रीयता का राग गूँजे, जो परिश्रम और एकता को बढ़ावा देता है।
- ‘समवेदना का दाह’ से कवि क्या अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर – यह दूसरों के दुख के प्रति तीव्र सहानुभूति की भावना को दर्शाता है। कवि कामना करते हैं कि सबके हृदय में यह दाह सर्वदा बना रहे, जो सामाजिक सद्भाव और पारस्परिक सहयोग को मजबूत करता है, तथा राष्ट्र की एकता का आधार बनता है।
- पद्यांश 3 में कठिनाइयों के मध्य क्या विकास की कामना है?
उत्तर – कवि चाहते हैं कि कठिनाइयों में अध्यावसाय का उन्मेष हो, जीवन सरल, तन सबल और मन विमल हो। सत्यपथ कभी न छूटे तथा ईश्वर का आदेश ही उद्देश्य हो, जो आत्मबल और पवित्रता को बनाए रखने पर जोर देता है।
- ‘उद्योग का उन्माद’ का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पद्यांश 2 में कवि देशवासियों में परिश्रम का तीव्र जुनून पैदा करने की प्रार्थना करते हैं। इससे आलस्य रूपी पाप का त्याग होता है, जो उन्नति, ज्ञान और राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करता है तथा राष्ट्र की प्रगति का आधार बनता है।
- कवि ‘अखिलेश का आदेश’ से क्या समझाते हैं?
उत्तर – यह ईश्वर के आदेश को संदर्भित करता है, जो धर्म और कर्तव्य अनुकूल हो। कवि कामना करते हैं कि देश हो या विदेश, सत्यपथ न छूटे तथा यही एकमात्र उद्देश्य हो, जो जीवन में नैतिकता और दृढ़ता को स्थापित करता है।
- पद्यांश 4 में जीवन-लक्ष्य की स्थिरता कैसे व्यक्त है?
उत्तर – कवि कहते हैं कि उपलक्ष्य के पीछे जीवन-लक्ष्य विगलित न हो, प्राण रहते पुण्य का पक्ष हो, पावन कर्तव्य समक्ष हो तथा सम्पति-विपत्ति में वक्ष विचलित न हो, जो धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा की महत्ता दर्शाता है।
- ‘राष्ट्रीयता का राग’ का महत्त्व क्या है?
उत्तर – पद्यांश 2 में यह हृदय में गूँजते देशप्रेम के गीत को दर्शाता है। कवि चाहते हैं कि सुख-दुख में समान भाग हो, जो राष्ट्रीय एकता और उन्नति को मजबूत करता है तथा भारतवासियों में सामूहिक भावना को जागृत करता है।
- कविता में सत्यनिष्ठा की कामना कैसे की गई है?
उत्तर – पद्यांश 3 में कवि प्रार्थना करते हैं कि सत्यपथ कभी न छूटे, चाहे निज देश हो या विदेश। मन विमल हो तथा ईश्वर का आदेश उद्देश्य हो, जो विपरीत परिस्थितियों में आत्मबल और पवित्रता बनाए रखने पर बल देता है।
- पद्यांश 4 का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – कवि जीवन में लक्ष्य की स्थिरता, पुण्य का पक्ष, पावन कर्तव्य की उपस्थिति और सुख-दुख में अविचलित हृदय की कामना करते हैं। इससे कर्तव्यनिष्ठा और धैर्य की भावना स्थापित होती है, जो व्यक्तिगत और राष्ट्रीय उन्नति का आधार बनती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कविता ‘शुभकामना’ में मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रवासियों के लिए किस प्रकार की नैतिक और भावनात्मक उन्नति की प्रार्थना करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि देशवासियों की नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाहित हो, गुण, शील, साहस, उत्साह और समवेदना बनी रहे। विद्या-कला में अनुराग, उद्योग का उन्माद, आलस्य का त्याग तथा सुख-दुख में समान भाग हो। कठिनाइयों में अध्यावसाय, सत्यनिष्ठा और ईश्वर का आदेश उद्देश्य हो, जो पारस्परिक प्रेम, राष्ट्रीय एकता और धैर्य को मजबूत करता है।
- पद्यांश 1 और 2 में व्यक्त पारस्परिक प्रेम और परिश्रम की भावना राष्ट्र निर्माण में कैसे योगदान देती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर – पद्यांश 1 में कवि समवेदना और चाह की कामना से सामाजिक सद्भाव स्थापित करते हैं, जो एकता का आधार बनता है। पद्यांश 2 में विद्या-कौशल का अनुराग, उद्योग का उन्माद, आलस्य का त्याग और राष्ट्रीयता का राग उन्नति को प्रोत्साहित करता है। ये भावनाएँ देशवासियों में नैतिक बल, ज्ञान और सामूहिक प्रयास जागृत करती हैं, जो राष्ट्र की प्रगति और एकजुटता को सुनिश्चित करती हैं।
- पद्यांश 3 में विपरीत परिस्थितियों में आत्मबल बनाए रखने की कामना कैसे व्यक्त है? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – कवि कठिनाइयों के मध्य अध्यावसाय के उन्मेष, सरल जीवन, सबल तन और विमल मन की प्रार्थना करते हैं। सत्यपथ कभी न छूटे तथा अखिलेश का आदेश ही उद्देश्य हो, जो सत्यनिष्ठा और पवित्रता को बनाए रखता है। इससे देश-विदेश में कर्तव्य पालन सुनिश्चित होता है, जो व्यक्तिगत मजबूती और नैतिक दृढ़ता से राष्ट्र की स्थिरता को मजबूत बनाता है।
- पद्यांश 4 में जीवन-लक्ष्य की स्थिरता और कर्तव्यनिष्ठा पर कवि का दृष्टिकोण क्या है? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर – कवि कहते हैं कि उपलक्ष्य के पीछे जीवन-लक्ष्य विगलित न हो, प्राण रहते पुण्य का पक्ष हो तथा पावन कर्तव्य नेत्र समक्ष हो। सम्पति-विपत्ति में वक्ष विचलित न हो, जो धैर्य और स्थिरता पर बल देता है। उदाहरणस्वरूप, छोटी चीजों से विचलित न होकर शुभ कर्मों का समर्थन करना, राष्ट्र में नैतिकता और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है।
- समग्र कविता में राष्ट्रीय एकता और व्यक्तिगत विकास की कामनाएँ कैसे परस्पर जुड़ी हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि पुण्य रक्त, उत्साह, समवेदना, उद्योग, राष्ट्रीयता का राग, अध्यावसाय और सत्यनिष्ठा की कामना से व्यक्तिगत गुणों को विकसित करते हैं। ये व्यक्तिगत विकास से पारस्परिक प्रेम, एकता और धैर्य उत्पन्न करते हैं, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान देते हैं। जैसे सुख-दुख में समान भाग और ईश्वर का आदेश उद्देश्य होना, व्यक्तिगत मजबूती को राष्ट्रीय उन्नति से जोड़ता है।

