चन्दन-सी शुचि
भानु–सी वीचि
हृदय में मंगल कामना
लेकर आए हैं देवगण
पहने मनुज-सा बाना
पावन पद-ध्वनि
लाए नव रागिनी
है जगा रही है चेतना
जन-जन मधुरित हो उठे
फैली है ऐसी स्पंदना
हम हस्त-वदन
करते हैं नमन
इस अलौकिक रूप का
जिसके अभिलाषी हम सभी
जो हैं स्वरूप देव का
मुख में ज्योति
वाणी में प्रीति
अंतर में कोमल भावना
होंवे सुखी सब जीवगण
इतनी-सी हमारी याचना।
नभ में गूँजे
जग में पूजे
जयघोष सदा हो आपका
आशीष देके हमको अपना
पूरी करो मनोकामना।
अविनाश रंजन गुप्ता

