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अजामिल कौन था? नारायण नाम की महिमाअजामिल कौन था?

अजामिल के पिता एक धर्मपरायण व्यक्ति थे। वह शास्त्रों के अनुसार विधिवत भगवान विष्णु, अग्नि और सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। कुमार अवस्था तक अजामिल भी अपने माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र रहा, किंतु फिर जब वह यौवनावस्था में प्रवेश कर रहा था तो एक घटना ने उसकी विचारधारा ही बदल डाली और वह पाप के मार्ग पर चल पड़ा।

एक दिन जब वह अपने पिता की आज्ञानुसार पूजा के लिए वन से फल और फूल लेकर लौट रहा था, तो मार्ग में उसने एक सुंदर युवती को एक भील के साथ आते देखा। जैसे ही उस सुंदर युवती की नजर खूबसूरत अजामिल पर पड़ी, वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गई। अचानक ही उसके मुख से उद्गार निकल गए-

“वाह! कितना सुंदर नौजवान है। काश, मैं पति के रूप में इसे प्राप्त कर पाती।”

यह सुनकर उसका साथी भील भड़क उठा। क्रोध से उसने कहा, “बकवास मत करो। तुम नहीं जानतीं कि यह युवक कौन है। यह एक वेदपाठी ब्राह्मण का पुत्र है। इसका नाम अजामिल है।”

“यह कोई भी क्यों न हो। मैं इसकी सुंदरता पर मोहित हो चुकी हूँ। अब तो मैं इसे प्राप्त करके ही रहूँगी।” सुंदर युवती ने कहा।

“ठीक है फिर।” साथी भील गुस्से में भरकर बोला, “तुम टकराती रहो पत्थर से अपना सिर। मैं तो चलता हूँ।” कहकर वह भील आगे बढ़ गया।

सुंदरी आगे बढ़ी और अजामिल का रास्ता रोककर खड़ी हो गई।

“मैंने तुम्हें पति के रूप में चुन लिया है, युवक।” वह बोली, “तुम भी मुझे अपनी भार्या बनाओ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मुझसे ज्यादा जीवन का सुख कोई अन्य स्त्री तुम्हें नहीं दे पाएगी।”

उस भील युवती ने अजामिल को अपने रूप-जाल में ऐसा फँसाया कि अजामिल धर्म विमुख हो गया। वह उस सुंदरी को दिल दे बैठा। उसने पूजा के निमित्त ले जा रहे फल-फूल वहीं फेंके और उस नवयुवती को साथ लिए अपने पिता के पास जा पहुँचा। उसके पिता पूजा में विलंब होने के कारण पहले से ही उस पर क्रोधित हो रहे थे। एक अनजान युवती के साथ खाली हाथ आया देख उनका क्रोध और भी भड़क उठा, ‘“अजामिल। पूजा की सामग्री कहाँ है, और तुम्हारे साथ यह स्त्री कौन है?” उन्होंने कड़ककर पूछा।

“यह मेरी पत्नी है, पिताजी। आज वन में मैंने इसके साथ गंधर्व विवाह कर लिया है।” अजामिल ने धृष्ट स्वर में कहा।

अजामिल के पिता उसका उत्तर सुनकर सन्न रह गए। फिर बोले, “मुझे इस स्त्री का आचरण अच्छा दिखाई नहीं देता। तुम एक ब्राह्मण कुमार हो अजामिल। तुम्हें अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। “

“कैसी मर्यादा? कैसा धर्म? मैंने जो कुछ किया है, उचित ही किया है। यह जीवन मेरा है। मैं इसे किसी भी रीति से जीने के लिए स्वतंत्र हूँ।” अजामिल ढीठतापूर्वक बोला।

यह सुनकर पिता का क्रोध और भी भड़क उठा। वे पूजा से उठ खड़े हुए और अजामिल को दंड देने के लिए आगे बढ़े। फिर इससे पहले कि उसके पिता उस पर हाथ उठा पाते, अजामिल ने पहले ही वृद्ध पिता पर वार कर दिया। उसने वृद्ध पिता के सिर के बाल पकड़कर उन्हें भूमि पर गिरा दिया और क्रोधित स्वर में कहा, “कान खोलकर सुन ले बूढ़े, आज से वही होगा जैसा मैं चाहूँगा। अगर तुझे बुरा लगता है तो बेशक घर से बाहर निकल जा।”

दुख और संताप से दुखी होकर अजामिल का वृद्ध पिता उसी समय घर से बाहर निकल गया। अजामिल उस चरित्रहीन स्त्री को लेकर अपने कक्ष में प्रवेश कर गया।

“अच्छा ही हुआ जो बूढ़ा स्वयं ही यह घर छोड़कर चला गया। अब हमारे मार्ग में कोई बाधा नहीं रही। क्यों प्रिये। मैंने ठीक किया न?” अजामिल अपनी उस तथाकथित पत्नी के सिर पर हाथ फिराता हुआ बोला।

“तुमने बिलकुल सही किया। अब से हम दोनों इस जीवन का भरपूर आनंद उठाएँगे।’ वह स्त्री उसके सुर में सुर मिलाते हुए बोली।

अजामिल और वह वेश्या पाप मार्ग पर चल पड़े। जब घर का सारा धन समाप्त हो गया तो अजामिल ने चोरी करना आरंभ कर दिया। साथ ही साथ उसे जुआ खेलने की लत भी लग गई। प्रतिदिन वह मदिरापान भी करने लगा। उसका जीवन इसी कुमार्ग पर चलते हुए व्यतीत होता रहा। वेश्या से उसे एक-एक करके दस पुत्र प्राप्त हुए जिनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण था, अजामिल अपने इस पुत्र से बहुत प्यार करता था।

अट्ठासी वर्ष की अवस्था होते-होते एक दिन ऐसा भी आया जब वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। उसका समय पूरा हो चुका था, अतः, दो यमदूत उसके प्राण हरने के लिए उसके पास पहुँच गए। “ अजामिल!” एक यमदूत ने किंचित क्रोध के साथ कहा, ‘अब तुम्हें यमपुरी चलना होगा। यहाँ तुमने बहुत कुकर्म किए हैं। उन सबका दंड तुम्हें यमपुरी पहुँचकर दिया जाएगा।”

“यमदूतों को सामने देखकर अजामिल तो पहले ही भयभीत हो चुका था, यमपुरी ले जाने और वहाँ उसे दंड दिए जाने की बात सुनकर वह बुरी तरह से चीख उठा, “नारायण-नारायण। मुझे इन यमदूतों से बचाओ।”

अजामिल का आर्त्त स्वर क्षीरसागर में शेष – शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु ने सुना। उन्होंने तुरंत अपने दो पार्षदों को बुलाया और उनसे कहा, “तुरंत मृत्युलोक जाओ। वहाँ कोई मेरा भक्त संकट में है, तुम लोग वहाँ जाकर उसके कष्ट का निवारण करो।”

“जैसी आज्ञा प्रभु।” कहकर दोनों देवदूत मृत्युलोक को रवाना हो गए। वे दोनों अजामिल के यहाँ पहुँचे, जहाँ यमदूत उसके प्राण हरण की तैयारी कर रहे थे। भयाक्रांत अजामिल भयभीत स्वर में लगातार नारायण-नारायण की रट लगाता जा रहा था।

दोनों देवदूतों ने यमदूतों से कहा, “ठहरो यमदूतो! तुम इस व्यक्ति को यमपुरी नहीं ले जा सकते।” अजामिल के प्राण खींचने वाले दोनों यमदूतों के हाथ तुरंत रुक गए। लेकिन फिर उन्होंने कहा, “हे देवदूतो! हमें धर्मराज ने इस दुष्ट व्यक्ति के प्राण हरण का आदेश दिया है। हम इसके प्राण हरण किए बिना वापस लौट गए तो धर्मराज हम पर बहुत कुपित होंगे।”

इस पर देवदूतों ने कहा, “तुम्हारा कथन अपनी जगह पर उचित है, यमदूतो। लेकिन हमें भी अपने स्वामी भगवान विष्णु का आदेश हुआ है कि हम इसके कष्ट का निवारण करें।”

“लेकिन यह तो घोर नराधम है।” यमदूतों ने कहा, “जीवन में हर बुरा कर्म इसने किया। इसीलिए तो धर्मराज ने इसे रौरव नरक की यातना भुगतने का दंड दिया है। और सच बात तो यह है कि मृत्यु के भय से इसने नारायण नामक अपने पुत्र को सहायता के लिए पुकारा है, न कि भगवान श्रीहरि को।”

“इसने जीवन में कितने भी बुरे कर्म किए हों, किंतु अंतिम समय में नारायण का नाम इसके मुख से निकला है। अतः अब यह नरक का नहीं, बैकुंठ जाने का अधिकारी बन गया है।” देवदूत बोले। ‘जैसी देव की आज्ञा।” कहकर यमदूत वापस लौट गए।

दोनों यमदूतों को खाली हाथ आता देख धर्मराज ने इसका कारण पूछा। इस पर यमदूतों ने उन्हें सारी बातें बता दीं। सुनकर धर्मराज ने कहा, “यदि भगवान विष्णु का ऐसा ही आदेश है, तो उनकी आज्ञा शिरोधार्य है। तुम लोग अब से ठीक एक वर्ष बाद फिर जाना और उस व्यक्ति के प्राण हर लाना।”

इस प्रकार भगवान विष्णु के पार्षदों के दर्शन मात्र से ही अजामिल को एक वर्ष का जीवनदान और मिल गया। साथ ही उसमें सद्बुद्धि भी जाग्रत हो गई। वह सोचने लगा कि नारायण प्रभु की कृपा से मुझे एक वर्ष और जीने का अवसर मिल गया है। अब इस शेष जीवन को उन्हीं का स्मरण करते हुए गुजार दूँ, तभी मुझे मुक्ति मिल पाएगी।

उसी दिन से अजामिल की दिनचर्या बदल गई। वह सद्मार्ग पर चल पड़ा और हरिद्वार में गंगा किनारे कुटिया बनाकर श्रीहरि का जाप करने लगा। इस प्रकार जीवन के शेष दिन उसने सत्कार्य और साधु-संगत में ही बिताए।

आयु का शेष काल पूरा होते-होते यमदूत पुनः उसे लेने मृत्युलोक में पहुँचे, लेकिन उसकी रक्षा हेतु भगवान श्रीहरि के पार्षद भी वहाँ पहुँच गए। भगवान श्रीहरि के पार्षदों को देखते ही यमदूत वहाँ से पलायन कर गए। इस प्रकार भगवान नारायण के स्मरण मात्र से ही संसार भर का घोर पातकी व्यक्ति अजामिल भव ताप और रौरव नरक से मुक्ति पा गया। आयु समाप्त होने पर उसे बैकुंठ लोक में स्थान मिला। इसीलिए तो ज्ञानीजन कहा करते हैं कि कुछ समय सच्चे मन से प्रभु की आराधना और उसके स्मरण में अवश्य बिताना चाहिए। अजामिल की यह कथा भी हमें यही शिक्षा देती है।

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