शब्दार्थ
नीड़ – घोंसला
निर्माण – बनाना
नेह – स्नेह, प्रेम
आह्वान – बुलाना
आँधी – Storm
नभ – आकाश
सहसा – अचानक
धूलि-धूसर – धूल के रंग का
भूमि – ज़मीन
भाँति – की तरह
निशा – रात
सवेरा – सुबह
उत्पात-भय – Fear of disaster
भीत – दीवार
जन-जन – People
कण-कण – Particles
प्राची – पूर्व दिशा
उषा – सुबह
मोहिनी – मन मोहने वाली
झोंके – Capful of wind
काँपना – थरथराना
भीम कायावान – बड़े आकार वाला
भूधर – पहाड़
जड़ – Root
समेत – के साथ
विटप वर – तरुवर, वृक्ष समूह
हाय – Expression of sorrow
तिनका – तृण
विनिर्मित – बना हुआ
आशा – उम्मीद, Hope
विहंगम – पक्षी, सूर्य
गगन – आकाश
गर्व – अभिमान
निज – अपना
तान – Tone
क्रुद्ध – गुस्सा
नभ – आकाश
वज्र – Thunderbolt
दंत – दाँत
घोर – भारी, अधिक
गर्जनमय – Thunderous
कंठ – गला
खग – पक्षी
पंक्ति – Line
चोंच – Beak
सहज – आसान
पवन – हवा
उंचास – उनचास (वायु के उनचास (49) रूप)
प्रलय – कयामत, Universal dissolution
निस्तब्धता – सूनापन, सन्नाटा
सृष्टि – Creation
नव गान – नया गीत
पर्याय
नेह – स्नेह, प्रेम, प्यार
नभ – आकाश, नभ, गगन, अंबर
भूमि – ज़मीन, धरा, धरणी, वसुधा, वसुंधरा
निशा – रात, रात्रि, रजनी, यामिनी
सवेरा – सुबह, प्रातः, प्रत्यूष, उषा
भूधर – पहाड़, पर्वत्त, गिरि
आशा – उम्मीद, आस
विहंगम – पक्षी, खग, पखेरू सूर्य
विहंगम – सूर्य, रवि, दिनकर, दिवाकर
घोर – भारी, अधिक, गुरु
पवन – हवा, पवन, समीर, वायु
विलोम
निर्माण # विनाश
नेह # घृणा
आह्वान # विसर्जन
नभ # भूमि
भूमि # आकाश
निशा # दिवस
सवेरा # शाम
प्राची # पश्चिम
उषा # संध्या
जड़ # शीर्ष
आशा # निराशा
निज # पराया
क्रुद्ध # सौम्य
सहज # कठिन
उपसर्ग
विनिर्मित – वि + निर्मित
प्रत्यय
गर्जनमय – गर्जन + मय
निस्तब्धता – निस्तब्ध + ता
कविता में से
1.आँधी आने पर आस-पास क्या क्या बदलाव नज़र आते हैं?
आँधी आने पर धूलि-धूसर हवाओं से भूमि घिर जाती है। दिन में ही रात जैसा प्रतीत होने लगता है। घोर गर्जन होने के कारण जन-जन के हृदय में डर का संचार हो जाता है। पेड़ों की टहनियाँ टूट कर गिर जाती हैं। ऐसे दृश्य को देखकर लगता है जैसे दुनिया पूरी अस्त-व्यस्त हो गई है।
2. आँधी से कौन-कौन डरा हुआ था और सुबह की किरणें उन्हें क्या संदेश दे रही होंगी?
आँधी की विभीषिका से चर-अचर अर्थात् जन-जन और कण-कण सभी डरे-सहमे हुए-से प्रतीत होते हैं। सुबह की किरणें उन्हें यह संदेश देती है कि दुख के बाद सुख आता ही है। ये सुबह एक नई उम्मीद लेकर आई है कि फिर से अपने-अपने कार्यों में संलग्न हो जाओ।
3. कवि को ऐसा क्यों लग रहा होगा कि इस रात के बाद सुबह नहीं आएगी?
दुख की घड़ियाँ ज्यादा लंबी लगती ही हैं। कवि ने जब देखा कि धूलि-धूसर बादलों ने भूमि को इस तरह से घेर लिया है कि दिन में ही रात लगने लगा तो उनका निराश मन यह मान बैठा कि इस रात की सुबह नहीं होगी।
4. कविता के दिए गए अंश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर !
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
(क) ‘नीड़ का निर्माण’ के माध्यम से कवि क्या भाव प्रकट करना चाहता है?
क- ‘नीड़ का निर्माण’ के माध्यम से कवि यह भाव प्रकट कर रहे हैं कि विपत्ति, कठिनाइयाँ और समस्याएँ हर किसी के जीवन का अभिन्न अंग होता है। इनसे डर कर हमें जीना नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि इन पर विजय प्राप्त करते हुए जीवन का आनंद लेना चाहिए।
(ख) ‘क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों’ में कौन मुसकुरा रहा है?
ख- ‘क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों’ में आशा की किरण मुसकुरा रही है। अर्थात् हर समस्या के साथ अवसर भी मौजूद होता है जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा और अनुभव से लबरेज करता है।
(ग) ‘घोर गर्जनमय गगन’ का क्या अर्थ है?
ग – ‘घोर गर्जनमय गगन’ का यह अर्थ है कि जब आँधी आती है तो इसी गगन से ऐसी गर्जना होती है कि जन-जन और कण- कण भयभीत हो जाते हैं परंतु विपत्ति के बादल हटते ही पंछियों का कलरव वातावरण को मधुर कर देता है।
बातचीत के लिए
1. कविता में ‘आँधी’ कष्ट का प्रतीक है। बताइए, कविता में आए ‘निशा’, ‘अँधेरा’, ‘उषा’ शब्द किस अर्थ के प्रतीक हैं?
कविता में ‘आँधी’ कष्ट का प्रतीक है इसी क्रम में ‘निशा’ निराशा का प्रतीक है, ‘अँधेरा’ डर का प्रतीक है और ‘उषा’ आशा या उम्मीद का प्रतीक है।
2. ‘क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों’ पंक्ति में नभ का स्वरूप कैसा बताया गया है?
‘क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों’ में नभ के दो स्वरूपों के बारे में बताया गया है, पहला जब क्रोधित होकर वज्रपात और गर्जन करना और दूसरा सौम्य होने पर उम्मीद की आभा बिखरते हुए पक्षियों की चहचहाट से वातावरण को मधुर बनाना।
3. हमें दुखों से हार नहीं माननी चाहिए और क्यों? चर्चा कीजिए।
मनुष्य जीवन सुख-दुख के चक्र में सदैव घूमता रहता है, और देखा जाए तो जीवन में दोनों की आवश्यकता होती है परंतु कुछ लोग दुख की घड़ी में इतने दुखी हो जाते हैं कि उम्मीद का दामन ही छोड़ देते हैं जो कि मानसिक दुर्बलता की निशानी है। मनुष्य को चाहिए कि दुखों से हार न माने और जीवन में धैर्य, साहस और स्फूर्ति के साथ आगे बढ़े। यही हम सभी मानवों का परम गुण होना चाहिए।
अनुमान और कल्पना
1. अगर हमेशा दिन ही रहे और रात न हो, तो क्या होगा?
यदि हमेशा दिन रहे और रात न हो तो यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध होगा। इससे पृथ्वी बहुत गरम हो जाएगी और कहीं अधिक बारिश होगी तो कहीं अधिक सूखा। दूसरा, हम सभी के जीवन की रफ़्तार बढ़ जाएगी। चैन के पल जो हम रात में सोकर बिताते हैं वो हमसे दूर हो जाएगा। फलस्वरूप हम तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाएँगे।
2. ‘सृष्टि का नवगान’ का क्या अर्थ है? आपकी कल्पना में सृष्टि का नवगान कैसा होगा?
‘सृष्टि का नवगान’ का अर्थ है नई दुनिया का फिर से रूपाकार होने का मधुर मंगल गीत। मेरी कल्पना के अनुसार सृष्टि का नवगान प्रकृति अपने में समेटी हुई है जिसे हम बहती हवाओं में सुन सकते हैं, पंछियों की गीतों में महसूस कर सकते हैं, झरने की गौरव गीत और नदियों की बहती निर्मल धाराओं की आवाज़ में पा सकते हैं।
भाषा की बात
1. ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पंक्ति में ‘फिर-फिर’ शब्द-युग्म किस अर्थ की ओर संकेत करता है? अगर पंक्ति में केवल ‘फिर’ शब्द होता, तो उसका क्या अर्थ होता?
‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पंक्ति में ‘फिर-फिर’ युग्म शब्द ‘बार-बार’ की ओर संकेत कर रहा है। अगर पंक्ति में केवल ‘फिर’ होता तो इसका अर्थ ‘इसके बाद’ होता।
2. नीचे दिए गए शब्दों का सही समानार्थी शब्दों से मिलान कीजिए-
क. निशा – रात
ख़. भूमि – धरती
ग. नभ – गगन
घ. भूधर – पहाड़
ङ. नीड़ – घोंसला
जीवन मूल्य
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नवगान फिर-फिर !
1. नाश और निर्माण के बीच क्या संबंध है?
नाश और निर्माण के बीच विपर्याय का संबंध है। परंतु अगर गौर से देखा जाए तो दोनों एक दूसरे के आगे-पीछे चलते हैं, जैसे जब नाश होता है तभी निर्माण की भावना बल पाती है और निर्माण कार्य पूर्ण होता है। जब बदलते समय में नवनिर्माण की आवश्यकता अति आवश्यक हो जाती है तो नाश करके पुनः नवनिर्माण के कार्य को मूर्त रूप दिया जाता है। नाश और निर्माण प्रकृति और हम मनुष्य अपने-अपने हिसाब से करते ही रहते हैं।
2. नव-निर्माण के समय आने वाली कठिनाइयों का सामना आप कैसे करेंगे?
बात जीवन की हो या फिर नवनिर्माण की उपलब्धियों के मार्ग में कठिनाइयों का आना स्वाभाविक ही है। और मेरा मानना है कि समस्या चाहे कैसी भी क्यों न हो मनुष्य के मस्तिष्क से बड़ी कभी भी नहीं हो सकती। हम मनुष्यों को चाहिए कि हर कठिन परिस्थिति में दृढ़ प्रतिज्ञ और लक्ष्य संकल्पित होकर गंतव्य तक न पहुँच जाने तक जुझारू प्रवृत्ति अपनाए और डटे रहे।
कुछ करने के लिए
1. किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब आपने मुश्किल परिस्थिति का मुकाबला किया हो ।
उत्तर – छात्र स्वयं करें
2. प्रेरणात्मक कविताएँ ढूँढिए तथा कक्षा में कवि गोष्ठी का आयोजन कीजिए ।
उत्तर – छात्र स्वयं करें
अभ्यास सागर
पाठ – 18
निर्माण
अलंकार(पुनरावृत्ति),
अपठित काव्यांश
1.
क. पहली पंक्ति में नीड़ का निर्माण ‘न’
ख. दूसरी पंक्ति में धूलि-धूसर ‘ध’
ग. तीसरी पंक्ति में मोहिनी मुस्कान ‘म’
घ. चौथी पंक्ति में गर्जनमय गगन ‘ग’
ङ. पाँचवीं पंक्ति में चिड़िया चोंच ‘च’
अनुप्रास
2.
क. यहाँ ‘पीर’ का प्रयोग दो बार हुआ है जिसके दो अर्थ हैं- श्रेष्ठ व्यक्ति और कष्ट। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(श्रेष्ठ पुरुष वही कहलाता है जो दूसरों के कष्ट को समझे)
ख. यहाँ ‘बेनी’ का प्रयोग दो बार हुआ है जिसके दो अर्थ हैं- कवि का नाम और साँप की चाल। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(कवि बेनी कहते हैं कि राधा ने अपनी बेनी अर्थात् चोटी की सुंदरता साँप के चाल से चुराई है।)
ग. यहाँ ‘फिरावै’ का प्रयोग दो बार हुआ है जिसके दो अर्थ हैं- मन की गति पर नियंत्रण और मोती की गति पर नियंत्रण। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(कबीर हकते हैं, लकड़ी के मोतियों से बनी ये माला क्या तुम्हें सिखा सकती है कि यदि तुम्हें अपने मन की गति पर ही नियंत्रण नहीं है, तो मोती की गति का नियंत्रण क्यों? अर्थात् मोती नहीं मन पर नियंत्रण रखना ज़्यादा ज़रूरी है।)
यमक
3.
क. दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने (कुपुत्र का बड़ा होना और दीपक का बुझना) के साथ-साथ अँधेरा होता जाता है।
ख. राधा जी के पीले शरीर की छाया (झाँई) साँवले कृष्ण पर पड़ने से वे हरित (हरे) लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया (झाँई) पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।
श्लेष
4.
क. यहाँ अयोध्या नगरी की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा जा रहा है कि दीयों के प्रकाश से ऐसा लग रहा है कि यह गगन में विचरण करता हुआ स्वर्ग से मिलने जा रहा है।
ख. यहाँ अयोध्या नगरी की अतिशय प्रशंसा करते हुए कहा जा रहा है कि यहाँ औषधालय तो बने थे परंतु यहाँ का वातावरण इतना सुंदर, स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक है कि कभी भी कोई बीमार ही नहीं पड़ा।
अतिशयोक्ति
5.
क. ऊपर दी गई पंक्तियों में कवि कहता है कि वह धतूरे (कनक) को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षुक सोना (कनक) ले जा रहा हो। यहाँ ज्यों का भी प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ख. नीला जल आकाश का द्योतक है और गौर झिलमिल देह उगते हुए सूर्य के प्रकाश का द्योतक है अर्थात् ऐसा लग रहा है कि नीले जल में कोई गोरी देह वाली युवती स्नान कर रही है। यहाँ ‘जैसे’ का भी प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ग. ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि पंक्तियों में उत्त्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस जल-कण युक्त कमल (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है। वाक्य में ‘मानो’ वाचक शब्द प्रयोग हुआ है अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा
6.
क. यहाँ कुहरा जीवन की समस्याओं का प्रतीक है और दीया उन समस्याओं से लड़ने के साहस का प्रतीक है।
ख. “जो चाँद दिल के बुझाए बैठे हैं” से तात्पर्य उन लोगों से हैं जिनमें योग्यता होते हुए भी वे जीवन से निराश हो चुके हैं।
ग. “उड़ते हुए जुगनू” से तात्पर्य उन बच्चों और किशोरों से हैं जिनमें अभी-अभी कुछ कर गुजरने की चाहत पैदा हो रही है।
घ. जुगनुओं को मुट्ठी में दबाने वाले और कोई नहीं बल्कि उनके ही घर के सदस्य हैं जो जीवन से निराश हो चुके हैं।
ङ. इस काव्यांश से हमें यह संदेश मिलता है कि जीवन में मुश्किलें आती ही रहेंगी। हमें चाहिए कि हम अपनी पूरी ऊर्जा के साथ उसका डट कर सामना करें।
7.
क. उदय + अचल
ख. सुख + अनुभूति
ग. सम् + मान
घ. सम् + तोष
ङ. वाक् + व्यापार
8.
क. मतानुसार
ख. कपीश
ग. तथैव
घ. परमाणु
ङ. ब्रह्मर्षि
9.
क. लालिमा
ख. भटकाव
ग. सामीप्य
घ. शाक्त
10.
क. हमें दीन-दुखियों की मदद करनी चाहिए।
ख. विपत्ति में अधीर होना दुर्बल व्यक्तियों का आचरण है।
ग. जीवन की कठिनाइयों से हमें नहीं डरना चाहिए।
घ. ईश्वर के भजन सुनने से मन को असीम शांति मिलती है।
ङ. जीवन में समर्थ बनना बहुत बड़ी उपलब्धि है।
11.
क. उस बच्चे ने सेब खा लिया है।
ख. उनकी रुचि है फ़िल्म देखना और गाना सुनना।
ग. दो लड़कियाँ आ रही हैं।
घ. आकाश में अनेक पक्षी उड़ रहे हैं।
ङ. उस कमरे में बिजली नहीं है।
12.
क. में – अधिकरण कारक
ख. को – कर्म कारक
ग. से – अपादान कारक
घ. से – अपादान कारक
ङ. हे – संबोधन कारक
च. उसने – कर्ता कारक
13.
पत्र लेखन
दिनांक – 00/00/0000
सेवा में
श्रीमान यातायात अधिकारी
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय,
हटिया, राँची
विषय – चौराहे पर लाल बत्ती से अभाव से बढ़ती दुर्घटनाओं के संदर्भ में
महोदय
मैं, राकेश गुप्ता, डायमंड कॉलोनी, हटिया का एक ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा करते हुए आपका ध्यान नेताजी चौक में प्रतिदिन बढ़ रहे वाहन दुर्घटनाओं की तरफ़ आकर्षित करना चाहता हूँ। आपको हमारी तरफ़ से यह तीसरी चिट्ठी है जिसमें आपसे निवेदन किया गया था कि चौराहे पर लाल बत्ती लगवा दी जाए ताकि सभी वाहन बत्तियों के दिशा-निर्देश से रुके और जाएँ पर अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। दुर्घटनाएँ दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। दूसरी तरफ़, नेहरू मार्ग में सड़क निर्माण कार्य चल रहा है जिस वजह से इस रास्ते से वाहनों की आवाजाही भी बढ़ गई है।
अतः, आपसे करबद्ध निवेदन है कि मामले की गंभीरता को समझते हुए यथाशीघ्र उचित कार्रवाई करके हम सभी को कृतार्थ करें।
सधन्यवाद!
भवदीय
राकेश गुप्ता
डायमंड कॉलोनी
हटिया, राँची