भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक युग बनकर छाई रहीं। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र की अखंडता, राजनीति और लोककल्याण आदि उन्हें अपने दादा पंडित मोतीलाल नेहरू और पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू से विरासत में मिली थी। उन दिनों भारत ब्रिटिश दासता के चंगुल से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा था। राजनेता और जनसाधारण, दोनों ही आजादी के आंदोलनों में बराबर के भागीदार थे। नन्हीं इंदिरा के दिल पर इन सभी घटनाओं का अमिट प्रभाव पड़ा और 13 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ‘वानर सेना’ का गठन कर अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया।
भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद श्रीमती गांधी भारत की तृतीय और प्रथम महिला प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईं। 1971 में पुनः भारी बहुमत से वे प्रधानमंत्री बनीं और 1977 तक निरंतर इस गौरवशाली पद पर रहते हुए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक नयी शक्ति के रूप में स्थापित किया। करोड़ों लोगों की प्रिय प्रधानमंत्री का जीवन – इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है, जिनमें प्रमुख हैं – बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रथम परमाणु परीक्षण, बांग्लादेश जैसे नये राष्ट्र के जन्म की प्रमुख सूत्रधार, निर्धन लोगों के लिए आयोजित 20 – सूत्री कार्यक्रम, गुट निरपेक्ष आंदोलन की अध्यक्षा इत्यादि। 1980 में वे विपक्षी दलों को करारी पराजय देकर पुन: प्रधानमंत्री चुनी गईं।
एशिया की इस लौह-महिला का जन्म 19 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न परिवार में हुआ । इनका पूरा नाम है – इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी। वह राष्ट्रनायक तथा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की इकलौती सन्तान थीं। 1942 में उनका विवाह फिरोज गांधी से हुआ। उनके दो पुत्र हुए – राजीव गांधी तथा संजय गांधी। 31 अक्टूबर, 1984 की मनहूस सुबह को उन्हीं के अंगरक्षकों ने गोलियों से उन्हें शहादत की बलिवेदी पर चढ़ा दिया। वर्ष 1999 में बी.सी.सी. द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में इन्हें बीते मिलेनियम की सर्वश्रेष्ठ महिला घोषित किया गया है।