मानवीय करुणा की साकार मूर्ति
अपनी नि:स्वार्थ सेवा और करुणा से मदर टेरेसा ने सिर्फ भारतीयों के मन में ही अपना स्थान नहीं बनाया, उन्होंने समूचे विश्व के हृदय को भी जीत लिया। वे 6 जनवरी, 1929 को यूगोस्लाविया से भारत आईं। उन्होंने कलकत्ता को अपनी कार्यस्थली बनाया। अपने उद्देश्य के लिए उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चेरिटी (सिस्टर्स)’, ‘निर्मल हृदय (बीमार और मृत्यु के नज़दीक लोगों के लिए), मानसिक और शारीरिक रूप से असमर्थ बच्चों के लिए (शिशु भवन) जैसी संस्थाओं की स्थापना की।
मानवता के लिए किए गए अपने कार्यों के लिए मदर टेरेसा को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया, जिनमें से प्रमुख हैं: नोबेल शांति पुरस्कार (1979), भारत रत्न (1980), जवाहर लाल नेहरू अवार्ड फॉर इंटरनेशनल पीस (1972), रामन मैगसेसे पुरस्कार (1962), पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1971), ऑर्डर ऑफ मैरिट (1983) और राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार (1993)।
मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त, 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ था। उनका असली नाम था- एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ। उनके पिता एक साधारण व्यवसायी थे। ‘नन’ बनने के बाद उनका नाम बदलकर टेरेसा हो गया। 1925 यूगोस्लाविया की ईसाई मिशनरियों का एक दल सेवा कार्य हेतु भारत आया। उसने यहाँ की गरीबी और कष्टों के बारे में अपने देश को एक खत लिखा, जिसमें सहायता की माँग की गई थी। पत्र को पढ़कर एग्नेस स्वयं को रोक न सकीं और भारत आ गईं। और यहीं की होकर रह गईं। मदर टेरेसा ने ‘भ्रूण हत्या’ के विरोध में विश्व के सामने अपना रोष प्रकट किया। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोते-सिसकते रोगियों अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केंद्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया, या कम-से-कम उनके अंतिम समय को शांतिपूर्ण बना दिया। उन्होंने मानवता व उसकी शांति के लिए आजीवन स्वयं को समर्पित रखा। 5 सितंबर, 1997 को रात्रि के 9.30 बजे करुणामयी मदर सदा-सदा के लिए इस संसार से विदा हो गईं।