Personalities

तुलसीदास

tulasidas ki lokpriyata ke karan

भारत : रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि

जन्म संवत् 1589 मृत्यु संवत् 1680

भक्तिकाल के अग्रगण्य रामभक्त कवि श्री तुलसीदास ने एक ऐसे भक्ति- साहित्य की रचना की थी, जिसने समग्र हिन्दू समाज को भाव विभोर कर दिया था। आज भी तुलसी के दोहे और चौपाइयाँ लोगों की जिह्वा पर रहते हैं। उनके द्वारा लिखा गया ‘रामचरित मानस’ हिन्दू धर्म की प्रतिनिधि रचना है और उसे घर-घर में आदर प्राप्त हुआ है। तुलसी ने अवधी भाषा में रचनाएं की जिससे जनसाधारण उन्हें पढ़ सकें। हिन्दुओं के युग पुरुष के रूप में उन्होंने धार्मिक जागृति का शंखनाद किया। वे धर्म, संस्कृति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं। तुलसीदास का साहित्य काव्यगत गुणों की दृष्टि से भी अनूठा है। ‘रामचरित मानस’ महाकाव्य के अतिरिक्त उनके द्वारा लिखित ग्रंथों में ‘रामलला नहछ ‘वैराग्य संदीपनि’, ‘बरवै रामायण’, ‘पार्वती मंगल’, ‘जानकी मंगल’, ‘रामाज्ञा’ ‘दोहावली’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘कृष्णगीतावली’, ‘विनयपत्रिका’ एवं ‘हनुमान चालीसा’ प्रमुख हैं।

गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान राजापुर (उ.प्र.) माना जाता है। जन्म के समय इनके मुंह में पूरे दांत थे, अतः अशुभ मानकर माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के कारण संत नरहरिदास ने काशी में उनका पालन-पोषण किया था। बचपन में ही उन्हें वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा मिलने लगी थी। उनका विवाह ‘रत्नावली’ नाम की युवती से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि रत्नावली की प्रेरणा से ही वे घर से विरक्त होकर तीर्थाटन के लिये निकल पड़े और तन-मन से भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।

तुलसीदास ने मानव और समाज के उत्थान हेतु लोक-मर्यादा की आवश्यकता को महसूस किया था, इसीलिए उन्होंने ‘रामचरित मानस’ में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया है और राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, हनुमान आदि के रूप में ऐसे आदर्श चरित्रों की कल्पना की है जो जनमानस का सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे। काशी में संवत् 1680, श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन वे स्वर्ग सिधार गए पर भारतीय जनमानस में वे सदैव जीवित रहेंगे।

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