इंग्लैंड : भौतिक शास्त्री एवं गणितज्ञ
जन्म 1642 मृत्यु 1727
गुरुत्वाकर्षण शक्ति एवं ‘गति नियम’ के जन्मदाता सर आइज़क न्यूटन वैज्ञानिक गैलीलियो को अपना प्रणेता मानते थे। उन्होंने प्रकृति के अज्ञात नियमों को उजाले में लाने का सराहनीय कार्य किया। तर्क को आधार बनाकर उन्होंने विज्ञान की पुरानी त्रुटियों को सुधारा एवं नए-नए नियमों का प्रतिपादन किया। बचपन में न्यूटन ने पानी से चलने वाली एक घड़ी बनाई थी। ‘प्रिज्म’ के आविष्कार के अलावा उन्होंने ‘अवकलन-गणित’ (differential calculus) का आरंभ किया। ‘गुरुत्वाकर्षण’, ‘गति’ एवं ‘प्रकाश कणिका’ सिद्धांत उनकी अमूल्य देन हैं। न्यूटन ने अपनी खोजों को ‘प्रिंसिपिया’ नामक अमर ग्रंथ में प्रकाशित कराया था। न्यूटन को ‘सर’ की उपाधि दी गई, जो वैज्ञानिक के रूप में किसी व्यक्ति को पहली बार दी गई थी। रॉयल सोसायटी (लंदन) ने उन्हें पहले अपना ‘फेलो’ और बाद में आजीवन अध्यक्ष चुना था।
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज न्यूटन का सबसे महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। एक दिन युवा भौतिक शास्त्री (physicist) न्यूटन ने लक्ष्य किया कि जब पेड़ से सेब टूट कर गिरते हैं तो सीधे पृथ्वी पर आते हैं पर उनकी गति में पृथ्वी से दूरी के अनुसार अन्तर होता है। उन्हें लगा कि पृथ्वी में एक चुम्बकीय ‘शक्ति अवश्य है, जो सेबों को अपनी ओर खींचती है और इस प्रकार उनके पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी सिद्धान्त ने जन्म लिया। उन्होंने यही सिद्धान्त सौरमंडल (Solar System) के नक्षत्रों और ग्रहों की गति पर भी लागू किया।
इसी प्रकार उन्होंने अनेक मौलिक सिद्धान्त सामने रखे जिनके आधार पर ही आज के महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष संबंधी अनुसंधान संभव हो सके हैं।
आइज़क न्यूटन का जन्म इंग्लैंड के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। उन्होंने कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज (Trinity College) में बी. ए. की डिग्री ली और 1665 से अपने आपको विज्ञान की दुनिया को समर्पित कर दिया। 85 वर्ष की अवस्था में इस प्रतिभाशाली वैज्ञानिक का निधन हो गया। अंतिम संस्कार के समय इंग्लैंड में उन्हें अद्वितीय सम्मान दिया गया।