भारत – इंग्लैंडः महान् उपन्यासकार
जन्म : 12 अगस्त, 1932
सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल भारतीय मूल के पुरखों की संतान हैं। उनका जन्म सन् 1932 के अगस्त महीने की 17 तारीख को त्रिनिदाद में पोर्ट ऑफ़ स्पेन के निकट हुआ। उन्हें उनकी पुस्तक ‘द एनिग्मा ऑफ अराइवल’ के लिए 10, दिसंबर, 2001 को साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। वह 18 वर्ष की आयु में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए इंग्लैंड चले गए। क्वींस रॉयल कॉलेज, पोर्ट ऑफ स्पेन में इससे पूर्व शिक्षा प्राप्त की। वह इंग्लैंड में ही बस गए। इसीलिए संसार भर में ब्रिटिश लेखक के रूप में जाने जाते हैं। वी.एस. नायपॉल ने अपने जीवन का अधिकांश समय अनेक सवालों की खोज में दुनिया-भर में घूमकर गुज़ारा। उनका अधिकतर लेखन उत्तर औपनिवेशिक परिवर्तनों की त्रासदी में जी रहे आदमी की पड़ताल करता है तथा जीवन में नैतिकता के संकट को उजागर करता है।
अपने लेखन की विकास यात्रा में नायपॉल ने गहनता और अर्थवतता को तो प्रमाणित किया ही, बल्कि मार्मिकता के पथ को भी नहीं छोड़ा। यह वैचारिकता ‘फाइंडिंग द सेंटर’ (1984) और ‘द एनिग्मा ऑफ अराइवल’ (1987) में समाहित है। उनका लेखन आत्मकथात्मक शैली में मौजूद है। ‘ए हाउस फॉर मि. बिस्वास’ उनकी सर्वाधिक चर्चित कृति है। इसमें अपनी जड़ों को छोड़कर एक भारतीय जिस तरह प्रवास करता है, उसकी पीड़ा को अभिव्यक्ति मिली है। एक और कृति ‘इन ए फ्री स्टेट’ पर उन्हें 1971 में ब्रिटेन का सर्वोच्च साहित्यिक बुकर पुरस्कार मिल चुका है। इसके अतिरिक्त भी अनेक पुरस्कार व सम्मान मिले। ब्रिटेन के वह इतने सम्मानित व्यक्ति हैं कि इन्हें 1990 में ‘नाइट’ की उपाधि से विभूषित किया गया। उन्हें उपन्यास लेखन में ख्याति मिली, जबकि उन्होंने नॉन फिक्शन पुस्तकें भी लिखीं। सर नायपॉल ने 1955 पेट्रिशिया हाले के साथ विवाह किया। पत्नी की 1996 में मृत्यु के बाद पत्रकार नादिरा खानम अल्वी से दूसरा विवाह कर लिया। वह सन् 2002 में भारत के दौरे पर आए और यहां साहित्य जगत से रू-ब-रू हुए।