भारत : अप्रतिम सितारवादक
जन्म : 1920
रविशंकर विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े ‘उद्घोषक हैं। एक सितारवादक के रूप में उन्होंने जो ख्याति अर्जित की है, उससे ऐसा लगने लगा है कि रविशंकर और सितार मानो एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि वे बीसवीं शती के सबसे बड़े संगीतज्ञों में गिने जाते हैं। संगीत की साधना में अपना जीवन व्यतीत करने वाले रविशंकर को विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। अभी तक भारत के बाहर उनके जितने भी संगीत कार्यक्रम हुए हैं, वे अत्यन्त लोकप्रिय एवं सफल रहे हैं। पाश्चात्य जनता ने सदैव मंत्रमुग्ध होकर उनके अद्भुत सितार वादन को सुना है। रविशंकर के संगीत में उन्हें एक प्रकार की आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
रविशंकर संगीत की परंपरागत भारतीय शैली के अनुयायी हैं, इसलिए वे पाश्चात्य शोर-शराबे के संगीत से काफी ऊपर हैं। जब भी उनकी उंगलियां सितार पर गतिशील होती हैं, सारा वातावरण ही झंकृत हो उठता है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई-नई पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली में सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है।
रविशंकर अनेक दशकों से अपनी प्रतिभा दर्शाते आ रहे हैं। 1982 के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के ‘स्वागत गीत’ को उन्होंने कई स्वर प्रदान किए थे। उनको देश-विदेश में कई बार सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 1986 में राज्यसभा का मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया गया है। विदेशों में भारतीय संगीत के प्रचार के लिए लॉस एंजेल्स (अमरीका) में उन्होंने ‘किन्नर स्कूल ऑफ म्यूजिक’ की 1967 में स्थापना की। रविशंकर की आत्मकथा ‘माई लाइफ एंड माई म्यूजिक’ उनकी समूची संगीत यात्रा की एक सजीव तस्वीर पेश करती है।