भारत : हॉकी के जादूगर
जन्म : 1905 मृत्यु : 1979
एक समय था जब ध्यानचंद और हॉकी एक दूसरे के पर्याय बन गए थे। ध्यानचंद ने ही ‘हॉकी’ के माध्यम से भारत की एक विशिष्ट पहचान बनाई थी। लगातार तीन ओलंपिक खेलों में उन्होंने भारत को स्वर्णपदक दिलाने के अलावा 1936 के ऐतिहासिक बर्लिन ओलंपिक में भारत के विजयी कप्तान की भूमिका भी निभाई थी। ओलंपिक में उन्होंने 101 और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मैचों में लगभग 300 गोल किये जो अभी तक एक अखंडित रिकॉर्ड है। अपनी अद्भुत क्षमता के कारण ही वे ‘हाकी के जादूगर’ (Hocky Wizard) कहलाए। विश्व में भारत और हॉकी का गौरव बढ़ाने वाले ध्यानचंद स्वयं ‘हॉकी’ के पर्याय ही बन गये थे।
ध्यानचंद का जन्म प्रयाग (उ.प्र.) में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। सोलह वर्ष की आयु में ही वे सेना में भर्ती हो गये। सेना में ही उन्होंने ‘हॉकी’ की शुरुआत की और 1928 में एम्सटर्डम जाने वाली ओलंपिक टीम में चुन लिये गये, जहां भारत ने स्वर्णपदक जीता। वहां 28 गोलों में से 11 केवल ध्यानचंद ने किए थे। फिर वे अपने खेल में निरंतर तरक्की करते रहे। ध्यानचंद को भारत एवं विदेशों में बहुत अधिक सम्मान मिला। भारत के स्वतंत्र होने के बाद वे मेजर बना दिए गए और हॉकी की सेवा के उपलक्ष्य में उन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि दी गई। 1936 में बर्लिन में ‘जैतून का मुकुट’ (Olive Crown) द्वारा एवं 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में ‘विशेष अतिथि’ के रूप में उनका सम्मान किया गया था। हॉकी के . जीवनसाथी दादा ध्यानचंद का 3 दिसंबर, 1979 को देहांत हो गया।
विश्वस्तर के क्रिकेट खिलाड़ी डोनाल्ड ब्रेडमेन ने शायद ध्यान चंद के खेल पर ही प्रतिक्रिया करते हुए एक बार कहा था- ‘भारतीय हॉकी खिलाड़ी गोल ऐसे बनाते हैं जैसे रन ले रहे हों।’
भारतीय हॉकी सदैव उन्हें याद रखेगी, इसका पर्याय जो थे ध्यानचंद।