Hindi Manjari Class IX Hindi solution Odisha Board (TLH) दोहे – कबीरदास

सन्त कबीर दास का जन्म सन् 1398 में काशी के एक हिन्दू परिवार में हुआ। पर उनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक मुसलमान जुलाहा दम्पति ने किया। इसलिए कबीर दास को हिन्दू और मुसलमान दोनों के गुण मिले। कबीर को किसी विद्यालय में पढ़ने का सुयोग नहीं मिला। लेकिन वे बड़े तेज बुद्धिवाले बालक थे। वे जुलाहे का काम करते थे। दुनिया को देखकर उन्होंने बहुत कुछ सीख लिया। समाज में व्याप्त बुराई को देख उन्हें बहुत दुख हुआ। लोगों को अच्छी बातें सीखाने के लिए वे कमर कसकर खड़े हो गए। जाति-भेद, धार्मिक अन्धविश्वास और बाहरी क्रिया-कलाप जिसमें आन्तरिक भाव नहीं था – कबीर को पसन्द न आया। उन्होंने लोगों को काम करने, दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करने, बुद्धि और विचार से काम लेने का आग्रह किया। उस समय के हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों में फैले हुए धार्मिक अन्धविश्वासों, सामाजिक रूढ़ियों, बुरे तथा अमानवीय रीति-रिवाजों एवं कुसंस्कारों को मिटाने को कबीर डट कर खड़े हुए। उन्होंने जाति-धर्म से परे जीवन के मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाया जिसे गृहस्थ और संन्यासी, हिन्दू और मुसलमान, शैव और वैष्णव, शाक्त और योगी एवं सिद्ध आदि स्वीकार कर सकें। कबीर ने तप, तीर्थ, व्रत, सन्ध्या, नमाज

आदि के बदले नैतिकता, सदाचार, ज्ञान और भगवत् प्रेम पर जोर दिया।

साखीशब्द साक्षीका अपभ्रंश रूप है। यह शब्द ज्ञान और अनुभूति का प्रतीक है। यह वह ज्ञान या अनुभूति है जिसे स्वयं कवि ने अपने अन्त:करण से साक्षात्कार किया है। कबीरदास की साखियाँ इसी ज्ञान और अनुभूति की साक्षी हैं अर्थात् साक्षात्कार करने और करनेवाली हैं।

कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है।

– 1 –

मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बारम्बार।

तरवर थै फल झड़ि पड़या, बहुरि न लागै डार॥

शब्दार्थ –

मनिषा – मनुष्य।, दुर्लभ – मिलना मुश्किल है।, देह शरीर।, तरवर – पेड़।, बारम्बार- बार-बार।, झड़ि पड़या – गिर पड़ना।, बहुरि – पुनः, फिर।, लागै – लगना।, डार – डाली।

व्याख्या

संसार में मनुष्य का जन्म दुर्लभ होता है। मनुष्य की देह या शरीर बार-बार नहीं मिलता। वृक्ष से फल के एक बार झड़ जाने के बाद यह पुनः उस पेड़ की डाली पर लग नहीं सकता। मतलब यह है कि मानव को समस्त सांसारिक विषय-वासनाओं को त्याग करना चाहिए। इस क्षणभंगुर शरीर के रहते साधना के जरिए ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। अपने जीवन को अनुकरणीय बनाना चाहिए। तभी दुर्लभ मानव-जीवन का सदुपयोग हो सकेगा।

2

“सोना सज्जन साधु जन टूटि जुरै सौ बार।

दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार॥”

शब्दार्थ

सोना – स्वर्ण।, सज्जन – अच्छे लोग।,  साधु जन – अच्छे लोग।,   टूटि – टूटना।,  जुरै – जुड़ना।, दुर्जन – बुरा आदमी।, कुंभ – मटका।,  एकै – एक।, धका – धक्का।, दरार – fracture

इन दोहों को समझें :

2. सोना, सज्जन और साधुजन तीनों की गति एक जैसी ही होती है ये टूटने के बाद भी सौ बार जुड़ सकते हैं; जबकि दुर्जन या बुरे व्यक्ति कुम्हार के घड़े जैसे होते हैं जो एक धक्के या झटके से टूट जाते हैं। मतलब सज्जन लोग सर्वदा मित्रता बनाए रखते हैं, मगर दुर्जन जरा- सा खटपट होते ही अलग हो जाता है।

(क) मनुष्य के जन्म को दुर्लभ क्यों कहा गया है?

उत्तर – मनुष्य के जन्म को दुर्लभ कहा गया है क्योंकि 84 लाख योनियों में जीवन जीने के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य जीवन ही एक मात्र ऐसा जीवन है जिसे हम अनुकरणीय और अविस्मरणीय बना सकते हैं। इसलिए कबीर का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना मनुष्य जीवन सार्थक बनाना चाहिए।  

(ख) साधुओं और सज्जनों की तुलना किससे की गई है और क्यों?

उत्तर – साधुओं और सज्जनों की तुलना सोने से की गई है क्योंकि साधु और सज्जन सोने की तरह ही बहुत कीमती होते हैं और अगर किसी कारणवश हमारा संबंध उनसे थोड़ा बिगड़ भी जाता है तो हमारे मनाने पर वे तुरंत ही मान जाते हैं।

(ग) कुम्हार का कुंभ किसे कहा गया है और क्यों?

उत्तर – कुम्हार का कुंभ दुर्जन व्यक्तियों को कहा गया है क्योंकि ऐसे लोगों में अभिमान और अल्पज्ञता बहुत होती है और जब इन लोगों का किसी से मनमुटाव होता है तो इनके पारस्परिक संबंध में ठीक वैसे ही दरार पड़ जाते हैं जैसे मिट्टी के कुंभ में हल्के से धक्के या झटके से दरार पड़ जाती है। 

(घ) कबीरदास के दोहों को साखीक्यों कहा जाता है?

उत्तर – कबीरदास के दोहों को साखीकहा जाता है क्योंकि साखी शब्द साक्षी शब्द का तद्भव या बदला हुआ रूप है। आज के संदर्भ में भी कबीर के दोहे उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि कई सदियों पहले थे। इनका एक-एक दोहा गवाह की तरह है जो ज्ञान और अनुभूति का प्रतीक है।

(क) मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बारम्बार।

उत्तर – कबीर अपने इस पंक्ति में यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य का जीवन दुर्लभ है और मनुष्य को मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता इसलिए हमें मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।  

(ख) दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।  

उत्तर – इस पंक्ति में कबीर दुर्जन के स्वभाव के बारे में बताते हुए कह रहे हैं कि दुर्जन व्यक्ति कुम्हार के मिट्टी के कुंभ के समान कमजोर होते हैं और एक झटके से उनमें दरार आ जाती है। अर्थात् जिस संबंध में उनके अनुसार कार्य पूरे नहीं होते हैं तो अज्ञानवश वे रिश्ते ही तोड़ लेते हैं।     

(क) किसके जन्म को दुर्लभ माना गया है?  

उत्तर – मनुष्य जन्म को दुर्लभ माना गया है।

(ख) कौन-कौन टूट जाने के बाद भी जुड़ सकते हैं?

उत्तर – सोना, सज्जन और साधू टूट जाने के बाद भी जुड़ सकते हैं।

(क) क्या बार – बार नहीं मिलता?

उत्तर – मनुष्य जीवन बार – बार नहीं मिलता है।

(ख) सज्जनों की तुलना किससे की गयी है?

उत्तर – सज्जनों की तुलना सोने से की गई है।

(ग) कुम्हार का कुंभ किसे कहा गया है?

उत्तर – कुम्हार का कुंभ दुर्जन व्यक्तियों को कहा गया है।

5. कबीरदास के दोहों को कण्ठस्थ कीजिए।

1. कबीरदास संत थे। काशी में रहते हुए भी उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया। अतः उनकी भाषा में विभिन्न प्रदेशों के शब्द पाये जाते हैं। उनकी भाषा में ब्रजभाषा, अवधी, मगही, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी, राजस्थानी, पंजाबी आदि का मेल है। साथ ही बोलचाल के क्षेत्रीय प्रभावों के कारण कबीरदास के कुछ शब्द रूपों में परिवर्तन भी देखने को मिलता है। जैसे- मनुष्य से मनिषा, मन से मनवा या मनुवा आदि। उच्चारण के परिवर्तन से वर्त्तनी भी बदल जाती है।

नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं जिनका मूल रूप लिखिए जो आप समझते हैं –

मनिषा मनुष्य

जुरै – जुड़ना

बहुरि – फिर

धका – झटका, धक्का

2. निम्नलिखित शब्दों का समानार्थी शब्द लिखिए।

मनिषा – मनुष्य, मानव

देह – तन, बदन

तरवर – पेड़, पादप

सोना – कंचन, स्वर्ण

कुंभ – मटका, घड़ा

3. निम्नलिखित शब्दों का विपरीत शब्द लिखिए।

जनम – मृत्यु

दुर्लभ – सुलभ

सज्जन – दुर्जन

साधु – डाकू

4. निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

(क) मनिषा जनम दुर्लभ है देह न बारम्बार।

(ख) सोना सज्जन साधु जन टूटि जुरै सौ बार।  

(ग) दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।  

5. निम्नलिखित शब्दों को पाँच-पाँच बार लिखिए।

कबीर – कबीर कबीर कबीर कबीर कबीर

अनमोल – अनमोल अनमोल अनमोल अनमोल अनमोल

मोती – मोती मोती मोती मोती मोती

दुर्लभ दुर्लभ दुर्लभ दुर्लभ दुर्लभ दुर्लभ

कुम्हार – कुम्हार कुम्हार कुम्हार कुम्हार कुम्हार

(ध्यान दीजिए कि हिन्दी में ह्रस्व और दीर्घ मात्राएँ होती हैं। उनको सही लिखना जरूरी है।)

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