भारत :
जनसेवी स्वतन्त्रता सेनानी
जन्म : 1865
मृत्यु : 1928
आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुये अपने प्राणों की परवाह न करने वाले ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपतराय स्वामी दयानंद से काफी प्रभावित थे। पंजाब के ‘दयानंद एंग्लो वैदिक कालेज’ की स्थापना के लिये भी आपने अथक प्रयास किये थे। वे स्वभाव से ही मानवसेवी थे। 1899 के देशव्यापी अकाल के समय वे पीड़ितों की सेवा में जी जान से जुटे रहे। 1901-8 की अवधि में उन्हें फिर भूकंप एवं अकाल पीड़ितों की मदद के लिये सामने आना पड़ा। 1912 में उन्होंने एक ‘अछूत कांफ्रेंस” आयोजित की थी जिसका उद्देश्य हरिजनों के उद्धार के लिये ठोस कार्य करना था।
उनके हृदय में राष्ट्रीय भावना भी बचपन से ही अंकुरित हो उठी थी। 1888 के कांग्रेस के ‘प्रयाग सम्मेलन’ में वे मात्र 23 वर्ष की आयु में शामिल हुये थे। कांग्रेस के ‘लाहौर अधिवेशन’ को सफल बनाने में आपका ही हाथ था। 1907 में उन्हें 6 माह का निर्वासन सहना पड़ा था। वे कई बार इंग्लैंड गए जहां उन्होंने भारत की स्थिति में सुधारहेतु अंग्रेजों से विचार-विमर्श किया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय लाला जी ने अमेरिका जाकर वहां के जनमत को अपने अनुकूल बनाने का भी सराहनीय प्रयास किया था। उन्होंने ‘तरुण भारत’ नामक एक देशप्रेम तथा नवजागृति से परिपूर्ण पुस्तक लिखी थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। अमेरिका में उन्होंने ‘इंडियन होमरूल लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक मासिक पत्र भी निकाला। इसी दौरान उन्होंने ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिये आत्मनिर्णय’ आदि पुस्तकें लिखीं जो यूरोप की प्रमुख भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं।
सन् 1920 में उन्होंने पंजाब में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया जिसके कारण 1921 में आपको जेल हुई। इसके बाद लालाजी ने ‘लोक सेवक संघ’ की स्थापना की। 30 अक्टूबर, 1928 में उन्होंने लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरुद्ध आंदोलन का भी नेतृत्व किया था और अंग्रेजों का दमन सहते हुये लाठी प्रहार से घायल हुए थे। इसी आघात के कारण उसी वर्ष उनका देहांत हो गया।